SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RES-50- 50545 | त्रिशला राणीने जोवाथी सखीए तेनुं कारण तेणीने पूज्यु. त्यारे ते त्रिशला दत्रियाणी आंखोमां 3 अश्रु लावीने, निःश्वास सहित वचने करीने कहेवा लागी के, हुं मंदनाग्यवाली हवे शुं कहुं ?* मारूं तो जीवित पण चादयुं गडे ठे. त्यारे सखीओए कह्यु के हे सखि, बीजु सघ अमंगल शांत है | था ? पण तारा गर्नने तो कुशल डे के नहीं ? ते वात हे चतुर सखि, तुं सत्य कहे ? त्यारे तेणीए । कडं के हे सखी! ज्यारे मारा गर्जनेज कुशल होय त्यारे तो बीजं मारे शुं शकुशल ने? इत्यादिक कहीने मूळ खाश्ने ते पृथ्वी पर पडी. पड़ी सखीए शीतल पवन आदिकधी घणा उपचारो क-14 थी तेणीने चैतन्य आव्या बाद पानी ते रमवा लागी. अपार पाणीवाला, मोटा तथा रत्नोनां निधानरूप एवा समुअमां पडेलो बिवालो घमो ज्यारे जराइ शकतो नथी, त्यारे तेमां समुज्नो शो दोष छे ? वली वसंत ऋतुमा ज्यारे सघली वनस्पति प्रफुल्लित थाय , अने ते वखते ज्यारे । कंथेरने ( केरमानां वृदने ) पत्रो आवतां नथी, तेमां वसंत ऋतुनो शो दोष ? चुं अने सीधुं एवं वृक्ष घणां एवां फलोना नारे करीने ज्यारे नमेधुं बे, अने ते उपरनां फलने ज्यारे कुबमो माणस मेलवी शकतो नथी, त्यारे ते वृदनो शो दोष ? माटे हे प्रजु ! ज्यारे हुं मारा इछितने मेलवी शकती नथी तेमां तमारो शुं दोष ? तेमां मारा कर्मनोज दोष बे, केमके घुवम ज्यारे श दिवसे जो शकतो नथी, त्यारे तेमां सूर्यनो शो दोष ने ? माटे हवे तो मारे मरणनुज शरण लेवं,81 केमके फोकट जीववा वडे करीने शुं? एवी रीते तेणीना विलापने सांजलीने सघली सखी श्रा दिक परिवार पण रमवा लाग्यो.अरे !!था शुं थइ गयुं ? कारण विना दैव वैरीरूप थयो अरे! ४ कुलदेवी ! तमो क्यां गा ? श्राम उदासीन थश्ने केम बेठी बो ? हवे एवी रीते विघ्न श्रावी है पमते बते विचरण एवी कुलनी वृक्ष स्त्री शांति तथा मंत्रना उपचारो तथा मानता थाखमी ( बाधा ) श्रादिक करवा लागी, जोशीने बोलावीने पूवा लागी. नाटक आदिकने थटकाववा लागी. तथा अत्यंत जंचा सादनां वचनोने निवारवा लागी. उत्तम बुझिवालो एवो राजा है ARASEX For Private&Personal use Only
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy