SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SONESCRESCARCISESE जाणवो. सचित्त अव्य एटले स्त्री श्रादिक, श्रचित्त अव्य एटले श्रानूषण श्रादिक,तथा मिश्र अव्य है एटले शणगारेली स्त्री आदिक तेने विषे. क्षेत्रधी एटले को गाममां, नगरमां.अरण्यमां, धान्य जेमां उत्पन्न थाय एवा क्षेत्रमां, खल कहेतां धान्यने फोतरांथी जूदा करवाना स्थानकमां. घरमां, अथवा घरनाआंगणामां अथवा आकाशमां. कालथी एटले समय जेवा अति सूक्ष्म कालमां के जे काल सेंकडो 8 कमलपत्र विंधवाना अथवा जीर्ण सामी फाडवा आदिना दृष्टांतथी जणाश्यावे , तथा श्रावलि एटले असंख्याता समयवाला कालमां, तथा श्वासोश्वासना प्रमाणवाला कालमां, तथा स्तोक एटले सात नाप्रमाणवाला कालमां, तथा दाण एटले घमीना बहा नागना प्रमाणवाला कालमां, तथा लव एटले सात स्तोकना मानवाला कालमां, तथा मुहूर्त कहेतां सत्तोतेर लवना मानवाला कालमां, एवी रीते रात्रि दिवस, पक्ष, मास,झतु,अयन अथवा वर्ष पर्यंतना कालमां,तथा बीजा पण युगपूर्व,अंगपूर्व श्रादिक लांबा कालमां. हवे नावथी एटले क्रोधमां,मानमां,मायामां,लोनमां,नयमां, हास्यमां,प्रेममा, षमा, कलहमां, मिथ्या कलंक देवामां, चामीमां, परना अपवादमां, मोहनीयना उदयथी थती रति । अरतिमां, कपट सहित मृषावादमां, तथा मिथ्यात्वरूपी अनेक पुःखना हेतुरूप एवा शस्यमां. एवी रीते पूर्वोक्त स्वरूपवाला जव्य, क्षेत्र, काल अने नावने विषे को पण जगोए प्रजुने प्रतिबंध नहोतो. हवे ते श्री वीर प्रजु वर्षाकालना चार मास वर्जीने बाकीना ग्रीष्म अने हेमंत ऋतु संबंधी थाउमासमां गाममां एक रात्रि तथा नगरमा पांच रात्रि सुधी रहेता.वली ते प्रजु केवा ? तो के वासी कहेतां सुतारनुं लाकमां बोलवानुं हथियार तथा चंदन, ते बन्नेने विषे तुल्य अध्यवसायवाला, वली ते प्रजु केवा? तो के तृण,मणि,पाषाण थने कांचनमां पण तुल्य दृष्टिवाला,तथा सुख दुःखमां पण तुल्य खनाववाला,तथा थालोक अने परलोकमां पण प्रतिबंध विनाना, अने तेथी करीनेज जीवित अने मरणमा है वांबा रहित एवा, तथा संसाररूपी समुज्ना पार प्रत्ये पहोंचेला तथा कर्मोरूपी शत्रुओने मारवा माटे उद्यमवंत थयेला एवा प्रजुश्रा क्रम प्रमाणे विचरवा लाग्या. R ROCCOLORREARC5% Jain Education international For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy