SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अगस्तिने (समुद्र) पीतां सरोवर रही जाय तथा खांडतां कोइ पण फोतरुं रही जाय तेनी पेठे श्रा मने थयो वे. तोपण हुं फोकट सर्वज्ञवादीने सहन करी शकतो नथी. ए एक न जीताय तो सर्व पण न जीतायुं थाय. सती स्त्री एक बार पण शीलत्रतथी प्रष्ट थाय तोपण ते हमेशां सतीज कड़े वाय. आश्चर्य वे के त्रण जगतमां हजारो वादीने में वाद वडे जीत्या डे, पण खीचमीनी हांगली मां जेम कोइ कांगडुं मग रही | जाय तेम या वादी रही गयो बे. वली आवादीने जीत्या विना मारो जगतने जीतवाथी उत्पन्न थयेलो यश पण नाश पामशे, केमके शरीरमां र हेलुं अल्प शल्य पण प्राणने तजावे बे. कथं बे के वहाणमां एक अल्पबित्र परुवार्थी पण शुं ते समुद्रमां डुबी जतुं नयी ? तथा एक इंट खसेमवाथी पण समस्त किल्लो | पमी जाय बे. इत्यादि विचार करीने करेल बे बार तिलको जेणे एवो, तथा सोनानी जनोश्थी विनू| षित थयेलो, तथा उत्तम रीते करेल वे पीलां वस्त्रोनो आनंबर जेणे एवो, तथा हाथमां धारण करेल बे पुस्तको जेनुए एवा केटलाक शिष्योथी वींटायेलो, तथा हाथमां पकडेलां वे कर्ममलुट जेर्जए एवा केटलाक शिष्योथी वींटायेलो, तथा दाथमां राखेल बे दर्ज जेए एवा केटलाक शिष्योथी वींटायेलो, तथा हे सरखती जेना कंठनुं आभूषण बे एवा ! हे वादी नी विजयलक्ष्मी ने शरण सरखा ! हे वादीउना | मदने उतारनारा ! हे वादीनां मुखने जांगनारा ! हे वादी रूपी हाथी प्रत्ये सिंह सरखा ! हे वादीउना ईश्वरनो नाश करनार ! हे वादीरूपी सिंह प्रत्ये श्रष्टापद सरखा ! हे वादीने जीतवाथी निर्मल | थयेला ! हे वादी र्जना समूहना राजा ! हे वादी उना शिर प्रत्ये काल सारखा ! हे वादी रूपी केल प्रत्ये तलवार सरखा! हे वादी रूपी अंधकार प्रत्ये सूर्य सरखा ! हे वादीरूपी घने पीसवाने घंटी सरखा ! हे | वादीना मदनुं -मरमनुं मर्दन करनार ! हे वादीरूपी घमाने तो मवाने मुजर (मोघर) सरखा ! हे वादी रूपी | घुमने सूर्य सरखा! हे वादी रूपी समुद्र प्रत्ये अगस्ति ऋषि सरखा ! हे वादी रूपी वृक्षने उखेकी नाख| वामां हाथी सरखा! हे वादी रूपी देवोना इंद्र सरखा! हे वादी रूपी गरुड प्रत्ये गोविंद सरखा ! हे वादीरूपी माणसोना राजा ! हे वादीरूपी कंसने मारवामां कृष्ण सरखा ! हे वादी रूपी हरिण प्रत्ये सिंह Jain EducationCtional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy