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________________ कल्प सुबोग ॥ ॥ USAGAROGRACROCRACCORRECOCCAMOCRACRI श्रा प्रमाणे -पुरिमचरिमाणत्ति एटले श्रीषन अने वीर प्रजुनो आ कल्प एटले याचार के वृष्टि था के न थाउँ पण अवश्य करीने पर्युषणा पर्व करवं. उपलक्षणथी जाणी लेवू के ते पर्युषणा पर्वमां कल्पसूत्र पण वांचq. एक तो ए आचार अने बीजुंते वर्षमानतीर्थमां मंगलना कारणरूपले. 2 कदिशंका थाय के, श्रीवर्धमानतीर्थमां शामाटे कयु ? तो कहे जे के, जे कारण माटे अहीं श्री ६ जिन जगवंतनां चरित्रो कहेला ,तेमज गणधरादि स्थविरावलीनां चरित्रो कहेलांडे, वली ते सामा-६ चारी कदेवाय ने तेमांप्रथम अधिकारमा सर्व जिनचरित्रोमां नजीक उपकारीपणाने लीधे प्रथम श्रीवीर प्रजुनं चरित्र वर्णन करतां श्रीजज्बाह स्वामीजघन्य तथा मध्यम वाचनारूप प्रथम सत्ररचे तेणं कालेणं ए वाक्यथी ते परिनियुएनयवं त्यांसुधी संबंध .तेणं कालेणं केतां ते काले एटले अवसपिणी कालना चोथा आरा पर्यंत. मूलमां सर्व ठेकाणे जे 'ण' श्रदर ते वाक्यालंकारने अर्थे जे. तेणं स-18 मएणं केतां विशिष्ट एवो जे कालनो विनाग तेसमय कहेवाय , ते समयमां के जे समय श्रीवर्धमान र खामी चवq इत्यादिड वस्तुना कारण थया हता, ते समयमा 'समणे नगवं महावीरे' श्रमण एटले है तपस्या करवामां तत्पर एवा, जगवान् केतां सूर्य अने योनि सिवाय नगना बार अर्थवाला, जेने है माटे कदे के, “सूर्य, ज्ञान, माहात्म्य, यश, वैराग्य, मुक्ति, रूप, वीर्य, प्रयत्न, श्छा, लक्ष्मी, धर्म, ६ ऐश्वर्य अने योनि-ए चौद अर्थमां जग शब्द प्रवर्ते . आमां प्रथम सूर्य अने मेवटनो योनि ए बेई है अर्थ वर्जवा. अहीशंका थाय के, जे जग शब्दनो अर्थ योनि थाय ते कदि वर्जवायोग्य होय पण सूर्यवा-1 चक लग शब्द शी रीते वर्जवो? ते सत्य ले. अहीं उपमापणाथी सूर्य थाय पण वत् प्रत्ययांत होवाथी । नगवान् एटले सूर्यवान् एवो अर्थ लागतो नथी, तेथी ते वर्जित कयों बे, महावीर एटले कर्मरूपी । वैरीने पराभव करवाने समर्थ अर्थात् श्रीवर्धमान स्वामी, ते वर्धमान खामी पंचदबुत्तरे होबत्ति " एटले हस्तनक्षत्र उत्तर एवं नदात्र उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र बे, कारण के गणत्रीमां तेनाथी हस्त उत्तरमांबे, ते उत्तराफाल्गुनी पांच स्थानोमा जेने ते पंचहस्तोत्तर एवा नगवंत वीर प्रजु जे. ॥ ॥ Jain Education international For Private & Personal Use Only ainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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