Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् कनीरामजी विरचित सिद्धान्तसार नफे (श्वेताम्बरी) तेरापंथीनी चर्चा: परमपूज्य श्रच निधान सकल गुणसंपन्न प्रवर पंगित पुज्यजी माहाराजश्री १००८ श्री रेखराजजी माहाराज तत् सुशिष्य चक्रवालमा धर्ममूर्ति स्वामीजी माहाराजश्री १००८ श्री रंगलालजी माहाराज तत् जेष्ट सुशिष्य श्रीमन माहामुनी १०८ श्री रत्नचंदजी स्वामीना श्रयथ ने राजेश्री मेहेताजी पीताम्बरनाई हाथी नाइना नद्देशथी जापान्तर करी बपावी प्रसिध कर्त्ता, मेदेता. गंजीरमल हेमराज. હઠીસિં K विक्रम संवत १९६४. मु० पालणपुर. (गुजरात) K+ अमदावाद “श्री जैन प्रिन्टिंग मेस" मां शा. जेठालाल दलसुखनाइए ढाप्यो. इसवी सन १९०८. कींमत रु. ३-०-०. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वामित्वना सर्व हक्क स्वाधीन राख्या बे. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्पण पत्रिका. महत्पदादि अनेक गुणगणालंकृत सुज्ञ मुरब्बी राजमान राजेश्री मेहेता पीताम्बरजाइ हाथीजा माजी कारजारी साहेब । स्टेट-पालणपुर. ___ बाल्यावस्याथी स्वशक्तिबले संसारिक व्यवहारमा तेमज राजकार्यादिमां अच्युदय प्राप्त थवाथी आपे स्वउपार्जीत इव्यनो अन्य अन्य प्रसंगे विद्या केलवणीमां तथा धर्मकार्योमां अंतःकरणना धार्मिक उत्साहथी व्यय करी पोताना आत्माने निर्मल करेलो जे तेनो प्रत्यक्ष दाखलो के शुल संवत् १९३० मां महामुनो तपस्वीजी श्री त्रीलोकचंद्रजी माहाराज अबे चोबासु पधारी ए१ अपवास करेला ते प्रसंगपर गुजरात, मारवाम अने काठीयावाम विगेरे देशोना जैनलाइन दर्शनार्थे आवेल तेमनी सेवा बरदाश करवामां तत्पर रही अत्यंत नम्रता लाव दर्शावेल तेमज अद्यापि पर्यंत अहर्निश पूर्वोक्त धर्मादि कार्य स्वात्म पवित्रतार्थे करोडो अने तेवी पवित्रता प्राप्त थवाथी वृद्धावस्थामा शान्तरसनो आपना अंतःकरणमा जमाव थयो ने तेनो प्रत्यक्ष अनुजव पालणपुरना जैन समुदायमां प्रसंगे प्रसंगे यता तुंचा मनने शान्ती पमाम्वामां आपनुं अंतःकरण साधनभूत थाय . एवा अनेक कारणोने लीधे तेमज परोपकारार्थे आ महान् ग्रंथ प्रसिद्ध करवामां मने मदद आपी मारा उपर पूर्ण सद्लाव राखोडो तेथी आ जापान्तररुप ग्रंथ आपनी पवित्र सेवामां सविनय अर्पण करुं हुं ते स्वीकारशोजी. ली. पाखणपुर वीर संवत् २४३४. विक्रम संवत १९६४. थाज्ञांकित नाषान्तर कर्ता . . Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. K श्लोक. स्यामादो वर्तते यस्मिन्, पक्षपातो न विद्यते; नास्तन्य पिकनं किंचि, जैन धर्मस उच्यते ॥ १ ॥ श्री युती सकल श्रमण संघ (साधु, साध्वी, श्रावक ने श्राविका सम्यकदृष्टि मार्गानुसारी सजन जव्य जनो) ने विदीत करवामां या केः-वर्तमानमां ढुंगा श्रवसर्पणी प्रवर्ते बे, तेना प्रजावथी आश्चर्यत (न थवानी ) अनेक वातो थर, घर रही बे, अने थवानी नवाइ नथी. तेमज अनेक कूपंथ प्रगट थया, थाय बे अने वली पण थवानी नवाइ नथी.. श्री बाब मां विशेष लखवानी यावश्यकता नथी; कारण के या बाबत जैन वर्गना नाना नाना बालक पण प्राय जाणे. बे. वास्ते प्रयोजन नूत फक्त लखोए बीए के : --- पूर्वोक्त हुंका अवसर्पणीना प्रजावे अनेक मत मतान्तर प्रगट य गयेला बे. तेमां संवत १८१५ नी सालमां एक तेरापंथी नामनो पंथ दृष्टेष्ट विरुद्ध श्री जिन सासनने धूम्रकेतु शाहश्य प्रगट थयो. दवे के पंथ शाकारणे अनेकया पुरुषना निमीत्तथी प्रगट थयो ते, अने ते पंथस्थ मनुष्योनो शो मन्तव्य बे ते सत्य सनातन धर्माजिलाषी मध्यस्थ जनोने जाणवा सारु अति संक्षिप्त टुंक वृतांत नीचे लखवामां आवे छे. अथ श्वेताम्बर तेरापंथ मतोत्पति. संवत १७०८ नी सालना घरसामां श्री मरुधर ( मारवार) देशने विषे बावीस समुदायस्थ परम पुज्य सुगुण संपन्न क्रत पुन्य श्री श्री १००८ श्री श्री रघुनाथजी स्वामी घणा सुशिष्योना परिवार चोख्खे विहारे करी विचरता दता. तेथ्यो साहेबनी समिपे मारवामां आवेल अति प्राचीन शेहेर सोजत बगमीने नजदीक गाम कंटालीखाना वासी Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ‍ ज्ञाते खोशवाल जिखुनजी नामे संवत १८०८ नी सालमां शिष्य थया. निखुनजीना संसारथी उदासीन प्रणाम तो खरा, तेम बुधी पण तीक्षण खरी, परंतु विचार-शक्ति यवली, तेथी जे सूत्र शास्त्र वांचे ते उलटा प्रणमवा लाग्या. एम करतां एकदा प्रस्तावे पुज्यश्री ए तेमने विचीक्षण जाणी बीजा साधु साधे थापी मेवा देशमां श्रावेला राजनगरे चोमासुं करवा मोकल्या. त्यां श्रगल सागरगहना यति निःसंतान गएल होवाथी तेमना पुस्तक पानां विगेरेना वारस त्यांना श्रावको हता तेथी निखुनजीने वांचवा वास्ते जोइए तेटली सूत्रनी प्रतो मली. निखुनजी पण ते प्रतो वांचवा मांड्या, पण स्याद्वाद पद लान्छित् अनंत नयात्मक श्री जिन-वचनना साचा रहश्य समुद्र सरखी बुद्धीवाला जीवोने पण गुरुगम्य पूर्वक पामवा योग्य, ते जिखुनजी सरखाने गुरुगम्य वगर साचां रहश्य क्यांथी मले ? हवे पूर्वोक्त श्रावकदत्त सूत्रोनी प्रतो वांचवाथी जिखुनजीना मनमां अनेक कृतक उत्पन्न थवा मांड्या. बेवटे विधिए सूत्र वांचवानी असर जिखुनजी ने थइ के श्री नषीत सूत्रना बारमा उद्देशाना पेहेला तथा बीजा सूत्रमां क्युं छे के, जे कोइ साधु साधवी अनेरा कोइ प्रसजीवने मुंज सुत्रादिकना पासाव बांधे, बंधावे छाने बांधताने जलो जाणे, तेमज पूर्वोक्त पासाव बांध्या सजीवने बोने, बोकावे अने बोमताने जलो जाणे तो चोमासी प्रायश्चित यावे. श्रावो साधु संबंधीनो लेख वांचीने एकान्त मतीए एवो निश्चय करो लीधो के, मरता जोवने जो साधु बचाववा सारु खोलें तो चोमासी प्रायश्चित पामे, अर्थात चार महिनानुं चारित्र खूए; त्यारे प्रहस्थी मरता त्रसजीवने बोलावे तेमां तेने धर्म पुन्य क्यांची थाय ? नज थाय, पाप लागे. एवी रीते श्रीमद् दया जगवती विषे श्रश्रद्धा उपनी तेमज श्रीमद् भगवतीजी सूचना जाठमा शतकना बहा उद्देशामां श्रमणोपासक (श्रावक ) तथारूप असंयति 'अवृतिने सचित चित, सुकता श्रसुकता अस्नादिक प्रतिलाने तो तेने एकान्त पाप थाय, पण किंचीत निर्जरा न थाय एम कथुं Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे. तेनो पण परमार्थ जाएया वगर एमनो एम एकान्त बुद्धिए एवो निश्चय करी लीधो के, साधु सिवाय कोई संयति न कदेवाय, असंयतिज बे. माटे साधु सिवाय बीजा कोइने पण आयामां निर्जरा के पुन्यरुप नफो नथी. जे थापे बे तेने एकान्त पाप लागे छे. एवी रीते परंपराय परम कल्याणकारक मोक्षना प्र म द्वाररुप दाने विषे पण अश्रद्धा उपनी. एवी रीते दयादान विषे ग्रहस्थीना निमीत्त पूर्वक अश्रद्धा वाथी निखूनजीने अनेक दोला उत्पन्न यवा मांड्या. ते समिप-वर्ती साधुजनोने किंचीत् प्रगटरूपे केदेवा मांड्या, तेथी ते साधुर्जनां मन पण शंकाशील थर गया. एम करतां कोइक अवसरे पुज्यश्रीने ते बाबत जाणवामां आवतां निखुनजीने पूर्वोक्त सोजत शेहेरने विषे हितमित मधुर वचने समजाव्या के " हे वत्स ! पूर्वोक्त सूत्रार्थनो तमने यथार्थ अवबोध नथी थइ शक्यो तेथी तमने तेम नाषे बे, पण तेनो एवो अर्थाशय नथी. तमे पोतेज जरा दीर्घष्टिथी विचारो के, जो एम होय तो तो दया दान ए धर्मना मूल भूत मुख्य अंग उठी जाय; छाने ज्यारे ए उठी जाय त्यारे श्रार्य (मोक्ष) मार्गनो श्राव थइ जाय. एम क्रम पूर्वक नास्तिक थवा दहामो धावे. माटे हे आर्य ! तमे जे अनंत अरिहंत सिद्धना अनि प्रायथी विरुद्ध अभिप्राय कल्प्यो तेनो दंग (प्रायश्चित) अंगीकार करो छाने हवे पीथी एवं स्व-मनिषा जनित अभिप्राय कल्पि अन्य जीवोने शंकाशील नहीं करवानी प्रतिज्ञा ब्यो. " ए वात निखुनजीना मनमां तो न रुची, पण अवसर एवा जिखुनजीए विचार्यु के, यदि दमणां हुं मारा मानसिक प्रढनिश्चय प्रगट करीश तो ए गुरु मने समुदाय बादार काढी मुंकशे, अने विना मदद हुं एकलो रखमी मरो जश. मारो जे उद्देश बे ते निष्फल जशे, तेथी दमणां तो गुरुने इच्छानुं लोम (मनने अनुसारे) जाषा बोलवी योग्य बे. एम धारी वंज- प्रीय निखूनजी बोल्या के, दे स्वामी ! मारी जुल आपने जाषी तेथी हुं कमापात्र डं. माटे आपने गमशे ते दंग मने पशो ते लेवा हुं खुसी Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ दर्शा लूँ. एवी रीते बोलता जिखूनजी प्रत्ये नकि प्रणामी एवा श्री गुरुए यथायोग्य दंग प्राप्यो. ते द्रव्यथी तो लीधो पण प्रणाम मिथ्यात्व न मढ्यो, तेथी बली पूर्वोक्त रीतीथी विशेषतः अनेक देतु युक्तिथी दया- दान विषे जेदोत्पादक वचन जालमां विशेष करी जोला अप साधुर्जने फसाववा शरु कर्या. ते वात वली पण पुज्यश्रीना जाणवामां श्राव्याची पूर्वोक्त रोते तेमने समजाव्या, पण सेदेजसाजमां ad समस्या नहि. त्यारे तेमने इसत आक्रोश करी केहेतुं पयुं के, जेम कोइ मगजनुं फाटेल गणीतज्ञ, एकमा बगमानां जणवामां माल नथी एम कड़े, पण एतेनुं केहेतुं विद्वजन मंगलमां अप्रमाण थाय; कारण के न्यायथी जोतां प्रथम एकमा बगमा शीखवा ते विशेष गीतज्ञ थवानुं समवाइक मूल कारण बे, तेम तमारे पण समज के, अनुकंपा रुप दया दान ते उंचली दशा पोहोंचामवानां कारण बे. तमे कारणनुं निषेध केम करो हो ? कारण के कारण विना कार्य नथी यतुं . यतः पुर्वात पुर्वात कारणं, पश्चात पश्चात कार्य इति वचनात. इत्यादि गुरुएक एटले बीजोवार पण श्री गुरुना के देवा प्रमाणे दंग लइने गुरुथी जुदा न पकतां सामील रद्दीने अंदर अंदरखाने निखूनजी साधु ने खूब बेकाववा मांड्या. जावी वसात् साधु पण घणा वेदे की निखूनजी ने सहमत थया ने प्रवन्न विचार करी राख्यो के, ज्यारे पुज्यजी आपने बेने त्यारे दवे बचोक र प्रथम तो तेमने विनय पूर्वक सत्य श्रद्धा अर्ज निवेदन करवी. तेम करतां ते न माने तो तेमने पमता मुकी आपणे श्रापषो धारेला सत्य मार्ग प्रचलित करवो, तेवो द्रढ निश्चय कर्यो. पढी ग्राम बगीने विषे पुज्यश्रीनो गारो थयो ते अवसरे पुज्यश्रीए फरमाव्यं के, जिखुनजी तमे इजी सुधी पण कपोल कल्पीत श्रद्धा तेमज तेनी परुपणा बोकी नथी. वास्ते या बेल्लीवार तमने कहेवामां आवे छे के, कां तो तमे तमारी मिथ्या श्रद्धा परुपणा बोमी सत्य अंतःकरणथी प्रायश्चित ब्यो, नहिं तो हवे तमने समुदायथी बाहार करवामां 氯 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ "" यावशे. इत्यादि गुरुनां वचन सांजली बहु जन सम्मत एवा जिखुनजी बोल्या, स्वामी ! अमने जे जाप्युं वे ते खरं नायुं बे घने खरानो दंग होय नही. माटे फेंक देवानी बात हवेथी आपने करवी लाजम वे श्रापना के देवा प्रमाणे दंग लेवाना पण नथी. श्रमारुं तो आपने एम के बेके, आपने जो आत्मार्थनी इच्छा होय तो एटला दीवस खोटी श्रद्धा परुपणा करी साधु आचार्यना गुण विना मात्र नाम धराव्यां तेनुं प्रायश्चित करो अमारा केदेवा प्रमाणे सत्य श्रद्धाधारी मग्पतिपणुं ainी फरीथी दिक्षा ग्रहण करो, तो तमे अमारा गुरु ने श्रमे तमारा शिष्य, नहिं तो दवे श्रमे श्रमारुं धार्युं काम करवाना बीए. पढी केहेशो के ामने पेलुं कर्तुं नदी तेथी को दरशावुं बुं. एवी रीते उलटा गुरुने उपदेशवा मांरुया. त्यारे श्री गुरुए जाएयुं के, या जीवनो होपाहार एवोज मालुम पके बे माटे समजवो मुश्केल ढे. तो हवे एने सामील राखवो शा कामनो. एम धारी " निखुन समुदाय बाहार बे' एवो हुकम प्रगट की धो. त्यारे निखुनजी जाणे के "गुरुसें कपट साधसें चोरी, के हुवे नीर्धन के दुवे कोढी " श्रा वचनने संज्ञारी बोलता होय ने, तेम बोल्या. जो स्वामी ! आप मने एकलो जाली समुदाय बादार काढता दशो पण तेम नथी. मारे सामील बीजा पण महत्गुणी साधुजन बे. माटे थापे मने समुदाय बाहार काढवानुं काभ वीचार पूर्वक करवानुं बे. यावां निखुनजीनां वचन शांजली नजिक प्रणामी श्रीगुरु तेमने कहेता हवा. हे वत्स ! एक हो, गमे तो घणा हो, तेनी अमारे दरकार नथी, तथापी तमे जुदा जुदा नाम धोने, - देखीयें तमारी सामील कोण कोण साधु बे. त्यारे जिखुनजीए नांखा नोखा नाम देश बताव्या. ते शांजली श्री गुरु इशत धर्मानुराग रुप सरागवसे चिंता मसीत थया; पण बीगमयो पान बोगाने चोली, बीगमयो साध बीगाने टोली " श्रा वचनना अनुसारे तेमने संवत्सर १८१५ ना चैतर सुद ए सुक्रवारना दीवसे समुदाय बाहार कर्या. ते पण गुरुकुल वास बोकी वीदार करी अन्यत्र जता हता. एवामां मादा 66 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायुना योगे ते गामना बाहार बत्रीमा रह्या. ते पुज्यश्रीना जाणवामां आवतां करुणाशील पवीत्र प्रीतीयत्नाव धारण करता थका तेमने समजाववा खातर सांमे पधार्या. त्यां गुरु चेलाने यथा संनवती चर्चा वार्ता थर, पण निखुनजीए विना समजे विहार कर्यो. ते अवसरे जिखुनजीना साथे केटला साधु नोकल्या एकां चोकस नथी, पण सांजल्या प्रमाणे तेर साधु नीकल्या केहेवाय जे. तेमांथी श्रीमान रुपचंदजी खामी श्रादि गणां बे को निमित्त कारण जोगे तेमनी असत् श्रद्धान हृदये न बेसवाथी थोमा वखतमांज, जिखुनजीने बोमी पुज्यश्रीने मली पुन्यक्षेत्र श्री पालणपुर क्षेत्रने पवित्र कयु. मुख्य करी वृद्धावस्थादि संयोगे पालणपुर बीराजमान रह्या, थने तेज शेहेरमां शुक्ल संवत् १८५५ ना पासो वद ना दीवसे अणसण पूर्वक देहोत्सर्ग को. ए माहात्मा श्री समकितसारना कर्ता श्रीमन प्रवरपंमीत वादलब्धीसंपन्न श्रुतबली श्रीयुती जेष्टमखजी स्वामीना धर्मगुरु हता. ते निखुनजोनो साथे नीकलो पाला श्रावेल तेथी तेमनो संक्षीप वृतांत प्रसंग पाम) अहिं नपयुक्त जाणो लख्युं . . हवे ते निखुनजी शेष साधु रह्या ते साथे देश नगर ग्रामादिकने विषे खुली रीते दया दान उथापवा रुप अनेक वचनजाखमां अनेक जीवोने फसाववा मांड्या अने पोताना गुरुवादिकने व्रष्ट नागल, पमवार, पाखंझी, इत्यादिक अनेक जातनी गालो चोपमावा मांमया. ते देखो अन्यान्य समुदायस्थ परोपकारी गीतार्थ साधुजनो तेमने समजाववाने निमित्ते तेमनी साथे शास्त्रार्थ चर्चा करी वखतो वखत पराजय (खष्ट) करवा लाग्या, पण जेम तुमि ग्रहस्थित मनुष्यने सुर्यनी किरणनो जोशएतेवो प्रकाश न थाय, तेम पूर्वोक्त महामुनीरुप सुर्य, कथनोरुप किर्ण अने अनिनिवेष मिथ्यात्वरुप नुमिग्रह, तेमां लिखुनजी रहेला तेथी ब्रमरुप तीमीर नाश क्याथी थाय ? निखुनजी शास्त्रार्थमा हारे तोपण कहे के, मारी बुद्धिनी खानीथी हुँ पराजय पामुं बु, बाकी वात तो ढुं कहुं तेज सत्य बे. एवी रीते कही मूख Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ J इववाद न होने. ते देखी बीजा साधुए पण एम धार्यु के, थावा हवी दुराग्रहीनी साथे वाद करवो ते शुष्कवाद बे. एम जाणी उपेक्षा करवा लाग्या तेथी निखुनजीने फावतुं श्रायुं. एटले जाण पुरुष तो उपेक्षा करवा लाग्या छाने अजाण पुरुषोने निखुनजीनी अलौकीक अनहद एकान्तीक बुद्धिए मोह पमामी कबजे करवा मांख्या. इत्यादिक कारणयोगे मतनो प्रसार थवा लाग्यो. वे ए मतनो मंतव्य सांजलो ! मूल तो दया छाने दान बे रकमोनो फेरफार कर्यो. दवे जेम कोइ चोपमामांधी एक बे रकमनो फेरफार करवा चाहे त्यारे तेने बीजी पण घणी रकमोनो फेरफार करवोज पके. ए स्वाभाविकज बे. तेम निखुनजीए पण ज्यारे दया- दानरूप बे रकममां फेरफार कर्यो त्यारे तेमने तेने लगती एवी बीजी पण घणी रकमोनो फेरफार करवो पढ्यो. ते नीचे प्रमाणेः श्री दया जगवती विषे... १ श्रमण ज्ञातपुत्र मादावीरदेवे अनुकंपा आणी गोशालाने: बचाव्यो तेथी तेमने चुक्या केहेवा पड्या. २ साधुजीने कोइ दृष्ट फांसी दइ गयो बे एवामां कोइ दयावंते देखी फांसी खोली साधुने जीवीत दीधुं, तेने एकान्त पाप लाग्युं, तेम केहेतुं पयुं. ३. कोइ अनुकंपा प्राणी कोइ जोवन । मरणना जयथे। रक्षा करे अर्थात पुन्य जाणी बचावे तो तेने अढार पाप लागे एम केहेतुं पयुं. ४. गायोथी वामो जय बे, एवामां अकस्मातयी अथवा कोइ sष्टे लाहे लगामी तेथी गायो बली जाय, ते देखी कोइ दयावंत वाको खोजी गायो बाहार काढी बचावे लेने... एकान्त पाप लाग्यं एम केदेवं पमयु. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... दान विषे. . ५ अग्यारमी प्रतीमा प्रतोपन्न याने ११ मी पनीमाधारी श्रावकने को बेतालीस उषण टालीने अस्नादिक आपे तेने एकान्त पाप लागे तेम केहेतुं पम्युं. ६ श्रावकने पोषध, संवर अथवा सामायक करवाने जग्या आपे तेने एकान्त पाप लागे तेम केदेवू पम्युं. अनाथ पुर्बल अभ्यागतादिने आपवामां एकान्त पाप लागे तेम केहे पम्यु. G साधु सीवाय सर्व असंजति ने एयूँ कहेवू पम्यु.. ए श्री जिन-आशा बादार एकान्त पाप निपजे ने एम केदेवू पम्यु. २० मिथ्यात्वीनी करणी श्री जिनाझामां एम केदेवं पम्युं. २१ श्रावकने नगवंते रत्नना कचोला (वाटका) समान कह्या ने तेने करना कचोला सरखा केदेवा पम्या. १२ स्थिवरकल्पी साधुने कमाम वासवा तथा उघाडवानी आज्ञा नथी एम केहेवू पम्यु. १३ तेरापंथी साधुने आहार करवामां धर्म के एम केदेवू पम्यु. विगेरे अनेक रकमो तथा तेना पेटानी घणी रकमो ने ते लख. बाथी लंबाण थवाना सबबथी नपर प्रमाणे फक्त जुज रकमो जणावी बे. विशेष ग्रंथ वाचवाथी मालुम पमशे. श्रावो तेउनो अघटीत उपदेश होवा बतां तेमां केटलाक सोको फसाया ए उषमकालनुं माहात्म बे. हवे श्री सिद्धान्तसार ग्रंथनी नत्पत्ति लखीए बीए. पूर्वोक्त रीते निखुनजीथी मामीने या ग्रंथ उत्पन्न थवाना अरसा पर्यंत तेरापंथी ओम जेम पोताना कस्पीत पंथने प्रसारवा सारु कुतर्क प्रगट Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ QU करता गया, तेम तेम बावीस समुदायस्थ गीतार्थ विद्वान महानुजाग्य माहामुनी तेरापंथी कृत कुतर्कोनुं समाधान अर्थात श्रीमत सत्य शास्त्रानुसार खंकन करता गया; परंतु ते खंगन मंगन प्रथक प्रथक होवाथी सामान्य प्रकीर्ण लोकोने जोइए तेवो लान न मली शके. ते लोको सलाइथी लान लइ शके ते माटे तथा पूर्वोक्त कुपंथने विषे फसायला लोकोने मुक्त करवा तथा वे पढी न फसाय एवा देतुथी श्रीमान कनीरामजी स्वामीए नवकोटीना शेठजी श्री फतेहमल जोनी प्रेरणाथी पोते सिद्धान्त, पद, बेद टीका चुरणी यदि श्रार्स अंधानुसारे पूर्वोक्त खं खं कथनने एकत्रीत करी सामाबार दजार श्लोकना विस्तारवालो ग्रंथ रची शुभ संवत १७०६ नी सालमां पूर्ण कर्यो. तेमां अनेक तरेहनी सरलता बतावी श्रीजंगी चोनंगी विगेरे सेहेली रीते वांचनार समजी शके तेवा टीका सहित इष्टान्तोथी जरपूर बनावेल बे. ते श्री ते इति सुधी वांचवाथी समजाशे. प्रीतम ! सत्य धर्मने समजवो ए काम बुद्धिमान विवेकी पुरुषोनुं बे, घने दस प्रष्टान्ते दुर्लन, एवा मनुष्य जन्मनो सार पण मुख्य करीने धर्म पीढाणवो एज वे वास्ते श्रमे सर्व सनोने प्रार्थना करीए ale के, वो विचार जरापण न करवो जोइए के " मे अमुक पंथस्थ बीए ” ए रीते मतनो आग्रह छाणकर्ता निःकेवल स्यादवाद पदलान्डीत निथ प्रवचननोज श्राग्रह करवो उच्चीत बे; कारण के जे मारास मताग्रही, ढ्वी, दुरामही या ऊष्टीरागी होय बे तेने श्री निर्मथ प्रवचननुं यथार्थ बोधरूप फल वंध्या स्त्रीनी माफक प्राप्त नथी यह शकतं. एटला माटे सर्व श्रात्मार्थी नवनीरुर्जए या ग्रंथ समदर्शीपणे वांची भेद विज्ञान पूर्वक सत्यनो अंगीकार करी स्वयात्म हित साधन कर. वली तेरापंथीने नमृता पुर्वक निवेदन करवामां आवे छे के, अमे या भाषान्तरमां उपयोग सहित असभ्य वचन अथवा तो कटु वचन विशेषतः नथी लख्युं; केमके पूर्वोक्त वचन के देवा तेमज लखवाए विवेकी पुरुषोनुं काम नयी. तेमज जप्त वचन के देवाथी Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० तथा लखवाथी विरोध वधे , संपतनो अनाव थाय जे अने निःकलंक चंड मंगलवत शीतल जिन धर्मनी निंदा थाय . वली श्री जिनमार्गनो ए मुख्य सिद्धांतज डे के, कोश्ने पण पूर्वोक्त वचन केहेवार्थी अथवा लखवाथी माटुं लगाम ते नारे दोष जे. एने लीधे था लेखमां श्रमे पूर्वोक्त वचन नथो सख्या. तथापि यदि को शब्द थापने असह्य लागे अथवा तीक्षण कटुक लागे तो अमेललामण करीए बीए के, असह्य वचनने तो जेम सम्यक्दी पुर्वोपार्जीत कर्मोदय कासमा समनावे सहे तद्वत् सेहेवां अने तीक्षण वचनने जेम वीचीक्षण वैद पोताना शास्त्रवमे सरुज (रोगी) ना गुममांने विदारे. अने ते तीक्षण शस्त्रनी धारनी मार श्रादर पूर्वक अंगीकार करे तेम करवां. हवे रह्यां कटुक वचन, ते जेम ज्वर ग्रसित कटुकने हित पथ्य जाणोने मधुरवत आचमन करे तेम करवां. यदि थापथी नपर लख्या मुजब न सह्या जाय अथवा न करयो जाय तो तेने माटे श्रमे क्षमा चाहीए बीए. __बीजुं श्री जैन धर्मनो मुख्य उद्देश ए के हरेकने तत्वार्थना श्रझानो उपदेश करवो. त्यारे बापतो अमारे परमप्रीय चैतन्य साधर्मसाथी अथवा लोकोक्तिना न्यायथी स्वधर्मी अथवा जैनी ना हो, माटे श्री परमागमजीनो सत्यार्थ प्रकाश करी बताववो, ए श्रमारों फरज जाणी अमे बजावी , ते आपनोक परूपात डोमी अवश्य ग्रहण करशो.. उहा. १ मुल कर्ता इन ग्रंथका, श्री सर्व ज्ञही जान; उत्तर कर्ता गणधरु, तासु वचन परमान; वर्तमान जे वर्तता, तिन भागम अनुसार; स्वामी श्री कनीरामजी, रच्यो सिद्धांतज सार; पिन बहु विस्तृतना, नया सो वीस्तारन हेत; गुर्जर नाषांतर कीयो, पूरव कृति संकेत; Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पालणपुरने विषे, प्राकत मुख्य प्रधान; वेद महेता गोत्रमे, श्रावक बमे सुजान. उड प्रिय धर्मि वत्सली, अम्मापियु समान; राजमान राजेशरी, पीताम्बर थनिधान. आप आदि श्री शंघके, एसी न अनिलाष; त्यों करनो ज्यों ग्रंथ ए, पामे अधिक प्रकाश. ए श्छा बहु कालसे, वर्तिथी मनमाय; पिन अपुर्ण कारणवसे, पूर्ण होयाथी नाय. सो श्छा इन सालमे, पामी परम संयोग; परमार थकी बुछिए, पूरण जश् मनोग. जग जाहर पंमीत प्रवर, एक सहस्त्रने पाठ; पूज्यजी श्री रेखराजजी, मिथ्यामत निर्घाटतसु प्रशिष्य श्रीमन मुनी, रत्न रत्नकी खान; वर्ते जसु चर्चा विषे, यथायोग्य विज्ञान.. श्री संघकी लख प्रेरणा, जानी पर उपकार; तसु आश्रय तल यह जयो, शुभ नाषान्तर त्यार. ११ संवत युगरस अंक जू, सक प्रागनव मास; शुक्ल त्रयोदशि गुरुदिने, पूरण नया प्रयास. वासि पालणपुरतणे, स्वपरके हित काज; नाषान्तर निज कर लोख्यो, गंजीरमल हेमराज. १३ श्रा ग्रंथ मारवामी जाषामां ग्रंथकर्ताए रचेलो हतो. तेनुं गुजराती भाषान्तर में मारी अपमति अनुसार कर्यु के माटे श्रा जाषान्तरमा जे जे स्थले मुलचुक मालम पमे ते सर्व सुज्ञ जनोए सुधारी वांचवा कृपा करवी. एज वीनंती. ली. नाषान्तर कर्ता. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रंथ संबंधी सुचना. __सर्व धर्मानोलाषा सद्गृहस्थोने विदित करवामां आवे डे के था ग्रंथ गया श्रासो मासथी पाववो शरु करेलो ते जेठ मास सुधोमां तैयार थयो. तेथी अमे सर्व सद्गृहस्थोने अगाउथी ग्राहक थवा बाबतनो खबर आपी शक्या नथी. माटे सर्व धर्मातीलाषी सद्गृहस्थो श्रा पुस्तकनो सान्न लइ शके तेटला कारणथो तेमने हजु इस्वीसन ता. ३१-5-4G सुध) अगाउथी थनार ग्राहक तरीके गणवामां आवशे.. धमारा श्रगान थनार मानवंता ग्राहकोनां नाम पुस्तक पाता दरम्यान वखतसर न श्रावी प्होंचवाथी ते साहेबोनां मुबारक नाम उपावी शकायां नथी. माटे कमा चाहुं बु. ली. भाषान्तर कर्ता. Fa GAON ranonmartment Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. प्रश्न पेहेलो-याझा विषे. पार्नु १-४. मिथ्यात्वीनी निर्वद्य करणी श्री जिन आझामां कहे डे अने जिनाङ्गा बाहार . एकान्त पाप कहे छे ते विषे. साधुने आहार करवानी, उपगर्ण राखवानी तथा निंश लेवानी जगवंतनी आश बे, एम कहे जे ते विषे. मिथ्यात्विनी करणीने आज्ञा मांहेलो मोदनो मार्ग कही तेमने श्री वीतरागनी ___ आझाना देशथकी आराधक थाय कहे जे ते विषे. मिथ्यातपणामां करणी करी कष्ट सही पुन्य बंधाय तेथी ते दस हजार वर्षनी स्थितिना देवतापणे उपजे . उतां तेमने जीनाझाना अणयाराधक कसा ते विषे. राजादिकनो तर्जन्यादि मार तथा विनामन भुख ख ताढ ताप सही पुन्य बांधी बार हजार वर्षनी स्थीतिना व्यंतरजातीना देवता थाय बे. अने तेमने जी नाहाना अणआराधक कह्या ते विषे. मातापीताना वचनना पालणहार सुवनीत पुन्य बंधायाथी चौद हजार वर्षनी स्थितिना व्यंतरजातीना देवतापो उपजे डे. तेमने जीनाझाना अणारा धक कडा ते विषे. सी विना मन शील पाली पुन्य बंधायाथो ६४ हजार वर्षनी स्थीतिना व्यंतर देवतापणे उपजे डे अने तेमने जीनाझा बाहार कया वे ते विषे. अन्यमती, तापस, गृहस्यी, वोनयवादी तथा अक्रियावादी आज्ञा वाहारनी करणीथी पुन्य बांधी चोरासी हजार वर्षनी स्थीतिना व्यंतर देवतापणे उपजे ले ते विषे. अन्यमती, तापस, अग्नीहोत्रि आज्ञा वाहारनी करणीयो पुन्य बांधी. ज्योतीषी संबंधी देवलोके एक पक्ष्योपम ने एक लाख वर्षनी स्यीलिए उपजे डे ते विषे. परिव्राजक दंमधर संन्यासी करणी करी पुन्य बंधायाथी ब्रह्म नामे ५ मा देवलोकने विषे देवतापणे उपजे जे अने तेमने आया बाहार कह्या ते विषे. दान, शील अने तप आदिकमां मिथ्यात्वी पराक्रम फोरवे ते अशुद्ध अने समकि तिनुं शुद्ध कडुं ते विषे. . . . २ १३ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) 4 सिद्धान्तसार मिथ्यात्वी प्रज्ञा बाहार बे ने मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञा मांदी जे एम कहे ते विषे. तामली तथा पूरणतापस, सीवराजऋषी प्रशोचा - केवली वीजय तथा सुमुख गाथापती तथा पूर्व वे मेघकुमारे मिथ्यात्वीपणामां करणी करी तेथी mataara या कहे बे ते विषे ढाल. प्रश्न बीजो — अनुकंपादान तथा दया विषे. ८५ थी २३३. - भुख्या तयाने जमावामां, कबुतरने दाणा नाखवामां ने पाणीनी परब के 'दानशाला मंमाववामां एकान्त पाप कहे छे. ते विषे. tu धर्म तथा अधर्म लेश्या विषे. सुताने जागता तथा दुर्बल ने बलवंत विषे जला जुंमानो अधिकार. बली पाथी नंदरने बोडावीए तो योगांतराय लागे कहे डे से विषे. ग्रहस्थीनुं खा पी ने घरेणुं परिग्रहमां बे. एम कहे बे ते विषे. आधा करमी आहार जोगववा विषे. ला लाग्या पी जीऩकल्पीमांयी के निगृहधारी मुनीराज उपाश्रय बाहार निकलवाना कल्पविषे. परब यादिक हिता सहितना प्रश्नमां साधु ए केम वर्ततुं ते विषे. जति जीवनुं जीवनुं न वान् कही ते विषे जुगे पाठ बतावे छे ते विषे. aaja aataपणे गौशालाने बचाव्यो त्यारे तेमनामां व लेश्या ने आठ कर्म aai n एकान्त जुन कहे ते ते विषे.. धर्म लेश्या तथा त्रण अधर्म लेश्यानुं वर्णन. मरता जीवने जबरायी ढोमाने तो अंतराय लागे कहे बे ते विषे. रक्षा कर्याथी (जीव नगार्याथी) लाज याय तो गजनुकमालनी रक्षा नाटे वे साधुने केम न मोकल्या कहे बे ते विषे. जीव हणे तेने एक पाप लागे छाने बचावे तेने आहार पाप लागे कहे ते ते विषे. अनुकंपा विषे जिनरीख मने रयणादेवीनो खोटो द्रष्टान्त आपे बे ते विषे. साबुनी फांसी खोली शाता उपजाववामां एकान्त पाप कहे बे ते विषे. साधुनां कर्म तुटतां राखे तेने धर्मान्तरायनो देणहारो कहीये, एम कहे वे ते विषे. साधु केटा काममा जवराइ करे तो आज्ञा नृलंघे नहि ते विषे ४३ ४७ न्य १०३ १०५.. २११ .११३ २२७ ११८ १.१७ १३७ २५५ -२५६ १८८ २०४ २१० ११६ १५० २१‍ २२४ चे Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. (. १५) उखी जीवने देखी “ए कर्मने वश उःखी ले. एनां कर्म टुटे तो ठीक" एवी चितव... गाज करवी तेने अनुकंपा कहीये एम कहे डे ते विषे. प्रश्न त्रीजो-दान देवा विषे. २३३ थी ३५७. साधु विना ११ मी पमिमाधारी श्रावकथी मांडी सर्वने (गरीब रांक पल जीखारी - ..... वगेरेने) दान दीधामा एकान्त पाप परुपे डे ते विषे. ब्राह्मणोने जमाडयाथी नारकीमां जाय कधू डे एम कहे जे ते विष खुलासो. . .७. असंजती अवतीने दान देवू क्यां कई जे. एम कहे जे ते विषे.. . ..२०३ माहावीर जगवते असंजती अवृतीने वरसी दान दीधुं तेथी तेमने १२ वर्ष (फोमा) ... .. . ख दीठां, एम कही ते उपर ढालो करी ले ते. शन्। साधु विना पुन्यनुं क्षेत्र क्यांय नथी एम कहे जे ते विषे. ३०१ श्रावकने दान दीधामां पाप कहे जे ते विषे. श्रावकनां खावा, पोवा,कपडां अने घरेणाने अवतमां गणी से उपर खोटी ढालो जोमीले ते विषे. 'समणं वा माहणं वा' बने नाम साधुनांज जे एम कहे जे ते विषे. श्रावक ओरना वाटका अने कुपात्र जे एम कहे जे ते विषे. ३थए ३४५ प्रश्न चोथो साधुनो आहार, हालवू चालवू इत्यादि विषे. साधुना हालवा चालवाने तथा आहार नीहारने व्रतमां कही जुठी शाख देखा ले ते. ३५० साधुए आहार केवा प्रमाणयी करवो ते विषे. ३६५ साधुना आहारथी सात आठ कर्म निर्जरे कहे जे ते विषे. सामायकमां श्रावकनी आत्माने अधिकरणी कयो ने तेथी तेने दान दीधामां तथा वंदणा नमस्कार करवामां पाप एम कहे जे ते विषे. ३०४ साधुने पुरुषनी अने साधवीने स्त्रीनी नेत्रायनी जग्याए रहेवू कल्पे कहे .ते विषे. ३एर साधु बारणां नघाडे वासे तो पंच माहावृत जागे कहे जे ते विषे. ४०१ जगवते चस्मो राखवो सूत्रमा क्यांय कह्यो नथी एम कहे जे ते विषे. कमाम वासा उघाडवां तथा चसमो राखवो नृत्यापे ढे अने गृहस्थीना घेरे बेसबुं स्थापे वे ते विषे, - ४१ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) ४१ ४१ ए४ ४६४ पात्राने रंग रोगान लगाववा मारे.बावीस टोलाना साधुनुं हुं से ले ते विषे. नित्य पिक लेवा विषे. नदी उतरवामां धर्ष कहे जे तण आा अने कल्प एकज कहे ते विषे. सामायकमां साधुने बोहोरावतुं स्ापे २ ते विषे. पुन्य पाप बनेने बांडवा योग्य कहे जे ते विषे. साधु ब्रहस्थीने सूत्र जणावे तो चोमासी प्रायश्चित आवे कहे जे से विषे. आपकने “सुपपरिग्रहा" सूत्र आश्री का डे एम कहे जे ते विषे. नव तत्व पर नय देखामी जीव अजीवनो बेद बतावे ते विषे. चार प्रकारना संजोगी नाम निपन्यां ते विषे. ४० ४०१ ४८३ कठण शब्दोना अर्थ. प्रवर्जित त्यागी. अनागतकाळ भूतकाळ. अनुमति आमा. जलचर पाणीमा रोनारां. अनुष्टाम-आचरण. थलचर-जमीनपर रोनारा. उत्सर्ग-धोख. . खेचर-आकाशमा उडनारा.. उपशमाव शान्त पाड. भजनहारम्लइजनार. अभिलापा-इच्छा. भवान्तरे आखरे. प्रशस्तम्भला. उपरांठो विरुद्ध. संक्लिष्टमाठी. असंक्लिष्ट भली. नीवड-चीकणी. प्रतिवयु अंगीकार कयु. खलाया-भुल्या. कालकुट हलाहल. कोलाहल सोरवकोर. विद्यमान वर्तमान. प्रतिलाभq-देवु. अवगृह आशा. सर्दहणा श्रद्धा. अटवी-जंगल. प्रणविकलेंद्रि बेइंद्रि, तेंइंद्रि अने चउरेंद्रि. निउत्साहभावे विना उल्लासे.. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीतरागाय नमः सिद्धान्तसार, प्रश्न पेहेलो आज्ञा विषे. अथ तेरापंथी साथे जे बोलनो श्रांतरो बे तेना उत्तर लखीए बीए. त्यां प्रथम तेरापंथी कहे वे के, मिथ्यात्वीनी निर्वध्यकरणी श्री जिनाज्ञामांदी बे. तेनो उत्तरः- - हे श्राज्ञाना जाण पुरुषो! प्रथम तो श्री वीतरागदेवनी प्रज्ञामांही एकांत धर्म बे, एकांत व्रत बे अने rain मुक्तिनो हेतु (कारण) बे; तेमां बीजो पक्ष कांइ नथी. श्राज्ञा केहने कहीए, श्री वीतरागदेवने ओळखीने वचनरुपी श्राज्ञा प्रमाण करवी, तेज आज्ञा तेनी शाख सूत्र याचारांग प्रथम श्रुतस्कंधे पांच अध्ययने बठे उद्देशे एहवो पाठ वे के, जिन खाज्ञा मांदेली क रणीमां आळस ने जिनाझा बादली करणीमां उद्यम, ए बे बोल दे शिष्य ! तुजने मत होजो, ए तिर्थंकरनो अभिप्राय जाणवो. ते माटे श्री जिनेश्वरनी आज्ञाए प्रवर्ततुं जोइए, ते सूत्र पाठ लखीए बीएःप्राणाए एगे सोवठाणे आणाए एगे निरुवठाणे । एवं माहोन एवं कुसलस्स दंसणं ॥ तद्द्ठिीए तम्मुतीए तप्पुरक्कारे तस्सली तमिवेसणा । अनि अदरक अप निनूए पन्नू ॥ अर्थः- दवे बो उद्देशो प्रारंभीये बीए. पांचमे उद्देशे ऽह सरीखा Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) 4 सिद्धान्तसार. आचार्य काबे, तेमनी सेवाए कूमार्गनो परित्याग ने रागद्वेषनी हानी संजावीए, इहां एवो अधीकार बे. अ० एकेक इंद्रिय वश दुर्गतीना जानार, पोताना अजिमाने ग्रस्त, एहवा श्री वीतरागनी श्राज्ञा विना * सोपस्थानी अने चारित्र (क्रिया) मार्गे प्रतिपन्न बे. ते मुखे एम कहे :- " छामे प्रवर्जित बीए." परं रुमा पामुख धर्मने विषे विशेष विकल÷साद्यानुष्टानने विषे प्रवर्तेबे, तथा श्रा० श्रज्ञा श्री वीतगोपदिष्ट मार्गने विषे संशुद्ध बे, परं मोहादिक काठियांने वस प्राये श्रा सुबे, ते श्री जन-प्रणित मार्गने विषे नि० सदाचार पालवे विकल बे. वे श्री गुरु शिष्यने कड़े ते, " ए० ए कूमार्गने विषे अनुष्टान धने सन्मा विषे प्रमाद, ए बे बोल, दुर्गतीनां कारण हे शिष्य ! तुजने मा० मत होजो." ए० ए पूर्वोक्त अनाज्ञा विषे निरुपस्थानप, अने श्राज्ञा- विषे सोपस्थानपणुं, ए कु० श्री तीर्थंकरदेवनो दं० अभिप्राय जाणवो. वळी तेज कदे बे, ते कूमार्ग बोमीने सदाय याचार्यनी समिपे शिष्ये वसतुं, एम, दि० ते श्राचार्यनी द्रष्टिए (तोर्थंकर प्रणीत श्रागमरुप प्रष्टीप) वर्ते, तम्मु ते श्राचार्यनी मुक्तीए (निर्लो जपणे) प्रवर्त्ते, तप्पु० ते श्रा चार्यने सर्व कार्य विषे आगळ करी प्रवर्ते, एतावता आचार्यनी अनुमती अनुष्टान करे इत्यर्थ. तस्स० ते आचार्यना ज्ञाने उपयुक्त प्रवर्ते, तस ते आचार्यना स्थाने प्रवर्त्ते, एतावता सदा गुरु कुलवासीपणे रहे, एवा शिष्यने शो गुण उपजे ते कहे डे:- अनि० ते परिसह (नृपसर्ग) जीते, प्रद० घाती कर्म चतुष्टय जीतीने केवली थइ तत्व देखे तथा अनुकुल प्रतिकुळ उपसर्गे करी अपराजिता (निरालंबण) थाय. संसारमां जीवने, नर्कादिक पकतां एक जिनवचन टाळी माता पीता पुत्र कलत्रादिक कोइप आलंबन नथी. ते एवं जूत जावनाने प० स मर्थ था, इत्यादि. वे आज्ञा केटला प्रकारनी बे, ते कहे. त्रण प्रकारी राधना कहीठे:-ज्ञान-आराधना १, दर्शन-आराधना चाळस वा प्रकारे * उद्यम + पापकारी याचरण Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. सिद्धान्तसार. ( ३ ) २ घने चारीत्र आराधना ३. शाख सूत्र भगवती शतक आठमे, उद्देशे दशमे, ते पाठ लखीए बीए: - कइ विणं ते! आराहणा पत्ता ? गोयमा ! तिविदा राहणा पत्ता, तंजदा: - णाणाराहणा, दंसणा राहणा, चारितारादणा. गाणारादणाणं नंते ! कइ विहे पत्ते ? गोयमा ! तिविदा परमत्ता तंजहा:- नक्कोसिया, महिमा, जहणा. दंसणाराहणाणं जंते ! एवंचेव तिविदा, एवं चारिताराहणावि. अर्थः- -क० केटला वि० प्रकारे नं० हे भगवान् ! आ० आराधना प० कही ? इती प्रश्न. नत्तर- गो० हे गौतम! ति० त्रण प्रकारे ० प्राराधनाः प० कही तं० ते जेम बे तेम कहे बेः- पा० ज्ञाननी आराधना निरतीचारपणे अनुपालना, ते ज्ञान पांच प्रकारे, अथवा श्रुतनी - राधना, ते कालादिक व नेदे तद्यथा. गाथा :- काले १, विए 2, बहूमाणे ३, वहाणे ४, तह निन्हव से ५, वंजण ६, अन्य ७, तडुजय विषाणमायारो ॥ १ ॥ दं. दर्शन सम्यक्तनी आराधना ( निशंकतपणा यादिष्टाचार पाळवा ते ) यतः गाथाः - णिस्संकिय १, - खीय २, वितिगिता ३, अमूढदितीय ४, नववुह ५, थिरीकरणे ६, वह्वल ७, प्पन्नावणे . उपर प्रमाणे दर्शनाराधनाना आठ नेद कह्या ते विषे पुनः गाथा: - दंसणं मूलं गुरुणो, सुयंचऽन्नंतु विषयवचलया, जह आदरेण कीर, दंसण राहणा णाम ॥ २ ॥ चा० चारित्र सामायकादिकनी वाराधना ( निरतीचारपणे सुमती गुप्ति पाळवी ते. ) ए चारित्राराधनाना आठ आचार विषे गाथा:- पसिहाण जोग जुत्तो, पंचा समहिं तिहिं गुत्तिहिं, एस चरित्तायारो, अ विहो हाइ थावो समझ गुत्त परिसद, जइ धम्माइ सुय धम्म जोगेसु, विरियस - 4 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) +सिद्धान्तसार. पिग्गुहो, चारित्ताराहणा होइ. ॥ ३॥ हवे णा ज्ञान-श्राराधना जंग हे नगवान् ! क० केटले वि० प्रकारे प० कही ? इति प्रश्न उत्तर-गो० हे गौतम ! ति० त्रण प्रकारे प० कही तं ते कहे ः न0 नत्कृष्ट झान-श्राराधना ते केवी के जे ज्ञान कृत अनुष्टानने विषे प्रकृष्ट प्रयत्न गाढो नद्यम तथा उत्कृष्टी ज्ञाननो आराधना (चौद पूर्वनुं नणदुं ते), म तेने विषे मध्यम प्रयत्न (गाढो उद्यम नही तेम घणो थोमो पण नही, एकादशांगादि विचित्र सूत्रनुं नावं ते) ज० जघन्य थोमोज प्रयत्न, जे घणोज थोमो उद्यम (पांच सुमति अने त्रण गुप्ति ए मळी श्राप प्रवचन मातानुं नणदुं ते)॥१॥ दंग दर्शन-आराधना नंग हे न. गवान ! केटले नेदे कही ? इति प्रश्न उत्तर-हे गौतम ! ए जेम ज्ञान आराधना त्रण नेदे कही, तेम दर्शन-आराधना पण ति त्रण नेदे केहेवी. त्यां नत्कृष्टी दर्शन-आराधना ते दायक सम्यत्क, मध्यमश्राराधना ते क्षयोपशमादिक सम्यक्त अने जघन्य-आराधना ते सास्वादन सम्यक्त (कालरना रणकावत् )॥२॥ ए. एम चा० चारित्र-आराधना पण त्रण नेदे केदेवी, नत्कृष्ट चारीत्र-आराधना ते यथाख्यात चारीत्र मध्यम-आराधना ते परिहार विसुझादि, अने जघन्यआराधना ते सा. मायक चारित्र॥३॥ वळी बे प्रकारनो धर्म कह्यो -सूत्रधर्म अने चारित्र धर्म २. शाख सूत्र गणायांग गणे बीजे. ते सूत्रधर्मना बे नेद, ज्ञान अनेसम्यक तथा सूत्र श्रने अर्थ. सूत्रनी सजायना पांच नेदः वायणा, पुरणा, परियट्टणा, अणुपेहा अने धम्मकहा ५. चारित्र धर्मना बे नेदः. मूलगुण-पचखाण, अने उत्तरगुण-पचखाण. शाख सूत्र नगवती शतक सातमे नद्देशे बीजे ते पाठःकश विदेणं नंते ! पञ्चकाणे पमत्ता ? गोयमा! विदे पच्चरकाणे परमत्ता तंजदाः-मूलगुण-पच्चरकाणेय उत्तरगुणपच्चरकाणेय.मूलगुण-पच्चरकाणेणं नंते ! कश विहे परमत्ता? गोयमा! ऽविहे परमत्ते तंजहाः-सब-मूलगुण-पच्चरकाणे Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. - देस-मूलगुण-पच्चरकाणे. सव्वमूलगुण-पच्चरकाणेणं नंते ! कश्विदे परमत्ते ? गोयमा ! पंचविहे परमत्ते तंजदाः-सवार्ड पाणाश्वायान विरमणं जाव सबा परिग्गदान विर. मणं. देसमूलगुण-पच्चरकाणेणं नंते ! कश्-विहे परमत्ते ? गोयमा!पंचविहे परमत्ते तंजहाः-थूलान-पाणाश्वाया विरमणं जाव थूला परिग्गदा विरमणं. उत्तरगुण-पच्चरकागणं नंते ! कशविदे परमत्ते ? गोयमा ! विहे परमत्तेतंजदाः-सब-उत्तरगुण-पच्चरकाणेय देस-उत्तरगुण-पच्चकाणेय. सत्व-उत्तरगुण-पच्चरकाणणं नंते ! कविहे परमत्ते ? गोयमा ! दसविहे परमत्ते तंजदाः-अणागय १, मकंतं २, कोमिसदियं ३, नियंटियंचेव ४, सागार ५, मणागार ६, परिमाणकम ७, निरवसेसे G, संकियंचेव ए, अछाए १०. पच्चरकाणं नवे दस विदा. देसउत्तरगुणपञ्चकाणेणं नंते ! कविहे परमत्ते ? गोयमा! सत्तविदे परमत्ता जहाः-देसयचं २, नवनोग परिनोगपरिमाणं २, अणदम विरमणं ३, सामाश्यं देसावगासियं ४, पोसदो- . ववासो ५, अतिदिसंविनागो ६, अपश्चिम मारणंतिय संवेदणा कुसणा रादणया ७. अर्थः-का केटले [व प्रकारे नं० हे नगवान ! प० पचखाण प० कलां ? इति प्रश्न उत्तर गोण्हे गौतम ! कुण्बे प्रकारे प० पचखाण प० कह्यां तं ते कहे-मू चारित्र कल्पनुं मूळ समणगुण प्राणाति पातादि विमरणरुप जे पचखाण ते मुलगुण पचखाण, ज० मूलगुणनी अपेक्षाये उचरण पचखाण, जेमवृक्ष थने वृक्षनी शाखा. मृण्मूलगुण-पचखाण Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) सिद्धान्तसार. ० हे जगवान ! क० केटला वि० प्रकारे प० कां ? इति प्रश्न उत्तर गो० हे गौतम! 5० बे प्रकारे प० कह्यां तं ते कहे बे स० सर्वथा मूलगुण - पचखाए सर्ववृत्तीने होय ते, अने दे० देशथी मुलगुण-पचखा देसवृत्तिने होय ते. स० सर्व मुलगुण- पचखाण जं० हे जगवान ! to केटले प्रकारे प० कां ? इति प्रश्न उत्तर गो० हे गौतम ! पं० पांच प्रकारे कह्यां तं ते कवेः स० सर्वथा पा० प्राणीने हणवाथी वि० निवर्तवुं ते जा० यावत स० सर्वथा प्रकारे मृखाबाद, अदत्तादान, मैथुन परिग्रह वि० निवर्ततुं ते ५. दे० देश- मुलगुण- पचखारा जं० हे गवान ! क० केटले प्रकारे प० कां ? इति प्रश्न. उत्तर गो० हे गौतम! पं० पांच प्रकारे प० कां तं ते कद्देढेः- यू० त्रसप्राणीने हावाथी वि० निवर्तते जा० यावत थुल- मृखाबाद, थुल- प्रदत्तादान, थुल-मैथुन : थुथुल प० परिगृहथी वि० निवर्ततुं ते. उ० नतरगुण-पचखाण जं० हे जगवान ! क० केटले प्रकारे प० कां ? इति प्रश्न. उत्तर गो० हे गौतम! 50 बे प्रकारे प० कह्यां तं ते कबः स० सर्वथकी उत्तरगुण-पचखाण अने दे० देशथकी उत्तरगुण-पचखाण. स० सर्वथकी उत्तरगुण- पचखाण ० हे जगवान ! क० केटले प्रकारे प० कां ? इति प्रश्न. उत्तर गो० हे गौतम ! द० दस प्रकारे प० कयुं तं ते कहे :- ० जे दीन तप करवो जोइए तेथी पहेलां करे ते ( श्राचार्यदिकनी वैयावचना कारणे ) १, म० जे दीन तप करवो जोइए तेथी पढी करे ते (चार्य दिकनी वैयावचना कारणे ) २, को० जे तप आरंभतां अने मुकतां एक सरखो करे ते ( चतुर्थीदिक करीनंतरे चतुर्थादिकनुं करवुं ते) ३, नि० निश्चे करीने नोंहोतय जे माहारे अमुक दिवसे ए तप निचे करवो ते नियंत्रीत ( तपना दिनादिकने विषे ग्लानत्वादि. अंतराय तां. पण नियमथकी करवो ) ४, सा० श्रागार सहित तप करवो ते थे, म० आगार रहित तप करवो ते ६ प० दात्यादिकनुं प्रमाण करते ( दात एटले एक समुचय वस्तुनुं परुवुं ते धने धार Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार (७) खंगीत थाय ने फरीथी ले ते बीजी दात ) 3, नि० सर्व अस्नादिक परिहरे ते ( निर्वशेष संथारो ) , सं० अंगुष्ठादि मुष्टी गांव श्रवण नासिका हाथ फर्स नमुक्कार गएणवारुप पचखाण करे ते शंकेत तप ए, ० पोरसी प्रमुख १० प० पचखाण दस प्रकारे यतः मुक्कार सिए १, पोरसीए २, पुरिमढ्ढे ३, एकासय ४, एकठाणेय ५, आयंबिल ६, अवध, चरम, जिग्गढ़ ए, लिविगइए १०. ए काळनुं मान करते. ए सर्व उत्तरगुण- पचखाल जाणवां १० दे० देसुत्तरगुण- पचखाण जं० दे नगवान ! क० केटले नेदे प० कां ? इति प्रश्न. उत्तर गो० हे गौतम! स० सात नेदे प० कां तं ते कहेबे :- दे० दिशी प्रमाण व्रत ( जोजनादिक क्षेत्रनी मर्यादा करवी ते ) १, उ० जवनोग-परिजोगनी मर्यादा करवी ते, तेनुं लक्षण यतः उवनोगो जवे वस्तु, पुष्प मन्नं घृतादयोः प्रनोगा नूयणं धर्मि, प्रावणं वलना यथा. २. श्र० छानeth (पध्यानादिकः प्रयोजन विना दंग लागे ते ) थी निवर्ततुं ते ३, सा० सामायक करवुं ते. ते सामाइक किं० लक्षणं यतः जस्सा सामापि, संजमे पियमे तवे; तस्स सामाश्यं होइ, इमं केवली नासियं. दे० दिनप्रत्ये दिशि क्षेत्रनुं प्रमाण करवुं ते ४, पो० पोषध ( अष्टयाम चतुर्विधादार विवर्जित ते ) ५, ० साधुथी संविजाग दान कर ते ६, ० बेले मा० मरणने अंते सं० सलेखणा तप विशेषनुं सेव तथा प्रातेनी श्राराधना अखंग करवी ते संथारो ७, इत्यर्थ. जीवाणं ते! किं मूलगुण-पच्च रकाणी उत्तरगुण- पञ्चस्काणी प्रपञ्चकाणी ? गोयमा ! जीवा मूलगुण- पञ्चरकाणीवि उत्तरगुण-पच्चरकाणीवि प्रपञ्चकाणीव || नेरइयाणं नंते ! किं ? मूल गुण -पच्चकाणी पुच्छा ? गोयमा ! नेरइया णो मूलगुण- पञ्चकाणी णो उत्तरगुण-पच्चरकाणी प्रपञ्चकाणी, एवं जाव चरिं दिया. पंचिंदिया - तिरिरक - जोणिया मणु Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क सिद्धान्तसार.. सायजदाजीवा.वाणमंतर जोइस वेमाणिया जहा नेरश्या.॥ अर्थः-जी जीवनं हे जगवान ! किंग शुं ? मू मुलगुण पचखाणी डे न नुत्तरगुण-पचखाणी डे के अ अपचखाणी ? इति प्रश्न. उत्तरः-गो हे गौतम ! जीजीव मूण मुलगुण-पचखाणी होय, न० उत्तरगुण-पचखाणी पण होय अने अण अपचखाणी पण होय. ने नारकी नं० हे नगवान ! किंग शुं ? मूण मुलगुण प० पचखाणी जे ? नत्तरगुण-पचखाणी जे ? के अपचखाणी जे ? इति प्रश्न. उत्तर गोण्हे गौतम ! ने नारकी णोण्मू मुलगुण-पचखाणी नथी जोन नुत्तरगुण पचखाणी पण नथी, पण अण पचखाणना अनावथी अपचखाणी . ए० एम संजमना अनावथी जा यावत दस नवनपति, पांच स्थावर अने त्रण विगलेन्धि सुधी अपचखाणो कहेवा. पं० पंचेंज-तिर्यंच-योनिकने अने म मनुष्यने जण जेम उघीक ( समुचय ) जीव कह्या तेम कदेवा; पण एटलुं विशेष के तिर्यंच-योनिक-पंचेंजियने सर्ववृत्तिनो अन्नाव डे तेथी ते देशथकीज मुलगुण-पचखाणो होय. वा वाणव्यंतर ज्योतिष अने वैमानिकने जेम नारकी कह्या तेम कहेवा. हवे मुलगुण प्रत्याख्यानादिवंतनो अल्पा-बहुत्व चिंतवे . ते पाठः एसिणं ते! जीवाणं मूलगुण-पच्चरकाणीणं उत्तरगुण-पच्चकाणीणं अपच्चरकाणीणय कयरेश हित्तो जाव विसेसादियावा? गो!सबथोवाजोवा मूलगुण पच्चरकाणी, उत्तर गुणपञ्चकाणी असंखेज गुणा, अपच्चरकाणी अनंतगुणा॥१॥ ए एसिणं नंते! पंचिंदिय-तिरिकजोणियाणं पुजा? गो! सबथोवाजीवापंचिंदिय तिरिस्कजोणियामुल-गुणपञ्चकाणी उत्तरगुण-पच्चरकाणी असंखेजगुणा अपञ्चकाणी असंखेजगुणा॥शाएएसिणंनंते!मणुस्साणंमुलगुण-पच्चकाणीणं Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार पूजा?गो!सवथोवा मूलगुण-पच्चरकाणी, उत्तरगुणपञ्चकाणीसंखेज-गुणा,अपच्चरकाणीअसंखेङगुणा ॥३॥ जीवाणं नंते! किं सत्व-मूलगुण-पच्चरकाणी देस-मूल-गुण-पञ्चकाणी अपच्चकाणी ? गो ! जीवा सवमूलगुण-पच्चरकापीवि, देसमूलगुण-पच्चरकाणीवि,अपच्चरकाणीवि.॥॥णेरड्याएं पुना ? गो! नेरश्या नो सबमूलगुण-पच्चरकाणी, नो देस मूलगुण-पच्चरकाणी,अपच्चरकाणी,एवंजाव चरिंदिया.॥५॥ पंचिंदियतिरिक पुडा? गो! पंचिंदिय-तिरिकजोणियानोसवमूलगुण-पच्चकाणी, देसमूलगुण-पच्चकाणीवि, अपञ्चकाणीवि.मणूसा जदा जीवा. वाणमंतर जोइस वेमाणिया जश नेरझ्या॥६॥एएसिणं नंते ! जीवाणं सवमूलगुण-पच्चस्काणीणं देसमूलगुण-पच्चरकाणीणं अपच्चरकाणीणय कयरे शहिंतो जाव विसेसादियावा? गो०! सबबोवाजीवा सहमूलगुण-पच्चखाणी, देसमूलगुण-पच्चकाणी असंखेज. गुणा, अपच्चरकाणी अणंत-गुणा, एवं अप्पाबदुगा, तिणिवि जहापढमिल्लएदंमए; णवरं सबबोवा पंचिंदिय-तिरिकजोणिया देस-मूलगुण-पच्चरकाणी,अपच्चरकाणीअसंखेजगुणा.॥॥जीवाणं नंते किं सबउत्तरगुण-पच्चरकाणी,देसुत्तर गण-पच्चरकाणी, अपच्चरकाणी? गो! जीवा सबउत्तरगणपच्चरकाणोतिणिवि. पंचिंदिय-तिरिकजोणिया, मणुस्साए चेव. सेसा अपच्चरकाणी जाववेमाणिया॥ एएसिणं नंते जीवाणं सबउत्तरगुण-पच्चकाणीणं अप्पाबहुगा तिणिवि? जहा पढमे दंमए जाव मणुस्साणं. ॥॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ indian + सिद्धान्तसार.. अर्थः-ए० ए नंण् हे नगवान ! जी जीवने मू० मूलगुण-पच. खाणीने ना उत्तरगुण-पचखाणीने अण् अपचखाणीने का कोण कोणथकी जा जावत वि० घणा थोमा तुला विशेषाधिक होय? इति प्रश्न. गोण्हे गौतम ! स० देशथकी तथा सर्वथकी जे मूलगुण-पचखाणवंत ने ते थोमा , कारण के देशथकी तथा सर्वथकी उत्तरगुण-पचखाणवंत अशंख्याता . इहां सर्ववृत्तिने विषे जे नुत्तरगुणवंत होय ते अवश्य मूलगुणवंत होय अने जे मूलगुणवंत होय ते उत्तरगुणवंत होय अथवा उत्तरगुणविना होय तेज हां मूलगुणवंत ग्रहवा. ते उत्तरगुणथी थो. माज होय, घणा साधुने दसविध पचखाणना युक्तपणाथी. ते पण मूल. गुणथी शंख्यातगुणाज होय, कारण के सर्व जति शंख्याताज . हवे देशवृत्तिने विषे मूलगुणवंतथी जिन्न पण उत्तरगुणवंत पामीए. ते मधु. मांसादि विचीत्र श्रनिगृहथी बहुत्तर (विशेष) होय. एम देशवृत्ति उत्तरगुणवंत अधिक होय तेथी उत्तरगुणवंतने मूलगुणवंतथी अशंख्यातपणुं कडं. मनुष्य अने पंचेन्धि-तिर्यंचनेज पचखाण होय, तेथी वनस्पतिना अनंतपणा माटे अपचखाणी अनंतगुणा कह्या बे. ॥१॥ ए० ए. हनी जंग हे नगवान !पं० पंचेंजिति तिर्यंच जो योनिकनी पु० पुजा. उतर गोण् हे गौतम ! सण सर्वथी थोण थोमा जी0 जीव पं० पंचेंजितिर्यंचयोनिक मूण्मूलगुण-पचखाणी, तेथो न नत्तरगुण-पचखाणी था अशंख्यातगुणा भने श्र० अपचखाणी अशंख्यातगुणा. ॥२॥ ए० ए जंग हे नगवान ! म मनुष्य मू० मूलगुणपचखाणी? इत्यादिक प्रश्न कीधा. उत्तर गो हे गौतम! सण सर्वथी थोमा मूळ मूलगुरापचखाणी तेथी ज० उत्तरगुण-पचखाणी सं० शंख्यातगुणा तेथी श्रण अपचखाणी श्रश्रशं. ख्यातगुणा; गर्नज मनुष्य शंख्याताज डे ते माटे संमूर्बिम मनुष्यने ग्रहणे करी जाणवा. ॥३॥ जी जीव नं० हे नगवान ! किं शुं ? स० सर्वमलगुण-पचखाणी ने ? दे देशमूलगुण-पचखाणी ? के अ० अप. चखाणी ? इति प्रश्न उत्तर गो हे गौतम ! जी0 जीव स सर्वमूल. गुण-पचखाणी पण डे वे देशमूलगुण-पचखाणी पण अने श्राप Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( ११ ) चखाणी पण डे. ॥ ४ ॥ ऐ० नारकीनो पु० प्रश्न पुढयो. उत्तर गोप हे गौतम! नेण्नारकी नो०स० सर्वमूलगुण- पचखाणी नथी नो०दे० देशमूलगुण-पचखाणी पण नथी, माटे ० श्रपचखाणीज दोय. ए० एम जा० यावत च० चौरेन्द्रि पर्यंत कहेतुं ॥ ५ ॥ पं० पंचेन्द्रि ति० तिर्यंचनो पु० प्रश्न पुढयो. उतर गो० हे गौतम ! पं० पंचेन्द्रि ति० तिर्यंचयो निकजीव सर्वमूलगुण-खाणी नथी दे० देशवृत्ति होय ते माटे देशमृलगुण - पचखाणी होय अने ० पचखाणी पण होय. म० मनुष्यने ज० "जे समुचय जीव का तेम कदेवा. वा० वाणव्यंतर जो० जोतिषि अने do वैमानिकने ज० जेम ने० नारकीने कह्या तेम श्रपचखाणी कद्देवा. ॥ ६ ॥ ए० ए ० हे जगवान ! जी० जीवने स० सर्वमूलगुण - पचखाने दे० देश मूलगुण - पचखाणीने अने ० अपचखाणीने क० कोण कोणथी थोमा जा० यावत वि०विशेषाधिक होय ? इति प्रश्न. उत्तर गो० हे गौतम! स० सर्वश्री थोमा जीव स० सर्वमूलगुण- पचखाणी, दे० देशमूलगुण - पचखाणी अ० शंख्यातगुणा ने अ० श्रपचखाणी श्र० - नंतगुणा. ए० एम० अल्पाबहुत्व ज० जेम प० पेहेलाज दं० दंरुकने विषे का ( त्यां पेहेलो जीवनो, तेमज बीजो पंचेन्द्रि- तिर्यंचनो ने त्री जो मनुष्यनो, ए त्रणे जेम निर्विशेष मूलगुणादि प्रत्येक दकने विषे कह्या) तेम इहां पण त्रणेने कद्देवा. वळी विशेष कहे बे ए० एटलुं विशेष सर्व थोमा पं० पंचेन्द्रि- तिर्यंचयोनिक दे० देश मूलगुण - पचखाली (सर्वमूलगुण- पचखा। तिर्यंच न होय ते माटे) तेथी श्र० श्रपचखाण. शंख्यातगुणा कथा || 9 || जी०जीव नं०दे जगवान! किं शुं? सण्सर्व उत्तरगुण - पचखाली होय दे० देशनत्तरगुण- पचखाणी होय के अ० अपचखाणी होय ? इति प्रश्न उत्तर गो० हे गौतम ! जी० जीव स०सर्वजत्तरगुण- पचखाणी पण होय, ति० एम त्रणे होय. पं० पंचेन्द्रि-तियंच ने म० मनुष्यने पण एमज कहेवा. से० शेष नारकी यादिक शघळा अ० श्रपचखाणी कदेवा. जा० यावत वे० वैमानिक पर्यंत कदेवा ॥ ॥ ए० एहने नं० हे जगवान ! जी० जीवने स० सर्वउत्तरगुण- पचखापीदे Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) सिद्धान्तसार.. - अथल्याबहुत्व ति त्रणेने एम कहेवा. ? ज जेम प० पहेला ई० बैंक को विषे कहा तेम इहां पण जाण यावत म मनुष्य पर्यंत कडेवा. श्लादिए . जावार्थः-मूलगुण-पचखाणना बे नेद, सर्वमूलगुण-पचखाण अने देशमूलगुण-पचखाण. सर्वमूलगुणमां पांच माहाव्रत, अने देशमूः बगुणमां श्रावकनां पांच अणुव्रत. उत्तरगुणना बे नेद, सर्वउत्तरगुण-पचखास अने देशउत्तरगुण-पचखाण. सर्वनुत्तरगुणमा दश विधि पचखाए, अने देशनत्तरगुणमां श्रावकनां नपरनां सात व्रत. हवे उपरनी सूत्रशाखायी जाणवू के सूत्र अने चारित्र, ए बे बोल विना बीजा कोपण बौखमां श्री वीतरागदेवनी आज्ञा नथी, तेमज ए बे बोल बिना बीजा कोरुपण बोलने मोदनो मार्ग (धर्म) श्री वीतरागदेवे को नयी. त्यारे तेरापंथी कहे जे के, साधुने आहार करवानी, उपगर्ण राखानी अंने निजा सेवानी इत्यादिक बोलनी नगवंते श्राझा दीधी ३, तमें सूत्र धने चारित्र ए बे बोल शिवाय बीजा कोपण बोलमां नगर्वतनी थाझा नथी एम केम कहोगे ? तेनो उत्तरः-हे देवानुप्रीय ! साधुः जीने आहार करवानी, नपगर्ण राखवानी, निंजा लेवानी, इत्यादिक बोसनी अपवाद मार्गमां श्राझा बे, पण उत्सर्ग ( धोख) मार्गमा बोस्वानी आज्ञा . साधुए ब कारणथी श्राहार करवो अने ब कारणी बोमवो कडं . शाख सूत्र गणायांग तथा उत्तराध्ययन अध्ययन २६ में गाथा ३२ थी ३५. तश्याए पोरसिए, नत्त पाणं गवेसए; चन्द मणय रागंमि, कारणंमि समुहिए. ॥३२॥ अर्थ:-हवे त्रीजी पोरसिने विषे जात-पाणी गवेषे, तेनी विधि कहे-ताश्रीजी पोण पोरसिने विषे नजात पापाणी ग मोके (खे) करणमाहे म अने कोइक का कारण सम् उपन्याथी मा Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. वेयण वेयावच्चे. शरियाहाएय संजमहाए; तहा पाणवत्तियाए, बहं पुण धम्म चिंताए. ॥ ३३॥ अर्थः-हवे थाहार-पाणी गवेषणानां उ कारण कहे-वे बुधातृषाथी नपनी वेदना उपशमाववाने अर्थे १, वे बाल-ग्लाननी वैयावच करवाने अर्थे २, ५० रिया सोधवाने अर्थे ३, सं० सत्तर नेदे संजम पाळवाने अर्थे ४, त तेमज पाम् जीवितव्यने निमित्ते (अविधिए श्रामाना प्राण मुकावीए तो श्रात्मघातनो दोष लागे ते माटे) ५, बबई पुत वळी ध० धर्मध्याननी चिंतवणाने अर्थे ६, जात-पाणी गवेषे.॥३३॥ निग्गंथो धिश्मंतो, निग्गंथीवि नकरेज हिंचेव:.... गणेहिंतु इमेहि, अणश्कमणाय से दो. ॥ ३४॥ अर्थः-हवे ब कारणे साधु तथा साधवी श्राहार-पाणी न गवेषे के कहें-निज साधु धि धीर्यवंत अने नि साधवी पण न जात-पापीनी गवेषणा न स्थानके न करे, गण् ए स्थानक इ० आगळ' कहेशे तेने अर्षे असंजमजोग नलंघे नहिं से ते नियंथ निग्रंथी संजमवंत होयः ॥ ३४ ॥ आयके जवसग्गो, तितिकया बंजचेर गुत्तीसु; पाणीदया तवहेक, सरीर वोडायणघाए. ॥ ३५ ॥ अर्थः-हवे जात-पाणी अणगवेषणानां (न खेवानां) स्थानक कद्दे:-श्राणप्रसाध्य रोगादि उपन्याथी १,नण्मांतक उपसर्ग उपन्याची १, ति तीक्षण बं० ब्रह्मचर्यनी गुप्ती पाळवाने अर्थे ३, पा० कुंथवादिकर प्राणीनी द० दयाने अर्थ ४, त तप करवाने अर्थे ५, अने स० शरीरनी वो संलेखणा तथा शणसणने अर्थे ६, जात-पाणी गवेषे नही ॥३५॥ भावार्थ:-ए कारणथी श्राहार करवो ते तो अपवाद मार्गमा के प्रने उत्सर्ग मार्गमांतो बोमवो एवी श्री वीतरागदेवनी बाशा के के Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. वीतरागदेवनी श्राझामा एकान्त धर्म बे, एकान्त मुक्तिनो हेतु दे, तेमां बीजो पद कांइ नथी, अने आशा बहार मुक्तिनो मार्ग नथी थने थाज्ञानी आराधनारुप धर्म नथी, त्यारे मिथ्यात्वीनी करणी श्री जिनाज्ञामां केवीरीते कहेवाय ! अर्थात् नज कहेवाय हवे प्रजुनी आज्ञा बाहार अशुन्न करणीथी तो पाप बंधाय, पण शुज करणी करे तेथी पुण्य फल नपजे, एवं सूत्र मध्ये घणे गमे कयुं . बतां तेरापंथी कहेले के, आज्ञा बाहार एकान्त पाप , ए तेमनुं कहेवु हस्तिदंतवत् डे कारण के प्रथम तो तेमनाज बनावेला तेर धारमा कडंडे के, पुन्यपाप अजीव , आज्ञा मांहे नथी तेम ाझा बाहार पण नथी. एवी तो मनमां सर्दहणा बे, अने लोकोने नरमाववाने कपट-जुठ लगावीने कदे के, श्राज्ञामांहे तो धर्म-पुन्य निपजे बे, पण श्राझाबाहार एकान्त पाप. डे, एवं कपटथी बोले . माह्या हो ते वीचारी जोजो. . वळी तेरापंथी एम कहे के, मिथ्यात्वीनी करणी श्राझामांहेलो मोक्षनो मार्ग , श्रने मिथ्यात्वी करणी करे ते श्राश्री देशथकी श्री वीतरागनी आझाना थाराधक थाय १, एम सूत्र विरुद्ध परुपे . वळी एम कहे डे के, पुन्य बंधाय ते आशामांदेली करणीथी बंधाय , श्रने आशाबाहार एकान्त पाप ले २, ए पण सूत्र विरुछ कहेजे. ए बंन्ने प्रश्नना नेला नत्तर कहीये बीए. ' हवे जुन ! सूत्रमा :मिथ्यात्वीनी (अन्यतिर्थीनी ) करणी प्राज्ञा बाहार कही बे, अने ए आज्ञा बाहारनी करणीथी पुन्य बंधाय , ते कहे-गोशालो, जमाली अने अन्यतिर्थी ए त्रण, तथा उववार सूत्रमा अनेक नेदना अन्यतिर्थी कह्या ने ते, तथा विनामन-नूख, तृषा, शीत श्रने तापना खमवावाळा, तथा राजादिक, खूनीने अनेक विधिना-जेदन नेदन, जाखसी तर्जन्यादिक मार दे, ते जीव कष्टथी पुन्य बांधे तेथी देवतामा जाय, अने तेने जिनाझाना अणाराधक कह्या बेतेनी शाख सूत्र नववाश्जीमां, ते पाठ लखोए बीए.. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिदान्तसार.. (१६) जीवाणं नंते! असंजए अविरिए अप्पमिदय पच्चरकाय पावकम्मे इत्तोचुए पेच्चा देवेसिया ? गोयमा ! अगश्या देवेसिया, अवेगश्या णो देवेसिया. से कण ठेणं नंते! एवं वुच्च अगश्या देवेसिया अबेगश्या णो देवेसिया? गोयमा सेजेश्मे जीवा गामागर णगर णिगम रायहाणि खेम कवम दोणमुह पट्टणासम संवाह सन्निवेसेसु अकाम तण्हाए अकाम छुदाए अकाम बंनचेर वासेणं अकाम अएहाणय सीयाय व दंस मसक सेय जल्ल मल्ल पंक परितावेणं अप्पतरोवा नजातरोवा कालं अप्पाण परिकि संति ३ त्ता कार्यमासे कालं किच्चा अणयरेसु वाणमंतरेसु देवखोएसु देवताए नववत्तारो नवंति, तर्हि तेसिं गइ तदिंतेसिं वितहिंतेसिं नववाए परमत्ते. तेसिणं नंते देवाणं केवश्यं कालं विश परमत्ता ? गो०!दस वाससहस्साई विश्पमत्ता. अविणं ? नंते! तसिं देवाणं इडिवा जुइतिवा जसेतिवा बलेतिवा विरिएतिवा पुरुषाकार परकमेतिवा ? दंता अनि तेणं नंते ! देवा परलोगस्सारादणा ? णोशण सम. अर्थः-जी जीव (चेतना लक्षणवंत) नं० हे नगवान ! असं० असंजमवंत अथवा अवि० वृतरहित अप्प सम्यक्त प्राप्त करीने नथी हएया तथा अनागतकाल संबंधी नथी पचख्यां जेणे पा० पाप कर्म, एवा जीव ३० हां (मनुष्य) थकी चवीने पे० परनवांतरने विषे दे०. देवता थाय ? इति प्रश्न उत्तर. गो० हे गौतम ! श्र० केटलाएक दे० दे. वता याय श्र० केटलाएक गोण्दे देवता न थाय. से० ते के० शा कारणे नंग हे नगवान ! ए एम वुण कयु के अण् केटलाएक देण् देवता भाप अप केटसाएक पोण्देव देवता न थाय ? इति प्रश्न, उत्तर गोण हे Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार गौतम ! सेण्ते जे जे प्रत्यक्ष (देखीता) जी0 जीव (तियंच श्रने मनुप्यरुप), गा वामे वीटयुं ते गाम अ लवण अथवा सुवर्णादिकना अगर ण ज्यां गवादिकनो कर नहीं ते नगर णि ज्या वाणीयानो वास ते णोगम राण राजालोकना वास ते राजधानी खे० धुळनो गढ ते खेम का खंभेरनगर मंण् ज्यां ढुंकमो सनीवेस होय ते दो ज्यां जलवट धने अलवट ए बे पंथ होय ते बंदर प० पाटण (रत्ननूमि) श्राण तापसनां श्राश्रम संम्पर्वत उपर वास सनरवामादि वसे ते, इत्यादिक वासने विषे श्रम निर्जरानी जिलाषा विना त तृषा तथा अनिर्जरानी अभिलाषा विना बु० नूख खमे श्रण निर्जरानी अनिवाषा विना (विनामन) बं ब्रह्मचर्य वा पाळे अण् विनामन स्नान न करे सी० ताड तथा ताप खमे अने दंण्दसा म मसादिकनो मंख सहे से० परशेवो जप रजमान मेल म कठण मेल अने पं० कादव इत्यादिकना पण परितापे करी अथोडा काळ तथा लू घणा काळ सुधी अ पोतानी आत्मामे प० कलेश पुःख पमामे, पमामीने का काळने अवसरे का काळ करीने अ० अनेरी वा वाणव्यंतरनी जातीना देण् देवलोकने विषे देण् देवतापणे नजा नपजे, ता त्यां ते तेनी ग गति त त्यां तेनी वि० आउखानी स्थिति अने त त्यां तेनुं न नपजतुं प० कयु बे. तेनंण्दे हे जगवान! ते देवतानी के केटला काळनी विण स्थिति प० कही ? गो हे गौतम! द दस वा हजार वर्षनी विण स्थिति पण कही. अण्डे? नं० हे पुज्य ! ते ते देण् देवताने इ० रुछि परिवारनी संपदा जुन शरीरना आनर्णनी जोति ज० लोक मध्ये जश कीर्ति बन शरीरनुं बळ वि० जीवथी उपन्यु जे वीर्य (शक्ति) पु० पुरुष संबंधि अनिमान अने प० पराक्रम फोरववानी शक्ति ने ? हं हा गौतम, ते देवताने एटलां वानां ढे. तेजण्दे हे पुज्याते देवता प० परलोकने विषे मोक पामवारुप पुज्यनी आझाना थाराधक होय ? को नही ३० ए थर्थ सणसमर्थ. ते समकितनो श्राराधक नथी माटे व्यंतर थयो. अवता लब करे तोपण समकित विना आराधक नही. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. सेजेइमे, गामागर, गर, गिम, रायदाणी, खेड, कबम, ina, दोणमुद, पट्टणास्सम, संवाह, सन्निवेसेसु, मणुच्या जवन्ति तं जहा :- मुबं६गा, पियबंधगा, दडिबंदगा, चाकबंगा, च विगा, पायविलगा, कालिगा, एकचिग्गा, उचिएगा, जिन्ननिगा, सीसविलगा, मुखचिणगा, मऊचिमगा, वई सिंगा, दियडप्पा मियगा, दसणुप्पा मियगा, वसणुष्पामियगा, गेव चिसागा, तंडुलगा कागणिमंसखावियगा, नलं वियया संवियया, घसंत्तगा, घोलंतघा, पफोमियया, पीलियया, सूलाइयया, सूलजिएगा, खारवत्तिया, वनवत्तिया, सीहपुच्चितया, दवग्गिदवडगा, पंकोसागा, पंकेकुत्तगा, वलयमत्तगा, वसढमत्तगा, णिदाणमत्तगा, अंत सलमत्तगा, गिरिपमियगा, तरुपरियगा, मरुपमियगा, गिरिपरकंदोलया, तरुपकं दोलया, मरुपरकंदोलया, जलपवेसिका, जलपवेसिका, विसन रिकतगा, सच्चोवामित्तगा, वेहाण सिया. गिदिपिठिगा, कंतारमत्तगा, जिस्कमत्तगा, असं किलि परिणामाते कालमासे कालं किच्चा प्रणयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएस देवत्ताए नववत्तारोजवइ तहिंतोसंविई तर्दितेसिंगई तदितेसिं नववाए पत्ते. ते सिणं ते! देवाणं केवइयं कालं ठिइ प० ? गो० ! बारसवास सदस्साइंटिई पत्ता. अचिणं ? नंते ! तेसिंदेवा इडित्तिवा जुईवा जसेत्तिवा बलेत्तिवा वीरिएत्तिवा पुरिसक्कार परक्कमेत्तिवा ? दंता चि तेणं जंते ! देवा परलोगस्सारादगा ? णो तिणद्वे समझे ॥ 1 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८ ) सिद्धान्तसार. अर्थः- से० ते जे एं गा० गाम, अगर प० नगर पि० नीयम रा० राजधानी खे० खेम क० खंदेरनगर मं० मंरुप दो० बंदर प० पाटण ० तापसोनां वाम सं० पर्वतनपर वास छाने स० जरवार प्रमुखना वामनेविषे म० मनुष्य न० एवा होय तं ते कहे बे. कोइएक अन्याय कीधाथी पटलों दुःख पामे ते कः - श्र० काष्टमां हाथ-पग बांध्या पि० लोढानी बेमीमां घाल्यो ह० देन गळामां घाली, चा० केदखानामां घाल्यो इ० हाथ oि बेद्या पा० पग बेद्या क० कान बेद्या रा० नाक बेयुं ४० होठ बेथा जि०जीज बेदी सी० मस्तक बेधुं हि० हैयुं उपामी काळजानुं मांस काढयुं द० दांत पाड्या व० वृषण ( अंगकोष ) उपाकी काठ्या गे० कोट बेदी तं० चोखाना दाणा जेवमा कटका कर्या का० कोमी जेवमा कटका करी तेनुं मंस तेने खवराव्युं, ८० खाममां उतारे io वृदन] शाखाएं बांधे घ० पाषाण ( पत्थर ) उपर घसे, घो० पेटादिकने घोळे प० कुहामाथी फामे पी० शेलमीना पेठे पीले सू० शूळी ए घाले सू० त्रिशूलादिके नेदे खा० अस्त्राय बेदी लोदी काढे, शरीर खार बांटे व घालुं चामकुं माथे बांधे सी० लींग बेदे तथा शिंहना पुंबके बांधे दा० दावानळनी अग्निथी दावे पं० कादवमां खोशी घाले, व० भूख मरतां मरे व इंद्रियो वश पीमायाथका मरे लि० राजादिकनां नियाणां करी मरे ० हैयामां कषायादिकथी मिथ्यात्व शब्ल राखी मरे गि० पर्वतथी पीने मरे त० वृक्ष उपरथी पमीने मरे म० धूळना ढगला उपरथी पमीने मरे गि० पर्वतना पत्थरथी चंपाइने मरे त वृक्षनी माळी हींचोळीने लसरतुं मुकीने मरे म० पत्थर हींगोळी पमीने मरे जपपाणी मां मुवीने मरे जाग्निमां पेसीने मरे वि० विष खाइने मरे स० शस्त्र की मरे वे गळे फांसी लेइ मरे गि० पक्षी पासे चुंटावी मेरे कं० अटवी ( जंगल ) मां जइ मरे 50 डुकाळे भूखे मरे अ० श्रार्त-रुद्रध्यान प्रणाममां शंकलीपृ प्रणाम। मरे, तं० ए पूर्वोक्त जीव का० काळने अवसरे का० काळ करीने प्र० अनेरी वा० वाणव्यंतर जातीना दे० देवलोकने विषे दे० देवतापणे उ० उपजे, त० त्यां तेनी Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१९) - - वि० स्थिति त त्यां तेनी ग गति अने त त्यां तेनुं उ० उपजकुं प० कयुं बे. ते जंप देख हे जगवान ! ते देवतानी के केटला काण काळनी वि० स्थिति प० कही ? गोण हे गौतम ! बा० बार हजार वर्षनी स्थिति प० कही. अण् बे? नं हे लगवान! तेण्ते देवने ३० रिकि परिवारनी संपदा जुन् शरीरात्रणनी कान्ती जण लोकमांहे जश महिमा ब० शरीरनुं बळ वी० वीर्य पु० पुरुषाकार अने प० पराक्रम डे ? हं हा गोमत अबे. ते जं दे हे पुज्य ! ते देवता प० परलोकने विषे श्रा० आराधक होय ? यो नही ए अर्थ समर्थ (परलोकना आराधक न होय). नावार्थ:-हवे जुन ! ए विनामन नूख-तृषा अने ताढ-ताप खमे, राजादिक अनेक प्रकारनां पुःख दे, ते परवशपणे सहे अने विनामन बाल-मर्ण करे, ते जीव देवतामां जाता कह्या, अने तेमने जीनाझाना परखोकना (मोदना ) अणाराधक कह्या. ए न्याये मिथ्यात्वीनी करणी श्राझा-बाहार ने अने आझा-बाहार पुन्य निपजे हवे ए बोलोनी, वेदन-जेदनी श्रने बाल-मर्णनी साधु-मुनीराज आज्ञा पण देता नथी. ए करणी जीनाज्ञामां के केम ? त्यारे तेरापंथी कहे के, ए कामतो श्राझामांहेलां नथी अने ए कामथी पुम्य बंधातु नथी, पण अंत समये शुज प्रणाम श्रावे ते श्राशामांहेला तेथी पुन्य बंधाय . एम एकान्त जुन कहे, पण अहियां तो मर्णने अंते आर्तध्यानने वशे काळकरी कष्टथी वाणव्यंतर-देवामां जाय एम कडं. माह्या हो ते विचारी जोजो. वळी आ आगला नववाश्-सूत्रना पाठमां कडंडे के, मातापीताना वचनना पालणदार सुवनित, पुन्य बंधाय तेथी देवतामां जाय एम कडं अने तेमने जीनाझाना अणयाराधक कह्या. ते पाठःमण्या जवंति तंजदाः-पग जद्दका पग विणया पगइ जवसंता पगश्नप्पएणु कोह माण माया लोना मिन महव संपन्ना अलोणा विणीया अम्मा पिन सुस्सूसका अम्मा Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) सिद्धान्तसार.. पियाणं अणकमणिक वयणा अप्पिहा अप्पारंजा अप्पपरिगादा अप्पेणं आरंनेणं अप्पेणं समारंनेणं अप्पणं आरंजसमारंनेणं वित्तिकप्पेमाणा विहरमाणानबदूश्वासायं आनयं पालिंति पालित्ता कालमासे कालंकिच्चा अणयरेसु वाणमंतरेसुदेवलोएसुदेवत्ताए उववत्तारो नवंति. तेहिंतेसिंग तेहिंतेसिंविइ तेहिं तेसिं नववाए पामते. तेसिणं नंते देवाणं केवश्यं कालं विश्पमत्ता ? गोयमा ! चनदस्सवास सहस्साई॥ अर्थः-पूर्वोक्त पाठमां कडं के, गाम जावत सन्निवेसने विषे म मनुष्य न होय ते केवा होय तं ते कहे:- १० स्वजावे जग नजिक, प० प्रकृतिना वि० वनित, प० स्वनावे न० उपशमाव्या ले तथा प० स्वन्नावे ज पातळा पाड्या को क्रोध मात्र मान मा० माया थने लोग लोज, मिण सुकुमालपणुं अने म निर अहंकारपणुं सं० पाम्या ने अण् अंगोपांग वश राखे वि० ते वनित अ० माता पीतानी सु० जली स्सू० शेवा नक्तिना करणहार तथा अ० माता-पीताना अण वचनने अतिक्रमे नहि एवा वनित ३ ते अप्पि० खावा पीवानी थोमी श्वावंत अप्पा थोमाज आरंजी अप्पा अल्प परिग्रहवंत अण्श्रा जीव घात्या दिरुप थोमाज पारंजेकरी तथा अण्स जी. वने परितापना पमामवारुप थोमाज समारंनेकरी तथा श्रण थोमाज आप शारंन-समारंनेकरी विश्राजीविका करताथका वि विचरताथका ब० घणा वा० वर्षों सुधी आ० थाउलुं पा० पाळे पा० पाळीने का० काळने अवशरे का काळ करीने अण् अनेरा वा वाणव्यंतर देवलोकने विषे दे० देवतापणे ज० उपजे. ते त्यां तेनी गति ते त्यां तेनी स्थिति अने ते त्यां तेनुं जग उपजतुं प० कयु. तेजंण्दे० ते दे. वतानी, हे जगवान ! के केटला का कालनी विश स्थिति पर कही? Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (२१) प्रश्न. उत्तर गोण् हे गौतम ! च० चौद हजार वर्षनी स्थिति कही. पण ए समकितविना श्री जिनश्राझाना आराधक नही. ___ हवे विनामन शील पाळे, ते पण जिन-आशा बहार , तोपण ते देवतापणे उपजे . ते विषे सूत्र नववाश्जीनो पाठ लखीए बीए: शत्थियान नवंति तंजहाः-अंतोअंतेजरीया गयंपतियान मयंपतियान बालविहवा मितलियानमाश्रकिया पियरकिया नायरकिया पतिरकिया कुलघररकियान सुसरकुखरकियान परूढणह मंसकेस करकरोमान ववगय पुप्फगंध-मल्लालंकारा अपहाणग सेयजल मल पंक परित्ताविया ववगय खिर दहि णवणीय सप्पि तेल गुल लोण महु मद्य मंस परिचतकय हारा अपिडान अप्पारंना अप्पपरिगादा अप्पेणंआरंनेणं अप्पेणंसमारंनेणं अप्पेणंआरंजसमारंनेणं वित्तिंकप्पेमाणिन अकामबंनचेर वासेणं तामेव पति सेऊ णाश्कमंति, ताठणं इत्थियान एयारुवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहूइंवासाइंसेसं तंचेव जाव चनसहि वाससहस्सा लिई परमत्ता ॥७॥ . अर्थः-पूर्वोक्त प्रामादि यावत् सनीवेशने विषे ३० स्त्री ज० होय ते केवी होय तं ते कने-अंग अंतःपुरने विष रदे ग जेनो धणी प्रदेश गयो डे म जेनो धणी मर्ण पाम्यो बा जे बालपणथी विरंभापो पामी उप जेने धणोए उर करोने डोमी दीधी माण जेने मातानो जय तथा माताए पांखमा राखी पि० पीतानो नय २ तथा पीताए पांखमा राखी ले ना जाइए पण पांखमां राखी प० जेनु जरथार रखवाळु करे कुछ बधा पीताना घरवाळा सारी रीते रखवालू करे जे सु० सासराना घरवाळां रखवालू करे ने तेथी ते मा राखाए पाखमा राखने जोमी दाबालपणची Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) 4 सिद्धान्तसार. अकार्य करी शकती नथी, प० जेणे हाथपगना नख, दाढीना रोमराय (स्त्रीने न होय पण कोइ स्त्रीने अल्प होय ते माटे) माथाना केश तथा बांझनी सेमराय मोटां वधार्यांबे ( समरावती नथी ), व जेणे बोड्यांबे पु० सेवंत्री जाइ जुइ मोगरादिक फुल गंध श्रामान्य अने म० फुलनी माळा अलंकार श्राजर्यादि, तेमज ० जेणे स्नान पण बोम्युं बे तथा ० परसेवो ज० रजमात्र म० काठो मेल पं० ढीलो मेल परसेवाथी नीजाय एवी रीते प० परितापथी जेथे शरीरने क्लेश पमाख्यो बे, तथा व जेणे ढांड्यां बे खि० खीर दुध द० दही ए० माखण स० घृत, तेल, गोळ, खांग, साकरादिक लुंए मण्मध म० चंद्रहास्यादिक मद्य, तथा मं० जलचर थलचर ने खेचर संबंधीना मांसनो जेणे पर परिहार कर्यो बे, प्रजेने थोमी इच्छा के अ० कर्शणादिकनो थोको प्रारंभ बे ० धनादिकनो थोको परिग्रह के श्र० जोव घात्यादिकनो थोको था. रंबे जीवने परिताप उपजाववारुप थोको समारंभ बे तेवा ० थोमा आरंभ समारंने करी वि० वृत्त । श्राजीविका करतीथकी छा० विनामन ब्रह्मचर्य विषे वसतीयकी ते जे पतिनी पोढवानी सिज्या बेगमा अतिक्रमतो ( नलंघती ) नयी ता० एवी स्त्री जात ए० एवा प्रकारना वि विहारे कर रो वि० विचरतीय की ब० घणा वा वर्ष सुधी, शेष बोल पूर्वनी पेरे जाएावा; जा० यावत् चण् चोसठ हजार वर्ष संवत्सरनी उखानी स्थिति पर श्री तीर्थंकरदेवे कही ॥ ८ ॥ वळी अन्यमति, तापस, ग्रहस्थी, विनयवादी क्रियावादी श्री वीतरागदेवनी श्राज्ञाबाहार चाले बे, तोपण ते देवतापणे नृपजे ते पाठ लखीए बीएः सेजेइमे गामागर गर जाव सणिवेसेसु मणुआ जवंति तंजदा:- दगबत्तिया दगतश्या दगसत्तमा दुग एक्कारसगा गोयमा गोवइया गिदिन्धमा धम्म-चिंतका विरुद्ध वि रुद्ध बुढ सावगप्पतियो तेसिं मणुयाणं णो कप्प्रति Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. (२३) इमा वरस विग आदारेत्तए तंजहाः खीरं दहिं एवलियं सप्पि तेलं फाणियं महु मां मंसं, गणच सरिस बिगइए. तेणं मणुच्या अपिचा तंचेव सवं, एवरं चनरासीति वास सदस्साई विई सत्ता ॥ ए ॥ अर्थः- से० ए प्रत्यक्ष देखीता संसार जीव गा० गाम श्र० अग्गर ० नगरादिक जा० यावत् स० नरवाम वसे ते वासने विषे म० मनुष्य ज० होय, ते केवा होय तं ते कदेबे :- द०ब० केटलाक धान्यनो द्रव्य बीजुं पाणी, ते शिवाय बीजुं कांइ न ले, दण्त० केटलाक बे द्रव्य श्रीजु पाणी ले, दस०केटलाक व द्रव्य अने सातमुं पालो ले, द०० केटलाक दस द्रव्य ने अग्यारमुं पाणी ले, गो० केटलाक गौतममति पोठीयाने माने गोव० केटलाक गायनी पेठे वृत्ति राखे ( गायनी परे विश्रामथकी नीकळीने नीकळे, चरतां चरे, पाणीपोतां पीए, सुतां सुए, इत्यादिक गायनी परे वर्ते) गि० केटलाक ग्रहस्थपणुं रुरुं करी माने, ध० धर्मशास्त्रना चिंतवणहार, अ० विनयवादी, विक्रियावादी (सर्व दर्शन की विरुद्ध ) ने वु वृद्ध श्रावक आदि पूर्व कला ते ते म मनुष्योने पो० न कल्पे इ० ते आगळ कदेशे:- ० नव रसरुप विगयनो ( शरिरमा विक्रेति विकार करे तेनो ) या ग्रहार करवो, तं ते कहेबे स्त्री० खीर दुध द० दही ए० माखण स० घृत ते० तेल फा० गोळ मण् मध म० चंद्रदास्यादि दारु ने मंत्रण प्रकारनुं मांस न कल्पे, रा० पण एटलुं विशेष स० एक सरसवनी विगय कहने. ते० एवा म० मनुष्य अल्प इवा, तेमज स० सर्व बीजं जाणवुं, प० पण एटभुं विशेष च० तेमनी चोराशी हजार वर्षनी यानखानी स्थिति प० कही; छाने पूर्वो. परे जिनाज्ञाना ( परलोकना ) राधक कला. चळी श्री वीतरागनी थाज्ञाबाहार अन्यमति, तापस, अग्निहोत्री आदि घणा कष्टना करणहारा देवतापणे नृपजता कह्या बे, ते श्री नववाश्मीनो पाठ सखीए बीए Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) + सिद्धान्तसार.. सेजेश्मे गंगाकुलगा वणपत्था तावसा नवंति तंजदा-होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण सढई घालई दुपश्का दत्तुकलिया जमाका संमजाका निमजाका संपरकाला दक्षिणकूलका उत्तरकूलका संखधमका कूलधमका मिगखूद्धका हबितावसा नदंडका दिसापोखिणो वाकवासिणो अंबुवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो वेलवासिणो रुखमूलया अंबुनरिकणो वानन्तरिकणो सेवालकिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुष्फादारा फलादारा बोयादारा परिसमिय कंदमूल तयपत्त पुप्फफलादारा जलाभिसेय कढिण गाय या आयावणादि पंचग्गीतावेदिं इंगालसोल्लियं कंसोल्लियं कठसोल्लियंपिव अप्पाणंकरेमाणा बदुई वासाइं परियायं पानणंत्ति श्त्ता कालमासे कालंकिचा नक्कोसेणं जोइसिएम देवेसु देवत्ताए उववत्तारो नवंति. पलिनवमं वास-सय-सदस्स मझदियं विई परमत्ता. आराहणा ? णोश्ण समहे ॥ अर्थः-से ए संसारिक जीव गं0 गंगा नदीना कांठे जमणा डाबा पासाने विषे व० वाणप्रस्थ तापत तप श्रने कष्टना करणहार वनमां गम करी रह्या , ते केवा होय तं ते कहेले हो अग्निहोत्रीना करणहार पो० वस्त्रना धरणहार को जशना करणहार जण यज्ञना करणहार सण श्रद्धावंत शास्त्रना शांजळनार, नाजननु नपगर्ण साथे राखीने प्रवर्ते, एक कममल राखे, फळ नदेन एकवार पाणीमां पेसीने तत्काळ नीसरे स वारंवार स्नान करे नि स्नानने अर्थे वारंवार पाणीमां सुबका मारी रहे संमाटीए घसीघसीने स्नान करे द गंगानदीने दक्षिएकांठे वसे नगंगानदीना नतरकांठे वसे संग शंख पुरोने (वगामीने) जमे Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (२५) कूप कुळनी रीते उन्नारही रामनाम जपी नोजन करे मि हिरणना मांसनुं नोजन करे ह एक हाथी मारी घणा दीवस सुधी भोजन करे न उंचो दांगो करीने ही दिन दश दिशामां पाणी बांटी लोकपाळनी आज्ञा मागीने फुल-फल ले वा वृदनी बालनां वस्त्र पहेरे अंग पाणीमां रहे बिग बीलमा रहे जण पाणीमा रहे वेग वृतना हेवळ रहे रु रुखना मूळमां रहे अंग पाणी पीने रहे वा वायु नहीने रहे से नदीनी शेवाळ खाश्ने रहे मूळ मुळनो श्राहार करे कंण् कंदनो थाहार करे त० वृक्षनी गलनो थाहार करे पण पांदमांनो आहार करे पु" फुखनो आहार करे फ फळनो आहार करे बी० बीजनो आहार करे प० पम्या-समया का कंदमूळ तथा पुण् फुल-फळनो आहार करे जण पाणीमा स्नान करे, क कठण गा गात्र नूप जेणे बांध्यु ते श्राप उन्हाळे आतापना ले, पं० चारे दिशे अग्नि अने माथे सुर्य तपे, ए पंचाग्निना तापथी ३० जेणे कोयला सरखं शरीर कयुडे, कं० कष्टथी जेणे शरीर नषलु कयु डे अने क तपश्याथी श्रधबळया काष्ट समान शरीर कयुं बे, एवी तपश्या करीने ब० घणा वा० वर्षलगी पण पर्याय ( तापसीनी दिदा) पा पाळे, पाळीने का काळने अवसरे का काळ करीने न उत्कृष्टा जो जोतिषि संबंधी दे देवलोकने विषे देण देवतापणे न उपजे. तेनी प० एक पक्ष्योपम उपर वा० एक लाख वर्षनी विश्रानखानी स्थिति प कही, शेष बीजा बोल पूर्वनी पेरे जाणवा; पण ते परलोकना आराधक न थाय. सेजेश्मे गामागर जाव सणिवेसेसु पवश्था समणा जत्ति.. तंजदाः-कंदप्पिया कुक्कुया मोदरिया गियरप्पिया नच्चणसीला तेणं एएणं विदारेणं विहरमाणा बहुश्वासाइं सामण-परिआगं पानणंति ३ त्ता तस्स-गणस्स अणालोश्य अप्पडिकंता कालंमासे कार्य किच्चा नकोसेणं सोहम्मेकप्पे Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) + सिद्धान्तसार कंदप्पिएसु देवताए उववत्तारो नवंति. तेहिं तेसिं हिसेसं तंचेव, णवरं पलिनवमं वाससहस्स मजाहियं विई.॥ अर्थः-सेए संसारिक जीव गाणगाम नगरादि जा० यावत् सण सनीवेसने विष प० प्रवर्जित स श्रमण तपना करणहार ज० होय, ते केवा होय तं ते कहे:-कंग कंदर्प-कथाना करणहार, कु० श्चेष्टाना करणहार, मोग मुखारी नाना विधना अपशब्दना बोलणहार, गि गीत करी रमण- करवू जेने प्रिय डे अने न जेनो स्वन्नाव नाचवानो के, ए पूर्वे कह्या ते तेवा वि० विदारे वि० विचरताथका ब० घणा वर्षलगी सारा सामान्य चारित्रपणुं पा० पाळे, पाळीने त पूर्वे कह्यां ते स्थानक प्रत्ये अशा गुरु आगळ आळोव्यां नथी तथा अप्प० पमिकम्यां नथी, एवा साधु का काळने अवसरे का काळ करीने जा उत्कृष्टा श्राघा जाय तो सो सौधर्मनामे प्रथम देवलोकने विष कं० कंदर्प हाश्य कोतकना करणहारा दे० देवताने विषे देवतापणे न० नत्पात सन्याने विषे उपजे. ते त्यां तेनी स्थिति से शेष बोल पूर्वनीपेरे जाणवा, पण पण एटलुं विशेष प० एक पस्योपम अने वा एक हजार वर्षना आयुष्यनी विस्थिति कही, पण तेमने श्राझाना श्रणयाराधक कह्या. वळी परिव्राजक-तापस वीतरागनी श्राझाबाहार बे, अने ते करणी करीने देवलोकमां जाय बे, ते पाठ लखोए बीए: सेजेश्मे गामागर जाव सणिवेसेसु परिवायगा नवंति तंजहाः-संखा जोगी कविला जिउच्चा हंसा परमहंसा बहुउदगा कुधिवा कण्हपरिवायगा. तब खलु श्मे अह माहण परिवायगा नवंति तंजदा:-कन्देय करकंटय अंबमेय परासेर कन्हे दीवायणे चेव देवगुत्तेय णारखे ७. तब खलु श्मे खत्तिय परिवायगा नवंति तंजहाःसीलाई ससिहरे णगाइ नग्गई तियविदेहे राया रामे वखे Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (२७) लिय . तेणं परिवायगा रिजवेय जनव्वेय सामवेय अथवणवेय इतिहास पंचमाणं णिग्घंट बहाणं संगोवंगाणं सरदस्साणं चनन्दंवेयाणं सारका पारका धारका वारका समंगवि सठितंत्त विसारदा संखाणे सिकाकप्पे वाकरणे बंदे णिरुत्ते जोईसामायणे प्रणेसुय बहसु बंजणएसु सबेसु सुपरिणिज्यिाविदोबा तेणंते परिवायगा दाणधम्मंच सोयधम्मंच तिबानिसेयंच आघवेमाणा पणवेमाणा परुवेमाणा विदरंति जेणं अम्मं किंचि असुई नवंति तेणं उदयणय मट्टियाएय पकालियंसमाणं सुई नव एवं खलु अम्मे चोका चोकायारा सुझसुई समायाए नवेत्ता अनिसेय जल पुयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पंति अगवा तलायंवा श्वा वाविंवा पुस्करणिंवा दीहियंवा गुंजालियंवा सरंवा सागरंवा जग्गदित्तए,णण अशाण गमणेणं।तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पश् सगमंवा जाव संदमाणियंवा पुरूहित्ताणं गबित्तए ॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पंति आसंवा दबिंवा जलुवा गोणंवा महिसंवा खरंवा पुरूदित्ताणं गमित्तए, णण बलानिनगेणं ॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पई णमप्पेहाश्वा जाव मागहपेन्बाश्वा पेचित्तए।तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पंति दरिआणं लेसणतावा घट्टणतावा बंजणतावा गुसणतावा अप्पामणतावा करित्तए ॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पई बिकदाश्वा जत्तकहाश्वा देसकहाश्वा राश्कदाश्वा चोरकदाश्वा जणवयकहातिवा अपवादंगकरित्तए ॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पई अय Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) + सिद्धान्तसार - पायाणिवा तनपायाणिवा तंबपायाणिवा जसदपायाणिवा जाव बहुमुल्लाणिवा धारित्तए, पण अलाउपायणिवा दारुपायणिवा मट्टीयपायणिवा ॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पति अयबंधाणिवा तग्यबंधणाणिवा तंबबंधाणिवा जाव बहुमुल्लाणि धारितए ॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पश् णाणाविदवणरागरत्ताईवबाइंधारित्तए, पण एकाए धानरत्ताए ॥तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पंति दारंवा अद्धदारंवा एकावलियंवा मुत्तावलियंवा कणगावलियंवा रयणावलिंवा मुरबिंवा कंठेमुरबिंवा पालंवंवा तिसरयंवा कमिसुतं दसमुद्दिआणंतकंवा कमियाणिवा तुमियाणिवा अंगघाणिवा केनराणिवाकुंमलाणिवा मनवा चूलमणिवा पिणचित्तए,णणच एकेणं तंबिएणं पवित्तएण।तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पंति गंधिम वेमिम पुरिम संघातिमे चनविदेमलेधारिए, णणन एक्कणं कणपूरेणं ॥ तेसिणं परिवायगाणं णोकप्पश्अगरखूएणवा चंदणेणवाकुंकुमेणवागायं अणुलिंपित्तए,णणब एकाए गंगामहिआए।तेसिणं परिवायगाणं कप्पश् मागदयपत्रए जलस्स पमियाहित्तए,सेविय वहमाणे नोचेवणं अवहमाणे, सेविय बिमिनदिए नोचेवणं कहमोदए, सेविय बढूपसम्मे नोचेवणं अबढूपसम्मे, सेविय परिपूए नोचेवणं अपरिपूए, सेविय सावधेतिका नोचे. वणं अणवजोकान, सेविय जीवे नोचेवणं अजीवे,सेवियणं दिले नोचेवणं अदिणे, सेविय पवित्तए नोचेवणं इथपाय चरुचमस परकालणऽठाए सिणाश्त्तएवा ॥ तेसिणं परि Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार.. वायगाणं कप्पश् मागदय अछाअढाए जलस्स पमिगादित्तए, सेविय वहमाणे णोचेवणं अवहमाणे जाव नोचेवणं अदिणे, सेविय हथ्थपाव चरुचमस परकालणायाए नोचेवणं पिवित्तए सिणाश्त्तएवा । तेसिणं परिवायगाणं कप्पश् मागदए आढए जलस्स पमिगाहित्तए, सेविय वदमाणे नोचवणं अवदमाणे जाव नोचेवणं अदिणे, सेविय सिणाश्त्तए नोचेवणं हबपाय चरुचमस परकालण ध्याए पिवित्तएवा ॥ तेणं परिवायगा एया रुवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूणं वासाइं परियागं पाणित्ता कालपासे कालंकिच्चा नक्कोसेणं बंगलोएकप्पे देवत्ताए जववत्तारो नवंति. तेहिंतेसिंगई दस सागरोवमाई विई पमत्ता सेसं तंचेव ॥ अर्थः-से० ए संसारी जीव गाण गाम, अगर, जा० यावत् सण सन्नीवेषने विषे प० परिव्राजक-दंगधरसंन्यासि न होय, ते केवा होय तं. ते कसं शंखनी माफक नाद करी ध्यान करे ते, जो अध्यात्म वेदान्त शास्त्र, ध्यान करे ते, का कपिलदेवतने माने ते, जिण नृगुरुषि खोकमांही प्रसिद्ध ले तेना शिष्य वनमां फरता रहे ते, हं० पर्वतादिके वशे ते, प० नदी प्रवाहे वसे, कोपीनादिक सर्व वस्तु बोमीने प्राण तजे, अष्टांग योग साधे, इश्वरने माने अने निदा अर्थेज गाममां आवे ते व पाणीनी परे घणा हीमे, गामे एक रात्री अने नगरे पांच रात्री रहे ते, कु, घेर रहीनेज क्रोध लोनने बांके ते, कण कृष्ण-परिव्राजक जे नारायण परित्नक्त तापस विशेष ते. त० त्यां खण् निश्चे ३० ए ० श्राप मा० ब्राह्मणनी जाति संबंधि प० परिव्राजक-दंगधरसंन्यासिनी जाति न होय जे तं ते कळेक कृष्ण १, का करकंटक १, अंग अंबग ३, प० पारासर ४, कण्कृष्ण ५, दी० छिपायन ६, चेण निश्चे देणे Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (.३०) + सिदान्तसार.. देवगुप्त ७ श्रने णा नारद ७. हवे तो तेमांही ख० निश्चे ३० ए पाठ खण् क्षत्रिनी जाति संबंधि प० परिव्राजक-दंगधरसंन्यासि न होय तं० ते कहे-सी० सीलवर १, सण ससीहर १, १ नगा ३, चण्नार्गव ४, एम वि० विदेह ५, राण राजा ६, रा राम ७ अने व बल G. ते ते पण परिव्राजक-दंगधरसंन्यासि रिण रुजुर्नामा-वेद १, जण युजुर्नामा-वेद २, सा शामनामा-वेद ३, अण् अथर्वण-वेद ४, ३० इतिहास (अढार पुराण ) पं० ते पांचमो, णिनिर्घटनामा बहुं अंग, संग शिकादिक ब अंगनां उपांग सहित स रहश्य नावन्नेदे करी सहित च० वेण रुजुर्वेदादिक चार वेदने सा० विसरता संनारे , पाण् वेदादिकना पार. गाम , धाण हैयाने विष धारक डे, वा अशुभ नणतां वारे बे, सब अंगना जाण , सण सांठितंत्रनामा शास्त्रना वि० जाण (पंमीत), संग संख्या गणितशास्त्रना जाण , सि शिक्षा अदर स्वरुप शास्त्र तथा कल्प आचार शास्त्र वा व्याकरण शब्द लक्षण शास्त्र बं बंद पद्य गद्य शास्त्र शब्द नि नियुक्ति पद जंजन शास्त्र जोग ज्योतिष शास्त्र, अयन उत्तरायन अने ज्योतिष विशेषना जाण बे, तेमज श्रण अनेरा ब० घणा बंग ब्राह्मण संबंधि सण शास्त्रना सु० रुमी रीते जाण होय ते निश्चे करीने, ते ते प० परिव्राजक-दंगधरसंन्यासि दा दान धर्म सो सोच-पवित्रधर्म अने ति तिर्थ-धर्म प्रत्ये ( गंगादिकने विले स्नान करवू ते) आण श्राख्यात कहेताथका प० परुपताथका प प्रथमना बोल थापताथका वि विचरे , जे एम करतां जे कांश अण्थमारे कि थोकुं पण अ० अशुचि पाप न होय ते ते सर्व न० पाणीए करी म माटीए करी प० धोयुथकुं सु सुचि पवित्र ज० थाय (पाप जाय ). ए एम खण् निश्चे श्र० अमे चोप निर्मळ थर चोग सूपवित्र अ सु० सम्यक् प्रकारे श्राचारवंत यश् श्र पवित्र चोख्खो बारमा करीने स्नान करीने ज० पाणीए करी पुरा पवित्र आत्मा करीने अब विधपणा रहित सण स्वर्गे ग जश्शुं. ते ते प० परिव्राजक-दंगधरसं न्यासिने जो न कल्पे अ० कुवामां तक तळावमां पण नदीमा वा का Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. सिद्धान्तसार. + ( ३१ ) मां, पु० कमळ सहितनी वावमां, दो० लांबी नाळनी वावमां गुं० वांकी नाळनी वावमां, स० सरोवरमां, सा० समुद्रमां न० पेस; स० पण एट विशेष अ० श्रर्धामार्गे ग० गमन करतां पाणी प्रमुख आवे तो कल्पे. ते० ते प० परिव्राजक - दंरुधर संन्यासिने पो० न कल्पे स० गाने जा० यावत् सं० पालखी 5० उपर चमीने ग० जावं. ते ते प० परिव्राजक - दंकधरसंन्यासिने पो० न कल्पे प्रा० घोमा द० हाथी उ० उंट गो० बळध मण्पामा तथा ख० गधेमां डुण् नपर चमीने गण् जावुं; पण ग० एटलुं विशेष ब० कोइ बलात्कारे चढावे तो कल्पे. ते० ते प० परिव्राजक - दंरुधरसंन्यासिने पोन कल्पे ए० नाटक जोवुं जा० यावत् मा० मागध देशनुं तथा मागध ववादिकनुं गायन सांजळ तथा पे० जोवा जवुं. ते० ते परित्राजक- दंकधरसंन्यासिने पो० न कल्पे ह० वनस्पति-कायने ले० घसवी घ संघटो करवो थं० नुंची करवी बु हस्तादिके करी लीलफुल स - मारवी तथा ४० नखेरुवी. ते० ते परिव्राजक - दंगधरसंन्यासिने शो० न कल्पे ई० स्त्री जातिना कुळ, रुप, उपधि, शृंगारादिकनी क० कथा करवी, ज० जात, पाणी, घृत साख प्रमुखनी कथा, रा० राज्य संबंधि चतुरंग दळ जंगारीनी कथा, चो० चोर संबंधिनी कथा, ज० जनपद केटलाएक देशनी कथा, पूर्वोक्त कथाए करी अ० अनर्थदं एटले अर्थविना आत्माने दंगवी ते न कल्पे. ते० ते परिब्राजकोने लो० न कल्पे ० लोढानां पात्र ( लोटा वामका ), त० तरुवानां पात्र, तं० त्रांबानां पात्र ( जाएं थाळि यादिक) ज० जसतनां पात्र जा० जावत् ब० घणुं मुल बेसे एवां, थोकुं मुल बेसे एवां धा० राखवां; पण ए० एटलुं विशेष ० तुंबकानां पात्र दा० नानां मोटां लाकानां पात्र अने म० Eht आदिक माटीनां पात्र राखवां कल्पे. ते ते परिव्राजकोने पो० न कल्पे ० लोहना बंधने बांधलां, त० तरुवाना बंधने बांधलां, तं बाना बंधने बांधलां, जा० यावत् ब० बहु मुल्यनां रूपादिकना बंधने videi पात्र धा० राखवां. ते० ते परिव्राजकोने पो० न कल्पे पा० घणा प्रकारमा वर्ण, रंग, चोल, मजीठ, चाल, लाख, पतंग छाने कसुंबादि के Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) क सिद्धान्तसार.. रंग्यां रातां व वस्त्र धा राखवां; पण ण एटलुं विशेष ए. एक धा गेरुए रंग्यां वस्त्र राखवां कल्पे. ते ते परिवाजकोने णो न कल्पे हाण अढारसेरो हार, अ० अर्ध (नवसेरो) हार, ए० एकसेरो हार, मु० मो. तीनो हार, क सुवर्णनो हार, रण रत्नावली श्रान्नरण, मु" कंउने विषे मुरवि श्राजरण, पाण पालव कुमणो, ति० त्रसेरो हार, क० केमनो कंदोरो, दांगळीनां श्रानरण (अनंतक आचरण विशेष) क० कटक सोनारुपानां कमां, तु बेरखा, अंग बांह्यनां आजरण, केन बाजुबंध बाजरण कुंछ काननां आजरण, म मुगट आनरण अने चुग चुमामणी बाजरण पि० शरीरने विषे पहेरवां; पण ण एटलुं विशेष ए० एक तं० त्रांबानी बनावेली प० पवित्री (श्रांगळीनुं श्रान्तरण) कस्पे. ते ते परिव्राजकोने णो न कल्पे गंग जाश्यादिक चार प्रकारे फुलनी गुंथेली माळा तथा बुटां फुल धारण करवा; पण ण एटर्बु विशेष ए० एक कं० कर्णफुल (काननुं श्रारण) कल्पे. ते ते परिव्राजकोने पो न कल्पे श्र० अगरबत्तीनो धूप, च० चंदन, कुन कंकु केशर, तथा तेवा सुगंधी पदार्थ गा शरीरपर श्र० विलेपन करवा; पण ण एट_ विशेष ए. एक गंग गंगानदीनी माटी गोपीचंदनादिक कस्पे. ते ते परिव्राजकोने का कल्पे मा० मागध देश संबंधि पाथो जरीने ज० पाणी प० लेवू, सेण ते पण व वेहेतुं, नोग नहीं चे० निश्चे श्र० श्रणवेहेतु; से ते पण थि निर्मल, नोग नहीं चे० निश्चे कण मोहोळु; से ते पण ब० घणुं प० निर्मल, नो नही निश्चे अ० अति मेहुं; से ते पण प० गळ्यु, नो नहीं निश्चे अ० अणगळ्यु. से तेने पण सा पापसहित जाणे, नो नहीं निश्चे अ० पाप रहित जाणे से तेने पण जी0 जीव सहित जाणे, नो नहीं निश्चे अ० अजीव जाणे; से ते पण दि दोधेलु खे, नो नहीं निश्चे अ० अणदी, से; से ते पण पि० पीवाने श्रर्थे ले, पण नो नहीं निश्चे इण् हाथ, पाण पग च० चरु, थाळी, हांगली, च० चाटुमी, वामकादिक नपगर्ण, प० धोवा निमीत्ते अने सिण नाहवाने अर्थे न ले. ते ते परिवाजकोने Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसमास कल्पे मारा मामध देश संबंधि श्र० अर्ध अ० श्राढोमान जा पाणी ५० लेकु, सेण ते पणः वा नदीश्रादिकनुं वहेतुं कहपे, पण नो नहीं निश्चे अ. श्राणवहेतुं जा० यावत् नो नहिं निश्चे श्र० अणदीg; से ते पण हप हाथ, पग, चरु, चमचो, थाळी प्रमुख पं० धोवाने अर्थे करूपे, पण नो नहिं निश्चे पी० पी तथा सि० स्नान करवू. ते ते परिवाजकोने का कल्पे मा० मागध देश संबंधि श्रा० एक श्राढा प्रमाण जय पासी ले, सेण ते पण व वहेतुं, नो नहिं निश्चे अणवहेतुं जाग यावत् नो नहिं निश्चे अ० अगदीधुं; से ते पण सि० स्नान करवाने अर्थे कल्पे, नो नहिं निश्चे हा हाथ, पा० पग, च७ चरु, थाळी, हांगली चाटुमो, उपगण, प० धोवाने तथा अ० पीवाने अर्थे न कल्पे. जे जे काममे वास्ते ले तेते काममांज वापरे, पण अनेरा काममां वापरतुं करपे नहिं. ते ते प० परिव्राजक-दंगधर संन्यासि ए पूर्वे कह्या तेवा वि० विहारे करी वि० विचरता थका ब० घणा वा० वर्ष सुधी प० प्रवर्जा पाळे, पा० पाळीने का काळने अवसरे का काळ करीने नुन उत्कृष्टा ब० ब्रह्मनामे पांचमा देवलोकने विषे दे० देवतापणे उ नुपजे. ते. त्यां तेनी गति द. दस सा० सागरोपमनी 1ि0 स्थिति प, कही. दस कोमाकोमी पस्योपमनो एक सागरोपम कह्यो. से० शेष बोल पूर्वे कह्या तेमज जाणवा. नावार्थ:-हवे जुलं ! माता-पीतानो विनय करवानी, हाथी-तापसने हाथीनुं मांस खावानी, मृग्या-तापसने मृगनुं मांस खावानी, पं. चाग्नि तापवानी, जळ स्नान करवानी तथा कंदमूळनो थाहार करवानी, साधु श्राझापण देता नथी; अने श्री वीतरागदेवे पण आ सूत्रमा जि. नाझाना मोक्षमार्गना अणयाराधक ( आज्ञाबाहार ) कह्या. ए न्याये मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञाबाहार , अने बाझाबाहार पुन्य निपजे के तेवारे तेरापंथी कहे के, एवा कामनी साधु आज्ञा श्रापे नही, पण माता-पोताना विनयना करणहार तो प्रक्रतिना नजिक बे, अने हाथी Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) 4 सिद्धान्तसार. तापसने हाथीना मांस सिवाय तथा मृग्या-तापसने मृगना मांस सि. वाय बीजा द्रव्यनो निषेध थयो, ते करणी जिनाझा मांडेली बे, तेथी पुण्य बंधा बे. एम कहेबे तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! श्री वीतरागदेवे तो म नथी कयुंके, प्रकृतिना जडिकपणाथी तथा बीजा द्रव्य टळ्या तेथी देवता थाय. शुं ? तमाराथी श्री वीतरागदेवमां ज्ञान थोरुं दतुं ? के एवां काम विनामतलबे सूत्रमां घाल्यां ? त्यारे तेरापंथी कदेबे के, ए कामतो कारण बे ने द्रव्य टळ्या ते कार्य बे. जेम हाथीना अने मृगना मांसथी बीजा द्रव्य टळ्या तेथी पुण्य बंधाय बे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रय ! ए रीते तो कोई ग्रह स्थि मूल आापी तैयार वस्तु सुखमी वगेरे लइ खाय, ने रसोइनो आरंज टाळे, अने बीजो कोइ आरंभ करतो होय तेने अचेत वस्तु आपी अनेक प्रकारना आरंभ टळावे, तेमज को आरंभ टाळतो होय तेने मला जाणे, तेने तमे पाप केम कहोगे ? ए साद्य ( पापना ) कामथी बोजा द्रव्य टळ्या तेथी पुन्य बंधाय, त्यारे कोइ उत्तम प्राणी अनेराने मदद यापी, छानेक आरंभ बोकावे तेने गुण केम नहीं थाय ? ते माया दो ते विचारी जोजो. एम नववा सूत्रना आगला पाठमां जमाळीना मतवाळा करणी - ना बळे पुण्य बांधे, तेथी किलविषी देवतामां जाय एम कयुं बे, छाने तेमने जिनाज्ञाना अपराधक कह्या. तेमज गोशालामति करणीना बळे पुण्य बांधे, तेथी नत्कृष्टा बारमा देवलोक सुधी जाय, तोपण तेमने जिनाज्ञाना अधिक कह्या वळी मिथ्यात्व बुटयाविना सलिंगोपमां करणी करीने नव ग्रैवेयक सुधी जाय, तेने पण जिनाज्ञाना आराधक का बे. ए न्याये मिथ्यात्वीनी करली जिनाज्ञा बाहार बे, वळ प्रज्ञाबाहार पुण्य निपजे बे. ते उपरना द्रष्टांतोथी जाणवुं. वासूत्रमां साधु श्रने श्रावक, ए बनेने जिनाझाना आराधक का. जे ज्ञान, दर्शन अने चारित्र, ए त्रण गुण आराधे, तेनेज आराधक कहीये. ए त्रण गुण मिथ्याखी मां नथी, तेथी मिथ्यात्वीनी करणी श्राज्ञामां नथी; बतां ते आज्ञा-बादारनी करणीथी पुण्य बांध देवतानी Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ३५ ) गतिमां जाय . ए न्यायथी श्राज्ञाबाहार पुण्य निपजे बे. वळी सूर्यगांग प्रथम श्रुतष्कंधे श्रवमे श्रध्ययने, मिथ्यात्वी दान, शोल, तपादिकमां पराक्रम फोरवे, तेनुं पराक्रम अशुद्ध कयुं, धने सम किति दानादिकमां पराक्रम फोरवे तेनुं पराक्रम शुद्ध कयुं. ते श्री सूयगमांगजीना प्रथम श्रुतष्कंधना आठमा अध्ययननी गाथा २३, २४ अने २५. जेया बुद्धा महा जागा, विरा असमत्त दंसिणो; प्रसुतेसिं परिक्कतं. सफलं दोइ सवसो. ॥ २३ ॥ अर्थः- जे० जे कोई बुद्धितत्वना जाण, पण जैन मार्गना अजाण बे, ते या लोकमां पुज्य श्रने वि० शूरवीर कद्देवाय बे, एटले कष्ट सहन करवामां वीर पुरुष बे, पण सम्यक्त दर्शन ( देव, गुरु, धर्म ए त्रण तत्वनी सर्दा ) रहित बे, तेथी तेनां अ० दान, शील, तपादिक उद्यम, पराक्रम तथा अनुष्टान सर्व अशुद्ध अने फोगट बे. स० फक्त सर्व प्रकारे कर्म बंधननुं कारण बे, पण कर्म निर्जरानुं कारण नथी. ॥ २३ ॥ दवे पंमित वीर्य श्री कहे. ते गाथा २४ मी: -- जेया बुद्धा मदा जागा, विरा समत्त दंसिणो; सुधं तेसिं परिक्कतं, अफलं होई सबसो. ॥ २४ ॥ अर्थः- जे० जे कोई बु० तिर्थंकरादिक म० मादा भाग्यवान पुज्य, वि० (वीर) घनघातियां कर्म विदारवा समर्थ बे, चार कर्म दय atri o समकित सहित बे, सु० तेमनो उद्यम शुद्ध ( हिंशा दोष रहित ) बे, घने तेना अ० कर्म बंधनुं कारण ( मिथ्यात्व ) सर्व प्रकारे फळ थाय. पण सम कितने निर्जरानुं कारण जाणवुं ॥ २४ ॥ तेसिपि तवो सुधो, निकंता जे महाकुला; जणे वन्ने वियाणंति, नसिलोगं पवेयए ॥ २५ ॥ अर्थः ते० ते जो त० मासखमणादिक तप करे, तोपण अ० ते -- Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. अशुद्ध जाणवो, केमके से पुजासत्कार सन्मान वान्छे, ते कारणे तेको तप पामु जाणवो. नि जे वैरागे घर बांमीने म मोटा कुळना उपन्या तेनो पण तप जो पुजासत्कारने हेते होय तो ते अशुद्ध जाणवो. जण जेम तप कीधो ते व अनेरा ग्रहस्थादिक न जाणे तेमने जणाववा निमित्ते न० पोताना गुण पोते न बोले, अर्थात पोतानी श्लाघा पोते न करे. ॥२५॥ नावार्थ:-हवे जुओ ! मिथ्यात्वीनी करणी ए श्राज्ञा मांहेलो धर्म होय तो तेनां पराक्रम अशुद्ध केम कह्यां ? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, मिथ्यात्वीनां पराक्रम अशुद्ध कह्यां , ते खोटां कर्तव्यमा पराक्रम फोरवे, ते श्राश्री अशुभ कह्यां बे; पण साधुजीने मिथ्यात्वी दान आपे, शीयळ पाळे, तथा तपश्या करे, ते पराक्रमने श्रशुद्ध नथी का. एवी मनथी कुयुक्ति मेळवे ने तेनो उत्तर. अरे नाश्यो ! खोटां दान, शीयळ अने कुळाचार प्रमुख खोटां ऋत्यमा पराकम फोरवे, तेने 'श्रशुक्र कह्यां केदेशो तो, आगली गाथामां समकितिनां पराक्रम शुद्ध कह्यां, ते खोटा कर्तव्यमां (विषय-विकारमा संसारना काममां) पराक्रम फोरवे, ते शुं सुद्ध कह्यां हशे? पण एम नथी. बहियां तो बनेनां पराक्रम परलोकने अर्थे क्रिया करे तेनुंज वर्णन . था अध्ययनमां श्राद अंत सुधी परलोकनी क्रियानोज वर्णव ले. संसारने अर्थे तो खोटां कर्तव्यमा पराक्रम फोरवे, ते तो समकिति तथा मिथ्यावी बनेनां अशुरू डे; पण परलोक अर्थे बंने दानादिक शुद्ध क्रियामां पसक्रम फोरवे, ते मिथ्यात्वीनां अशुद्ध, अने समकितिनां शुद्ध, एम.जे.अरे नाश्त्रो ! मान बोमी विचारो. जो खोटा दानादिकमां पराक्रम फोरके,. तेना अशुद्ध कहेशो तो, श्रागळ था गाथाना चोथा पदमां टोकाकारे कडंडे के, मिथ्यात्वीना दानादिकथी पुन्य-प्रकृति बंधाय, पण निर्जरानां कारण नथी. जो त्रीजा पदमा खोटा दानादिक कहेशो, तो चोथे पदे पुन्य बांधे एम कडु 2. ए खेले तमासी असा सर्व उठी जशे; के. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. + (३७) म जो दानादिकमां पाप कदेशो तो, तथा खोटा अर्थ करशो तो उलटी गळामां परुशे. वळी सुयगमांगजीना प्रथम भूतष्कंधना बीजाअध्ययननी गाथा नवमीमां कयुं बे के, मिथ्यात्वी मास मास खमणे प्रारणां करे, तोपण अनंतानु बंधी माया बुटी नथी, तेथी अनंता जन्म मरण वधारे. ते गाथा नवमी: जय वियाग किसेचरे, जयविय चुंजिये मास मंतसो; जेइह मायाइ तिमिद्य, आगंता गब्जायणं तसो ॥ ॥ अर्थः- जे० जो घणी क्रिया करे, ए० नग्न थने रहे, दुर्बळ शरीरी ने विचरे, जप तप घणो करे, आहार निरस करे, अने माल मास खमण करीने पारएं करे, एवी रीते जीवे त्यां सुधी करे, तोपण जे जे क्रोइ माया सहित बीजाने ठगवारुप योगेकरी बगध्यानी इ वर्ते, (ते मायानां फळ कड़े बे.) आण ते आग मिये (नविष्य) काळे ० गर्जने विषे जन्म मरणनां अनंतां दुःख पामे. जावार्थ:- दवे जुड़े ! मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञा मांहलो धर्म होय तो, मंता जन्म मरण वधे, एम केम कल्युं ? माया हो ते विचारी जोजो. त्यारे तेरापंथी कहेबे के, एतो माया कपटाइनां फळ कह्यांडे. तेनो उतारे जाइयो ! मायाकपटाइनां फळ तो खोटां बेज, तेमां शुं देवु. समकिति साधु श्रावकपण कपटाइ करेतो तेनां तो फळ खोटांअ लागशे, पण अहियां तो मायाकपटाइ ए मिथ्यात्वनुं नाम डे, अने मिथ्यात्वीने मायाकपटाइ बुटी नथी, तेथी मासमासखमण तप करे, तो अनंता जन्म मरण वधे, एम कयुंडे. जो एकली कपटाइनांअ फळ कांबे, एम कदेशो तो तपस्यानो अधिकार या गाथामां कद्देवानो शुं प्रयोजन ? छाने तपस्यानां फळ केम न कह्यां ? अने ते क्योंगयां जे हो ? अरे जाइयो ! मिथ्यात्वीनी तपश्याथी पुन्य प्रकृति बंधाय देवतामां जायाने त्यां सुख जोगवे; पण तेनी समी सर्वया किना Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) + सिद्धान्तसार जन्म मरण घटे नही. तेमज अजवि तथा नवि मिथ्यास्वपणामां करणी करीने नवग्रैवेयक सुधी अनंतीवार गया, तोपण तेश्रोनी गरज लगार मात्र सरी नहीं. जो श्राज्ञा मांदेलो धर्म होय तो गरज केम न सरे ? लगवाने तो “करेमाणे कमें” कह्यु जे. कर्म तोमवा मांड्यां ते तोव्यांज कहिये, निर्जरवा मांड्यां, ते (नर्जयाँज कहीये; अने मुक्तिनो मार्ग लीधो तेने मुक्ति गयाज कहीये. शाख सूत्र नगवती सतक पहेले नद्देशे पहेले प्रश्न पहेले. अन्नविना करणश्राज्ञामांदेली होयतो अनवि मुक्ति केम न जाय ? ते माह्या हो ते विचारी जोजो. बळी श्री वीतरागदेवे सुयगमांग सूत्रमा कयु डे के, मिथ्यात्वीनां पराक्रम अशुद्ध अने जन्म मरण वधारनार जे. तेमज वळी नववाइ सूत्रमा मनवीना जुख-तृषा खमे, एवा कष्टथी मामीने अनेक प्रकारनी मिथ्यात्वीनी करणी: कही; अने दस्ति-तापस-आदि अनेक प्रकारना कह्या. तेमज जंमाळी, गोशाळा तथा सलिंगो, मिथ्यातपणा सहित करणी करे, तेथी पुण्य बंधाय, अने नत्कृष्टा नव ग्रैवेयकमां जाय, तोपण तेमने जिनाझाना अणआराधक कह्या. हवे जुश्रो ? मिथ्यात्वीनी करणी आशामांहेली होयतो, तेमने परलोकना मोक्षमार्गना अणबाराधक केम कह्या ? त्यारे तेरापंथी कहेले के, करणीनो करणहार तेतो आज्ञा बाहार बे, अने करणी श्राज्ञा मांदेली . तेनो उत्तर. अरे देवानुप्रीय ! जरा सीधी दृष्टी करोने जुत्रो. गुण ने गुणी जुदा नयो, एम श्री अनुयोगद्वार सूत्रमधे कडं . दंडेन दंमी, उत्तेण बत्ति पमेण पनि, तेम गुण ने गुणी जुदा नथी. तेमज चंजमा ने किर्ण; सुर्य ने ताप; दान ने दानी; शान ने ज्ञानी; सम्यक्त ने समकिति; चारित्र ने चारित्रियो; ध्यान ने ध्यानी; चोर ने चोरी; पाप ने पापी; पुण्य ने पुण्यवंत; तेमज मिथ्यात्वी ने मिथ्यात्वीनी करणी ए जुदा नथी. तमे कर्ता ने कर्मनो नेद जुदो गवेष्यो, पण सिद्धान्तना मूळ नयना प्रवाहने विषे समजता नथी. ते अनुयोगद्वारनो पाठ: Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. उत्तेणं उत्ती, दमेणं दंडी, पमेणं पमी, कमेणं कमी, नावाए नावीए, सगमणं सागमीए, रहेणं रदीए, दलेणं दासीए, नाणेणं नाणी, दंसणेणं देसी, चरित्तेणं चरित्ति ॥ . अर्थः- बत्रने संयोगे बनत्री राजा, दंग दंमने संयोगे दंग दंमी, अने प० पट वस्त्रे करी प० पट वस्त्री कहीये; तथा का वांसनो कमो करे तेने क कमीमान कहीये; तेमज ना नावा (वाहाण) हंका रनारने नाग नावमीयो, स० गाउं हांकनारने सा गामीत, रण रथ हांकनारने रण रथवान, अने इण हळ हांकनारने हा० हाळी कहीये; तथा ना० जेने ज्ञान तेने ना झानी, दं० दर्शने करी दंग दर्शनी, तेमज च चारित्रे करी च चारित्रीयो कहीयेः अने जेने क्रोध ने तेने क्रोधी कहीये. एवी रीते नाम प्रमाणे गुण बे. जावार्थ:-हवे जुश्रो ! था सूत्रना न्याय जोतां जे वस्तु थाश्री जे नाम का, ते नामथी ते पुरुषने जुदो न कहीये. तेम मिथ्यात्वी ने मिथ्यात्वीनी करणी जुदी नथी. तमे अविवेकपणे शामाटे जुदा गवेषो गे ? वळी नगवतीजी सूत्र सतक पहेले नद्देशे दसमें, जीव ने जीवनी करणी जुदी नथी, पण एकज कही ले. ते पाठ लखीए बीए:तेणं कालेणं २ पासावच्चिजा कालासवेसियपुत्ते णाम अणगारे जेणेव थेरा नगवंतो तेणेव उवागबइ ३ त्ता थेरेनगवं एवं वयासि थेरा सामाश्यं नजाणश, थेरा सामाश्यस्स अहं नयाणश, मेरा पच्चकाणं नयाण, थेरा पच्चरकाणस्स अहं नयाण,थेरा संजमं नयाण, थेरा संजमस्स अहं नजाण, थेरा संवरं नजाणश, थेरा संवरस्स अहं नजाणश, थेरा विवेगं नजाण,थेरा विवगस्स अहं नजाण, थेरा विनसग्गं नजाणश, थेरा विजसग्गस्स अहं Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार नजाण. तएणंते थेरानगवंतो कालासबेसियपुत्तं अणगारे एवं वयासि जाणामोणं अजो सामाश्यं, जाणामोणं अजो सामाश्यस्स अहं जाव जाणामोणं अजो विउसगस्स अहं. तएणं कालासवेसियपुत्ते अणगारे ते बेरेनगवंते एवं वयासि. जणं अजो तुने जाणह सामाश्य, जाणद सामाश्यस्स अहंजाव जाणद विउसगस्स अहं,के ने अजोसामाश्ए,केने अजो सामाश्यस्स अहे,केले जाव विनसगस्स अहे? तएणते थेरानगवंतो कालासवेसियपुतं अणगारंएवं वयासि आयाणे अजोसामाइए आयाणेजो सामाश्यस्स अहे जाव विउसगस्स अहे.तएणं से कालासवेसिय पुत्ते अणगारे ते थेरे जगवं एवं वयासि जणं नंते अजो आया सामाइए आया सामाश्यस्स अहे जाव आया विनसगस्सअहे अवटु कोह माण माया लोने किम अजो गरह कालास संजमहाए से जंते किं गरहा संजमे अगरहा संजमे? कालास गरदा संजमे नोअगरदा संजमे. गरदा वियणं सवं दोसं पविणेति सवं वालियं परिणाए एवं खुणे आया संजमे उवहिए जवश्, एवं खु णे आया संजमे उवचिए नवइ, एवं खु आया संजमे उवहिए नवइ. एवणं कालासवेसियपुत्ते अणगारे संबुधे थेरेनगवंते वंदणमंस वंदिता णमंसित्ता एवं वयासि. एएसिणं नंते पयाणं पुदिणाणयाए असवणयाए असणिआए अबोदियाए अणनिगमेणं अदिहाणं अस्सूयाणं अमुयाणं अविणायाणं अवोगमाणं अवोत्रिणाणं अणिकढाणं अणुवधारियाणं एयमठेपोसहहिए,णोपत्तिए, Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. - - णोरोइए. इदाणिनंते एतेसिं पयाणं जाणयाय सवणयाए बोदियाए अनिगमेणं दिहाणं सुयाणं मूयाणं विणयाणं वोगडाणं वोबिणाणं णिज्जुढाणं उवधारियाणं. एयं महें सद्ददामि पत्तियामि रोएमि. एवमेयं सेजदेयं तुब्नेवयह॥ अर्थः-ते ते कालने विषे ते समयने विषे पा श्री पार्श्वनाथजीना (अपत्य) शिष्य का कालासवेसितपुत्र नामे श्र अणगार साधु जे ज्यां थे श्री माहावीरनगवंतना शिष्य श्रूतवृज (घणा विधान स्थि. वर) जगवंत ले ते त्यां उ० आवे, आवीने थे० स्थिवरलगवंत प्रत्ये ए० एम.व कहे. थे हे स्थिवर ! तमे सा० समता नावरुप सामायक नए न जाणो, तथा तेनो अर्थ प्रयोजन कर्म अनुपादानरुप ते पण न जाणो, थे स्थिवर ! प० पोरसि आदि नियम तमे न जाणो, थेग स्थिवर ! पण पचखाणनो अर्थ ( आश्रयद्वार निरोध) न जाणो, थे० स्थिवर ! संग पृथ्वि आदि रहा लक्षणरुप संजम ते न जाणो, थेग स्थिवर ! सं० संजमनो अर्थ (अनाश्रवपणुं ते) न जाणो, थेग स्थिवर ! सं० सर्व इंडि अने नोइंजिनो निग्रहरूप संवर ते न जाणो, थे स्थिवर ! सं० संवरनो अर्थ (अनाश्रवपणुं ते ) न जाणो, थेग स्थिवर ! वि० विवेक (विशिष्ट बोध ते) न जाणो, थेग स्थिवर ! वि० विवेकनो अर्थ (त्याग अत्यागादि ते) न जाणो, थे० स्थिवर! वि० कानसग्ग (कायाना त्यागरुप ते) न जाणो, तेमज थेग हे स्थिवर ! वि० काउसग्गनो अर्थ वान्डा रहित ते पण तमे न जाणो. त तेवारे थे स्थिवरनगवंत, का ते कालासवे. सितपुत्र-श्रणगार प्रत्ये ए० एम कहेता हवा. जाण जाणीये बोए हे आर्य! सा० समता प्रणामरुप सामायक, हे आर्य ! सा० सामायकनो अर्थ (कर्म अनुपादान निर्जरारुप), जाण यावत् जाम् जाणीए बीए हे आर्य! वि० कानसग्गनो (काया त्यागरुप तेनो) अर्थ कर्म निर्जरारुप, इत्यर्थः त तेवारे का कालाशवेशितपुत्र नामे श्रण साधु ते ते थे० स्थिवरजगवंत प्रत्ये ए एम केहेता हवा. जण जो अपहे आयो ! तु० तमे Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) सिद्धान्तसार. जा० जाणो बो सा० सामायक, जा० वली जाणो बो सा० सामायकनो अर्थ, जा० यावत् जा० जाणोगे वि० कानसग्गनो अर्थ, तो के० शुं ? तमारे सामायक, के० शुं ? तमारे सामायकनो अर्थ, के० शुं ? तमारे कानुसग्गनो अर्थ ? इति प्रश्न. त० तेवारे थे। स्थिवरजगवंत का० कालाशवे शितपुत्र अणगार प्रत्ये ए० एम केहेता हवा. आ० श्रात्मा ० श्रमारे मते श्रात्मा सामायक ( जीव गुणप्रतिपन्न होय त्यारे सामायकज कहीये) . ० श्रात्मा श्रमारे सामायकनो अर्थ. सामायक एटले सामायकतो जीवज परिवजे, तेटला माटे जीवनेज सामायक कहीये. सा० सामाको अर्थ नवां कर्म न बांधे अने पूर्वनां कर्म खपावे. ए गुणतो जीवकने बेज, परं जीवथी गुण जुदो नथी ते माटे श्रात्माज सामायकनो अर्थ जावो. एमज सर्व जाणवुं. जा० यावत् श्रात्माज श्रमारे वि० कासग्गनो अर्थ त तेवारे ते का० कालांशवे शितपुत्र नामे श्र० - पगार ते० ते स्थिवरजगवंत प्रत्ये ए० एम कहे :- ज० जो तमारे श्र० दे आर्यो ! ० श्रात्मा सामायक, वली आ० श्रात्माज सामायकनो अर्थ, जा० यावत् श्रात्माज वि० कानसग्गनो अर्थ निरंजन रुपडे, तो ० तजीने को० क्रोध मान माया लोन कि० शा छार्थे ? हे श्रार्यो ! गरदो बो. निंदामि गरिहामि अप्पा वोसिरामि इत्यादि निंदा दोष विषे संनवे. जे जीवने सावध लागे ते गरहियें ? गुरु समीपे आलोइए ? इति प्रश्न. उत्तर - का० हे कालाशवेशितपुत्र ! सं० संजमने कार्ये सावध (पाप) गर्ह्य संजम थाय. से० ते जं० हे जगवान ! शुं ? गण् गर्दा संजम बे के गर्दा संजम बे ? का० दे कालाशवेशितपुत्र ! ग० गर्दा संजम बे, पण नो गर्दा संजम नथी. ग० गर्दा तेज रागादिक सर्व दोषने अथवा पूर्वक्रत पापने अथवा द्वेषने प० बांगे. स० ज्ञान प्रज्ञाए जातीने, प्रत्याख्यान प्रज्ञाए पचखीने ए० एम खुप निचे ऐ० श्रमारे मते श्र० आत्मा सं० संजमने विषे उ० अत्यंत पुष्ट याय. आत्मारूप संजम नपचित थाय. ए० एम खु० निश्चे आ० अमारे आत्मा सं० संजमने विषे अत्यंत स्थिर थाय. ए० इहां ते का० कालाशवे शितपुत्र अणगार पार्श्व Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार. ( ४३ ) नाथजीना ( अपत्य) शिष्य सं० जलीपरे बोध पाम्या. थे० स्थिवरनगवंत प्रत्ये वं० वांदे, o नमस्कार करे, वं० वांदीने ए० नमस्कार करीने ए० एम व० केहेता हवा. ए० ए जं० हे जगवान ! प० पदोना पूर्वे (आ पदने विषे) ० जाणपणुं नहोतुं श्रस० स्वरुपे नलख्या नहोता, अस० पूर्वे सांजल्या होता, अबो० जिनधर्मनी ( माहावीरना धर्मने विषे) प्राप्तो नहोती, अ० विस्तार बोध रहित इत्यादि हेतु करी दि० पूर्वे शाक्षात अर्थधी लह्या नहोता, अस्सू० कोइनी समवे सांया होता, अ० दर्शन ध्याकर्शनना नावे कर. एटलामाटेज o विशिष्ट बोध रहितने वो० विशेषथी गुरुए कह्या नहोता, वो विपक्षादि शंदेह वेद्या नहोता, श्रणि० मोटा ग्रंथथी सुखावबोध जणी गुरुए कह्या नहोता, अणु एटला माटेज मे पूर्वे ए अर्थ अवधार्या नहोता, ए०ए प्रकारे ए अर्थ सरदह्यो नहोतो, पो० प्रतित कीधी नहोती, पोरो० रुच्या नहोता. ते इ० दवे जं० हे जगवान ! ए० ए पदना जा० ज्ञानेकरी जाण्या, स० श्रवणेकर शांजल्या, बो० सम्यक्तपणे बोध पाया, ० विस्तार बोधी थया, दि० अर्थथी लह्या, सु० अर्थ शांजल्या, ० दर्शन कर्ण थया, वि० अर्थ विशेषे जाण्या, वो० विशेषथ गुरुए कया, वो० विपादि शंदेद बेद्या, पि० मोटा ग्रंथथी सुखावबोध थया, उ० ए अर्थ अवधार्या, ए० ए अर्थ स० सरदहुं हुं, प० प्रतितुं हुं रो० रोचबुं बुं. ए० अथ जेम ए वात तमे कहोठो ते सर्व तेमज बे. इति जाव इत्याकिक. ए न्यायथी मिथ्यात्वी ने मिथ्यात्वीनी करण | एक बे. वली तेरापंथीना बनावेला तेरद्वारमां पण एम कहे बेके, आव ने जीव एक. संवर ने जीव एक, निर्जरा ने जीव एक, अने मोक्ष ने जीव एक. माटे ए न्यायथी पण मिथ्यात्वी ने मिथ्यात्वीनी करणी एक C. वली तेरापंथी कt a के, मिध्यात्व श्राज्ञा बाहार बे, अने मिथ्यावीनीकरण श्राज्ञा मांदी बे. एम कपटथी एकान्त जुठ बोले बे. माझा हो ते विचारी जोजो. वली मिथ्यात्वीनी करणी खाणे, तेने समकित - मां अतिचार लागे. शाख सूत्र श्रावश्यक श्रावकना अतिचारमां, तथा Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) + सिद्धान्तसार.. वपाशकदशामां ते पाठ लखीए बीए:समणे जगवं महावीरे आणंदं समणोवासगं एवं वयासि एवं खलु आणंदा समणोवासएणं! अनिगय जीवाजीवे जाव अणतिक्कमई णिजेणं, सम्मत्तस्स पंच अश्यारा पे आला जाणियचा न समायरिवा तंजदाः-संका कंखा वितिगिता परपासंडप्पसंसा परपासंग संथ्यवोवा ॥१॥ अर्थ:-हवे जगवंत, आणंदने एम कहे . स श्रमण नगवंत श्री माहावीर आग आणंद नामे स० श्रमणोपासकने ए० एम व क हेता हवा. ए एम खण् निश्चे श्राप हे आणंद श्रमणोपासक ! थ० जेणे जाएया जी जीव श्रजीवना नेद, तेने को देवता के मानव धर्मथो चुकावी न शके, ते माटे स० श्रावकने सम्यक्तना पं० पांच श्र० अतिचार पे० मिथ्यात्वपणे (न० स०) समाचरवा नही. तं ते कहे :सं० शंका एटले जीनधर्म साचो के जुगे, कं० परमतनी अभिलाषा तथा धर्म करणीना फलनी अभिलाषा, वि० धर्म संबंधि फसनो संदेह तथा साधुसाधवीना मलमलीन गात्र वस्त्र देखी सुगंगा करे ते, प० परदर्शनीनी प्रशंशा करे, तथा प० मिथ्यात्वोनो सं० संस्तव परिचय करे तेने अतिचार लाग्या कहीये. नावार्थः-हवे जुश्रो ! मिथ्यात्वीनी करणी वखाणवी नही एम कथु, त्यारे ते आशामां क्याथी ? विवेकी हो ते विचारी जो जो. वली तेरापंथी प्रत्ये एम कहेवू के, जो एहनी करणी आज्ञा मांदेलो अंश मानो नो तो, एनुं ज्ञान, चार वेद अने अढार पुराण , तेमां केटलीक निर्वधवाणी , तेने पण ज्ञानना अंश गणवा जोइए; अने, केटबीक लोकीक पदनी वातो, रात, दीवस, स्त्रि, पुरुष, कपहुं, इत्यादि अनेक वातो, जेम समकिति माने, तेमज मिथ्यात्व माने के तेने पणे समदृष्टिनो अंश गणवो जोए. वली वेदेवारमा पाप त्याग करे ते, तथा Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार, तामसीतापस आदिए पादपोपगमन संथारो कर्यो, ते पण चारित्रनो अंश गणवो जोइए. ए लेखे तो मिथ्यातमार्ग पण देशथकी मुक्ति पहोंचवानो मार्ग गणवो जोशए. अहो अढ कदाग्रहि ! ए वात केम मले? तेवारे तेरापंथ कहे बे के, मिथ्यात्वीनी करण] पाशामां न होय तो मिथ्यात्वीना समकिति केम थाय ? तेनो नत्तर. अरे जाओ! मिथ्यातपणामां करणी करे तेथी अशुन कर्म निर्जरे, तथा मोहनी कर्म पातलां पमे, तेथी को जोवने जवथिति पाकी होय तो समकित आवे; अने समकित श्राव्या पली ते जिनाज्ञानो श्राधारक कहेवाय. ते केवा दृष्टांते, ते कहे :___“जेम को गरीब वाणीयो बबे रुपीया नेला करीने लखपती थयो, पण ज्यारे पोताना हाथन हुँमीश्रो पटे, त्यारे तेने कोठीवाल (साहुकार) कहीये. तेम ।मथ्यातपणामां करणी करतां कर्म तुटे, तेथी समकित श्रावे, त्यारे तेने जिन-आझानो थाराधक कहीये; पण मिथ्यातपणामां करणी करतां अशुन कर्म तुटे अने पुन्य बंधाय, तेथी ते जिनधाज्ञानो आराधक कहेवाय नही. ते अनंती वेला नवग्रैवेयक सुधि गयो, पण अनंतां जन्म मरण काँ. जेम सिवराजरुषि, तामलीतापस बने पूरणतापसे मिथ्यातपणामां करणी करतां श्रशुज कर्म तोमी पुन्य बांध्यां, तेथी तामलीतापस तथा पूरणतापस इंड थया, पण ज्यारे समकित पाम्या, त्यारे करणी लेखामां गणाणी. जेम रुपीथा नेला थया, हुंमी हाथनी पटेथी कोठवाल कहेवाणा, पण हायनी ढुमो पटया विना जे धन मन्यु ते विलाइ जाय (नाश थाय) तो ते कोठीवाल न कहेवाय. तेमज समकित आव्या पहेलां श्राराधिक न कहेवाय; पण ज्यारे समकित श्रावे त्यारेज तेने श्राराधिक कहीए”. तेवारे तेरा पंथी कहे के, मिथ्यातपणामां जे करणी करी ते करणोज समकित श्राववानुं कारण , अने ते थाझा माहेली बे. एम कहे जे तेनो नत्तर. भरे माल ! सिवराज, तामल अने पूरणना सरखो करण था Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) + सिद्धान्तसार.. नंता जीवे अनंती वार करी, नव ग्रैवेयक सुधी गया, पण सम कित केम न श्राव्यु ? ए तो नव-स्थिति पाकी, अने समकित श्राव्यु, तेथी ते लेखामां गणाणी; पण समकित श्राव्या विना मिथ्यात्वीनी करणी (आज्ञामां) लेखामां नही. जो मिथ्यात्वमां करणी करतां कर्म तुटे, ने समकित श्रावे, तेथी मिथ्यात्वीनी करणी आझामां कहो तो, ए लेखे समकितपणामां अने यथाख्यात-चारित्रमा आज्ञा-बाहारनां कामो करे, तेथो पाबा पमे थने मिथ्यात्वमा आवे. शुं ? तमारे लेखे यथाख्यात चारित्रमा पण आज्ञा-बाहारनां कामोने मिथ्यात्वपणुं केहे, जोइएए वात केम मले ? तेवारे तेरापंथी एम कहे डे के, जो मिथ्यात्वीनी करणी श्राझामां नथी तो मिथ्यात्वोने दान देवानी, सोयल पालवानी अने लोलोत्री गेमवान। आज्ञा केम आपो बो ? एम कहे जे तेनो उत्तर. जेम गुरुजी, मिथ्यात्वीने तथा अनवि शिष्यने सूत्र नणावे तथा ज्ञान श्रापे, पण तेने समकितरुपी नाजन नथी, तेथी तेने अज्ञान कहीये. तेम साधुजी तो थाझा मांहेलां कामोनीज श्राशा थापे, अने ते श्राज्ञा मांहेलुं काम करे, तोपण तेने अनाज्ञा कहीये. वली नावे साधुजीने नला जाणे, तथा नावे समकत होय तो तेने आज्ञा आराधकपणानो पण लान थाय, तेथो साधुजी मिथ्यात्वीने दानादिक ( साधुजीने ) देवानी श्राझा आपे. तेवारे तेरापंथी कहे के, समकिततो जीव अजीव, जथातथ्य जाणपणुं श्रावे, तथा दस बोलने समा जापीने सरदहे, त्यारे श्रावे. तेनो उत्तर. अहो मतवादी! एतो वेहवार समकितने उलखवानां लक्षण कह्यां बे, पण निश्चे समकित तो अनंतानुबंधी चोकमीनो क्षयोपशम थयो तेने कहोये. तेनो स्थिति जघन्य अंतर मुहूर्तनी डे. समकिति अंतर मुहूर्तमा जथातथ्य जीव-अजीवनुं जाणपणुं शी रीते करे ? ते कहो. वली अवध-शाननी थिति जघन्य एक समयनी कही . शाख सूत्र पन्नवणा पद अढारमें. एक समयमां ए अवधज्ञाने करीशुं जाणी शके ? पण केवलझानीए कर्मना आवरण एक समये आघां थयां दोगं, तथा बीजे समये श्रावणरने वली श्राव्यां दोग. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. ए न्याये जीवने दर्शनावरणी कर्मनो क्योपशम थयो होय तो नावे समकित कहीये. वली दस प्रकारे समकितनी रुची कही जे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन अगवीसमें तेमां देव, गुरु, धर्म, श्री वोत्तरागना वचन तथा साधुजीने संकेप थकी नला जाणे तेने संकेप-रुची-सम्यक्त कहीये. ए न्याये साधुजीने जला जाणे तो नावे समकित कहीये; तो श्राज्ञानो पण लान्न थाय, तेथी साधुजी आज्ञा आपे. माह्या हो ते वी. चार जोजो. वली तेरापंथीने पुबीए के, मिथ्यात्वी श्राझा मांहेली करणी करे तेथी तेनी गरज सरे के नही ? तेवारे तेरापंथो कहे डे के:___ "तामली तथा पूरण-तापस, सीवराज-रुषो, असोचा-केवली,विजयगाथापतो, सुमुख-गाथापतो तथा पूर्व नवे मेघकुमार, आदि अनेक जीव मिथ्यातपणामां करणी करी एका अवतारी तथा मोक गामी थया, अने मिथ्यातपणामां करण कर तेथी तेमनी गरज सरी.” एवं कपटथो बोले बे, अने बीजा साध श्रावकोनी करण) नमाववाने वास्ते एवो ढाळो जोमी . ते गाथा लखोए बीएःसुध समगत विण पाळीयां, अज्ञानपणे आचार नवियण नवनिवेग जंचो गयो पण, न सरी गरज लगार नवियण कीजो जीन धर्मनी पारखा. एवी तो जोमो करी , अने वली मोढे । एम कहे जे के “मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञामां ने तेथी संसार परित थाय (गरज सरे), अने साध श्रावक निर्वध करणी करी देवलोकमां तथा नवौवेयकमां जाय, तो पण शुद्ध समकित विना गरज सरे नही.” एम कपटथी कोठेकाणे कांश ने कोइ ठेकाणे कांइ एम जाण जाणोने जुटुं बोले, तेनी प्रतीत केम आवे? ते माह्या हो ते विचारी जो जो. वली जगवतो आदि घणा सूत्रमा मिथ्यात्वीने “एगंत बाले, एगंत अपंमिए, अपमिहय पावकंमे.” कह्या. ते केम? जो ते आज्ञा माहेलू काम होय तो एकान्त अमित न कहे, केमके चोथे गुणगणे जघन्य थकी ज्ञान दर्शनना गुण प्रगटया तेयो तेने श्री वीत. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) + सिद्धान्तसार.. रागदेवे आज्ञाना श्राराधक कह्या. ते माटे मिथ्यात गुंणगणानी करणी मूलथीज आज्ञामां नथी. हवे मिथ्यात्वीनी करणी श्राज्ञामां स्थापवा माटे तेरापंथी अष्टान्त कहे के:-" जेम तलाव- पाणी वाणीश्रा ब्राह्मणादिकना घेरे था. एयुं ते तो शुद्ध, अने अंतज्यादि (चंमाल) अधम लोक लइ जाय ते अशुद्ध , पण जुने ! हीण जातनुं पाणी ते उत्तमना पाणी मांदेलु . ते पाणी पीधाथी तृषा जाय के नही ? " एवा अष्टांत आपे हे, पण अविवेको एम नथो जाणता के, श्रहियां तो त्रण गम बताव्यां :तक्षाव १, उत्तम २ अने अधम ३. तेम लोकोत्तर पदे श्री वीतरागदेव तो तलाव अने श्रुन चारित्र रुप धर्म कर्वा ते पाणी १, जिन मार्गी चोथा गुणगणाथी प्रारंजी चौदमा गुणगणा सुधो जे जे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अने उत्तरगुण चारित्ररुप तप क्रियाना करणहार ते सर्व नत्तम प्राणीनां घर २, अने ३६३ पाखंमी ते अधम लोकोनां घर ३ जागवां. हवे जिनमत रुप तलाव मांहेथो ज्ञान, दर्शन अने चारित्र ए त्रण श्राराधना रुप पाणी मांहेदूं, मिथ्यात्वो कयुं पाणी लइ जाय ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के, तप, शुक्न जोग, अने निर्जरारुप धर्म आज्ञा मांहे. लो, ते रुप पाणी लइ जाय जे. एम कहे जे तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय! मूलगुण उत्तरगुण चारित्रविना तपने, निर्जराने अने शुनजोगने, धर्म तथा आझानी आराधना कोश्ठेकाणे कही नथी. एन्याये मिथ्यात्वीनी करणी श्राझा बाहार बे, अने आशा बाहार पुन्य बंधाय . माह्या हो ते विचारी जोजो. वली तेरापंथी एम कहे डे के, संसार परित करवानी जगवाननी आज्ञा , अने मेघकुमारे आगला नवमां तथा सुमुखगाथापती अने विजयगाथापती आदि अनेक जीवोए मिथ्यातपणामां संसार परित कीधो डे, तेथी मिथ्यात्वीनी करणी आझामां कहीये बीए. तेनो नुत्तर. अरे ना ! सूत्र पाठमां तो तेनने मिथ्यावी कह्या नथी. ते ज्ञाता सूत्रना अध्ययन पेहेलानो पाउ लखीए बीए: Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. - - तएणं तुम मेहा पाएणं गतं कंमुश्स्सामि तिकडे पाए उखित्ते. तेसिंचणं अंतरंसि अणेहिय बलवंतोदिय सतेहिय पलाश्जमाणे २ ससए अणुंपविहे. तएणं तुम मेहा गायं कंमुश्त्ता पुणरवि पायंपडि निस्कमिस्सामि तिकडे तंससयं अणुपविहं पासेत्ता पाणाणुकंपया जुयाणुकंपयार्ड जीवाणुकंपया सत्ताणुकंपया अंतराचेव संधारिय नो चेवणं नखित्ते. तएणं तुम मेहाताए पाणाणूकंपयाए जाव सत्ताए॒कंपयाए संसार परित्तिकए मणुसा निबंधे. तएणंसे वणदवे अढाश्चाइराइं तं वणं यामिति निठिए उवरए जवसंते निद्याए याविदोबा, एगंवाससय परमाज पालश्त्ता इदेव जंबुद्दीवे २ नारदेवासे रायगिहेनयरे सेणियस्सरमो धारिणिएदेविए कुचिसि कुमारताए पञ्चाया. तएणं तुममेहा अणुपुत्वेणं गब्नावासा निकंतेसमाणे, उमुक्क बालनावे जोवणग मणुपत्ते. ममंअंतिए मुंमेलवित्ता आगारा अणगारियं पवइए. तंजश्ताव तुमेमेदा तिरिकजोणियत्नव मुवागएणं अपमिल सम्मत्तरयण खन्नेणं. सेमाए पाणाणंकंपयाए जाव अंतराचेव संधारिए नोचेवणं निस्किति. किमंग पुण तुममेहा श्याणं विजल कुल समुन्नवेणं ॥४॥ अर्थः–ता तेवारे तु तमे मेण हे मेघकुमार ! पा० पगे करने ग० शरीर प्रत्ये कं० खंजोल सुं, ति एवा हेतुथी पाण्पग न उंचो नपाड्यो. ते ते पगनी नूमिनी अं० वीचाले अ० अनेरा घणा ब बलवंत स० शत्व जोवोए, मांमधू नराणुं तेयो वेलावेला करतां पगने Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) +सिद्धान्तसार.. स्थानके खाली जूमिकाने विष स ससलो अपेगे. त० त्यार पड़ी तु तुमे हे मेघकुमार ! गाण शरीर प्रत्ये कं० खाजखणी, खणीने पुरा वली जूमि प्रत्ये पाप हेगे पग मुंकु, एम विचार करीने,नीचे पग मुंकवा लाग्या, ति० एम करीने तंगते ससलाने श्र० पगना स्थानके पेठो देख्यो, देखीने पा० बेन्द्रियादिक प्राणीजीवनी अनुकंपा दयाथी, जु० जुत वनस्पति मात्रनी दयाथी, जी0 पंचेन्धिजीव मात्रनी दयाथी, अंण् वचे निराधार उंचो पग राख्यो; पण नो निश्चे धरतीए पग मुक्यो नही. तण्त्यार पड़ी तु तमे मेण्हे मेधकुमार! पा० प्राणीनी अनुकंपा-दयाथी जा यावत् सम् शत्व पृथ्व्यादिकनी दया, तेमज ससलानी दयाएकरी सं० संसार परित कीधो; तथा वक्षी म मनुष्यनुं नि आनखं बांध्यु. त त्यार पडी व वननो दव अ० अढी रात्रदिवस सुधी बढ्यो, अने व वन पोताना देवथी लाणो एटले दव बंध पड्यो, न उपशान्त थयो भने ससलो बच्यो. ते समयथी हे मेघ ! ए० एक सो वर्षनुं प० परम नुतकृष्टुं थानझुं पा० पालीने, तमे 50 आज जंग जंबुछीपनामा छोपने विषे, ना नरतक्षेत्रने विषे, राग राजग्रही नगरीने विष से श्रेणिकराजानी पटराणी धारा धारणिदेवन। कुण् कुखने विषे कुछ कुमारपणे प० नपन्या. तात्यार परी तु तमे हे मेघकुमार ! श्र० श्रनुक्रमे ग गर्नवासथकी नि निसरी जन्म पाम्या. न बालनावपणुं मुक्यु अने जो जोबन वय प्राप्त थर. त्यार पडी म माहारी समीपे मुंग मुंम ना थश्ने प्रा० ग्रहस्थवास बांगीने श्र अणगारपणुं लीधुं. तंग ते कारणथीज प्रथम तु तमे हे मेघकुमार ! ति तिर्यंच-योनिना जव प्रत्ये न पाम्या अ० अणपाम्युं समकितरुप रत्न. अर्थात समकित पाम्या न हता ते पाम्या. से ते हवे पग मुकदानी खाली जग्याने विषे पा० प्राणी ससलो राख्यो, तेनी दया कर। ते आ यावत् अंग विचाले सं० उंचो पग राख्यो, पण नो निश्चे हे मेघ ! नि तमे धरतीए हेठो पग मुक्यो नही. कि० किं इति कोमलामंत्रणे पु० वली तु हे मेघ ! ३० हमणा विo आ विस्तीर्ण कुलने विषे तमे उपन्या बो. एम श्री माहा Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. (५१) वीर मेघकुमार प्रत्ये केहेता हवा. ए छातासूत्रना प्रथमाध्ययननो सूत्रार्थ. ___ हवे सुखविपाकसूत्रना बोजा अध्ययननो पाठ लखीए बीए:तेणंकालेणं तेणंसमयेणं इदेव जंबुद्दीवे २ जारहेवासे हत्थिणारे णामं नयरे होत्या. तत्थणं हथिणारेणयरे सुमुहेणामं गादाव परिवसइ अढे. तेणंकालेणं तेणंसमयेणं धम्मघोसेणामथेरा जाइसंपन्ना जाव पंचदि समणसएहिं सहि संपरिवुमा पुवाणुपुश्विं चरमाणा गामाणुगामं उऊमाणा जेणेव दत्थिणानरेनगरे जेणेव सहस्सं व वामे उजाणे तेणेव उवागढ२ ता अदापडिरुवं नग्गरं गिन्दित्ताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं नावेमाणस्स. तेणंकालेणं तेणंसमयेणं धम्मघोसेणं घेराणं अंतेवासी सुदत्तणामं अणगारे जराले जाव तेनलेसेणं मासेणं विदर३. तंसे सुदत्तेअणगारे मासखमण पारणगंसि पढमाए पोरसिए सद्यायंकरेइ जहा गोयम तहेव धम्मघो स थेरा आपुति जाव अममाणे सुमुदस्स गादावश्स्स गेहं अणुपवि. तत्तेणंसे सुमुदे गादावर सुदत्तं अणगारं एजमाणं पास २ त्ता दस्तुळे आसणा अब्नु पायपिढा पच्चोरुहेत्ति एगसामियं उत्तरासंगंकरे। सुदत्तंत्रणगारं सत्तह पयाइं अणुगति ३ त्ता आयादिणं पयादिणं करेति ३ त्ता वंदर नमस जेणेव नत्तघरे तेणेव उवागब २ सयदलणं विनलेणं असणं ४ पमिलानेसमाणे तुहे. तत्तेणं तस्स सुमुहस्स गादावश्स्स दवसुक्षेणं दायगसुघेणं तिविदेणं तिकरणसुझणं सुदत्तेअणगारे प Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) + सिद्धान्तसार.. मिलानेसमाणे संसार परितकए. मणुसानए निबंधे. इमाहिं पंच दवाई पाउब्नुआई वसुदारा वुहि दसवणे कुसुमे निवात्तिते, चेलाखेलवं करेंति, आकासान देवउंदी अणंतरं वियणं आसासति अहोदाण मदोदान घुठेय ॥ अर्थः-हवे सुख-विपाकसूत्रना पाउनो अर्थ कहे जे. ते ते कालने विषे तेते समयने विषे ३० आ जंग जंबुद्धीपनामे छीपने विषे, जा नरतक्षेत्र मांदे, हा हस्तिनापुरनामे न नगर हो इतुं. तण त्यां हण हस्तिनापुर ण नगरने विषे सु० सुमुखनामे गाण गाथापती प० रेदेतो हतो. पण ते हिवंत हतो. ते ते कालने विषे ते ते समयने विषे ध० धर्मघोषनामे थे स्थिवर जाग जाति कुल सर्व गुण सहित जा० यावत् पं० पांचसो स० श्रमण साधुनी सि साथे सं० प्रवर्तताथका पु० पूवानुपूर्वे च विचरता, गा ग्रामानुग्रामे कुछ अनुक्रमे नलंघता, जे० ज्यां हा हस्तिनापुर नगर बे, जे ज्यां स सहस्त्रावनामे व वन उ० नद्यान , ते त्यां जग आव्या, श्रावीने अ० यथायोग्य उ स्थानक बागमा उतरवानी आज्ञा मागीने सं० सत्तरजेदे संजम अने त बारनेदे तपे करी श्र० पोतानी श्रात्माने ना लावता विचरे . ते ते कालने विषे ते ते समयने विषे ध० धर्मघोषनामे थेग स्थिवरना अंग शिष्य सु सुदत्तनामे श्रम श्रणगार उ जेनो जलो श्राचार ने, जा० यावत् जेणे ते तेजुलेश्या गोपवी राखी बे, ते मा० मासमास खमण करता वि विचरे जे. तं ते सु सुदत्तनामे अणगार मा० मास खमपने पाप पारणे प० पेहेली पो पोरसिए सण सकाय करीने जा जेम गो गौतमस्वामी श्री माहावीरदेवने पुबीने गौचरीए जता त ते. मज ध० धर्मघोष थेग स्थिवरने आए पुडीने जाग यावत् १० फरता थका सु० सुमुखनामे गा गाथापतीना गे० घरने विषे अण् श्राव्या. त तेवारे से ते सु० सुमुख गाण गाथापती सु सुदत्त अथणगारने ए० आवता पा० देखे, देखीने ह० हर्ष संतोष पाम्या, पामीने या Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (५१) वासनथकी श्र उठे, नगीने पा पादपीठ थकी प० हेग नंतरोने एक एक पटने उपटे उ उत्तरासन करीने सु० सुदत्त-श्रणगारने स सात पाठ प० पग अण् सामो जाय, जश्ने त्रण प्रदक्षिणा करी आण श्रावतन प० परावर्तन का करे, करीने वंग वांदे, न० नमस्कार करे, वांदी नमस्कार करीने जे. ज्यां न रसोड़ें, ते त्यां न० श्रावे, श्रावीने स० पोताने हाथे वि० घणा अ असनादिक ४ प० पमिलानतो शं. तोष पाम्यो. त० तेवारे ते सु सुमुख गा० गाथापती ते द० अव्य शुद्ध, दा दातारचं चित्त शुरू, तथा ति त्रिविध एटले शुद्ध मन, वचन, काया अने ति त्रण करण शुद्धेकरी सु० सुदत्त-अणगारने पर प्रतिलान्येथके ते सुमुखनामा गाथापतीए सं० संसार प० परित कीधो. म मनुष्यनुं वि० श्रानखं बांध्यु. वली तेना घरने विषे इ० ए पं० पांच द अव्य पा० प्रगट थया. व० धरतीने विष वु० पंचवर्णा फुल अने कुछ फुलनी मालानी नि0 वृष्टी थर. चे देवपुष्य-वस्त्रनी वृष्टी थ.