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________________ यवाली थथकी बंने हाथ एका करीने तथा मस्तके अंजलि करीने या प्रमाणे कदेवा लागी. हे।इ। स्वामिन् ! ए एमजबे, ए तेमज . ए यथार्थ बे, ए संदेह रहित , एशवित बे. हे स्वामिन् ! तमारा म.18 खथी पमता एवा ते वचनने में ग्रहण काँ बे. हे स्वामिन् ! वांडेलु बतां वारंवार ए वांजेतुं जे. हे स्वामिन ! दए अर्थसत्य जे. जेवी रीते ए श्रर्थ तमे कह्यो ने तेज प्रमाणे ते .एम कही तेणीए ते स्वप्नने सारी रीते* अंगीकार कयाँ तथा तेम करीने सिधार्थ राजाए तेने अनुशा श्रापवाथी, एटले तेने स्थानके जवानी तेणीने रजा श्रापवाथी ते त्रिशला क्षत्रियाणी, नाना प्रकारनां मणि अने रत्नोनी रचनापी विचित्र एवा तेजप्रासन परथी उठी; तथा उठीने उतावल रहित, चापल्यपणाए करीने रहित, संत्रांत विनानी तथा विलंब विनानी राजहंस जे गतिथी चाले तेवी गतिथी ज्यां पोतानी शय्या हती, त्यां चाली ग तथा है है तेम करीने, एटक्षे त्यां जश्ने, एम कहेवा लागी के, मारा था उत्तम कहेता स्वरूपधीज सुंदर एवां, तथा प्रधान कहेतां उत्तम फलने देनारा, अने तेथीज मंगलिक करनारां, एवां था स्वप्नो, वीजां खराब स्वप्नोथी नाश न पामे तो सारुं, एम विचारीने देव गुरुजन विगेरेना संबंधवाली, अने तेथी| करीनेज प्रशस्त कहेतां महामंगलकारी एवी धर्म संबंधी कथाए करीने, स्वप्नजागरिका करता स्वप्नोने रक्षण करवा माटेनुं जे जागरण,तेने करती थकी,तथास्वप्नोनेज याद करती थकी रहेवा लागी. | हवे ते सिद्धार्थ राजा पण प्रत्युषकाले कहेतां जे वखते प्रजातकाल थयो ते वखते, कौटुंबिक पुरुषो| कहेता सेवक पुरुषोने बोलावतो हवो; तथा बोलावीने तेजेने ते कहेवा लाग्यो के हे सेवको! आज ज-11 त्सव दिन कहेतां मोटा महोत्सवनो दिवस , तेथी एकदम विशेष प्रकारथी जेम थाय तेम, बहारना । नाग पर रहेली उपस्थानशाला कहेतां बेठकनी जगो, अर्थात् कचेरी, तेने गंधोदक कहेतां सुगंध युक्त है थिएबुं जे पाणी, तेनाथी पवित्र करो, तथा त्यां रहेलो जे कचरो, तेने पूर फेंकावीने ते साफ करो, तथा ? गण श्रादिकथी तेने लीपावो; तथा सुगंधी एवां पांच वर्णोनां जे उत्तम उत्तम पुष्पो, ते त्यां पथरावो 51 तथा बलता एवा कृष्णागुरु,श्रेष्ठ कुन्दरुष्क,तुरुष्क विगेरेधूपोनो उत्तम अने मघमघायमान थइरहेलो जे 31 206400*XOSH XHOSASSAA%99444 Jain Education International For Private & Personal Use Only wawejainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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