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________________ कल्प सुबोध ॥१०॥ हवे स्त्रीनी चोसठ कला था प्रमाणे-नृत्य १, औचित्य , चित्र ३, वादित्र ४, मंत्र ५, तंत्र, ६ घनवृष्टि , फलाकृष्टि ७, संस्कृत वाणी ए, क्रियाकल्प १०, झान ११, विज्ञान १२, दंन १३, अंबु-1 स्तंज १५, गीतमान १५, तालमान १६, थाकारगोपन १७, आरामरोपण १७, काव्यशक्ति १ए वक्रोक्ति २०, नरलक्षण १, गजपरीक्षा २२, दयपरीक्षा २३, वास्तुशुधि लघुबुद्धि २४, शकुन-11 विचार २५, धर्माचार २६, अंजनयोग २७, चूर्णयोग २७, गृहिधर्म श्ए, सुप्रसादनकर्म ३०,8 कनकसिजि ३१, वर्णिकावृद्धि ३५, वाक्पाटव ३३, करलाघव ३४, ललितचरण ३५, तैलसुर जिताकरण ३६, भृत्योपचार ३७, गेहाचार ३७, व्याकरण ३ए, परनिराकरण ४०, वीणावाद है , वितंमावाद ४२, अंकस्थिति ४३, जनाचार ४४, कुंजत्रम ४५, सारिश्रम ४६, रत्नमणिनेद , लिपिपरिछेद ४७, वैद्य क्रिया भए, कामाविष्करण ५०, रंधन (रसोइ ) ५१, चिकुर( केश )बंध ५५, शालिखंमन ५३, मुखमंगन ५४, कथाकथन ५५, कुसुमग्रथन ५६, वरवेष ५७, सर्व नाषा ६ विशेष ५७, वाणिज्य एए, जोज्य ६०, शनिधानपरिज्ञान ६१, यथास्थान आनूषण धारण ६२, अंत्यादरिका ६३ अने प्रश्नप्रहेलिका ६४. ए प्रमाणे स्त्रीनी चोसठ कला जाणवी. है शिल्प अने कर्म तेमां कर्म एटले खेती, वाणिज्य थादि, श्रने कुंजार आदिकना प्रथम कहेल सो शिल्प, ते शिल्पोनो प्रजुए उपदेश कर्यो, तेथी श्राचार्य नहीं उपदेश करेल ते कर्म अने आचार्ये । उपदेश करेल ते शिल्प समजवा. ते बेनो तफावत कहे जे के कर्म ते अनुक्रमे पोतानी मेलेज उत्पन्न थाय ने (आवडे डे). शिल्प शीखववा पमे . तेथी पुरुषनी बहोंतर कला, स्त्रीनी चोसmom हूँ कला अने सो शिल्प ए त्रण वस्तुनो प्रजाना हितने माटे प्रजुए उपदेश कर्यो, अने उपदेश करीने सो पुत्रने सो देशनां राज्य उपर स्थापन कर्या. तेमां जरतने विनीतानुं मुख्य राज्य थाप्यु । १ सारी पासे रमवू ते. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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