________________
कल्प०
॥ ६० ॥
श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुनां मातापिताए पहेले दिवसे एवी रीते कुलमर्यादा करी. तथा त्रीजे दिवसे चंद्र सूर्य देखामवानो महोत्सव करता हवा.
तेन विधि नीचे प्रमाणे जावो. जन्मथी मांगी बे दिवस जाते बते, गृहस्थ गुरु अरिहंत | प्रजुनी प्रतिमा पासे रूपानी चंद्रनी मूर्तिने प्रतिष्ठित करीने पूजी ने विधिपूर्वक स्थापे. ते वार पी स्नान करेली तथा उत्तम वस्त्राभूषणो पहेरेली एवी प्रजुनी माताने पुत्र सहित, चंद्रनो उदय होते बते, प्रत्यक्ष चंद्रनी सन्मुख लइ जइने “ श्रर्ह चंद्रोऽसि, निशाकरोऽसि, नक्षत्रपतिरसि, सु धाकरोऽसि, औषधी गर्भोऽसि, अस्य कुलस्य वृद्धिं कुरु स्वाहा” एवी रीतनो चंडनो मंत्र उच्चारण करतो थको चंद्रने देखाडे, पढी माता पुत्र सहित यर थकी गुरुने नमे; त्यारे गुरु पण आशीर्वाद आपे के सघली औषधीए की मिश्रित थयेल बे किरणोनी पंक्ति जेनी, तथा सघली श्रापदाओने दरवामां जे प्रवीण बे एवो था चंद्र हमेशां प्रसन्न थयो थको तमारा समस्त वंशने विषे वृद्धि करो. एवीज रीते सूर्यनुं पण दर्शन करावे; तेमां मूर्ति सोनानी अथवा तो त्रांवानी करे, छाने मंत्र नीचे प्रमाणे बोले. “ ॐ श्रहं सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि, तमोऽपहोऽसि, सहस्र किरगोऽसि, जगच्चकुरसि प्रसीद" पढी गुरु याशीर्वाद आप के सघला देव ने असुरोने वंदनीय, सर्व पूर्व कार्योना करनारा तथा ऋण जगतने चक्कु समान एवा सूर्य पुत्र सहित तमोने मंगलना । देनारा था. एवी रीते चंद्र सूर्यनां दर्शननो विधि जाणवो. दमणांना कालमां तो तेने बदले | बालकने रिसो देखाडे बे.
ते वार पछी बठे दहाड़े एटले कुलधर्मे करीने बड़ी रात्रि जागता थका जागरणमहोत्सव करे. एवी रीते ग्यारमो दिवस गये बते अशुचि एवां जे जन्मकार्यो, जेवां के नालछेद इत्यादि कार्यो | समाप्त होते ते अने वारमो दिवस श्रावते ते प्रजुनां मातापिताए घणां एवां अशन, पान, खा| दिम ने खादिम एम चार प्रकारनां जोजन तैयार कराव्यां; अने तेम करावीने मित्रोने, ज्ञाति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
सुबो०
॥ ६० ॥
www.jainelibrary.org