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________________ % सुबी कल्प० हूँ सो पुत्रोने राज्यने विषे प्रजुए स्थापन कर्या त्यारपनी जीतकदिपक एवा लोकांतिक देवोए है इष्ट एवी वाणी वडे प्रजुने को बते (दीदाश्रवसर जणाव्ये उते ) बाकीचें धन गोत्रीउने वहेंची ॥१०॥ आप्युं त्यांसुधी सघ पूर्वनी माफक ( वीरचरित्रवत् ) कहे. पड़ी आ जनालानो पहेलो मास, पहेलु पखवामीयु, ते चैत्रनो कृष्णपद, ते चैत्रना कृष्णपदनी आवमने दिवसे दिवसना पाबले पहोरे सुदर्शना नामनी शिविका (पालखी)मां बेठेला अने देव, मनुष्य तथा असुरोनी पर्षदा ६ है जेनी आगल चाली रही डे एवा प्रनु विनीता नगरीना मध्य नागथी नीकल्या अने नीकलीने ज्यां सिद्धार्थवन नामे उद्यान अने ज्यां अशोक नामे श्रेष्ठ वृक्षाचे त्यां श्राव्या. श्रावीने श्रेष्ठ । अशोकवृक्षनी नीचे पोतानी मेले चार मुष्टि लोच को. या प्रमाणे चार मुष्टि लोच कर्या पली बाकी रहेली एक मुष्टि जे सुवर्ण सरखी कांतिवाला खन्ना उपर लटकती हती ते जाणे सुवर्णना 5 कलश उपर शोजती नील कमलनी माला होय तेवी ( सुंदर ) जोश्ने हर्षित चित्तवाला थयेला हूँ है जना आग्रहथी प्रजुए ते राखी. लोच कर्या पली जलरहित एवो बहनो तप करीने उत्तराPषाढा नक्षत्रमा चंयोग प्राप्त थये बते उग्र, जोग, राजन्य अने क्षत्रिय कुलना कल, महाकन आदि । चार हजार पुरुषो के जेए “जेम प्रनु करशे तेम अमे पण करीशुं” ए प्रमाणे निर्णय कयों इ हतो तेउनी साथे एक देवष्य वस्त्र लश्ने मुंग थश्ने घरथी नीकली साधुपणाने प्राप्त थया, है अर्थात् दीक्षा ग्रहण करी. अर्हन् कौशलिक श्रीषनदेव प्रजु एक हजार वर्ष सुधी नित्य कायाने वोसरावीने थने तेनो ममत्व है बोमीने विचर्या ( तेनो विस्तार कहे ). दीक्षा लश्ने प्रनु घोर अनिग्रह धारण करीने गामोगाम विहार करवा लाग्या. ते वखते लोको पासे अत्यंत समृफि होवाथी निदा शुं ? श्रने निदाचरो near केवा होय ? ते हकीकत कोइ पण जाणतुं नहोतुं, तेथी जेए प्रजुनी साथे दीक्षा लीधी हती १ प्रनुने दीक्षानो समय जणाववाना आचारवाला. २ गुजराती फागण वदि - मे. ARCCCCCCCCESC-CRACCORDC Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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