श्रा० आकाशमां दे देवउंछन्नी वाजी. श्र० आंतरारहित था. काशने विषे अण् अहोदान म मोटुं दान दीई, एम निर्घोष शब्द धु थता हवा. जावार्थः-हवे जुर्म ! मेघकुमारे हाथीना नवमां प्राणी, जुत अने जीवनी अनुकंपा कीधी, तेथी संसार परित को कद्यु. ए अनुकंपाने समकितनुं लक्षण श्री वीतरागदेवे कडं . ए न्यायथी ते वखतमां समकित नाषे जे; कारणके लक्षण होय त्यां लद अवश्य होवु जोए. वली सुमुख-गाथापती साधुजीने देखीने हर्ष शंतोष पाम्या, मुखे जयणा कीधी, सातश्राव पग सामा गया, अने त्रण करण त्र जोग शुद्ध राखी, घणा उलट नावे दान दीधुं, तेथी संसार परित को. ए लक्षणतो समकितीना दीसे डे, अने मिथ्यात्वी तो शुद्ध देव-गुरु-धर्मने खोटा जाणे तेने कहीये. तमे सुमुख-गाथापतीने मिथ्यात्वी कया झानेकारी जाएया ? ते कहो. तेवारे तेरापंथो कहे जे के, समकितीने तो एक Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) + सिद्धान्तसार.. वैमानीक-देवतार्नु श्राज बंधाय; अने एमने.तो मनुष्य, आज बंधायु. तेथी मिथ्यात्वी जाण्या. एम कहे . तेनो नत्तरः__अरे ना ! श्री कृष्णमाहाराज तथा श्रेणीकमाहाराज, ए समकिती हता. तेमनुं नर्कनुं आज केम बंधायुं ? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, पेहेला नर्कनुं बाउ मिथ्यातपणामां बंधायु, अने पड़ो समकित आव्यु. एम एकान्त जुठ कहे जे. हे देवानुप्रोय ! केटलाक जीवोने तो वर्तमान जवनुं श्रान उ महिना बाकी रहे, त्यारे परनवनुं श्राउ बंधाय बे, अने केटलाक जीवोने श्रानखानो त्रीजो नाग रह्या पळो परजवर्नु आज बंधाय बे; पण बे नागमां तो कोइ जीवने परजवर्नु आनखं बंधाय नही. तेनी शाख सूत्र पन्नवणा पद २३ में. हवे जुन ! श्री कृष्णमाहाराजनुं हजार वर्षनुं श्राउ हतुं, तेमांथी ६६६ वर्ष जारां गयां, त्यां सुधी तो परनवर्नु आउखु बंधायु नहीं, अने समकित तो श्री नेमनाथ नगवंतने केवलज्ञान उपज्यु, त्यारथीज शेवान्नक्ति करी दीशे . वली कृष्णमाहाराज आसरे त्रणसो वरसना हता, त्यारे राजेमतिने आवीने कर्वा के, "हे कन्या ! नेमनाथ जगवान तो संसारसमुद्र तर्या, ने तुंपण संसारसमुफ तर." एवां वचन कह्यां . शहां सम्यक्त दीसे बे, अने पनी थान बंधावाना समये सम्यक्त गयुं, तेथी नर्कनुं श्रान बंधायुं दीशे , अने पलो वली सम्यक्त आव्यु दीसे बे. वली कृष्णमाहाराजने कायक-सम्यक्ति परिपाटीमां (परंपरामां) कहे . ते कायक-सम्यक्त आउखु बांध्या पनी आव्युं होय तो अटकाव नही, पण सूत्रपाठमां तो कायक-सम्यक्त कर्वा नथी. क्योपशम-सम्यक्त दीसे ले. तेनी स्थिति जघन्य अंतरमुहूर्तनी अने नत्कृष्टी ६६ सागरनी कही बे. सास्वादन-सम्यक्तनी जघन्य तथा उत्कृष्टी उ श्रावलकानी, उपशम-सम्यक्तनी एक समयनी अने उत्कृष्टी अंतर मुहर्तनी, वेदक-सम्यक्तनी जघन्य उत्कृष्टी एक समयनी , अने दायक-सम्य. कनी श्राद डे पण अंत नथी, एटले ते आव्युं पार्बु जाय नही. शाख Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (५५) सूत्र पन्नवणा पद १७ मे. वली एक जीवने एक नवमां अशंख्याती वेला सम्यक्त श्रावे अने जाय, एम कडं बे. वली समकितिनी जघन्य स्थिति अंतर मुहूर्तनी कही बे. ते अंतर मुहूर्तना अशंख्याता नेद . जघन्य बे समयने अंतर मुहर्त कहीये; केमके वेदनी कर्मनी जघन्य स्थिति अंतर मुहर्तनी कही . शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन ३३ में तथा जगवतीजीमां तथा पन्नवणा पद २३ में वेदनी कर्मना बे नेदःशाता अने अशाता. शाता वेदनीना बे नेदः-संप्राय अने रियावही. रियावहीनी स्थिति बे समयनी कही जे. शाख सूत्र पन्नवणा पद २३ में तथा जगवतीजीमां. ए न्याये जघन्य बे समयने अंतर मुहूर्त कहीये, श्रने नत्कृष्टा बे समयथी मामीने एक अंतर मुहूर्तमां एक समय नको होय तेने अंतरमुहूर्त कहीये. एम असंख्याता नेद . - ए न्याये श्रानखाना बंध समये सम्यक्त गयु दीसे जे. जेम मेघकुमारने हाथीना नवमां, तथा सुमुख तथा विज्य-गाथापतीने सम्यक्त फर्शवाथी संसार परित थयो , तथा सम्यक्तथी सनमुख थया डे, अने मनुष्यनुं श्रान बांध्युं तेवेला सम्यक्त गयुं दीसे . पी तो श्री केवलीमाहाराज स्वीकारे ते सत्य जे. वली ज्यारे भेषकुमार संजमथी मगीने प्रनुपासे श्राव्या, त्यारे श्री वीरप्रजुए कह्यं के, "हे मेघ! तें हाथीना नवमां दया पाली, तेथी तिर्यंचना नवमां सम्यक्त लाध्यु." एम कडं. ते श्री ज्ञाताजीना अध्ययन पेहेलानो पाठ लखोए बीए:तंजश्त्ताव तुमे मेदा तिरिक-जोणिय नवमुवागएणं अप्पमिल६ सम्मतरयण खनेणं सेमाए पाणाणुकंपयाए जाव अंतराचेव संधारिए णो चेवणं णिकित्ते किमंगपुण तुमे मेहा श्याणि विनल कुल समुन्नवेणं ॥ अर्थः-पुर्ववत्- जुर्व प्रश्न पहेलो. पालपाने ४ए में. जावार्थः-अहीया कडं डे के, कोइ दोवस नहो मलेवू एवँ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) + सिद्धान्तसार.. समकितरत्न मत्यु. मूलपाठना अकरनो तो एवो अर्थ थाय डे, अने केटलाक टबामां मुलगो अर्थ करीने पळो कयु डे के, “एतावता सम्यक्त अणपाम्यो." पण जुर्म ! ए अर्थ कया पाउना अदर ? पाठविना अर्थ प्रमाण थाय नही. माटे मुलगा अर्थमां समकित-रत्न पाम्या कह्यु, तेज प्रमाण जे. वली सनत्कुमार-जनी, सुर्यानदेवनी अने बीजा सोनी बार बोलनी पुग चाली; तेमां श्री वीतरागदेवे “ सम्यक्त" पेहेलु कयु , अने परित संसार पछी कह्यो . तेनी शाख सूत्र श्री जगवतीजी शतक त्रीजे उद्देशे पेहेले ते पाठ लखीए बीएःसणंकुमारेणं नंते! देविंदेदेवराया किं? नवसिहिए अनव सिधिए सम्मदिहिए मित्रादिहिए परितसंसारिए अणंतसंसारिए सुबनबोदिए उसनबोहिए आरादए विराहए चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सणंकुमारे देविंदेदेवराया नवसिहिए नो-अनवसिहिए. एवं सम्मदिहि परित्तसंसारि सुलभबोदिए आराहए चरिमे. पसथनेयवं. सेकेणहेणं नंते ! गोयमा! सणंकुमारे देविंदेदेवराया बहुणं समणाणं बहुणं समणीणं बहुणं सावयाणं बहुणं सावि याणं दियकामए सुहकामए पथ्थकामए आणुकंपिय निस्सयसिय दियसुद निस्सेसकामए. सेतेणणं गोयमा! सणंकुमारे दोविंदे नवसिदिए जाव नोअचरिमे ॥ अर्थः-श्री माहावीर स्वामी प्रत्ये गौतम स्वामी पुस्ता हवा. स सनत्कुमार नं० हे जगवान ! दे देवेंऽ देवराजा किं० शुं जानव सिडिक नव्य बे, के अण् अन्नव्य ? सण सम्यक्दृष्टि के मि०मि. थ्यादृष्टि डे ? प० अल्पसंसारी ने के अ० अनंतसंसारी ले ? सु० सुलन्न बोधी डे के दु मुर्खनबोधी ने ? आप ज्ञानादिकनो आराधक डे के वि० विराधक डे ? च० चरम डे के अ० अचरम डे ? इति प्रश्न. उत्तर Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. - गो हे गौतम ! स० सनत्कुमार दे० देवें देवराजा न जव्य डे नो अजव्य नथी, ए० तेमज स सम्यक दृष्टिने, प० अल्प संसारी, अनंत संसारी नथी, सु सुलनबोधी डे पुर्खनबोधी नथी, आण आराधक डे विराधक नथी, च० चरम , ए रीते पण प्रशस्त (लला) केहेवा अने अप्रशस्त बोमवा. से० ते शा अर्थे नंग हे नगवान! एम कर्दा? इति प्रश्न. उत्तर. गोण्हे गौतम ! सम्सनत्कुमार देण्देवेंज देवराजा बघणा सश्रम ण साधुने, बण्यणी स० श्रमणी साधवीने, बग्घणा साण्श्रावकने, बग्घणी सा० श्रावीकाने, हि हित सुख निबंधन वस्तुना वान्डकर, सुण् सुखना वान्छक २, पण्पुःख त्राणना कामी एटले जुख्याने सुखकारी आहार आपे ३, अण्क्रपाएकरी सहित ४, निगमोदना श्चक बे५. हिण्हितसुख अने अदुःखानुबंध नि निशेष समस्तने वान्डे. एम जाणे के समस्त दुःखरहित थानं ने मोक्ष जालं. एवा हितना कारणथो साध-साधवी तथा श्रावक श्रावीका श्रादिनुं सुख वान्छे . से ते अर्थे गो हे गौतम ! स० स. नत्कुमार देण् देवेंजदेवराजा ना नव्य जाण यावत् नो अचरम नथी. नावार्थः-हवे जुर्ज ! ए बार बोलमा संसार एकथी एक बोलमां हलवो कह्यो. ए अनवि नथपण नवि . नविना बे नेदःसमकिति अने मिथ्यात्वी. ए कोण जे ? ए समकिति बे. समकितिना बे नेदः श्रनंत-संसारी अने परित-संसारी. ९ कोण ले ? ए परित-संसारी बे. परित-संसारीना बे नेदः सुखरबोधी अने दुलनबोधी. ए कोण ? ए सुलजबोधी जे. सुलन्नबोधोना बे नेदः- आराधक अने विराधक. ए कोण जे ? ए आराधक हे. आराधकना बे नेदः- अचरम अने चरम. ए कोण ? ए चरमशरीर बे. ए जुर्ज ! समकित पेहेलु का, अने संसार परित पड़ी कह्यु. ए न्याये मिथ्यातमां संसार परित थाय नहीं. वती परित-संसारीनी स्थिति नत्कृष्टी अर्धपुद्गल देश उणी कही; अने समकित श्राव्या पठो पण संसार उत्कृष्टो अर्धपुद्गल देश नमो चाकी रह्यो कह्यो; अने समकितिन। अने परित-संसारान। जघन्य Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) + सिद्धान्तसार.. स्थिति अंतर मुद्वर्तनी कही. ते संसार परित कीधा पळी अंतरमुहर्तमां मुक्ति जाय. शाख सूत्र पन्नवणा पद १७ में ए न्याये समकित श्राव्या पबीज संसार परित थाय, पण मिथ्यातमां संसार परित याय नहीं. पडीतो श्री कवली माहाराज जाणे. वली जेने जीव-अजीव अने त्रसथावरनुं जाणपणुं नथी, तेनां पचखाणने उपचखाण कयां. तेनी शाख सूत्र नगवतीजी शतक सातमे, उद्देसे बीजे. ते पाठ लखीए गएः-- सेणुणं नंते ! सवपाणेहिं सबनूएहिं सवजीवहिं सवसत्तेहिं पच्चरकायमिति वदमाणस्स सुपच्चरकायं नव उपच्चकायं नव ? गो ! सबपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं जाव . सिय उपच्चरकायं नव॥ सेकेणणं नंते ! एवं वुच? . सवपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं जाव सिय दुपच्चकायं नवइ. गो! जस्सणं सबपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं पच्चरकायमिति वदमाणस्स णो एवं अनिसमणागयं नव श्मे जीवा इमे अजीवा श्मे तसा इमे थावरा तस्सणं सबपाणेहिं सबसत्तेहिं पञ्चकायमिति वदमाणस्स नोसुपच्चरकायं नवइ उपच्चकायं जवइ एवं खलुसे दुपञ्चकाइ ॥ सवपाणे जाव सवसत्तेहिं पच्चकायमिति वदमाणे नो सचंनासं नास मोसंनासं नास एवं खलुसे मुसावाइ ॥ सबपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं तिविदंतिविहेणं असंजय अधरिय अप्पमिदय पच्चरकाय पाव.. कम्मे सकिरिए असंवुझे एगंतदमे एगंतबालेयाविनविस्सा जस्सणं सबपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं पच्चरकायमितिवदमाणस्स एवं अनिसमणागयं अवश्श्मे जीवा श्मे अजीवा : इमे तसा श्मे थावरा तस्सणं सवपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं . Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ५९ ) पञ्चस्कायमिति वदमाणस्स सुपच्चरकायं जवइ नोडुपञ्चकायं एवं खलु सुपचकाइ ॥ सवपाणेहिं जाव सङ्घसत्तेहिं पच्च स्कायमिति वदमाणे सचंनासं जासइ नोमुसंज्ञासं जासइ एवं खलु से सपाहिं जाव सङ्घसत्तेदिं तिविहं तिविदेणं संजय विरय पहिय पञ्चकाय पावकम्मे व्यकिरिए संवुमे एगंत पंकिया विवइ ॥ सेते ठेणं गो० ! एवंवुच्चइ जाव सिय दुपच्चकाय जवइ ॥ -- अर्थः- श्री माहावीर जगवंत प्रत्ये गौतमस्वामी पुढता दवा. ० ते निश्चेनं दे भगवान ! स० सर्व प्राणेकरी, स० जु० सर्व जुतेकरी, स० जी० सर्व जोवेकरी, स० स० सर्व सत्वेकर, ( यतः ॥ प्राणा द्वित्री चतुः प्रोक्ता, नूतास्तु तर्व स्मृता, जीवा पंचेंडिया शेया, शेषा सत्वा प्रकीर्तिता ॥ १ ॥ ) प० सर्व चेतनने दणवानुं पचखाण में कयुं, एवं कहे ते सु० पचखाण न० थाय के 50 माटुं पचखाण ० थाय ? इति प्रश्न. उत्तर गो० हे गौतम ! स० पा० सर्व प्राोकरी, सर्व · तेकरी, सर्व जीवेकरी जाण् यावत् स० सर्व सत्वेकरी जा० पचखाए सुपचखाण पण याय ने डुपचखाण पण थाय. से० ते शा अर्थे जं० हे भगवान ! ए० एम कयुं ? नजय वस्तु थाय. इति प्रश्न उत्तर गो० हे गौतम! ज० जे स० सर्व प्राण जुत जीवनो जा० यावत् स० सर्व सत्वनो १० नियम में कीधो, में दवाना पचखाण कर्या, एम कहे तेने, पो० नदी ए० एम ० वक्षमाण प्रकारे एटले आागल कही ये बीतेम तेने ज्ञानेकरी जाणपणुं न होय. ३० ए जीव बे, इ० अ० ए जीव बे, इ०त० ए त्रस जीव बेइंद्रियादिक बे, इ०या० ए स्थावर वादिक बे, त० ते स० सर्व प्राणनुं यावत् स०स० सर्व सत्वनुं प० पचाणकयुं बे एम कहे बे, पण जीव-अजीव त्रस स्थावनुं स्वरुप ज्ञानेकी जाएयुं नहोय सेने, नो० सुपचखाण न थाय (ज्ञानना धजावे Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) + सिद्धान्तसार, करी जेम ले तेम पाले नही, ते माटे सुपचखाणपणानो अनाव डे). यतः जो जीवेवि नयाण अजीवेवि नयाणइ, जीवाजीवे अयाणंतो, कहसो नाहि संजमं ॥ गाथार्थः-जे जीवअजीना नेद जाणे , तेने सुपचखाणी संजमी कहेवो; पण जे जो वजीवना जेद जाणतो नथी, ते सुपचखाणी संजमी कहेवाय नही, (एटले ते सुपचखाणना अनावे करीने असंजमी ने इत्यादि ) पण उ० उपचखाण थाय एटले तेनां मागं पचखाण कहीए. ए एम ख० निश्चे कुछ उपचखाण। कहीये. सण सर्व प्राणेकरी जाग यावत् सर्व सत्वेकरी प० में पचखाण कर्यु एम कहे ते, नो साची नाषा बोलतो नथी, एटले मो कुमी नाषा बोले डे. ए० एम निश्चे मुळ ते जुठ बोलणहार . स सर्व प्राणीने विष जाणयावत् सर्व सत्वने विषे ति त्रिविध (करनार, करावनार अने अनुमोदनार ए त्रण निन्न नेद योग आश्रश्ने ति मन-वचन-कायाए करी अ० असंजति प्राणवधादि प्रहारने विषे अयत्नवंत अ० वृतरहित, 40 नथी इण्या पचखाणे करी पा पापकर्म जेणे, स० कायिक्यादि क्रिया सहित १० नथी संवर्या आश्रवछार जेणे, ते ए० सर्वथा प्रकारे स्व. परप्रत्ये दंमे, तथा एण् सर्वथा प्रकारे अज्ञानी होय. वली जण जे स० सर्व प्राणेकरी जाग यावत् सर्व सत्वेकरी प० पचखाण में कयु. एवं कहे तेने, ए० एम वदमाण प्रकारे श्र० जाएयुं होय ३० ए जीव डे, २० ए अजीव , इण्ता ए त्रसजोव , इ० ए स्थावर वृक्षादिक बे, त० तेने स० सर्व प्राणेकरी जाग यावत् स सर्व सत्वेकरी प० पचखाण में कर्यु, एकेहेतां ते सु सुपचखाणी थाय, पण नो दुपचखाणी. न थाय. ए. एम निश्चे से ते सु सुपचखाणी थाय. वली सा सर्व प्राणेकरी जाण् यावत् स सर्व सत्वेकरी, त्रिविधे त्रिविधे करी प० में पचखाण कयु, एम व कहे ते स सत्य वाणी बोलनार केहेवाय, पण नोण्मुनिश्चे ते जुग्नो बोलणहार न केहेवाय. ए एम निश्चे ते स० सर्व प्राणेकरी जाग यावत् सर्व सत्वेकरी तिति त्रिविधे त्रिविधे करी संद संजति वि० विरति प० प्रतिहत पत्र पचखाणे करी पा० पापकर्म Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार जेणे, १० कायिक्यादि क्रिया रहित संग संवर्या ने श्राश्रवछार जेणे, ते ए० एकान्त पं० पंमित सर्वथा-ज्ञानी थाय. से ते तेणे अर्थे गो हे गौतम ! ए० एम वु० कडं जाए यावत् सि0 कोश् सुपचखाणी थाय अने दु० को दुपचखाणो पण थाय. नावार्थः-हवे जुन ! मिथ्यात्वीनी करणी श्राज्ञामां होय तो श्री वीतरागदेवे तेनां पचखाण मागं केम कह्यां ? माह्या हो ते वीचारी जो जो. ए न्याये मिथ्यात्वीनी करणी श्राझा बाहार कहीये; अने आझा बाहार पुण्य बंधाय ले. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, पुण्य बंधाय ते श्राझा मांहेली करणी बे, अने आज्ञा बाहारनी करणीमां एकान्त पाप बंधाय ले. तेमने पुब्बु के, उववाश्यादि घणा सूत्रमा मिथ्यात्वीने जिनाझाना (परलोकना) श्रणयाराधक तो कह्या , पण मिथ्यात्वीनी करणी थाज्ञामां क्या कही ? अने मिथ्यात्वीने जिनाझाना (मोक्षना) आराधक क्या सूत्रमा कह्या ? ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के, जगवती सूत्र शतक थाम्मे नद्देशे दसमे चोनंगी कही , तेना पेहेलाजांगामां मिथ्यात्वीने देश श्राराधक कह्या जे. एवी एकान्त जुठी शाख बतावे , पण त्यां तो एम कडं ले के, केटलाक मिथ्यात्वी ज्ञानने श्रेष्ट कहे बे, केटलाक शीलाचारने श्रेष्ट कहे जे अने केटलाक शीलाचार तथा झान, ए बनेने श्रेष्ट कहे . एम एकान्त त्रण प्रकारे मिथ्यात्बी श्रेष्ट कहे , तेने जगवंते जुग बोला कह्या जे. ते पाठ:रायगिदे जाव एवं वयासि अणनस्थियाणं नंते ! एव माइ कइ जाव एवं परुवेइ एवं खलु सील सेयं सुयंसेयं सीखं सुयसेयं. सेकदमेयं नंते ! एवं गो ! जणंते अणनत्थिया एवमाइकइ जाव जेतेएवमाहंसु मिचंते एव माहंसु. अहं पुण गोयमा! एवमाश्कामि जाव परुवेमि एवं खलु मए: चचारि पुरुषजाया पं० ते सीवसंपन्नेणामएगे जोसुयसं Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. पन्ने, सुयसंपन्नेणामएगे णो सील संपन्ने, एगे सीलसंपन्नेवि सुयसंपन्नेवि, एगे णोसीलसंपन्ने जोसुयसंपन्ने. तत्वणं जेसे पढमे पुरिसजाए सेणंपुरिसे सीलवं असुयवं उवरए अविणायधम्मे एसणं गोयमा ! मए पुरिसे देसारादे परमत्ते. तत्थणं जेसे दोचे पुरिसजाय असोलवंसुयत्वं अणुविरए विणायधम्मे एसणं गोण्! मए पुरिसे देसेविराहए पं०. तत्यणं जेसे तच्चे पुरिस जाए सेणं पुरिसे सीलवं सुयो - वरय विणायधम्मे एसणं गो७! मए पुरिसे सबारादए पं. तत्थणं जेसे चनथे पुरिसजाए सेणं पुरिसे असीलवं असुयचं अणुविरए अविणायधम्मे एसणं गो! मएपुरिसे सबविराहए पं०॥ अर्थः–रा राजग्रही नगरीने विषे जा० यावत् ए एम का कहे. श्र० अन्य तिर्थी, नंण् हे नगवान ! ए एम कहे डे, जा यावत् ए० एम पण परुपे एवं खलु सोलंसेयं सुयंसेयं सीलंसुयं सेयमिति० एम लोक प्रसिद्ध न्याये करी निश्चे अहिंयां केटलाक अन्यतिर्थी क्रिया मात्रथीज वोदितार्थनी सिकि वांगे , एटले क्रियाथीज मोक्ष माने बे. ते कन्हे डे के, ज्ञानथी का प्रयोजन नथी; कारण के घटादिक कार्यनी प्रश्न तिने विषे आकाशादि पदार्थवत् निचेष्टित . यतः । जहा खरो चंदन भारवाहि, नारसनागि नहु चंदखस्स; एवंखु नाणि चरणेण हिणो, णाणस्सज़ागि नहू सग्गश्ता जेम रासन चंदननो जारो वेहेनार, नारनो अजनहार होय, पण चंदननो गुण जाणनार न होय; तेम निश्चे जे ज्ञानी चारित्रे करी होण होय ते, ज्ञामनो जजनहार होय, पण ते सुगतिनो (मुक्तिनो) असमझर न होय. एटला माटे सीलनो नेभायवंत एम परुपे डे के प्रासाशित Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. (**) विरमण ध्यान अध्ययनादिरुप क्रिया तेज अतिशये करी श्रेय (प्रशंश(ब) ढे, कारण के पुरुषार्थ साधकपणाथी ते क्रियानेज वान्छे, तथा केटसाक सु० ज्ञानथीज वान्वितार्थनी सिद्धि वान्छे बे, पण कियाथी नवी वान्ता; कारण के ज्ञानने क्रिया विना पण फल सिद्धिरुप कथं बे आदचः - पढमं गाणं तर्ज दया एवं चिट्ठइ सब संजए; अाणि किंकाढी किंवा नाहि सेय पावगं ॥२॥ एटला माटे श्रुतनो नेश्रायवंत एम परुपे बे के श्रुतज्ञान तेज पुरु पार्थ सिद्धिपणा माटे अतिशये करी श्रेय आश्रय करवा योग्य बे, पल सील कियानुं प्रयोजन नथी; अने केटलाक ज्ञान, क्रिया नेने अन्यो अन्य निर्पेक्ष वांडे बे. ज्ञान, क्रिया विनाज उपसर्जनी जुत फल खापे, धने क्रिया पण ज्ञान विना उपसर्जनी जुत फल थापे, इति जाव. एटला माटे ते कड़े बेके, श्रुत श्रेय तथा सील श्रेय. ए बने प्रत्येके पुरुषने पवित्रताना निबंधनपणाथी श्रेय बे. बीजा केटलाक एम कहे बे के शील श्रेय, ते मुख्य वृत्तिए तथा गौय वृत्तिए करी एकेकने नृपकापाथी इत्यर्थ. ए अर्थ अढ़ियां सूत्रने विषे काकु पाठथी लानीए बीए. ए पुर्वोक्त त्र पहने विषे अनंगपणाथी फल सिद्धि न घाय. समुदाय पकनेज फल सिद्धि याय. आदचः -पाणं पयासय सोहन, तवो संजमोय गुत्तिकरो, तिमपि समाजग्गो, मोखो जिए सासणे नणिजे ॥ २ ॥ तप संजम ए बन्ने सीलज बे. तथा संजोग सिद्धिए फलवयंति, नहु एक चकेण रहो पायई; प्रधोय पंगु वणे समिश्या, तेसंप्पत्ता नगरे प्पविश् ॥२॥ बीजा व्याख्यान पदे पण मिथ्यात्वी संजोगथकी फल सिद्धिना देवाथी, केक प्रधान गौण विवक्षा करी असंगतपणाथ सिद्धि बे, एम विसंवादरूप परुपे बे. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) + सिद्धान्तसार.. पागर्थः-से ते केम नंग हे जगवान ! ए० एम कर्दा ? इति प्रश्न. उत्तर गोण् हे गौतम ! ज० यदि ते अ० अन्यतिर्थी ए० एम मा कहेडे, जा यावत् जे पुर्वे कह्यं तेम कहे, तो मि जुटुं ने ए० एमर्नु केहे. अ० हूं पु वली गोण हे गौतम ! ए एम मा० कहुं ढुंजा यावत् प० परुघु ः-श्रुतयुक्त शील श्रेय, एटले ज्ञान सहित क्रिया वान्छितार्थ फलदायक थाय. यतः हतं ज्ञानं क्रिया होने, इत्यादिक. तथा अंधपंगुने अष्टान्ते करी ज्ञानयुक्ते करी श्रेय एवं वाक्य शेष देखवू. ए एम खन निश्चे में में च० चार पुरुषनां प्रमाण प० कह्यां, तं ते कहे बे-सी त्यां एक पुरुष शील एटले क्रियासहित बे, पण णो सु० ज्ञाने करी स. हित नथी, एटले ज्ञानरहित डे ?, एक पुरुष सु श्रुत एटले ज्ञाने करी संपन्न , पण जोसी० क्रिया संपन्न नथी, एटले ज्ञानयुक्त क्रियारहित २ १, ए० एक पुरुष सी० क्रियाए करी पण सहित ने श्रने सु० झाने करी पण सहित , एटले ज्ञान अने क्रिया बन्ने युक्तले ३, अने एक एक पुरुष णोण्सी० क्रियाए करी सहित नथी, अने णोण्सुण् ज्ञाने करी सहित नथी, एटले ते पुरुष ज्ञान अने क्रिया बन्नेथी (विकल)ज्रष्ट २.४ त त्यां जे जे प० प्रथम पुरुष जात, से ते पुरुष से० सी० क्रियावंत , पण श्र० ज्ञानवंत नथी. नण् ते पोतानी बुद्धीए पापथी निवां , पण श्र० धण् श्रुत ज्ञानना अन्नावथी धर्म जाएयो नथी, अने पोते गुरु धार्या विना पोतानी मेलेज जोग लश् बालवयथी तपश्या करे , तेने अगीतार्थ कहेवो. ए एने गो हे गौतम ! म में दे० देशथकी थोमे अंशे श्रा. राधक कह्यो. ते लला बोध एटले ज्ञानरहित , पण क्रिया एटले अव्य चारित्रमा तत्पर डे तेथी. हवे एनां लक्षणनी गाथा कहे ब:- शिलवय पाखेतो, परमथं पेव जाणए तस्स, असद्दो आगार विलो, देशेणा राहगो मणु.॥ त त्यां जे जे दो बीजो पु० पुरुष श्र० शीलवंत नथी पण श्रुतवंत ले. अ ते पापथी निवत्या नथी, पण वि० धर्म जाएयो डे ए. ट्ले श्रवृति सम्यक्दृष्टि ने इत्यर्थ. ए एने गो हे गौतम ! मण में दे० योमा अंशे ज्ञानादि त्रयरुप मोक्षमार्गना त्रीजा जाग रुप चारित्र विराधे Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (६५) ने (पाम्यो डे पण पालतो नथी अथवा अप्राप्ती ने). तेथी देश-विराधक कह्यो. हवे एना लक्षणनी गाथाः- जाणंतो तिरतो, निवाघाए नकुण, जोधम्मं साया सुह पमिवद्धो, देसेण विराहगो मणुः ॥ १॥ ता त्यां जे तात्रीजो पु० पुरुष जात, से ते पुरुष सी० क्रियावंत पण , अने सु० ज्ञानवंत पण जे. जा ते पापथी निवयों ने अने वि० सम्यक्त श्रुत धर्म जाएयो जे. ए० एहने गो हे गौतम ! म में स० सर्व (त्रणे प्रकारना मोक्षमार्गनो) आराधक कह्यो. हवे इहां श्रुत शब्दे करी ज्ञान दर्शन, अने शील शब्दे करी चारित्र तप संग्रहवाथी आराधना होय, एटले समुदित शील तथा श्रुतने विषे श्रेयपणुं कडं. ते विषेष गाथाःधम्मे उवहियाणं, जंकरणि जंसुए निदिऊं, विरियस्स श्रनिग्गुहो, तत्थय बाराहणा नणिया ॥१॥ एवा पुरुषने हुं सर्व-आराधक कहुंडं. त० त्यां एंति वाक्यालंकारे जे० ते च० चोथा पुरुषनी जात, से ते पु० पुरुष असी क्रियावंत पण नथी अने असु० ज्ञानवंत पण नथी. अ० ते पापकर्मथी निवत्यों पण नथी अने अ० धर्म पण जाएयो नथी. एप एहने गो हे गौतम ! मण में स० सर्व-विराधक एटले ज्ञान दर्शन अने चारित्र, ए त्रणेनो विराधक मिथ्यादृष्टि कह्यो. तथा अणपाम्या श्राश्री सर्व-विराधक कह्यो. हवे श्राराधकनेज वली विशेष नेद करोने कहे जे. ते पाठ लखोए बोए: कश विहेणं नंते! आराहणा पंगो ! तिविदा आरादणा पं०२० णाणारादणा दंसणारादणा चरित्ताराहणा. णाणारादणाणं नंते ! कशविदे पं०? गो०! तिविदा पं0 न कोसिया मधिमा जहणा. दंसणारादणाणं नंते ! एवंचेव तिविहावि एवं चरित्तारादणावि॥ (अर्थः-पुर्ववत् पानेत्रीजे.) हवे उपर कहेली आराधनाना नेदनोज मांहोमांहो उपनिबंधन करतो कहे . ते पाठ लखीए बीए: Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) +सिद्धान्तसार.. जस्सणं नंते! नकोसिया णाणारादणा तस्स नकोसिया दसणारादणा जस्स नकोसिया दंसणारादणा तस्स नकोसिया णाणाराहणा ? गोयमा! जस्स नकोसिया णाणाराहणा तस्स दंसणारादणा उक्कोसावा अजादन्नुकोसावा. जस्स पुण नकोसिया दंसणारादणा तस्स गाणारादणा नकोसावा जहणावा अजहन्नमणुकोसावा. जस्सणं नंते ! नकोसिया णाणाराहणा तस्स नकोसिया चरित्तारादणा जस्स नकोसिया चरित्तारादणा तस्स नकोसिया गाणाराहणा? गो! जदा नकोसिया गाणाराहणा दंसणाराहणाय नणिया तहा नकोसिया णाणाराहणा चरित्ताराहणाय नाणियबा. जस्सणं नंते नकोसिया दंसणारादणा तस्स नकोसिया चरित्तारादणा जस्स नकोसिया चरित्ताराहणा तस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा ? गो ! जस्स नक्कोसिया दंसणारादणा तस्स चरितारादणा नकोसावा जदणावा अजहणमणुकोसावा. जस्स पुण नकोसिया चरित्ताराहणा तस्स दंसणारादणा नियम नकोसा, नकोसियाणं नंते! गाणाराहणा आराहिता कहिं नवग्गहणेहिं सिब जाव अंतंकरे? गो0 अगइए तेणेव भवग्गहणेहिं सिवइ जाव अंतंकरेई अजेगईए कप्पोवएलुवा कप्पातिएसुवा नववजाइ. नकोसियाणं नंते ! दसणाराहणा आराहित्ता करहिं नवग्गहणेहिं ? एवंचेव. नकोसियाणं नंते ! चरित्तारादणा आराहेत्ता ? एवंचेव गवरं अगइए कप्पातिएसु उववव. मकिमएणं नंते ! गाणाराहणं आरादेत्ता करहिं नवग्ग Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (६७) हणेहिं सिख जाव अंतंकरे ? गो! अगइए दोच्चेनवग्गदणेणं सिख जाव अंतकरेइ तच्चंपुणनवगाहणं नाश्कम्मइ. मधिमएणं नंते! दंसणाराहणा आरादेत्ता? एवंचेव एवंमधिमियं चरित्ताराहणंपि. जहणियणं नंते ! पाणाराहणं आरादेत्ता कहिं नवग्गदणेहिं सिब जाव अंतंकरे? गो! अगइए तच्चेणं नवग्गदणेणं सिद्य जाव अंतंकरेइ. सत्तठ नवग्गहणादिं पुणनाश्कम. एवं दंसणंवि एवं चरित्तारादणंपि ॥ अर्थः-जा जेने नंग हे जगवान ! न0 उत्कृष्ट णा शानबाराधना होय त० तेने उ० उत्कृष्टी दंग दर्शनआराधना होय ? तथा जण जेने मुग उत्कृष्टी दं० दर्शनधाराधना होय त० तेने न० नत्कृष्ट णाo ज्ञानधाराधना होय ? इतिप्रश्न. उत्तर. गो हे गौतम ! जण जेने जघन्य तथा नत्कृष्टी णा ज्ञानआराधना होय त तेने दं० दर्शनथाराधमा न उत्कृष्टी होय, अने जघन्य ने उत्कृष्ट ए बन्नेथी वितिरक्त ते मध्यम आराधना होय. उत्कृष्टा झानश्राराधनावंतने निश्चे पेहेली बे दर्शनाराधना होय, पण त्रीजी जघन्य-दर्शनआराधना न होय, तेना तथा विध स्वन्नावपणाना लीधे. जण जेने वली जा उत्कृष्ट दं० दर्शनधाराधना होय त तेने णाo शानधाराधना उ नत्कृष्ट होय, अथवा ज० जघन्य होय, अथवा म० मध्यम पण होय. नत्कृष्ट दर्शनधाराधनावंतने ज्ञान थाराधना प्राश्री त्रणे प्रकारना प्रयत्ननो शंनव बे. जण जेहने नंण् हे नगवान ! उ० उत्कृष्ट पा ज्ञानधाराधना होय त तेहने उ उत्कृष्टी च० चारित्रधाराधना होय ? तथा ज० जेहने न० उत्कृष्टी च चारित्रथाराधना होय त तेहने न० नत्कृष्टी णा झानथाराधना होय ? इतिप्रश्न उत्तर गो हे गौतम! जग जेहने न० उत्कृष्टी णा ज्ञानपाराधना होय, तेने उत्कृष्टी अथवा मध्यम चारित्रपाराधना होय, पण उत्कृ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६८ ) सिद्धान्तसार ष्टी ज्ञानआराधनावंतने चारित्र प्रत्ये प्ररूप प्राप्तपणुं न होय; एटले तेना तथाविध स्वजावपणाना लीधे जघन्य उद्यम न होय; तथा उत्कृष्ट चास्त्रियाराधन (वंतने ज्ञानप्रत्ये प्रयत्न त्रणे ( जघन्य, मध्यम ाने उत्कृष्ट), जनाए होय इत्यर्थ. ज० जेने नं० हे भगवान ! ७० नत्कृष्ट ० दर्शनआराधना होय, त० तेने न नत्कृष्टी च० चारित्रप्राराधना होय ? तथा ज० जेने उ० उत्कृष्टी च० चारित्रयाराधना होय, त० तेने उ० उत्कृष्टी दं० दर्शन आराधना होय ? इतिप्रश्न उत्तर. गो० हे गौतम ! ज० जेने न० नत्कृष्ट दर्शनआराधना होय, त० तेने च० चारित्रयाराधना त्रणे प्रकारे नजनाए होय. न० नत्कृष्ट अथवा ज० जघन्य छाथवा मध्यम होय. मध्यम दर्शन श्राराधनावंतने चारित्र प्रत्ये त्रिविध प्रयत्ननुं पण विरुद्ध पणुं बे ते माटे. ज० जेने वली न० उत्कृष्टी च० चारित्राराधना होय, तर तेने दं० दर्शनआराधना नि० नियमथकी न० नत्कृष्टीज होय, पण जघन्य मध्यम न होय. प्रक्रष्ट चारित्र अने प्रक्रष्ट दर्शनना अनुगतपणाथी. हवे श्राराधनाना जेदनुं फल प्रदर्शनने अर्थे सोल जांगा कदे बे:- उ० नत्कृष्ट नं० हे भगवान! पा० ज्ञानाराधना प्रत्ये याराधीने क० केटला ज० जव ग्रहणे करी सि० सीके जा० यावत् ० सर्व दुःखनो अंत करे ? इति प्रश्न. उत्तम गो० हे गौतम! ० केटला एक ते० तेज ज० नव ग्रहणेकरी सि० सीके जा० यावत् सर्व दुःखनो अंत करे. त्कृष्ट चारित्र आराधनाने सद्भावे तेज नवे सीजे. अ० केटलाएक क० सौधर्मादिक देवलोकने विषे नपजे, ज्ञानआराधना नत्कृष्ट पण चारित्राराधना मध्यमने सद्जावे. अथवा क० कल्पातित यैवेयकादि देवने विषे उपजे, मध्यमोत्कृष्ट चारित्रयाराधनाने सद्द्भावे. न० उत्कृष्ट नं० हे जगवान ! दं० दर्शनाराधना प्रत्ये श्र० श्राराधीने केला नवे सीके ? इति प्रश्न. उत्तर ए० एमज, जेम ज्ञानवाराधना कही तेम केहेतुं न० उत्कृष्ट नं० हे जगवान ! च० चारित्रमाराधना प्रत्ये ma Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. (६९) थाराधीने केटला नवे सीके ? इति प्रश्न उत्तर ए० एमज एटले तेज जवे इत्यादिक केहे; ण पण एटबुं विशेष अ० केटलाएक का कपातित-स्वर्गने विषे न० नपजे. “अत्थेगए कप्पोवयसुवा" एवं कडं ते इहां न केहेवं, कारण के उत्कृष्ट चारित्रधाराधनावंतने सौधर्मादि कल्पने विषे जावू न होय. इहां सिद्ध गमन अनावे तेने अनुत्तर सू. रविषे गमन डे माटे. म० मध्यम नं0 हे जगवान ! णा ज्ञानपाराधना प्रत्ये आ० श्राराधीने का केटला नव ग्रहेणकरी सीके ? जा० अं० यावत् सर्व फुःखनो अंत करे ? इति प्रश्न. उत्तर गो हे गौतम ! १० केटलाएक दो बे भव ग्रहणे करी सीके, जाण् यावत् सर्व फुःखनो अंग अंत करे. कारण के मध्यम ज्ञान-आराधनाएकरी वर्तमान जवने विषे निर्वाणनो अन्नाव जे. वली नत्कृष्टपणुं अवश्य थाशे, एवं जाणवू. नि. hणनी नत्कृष्टपणाविना नत्पत्ति न थाय. त० वर्तमान मनुष्यनव ग्र. हण अपेक्षाए त्रतिय मनुष्यन्नव उलंघे नही, एटले त्रीजे नवे मोक्ष जाय इत्यर्थ. म० मध्यम जंग हे जगवान ! दं० दर्शनाराधना श्राण श्राराधीने केटले नवे सीके ? इति प्रश्न. नुत्तर ए जेम मध्यम-झान श्राराधनानुं फल का, तेम इहां पण केहे. ए० एमज म मध्यम चा. रित्रधाराधनानुं फल पण केहे. ज० जघन्य नं० हे नगवान ! णाo ज्ञानश्राराधना 0 आराधीने का केटला नव ग्रहणे करी सीके ? जा यावत् अंग सर्व कुःखनो अंत करे ? इति प्रश्न उत्तर गो हे गौ. तम ! अ0 केटलाक त त्रीजा जवने ग्रहणेकरी सीके जाए यावत् अं० सर्व सुखनो अंत करे. वर्तमान मनुष्य जवनी अपेदाए त्रीजो नव जाणवो. स० सात अथवा आउन नव ग्रहण प्रत्ये अतिक्रमे नही. मनुष्यने, ए ज्ञानश्राराधना अने चारित्राराधनाने बलेकरी ए फल कह्यु, पण श्रुत सम्यक्त देशवृत्तिने नव अशंख्याता कह्या ले. तेथी चारित्रधाराधना रहित झान-दर्शन-बाराधनावंतने अशंख्याता नव थाय. एज विषे अनुयोगद्वार वृत्तिमां, आवश्यक नियुक्ति टीका चुर्णीमां अने पीठिकावृत्तिमा कयुंडे ते गाथा: Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७.) + सिद्धान्तसार. समत्त दसण विरिया, पलियस्स असंख नाग मेता; अहं नवा चरित्ते, अनंत कालं सुय समयस्स ॥१॥ ते माटे ए चारित्रधाराधना सहित ज्ञान-दर्शनधाराधना जाणवी. ए जेम दं० जधन्य दर्शनआराधनानुं फल कह्यु ए० तेम च० चा. रित्रधाराधनानुं पण फल केहेवू. नावार्थः-हवे जु ! जो मिथ्यात्वीनी करणी श्राझा मांदेली होय तो, ते करणीने श्रेष्ठ कहे तेने जगवंते जुग बोला केम रह्या ? मि थ्यात्वी पण पोते करे ते क्रियाने, तथा पोते जणे ते ज्ञानने श्रेष्ठ कहे बे, पण मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञामां नथी. तेथी नगवाने पोते तेमनी करणी वखाणी नथी, पण जे वखाणे तेने पण जुग बोला कह्या डे. . हवे जगवाने पोते चार प्रकारना पुरुष कह्या, ते कहे जेः-पेहेला नांगामां नवदिक्षित साधु तथा अल्पबुद्धिनो घणी, जे केवली तथा गुरुदेवनां वचन तहत करी माने बे, अने जेने श्रद्धारुप झान तोडे, पण वेडेवारीक जाणपणुं नथी तेने जाणवो; केमके ज्ञान तो फक्त थात प्रवचन मातानुं अने चारित्र यथाख्यात कडं . शाख सूत्र जगवतीजी शतक २५ में, नद्देशे के तथा सातमे. ए न्याये ज्ञान तुबमात्र, ते गएयु नही, तेथी तेने ज्ञान रहित कह्यो; अने चारित्र नत्कृष्टा श्राश्री देशवाराधक कह्यो. तथा जघन्य ज्ञान अने जघन्य सम्यक्त देशवाराधकपणामां श्रावी गयु. हवे सर्व-आराधक तो जेने ज्ञान, दर्शन श्रने चारित्र, त्रणे बोल नत्कृष्टा होय तेने कहीए. ते चार नांगानी धाराधना विषे गौतम स्वामीए श्री महावीर नगवंत प्रत्ये पुडा करी के, दे नगवान ! चार नांगामां आराधक विराधक कह्या ते शुं? अने ते शुं धाराधे ? के तेने आराधक केदेवा. तेवारे श्री महावीर नगवंते, ज्ञानश्राराधना, दर्शन आराधना अने चारित्र-आराधना, ए त्रण आराधना कही. तेमां पेहेला नांगावालो चारित्रनो आराधक बे. १ बीजा नांगामां ज्ञान दर्शन ए बे नत्कृष्टा बे, पण, चारित्रमा दोष लगावे , मादे.. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (७१) तेने त्रीजा नागरुप चारित्रनो देश-विराधक कह्यो; ते विराधक बहा गुणगणानो धणी साधु जाणवो. ५ त्रीजे नांगे झान, दर्शन अने चारित्र, ए त्रणे बोल थाराधे ते सर्व-श्राराधक साधु जाणवा; ते बहा गुणगणाथी सश्ने चौदमा गुणगणा सुधी, साधु जे जे गुणगणे नत्कृष्टो गुंण होय ते आराधे ते सर्व-श्राराधक. ३ तथा चोथे नांगे ज्ञान, दर्शन अने चारित्र, ए त्रणे लश्ने सर्वथा रीते जेणे विराध्या ते विराधक साधु जाणवा. ४ ए चार रांगा श्रावक उपर पण साधुजीनी परे जाणवा. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, पेहेला नांगाना अर्थमां तथा टीकामां बालतपस्वी कह्यो , ते माटे मिथ्यात्वी अन्य मतनो तापस जाणवो. तेनो उत्तर. . हे देवानुप्रीय ! अर्थमांतो बालतपस्वी कह्यो, पण पाठमां नथी कह्यो. तेमाटे पाठविना अर्थ प्रमाण न थाय; केमके बापविना बेटो केहेनो केहेवाय, ते विचारो. वली अर्थमां बालतपस्वी कह्यो, तेथी अन्यमतनोज तापस कहो, तो ते अन्यमतना तापसमां चारित्र होय के नहि ? ते कहो. तेवारे तेरापंथी केहे जे के, चारित्रतो न होय. त्यारे हे देवानुप्रोय ! अर्थमां जेम बालतपस्वी कह्यो , तेम आगल पण गीतार्थनी नेश्रायविना तपश्चर्ण निर्तिचारपणे पाले, पण श्रगीतार्थ कह्यो, एवाने ग्रहवा; पण अन्यमतना तापसने न ग्रहवा. ए अर्थने न्याये जिनमतना साधु जाणवा. बाल एटले अजाण, अने तपस्वी एटले तप-चारित्र पाले ते, तेथी बाल-तपस्वी कह्यो. वली अर्थमां बालतपस्वी कह्यो, तेथी मिथ्यास्वीने पेहेले नांगे देश-श्राराधक कह्यो बे, एम केहेसो तो, अर्थमातो अनेक वातो कही , तेपण प्रमाण करवी पमशे. वली गणायांगने नवमे गणे अर्थमा कोश्क ठेकाणे कडं के, साधुजीने दान देवाथी तीर्थंकरादि गोत्र बंधाय, अने अनेराने दीधाथी अनेरी पुन्य-प्रक्रति बंधाय, ते पण प्रमाण करवु पमझो वली निषितना बारमा उद्देशाना वितियापद-अर्थमां कडं डे के, अनुकंपा निमित्ते साधु, त्रस-जीवने बोमे तो दोष नहीं तेपण प्रमाण करो. तेमज निषितसूत्र मध्ये घणा बोलनां प्रा. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) + सिद्धान्तसार.. यश्चित कयां बे, श्रने द्वितियापद-अर्थमां करवां कह्यां के तेपण प्रमाण करवां पमशे. इत्यादिक घणा बोल टीकामां तथा अर्थमा पारथी श्र. णमलता कह्या , तेपण प्रमाण करवा पमशे. तेवारे तेरापंथी पण एम कहे डे के, जे मूलपाथी मले ते अर्थ प्रमाण जे. तो हे देवानुप्रीय ! " बालतपस्वी" ए कया पाउनो अर्थ के ? पाठमां तो "नवरए" एटले पापथी निवयों एम कडं बे, अने मिथ्यात्वी पापथी निवत्यों नथी. मिथ्यात्वीने सूत्रमा गमगम “ एकान्त बाल, एकान्त अमित श्रने एकान्त अपचखाणी" कह्या . ए न्याये पेहेला नांगामां अन्यमती तापस मिथ्यात्वीने न जाणवा, पण (जनमतना श्रगीतार्थ साधु जाणवा. वली तेरापंथी, मिथ्यात्वीने पेहेला नांगामां देशथकी आराधक कहे , तेने पुबीए बीए के, अहींयांतो ज्ञान ने शील, बे बोलथी चोनंगी थ . ते ज्ञान कयुं तत्व ? अने शील कयुं तत्व ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के, ज्ञानतो संवर तत्व , अने शोल ते निर्जरानी करणी के. एम कहे . ते मिथ्यात्वीने पेहेला नांगामां स्थापवासारु कहे बे. तेदने फरी पुबीए बीए के, ज्यारे पेहेला नांगामां मिथ्यात्वी, त्यारे बीजा नांगामां कोण ? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, चोथा गुणगणावाला श्रवृत्ति-सम्यष्टी . एम कदे , तेमने कदेवू के हे देवानुप्रीय ! पेहेले नांगे मिथ्यात्वीने शील नाम निर्जराथी आराधक कहोगे, तो बीजे नांगे अशीलवंत कह्यो . ए लेखे समदृष्टिने निर्जरानी नास्ति यश. वली श्री कृष्णमाहाराज, श्रेणिकमाहाराज तथा इंसादिक समदृष्टि दवता श्री तीर्थंकरादिकने वंदणा करे, शुज जोग वरतावे, तेने नर्जरा केम नहीं थाय ? वप्ती श्री कृष्ण माहाराजे तथा श्रेणिक महाराजे धर्म दलाली करी, साधुने जग्यादिक दीधी, तथा दिदानी प्राज्ञा दीधी, तेथी तीर्थकर-गोत्र बांध्यु. ए अशुल कर्मनी निर्जरा थया विना पुन्य केम बंधायुं ? ते कहो. निर्जरा विना तो चोरासी लाख जीवाजोनमां को जीव एडवो नथी, के जेने निर्जरा न थाय. तमे एवा जुग अर्थ केम Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( ७३ ) करो ढो ? वली चीजे जांगे ज्ञान, दर्शन अने चारित्र, ए त्रण सहित साधुने सर्व राधक देशो तो, शील नाम निर्जरानुं कहो बो; चारित्र क्यांथी न्युं ? केमके चारित्रनी करणीथी तो निर्जरा थाय, पण निर्जरानी करणीने तो चारित्र न केहेवाय. हे देवानुप्रीय ! श्रड़ियां तो शील नाम चारित्रनुं वे, छाने आराधनामां पण चा रित्र आराधना कही बे. पेहेला जांगावालो चारित्रनो आराधक बे, बीजा जांगावालो ज्ञान दर्शननो प्राराधक बे, त्रीजा नांगावालो ज्ञान, दर्शन ने चारित्र, ए त्र बोलनो आराधक बे अने चोथा जांगावालो त्रणे बोलनो विराधक द्रव्यलींगी जावो. दवे जे पेहेला जांगामां निर्जरानी करणी करे, तेवा मिथ्यास्वी तापसने कहे, वीजा प्रांगामां अत्रति समष्टिने कड़े, त्रीजा viगामां साधु कहे, अने चोथा जांगामां बाकीना मिथ्यात्वी ने कहे, तेने पुढवुं के, बीजा जांगावालाए छाने चोथा जांगावालाए विराध्युं शुं ? तेवारे तेरापंथी देबे के, पापना त्याग नथी, अने पापनां काम करे, ते विराधक कहीये बीए, तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! श्रावक पण पापनां ( श्राज्ञावाहानां) घणां काम करे बे. ए पण तमारे लेखे देश - विराधक बीजे जांगे वेर्या, पण श्री वी - तरागदेवेतो श्रावकने त्रीजे जांगे सर्व याराधक कह्या बे. शाख सूत्र उववार, उपाशकदशा, सुयगमांगजी, आदि घणा सूत्रमां बे. तेवारे तेरापंथी कदे के, लीधां व्रत चोरकां पाले, तेथी आराधक कला बे; पण जे लइने मांगे तेहने विराधक कहीये. एम सीधा बोले . त्यारे हे देवानुप्रय ! बीजे जांगे सम्यकद्रष्टी ने चोथे जांगे मिथ्यात्वी कहो बो, तेणे शुं वृत लइने नांग्युं ते कहो ? अहो देवानुप्रीय ! इहांतो चारे जांगामां आराधक विराधक साधुनेज का दीशेबे. तेवारे तेरापंथी कड़े वे के, पेहेला जांगामां साधु होयतो, तेने ज्ञानरहित केम का ? कारणके ज्ञानरहित तो मिथ्यात्वीज होय. तेनो उत्तर हे देवानुप्रीय ! पेहेला जांगावाला साधुने यथा दयोपशमजावे संक्षेप सम्यकथा सर ܢ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (७४) + सिद्धान्तसार.. दहणारुप शान तो बे, पण विशेष जाणपणारुप ज्ञान नथी. तेथी ज्ञा. नन। गौणता राखी, तुच मात्र सरदहणारुप ज्ञान तेने गएयु नहीं; अने चारित्र उत्कृष्टुंपाले, तेथी तेनी मुख्यता लीधी. एवा गौणता मुख्यताना शब्दो सूत्रमा घणे ठेकाणे जे. तेमां प्रथम तो नववाश्-सूत्रमा कोणिकनी राजनितिना गुण वखाएया. त्यां कडं के, "मातापीतानी सेवानो करणहार, मातापीतानां वचन नलंघे नही, मातापीतानुं दीधुं राज्य करे जे,” ए मुख्यताना गुंग कह्या; अने श्रेणिकराजा तेनो पीता ले तेने काष्टपिंजरे नाखीने राज्य लीधुं, ते अवगुण न गएयो ए गौणता. वली अनुत्तर विमानना देवताने उपशान्त-मोहना धणी कह्या. शाख सूत्र नगवतीजीमां. हवे उपशान्त-मोह सर्वथातो अग्यारमें गुणगणे ने, अने अनुत्तर-विमानना देवतामां तो चोथु गुणगणुं बे, पण बीजा दे. वता करतां मोहकर्मनी विटंबणा थोमी . घणो मोहकर्म उपशम्यो ने, अने थोमो नदयमां ने. ते थोमो नदयमां ने ते गौणतामा राखीने, घणो नपशमाव्यो ते गुण मुख्यतामां लइने, उपशान्तमोहा कह्या. ए गोणता मुख्यता कही. वली नगवती शतक बीजे उद्देशे पांचमे, तुंगीयानगरीने बालावे श्री पार्श्वनाथजीना संतानीयाना गुण कह्या, ते कहे-जियकोहा, जियमाणा, जियमाया, जियलोहा, जियइंदिया, जियनिंदा जाव जीवियास मरणन्नय विप्पमुका. जि0 जीत्या बे क्रोधने, जि0 जीत्या मोहने, जि जीती मायाने, जि0 जीत्या लोचने, जि जीती इंडियोने, जि जीती निखाने, एम जा यावत् जी० जन्म तथा म मरणना जयथी मुक्त थया ले. इत्यादिक गुण कह्या, पण संजलनी चोकमीना क्रोधादिकतो बाकी , ते गौणतामा राखीने गण्या नही; श्रने घणा क्रोधादिक जीत्या , ते गुण मुख्यतामां लश्ने, क्रोधादिक जीत्या ने एम कडं. ए गौणता मुख्यता. इत्यादिक अनेक सूत्रमा साधुजीनी स्तुति वर्णवी, त्यां मुख्यताना गुण वर्णव्या, पण नदयनाव संबंधी तुछ अवगुणने गौणतामा राख्या; पण गएया नही. एगौणता मुख्यता. वली Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. (७५) जयणाथी चाले, उठे, बेसे, सुवे, थाहार करे घने जाषा बोले, तेहने पापकर्म बंधाय नही. शाख सूत्र दसवैकालिक अध्ययन चोथे . ए पण मुख्यतानुं वचन बे. तेज समये सात कर्म बंधाय बे, ते गौलतामां राख्यां पण गएयां नहीं. ए गौणता मुख्यता इत्यादिक, सूत्रमां अनेक वचनो गौणता मुख्यतानां कलां बे. तेमज पेहेला नांगामां ज्ञानरहित कह्या, ते श्री वीतरागनां वचन तहत करी साचां माने, पण पोताने पुरु जाएं नही, तेथी मात्र सरदहणारुप ज्ञान गौणतामां राख्युं, पण गएयुं नही. ते माटे “असुयद्वं" सूत्रज्ञान रहित कह्या, अने चारित्र चोरकुं ( नत्कृष्टुं ) पाले, ते मुख्यतामां लइने श्रीजा-नागरुप देश- श्राराधक कह्याराधक केहने कहीये ? उखाना बंधकाल समये ज्ञाननां आवरण अलग थाय, तेने ज्ञाननो श्राराधक कहीये; समकितनां श्रावरण अलग थाय, तेने सम कितनो आराधक कहीये; अने चारित्रनां आवरण छालगां थाय, तेने चारित्रनो आराधक कहीये. एवं दोलतसागरकृत बामां जगवतीमां कहुं बे. पेहेला नांगामां खानखाना बंधकाले चारित्रनो राधक बे. एम चारे नांगा श्रजखाना बंधकाले जापवावली खाना बंधकाल विना जो आराधक कहीये, तो बघा गुणठापाथी लइने ग्यारमा गुणगणा सुधी चोख्खुं ज्ञान, दर्शनाने चारित्र पाले बे, एवा चार ज्ञानना घणी पण कोइक परे, अने उत्कृष्टो अर्ध- पुद्गल संसार जमे, एमकडे. शाख सूत्र जगवती शतक २५ में. वली चोनंगी पेहेलां श्राराधना कही, तेमां कथुं बे के, जघन्य ज्ञाननो आराधक, जघन्य सम्यक्तनो श्राराधक छाने जघन्य चारित्रनो श्राराधक, जो जव करे तो जघन्य त्रण, अने उत्कृष्टा करे तो पंदर जव उलंघे नही. ए न्याये खानखाना बंधकाले जेने राधक कहीये, ते विराधक थाय नदी. नियमा ते पंदर जवमां मुक्ति जाय; अने चोखा ज्ञान, दर्शन धने चारित्रनो पालणहार कर्मने वशे विराधक थाय तो उत्कृष्टा अनंता जव करे. ए न्याये चोखां ज्ञान, दर्शन न चारित्र पाले, ते वेला विराधक संजमी कहीये, पण श्राराधक तो श्रानखाना बंध Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३) सिद्धान्तसार. कालेज कहीये; केमके तेतो जव पंदरमां नियमा मुक्ति जाय. हवे जो पेहेला जांगामां मिथ्यात्वी देशथकी श्राज्ञानो खाराधक होय तो, करलीना करवावाला सर्व जीव पंदरमे जवे मुक्ति गयाज जोइए, पण ए न मले. ए न्याये पेले नांगे नवदिक्षित् तथा गीतार्थ साधुने श्री वीतरागदेवनी श्राज्ञानो आराधक जाणवो. ए चार जांगा द्रव्य-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, श्री अव्यमां तथा द्रव्य लींगी मां पण होय बे; पण हयां तो श्रीवीतरागदेवे द्रव्य अने नाव ए बन्ने बोलो श्राश्री चार जांगा कह्या दीशे बे. माटे जिनाज्ञानो आराधक साधु, ते पेहेले नांगे जावो. हवे तेरापंथी, पेहेले जांगे मिथ्यात्वीने देशथकी श्रज्ञाना धारा धक ए वास्ते देबे के, आज्ञामांहेलो धर्म आराधे तेनेज पुन्य बंधाय श्राज्ञाबादार पुन्यनो बंध मात्रता नथी. तेथी मिथ्यात्वीने पहले जांगे कहे. हवे जुर्ज ! पेहेले नांगे मिथ्यात्वीने श्राज्ञानो आराधक कहे, तेनी श्रद्धा चोथा जांगामां जम्मूलथी जुठी देखाय बे. तेनो न्याय कहे :- हे देवानुप्रय ! सर्व चोरासी लाख जीवाजोनने निर्जरा होय दें, ने समे समे पुन्य बंधय बे, पण एवो कोइ जीव नथी के जेने निर्जरा न चाय, के पुन्यन बंधाय. ए लेखेतो निगोदादिकमां सर्व जीवने निर्जरा थाय बे, पुन्य बंधाय बे, ते पेहेला जांगामां आव्या. बीजा नांगामां वृति समदृष्टिने कहोबो, अने त्रीजे नांगे साधुजीने कोबो, तेमज श्रावकने पण केता दशो. ए सर्व संसारत्था जीव तमारे लेखेतो त्रण नांगामां खावी गया. हवे चोथा जागामां कया जीव रह्या ? ते बतावो . त्यारे जवाबदेवा श्रसमर्थ. वली चोथा जांगावाला जीवने जगवंते सर्व विराधक ( श्राज्ञाबाहार ) कह्या बे, तेने तमारे लेखेतो निर्जरा याय नहीं, तेम पुन्य पण बंधाय नही. दवे संसारमां एवा तो कोइ जीव नथीं के जेने पुन्य न बँधाय. ए न्याये चोथा जांगावाला जीव श्राज्ञाबाहार वे अने श्राज्ञाबाहार पुन्य बंधय बे. हवे जे श्राज्ञाबाहार पुन्य बंधा नथी मानता, लेमने सूत्रबल पुरुं देखातुं नथी वली जेम गहुं साथै पराल (खाली) पाय, तेम श्राज्ञामांदेला धर्मनी साथे पुन्य बंधा माने, ते लेखेतो कोइ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार जीव त्रण कालमां मोक्ष जाय नहीं; कारणके जेम गहुँनी साथे निश्चे पराव निपजे, तेम धर्मनी साथे निश्चे पुन्य बंधाय. ते पुन्य जोगवतां राग केषथी पाप बंधाय, ते पाप तोमवाने माटे करणी करे, तेथी वली पुन्य बंधाय. ए न्याये जीव उंचे गुणगणे चढे नही, ने त्रण कालमां मोक पण जाय नही.. हे देवानुप्रीय ! ए वात केम मले ? कारण के धर्मतो श्रावता कर मने रोके, ने आगला कर्मने तोमे तेने कहीए; अने पुन्य-पाप तो श्राअनावमां बंधाय . ए श्राश्रव-जावने तेरापंथीना बनावेला तेरछारमां अंभवा जोग कह्यो . अहो ! केQ कपट वचन. को ठेकाणे श्राश्रवभाषने माझामां कहे, कोई उकाणे श्राज्ञामांहेलो धर्म कहे, श्रने को ठेकाणे तेने गंमवा जोग पण कहे. माह्या दो ते वीचारी जोजो पू. न्याय मिथ्यात्वीनी करणी मोदनो मार्ग(धर्म) नथी, तेम जिन अङ्गाना शासकपणामां पण नथी. शाख सूत्र उतराध्ययन था एमे. माथा ४२मी। घोरा समं च इत्ताणं, अन्नं पडेसि यासमं; श्हेव पोस हर, नयाहि मणुया हिवा. ॥४२॥ गाथार्थः-घो बोमतां अत्यंत दोहीलो एवो ग्रहवास बोनीने तेषकी अ० अनेरु श्राश्रम (दिक्षारुपी चारित्र) लेवातुं वान्छे डे, पण ऐ तुजने जुक्त नथी. ३० ए ग्रहस्थाश्रममा रह्यांथकां आम चौक्सान विक पर्वने विषे पोसा करवाने हे मनुष्याधिपति ! तुं तत्पर था. एय मह निशामित्ता, देन कारण चो; त नमीराय रिसी, देविंद इण मब्बवी. ॥४३॥ गाथार्थः-ए० पुर्वोक्त अर्थ (इंजनुं वचन) नि० शांजलीने हेमा इंस्थाश्रममा जे जे धर्म श्राचारतां दोदीलो ते धर्म, जे धर्मना बर्स: होष तेणे आधार. इत्यादिक हे हेतु कारणे चो प्रेयों थको. तात्यार पीमा नमिराज ऋषि देण् देवें सक्रेन्ड प्रत्ये एम बोलता हका... Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८ ) + सिद्धान्तसार वालो, कुसग्गेणं तु मुंजए; घर सोलसं ॥ ४४ ॥ मासे मासे सो सुखाय धम्मस, कलं गाथार्थः -- मा० मासमास खमणने पारणे जे कोइ छा विवेकी ग्रहस्थ कुछ माजनी खण। उपर जेटलुं अनाज श्रावे तेटलुं पारणे जमे, तोप न० ते सूत्रमांकां ते सम्यक्त तथा चारित्र धर्मनी सोलमो कलाए वे नही, तथा सोमें जागे पण यावे नही. नावार्थ:- हवे जु ! मिथ्यात्वी बाल प्रज्ञानी मासमास खमनां पारणां करे, अने पारणे माननी श्री माथे आवे एटलो आहार जोगवे, तोपण श्री केवलीए धर्म कधुं तेनी सोलमी कलाने श्रमजागे पण आवे नही, एम कयुं. ए न्याये मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञारूप धर्ममां नथी, अने मासमास खमण तपथी पुन्य बंधाय ते. ए न्याये बादार पुन्य बंधय बे. वली मिथ्यात्वीनी करणी ए न्याये श्राज्ञामां नथी. शाख सूत्र याचारांग श्रुतष्कंध १ ले ० चोथे उद्देशे चोथे . ते पाव. आयाण सोय गढिए वाले प्रवोचिन्न बंधणे प्रण निक्कतं संजोए तमसि विजार्ज प्रणाएवंत्रोणत्थि त्तिवेमि जस्स नचि पुरापबा मझे तस्स कनसिया ॥ अर्थः जे कर्म था० श्रववानां सो० मिथ्यातादिक श्रोत्रने विषे गृद्ध दे, ते बा० बाल प्रज्ञानी. ते वली केवो बे ? ० अष्ट प्रकारे कर्म जेणे बेद्यां नथी तेथ सेंकमा गमे जन्में कर संसार परिभ्रमण करे वली ते केवो बे ? ० जेणे बोमया नथी सं० धन धान्य, द्विपद चतुःपदादि संजोग तथा त० मोहरूपी अंधकारने विषे श्र० जाएयो नथी श्रात्महित जेणे, तेने श्र० मोहना नपायरुप तीर्थंकरनी श्राज्ञानो किंचितमात्र लान नथी. ति० श्री सुधर्मास्वामी कहे बे एम हुं कहुं हुं. वर्तमानकाले तेने श्राज्ञानो लाभ नथी, एम कयुं. हवे श्रागमे काले पपा ज्ञानो लान न थाय, एवं कहे बे. ज० जेने पूर्व जन्मे बोधमे लाज नभी, तेने श्रागम्ये काले पण न थाय, तो वचले काले क्यांची वा ते Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANDuration: + सिद्धान्तसार.. (७९) हवे जुर्म ! जे कर्म श्राववानां मिथ्यातादिक श्रोत्रने विषे गृह , तथा जेणे अष्ट कर्मनो बंध बेद्यो नथी, धनधान्य छिपद चतुःपदादि संजोग गेमयो नथी तथा मोहरूपी अंधकारने विषे (आत्महित) मोक्षनो उपाय जाएयो नथी, तेने श्री जिनाझानो लान नथी. त्यारे हे देवानु. प्रीय ! एकिंछियादिक मिथ्यात्वी जीव, जे ज्ञान दर्शन चारित्ररुप मोक मार्गने न जाणे, तेने श्राझानो लान्न क्याथी थाय ? ए न्याये मिथ्यात्वीनी करणी भाशाबाहार डे,अनेसाझा बाहार पुन्य बंधाय जे. वलीनगवतीजी सूत्र श०१७मे जम्बीजे मिथ्यात्वी जीवने एकान्त अधर्मी कह्या. ते पाठः-. जीवाणं ते!। किं धम्मेच्यिा अधम्मच्यिा धम्माधम्मे हिया ? गो० ! जीवा धम्मेडियावि अधम्मेहियावि धम्मा धम्मेहियावि। नेरश्याणं पुडा गो ! नेरश्या णोधम्मेहिया, अधम्मेहिया, नोधम्माधम्मेहिया एवं जाव चरिंदियाणं॥ पंचदियतिरिकजोणियाणं पुजागो! पंचेंदिय तिरिकजोणिया नोधम्मध्यिा अधम्मेहिया धम्माधम्मेज्यिा ॥ मणुस्सा जहाजीवा वाणमंतर जोइसिय वेमाणि य जहानेरश्या|अणबियाणं नंते! एव माइकइ जाव परूवेति एवंखलु समणापंमिया समणोवासया बालपंमिया जस्सणं एग पाणावि दंमेअनिखिते सेणं एगंत बालेत्ति वत्तवंसिया।सेकहमेयं नंते! एवं ? गोo! जेणंते अणनबिया एवं आइस्कंति जाव वत्तबंसिया जेते एवमादंसु मिचंते एवमादंसु अहं पुण गोयमा! एवमाश्खामि जाव परूवेमि एवंखलु समणापंमिया समणोवासया बालपंमिया जस्सणं एग पाणाएवि दंमेनिकत्ते सेणं नो एगंतबालेति वत्तवंसिया ॥ जिवाणं नंते ! किंबालापंमिया बालपंमिया ? गो! जिवा बालावि पंमियावि बालमियावि ॥ नेरझ्याणं Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) + सिद्धान्तसार, पुन्हा गो० ! नेरझ्या बाला नोपंमिया नोबालपंमिया एवं . जाव चरिंदियाणं ॥ पंचंदियतिरिक पुन्हा पंचिंदिय तिरि क जोणिया बाला नोपंडिया बालपंमियावि ॥ मणुस्सा जहाजीवा! वाणमंतरा जोइसिय वेमाणिया जदा नेरझ्या॥ अर्थः-पाठ सुगम ले माटे शब्दार्थ लख्या नथी. नावार्थः-हवे जुट ! बावीस दमकना जीवने एकान्त अधर्मी कह्या, तिर्यंचने अधर्मी ने धर्माधर्मी कह्या अने मनुष्यने धर्मी अधर्मी ने धर्माधर्मी कह्या हवे जो मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञा-मांहेलो धर्म होय तो धर्मना करणहारने श्री वीतरागदेव श्रधर्मी केम कहे ? पण धर्म तो संक्रनेज कदेवो. ते संवर मिथ्यात्वीने नथी, ते माटे तेने अधर्मी कन्या .ए न्याये मिथ्यात्वीनी करणी आझाबाहार , अने बाझाबाहार पुन्य नीपजे जे. वलो एकिंडिनो बेइंजि अनंता पुन्य वध्याथी थाय , एमज जाव पंचेजिपणुं पण अनंता पुन्य वध्याथी पामे. ए न्याये आशाबाहार पुन्य बंधाय . वली अनुयोगहार सूत्र मध्ये त्रण वक्तव्यता कही . त्यां परसमय वक्तव्यतामा सात अवगुण कह्या . ते पाठः सेकिंतं वत्तवया २ तिविदा पंतं ससमय-वत्तवया परसमय-वत्तवया ससमय-परसमय-वत्तवया. सेकिंतं ससमयवत्तवया २ जनणं ससमए आघविजा पणविजा परुविजार दंसिका निदंसिकाइ नवदंसिकाइ सेतं ससमयवत्तवया. सेकिंतं परसमय-वत्तवया २ जनणं परसमय आघविजाइ जाव नवदंसिकाइ सेतं परसमय-वत्तवया. सेकिंतं ससमय-परसमय वत्तवया २ जनणं ससमय-परसमय आघविजा जाव नवदंसिकाइ सेतं ससमय-परसमयवत्तवया. इयाणि कोनन कोवत्तवयं बइ तब नेगम सं: Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (४) गह ववदारो तिविहं वत्तवयं इबइ तं ससमय-वत्तवयं परसमय-वत्तवयं ससमय-परसमय-वत्तवयं. उधुसु 5विहं वत्तवयं इबई तं0 ससमय-वत्तवयंच परसमय-वत्तवयंच, तबणं जासा ससमय-वत्तवया सासमयं पाविज्ञा जासा परसमय-वत्तवयासा परसमयपविठा तम्मा दुविहा वत्तबया नजि तिविदा वत्तवया. तिषिद सदन्नया एगं संसमयं वत्तं श्वंति. नवि परसमय-वत्तवया नबि ससमय-परसमय-वत्तबया, कम्मा जम्मा परसमए अणहे अदेन असब्जावे असंकिरिए जमगो अणुवएसे मिगमि दसणंमि तिकडे तम्मा सव्वा ससमय-वत्तवया नदि परसमय-वत्तवया नवि उन्नयसमय-वत्तवया. सेतं वत्तवया॥ अर्थः-से केवी ते व वक्तव्यता ? प्रश्नोत्तर. त्यां अध्ययना. दिकने विषे प्रति अवयव यदा संभव प्रति नियम एकार्थनुंज वखाणवू, तेने वक्तव्यता कहीए. ते वक्तव्यता ति त्रण प्रकारे पं० परुपी तं ते कहेः- स० स्वसमय वक्तव्यता, प० परसमय वक्तव्यता अने स० प० स्वसमय परसमय वक्तव्यता. से केवी ते सस्वसमय वक्तव्यता? प्रश्नोत्तर. ज० ज्यां जेने विषे स० पोतानो सिद्धान्त आ० वखाणे, यथा पंचास्ति काय, धर्मास्तिकाय इत्यादिक. तथा प० प्रज्ञापीये (जणावीए) यथा ते लक्षण धर्मास्तिकाय इत्यादिक, तथा प० परुपे ते धर्मास्तिकाय अ. शंख्यात प्रदेशरुप इत्यादिक. तथा दं० सामान्य स्वरुपथकी देखामे ते धर्मास्तिकाय वर्णादिक रहित इत्यादिक तथा नि० अष्टान्तछारेकर) देखामीये. जेम माडलांनी गतिनो उपष्टंनक (धार) जलादिक इत्यर्थः उ० उपनयघारेकर। देखामोयें. यथा जेम जीव पुद्गलने धर्मास्तिकाय गतिनो नपष्टंजन , इत्यादिक निरदेश मात्राने देखामवे करी एम वखाणबु. से० ए स्वसमय वक्तव्यता कहो. से केवी ते पण परसमय-व Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) + सिद्धान्तसार कव्यता ? प्रश्नोत्तर. ज. ज्यां तेने विषे प० परायो सिद्धान्त श्राप वखाणे जा यावत् देखामे. जेम पांच नूत श्रात्मा इत्यादिक. संति पंच महा नुया, इदमेगेसिं आहिया; पुढवि आज तेजय, वायु आगास पंचमा ॥१॥ ___अर्थः-सं० ने पं० पांच म मोटा जु० जुत ३० श्रादेहिने विषे. पु० पृथ्वि श्रा० पाणी ते अग्नि वा वायु अने श्रा० श्राकाश, पं० ए पांच नूत. एवं पंच महा नया, तत्तोए गुत्तिए आहिया; अदतेसिं विणासेणं, विणासो होइ देदिणां॥१॥ अर्थः-ए० ए पं० पांच म मोटा नू० जुत श्रा० कह्या. श्रण अथ ते तेना विण विनाशे करी वि० जीवनो विनाश थाय. ____एम अहीयां लोकायत मत वखाण्यो, तेथी से० ए. प० परसमय वक्तव्यता कहीये. अथ से केवी ते सम्प० उत्नयसमय-वक्तव्यता ? प्रश्नोत्तर. जण ज्यां स प० स्वसमय परसमय एका वखाणीये ते नन्नय समय-वक्तव्यता कहीये. ते विषे गाथा: आगारसमा वसतावि, अरनावावि पवया, श्म दरसिण मावन्ना, सब दुःरकवि मुच्चइ ॥ व्याख्याः-श्रा० घरमां वसताथका गृहस्थ अथवा अ० अरण्य. मां वसता तापसादिक अथवा प० प्रचार्जित शाक्यादिक, ए श्रमारो मत श्रा अंगीकार कर्याथी स० सर्व दुःखथी मुंकाय. एम जीवनी शंख्या. दिक परुपे, त्यारे तेने परसमय-वक्तव्यता कहीये; अने ज्यारे एम न वखाणे त्यारे तेने स्वसमय-वक्तव्यता कहीये. तेटला माटे तेने स्वसमय-परसमय-वक्तव्यता कहीये. इ० ए वक्तव्यताने फरी वीचार बे. इं० Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (८३) इवे कोण केवी वक्तव्यताने वाले ते कहे बे-ता त्यां ने नैगम, संप संग्रह अने व० व्यवहार ए त्रणे नय, ति त्रणे वक्तव्यताने इ० वान्छे. तं ते कहे बे-स० स्वसमय-वक्तव्यताने प० परसमय-वक्तव्यताने अने स प० उन्नयसमय-वक्तव्यताने वान्डे, कारण के नैगम-नयना अनेक गमा बे, अने व्यवहार-नयवालो लोक व्यवहार माने. ते लोकने विषे सर्व प्रकारनी रुढी , अने संग्रहनय नपरनी बन्ने नयथी मलतीज . जा रुजुसूत्रनय प्रथमनी त्रण नय करतां अति विशुद्ध जे. तेटला माटे ते दुबे नेदनी व वक्तव्यताने माने, तं ते कहे -स० स्वसमय-वक्तव्यता अने पण परसमय-वक्तव्यताने माने, परं त्रीजी उन्नयसमय-वक्तव्यताने मुलथी न माने. ते न मानवानी जुक्ति कहे . त त्यां त्रण वक्तव्यताना नेदने विषे जे सण स्वसमय-वक्तव्यता कही ते सा स्वसमय-वक्तव्यतामां प० पेठी, अने जे प० परसमय-वक्तव्यता ते प० परसमय-वक्तव्यतामां पेठी. तेनणी उजयरुप वक्तव्यता. ते ए नयना मतने विषे वास्ता . त ते कारणे पु० विविध वक्तव्यता , पण न त्रि. विध वक्तव्यता सर्वथा नथी. त्यां पण संग्रहनय सामान्यवाद नैगम मध्ये अन्योक्किन्नणी ए विविका ने, अथवा सूत्रनी विचित्रगत , तेथी जुदी न कही. हवे ति० त्रणे नय शब्द १, समनिरुढ २, अने एवंजुत ३, ते रजुसुत्रथी पण अति विशुद्ध , ते नणो एक स्वसमय वक्तव्यतानेज माने , पण परसमय-वक्तव्यता तथा स्वसमय-परसमय, ए बे वक्तव्यता नथी, एम कहे . क ते शा माटे के परसमयमां अवगुण मोटो , माटे ते समदृष्टिए न मानवी. तेमज परसमयमां अ० अनर्थ जे, अ० अहेत , तथा अण् असतनाव , अ० प्रक्रिया बे, पण दान, शील, तप अने नावरुप सक्रिया नथी, आज्ञाबाहार बे, उ० उन्मार्ग , पण श्री वीतरागनो मार्ग नथा, अ० अणउपशमपणुं , पण उपशमपणुं नथी. मि परसमयनी वक्तव्यतामां मिथ्यात दर्शन , ते समदृष्टिने प्रसंसवा योग्य नथी. ति० एम करीने त ते माट जे नय स० साचो बे, ते स० स्वसमय-वक्तव्यताने माने, पण न० नया मानता प० अन्य Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८४) +सिद्धान्तसार.. - तिर्थना दान शील तपना शास्त्रनी वक्तव्यताने, तेमज जयसमय-वक्तव्यताने. जावनयवाला ते बनेने मानता नथी, पण एकान्त नथी. से० ते व वक्तव्यता संपूर्ण नावार्थ:-हवे जुर्म ! परसमय-वक्तव्यतामा सात अवगुण कह्या. न्याये मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञावाहार बे, अने श्राझाबाहार पुग्य निपजे . इत्यादिक अनेक सूत्रनी शाखे करी मिथ्यात्वीनी करणी बाझाबाहारज बे, अने आज्ञाबाहार पुन्य बंधाय . ॥ इति श्राझानो प्रश्नोत्तर संपूर्ण ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्न बीजो. अनुकंपा दान तथा दया विवे. हवे ज ! जेम मिथ्यात्वीनी करणी आझाबहार बे, अने श्राज्ञाबाहार पुन्य निपजे , तेम कोइ अनुकंपा लावी गरीब-रांकने दान दे, तथा मरता जीवने जबराश्थी, मुलाएजाथी (शरमावीने) अथवा पैसा श्रापी जोमावे, ते करतव्य आझाबाहार बे; पण जेम मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञाबाहार , श्रने शुनजोगथी तथा कायाकष्टथो पुन्य बंधाय के, तेम आशाबाहारना दानमां, जीव गेमाववामां, तथा अनुकंपा शुनजोगथी पुन्य बंधावानो नाकारो नथी. तेवारे तेरापंथी कहे के, “ तरसे मरता जीवने अनुकंपा लावी काचे पाणी पाय, काचुं अनाज खवरावे, रसोइ करीने जमाने, पेटी थापे, कबुतरने दाणा खवरावे, पाणीनी परब बंधावे, दानशाला बंधावे तथा मारकुट करी नासी दोमी वायुकायने हणी जीव जोमावे, इत्यादिक अनेक प्रकारना जीवनी घात सहितना प्रश्न, दान-दया नगववाने वास्ते पुढे , अने एम कहे के, घणा एकिंपिजीवने हणी एक पंचिंजि-जीवने शाता उपजाववामां पुन्य नथी, एकान्त पाप के कारणके ज्यां जीवनी घात होय त्यां शुनजोग नथी, धर्म नथी, आज्ञा नथी अने पुन्यनो लेश मात्र नथी. साधुनगवंततो बकाय-जीवना पीहर , कायना जीवने सरखा जाणे जे. ते पांच स्थावर एकिंधिनी घात करी एक पंचिंजिजीवने शाता नपजावीने पुन्य मानवं, शुनजोग मानवो, ए प्रो वीतरागनी वाणी नथी." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! काय जीवनी हिंसानु पाप शांजली, कोइ क्षत्री रजपुत प्रमुख तमारी पासे प्रावीने कहे के, कांदा मुखाना गोड प्रमुः Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) + सिद्धान्तसार खमां एकिछि अनंता जोव , तेमां जो घणुं पाप होयतो ते गेमावो, अने जो शीकार (पंचिंति जीवनी हिंसा)मां घणुं पाप होयतो ते गेमावो, • ए मांथो एक गेमशु. आपनी मरजी होय ते बोमावो. त्यारे तमे शेना पचखाण करावशो ? ते कहो. कारणके प्रजुए पण श्रावकने पेहेला व्रतमां त्रसजीव मारवाना त्याग कराव्याडे, पण घणा अशंख्याता अने अनंता जीव जाणीने पेहेला एकिंपिजीव मारवाना त्याग केम न कराव्या ? पण त्रसजीवनी पुन्याश् एकिपिथी अनंतगणी वधारे डे. तेने हणतां वैषना पुष्ट रुष प्रणाम घणा प्रवर्ते, तेथी तेने हणतां घj पाप लागे, ते टालवा माटे त्रसजीव न हणवानुं पेहेला व्रतमां कडं. वली पंचिंजिजीवनी घात करे तो नर्कनुं धानखं बांधे एम कडं बे, (शाख सूत्र गणायांग गणे चोथे तथा जगवती शतक आठमानेउद्देशे नवमें.) पण एम नयी कह्यु के, एकिंधि घणा जीवनी घात करतो नर्कनुं धानखं बांधे. हे देवानुप्रीय ! जो पंचिंजिने मार्यानुं पाप घj हशे, तो तेने बचाववानो लाल पण घणो दशेज. तमे बनेने सरखं पाप केम कहो हो? वली तेरापंथी एम पुढे के, कायना जीव खाधामां शुं ? खवराव्यामां शुं ? अने खाताने नलो जाएयामां शुं ? तेमज हण्यामां शुं ? हणाव्यामां शुं ? अने हणताने नलो जाण्यामांशुं ? तेनो उत्तरः हे देवानुप्रीय ! बकायना जीवतो श्ररुपी अशंख्यात प्रदेशी जे. तेतो मार्या मरे नही, अने पुन्यपापनी पक्रतीरुप शरीरादिक प्राशने तमे जीव मानता नथी. ए लेखे तो बकायना जीव खाधा खवाय नही, हएया हणाय नही, अने हएयाविना पाप लागे नही.ए लेखे तो तमारो नास्तिक मत ठरशे, केमके तमे जीवने एकान्त नये अरुपी मानो गे तेयी तेने पुन्य पाप लागे नही; अने अमेतो श्री वीतरागदेवे व्यवहारनयमां कायाने जीव कह्योडे, सचित कही ले तथा आत्मा कही, ते प्रमाणे मानीये बीए. माटे पूर्वोक्त दोष अमारे न थावे. हवे कायाने जीव, Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सिद्धान्तसार, (८७) सचित अने आत्मा कह्यो . तेनी शाख सूत्र नगवती शतक तेरमे उद्देशे सातमे. ते पाठः आया नंते!काय अन्नेकाय?गो!आयाविकाय अन्नेविकाय. रुविनंते!काय अरुविकाय?गोरुविविकाय अरुविविकाय. एवं एकेक पुन्हा ? गो ! सचित्तेविकाय अचित्तेविकाय जीवेविकाय अजीवेविकाय जीवाणविकाय अजीवाणविकाए. पुविं नंते ! काय पुना ? गोo! पुस्विंपिकाए काश्यमाणेविकाए कायसमय विश्कतेविकाए पुविविकाएनियर काश्चमाणेविकायनिय काय समय वीइकंते विकाए निघ. कश विदेणं नंते? काए पंगोळ! सत्तविहेकाएपंगतं० उरालिय जरालियमिसिए वेनविय वेनवियमिसिए आदारए आहारमिसए कम्मए. ॥ अर्थः-अनंतरे मननुं निरूपण कयु, ते मन काया थकीज होय. एटलामाटे कायर्नु निरुपण करेले. श्रा० श्रात्मा जंग हे जगवान ! का काया ने ? के अ० अनेरी ते काया ले ? कायाए कर्यु ते काया नोगवे? के अनेरे कयु ते काया नोगवे ? इति प्रश्न. नत्तर. गो हे गौतम ! ० श्रात्माने पण कथंचित प्रकारे काया कहीये, कारण ते खीरनीरनी परे, अग्नि-लोह पीमनी परे, अथवा कंचन-उपल (पथ्थर ) नी परे देहथी जिन्न नथी. एटलामाटेज काया स्पर्श थयाथी आत्माने संवेदन थाय. एटलावास्तेज कायाए की, नवान्तरने विषे आत्माए वेदीथे. तथा अन्ने० ए जीवथी अनेरी पण काया होय. अत्यंत अन्नेद होयतो शरी. रना अंश छेदन कर्याथी, जीवना अंशनो बेद प्रसंग थाय. तेल थयाथो वेदना संपुर्ण थाय. तथा शरीरना दाहे श्रात्माना दाहनो पण प्रशंग थाय. तेवारे परलोकना अनावनो प्रसंग थाय. एटला माटे कथंचित् प्रकारे पारमाथी अनेरी पण काय . इहां कोइएक एम व्याख्यान करे Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८८ ) + सिद्धान्तसार. , कार्म का श्रीने आत्मा काय वे. ( ते कार्मण कायने छाने संसारी जीवने मांहोमांही अव्यजिचारपणेकर स्वरूप वे तेथी ) एक तथा अन् नदारीकादि कायनी अपेक्षाए, जीवथी खनेरी पण काय बे, तेने मुकवाथी तेनो नेद थाय. रु० रुपी नं० हे भगवान ! का० काय बे ? के ध्रु० रुपी कायबे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० दे गौतम ! रु० स्थूल शरीरनी अपेक्षाए रुपी पण काय बे, अरुण कार्मण शरीर शुक्ष्म पुदगल ( चतु प्रग्राह्य ) नजरे खावे नही, तेनी अपेक्षा रुपी पण काय . एवं एम पूर्वोक्त प्रकारे ए० एकेक सूत्रने विषे पु० पुढा करवी एम. सचित हे जगवान ! काय बे ? के अचित्त काय बे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम! स० जीवीत श्रवस्थाने विषे, चैतन्यपणार्थी सचित्त पण काय बे; अने ० मृत्यु प्रवस्थाने विषे चैतन्यना अभावकी चित्तपण काय बे. जीव, हे जगवान ! काय होय अथवा प्रजीव, काय होय ? ए प्रश्न. उत्तर. हे गौतम! जी० जीव विवक्षीत नृत्स्वासादि प्राणसहितने जीवकाय कहीये. तथा अजी० उदारीक शरीर प्रत्ये पेने जीवकाय पण कहीये. अथवा कार्मणशरीर प्रत्ये छापेक्षीने उत्स्वासादि रहित पण काय कहीये. जी० जीवने हे जगवान! काय होय ? अथवा जीवने काय होय ? इतिप्रश्न उत्तर. गो० हे गौतम! जी० जीवने संबंधी काय शरीर होय. ० अजीवने पण स्थापनादिकने काय शरीर होय. शरीरा कार इत्यर्थः पु० पुर्वे नं हे जगवान ! का०काय होय ? इतिप्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम ! पु० पूर्व (जीव संबंध कालथ की पल) पण काय होय. ( यथा जविष्टात जीव संबंध मृत्य दर दारीरनी पेरे, जीवथ पेहेली काया होय, तेमां जीव श्रावणहार बे तेम . ) काइ० जीव गर्भावस्थाए जे काया चणे ते पण काय काय काय समयने विषे कायता करण लक्षण प्रत्ये जीव व्यतिक्रान्त थयो तेने पण मृत्य कलेवरनी पैरे काय कहीये. पूर्वे हे जगवान ! काय जेदाय ? ए प्रश्न. नतर दे गौतम पुविं जीव कायपणे ग्रहण समयथी पहेलां पण, मधु घृत्यादि न्याये करी इव्य कायने नेद प्रतिक्षण पुदगल चय, छापचय जावथी Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (४९) काय नेदाय. काश्य जीवे क्रियमाण काय पण जेदाय. पुद्गलने श्रनुकणे परिशाटन नावथी शेकाता कण समुह मुष्टी ग्रहणनी पेरे दाय. का कायसमय व्यतिक्रांतने कायपणुं नूतनावपणे घृत कुंजादिक न्याये करी दे. (ते पुद्गलने तेवे स्वन्नावपणे करी). वली चूर्णीकारे काय सूत्रने विषे, काय शब्दने केवल शरीरार्थ त्यागे करी चयमात्र वाचक अंगिकार करी वखाएया. यदाह ( काय शब्द, नाव सामान्य शरीर वाची) एनो अर्थ काय शब्द सघला नावोनुं चयमात्र जे सामान्य श. रीर ते वाचक इत्यर्थः एमज आत्मा पण काय (प्रदेश संचय इत्यर्थ) तेथी अनेरो पण अर्थ, ते काय प्रदेश संचयरुपपणाथकी. वली रुपी काय ते, पुदगल संबंधनी अपेक्षाए, अने अरुपी काय ते, जीव तथा धर्मास्ति कायादिकनी अपेक्षाए. सचित्त काय ते, जीव शरीरनी अपेक्षाए. अचित काय ते अचैतन्य संचया पेक्षया. अजीव काय ते, उत्श्वासादि युक्त अवयव संचयरुप अजीवरुप. तेथी विपरीत ते जीवनी काय. हवे जीवराशी ते जीवनी काय, अने प्रमाणुं आदि राशी ते अजीवनी काय. एम शेष पण कहेवा. हवे कायानोज नेद कहे बेक केटले दे नंग हे नमवान ! का काया पं० कही ? इति प्रश्न. नुत्तर. गौण हे गौतम! सप सात नेदे काया पं0 कही तं० ते कहे जे-जण्नदारिक (इत्यादिक साते. पहेलां विस्तारे वखाएया , ते माटे शहां लेश मात्र वखाणीए बीए.) शरीरज पुद्गल स्कंधपणे उपचय मानपणाथी काय ते उदारीक काय, ते पर्याप्ताने होय. नमिण नदारीक-मिश्र, ते कार्मण संघाते, ए अपर्याताने होय. वे वैक्रिय काय, ते पर्याप्त देवादिकने होय. वेमि वैक्रियमिश्र, ए अतिपूर्ण वैक्रिय शरीर देवादीकने अपर्याप्तावस्थाए होय.आण पाहारिक निव्रतने विषे आमि० श्राहारीक-मिश्र आहारीक परित्यागे करी नदारीक ग्रहण उद्यतने उदारीक संघाते मिश्र होय ते. क कामण-काय,ते विग्रह गतिने विषे होय अथवा केवल समुद्घातने विषेजहोय. लावार्थः-ए जीव सहित कायाने जीव कह्यो. इत्यादिक अनेक सूत्रनी शाखे व्यवहार-नयमां कायाने जीव कहीये. ए न्याये श्रमेतो, Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०) सिद्धान्तसार बकायना जीव खातां, खवरावतां अने खातो होय तेने नलो जाण्यामां, तथा हणतां, हणावतां अने हणताने नलो जाण्यामां पाप कहीये बीए. तेवारे तेरापंथी कहे के, अनुकंपा आणीने उकायना जीवने खाय, खवरावे अने खाताने नलो जाणे तेमांशुं ? तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! उकायना जीव हणाय, तेनुंतो व्यवहारमा अवश्य पाप कहीये, पण अनुकंपा शुनजोग तो एकान्त पुन्य प्रकृति बंधावानुं कारण . तेवारे ते. रापंथी कहे जे के, ज्यां हिंसा होय त्यां शुजजोग नथी, पुन्य धर्म पण नथी. एम कहे जे तेनो उत्तरः हे देवानुप्रीय ! साधुने, कोइ नघामे मोंढे बोलतां दान दे, नघामे मोडे बोलीने मार्ग बतावे, तथा चित्तप्रधाने कपट करी घोमा अनेक जोजन दोमावी, प्रदेशीराजाने केशीश्रमणपासे बोलावी समजाव्यो. तथा नववाश्सूत्रमा पंचाग्नि-तापस हाथी-तापस तथा कंदमूल प्रमुखनो आहार करवावाला तापस अने जलस्नानना करणहारा इत्यादिक अनेक जीवहिंसा सहित कष्टना करणहारा, देवतामां जाता कह्या डे. एटला काम हिंसा सहित . तेमां एकान्त पाप डे के एकान्त धर्म पुन्य डे ? ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के, पाटलां काममां हिंसा ने तेनु पाप बे, पण थोडं जे; अने दानदेवाना प्रणाम, मार्ग बतावी साधुजीने शाता नपजाववाना प्रणाम, चित्त अने सुबुद्धिप्रधानना राजाने समजाववाना प्रणाम, तथा तापसोनुं कष्ट, ए सर्वना शुनजोगना प्रणाम, ते श्राझामांहेलो धर्म जे. एम कहे जे तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! ए हिंसा सहित कर्तव्यमां शुनजोगने आज्ञामांहेलो धर्म कहो बो, तेम दानमां तथा जीव बचाववामां जेटली हिंसा ते तो पाप बेज, पण अनुकंपा शुनजोगमां पुन्य नथी, ने गुण पण नथी, एम केम कहो बो ? कारणके गरीबने दान देवावालाना तथा जीव बचाववावालाना, एकिंजि-जीवने मारुं, एवा शेष प्रणाम नथी, पण Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( ९१ ) सुखशाता उपजाववाना अने अनुकंपाथी जीवने बचाववाना दयाना प्रणाम , तेथी तेने गुण केम नही निपजे ? नकाचित पापनो बंधतो रागद्वेषना प्रणामथी थाय. जो रागद्वेष विना जीव हणाय तेनुं पाप खागतुं होयतो, केवलीना शरीरथी पण हालता चालतां जीव हणाय बे, तथा जलमा सिका कह्या , तेमने पण पाप लाग्युं जोशए. वली जयणाथी साधु हाले, चाले, बेसे, सुवे, तेथी पापकर्म बंधाय नही, एम दशवैकालिकसूत्रमा कडं . जो एम पाप लागतुं होयतो, जयणाथी हालतां चालतां जीव हणाय, तेनुं पण पाप साधुजीने लाग्युं जोश्ए. पण हे देवानुप्रीय ! श्री वीतरागदेवेतो, एटले ठेकाणे रागद्वेषना प्रणाम नथी तेथी, पाप बंधाय एवं कडं नथी. रागद्वेष एज कर्मबंधनुं कारण वे. तेमां केष तो एकान्त पापबंधनुं कारण . हवे रागना बे नेदःअप्रशस्त-राग श्रने प्रशस्तराग. तेमां अप्रसस्तराग तो पाप बंधावानुंज कारण बे, श्रने प्रशस्तराग पुन्य बंधावा, कारण ले. वली रागद्वेष विना पुन्य पाप बंधाय नहि. ते कारणथी दान देवावालाना तथा जीव बचाववावालाना, एकिछिने इणवाना द्वेषनाव नथी, पण जीवने शाता उपजाववानो प्रशस्तीराग डे; अने अनुकंपा शुनजोग दयाना प्रणाम बे, ते पुन्य-प्रक्रतिनुं कारण बे. तेवारे तेरापंथी कह के, “ रागशेष तो अढार पापमां . दया पालवी, जबराश्थी जीव बोमाववो, अने दान देवं. एक माथे राम अने एकमाथे वेष, ए रागद्वेषना चालातो एकान्त पाप बंधावानुं कारणले. अने पुन्य तो एकान्त शुन्न जोगथीज बंधाय." एम कहे तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! शुनाशुन जोग तो पुन्यपापना पुद्गल नेला करे , अने बंध तो रागद्वेषनो चोकमीथोज पमेजे. क्रोध, मान, राग अने वेषथीज पापनी स्थिति बंधाय; अने माया, लोज तथा प्रशस्तीरागथी पुन्यनी स्थिति बंधाय. जो शुनजोगथीज पुन्य बंधावू मानो तो ११ में, १५ में अने १३ में गुणगणे नत्कृष्टो शुनजोग बे. त्यां शाता-वे Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९२ ) + सिद्धान्तसार दनीनोज बंध ले. ते शाता-वेदनीना बे नेदः-संप्राय अने हरियावही. शाखसूत्र पन्नवणा पद २३ में, तथा नगवती शतक त्रीजे नद्देशे त्रीज. तेमां शरियावही-शातावेदनी पुन्यप्रक्रति बे समयनी स्थितिनी बंधाय, अने संप्राय-शातावेदनी कषायसहित पलसागरनी स्थीतिनी बेतालीस पुन्यप्रक्रति मांहेली ११में, १श्में अने १३ में गुणगणे एके बंधाय नही. जो शुनजोगथी पुन्य बंधाय तो वीतराग-संजमीने (राग केष रहितने) त्रण समयथी श्रधिकी शरियावही टलोने, बेतालीस पुन्यप्रक्रति मांदेली एके केम न बंधाय ? ते कहो. हे देवानुप्रीय ! रागविना एकला शुजजोगथी पुन्य बंधाय नही. शुनजोग तो शुन्न पुद्गलने नेला करे, अने प्रशस्त-रागथो चणे ( स्थिति ) बांधे. शाख कर्मग्रंथ तथा जगवती शतक बीजे नद्देशे पांचमे, तुंगीयानगरीना श्रावकोना अधिकारे श्री पार्श्वनाथ नगवानना पांचसे संतान्या तुंगीयानगरीए पधार्या, तेममे तुंगीयानगरीना श्रावके, संजम अने तपनां फल शुं बे, ते विषे प्रश्न पुण्या. ते पाठः तएणते समणोवासया थेराणंजगवंतो अंतिए धम्मं सोचा निसम्य दन्तुहा जाव दियया तिखुत्तो आयाहिणं पयादिणं करेइश्त्ता एवं वयसी संजमणं नंते! किं? फले तवेणं नंते!किंफले?ततेणं थेरानगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी संजमेणं अद्यो अणण्हयफले तवे वोदाणफले. तएणते समणोवासया थेरेनगवंते एवंवयासी जणं नंते! संजमेणं अणण्यफले तवे वोदाणफले किं पतिएणं नंते! देवा देवलोएसु उववद्य. तवणं कालियपुत्ते-णामं अणगारे तेसमणोवासए एवं वयासी पुत्र तवेणं अधो देवादेव लोएसुउवव द्यश्तहणं मेहोणाम थेरे तेसमणोवासए एवं वयासी पूछ संजमेणं अयो देवादेवखोएम उववद्यशे तहणं Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. - आणंदर किए णामं थेरे तेसमणोवासए एवं वयासी कम्मि याएअधोदेवादेवलोएसुनववद्यइ.तबणं कासवेनाम-हेरे तेसमणोवासए एवं वयास संगियाए अद्यो देवादेवलोएसु नववध पुछ तवेणं पुत्र संजमेणं कम्मियाए संगियाए अद्यो देवादेवलोएसु नववद्यई. सच्चेणं एसअहे नोचेवणं आयनाव वत्तवयाए ॥ अर्थः-त० तेवारे ते स श्रमणोपासक श्रावक थे स्थिवरनगवंत ज्ञानवंतनी अंग समिप ध विविध धर्म सो सोनल्याथी नि० अतिशय सम्यक्प्रकारे हा हर्ष पाम्या, (वचनने विषे विश्वास जे जेने तथा अत्यंत शांतलतां श्रादर डे जेने ते) जाग यावत् हि० हृदयने विषे साधु उपदेश देवाथी पोतानो धन्यवाद पामताथका ति त्रणवार आ जमणा पासाथी मामी प० प्रदक्षणा का करे, करीने ए० एम व० केहेता हवा. संग संजमर्नु नं० हे नगवान ! किंग शुं फल होय ? थने तक तपर्नु नंग हे नगवान ! किंग शुं फल होय? इतिप्रश्न. तण तेवारे ते थे० स्थिवरजगवंत, ते स७ श्रावकोप्रत्ये ए० एम केहेता हवा. संग संजमर्नु अ अहो थार्यो ! अण अनाश्रव फल एतावता नवां कर्मने श्रावतां वारे. त तप, फल वो पूर्वक्रत कर्मनुं बेदवु एतावता जुनां कर्म मुलगां दे. त० तेवारे ते स श्रमणोपासक, प्रश्नना नुत्तर शांजलीने थे स्थिवरनगवंत प्रत्ये ए० एम केहेता हवा. जण जो जंण्हे नगवान ! सं० संजमर्नु अ० अनाश्रव फल जे आवतां कर्मने वारे ते फल कह्यु बे, अने त तपनुं वो पूर्व संचित कर्मनुं निर्जवारुप फल कडं , तो किं शा कारणे नंण् हे जगवान ! देव देवता देवलोकने विषे न उपजे? तप संजमने युक्तरीते तेना अकार्णथी. इति अनिप्राय. तण त्यां ते साधुऊना समुदायमां का वमा कालीकपुत्र नामे अ० अणगार ते ते श्रमणोपासको प्रत्ये ए० एम केहेता हवा. पुण् पूर्व तपेकरी श्र० अहो आर्यों ! दे० देवलोकने विषे देवतापणे उ० उपजे. पूर्व शब्दे वीतराम Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९४ ) + सिद्धान्तसार. अवस्थानी अपेक्षाए सरागपएं ( सरागजावे तप करे ) ते पेलूं. तर ते साधुना समुदायमां मे० मेहेलनामे थि० स्थिवर श्रुतवृद्ध ते० ते स० श्रमणोपासको प्रत्ये ए० एम कहे. पु० पूर्व संजमेकरी श्र० हो श्रार्यो ! to देवलोक विषे देवपणे उ० नपजे. एटले सराग संजमे तथा तपेकरी देवपणुं पामे. ( रागना अंशथी तथा कर्मबंधना हेतुथी जयाख्यात नथी समाकादिक यथाख्यात चारित्रयी पूर्वे बे तेथी). तात्यां ते साधुना समुदायमां श्रा० श्राणंदरखीत नामे थे० स्थिवर साधु ते ते स० श्रमणोपासको प्रत्ये ए० एम केहेता हवाः क० कर्मपणे कर्मने विकारे ० अहो यार्यो ! दे० देवलोकने विषे देवतापणे न० नपजे. (एटले संमस्त कर्म जेथे कय कर्यां नथी, पण शेष कर्म बाकी रह्यां डे तेथी). त० त्यां (ते साधुना समुदायमां) का०काश्यपनामे साधु श्रुतवृद्ध ते ते स० श्रमणोपासको प्रत्ये ए० एम के देता हवाः सं० संगेकरी ० अहो श्रार्यो ! साधु दे० देवलोकने विषे देवतापणे उ० उपजे. मनुष्यादिकना संगे व तोको सरागपणा जणी, द्रव्यादिकने विषे संग करतोयको संजमादि युक्त बतुं कर्म बांधे, तेथी ते देवलोकमां जाय. ए चार. पु० एम सरागतपेकरी तथा पु०सं० सरागसंजमे तथा चारित्रेकरी तथा क० शेष क करी तथा स० मनुष्य द्रव्यादि संगेकरी अ० अहो श्रार्यो ! देऊ देवता देवलोकने विषे न० नपजे. स० साचो ए० ए अर्थ. वली ए अर्थ यथार्थ कह्या बे, पण नो० नहीं चे० निश्चे श्र० श्रात्मजावनी व० वक्तच्यता करी का. एटले पोतानी बुद्धि कल्पनाएकरी नथो कह्या. जावार्थ:- हवे जु ! संजमथी कर्म रोकवां कह्यां, तपथी आगलां कर्म बोदां पावां कह्यां, खपाववां कह्यां, अने सरागपणाथी पुन्य-प्रः ऋतिरुप देवतानुं श्राखुं बंधा कयुं. ए न्याये प्रशस्तरागथी पुन्य बं. वाय. ते पेहेला गुणठाणाथी मांगोने दसमा गुणवाणा सुधी राग द्वेष बे, तेथी जब स्थितिना पुन्य पाप बंधाय; श्रने दसमा गुणवाला सुधी शुजजोग राग सहित बे, तेथी पुन्यप्रक्रति त्रण समयथ अधिक स्थि Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार (९६) तिनी बंधाय. श्रागले गुणठाणे राग नथी, तेथी बे समयनी स्थितिनी इरियावही क्रिया बंधाय. वली क्रोध, मान, माया ने लोजय। पुन्य पाप बंधाय. तेनी शाख, सूत्र जगवती शतक सातमे उद्देशे पेहेले. ते पाठःअणगाररसणं ते! अणागबमाणस्सवा चिठमाणस्सवा पिसीयमाणस्सवा तुयमाणस्वा प्रणात्तं वयं पमि - कंबलं पाय गिन्हमाणस्सवा निस्कियमाणस्सवा तसणं नंते ! किं इरियावदीया - किरियाका संपराइयाकिरियाकas ? गो० ! नो इरियावही या किरियाकद्यइ संपराइया - किरिया कद्यइ. से केाठेणं नंते! गो० ! जस्सणं कोद माण माया लोन वोबिसानवइ तस्सणं इरियाव - दीया किरियाका जस्सणं कोह माण माया लोना वो विन्नानवर तस्सणं संपराइया - किरियाकाइ यहासुत्तरीयमाणस्स इरियावदीया - किरियाकाइ नसुत्तं यमाएएस्स संपराइया - किरियाका सेणं उसुत्तमेवरीयंति सेतेां ॥ 7 अर्थः- अ० पगारने नं० हे भगवान ! कर्मबंध चिंतासहित अणगारनुं सूत्र तथा वली अणगाराधिकारथी तेनां खानपान जोजननां सूत्र कहे बे:- छा० उपयोग रहित चालता थकाने, चि० नजा रहेता थकाने, लि० बेसताथकाने, तु० सुताथकाने, अ० उपयोग रहित व वस्त्र प० परिघा पात्रां कं० कांबला पा० रजोहरणा, पुंजली तथा बीलावनानां वस्त्र [ro लेताथकाने, नि० मुकताथकाने, (त० तेने) नं०हे जगवान ! कि० शुं इ० इरियावदी - क्रिया लागे ? के सं० संप्रायनी क्रिया लागे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम! तेने नो० इ० इरियावदी - क्रिया न लागे. ते इरियावदी - क्रिया नृपशान्त तथा कायक वीतरागीनेज होय तेथी. सं० संप्रायनी क्रिया लागे. से० ते शा अर्थे! नं० हे जगवान ! Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) 4 सिद्धान्तसार एम कयुं ? गो० हे गौतम! ज० जेने को० क्रोध, मा० मान, मा० माया ने लो० लोन, वो० ए कषाय विछेद ( उपशान्त तथा कय ) थया होय त० तेने ५० इरियावदी क्रिया लागे. ज० जेने को० क्रोध, मान, माया ने लाज, ए कषाय अ० विछेद गया न होय त० तेने सं० संप्रायनी क्रिया लागे. अ० जथा जेम सूत्रमां कहुं तेम चालताने, इ० इरियावी. क्रिया लागे ने न० विपरीत चालताने सं० संप्रायनी क्रिया लागे. से० ते ० नृत्सूत्री उपरांगे चाले बे, से० ते अर्थे एम कयुं. भावार्थ:- हवे जुर्छ ! जेना क्रोधादिक चार विछेद गया, तेने इरिया हि क्रिया कही, अने क्रोध, मान, माया ने लोन सहित बे, तेने संप्ररायनी २४ क्रिया कही. तेवारे तेरापंथी कड़े वे के, इहांतो क्रोधादिकथी संप्रायनी क्रिया कही बे, पण पुण्य बंधातुं कथं नथी. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रय ! समवायांगसूत्रमां श्रश्रवना पांच जेद कह्या छे. तेमां मिथ्यात, वृत, प्रमाद छाने कषाय तो अशुभ कर्मनां बारणां बे; अने जोग श्राश्रवना पंदर नेद ने पचीस क्रिया बे. तेमां वीतराग-संजमीने रागरहितने तो शुभजोगथी शातावेदनी इरियावदी - क्रिया कही; शेष चोवीसने संप्राया- क्रिया कही. तेथी पुन्य न बंधाय, तो शुजाशुन कर्मना ग्रहवावाला श्राश्रवना तो पांचज नेद कह्या बे :- मिथ्यात, वृत, प्रमाद, कषायाने जोग, ते पचीस किया. तेमां पुन्य न बंधाय, तो पुन्य कर क्रिया ने कया श्राश्रवमां वैधाय ? ते कहो. हे देवानुप्रीय! चोवीस संप्रायने कषायनी क्रिया कही. तेमां प्रशस्त रागनी क्रिया अने शुभजोगथीज पुन्य बंधाय, श्रने अशुभजोगनी क्रिया द्वेष अने अप्रशस्तरागथी पाप बंधाय. ए न्याये प्रशस्त रागसहित राजजोग, तेज पून्य बंधावानुं कारण जाणवुं; पण संवर-नावमां देवतादिकनुं श्राजखं तथा पुन्यप्रक्रतिबंधाय नही. शाख सूत्र जगवती शतक पेहले नदेशे मे. ते पाठ. संवुमेनंते ! अणगारे सिद्यइ बुइ मुच्चइ परिवाइ सबका मंतंकरेइ ? गो० ! पोइसम. सेकेणद्वेणं Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (९७) - जाव अंतं न-करेति? गोण्! असंवुमे अणगारे आउयवजा सत्तकम्मपगमी सिढिल बंधणबंधान, धणियबंधण बंधाउँ पकरेंति रहस्सकाल हिआन दिदकाल हिश्या पकरेंति मंदाणुनावाने तिवाणुनावान पकरेंति अप्पपएसगान बहुप्पएसगान पकरेंति आनयंचणं कम्मं सियबंधश् सियनोबंध असायावेयणिऊंचणं कम्मं नुद्यो २ नवचिणेश अणाश्यंचणं अणवदग्ग दोहमइंचानरंत संसारकंतारं अणुपरियट्टइ. सेतेणणं गो ! असंवुझे अणगारे णोसिघ. सुवूमेणं नंते ! अणगारे सिद्य ? हंता सिवइ जाव अंतंकरेइ. सेकेणठणं नंते ! एवं वुच्च संवुमे अणगारे सिब? गो०! संवुमे अणगारे आग्यवजाओ सत्तकम्मपगमि घणियबंधणबंधान सिढिलबंधणबंधान पकरेंति दिहकालविश्आन रहसकालंटिइया पकरे तिवाणुनावा मंदाणुनावान पकरेंति बहुप्पएसगान अप्पपएसगान पकरेइ आउयंचणंकम्म न बंध असायावेयणिचंचणं नोजुद्यो २ उवचिप अणादियं अणवदग्गं दीहमदं चानरंत संसारकंतारं वीश्वयई. सेतेणठणं गो! एवं वुच्च संवुमे अणगारे सिव जाव अंतं करेंति. ॥ अर्थः-श्रण असंवृत (जेणे आवछार संध्या नथी एवा ) अ० साधु नं० हे नगवान ! सि० सिधिगमन योग्य होय ? केवल-झानेकरी जीवादिक पदार्थने जाणे ? मु० नवा कर्मेकरी बुटे ? धने प० कर्म पुद्गल क्षय करी स० आउखाने मे शेष कर्मनो अंत करे ? इतिप्रश्न. उत्तर. गो हे गौतम ! पो ए अर्थ समर्थ नही. से ते शा कारणे हे Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९८ ) सिद्धान्तसार. तम ! ० भगवान ! जा० यावत् ० अंत न करे ? इतिप्रश्न. उत्तर. गो० हे गौसंवृत ( जेणे यावद्धार संध्या नथी एवा ) ० साधु खा-कर्म टालीने ( एक जवने विषे एकवार अंतरमूहुर्त मात्र कालने विषेज श्राखानो बंध बे तेमाटे थानखं वर्ज्य ) स० सात कर्मनी प्रति सि० सिधील बंधने बांधी होय तेनां ध० गाढां अथवा निकाचित बंधन करे, २० थोमा कालनी स्थिति होय तेनी दि० दीर्घ कालनी स्थिति करे, एतावता घणी स्थितिने वधारे. मं० कर्मनो जे मंद अनुभाग (मंदरस) होय, तेने तिoतीवृ अनुभाग ( तीवृरस) करे . ० थोमो प्रदेश जाग कर्म दलीक होय ते ब० बहु प्रदेश भाग करे, कर्मनां दलीयां बधारे इत्यर्थः श्र० वली श्रखा कर्म सि० कोइक वखत बांधे, सि० कोइक वखत नो० न बांधे. ० साता - वेदनो कर्मने जु० वार वार उ० पुष्ट करे. प्रशा० जे संसारनी यदि नथी, 1 ० तेमज छांत पण नथी, दी० दीध मध्य ठे जेनी, एवा चा० चार गतिरुपी संसार कंतार ( नवरुप अरण्य उजाम ) ने विषे अ० परिमण करे. से० ते कारणे गो० हे गौतम! ० जेणे यावद्धार संध्या नयी तेवा oणगार पो० सीके नहीं; इत्यादिक पूर्ववत् केहेतुं वली गौतम प्रश्न करे बे. सं० जेणे प्राश्रवच्द्धार संध्या बे एवा ० साधु सोके? इत्यादिक सर्व केहे . ० हा गौतम ! संवृत अगार सि० सीके जा० यावत् अं० अंत करे. एम सर्व केहेतुं से० ते शामाटे जं० हे जगवान ! ए० एम० क ? के सं० सवृत पगार सि० सीजे, जाव सर्व दुःखनो अंत करे. गो० हे गौतम ! सं० जेणे यावद्वार संध्या बे एवा अ० अणगार आ० आठ कर्म मांहेलं पांचमुं श्रायु-कर्म टाली स० सात कर्मनी प्रक्रति ध० नीवम चीकली बांधी होय, तेनां सि० सिथिल (ढीलां) बंधन प० करे. दी० दीर्घकाले वेदवा जोग स्थिति होय, ते २० थोमा काले वेदवा जोग स्थिति करे. ति० तीव्र रस प्रत्ये मं० मंद रस प० करे. ब० घला प० प्रदेश होय ते अप्प० अल्प प्रदेश करे; पण आन० खा-कर्म न० न बांधे. ० अशातावेदनी न बांधे, जु० वारवार Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार ( ९९ ) ० ची नही. अ० आदि अंत रहित छा० चार गतिरुप संसार - कतारमां फरे नही. से० ते ए प्रर्थे गो० हे गौतम! ए० एम कयुं. सं० जे वा संवृती गरबे ते सि०. सीके, जा० यावत् ० सर्व कर्मनो अंत करी मोक्ष जाय. नावार्थ:-ढवे जुर्ज ! श्राश्रवनावमां सर्वार्थ सिद्ध यदि चारगतिनुं श्राखं बंधा एम कयुं, अने संवरजा मां श्रनखं न बंधाय एम कयुं. ए न्याये चोवीस संप्रायनी क्रियाने श्राश्रव जावमां कहीये; वामां देवतादिकनुं श्रानखं बंधाय. ए न्याये क्रोधादिक सहितने संप्राया- क्रिया लागे, अने तेमां प्रशस्त रागथी पुन्य बंधाय. ए न्याये दानमां तथा जोव बचाववामां अनुकंपा, शुभजोग अने प्रशस्तराग, ए पुन्यनुं कारण जाणवुं वली बकायना जीव खाय, खवरावे, अने खाताने नलो जाणे, तेमां शुं ? एम पुढे, तेने पाठा नीचे लखेला प्रश्न पुढवाः पी (१) बकायना जीव राख्यामां तथा बचाव्यामां शुं ? रखाव्यामां शुं ? अने राखताने जला जाण्यामां शुं ? (२) कोइ श्रलुएं खावा अस मर्थ बे, ते काचु सचित लंग लेतां केवलीनां वचन संज्ञार्या, श्रने प्रशंख्याता जीव जाणीने सचित बुंए बोम्युं प्रचित लुंग खाधुं. ए पृथ्विकायना जीवनी रक्षा करी, तेनुं पाप पोताने लागतुं हतुं ते टायुं मां शुं ? (३) को सचित लुंग खातो होय, तेने चित लुंए पृथ्विकायना जीवोनी रक्षा करावी अनेरानुं पाप टलान्युं तेमां शुं ? (४) ए रीते कोइ पृथ्विकायना (लुंना) जीवोनी रक्षा करताने तथा पाप टालताने नलो जाणे तेमां शुं ? (५) कोइने जग्यानी अरुण प तेथी हवेली प्रमुख जग्या कराववाना तेना प्रणाम थया. एवामां केवलीनां वचन संजाय ने बकायना आरंजनुं मोटुं पाप जाणी बोj. सीधी जग्या जाने लइने रह्यो . ए बकायना जीवनी रक्षा कीधी छाने पोतानुं पाप टाक्युं तेमां शुं ? (६) कोइ जग्या करा Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) + सिद्धान्तसार.. वतो होय तेने पोतानी जग्या रेदेवा श्रापी, बकायना जीवनी रक्षा करवी आगलानुं मोटुं पाप टलावे तेमां शुं ? (७) वली कोश जग्यानुं पाप टालतो होय तेने नलो जाणे तेमां शुं ? (७) कोश्ए केवलीनां वचन संन्नारी नुं पाणी पीने, असंख्याता अपकायना जीवनी रक्षा करी पोतार्नु पाप टाढ्यु तेमां शुं ? (ए) कोइए तिविहार अपवास कों. तेने तृषा लागी, ते तृषा सहेवाने असमर्थ, अने ना पाणीनो जोग नथी, तेथी ते काचुं पाणी पीवा चाल्यो. तेवारे को श्रावकना घेरे उनुं पाणी गरेलुं पमयुं बे, ते पाश् अपकायना जीवनी रक्षा करी आगलानु पाप टलावे तेमां शुं ? (१०) ए रीते पाणी पीने काचा पाणी- पाप टाले, तेने नलो जाणे तेमां शुं ? (११) कोश्ने स्नान करवानी मरजी थ. तेणे केवलोनां वचन संन्नारी काचा पाणीमां असंख्याता अपकायना जीव जाणी, नंनुं पाणी जाचीने लावी स्नान कयु. ए ना पाणीनी साजे अपकायनी रक्षा करी पोतार्नु पाप टाट्युं तेमां शुं ? (१५) एज रीते को स्नान करताने उनुं पाणी दर, अपकायना जीवनी रक्षा करी आगलानु पाप टलावे तेमां शुं ? (१३) वली कोश नना पाणीथी स्नान करी काचा पाणीना जीवनी रक्षा करी पोतानु पाप टाले तेने नलो जाणे तेमां शुं ? (१४) कोश् जुख सेहेवाने असमर्थ डे, तेणे केवलीना वचनथी तेनकायमां असंख्याता जीव जाणी, तैयार सुखमी लश खाइ तेनकायना जीवनी रक्षा करी पोतार्नु पाप टाट्युं तेमां शुं ? (१५) एज रीते कोश्ने रसोश्नो श्रारंन करतो जाणी तैयार सुखमी प्रमुख खवरावीने तेउकायना जीवनी रक्षा करावी श्रागलानुं पाप टलावे तेमां शुं ? (१६) तेमज को तैयार थचित वस्तु खाश, तेउकायना जीवनी रक्षा करी पोतार्नु पाप टालतो होय, तेने जलो जाणे तेमां शुं ? (१७) को शीत सेहेवा असमर्थ ले. तेने सगमी करी तापवानी मरजी थर, पण तेणे केवलीनां वचन संन्नारी वस्त्र . ढीने असंख्याता तेन-कायना जीवोनी रक्षा करी पोतार्नु पाप टास्यु तेमां शुं ? (१७) कोश तापतो होय तेने वस्त्रादिक आपी, अबाहेदो Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार, (१०१) बेनामी माला फेरवावे. ए तेल-कायना जोवनी रक्षा करावी आगलानुं पाप टलाव्युं तेमां शुं ? (१ए) एज रीते कोइ वस्त्र उंढी तेल-कायना जीवनी रक्षा करी, पोतानु पाप टालतो होय तेने नलो जाणे तेमां शुं ? (२०) तेमज कोइ, अनार्यना उपदेशथी गाम बाल्याथी, दव दीधाथी, नपजव टलतो जाणी, गाम बालवा तथा दव देवा चाल्यो; पण साधु तथा श्रावकना नपदेशथी तेमां मोटुं पाप जाणी, अचित वस्तु दानादिकनुं उपक्रम करे, अने गाम बालवामां तथा दवमां जीव मरता तेनो रक्षा करी पोतानुं पाप टाढ्युं तेमां शुं ? (३१) तेमज को गाम बालतो होय, दव देतो होय तेने सुखमी प्रमुख श्रचित वस्तु खव. रावी दान दर, ते जीवनी रक्षा करावी बागलानुं पाप टलावे तेमां शुं? (२५) एज रीते कोइ पाप टाली जीवनी रक्षा करे, तेने जलो जाणे तेमां शुं १ (५३) को उघामे मोढे बोलतां केवलीनां वचन संजारी वस्त्र प्रमुखथी जयणा करी, वायु-कायना जीवनी रक्षा करी, पोतार्नु पाप टाले तेमां शुं (२४) तेमज कोइ उघामे मोढे बोलतो होय तेने मुहपत्ति, अंगुडो प्रमुख वस्त्र दइ वायु-कायना जीवनी रक्षा करावी आगलानु पाप टलावे तेमां शुं ? (२५) एज रीते कोइ वस्त्र प्रमुखथी जयणा करी वायुकायना जीवनी रक्षा करी, पोतार्नु पाप टाखतो होय तेने जलो जाणे तेमां शुं ? (२६) को वनस्पतीनो श्रारंन करतां केवलीनां वचन संन्नारी अचित वस्तुना संजोगथी, वनस्पतीली.. स्रोत्री तथा अजमो जी इत्यादिक जीवोनी रक्षा करी, पोतार्नु पाप टोले तेमां शुं ? () एज रीते अनेरो को माणस तथा तिर्यंच, लीलोत्री खातो होय तेने सुखमी, सेक्या चणा तथा सुकुं धास प्रमुख दर वनस्पतीकायना जीवनी रक्षा करावी आगलानु पाप टलावे तेमां शुं ? (श्न) एज रीते कोश् श्रचित वस्तु खाइने वनस्पतीना जीवोनी रक्षा करी, पोतार्नु पाप टालतो होय तेने नलो जाणे तेमां शुं ? (श्ए) को मांसनो धी मांस खावाने अर्थे, तथा वेपारने अर्थे त्रस-जीवनो सीकार करता, साधु श्रावक, तथा दयावंतनो उपदेश सांजली सुखमी प्रमुख Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) + सिद्धान्तसार खाइ, श्रचित वस्तुनो वेपार करी आजीविका करे.ए अचित वस्तुना जोगयी सीकार बोमी, त्रस-जीवनी रक्षा करी पोतार्नु पाप टाले तेमां शुं ? (३०) को अनेरो त्रस-जीवनो सीकार करतो होय, तथा बोकरो कीमीयोने कचरतो होय, इत्यादिक अनेक त्रसकाय-जीवनी हींसा करतां सुखमी तथा अचित अव्य प्रमुख पूद्गल दइ त्रसकाय-जीवनी रक्षा करी बागलानुं पाप टलावे तेमां शुं ? (३१) तेमज कोश्यचित सुखमी प्रमुख खाइ तथा श्रचित पुद्गलना व्यापारे आजीविका करी त्रसजीवनी हींसानुं मोटुं पाप गेमी त्रसजीवनी रक्षा करतो होय पाप, टालतो होय तेने नलो जाणे तेमां शुं ? (३५) को श्रावकना पोषा करवाना प्रणाम थया, पण जग्यानो जोग नथी. त्यारे कोश् श्रावके पोतानी जग्या दश पोषा कराव्या. ए पांच श्राश्रव सेववा गेमाव्या तथा उकायना जीवनी रक्षा करावी आगलानु पाप टलाव्युं तेमांशुं? (३३) कोश्श्रावकना सामायक तथा पोषाकरवानान्नाव थया, पण जग्या, पुंजणी तथा मुहपतिनो जोग नथी. त्यारे कोश् श्रावके जग्या, पुंजणी, अंगुबो श्रने मुहपति दश सामायक पोषा करावीने पांच आश्रव बोमाव्या. ए बकायना जीवनी रदा करावी श्रागलानुं पाप टलाव्युं तेमां शुं ? (३४) कोश् टाबर (बोकरो) कीमीयोने कचरतो होय, तेने कोश्वरजी राखी कीमीयोनी रक्षा करावी तेनुं पाप टलावे तेलां शुं ? (३५) को मीठाश्नी चीज उपर कीमी प्रावी, तेने कुतरो खावा लाग्यो. ते देखी कोइए हलवेथी फाटकी कीमीयोने श्राघो करी. ए कीमीयोनी रक्षा करो खावावालानुं पाप टलाव्युं तेमां शुं ? (३६) को नायोथी वामो नयों बे. तेमां लाहे लागी जाणी, कोश दयावंते वामो खोलीने बलती गायोनी रक्षा करी लाहे लगाववावालानुं अव्य पाप टाढ्युं तेमां शुं ? (३७) तेमज को गाम बालतो होय तथा साहे लगामतो होय, तेने वरजी राखी बकायना जीवनी रक्षा करी श्रागलानुं पाप टलावे तेमां शुं ? (३७) साधुने कोऽष्ट फांसी देतो होय तेने कोश् दयावंत वरजी राखे. ए साधुनी रक्षा करी बागलानु पाप टसाव्यु तेमां शुं ? केमके एक साधुनी रक्षा करी तेणे अनंता जीवनी Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सदान्तसार.. रक्षा करी एम जाणवू. तेमज जे एक साधुनो घात करे, तेने अनंता जीवोनुं वेर लागे. शाख सूत्र नगवतो शतक नवमे, नद्देशे चोत्रीसमें. ते पाठ लखीए बीए:पुरिसेणं नंते ! इस दणमाणा किं ? इस वेरेणं पुढे नों शसिवरेणं पुछे ? गो०! नियमं ताव इसि वरेणं पुढे अदवा . शसि वेरेय णो सिं वरेणय पुरे॥ अर्थः-पुण् पुरुष नं० हे जगवान ! ३० रुपिने ६० हणतांथकां किं० शुं ? इ० रुपिने वेग वेरे करी पु० फरश्यो ? के नो अनेरा जीव संघाते वेरे फरश्यो ? इति प्रश्न उत्तर. गो हे गौतम ! नि नियमा ३०. रुषिने वेरे करी फरश्यो, अ अथवा इ० रुषि वेरे करीने योग अनेरा जीव संघाते वेरे फरश्यो. एटले अनंता जीव संगाते वेरे फरश्यो. : ' नावार्थः-हवे जुड़ ! एक साधुने हणे तेने अनंता जीवोनुं वेर लागे कह्यु. (३ए) ए न्याये साधुने मारतां राखे तेणे, अनंता जीवनी रक्षा करावी कहीए. अनंता जीवोनुं मारवावालाने पाप लागतुं, ते टलाव्युं तेनां शुं ? (40) को कीमो नपर पग देता होय तेने, श्रामो हाथ दर कीमीयोनी रक्षा करावी आगलानु पाप टलाव्युं तेमां शुं ? (४१) तेमज को लीलोत्री या पृश्चिकाय (मरोममाटी) उपर पग दर चालतो होय तेने वरजी राखी, पृथ्विकायना जोवनी रक्षा करावी बागलानु पाप टलावे तेमां शुं ? इत्यादिक अनेक प्रकारे जीवनी रदा क। आगलानु पाप टलावे तेमां शुं ? हे देवानुप्रीय ! घणुं पाप लागतुं जाणोने टायु अने थोमु पाप लगाव्यु, तेने श्री वीतरागदेवे धर्म-पुन्य कयु दे. ते जीवने नलो कह्यो ३. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन श्व में. कृष्ण, नील अने कापोत, ए त्रण अधर्म-वेश्या कही; अने तेजु, पद्म अने शुकल, ए त्रण धर्म-लेश्या कही. वली पन्नवणाना लेश्या-पदमां त्रण अशुरू भने Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. संक्लिष्ट ( मारी) लेश्या कही; अनेत्रण शुद्ध अने असंक्लिष्ट (जली) लेश्या कही. वली गणायांगने त्रीजे गणे, त्रण लेश्या पुर्गति-गामिनी कही, अने त्रण सद्गति-गामिनी कही. हवे श्री वीतरागदेवे द लेश्या उपर आंबानुं अष्टान्त दी, ते कहे- जणा केरी खावाने अर्थे वनमां श्राव्या. तेमां कृष्ण-लेश्यानो धणी बोल्यो के, मुलथी आंबो कापो. १ नील लेश्यानो धणी बोल्यो के, मालां कापो. २ कापोत लेश्यानो धणी बोल्यो के, माली, कापो. ३ तेजु-लेश्यानो धणी बोल्यो के, काची पाकी केरीन तोमो. ४ पद्म लेश्यानो धणी बोल्यो के, पाको पाकी केरी तोमो; ५ अने शुक्ल-लेश्यानो धणी बोल्यो के, बेसो! पुर्व पश्चिमना पवन लागवाथी पाकेली केरी पनशे ते खाइशुं.६. हवे जु ! काची पाकी केरी से, पाकी केरी ले, अने पमी होय ते लश्ने खाय, तेमां पण पापतो बे, पण पेहेली कृष्णादिक त्रण लेश्याना प्रणाममां तथा करतव्यमां पाप घj डे, ते माटे अधर्म-लेश्या कही; अने कृष्णादिक त्रण लेश्यामां घणुं पाप लागतुं ते टाल्युं अने थोडं पाप लगाव्युं, ते घणुं पाप टाव्युं तेनी अपेक्षाए धर्म-लेश्या कही. वली ब लेश्या उपर वधकनो दृष्टान्त श्री वीतरागदेवे कह्यो . ते कहे बे-कृष्ण लेशी बधं गाम मारे. १ नीललेशी माणसनेज मारे.२ कपोत लेशी पुरुषनेज मारे. ३ तेजुलेशी आयुध सहितनेज मारे. ४ पद्मलेशी सामो लमवा आवे तेनेज मारे. ५ अने शुक्ललेशी अपराधोनेज मारे ६. हवे जु ! तेजु, पद्म अने शुक्ल-लेश्याना करतव्यमां पण पाप तो बे, पण श्री वीतरागदेवे, कृष्णादिक त्रण लेश्यामां घणुं पाप लागे ते माटे अधर्म तथा माग लेश्या कही; अने उपरनी त्रण लेश्याना धणीने, कृष्णादिक त्रण लेश्यामां घणुं पाप लागतुं ते टाली थोडं पाप लगाव्यु, ते आश्रीत्रण धर्म-लेश्या कही. ए न्याये ४१ प्रश्नोमां थोमा पाप साटे घणुं पाप टाढ्युं, ते माटे त्रग धर्म-लेश्यानी पेरे धर्म-पुन्य कहीये. जे थोड़ें पाप लगामी घj पाप टाले, ते जीवने श्री वीतरागदेवे जलो कह्यो. शाख सूत्र जगवती शतक बारमे नद्देशे बीजे. ते पाठः Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१०५) सुतत्तं नंते! साढू जागरियंतं साहू! जयंति! अबेगतियाणं जीवाणं सुतत्तं साहू अबेगतियाणं जीवाणं जागरियंतंसाढू. सेकेणणं नंते! एवं वुच्च अगतियाणं जाव साढू? जयंति ! जेश्मे जीवा अहम्मिया अदम्माणुया अहम्मिग अदम्मखाइ अहम्मपलो अहम्मपलबणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं वित्तिकप्पेमाणा विदरइ एएसिणं सुतत्तं सादू. एणंजीवाणं सुत्तासमाणा नो बदणं पाण नूय जीव सत्ताणं उरकणयाए सोयणयाए जाव परियावणियाए वहति. एएणं जीवा सुत्तासमाणा अत्ताणं परंवा तउन्नयंवा नोबदहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो नवंति. एएसिणं जीवाणं सुत्ततं साढू. जयंति! जेश्मे जीवा धम्मतबिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव वित्तिकप्पेमाणा विदर एएसिणं जीवाणं जागरियत्तं साढू. एएणं जीवा जागरा समाणा बदणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुकणयाए जाव अपरियावणयाए वहति. तेणं जीवा जागरासमाणा अप्पाणंवा परंवा तदुनयंवा बहिं धम्मियादिं संजोयणादिं संजोएत्तारो नवंति. एएणं जीवा जागरासमाणा धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरश्त्तारो नवंति. एएसिणं जीवाणं जागरियंतं साहू. सेतेणणं जयंति ! एवं वुच्चर अजेगतियाणं जीवाणं सुत्ततं साढू अनेगतियाणं जीवाणं जागरियंतं साढू. अर्थः-सु० सुता निसाने वश पमया नंग हे जगवान ! सा० जला ? के जा जागता सा जला ? ए प्रश्न उत्तर. जण हे जयंति ! भण केटलाएक जो जीवने सुन निसावश पणुं सालबुं, एटले सुता. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) + सिद्धान्तसारः जला. अने श्र० केटलाएक जी० जीवने जा० निंद्राने · नावे जागवुं साजलु, एटले जागता मला. से० ते शा अर्थे जं० हे जगवान ! ए० एम ० कयुं ? के ० केटलाएक जीवने सुवुं नलुं, अनेकेटलाएक जीवने जाग जलुं ? प्रश्न उत्तर. ज० हे जयंति ! जे० एवा जीवने (श्रुत चारित्ररुप धर्मथी रहितने) ० अधर्मी कया. वली एज कहे . अम्मा० धर्मानुग श्रुत चारित्ररुप धर्मथी विरुद्ध धर्म मार्गे चाले ते, अहम्मि० धर्मज जेनो इष्ट बे ते, अणम्मखा धर्म प्रत्येक एवो जेन श्राचार के ते, श्रहम्म० श्रधर्मप्रलापी अधर्मज उपादेयपणेकरी देखे ते, अहम्मपल० अधर्म प्ररंजन धर्मने विषे रहे ते, हम्म स० [श्रधर्मसमुदायाचार जेनो धर्म समुदायनोज प्रचार बे ते, श्रदधर्मे करी आजीविका करताथका वि० विचरे बे, ए० एवा जीवोने सु० सुता सा० जला कह्या. ए० ए जीव सु० सुताथका नो० नहीं ब० घणा प्राणीने जू० नूतने, जीवने स० सत्वने दु० दुःखना उपजावणहार सो० शोकना उपजावणहार जा० यावत् प० परितापना नपजावणहार थाय. ए० ए जोव सु० सुतायका छा० पोतानी आत्माने तथा प० परात्माने त० बनेने नो० नही ब० घणा श्र० श्रधर्मना कारणाने विषे सं० संजोगेकरीने सं० संजोगपणे थाय. ए० ए जीव सुता जला. ज० हे जयंति ! जे० जे प्रागल कहेवाशे ते जीव ध० धर्मने विषे रह्याथका ध० धर्मानुग जा० यावत् ध० धर्मनीज चे० निश्चे करीने विवृत्तिकल्प करता थका विचरे. ए० ए जीव जा० जागता जला. ए० ए जीव जा० जागताथका ब० घणा प्राणी जाण् यावत् स० सत्व पृथ्व्यादिकने o दुःख न उपजावे, जा० यावत् श्र० परितापना नही नपजावताका व वर्त्ते. ते० ते जी० जीव जा० जागताथका ० पोताने प० परने अथवा त० पोताने अने परने वेहुने ब० घणी ध० धार्मिकना सं० संजोगने विषे सं० जोमणहार न० थाय. ए० एवा जी० जीव जा० जागताथका ध० धर्मजाग्रिका करीने श्र० श्रात्माने जगामणहार थाय ए० एवा जीवनुं जागनुं सा० नलं कयुं. से० तेणे अर्थे जoहे जयंति । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १०७ ) > ए० एम० क के अ० केटलाएक जी० जीव सु० सुताज जला; ० केटलाएक जो० जीव जा० जागता सा० नला. ए सुता जागतान अधिकार कह्यो. बलियत्तं जंते ! साहू दुब्बलियत्तं साहू ? जयंति ! - गइयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू गइयाणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साहु. से केणठेणं नंते ! एवं बुच्चइ ? जाव साहू. जयंति ! जेइमे जीवा अहम्मिया जाव विहरइ एएसिणं जीवाणं दुब्बलियत्तं साढू. एएणं जीवा एवं जदा सुत्तस्स तदा दुबलिय वत्तवया जाणिवा बलियस्स जहा जागरस्स तदा जाणियवं जाव संजोएत्तारो जवंति. एएसिणं जीवाणं बलियत्तं साढू सेतेाठेणं जयंति ! एवंवुच्चइ तंचेव जावसाहू. दखत्तं जंते ! साढ़ आलसियत्तं साहू ? जयंति ! प्रगतियाणं जीवाणं दखत्तंसादू गतियाणं जीवाणं यालसियत्तं साढ़ से के जंते ! एवं बुच्च तंचेव जाव साहू ? जयंति ! जेइमे ग्रहमिया जाव विदरंति एएसिणं जीवाणं यालसियत्तं साहूएएणं जीवा छालसासमाणा नो बढ्णं जदा सुत्ता तदाखालसा जाणिवा जदा जागरा तदा दरका प्राणियवा जाव संजो सत्तारो जवंति. एएणं जीवा दकासमाणा बहूदिं पायरिय-वेयावच्चेहिं नवद्याय - वेयावच्चेहिं थेवर - वेयावच्चे हिं तवस्सी - वेयावच्चेदिं गिलाण - वेयावच्चेदिं सेहवेयावच्चेहिं कुलवेयावच्चेहिं गण-वेयावच्चेहिं संघवेयावच्चेदिं साहमी -वेयावच्चेदिं प्रत्ताणं संजोएत्तारो जवंति एए सिणं जीवाणं दकतं साढू सेतेषेणं तचेव साहू. सोई दिय-वसद्वेणं अंते! Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) + सिद्धान्तसार. जीवे किं बंध? एवं जहा कोह वस तहेव जाव अणुपरियह एवं चकिंदियवसहेवि जाव फासिंदियवसछेवि जाव अणुपरियइ. उमजेणं नंते! निदाएजावा पयलायद्यवा ? हंता निदाएधवा पयलायधवा जदा हसेवा तहा. अर्थः-हवे उर्बलादिकने तेमज कहे बे-ब० अनंतरे बलवंतपणुं नं हे जगवान ! सा० नदु ? के पु० पुर्बलपणुं सा नटुं ? इति प्रश्न उत्तर. जन् हे जयंति ! अ० केटलाएक जीवने ब सबलपणुं सा नबुं, अने श्रण केटलाएक जीवने पुर्बलपणुं सा जवु. से० ते शा अर्थे जंग हे जगवान ! ए एम वुछ कह्यु ? के जाम् केटलाएक सबला नला, थने केटलाएक निर्बल नला. इति प्रश्न. उत्तर. जय हे जयंति ! जे जे जीव अ अधर्मिक इत्यादिक पुर्वोक्त सर्वे बोल के. हेवा जा जावत् वि० विचरे. ए० ए जीवने उ० पुर्बलपणुं न. ए जीव इत्यादिक एण्जा जेम सुण् सुतानी वक्तव्यता कही, ता तेम पु० पुर्बलनी केहेवी. एटले सुता सरीखो उर्बल पद जाणवो. ब० बलवंतनी वक्तव्यता ज जेम जाग जागतानो वक्तव्यता कही तेम केहेवी. जाण यावत् सं० संजोग जोमणहार थाय. ए० ए जीवने ब० बलवंतपणुं सा० नवं. से० तेणे अर्थे जग हे जयंति ! ए० एम कर्दा. तेमज जाण्.यावत् नलो. वली जयंति पु डे के, हे नगवान ! द० माह्यापणुं (उद्यमपणुं) नबुं ? के आ० श्रालसपणुं सा० नबुं ? ए प्रश्न. उत्तर. जग हे जयंति ! अ० केटलाएक जी0 जीवने दण् दक्षपणुं एटले नद्यमवंतपणुं जवू, अने श्र केटलाएक जी0 जीवने प्राण पालसपणुं नझु. से० ते शा अर्थे ? जंग हे नगवान ! एण्वु० एम कयु, तं० तेमज जाग यावत् सा नला एटलासुधी केहेतुं ? जग हे जयंति ! जे0 जे जीव अ अधर्मिक अधर्मानुगत् इत्यादिक जाग यावत् करताथका वि० विचरे, ए जी० ए जीवने श्रा० श्रालसपणुं सा० जवं. ए० ए जीबा श्राखसु थयाथका नो नही ब० घणा प्राणीने जासु जेम Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( १०९ ) सुतानी वक्तव्यता कही तण्या० तेम खालसुनी पण वक्तव्यता के देवी. ज०जा० जेम जागतानी वक्तव्यता कही तब्द० तेम माह्यानी वक्तव्यता केदेवी. जा० यावत् सं० संजोकणहार थाय, एटला सुधी केदेवु. ए० जीव द० माह्या थयाथका ब० घणा आण आचारजनी वे० वैयावृसने विषे, उ० उपाध्यायनी वैयावृत्तने विषे, थे० स्थिवरनी श्रुतवृद्धनी वैयावृत्तने विषे, त० तपश्वीनी वैयावृत्तने विषे, गि० गीलापनी वैयावृत्तने विषे, से० शिष्यनी वैयावृत्तने विषे, कु० कुलनी वैयावृत्तने विषे, ० गणनी वैयावृत्तने विषे, सं० संघनी वैयावृत्तने विषे छाने सा० साधर्मनी वैयावृत्तने विषे, अ० श्रात्माने सं० संजोमणहार थाय. ए० एवा जीवने द० दक्षपणुं नलुं. से० तेणे श्रर्थे ज० हे जयंति ! इत्यादिक. तं० तेज एक लसपणुं धने केटलाएकने दक्षपणुं सा० ज होय. वली जयंति पुढे बे के, सो० श्रोतिंडिने व० वशेकरी नं० दे न गवान ! जी० जीव किं० शुं कर्म बांधे ? ए प्रश्न. ए० एमज ज० जैमको० क्रोधने व वश कह्यो तेम केहवं. एटले सात कर्मनी प्रक्रति बांधे इत्यादि. ६. त० तेमज जा० यावत् श्र० परिनृमण करे. ए० एम च‍ चक्कु - इंडिने वशे पण केदेतुं. जा० यावत् फा० स्पर्श- इंडिने वशे परा तेमज केतुं . जा० यावत् संसार परिभ्रमण करे. ब० उदमस्थ जं० दे भगवान ! मनुष्य नि० सुखे जागे ? निंद्रा करे ? प० उजो रही निंद्रा करे ? इति प्रश्न. उत्तर. दं० हा जयंति ! नि० निंद्रायमान थाय, तथा प० प्रचलायमान थाय. ज० जेम इ० इसवाने विषे कयुं, त० तेम निंद्राने विषे पल केहेतुं. भावार्थ:- दवे जुटे ! धर्मी जीव तो सर्वथा जुंगा बे, पण जा गता पांच श्रव सेवे, हिंसा कुरु कपट करे, छाने सुता निंद्रामां एट पाप न करीशके. घणुं पाप टब्युं, तेमाटे सुता जला कह्या दवे जुने ! निजामां सुता शुं जनुं काम करे बे ? निद्रालेतां पण सातयात कर्म धायक बे. शाख सुत्र जगवती शतक पांचमे उदेशे चोथे. ते पाव: Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. जीवेणं नंते! निदायमाणेवा पयलायमाणेवा कर कम्मपगमी बंध?गो! सत्तविद बंधएवा अहविह बंध एवा एवं जाव वेमाणिए पोदत्तिएसु जीवेगिंदिय वद्यो तिय नंगो॥ अर्थः-जी जीवनं हे लगवान ! निंजा करतो थको प० प्रचलायमान (विशेष निंदा) करतो थको क केटला कर्मन प्रक्रति बंग बांधे ? इतिप्रश्न उत्तर. गोण् हे गौतम! स० आउखुं न बांधे त्यारे सात कर्मनी प्रक्रति बंग बांधे, अने आउ बांधे त्यारे श्र० श्राप कर्मनी प्रक्रति बं० बांधे. ए० जा० एम यावत् वे पैमानिक सुधी केहेबु. पोप बहुवचनने विषे पुग्ली परे जी जीवपदने तथा एकिजियना पांच पदने विषे एक नांगो. शेष रए दंगके ति त्रण नं० जांगा. . नावार्थः-हवे जु ! निसाथी सातआठ कर्म बंधाय, त्यारे पापी जीवने सुता नला केम कह्या ? पण अहियांतो अपेदाय वचन जे. ते जागतानी अपेक्षाये निजामा सुताने थोडं पाप लागे, श्रने घणुं पाप टट्युं ते माटे सुताने जला कह्या. एमज पापी जीवने पुर्बल आलसुं जला कह्या. ए न्याये कोश्ने तृषा लागी तेथी काचुं पाणी पोवा मांड्या, पण अरिहंतना वचनथी तेमां असंख्याता जीव जाणीने पीq बोम्यु, पण तृषा न खमाय तेथी नुं पाणी पीधुं. हवे नंनुं तथा काचुं पाणी ए बे टाली न शकाय, तेथी ना पाणीनी साजे काचा पाणीनुं पाप टाट्यु, ते गुण नीपन्यो. कारणके निमित्त कारण विना दया न पलाय. हवे जेम पोते थोमा पाप साटे घणुं पाप टाढ्युं ते गुण थयो, तेमअनेराने घणुं पाप लागतुं जाणी, थोमा पाप साटे घणुं पाप टलावे तेमां गुण केम नही थाय ? पोतार्नु पाप टाव्यामां गुण हशे तो अनेरानुं पाप टलाव्यामां पण गुण हशेज; अने टालताने नलो जाण्यामां पण गुण डशेज. एम ४१ प्रश्नमां पण जाणवू. ते नपर अष्टान्त कहीये बीये-जेम, कोइने राजाए सो रुपीया दंम कर्या. तेथी घरनो धणी जाणे के माहारा सो रुपीया गया. तेवामां को प्रधान प्रमुख बच्चे पक्षी, पचास रुपीया' Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. बोमावी पचासज रुपीया देवराव्या. तेथी ते पुरुष तेने शुं जाये ? ए पापीए माहारा पचास रुपीया खोवराव्या,एम जाणे? के एम जाणे? जे शाबाश जाइ, तमे माहारा पचास रुपीयामां बुटको कराव्यो, तमे मने घणो गुण कर्यो एम कहे ? ए रीते गुण ले के अवगुण ले ? ते विचारो.. एम ४५ प्रश्नमां अनेरानुं पाप टलाव्युं ते पण नवनवमां गुणज ले. __बली तेरापंथी कहे के, “बीलामी प्रमुख हिंसक जीव नंदर प्रमुख गरीब जीवने मारे, तेने बोमावे तो, बोमावे तेना उपरतो राग आल्यो, ने बीलामी प्रमुख नपर वेष आव्यो. ए रागद्वेषनां फलतो कमवा. वली जेम नाणुं पीरश्युं ने जमनारना मोंढा आगलथी खोशी ले, ते अष्टान्ते बगेमावनारने नोगांतराय लागे." तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! नोजनवाला तो कमाइ करी पीशी रांधीने जमे, अने तेनुं जमवु लोजनथकीज थाय. ते नोगांतराय खोश्या श्राश्री लागे, पण बीलामीना नंदरमा केटला टका जल्या हता? ते कहो. केमके तेतो वेष-नावथी दुष्ट प्रणामथी मारे जे. ए बोमावनारना अंतराय देवाना केष प्रणाम नथी, पण तेनुं घणुं पाप टलाववाना प्रणाम बे. वली तमे पूर्वे कडं के, बोमावनारनो बीलामी नपर वेष-नाव आव्यो. ए तमारूं केहेवं अयथार्थ बे. कारणके एज वेलाए बीलामीने कुतरो मारे, तेने पण दया आणी बोमावे. ए टेषनो राग केम थयो ? हे देवानुषीय ! बौमाववावालानातो दयानाज प्रणाम , अने बीलामी- पाप टलाववानाज प्रणाम . जेम बालकने ताव श्रावतो होय, ते बालक दहीनो वाटको पीवा लागे. ते तेनी माता खोशी ले, तेथी ते पोताना अज्ञा. नपणे दुःख पामे, पण माताने दुखनी देणहारी न कहीए. हितसुखनी वान्बनहारोज कहीये. वली का करीयातुं वाटीने पाय तेथी बालक दुःख पामे, पण माताने तो ताव गमाववावाली अने सुख देवावालीज कहीये. तेम बीलामी पोताने अझानपणे दुःख पामे, पण जीव गोमाववावालो तो बीलामीनु पाप टलाववावालो तथा हितनो वंचनहारोज कहीए, Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२) + सिद्धान्तसार.. सेवारे तेरापंथी कहे के, “ एम जबराश्थी जीव बचाव्यां तथा थामलापाप टलाव्यां धर्म थायतो, पहेला देवलोकनो धणीज सीमधरस्वामी पासे जाय जे. हवे सीमंधरस्वामी जो जबराइथी जीव बचाव्यामां धर्म मानता होयतो, इंसने उपदेश दर असंख्याता छिपसमुअमां माठला प्रमुख हिंसा करे बे, तेने वर्जी राखे, असंख्याता जीवोनी रक्षा करावे अने घणा जोवोर्नु पाप टलावे; पण श्रीवीतरागदेवनी जबराश्थी जीव डोमाववानी श्रद्धा नथी. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तमारा केहेवा प्रमाणे जबराश्थी जीव बचाव्याथो तो पाप थाय, तेथी ए काम इंड करे नहीं. पण अमे तमने पुबीए बीए के, इंछ कोश्ने नप. देश दश मिथ्यात्व बोमावे, तेमां शुं थाय ? तेवारे तेरापंथी कहेले के, धर्म थाय. तो हे देवानुप्रीय ! नरतक्षेत्रमा घणा कुमतिए अबती श्रती परुपणा करी चालणी चालणी धर्म कर नांख्यो . हवे जो अहीयां इंऽ श्रावीने उपदेश दे, श्रने कदेके सीमंधरस्वामीए कह्यु ले के, फलाणो धर्म साचो जे एम कहे. तथा घणा जीवोने तीर्थंकर केवलीना दर्शननी चाहना होय तेमने दर्शन करावी लावे तो घणा जीवोनुं मिथ्यात्व बुटे, अने समकित पामे. ए तो धर्मनुं कार्य . ए समजाववामां तो तमे पण धर्म कहोडो. ए धर्मनुं काम केम न करे ? से कहो. पण हे देवानुप्रीय ! कोश्ना केहेवाथ काम करे तेने अनुकंपा न कहीये. प्रत्यक्ष जीव मरतो देखकोमल करुणा नाव आणी कार्य करे, तेप्रणामनेज अनुकंपा कहीए. ते अनुकंपा जोवने क्षयोपशम नावथी आवे. वली तेरापंथो कहेडे के, “४१ प्रश्नमां पैसा श्रापी अचित्त वस्तु खवरावी जीवनी रक्षा करावी श्रागलानु पाप टलाव्यु, तेमां त्रण कन्याना दृष्टान्ते धर्म पुन्य नथी. जेम त्रस कन्याउँमां, एकतो श्रावकनी बेटी, एक वेश्यानी बेटी, अने एक ब्राह्मणनी बेटी.३ ए त्रण जणीए त्रण कसाश्ने बकरां मारवा लइ जता देखो, जे श्रावकनी बेटी, हती तेणे कसाश्ने उपदेश दश् बकराने डोमाव्यां, १ वेश्यानी बेटीए कुशील सेवीने बोगाव्या, २ अने ब्राह्मणनो बेटोए घरे, धन परिग्रह । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सिद्धान्तसार (१९३) द बोमाव्यां. ३ हवे ए त्रण जणांमां नपदेश द ओमाव्यां तेमां तो धर्म बे, पण कुशील सेवीने बोमाव्यां तेमां, अने दाम घरेणुं दर बोमाव्यां तेमां धर्म नथी. जो घरेणुं परिग्रह दश्ने गमाव्यां तेमां धर्म हशे तो कुशील सेवीने बोमाव्यां तेमां पण धर्म हशे." एवी कुयुक्ति मेलवे बे. तेनो उत्तर.. .. हे देवानुप्रीय ! तमारा पुज्यजीने घणा वर्षे श्राव्या शांजलीने तमारा श्रावक श्रावीका सामा श्राव्या, अने वंदर्णा करी रसो तैयार करावी बारमुं वृत निपजाव्यु. तेमां वे तमारा पुज्यनी पक्की रागीणी बा मेांमी प्रावी. तेमने तमारा पुज्यजीए पुब्यु के, हे बाश्न ! तमे मोमी केम आवी ? त्यारे तेमणे कडं के, चोर अमने मारगमां मस्या तेमां एक जणी तो कहेके में कुशील सेवी केम मुंकावी (बुटी), अने एक कहे के में तो घरेणुं आपीने केमे मुंकावी. हवे तमारी केहे; पीने लेखे एके चोथो आश्रव सेवराव्यो, अने एके पांचमो श्राश्रव सेवराव्यो. हवे तमारा पुज्यजी प्रायश्चित केने देशे ते कहो. त्यारे तेरापं. थीए कहेज पझे के, कुशील सेव्युं तेने प्रायश्चित दे. तो हे देवानुप्रीय ! कुशील सेवी तथा परिग्रहो देश जीव मावे ते बन्नेने सरखां केम गणोबो ? कारण के जेणे कुशील सेवराव्यु, तेणे तो पोतानां अने आगलानां बनेनां मोह कर्म पोख्यां. असंख्याता पंचेंजिजीवनी हींसा बनेने लागी, अने एक पंचेंजिजीवनी रक्षा कीधी. हवे आगलागें एक पंचेंजि जीवनुं पाप टलाव्युं, ते तो चोखंज कामडे, पण असंख्याता पंचेंजि जोवनी घात कुशील सेवतां बनेने लागे, तेमां नफो थोमो, अने तोटो घणो, तेथी ए काम अकरवा जोग्य ; पण घरेणुं दश बकरां गेमाव्यां, तेने कया जीवनी हीसा लागी ? ते कहो. ए कुहेतु केम मले ? तेवारे तेरापंथी कहे डे के “कुशील सेव्यां सेवराव्यामां तो चोथु पाप बे, अने परिग्रहो सेव्यां सेवराव्यामां पांचमुं पाप ले. इस्थिनुं खाईं पीयूँ अने घरे), ए परिग्रहामां ने." एम कहे , तेनो उत्तरः Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ११४) + सिद्धान्तसार.. हे देवानुप्रीय ! खावु पीवं घरेणां ने कपमां, ए तो आठ फरसी पुद्गल , रुपी बे, अने नजरे आवे ने अने अढार पापने तो नगवाने रुपी चोफरसी कह्यांबे, ते नजरे आवे नही. शाखसूत्र नगवती शतक बारमें उद्देशे पांचमें. ते पांचमुं पाप मुर्ग, तृष्णा, ममता, चोफरसी ने तेने कहीये; पण खावा, पीवा, थने घरेणाने परिग्रहो न कहीए. ए न्याये घरेणां देश बकरां गमाव्यां तेणे पोताना तृष्णा-ममतारुप परिगृहो घटाड्यो, जीवनी रक्षा करावी, अने आगलानु पाप टलाव्यु ए प्रत्यक गुणगें कार्य . ते विवेक विना दीसतुं नको. वली खावू, पी, घरेणुं ने कपमांने परिग्रहो कहे, तेने पुडीएके, पांचमा पाप परिग्रहा उतां जीवने केवल-ज्ञान उपजे के नहि ? तेबारे कहेठेके, परिग्रहाथकां केवल न नपजे. तेवारे पाडं कहेवू के, मरुदेवी माता हाथीनी अस्वारीए लाखो करोमोनां घरेणां पेहेरेल थकांने केवलज्ञान केम नपज्यु ? ते कहो. तेवारे कहेले के, “ तृष्णा-ममताने परिग्रहो कहीए, ते मटी गइ तेथी केवल उपन्यु; पण खावा पीवा कपमां घरेणां अने हाथोनी अस्वारीने परिग्रहो न कहीए. ए उपर ममता होय, ते ममताने परिग्रहो कहीए." तो जुर्ड ! हे देवानुप्रीय ! एकतालीस प्रश्नमां देवावालानी अने लेवावालानी ममता-तृष्णा परिग्रहो डे, ते रुपी-चोफरसी पुदगल बे, ते दीधा लोधां जाय नही बनेनां पोतपोतानी पासेज रहे, अने अहोयां देवावाले तो उलटो पोतानी ममता तृष्णा-रुप परिग्रहो घटाड्यो . तेनी शाख सूत्र नगवती शतक पांचमे ते पाठः गाहावइस्सणं नंते ! नंमा विकिणमाणस्स कइए में साइयेचा नंमयसे अणुवणिएसिया गाहावइस्सणं नंते तार्ड नंमान किं आरंजिया किरियाकघर जाव मिबादसण किरिया-कव कश्यस्सवात्ताननंमान किं आरंनिया किरियाकघर जाव मिबादसण किरियाकव? गोo! गादावश्स्स ता नंमान आरंजिया किरियाकघर जाव Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार अपच्चरकाणी मिबादसणवत्तिया सियकच सियनोकघर कश्यस्सणं तान सबान पयणु नव. गाहावइस्सणं नंते! जमविकिणमाणस्स जाव मेसेनवणी एसिया कत्तियेस्सणं नंते ! तान नंमान किं आरंनिया किरियाकय जाव मिबादंसणकधइ ? गो ! कत्तियस्स ता नंमा देठिखान चत्तारि किरिया कव मिगदंसण किरियाए जयगाए गाहावइसणं ताउं सबान पयणुश् नवश्. गाहावइस्सणं नंते ! मे जाव धणेयसे अणुवणिएसियाए एयपि जहा मे नवणीए तहा णेयत्वं चननो आलावगो धणेयसे वणीए सिया जहा पढमो आलावगो मेयसे अणुवणिएसिया तहाणेयवो पढमं चमबाणं एको गमो॥ अर्थः-गा गाथापतीने जग हे नगवान !नंमा क्रियाणां वेच. ताथकाने का क्रश्क (क्रियाणाना ग्राहक ) नं ते नांम प्रत्ये सा० संचकार अंगीकार करे, नं० ते क्रियाएं अ० जेणे संचकार्यु तेने आप्यु नथी. तेवारे गा गाथापतीने जंग हे नगवान ! ता ते नं० क्रियाणाथकी किंग शुं ? आप आरंजनी कि क्रिया लागे ? के परिग्रहनी, मायाप्रत्ययनी, अपचखाणीनी जाग यावत् मि० मिथ्यादर्शन-प्रत्ययनी किस क्रिया लागे ? अने का क्रश्कने नंगते क्रियाणाथकी किंग शुं श्रा० श्रारंजनी कि क्रिया लागे ? जाग यावत् मिग मिथ्यदर्शन-प्रत्ययनी कि क्रिया लागे ? इति प्रश्न. नत्तर. गो हे गौतम ! गा गाथापतीने ता ते नं० क्रियाणाथकी आग आरंजनी, परिग्रहनी अने मायाप्रत्ययनी जाग यावत् अ० अपचखाणनी क्रिया नियमथकी लागे, अने मि० मिथ्यादर्शन-प्रत्ययनी क्रिया सि मिथ्यादृष्टि होय तेने लागे, थने सम्यक्ष्टि होय तेने न लागे. क० ते क्रश्कने संचकारना देणहारने सा हजी तेणे क्रियाएं ली, नथी ते माटे सघली क्रिया हस्व Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) +सिद्धान्तसार सागे, श्रने गृहस्थीने ते क्रियाएं हजी तेनुं ने ते माटे मोटी लागे. गा गाथापतीने नंग हे नगवान ! नं० क्रियाएं वेचताथकाने जा या. वत् नं ते क्रियाएं जेणे संचकार्यु तेने थाप्यु होय तो का ते क्रियाणाना ग्राहकने नंग हे नगवान! जंग ते क्रियाणाथकी किं० शुं ? श्राप श्रारंजनी क्रिया लागे? तेमज जाग यावत् मिस मिथ्यादर्शन-प्रत्ययनी क्रिया लागे ? इति प्रश्न उत्तर. गोण हे गौतम ! का ग्राहकने ते नं० क्रयाणाथकी क्रियाएं ली, माटे च० पेहेली श्रारंजनी आदि चार क्रिया मोहोटी लागे, अने मि० मिथ्यात्विने मिथ्यादर्शन-प्रत्ययनी क्रिया लागे, पण सम्यक्दृष्टिने न लागे. ते माटे ना नजना कही. गाळ गाथापतीने (क्रियाएं दीधुं ने ते माटे) ता ते सर्व प० पातली लागे. गाण गाथापतीने नंग हे नगवान ! नं0 नंम जाग यावत् इत्यादि त्रीजा थाला. वानो पाठ पाउला बीजा सरखो केहेवो. धन दीधुं नथी त्यां सुधी केहेवो; अने ऋश्कने हेग्ली चार क्रिया लागे, अने मिथ्यादर्शननी क्रिया को वखते लागे अने को वखते न लागे, अने गाथापतीने ते धननी क्रिया धन अणलीधा माटे पातली लागे. ए त्रीजुं सूत्र बीजा सूत्र सर केहेवू. तेम बीजे सूत्रे " मेनवगिए" ए सूत्रने विष क्रश्कने पांच क्रिया मोटी लागे अने गाथापतीने पातली लागे.तेम ए बीजा सूत्रने विषे केदेवी. एनो पाउ वली जण जम पेहेला आलावाने विषे “ जमे अणुवणेसिया गाहावश्स्सणं ता आरंनिया किरियाकघर मिथादसण किरिया सियकद्य सियनोकधर कश्यस्सणं ताव सवान पयणुश् नव" एम पाठ . तेम ए पाठ च० चोथे आलावे केदेवो. कारणके गाथाप' तीए धन लीधुं ने तेथी तेने धननी मोटी । या लागे; अने क्रश्कने धन दी, डे माटे तेने पातली लागे. एम पाउने अनुसारे पेहेला श्रालावानो अने चोथा आलावानो एक सरखो पाठ जाणवो. नावार्थः-हवे जु ! क्रियाएं श्रने धन दोधुं तेने चार पांच क्रिया पातली कही, अने राखवावालाने जबरी कही. ए न्याये ४१ प्रभमां घर- अव्य दीy, तेने परिग्रहादिकनी क्रियापातली पमी. त्यारे Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार (११७) दाम दक्ष अचित रुपी-श्राउ-फरसी पुद्गल खवरावी घणा जीवनी रक्षा करावी, बागलानुं हिंसानुं पाप टलाव्युं तेमां गुण केम नथी? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, “जीव जीव्या तेतो दया नथी, अने जीव मरे ते हिंसा नथी; पण जीव मारे तेने हिंसा लागे, अने जीव न मारे तेने दया नीपजे.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! जीव मुठ अने जीव जीवतो रह्यो ते तो कारण बे, अने हिंसा लागी अने पाप टाढ्यु टलाव्युं ते कार्य बे. ए कारणनो नाश केम करो हो ? केमके कारण विना तो कार्य नीपजे नही. जेम कोइए कंदोश्ना हाटनी सुखमी पोते खावी बोली अनेराने गेमावी, लीलोत्री पोते खावी गेमो अनेराने डोमावी, चोरी करवी पोते गेमी अनेराने बोमावी. हवे कंदोश्ना हाटनी सुखमी रही, लीलोत्रीना जीव जीवता रह्या, अने धणीने घेर माल रह्यो, ते तो कारण डे; अने पोतानुं अने बीजार्नु पाप टलाव्युं ते कार्य जे. हवे कंदोश्नी सुखमी रही, लीलोत्रीना जीव जीवता रह्या, अने शेठना घरमां माल रह्यो, त्यारेज पाप टट्यु; तेम जीव जीवता रह्या तोज दया नीपजी. तेवारे तेरापंथी कहे डे के “ कोश्ने साधुजीए कुशीलना त्याग कराव्या, तथा दिक्षा दीधी, तेथी तेनी स्त्री कुवामां जा पमी. तेनुं पाप साधुजीने लागवं जोइए. ए पण कारण अने कार्य जे." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! एमां शुं जुल डे ? जेम सुखमीना त्याग कराव्याथी सुखमी पमी रही जाणे, लीलोत्रीना जीव जीवता रह्या जाणे, श्रने शेठना घेरे माल रह्यो जाणे, तेम कुशीलना त्याग कराव्याथी तथा दीक्षा दीधाथी तेनी स्त्री कुवे पमशे एम जाणीने त्याग करावशे तो तेने पाप लागशेज; पण स्त्रीने मरती जाणे तो साधु मुनीराज त्याग करावेज नही. ए कारण अने कार्य साचुं , पण ते सुखमी अने लीलोत्री, बीजो को खाशे अने चोरीने धन लेशे, तेने पाप लागशेज; पण त्याग कराववावालाने तो ए वस्तु रही. हवे जेना जोगथी ए वस्तु रही, तेनेज गुण नीपज्यो भने पाप टल्यु. एम १ प्रश्नमां दाम दीपा, वस्तु Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९८) * सिद्धान्तसार । खवरावी अने जबरा कोधी ते तो कारण ने; अने जीवन रक्षा करी आगलानुं पाप टलाव्यु ते कार्य . तेबारे तेरापंथो कहे डे के, "उपदेश वर जीव बोमावे तेमां तो धर्म बे, पण पैसा दक्ष, वस्तु खवरावी, जबरा३ करो जीव बचावे, तेमां धर्म नथी.” तेनो नत्तरः हे देवानुप्रीय ! उपदेश दीधो, पैसा दीधा, वस्तु खवरावी, तथा जबरा कीधी, ए तो चार कारण अने ए कारणथी जीवनी रक्षा थइ, आगलानु पाप टट्यु, ते कार्य जे. हवे उपदेश दइ जीव बोमाव्यो, ते तो कार्य तथा कारण बने शुद्ध , अने पैसा दश्. वस्तु खवरावी, के जबरा कर जीव बोमाव्या, ए कारण तो त्रणे अशुभ , पण जीवनी रक्षा थइ, पाप टत्यु, ए कार्य शुद्ध . हवे तमे ए कारण अशुद्ध देखामीने कार्यमां पाप केम कहो हो ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के, “जेनुं कारण अशुद्ध ने तेनुं कार्य शुद्ध नथी.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! रायप्रशेणी सूत्रमा चित्त प्रधाने कपटाकरी घोमा रथ दोमावी, अनेक जीवनी घात करी, प्रदेशी राजाने समजाव्यो. ए कारण अशुद्ध ? के कार्य अशुभ ? ए कारण अशुध तेमां तो पाप बे, पण प्रदेशीने समजाव्यो ते कार्य शुरू , तेमां पाप नथी. तेने श्री वीतरागदेवे धर्म दलाली कहो ; पण कारण अशुद्धनो पद लइने पाप दलाली कही नथी. एमज झाता-सूत्रमा सुबुद्धि प्रधाने काचा पाणीनी हिंसा करी जीतशत्रु राजाने समजाव्यो. ए कारण अशुद्ध ? के कार्य अशुभ ? ते कहो. तेमज कोइ साधुने वंदणा करवाने, वाणी सनिलवाने, तथा सामायक करवाने, रथ पालखी प्रमुखनी अस्वारी करी, मेह वरसतां, रातना उपयोग विना अनेक प्रकारनो आरंन तथा अजयणा करतो श्राव्यो. ए कारण अशुभ? के साधुने वंदणा करी, वाणो शांजली प्रतिबोध पाम्यो, ए कार्य अशुभ ? ते कहो. तेमज नदीमां असंख्याता जीवनी घात करतां साधु नदी उतरे, ए कारण अशुद्ध ? के ज्ञान, दर्शन अने चारित्र निर्मला राखवाने Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार श्रीवीतरादेवनी आज्ञा श्राराधी, ए कार्य अशुद्ध ? ते कहो. तेमज वहेती नदीमांथी आरजाने अनंता जीवनी रक्षपाल जाणोने, साधु काढे, ए कारण अशुद्ध ? के कार्य अशुझ? ते कहो. तेमज उघाझे मोंढे बोलतां साधुने दान दीधुं, तथा नघामे मोंढे बोलतां देव-गुरु-धर्मने घनकारो दीधो, ए कारण अशुरू ? के कार्य अशफ ? वली पंचाग्नि प्रमुख अनेक हिंसा सहित तपश्या तथा कष्ट करे, तेथो पुन्य बंधाय, ने देवतामां जाय. (शाखसूत्र उववाजी) ए कारण अशुद्ध? के कार्य अशुध? ते कहो. इत्यादि अनेक कारण अशुभ, तेनां कार्य शुरु जाणवां. ए न्याये उपदेश दक्ष जीवने बचाव्यो, तेनुं कारण अने कार्य वंने शुभ, अने दाम दर, वस्तु खवरावी, जवराश् कररी, जीव बोमाव्यो, तेनुं कारण तो अशुद्ध बे; पण कार्य शुद्धले ते करवा योग्य ले. तेवारे तेरापंथी कहे जे के "अशुद्ध कारणे करीने शुभ कार्य करवू नहीं.” तेनो उत्तर. .. हे देवानुप्रीय ! शुद्ध कारणथा कार्य सिद्धि थाय तो अशुभ कारण न करवू, पण शुरू कारणथो कार्य सिफिन थाय तो, अशुफ का. रणने तो खोटुंज जाणे, पण कार्यमा गुण घणो जाणे तो, अशुद्ध कारपाथी शुद्ध कार्य करे. ते उपर अष्टान्त कहे जेम कोश्वेपारी देशदेशावरमां माल मोकले, ने हुँमी जाउँ वोलाइ खरच लाग्याविना माल ठेकाणे पोहोंची जाय, सवाया दोढा दाम थाय, तेवारे तो ए कारणथो कार्य करवू श्रेष्ट जाणे; पण हुंमो, नाडं, ने वोलाइ खरच लाग्यां परा सवाया दोढा दाम थाय तो, वोस रुपीया खरच पमे तेने तो खोटा जाणे, पण श्रागल लान घणो जाणे तो ए वेपार करे के नही ? अर्थात करेज.” तेम दान दयामां पण अशुभ कारणने तो खोटुंज जाणे, पण आगल कार्यमा लान घणो जाणे तो ते करवा योग्य . वली कोश्ना दिका लेवाना नाव ठे, पण साधुनां उपगण जोइए तेनो जोग नथी. तेवारे कोइक श्रावके उधो, मुहपति, वस्त्र, पात्रां अने सूत्र दे दिक्षा देवरावी. ए कारण अशुभ ? के कार्य अशुभ? ते कहो. जेम ए नपगर्ष दश् दिदा देवराबवी, ए कार्य करवा योग्य वे. तेम उपगण दे सामायक Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२० ) + सिद्धान्तसार.. पोसो करावे, तथा ४१ प्रश्नोमां अव्यवस्तु देश, जीवनी रक्षा करावी आगलानुं पाप टलाव्यु, ते शुद्ध कार्य करवा योग्य . वली श्री कृष्ण माहाराजे पाउला परिवारनी खावा पीवानी सारसंन्नाल करी, घणा जी. वोने धर्म दलाली करी दीक्षा देवरावी. ए कारणे तीर्थकर गोत्र बांध्यु. ए न्याये अशुद्ध कारणथी पण शुद्ध कार्य करवा योग्य वे. हे देवानुप्रीय! उपदेश दश्ने जीव बोमाव्यो, तेमां गुण थसे तो, बाकीनां त्रण कारणथी पण गुण थशेज; पण नपदेश दश्नेज जीव बोमाव्यामां धर्म डे एम तमे कपटाइथी मत कहो; कारणके तमारे लेखे असंजतीना जीववामां धर्म नथी. ए मिथ्या जुठ केम जाखो डो? तमारी सरधाने लेखे तो उपदेश दीधामांज धर्म कहेवू जोइए; पण उपदेश दश असंजतीने हणवाना त्याग कराववामां तथा बोमाववामां धर्म कहेवू न जोइए. पली अनुकंपा दान दयाना उत्थापक कहे के, “ जोवने न हण. वा तथा जीवनुं पाप टलावीने तरवु वंड, ते तो सूत्रमा गम गम कडं बे, पण असंजती जीवने बचाववो क्या कह्यु डे ?” तेनो उत्तर. हे देवाणुप्रीय ! जीवने नगारवानुं सूत्रमा गमगम श्री वीतरागदेवे कयुं , पण तमारा सरखा जीव-दया-अनुकंपा रहितने सुजतुं नथी. ते सूत्रनी शाखा कहे . प्रथम तो साधु त्रण करण अनेत्र जोगे करीने, उकायना जीवने मन, वचन अने कायाथी हणे नही, हणावे नही अने हणताने नलो जाणे नही.३ ए न हण तो त्रण करण नव जोगे करीने करी चुक्या. हवे उपदेश दक्ष कायना जीव बचावे, तथा बकायनी हिंसाने त्याग करावे, ए न हण्यामां के उगार्यामां ? वली कायना जीवनी रक्षावास्ते तथा उगारवाने अर्थे श्रीवीतरागदेव नपदेश देवे कडं जे. शाखसूत्र प्रश्नव्याकरण प्रथम संवर छारमां. ते पाठ. मंच सबजग जीव रकण दयघ्याए पावयणं नगवया सुकदियं अत्तदियं पेच्चा नवियं आगमेसि नद्द सुध नेयाज्यं ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क सिद्धान्तसार है अर्थः-३० ए प्रत्यक्ष स सर्व जगतना जीव (चोरासी लाख जीवाजोन) ने र० राखवाने विषे कारणरुप दण् दयाने अर्थे पाण प्रवचन (श्री सिद्धान्त दयानो परमार्थ) ना जगवंत श्री महावीरदेवे सुनलो कह्यो. ए सिद्धान्तविना कांश दयानो परमार्थ जाणे नही, ते माटे प्रवचन कह्यु. ते प्रवचन आप आत्मा (जीव)ना हीतनणी पेण जन्मान्तरे ना शुभ फलपणे प्रणमे, जीव उगारवो ते प्रवचन इत्यर्थ श्रा आगमे काले न कल्याणर्नु कारण सु० निर्दोष न्याय मार्गे वर्तवानुं कारण. नावार्थः-हवे जुन ! प्रवचन सिद्धान्त रुपणी वाणी श्री जग वंते नली कही. ते शा अर्थे ? सर्व जगतना एटले उ कायना जीवोनी रक्षा तथा दयाने अर्थे कही. ए न हण्यामां के नगार्यामां ? सर्व गणधर साधु प्रमुख, त्रिविधे त्रिविधे न हणवू, ते तो करी चुक्या. हवे उपदेश शा अर्थे देवे ? उ कायना जीवोनी रदा, दया, अने उगारवाने अर्थेज उपदेश दे . तेवारे तेरापंथी कहे जे के " उपदेश तो जीवर्नु तर, वान्लवाने अर्थे तथा श्रागलानु पाप टलाववाने अर्थे दे जे." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जीवनी रदा कर्याथी तथा दया पाल्याथी पाप टलशे, तरवू थशे, एमां शुं नुल ले ? श्री वीतरागदेवने तो तमथकी अनंतुं ज्ञान हतुं, पण तमारी पेठे केम न कह्यु? के जीवने तरवाने अर्थे वाण प्रकाश करी बे. हवे जो तरवाने अर्थेज वाणी प्रकाश करी कहो बो, तो पांच स्थावर, त्रण विगलेन्धि, अने श्रशन्नी (मनरहित) जीवने, श्री लगवंतनी वाणी कइ रीते तारे ? ते कहो. अहीं तो " सबजग जीव ररकणच्याए " एवो पाठ . वासते बकायना जीवनी रक्षा तथा दयाने अर्थे उपदेश दे, वाणी प्रकाशे, एम कर्वा . ए न इण्यामां के नगार्यामां ? ए कूमति उगवीने अनंता तीर्थंकर तथा केवलीमाथे थाल दर वचन नत्थापी अनंतो संसार केम वधारो हो ? वली चित्तप्रधाने केशीश्रमण मुनीराजने कयुं के, प्रदेशीराजाने Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) + सिद्धान्तसार धर्म संजलावशो तो घणा जीवोनी दया पलशे, रक्षा थशे. ते रायप्र. शेणी सूत्रनो पाठः. एवं खलु नंते ! अम्मं पएसीराया अहम्मिए जाव सय.. स्सवि जणवयस्स नो स्समं करना पछतेइ तं-जत्तिणं देवा णुप्पिया पयस्सिसरन्नो धम्ममाश्केडा बहुगुणत्तरं खलु होद्या तेसिणं बहुणय दुप्पय चनप्पय मिग पसु पंखि सिरिसवाणं तं-जश्णं देवाणुप्पिया पएसिस्सरमो धम्म माइक्रकेद्या बहु गुणतरं फलं होया तेसिणं बहुणं समण माहण निख्खूयाणं तं-जणं देवाणुप्पिया पएसिस्स बहुणं गुणत्तरं दोघा जणवयस्स. . . अर्थः-ए० एम ख० निश्चे नंग हे जगवान ! अ श्रमारो पप प्रदेशीराजा अ० अधर्मी बे. जा० जावत् सम् पोताना जण देशने नोग नथी सन् सम्यक का करनार प० प्रवर्तावतो. तं० ते माटे जग जो दे हे देवानुप्रीय ! प० प्रदेशीराजाने घ० धर्म मा० कहेशो तो बण घणो गु० गुण ख० निश्चे हो थशे. ते ते ब० घणा उ० उपद च० चतुष्पद मि० मृग प० पशु प० पदी सि० नंदर स नोलियादिने, ते ते माटे ज जो दे हे देवाणुप्रीय ! प० प्रदेशीराजाने ध धर्म माण कहेशो तो ब० घणो गुण फल हो थशे. ते ते ब० घणा सप समण शाक्या दिकने, मा ब्राह्मणादिकने अने निण निदाचरने. तं० ते माटे जण जो तमे देण हे देवानुप्रीय! प० प्रदेशीने ब० घणो गुण् गुण हो थाशे. ज० पोताना देशने विषे पण गुण थासे ॥१॥ - नावार्थ-हवे जु श्हां चीत्त-प्रधाने कयु के, हे माहाराज! प्रदेशी राजाने धर्म संन्नलावशो तो ते घणा उपद, चौपद, पशु, पक्षी मृग, नंदर, नोलीया, सिंह, प्रमुख जीवने मारतो रहेशे, देश प्रदेशमा सुख श्राशे, दंग करनार थोमो लेशे, रैयत घशी सुखशाता पामशे, श्रने Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार. ( १२३) समय-माहने निक्षा सुखे मलशे पढी केशी श्रमणे धर्म पामवाना ने न पामवाना चारचार ठाम कह्या. ए वचन नहीं हण्यामां के जगामां ? इहां चिप्रधाने एमकेम न जाएयुं, के “खसंजतीनुं जीवनुं : वां नही. संजती जीव जीवता रहेशे तो वली जीवनी हिंसा, करशे, ने मने अनुमोदना लागसे; अने राजा एना कर्मे करी मुत्रशे: तेमां मने शुं.” एम तो नथी जाएयुं. पण एम जाणजो के, एवी दुष्ट: सरददणा चीत्तसार्थीनी नोहोती. तेवारे वली तेरापंथी कहेते के, " एतो परना उपगार माटे, रक्षा माटे, छाने गुण माटे नथी कयुं, पण प्रदेशी राजाना तरवासारु, पाप टालवा सारु, अने पाप टलाववा सारु गुणने माटे धुं छे." तेनो उत्तर. " हे देवानुमीय ! जो प्रदेशी राजाना गुणनी खातर कयुं होय तो, एम कहे जोइए के " हे स्वामी ! ए अधर्मी धर्म करेबे, अढार पाप सेवेबे, तेने ते समजावो, के ते घढार पाप न सेवे, ने एना श्रात्मानुं साधन थाय, एवं करो". पण इहांतो त्रण पाठ का, ते परजीवने नगारखाना एटले परने उपगार करवाना कह्या बे. ते परजीवने नगार्याथीज पोतानुं तनुं श्रने श्रात्मानुं साधन थाशे, एमां शो जूल बे. परजीवने उगारवानुंज चित्तप्रधाने कयुं ते कारण बे, अने परदे - शीनुं तनुं तथा आत्मानुं साधन थाय ते कार्य बे. पहेलुं कारण ने पढी कार्य थाय. ते माटे साधुजी परजीव नगरे तेवो उपदेश दे. तेज रीतेश्री केशी कुमारे उपदेश दीघो अने चीनसार्थीए धर्म दलाली कीधी. एन दावुं युं के परजीवने उगारखं युं ? माया हो ते वीचारी जोजो. कार मुनीने आहार बोमवो कह्यो बे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन २६ मानी गाथा ३५ मी ते पाठ लखीए बीए. प्रायंके नवसग्गो, तितिख्खुया बंजचेर गुत्तीस; पाणीदया तवदेऊ, सरीर वोबेयण हाए. ॥३५॥ १६ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) +सिद्धान्तसार - अर्थः-पूर्ववत् जुर्व प्रश्न १ लो पाउल पाने १३ में. नावार्थ:-हवे जुन ! ए ब कारणमा चोथा कारणमां कडं के, प्राणी जीवनी दया तथा रक्षाने अर्थे साधु थाहार बोमे, पण एम न कयु के, पोताने तरवा अर्थे, अथवा पाप टालवा अर्थे थाहार गेमे; कारण के प्राणी जीवनी दया पाली, तथा रक्षा कीधी, ए कारणथी तरतुं थशेज. एमां शुंजुल . ए कार्य , पण कारणथो कार्य सिद्ध थाय ते माटे श्हां कारण कयुं . ए न्याये असंजती जीवनुं जीवq वान्छ, नगारवो, दया पालवी, ने रक्षा करवी. वली जगवती शतक पेहेले नदेशे नवमे, संजती जीवनुं जीवq वंडर्बु तथा रक्षा करवो कही ने. ते पाठः अदा कम्मेणं नंते ! लुजमाणे समणेनिगंथ किंबंधश्, किंपकरे किंचिणे जाव किंजवचिण ४ ? गो! आहाकम्मेणं झुंजमाणे आजय वजा सत्त कम्म पगमी सिढिल बंधण बंधान धणिय बंधण बंधान पकरेइ जाव अणुपरिय. से केणकेणं जाव अहाकम्मेणं नुंजमाणे . जाव अणुपरियहइ ? गो ! अदाकम्मेणं नुंजमाणे आयाए धम्मं अवकम आयाए धम्मं अवकममाणे पुढविकायं पावकंखइ जाव तसकायं णावकंखर जेसिपियणं जीवाणं सरीराइं आहार माहरेश तेविजीवे गावकंखर से तेणठणं गोo! एवं वुच्च अदाकम्मेणं मुंजमाणे आयवजा जाव सत्तकम्म पगमिन जाव अणुपरियहइ. फासु एसणिोणं नंते! मुंजमाणे किंबंध६४ जाव किं नवचिण? गो० ! फासु एसणिोणं मुंजमाणे आजयवान सत्तकम्म पगमित धणियबंधणबंधात सिढिलबंधणबंधान ..पकरे दोहकालछिइयाओ रदस्सकालहिश्याओ पकरे Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सिद्धान्तसार तिवाणुनावाओ मंदाणुनावाओ पकरेइ बहुप्पएसग्गाओ अप्पपएसगाओ पकरे आजयंचणंकम्मं सियबंधइ सियनोबंश असाया वेयणिजाचणं कम्मं नोनुजो २ ग्वचिचिणई अणादियं अणवदग्गं दीहमई चाजरंत संसार कंत्तार वीईवयव. से केणणं नंते ! जाव वोईवय ? गो० ! फासु एसणिोणं मुंजमाणे समणे निग्गंथे आयाए धम्मं नाश्कम आणाए धम्म अणश्कममाणे पुढविकायं ., अवकंखर जाव तसकायं अवकंखइ जेसिंपियणं जीवाणं,.. सरीरायं आहार माहारे तेविजोवे अवकंखइ॥ अर्थः-१० श्राधाकर्मी (ते साधुने अर्थे सचित्तनुं श्रचित्त करीने आपे ते) जुनोगवतोथको सण साधु किं० शुं बांधे, किंप० शुं पक, किंचित शुं चणे जाग यावत् किंना शुं नचपणे ? इति प्रश्न उत्तर. गो० हे गौतम ! श्रा० श्राधाकर्मी आहार जोगवतोयको प्रा० श्रान व० वर्जीने स० सात कर्मनी प० प्रक्रति सि० सिथिल बंधने बांधी होय ते ध० अढ बंधने बांधे. हलवा कर्मने सुधा ताणी बांधे. जेम रेशमनी गांठ बांधीने मधुसिष्टे धुंटीथकी जेम गाढी नीवम थाय तेम बंधन करे. जाग यावत् रहस्सकाल विश्या दोहकालविश्याई पकेर मंदागुलाउ तिवाणुनावाओ पकरे अप्पपएसगाओ बहुप्पएसगाओ पकरे। थानयचणं कम्मं सियबंध सियनोबंध असायावेयणिजास्सणं कम्म नुधो २ नवचिण अणादियं अगवदग्गं दीहमकं चानरंत संसार कतारे अनंतीवार परित्रमण करे. हवे गौतम पु . से० ते शा अर्थे ?, हे नगवान ! एम कह्यु. जाग यावत् अहा० श्राधाकर्मी थाहार नुं०. जमतो-थको साधु जाग यावत् अ चतुर्गति संसारने विषे अनंतिवार जमे १ इति प्रश्न उत्तर. गो हे गौतम ! अ आधाकर्मी आहार जुए जमतोथको साधु आ० भारमाए करी ध० चारित्र धर्म अ० अतिक्रमे Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६ ) + सिद्धान्तसार एतावता धर्मथी पमे. श्राप आत्माए करी ध० धर्म अ० अतिक्रमतोथको उलंघतोथको पु० पृथ्विकायना जोवनी णा अनुकंपा न आवे, दयाप्रमाण रहित थाय. जाग यावत् अपकाय, तेनकाय, वानकाय, वनस्पतिकाय अने त्रसकाय बे इंजियादिकने या विणाशे तेने दया न आवे. जण जे जोवना स शरीरनो आ० आहार करे ते ते जीवनी पण णा अनुकंपा न आवे. से तेणे अर्थे गो हे गौतम ! ए एम कर्दा, के आ० आधाकर्मी सुंनोगवतोयको साधु थाम् श्राउ वर्जीने जा. यावत् स० सात कर्मनी प्रक्रति बांधे जाग यावत् चतुर्गतिरुप संसारने विषे अ० परिव्रमण करे. फाप्रासुक अचित्त ए० एषणिक (४२ दोष रहित) आहार, नं० हे नगवान ! तुंनोगवतोथको साधु किंग शुं कर्म बांधे जा यावत् किंजा | प्रदेश बंधन वधारे ? इति प्रश्न. गोण्हे गौतम ! फा निर्दोष मुंग जोगवतो थको साधु श्रा० थान वर्जी स० सात कर्मनी प्रकृति ध० गाढे बंधने बांधा होय ते लि. सिथिल बंधणे करे, ते कर्म प्रकृति निर्जरीने सिथिल करे. दोन दीर्घकालनी स्थितिनी होय तेने र थोमा कालनी स्थितिनी करे, ति तीवृअनुनाग रसरुप होय तेने मं० मंद अनुनाग रसरुप करे, ब० घणा प्रदेशनी होय तेने श्र० अल्प प्रदेशनो करे, आप आनखा कर्म सि0 केटलाक बांधे अने सिप केटलाक न बांधे. अ० अशाता-वेदनी कर्म नो० वारंवार नपचरो नही. अ आदि अंत रहित दो दोर्घ मध्य जाग जे जेनो, एवी चा० चार गतिरुप संसार के0 अटवीनो वी० पार पामे से ते शा अर्थे ? जंग हे नगवान ! जाग यावत् वी० व्यतिक्रमे, संसार तरे. इति प्रश्न. नत्तर. गोग हे गौतम ! फा० प्रासुक ए० एखणिक नुं० जमतो थको स० साधु तपश्वी नि निग्रंथ आ आत्माए करी ध० श्रुतचारित्ररुप धर्म प्रत्ये नारा नलंधे नहिं वली श्रा० आझाए करो ध० श्रुतचारित्ररुप धर्म प्रत्ये अण अणनलंघतो थको साधु पुण् पृश्चिकायना जीवनी अव दयाः वान्छे,जाण्यावत् त त्रसकाय बेइंजियादिक जीवनी श्रण रक्षा करे,जे. जे जीजोवना सशरीरनो श्रा० श्राहार करे ते जीवनी पण रका करे। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( १९७) नावार्थः-हवे जुट ! आधाकर्मी आहार नोगवे तेने सात कर्म ढीलानां गाढा बंधाय, यावत् चतुरगति संसारमा दीर्घकाल सुधी परिब्रमण करे. ते शा अर्थे हे नगवान ! एम कर्दा ? नत्तर. हे गौतम ! श्रात्मानो धर्म (ज्ञान दर्शन चारित्र) लंघे, पृथ्वी कायनी अनुकंपा नं करे, दया न पाले, रक्षा न करे, आन (जीवg) न वान्छे, एम कायनी अनुकंपा दया न आवे, आउ जोवु न वान्डे, तेथो जीव रुने. ए न्याये असंजतीर्नु आउखु (जीवीतव्य ) वंडे ते संसारमा न रुले. वली जे प्रासुक निर्दोष नोगवे ते सात कर्म गाढानां ढोलां करे, यावत् चारगतीरुप संसारने उलंघे, पार पामे. ते शा अर्थे हे लगवान ! एम कडं ? हे गौतम ! आत्मानो धर्म (ज्ञान दर्शन ने चारित्र) लंघे नही, ब कायना जीवनुं जीवोतव्य (दया) वान्छे, जे जीवोना शरीरनो श्रादार करे, ते जीवोनुं पण जीवीतव्य (दया) वान्डे, तेयो संसार समुफ तरे. ए बकायनुं जोवीतव्य वंग्युं, दयापाली, तथा रक्षा करी, तेयो तरतुं क झुं; पण एम न कह्यु के “निर्दोष लोगवे तेणे पोतानुंपाप टाल्युं, तेथो संसार तरे." ए बकायतुं जीवीतव्य वान्उयुं तथा दया पालो ते तो कारण , अने पाप टब्यु अने तर थयु ते कार्य जे. ते कारणथो कार्य सिद्ध थाय. ते माटे श्हां श्री वीतरागदेवे कारण कयुं . ए न हण्यामां के उगार्यामां? ए न्यावे उ कायना जीव थसंजतोनुं जीवq उगारसिह थाय . वली साधु परजीवनुं नगार, श्रने जीवq वान्डे. शाख सूत्र दशाशुतखंध अध्ययन सातमें. ते पाठःमासियणं निख्खू केव जवसयं अगणिकाएणं चामेधा णोसेकप्पर तंपमुच्च निकमित्तएवा पविसितएवा तवणं के बांहाएगाहाय आगसेवा णो से कप्पर तं अवलंबित्तएवा पवलंबित्तएवा कप्पर से आहारियरित्तए ॥१४॥ अर्थः-मा मासिक पमिमाधारी लिखने के० को अनार्यन उपाश्रयने विषे १० अमि-कायकर, घाण बाले, एटले को अनार्य थाग Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८) + सिद्धान्तसार, खगामे, त्यारे पो ते पमिमाधारोने न करे तं ते लाहे लाग्यायो ते नि० स्थानकथी बाहार नीकलवं, अथवा प० बाहारथी मांही पेस. तण्त्यां के को आर्य समष्टि तथा श्रावक ते बलतामांहीथी बां ब्रांह्य महीने आण ताणे तो पो न कल्पे से ते पमिमाधारीने तं० ते ताणवावालाने श्र० बांदेकरीने ग्रही राखवो प० वारंवार जाली राखवो. क० कल्पे से ते पमिमाधारीने अ० यथा या सुमति चाली नीकलबुं कस्पे अने ते साधुने ते उपाश्रय अग्निथी बट्यानी बीके नीकलतुं न कट्पे; पण कोश्क काढे तो ते बलीजाशे तेनी दयाने अर्थ नीकल, कटपे. लावार्थः-हवे जुर्म ! जिनकल्पी तथा अजिग्रहधारी साधु साहे सागवाथी पोताना जीवोतव्यनी श्राशाए सुखने अर्थे नीकले नही, पण अनेरो को दयावंत, साधुने बलता देखीने काढवा आवे तो विलंबरहित नीकले, जरापण ढोल करे नही. ए न हण्यामां के नगार्यामां ? केमके साधुना नव जोगमां तो हिंसानु पाप लागतुं नथी. ए न्याये जीवनुं जीवq वान्छ, नगार अने रदा करवी ते स्पष्ट रीते सिद्ध . वली साधवी नदीमां वेहेती होय तेने साधु काढे तो श्राज्ञा उलंघे नही. शाख सूत्र गणायंग गणे नवमे. ए न हएयामां के नगार्यामां ? तथा सुपगमांग श्रुतष्कंधे पहेले अध्ययन अग्यारमें. ते पाठ. दणंतं पाणुजाणेजा आयगुत्ते जिदिए गणाइ संति सहिणं गामेसु नगरेसुवा ॥१॥ तहागिरं समारंल अस्थि पुन्नं-ति गोवए अदवा पनि पुणंति एवमेयं महब्जयं ॥२॥ दाणध्याय जेपाणा दम्मति तसथावरा तेसि सारकणा ए तम्मा अनिति गोवए ॥३॥ जेसितं उवकप्पंति अन्नंपाणं तदाविहं तेसि लानंतरायंति तम्मा णनि-ति गोवए ॥॥ जेय दाणं पसंसंति वह मिति पापिणं जेयणं पमिसेदंति वितिच्छेय करंतिते ॥५॥ दुइ-वित्ते णनासंति साधवी नदीमा बगारखं अने रक्षा करवागतुं नथो. ए न्या Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार ( १२९) अति वा नबिवा पुणो आयं रहस्स देच्चाएं निषाणं पानणंतिते ॥६॥ अर्थः-ह० जीवने हणतां णा अनुमोदे नही. श्रा० जेनी थास्मा गुप्त ने अने जेणे इंडिओ जीती ने एवा साधुनी ग० समोपे सं0 दे स श्रझावंत (धर्म करवानी चावाला) बौध्यादिक गा० गाम श्रने न नगरने विषे वसनारा बे, ते त० आरंन सहित गिग वाणीए करीने पुढे ले के, हे महामुनी ! श्रमे सदाव्रत, पाणीनो परब श्रादिक धर्म अर्थे करावीए ? तेमां अमने शुं थाय ? एवं तेमनुं पुब्वं सांजलीने साधु, अ० पु तमने पुन्य, जो एम न कहे. अ० अथवा ण नथी पुन्य, एम कहेवामां पण मग महा जय . दाग दानने अर्थे जे जे प्राणी (बेजियादिक) ह० हणाय त० त्रस अने था० स्थावर (पृथ्व्यादिक), ते तेनी सा सम्यक् प्रकारे रकाने अर्थे (त० ते माटे) अण्डे तमने पुन्य, एम णो न कहे, अने जे जेने पुर्वोक्त सदावत परबादिकनुं अन्न पाणी लेबु कल्पे एटले जेने तथाप्रकारना अन्न पाणी लेवानी आशा , ते ते जोवोने ला० लानान्तराय थाय. त० ते कारणे पूर्वोक्त अनुष्टानमां तमने पुन्य नथी णो एम पण न कहे. जे जे साधु दा दानने ५० प्रसंशे ते वा वध हिंसा श्छेले पा० प्राणोनी. (जे सावध दानने अनुमोदे ते हिंसाने अनुमोदे डे); अने जे जे सावध दाननो प० निषेध करे जे ते पूर्वोक्त दानार्थि जीवोनी विवृत्ति आजी. विकानो बेग बेद करे . ते माटे ० ए बे नाषा आगला पुरनारने पण न कहे. अण्डे अथवा न नथी तमने पुण् पुन्य. आप आत्म रण रहस्यनो हे हेतु (पाप कर्मनो त्याग जाणीने) पूर्वोक्त वाणो बोलवी मुके. एवो नाषा न बोले ते यति नि० मोक्ष पा० पामे. एवी रोते मौन राखवी पण एवं मीश्र वचन खुलासे नहीज कहे. नावार्थ:-हवे जुलै ! दानने अर्थे जे प्राणी (प्रस स्थावर)हणाय से जीवनी रवाने अर्थे “ तमने पुण्य बे" एम न कहे: अने जेने अन्न Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) + सिद्धान्तसार पाणी तथा प्रकारना कल्पे, तेने लाननी अंतराय पमे, ते अर्थे “ तमने पुन्य नथी " एम पण न कहे. कारणके जे दाननी प्रसंशा करे तेने बकायना वधनो वंबणहार कहोए, अने जे दानने निषेधे तेने वृतिनो दणहार तथा अंतरायनो देणहार कहीए. एम जाणीने साधु मौन राखे. ए जुर्ज ! बस स्थावर जीवनी रदाने अर्थे “पुण्य डे" एम न कहे कडं. पण एम न कयु के, पोतार्नु पाप टालवाने अर्थे पुण्य ने एम न कहे. ए न हएयामां के नगा-मां ? वली को उघामे मोंढे बोले तेने कहे के, “नघामे मोंढे न बोलो." ए वचन न हण्यामां के उगर्योमां ? वली बकायना जीव हणताने कहे के, “ मां हणो, मां हणो," ए वचन न हण्यामां के नगार्यामां ? ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहेडे के “ बकायने न हणो" एम कहे ते तो आगलानु पाप टालवाने तथा तरवाने अर्थे उपदेश दे ." तेनो उत्तरहे देवानुप्रीय ! जीवनी रवा थर ते तो कारण जे, अने पाप टट्यु, तरवु थयु, ते कार्य जे. कारणविना कार्य थाय नही श्रीवीतरागदेवे तो गम गम जीवनी रकानां वचन कहां बे, पण तमारी पेरे एम तो कोई सूत्रमा कयु नथी के, आगलानु पाप टालवाने उपदेश देवे. हे देवानुप्रीय! जीवनी रक्षा करी, श्रने उगार्यो, ए तो कारण बे. ए कारणथी पाप टट्युं तेथी कार्य थशेज. वली श्री वीतरागदेवे तो गम गम कान, दर्शन, चारित्र, तप, जीवनी जयणा, पांच सुमति, त्रण गुप्ति, संवर अने जी. वनी रक्षा इत्यादिक कारण कह्यां , अने फलने अधिकारे फल कहां ३. तमे कारणनो नाश केम करोगे ? तेवारे तेरापंथी कहे के “ अन्न. यदाननो लाजतो सूत्रमा गम वगम कह्यो बे, पण अनुकंपानो तथा जीव नगार्यानो लाल कह्यो नथी." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! कयुं तो पण तम सरखाने सुझतुं नथी. जुर्व सूत्र गणायांग गणे त्रीजे, तथा जगवती शतक पांचमाने नद्देशे बरे. स्पष्ट रीते जीव नगारवार्नु फरमान सिद्ध थाय जे. ते पाठ लखीए बीए: Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार ( १३१ ) कदणं नंते ! जीवा प्रप्पानयत्ताए कम्मं प्पकरेइ ? गो० ! पाणेश्वत्ता मुसंवइत्ता तहारूवं समणंवा मादांवा फासुरणे अणेस णिघेणं असणं पाणं खाइमं साइमेणं मिलानेता एवं खलु जीवा अप्पाडयत्ताए कम्मं पकरेइ. कदणं अंते ! जीवा दीदानयत्ताए कम्मं पकरेइ ? गो० ! नो पाणेइवइत्ता नो मुसंवइत्ता तदारुवं समांवा मादवाफासु एस द्येिणं असणं पाणं खाइमं साइमेणं पमिलानेत्ता एवं खलु जीवा दीहाजयत्ताए कम्मं पकरेइ. कहां जंते ! जीवा सुद दोहानयत्ताए कम्मं पकरेइ ? गो० ! पाणे प्रश्वत्ता मुसंवइत्ता तहारूवं समवा माहांवा होलित्ता निंदित्ता खिंसिता गरदित्ता अवमन्निता प्रणयरेणं मणुणेणं अप्पियकारणं असणं पाणं खाइमं साईमं पमिलानेत्ता एवं खलु जीवा असुद दीदा यत्ताए कम्मं पकरेइ. कदणं नंते ! जीवा सुददीहाजयत्ताए कम्मं पकरेइ ? गो० ! नो पाणेश्वइत्ता नो मुसंवत्ता तहारूवं समांवा मादणंवा वंदित्ता जाव पशुवासित्ता प्रणयरेणं मणुणेणं पीयकारणेणं असणं पाणं खाइमं साइमेणं पमिलानेत्ता एवं खलु जाव पकरे. ॥ अर्थः- क० केवे प्रकारे नं० हे भगवान ! जी० जीव अ० अल्प आयुष्यरुप क० कर्म प० बांधे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम! पा० प्राणातिपात करवायी, मु० मृखावाद बोलवाथी, तेमज त० तथारूप शा खोक्त स० साधु मा० ब्राह्मणने अ० सचित अ० सदोष एवा ० प्रसन प० पाणी खा० खादिम सा० स्वादिम प० प्रतिलानवाथी ए० ए प्रकारे निश्चेकरी जी० जीव अल्प आयुष्य बांधे. हवें कप कये प्रकारे Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - । १३२) सिद्धान्तसार, नंग हे पुज्य ! जी० जीव दीन दोर्घ आयुष्यरुप कर्म प० बांधे ! इति प्रश्न. गोण् हे गौतम ! पोप प्राणातिपात न करवाथी, जो मु० जुठ न बोलवाथी, तेमज त तथारुप संग श्रमण मा ब्राह्मणने प्रा० अचित ए निर्दोष श्र० असन, पाणी, खादीम, स्वादीम प० प्रतीलानवाथी ए० ए प्रकारे ख० निश्चे जी० जीव दी० दीर्घायुष्य बांधे. कण् कये प्रकारे नं हे पुज्य ! जी0 जीव अ अशुन दी० दीर्घायुष्य कर्म प० बांधे ? इति प्रश्न उत्तर. गोण हे गौतम ! पा० प्राणातिपात करवाथी, मु जुठ बोलवाथी, तेमज त तथारुप स श्रमण मा ब्राह्मणने ही हेलो नि० निदि खिं० खष्ट करी ग गर्दी अने अ थपमानोने अ० अनेरो कोइक अमनोज्ञ श्र अप्रीतीकारक अ० असन, पान, खादोम, स्वादिम, प्रतीलाजवाथी ए० ए प्रकारे ख० निश्चे जी0 जीव अ श्रशुन दी० दीर्घायुष्य प० कर्म बांधे. क० कये प्रकारे नंग हे पुज्य ! जी जीव सु० शुन दी० दीर्घायुष्यरुप कर्म प० बांधे ? इति प्रश्न उत्तर. गोण् हे गौतम ! नो प्राणातिपात न करवाथी, नो जुठ न बोलवाथी, तेमज तक तथारुप स० श्रमण मा ब्राह्मणने वं स्तुति करीने जाग यावत् प० सेवा करीने १० अनेरो कोइएक म० मनोज्ञ पी० प्रीतीकारक अ० असण, पाणी, खादीम, स्वादीम, प० प्रतीलाजवाथी ए ए प्रकारे ख० निश्चे जाग यावत् जीव शुन्न दीर्घ आयुष्य प० बांधे.. . नावार्थः-हवे जुई ! था पाठमां जीव हिंसा करे तो, जुतुं बोले तो, तथा असमतो थाहार थापे तो, अल्प आयुष्य बांधे; अने जीवने न हणे तो, जुतुं न बोले तो, तथा सुजतो आहार पाणी आपे तो दीर्घ श्रायुष्य वांधे, एम कडं. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ ए गमे जीव हणे तो अल्प.बाउ बांधतो कह्यो, अने न हणे तो दीर्घ थानखं बांधतो कह्यो. हवे अनुकंपाथी तथा जीव नगार्याथी शुं फल पामे ? एनुं फल देखामो". तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! नगारवु ए न हणवामांज व्यु जेथे जीव उगार्यों तेणे मरणना जयथो मुंकाव्यो के सामो नवमः Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१३) नांख्यो ? ते कहो. हे देवानुप्रीय ! जीवने नगार, ते शुं न हणवाथी जुई ? एम जाणता हो तो एक पापी, जीवने मारे तो ते हणतो कहेवाय अने न हणे ते न हणतो कहेवाय. हवे जुर्जनी ! जीव उगारवावासो शेमां लक्ष्यो ? ते तमे वीचारी जुन. हवे जीवने हणतो अल्प श्रायुष्य बांधे अने न हणतो दीर्घ आयुष्य बांधे, पण तमे नगार, जुएं मानो जो ते तमारुं मानवं चमथी . तेनुं नीराकरण नीचे मुजबः__ इवे जे जुटुं बोले ते अल्प आयुष्य बांधे, अने जुटुं न बोले ते दीर्घ श्रायुष्य बांधे. हवे जुटुं बोले तेनां अने जुटुं न बोले तेनां तो फल कह्यां; पण निर्वध साचुं बोले तेनां शुं फल ? ए बे बोलमां तो साच न पेटुं. हवे निर्वध साचुं बोले ते शेमां पेठो ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के “ निर्वध साचुं बोले ते जुटुं न बोले तेमां पेठो." तेम एक, जीव हणे, एक न हणे, अने एक नगारे. ए त्रण त्रण बोलना गम जुदा कहोबो, तेम एना पण त्रण बोले ले. जुलु बोले, जुलुन बोले, अने साचुं बोले. हवे जेम साचुं बोले ते जु न बोले तेमां पेठो, तेम नगारे तेपण न हणवामां पेठो. (१) वली को असुझतुं श्रापे, कोश् श्रसुतुं. न पापे घने को सुक्रतुं श्रापे. ए पण त्रण बोल बे. हवे जे सुक्रतुं. श्रापे ते, असुकतुं न आपे तेमां पेठगे. जे असुझतुं न दे तेनां जेवां फल, तेवांज सुक्रतुं दीधानां फल.तेम नगारवं ते न हणवामां पेट्रं,तेनां पण तेवांज फल. (२) को चोर करे, कोश् चोरी न करे, अने एक दीघेवू ले. हवे दी, ले ते चोरी न करे तेमां पेगे, तेम उगारवावालो जीव न हणे तेमां पेठो. (३) एक, स्त्रीथी वात करे. एक, स्त्रीथी वात न करे, अने एक, धर्मोपदेशनो वात करे. हवे धर्मोपदेशनी वात करे, ते धर्म श्राश्री पापनी वात न करे तेमां पेठो, तेम जीव उगारवावालो, जीव न हणे तेमां पेठो. (४) एक, उपगण राखे. एक, नपगर्ण न राखे अने एक, धर्म उपगण राखे. ( पण त्रण बोल ले. हवे धर्म उपगर्ण राखे के पर्मी, पापना उपगर्ण न राखे तेमां पेसे. तेम जीव उगारवावासो. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. जीव न हणे तेमां पेसे. (५) एक, पापनी वात (रागरंग) सांजले. एक, न सांजले अने एक, धर्म उपदेश सांजले. ए पण त्रण बोल . हवे जे धर्म उपदेश सांजले ते पापनी वात (रागरंग) न सानले तेमां पेसे. तेम जीव उगारे ते, जीव न हणे तेमां पेसे. (६) एक, स्त्री श्राविका रुप देख. एक, न देखे. अने एक, साधुनां दर्शन करे. ए पण त्रण बोल , हवे जे वीतराग साधुनां दर्शन करे ते, स्त्री आदिकनुं रुप न देखे तेमां पेसे. तेम जीव उगारवावालो, जीव न हणे तेमां पेसे. (७) एक, सुगं. धवासना ले. एक, न ले अने एक, वासना आवे तेमां राग ष न श्राणे ( राग शेषने जीते). ए पण त्रण बोल दे. हवे राग द्वेष जीते तें, वासनाना त्याग करे तेमां पेसे. तेम जीव उगारवावालो जीव न दणे तेमां पेसे. (ज) हवे एक, पापकारी सावध वचन बोले, एक, सावध वचन न बोले, अने एक, निर्वध वचन बोले (सजाय करे). ए पण त्रण बोल . हवे निर्वध वचन बोलवावालो सावध वचन न बोले तेमा पेसे. तेम जीव नगारवावालो जीव न हणे तेमां पेसे. (ए) हवे एक, सर्वथा बोल बोल करे. एक, मौन राखे, अने एक, निर्वध बोले.ए पण पण बोल. जे. जेम निर्वध वचन बोलवावालो मौनवालानो पांतीमा पेसे, तेम जीव उगारवावालो जीव न हणे तेनी पांतीमा पेसे. (१०) एक फर्सथकी सुख फुःख माने. एक, फर्सथको सुंदालादिकना त्याग करे, अने एक, शीत-तापनी आतापना ले. ए पण त्रण बोल बे. हवे आतापना लेवावालो, स्पर्श इंजिनो विषय जीते, तेमां पेसे. तेम जीव उगारवावालो जीवन हणे तेमां से. (११) एक, मननो जोग माठो प्रवर्तावे. एक,मागे न प्रवर्ताके धने एक, जलो प्रवर्तावे. ए पण त्रण बोल . हवे जQ मन प्रवर्तावेते,मा मन में प्रयतावे तेमां पेसे. तेमज जोव नगारवावालो जीव न हणे तेमा पेसे. (१२) एम वचन जोगना त्रण बोल जाणवा. (१३) एम काय जोगना पण त्रण बोल जाणवा. (१४) ए चौद बोलना बबे बोलतो सुयगमंग श्रुतष्कंध बीजे अध्ययन बीजामां बे, अने अकेक बोलना श्रीजा बोलत मांगा केटलाएक बोल सुयगमांग सूत्रमा , प्रने केटलाएक जगवती Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. प्रमुख अनेरा सूत्रमा बे. त्रीजा बोलनां फल थोमा घणा धर्म श्राश्री श्रीवीतरागदेवे बीजा बोल सरखां कह्यां ले. तेम जीव नगारे तेनां फल, जीवने न हणे तेनी परे नला जाणवां. एम अमारे मते न हण्यामां श्रने नगार्यामां कांश फेर नथी. . तेवारे तेरापंथी कहे के “एक, जीवने मारे, एक वर्जे जे (टंटा झघमामां पमेडे) अने एक, मौन राखे . हवे मौन राखवावालाने तो, जीव मारे तेनुं पाप नथी लागतुं; कारणके जगतमां अनेक जीव मरे . केने केने उगारशे. केर्नु केनु पाप टालशे. पोतपोताने कर्मे करी पचे डे. मुनीराज तथा श्रावकजी केना केना जगमामां पके मुनीराजने तो अनेक जगतमां जीव मरे तेनुं पाप नथी लागतुं, त्यारे असंजती जोवने बचाववाना जगमामां शा वास्ते पमे. सामु पाप लागे. कारणके को राजी थाय, कोकराजीथाय." तेनो उत्तरः-हे देवानुप्रोय !परोपकारनो बुद्धीवाला, परजीवने उपकार कर्यामां गुण जाणे ते वास्ते उपकार करेज.' जो तमारा कहेवा प्रमाणे परनपकार करवो ते पराया ऊगमामां पम्, एम होयतो श्री तीर्थंकरदेवने तथा केवलीने केवलज्ञान उपन्यु ते पाडं न जाय. त्यारे उपदेश शा वास्ते दे. संसारी जोवे करेबुं पाप तीर्थकर तथा केवलीने तो नथी लागतुं. उलटुं नपदेश सांनलीने को राजी थाय, अने कोइ कराजी थाय. ए परना जघमामां केम पमे ? ए तीर्थकर केवली उपदेश दे ते न हण्यामां के परजीवना नपकार वास्ते ? वली वितिजयपुर-पाटणना धणी उदाइ-राजाए पाबली रातनी चिंत. घणा करी के " जगवंत श्री माहावीरजी पधारे तो बकायने अन्नयदान दनं, दिदा ल.” पठी महावीरदेव घणा साधुना परिवारे पधार्या, अने नदाइ-राजाने दिदा दीधी. शाख सूत्र नगवती शतक तेरमे. हवे जु! उदाइ-राजार्नु करे पाप जगवंतने तो नोहोतुं लागतुं, पण सातसो कोशथी चालीने श्राव्या, रस्तामां अनेक नदी उलंघी हो, साधुजना पगयी बिहारमा असंख्याता जीवोनी घात थ इशे, Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. अने उदाश् राजाने दिक्षा दिधाथी अनेक जीव दुःख पाम्या हशे. ए जगवंत तमारी कहेणीने लेखे उदाश्-राजाना जघमामां नाहकना केम पड्या ? सातसो कोशथी गया. ए न हण्यामां के परजीवना उपकार वास्ते ? (२) वली चक्रवर्ति प्रमुख अनेक जीवोने केवली अने साधु उपदेश दइ दीक्षा दे, तेथो श्रीदेवी प्रमुख अनेक जीव पुःख पामे. हवे केवलो तथा साधु नगवंतने तो चक्रवर्ति श्रादिकनुं कीधेदुं पाप नथीलागतु, पण घणा जीवने उःख नपजावीने पारका ऊगमामां केम पर्ने ? ए न हण्यामां के परजीवना नपगार वास्ते ? (३) एम अनेक जीवोने दीक्षा दे तथा श्रावको प्रमुखने कुशील प्रमुखना सोगन करावे, तेथी स्रीश्रादिक अनेक जीव कुःख पामे. ए साधु, नगवंत तथा केवलीने तो पाप नथी लागतुं. ए घणा जीवने फुःख उपजे, एवा ऊघमामां केम पमे ? ए न हण्यामां के परजीवना नपकार वास्ते ? (४) वली माहा शतक श्रावकने दोष लाग्यो त्यारे गौतमने मुकीने पायश्चित देवराव्यु. ए दोष लगवंतने तो नहोतो लागतो. ए न हण्यामां के परजीवना उप. कार वास्ते ? (५) वली माहोमांही कलेश होय ते उपशमावे तो मोहन प्राप्ती थाय. शाख सूत्र गणायंग गणे थाउमे. ते पाठः अहहिं गणेहिं सम्मं घमितवं जश्तवं परकमियचं अस्सि- . चणं-अहे णोपमाएयवं नव असुयाणं-धम्माणं सम्मं सुगणयाए अब्जयवं नवइ. १ सुयाणं धम्माणं नगेन्दणत्ताते अवधारणयाए अब्नुछेतवं जव. २ णवाणं-कम्माणं संजमेण मकरणताते अन्नुध्यत्वं जवइ. ३ पोराणाणं-कम्माणं तवसावि-गिचणताते विसोदणताते अब्नुव्यवं जवइ. ४ असंगिहित परितणस्स संगेन्हणताते अनुव्यवं नवइ. ५ सेहं आयार गोयरं ग्गहणताते । अब्भुयवं नव.६ गिलाणस्स अगिलाणताते वेयावचं Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( १३७) करणताए अब्नुहयवं नवइ. ७ साघमित्ताण मधिकरणंसि जप्पन्नंसि तत्र अनिस्सितो वस्सिते अपरक-गादी. मधन लावनूते कदणु साहमित्ता अप्पसदा अप्पजंझा अप्पतुमतुमा नवसामणताते अब्य वं जव.७ ॥ अर्थः-श्रण पाठ ग स्थानके सण सम्यक् प्रकारे घ० अणपाम्याने विषे उद्यम करवो. ज० पाम्याने विष यत्न करवो. पण शक्ति न होय तोपण पराक्रम कर. अ एवा अर्थने विषे यो प्रमाद न कर वो. हवे ते स्थानक कहे बे-श्रण अणसांजल्यो श्रुतधर्म सांनलवाने विषे अ० उद्यम करवो. १ सुण सांनव्या श्रुतधर्मने न० ग्रहण करवाने, अविसारवाने अर्थे, अ० अवधारवाने अर्थे अनुद्यम करवो. ण नवा कर्म सं० संजभे करी अ० अणकरवाने विषे अ उद्यम करवो. ३ पो पुर्वलां कर्म त तपे करी विण निर्जरवाने अर्थे वि० श्रात्मा विशुद्धवाने अर्थे श्रण उद्यम करवो.४ श्रनिराधार शिष्य वर्गने सं० श्राधार देवाने विषे अ उद्यम करवो. ५ से नवदिक्षीत शिष्यने आण्झानादिक पांच श्राचार गो गोचर निकाचार ग ग्राहावाने विषे अ० उद्यम करवो.६ गि रोगीनी अण् खेदरहित वैयावच करवाने विषे अ उद्यम करवो. सा साधर्मीकने विषेष अधिकरण विरोध न माहोमांही नपन्याथी त त्यां अ० राग रहित, आहारादिकनी श्वा रहित, द्वेष रहित अण अपक्षपातपणे म मध्यस्थ ना नावे का शुं शुं करे, ते कहे बेः-सा० साधर्मी अ रामना मोटा शब्द रहित तथा अण विखर्या वचन रहित अ० क्रोधकृत विकार रहित थाशे. एम विचारीने न विरोध नपशमाववाने विषे श्रण उद्यम करवो. ७ नावार्थः-हवे जुउँ ! ए कलह कदाग्रहनां कर्म बीजाने तो नथी लागतां, पण जगमो मुंकाव्यो तेने लान कह्यो. ए जगमो मुंकाव्यो ते न हरयामां के परजीवना नपगार वास्ते ? (६) वली मार्गमां कीमी, मकोमी, हरीकाय (लीलोत्री) प्रमुख पमी होय ते पोते टालीने नीक Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) + सिद्धान्तसार.. ल्यो. तेवारेमा हलोमा इणो यश् चुक्यु. पडी बीजाने कहे के, हे ना! तमे पण अस प्रमुख जीव नपर पग न देशो. ए उपदेश न हण्यामां के परजीवना उपगार वास्ते ? () वली केशीगुरुने तथा चित्तसारथिने प्रदेशीनुं कर्यु पाप नहोतुं लागतुं, पण कपटा करी घोमा रथ दोमावी हिंसा करीने चित्तप्रधान प्रदेशीराजाने लाव्यो. धर्मदलाली करी. पड़ी केशीश्रमणे अनेक अष्टांत दर प्रदेशीने समजाव्यो. ए जगमामां पमया. एन हण्यामां के परजीवना उपगार वास्ते ? () वली दसाश्रुतखंधमों साधुनी पनिमाने अधिकारे कयु डे के, साधु अग्निमां बलतो होय त्यारे तेने कोश् दयावंत काढवा श्रावे ते काढनारनी श्रनुकंपा अर्थ नीकले ते पाठ मासियणं निख्खू केइ अवस्सगं अगणिकाएणं बामेया णो से कप्पर तं पमुच्च निखित्तएवा पविसित्तएवा. तवणं के बादाए गाहाय आगसेवा णो से कप्पइ तं अवलंवित्तएवा पवलंबित्तएवा कप्प से आदारियंरित्तए. अर्थः-पूर्ववत् . प्रश्न बीजे, पाउल पाने १२७ में. नावार्थः-हवे जुई ! बलता साधुने कोश् अग्निमांथी काढे तो ते काढनारनी अनुकंषाने अर्थे नीकले, पण एम न जाणे के " ए प्राणी नीकलीने शुं धर्म करशे. जो हुं नहीं नीकर्बु तो ए नेलो बलशे. तेमां मारा नव जोगमां तो हिंसा लागती नथी." पण तेना उपकार अर्थे सुखे नीकले. ए न हएयामां के परजीवना नपकार वास्ते ? (ए) वली नदीमां श्रारजा मुबे तेनुं पाप साधुने तो नथी लागतुं, पण तेने अनंत जीवनी रक्षपाल जाणीने काढे. ए न हण्यामां के नगार्यामां ? इत्यादिक अनेक प्रश्न उपकार नपर जाणवा. जेम आ प्रश्नोमा आगलानुं करेढुं पाप पोताने नथी लागतुं, पण नपकार अर्थे उपदेश दे तथा बाटलांकार्य करे; तेम उपकार वास्ते अने आगलानुं पाप टलाववाने वास्ते .. जीवने बचाववो जोइए. जेना घटमां परोपकारनी बुद्धि नथी, अनुकंपा. Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१३९) समकितनुं लक्षण नथी अने दया नथी, तेनुं अन्नयदान पण अन्नविनी परे निरर्थक जाणवू. वली जीवने बचाव्यामां पाप कहे तेने पुर्बु के, हे देवानुप्रीय ! जीवनी रक्षा करवी तथा नपकार करवो ते तो सूत्रमा गमगम बताव्युं , पण अमे तेमने पुडीए बीए के "कया सूत्रमा कयु डे के, पोताना वृतनी (कल्पनी) मर्यादा राखीने जीवने न बचाववो. " वली जीवने वचाव्याथी पाप लागे, अने असंजति जीवनुं जीवq न वान्, एवं ३५ सूत्रमां, ४५ तथा ७४ श्रागममां अथवा टीका चर्णि नाष्य के प्रकरणमां क्यांय कयु होय तो बतावो. तेवारे मुबतो माणस बाचका जरे तेनी माफक सुयगमांग सूत्रनी जुठी शाख बतावे . तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! श्हां तो एम कडं ने के, हे साधु तुं संजम नांगीने असंजम करी जीवQ वान्डोश नही. संजम धारीने संजम डोमीने पोतानुं असंजम जीवीतव्य वान्लवं नहिं, एम कर्दा के; पण एम नथी कां के, साधु तथा श्रावके बकायना जीव असंजतिर्नु कोइए जीवq वान्डवं नहिं. वली तेरापंथी, संजति जीवनुं जीवq नही वान्छ, ते विषे, आवश्यक सूत्रनी तथा उपाशकसूत्र प्रमुखनी जुठी शाख बतावे . ते पाठ: तयाणंतरंचणं अपछिम मारणंतिय संवेदणा सणा - आराहणा समणोवासगस्सणं पंच अइयारा जाणियबा समायरियषा तं0 इहलोगा-संसप्पनग्गे १ परखोगा-संसप्पनग्गेश जीविया-संसप्पनग्गे३ मरणा-संसप्पनग्गे ४ कामनोगा-संसप्पनग्गे ५ .अर्थः-तण तेवार पनी अ० बेल्लो मा० मरणने अंते सं० संलेषणा जु० तप अग्मिने विषे आप आराधनाना स श्रमणोपासकने (श्रावकने) पं० पांच थ० अतिचार जाग जाणवा पण पण समाचरवा नही. तं० ते जेम तेम आलोळ. ३० आलोक मनुष्यादिकनां सुख चक्रघृत, बलदेव, अथवा वासुदेवनी रिडिने पामुं एवी श्वा न करे. पण Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०) 4 सिद्धान्तसार देवता दिकना सुखनी, इंद्रादिकना पदनी इच्छा ज करे. जी० पोतानो महीमामोव देखीने घणा दीन जीवुं तो ठीक एम न चिंतवे. म० पु ज्यपणुं देखीने तथा दुधादेवनी सहन न थाय तेथी ऊट मरी जाउँ तो सारु, एम न चिंतवे. का० शब्द, रुप, रस, गंध छाने स्पर्श, एवा कामजोगनी इच्छा न करे. “ परलोके या तपना नावे ए मने अधिक प्राप्त थाजो, एम न चिंतवे. " भावार्थ:- दवे जुर्ज ! इहांतो एम कयुं के, संलेषणामां (संथारामां) पांच बोलनी वान्बा करवी नही करे तो संथारामां अतिचार लागे. दे देवानुप्रय ! दांतो एम कयुं बे के, संथारामां घणादीन जोतुं तौ सारं अथवा मरण वेहेतुं श्रावे तो सारुं. एतो पोताना जीव श्राश्री कथं ठेके, संथारामां पोताने जीवकुं मरतुं वान्बवुं नही; पण एमँ नथी युंके, कोइ जीवनुं जीववुं मरतुं वान्बवं नदी. ए दया उठाववाने वास्ते मतना सीधे मृखाबोली संसार केम वधारो हो ? तेवारे तैरापंथी कढ़े बे के " ज्यारे संथारामां जीववुं मरतुं वान्बयामां दोष के त्यारे विनासंथारे पण जीवबुं मरतुं वान्छे तेपण श्रार्तध्यान बे, अने माझा बाहार बे. " तेनो उत्तर दे देवानुप्रीय ! धर्मध्यान शुक्लध्यान तो संवर निर्जरा सम्यक्त सहित होय तेने कहीये. ते संवरथी तो पुन्यपापरूपी कर्मवतां रोकाय, निर्जराथी श्रागलां कर्म तुटे (शाख सूत्र गवती सतक बीजे उद्देशे पांचमे) ने रुडध्यानथी पाप बंधाय. देव कहो ! पुन्य कया ध्यानथी बंधायाने देवतानुं श्राखुं कया च्यानी बंधाय ते सूत्र शाख बतावो . हे देवानुप्रीय ! पुन्यनो ने देवताना श्रानखानो बंध श्रार्तध्यान ( याश्रवज्ञाव ) मांज बे. संवरनावमां प्राजखं बंधाय नही. शाख सूत्र जगवतीं शतक पड़ेले. दवे श्रप्रशस्त - श्रार्तध्यानथी ( श्राश्रवजावरागंथी) पाप बंधाय, अने प्रशस्त श्रार्तध्यानथी (प्राश्रवजाव सरागथी) पुन्य भने देवता धाय. शाख सूत्र जगवती शतक बीजे संदेश : Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार ( १४१ ) पांच. . सराग प्रशस्त संजम तथा तप नपर पण आर्तध्यान बे. ए न्याये प्रशस्त कार्यथी तथा प्रशस्त राग जावथी जीवतुं मरतुं वान्छे, ते पुन्य प्रक्रतिनुं कारण बे. वली तेरापंथी, “ जीवतुं मरतुं वान्यामा धर्म पुन्य सरधे तेने मिथ्यात पाप लागे " एवी परुपणा जोला जीवोने झरमाववा वास्त करे बे, पण पोतानुं जीवनुं वान्बे बे. वचन बोलीमां बंध नथी. तेमने एवा प्रश्न पुढीए के: - ( १ ) तमारे जीववानी वांडा नथी त्यारे साप व्याथी आघा केम जाबो ? ( २ ) सांढ लढता आता देखीने या केम खसोटो ? ( ३ ) सींद धावता देखीने घाम जो? (४) हमकायुं कुतरुं देखीने श्राघा केम खसोढो? (५) टाढ लाग्याथी कपमां केम उढोटो ? ( ६ ) तापमांथी (लुमांची ) air hai? ( 3 ) पेटमा जुख लाग्याथी ठाम ठाम घर घर टकी आहार लावीने केम खाउंडो ? ( ८ ) वायु दाघज्वर वीगेरे शरीरमा रोग उपन्याथी औषधनो उद्यम करी जीवीतव्य केम वढोढो? ( ९ ) बात पत्थर पतो देखी यघा केम खसोबो ? इत्यादिक उपसर्ग उपज्यां सांमा जानुंतो मरण वांढयुं कदेवाय श्रने श्रधा जाउँ तो जी - वीतव्य वान्युं कद्देवाय तमारी श्रद्धाने लेखे तो जे जग्योए बेटा तेज जग्योए बेठा रहे जोइए. ए उपसर्ग उपन्याथी आघा केम जाबो, मुख लाग्याथी प्रहार केम करोगे अने रोग उपन्ये औषध केम करो बो; कारण के जीवj वयां श्रार्तध्यान पाप लागे, तो दुःख गमाववानी वा, ते ध्यानज बे . मनगमतो संजोग मल्यो तेनो विजोग न पने तो सारं, ने अगमतो संजोग मल्यो ते वहेलो मटे तो सारु, एवी चिंतवणा करे ते पण श्रर्तध्यान बे. शाख सूत्र नववार, चार ध्यानना अधिकारमा. 8 वे जुड़े ! दे देवानुप्रय ! जो जीवतुं वान्बवुं नही तो दुःख गमाaj पण वान्aj नही. तमे सर्पादिकना उपसर्ग उपन्याथी श्रधा केम rish? ख गमावाने आहार केम करोडो ? तथा रोग गमाववानी बाम्बा फेम करोबो ? तमे कहता हता के जीवनुं न वान्छबुं. त्यारे प Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - + सिद्धान्तसार.. उपाय करी जीवq केम वान्ब्युं ? ए बोलीने केम बदलोगो ? तेवारे तेरापंथी कहेडे के “ घणा दीन संजम पाख्याथी लान्न घणो बे. ते घणा दीन संजम पालवानी वान्डा वास्ते एटला उपाय करीए बीए। अमारे जीववानी वान्डा नथी. " तेनो उत्तरः-हे देवानुप्रीय ! गजसुः कमाल मुनीराजतो माताने हाथे नोजन करी, संजम ले तेज दीवसे उपसर्ग सही मोद गया. ते शुं लाज थोमो थयो ? वली दिदा लइ नपसर्ग उपन्याथी समे प्रणामे सामा मंझे तथा समे प्रणामे संथारो करे, तेमां लान्न घणो के माल खाइ घणा दीन संजम पाले तेमां लान्न धणो? ते कहो. तेवारे तेरापंथो कहे जे के, नपसर्ग श्राव्याथी सामा मंझे तथा संथारो करे तेने धन्य जे. तो हे देवानुप्रीय ! तमारे लेखे तो जीववानी वान्डा करवी नही. तमारे तो संथारोज करवो श्रेष्ट बे. पण लगवंते तो उःख गमाववाने श्रर्थे तथा जीवीतव्यने अर्थे थाहार करवो कहुं ले शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन वीसमें, गाथा तेत्रीसमी. ते पाठः.... वेयण वेयावच्चे शरियहाएय संजमहाएय, , तद पाणवत्तियाए बहं पुण धम्म चिंताए ॥ ३३॥ अर्थ:--पुर्ववत्. जुर्व प्रश्न १ लो पाने १०मे. ; लावार्थः-हवे जुट ! अहीतो न कारणे आहार करवो कयुं ; अने तमे कहोडो के, एक संजम पालवाने श्रर्थे एटला उपाय करीए बीए, औषध लावीए बीए, अने आहार करीए बीए. ए मृषावाद केम बोलोडो ? तेवारे तेरापंथी कहे के " असंजम जीवीतव्य न वान्बवू, पण संजम जीवीतव्य वान्यामां धर्म , ते माटे एटसा उपाय करी संजम जीवीतव्य वान्छीए बीए.” एम कहे, पण आगल ए वचन पण पलटी जशे, कारणके जुग-बोल्याना वचनमां बंध नथी. ते वास्ते तेरापंथीने पुq के “ तमारा साधुने को अनार्य फांसी द गयो. ते देखी को दयावंत, ए साधु संजम घणा दीवस पालशे एवा मोटा मुनी, राज , एम जाणी अनुकंपा प्राणीने शुद्ध प्रणामथी खोले तथा वजे Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार (१४३) एं संजम जीवीतव्य खोलनारे वान्बयुं, तेमां पाप केम कहोबो ? तेमज कुतरो करके तेने काले, पकताने बचावी ले, इत्यादिक सर्पादिकना अनेक उपसर्ग उपजता देखी, घणा दीन संजम पालशे एम जाणी टाले. ए संजम जीवीत्व उपसर्ग टालनारे वान्बयुं एमां पाप केम कहोबो ? " तेवारे तेरापंथी कड़े के, " गृहस्थीनी साहाज साधुए वान्दवी नहीं, तेथी पाप कहीए बीए. जेम संथारामां खावाना त्याग के तेने अनुकंपा " ने खवरावे तथा संथारो गावे तेने पाप थाय, तेनी पेरे अनुकंपा प्राणीने धर्मार्थे साधुनी फांसी खोले तेने पाप कहीए बीए. एवा कुहेत मेलवी बोघां लोकोने बेदेकावे छे. तेनो उत्तर. हे देवानुमीय ! साधुतो गृहस्थीने धर्म थाय तेवां पण घणांक कार्य न वान्छे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन ३५ में, गाथा १८ मी. ते पाठः प्रचणं रणं चेव, वंदणं पूयणं तहा; इटि सक्कार सम्माणं, मणसावि न पचए ॥ १८ ॥ अर्थः- ० चंदनादिके करी अर्च, र० रत्न मंगननुं रच, चे० निश्चे वं० वांद (गुणनुं करवुं ) पु० पुजवुं, तेमज इ० लब्धनी र अन्नादिक देवेकरी स० सत्कार स० सन्मान, एटलां वानां म० मने करीने पण न० न प० वान्बे ॥ १८ ॥ जावार्थ:- हवे जुटे ! इहां कयुं के, साधुए गृहस्थीनी वंदा के सत्कार सन्मानादिक वान्धवो नही, पण गृहस्थी साधुने दणा करे तथा आदर सन्मान दे तेने धर्म याय के नही ? तेम साधु तो गृहस्थी नी साहाज न वान्बे, पण कोइ दयावंत फांसी खोले, उपसर्ग टाले, तेने पाप कया न्यायथी कहो बो. वली गृहस्थीने घेर सुखमी प्रमुख देखी साधु मनमां एम न वान्छे के, मने वोहोरावे तो ठीक; पण बोहोरावे तेने धर्म बे. तेम साधुनो नृपसर्ग टाले तेने धर्म बे. वली तमे संथारो जंगाववानो कुदेतु मेलव्यो, पण संथारामां तो. खावापीवाना त्याग छे. ते त्याग कोइ दुष्टबुद्धि, मिथ्यादृष्टि के धर्मनो Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार वेषी होय ते नंगावे तेने तो पाप लागे, पण तेना नंगाव्या त्याग साधु नांगे नही. वली जेम संथारामां खावापीवाना त्याग ले तेम फांसीधी खुल्ला थवाना तथा कुत्ता प्रमुखना नपसर्गथी बचवाना साधुने त्यागः नथी. को दयावंत खोले तो सुखे खुले, पण साधुए गृहस्थीने खोल: वार्नु केहेवू नही. ए साधुनो कल्प ले. तेमज साधु गृहस्थीने विनय करवा, सामा श्राववानुं, उन्ना रहेवानुं श्रने नपसमीपे आववानु, कल्प नथी तेथी कहे नहीं; पण गृहस्थी साधुनो विनयादिक करे तेने तो गुणज बे. तेम फांसी खोले तथा नपसर्ग टाले तेने पण गुण जाणको पण सूत्रसेलीना अजाण त्यागने अने कल्पने नलख्या विना मोहमदमां बक्या बोले के, संथारो नंगावे तेनां फल अने फांसी खोले तेनां फल एक सरखां जे. एम कहे तेने समकिति केम कहीये. वली तेरापंथोने केहे के, साधूनुं साधू संजम जीवीतव्य वान्छे तेमांतो तमे पण धर्म कहोबो, अने जगवते पण सूत्र गणायांगमां कह्यु डे के, साधवी नदीमां मुबती होय तेने दयाना नावेकरी साधू काढेतो श्राझा नखंघे नही. संजम जीवीतव्य वान्उयुं कहीये. ए लेखेतो नगवंत श्री माहावीरदेवे गोशालाने अनुकंपारस श्राणीने बचाव्यो. ते पण नगवंते सं. जम जीवीतव्य वान्ब्युं कहीये. तेमां तमे जगवंतने पाप लाग्युं कहोगे अने नगवंतने चुक्या कहोबो. ते कया न्याये ? जेम साधवी संजमधारी बे, तेम गोशालाने पण नगवंते पोतानो शिष्य कह्यो . शाख सूत्र जगवती शतक पंदरमे. ते पाठ लखीए बीए:ततेणं समणेनगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवंवयासि जेति ताव गोसाला तहारूवस्स समणस्सवा माहणस्सवा तंचेवजाव पज्जुवासंति किमंगपुण गोसाला तुम्मं मए चैव पवावित्तेजावमए चेवबस्सुतीकए ममंचेवमिद्धं विप्पमिवणे. .. अर्थः-त० तेवारे स० श्रमण जगवंत श्री महावीर स्वामी गो : गोशाला मं० मंखलीपुत्रने ए० एम केहेता हवा. मे जे ता ते गोश Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . + सिद्धान्तसार । हे गोशाला ! त० तथारुप सा श्रमग तपस्वी मा० ब्राह्मण तं० तेमज जा यावत् शब्दे समोपे एक पण वचन आर्यनबुं धर्मसंबंधी सुवचन शांनले ते पण ते प्रत्ये वांदे, नमस्कार करे, यावत् कल्याणकारी, मंगलकारी, देवसमान, चैत्यसमान जाग यावत् शब्दे प० शेवा करे. तो कि० घणुं शुं कहोये, तुजोने पुण् वली गो हे गोशाला ! तु तुज. प्रत्ये म मेंज चनिश्चे प० प्रवा (दिक्षा) दोधी इत्यादि जाण यावत् म मुजथकी चे० निश्चे ब० बहु श्रुत थयो. तेजुलेश्या पामीने समर्थ थयो ते मग मुजयीज चे निश्चे मि० तें अनार्यपणु वि० प्रतिवज्यु. नावार्थ:-हवे जुन ! गोशालो प्रजुनी साथे ब वर्ष सुधी रह्यो, लान अलान सुख दुःख नेलां जोगव्यां, मांहोमांही सुख चिंतवता रह्या, अने पनी मिथ्यात्व प्रवर्यो. समोसरणमां आव्यो त्यां नगवंते एम कर्दा के, हे गोशाला ! में तने मुंभयो, प्रवा (दिदा) दीधी, जणाव्यो भने बहुश्रुत कर्यो. ए श्रीमुखथो वीतरागदेवे कह्यु. ए नगवंतनो शिष्य गोशालो, तेने जगवंते संजम धारीने बचाव्यो, तेमां नगवंतने पाप कर्म लाग्यां तथा चुक्या कहो तो, पाणोमां मुवती साधवाने काढयाथी धर्म कया न्याये थशे. जो साधवीने नदीमाथी काढयामां (बचाव्याथी) धर्म हशे तो, नगवंते पोताना शिष्य गोशालाने बचाव्यो तेमां पण धर्म हशे. तेवारे तेरापंथी कहे के “ जगवंत ज्यारे बनस्थपणे हता त्यारे न लेश्या अने आठ कर्म हतां. गोशाला नुपर राग आव्यो ते कृष्णादिक माठी लेश्याना प्रणाम . ते रागना प्रपामे करी गोशालाने बचाव्यो तेथी प्रजुने चुक्या कहोये बीए." एवां जुगं बाल प्रजुने देठे तेनो उत्तर. हे देवानुप्राय ! उद्मस्थ तोर्थकरमां दक्षा लीधा पनी ब लेश्या कया सूत्रमां कही डे ? ते बतावो. तेवारे तेरापंथ। केहे डे के “ सामायक-चारित्रमां, बेदोस्थापनी-चारित्रमां, कषायकुशील-नियंगमां अने मनपर्यव-ज्ञानमा इत्यादिकमा उ लेश्या कही , अने सामायक- चारित्र, कषायकुशील-नियंगे अने मनपर्यव Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ज्ञान बद्मस्थ तीर्थंकरमां होय . ए न्याये नगवंतमा उ लेश्या कहीये बीए.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! ए बोलोना धणी तो घणा साधु बे. सामायकचारित्रना अने कषायकुशील-नियंगना धणी जघन्य उत्कृष्टा प्रत्येक हजार क्रोम कह्या ले. ते जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्टा चारित्रना धणी बे, अनंतगुणा हाणी अधिक बे, बगण वमिया बे. ते कर्मने वशे पाना पमे तो निगोदमां पमे, अने उत्कृष्टो अनंतो काल अर्ध-पुद्गल सुधी नमे. ए कृष्णादिक त्रण माठी लेश्याना प्रणाम आवे त्यारे संजमनो विणाश थाय. वली सामायक, बेदोस्थापनी चारित्र अने कषायकुशील नियंगे एक नवमां जघन्य एक वार श्रावे अने उत्कृष्टोप्रत्येक सोवार आवे. शाख सूत्र नगवती शतक २५ में, उद्देशे ६ तथा ७ में. त्यांन नियंग अने पांच संजया चारित्रना अनेक प्रकार कह्या जे. ते पहेला कृष्णादिक त्रण माठी लेश्याना प्रणाम आवे तेने पान वाली ले, मिहामि उक्कम इत्यादिक प्रायश्चित ले; अने कर्मने वशे पाठा न वले तथा प्रायश्चित न ले तो संजम जाय. हवे चार शानथी पमे त्यारे पहेला तो किंचितमात्र लेश्या वर्ते, पनी मनपर्यव-हान अने चारित्र नियंगे जाय, ते श्राश्री ब लेश्या कही दोसे . ए न्याय देखामोने नगवंतमां पण सामायक चारित्र, कषायकुशील-नियंगे अने मनपर्यव-शान होय. तेथी समय उ लेश्या कही, तेम नगवंतने पण उ लेश्या होय एम कहे ले तेने पुबीए के, सामायक-चारित्र तथा कषायकुशील-नियंगवालामां तो संजम जघन्य, मध्यम अने नत्कृष्टो पण होय अने अनंतगुण हीण अधिक पण होय. हवे जगवंतमां कयो संजम होय ते कहो. हे देवानुप्रीय ! नगवंतमांतो उत्कृष्टो निर्मलो संजम बद्मस्थपणामां पण कह्यो . शाख सूत्र आचारांगमां. वली सामायकचारित्र अने कषायकुशाल-नियंगमा लेश्या कही, तेथो जगवंतमा बलेश्या कहे, तेना केहेने लेखे तो कोई तार्थकरे पंदर जब पण कर्या जोइए, Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १४७ ) अने कोइ तीर्थंकर कर्मने वशे ष्ट थइने चार गतिमां अनंत काल पुद्गल सुधी रुख्या (म्या) पण जोइए, छाने एक जवमां नवसोवार संजम जाय श्रावे एम पण थवं जोइए. वली सामायक चारित्र ने कषायकुशील - नियंगमां बत्रीस बोल कह्या वे. शाख सूत्र जगवती शतक पचासमें, उद्देशे बड़े तथा सातमें. ते प्रमाणे बद्मस्थ तीर्थंकर मां सर्व होवा जोइए. हे देवानुमीय ! सामायक चारित्रादिकनी शाख देखामी भगवंतमां व लेश्या कहो तो, सर्व बोल सामायक चारित्रादिकमां कह्या स्थ तीर्थंकरमा केम नथी केदेता ? वली सामायक - चारित्र छाने कषायकुशील नियंगमां तो कल्प पांच कला बे :- वीय कल्पी ( कल्प प्रमाणे रेहेतुं ) १, टीय कल्पी (कल्प रहित ) २, जिन कल्पी (xनिग्रदधार । ) ३, (स्थिवर - कल्प) ( दमणा साधु प्रारजा विचरे बे ते ) ४, पातित ( वीतराग ) ५. तेमां बद्मस्थ तीर्थंकरमा दिक्षा लीधा पीकल्प एक कपातितज होय एम कयुं छे. शतक २५ में. हवे सामायक - चारित्र कम्पातितमां ने कषायकुशील नियंता कल्पातितमां लेश्या को सूत्रमां तथा टीका प्रकरणमा क्याय पण कही नथी. त एवा मतना सीधा जगवंत नपर कुमा बाल केम घोडो. वली सामायक चारित्रादिक सर्व बोलमां व लेश्या कही बे, ते द्रव्य लेश्या जाणीए बीए. लेश्या द्रव्य अने जाव, बे प्रकारे कह बे. तेमां द्रव्य श्याने रुपी फर्सी कह | बे. जेमां पांच वर्ण, पांच रस, वे गंध नेफर्स होय ते शरीरादिकना वर्णादिकने कहीये; अने जाव लेश्याने रूप कही बे, तेमां वर्ण, रस, गंध अने फर्स नथ । शाख सूत्र जगवती शतक १२ में, उद्देशे ५ में. ए न्याये ज्ञानमां, समतिमा, चारित्रमां नियंगमां ने चोवीस दंककमां, सर्वमां जाव-लेश्या केहेशोतो द्रव्य-लेश्या शेमां होय ते कहो. साधुजीनां द्रव्य लेा दोय के नदि ते को; कारण के साधुज म । व्य- लेश्या जाव- लेश्या न्यारी न्यारी तो कोइ ठेकाणे कही नथ . बली नारकी मां पेहेली त्रय मावी लेश्या कढ़ी के पूरा Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८) + सिद्धान्तसार लेश्या जाणीये बीए; कारण के जावे तो क्षायकादिक समकितना प्रणाम तथा उदासीनाव पाबला नवनां कीधेलां पापने निंदे, पोतानी श्रात्माने धिक्कार देवे, ते प्रणाममा नावे नली लेश्या होय तो नाकारो नहि. वली नवनपति अने वाणव्यंतरमा लेश्या चार कही बे. त्यां पण पद्म शुक्ल नावे होयतो नाकारो नहिं. वली समकितिमां अनंतानुबंधी चोकमीना क्रोधादिक नपशम्या तथा खप्या, ते कर लेश्यानुं लक्षण कहीये ? ते उत्तराध्ययनना ३४ मा अध्ययनथी वीचारीने कहो. वली ज्योतिष अने पहेला बीजा देवलोके लेश्या एक तेजु कहीजे. त्रीजे चोधे अने पांचमे देवलोके लेश्या एक पद्म कहीजे. आगल हा देवलोकथी मांमीने पांच अनुत्तर विमान सुधी लेश्या एक शुक्ल कही, ते पण अव्य लेश्या कही दीसे . नावे कृष्ण, नोल, अने कापोत माठी लेश्या होय तो नाकारो नही; कारणके बकायतुं अवृत सेवे, रागद्वेष, परजीव नपर जोह नाव करे, देवांगनाथी लोग जोगवे अने अनेक प्रकारना जुझ करे, ते प्रणामोने नावे केवी लेश्या कहीये ते कहो. उत्तराध्ययन सूत्रना ३४ मा अध्ययनमां तो ए लक्षणने नावे कृष्णादिक माने लेश्यानां कह्यां बे, ते वीचारी जोजो. वली सूत्रमा तो नारकी तथा देव. तामां लेश्या समचय कही डे पण अव्ये जाणीए बीए, अने नावे तो बए दोसेले. उत्तराध्ययन सूत्रना ३४ मा अध्ययनमांबलेश्यानां लक्षण कह्यां डे, ते वीचारी जोजो. तेम सामायक-चारित्रमां, बेदोस्थापनी-चा. रित्रमां, कषायकुशील-नियंगमां अने मनपर्यव-झानमां समचे लेश्या कही, ते अव्ये जाणीए बीए. जो नावे होयतो पुलाक, बकुस बने पमिसेवणा, ए त्रणे नियंगवाला मूलगुण अने नत्तरगुणमां दोष लगावे, तेमां पण त्रण लेश्या कहोने; अने कषाय-कुशाल तो अप्पमिसेवा , एटले मूलगुण, उत्तरगुणमा दोष लगामे नही, त्यारे तेमां नावे व लेण्या केम संनवे ? कारण के नावे तो साधुनगवंतमां लेश्या वर्ष नलीज होय. वली साधुनगवंतमा नावेज लेयार कहे, तेने पुकार के, भारत लागे ते कर लेश्याथी लागे? अव्य लेण्या अजीब Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( १४९ ) कहो बो तेथी लागे ? के जाव लेक्ष्या जोवना प्रणाम, तेथे लागे ? तेवारे तेरापंथी कहे दे के, द्रव्य लेण्या अजीव बे, तेथे तो आरंभ पाप लागे नही, पण जाव ले याथी ( जीवनः प्रणामयो ) आरं पाप लागे बे. त्यारे जुर्ज ! श्रारंन लागे ते था। लेश्याना प्रश्न कर्या, त्यां साधुजीमां त्रण जली ले या कही. शाखसूत्र जगवती शतक १ले उद्दशे १ले ते पाठ. जीवाणं नंते ! किं आयारंजा पर रंना तदुनयारंजा - पारंजा ? गो० ! वेगझ्या जीवा व्यायारंजावि परारंजावि तनयारंजावि पोणारंजा गतिया जीवा णो प्रायारंजा गोपरारंजा पोतदुनयारंजा यणारंजा. सेकेणठेणं जंते ! एवं बुच्च वेगइया प्रायारंजावि एवं पउिच्चरियवं गो० ! जीवा डुविहा पं०तं० संसार- समावणगाय प्रसंसार- समावणगाय तचणं जेते संसार- समावणगा ते सवासिणं णोच्यायारंजा जाव णारंजा तचणं जेते संसार- समावणगा ते दुविदा पं०तं० संजयाय असंजयाय तचणं जेते संजयाते दुविहा पं०सं० पमत्त-संजयाय अप्पमत्त - संजयाय तत्रणं जेते अप्पमत्त - संजया तेणं णोच्यायारंजा णोपरांरंजा जाव णारंजा तचणं जेते प्पमत्त - संजया ते सुहजोगंपमुच्च पोच्यायारंजा पोपरारंजा जाव णारंजा असुहजोगंपच्च प्रायारंजावि जाव पोणारंजावि. तचणंजेते संजया ते विरयपमुच्च प्रायारंभावि जाव णोच्यायारंजा सेतेाठेणं गो० ! एवंवुञ्चइ गतिया जीवा जाव कारंजा रइयाणं नंते ! किं आपारंजा परारंजा तदुनयारंजा अणारंजा ? गो० ! नेरया प्रायारंजाबि जाव णोणारंचा. सेकेण्डेणं नंते ! . Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) + सिद्धान्तसार.. - - एवंयुच्च णेरड्या जाव णोअणारंला ? गो ! अविर: पडुच्च सेतेणणं जाव णोअणारंना.एवं जाव पंचिंदियतिरिकजोणिया. मणुस्सा जहा जीवा गवरं सिधविरहिया नाणियवा. वाणमंतरा जाव वेमाणिया जदा ऐरइया. सलेस्सा जहा जहिया. किण्हलेसस्स नीललेसस्स कानलेसस्स जहा नदिया जीवा णवरं प्पमत्त अप्पमत्ता जाणियवा. तेनलेसस्स पम्मलेसस्स सुकलेसस्स जदा जहिया जीवा एवरं सिक्षा नाणियबा. श्रर्थः-जी जीव जंग हे नगवान ! किं० शुं श्रा० श्रात्मारंजी (पोतज जीवनी घात करे ते) ? प० परारंजी (अनेरा पासे जीव. घात करावे ते) बे ? त० तदुनयारंजी (पोते पण जीवघात करे अने अनेरा पासे पण जीवघात करावे ते) ले ? के अ० अणारंनो(जीवनी घात न करे, न करावे न अनुमोदे ते) बे ? गो हे गौतम ! अ० केटलाक जी0 जीव आ० आत्मारंनी बे, प० परारंजी २ अने त० तदुलयारंजी बे, पण णो अणारंजी नथी. अ० केटलाक जीव गोश्रा० श्रात्मारंनी नथी, गोप० परारंजी नथी अने जोत तदुनयारंनी पण नथी एटले अ० अणारंन्नी . गौतम पु. से ते शा कारणे जंग हे जगवान ! ए० एम कडं ? श्र० केटलाएक जीव श्राप आत्मारंजी डे. ए० एम प० सर्व पूर्वे कयुं तेम पाईं केहेबु. एम प्रश्न आगल पण सर्वत्रापि केहेवो. गो हे गौतम! जो जीव दुबे प्रकारना पं0 कह्या. (में अथवा अन्य केवलीए एटले समस्त तीर्थकरना मतने विषे नेद नथी एम कह्या.) तं ते कहेजेः-सं० एक जीव (देव, मनुष्य, तियंच अने नारकीरुप चार गतिने विषे संसरण करे ते) संसार-समापन्न . अ० बीजा जीव (चारगतिथ। वेगला डे एटले मुक्तिगया ते) असंसार समापन्न . ता त्यां जे जे जीव अ चार गतिरुप संसारमा मनंतीवार लमी जमो समस्त कर्म कयरुप स्थानक पाम्या, अंदरे Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( १५१) नेदे सिद्ध थया. ते ते सि सिद्ध णो प्रात्मारंनी नथ जाग यावत् अ० अणारंजा . सिद्ध सर्वथा प्रारंज रहित बे. ता त्यां अनंतरे बे पद कह्या तेमां जे सं० चतुर गति लक्षणरुप संसारने विष रह्या जीव ते० ते.दुबे प्रकारे कह्या. तं ते कहे बे-सं० एक जीव संयति श्रण बीजा चारित्र रहित असंयति ( पेहेला गुणगणाथी चोथा गुणगणा सुधी वर्ते ते ). त० त्यां संजति असंजात ए बे पक्षमा जे जे संजति चारित्रवंत, ते दुबे प्रकारे प० कह्या. तं ते कहे .. प० प्रमत्तसंयत (प्रमादी साधु बहे गुणगणे वर्ते ते,) अ अप्रमत्तसंयत (अप्रमादी साधु सातमा गुणगणा आदिने विषे वर्ते ते.)त त्यां प्रमत्त अप्रमत्त ए बे पक्षमा जे अ० अप्रमत्त संयति डे ते ते णोपा श्रास्मारंनी नथी, अने णोप० परारंनी पण नथी जाग यावत् तदुनयारंनी पण नथी, एतावता अ० अनारंनी . त ते बे पदमां जे जे पण प्रमत्त संजति ले ते शुज अशुन्न योग होय त्यां सु० शुन जोग पनिलेहण आदि सावधानपणे करे ते आश्री गोपा० आत्मारंनी नथी, गोप० परारंजी नथी, तदुनयारंजी नथ। जाग यावत् अ अनारंजी (सर्व श्रारंज रहित ) अने अ० पमिलेहणादि नपयोग रहित असावधानपणे करे, ते आश्री आत्मारंनी परारंजो अने तदुलयारंजी ने पण अणारंजी नथी. यथा पुढव आनकाए, तेनवान वणस्त तस्लणं पमिलेहणा पमत्तो बण्हपि विराहणा होइ. तथा सबो पमत्तो जोगे समएस्सन आरंनि. ए न्याये अशुन योग तेज आरंजनां कारण जाणवां. ता त्यां जे बे पदमां अ० असंजति जे ते अ० अवृत आश्रो पाण्यात्मारंजी जाग यावत् णो अणारंजी नथी. से ते कारणे गो हे गौतम! ए एम का. अण् केटलाएक जीव आरंज आदि जाग यावत् अण्णा अणारंजी , एटला सुधी केहेवा. हवे आत्मारंजादिकपणुं तेज नरकादि चोवीस दंमके कहेले. ऐ० नारकी नं० हे जगवान ! किंग शुं श्रा० श्रात्मारंजी डे ? पण परारंजी २१ त तन्नयारंलो डे ? के श्र० अणारंजो जे ? इतिप्रश्न उत्तर. गोप Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५२ ) सिद्धान्तसार.. हे गौतम ! णे नारकी आण आत्मारंजी बे, परारंजी ले जा० यावत् तदुनयारंजी , पण णो अणारं नो नयो. से० ते शा अर्थे नंग हे जगवान ! ए एम कडं ? णे नारको जाग यावत् णो० अणारंजी नथी? इतिप्रश्न उत्तर. गो हे गौतम ! अण् जेने वृत नथी तेने प्रवृति कहीये. ते श्राश्री श्रात्मारंजी श्रादि त्रणे डे पण अणारंजी नथी. से ते कारणे जा यावत् जे वृतवंत होय ते अणारंनी होय, अने जे अवृतवंत होय ते णो अनारंनी न होय. इत्यर्थः ए एम जाग यावत् असूरकुमार श्रादि पंचेंजिय तिर्यंच योनिक सुधी जाणवा. अवृतीपणाश्री आरंजी श्रात्मारंजी, परारंनी अने तदुनयारंनो होय पण अनारंनी न होय एम केहे. म मनुष्यने विषे संजत, असंजत, प्रमत्त, अप्रमत्त ए चार नेद, पूर्वे सघला जीव श्राश्री कह्या तेम जाणवा. णा पण एटलुं विशेष सि सिद्ध चारे जागे रहित ले ते माटे सिद्ध विना केहेवा. वा वाणव्यंतर श्रादि जान यावत् वे वैमानिक सुधौ जण जेम णे नारकी कह्या तेमज जाणघा. एम सर्व अविरतीपणे साधर्मी . ते माटे आत्मारंजादि करे. हवे ते जीव सखेशी श्रलेशी होय तेमाटे सलेशीनी पुडा करे . स लेश्या सहित जा जेम नग्धोक कह्या तेम जाणवु. कण कृष्ण-लेशीने नी नील लेशीने अने का कापोत-लेशीने जजेम न समचे जीव कह्या तेम जाणवा. ण पण एटलुं विशेष प० प्रमत्त अ० अप्रमत्त वर्जीने केहेवा. कृष्णादि त्रण अप्रशस्त नाव लेश्यामां संजतपणुं नथी, अने जे कयु ते अनेरी रीते अव्यले या आश्री जाणवू. ते तेजु-लेशीने प० पन्न-लेशीने सुन शुकल लेशीने जेम उघीक सामान्यसूत्रे जीव कह्या तेम कहेवा. पण एटबुं विशेष सि सिझ नही. (सिक लेश्यारहित ले ते माटे). नावार्थः-हवे जु! श्रहीयां कडं के, कृष्ण, नील अने कापोल खेशीमा उतुं सातमुं प्रमत्त अप्रमत्त गुणगणुं नथो. संजमनो अनाव (नाकारो) कह्यो. वल। कृष्णादिक त्रण मानो लेश्यामां, सूत्रनी टीकामां अने दोलतसागरकृत टवामां कडं ने के, कषायकुशील-नियंगदिकमां उसे या कही जे ते अव्ये जाणवते. ए न्याये साधुजीमांव्ये उ खेन्या Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार - अने जावे त्रण नली लेश्या जाणवी. वली साधुनगवंतमां जावे उ लेश्या कहे तेने पुबीए बोए के, क्रीया अने कर्म अव्य-लेश्याथी लागे के नाव-लेश्याथी लागे ? ते कहो. तेवारे तेरापंथो कहे जे के, क्रिया अने कर्म अव्यलेश्याथो न लागे पण नाव लेश्याथी लागे. वली क्रिया श्राश्री नाव लेश्याना प्रश्न कर्या त्यां पण साधुजीमां त्रण नली लेश्या कहो ले. शाख सूत्र नगवती शतक १ ले उद्देशे बोजे. ते पाठःमणुस्साणं नंते ! सवे समकिरिया ? गो०! णोश्ण सम. सेकेणठण नंते ? गो० !