________________
केवु ले ? वीसंसागरोवम कहेतां वीश सागरोपम स्थितिवाझुंबे. तेमां देवताउनी उत्कृष्ट स्थिति वीश सागरोपमनी रहे बे. लगवंत श्रीवीर प्रजुनी स्थिति पण एटलीज हती. हवे ते विमानश्री श्राउख० क- देतां श्रायुष्यना दय वडे, जवखयेणं कहेतां देवगति नामकर्मना दय वडे, विश्खयेणं कहेतां स्थिति एटले वैक्रिय शरीरमा रहे तेना दय वडे,कहेता पूर्ण करवा वझे,श्रणंतरं कहेतां अंतर रहित एवं चयं है चश्त्ता कहेतां च्यवन करीने श्हेव जंबू कहेतां श्राजजंबूझीप नामनाछीपने विषे,नारदेवासे कहेता है नरत क्षेत्रना दक्षिणार्ध जरतने विषे अवसर्पिणी काल एटले जेमांसमये समये रूप रस विगेरेनी हानि थती जाय ते अवसर्पिणी काल कहेवाय, ते कालने विषे सुषमसुषमा नामनो चार कोटाकोटि सागर-13 नाप्रमाणवालो पहेलो थारो उल्लंघन थया पली सुषमा नामनो त्रण कोटाकोटि सागरना प्रमाणवालो ₹ बीजो आरोआवे, ते नखंघन थया पड़ी सुषमःषमा नामनो वे कोटाकोटि सागरना प्रमाणवालो त्रीजो श्रारोआवे. ते जवंघन थया पली पुषमसुषमा नामे चोथोथारो आवे,ते घणो जवंधन थयेलो डे, कांश्क ऊणो बे. ते कहे बे
बेंतालीश हजार वर्षोथी जणी एक सागर कोटाकोटि चोथा श्रारानं प्रमाण जे. तेमां चोथा आरानां पंचोतेर वर्ष अने सामाआठ मास शेष रहेतां श्रीवीर प्रजुनो अवतार थयो . श्रीवीर प्रजुनुं श्राहै युष्य बोतेर वर्षतुं . श्रीवीर प्रजुना निर्वाणथी त्रण वर्ष थने साडाआठ मास जतां चोथा श्रारानी
समाप्ति थाय ने तेथी प्रथम जे वेंतालीश हजार वर्ष कह्यां ते एकवीश एकवीश हजारना प्रमाणवाला पां|चमा अने हा श्रारा संबंधी जाणवां. | एकवीश तीर्थंकरो इक्ष्वाकु कुलमा उत्पन्न थयेला अने काश्यपगोत्री ने अने बात्रीशमा मुनिसुव्रत । अने त्रेवीशमां नेमि जगवंत ते हरिवंश कुलमां उत्पन्न थयेला अने गौतमगोत्री जे.एवीरीते ते त्रेवीश
अतीत थया पली श्रमण नगवंत श्रीमहावीरथया ने जेप्रन्नु चरम-बेला तीर्थकर अनेर जे पूर्वना तीर्थंकरोए निर्देश करेला बे एटले श्रीवीर प्रजु उत्पन्न थशे एम कहेढुंब. वली जे जगवंत 3
Jan Education intona
For Private
Personal Use Only