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६ प्रनु ज्यारे गर्नमां हता, त्यारे माताए खप्नमां अरिष्टरत्नमय एवी नेमि एटले चक्रनी धारा है जो हती, तेश्री प्रचुर्नु अरिष्टनेमि एबुं नाम पाड्यु, अने अरिष्टमां अ ते अमंगलने त्याग ,
करवा माटे कह्यो डे तेथी अरिष्टनेमि एवं नाम पाड्युं बे, कारण के रिष्ट शब्द अमंगलवाची . | अरिष्टनेमि नहीं परएया होवाथी कुमार कहेवाय जे. ते नहीं परएया ते था प्रमाणे . एक दहामो शिवादेवी माताए प्रजुने युवावावस्थामां श्रावेला जाणीने का के हे वत्स! तुं विवाहा करवानुं मान अने अमारा मनोरथो संपूर्ण कर. त्यारे प्रजुए कह्यु के ज्यारे मने योग्य कन्या मलशे त्यारे हुँ परणीश.. | त्यारपबी वली एक दहामो कौतुकरहित एवा पण ते नेमिकुमार मित्रोथी प्रेराया थका क्रीमा करता कृष्ण वासुदेवनी श्रायुधशालामां गया. त्यां कौतुकना उत्सुकी एवा मित्रोनी विनंतिथी तेणे 8
वासुदेवनुं चक्र ांगलीना अग्र नाग उपर कुंजारना चकनी पेठे फेरव्यु, तेनुं शार्ङ्ग धनुष्य है पण तेणे कमलनालनी पेठे नमाव्युं, कौमुदकी नामनी गदाने एक लाकमीनी पेठे उपामी तथा |तेनो पांचजन्य नामनो शंख मुख पर राखीने पूर्यो-वगाड्यो. | ते वखते श्री नेमिनाथना मुखकमलथी प्रगट थयेल पवन वडे पांचजन्य शंख प्राये बते हाथीनो समूह पोताना बंधनस्तंनोने उखेमी घरनी पंक्तिने नांगतो थको जवा लाग्यो, तथा 8 वासुदेवना घोमा पण तुरत पोतानां बंधनो तोमीने अश्वशालामांश्री नाग थका दोमवा लाग्या, तथा ते वखते समस्त शहेर ते शंखनादथी अद्वैत अने घणी व्याकुलतानी साथे बधिर बनी | गयु. एवी रीतना ते शब्दने सांजलीने 'कोश् शत्रु उत्पन्न थयो ' एवा विचारथी व्याकुल चित्त-2 वाला श्री कृष्ण तुरत श्रायुधशालामा श्राव्या. त्यां नेमिनाथ प्रजुने जोश्ने मनमा श्राश्चर्य पाम्या थका पोतानी नुजाना बलनी तुलना माटे तेणे प्रजुने कर्वा के श्रापणे बन्ने थापणा बलनी परीक्षा करीए, एम कदेतां ते प्रजुनी साथे मदना अखाडामां श्राव्या. पनी त्यां प्रजुए श्री कृष्णने कह्यु
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