मणुस्सा तिविदा पं0 तं० सम्मदिही मिन्नदिको समामिबादिही. तबणं जेते सम्मदिको ते तिविदा पंगतं० संजयाय असंजयाय संजयासंजयाय.तबणं जेते संजया तेदुविहा पंगतं० सरागसंजयाय वीयरागसंजयाय. तवणं जेते वीयरागसंजया तेणं अकिरिया. तहणं जेते सरागसंजया ते दुविहा पं०तं० प्पमत्तसंजयाय अप्पमत्तसंजयाय.तवणं जेते अप्पमत्तसंजया तेसिणं एगा मायवत्तिया-किरियाकघ. तवणं जेते प्पमत्तसंजया तेसिणं दोकिरिया कचंति तं० आरंनियाय मायावत्तियाय. तवणं जेते संजयासंजयाय तेसिणं आदिमान तिणि किरियानकचंति आरंजिया परग मायावत्तिया. असंजया चत्तारि किरिया कचंति. मिहादिहोणं पंच समामिदिहीणं पंच. वाणमंतरा जोइस वेमाणिया जहा असुरकुमारा णवरं वेयणाए णाणतं माई-मिजदिको नववणगाय अप्पवेयणत्तरा अमाइ-स्सम्मदिको उववणगाय मदावेयगत्तरा नाणियबा. जोतिस वेमाणियाय. सल्लेसाणं ते! ऐरहया सवे समहारगा? महियाणं सखेसाणं सुकले Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९४) + सिद्धान्तसार स्साणं एतेसिणं तिएहं इकोगमो कन्दलेसं नीललेसाणंपि.. एकोगमो णवरं वेयणाए माश्-मिडदिछी उववणगाय अमाई सम्मदिही नववणगाय ण नाणियबामणुस्सा किरियासु सराग वीयराग अप्पमत्ता प्पमत्ताण नाणियबा का. नखेसाणवि एमेवगमो णवरं गैरइए जदा उहिए दंमए तदा नाणियवा तेउलेस्सा पम्मलेस्सा जस्स अनि जहा नदिन दम तदा जाणियवा णवरं मणुस्सा सराग वीय. रागाण लाणियबा. अर्थः-म० मनुष्य नं० हे जगवान ! स सघला सम सरखा क्रियावंत ? इति प्रश्न उत्तर. गोण् हे गोतम ! णो ए अर्थ समर्थ नथी. युक्त नथी. से ते शामाटे नंण् हे नगवान ! एम कडं ? गो हे गौतम ! म मनुष्यना ति त्रण नेद पं० कह्या, तं ते कहेजेःस सम्यकदृष्टि, मि० मिथ्यादृष्टि अने स० समामिथ्याष्टि. त० त्यां पूर्वोक्त त्रण पक्षमा जे स० समकिति ले ते तेना ति त्रण नेद पं० कह्या, तंग ते कहे-सं संयति सर्व विरत प्रमत्त श्रादि अयोगी गुणगणे वर्ते ते. श्रण असंयति केवल सम्यकदृष्टि जे चतुर्थ गुणगणे वर्ते ते. सं० संयतासंयति श्रावक देसविरती पांचमे गुणगणे वर्ते ते. तण त्यां प्रर्वोक्त त्रण पक्षमा जे सं० संजति, तेना कुछ बे नेद प० कह्या, तं० ते कहेजेः-स जेना कषाय क्षय थया नथी अथवा उपशम्या नथी तेने सरागसंयति कहीये. वी० जेणे कषाय नपशमाव्या अथवा खपाव्या होय तेने वीतरागसंयति कहोये. त० त्यां पूर्वोक्त बे पक्षमा जण जेवी०वीतरागसंयमी ते तेमने वीतरागपणे करी आरंनादिकनो अनाव बे ते माटे अ० अक्रिय . ता ते पूर्वोक्त बेमां स जे सरागसंयमी, तेना दु० बेनेद पं0 कह्या तं ते कहे:-प्प० प्रमत्त-संयति के गुरागणे वर्ते ते. अप्प० अप्रमत्तसंयति सातमा गुणगणाथो दसमें गुणगणे वर्ते ते. त० त्यां ने पदमा अप्पा अप्रमत्तसंयति सातमे गुणगाणे वर्ते ते ते कदा Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( १५५ ) चित माह राखवा निमित्ते प्रवर्ते तो तेने ए० एक मा० मायावतिया क्रिया लागे ( कषाय कीण थया नथी ते माटे. ) त० त्यां पूर्वोक्त बे पक्रमां जे प० प्रमत- संयति बे ते० तेने दो० वे क्रिया लागे, तं० ते कः श्र० सर्व प्रमत्तयोग रंरूप वे ते माटे आरंजनी क्रिया लागे. मा० अक्षीण कषायपणाथी मायाप्रत्ययी क्रिया लागे. त० त्यां पेढेला सूत्र अंतरेकयुं के त्रण पक्षमां देसविरतीना धणी पांचमे गुणठाये वर्ते ते० तेने श्र० पेढेली त्रण थारंजनी, परिग्रहनी ने मायाप्रत्ययनी क्रिया लागे. अ० असंयति केवल सम्यकदृष्टि चोथे गुणठाणे होय तेने मिथ्यादर्शनप्रत्ययनी टाली च० चार क्रिया लागे. मि० मिथ्यादृष्टिने आरं जनी आदि पं० पांच क्रिया लागे. स० सम्यक् मिथ्यादृष्टि जे त्री जे गुणते पण पांच क्रिया लागे. वा० वाणव्यंतर, ज्योतिष, छाने वैमानिक ज० म० सुरकुमार कह्या तेम जाणवा. त्यां शरीरनुं श्रल्पप तथा बहुत्वषणुं पोतपोतानी श्रवगाहनाने अनुसारे जाए कुं. ० पण एटबुं विशेष वे० ज्योतिष वैमानिकने विषे ए केदेवु. वे० वेदना श्री माप माया. मिथ्यादृष्टिपणे २० नपन्या तेने श्र० अल्प वेदना शातावेदनी चानी जाणवी . ० अमाइ- सम्यक ष्टिपणे उपजे तेने म० शातावेदनी अधिकतर होय (त्कृष्ट सम्यक्ज्ञान माटे ) . जो० ज्योतिष, छाने वे० वैमानि - कने विषे सुरकुमारथी विशेष जाणं. to लेश्या सहित जे नारकी प्रमुख. जीव ते जं० दे भगवान ! पो० नारकी स० सघलानो सम० एक सरखो श्रदार बे ? उ० समचय जीवनो पुढवो. स० लेश्या सहितने सु० शुक्लल-लेशीने ए० एनो एक सरखो गमो (पाठ) जावो. क० कृष्ण-लेशी नी० नील-लेशी एबेदुनो पण एक सरखोपाठ जावो. ए० एटलुं विशेष वे० वेदनाने विषे मा० माया मिथ्यादृष्टिपणे उपन्या तेने मादावेदना होय, उत्कृष्ट स्थिति प्रत्ये पामे, त्यां मोटी वेदना संवे; अने माइसम्यकदृष्टिपणे नृपन्या तेने रूप वेदना होय इत्यादिक केहेतुं म० मनुष्य पदे कि० क्रिया सूत्राने विषे अधिक के सराग, वितराग, प्रमत्त, अप्रमत्त कक्षा ते तेम केहेवा. " Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) + सिद्धान्तसार कृष्ण श्रने नीले-लेश्याने उदये संयमना अनावथी कोपात-लेश्यामो दमक पण नील-लेश्याना दमकनी परे केहेवो. ण एटलुं विशेष णे नारकीने जण जेम जैनधीक दमक कह्यो तेम केहेवा. जेम नेरश्याएं सुविहा पं० तं सन्नीनूयाय असन्नीनूयाय. तिर्यंचजीव पेहेली पृथ्विए नपजवेकरी कापोत लेश्यानो शंन्नव बे. ते० तेजु लेश्या प० पद्म-लेश्या जण जे जीवने होय ते श्राश्रीने जग जेम 5 उघीक दंग दमक कह्यो तेम ते बेननो केदेवो. ते लेश्या जेमठे तेम कहे :- नारकी, विगलेंजि, तेउ अने वाउने पेहेली त्रण लेश्या होय; अने नवनपति, पृथ्वि, थप, वनस्पति अने व्यतरने पेहेली चार लेश्या होय. पंचेअितिर्यंचने । वेश्या होय. ज्योपिने एक तेजु-लेश्याज होय. वैमानिकने बेली प्रशस्त खेश्या होय. प. पण एटवं विशेष म केवल नघोक दमकने विधे मनुष्य स सरागी वीतरागो विशेषपणे कह्या ते शहां न केहेवा. कारपाके तेजु पद्म-लेश्याने विषे वीतरागपणानो अनाव जे. फक्त शुक्ल-खे. श्याने विषेज वीतरागपणानो संलव डे तेथी. ॥ १ ॥ नावार्थः-हवे जु ! हां एम कर्दा के, कृष्णा, नील अने कापोत-लेशीमां दुं प्रमत्त तथा सातमुं अप्रमत्त गुणगणुं, सरागी-संजम तथा वीतरागीसंजम, ए चार प्रकारनो संजम नथी. संजमनो अनाव (नाकारो) कह्यो. ए न्याये साधुजीमां जावे त्रण लेश्या नलीज होय. वली जगवती शतक ए में नद्देशे ३१ में असोचाकेवलाना अधिकारमां, वि. चंग-अज्ञान प्रत्ये बोमीने अवधज्ञान चारित्र परिवर्जे, तेमां त्रण नसो लेश्या कही; तथा शतक ३० में उद्देशे ५ में पण. लेश्या त्रण नलीज कही; तथा गणायांग गणे त्रीजे नद्देशे बीजे पण लेश्या त्रण कही. इत्यादिक थनेक सूत्रमा साधुजोमां लेश्या त्रण कहो . उतां तेरापंथी, साधुमांड लेश्या कहे , तेमने पुढोए के, साधुजी धर्मी के अधर्मी ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के, साधुजीतो धर्मी डे अधर्मी नथी. सारे हे देवानुषीय ! तमे साधुजोमां नावे ब लेश्या केम कहोमे? कार पके कष्णादिक अण लेश्याने तो अधर्म-क्या कहो मने तेजु, कसो Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार शुक्ल एत्रणने धर्म लेश्या कही .शाख सूत्र नत्तराध्ययन श्र०३में ते पाठः कन्हा नीला काो तिणिवि एयाओ अहम्म लेसाओ एयाहिं तिम्हिवि जीवा उग्ग ओववव ॥५६॥ तेज पद्मा सुक्का तिणि वि एयाओ धम्म लेसाओ एयाहिं तिएिंदवि जीवा सुग्गइं उववद्याश् ॥ ७ ॥ अर्थः-कण कृष्ण नी नील, अने का कापोत, ए ति त्रण श्रण अधर्म ले लेश्या बे. ए० ए ति त्रणे जी जीवने पु० उर्गति न० उपजावे. ते तेजु प० पद्म, अने सु० शुक्ल ति० ए त्रण ध धर्म लेप लेश्या जे. ए ए ति० त्रणे जी जीवने सुण्शुज गति उ उपजावे. नावार्थः-हवे जु! एत्रण अधर्म-लेश्या कही. ए श्रधर्म-लेश्याथी पुर्गतिमां उपजवू कडं बे, अने साधुजीनेतो एकान्त-धर्मी कह्या जे. ते अधर्म पामे नहिं अने दुर्गतिमां पण जाय नहिं. तेथो साधुजोमां नावे त्रण जली लेश्या होय. हवे तमे कहोबो के, साधुजीमांत्रण अधर्मसेश्या होय. ए तमारे लेखेतो साधुजीने धर्माधर्मी केहेवा जोइए. ज्ञान, दर्शन ने चारित्र आश्रीतो धर्मी, अने कृश्नादिक अधर्म-लेश्या श्राश्री अधर्मी, एम धर्माधर्मी साधुजी थया. पण वीतरागदेवेतो साधुजीने एकात-धर्मी कह्या ले. शाख सूत्र जगवती, नववाइ, सुयगमांग आदि अनेक सूत्रमा तथा कर्मग्रंथमां पण साधुजीमां लेश्या त्रण कही . तेजु, पन अने शुक्ल. तमे श्राटला सूत्रनी वीतरागदेवनी वाणी उन्नापीने साधुजगवंतमां नावे उ लेश्या केम कहोडो ? वलोलगवंतमां तोऽव्ये पण त्रण नली लेश्याज होय, कारण के नगवंतना सर्व पुद्गल शुन्न होय . शाख सूत्र उववाजी. हवे जु ! नगवानना शरोरना वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श सर्व शुन्न होय अने कृष्णादिक त्रण माठी लेश्याना वर्णादिकतो माहा अशुज कह्या अने नली त्रण लेश्याना शुज कसा छे. प्रतीत्रण मावी नाव लेश्यानां लक्षण खोटां कमां ने अने, Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८) +सिद्धान्तसार.. त्ररा नली लेश्यानां लक्षण चोखां कह्यां . शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन ३४. में ते पाठ. कन्दा नीला कान तेन पम्मा तहेवय सुक्कालेसाय गओ नामाकंतु जहक्कम्म. ३ जीमूत णि संकासा गवलरिग संणिना खंजंजण नयण नन्ना कन्द लेस्साओ वणओ ४ नीलासोग संकासा चासं पिञ्च समप्पना वेरुलिय निछ संकासा निललेसाप्रो वणओ. ५ अयसी पुप्फ संकासा कोइल बद संनिना पारेवयग्गिवनिना कान लेसाओं वणओ. ६ हिंगुलय धाव संकासा तरुणाश्च्च संनिना सुयतुंम पश्व निना तेनलेसाओ वणो. ७ दरियाल नेद संकासा हलिदानेय समप्पना सणासण कुसुमनिता पम्मखेसाओ वणओ. G संख ककुंद संकासा खीर पुर समप्पना रयतहार संकासा सुक्कलेसाओवणओ. ९जह काग तुंबग्गरसो निंवरसो कडुग्ग रोहिणी रसोवा एत्तोवि अणंतगुणे रसो कन्हाय नायवो. १० जद तिकग सरसो तिको जद दबि-पिप्पलीएवा एतोवि अणंत्तगुणो रसोग निदाए नायवो. ११ जह तरुण अंबग रसो तुंब कविहस्सवावि जारिसाओ एत्तोविणंतगुणो रसोऊ काक 'नायवो. १२ जहपरिणयं वगरसो पक्क कविठस्सवावि जारिसओ एतोवि अणंतगुणो रसोवि तेल नायवो. १३ वरवारु-णियव रसो विविहाणव आसवाणं जारिसओ महुमेरगस्सव रसो एत्तो पम्माए परिएणं. १४ खजर मुहिय रसो खीररसो खंमसकर रसोवा एत्तावि अणंतगुणो. रसोज सुकाए नायवो. १५ जहा गो ममस्स गंधो सुणग्गज Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( १५९) ममस्सव जदा अहि ममस्स एत्तोवि अणंतगुणो खेसाणं अप्पसबाणं. १६ जदा सुरहि कुसुमगंधो गंधवासाण पिस्समाणाणं यत्तीवि अणंतगुणो लेस्साण पसब तिन्हंपि. २७ जद करगयस्स फासो गोजिनाएव सागपत्ताणं एत्तोवि अणंतगुणो लेस्साणं अप्पसबाणं.२जद बुरस्सव फासो णवणीयस्सव सिरीस कुसुमाणं एत्तोवि अणंतगुणो पसन खेसाण तिन्हंपि. २९ तिविदो नवविदोवा सत्तावीस विहे कासिउवा दुसहोतेयालोवा खेसाण होइ परिणामो. २० पंचासव प्पवत्तो तिहं अगुत्तोसु अविरहोय तिवा.. रंजो परिण खुद्दो साहस्सिओनरो. २१ निइंधस परि. णामो निस्संसो अजिंदिओ एयजोग समानत्तो कन्दले. संतु परिणामो. २२ ईसा अमरिस अत्तवो अविङमया अहीरिययाय गिछि पनसेय सढे पमत्ते रस लोलुए. १३ सायं गवेसएय आरंनि खुद्दो साहस्सिओनरो एयजोग समानत्तो नीललेसंतु परिणमे. २४ वंकेवंक समायारे नियमिल्ले अणज्जए पलिञ्च गहिए मिबदिहि अणारिए, २५ उप्फालग्ग दुकवाश्य तेणयाविय मबरि एयजोग समाजत्तो कानलेसेतु परिणमे. २६ नीयावत्ति अचवले अमाई अकुतुहले विणीय विणए दंते जोगवं नवहाणवं. २२ पियधम्मे दढ्घम्मे वजानीरु दिएसए एयजोग समाजत्तो तेनलेसंतु परिणमे. २७ पयणु कोह माणेय माया लोनेय पयणुए पसंत्तचित्त दंतप्पा जोगवं उवहाणवं श्ए तहा पयणुवाश्य अवसते जिदिए एयजोग समानत्तो पद्मलेसंतु परिणामे. ३० अहरुहाणि वञ्जिता धम्म सुकाई Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६० ) 4 सिद्धान्तसार. ates संत चित्ततप्पा समिए गुत्तेय गुत्तीस ३१ सरागे वियरागेवा जवसंते जिड़ दिए एयजोग समानत्तो सुकलेसंतु परिणमे ३२ प्रसंखेद्या गोसप्पिणीणं उस विणणं जेसमया संखाइया लोगा लेसाणं हवइवाणाई ३३ ॥ अर्थः- क० कृष्ण, नी० नील का० कापोत, ते तेजु प० पद्मश्र सु० शुक्ल-लेश्या ब० बवी, ना० लेश्यानां ए नाम ज० जेम बे तेम अनु. क्रमे जावा. दवे लेश्याना वर्ण कहे बे. जी० मेघ (पाणी) सहित वादलां होय नि० चोपमयां दीसे ते सं० सरीखी ग० पामाना शींग सरीखी रीग सं० सरीखी खं० गाडाना पश्माना ( ढंगणना ) मेल सरखी ने न० श्रांखनी कीकी सरीखो क० कृष्ण-लेश्या वर्षथी काली जाणवी. (१) नी० नीलुं जेवुं अशोक वृक्ष होय ते सरीखी चा० नील (चास) पंखीनी पि० पीढी स० सरीखी प्रजा कांती बे जेनी वे० वेमुर्य रत्न जेवुं नि० चोपमयुं दीसे ते सं० सरोखो नी० नोल-लेश्या वर्णथी नीली जाणवी. (२) ० अलसीना पु० फुल सं० सरीखी को० कोयलनी बं० पांख सं० सरीखी पा० पारेवानी गो० कोट ( शिवा ) नि० सरीखी का० कापोत-लेश्या व० वर्णथ कांइक राती जाणवी . ( ३ ) हिं० हिंगलो धा० कांइक धातु विशेष त० नगता ० सूर्य सं० सरीखी सु० सुमानी तुं० चांच सरीखी ने प० दीवा नि० सरीखो ते० तेजु लेश्या व० वर्षथी राती जाणवी . ( ४ ) ह० इरतालना जे० कटका संघ सरीखी हा० दलदरना ज० कटका स० सरीखी स० सपनामे वनस्पति ना कु० फुल सरीखी प० पद्म-लेश्या व० वर्णथी पीली जावी. (५) सं० संख० कनामे रत्न छाने कु० मचकंदनामा वनस्पतिनां फुल सरख खी० दुधनी पू० धारा सरखी रु० रुपाना पत्र हा०हार स० सरीखी सु० शुक्ल लेश्या व० वर्षथी नजली जाणवी. (६) दवे लेश्याना रसना स्वाद कडे. ज० जेवो क० करुवा तुं० तुंबमाना र० रसनो स्वाद निं० लाना रसनो स्वाद क० कमजी रो० रोहणीनामा बनस्पतिना र‍ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. (१६१) कमया रसनो स्वाद ए० एथी पण अ० अनंतगुणो र रसनो स्वाद कि० कृष्ण-लेश्यानो अती कमवो ना जाणवो.(१)जा जेवो तिल त्रिकटु (सुंठ, मरिच,ने पीपर)ना रणरसनो स्वाद तितिखो जजेवो हण्दस्तिपिपरी एटले गजपींपरनो स्वाद होय ए एथी पण अ० अनंतगुणो रण थतीतीखो स्वाद नी0 नोल-लेश्यानो ना जाणवो. (२) जग जेवो काचा श्रांबाना र रसनो स्वाद तु तुंबरनामा वनस्पति, काचुं फल जेवू कसायलुं होय तेवो स्वाद का काचा कोग्ना फलनो जाग जेवो स्वाद होय ए० एथो पण अनंतगुणो र अती कषायलो स्वाद का कापोत. लेण्यानो ना जाणवो. (३) जण्जेवो प० पाका आंबाना र रसनो स्वाद प० पाका क कोठनो पण जाग जेवो स्वाद होय ए० एथी अनंत गुणो र स्वाद कांश्क खाटो कांक मीगे ते तेजु लेश्यानो जाणवो. (४) व प्रधान वा मद्यनो जेवो र स्वाद होय वि० घणा प्रकारना श्रा० श्रासव (घणा फुल प्रमुख सुगंध अत्यनो रस या सत्व) म माखीए नीपजाव्युं ते मध तथा महुमानो मद्य मे तामवृदनो निपन्यो मय ए० ए मद्यनो जेवो स्वाद होय ए०एथी पण्अनंतगुणो रुमो स्वाद पद्मलेयानो जाणवो. (५) ख० खजुरनो मु० जाखनो खो। उधनो खंग खांमनो अने सण साकरनो जेयो स्वाद होय अ० एथ। अनंतगुणो मोगे स्वाद सुण शुक्ल लेश्यानो नारा जणवो. (६) हवे लेश्याना गंध कहे :-ज जेवो गो गायना ममानो गंध सु० कुतराना ममानो गंध अने ज० जेवो अ० सर्पना ममानो गंध पामु हाय ए0 एथ। अनंतगुणो तुंमो गंध ले० कृष्ण, नील अने कापोत ए त्रण थ० अप्रशस्त खेश्यानो जाणवो. जण जेवी सु सुगंध कुछ केवमादिक फुलनी गंध ग० सुगंध. वासी पि० पीस्तां वाटता होय त्यारे जेवी सुधि होय ए० एथी श्रण अनंतगुणी सुगंध तेजु, पद्म अने शुक्ल ए वाले प्रशस्त (जल) लेश्यानो होय. हवे लेश्याना फर्स कहे बेः-10 जेबो क० करवतनो फा फर्स असुंहालो होय गो गाय बक्षधन। 10 जोचनो जेवो कजीन फर्स होय सा० सागरवृतना प० पांदमानो जेवो फर्स होय एप Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) + सिद्धान्तसार.. एथी पण अण् अनंतगुणो कठण फर्स ले० अ० ए त्रण अप्रशस्त-खेश्यानो (कृष्ण, नील अने कापोत-लेश्यानो) जाणवो. जग जेम बुरनामा वनस्पतिना फुलनो अति सुंहालो फा० फर्स न० माखणनो फर्स अने सि सीरीषनामा फु० फुलनो जेवो फर्स होय ए० एथी अनंतगुणो सुंहालो फर्स प० प्रशस्त (नली) ले लेश्या ति त्रणेनो जाणवो. हवे लेश्याना प्रणाम कहे ः-ति त्रण प्रकारे ते जघन्य, मध्यम अने उकृष्टो. न जघन्यना त्रण प्रकारः-जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्टो, एम अकेक वर्गना त्रण त्रण नेद करतां नव थाय. स० एम सत्तावीस नेद पण थाय. इका० एकासी नेद पण थाय. १० बसने तेतालीस नेद पण लेश्या बना प्रणामना थाय. पण एटला प्रणाम दरेकना त्रण प्रण गणा करतां थाय. हवे प्रथम लेश्यानां लक्षण करे :-पं0 पांच श्राश्रवनो प० सेवपहार ति त्रण मन वचन कायाएकरी अ० अगुप्तो (मोकलो) बकायने विषे अवृति (घातनो करणहार) ति तीवृपणे आरंजने प० प्रणामेकरी सहित खु० सर्व जोवने श्रहितकारी सा जीवघात करवाने विषे साहसोक नि था लोक परलोकना दुःखनी शंकार हित, जीव हणतां सुगर हित श्र० अजीतेंजिय ए ए पूर्वे कह्या ते जो (मन, वचन, कायाना) जोगना पाप व्यापारेकर स सहित ककृष्ण लेश्याने प० प्रणामेकरी परिणमे. (१) हवे नोललेश्यानां लक्षण कहे :३० र्षा (पर जीवना गुणर्नु अणसेह,) अ० घणो कदाग्रही अ० तप रहित अण् नली विद्या रहित अ० अणाचारोने वर्ततां निर्लजपणुं गि विषयनो लंपट प० षन्नाव सहित स० धूर्त पण्आठ मदनो करणहार र स्वादनो लोग लंपट सा० सातानो ग गवेषणहार श्रा० शारजनो करणहार खुप सर्व जीवने अहितकारी सा० अणविमास्या कार्यनो करणहार न मनुष्य ए एवा व्यापारेकरी स सहित होय ते जीव भी नील-लेश्याने प० प्रणामेकर परोणमे. (२) हवे कापोतलेश्यानां लक्षण कहे जेवं वांको बोले, वांका कार्यनो करणहार नि निवझ माया सहित उ सरलपणा रहित प० पोतानो दोष ढांके उ० Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( १६३ ) कपटेकरी सहित मिमिथ्यादृष्टि श्र० अनार्थ उ जे वचनथी पर... जीव चंचो नबले, माथे चाटको नवे तेवा वचननो बोलणहार दुष्ट वचननो बोलणहार ते ते चोरीनो करणहार मा अनेरानीसंपदा सह। न शके ए० एवा जो व्यापारेकरी स सहित होय ते जीव का कापोत-लेश्याने प्रणामेकरी परीणमे. (३) हवे तेजु-लेश्यानां लक्षण कहे -नी० मन वचन कायाएकरी नोची वृत्ति (मान रहित) अ चपसपणा रहित अ० माया रहित अ० कुछ कुतुहल रहित वि वनित होय वि० विनय करवाने विषे दंग इंजिनो दाए हार जो स्वाधागादिकने व्यापारेकरी सहित होय, सिद्धान्त नाता (१० धजेने बहन के द० धर्मने विषे निश्चल होय व पापथ। नो० बोहे हि मो कनो वंबणहार एण् एवा धर्मना व्यापारेकर सहित होय ते जीव ते तेजु. लेश्याने प्रणामेकरो परिणमे. (४) हवे पद्म-लेश्यानां लक्षण कहे डेःप० पातला (थोमा) ने जेने को क्रोध, मान, माया अने लोन, प० रागद्देषथो नपशम्युं के चि० चित्त जेनु, द० दम्यो के श्रात्मा जणे, जो मनः वचन कायाना जोग वसले जेना, उ सिद्धान्त नणतां जे तप करवो जोइए ते तपवंत होय तक तेम प० थोमा वचननो बाग बोलणहार उ उपशान्त थयो (विशम्यो) होय जि0 जितेंति ए० एवा जो धर्मना व्यारेकरी सा सहित होय ते जीव प० पद्म-खेश्याने प० प्रणामेकरी परिणमे. (५) हवे शुक्ल लेश्यानां लक्षण कहे --अ० श्रातध्यान अने रु० रुपध्यान व वर्जे, ध धर्मध्यान अने शुक्वध्यान द्या ध्यावे, प० रागद्देषेकरउपयम्युं ले चित्त जेजें, दं० दम्यो आत्मा जेणे, स० पांच सुमतिवंत गुण्त्रण गुप्तिने विषे गुप्तिवंत स० राग सहित, अथवा वी0 वीतराग होय ना रागद्देष नपशमाव्या ने जेणे, जो जीतेंज्यि ए० एवा जो गुणना व्यापारेकरी स सहित होय ते जीव सु० शुक्ल-श्याने प० प्रणामेकरी परिणमे. (६) हवे लेश्यानां स्थानक कहे :-- असंख्याती न उत्सर्पिणीना जेटला समय चमता नतरता नाक थीयं तेना श्रने अ असंख्याती अवसर्पिणीना जेटला Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) सिद्धान्तसार, समय पमता चमता नावे थाय तेना जे जेटला सण समय थाय तेटला अथवा सं० संख्याता लोकना जेटला आकाश प्रदेश थाय तेटला ले तेटला लेश्याना ग० स्थानक चढता पमता शुन्न अशुन्न ह थाय. जावार्थ:-हवे जु ! त्रण लेश्यानो वर्ण अशुन कह्यो,गंध माहा पुगंध कही, रस माहा कमवो कह्यो भने फर्स माहा खरखरो (कठगेर) कह्यो. एवा अशुन वर्णादिक नगवंतमां तो होयज नही. माटे जगवं. तमा अव्ये पण त्रण जलीज वेश्या होय. वली नावे त्रण लेश्यानां लक्षण खोटां कह्यां, ते लक्षण साधुनगवंतमां होय नहि. जेथी नावे त्रण नलीज लेश्या होय. निश्चेकरी लगवंतमां तो अव्ये अने नावे त्रण जलीज लेश्या होय. शाख सूत्र याचारांग श्रुतष्कंध बीजे. वास्ते जगवंतमा उ लेश्या कहे तेने एकान्त मिथ्यादृष्टि जाणवा. जो तमे लगवंतमां न लेश्या कहो तो, प्रजुए बमासी तप कर्या तथा अनार्य-देसमां विहार कयों त्यारे ब लेश्या अने आठ कर्म हतां के नहि ? हे देवानुप्रीय ! अहियां लेश्या अने कर्मनुं शुं कारण जे. जे करणी कीधा तेनो पक्ष लेवो.संजम-जीवीतव्य वंज्यामां तमे पण धर्म कहोडो,अने प्रजुए संज. मधारी (गोशालोसाथे रेहेतो हतो तेने) पोताना शिष्यने अनुकंपा आगीने बचाव्यो. ते संजम-जावीतव्य वान्व्युं तेमां प्रजुने चुक्या केम कहोतो? तेवारे तेरापंथी कहेले के “ साधुए लब्धि फोरववी नही, एवं सूत्र जगवती शतक त्रीजे कडं बे, अने लगते लब्धि फोरवीने गोशालाने बचाव्यो. ए अकरवायोग्य काम कर्यु, तेथी चुक्या कहोए गए." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! त्यांतो मायाकपटाइ करी विक्रय-सब्धि फोरवी अनेक रुप बनावे, ते आलोवे तथा प्रायडित ले तो थाराधक थाय, अने न आलोवे तथा प्रायबित न ले तो आराधक न थाय. ए विक्रय-सब्धि फोरवे तेनुं प्रायबित कडं बे, पण जगवंते तो विक्रय-लब्धि फोरवी नथी. शोतल-लेश्या फोरवीने गोशालाने बचाव्यो . ए जाणतां बता मतना सीधे मायाकपटा कर विक्रयतुं नाम बुपावो "जगवते सब्धि फोरवी Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (१६५) तेथी चुक्का” एम जुएं बोली बोघांने केम नरमावो बो? कारण के शी. तल-लेश्या जीवदया निमित्ते फोरवे तेनुं प्रायबित को अंगपांगादि सूत्रमा कर्वा नथी. कर्वा होय तो बतावो. तेवारे तेरापंथी कहेले के, एक लब्धिमुं प्रायडित कयुं तेम सर्व सब्धिD जाणवू. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! लब्धितो अहावोस प्रकारनो कही . तेमां विक्रय-लब्धि फोरवे तेनुंतो प्रायडित कह्यु बे, अने तेजु-खेश्या करी अनेक जीवने क्रोधेकरी बाले ए पण प्रत्यक्ष प्राय बितर्नु गम दीसे ले श्रने शास्त्रमा पण कडं बे; पण २७ लब्धिमां केवलज्ञाननी लब्धि, तीर्थंकर-पदवोनो लब्धि, गणधर-पदवीनी लब्धि, पुलाक चारि. त्रनी सब्धि,अवध मनपर्यव केवलज्ञानना लब्धि,चौदपूर्वनी लब्धि इत्यादिक लब्धिमुं प्रायबित होय तो,शीतल-लेश्या जीवदया माटे फोरवी तेनुं प्रायबित होय पण जेम एटलो लब्धि, प्रायबित नथी तेम शीतल लेश्यानुं पण प्रायडित नथी.तेवारे तेरापंथो कह के "शीतल लेश्या अने तेजु-लेश्या एबन्ने नेली या तेबारे उनुं हुं पाणी नेतुं कर्याथो जीवनी हिंसा थाय,तेम बन्ने लेश्या नेली थइ तेथी जीवनी हिंसा थ३. वलाजेम अग्निना नर्या चुलामां काचुं पाणी ढोले तेथी तेनकाय ने अपनाय ए बन्ने कायनी हिंसा थाय तेम तेजु-लेश्या तो अग्नि समान अने शीतल लेश्या पाणी समान, ए बेन लेश्या नेली थर तेथो बन्नेना जीव मुआ. ए हिंसानुं पाप प्रजुने लाग्यु." तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! ए कुमत तमे क्याथी लाव्या ? सूत्रमा तो लेश्याना अचित्त पुद्गल कह्या ले. शाख सूत्र जगवती शतक सातमे नद्देशे दसमे. ते पाठः अचित्तावि पोग्गलान नासेइ उद्योवेश तवे पनासे ? हंता अस्थि. कयरे नंते ! अचित्तावि पोग्गलान नासे जाव प्पनासेइ ? कालोदाइ! कुधस्स अणगारस्स तेयले:स्सा निसद्धा समाणी दुरंगता उरं निपत३ देसंगत्ता देस निपत्त जेहिं २ चणं सानिपत्तइ तहिं २ चणंते अचित्ता Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. . : पोग्गलान नास जाव पन्नास एएणं कालोदाइ ते अ-., चित्तावि पोग्गलाउ मासे॥ अर्थः-श्रण अचित पण पो पुद्गल ना. प्रकाश करे ? वस्तु प्रत्ये ना नद्योत करे ? त० तपे ? आताप करे ? प० प्रकाश करे,? वस्तुने जवाले ? इतिप्रश्न. हं० हा वच्छ श्र उद्योत करे . का कया नं हे नगवान ! अ० अचित्त पण पोण पुद्गल जा प्रकाश करें जाण्यावत् प० नजवाले ? का० हे कालोदाइ ! कु० कोप्यो अ जे अणगार, ते संबंधिं ते तेजलेश्या नि नीकलोथ को (तपस्वी अणगारना शरीरथी नीकलीथको.) तेजुलेश्या जवालारुप पु० दुरगामनी तो दु० वेगली निपमे, जश्ने बोले, दारु पुंजवत् दे देशने विषे जाय दे० देशमा जश्ने पमे जे जे जे स्थानकने विषे, दुर देशने विषे निकट प्रदेशमा पमै ता त्यां त्यां श्र0 श्रचित्त पो० पुद्गल ना प्रकाश करे जा यावत् १० नजवालो करे. ए० ए का हे कालोदाइ ! ते ते १० अंचित पोल पुद्गल पण ना प्रकाश करे. जावार्थः हे देवानुप्रीय!श्हांतो वेश्या शब्दे श्री वीतरागदेवे - चित्त पुद्गल कह्या . ए तमे सूत्र वांचीने जाणतां बता जुर बोलीने, मतना लीधे लोकोने बेहेकावीने अनंत संसार केम वधारो गे. तेबारे तेरापंथी कहे के “ लेश्याना श्रचित्त पुद्गल , पण जेम कपहुं, कांटो प्रमुख अचित्त पुद्गल फेंकवाथो वायुकायनी हिंसा थाय, तेम जगवते शीतललेश्या फेंकी तेथी वायुकायनी हिंसा थयार्नु पाप लाग्यु. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! शीतललेश्याना पुद्गलतो शुक्षम ले तेथी वायुकायनी हिंसा थाय नहि. जो सूत्रमा कयुं होय तो काढी बतावो. वली शी. तलोश्याना पुद्गलथी हिंसा थ मानो तो मनवचनना जोग, स्वासोस्वास, ए पण पुद्गल जे. साधुजीने मनना पुद्गल घणी दुर जाय अने वचनजोग (जाषा) ना पुद्गल घणी दुर जाथ, बीजाना कानीमा जाय: ए तमारे खेखेतो कोइ पण साधुमां साधपएं नथी. एक तो Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १६७ ) साधप लेती वेला सावऊजोगना त्याग पण उतावला न करवा, कारण के जापाना पुद्गल बादार नीकली जाय अने वाकायनी हिंसा घाय. माढ़े साधपणुं लइने स्वासोश्वास पण लेवो नहि, मन-जोग पण स्थोर राखवो वचन पण लवलेश मात्र न बोलवु मौन राखतुं श्रने पादोगमन संथारो करोने हाथ पग पण दलाववा नहीं त्यारे साधपणुं कहीये. ए केम मले ? तमे शीतल- लेश्याना शुरूम पुद्गलथ जगवंतने वायरानी हिंसा लागी कहोबो, पण शीतल-लेश्याथी वायुकायनी हिंसा थाय शीतल-लेग्यानी लब्धि फोरव्यां प्रायबित आवे, एवं सूत्रमां कोइ ठेका कर्तुं नथी. एकान्त जुगं श्राल भगवंत उपर शामाटे घोटो. तेवारे तेरापंथी कहेबे के, जो नगार्यामां लाज होय तो केवलज्ञान उपन्या पढी समोसरणमा बलता बे साधुने केम न नगार्या ? तेनो उत्तर. दे देवानुप्रय ! ते साधु उपर प्रजुनी अनंती जाव दया दती, पण तेमना श्राखानुं निमित्त कारण यावी मल्युं, तेथी प्रभु शुं करे ? तमे, लेश्या -लब्धि फोरव्याथी दोष लागे ते माटे न नगार्या एम कहोबो, एतमारुं देवं बल पूर्वक बे; कारण के जो एमनुं श्रनखुं होततो, गवंतो केवलज्ञाने करी अनंत कालनी वात जाणता दता, त्यारे विहार केम न कराव्यो. विहार करावतां तो दोष नहोतो लागतो? पण एमनुं श्राखुं श्रावी रधुं जवितव्यता बलीष्ट, तेथे जगवंत शुं करे. ar तीर्थंकर नेला थाय तोपण कोइ जीवनुं श्राखु वधारवा समर्थ नथी. उद्मस्थ तो व्यवहार साचवे छाने केवलज्ञानी तो निरर्थक नव्यम न करे. तोपण जगवंते तो बचाववानो व्यवहार राखवाजणी आगलथी वर्ज्या इता, पण इहां प्राखुं पुरुं थवानो समय हतो ते कोण टाली शके ? हे देवानुप्रय ! बचाव्यामां पाप डे तेथी न वचाव्या एम कहो. बो, पण पोते चोत्रीस अतिशय पांत्रीस वाखीकरी सहित बे, पचास जोजन प्रमाण सात इत थाय नहिं, मृगीमारी रोग थाय नहिं धने राव व्यापे नहिं, ते अतिशय क्यां गया ? गोशाला ने वेरनाव केम व्यापो ? ने साधुनी घात समोसरणमां केम कीधी ते कहो. ते वारे तेरा 1 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९४) + सिद्धान्तसार.. पंथी कहेडेके, “होण हार पदार्थ अराजुत वात जे ते केम टले"? त्यारे एम कहोगे के जीव जगायाँ पाप लागे ते. माटे न नगार्या. एतो . अतिशयथकां समोसरणमां बे साधुन) घात थइ ते अडेरामां . वलो बद्मस्थ अवस्थामां तो प्रनुजोने शीतल लेश्या कर्तव्यरुप हती अने. केवल थया बाद सत्तारुपे तो खरी पण करतव्यरुप न होय. तेथो बे साधुरीने बचाववारुप कार्य केम बने ? शहां कोइ एम आशंका करे के, शीतल-लेश्या सत्तापणे उतां कर्तव्यरुप कार्ये केम न प्रवर्ते, तेनुं समा. धान: जेम सूत्रजीश्री नगवतीजीने वि पांच देवना अधिकारे कयुंडे के, देवाधिदेवने अनंत रुप वैक्रय करवानी शक्ति , परंतु करे नहि ने करशे पण नहिं. तद्वत् शोतल लेल्या पण शक्तिरुपे संजवे, परं व्यक्तिरुपे थ कार्य साधे नहिं एवो नियम . जो तेरापंथीने एकान्त एवोज हव्वाद होय के केवली जे कार्य करे तेमांतो धर्म, अने जे कार्य न करे तेमां पाप, त्यारे तो देवगुरुने वंदणा नमस्कार करवामां पण पाप मानवु पमशे; कारणके केवली जगवंत परस्पर वंदणा नमस्कार पण करता नथी वास्ते ए सर्व कुतर्क बे. वास्ते नवनीस्नुए हरेक कार्य परत्वे अधि. कारीने उलखवो जोइए. कदापी तेरापंथी एव। तर्क करशे के, ए तो तमे श्री वीतरागजगवान बाबतनुं समाधान लख्युं, पण समोवसरणमां तो श्री गौतमादि लब्धि-संपन्न सराग साधु घणाए हता तेमणे बे साधुजने केम न वचाव्या ? तेनो उत्तरः-हे देवानुप्रोय ! श्री गौतमादि गणधर वा सामान्य साधुउँने शीतल-लेश्या हती एवं कया सूत्रना मूख पाउना आधारथो कहोबो ते बताववो पमशे. . वली तेरापंथी कहे के " जगवंते गोशालाने तलनो गेम बताव्यो. एक सींगलीमा सात तल बताव्या. पडी गोशाले तलनो बोम बखेड्यो, एक सींगलीमांथो सात तल काढ्या. ए नगवंतना वचनथो हिंसा थ. ए पश्चात कर्म दोष लगवंतने लाग्यो.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! एम लगवंतने दोष लाग्यो कहोडो, ए लेखेतो तमे नित्य आहारादिक हस्थी कनेथी मागो बो तथा मार्ग पुगेडो, त्यारे ग्रहस्थी उपाने Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार मोंढे बोले तेथी असंख्याता वायुकायना जीव हणाय. ए तमारे कारणे नित्य अनेक उघामे मोंढे बोले, तथा तमे गाममा जाउं त्यारे कुतरां नघामे मोंढे नसे, ए हिंसानो दोष तमने लागशे. तेवारे तेरापंथो कहे डे के “ अमेतो आहार लेवाना अने मार्ग पुबवाना कामी बीए. उघामे मोंढे बोलाववाना कामी नथी. तेने जलो जाणता नथी. तेथी अमने पाप न लागे." त्यारे हे देवानुप्रोय! जगवंते पण ज्ञानमां देख्या तेम नाख्या. तीलनो डोम उखेमाववाना तथा तील कढाववाना कामी नहोता. तेथी नगवंतने दोष लगार मात्र लाग्यो नथी. तमे प्रजुने एम पाप लाग्युं जाणो तो, तमे अनेक ग्रहस्थीने बोलावो बो. नित्य नघामे मोंढे बोले . ए संजम केवी रीते रहे ते कहो. ए जगवंत नपर अडतां बाल केम द्यो बो? तेवार वली तेरापंथी कदे के “ एटलां काम सूत्रमा साधुने करवां वा ने. करतो प्रायलित आवे, ते काम प्रजुए उद्मस्थपणामां कीधां बे. साधुए निमित्त नाखवू नहि, अने जगवंते नाख्यु ने. गोशालाने तलनो गेम बताव्यो. एक तलनी सांगलीमा सात तल बताव्या. कुपात्रने विद्यादेवी नहिं, अने नगवंते दीधी. गोशालाने शीखव्यो, प्रवा दीधी, बहु श्रुत कर्यो एवो पाठ . तेजु-लेश्या उपजवानी गोशालाने विधि बतावी. शीतल-लेश्यानी लब्धि फोरवी गोशालाने बचाव्यो. अनार्य देशमा विहार कीधो. ७ ए सात काम साधुने करवां सूत्रमा वा बे. ते जगवंते का ते माटे जगवंतने पाप लाग्युं श्रने चुक्या, एम कहीए बीए.” तेनो उत्तरः-हे देवानुप्रोय ! ए सात बोल सामान्य साधुने (बद्मस्थ सूत्रव्यवहारना धणीने) वा बे, अने जगवंत तो थागमव्यवहारना धणी जे. व्यवहार पांच प्रकारना कह्या २. शाख सूत्र व्यवहार तथा नगवती शतक में, उद्देशे मे ते पात:कश विदेणं नंते ! विवदारे पन्नत्ता ? गोयमा ! पंच विहे विवहारे पन्नत्ता तंजहाः-आगमे सुए आणा ३ धारणा - जिए ५. जदासे तब आगमेसिया आगमणं ववदारं पठ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) +सिद्धान्तसार.. * वेद्या. जोयसे तब आगमेसिया जहा से तब सुएसिया सुएणं विवहारेणं परवेद्या.णोयसे तत्र सुएसिया जहा से तब आणासिया आणाए ववहारं पठवेद्या. णोयसे तब आणा. सिया जहासे तब धारणासिया धारणाए ववहारं पठवेद्या. पोयसे तब धारणासिया जहा से तब जिएसिया जिएणं ववहारं पठवेद्या. इच्चे एयादि पंचहिं ववहारं पठ वेद्या तं आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं .. जदाजहासे आगमे सुए आणाए धारणा जीय तदातदा ववदारं पठवेद्या.से किं माहू नंते! आगमबलिया समणा निगंथा इच्चेश्या पंचविद ववदारं जया २ जहिं । तया २ तहिं अणिस्सि उवसियं सम्मं ववहारमाणे समणे निग्गंथे आणाए आरादए जव ? हंता नवश्. .. अर्थः- क केटले वि० नेदे नंग हे नगवान ! वि० व्यवहार पं० कह्यो ? तिप्रश्न. उत्तर. गोण् हे गौतम ! पं0 पांच प्रकारे वि० व्यवहार पं० को तं ते कहे त्यां व्यवहरीए जीवादिके करीने ते व्यवहार साधुने प्रवृति निवृत्तिरुप ते व्यवहार. तेनां कारणपणे जे ज्ञान विशेष ते पण व्यवहार कहीए. त्यां पेहेलो आप आगमव्यवहार ते श्रात्मज्ञानथो जाणीए. जेणेकरी पदार्थने जाणीये ते बागम. सु० सानलोए ते श्रुत. १ प्राण आदेश कर दीजे ते आज्ञा. ३ . धाण धारीए ते धारणा. ४ अने जि जीत ५ (श्राचार ). त्यां पेहेलो जे. श्रागमव्यवहार ते केवलज्ञानी १, मनपर्यवज्ञानी , अवधज्ञानी ३, चौद पूर्वधर ४, दस पूर्वधर ५, अने नव पूर्वधर ६. एनो व्यवहार बैं प्रकारनो . त्यां पहेलो केवलीना ग्रहणथकी प्रथम बालोवणा केवली पासे सेवी. तेना अजावे मनपर्यवज्ञानी पासे लेवी. एम पागलाना अन्नावे पाला पालाकने बालोवणा लेवो. त्यां केवल प्रमुख बागल . Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. ...( १७१) व्यवहारी समस्त अतिचार पोतेज जाणे. ते पासे गयाथी आगमव्यवहारी बालोवणहारने कहे “ सघलो अतिचार कहो." तेवारे ते जाणतोथको पोतानो दोष मायाएकरी गोपवे तो तेने प्रायश्चित न श्रापे, अने, एयूँ कहे के, अनेरे गमे जश्ने शोध करो; अने जेने दोष याद न श्रावे तथा जे मायाथको न गोपवे तेने केवलज्ञानना धरण हार कुषण विचारीने प्रायश्चित दे. पण कपटीने, फोकट जासे एम जाणीने प्रायश्चित न दे. इहां चौद पूर्वधर यद्यपि परोदशानी डे तोपण नपयोग दीधे बते केवली कहे तेटवू कही शके. हवे शहां कोई कहेशे के “धागमव्यवहारी जाणे तो तेने कहीये के, मुजने बालोवणा यो. तेवारे अतिचार पोते कहीने पोते आलोचना आपे तेमां शी हरकत ले ? के बालोवणहारना मोंढाथकी केहेवरावे." एम कहे तेनो उत्तर. ए बालोव णामां घणा गुण जे. सम्यक्-आराधना थाय अने बालोवणहारने नुत्साह. वधे. मान बोमी पोतानी आत्माना हित जणी रहश्य प्रगट करे बे. ए वात माहा दोहोली . इत्यादिक कारणे गुरु आलोवणहारनाज मोंढाथी आलोवणा करावे अने ते समस्त प्रकारे निःशव थ गुरु जे प्रायश्चित दे, ते हर्षांत थको अंगीकार करे. एम करतोथको निर्वाणपद पामे. १ सु० हवे श्रुतव्यवहार कहेजेः-धाचार, कल्प, निषिथ श्रादि जेने अगीयार अंग तथा नव पूर्व सुधी जाणपणुं होय तेने सुत्रव्यवहारी कहीये. ते सुत्रव्यवहारी आलोवणा लेणहारना अनिप्राय जाणवा माटे त्रण वार पुषण केदेवरावे. एक वारने को श्रुतव्यवहारी कदाच एम जाणी न शके के, ए कुझे मने आलोवणा आलोवे डे के साचे मनेत्ररो वार एक सर कहे तेने तो आलोवणा दे, पण कपटथो फेरफार कहे तेने पेहेलां तो जे फेरफार कह्यो होय तेनुं प्रायश्चित दे, पडी पूर्व पापन] पालोवणा दे. ५ श्रा० श्राज्ञाव्यवहार ते जे बेहु आचार्य सूत्रार्थना जणवाथी माहा गीतार्थ बे, पण जंघाबल वीणपणाथ विहार करी न शके. अलग देशान्तरे रह्या बे. माहोमाही मला न शके अने तेमाथी क्रोश्कने प्रायश्चित लेवु होय, तेवारे ते आचार्य गीतार्थ शिष्यना अजा. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२) सिद्धान्तसार, वथी, धारणा कुशल श्रगीतार्थ साधु वा शिष्यने सिद्धान्तनी जापाए गुढार्थ अतिचार थासेवना कहो बीजा श्राचार्य कने मुंके. हवे ते प्रा. चार्य तेनो अपराध सांजली व्यादि चार सहनन धृति बलादिक वि. चारी पोते त्यां जाय अथवा पूर्वनी विधिए गीतार्थ शिष्यने मुंके, अने तेने अन्नावे जे श्राव्यो ने तेनेज अतिचारनी आलोवणा कही मुंके, ए आणा व्यवहार. ३ धाण हवे धारणा व्यवहार कहे जेः-कोश्क गीतार्थ संवेगी श्राचार्य कोश्क शिष्यादिकने कोश्क अपराधने विषे अव्यादिक चार (जव्य-क्षेत्र-काल-जाव) जोइ,जे विशुद्धि दीधी होय ते शिष्य गुरुनी दीधेसी विशुछि मनमाहे धरीने कोश्कने तेवे अपराधे तेवीज विशुद्धि दे तो, एम देताने उधृतपद धरणरुप धारणाव्यवहार कहीये; अथवा धारणा ते एमः-कोइएक वैयावचनो करणहार शिष्य बे, पण ते समस्त बेद श्रुत देवाने योग्य नथी.तेवारे तेने श्राचार्य कृपाकरीने केटलांएक प्रायश्चितनां पद था. गमथी उद्धरीने तेने कहे नेते धरीने राखे, अने तेज पद मांदेली आलोवणा आपे तेने पण धारणाव्यवहार कहीये. ४ जिन् हवे जीतव्यवहार कहे :जेम कोश्क अपराधे पूर्वे साधु घणा तपेकरी शुद्धि करता, तेवोज अपराध उपन्ये बते वर्तमानकाले अव्यादि चार चिंतवी संघयण धृतिबलनी हानी जाणीने जे योग्य तपनो प्रकार (प्रायश्चित) दइए ते समयनाषाए जीतगीतार्थ कहीये, अथवा प्रायश्चित जे आचार्यना गच्छमां अधिको नबो सूत्र प्रवत्यों, अने घणे अनेरे गीतार्थे मान्यो होय ते रुढजीत कहीये. ५ ए पांच व्यवहारमा गमे ते व्यवहार सहित गीतार्थ होय तेनी पासेथी प्रायश्चित लश्ए; परंतु श्रगीतार्थकने लेतां दोष उपजे. ___ हवे आगमादिक-व्यवहारने विषे प्रवर्तवा माटे नसर्ग अपवाद कहेज जथा प्रकारे केवली श्रादिक अन्यत से ते व्यवहार अथवा त ते पांच व्यवहारमा त ते प्रायश्चित दानादिक व्यवहार काल विषे श्रा आगम केवली प्रमुख होयतो तेवेज भागमव्यवहार प्रायश्चित दानादिक प्रत्ये प० प्रवर्ते, पण शेषे करी न प्रवर्ते. आगम पण प्रकारे ने. तेमां केवलज्ञानमा अवबोधपणाथी विना कह्यां जाणे, ते माटे तेनुं Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१७३ ) कहेबुं प्रायश्चित लेवु; श्रने तेने बनावे मनपर्यवज्ञानी पासेथी लेवु. एम पूर्ववत् श्रागला आगलाने अन्नावे पाउला पालाकने लेवु. पो नहिं से० ते त तीहां आ आगमव्यवहार होय तो ज० जथाप्रकारे से० ते त तीहां श्रुत होय तेवे श्रुतेकरी व्यवहार प० प्रवर्ते. णो० नहिं से ते त० तीहां (ते अवसरे) श्रुतव्यवहारी तो ज जेम से ते त तीहां श्रा० श्राझाव्यवहारेकरी प० प्रवते. णो नहि से० ते त तीहां था श्राज्ञाव्यवहारी, तो जण्जेम से ते ता तीहांधा गीतार्थ कोइने व्यनो अपराध क्षेत्र, काल, नाव जाणीने प्रायश्चित दीधुं ते धारपाए करी प० प्रवर्ते. णो नहिं से ते त तीहां धा धारणाव्यवहारी, तो जण ज्यां पुरुष धीर्यादिक विचारी प्रायश्चित दे ते जीतव्यहारेकरी प० प्रवर्ते. ३० इत्यादिक ए ए पं० पांच प्रकारे करी व्यवहार प्रत्ये प० प्रवावे. तं ते कहे या आगमेकरी १, सु श्रुतेकरी२, श्राप थाझाए करी ३, धा धारणाए करी ४ अने जि० जीते करी ५. ज जेम जेम से ते आ आगम सु श्रुत आण आज्ञा धा धारणा अने जिण जीत ५, ए पांच होय त० तेम तेम व व्यवहार प० प्रवता. ए व्यवहारवंत पुरुषने फल प्रसन्नहार कदे से हवे शुं नदंत (नहारक) आग कहो कोण आगमबलि उक्त ज्ञान विशेष सु० श्रमण निग्रंथ केवली प्रमुख ३० ए वक्षमाण अथवा ए नक्त स्वरुप प्रत्ये पं० पंचविध व्यवहार प्रायश्चित दानादिरुप सम्मंग ए पद संघाते संबंध कीजे व्यवहार तो प्रवर्ते. इत्यर्थः हवे संबंध रुमी रीते, ते केम ते कहे बेः-ज जेजे अवसरने विषे अथवा जेजे प्रयोजनने विषे अथवा जेजे क्षेत्रने विषे जेजे नचित्त ते ते प्रत्ये इति शेष तदातदा काले ते ते प्रयोजनादिकने विषे केहेबुं, ते कहेजेः१० सर्व वान्डा रहित न० तेणे अंगीकार कीधुं ते अनिश्रितोपाश्रित ते प्रत्ये अथवा निश्रित राग नपाश्रित वेष नहिं, रागद्वेष ते अनिश्रि. तोपाश्रित सर्वथी पक्षपात रहितपणे यथावत् इत्यर्थः एतावता पं० पंच वि० विध व्यवहार प्रत्ये जण ज्यारे ज्यारे जण्जेजे प्रयोजनने विषे योग्य त तेते प्रत्ये विचारे ता तेते प्रयोजनने विषे सर्वथा पक्षपात Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४ ) 4 सिद्धान्तसार रहित स० सम्यकू व प्रवर्ततो थको स० साधु नि० निर्बंध या था. ज्ञानो ० राधक ज० थाय ? इति प्रश्न उत्तर. ई० हा थाय. नावार्थ:- दवे जु ! श्रागम-व्यवहारना पांच प्रकार कह्या. केवल ज्ञानीने १, मनपर्यवज्ञानीने २, अवधज्ञानीने ३, चौदपूर्वधारीने ४, जाव दसपूर्वधारीने ५, श्रागमव्यवहारी कहीये. ए पांच प्रकारना यागमव्यवहारी कह्या. श्रात्मज्ञानथी गुण जाणे ते कार्य करे. ए प्रथम व्यवदार. ए प्रथमव्यवहारनो धणी बोजो सूत्रव्यवहार माने नहिं, एटले. सूत्रमां कथं ते सर्व कार्य करवानो तेमने नियम नहिं. आत्मज्ञानथ अवगुण जाणे ते कार्य न करे, छाने गुण उपजतो जाणे ते कार्य करे. वे श्रागमव्यवहारीना वचनथी वा उपदेशथी ग्रंथ जोड्यो तेनेज सूत्र कहीये. ते श्रागमव्यवहारीनुं कयुं कर, पण श्रागमव्यवहारी थकां सूत्रमां कयुं तेम न कर. वली सूत्रमां कयुं वे के, नवमा पूर्वनी त्रीजी. यायावथु (त्रीजुं अध्ययन ) जण्याविना साधुनी पनिमा वहेवी नीिं, खंधक श्रीयार अंगनुंज ज्ञान जएया छतां निखुनी बारमी परिमा वह्या, ते श्रागमव्यवहारीना वचनथी. वली गजसुकुमालजी विना सूत्र जयां दिक्षा लइ तेज दीने बारमी पमिमा वह्या, ते पण श्रागमव्यवहारीना वचनथी. ए न्याये श्रागमव्यवहारी थकां सूत्रव्यवहार मानवान | जरुर नथी १; धने श्रागमव्यवहारीना नावे बीजो सूत्रव्यवहार मानवो, एटले सूत्रमां कयुं तेम करतुं २; छाने जो सूत्रमां कोइ वस्तुनो निर्णय न होयतो त्रीजो श्राज्ञाव्यवहार मानवो, एटले आचार्य गुरुदेव कहे ते वचन प्रमाण कर ३; अने ए त्रण व्यवहार न होय तो चोथो धारणा व्यवहार मानवो, एटले गुरुदेव श्राचार्ये कोइ बोल, धराव्या होय तथा कोइने केदेतां सांजल्या होय ते प्रमाणे कार्य कर ४; छाने ए चार व्यवहार न होय त्यारे पांचमो जितव्यवहार मानवो,. एटले गीतार्थ वमेराजेम करता याव्या तेम कर. ५. ए रीते पांच bयवहार मानतां थकां श्रज्ञाना आराधक थाय. हे देवानुप्रीय ! जगवंत तो श्रागमव्यवहारी बे. ते सूत्रव्यवहार Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( १७५ ) माने नहिं. ए तमे जाणतां बतां मतना लीधे सूत्रनुं नाम लश् बोघां लोकोने बेहेकावी श्रागमव्यवहारी नपर पाल दर अनंत संसार केम वधारो हो ? जो श्रागमव्यवहारीने सूत्रमा वा ते कार्य कीधाथी दोष लाग्यो मानो तो, नगवंते केवलज्ञान उपन्या पनी कालीकुमार प्रमुख दस नाश्नां मरण बताव्यां १. वली नेमनाथस्वामीए द्वारकानो दाह बारे वर्षे बताव्यो २. तेमज गोशालाने सात दीवसने आंतरे मरण बता. व्यु; पण माहाशतके रेवतीने मरण बताव्यु, तेवारे गौतमस्वामीने मुंकीने प्रायबित देवराव्युं, अने पोते सुखे बताव्यु. ३ वली गोशालाथी धर्म • चोयणा करवानी साधुऊने आज्ञा दीधी. ४ वली चौदपूर्वधारी धर्मघोष आचार्ये नागश्री ब्राह्मणीने चोरासी चौटामां हीलवा-निंदवानी आज्ञा दोधी. ५ ए पांच बोल सूत्रमा साधुने करवा वा बे, अने केवलज्ञानी आगमव्यवहारीए कीधा बे. हे देवानुप्रीय ! तमारे लेखे तो केवलझानीने ए दोष लाग्यो तेथी चुक्या. पण ए वात केम मले ? आगमव्यवहारीपणुं तो कषायकुशील अने सनातक एबे नियंगमां होय तेने अपमिसेवी कह्या जे. मूलगुण ते पांच माहाव्रतमां अने उत्तरगुण ते दसविध पचखाणमां दोष लगामे नहिं. शाख सूत्र जगवती शतक २५ में उद्देशे ६ वे हवे जुड़ नगवंत तो उद्मस्थपणे पण अवध मनपर्यव-झानः आश्री श्रागमव्यवहारी जे, अने केवलज्ञानमां पण आगमव्यवहारी बे, तथा कषायकुशील-नियंगना धणी . ते जगवंतने चुक्या कहोडो पण सूत्रमांतो मूलगुण उत्तरगुणना अपमिसेवी कह्या जे हवे जो चुक्या कहो. गे, तो कहो कया व्रतमा मूलगुण नत्तरगुणमां दोष लाग्यो? अने ते वेला नियंगे कषायकुशोलज हतो के बीजो श्राव्यो ते पण कहो. हे देवानु-) प्रीय ! नगवंतनो तो अपमवार संजम ले. नियंगे फरे नहिं तेथी ते पुरु: पोने दोष लागे नहिं. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, जेम गौतमस्वामी चारज्ञान चौदपूर्वना धणी आगमव्यवहारी अने कषायकुशील-नियंगना धणी पाणंद श्रावकने घेरे नाषामां चुक्या तेम जगवंत पण चुक्या. एम कहे तेनो उत्तरः Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६) 4 सिद्धान्तसारः दे देवानुप्रीय! गौतमस्वामी श्राणंदजी श्रावकने घेर जाषामा क्या से समये तेमने चार ज्ञान, कषायकुशील नियंगे अने श्रागम व्यवहारीपणुं हतुं, एम कया सूत्रमां कयुं वे ते कहो. वली गौतमस्वामीनुं खने जगवंतनुं ज्ञान ने नियंतो सरखां नथी. अनंतगुण हानी वृद्धिपणुं वे जगवंतनो तो संजम नियंगे अपनवाइ बे. दिक्षा लीधी तेज वखते मनपर्यव - ज्ञान उपन्युं छाने पकायकुशील - नियंठो श्राव्यो. ते एक वार थावे अने ते पाठो जाय नहिं. वली कषायकुशील - नियंतानो संजम एक जीवने एक जवमां जघन्य एक वार श्रावे छाने स्कृष्टा नवसो वार जाय छाने नवसो वार पाठो श्रावे. वली कषायकुशील- नियं खानी ने मनपर्यवज्ञाननी स्थिति जघन्य एक समयनी कही. ते एक समय रहे ने बीजे समये वीलाइ जाय. कोइक जीवने वली पाठो एक समयथी तथा अंतरमुहूर्त तथा घणा कालथी पाटो धावे, अ कोइ जीवने ते जवमां पाढो श्रावेज नहिं, अने कोइ जीवने एक नवमां घणीवार जाय ने घणीवार यावे. तेनी उत्कृष्टी स्थिति देशेणी कोन पूर्वनी कही. ते एक वारज श्रावे पण पाठो आय नहिं . दोषनो अपमि - सेवीज रहे. वली चार ज्ञानवाला, कषायकुशील - नियंगवाला अने श्रागमव्यवहारना धणी कर्मने वशे ॠष्ट थइ जाय तो अर्धपुद्गल अनंतकाल संसारमां निगोदादिकमां जमे. शाख सूत्र जगवती शतक ५. में उद्देशे बठे, तथा पनवणामां ए सर्व अधिकार बे. ए कषायकुशील-नियंगे एक जवमां नवसोवार उत्कृष्टो यावे कयुं. तेनी स्थिति जघन्य एक समयनी कही, अने चष्ट थइ जाय तो उत्कृष्टो अर्थ पुद्गल रुके धुं; पण जगवंतने तो मनपर्यवज्ञान अने कषायकुशील मियंठो एकवार आव्या पढी पाठो जाय नहिं, एक समयनी स्थिति पण दोप नहिं छाने अर्धपुद्गल सुधी जमे पण नहिं. ते माटे सर्व कषायकुशी निगंगना धणीनो, गौतमस्वामीनो अने जगवंतनो बद्मस्थपणानो पक्ष संजम सरखो नथी. त्यारे हे देवानुप्रीय ! गौतम स्वामीनो धर्मे जगतनो कषायकुशील नियंतो सरखो केम? वखी गौतमस्वामी जापानी Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १७७ ) चुक्या, तेम जगवंत पण चुक्या, एम केम कहोबो ? वली गौतम स्वामी सरखा द्वादशांगी ज्ञानना धणी पण भाषामा खलाइ जाय युं . शाख सूत्र दसवैकालिक अध्ययन श्रावमे, गाथा ५० मी: - या पणत्तधरं दिठिवाय मदिवगं वयंवि कलियं एच्चा, तं नवहसे मुणी ॥ ५० ॥ अर्थः- आचारांग अने प० जगवती सूत्रना धरणहार तथा दि० दृष्टिवादना ( बारमा अंगना) म० जणनारने व० बोलतां वचने करी ख० खलाया ए० जाणीने ए० नहिं तं० तेमने उन्हसे मु० जति. ॥५०॥ नावार्थ:- दवे जुर्ज ! आचारांग, विवाहपन्नति भने दृष्टिवाद ( बारमा अंग ) ना जणनार वचनमां चुकी जाय, तेनो उपहास न करवो. 1. ए श्रागमव्यवहारना धणी वचनमां चुकी (खलाइ ) जाय कयुं, मूल- उत्तरगुण दोषना अपमिसेवी कह्या, पण एमने छाने जगवंतने सरखा न कह्या वली गौतम प्रत्ये जगवंते पण कयुं के, तमे वचनमा ल्या बो, आणंद साचो बे माटे जश्ने खमावो. ए वचनने मुल्या धुं तेम जगवंत पोते चुक्या दत तो केम न कयुं. दवे वीरप्रजुने चुक्या तमे कया ज्ञानथी जाएया ? तेवारे तेरापंथी कदे बे के " केवल: ज्ञान उपन्या पी ए काम न कर्यु. बे साधुने न बचाव्या ते वीतराग जावथी, छाने बद्मस्थपणे गोशालाने बचाव्यो ते सराग जावथी, एम टीकामां कह्युं छे. ते रागनां कर्म लाग्यां. सरागपणाथी काम कर्यां.. गोशालाने बचाव्यो. ए न्याये चुक्या कहीये बीये.” तेनो उत्तरः- दे देवानुमीय ! सूत्र पाठमां तो एम नथी कह्युं के, गोशालाने बचाव्यो ते रागावी, अबे साधु न बचाव्या ते वीतरागजावथी. अरे ! तमारी श्री पुष्टीने माटे टीकाना मलता वचननुं सरएं ल्यो बो ते मिथ्या बे, केमके मारे तो सिद्धान्तनी पंचांगी प्रमाण बे. ते पंचागीमां - नेक गुरु लक्ष ठे. तेमां केटलांक वचन उत्सर्ग-मार्गनां वे छाने केलांक अपवाद मार्गनां बे. ते मतलब जाएया विना छाने टीका तमे नथी ૨૩ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ) 4 सिद्धान्तसार मानता, उत्तां ठीकानी शादी शाने माटे आपो हो ? जो टोंकामा क समज प्रमाण करता हो तो टीकामां पाउल कहेला बोल मेलवी प्रापो. टीकमी तो आधाकर्मी थाहार करवो को बे, फलफुलनो आहार करवो को बे तथा साधुने चक्रवतनां कटक चुरखां कह्यांबे. इत्यादिक fare वात की बे ते पण प्रमाण करवी परुशे, अने जो ए प्रमाण न करो तो ए टीकानुं वचन प्रमाण केम करो बो ते कहो. हे देवानुप्रय ! जगवंतनी करणी उद्मस्थपणे ने केवलपणे एक सरखी जुलकरणी बे. ब्रद्मस्थपणे पण श्रागमव्यवहारी ने केवलमां पण श्रागमव्यवहारी बे. सूत्रमां साधुने वर्ज्या तेवां काम उद्मस्थपणे वर्ष श्रागमव्यवहारपणाची कीधां ने केवलज्ञान उपन्या पठी आगमव्यवहारपणार्थी कीथां. तेम उद्मस्थ अने केवलीपणे एक सरख कर्या से. हे देवामुप्रीय ! जे कार्य सूत्रमां सामान्य साधुने धी ते कार्य केवलीपणामां पोते कयीं डे. मुवानी खबर दीधी, मरण बता में मिमित्त नाख्यु. ए केवलमां तो तमे चुक्या नथी केहेता. तेनुं शुं कारण ? वली नेमनाथजीए बारे वर्षे द्वारीकानो दाद बताव्यों, तेमने तो चुक्या नथी केहेता, पण जगवंत माहावीरस्वामीधी अने जीवदयाथी द्वेष दीसे ठे तेथी प्रजुने चुक्या कहोटो. बली सरागपणाथों मोशालाने बचायो तेथी जो पाप लाग्युं कहो तो, दसमा गुणगणा सुधी संजम, तप, विनय, वैयावच इत्यादिक सर्व काम सरागपणाथी करे छे. ते सर्व काममां पाप लागले, केमके वीतरागजाव तो अग्यारमा साथ उपर वे सेमने तो एक इरियावदी क्रियाज लागे. ते इरियावहीं क्रिया पण सातावेदनी वे समयनी स्थितिनी बंधाया दीर्घ स्थितिना पुम्यपाप तो दसमा गुण ठाणा सुधी रागद्वेपथीज बंधाय. द्वेषयी धर्म प्रशस्त रागथी तो पाप बंधाय छाने प्रशस्त - रागथी पुन्य बँधाय. सराग-संजम ने सराग तपथी देवतानुं श्रनखं पुम्यप्रक्रति बंधाय एम से शाख सूत्र जगवती शतक बीजें उद्देशे पांचमें, लुंगिया मगरीनम श्राक्कोने अधिकारे हे देषामुप्रीय ! सरागथी गोशासों बचायो Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( १७१) तेथी पाप लाग्यु एम कहोबो; परंतु इहांतो टीकामां एम का डे के, ससगसंजम उद्मस्थथकां जीव जोवे तो अने न जीवे तोपण बचाववानो नयम करवो. ते माटे बचाववानो उद्यम कीधो अने बे साधुने न बचाव्या ते वीतरागनावथी. वीतरागे केवलज्ञानथी श्रानखानो समय आव्यों जाणी लीधो. होणहार टलतुं न जाण्यु तेथ, उद्यम न कर्यो, कारणके केवलज्ञानी निरथर्क उद्यम न करे ए नावार्थ. श्रागमव्यवहारी अकरवाजोग काम करे नहिं गुण जाणे तेवू काम करे. तेवारे तेरापंथी कहे के "जगवंते गोशालाने बचाव्यो तीहां जोगनो व्यापार थयो. ए जोगनुं पाप लाग्यु."तेनो नत्तरः-हे देवानुप्रीय ! जोगविना तो संजम, तप, विनय, वैयावच, चर्चा वार्ता, सफाय, ध्यान, आहार, पाणी, व्यवहार, कांइ पण थाय नहिं सजोगीने ए जोगना व्यापारथी पाप लाग्यु जाणो तो तमारे लेखे तो कोश् तरवानो मार्ग दीसतो नथी. हे देवानुप्राय ! ए शुजजोग डे के अशुनजोग ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के “ गोशालाने बचाव्यामां प्रनु धर्म जाणे तो केवलज्ञान नपन्या पळो ए काम केम न कयुं ? बीजा को साधुने एरीते जीव नगारवाना उपदेश केम न दीधो" ? तेनो उत्तरः-- हे देवानुप्रीय ! प्रजुए पोते बद्मस्थपणे अनार्यदेशमा विहार कयों, अने केवलो थया पढो अनार्यदेशमां विहार न कयों, अने बीजा को साधुने जवानो नपदेश पण न दीधो. ते माटे शुं पूर्वे बद्मस्थपणे अनार्यदेशमा विहार कर्यो ते खोटो कहेवाय ? हे देवानुमोय ! श्रागम व्यवहारीनुं काम अने सूत्रव्यवहारीनुं काम सरखं नथा. आगमव्यव. हारी अकरवायोग्य काम करे नहि, गुण जाणे तो करे. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ गोशालाने उगार्याथो केवो गुण नपन्यो ? बे साधुने मार्या. जगवंत उपर तजुलेश्या मुंकी लोहीगणवामो कर्यो अने घणुं मिथ्यात्व वधार्यु. शो गुण थयो?" तेनो उत्तरः-हे देवानुप्रीय ! ए वातनो प्रजुने शानो दोष. जेम अन्नवि जीव हतो ते साधपणुं लइ नदाइराजाने पोषामां मारी गयो. तेनो पापदोष कां महापुरुष आचारजने तो लाग्यो Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2007). 4 सिद्धान्तसार नथी. तेमज को अनार्य उग बुद्धिए साधपणुं लई कोइने ठगी जाय तो तेनो पाप दोष बीजाने नथी लागतो. तेम महावीरस्वामीए गोशालाने दिक्षा दीधी, जीवतो बचाव्यो तेथी मिथ्यात वधार्थं तेनुं पाप प्रजुने नथी लाग्यं. जो प्रजुने पाप लाग्युं जाणोतो ए लेखेतो ऋषजदेव स्वामीने घणुंज पाप थयुं दशे; केमके तेमणे चार हजार माणस साथे दिक्षा लोधी. पढी सघला जाग्या. ३६३ पाषंक मत चाल्या. घणुं मिथ्यात वधायुं. पण ऋषभदेवस्वामीने तो पाप लाग्युं नथी. तेम वीरप्रजुने पण जाणवुं वली गोशालाने तो बद्मस्थपणे दिक्षा दीधी अने बचायो, पण केवलज्ञान उपन्या पढी जमालीने दिक्षा केम दीधी ? तथा नंदण मणीदारने श्रावकनां व्रत केम दीघां? पार्श्वनाथस्वामीए सोमील ब्राह्मणने व्रत केम दीघां ? सुखमालीकाने साधपणुं केम दीधुं ? ने बसें व साधवीने दिar केम दीधी. एम तो घणा प्रकाशे. केवलीना faai chaar aur जयें ॠष्ट थहने प्रकार्य कीधां बे तथा मिथ्यात वधायुं . ते पाप पण तमारे लखे केवलज्ञानीने लाग्युं जोइए. पण ए वात केम मले. वली जगवंते लब्धि फोरवी गोशालाने बचाव्यो, तेथी गवंतने पाप लाग्ने चुक्या कहे, तेने पुढीए के, बद्मस्थपणे पाप कयुं तेनुं पायश्चित तो कोइ सूत्रमां चायुं नथी. त्यारे पायश्चित लीधा विना आराधक केम थया ते कहो. तेवारे तेरापंथी कदेने के, GG 'जेम रहेनेमीए राजेमतीने जोगनी आमंत्रणा कीधी, तेनुं प्रायश्चित चायुं नथी तेम श्रापण चास्युं नथी; पण प्रायश्चितनुं ठेकाएं बे तेथी लीधुंज दशे." तेनो उत्तरः-- श्ररे मुग्ध प्राणी ! एतो एकान्त श्रसंजमनुं ain प्रत्यक्ष दिसे, अने प्रायश्चित पण दस ने घ्यावे. ते गाथा: यादच्च दप्प पमादणा जोगे, आउरे प्रावति सुय; संकित्ते सहसाकारे, जयं पतो साय वीमंसा ॥ १॥ www.d अर्थ :- विषयनो पीड्यो १, प्रमादने लीधे २, अजाणपणे ३, श्रातुर रोग दुधा तृषाए ४, आपदा पड्याथी ५, शंकाने लीधे ६, सहसातकारे 9 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१४१) जयने लीधे , रागद्वेषने लीधे ए अने शिष्य शिष्यणीनी परिक्षा निमित्ते १०. ए दस नेद बे. तेमां नत्तराध्ययन २२ में अध्ययने ४६ मी गाथामां दसविध प्रायश्चित मांदेलु प्रायश्चित कर्तुं जे. राजेमतीनां वचन रहेनेमीए सांजलीने प्रणाम पाग वाल्या. ते पाठःइंदियाणि वसे काक अप्पाणं नव संदरे. इत्यादि । अर्थः-इं० पांच इंजिने व० वश काकरी अ० पोतानी श्रात्माने न० फेरवी संग ठेकाणे लाव्या. ... जावार्थः-हवे जुन ! रहेनेमीनी अती उष्टपणे नोगनो वंडा' नहोती. फक्त दिवाथी प्रणाम फर्या हता. पनी राजेमतोना वचनथी पाला गम श्राव्या त्यारे पश्चाताप कर्यो; पण प्रजुए पश्चाताप कयों, एवं कोई सूत्रमा चाव्युं नथी. वली गोशालानो जीव अढपश्नो थशे श्रने केवल पामशे तेवारे सर्व साधुने कहेशे के, ना ! हुं गयाकालमांश्रमण घाती इतो. वे साधुने में मार्या तथा प्रनुनो अविनय कीधो तेम तमे मत करजो. एम गोशालाना जीवे अढपइनाना नवमां पोताना पाउला जवनुं पाप नियुं, निषेद्यं तेम जगवते केवल नपन्या पली ए कार्य नियु निषेधुं नथी. वली निषिथ प्रमुख घणा सूत्रमा अनेक जातनां प्रायश्चित कह्यां बे, पण नगवंते शीतल-लेश्याथी गोशालाने बचाव्यो, तेनुं प्रायश्चित कोइ पण सूत्रमा कडं नथी; पण नलटुं श्राचारांगसूत्रना प्र. थम श्रुतष्कंधना नवमा अध्ययनना चोथा उद्देशामां कडंडे के, जगवंत श्री माहावीरदेवे बद्मस्थपणे दिक्षा लीधा पढी पाप कर्यु नथी. ते पाठःपच्चाणं से महावीरे, गोविय पावगं सयमकासी; अणंहंवा णकारिबा, करंतंपि णाणु जाणित्ता. ॥ अर्थः- तत्वना जाण से ते माहावीरदेव णो नहिं पाय . पाप स० पोते करता, पण बीजा पासे ण न करावता, अने क० करनारने पण रुमो पा न जा जाणता. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (- १५२.) 4 सिद्धान्तसार, जावार्थ:- दवे जुन ! श्राचारांग प्रथम शुष्कं नवसें अध्य सारे बदेशामां, जगवंतना गुण कह्या धने निरतीचार संजम को अ चोखा उद्देशानी, ग्रामी गाथामां कथं के, नच्चा. हे उपादेय स्वरूप जा णीने पोते पाप कयुं नथी, अनेरा पासे कराव्यं नथी थाने करताने जो पण जाएयो नथी. वे उद्मस्थपणे अनेक कार्य कय तेमां पाप म्युं एव शंका उपजे, पण बद्द्मस्थनो शंका केवलीना वचनथी जागे. जेम जगते उद्मस्थपणे, सूत्रमां वज्र्ज्या तेवां काम आगमव्यवहारथी कीधां पण केवल उपन्या पठ। सूत्रनी वाणी प्रकाशी तेमां कथं के, मैं बद्मस्पो कराथी पाप कयुं नथी. वे तमारी केद्रेणीने खेखे छद्मस्वपसे पाप लाग्युं छाने केवलमां कपटाइ करी जुठ बोल्या से कुछ लाम्- (कर्या पापने पाठ्युं ते.) ए जुग बोलानां पप्पां सूत्र पण जुटा.' दवे समे प्रतीत केनी राखशो ? तमारे लेखे ए सिद्धान्त उठी गया. तेवारे दीवसमा खुल्या कड़े बे के “ए तो गणधरनां बचन बे. तेमणे वीतरामना गुण वर्णव्या डे. तेनो उत्तरः दे देवानुप्रय ! सर्व सूत्र गणधरेज गुंथयां बे. एक वचन जुठु तो सघलाए जुगं. जेम खतमां एक शाख जुटी तो याखं खत जुटुं, ते ए पण जाणवुं. तेवारे तेरापंथी वली कदे बे के “अढ़ियां तो एम क बेके, जगवंते जाणीने पाप कयुं नथी. अजाएये मोहनी-कर्मने क पाप लाग्युं. तेथी चुक्या कही ये बीए. " तेनो उत्तर. हे देवानुमीय । त्यां तो पंदरमें शतके प्रजुए गोशालाने कयुं बे के, दे गोशाखा ! में द्वारी अनुकंपा वास्ते शीतल-लेश्या मेली. एम जालीने लेश्या मेली कड़ी बे, पण एम नथी कके, मारे थजाएये लेश्या नीकली. तेवारे वली तेरापंथी कड़े बे के “लेश्या तो जाणीने मेली, पण एम न जाएयुं के, ए काम करनुं के न करवुं. एम जाएये पाप कीधुं. " तेचो नम्तर दे देवानुप्रय ! ज्ञान विना तो समकित पण नथी. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन २० में. गाथा ३० मी: Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. नादंसणस्स नाणं, नाणेण विणा गुणिस नचि मोरकं नचि , (१८३ ) दोइ चरण गुणा; मोखस्स णिवाणं ॥ ३० ॥ अर्थः- ना० दर्शन रहितने ना० सम्यक् ज्ञान न होय, अने नाणे लम्बकूज्ञान बिना एण्न होय, न उपजे च० चारित्र (पांच महाव्रतादि) ० गुण ( चरण सित्तरी पिंक विशुद्धादि करण सित्तरी ). अ० अगुणी ने चरल सितरी रहितने न० सकल कर्म कय लक्षण रुप मोक्ष नथी. न० नयी कर्मे मुक्याने नि० निर्वाण (मुक्ति) पदनी प्राप्तो ॥ ३० ॥ भावार्थ:- हवे जुटं ! जगवंतने ए काम कर के न कर, ए ज्ञान नाह स्यारे तो ज्ञानविना समकित पण नहि, श्रने समकित नहि त्यारे चारित्र (कर्मी सुंकावामो मोहनो मार्ग) पण नहिं. कारण के पेहेलुं ज्ञान भने पछी चारित्र क ठे. शाख सूत्र दसवैकालीक अध्ययन चोथे गाथा दसमी: हे देवामुप्रीय! तमारे लेखे तो भगवंतमां उद्मस्थपणामां समकित छाने साधप पण नहोतुं . एम केम कहोबो के जगवंतने करवा करवा लोग कामनी खबर नहोती. तेवारे तेरापंथी कहेबे के, जगवानने जाणपोतुं पण ज्ञानथी जोयुं नहिं. हे देवानुप्रोय ! ज्ञान दीधा विना तलनों बोम शीरीते बताव्यो ? एक फलीमां सात तल शीरीते बताव्या तैं कहो. ए प्रत्यक्ष जाणीने काम कर्यां तेने प्रजाएये कर्यां कहोबो ए आश्चर्यनी वात बे. जो अजाण्ये पाप लाग्युं कहो तो चुक्या केम कहोटों. जाये पाप लाग्याने जो चुक्या केद्देशो तो, अनंता तीर्थंकर थया अने अनंता थशे ते सघलाने चुक्या केहेवा पमशे. वली बद्मस्य साधुन गर्वतने समेत सात कर्म बंधाय कर्तुं बे, परा तेमने पापदोष (मूल उत्तरगुण) ना अपसेवी कह्या बे, ( शाख सूत्र भगवती शतक १५ में नद्देशे ६-७ मैं ) पण चुक्या न कला. हवे तमे तो जाणे पाप लाग्याथी चुक्या को, स्थारे उमस्थ तीर्थंकरदेव तथा साधु विहार करे मे थाहा रादिक वोहोरवाने जाय त्यां अजाणपणे जोवनी घातादिकनुं पाप समे स लागे भने सात कर्म अजाणपणे बंधाय. ए लेखे तो सर्व उद्मस्थ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८४ ) सिद्धान्तसार. साधु तथा भगवंत समेसमे चुके, ते कये समे प्रायश्चित ले ? अने तेमनामां कये समे साधपणुं कहीये ते कहो. एम तमारे लेखे तो कोइ बमस्थ साधु तथा जगवंतमां साधपपुंज न रहेशे . दे देवानुप्रय ! एम के कहो हो के, अजाएथे पाप लाग्युं तेथी चूक्या. अजाये पाप तो सर्व बद्मस्थ साधु तथा भगवंतने लागे . ते अजाण पापथी चूक्या कद्देवाय नर्दि. वली जगवंते केवलज्ञान उपन्या पढी कयुं बे के, में त्रण करण ने त्रण जोगे करी उद्मस्थपणे पाप कर्यु नथी. दवे तमे मतना लोधे भगवंत नपर अवतां आल दइने अनंत संसार केम वधारो बो. वली पाप तो प्रमादथी थाय एम कयुं छे. ज्यारे प्रमादनो उपचय याय ने जोगनुं निमित्त कारण याय स्यारे साधुने क्रिया लागे, (शाख सूत्र जगवती शतक त्रीजे) पण जगवंते तो बद्मस्थपणे मूलथीज किंचितमात्र पण प्रमाद नथी सेव्यो. शाख सूत्र याचारांग प्रथम श्रुतष्कंधे नवमे श्रध्ययने उद्देशे चोथे. ते गाथा:अक्साइ विगय गेहीय सदरुवेसु मुनि द्यावी. मचेववि परिक्कममाणे नोए पमायं सईपि कुविच्छा ॥ १२५ ॥ अर्थः- ० कषाय रहित ( तीनकी जीनकी चमकाववादि क्रोधनं कारण कोइ वखते न आवे ते ) वि० शब्दादि विषे गृद्धपणा रहित स० शब्द रूपादिकने विषे मु० मुर्छा रहित, एवा थकां द्या० ध्यान ध्यावे श्री माहावीर ब० बद्मस्थ बतां पण विविध प्रकारे संयमानुष्टानने विषे परि० पराक्रम करता थका. नो० एक वार पण प्रमाद ( कषाया: दिक ) पोते नहिं करता दवा एवी. रीते स्वामी प्रवर्त्या. जावार्थ:- दवे इहां कथं के, जगवंते बद्मस्थथकां संजमानुष्ठानने विषे उद्यम करतां पोते प्रमाद कर्यो नहिं जुट दे देवानुप्रय ! प्रमाद कर्याविना पापशी रीते याय. तमे एटलां सूत्रनां केवली नां वचन जत्थापीने प्रजुने चुक्या कहोने अनंत संसार केम वधारो हो. हवे एटला सूत्रनी शाखे जगवंते गोशालाने बचाव्यो तेमां पाप ला Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१८५) नथी. तेम बीजा पण केइक जीवने बचावे, आगलानु पाप टलावे तेमां पाप नथी. तेवारे तेरापंथी कहेडे के " मुसादिक (जंदर)ने बीलामो पासेथी बचावी व्यो तथा पंखीने मालामां मेलो द्यो. जो एवी रोते जीव बचाव्यां धर्म होय तो, लब्धिधारी मुनीराज हाथ फेरवे तो सर्व श्रावकनुं पेट दुखतुं रही जाय तथा जीव जोवतो रही जाय, पण हाथ फेरवे नहिं तेम जीव बचाव्यां धर्म होय तो उंदरादिक असंजति जीव करतां तो श्रावकनां पुन्य अधिकां बे. ते धर्मध्यान पण करशे, पण जीव बचाव्यामां धर्म नथी, तेथीज तेश्रावकोना पेट नृपर हाथ फेरवे नहिं." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जंदरनी परे श्रावकने पण अमारा कहेवाथी बचे तो बचावी लश्ए. वली तेरापंथ कहे के “ जेम साधु, श्रावकना पेट उपर हाथ फेरवे नहिं,तेम वंदरने पण पेट खे तो हाथ फेरवे नहिं." एवा कुबेतु लगावीने बोघा लोकोनां हृदय दया रहित करे , अने पोताने तो अंधारूं बे, केमके को काम धर्मनां करे डे अने को काम धर्मनां नथी करता. हे देवानुप्रीय ! तमे कहोडो के असंजति जीवनुं जीवीतव्य न वांग. त्यारे जुर्म ! असंजति ले तेने तमे केम पोषो डो? जो अंगथी उपनी जाणीने पोषो तो, अंगथी बालकादि नपजे ले तेने केम नथो पोषता ? वली शीतकालमां पाणीमां माखी ठरे तेने मुहपतिमां घालीने साजी केम करोडो ? बाहार केम काढोडो? तेवारे तेरापंथी कहे के “श्रमारा पाणीथी माखी मरे तेनुं पाप अमने लागे. ते टालवा माटे साजी करोए बीए. श्रमारु पाप टालq तेमां धर्म , पण माखोर्नु असंजम जीवीतव्य नथी वंता.”. एम कपटथो जुठ बोले ले. तेनो उत्तरः-.. . हे देवानुप्रीय ! तमारा पाणीथो माखी मरे तेनुं पाप तमने लागे, ते पाप सलवामा धर्म कहोबो, त्यारे अंधारी रातमां बांधलो श्रावक साधुना बाजोठ या कपमाथी अथमाश्ने मुर्गखाइ पगथीयांनी नालमां पंड्यो, तेथी तेनी कोट नागे . ए वेला बोजो ग्रहस्थो तेनी पासे नथी, सारे तमे सानो करों के महिं १ तेबारे तेरापंथ कहे के “ अमें तो Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८६ ) + सिद्धान्तसार.. साजो न करोए.” एज वेला बोजो ग्रहस्थी श्रावीने पुढे के, ए शाथी पड्यो ? त्यारे कहेके, मारा उपगणेथी पड्यो. तेवारे श्रावक तमने कहे के, माखीने तमारा पाणीमाथी काढीने तमारुं पाप टालो त्यारे तमारा कपमा तथा बाजोपथी श्रावक पड्यो, ए श्रावक पंचिंजिनी हत्या, पाप तमने लागे , ए केम न टालो ? तेवारे तेरापंथो कहे के, अमारे ग्रहस्थीथी शुं प्रयोजन डे ? हे देवानुप्रीय ! माखी चौरेंछि, असंजति, अ. वति , अने श्रावक तो व्रति , धर्मनो करणहारो बे. तेनां पुन्य शुं माखीथी पण हलवां ले ? जो माखी तमारा पाणीथो मरे तेनुं पाप तमने लागे ते टालवा साजी करो तो, तमारा नपगर्णयो श्रावक पड्यो तेनी हत्या तमारा केहेवा प्रमाणे तमने लागे जे; त्यारे ए श्रावकने साजो केम न करो? ए पुरुं अंधारूं केम डे ? एक माखीनु पाप टालो धर्म करो, अने श्रावक, पाप टाली धर्म न करो. ए श्रद्धानी प्रतीत केम श्रावे ? तेवारे तेरापंथी कहे के, अमारो कल्प नथी. त्यारे हे देवानुप्रीय! अंद. रादिक गरीब जीवने बचाव्यां दयानुं कार्य . आगल पण राग केष वधे नहिं, तेथी बचाववानो कल्प ; अने श्रावक- पेट साजूं करेतो एवा ताप, स्वास, कोढ प्रमुख वाला घणाए रोगी होय. तेनुं दुःख जो साधु मटामे तो प्रमाद वेदगी वधे, अने तप, संजम, स्वाध्याय, ध्यान घटे. वली कोश्ना त्यां सजाय, ध्यान के पमिकमणानी वेला बोलाव्याथी साधु न जाय तो द्वेष पामे. तेथी मुनीराज श्रावक, पेट साजुं न करे. ए कल्प नथी. तेवारे तेरापंथी कहे के “ साधु तो बकायना पिहर जे.जो बचाव्यामां धर्म होय तो बधांने बचावे. हवे तमे उंदरा, पंखो, गरीब जीवने दयाने अर्थे बचावी मारवावालानु पाप टलावो बो, त्यारे सत्यु धान्य बकरुं खाय तेने केम नथी बचावता ? ए बकरानुं पाप केम मयी टलावता? वली मुला अनंता जोवना पिमर्नु गाउँनयुं . ते मुला सांड खावा लाग्यो. ए मुलाना अनंता एकेंडि जीवने केम नथो बचावता! सांडर्नु पाप केम मथी दखावता. १ वली तखावमा मान षषां तेमा Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( २८७ ) गायो सो पाणी पीवा जाय. ३ लीलोत्री तिर्यंच खाय. ४ मार्गमां की - ad, गोला पग नीचे मरे. ५ उकरमा नपर लटो कागमा चुगे. ६ इत्यादिक गरीब जीवने केम नथी बचावता ? ए मारवावालानुं पाप केम नथी टलावता ? "" एवा कुहेतु लगाकोने जोला जीवनां हृदय दया रहित करे बे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! ए जीवने पण कोइ दया श्री बीजी वस्तुनो जोग मेलवी बचावे, मारवावालानुं पाप टलावे, तेमां मे पाप नथी केदेता. ए कुदेतु तो क्यारे मले के, जो यमे छंदराने बचाव्यामां धर्म केहेता होइए ने ए जीवने बचाव्यामां पाप के - देता होइए त्यारे मले; पण ए जीवने बचाव्याथी लोकमां अशुद्ध व्यवहार लागे. धणीनी खुसामत! वास्ते रखवाली करे बे, तिर्यंचने खावापीवा देता नथी, ने उकरमाना कीमा विष्टामांथी वीऐडे. एम जिनमार्गनी लघुता थाय तेथी वजें नहि. तेवारे तेरापंथी कढे के, धर्म करतां लोकनो अशुद्ध व्यवहार गणवो नहिं तेनो उत्तरः 33 हे देवानुप्रीय ! तमारी जग्यामां मुवेल चकली या नंदर प्रमुखनुं कलेवर पमयुं होय, तेने सूत्रनी सद्याय करवाने असाय टालवा वास्ते बाहार परतो तेमां धर्म बे के पाप बे ? तेवारे तेरापंथी कबे के " धर्म बे, पण जो पाप जाणे तो साधु कलेवरने बाहार पर नाह. त्यारे तेने केदेवं के, तमारी जग्यामां कुतरो बीलामी प्रमुख मुत्रां पड्यां a. ना कलेवरना पगे दोरमी बांधी सूत्रनी सकाय करवा वास्ते बाहार परवीने धर्म करो के नीिं ? तेवारे कहेबे के “लोकी कमां शुद्ध वहेवार लागे. लोकोमां जिनधर्मनी लघुता लागे. लोक कहे के, साधु थने मेहेतरनुं काम करे बे. कुतरानां कलेवर खेंचे बे. ए वास्ते न परठीए. " तेवारे तेमने केहेतुं के, “ तमे के देता : हृता के धर्म करतां लोकीकनों शुद्ध व्यवहार गावो नहिं. त्यारे चकलो, जंदर पण पंचेंद्रिनां कलेवर 66 कुतरो बीलामी पण पंचेंजिनां कक्षेवर बे बने सरखां ने जो चलो परal धर्म करोडो तो कुतरो परठी धर्म केम नथी करता ? ते अशुद्ध-व्यवहार केम गलोढो ?” तेवारे जवाब दइ शके नहिं. शुद्ध Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) + सिद्धान्तसार. अशुद्धव्यवहार उखखे नहि. साधुना कल्पमां श्रने आशा प्रमाज्ञामां समजे नहिं, श्रने दयानो जम कापवाने वास्ते एवां कुहेतु मेलवे . .... _वली तेरापंथो कहेले के "मरता जीवने जबराश्यो बोमावे तो अंतराय बागे, तेमां धर्म सरदहे तो समकित जाय, परा नपदेशक समजावे तेमां धर्म ." एम कहे, पण उपदेशनी विधि जाणता नथी. तेने विधि उलखाववाने पुब्बु के, तमारा थाहार नपर ताकीने कुतरो आवे तेने मचकारो करो घो हाथमां लश् केम मरावो गे? ए धर्म जाणी जबरा करी समफित केम गुमावो डो? जो जबराश्मां पाप आयो तो ए काम केम करो बो? तमारी केहेणोने लेखेतो ए कुतराने मनुष्याको परे वचनथी समजाववो जोइए के “अरे कुतरा ! साधुजीनो आहार खावो नहिं. चार तने पाप लागसे" एम नपदेश देवो, पण जवराश करवी ए न्याय केम मले ? हे देवानुप्रीय ! तिथंच विवेकविकसने एज उपदेश जे. जेम असंजति खुट्खा ग्रहस्थने साधु श्राववा जवान कहे नाहि, कहे तो प्रायश्चित आवे; पण सांढ कुतरा प्रमुख आवे तेने मचकारो करे, धुरकारो दे अने उघो हाथमां लश्ने मरावे. एनो एज उपदेश के तेम जबरा करी जोवने बचावे ते कायानो उपदेश जाणवो.त्रण करने त्रण जोगथी उपदेश देवो. तेमज त्रण करण ने त्रण जोगथी दया पालधी. जोवने बचावे ते कायानो नपदेश जाणवो. जीवने मरतां बचाके तेने कायाथी दया पाली कहीये. ते दयानां साठ नाम कसं . शाख सूत्र प्रश्नव्याकरण प्रथम संवर-धारमां. ते पाठःतव पढमं अहिंसाजासा सदेव मणुआ सुरस्स लोगस्स: जव दीवोत्ताणं सरणगइपगः- निवाणं १ निबुई। समाही ३ संत्ति ४ कित्ति ५ कंती ६ रश्य विरश्य G सुयंग ९ तित्ति २० दया ११ विमुत्ति १२ खंत्ति १३ . समत्तारादणा २४ महंति १५ बोही १६ बुदि. १७ ... हिती १८ समिडि रए रिधि २० विधि ११ वित्ति २२. Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( toe ) पुवी २३ नंदी २४ जदा २५ विसुद्ध २६ लबि २७ वि -- सव २० दिवी २० कल्लाणं ३० मंगलं ३१ पमोन ३२ विभूति ३३ रखा ३४ सिद्धावासो ३५ अणासवो ३६ केवलवाणं ३७ सिव ३० समिइ ३९ सोल ४० संजमोति ४१ सीलघरो ४२ संवरोय ४३ गुत्तो ४४ ववसान ४५ उसत्तोय ४६ जणो ४७ यत्तणं ४८ जय ४९ मप्पमान ५० आसासो ५१ विसासो ५२ अनन ५३ सव* स्सवि माघार्ज ५४ चोरका ५५ पवित्ता ५६ सुती पूया ५० विमलपचासा ५० निम्मलतरत्ति ६० एवमादीपि निययगुण निम्मियाई पचवनामा दोई हिंसाए गवईए एसा भगवई हिंसा ॥ 1 अर्थः- त० तीहां पांच संवरद्वारमां प० पेहेली ० जीवदया स देव म० मनुष्य ने ० असुर सहित लो० लोकने विषे सर्व जीवने ते हिंसा केवी होय वे ते कहेतेः दी० दीवासमान आधारभूत तथा द्वीपसमान आपदा निवारणहार स०संपदानी देणहार, आदरवायोग्य सर्व गुरानो आधार ते श्री जीवदयानां गुणनिष्पन्न नाम कहे बे. नि०मोनुं कारस निर्णनिवृत्तिनी करणार स०समाधोनुं कारण सं० सान्तोनी दायक किकीर्तिनुं कारण कंकान्तिनुं कारण र तिनी उपजावणहार वि०पापश्री निवर्तावे सु०सिद्धान्तनुं अंग तितृप्तिनी करणहार दण्खनयनुं देवं ते वि० सर्व बंधनथी मुकावे ते खं० कमानी करणहारी स० समकितनी श्राराधनानुं कारण म० सर्वथी मोटी बो० धर्मनी बुजावणहारी बु० बुकिनी देणहारी कि० धीरजनी करणहारो स० समृद्धिन देणहारी रि० रिद्धिनी देणहारी वि० सुखनी वृद्धिनी देणहारी वि० अचलनी देणहारी पु० सुखनी पुष्टीनी करणहारी नं० श्रानंदनी देणहारी न० कल्याणनी कहारी विo विशेष निर्मलताकारक ल० लब्धिनी उपजावणारी. kr Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९०) + सिदान्तसार.. वि० विशेष प्रधान दि० समकितरुप दृष्टि का कल्याणनो हेतु मंण् मंगलीकनो हेतु प० हर्ष पामवानो हेतु वि० मोटा पामवानो हेतु र० र. कानी करणहारी सि सिझने रेदेवानुं मंदोर अ० आश्रय नथी जेमां के केवलनी राज्यधानी सि नपअव रहित स० रुमीरीतनी प्रवर्तावक सी० सुझाचारनो हेतु सं० संजमनो हेतु सी० सीलन घर सं० पापथी पारमाने संवर ते गु० अशुन जोगनुं गोपवq ते व० निश्चे लाजनो व्यापार न० उंचो पदार्थ ज नाव यग्य आ० सर्व गुणनो श्राश्रय जग यतना म प्रमादनुं निराकरण आग आस्वासनुं स्थान वि० विश्वासन स्थान श्र० पोतानी श्रात्माथी कोश्ने नय न उपजाववो ते स० सर्व जीवने अ-मारी चो मूलथीज चोकी, प० सदाय पवित्र, सु० मखनी टालणहारी पू० तीर्थकरादिकनी पुजा विण्मल रहित प्रजा जेनी निक अतिशय निर्मल इति. ए नाम. ए० ए आदि अनेक नि० पोताने गुणे नि० निपजाव्यां प० गुण निष्पन्न नाम हो होय. अ० थहिंसा न जगवतीना ए०एन० जगवती अ जीवदया जाणवी. .. जावार्थ:-हवे जुन ? दयानां साठ नाम कह्यां, ते गुण निष्पन्न अकेकुं नाम कयुं . हवे त्रण करण त्रण जोगथी जीवने हणे नहिं तेतो अहिंसा दयानुं नाम पेहेबुं निप. हवे एए नामना न्यारा न्यारा अर्थ कहो. दया, अनुकंपा, करुणा, वीसासो आसासो अमोघाए अने खंती केने कहोये ते कहो. हे देवानुप्रीय ! दया तो त्रण करण अने त्रण जोगथी प्राणीने बचावे तेने कहोयें. साधुजीए त्रिविधे शहिंसाना त्याग कर्या तेने अहिंसा कहीये. पांच सुमति अने त्रण गुप्तिनो खप करता विचरे तेने संजम जतना कहोये. कारणके चारित्र, संजम, संवर बने यना न्यारां न्यारां कह्यां डे; अने ए चारनां श्रावरण पण न्यारा न्यारां कह्यां जे. शाख सूत्र नगवती शतक ए में उद्देशे ३१ में, असोचाकेवलीना अधिकारमां. ए न्याये जीव हणवाना त्याग तेतो चारित्र, तेने अहिंसा कहीये. बचावे तेने दया जतना कहीये. पांच सुमति ने अण गुप्तिमा प्रवर्तवं तेने संजम कहीये. जीवना जीवीतव्यनी श्राशा: Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार कोश्ना जोगथी बंधाय तेने आतासो कहीये. वचनथी मरताने जोवीतव्यनो विश्वास नपजावे तेने विसासो कहोये, अने जोवने को मारी शके नहि, एवो पमो फेरावे तेने आमोघाए कहोयें. शाख सूत्र नपाशक अध्ययन में श्रेणिकराजाए श्रमार-पमो फेरवाव्यो त्यो “अमोघाए घुटेया विहोला" एवो पाठ जे. इत्यादिक ६० प्रकारनी दया कही . तमे जीवने न हणे ते एकनेज दया केम कहो हो ? ५ए प्रकारनी दया मतना लीधे केम बुपावो बो? वली साठ प्रकारनी दया केटला करण अने केटला जोगथी पालवी ते कहो; अने हिंसाचं पाप केटला करण अने केटसा जोगथो टालq तेपण कहो. तेवारे तेरापंथो कहे डे के, त्रप करण अने त्रण जोगथी दया पालवी. वली एम न कहे तो एम कहे के, त्रण करण अने नव जोगथी हिंसानुं पाप टालवू. हवे जुन! देवानुप्रीय ! त्रण करण ने त्रण जोगथी जीव मरे कयुं, अने त्रण करण ने त्रण जोगथी प्रथम संवर राखवो एटले जीवनी रक्षा करवी, दया पालवी, एम प्रश्नव्याकरणमां तथा आवश्यक सूत्रमा कडं डे. वली अढार पापमांप्राणातिपात (जीवहिंसा) त्रण करण ने नव जोगथी लागे कडं. हवे मनथी हिंसा शी रीते थाय ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहेले के, मनेकरी जीवनू माटुं चिंतवq ते मायु कहीये. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! मनेकरी जीवन मरण चिंतवq तेतो रुपध्यान कही. ते अशुनजोगथी कर्म बंधाय, पण जीव मरतो नथी. मन वचनथी जीवने शीरीते मारे तथा अनेराकने शोरोते मरावे ते कहो. पोताना मननी अनेराने शीरोते खबर पमे ते कहो. हे देवानुप्रीय ! मनथी मंत्रादिक गणे अने माटुं ध्यान धरे, तेथी आगलो मर जाय ते मनथी मार्यों कहीये. वचनथी मंत्रादिक पढे तथा श्राप दे,तेथी मरी जाय ते वचनथी मार्यों कहीयें,अने कायाथी मारवो तो प्रत्यक्ष देखाय ले. एमज अनेरा पासेत्रण जोगथी मरावे. मनेकरीने मंत्रादिकनुं मातुं ध्यान करावे, तेथी अनेरो अनेरा जीवने मारवा लागी जाय, ते मनथी मराव्यो कही. एम वचनथी जीवने मारवानो नपदेश दे, थने कायाथी Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९२ ) सिद्धान्तसार है हाथपग आदिकनी इसारत जणावीने जीवने मरावे ते कायायो मरायो कहीये. एमज मारे तेने मन, वचन अने कायाथी नलो जाणे. एम बे करण ने उ जोगथी तो जीव मरे, अने एक करण ने त्रण जोगयी जलो जाणे तेनु पाप लागे. तेमज त्रण करण ने नव जोगथी बकायना जीक्ती रक्षा.करवी, दया पालवी पलाववी, अने पोतार्नु पाप टाल, अनेरानुं दलाव अने टाले तेने नलो जाणवो. ए नव जोगथी दया पालवो ने पाप टालतुं कह्यु. हवे वचनथी नपदेश दइ जीवने ठोमावे तेतो एक वचन जोगनो उपदेश . तेने वचनजोगथी रक्षा करावी दया पाली आगलानुं काप टलाव्युं, तरवंब्युं कहीये; पण आठ जोगथी रक्षा शीरोते करावे, दया पाले पलावे, पाप टाले टलावे, तर वंडे वंगवे ते कहो. अहो देवा. तुप्रीय ! कोश, जीवने मारतो होय तेने कायाना जोगथी उद्यम करी मेकावे, तथा कोश कोमो प्रमुख जीव नपर विना उपयोगे पग देतो होय तेने आमो हाथ दश बचावे, तेने कायानाजोगयी उपदेश दोधो, दया पक्षावी, रक्षा करावी बागलानुं पाप टलाव्युं अने तरतुं वंन्युं कहीये. ए कायाथी दया पलावी, तेमां जबरा कर पाप लाग्युं केम कहोडो ? तेवारे तेरापंथी कहे के “ निषियसूत्रना बारमा उद्देशाना पेहेला सूत्रमा कयु डे के, जे कोश् साधु अनुकंपा निमित्ते त्रसजीवने बांधे, बंधावे अने बांधताने नलो जाणे तेने चोमासी प्रायश्चित आवे; थने बांध्याने गेमे, बगेमावे अने बोमताने अनुमोदे तोपण चोमासी प्रायः थित श्रावे. जो बोमतां लान होय तो प्रायश्चिय केम कह्यु ?" तेनो नुत्तर. अरे देवानुप्रीय! बांधवामां तो 'कोबुणपमिया' एवो पार ले. तेनो शर्थ करवावाले को ले के " साधु अनुकंपा निमित्ते त्रस जीवने बांधे, अंधावे अने बांधताने जलो जाणे तो प्रायश्चित थावे; " पण एवर्ष पाथी मलतो नथी. जो अर्थ लख्यो प्रमाण करो तो, एज पानमा दितिया पदमो अर्थ . तेपण प्रमाण करो. वली निषिथना सत्तरमा नदेशाना अर्थमां कडं के 'फांसो खाइ मरतो होय तथा लाहे बागी होय इत्यादिक कारणे बोमे' ते अर्थ पण प्रमाण करवो. पो. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - + सिद्धान्तसार ( १९३ ) देवानुप्रीय ! साधु तो सर्वथा प्रकारे संसारना कामथी निवां वे, तेथी ए काम साधुनुं नथी. तेमाटे ए ना कही , अने तमे कहोबो के, अनुकंपा निमित्ते बोमे तेने प्रायश्चित श्रावे. त्यारे साधु तो बीजां घणए धर्मनां काम करता नथी. जेम श्री पार्श्वनाथजीना साधु केशीश्रमण प्रमुख विचरता हता ते वेला माहावीरजीना श्रावक तेमने आहारपाणी प्रमुख चौदे प्रकारचें दान देता, वंदणा नमस्कार करता, तेमां एकान्त धर्म , अने माहावीरजीना साधु पण ए काममां श्रावकने धर्म परुपता, पण पोतानो कप नहिं तेथो माहावीरजीना साधु पार्श्वनाथजीना साधुने श्राहारपाणी श्रापता नहि, अव्ये वंदणा पण करता नहिं. वली साधवीने श्रावक श्रावीका वंदणा करे तेमां धर्म बे, अने साधु पण श्रावक आर्याने वंदणा करे तेमां धर्म परुपे, पण पोतानो कल्प नथी तेथी साधवीने साधु अव्ये वंदणा करे नहिं. वली गुरु चेलाने ऽव्ये वंदणा करे नहि, अने ग्रहस्थीने धर्म परुपे. ए प्रकारे अनेक कार्य धर्मनां डे, पण पोतानो कल्प नथी तेथी पोते करे नहिं तेम ए पण त्रसजीवने बांधवा जोमवानो कल्प नथी, तेथी बांधे गेमे नहिं; पण अनेरो ग्रहस्थी अनुकंपा वास्ते त्रसजीवने बांधे बोमे तेने तमे पाप कया न्याये कहोबो ? तेवारे तेरापंथी कहेडे के “ साधुनो कल्प नथी तेथी डोमे बोमावे नहिं ते तो ठीक, पण बोमताने नलो जाणे तेनुं प्रायश्चित कयु ने, कारणके पापर्नु काम जर्बु जाणे तो प्रायश्चित आवेज, पण धर्मपुन्यनुं काम नलु जाणे तेनुं प्रायश्चित न श्रावे. ए न्याये ग्रहस्थी अनुकंपा करीने जीवने बोमे तेमां पाप जाणवू. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! शहांतो त्रण करण कह्या ते साधु श्राश्री जाणवा. ए काम साधु करतो, बीजा साधु पासे कहीने करावेतो, अने बीजो साधु ए काम करतो होय तेने नलो जाणे तो प्रायश्चित आवे. ए साधुनां त्रण करण जे.जेम पार्श्वनाथजीना साधुने पंचवर्णा कपमां तथा चार माहावतथका माहावीरजीना साधु पोते श्राहारपाणी आपे नर्दि, बीजा साधु पासे अपावे नहि, धने माहाबोरजीना साधु श्रापता होय तेने जला पण जाणे नहि. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार एमज साधवीने साधु अव्ये वंदणा करे नहिं, बीजा साधु पासे करावे नहि, अने बीजा साधू करता होय तेने नला पण जाणे नहिं. ए साधुना त्रण करण कह्या, पण श्रावक पार्श्वनाथजीना साधुने थाहार प्रापे, अने साधवीने अव्ये वंदणा करे तेने साधु जला जाणे जे. तेम साधुनो कल्प नथी तेथी, पोते त्रसजीवने बोमे नहिं, बीजा साधुकने बोमावे नहि, अने बीजा साधु बोमता होय तेने नला पण जाणे नहिं. पण ग्रहस्थी अनुकंपा श्राणी जीवने बोमावे तेमां गुण केम नथी ? साधु. नढुं केम न जाणे ? ग्रहस्थी अनुकंपा आणीने जीवने बोमावे तेने पाप लागे, एवं को सूत्रमा कयुं नथी. वली अनुकंपा निमित्ते साधु त्रसजीवने डोमे, बोमावे अने डोमताने जलो जाणे तेने प्रायश्चित नथी कडं. शाख सूत्र निषिथ उद्देशे १५ में. ते पाठः जे निस्कू कोलूणपमियाए अणयरं तसपाणजायं तणपासएणवा मुंजपासएणवा कठपासएणवा चम्मपासएणवा वेत्तपासएणवा रजुपासएणवा सुत्तपासणवा बंधश् बंधतंवा . साश्य जे निख्खू बंधेलयंवा मुयश् मुयंतंवा साश्यई॥ । अर्थः-जे जे कोइ जि साध साधवी को दीन वृत्ति श्राजी. विका निमित्ते श्र० अनेरा कोइ त त्रसप्राणीनी जाती (गौ महिषी आदिक)ने त त्रणाना पासे मुंण मुंजना पासे का काष्टना पासे च० चमना पासे वे नेतरना पासे र दोरमीना पासे अने सु० सुतरना पासे करी बंग बांधे बं बंधावे अने सा बांधताने जलो जाणे. तेमज जे जे साध साधवी पूर्वोक्त पासे करी बंग बांधेला त्रसजीवने मु बोके मु० गेमावे अने सा बोमनारने नलो जाणे. इति. ___नावार्थः-हवे जुर्ज ! इहांतो 'कोलुणपमियाए प्रणयर तसपाणजायं' एवो पाउ जे. साधु बोमावेतो प्रायश्चित नथी. ए पण अर्थ प्रमाण करो इत्यादि घणे काणे पावणी श्रणमलता श्रर्ष के, ते पण ममाप Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१९५) करो. तेवारे तेरापंथी कहे के “ पाउथी मले ते अर्थ प्रमाण ३." त्यारे हे देवानुप्रीय ! इहां पण पूर्वोक्त अर्थ प्रमाण नथी. कारणके पाठमां 'कोलूणपमिया' एवो पाठ जे. तेनो अर्थ करुणा शब्देकरीने पोतानुं फुःख मटामवाने अर्थे ए काम करतो प्रायश्चित आवे, ए अकरार्थ. पण बोमेबोमावे तेमांतो कोलूणपमियाए' ए, पण पाठमांतो नथी. तमे अनुकंपा निमित्ते डोमे, डोमावे, बोमताने नलो जाणे तेमां प्रायश्चित आवे, ए, मतने लीधे जुठ केम लगावोडो ? शहांतो समचय कयु डे के, बांध्या जीवने बोमे, बोमावे अने गेमताने नलो जाणे तो प्रायश्चित आवे. एतो संसारीना जीव बांध्या तेने गेमवा श्राश्री जे. जो अनुकंपा निमित्ते बांधे, बंधावे, बांधताने जलो जाणे तेनुं प्रायश्चित होय तो 'अनुकंपणग्याए' एवो पाठ जोश्ए, पण एवो पाठ नथी. वली श्हांतो एम कर्दा डे के, त्रणांना, मुंजना, काष्टना, चाममाना, बेतनी बगलना अने सुतरना एटली जातना बंधणेकरी बांधे, बंधावे अने बांधताने नलो जाणे तो प्रायश्चित श्रावे, एवं कमु जे. हवे जुन ! मुंजादिकनां बंधण साधु राखे नहिं साधुने राखवां कोई सूत्रमा कह्यां होयतो बतावो. हवे ज्यारे ए बंधणो राखे नहिं त्यारे बांधे क्याथी ? वली साधुने ठेकाणे कोण बांधी जाय, के तेने बोमे; कारणके पशु प्रमुख जीव रहेतो होय त्यां साधुने तो रहे नहि, एम का बे. शाख सूत्र नत्तराध्ययन अध्ययन १६ में तेथी ए पाठ साधुना ठेकाणानो तो नासतो नथी. ए पाठतो साधुजी ग्रहस्थीना घेर आहारपाणीना अर्थे गोचरीए जाय, त्यां ग्रहस्थो त्रसजीव (गाय, नेस, बलध, वामां प्रमुख) ने बांधतो होय तथा गेमतो होय तेने कहेके, ए तारं काम हुं करीश, तुं मने अन्नपाणी आप. एवो रीते आहारने अर्थे बांधे डोमे तो चौमासी प्रायश्चित कह्यु, एम जासे बे, पण अनुकंपानो तो पाउज नथी. 'कोलूणपमिया' एवो पाठ बे. करुणा शब्द करीने कहे के, हुं जुखे मरुंडं तेनुं नाम कोलूणपमिया ले. शाख सूत्र विपाकमां. मृगयालोढीयाना अध्ययनमां गौतमस्वामीए धांधला पुरुषने करुणा शब्दे करी श्राजीविका करतो दीगो. ते काणानो अने Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) + सिद्धान्तसार.. था पाठ एक सरखो जे. एम आजीविका अर्थे बांधे बोमे तो प्रायश्चित आवे दीसे . वली संसारना सर्व कामथी साधु निवां ने तेथी प्रायश्चितं कडं बे, पण बीजो को पुरुष पोतानो मेले अनुकंपा करी बोके, गेमावे अने डोमताने नलो जाणे तेने गुण थाय के नहि ? वली ग्रहस्थी अनुकंपा करी जीवने डोमे बोमावे तेने पाप लागे, एवं कोश् सूत्र, टीका, प्रकरण या प्राचीन ग्रंथमां, क्यांय कयु होयतो बतावो. तेवारे तेरापंथी कहे के, उपाशकदशामां चूलणि प्पिया पोसहपमिमामां माताने बचाववा उठया त्यारे माताए कह्यु के, हे पुत्र ! तमे प्रायश्चित व्यो. जो उगार्या लान होय तो प्रायश्चित केम कहुं ? तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! इहां तो एम का डे के, देवता चलाववा श्रा. व्यो अने चली गया. ते श्रमधी रातनो समय के अने कोलाहल शब्द करी अजयणाथी उठया . ए प्रत्यक्ष विरुद्ध बे, कारण के पोसामां प्रहर रात गया पड़ी उतावला शब्दे कोलाहल करवो न जोइए, अने कर्यो. उतावला अजयणाथी रातना हलफलता उठवू न जोइए अने उठया. थंनो पकड्यो भने मूलथी बोड्या संजोगने श्रादों. ते माटे माताए 'नगपोसए नगनीयमे नगवए' कह्यु, पण एम नथी कडं के, पोसामा जीव बचाववो नहिं अने माताने बचाववा उग्या ते माटे वृत नाग्यां. वली पोसानी करणी मूलव्रत, संवर, निर्जरा ने एकान्त धर्म मोक्ष मार्गनी बे, अने अनुकंपानी करणी शुल जोगनी पुन्यप्रक्रतिनी जे. ते व्रतमां कसर लगामीने काम करवू न जोशए. अन्निग्रह खमीने साधुनी वैयावच पण न करवी, ते अष्टांते. जेम वे साधु , तेमां एके काउसग्म कयों, एवामां गुरु पधार्या. हवे गुरुनी सेवा कर्यामां अकान्त लाज , पण काउसग्गवालो तो पोते अधिक गुण आदर्या डे ते माटे सेवा न करे; पण बीजो साधु सेवा करे तेने लान जाणे के खोट जाणे ते कहो. तेम पोसावालो अनुकंपानी करणी कल्पे तेवी करे. पण पोताना त्यागने कसर लगामीने अनुकंपा न करे, पण बीजो को पुरुष अनुकंपा करे तेने खान केम न जाणे ? तेवारे तेरापंथी कहे के “अरणिकश्रावकने Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( १९७ ) देवता मगाववा श्राव्यो त्यारे देवताए कयुं के, हे धरणीक ! तारो धर्म मुंक, नहि तो तारुं वाहाण समुद्रमां रुबाबी नांखीश ए जुई ! जो जीव बचाव्यां लाज होय तो एटलां माणस नगारवा माटे तेथे धर्म केम न मुक्यो ?” तेनो उत्तरः हे देवानुप्रय ! अनुकंपाथकी पोतानो धर्म जे उत्कृष्ट पदार्थ ठे ते केम मुंके ? जेम कोइ सो पुरुष साधुने खावीने कहे तथा तमनेज कहे के, तमारा माथापर एकवार पाघमी बांधी ल्यो, तथा एकवार साधुपणुं मुंकी यो तो मे सोए जणा दीक्षा लइशुं. तेवारे तमे पाघमी बांधो के महिं तथा साधपणानो स्वांग छोको के नहिं ? केमके सो जाने दिक्षा दोघाथी तो धर्म बे. तेवारे तेरापंथी कदेबे के “ दिक्षा देवराव्यां तो धर्म बे, पण पोतानो धर्म बोमी साधपएं केम मुंकोए ? पोतानुं साधपं राखीने धर्म करो ए." त्यारे हे देवानुप्रीय ! अरणीक श्रावक जीव बचाव्यामां धर्म जाणे बे, पण पोतानो धर्म बोकीने ए अनुकंपा केम करे ? वली कोई स्त्री साधुने कड़े के, तुं मुजने जोगव, नहि तो हुं मरीश. ते माटे शुं कोइ पोतानो धर्म मुंकशे? वली कोइ कुलवंत पुरुषने कहे के, तुं गायनुं मांस खाय तो राज्य आपुं; पण ते उत्तम पुरुष पोतानो धर्म कुल संबंधी नथी मुंकतो अने लोक विरुद्ध कार्य नथी करतो. त्यारे भरणी श्रावक पोतानो धर्म केम मुंकशे ? यहियां अनुकंपाने दिली नयी जाणता, पण धर्म मुंकवो पमे ते माटे जीवने नगारवा वास्ते धर्म केम मुंके ? वली देवताए पण एम नथी कह्यं के, तने जीव ढोमाववो कल्पे नहिं. पण मारा के देवाथी तुं कही दे के, जीवने मत मारो तथा काऊने मत बावो एम देवताए के देवराव्युं होत ने अरणीक श्रावके न कयुं होत तो तमारुं केहेतुं मलत; पण देवताए एम नथी केहेवरायुं. देवताए तो धर्म बोवानुं कथं ते. दवे जीवने ढोकाव्यां धर्म थाय, ते धर्म तो देवता पेहेलांज ढोकावे बे. ते धर्म ढोड्याथी बाकी शुं रहे ? ते ह्या हो ते वीचारी जोजो. वली श्रेणीकराजाए अमारपमहो वज Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९८ ) 4 सिद्धान्तसार. hot तथा जीवनी हिंसा टलावी कही बे. शाख सूत्र उपाशक अध्ययन में, माहाशतकजीना अधिकारमां ते पाठः — ततेां सारेवर गाढ़ावी मंसलोलुया मंसएहिं मुनिया जाव घोणा बहू विदेदिं मंसेहिय सोल्ले दिय तलिएहिय जविएहि सुरंच महूंच मेरंगच मद्यंच सिंधुंच पसणंच आसाएमाणि २ विहरइ. तएां रायगिहे नयरे प्रणयाकयाई मायाए घुठेयावि होता. तरणं सा रेव मंसबोलुया समुचिया कोलघरिए पुरिसे सदावेई २ एवंव. तुझे देवा ! मम कोलघरिए दिंतो वयदितो कल्ला कलिं वे गोपोयए उपवेद २ ममं नवणेद. तएते ‍ कोलघरिया पुरिसा रेवइ गादावइणीए तदत्ति एयम विएणं परिसुति २ रेवइए गाहावय लिए कोलघरिए दितो कलाक दुवे २ गोल पोयए वदेइ २ रेवइए गादावइणी जवणे. तरणं सा रेवइ तेहिं गोमंसेदिं सोल्लेहिय ४ सुरंच ४ असारमा २ विदरइ || अर्थः-त तेवारे सा० ते रे० रेवती गा० गाथापत्नि निर्भयथकी सो मार्या मं० मंसनी लोलपी मं०मु० मांसनी मुर्बित जा० यावत् ० अत्यंत गृद्धपणाथी ते ब० घणा वि० प्रकारना मं० मांसना नेदेकरी सो० सुलादिक प्रमुख त० तलीने ज० जुंजीने खाय. सु० सुरा म० मदिरा पान ते मे० गोल धावमीनो नीपन्यो, म० मात्रीनुं मध विशेष सिं० सिंधु ताकि प्रमुख खजुरनो रस विशेष ने प० चंद्रदास्यादि मदिराने श्रा० स्वादे, स्वाद लेती विण् विचरे. त० तेवार पढी रा० राजगृढ़ न० नगरे अ० एकदा प्रस्तावे श्र० श्रमारी (कोइ जीवने मारसो नहीं एवी) राजा प्रवर्तावी. त० तेवारे सा० ते रे० रेवती गाथापनि मंसलोप Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १९९ ) मांसनी लोलपी समु० मांसनी मुर्छित थइथकी को० पिड़ना घरना प्रतीतकार्या पु० पुरुषने स० तेमावे, तेमावाने ए० एम कहे :- तु० तमे दे दे देवानुप्रीय ! ए प्रकारे म०को० मारा पिहरना घरथी व० गोकलजयी क० दीन दीन प्रत्ये दु० बबे गो० गायना पो० वाबमा उ० मारी मारीने म० मुऊने न० प्रवन्नपणे आणी यो. त० तेवारे ते को०पु० पिहरना मनुष्य रे० रेवती गा० गाथापत्निना वचन त० तहत करी ए वचन साचां करीने वि० विनय करीने प०ि सांजले, सांजलीने रे०गा० रेवती गाथापलिना को० पिहरना घरथी प्रजात वेलाए दु० बबे गो० गायना वाढमानो व० वध करे, करीने रेण्गा० रेवती गाथापत्निने न० श्रीने यापे. त० वारे सा० ते रे० रेवती गाथापनि ते० ते गो० मांसनी लोलपी सुलादिकनी गृद्धि सु० सुरा मदीरा पाननो अ० स्वाद aat rat ao विचरे बे. भावार्थ:- दवे जु ! श्रेणी कराजाए मारपडो वजमाव्यो ते गुण खाते के अवगुण खाते ? ए करणी शुभ के अशुभ ? ए शावास्ते मारपको वजमाव्यो ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहेबे के, एतो राजनीति . तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जो राजनीति होय तो राजनीतिना पालणहार जेटला राजा वे ते सर्वने राजनीति एवीज जोइए.. राजनीति तो सुयगमांगसूत्रना १० मा अध्ययने श्रधर्म-पक्षमां वखाणी बे. वली नववासूत्रमां कोणी कनी राजनीति वखाणी. वली जंबुद्धीपपनंतिमां जर्तेश्वरनी राजनीति वखाणी, त्यां घणो विस्तार बे; पण श्रमारको वजमाव्यो कह्युं नथी. हवे ए कया शास्त्रमां राजनीति कही. हो. कारण के राजनीति तो राज्य जमावे, वेरीने मारे, संग्रामे जय पामे तेने कहीयें. वली ठाणायांग ठाणे त्रीने 'सामे दंगे नेदे तिविदा अथ्य जोणि पं. तं.' वली रायप्रशेणीमां चित्तसार्थीना गुप वखाण्या, त्यां पण मारपको वजमाव्यो कधुं नथी. तेमज ज्ञातामां अजयकुमारना गुण वखाण्या, त्यां पण श्रमारपको वजमाव्यो कयुं नथी. स्यारे हे देवानुमीय ! ए राजनीति कया सूत्रमां कही बे से कहो. ते 1 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २००) सिद्धान्तसार.. कारे तेरापंथी कहे ले के, जिनमार्गमां अमारपमो वजमाववानो श्रने जीव उगारवानो श्राचार होय तो, बीजा को राजाए ए काम केम न कर्यु ? तेनो उत्तरः हे देवानुप्रीय ! दसासुतखंधमां दसमे अध्ययने नव नियाणना नाव कह्या, त्यां श्रेणीकराजाए गाम नगरमा स्थानक थाश्री ढंढेरो फे. रख्यो के, घर, हाट, वखार, पर्वस्थान धातुनां गम, सोनानी खाण इत्यादिक सूत्रमा स्थानकनां घणां नाम कह्यां डे; ते स्थानकनी थाहा देवरावी के, हे ना!जेने जग्या होय ते वीरप्रजुना साधने रेहेवा श्रापजो. हवे जुर्च ! श्रेणीकराजाए स्थानक श्राश्री ढंढेरो फेरव्यो, तेम बीजा को पण राजाए ए काम नथी कर्यु. ए काम जिनमार्गी साधुना रागी डे के साधुना वेषी मिथ्यात्वोनुं डे ते कहो. वली अंबरुश्रावक भाषाकर्मी प्रमुख दोष टालतो हतो, अने बीजो को श्रावक पमिमा विना प्राधाकर्मी दोष टालतो कह्यो नथी. हवे कहो ! अंबमश्रावके ए काम रुहुँ कयुं के जुझं कर्यु? वली दिवानी दलाली श्री कृष्णमाहाराजे करी थने बीजा कोइए नथी करी. ते रुमी करी के जुमी करी ते कहो. हे देवानुप्रीय ! एम केम कहोगो के, जीव बचाव्यां तथा अमारपको वजमाव्यां धर्म होयतो बीजा राजाए केम न फेरव्यो ? जेणे फरव्यो तेनो पक्षल्यो. तेने केवां फल लाग्यां ते कहो. ढंढेरो फेरव्यो भने साधुने स्थानकनी श्राज्ञा देवरावी, तेनां फल नलां के लुंमां ? ए करणी शुज के अशुन ? हे देवानुप्रीय ! श्रागलतो श्रेणीकराजाए आहेने खेलतां गर्जवंती हरणी विधा तेथी नर्कनुं आठ बंधायुं, एवं टीका तथा प्रकरणमां कडं बे; अने पड़ी श्रनाथी-मुनीराजकने समकित पाम्या. ते उत्तराध्ययनना २० मा अध्ययनमा अधीकार . पडी राजा गृही नगरीमा तेमणे अमारपमो वजमाव्यो के 'कोइ, जीव मारवा पामे नहिं.' एवो सातमा अंगमा अधीकार . ए काम समकित प्रा. मीने शा माटे कर्यु ते कहो. हवे पूर्वोक्त धर्मीराजाने जगत धन धन Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( २०१ ) . · कड़े, पण त्रण वाला जुंको जाणे. तेमां एक तो मांसनो गृद्धि, बीजो कसाइ, नेत्री जो जेनी श्रद्धा जीव बचाववामां पाप मानवानी होय ते निन्दव. एत्रण निर्दय, धर्मीने जुंको जाणे. तेरे तेरापंथी कड़े बे के “ सूत्रमां ढंढेरो फेरव्यो कं बे, पण श्रेणीकने धर्म थयुं एम नथी करूं. जे धर्म कड़े तेने जुठ लागे बे. " तेनो उत्तर हे देवानुप्रीय ! सूत्रमां ढंढेरो फेरव्यो कथं बे, पण पाप लाग्युं तो कोइ सूत्रमां कह्युं नथी. तमे श्रेणीक राजाने पाप लाग्यं कहीने जुठ केम बोलो बो ? श्रेणीक राजाने जेवां फल लाग्यां वे तेवांज फल बीजो कोइ दयावंत, जीवने बचावशे तेने पण लागशे. तेवारे तेरापंथी कहे बे के, एम जबरायी जीव बचाव्यां धर्म थाय तो, इंद्र माहाराज चौद राजलोकमां श्रमारपको वजमावीने जीवदया पलावे अने मावलांनां मोंढा बंध कर दे, पण धर्म नथो. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! आ अवसरमां जैन धर्म चालली चालणी थइ रह्यो बे. सीमंधरस्वामीने इंद्र पुढीने कहे तो घणा जीवने मिथ्यात्व मटे, संदेह टले. एमां तो तमे पण धर्म कहो बो. ए तो इंडकने केदेवराव जोइए ? एमां तो पाप नथी ? पण ते केम नथी केहेता ? तमे एवा कुद्देत केम मेलबो बो ? वली तेरापंथी Tea के "मार्गमां इंद्रियादिक त्रसजीव पड्या बे, ते देखीने तमकेथी लइने बांयने मुके अने तेनी अनुकंपा करे तो दस प्रकारनो प्रसंजम लागे. एम ठाणायांगमां कह्युं छे.” एवं सूत्रनुं नाम जुठु ले बे. ते पाठ. पंचिंदियाणं जीवाणं समारंभमाणस्स दस विदे संजमे तं० सोयमया सोखार्ज ववशेवेत्ता नवइ सोयमएणं दुकेणं संजोगेत्ता नवई एवं जाव फासामत्तेणं दुस्केणं संजोएत्ता जवइ एवं संजमोवि जाणियवो. अर्थः- दवे पंचेंद्रि श्री संजम संजम कहे बे: - पं० पंचेंद्रि जीवने छा० समारंज करतां थकां द० दस प्रकारे सं० संजम क० लागे त० से कहे से:- सो० कानना सुखथी श्र० अलगो न करे, सो० श्रोतें २६. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०२) + सिद्धान्तसार.. जिना दुःखने विषे अ० जोमे नहिं. ए० एमज जाण् यावत् फा स्पर्शना दुःखने विषे था जोमे नहिं ए० एम श्र० संजम पण ना कहेवो. जावार्थ:-हवे जु ! अहिंयां तो एम कडं ले के, पांच इंजिना सुखथी विडोमे अने पांच इंजिना दुःखमां जोमे. ते पण समारंज करतो थको होय तेने असंजम लागे. हवे समारंन नाम तो मार्यानुं . शाख सूत्र दस वैकालिक अध्ययन बहे. ते पाठ लखीये डीए: पुढविकायंवि हिंसंतो हिंसश्न तयस्सिए तसेय विविहे पाणे चस्कूसेय अचस्कूसे राज तम्दाएयं वियाणित्ता दोसं दुग्गश्वढणं पुढविकायं समारंनं जाव जीवाए वजाए एए॥ अर्थः-पु० पृथ्वीकायनी हिं० हिंसा करतो थको हिं० हिंसा करे त० तेनी नेश्राए जे जीव त० त्रस वि० विविध प्रकारना पा प्राणी प्रत्ये च० चक्कु गोचर (बादर) श्र० शुक्ष्म त ते नणी ए० एवं वि० जाणीने दो ए दोश दु० पुर्गतीनो व वधारणहार पु० पृथ्वीकायनो स० समारंज (हणवू) जा0 जाव जीव सुधी व० बोमे ॥ नावार्थः-ए जु ! सूत्रमा शादात हण्यानुं नाम तथा दुःख दोधानुं नाम समारंन कडं बे, पण सुख निमित्ते अनुकंपाने हेते अलगा मुंके, तेने समारंज लागे एवं कया सूत्रमा कडं डे ते बतावो. वली पमिखेहणा करतां तथा नपाश्रय पुंजतां घणा जीव देखो वेगला पर, कचरो काढी वेगलो परठे तेने समारंज केम लागशे ? जो समारंन लागे तो तमे ए काम केम करोडो ? वली साधु सुखे बेग तने को श्रावक आवीने कहे के, हे स्वामी ! तमने फलाणा गामे तमारा गुरुए तेमाव्या बे, तेने समारंन केम लागशे ? वली साधना शरीरे दुःख जाणी श्रावक औषध आपे, तेथी साधुने अतिसारादिक घणुं दुःख उपजे पण रोग जाय. हवे ए दातारने औषधन अशाता दोधां माटे अशाता थाय के शातावेदनी थाय ते कहो. हे देवानुप्रीय ! अनुकंपाकर दुःखना ठेकाणेथी Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सिद्धान्तसार.. (२०३) खेर सुखना ठेकाणे मुंके तेने समारंज केम लागे ? एवं मतना लीधे जुठ केम बोलोडो ? तेवारे तेरापंथी कहेले के “ रियावहि पमिकमे ले तेवारे गणाउगणा संकामियानो बोल बालोवोए नोए, तेमां जीवनी अनुकंपा करतां गणानगगणा करे ते पण नेलो श्राव्यो. एमां लान क्याथी ?" तेनो उत्तर. हे देवानुपीय ! एतो अन्निया वत्तिया लेसियाथी मांगी जाव जीवीया ववरोविया सुधी हिंसाना बोल . चढती चढती हिंसा बे. पंथे प्रमादने वशे कोइ जीव विराध्यो होय ते पालोउंडं. 'जेमे जीवा विराहिया' एवो पाठ , पण 'जेमे जीवा उगारोया' एवो पाठ नथी दे बालमीत्रो ! ए दस बोलतो हिंसामां बे, अने प्राणीनो अनुकंपा तो प्रत्यक्ष दयामां बे. तेवारे तेरापंथो कहे के " अजयदाननो लान्न घणो बे. ते तो साधु त्रण करण ने नव जोगेकरी माहाणो माहाणो शब्द करी चुक्या, अने अनुकंपानो लान थोमो डे ते शा वास्ते करे"? तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! सजायथकी ध्यानमा लान घणो वे ते माटे शुं ? ध्यान करीने सजाय मुंको देशे? शेमा घणा लाननुं शुं कारण जे. लान तो पोताना प्रणाम नपर बे, पण अहो अनुकंपा-रहित ! जेने जेवो कल्प ने तेवी करणी न करे तो तेनुं अन्नयदान पण कर्म फल देने, संसारमा रुलवानो हेतु . तेवारे तेरापंथी कहेठे के “जीव नगार्ये लाज जाणोडो, त्यारे तमे गमगमना जीवमा केम नथी पुंजता? धर्मपुन्य तो तमारे पण कर ले. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! अमारे धर्म करवो ते तो खरो, पण कल्प प्रमाणे थाय. वली धर्म-नपदेश देवामांतो तमे पण लाल जाणोडो. त्यारे तमे मेला नत्सवमां जश्ने, वेश्याना पामामां जश्ने अने घेर घेर जश्ने नपदेश केम नथो करता ? एमां तो एकांत धर्म तमे पण जाणो बो. तो ते प्रमाणे केम नथी करता. तेवारे तेरापंथी कहे ने के “ नुपदेश देवामां तथा सजाय करवामां एकांत धर्म , पण कल्प प्रमाणे थाय." त्यारे हे देवानुप्रोय ! जेम ए कल्प प्रमाणे थाय तेम जीव नगारवो पण कल्प प्रमाणे थाय. जेम राजानो मेहेतो मुसदी तथा कोतीवाल पुन्यवंतजीव मजुरी न करे, पण निर्धन मजुरी कर। बे टका Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. लावे तेने लान जाणे के नहिं. तेम साधु तथा सामायक पोसामां बे. ठेलो श्रावक कल्पे तेवी अनुकंपा करे. सकाय ध्यानरुप घणो लाल बो. मीने अकल्पनीक काम जाणे तो, थोमा लान- अनुकंपार्नु काम न करे, प्रण कोइ संवर सामायक विना नवरो बेगे होय ते, जीवनी अनुकंपारुप थोमो लाज कमायतो तेने लाल केम नहिं थशे ? वली जेम सामायक पोसामां बेगं तो साधुने पण दान देवू को सूत्रमा चाट्युं नथी. पण खुल्लो दान दे तेने नलो जाणे के नहिं ? तेम पूर्वोक्त साधु श्रावक कल्पे तेवी श्रनुकंपा करे, पण खुसो अनुकंपा करे तेने जलो जाणेज. .- वली तेरापंथी कहे जे के “जीवने उगायें रक्षा कर्ये लान थाय तो, गजसुकमाल पमिमा साधवा गया, ते नगवंत जाणे ले के, एने सोमील ब्राह्मण परिसह देसे. त्यारे एनी अनुकंपा माटे बे साधु रक्षा करवा केम न मोकल्या ?" तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! प्रजुनी तो गजसुकमाल उपर अनंत लावदया हती, पण एम रदा कर्याथी बारमी पमिमा सधाय नहिं अने मुक्तिए जवाय पण नहिं. वली प्रनुए तो गजसुकमालने अनंत सुखरुप मुक्ति थापी जे. बे साधु साने काजे मुंके. वगर साधु मुक्यां पण अनंता दया रदा करी कहीये. जेम मावीत्र पो. साना पुत्रने बलात्कारे कमवू औषध खवरावे, तेथी ते मोंढेथी घणा शब्द करे. ए औषध खवरावतां थकां देखावमां तो माता पीता अशाता दे डे, एम देखीए बीए; पण परमार्थे मावीत्र पुत्रना हितकारी के अहित. कारी ले ? जेवी मावीत्रनी अष्टि पुत्र उपर, तेवी नेमानाथ लगवंतनी अष्टि गजसुकमाल उपर हितनी हती. वली तेरापंथी कहे डे के " चोर, सिंह अने परदारा लंपटने मारता देखोने, एने मारो अगर मत मारो एम न कहे. त्यारे जुने ! मत मारो पण साधु न कहे, त्यारे नगारवो क्या रह्यु ?" तेना उत्तरमा सुयगमांग श्रुतष्कंध बीजे अध्ययन ५ में. ते गाथा ३१ मी लखीए बीए: असंसे अस्वयंवावि, सब के तिवापुणो; वऊपाणा अवचंति, इति वायं णणंसरे. ॥ ३१॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. (२०६ ... थर्थः-हवे अनेरा वचन श्राश्री संजम कहे . अ जगमां स. मस्त वस्तु घट पटादिक अकुछ संख्याने अभिप्राये ( नित्य) सास्वती बे, एवं वचन न बोले. वि० अनित्यपणुं पण न बोले. स० सघलो जगत मुःखी ने एम पण न बोले; कारण के चारित्रादिक प्रणमवाथ, सुख पण दीसे . यमुक्तं. 'तण संथार णिवणोवि मुणिवरोवि नट्टराग मयमोहो जपावश् मुतिसुहं कतोतं चक्कवट्टीवि.' व विणासवा योग्य चोर परदारागामि आदिक डे अथवा अ० अवध्य अविणासवा योग्य जे एवं पण न कहे. जो कहे तो तेना कर्मनी अनुमोदना लागे. एणी परे सिंघ, व्याघ्र, मंजारादिक हिंसक जीव अनेरा जीवनी घात करवा नद्यमवंत देखी साधु मध्यस्थपणुं अवलंबी ३० ए वे जाषा (अनेराने अप्रतीत कारणी डे माटे) न बोले. नावार्थः-हवे जु! हां तो एकान्त पदनी ना कही जे. लोकने एकान्त सास्वतो पण न कहेवो, तेम अशास्वतो पण न कहेवो. या लोक एकान्त सुखी जे एम पण न केहेवं, तेम दुःखी जे एम पण न केहेबुं. आ चोर तथा परदारागामिक मारवा योग्य अथवा नथी मारवा योग्य, एवं एकान्त वचन न बोलवू. जो 'ए मारवा योग्य बे, माहा दुष्ट डे' एम कहे तो तेना प्राण जाय, अने 'तेने मत मारो, ए मारवा योग्य नथी, जलो आदमी डे' एम कहे तो ए लोक विरुद्ध डे; कारण के ए चोर मुक्यो थको वली चोरी प्रमुख अकार्य करे. तेथ। लोक कहे के, ए साधुनो नपगार जे. एम चोर जारना पक्षी उरावे. ते माटे साधुए 'मारो, मत मारो' कां पण न कहे. ए रीते सुयगमांगना२१ मा अध्ययनमा सर्व बोल एकान्त पके बोलवा आश्री ना कहो ले. 'आधाकर्मी आहा. रादिक नोगवे तेने कम लागे' एवं वचन एकान्त न बोलवू; 'तेम कर्म न लागे' एवं पण वचन एकान्त न बोलवू. इत्यादिक वचन एकान्त पहे बोलवा आश्रो ना कही बे. तेम ए पण वचन एकान्त पद आश्री ना कडं डे; पण एम नथी कयु के “ जीव बचाव्याथी पाप लागे ते माटे मारो, मत मारो' न केहे." ए तो बद्मस्थने निश्चेकारी नाषा Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०६) + सिद्धान्तसार एकान्त पदे न बोलवी, ते माटे ना कह्यु बे. स्हेज स्वन्नावे कोई प्रा. वीने पुढे के, हे स्वामी ! चोरने मार्यानुं शुं फल ले ? तेवारे साधु हिं. सानां फल कही देखामे, अने चोरने बोमाववा उगारवानां फल पुढे त्यारे जलां फल कही देखामे. वली तमारा मतमा तो, चोरने मारे अने चोरने नगारे ए बेहुनां फल सरखां ने. त्यारे कोइ साधुने प्रावीने कहे के, हे स्वामी! मुजने चोर मारवाना पचखाण करावो, तेवारे साधु पचखाण सुखे करावे; पण कोइ कहे के, मुजने चोर उगारवाना पचखाण करावो,त्यारे साधु न करावे. हवे जो बेउ वातोमां सरखा गुण अवगुण होय तो नगारवाना पचखाण केम न करावे ? एम हैयाथी विचारी जुर्ज, तेवारे तेरापंथी कहे जे के “अनुकंपा कर्याथी लान होय तो नमीराज रुषीश्वरने इंजे कयु के, मीथीला नगरी बले , तमारी आंखमां अमृत वसे ने, तमे सामु जुन तो बलती रही जाय. तेवारे अनुकंपा कीधां लान जाणे तो नमीराजे सामु केम न जोयुं ?' एवं एकान्त जुठ बोले , कारणके नत्तराध्ययनजीमां तो नीचे मुजब कडं . ते अध्ययन ए मानो गाथा १२, १३, १४, १५, १६: एस अग्गीय वाऊय, एयं मऊ मंदिर; जयवं अंतेनरं तेणं, कोसणं नाव पिरकदं. ॥१२॥ एयमठं निसामित्ता, देन कारण चोर्छ, त नमिराय रिषि, देविंदं इण मबवी. ॥१३ ॥ सुहं वसामो जीवामो, जेसिमो नदि किंचणं; मिदिलाए मछमाणोए, नमे मऊ किंचणं. ॥ १४॥ चत्त पुत्ते कलत्तस्स, निवा वारस्स निकणो; पियं नविधए किंच, अप्पियं पि न विद्यए.॥ १५ ॥ बहु खु मुणिणो नई, अणगारस्स निख्खुणो; सवन विप्प मुक्कस्स, एगंत मणू पस्सन. ॥१६॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (२०७) अर्थः-ए ए प्रत्यक्ष अं अग्नि वा वायराथी ए० ए म० बखे ने तमारां मं० घर ना हे नगवान ! अ अंतःपुर तमारां, बतां की शा माटे ना० सामु जोता नयो ? ॥१॥ ए ए पूर्वोक्तार्थ नि० सांजखीने जे पोताना आत्मानुं होय ते रुमी परे राखवू. घरथो तारुं निक खq ते परजीवने दुःखनो हेतु अने छुःखनुं कारण थयुं एवा हे हेतुना कारणे चो प्रेर्योथको त त्यार पनी न० नमीराजऋषि देण् देवेंज सकें प्रत्ये ३० म० एम बोत्या. ॥१३॥ सुजेम सुख थाय तेम वा ढुं वसुबु, जी० जीबुंटुं, जे जे माहारी न नथी किं० कांश अप मात्र वस्तु. मि० मिथीला नगरी म बलतांथकां न नथी माहारंम बलतुं किं० अल्प मात्र पण.॥१४॥ च बांग्या पु० पुत्र का स्त्री जे यतिए, तेने नि0 सर्व व्यापार रहित नि एवा साधुने पि० प्रोयकारी वद्धन न० नथी किं० कांश थोमु पण, श्र० अप्रीयकारी पण नथी कां. ॥१५॥ ब० घj खु० निश्चे मु० साधुने ना श्रेय सुख . अ० घर रहित अणगार जि० साधु स सर्व (बाह्य धनादि, अत्यंतर कषायादिक) परिगृहथो वि० विशेष मु मुकाणा , अने ए० हूं एकलो ढुं, एवं एकत्वपणुं म० देखतो थको विचरे ते साधुने सुख ले. ॥१६॥ नावार्थ:-हवे जुलं ! इहांतो एम नथी कयु के, तमारी आंखोमां अमृत वर्से बे, तेथी सामुं जुड़ तो बलती रही जाय इहांतो इंजे परिक्षा करी के, मोहनी-कर्म जीत्यां के नथो जीत्यां ? इहां अनुकंपार्नु नाम पण क्या ? हे स्वामी ! तमारूं अंतःपुर बलेले माटे तमे सामुं केम नथी जोता ? शहां मोहनी उपजावी . त्यारे स्वामी बोल्या के, मेंतो मुक्या , हुं तो सुखे वसुबुं, मारे बलवानुं कांश नथी; पण इंछे एम नथी कयुं के, जुन तो नगरी बलती रहे. जो इंफ एम कडं होय तो नमीराजाए एम केहेबु जोशए के, हे ना! एवो अनुकंपा मुजने करवो करपे नहिं. एम कडं होततो अनुकंपानो प्रश्न थात, पण ३२ एम नथी कडुं. इंजेतो मोहनोनो परिक्षा निमित्ते पुज्यु ले. वला आगख मेहेन, कोट तथा दरवाजा कराववाना अने धन नंमार जराषवाना प्रक्ष Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०८) 4 सिद्धान्तसार.. इत्यादिक प्रश्न पुज्या जे. एमां कयो अनुकंपानो प्रश्न ? ए तो सर्व परिक्षाना प्रश्न . नमीराज रुषिश्वरने समकित-मोहनी, चारित्र-मोहन तथा विषय कषायादिक उपशम्या के नथी उपशम्या? इत्यादिक प्रश्न सर्व परिक्षाना . वली नगरीनुं बलवु तथा उगार, ए नमीरायना हाथमा नथी. वास्ते ए प्रश्न अनुकंपानो नथी. तेवारे तेरापंथी कहे के “ माहावीरस्वामीए दिदा लीधी ते दी. वसथीज शरीर वोसराव्युं जे. ते दीवसे नगवंतनो अनुकंपा वास्ते इंजे श्रावीने कयु के, हे स्वामी ! हुं तमारी सेवा करूं, परिसह टावू अने साथे रहुं; पण नगवते वान्टी नहिं. एवं परंपरामां कहेवाय . जो अ.. नुकंपा कीधां लान होय तो इंजनी कीधी अनुकंपा जगवते केम न कांजी ? " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! एवो कोण जे जे जगवंतनी श्रनुकंपा करे. कारण के प्रजु तो शूरवीर सीरमुगट . एतो मूलथीज कोश्नी साज वांडता नथी. सेवकनी साज तो असमर्थज वांडे. वली अनेरानी साजे कर्म खपतां दीठां नहिं तेथी साज वांबी नहिं. वली केवलज्ञान उपन्या पडी इंजे आवीने कयु के, हे नगवंत ! साधुने प्राज्ञा केटला प्रकारनी जोइए ? त्यारे जगवते कयुं, के पांच जणानी आज्ञा जोइए. त्यारे इंजे कडं के, हे स्वामी ! जो पांचनी थाज्ञामां इं. उनी आज्ञा जोइए तो स्वामी सुखे लेजो, मारी आज्ञा जे. शाख सूत्र नगवती शतक १६ में न. २ जे. तथा गणायांग गणे ५ में. हवे जुलं!' जगवंते पोतानां साध साघव वास्ते इंजनी आज्ञा लीधी . ते माटे ए अनुकंपानो प्रश्न नथी. अनुकंपानो प्रश्न तो क्यारे थाय के जो जम.. वते इंजनी साज तथा सरणुं वंब्युं होत, अने इंजे दोष लागतो जाणीने अनुकंपा न कीधी होत तो अनुकंपानो प्रश्न थात; पण जे तो जग-. वंतनुं कष्ट निवारवामां क्ति लान जाएयो, ते माटे अरज कोधो,' पण जगवंते पोतानां कर्म खपाववा माटे इंजनी साज न चंडी.. जेम साधूजीने दान देवामां श्रावक बारमुं व्रत निफ्जतुं जाणी श्राहारपाणी धामंत्रे, पण साधूजो कर्म खपावका तपश्या करे, तेमा। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( २०९ ) ग्रहस्थीनां श्राहारपाणी न ले तथा साज न वंबे; पण ग्रहस्थीने दान देवामां पाप केम जाएयुं जाय. हे देवानुप्रीय ! एम केम कहोबो के, भगवंतनी अनुकंपा कीधां तथा जगवंतने साज दीघां इंडने पाप लागे तेथी जगवंत इंद्रनी साज न वांबी. एवं मतना लीधे जुठ केम बोलोबो ? वली तेरापंथी कडे के, जो जीवनी अनुकंपा कीधां तथा जीवने उगार्यां लान होय तो, चेमा कोलीकनी लगाइ थइ तेमां अनेक मनुष्य मु. ते चेमा कोलीकने जगवंते केम न वर्ज्या ? तेनो उत्तर. हे देवाप्रीय ! उपदेश दइ बोमाव्यामां तो तमे पण धर्म कहोलो. त्यारे मा कोकने जगवंते जइने उपदेश केम न दीधो ? उपदेश देवामां तो पाप नहोतुं लागतुं ? पण हे देवानुप्रीय ! एतो निमित्त कारण एज रीते बे. टायुं टले नहिं. जावी पदार्थने टालवा कोइ बलीष्ट नथी. वली तमने अनुकंपा ए लेखे करवी न जापी, त्यारे श्री भगवतीमां नवमे शतके, जमालीने अधिकारे, जमालीए खात्रीने कयुं के, हुं केवली थने श्राव्यो ढुं. त्यां जगवंते जमालीने खष्ट केम न कर्यो ? अने गोशालो आव्यो त्यारे जला मला प्रश्नोत्तर करी तेने खष्ट कर्यो, त्यारे शुं जमालीने खष्ट करवामां लान नहोतो ? वली दसासुतखंधमां श्री वर्धमानस्वामी, पोताना साधु साधवीए नियाणां कर्यां तेने प्रायश्चित दर शुद्ध कर्या; मादाशतक श्रावकने गौतमस्वामीने मोकली प्रायश्चित देवराव्यं; अने श्री नेमनाथ जगवंते श्रयमत्ता अणगार निमित्त परुपता हता तेने शुद्ध केम न कर्या? वली सुखमालका साधवी, सोमील ब्राह्मण, इत्यादिक घा जीव स सहित देखी ते समयना केवली भगवंत प्रायश्चित देवा केम न गया ? तथा कुंरिक प्रमुखने शुद्ध केम न कर्या ? जला एमां तो कोइनुं असंजम जोवोतव्य नहोतुं वधतुं ? कोइने अवगुणतो न होतो यतो ? सामो गुण थात, आराधिक थात. ए काम केम न कर्यु ? पण तेरापंथी एमन विचारे के, जावि पदार्थने कोण मटामी शके . ज्यांत्यांथी हैयामाथी अनुकंपा कापवानुंज सुके बे. बली दान देवामां तथा जीव बोमाववामां वचमां जीवनी हिंसा २७ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१० ) तो याय, पण लागे. शाख सू वधक (हिंसक थी मुर्ज, त्यां त्रणेने पांच पके तेव श्र सिद्धान्तसार. सानी ( प्राणातिपातनी ) क्रिया विना प्रणामे न ती शतक ५ मे उद्देशे बठे, कह्युं बे के, जे कोइ 1) पंखीने हवा माटे बाण नांखे बे, ते पंखी बाणना जीवने, धनुष्यना जीवने अने नाखणहारने, ए या लागे कही; अने तेज बाण पोताना नारथी देवं तां छानेरा जीव हणाय ते श्राश्री, बाणना जीवने पांच पांच क्रिया लागे कही; अने बापना नाखहारने चार ही; पण प्राणातिपातनी क्रिया न लागे एम कयुं. हवे जु ! जीवने मारवाना प्रणाम दता तेवारे पांच क्रिया लागती कही; अने पोतानो हृणवानो जोग नथी तेवारे तेने चार किया कही. हवे जीव उगारे तेने केटली क्रिया लागे ते कहो. नगारवावालानुं चार ध्यान मांदेलुं ध्यान कयुं ? ब लेश्या मांहेनी लेश्या कइ ? जोग कयो ? अने ते शुज के अशुभ ? ते कहो. वारे तेरापंथी कड़े ने के, जीव इणे तेने प्राणातिपातनुं पाप लागे, छाने जीवने बचावे तेने प्रढार पाप लागे; कारण के प्रसंजति जीव जीवतो रह्यो, ते अढार पाप सेवे तेनुं पाप बचाववावालाने लागे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! ए कुमति तमे क्यांथी लाव्या ? त्रस जी - वने मारवाना त्याग की धां हिंसानुं एक पाप देसथकी टले, थाने जीवने उगारवानो त्याग करे तेने प्रढार पाप टले. ए तमारे लेखे तो जीव बचाववाना त्याग पेहेलां कराव्या जोइए, पण कोइ साधु जगवते ए त्याग कराव्या नथी; कराव्या होय तो बतावो . ए जीव बचाववाना त्याग करे तेने कयुं व्रत निपजे ते कहो. ए कूर्माति तमे क्या सूत्र प्रकरणी काढी ते कहो. जीवने मारवाना त्याग कराववानुं तो गम ठाम सूत्रमां चाल्युं बे, पण जीवने बचाववाना त्याग करवानुं तो कोइ सुत्रमां चायुं नथी. वली जेना जेवा प्रणाम होय तेने तेवां फल लागे. दान दयामां जीव हिंसाना तथा जुटुं बोलवाना जेना प्रणाम नथी, तेने हिंसानां तथा जुवनां फल लागे नहिं: शाख सूत्र भगवती शतक ५ में, उद्देशे Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (२११) - ६ , एम कडं डे के, जेवू जुतुं श्रालदे तेनां आवता नवान्तरे तेवांज फल पामे; पण एटबुं विशेष के, कोइ मृगप्रहाने समये मृग-रक्षाने कारणे जुटुं बोले ते दयाना प्रणाममुं जुठ टालीने बोजा जुठनां मागं फल कह्यां, एटले दयाना प्रणामथी जुठ बोले तेनां माठां फल कह्यां नथी. ए पुरुषना जुठ बोलवाना प्रणाम नथी, पण मृग्यादिकने राखवाना प्रणाम बे, ते माटे दयानां फल लागे, पण जुग्नां फल न लागे. एम दान दयामां पण जेवा जेना प्रणाम होय तेवां तेनां फल लागे. जेम साधु मुनीराजने कोइ दातारे पात्र जरीने घृतदान दीधुं, त्यारे कोइए कह्यु के, हे नाइ ! हुं तो पुन्यो बुं, मारे लगार मात्र दान देवानो जोग नथी. हवे ए दातारने दान दीधानां शुन्न फल लागे के जुठ बोव्या माटे जुवनां फल लागे ? तेम जीव दयामां पण जाणवु. वली साधुना शरीरमा रोगादिक कारण जाणीने श्रावके वमन विरेचनादिक कमवां औषध दीधां, तेथी साधुने अशाता उपजे. हवे श्रावकने अशातानां पामवां फल लागे? के साधुना शरीरमां शाता थइ तेनां फल लागे ? ए करतव्य प्रमाणे फल लागे? के मन-प्रणाम जेवा होय तेवां फल लागे ते कहो. जो साधुने कल्पतुं दान दीधां शाता-वेदनी बंधाय, तो मरता जीवने जगारतां एकांत पाप केम निपजे? ते विवेकनां ताला खोलीने जुर्म. वली जीवनी अनुकंपा कीधाथी शाता-वेदनी बंधाय. तेनी शाख सूत्र नगवती. ते पाठः अविणं नंते ! जीवाणं ककस वेदणिया कम्मा कय? दंता अनि. कदणं नंते! जीवाणं ककस्स-वेयणिया कम्मा कब ? गो ! पाणाश्वाएणं जाव मिबादंसण-सल्लेणं एवं खलु गो० ! जीवाणं ककस्स वेयणिद्याकम्मा कधश्. अबिणं नंते ! नेरझ्याणं ककस्स वेयणिजा कम्माक? गो! एवं चेव जाव वेमाणियाणं. अबिणं नंते! जीवाणं अककस वेयणिया कम्माकबर ? हंता अनि. कहणं Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१२) +सिद्धान्तसार.. नंते ! जीवाणं अककस्सवेयणिया कम्माकघर ? गो! पाणाश्वाय वेरमणेणं जाव परिग्गह वेरमणेणं कोद विवेगेणं जाव मिहादसण-सल्ल विवेगेणं एवं खलु गो! जीवाणं अककस्स वेयणिया कम्माकधइ. अविणं नंते! नेरश्याणं अककस्स वेणिया कम्माकवइ ? गो ! णो शण समझे. एवं जाव वेमाणियाणं णवरं मणुस्साणं जदा जीवाणं. अविणं नंते ! जीवा सायावेयणिका कम्माकय? हंता अबि. कहणं नंते ! जीवा सायावेयणिया कम्मा कय? गो! पाणाणुकंपाए नूयाणुकंपाए जीवाणुकंपाए सत्ताणुकंपाए बढूणं पाणाणं गाव सत्ताणं अदुकणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अप्पिट्टणयाए अप्परियावणियाए एवंखलु गो! जीवाणं सायावेयणिया कम्माकघर. एवं नेरइयाणंवि एवं जाव वेमाणिया. अखणं नंते! जीवाणं असायावेयणिया कम्माकधी हंता अनि.कहणं नंते! जीवाणं असायावेयणिया कम्माकय? गो०! परजुकणयाए परसोयणयाए परजूरणयाए परतिप्पणयाए परपिट्टणयाए परपरियावणयाए बदणं पाणाणं जावसत्ताणं दुकणयाएसोयणयाए जाव परियावणयाए एवं खलु गो ! जोवाणं असायावेणिया कम्माकधइ. एवं नेरझ्याणंवि एवं जाव वेमाणियाणं.॥ अर्थः-अण्डे नंग हे जगवान ! जी0 जीव क० करकस रोष दुःखथी वे वेदीए एवां का कर्म का करे ? उपार्ज ? हं० हा गौतम बे. क० केवे प्रकारे नं० हे नगवान ! जो जीव का करकस कगेर रोज मुःखरुप कम्माप कर्म बाधे ? इति प्रश्न उत्तर. गो हे गौतम ! पा० Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. प्राणातिपात जा० यावत् मिण मिथ्या-दर्सन-सत्य, अढारे पापे करी एण एम खप निश्चे गो हे गौतम ! जी जोव का कर्कस-वेदनी रोज कर्म कद्य बांधे. अण्डे नंग हे नगवान ! ने नारकी क कर्कशरौ वेदनी कर्म बांधे ? इति प्रश्न. उत्तर. गोण हे गौतम ! ए० एमज पुर्वलोपरे नारकी बांधे, जाग यावत् वे वैमानिक सुधि कहे. अ नं० हे जगवान ! जी0 जीव अक० अकर्कश वेदनी (कोर नही, सुखे वेदवा योग्य) का कर्म करे ? इति प्रश्न उत्तर. हंण्हा गौतम ! अण् करे ले. कण कये प्रकारे नं० हे नगवान ! जी० जीव अका अकर्कश अकगेर का कर्म करे ? इति प्रश्न उत्तर. गोण हे गौतम ! पा प्राणीने हणवाथ। वे निवर्तवे करी जाग यावत् प० परिग्रहथी निवर्तवे करी को क्रोधने वि० तजवे करी जाग यावत् मि मिथ्या दर्सन शल्य बांमवे करी एक एम ख० निश्चे गो हे गौतम ! जी जीव अक० अकर्कश का कर्म करे. अबे नंग हे जगवान ! ने नारकी अक अकठोर कण् कर्म करे? इति प्रश्न उत्तर. गो हे गौतम ! णो ए अर्थ समर्थ नही. एण् एम जा यावत् वे वैमानिक लगे जाणवू; पण ण एटदुं विशेष म मनुप्यने जा जेम जी जीवने कडं तेम कहे. अण्डे नंण् हे नगवान ! जी जीव सा साता-वेदनी का कर्म करे ? इति प्रश्न. नुत्तर. हं० हा गौतम अ . का केम नं० हे नगवान ! जी जीव सा० सातावेदनी क कर्म क बांधे ? इति प्रश्न. उत्तर. गोण हे गौतम ! पाण् प्राणीनी अनुकंपा दयाथी जु० जूतनी दयाथी जी जीवनी दयाश्री सण सत्वनी दयाथी ४ ब० घणा पा प्राणीनने जाग यावत् सण सत्वने अ० दुःख न देवाथी, असो शरीरनो दय करतां शोक उपजे ते न नपजाववाथी, अजू० न फुराववाथी, अति० आंसु लालादि खरवाना कारण सोग न कराववाथी, अप्पि० मुखादि तामन प्रहार न करवाथी, अप्प० शरीरने ताप न उपजाववाथी, ए एम खण् निश्चे गो हे गौतम ! जी० जीव साता-वेदन क कर्म बांधे. यतः गुरु नत्ति खंति करुणा वय जोग कसायविजयदाण जुई दृढ धम्माइ श्रज साय मसायं विवजउ. ॥१॥इति Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१४ ) 4 सिद्धान्तसार वचनातू. ए० एम ने० नारकिने पण जा० यावत् वे वैमानिक लगी सातावेदनी बांधवानो उपाय कह्यो . ० बे जं० हे भगवान ! जो० जीव ० असातावेदनी क० कर्म करे ? बांधे ? ६० हा गौतम बे. क० केम ० हे भगवान ! जो० जीव सा० असातावेदनीय क० कर्म करे ? बांधे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम! परदु० परने दुःख देवाची परसो० परने शोक उपजाववाथी परज० परने दीनपणु उपजाववाथी परति परने प्रांसु लालादिक खराववाना कारणथी पर पिपरने लाकमी तामवार्थी परप० परने परितापवाथी ब० घणा पा० प्राणीनने जा० यावत् स० घणा सत्वने डु० दुख करवाथी सो० दीन करवाथी जा० यावत् प० परितापना नपजाववाथी ए० एम ख० निश्चे गो० दे गौतम ! जी० जीव छा० असातावेदनिय क० कर्म नपार्जे बांधे. ए० एम ने० नारकीने पण कहे. ए० एम जा० यावत् वे० वैमानिक लगी कहेवु. जावार्थ:- दवे जु ! प्राणीजीवनी अनुकंपा कीधार्थी सातावेदनी बंधाय कयुं. ए न्याये जीवनी अनुकंपा करे, दुःखी देखीने दुःख शोक मंटाने तथा बचावे तेने शातावेदनी बंधाय. ते शातावेदनी पुन्यनी प्रकृती ढे. वारे तेरापंथी कदेबे के “ जीवने मारवाना त्याग करे तथा जीवने न दणे तेने अनुकंपा कहीये, तेथी शातावेदनी बंधाय. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रय ! दांतो चार प्रकारनां कर्म कह्यां बे. ते जीवहिंसादि ढार पाप सेवे, सेवरावे छाने सेवताने जलो जाणे, तेने कर्कसवेदन (शातावेदनी) कर्म बंधाय, एटले दुःखे दुःखे जोगवे . ए कर्कसवेदन कर्म चोवीस दंरुकना जीवने बंधाय, छाने जीवहिंसादि अढार पापथी निवर्ते तेने कर्कस वेदनी कर्म बंधाय. ते सुखे सुखे जोगवे, मुक्ति जाय ने जरतमहाराजनी परे कर्कसपणुं वचमां न आवे. एककसवेदनी शातावेदनी कर्म एक माणसनाज दंरुकमां बंधाय. वली त्रण करण त्रण जोगेकरी प्राणीजीवने दुःख देइ कुरावे, तेने अशातावेदनी कर्म बंधा. अशातावेदनी चोवीस दमकमां बंधाय. तेमज त्रण करण ऋण जोगेकरी प्राणीजीवनी अनुकंपा करे, तेने शातावेदनी कर्म बंधाय Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. ( २१५) ए शातावेदनी पण चोवीस दमकना जीवोने बंधाय. हवे तमे कहो ! कर्कसवेदनी-कर्म केने कहीये अने अशातावेदनी-कर्म केने कहीये ? अकर्कसवेदनी-कर्म केने कहीये अने शातावेदनी-कर्म केने कहीये ते कहो. हे देवानुप्रीय ! जीवने न हणे तेने तो अकर्कसवेदनी बंधाय, अने अनुकंपा करे तेने शातावेदनी बंधाय. ए जुन ! जीवने न हणे तेनां फल न्यारां कह्यां, अने अनुकंपानां फल न्यारां कह्यां. श्रनुकंपातो आगलानुं दुःख मेटे, मटामे अने मटामताने नलो जाणे तेने कहीए. तेनी शाख सूत्रअंतगममां, सुलसा श्राविकाए पुत्रनी तृष्णा वास्ते हर्णगमेषी देवताने श्राराध्यो. त्यां दुःख मटामवाना प्रणामने अनुकंपा कही बे. वली कृष्णमाहाराजने मोसानां इंटो नाखवानां दुःख मटामवाना प्रणाम श्राव्या तेने अनुकंपा कही. वली ज्ञातासूत्रमा धारणी राणीनो मोलो पुरवाने अजयकुमारे देवताने श्राराध्यो, त्यां कुःख मटामवाना प्रणामने अनुकंपा कही . तमे मतना लीधे “ जीवने न हणे तेनेज अनुकंपा कहीये." एम केम कहोबो ? __ वली तेरापंथी अनुकंपा सावध निर्वध बे प्रकारनी कहे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! अनुकंपा सावध निर्वध बे प्रकारनी को सूत्रमा कही नथी. तमे मतना लीधे जुटुं केम बोलोडो ? कारणके अनुकंपाने तो समकितनुं लक्षण कयु जे. ते दुःख मटामवाना प्रणामने अनुकंपा कहीये. तेने सावध शीरीते कहीये ? पण दुःख मटामवा सारु कर्तव्य करे ते कर्तव्य सावध निर्वध होय. ते कर्तव्यनो पद लश्ने अनुकंपाने सावध केम कहोडो ? बकायनो श्रारंन करे तेने तो कर्तव्य कहीये, अने हिंसाने निंदे, ने बकायनी नपर करुणा आवे तेने अनुकंपा कहीये. एम अनेक कार्यमां शुन्न प्रणामयी निर्जरा थाय, अने सावध कर्तव्यथी कर्म बंधाय. एम कर्तव्य न्यारं अने अनुकंपा न्यारी. हवे जो अनुकंपाने सा. वध कहेशो तो समवायांगमां तथा नत्तराध्ययन अध्ययन श्ए मामां, सम, समवेग, निर्वेद, अनुकंपा अने थास्ता, ए पांच समकितनां लक्षण कह्यां , ते पण सावध निर्वध बे प्रकारनां केहेवां पमशे; अने जो Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार, समकितनां लक्षणने सावध केदेशो तो ज्ञान, दर्शन अने चारित्र (मो. कनो मार्ग) सर्वने सावध निर्वध वे प्रकारनां केहेवां पमशे. एन्याय केम मले? ए अनुकंपा समकितना लक्षणने मतने लीधे सावध केम कहोडो. तेवारे तेरापंथी कहे के “ जिनरीखे रयणादेवीनी अनुकंपा करी ते पण निर्वध हशे. ते पण जिनरीखने धर्म थयो हशे." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जो अनुकंपा करी होत तो धर्मज थात, पण ' कोलुणवमियाए ' पाठ जे. कोलुणवमिया नाम मोहरसनुं ने तथा दीन वचन बोले तेनुं जे. शाख सूत्र सुयगमांगना नरय विनति अध्ययनमां कडं के, नेरझ्या कलुणवमिया शब्द करे ले. वली विपाकसूत्रमा मृगालोढीयाना अध्ययनमां बांधलाने निदाने अर्थे 'कलुणवमिया' दीनदयामणा शब्द बोलता कह्यो बे. तेमज अनुयोगद्वार, गणायांग इत्यादि अनेक सूत्रमा 'कोलुणवमिया' नाम मोहरसनुं कडं . रयणादेवी उपर जिनरीखने मोहकर्म आव्यो, पण ' अनुकंपणग्याए ' एवो पाठ नथी. तमे मतना लोधे अनुकंपा केम कहोबो ? वली तेरापंथी, मतना लीधे एम कहे के, “को जीवने शाता दीधाथी शातावेदनी पुन्य प्रक्रति बंधाय, एम कहे तेने उ बोल नगवंते माठा कह्या. " एम कहीने सुयगमांगसूत्रना त्रीजा अध्ययनना चोथा उद्देशानी ५ मी अने ६ जी गाथानी जूठी शाख प्रथमनी चार गाथा बुपावीने बतावे . ते पाठः आहंसु महा पुरिसा, पुछि तब तवो धणा; उदएण सिदि मापन्ना, तब मंदेविसीय. ॥१॥ अचुंजिया नमि विदेही, रामगुत्तेण मुंजिया; बाढूए उदगं जुच्चा, तदा तारागणा रिसि. ॥॥ आसले देवले चेव, दीवायण महा रिसि; पारासरे दगं नोच्चा, बीयाणि दरियाणिय. ॥३॥ एते पुव महा पुरिसा, आदित्ता इह संमत्ता; Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( २१७ ) विद्यइ; जोश्चाबी उदगं सिद्धा, इति मेय मणुस्सुयं ॥ ४ ॥ तच मंदावि सीयंति, वाद चिन्नाव गहना; पिवन परिसप्पंति, पिठ सप्पा व संजमे ॥ ५ ॥ इह मेगे नासंति, सातं साते जे ता परियंमगा, परमं च समादिए. मा एयं अवम्मन्नंता, अप्पेणे लुपइ बहू; एत्तस्स अमोकाए, आायदारिव जूरदे. पाणाश्वाय वहंता, मुसावाएय संजए: अदिन्नादाणाय वहंता, मेहूणाय परिग्गदे ॥ ८॥ एव मेगेड पासच्छा, पन्नवंति प्रणारिया; वी वसंगया बाला, जि सासण परमुदा ॥ ए ॥ जहा गं पिलागंवा, परि पोलिक मुहुत्तगं; एवं विन्नवचि, दोसो त कन सिया ॥ १० ॥ जहा मंधोदर नामं, यमित्तं गुंजती दगं; · • एवं विनवणी, दोसो त कर्जसिया ॥ ११ ॥ जदा विदंग मापिंगा, थिमितं गुंजती दगं; एवं विनवणी, दोसो त कर्ज सिया ॥ १२ ॥ एव मेगेड पासच्चा, मिनादिति णारिया; अद्योववन्ना कामेहिं, पूयणाश्व तरुणए. अण्णागयम पासंतो, पच्चुप्पन्न गवेसगा; तेपा परितप्यंति, खीणा आमि जुवणे. जेदिं काले परिक्कतं, नपच्चा परितप्पई; ते धीरा बंधणं मुक्का, नाव कंखंति जीवियं ॥ १५ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ RE · ॥६॥ ॥ १ ॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१८ ) सिद्धान्तसार अर्थः:- प्रा० कहे बे म० मोटा पु० पुरुष पू० पूर्वे त० तीहां वो तपरुपी ध० धनेकर) सहित ० शोतल पाणी एकरी सि० मोक मा० प्राप्त यया कहे बे. त० तीदां मं० मूर्ख स० सिदाय (पस्ताय ) ॥ १ ॥ ० वीना जोगव्यां न० नमिराजा वि० विदेह देशना उपन्या तथा रा० रामगुप्त राजर्षि ० जोगवताथका मुक्ति पौंहच्या. बा० बाहुकरुपी उ० शीतल पाणी नु० जोगवता मुक्तो गया. त० तेमज ता० तारागणरुषी शीतल पाणीथी सिध्या ॥ २ ॥ श्र० आसल रुपी दे० देवल रुषी चे० निचे दी० द्वीपायण नामा म० मोटा रुषी ने पा० पारासरजी द० काचुं पाणी नो० जोगवीने बी० बीज आदिक इ० लीलोत्री प्रमुख जोगवीने मुक्ती पोहोच्या. ॥३॥ ए० ए पु० पुर्वे म० मोटा पुर्ष ० के देवा. इ० या लोकमां सं० प्रसिद्ध जो० जोगवीने बि० बीज उ० सचित पाणी सि० सिद्ध थथा इ० एम कुतीर्थी कहे. मे० श्रमे मादानादि विषे सांप्रयुं. एवी रीते मे पण मुक्ती जाशुं ॥ ४ ॥ त० तिहां कुशास्त्र सांभल्याथी मं० मुर्ख सि० चारित्रथी सिदाय. जेम नारना fo गर्द थाक्याथका जार नाखी नासी जाय, तेम अज्ञानी संजमनो जार नाखीने शिथिल विहारी थाय. वली दृष्टांन्त कहे बे:- पि० मि प्रमुखना जयथी बीजा लोकने नासता देखी थोमी समर्थावंत पुरुष पुठे जाय, पण आगल न चाले. जेम कायर बीहता आगल न चाले, तेम शिथिल बिहारी मोहना अग्रगामी न थाय, अनंतो काल संसार जमे ॥५॥ इ० इहां मे० केक अन्य तिर्थी स्वतिर्थी पासल्या जा० कहे सा०शाताथी सा०शाता थाय, पण्डुःखथी सुख केम थाय ? एटले लोचा. दिक दुःखथी मोद केम थाय ? सालथी साल अने कोद्रवथी कोद्रव निपजे. जे० जे कोइ त० त्यां श्र० श्री जितेंद्र मार्ग प० उत्कृष्टो स० ज्ञान दर्शनादि समाधि सहित ॥६॥ मा० रखे ए० ए ० जिन मार्गने हिलताका ते ० प सुखने काजे मोहनां घणां सुखने गुमावे . ए० एवा जीवने छा० मोक्ष नथी. या० जेम लोदनो व्यापारी जु० कुयों तेम ते पण कुरशे. ए सविस्तार दृष्टान्त राज्यप्रश्नोथी ज्ञेयः ॥७॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. (२१९ ) पा जीवहिंसामां व वर्तताथका मुण् मृषावाद संग असंजत उतां प्रण अदत्तादाने व वर्तताथका थने मे मैथुन प० परिग्रहे वर्तता उता थोमा सुखने काजे घणा सुखने विणाशो बो. ॥॥ ए० एम मे अकेक पाण् स्वतिर्थी परतिर्थी प० परुपे, तेने श्र अनार्य इ० स्त्रीने व० वशे पमयायका बाप अज्ञानी जि जिनमार्गथी पण उप्रांग जाणवा. ॥ए॥ वली तेन कहे जे के, जण जेम गं० [महुँ पि० पाक्युं प० तेनी पोमा तेमांथी पी० लोही काढयाथी टले, मुहूर्त मात्र सुख थाय, ए० तेम वि० नोगवीथकी ३० न्युतन स्त्रीने दो० दोष ता त्यां का क्याथी होय? ॥१॥ ज० जेम मं० मंदोधक नामा मीढो था थीर थश्ने जु० जमे द० पाणी पीए, ए० एम विनोगवी थकी ई० स्त्रीने दो दोष त त्या का क्याथी सा होय ? ॥११॥ जण जेम वि० कपिंजल नामा पंखी थि० अमोल नमतोथको मुं० पीए द० पाणी, ए० एम वि० नोगवीथकी थि० स्त्रीने दो दोष त त्यां का क्याथी होय. ॥१॥ ए. एम मे अकेक पा० पासत्यादिक (ढीला) मि मिथ्याउष्टी श्र0 अनार्य पुरुष आण कामनोगमां श्राशक्त पूरा जेवां गागर (जेम) त० पोतानां बच्चांने विषे गृक (सुब्ध) होय तेवा पुर्वोक्त पासत्यादि मिथ्यात्वीने जाणवा.॥१३॥ अ ते आगम्य काले नर्कादिक उःख अपान अणदेखता प० वर्तमान सुखना गण गवेषणहार ते ते अज्ञानी पड़ी परित पश्चाताप करे खी० कोण थये था० श्रान अने जुग जोवन वय, के हवे हुं शुं करूं. जे० जेणे धर्मने विषे पराक्रम करवाने का काले प० पराक्रम कर्यु ते, पनी वृद्धावस्थामां पस्ताय नहिं ते ते धी० धीर पुरुष बं बंधनथी मुण मुकाणा न न कं० वान्डे जी असंजम जीवीतव्यः ॥ १५ ॥ नावार्थः-हवे जुर्म ! श्हांतो पाबला त्रण उद्देशामां अनुकुख प्रतिकुल परिसहा देखाड्या डे के " हे साधु तुं अणगमता परिसाथी अने इंजीउने गमता परिसाथी चलजे मत. तेमज आ चोथा उदेशामां अन्यमतीनां वचन शांजलीने समकितथी चलजे मत" एम कयु.प. हेली चार गाथामां अन्यमती एम कहे जे के " काचुं पायो पीतां थने Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२० ) 4 सिद्धान्तसार. बीज फल फुलनो जोग करतां अनेक रुषीश्वर सद्गतीमां गया है. माटे जे या देहाने दुःख देशे ते जव जवमां दुःशी घासे; अने भा नरनारायणनी देने शाता दोघाथी शाता पामशे. " एवं वेदनुं नाम लने परुपणा करे बे. एवी वातो शांजलीने साधु चारित्रयी परीसह उपन्यां मगे, ते वास्ते पांचमी उठी गाथामां कथं के "देही ने शाता दीधाथी शातावेदनी बंधाय, " एम परुपे तेने आर्य मार्गथी वेगलो कहो ए. १ समाधी मार्गी न्यारो. २ जिन मार्गनी दीलयानो करणार. ३ धोका सुखने कारणे घणा सुखनो गमाववालो. ४ श्र मोनुं कारण. ५ अने लोहवाणी यानी परे कुरशे. ६ ए व बोल जगवंते माठा कला. वली - न्यमति विषय-विकारने गुंममानो द्रष्टान्त देवे के, गुममानी रसी का - यां ज्ञाता थाय, तेम विषय सेव्यां मन संतोष पामे. एवां ए अध्ययनमां श्रन्यमतीए द्रष्टान्त दीघां बे. ते सारु साधुने संजममां प्रढ करवा माटे भगवंते व बोल माठा कह्या. ए जुन ! पोतानी देहीने संयम नांगीने शाता दीघां शाता कड़े तेने व बोल माठा कह्या बे. तमे जाए - ता थका मतने सीधे एम केम कहोबो के " कोइ जीवने शाता दीघां शाता बंधाय, एम कड़े तेने व बोल माठा कह्या डे. " वली तेरा - पंथी, साधुनी फांसी खोली शाता उपजाववामां पण एकान्त पाप माने बे. पण साधु-मुनीराजने धर्मनो बुद्धिए शाता उपजावे, दरस बेदे, तेने शुभ क्रिया तथा शुभ फल कह्यां डे. शाख सूत्र जगवती शतक १६ में देशे श्रीजे. श्री गौतमस्वामीए उत्तर सहित प्रश्न पुढयो बे. ते पाठःसंतेत्ति भगवं गोयमे समणं जगवं महावीरं वंदंति नर्मसश्त्ता एवं वयासीः- अणगारस्सणं नंते ! जाविय्यप्पणो बवं प्रणिखित्तेषां तवो जाव यायावेमाणस्स तस्सणं पुरत्थमेव दिवस नोकप्पंति दचंवा पायंवा जाव नरंवा वेत्तएवा पसारेत्तएवा. पञ्च्चत्थिमेणंसे व दिवस कप्पंति दत्वा पायंवा जाव जरुंवा च्याउहावेत्तएवा Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( २२१) पसारेत्तएवा. तस्सय असियाओ लव तंचेव विधेअदरकू शसिं पामिश २ ता असियान बिंदेद्या. सेणुणं नंते ! जे दिइ तस्स किरिया कधश् ? जस्स बिंदश् नो तस्स किरिया कधश्. णणब एगेणं धम्मतराश्णं. दंता गो. जे बिंद जाव धम्मत्तराएणं ॥ अर्थः-नंग एवे आमंत्रणे न लगवंत श्री गो गौतम स० श्रमण नागवंत श्री म माहावीर प्रत्ये वं वांदे न० नमस्कार करे, वांदी नमस्कार करीने ए एम व कहेः-१० अणगारने नंग हे नगवान! जा० नावितात्माने बबेले बेले अण आंतरारहित त तप कर जा यावत् आ० श्रातापना ले त तेने पु० पुर्व नागे पुर्वान्द दीवस नागे एटले १० अर्धा दिन दीवस सुधी नो० न कहपे हा हाथ पा० पग जा यावत् न० नरु श्रा० संकोचवा प० प्रसारवा; कासग्ग रह्यो ते माटे. प० पश्चिम नाग एटले अण्अपरान्दने विष का कटपे हा हाथ पा० पग जाग यावत् न उरु आ० संकोचवा प० पसारवा. (काउसग्गना अन्नावथी). त० तेने १० व्रणफोमा इरस ला लटके हे नाकमां तं ते प्रत्ये चे० निश्चे वि० वैद अ० देखीने इ० रुषोने पाण् जुमिकाए पामे, (नोयपर पाड्या वना हरस बेदाय नही ते नण) पामीने अण् इरस बिंग बेदे. से ते निश्चे नंग हे जगवान ! जे जे हरसने विंग दे तक तेने कि क्रिया कण् लागे ? वैदने क्रिया व्यापार रुप ले ? ते धर्मनी बुझे बेदताने शुन्न क्रिया थाय, अने लोनादिके बेदताने अशुन क्रिया थाय. जा जे, साधुना हरस बिंग बेदे नोग ते साधुने क्रिया न लागे (निापारपणाथी). शुं साधुने सर्वथा क्रियानो अनाव डे ? अने वैदने करे ते क्रिया ले ? परंन्तु पचीस मांहेलो नथी; अथवा एम नथी ते कहे . ण ए निषेध ते ए० एक ध० धमातरायरुप क्रिया शुन्न ध्यान विछेदथ। बागे अथवा हरस बेदे ते अनुमोदनथी अनेरी क्रिया लागे ? ए प्रश्न. हं० हा गो गौतम, जे जे हरस बिंग दे तेने यावत् पूर्वे कडं तेम धर्मान्तरायनी क्रिया लागे. ३० Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१९) 'सिद्धान्तसार.. ___जावार्थः-हवे जुर्छ ! ए सूत्र-पाठमां तो साधुना हरस (मसा) दे ते वैदने समचय क्रिया कही, अने साधुने निर्व्यापारपणाथी किया नो नाकारो कह्यो; अने जो साधु अनुमोदे तो तेने धर्मान्तराय लागे, (ध्याननी अंतराय पमे).वली ए पानी टीकामां कडं के, वैदने क्रियातो सागे, "ते करे इति क्रिया" पण वैद लोजनी बुद्धोए बेदे तो अशुनक्रिया ने अशुन्न फल लागे; अने धर्मनी बुझीए बेदे तोशुन फल क्रिया लागे. अनेशुन हवे जुर्ज! पा सूत्रने न्याये साधुने कोश्थनार्य फांसी दइ जाय, ते को उत्तम दयावंत प्राण। धर्मनी बुझे खोले, तथा कुतरो करमतां धर्मनी बुझे हाकोटे, तथा एवा अनेक प्रकारना साधुना उपसर्ग धर्मनी बुछिए टाले, तेने एकान्त शुन्न फल लागे. तमे “ साधुनी फांसी खोले तेने तथा साधुना अनेक प्रकारना नपसर्ग धर्मनी बुझेटाले तेने पाप लागे,". एवं कहीने ए सूत्रनां केवलीनां वचन मतना लोधे केम उथापोडो. ? तेवारे तेरापंथी कहे के, साधुनां कर्म तुटतां राखे तेने ध्यानादि. कनी धर्मनी अंतरायनो देणहार कहोये. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय ! ए खेखे तो साधुने अहार देवावाला श्रावके पण तपस्यानो अंतराय दीधी, केमके नुखे मरतां कर्म कपातां ते राख्यां. जग्या देवावाले पण कर्म कपातां राख्यां. अनेक प्रकारनी शाता दीधी तेणे कर्म कपातां राख्यां. ए तमारे लेखेतो साधुजीने चौद प्रकार, दान पण देवू न जोश्ए, कारणके धर्मनी अंतराय लागे, अने कर्म कपातां रही जाय. ए तमारे लेखेतो साधुने फुःख दक्ष कर्म तोमावे तेने धर्म थाय. तेवारे तेरापंथी कहे के “श्राहारादिकतो साधु लेवो वान्ले डे, तेथी देवावालाने धर्म थाय; पण फांसी प्रमुख उपसर्ग ग्रहस्थीने टालवायूँ कहे नहि, तेथी पाप लागे." तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! सुखमी प्रमुख सरस अहार देखी. साधुए मनेकरीने पण वान्गवू नही, तेम तेने अर्थे ग्रहस्थीने घेर जावू पण नही, ए श्राचारांग तथा निषियमां का बे; पण दातार पोताना. जावधी प्रापे, तेने धर्म थाय के नही ते कहो. वली जबराश्थी साधुनो Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१२) उपसर्ग टाल्यो, तेने साधुनी वैयावचनो करणहारो कह्यो बे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन बारमें. ते पाठः जखो तहिं तिंदुय रुक वासी अणुकंपन तस्समहामुणिस्स पलायइत्ता नियगं सरीरं इमाई वयणाई मुदादरिबा G. समणो अहं संजा बंजयारी विरो धणपयण परिग्गहाओ परप्पवितस्सन निक काले अन्नस्सहा इह माग श्रोसी ९ एयाइं तीसे वयणाइं सुच्चा पत्तिए नदाइं सुन्नासियाइं इसिस्स वेयावमियं ग्याए जस्का कुमारेवि णिवारयंति पुत्विं च इन्हंच अणागयंच मणप्पओसो नमे अलि को जकाढू वेयावमियं करेंतितम्हाढू एए निहया कुमारा. श्रर्थः-जा यक्ष त ते अवसरे तितिक रु० ब्रानो वाण वसणहार श्रण शातानो करणहार, नक्तिवंत तस ते हरिकेशी म महामुनीना (साधुना) शरीर पर प० श्रासादिने नि देवता पोते सण साधुना शरीरमां श्रावे, प्रवेश करीने ते ३० एवां व वचन कहेवा लाग्यो के, स० साधु बु श्र० हुँ, सं० संजति बण् ब्रह्मचारी लु, वि० निवयों बुंध सुवर्णादिक धनथी, ए जव्यादिक प० परिग्रहथी, परण गृहस्थने अर्थे निपन्यो अहार निण निदाना का० कालने विषे अ० अहारने अर्थे ३० इहां मा० आव्यो बु. ए ए पूर्वोक्त ती ते कुंवरीनां व वचन सु० सांजलोने पण शामदेव प्रोहीतनी नार्या नानजाना सु जला नाख्या वचन, ३० रुषीना वेग वैयावय, ते पक्षपातने अर्थे जण जके कुछ कुमार प्रमुखन वि० विशेष हण्या. णि तेवार पड़ी यह अलगो थयो. हवे यती बोल्या, पु पूर्वे ३० हमणा अने अ० अनागत काले म मने करी पण प० नथी मारे को कांश अल्प मात्र पण वेष, जन् यक्ष हु निश्चे जे जणी वे० वेयावय पक्षपात करे , ते माटे ए निश्चे प्रत्यक्ष नि० निरंतर हण्या कु० कुमार. ... . Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२४) + सिदान्तसार नावार्थ:-हवे जुलं ! जद देवताए मुनीराजने मारवा उन्पा ते कुंवरोने लोही वमता हेग नाख्या. तेने हरिकेसी मुनीराजे कडं के, जक्षदेवता मारी वैयावच करे, तेणे हे ब्राह्मणो! तमारा कुंवरोने नाख्या . ए जबरा करो साधुनो उपसर्ग टाल्यो तेने सूत्रमा वैया वच कही. साधुनो पोतानो कल्प नथी तेथी ते एवां कामनी, श्राववा जवानी अने साधुने वास्ते जग्या जाचवानी श्राज्ञा दे नही; पण तेने सूत्रमा वैयावच कही ले. हवे साधुनी वैयावचनां फल शुन्न के श्रशुज ते कहो. वली वृहत्कल्पमां कडं ले के, साधु एटलां काममां जबरा करे तो श्राझा उलंघे नही. ते पाठःनिग्गंथस्सय अदे पायंसि खाणुवा कंटएवा हीरएवा सकरेवा परियावजेजा तं च निग्गंथे नोसंचायश्नीहरीत्तएवा विसोहित्तएवातंच निग्गंथीनीहरमाणिवा विसोहेमाणीवा णाइक्कम.निग्गंथस्स अदिसि पाणेवा बीएवा रएवा परियावजोड़ा तंच निग्गंथे नोसंचाइए निदरित्तएवा विसोदित्तएवा तं निग्गंथी नीदरमाणीवा विसोदीमाणीवा णाश्कम.निग्गंथीए अहेपायंसि खाए॒वा कंटएवा हिरएवा सकरवा परियावजा तंच निगंथी नोसंचाए निहरित्तएवा विसोहित्तएवा तंचे निग्गथे निदरमाणेवा विसोहोमाणेवा णाकम्मर. निग्गंथीए अत्थिसि पाणेवा बीएवा रएवा परियावोजा तंच निग्गंथी नोसंचाए निहरित्तएवा विसोदित्तएवा तंच निग्गंथे निदरमाणेवा विसोहिएवा णाश्कम. निग्गंथे निग्गंथी दुग्गंसिवा विसमंसिवा पवयंसिवा पकलमाणंवा पवममाणंवा गिण्हमाणेवा अवलंबमाणेवा णाश्कमइ. निग्गंथे निग्गंथी सेयंसिया पंकंसिवा पणगंसिवा उदगंसिवा जकसमाणंवा वुद्यमाणेवा. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२५ ) + सिद्धान्तसार.. गिन्दमाणेवा अवलंबमाणेवा णाश्कम. निग्गंथे निग्गंथी नावं आरोहमाणंवा नरोहमाणंवा गिन्दमाणेवा अवलंबमाणेवा गाइकमइ. खित्तचित्तं निग्गंथी निग्गंथे गिन्दमाणेवा अवलंबमाणेवा णाइक्कमइ. दित्त चित्तं निग्गंधी निग्गंथे गिन्हमाणेवा अवलंबमाणेवा णाइक्कम. जखाशनिग्गंथी निग्गंथे गिन्हमाणेवा अवलंबमाणेवा णाकमई. उमायपत्त निग्गंथी. उवसगंपत्ति निग्गंथी. साहिगरण निग्गंथी. स पायचित्तं निगंथी. जत्तपाणपमियाए खियं निगंथी. अजाय निगंथी निगंथे गिन्हमाणेवा अवलंबमाणेवा णाइक्कमई ॥ १७ ॥ अर्थः-नि साधुने चालतां अण् देठे पा पगना तलाने विष खाण खीलो कं0 कांटो ही फांस अने स० कांकरा प्रमुख प० नांग्यो, प्रवेश कीयो, तं० ते च० वली नि साधु नो समर्थ नथी नी० काढवा वि० विशेष शुरू करवा; तं ते नि साधवी नी काढतीथकी वि० विशुद्ध करतीथकी बाप बेटीनी बुके करे तो णा तीर्थकरनी आज्ञा अतिक्रमे नही. एवां चौद सूत्रने उपदेशी कह्यां बे. वली वाणायांग व्यवहार मध्ये कापुंडे के, जो धीर्यवंत खरा अमोल चित्तनो धणी एटलां वानां करतो श्राज्ञा अतिक्रमे नही, अने न करे तोपण श्राज्ञानो नंग नही. नि साधुनी प्रशांखने विषे पा प्राणी बी० बीज रणरज प० श्रावीने पके, तं ते नि साधु नो समर्थ नथी न काढवा वि०विशुरू करवा, ते नि साधवी नी० काढतीथकी वि० विशुद्ध करतीथकी णा आज्ञा अतिक्रमे नही. निसाधवीने अण्पगना हेग्ला तलाने विष खा खीलो कं० कांटो हि फांस अने स० कांकरा प्रमुख प० शरीरने विष खुचे प्रवेश करे तं ते नि साधवी नो समर्थ नथी नि० काढवा वि० वियर करवा, तं ते नि साधु नी मा बेटीनी बुके काढतोयको वि० Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२६ ) सिद्धान्तसार, विशुद्ध करतोथको णा आज्ञा अतिक्रमे नही. नि साधवीने अ० आंखने विषे पा० प्राणी बी० बीज अने रण रज प्रमुख प० शरीरने विषे खुचे, श्रावीने पमे, तं तेने नि साधवी नो० समर्थ नथी निक काढवा वि० विशुद्ध करवा, तं० तेने नि साधु नि० काढतोथको वि० विशुद्ध करतोथको णा श्राझा अतिक्रमे नही. हवे साध साधवी साथे जेलो विहार करे नही; पण वाटे साथे सामा मले, ए प्रयोग कदाचित उपजे तो ते वखतनुं ए सूत्र जाणवू. वली कुवा वीगेरेमा पमतीने अहे तो. पण आज्ञानो जंग थाय नही. पोते संयमने विषे समर्थ अढ रहे तो, ए गमे श्राझा अतिक्रमे नही.कारण उपने डते.निण्साधु निसाधवीने उ० व्याघ्रादिक नयाकुल मार्ग वि० वांको चुंकी धरती अने पक्व० पर्वतने विषे परक० पीसली (लपसती) थकीने पव० धरतीए पमती थकीने गि हस्तादिके ग्रहतोथको श्र० सर्वांगे श्राधार देतो थको, (अमोल मन तेथी) संयमने विषे धीर्य राखे तो पा० आज्ञा अतिक्रमे नही. नि साधु नि साधवीने से जल सहित कादव पं० जल रहित कादव श्रने पनपट ढीला कादवने विषे नग्नदी प्रमुखना पाणीने विषे उका खुती थकीने नवु० मुवती थकीने गिए ग्रहतां थकां अ० आधार देतां थका णा श्राज्ञा अतिक्रमे नही. नि० साधु निण् साधवीने ना वाहाणे आप चढती उन्नतरती अने पमती थकीने गि ग्रहतो थको अण् अवलं बतो थको णा श्राझा अतिक्रमे नही. खिम्सुन्यकार चिचित्त अथवा विषरोगादिकेकरी वीवहलचीत्त थयुंडे एवी निसाधवीने कुप जहादिकने विषे पम्ती, नासती अने जोती होय तेने नि साधु तदरोग जय पामेली साधवी गिण् ग्रहतो थको अ० अवलंबतो थको णा श्राा अतिक्रमे नही. एम दि० दीत चित्त जेनुं (दर्पवंत चित्त) थयुं ले एवी निरा साधवीने नि० साधु गिण् ग्रहतो थको अ० अवलंबतो यको पा. श्राझा अतिक्रमे नही. जा यह प्रवेश कीधो होय वा यह अधिष्टीत होय एवी नि० साधवीने नि साधु गिण महतोथको अ० अवलंबतो थको पा श्राझा अतिक्रमे नही. उ० वायुना जोरे उन्माद करती Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( २२७ ) होय तेवी नि साधवीने साधु ग्रहतो थको अवलंबतो थको श्राज्ञा अतिक्रमे नही. उ० व्याघ्र सिंहादिकना उपन्या नपसर्गे पमती होय तेवी नि० साधवीने साधु ग्रहतो थको आज्ञा अतिकमे नही. सारा शंक्वेशादिकथी कुपादिके पमे नि ते साधवीने अधिकरणे करीने ग्रहतोथको थाज्ञा अतिक्रमे नही. स० घणुं प्रायश्चित आववाथी नयनांत जे चित्त जेनु तेवी नि साधवीने ग्रहतो थको आज्ञा अतिक्रमे नही. न अणसण कीधे पोते नमकरी अरही परहो जातीने ग्रहतो थको आधार देतो थको अतिक्रमे नही. अ० लोन प्राप्तने लदमा पमी देखी मननी चपखताए करी, चित्त वित्रमे करी लवरी करत नि साधवीने निण साधु गि० ग्रहतो थको १० श्राधार देतो थको पा० आज्ञा अति. क्रमे नहि.॥ जावार्थ:-हवे जुउँ ! हां कह्यु के, कोई साधु एटलां कामोथी संयम नांगतो होय तेने साधु जबराश्थी पकमोने राखेतो आज्ञा जबंधे नही. हवे ए जबरा करवानी नगवंते साधुने धर्म जाणोने श्राज्ञा दीधी .ए न्याये धर्मने अर्थे कस्पती जबरा करे तेमां पाप नथी. तेमज जीवनी अनुकंपा श्राणी यथायोग्य जवरा करी उगारे तेमां पण पाप नथी. वली श्री नेमनाथस्वामीए पण जीवोनी अनुकंपा करी . शाख सूत्र नत्तराध्ययन थध्ययन २५ में. ते पाठः अहसो तब निजतो, दिस्स पाणे नयट्ठए; वामेहि पिंजरोहंच, संनिरुहे सुदुरिकए ॥१४॥ जीवियं तंतु संपत्ते, मंसा नखियवए; पासित्ता से महापणे, सारहिं ण मब्बवी ॥१५॥ कस्स अधाश्मे पाणा, एए सवे सुहेसिणो; चामेहि पिंजरेहिं च, संनिरुधाय अवहिं ॥१६॥ . माखयवए Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२८ ) 4 सिद्धान्तसार ॥ १७ ॥ पद सारदि तवो जाइ, एए जहा पाणिणो; तुजं विवाह कमि, जोयावेनं बहुजणं सो तस्स सोवयणं, बढ़ पाणी विपासणं; चिंतेइ से मदापन्ने, साणुकोसे जिए दियो ॥ १८ ॥ जर मऊ कारणा एए, दम्मंति सु बढ़ जिया; न मे एयंतु निसेस्सं परलोगे विस्सइ सो कुंला जुयलं, सुतगं च मदायसो; आणाय सवाणि सारहिस्स पणामइ ॥ १९ ॥ ॥ २० ॥ अर्थः- ० अथ हवे त० तेवार पढी नि० श्री नेमीनाथ त्यां जातां थकां दि० देखीने पा० मृगादिक प्राणीने ज0 जयजांत वा० वा. मामां तथा पिं० पींजरामां राखीने सं० अतिशय रुंध्या बे ते सु० श्रतिघणा दुःखी जीवने देखीने ||१४|| जी० जीवीतव्यनो अंत सं० पाम्या डे, एवा जीवने मं० मांसने अर्थे ज० मांस खावाने अर्थे पा० देखीने से० ते श्री नेमीनाथ म० मादा प्रज्ञावंत सा० सारथ । प्रत्ये इ० एम म० कहता हवा ॥१५॥ क० शा ० अर्थे ३० ए प्रत्यक्ष पा० जीव ए०एस० सर्व जीव सु० सुखना वांडक वा० वाकामां पींजरामां संध्या बे ? अ० दवे सा० सारथी, ते श्री नेमीना पुढयुं त० तेवार पढी ज० कहेंबे, ए० एन० सो नीक मृगादिक पा० जीव बे ते तु० तमारा वि० विवाहना क० कार्य विषे जो० घणा लोकने जमावाने अर्थे रुंध्या बे. ॥१७॥ सो० सांजलीने त० ते सारथिनुं वचन सो० ते श्री नेमीनाथे, व० घणा पा० प्राणोजीari fao विनाशकारी वचन शांजलीने चिं० चिंतवे बे. से० ते श्री नेमनाथ म० महा प्रज्ञावंत सा० दया सहित जि० जीवने विषे दि० दिन बे * जेनुं ॥ १८ ॥ ज० जो म० मारे का०काजे ए०ए इ० हपाशे सु०प्रति बघण जि० जीव, तो न० नही मे० मुजने ए० ए जीवधात नि० कल्याकारी प० परलोकने विषे न० था. ||१५|| सो० ते श्री नेमीनाथे कुंप कुंमनुं जु Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - +सिदान्तसार.. ( २१९) जोडं सु० कणदोरा प्रमुख मन् महा यशवंत प्रा० श्रान स०सर्व मुकुट वर्जिने सा सारथिने प० दीधां. ॥ २०॥ जावार्थ:-हवे जु ! जीवनी अनुकंपा तथा जीवीतव्यने हेते श्री नेमनाथ जगवंत तोरणथी पाठा फर्या. हे देवानुप्रीय!असंजति जी. वने बचाव्यामां पाप कये न्याये कहोडो ? ए असंजति जीवोनुं जीवातव्यश्री नेमीनाथ जगवंते केम वान्ब्युं ? ते कहो. वली चीत्तमुनीराजे ब्रह्मदत्त चक्रवृतने कयुं के, तुं सर्व प्राणीनी तथा सर्व प्रजानी अपुकंपा कर. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन १३ में गाथा ३५ मी:जइ तेसिं नोगे चश्न असंतो अजाइ कम्माइं करेहिं रायं धम्मेसिव पयाणुकंपी तो, दोहिसि देव इन विनधी. ३२ अर्थः-जा जो ते० ते जो लोग च जमवा अ० (अशक्त) असमर्थ ले तो ए श्र० श्रार्य का काम करे कर. रा हे राजा ! धण प्रहस्थना धर्मने विषे वि० रेहेतां थकां स० सर्व पया० जीवनी अनुकंपा करवी, कराववी, ए आर्य कर्म कर. ग्रहस्थनो धर्म पालीश तो तोपण हो० था दे० देवता इ० ए मनुष्य नवथी वि० विक्रय शरीरवंत ॥ ३ ॥ नावार्थः-हवे जुन ! चित्तमुनीए ब्रह्मदत्तने कयु के "जो तमा जोग त्यागवानी बुद्धि नथी, तो तमे हे राजे ! श्रार्य कर्म तो करो." हवे नियाणा-कृतने त्याग तथा साधु श्रावकनां व्रत तो आवे नहि, त्यारे बार्य कर्म शुं करवू कडूं ते कहो. ए आर्य कर्म कहेतां जीवनी दया पलाय, धर्म तथा समकितने विषे स्थिर रहे अने सर्व प्राणीनी तथा प्रजानी अनुकंपा करे, तोपरा तमारे पुन्य बंधासे; तेथी विक्रय रिछिनो धणी देवता थश्श, एम कडं. श्रहो देवानुप्रीय ! तमे प्राणी जीवनी अनुकंपा कीधामां तथा जीवदया पलाव्यामां पाप कये न्याये कहोगे? बली उत्तराध्ययन अध्ययन १ मानी गाथा १३ मीमां कडं ते के Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३० ) 4 सिद्धान्तसार. साधु छानेरा जीवनुं दुःख छअनुकंपे, ते परजीवना जीवीतव्यनो तथा हीतनो उपहार थाय. ते गाथा: सवेदिं नूएहिं दया कंपी, खंती खमे संजय बंजचारी; सावजाजोगं परिवजयंतो, चरेऊ निस्कू सुसमाहि इंदिए ॥ १३ ॥ अर्थः- स० सर्व जू० जीवने विषे द० दयाएकरी ० परजीवनुं दुःख देखीने कंपे, परजीवने दितनो करणदार, खं० कमाए करी खं० दुर्वचन खमे, सं० संयति बं० ब्रह्मचारी सा० पापनो जो० व्यापार प सर्वथा प्रकारे वर्जतोथको च० विचरे नि० साधु सुस० जली समाधिए करी सहित इं० इंडिबे जेनी एवो. ॥ १३ ॥ जावार्थ:- दवे जु ! इहां कयुं के, साधु सर्व जीवनी अनुकंपा करे तथा हीत वान्डे. त्यारे हे देवानुप्रीय ! तमे संजतिनी तथा सर्व जीवनी अनुकंपा कर्यामां तथा दया पाल्यामां पाप केम कहोठो ? तेवारे तेरापंथी कबे के “दुःखी जीवने देखीने चिंतवनुं के "अहो ! ए जीव कर्मने वशे दुःख ! बे, एनां कर्म तुटेतो ठीक " एवी चिंतत्रणा करे तेने अनुकंपा कहीये, पण आहार वस्त्रादिक देश शांता उपजाववी क्या कही बे ?" तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! दुःखीनुं दुःख देखी - नुकंपा लावी दुःख मटाने, तेनेज अनुकंपा कहीये. ठामठाम ज्यां अनु कंपा यावी त्यां त्यां दुःख मटामवानुंज कयुं बे, पण “ए जीव कर्मने वशे दुःखी बे, तेथी एनां कर्म तुटेतो ठीक" एवी चींतवलाज करवी तेने अनुकंपा कहीये, एम तो क्यांय कधुं नथी. तमे मतने सीधे एवा जुवा अर्थ केम करोबो ? वली उत्तराध्ययन सूत्रनी १५ मा अध्ययननी गाथा १२ मीमां कह्युं ठेके, जे साधु अस्नादिक चार शहार लावीने, रोगी ( गीलाप) साधुनी अनुकंपा करीने दे तेनेज साधु कहीए. ते पाठः जं किचि आदार पाणजाइ विविदं खाइमं साइमं परेसिं लघु जो तं तिविदेष नाणुकंपे मण वय काय, सुसंबुमेस निरकु ॥ १२ ॥ } Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( २३१ ) अर्थः- जं० जे कोइ श्र० अस्नादिक आहार पा० पाणीनी जाती वि० अनेक प्रकारे खा० द्राक्ष खजुरादिक सा० लर्विगादिक मुखवास प० ग्रहस्थ कनेथी ल० पामीने, लावीने जो० जे तं० ते श्राहारादिक ति० त्रीविधे त्रिविधे मन, वचन, कायाए करी ना० जे बाल गि लापादिकने संविभाग करी दे, म० मन व० वचन का० कायाए करी सु० जलीपरे सं० जेणे श्राश्रव कषाय संवर्या बे एवो होय तेज जि० साधु ॥ १२ ॥ भावार्थ:- ए जुन ! इहां कयुं के, साधु श्राहारादिक पोते लावीने रोगी (गलाण) साधुने अनुकंपा श्राणीने प्रापे, तेनेज निखु (साधु) कहीए, एम कधुं; पण एम न कथं के, रोगी गीलाप साधुने देखी " अहो ! ए कर्मने वशे रोगी दुःखी बे. एनां कर्म तुटे तो ठीक. जो एने श्रादारादिक, औषधादिक देशुं तो एनां कर्म तुटतां रही जाशे." एवं चिंतवनुं तेने अनुकंपा कहीये, एम तो नयी कयुं. तमे मतने ली एवी कुयुक्ति लगावीने अनंत संसार केम वधारो हो ?-- 900 ॥ प्रश्न बोजो संपुर्ण ॥ " TELE ........ 996366GGE Page #252 --------------------------------------------------------------------------  Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्न त्री जो. दान देवा विषे. th ' वली तेरापंथी कहे जे के 'साधु विना अगोपारमी पनिमाधारी श्रावकथी मामीने सर्वने दान दीधाथी एकान्त पाप निपजे जे.' ते दानमां कां पण पुन्य के लान्न न जाणतां एकान्त पाप परुपे बे. एवी खोटी श्रझा राखनारने पुq के, हे देवानुप्रीय ! साधु विना श्रावकने तथा गरीब रांक नीखारीने पुर्बल दुःखी देखीने, अनुकंपा आणीने शुजजोगथी कोमल नाव लावीने आपे, तथा श्रावकने धर्मध्यान करवाने साज थापे, तेने पाप कया सूत्रमा कडं ते पाठ बतावो. तेवारे तेरापंथी नगवतीसूत्र शतक ७ मे, उद्देशा बहानी जुठी शाख देखामे . ते त्रीजा पाठमां असंजतिने श्रावक दान दे तेमां एकान्त पाप कडं डे, एम कहे जे. तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! त्यां तो त्रणे पाठमां श्रावक मोदने अर्थे दान देतो प्रतिलोनतो थकोशुं फल पामे ? एवी पुना ले. ते पाठःसमणोवासगस्सणं नंते ! तहारुवाणं समणंवा माहाणंवा फासु एसणिघेणं असणं पाणं खाश्मं साश्मेणं पमिला माणस्स किंकवइ ? गोयमा ! एगंत सोसे निधरा कघई नबियसे पावकम्मे कधइ. समणोवालगस्सणं नंते! तहारुवं समणंवा मादणंवा अफासुएणं अणेसणियेणं असणं पाणं जाव पमिलानेमाणस्स किंकद्य ? गो ! बहुत्तराएसे णिधरा कद्यक्ष, अप्पत्तराएसे पावकम्मे कवर. समणोवासगरुणं ते!तदारुवं असंजय अविरय अपमिदय . अपञ्चकाय पावकम्मे फासुएणवा अफासुएणवा एसपिजे. Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३४) + सिद्धान्तसार गवा अणेसणिजेणवा असणं ४ जाव किंकबइ ? गोयमा! एगंतसोसे पावकम्मे कवर, नबिसेकावि (णधरा कधश्॥ अर्थः-सा श्रमणोपासक श्रावकने जंग हे जगवंत! त० तथारुप तपयोग उपशमे करी सहित स० श्रमण प्रत्ये अथवा मा0 माहण प्रत्ये फा प्रासुक (निर्जीव ) एम् एषणिक (४२ पुषण रहित ) एवा श्र० अनादिक पा० पाणी जाक्षादिकनुं खा मेवा सुखमी प्रमुख सा० सादिम (लविंगादिक प्रमुख), ए चार आहार प० प्रतिलालता थकाने किं० शुं फल थाय ? ए प्रश्न. उत्तर. गो हे गौतम ! ए० ते श्रमणोपासकने एकान्त नि० निर्जरा कः कमनो कय हेतु फस थाय; नए नथी से तेने पाए पाप कर्म. एटले साधुने प्रासुक दान दे तेने कर्मनी निर्जरा थीय, ने पापकर्म न थाय. अथ श्रपासुक दान विषे बीजुं सूत्र कहे:स० श्रमणोपासक नं हे जगवान ! त० तथारुप स० श्रमण प्रत्ये मा० महिण प्रत्ये अण्यप्रासूक (सजीव) अणे अनेषालय (उषण सहित), एवा अयसन पा० पान, खादिम, सादिम जा० यावत् प० प्रतिलानताथकाने किंशु फल थाय ? ए प्रश्न उत्तर. गोण हे गौतम! ब० पापकर्मनी अपेक्षाये घणी णि निर्जरा थाय, ने थप्प० निर्जरानी थपेक्षाये अल्पतर पा पापकर्म थाय. इहां ए नावना गुणवंत पात्रने कांजे . प्रासुक दान दीधाथी चारित्र कायनो उपष्टंन थाय अने जीवधात पश थाय. ते व्यवहारथी चारित्र बाधा थाय. त्यार पड़ी चारित्र कायोपष्टजयी निर्जरा थाय अने जीवधातादिकथी पापकर्म थाय. त्या स्वहेतु सामर्थथी पापनी अपेक्षाये बहुत्तर निर्जरा थाय, अने निर्जनिी अपेकाये अल्पतर पाप थाय. साधुने अप्रासुक दाने थप पाप, ने मिरा घणी, एम सूत्रे कडं. इहां केटलाक एम कहे डे के, असंथरणादि कारणेज चपासुक दाने घणी निर्जरा थाय, परंतु कारण विना नाई. पर: उक्तं." संथरणं म असुझं दोणवि गएहंत दिसयाणहियं श्रावर सिं तेयं तव हियं असंथरणे." वली केश्क एम कहे के, प्रकारचे प्रया Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( २३५ ) गुणवंत पात्रदान का अप्रासुक दीधार्थी प्रणाम वसथी घणी निर्जरा थाय. अति थोरुं पापकर्म निर्विशेषपणाथी थाय, ते प्रणामना प्रधानप पाथी. श्राहच्चः - परम रहस्स जिसि समत गणिपिंग करीया साराणं परिणामियं पमाणं निजय मवलंबमाणां ॥ १ ॥ जे संघरसंमि असु इत्यादिक कयुं, ते शुद्ध देणहारना श्रहितने काजे थाय. ते ग्राहकने व्यवहार संजम विराधनाथी ने दायकने लुब्धक द्रष्टान्त जावितपणेकरी; श्रथवा श्रच्युतपन्नपणे करी देतां शुन अल्प श्राउखाना निमित्तपाथी, ते शु श्रायु बांधे पण अल्प ते हित जाणवुं. ते शुभ आ खाना निमित्तपणेकर | अप्रासुक दानने पाखा फल प्रतिपादक सूत्रने विषे पेलां च बे. वली इहां तत्व केवली गम्य बे. हवे त्रीजुं सूत्र कहे. स० श्रमणोपासकने जं० हे जगवान ! त० तथारूप चारित्र गुणे करी रहित सामी शाक्यादिक अ० असंजांत श्र० अत्रति (पापकर्म पचख्यां नथी) अप० पचखाणेकरी पापकर्मने जेणे दण्यां नथो, इत्यादिक गुण रहित पात्रनुं विशेष कयुं, ते प्रत्ये फा० प्रासुक (xचित) अथवा फा० मासुक (सचित - सजीव ) ए० एषणिय ( दुषण रहित) अथवा अणे० अनेष यि (दुषण सहित) एवा ० खस्नादि चार आहार जा० यावत् पण् प्रतिलाजताथकाने किं० शुं फल थाय ? गो० हे गौतम! एतेने एकान्त पाप कर्म थाय, पण न० न तेने कांइ पल शि० निर्जरा थाय. वली ए पाठना श्रर्थमां तथा वत्तिमां नीचे मुजब गाथा कही बे: : मोस्कत्थं च जेदाणं, एस वियरस मुस्कान); अणुकंपा दाणं पुणः जिणेहिं कयाइ न परिसिदं ॥ १ ॥ एनो जावार्थ मोने अर्थे गुरुनी बुद्धिए प्रतिलाने तो तेने एकान्त पाप ( मिथ्यात्व ) लागे; पण अनुकंपा दान पुन्य कोई तीर्थंकरे विषेयुं नथी. जावार्थ:- हे देवानुप्रीय ! आ त्रीजा पावमां तो एम नथी क Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५६ ) +सिद्धान्तसार.. के, रांक, निखारी, दुर्बलने मरता देखीने अनुकंपा श्राणीने दान दे तेने एकान्त पाप लागे. ए त्रीजा पाठमां तो तथारुप असंजति श्रव. तिने, प्रासुक अप्रासुक एषणिक अणेषणिक प्रतिलाने तो एकान्त पाप लागे, पण निर्जरा नथी एम कडं . ए तमे जाणताथका मतना लोधे तथारुप शब्द बुपावीने, बोघां लोकोने बहेकाववाने काजे 'असंजति, अवति, मागता नीखारी अने दुर्बलने अनुकंपा लावीने दान दे तेने एकान्त पाप लागे' एम केम कहो हो ? हां तो तथारुप असंजतिने प्रतिला तो एकान्त पाप कडं जे. हवे तथारुप केने कहीये ? जेनो असंजति अन्यतीर्थीनो वेष तथा असंजति अबतिपणानां लक्षण बे, जे मिथ्यात्वनो मालीक डे, मिथ्यात्व परुपे , तेने अन्यमति धर्म जा. पीने तथा गुरु जाणीने रसोइ आपे , तेनी परे श्रावक गुरुनी बुद्धिएकरी श्रापे तो मिथ्यात्व- पाप लागे. ए असंजतिनो वेष, असंजतिपणाना अवगुण तथा अति, अपचखाणी, ते श्राश्री प्रश्न ते. तेवारे तेरापंथ कहेडे के " असंजतपणुं, अव्रतपणुं, अपचखाणपणुं अने मि. थ्यात्वपणुं जेनामां होय तेनेज तथारुप कहीये. अन्यमतिना वेसर्नु कांश कारण नथी. मागता नीखारी असंजति, अवति, अपचखाणी ने तेने तयारुपज कहीये. तेने दोधार्नु पाप कडं बे. वेशनुं कांश कारण नथी." तेनो नत्तरः हे देवानुप्रीय ! पेहेला पाठमां तो तथारुप समण माहणने प्रा. सुक एषणिक प्रतिक्षाने तो एकान्त निर्जरा कही, तेने पाप कर्म न लागे का. हवे जुर्ज ! ए तथारुप समण माहण, उघो मुहपति श्रादि सलिंगीपणानो वेश राखे, अने असंजति अबात अपचखाणीपणाना गुण सहित होय, नेने प्रतिलाच्यानो निर्जरारुप लान्न कह्यो ? के सलिंगीना वेश विना संजति पनि पच वाणीपणाना गुण होय, तेने प्रतिलाच्यामां निर्जरारुप लाल कह्यो ते कहो. जो सलिंगा साधुपणाना वेश विना संजति साधुपणाना गुण होय, तेने प्रतिलाच्यामां निर्जरा (नोक्ष) मुंफल केहशो तो, असंजति अन्यलिंगाना वेशमां नावे साधपणुं श्रावे, अने केवल. Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. ( २३७ ) ज्ञान पण उपजतुं कर्तुं . शाख सूत्र नगवती शतक ए में, असोचा. केवलीना अधिकारमां. पण त्यां एम कडं के, दिक्षानो नपदेशतो दे, पण पोते चेलो करे नहि. हवे जुई ! तथारुप वेशनुं कारण न होय तो चेलो केम न करे ? माह्या हो ते विचारी जो जो. तेमज चौद नेदे पंदर प्रकारे सिक सिध्या कह्या बे. शाख सूत्र पन्नवणा तथा नंदीमां. ते पाठ: से किंतं सि केवलनाणं २ उविदा पन्नत्ता तंजहाः-अएंतरंसिद्ध-केवलनाणं परंपरसिह-केवलनाणं. से किंतं अणंतरंसिध-केवलनाणं २ पनरस विदा पंन्नना तंजदा:तिबसिधा १ अतिबसिद्धा २ तिबंगरसिक्षा ३ अतिगरसिक्षा ४ सयंबुझसिद्धा ५ पत्तेयबुध्धसिध्धा ६ बुध्धबोहियसिध्धा इथिलिंगसिध्धा पुरिसलिंगसिध्धा ए नपुसकलिंगलिध्धा १० सलिंगसिध्धा ११ अन्नलिंगसिध्धा १२ गिदलिंगसिध्धा १३ एगसिध्धा १४ अणेगसिध्धा. १५. ....... अर्थः-से ते किंग कयुं सि0 सकल कर्मना दहणदार (सिद्ध) नुं केवलज्ञान ? ते केवलज्ञानना दुबे नेद प० परुप्या तं ते जेम तेम कहे ः-अप अांतरा सहित एटले अहिंथ। देहबोमी एक समय सिद्धगतिमां पहोंच्याने थयो ते अनंतरसिद्ध-केवलज्ञान. १ प० सिझमतिमां पोहोंच्याने अंतर मुहर्त श्रादि संख्यातो, असंख्यातो अने अनंतो काल ओलंघ्यो ते परंपरसिझ-केवलज्ञान. ५ से ते कि कयु अग अनंतरसिद्ध केवलज्ञान ? ते अनंतरसिद्ध केवलज्ञानना प० पंदर नेद प० परुप्या तं ते जेम डे तेम कहे ः-ति जेथी तरीए तेने तीर्थ कहोये. तेना बे नेद, अव्य ने नाव. शहां नदी आदिके नाहावं अथवा यात्रा करवानां तीर्थ, ते सर्व अव्य तीर्थ, एथी संसार न तराया थने श्रादिनाथजीनुं सासन ते सर्व नाव तीर्थ, एथ। संसार तराय. एने विष थादिनाथना प्रथम गणधर रुपनसेन, तथा वर्धमान स्वामाना प्रथम Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (२५८) + सिद्धान्तसार.. अषधर गौतमस्वामी प्रमुख सिध्या तेनी परे सिध्या ते तीर्थसिखा. १ अ० तीर्थना श्रांतरे तार्थना विरहने विषे जातिस्मरणादिके करी लि. ध्या ते, तथा तीर्थ प्रवर्ताव्या विना सिध्या ते अतीर्थसिद्धा, मरुदेवी वत् . ५ ति पूर्वोक्त तार्थना जे स्थापनहार ते तीर्थंकर सिद्धा. ते श्री ऋषनदेववत् सर्व जाणवा.३ अति ने सामानिक केबली ब्लां गोलमादिकनी परे सिध्या ते थतीर्थकरसिद्धा. ४ स्व० स्वयमेव पोतेज जातिस्मरणादिक ज्ञाने करीने तत्वना जाण थया ते स्वयंबुझसिद्धा. ५ प० प्रत्येकबुद्ध जे कांश एक वृषन्नादिक वस्तु देखीने अनित्य नावनादिक, कारण, तेनी प्रतीते बुजया ते प्रत्येक बुद्धसिद्धा. ६ हवे स्वयंबुद्ध अने प्रत्येकबुझमां शुं विशेष होय ते कहे बोध १, उपधि २, श्रुत ३, अने लिंग. ४ ए चार प्रकारे फेर होय. हवे बाह्य प्रत्यय विना (को कारण विना दी) स्हेजेज जातिस्मरणादिके बुके तेने स्वयंबुद्ध कहीये. ते बे नेदे होय. तीर्थकर स्वयंबुझ अने अतीर्थकर-स्वयंबुझ भने बाह्य कारण देखीने प्रतिबोध पामे तेने प्रत्येकबुद्ध कहोये, करकं प्रमुख. ते निश्चे एकाकीज विचरे, पण गबवासी न होय, इति बौधी विशेष. वली स्वयंबुझ्ने सात पात्रनां उपगर्ण, त्रण पडेमी, रजोहरणो अने मुखवस्त्रीका, ए बार उपगर्ण होय. (गाथा-पत्तं १ पत्ताबंधो र पायउवणंच ३ पायकेसरिया ४ पमिलायं ५ रयत्ताणं ६ गोड पायनियोगो तिणेवए ए पचागा १० रयहरणं ११ चेव होश मुहुपत्ति १५.) अने प्रत्येकबुद्धने तो जघन्य रजोहरण ने मुखवस्त्रिका ए बेज उपगर्ण होय; अने उत्कृष्टा सात मपगर्ण पात्रांना तथा रजोहरण अने मुहपत्ति ए नव उपगर्ण होय. ए उपध्य विशेष. ५ वली स्वयंबुद्धने पुर्व नवाधित श्रुत पण होय अने न पण होय, पण जेने पुर्व जवाधित श्रुत होय तेने लिंग देवता श्रापे, अथवा पोते गुरु पासे जइने ले. जो एकाकी विचरवा समर्थ होय तथा पोतानी श्छा होय तो एकाकी विचरे, महितो गुरु पासे गहमा रहे; अने जेने पुर्वाधित श्रुत न होय तेतो निश्चय गुरु पाले जश्मेज लिंग आदरे, अवश्य गड मांज रहे. अने प्रत्येकबुझ्ने Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार तो पुर्वाधित श्रुत निश्चे होयज, जघन्य अगीयार अंग भने उत्कृष्टा कांइक मुंणा दस पुरव होय. तेने लिंग देवता श्रापे श्रथवा लिंग रहित पण होय. एम श्रुत विशेष लिंग विशेषश्च. ४।६ बु० जे श्राचार्यना प्रतिबोध्या सिध्या ते बुद्धबोद्वित-सिझा. ७ इ० स्त्रीना जिंगे सिध्या ते नीलींगसिझा. तेना बे नेदः-व्यस्त्री श्रने नावस्त्री. वेदर सहित होय ते न सिके, श्रने अव्य स्त्री अवेदी सिके, अथवा पुरुषे स्त्रीनो वेश कयों होय ते सिके. ते स्त्रीलिंगसिझा. ७ पु० पुरुष लिंगे सिद्ध थाय तेने पुर्षलिंगसिका कहीये. ए न नपुशक लिंगे सिक्षा तेना बे नेदःजन्म नपुंषक अने क्रत्रिम नपुंषक. तेमां ऋत्रिम नपुंषकज सिके. ते नपुषकलिंग-सिद्धा. १० स० रजोहरण, मुहपत्ति आदि साधुना वेष सहित सिध्या ते सलिंगी-सिद्धा. ११ अ० अन्यतीर्थीना वेषमां जावे साधुपणुं प्रावे, ने सिद्ध थाय ते अन्यलिंग-सिझा. १५ गि० ग्रहस्थीना सिंगमां जावे साधपणुं पामी सिध्या (जरतादिवत् ) ते ग्रहस्थलिंगसिंझा. १३ ए एक समयमां एक सिध्या ते एक सिफ, वर्धमानस्वामीबत्. १५ अ० एक समयमा एकसो ने श्राप सिके ते अनेकसिझा, ऋषचदेवखामीवत्. नावार्थः-इवे जुर्म ! हां अन्यलिंगी तथा प्रहलिमीना वेशमा जाये साधपणुं श्रावे, तेथी केवलज्ञान उपजे (सिडे) कयु. हवे ज्यारे तमारे तथारुप वेशनुं का कारण नथी, त्यारे अन्यलिंगी तथा ग्रहसिंगीमा वेशमां संजति-वति साधुपणाना गुण जाणीने वंदणा केम नथी करता ? थाहारपाणोना संजोग केम नथी करता ? तमारा श्रावकदणा केम नथी करता ? तथा निर्जरा मोक्षरुप लान जाणीने थाहारादिक केम नथी देता ते कहो. वली सामायक १, दोपस्थापनो ,शुकमसंप्राय ३, अने जथाख्यात ४, ए चार चारित्र तथा उनियंठा अन्यलिंगी तथा ग्रहालिंगीमां नावे कह्या. शाख सूत्र नगवती शतक १५ में बझे बने तथा सातमे ते पावः Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४० ) * सिद्धान्तसार, पुलायणं नंते ! किं सलिंगे होद्या अणलिंगेहोद्या ? गो० ! दवलिंगपमुच्च सलिंगेवादोद्या अन्नलिंगेवाहोद्या गिदविंगेवादोद्या नावलिंगंपमुच्च नियमा सलिंगेहोद्या एवं जाव सिणाए. ॥६॥ सामाश्य संजएणं नंते ! किं सलिंगदोद्या अन्नलिंगदोद्या ? जहा पुलाए एवं वेदोवज्ञावणिएवि. परिदार विसुचि संजयणं नंते ! किं पुग ? गो० ! दवलिंगंवि नावलिंगवि पमुच्च सलिंगदोद्या नोअन्नलिंगेहोद्या नोगिहलिंगदोद्या सेसा जहा समाश्य संजए ॥ ७॥ अर्थः-पु० पुलाक नं हे जगवान ! किं० शुं स पोताने लिंगे होय ? अ अन्यलिंगे होय ? के ग्रहलिंगे होय ? इति प्रश्न. नुत्तर. गोण हे गौतम ! त्यां लिंग बे प्रकारे -अव्यलिंग अने जावलिंग. त्यांनावलिंग ते ज्ञानादिक. ए स्वलिंगज ज्ञानादि नावने अरिहंतनाज नावथी; अने व्यलिंग बे प्रकारेः--स्वलिंग अने परलिंग. त्यां स्वलिंगने रजोहरणा विगेरे होय; अने परलिंगना बे प्रकारः-कुतीर्थ लिंग अने गृहस्थलिंग. एटला माटे द० व्यलिंग आश्रीने स० स्वलिंग अ० अन्यलिंग अथवा गि गृहस्थलिंगने विषे पण होय, ना० नावलिंग श्राश्रीने नि० निश्चे स० सलिंगीनेज होय, ए एम जा जावत् सि0 सनातक सुधी केहेबु.॥६॥ सारा सामाश्क संजत नं० हे जगवान ! किं० शुं स० सलिंगीने होय ? के अ० अन्यलिंगीने होय ? जे. जेम पु० पुलाकने कडं तेम केहेबु. ए एम बेग दोपस्थापनिय पण केहे. प० परिहार विशुद्धि ते शुं ? इत्यादिक प्रश्न. नत्तर. गोण हे गौतम ! द० अव्यलिंग अने जाण जावलिंग श्राश्रीने स० सलिंगीने विषेज होय, पण नोथा अन्यलिंगीने विषे न होय. नोगि गृहलिंगीने विषे न होय. से० शेष जण जेम स० . सामाश्क संजत कडं तेम केहे ॥ ७॥ नावार्थः-हवे जु ! इहां सूत्रमा अन्यलिंगी अने गृहलिंगोमां Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( २४१ ) चार चारित्रना अने व नियंाना साधुपणाना जाव कला. हवे तमे कहोगे के " तथारूपमा वेशनुं कारण कांइ नथी. श्रसंजतिपएं छात्रतिपएं होय ते मागता जीखारी सर्वने तथारूप संजति कहीये. तेने दीघानुं पाप कथुं बे. " ए लेखे सलिंगी साधुना वेश विना अन्यलिंगी तथा गृहलिंग मां जावे चार संजम तथा व नियंता ( साधपएं ) होय. ते तमारे लेखे तथारूप समण माह पेहेला पाठमां कह्या तेज जाणवा. तेने प्रतिलाभ्यां एकान्त कर्मनी निर्जरा ( मोक्षरूप लाज ) जाने त मन वांदता? श्राहारादिकनो संजोग केम नथी करता? तथा श्रावक केम नथी वांदता ? अने निर्जरा (मोनो लान ) जाणीने दारादिक केम नथी देता ? तेवारे तेरापंथ कदेबे के “ अन्यलिंगी गृहलिंगीमां जावे चार चारित्र अने व नियंता होय तो खरा, पण कोइने अतिशय ज्ञानविना खबर पमे नहि, तेथे ते वंदा करवा तथा संजोग करवा जोग नथी. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तमने तो ज्ञानविना खबर नथी, पण केवलज्ञानी अन्यलिंगी तथा गृहलिंगीमां नावे साधुप जाणीने संजोग करे के नहिं ? तथा बीजा ब्रद्मस्थ साधु तथा श्रावकने वंदा करवानी, संजोग करवानी तथा श्राहारादिक देवानी था आप के नहिं ते कहो. तेवारे तेरापंथ । पण कहेबे के, “सलिंगी साधुपणाना वेश विना व्यवहार अशुद्ध, तेथ अन्यलिंगी तथा गृहलिंग मां जावे साधरणुं जाणीने केवलज्ञान। संजोग करे नीिं, तथा बीजा साधु श्रावकने वंदना करवानी तथा आहारपाणी आपवानी आज्ञा दे नहि. "" त्यारे हे देवानुप्रय ! सलिंगी साधुनो वेश, संजति व्रति पचखाणीपणाना गुण, तेने पेहेला पाठमां तथारूप समय माग कहो बो, ते सलिंगी साधुपणाना गुण सहितने प्रतिलाभ्यां शुद्ध व्यवहार मानो बो, ने निर्जरा मोक्षरुप फल मानो बो, अने सलिंगांना वेश विना जावे साधपणुं होय तेने वंदा न करो ने श्रदारादिक दीधामा निर्जरा न मानो, तो त्रीजा पाठमां संजतिना वेश विना तथारूप केम ३१ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४२) +सिद्धान्तसार मानो को ? मागता जीखारी दुर्बलने असंजति अबतिपणुं जाणीने तथारुप संजति केम कहो हो ? तेने प्रतिलान्यां एकान्त पाप कर्बु , एम जुठ केम वोलो बो? इहांतो तथारुप असंजति कह्यो जे ते अन्य. मसिनो वेश , मिथ्यात् प्ररुपे ने अने गुरु करीने पुजावे जे. तेनो श्रावक अलापसलाप करे अने अशनादिक प्रतिलाने तो लोकीक मिथ्यात् लागे. जधिक गृहस्थ एम जाणे के, ए जिनमार्गी श्रावक अन्यमतिने रसोई देबे, दान दे , तो ए पण तारणतरण बे. एम मिथ्यात् दीपे. वली श्राव कने अन्यदर्शनीनो सांसतो-परचो वा . जो अन्य दर्शनीनो सांसतो परचो करे तो समकितमां अतिचार लागे. तेथी तथारुप असंजतिने प्रतिलाने तो परपामीनो सांसतो-परचो थाय, एज मिथ्यात्नु पाप लागे. वली अन्यमतिना वेश विना जे असंजति अवति , तेनेज तथारुप असंजति मानीए तो श्रावकने ज्ञातीगोत्री, दासदासी, तिर्यंच अने मागता नीखारी ए सर्व असंजति अति ,तेनो सांसतो-परचो करवाथी समकितमा अतिचार लागे, त्यारे ते करवाथी श्रावक- श्रावकपएं (समकित) शी रीते रहे ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के " अन्यमतिनो वेश तथा परपाषंमीपर्यु धारण कीधुं तेनो सांसतो परचो करे तो समकितमां अतिचार लागे." त्यारे हे देवानुप्रीय ! जेनो सांसतो-परचो काँ अतिचार लागे तेनेज तथारुप असंजति अवति कहीये. तेने प्रतिलाने तो मिथ्यातनुं पाप लागे, एम प्रन्नुए त्रीजा पाठमां कडं बे; अने तमे कहोडो के “ तथारुपमा वेश- कारण कांश नथी. असंजति अबतिपणुं होय तेनेज तथारुप-असंजति कहीये.” त्यारे अन्न विने सलिंगी-साधुनो वेश बे, व्यवहारमा साधुपणुं पाले , अने निश्चेमा असंजति, अवति, अपच. खाणी . ते तमेतो ज्ञान विना नथी जाणता, पण केवलज्ञानीतो जाणे बे. हवे अनविने सलिंगी-साधुनो वेश व्यवहार शुद्ध जाणोने, पेहेला पाठमां तथारुप समण माहण कह्या तेवू जाणीने केवली संजोगमां राखे तथा बीजा साधु श्रावकने वंदणा करवानी तथा श्राहारपायी Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (२४१) देवानी प्राज्ञा दे, के नावे असंजति श्रवति अपचखाणी जाणीने वेशवें कारण कांइ नहि, एम जाणीने त्रोजा पाठमां तथारुप असंजति, प्रवति कह्या तेवो जाणीने केवलज्ञानी संनोग बाहार काढे ते कहो. वली पूर्वोक्त कथनने स्पष्ट करवा अर्थे चोनंगी कहीये डीए, के एक तो साधुनो वेश अने संजति-व्रतिपणाना गुण १, एक साधुनो वेश श्रने असंजति अवति अपचखाणीपणाना गुण निश्चमां, ए अनवि साधु २, एक अन्यादिंगीनो वेश अने संजति जति पचखाणीपणाना गुण अन्यलिंगीमा नावे साधपणुं ते आश्री ३, अने एक अन्यमतिनो वेश अने असंजति अवति अपचखाणीपणाना गुण ते त्रणसो त्रेसठ पाखंमी ४, ए चार नांगामां पेहेला पाठमां कया नांगा अने त्रीजा पाठमां कया नांगा ते कहो. - तेवारे तेरापंथी कहे के “ पेहेलो श्रने बीजो जांगो तो पेहेला पाठमां , तेने दीधांतो एकान्त निर्जरा थाय, पाप नथी; अने त्रोजो ने चोथो नांगो त्रीजा पाठमां , तेने दीधां एकान्त पाप थाय." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तथारुपमा तमे कहोठो के, वेषy कारण कांश नको, तो बीजा नांगामां अनवी साधुने नावे असंजति अति अपचखाणी केवली जाणे , तेने पेहेला पाठमां केम गणो? अने त्रीजा नांगामां अन्यलिंगीमां जावे साधुपणुं होय, तेने केवलज्ञानी गुण पाश्री जावे संजति वृत्ति पचखाणी जाणे , तेने त्रीजा पाठमां केम गणो? वेशन कारणतो तमारे लेखे कांश नथी, गुण तो संजतिपणाना ले. पण हे देवानुप्रीय! तथारुप तो वेशथीज जाएयो जाय. तेथी त्रीजा पाठमां तथारुप असंजति कह्यो . ते असंजति पाषंमीनो वेश , मिथ्यात्व प्र. रुपे , अने मिथ्यात्वनो मालीक बे, तेनोज अधिकार ले. तेने पण दी. धानुं पाप नथी कयु. “पमिलानेमाणे किं कय” एवी पृडा बे.प्रतिलान नाम तो परम उत्कृष्ट लान मोदा निर्जरारुप लान जाणीने गुरुनी बुझे दे तेनेज कहीये; पण मांगता जीखारमुबलने अनुकंपा आणीने दान दे, तेने बत्रीस सूत्रमा को ठेकाणे पमिलानेमाणे नथी का Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४४) सिद्धान्तसार.. पण देवं कर्तुं . शाख सूत्र ज्ञाता अध्ययन चौदमे. पोटीला दानशाला मांनी दान दे दे, ते पाठः ततेणं तेयलिपुत्ते पोटिलं उदयमण संकप्पं जाव चियायमाणं पास ३ त्ता एवं वयासी माणं तुमं देवाणुप्पिया उदयमण संकप्पे जाव धियायह. तुमणं ममं माहणसंसि विनल असणं ४ नवरकमावेदि बहूणं समण माहण जाव वणिमग्गणं देयमाणीय देवावेमाणिय विहराहि. ततेणंसा पोटिला तेयलिपुत्तेणं एवं वुत्तासमाणा हन्तुग तेयलिपु. त्तस्स एयमवं पमिसुणे ३ त्ता कलाकलिं माहणसंसि विनलं असणं ४ जाव देवावेमाणिय विदर॥ अर्थः-त. तेवारे ते तेतलीपुत्र पो पोटोलाने न चिंतातुर मा मनमां सं० संकल्प विकल्प जाग यावत् यि आर्तध्यान ध्याती थकी पाण् देखे, देखीने ए० एम व कहे, मा० रखे तु तमे दे दे देवानुप्रीय ! न चिंता करो, म मनमां सं० संकल्प जा० यावत् जि० आर्तध्यान करो. तु तमे म० मारी मा० सतुकार दानशालाए वि० विस्तीर्ण अण् अशनादि ४ न निपजावो. ब० घणा स० श्रमण माग ब्राह्मण जाग यावत् व वणिमग निकाचरोने दे० देतोयकी दे देवरावतीयकी वि० विचरो. त० तेवारे सा ते पो० पोटीला ते तेतलीपुत्रे ए एम वु कोथके हा हर्ष तु० संतोष पामी, ते तेतलीपुत्रनो ए० ए थर्थ व सांजले, सनिलोने क दिन दिन प्रत्ये माप दानशालामां वि० विस्तीर्ण प्रशनादि ४ जाण्यावत् दे० देती देवरावतीथको वि०विचरे डे. नावार्थ:-हवे जुर्ड ! इहां समण मादण रांक नोखारीना दानमा 'दलयमाणे' क्युं, पण 'पमिलामा' नथो कह्यु. वल। ज्ञाताना सोलमा अध्ययनमां सौपदीना आगला नवमा सामाजीकाए दानशाला दीधी, त्यां पण 'दलयमाणे' कयुं ले. ते पाठ लबार गएः Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ + सिद्धान्तसार.. ( २४५) ततेणं से सागरदत्ते तहेव संनंतेसमाणे जेणेव वासघरे तेणेव उवागबत्ता सुकुमालियं दारियं अंके गोवेस श्त्ता एवं वयासी:-अदोणं तुमं पुत्ता पोरा पोराणं जाव पच्चणु-नवमाणि विहरसि. तं माणं तुमं पुत्ता ! उदय मण जाव धियादि तुमणं पुत्ता! मम मादणसंसि विनलं असणं पाणं खाश्मं साईमं जहा पोहिला जाव परिनएमाणि विहरा. ततेणं सासुकुमालिया दारिया एयम पमिसुणेश्श् । त्ता माहणसंसि विनलं असणं पाणं खाइमं साश्मेणं जाव दलयमाणि विहर॥ अर्थः-त० तेवारे से ते सा सागरदत्त त० तेमज संजय चान्त थकी जे ज्यां वा वासघर ले ते त्यां उ आवे, श्रात्रीने सु सु. कुमालोका दा दारिकाने अं० खोले णि बेसारे, बेसारीने ए० एम व० कहेः- अहो तु तुमे पु० हे पुत्र ! पो पाठला नवर्नु पाप कर्म जा० यावत् प० नोगवतीथकी वि० विचर. हवे हुँ शुं कलं. तं० ते माटे मा० रखे तु० तमे पु" हे पुत्र ! उ थार्तध्यान म मनमा जाग्यावत् धि० ध्याता. तु तमे पुण् हे पुत्र ! म० मारी मा० सतुकार दानशालाए वि० विस्तीर्ण श्र० अशन पा० पाणी खा खादिम सा सादिम निपजावी. जा पो पोटीलानी जा० परे प० वहेंची श्रापतीथकी वि० विचर. ता. तेवारे सा ते सु सुकुमालीका दारिका ए० ए अर्थ प० सांजले, सांनलीने मा० दानशालाए वि० विस्तीर्ण श्रण असण पा० पाणी खा खादिम सा सादिम जाण जावत् द० देता देवरावती थकी वि० विचरे. लावार्थः-हवे जु ! 'यहां दलयमाणे' कां , पण समण मा. हण गरीबने दान देवामां 'पमिलानेमाणे' नथी कयु. वली रायप्रशेणी सूत्रमा प्रदेशीराजाए समण माहण अने रांक नीखारीने दान देवा दानशाखा मंमावी, त्यां पण पमिलानेमाणे' नथी कडं, Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार हे देवानुप्रीय ! पमिलानेमाणे तो गुरुनी बुछिए मोकनो लाल निर्जरारुप जाणीने दे तेनेज कह्यु जे. वली श्रावश्यक सूत्रमा पण पहिलाजेमाणे' साधुना दानमां कडं जे. वली नपाशकदशामां आणंद श्रावकने साधुना दानना अधिकारमा ‘पमिलानेमाणे' कयु वली उववाश् श्रने सूयगमांग सूत्रमा, श्रावकना बारमा व्रतमा साधुने गुरुंनी बुकिऐ मोदनो लान जाणीने दे, त्यां पमिलानेमाणे' कयुं . तेमज जगवती सूत्रमा तुंगीयानगरीना श्रावकोना बारमा व्रतना अधिकारमा 'पमिलानेमाणे' कडं ने. इत्यादिक अनेक सूत्रनी शाखे साधुने गुरुनी बुझिए मोक्षरुप लाज जाणीने दे, तेमां पमिलानेमाणे कडं . तेमज त्रीजा पाठमां पण तथारुप-असंजती, ते पाखंमीनो वेश बे, मिथ्यातनो मालीक , तथा मिथ्यात परुपे , तेने लोको गुरुनी बुद्धिए रसोई दें, दान दे, एवी बुद्धिए श्रावक दे, तो मिथ्यातर्नु पाप लागे. वली जगवती सूत्रना त्रीजा पाठनी टीकामां नीचे प्रमाणे गाथा : मोकळच जे दाणं, एसचिय, समुस्काउँ; . अणुकंपा दाणं पुण, जणेहिं कयाई न पनि सिई॥१॥ - शहां पण एम कर्दा के, जे गुरुनी बुद्धिए मोदनो हेतु जाणीने यापे तेने एकान्त पाप मिथ्यात्वनुं लागे; पण अनुकंपा दान पुन्य कोइ पण तीर्थकरे निषेध्यु नथी; एम टीकानी गाथामां कडं जे. तेवारे तेरापंथी कहे के “ गुरुनी बुझे मोदनो हेतु जाणीने आपे तो मिथ्यात्वमुं पार्ष लागे, पण अनुकंपादान जुउँ रह्यं. ते तमे मनथी स्थापवा माटे युक्ति मेलवोडो." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय ! ए त्रणं पाउ लगता दान दी. धाना बे. त्यां तमारा लेखे जेवू असंजतिना दानमां पाप कह्यु, अने ए पाठ जेवो कह्यो तेवोज मानवो, युक्ति हेतु कांश न मानवं, त्यारे बीजा पाठमां तथारुप साधुने प्रासुक, अप्रासुक, एषणिक, अलेषणिक, प्रतिखाने तो अल्प दोष बहुत निर्जरा कही. ए पाठ जेवो कह्यो तेबोज मानोडो ? के एषणिक अणेषणिकथ। कोइ युक्ति मानोडो ? कारणे Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार अकारणे, जाण्ये अजाण्ये. हवे जो बोजा पाठमां अजाएयानी तथा कारणनी युक्ति मानोडो, तो त्रीजा पाठमां युक्ति साची जे ते केम न मानो ? गुरुनी बुछिए मोदने हेते दे तो एकान्त पाप (मिथ्यात्व ) लागे, ए युक्ति खरी . वली अस्प दोष बहुत निर्जरानो पाठ तमने शंका सहित नाषे , त्यारे त्रीजो पाठ निःशंक केम मानो बो ? वली तथारुप असंजतिने दान दीधां एकान्त पाप लागे, तो गमवाम श्रावके दान केम दीधां ? इहांतो असंजतिने प्रतिलाले तो एकान्त पाप लागे एम कयुं. ते अढार पाप मांहेलु क्यु पाप लागे ते कहो. अढार पापमां एकान्त पाप कया पापने कहीए ते कहो. श्रावकने अढारमा एकान्त पाप कयुं लागे एवो मुल अर्थ तमे जाणता नथी. श्रावकने सत्तर पापमां कांश्क देसथकी आगार बे, अने घणो त्याग ले. तेथी श्रावक पापना बनावत्ति , धर्माधर्मी , पण एकान्त पापी नथी. एकान्त पापतो मिध्यात्वनुं , तेनो देशथकी त्याग थाय नही,अने ते तो श्रावकने मुलथोज नथी. ते माटे गुरुनी बुझे मोदनो हेतु जाणीने आपे तो मिथ्यात्वरुपी एकान्त पाप लागे, ने समकीत पण जाय. त्यारे बीजा पापर्नु शुं कहेवू. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ इहांतो श्रावक तथारुप असंजतिने प्रतिलाजे, तो एकान्त पाप लागे एम कडं डे. त्यारे श्रावक थश्ने तथा रुप असंजतिने गुरुनी बुझे मोदनो हेतु जाणोने केम देशे?" तेनो नत्तरः हे देवानुप्रीय ! श्हांतो पुगनी र वना जे. जेम दसाश्रुतष्कंधमां कडं के, साधु रात्री-नोजन करेतो, मैथुन सेवेतो, अने दस प्रकारनी हरी लीलोत्री खाय तो सबलो दोष लागे. हवे जुन ! साधु होय ते रात्री जोजन केम करशे, मैथुन केम सेवशे, अने सचित लोलोत्री केम खाशे; पण उदयनावना जोरथी साधु ए काम करे तो सबलो दोष लागे कह्यु. वली श्राचारांग तथा निषीत सूत्रमा अनेक अकरवाजोग कामो विषे पुछा करी, तेनुं प्रायबित कडं. हवे जुन ! साधु अकरवाजोग कामो केम करे! पण कमन गती विचीत्र ले. कर्मना नदयनावना जोरथी दोष लगामे. तेम को श्रावक श्रतंजतिनी क्रिया श्राम Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८) + सिद्धान्तसार, बर देखीने, मिथ्यात-मोहनी-कर्मना उदये गुरुनी बुझे, मोदनो हेतु ले एवो नाव आणीने आपे तो मिथ्यात्वर्नु पाप लागे. एवी रीते सूत्र जगवतीना त्रणे पाठमां पुबानी रचना ले. दातार तो एक श्रावकनेज कह्यो. सर्व दातार (दानना देणहारा) विष नथी पुब्यु. वली पात्र त्रण प्रकारे कह्यां. फल मोक्षरुप तथा निर्जराना लाजरुप पुडयो. पनी प्रजुए त्रणे पाठमां जेवो लाज हतो तेवो कह्यो. एकान्त निर्जरा; अप दोष बहुत निर्जरा; अने एकान्त पाप. ए त्रणे पाठमां जेवां फल हतां तेवां कह्यां, पण पमिलाजवू त्रणे पाठमां सरखं कह्यु; ते गुरुनी बुझे मोक्षने हेते जाणवू. माटे ए अनुकंपानो प्रश्न नथी. मागता जीखारी तथा उबलने मरता देखी अनुकंपा आणीने आपे तो एकान्त पाप लागे, एम नथी कडं. तमे प्रजुना वचन माथे एवां जुगं आल दश अनंत संसार केम वधारो हो ? वली तेरापंथो कहेले के, “श्राकुमारे कडं ले के, ब्राह्मणोने जमाने तो नारकीयां जाय. ए अनुकंपा दानथी नारकी केम कही ? " तेनो नत्तर. सुयगमांगजीना बीजा श्रुतष्कंधना बग अध्ययननो पाठःसिणायगाणंतु उवे सहस्से, जे नोयश णितिए माहणाणं; ते पुणखधं सम्ह ऊणिता, नवंति देवा इति वेयवाट.४३। सिणायगाणंतु उवे सहस्से, जे नोयए णितिए कुलालयाणं; सेगद लोलुय संपगाढे तिवाहि त्तावा गरगानिसेवी. ॥४॥ दया वरं धम्म दुगंउमाणा, वदावदं धम्म पसंसमाणे; एगं पि ओ नोययती असोलं. णिवो. णिसं जाति, कउँसुरेहिं ॥४॥ - अर्थः-सि० स्नान वीगेरे षट्कर्मना करणहारा दुबे स० हजार जे जे को पुरुष नो जमामे णि नित्य प्रत्ये मा० ब्राह्मणोने ते ते पुरुष पुण् पुन्य खंध सनेलो कर ज नपार्जीने न थाय देण् देवता. ३० एम वेग वेदन। वाण ठे. ॥४३॥ हवे श्रापकुमार ब्राह्मण प्रत्ये कहे Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार ( २४९ ) बेः-सिग स्नान वोगेरे षट्कर्मना करणहारा दुबे स हजार ब्राह्मणने जे जे को नो० नोजन जमामे णि नित्य प्रत्ये कुछ मार्जारवृत्तिवाखाने, से० ते जमामणहार ग जाय लोग मांसने गृद्धेकरी सं० व्याप्या ठे ति० सहेतां दोहीलो ता ताप ने जेनो, एवी ण नरकनो निण सेवपहार थाय. ॥॥ द० दयारुप व प्रधान धन धर्मनो दुनिंदणहारो व हिंसामा ध० धर्मने प० प्रशंसतो थको एवा ए० एकने पि० पण जे जे नो नोजन जमामे श्र व्रतरहितने णि ब कायनो उपमर्दन करीने, ते सं० संजति अथवा सु० स्वर्गपणुं माने जे ते मृषा बे. नावार्थ:-हे देवानुप्रीय ! अहीयां तो आईकुमारने पहेलां ब्राह्मणोए कह्यु के, " हे श्रार्डकुमार ! तुम सरखा राजकुमारने ब्राह्मपज गुरु करवा जोग्य बे, परंतु शूज गुरु मानवा जोग्य नथी. ते माटे वेद, विप्र, विश्नु, अने संध्यास्नान, ए चार मोदनां अंग , एथी मुक्ति थाशे. ए सनातन कर्मना करणहारा बे हजार ब्राह्मणोने नित्य प्रत्ये जमाझे तो पुन्यनो खंध उपार्जे, एवं वेदमां कडं बे.” एम ब्राह्मणे आर्डकुमारने कह्यु. जेम जैनमार्गमां सूत्र, साधु, जिन,अने त्याग, ए चार बोल मुक्तिना हेतु दे, तेम तेने नगमे वेद, ब्राह्मण, विष्णु अने नोग, ए चार बोल मानवा सारु देखामया. तेवारे थाईकुमारे तेमने जैनमार्गना वेषी जागी तथा मिथ्यात्व परुपता जाणी, तेमना बोलवाना अनीप्रायनो नत्तर दीधो के, मिथ्यात्त मार्गथी मुक्ती नथी. वली भाईकु. मारे कर्वा के, जे तम सरीखा सनातन कर्मना करणहारा बीलामा तुल्य बे हजार ब्राह्मणोने जमामे, ते तीव्र नरके जाय. तमे दयारुपी प्रधान धर्मनी उगंग करो बो, अने काय जीवनी हिंसा (वध) रुपी धर्मने प्रशंसो बो. एवा एक पण ब्राह्मणने जमाड्याथी (असुर धर्मे) देवगति क्यांथी थाय ? तेवारे ब्राह्मणो बोध्या के “जे सनातन कर्मना करणहारा (ब्राह्मणनां षट् कर्म करे, गुरु बुझे पुजावे) ने तेने तुं मोदनो हेतु जाण." तेवारे श्रार्डकुमारे ते ब्राह्मणोना अभिप्रायना अनुसारे पुर्वोक्त वचन कमां, एम गुरुनी बुझे, मोक्षने हेते दे तेनी ना कही; पण अनुकंपा Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५०) + सिद्धान्तसार दाननो निषेध नथी. जो ब्राह्मणोए एम कडं होत के "हे श्राईकुमार! हुँ उबल नीखारी ब्राह्मण ढुं माटे तुं अनुकंपा आणीने दान आप.” एम बाह्मणे कडं होत, अने बार्डकुमारे एम जवाब आप्यो होत के "मागता नीखारी उबलने मरता देखी अनुकंपा थाणीने दान देवू नही, जो असंजति मागता नीखारीने अनुकंपा थाणीने दान दे तो नारकीमा जाय." एम श्राईकुमारे कडं होत तो तमारं कहेवू मलत; पण एम नयी कह्यु.अहीयां तो ब्राह्मणोए पोतानुं गुरुपणुं देखामयु, अने ब्रह्मलो. जने पुन्यनो खंध (पुंज) तथा मोदनो हेतु जणाव्यो, तेना अभिप्रायनो उत्तर दीधो ले. जो ब्रह्मनोजनमां पुन्यनो खंध तथा मोक्षनो हेतु माने तथा गुरु जाणीने दे, तो नारकीमां जाय, ए थन्निप्रायनो उत्तर डे; पण ए श्रीवीतरागदेवतुं उपदेशीक वचन नथी. ए तो ज्यारे श्राईकुमार श्री माहावीर नगवंत पासे दीक्षा लेवा जाय डे, तेवारे ब्राह्मणे जैनधर्ममे निषेध्यो तथा मिथ्यात्व थाप्यो, तेथी भाईकुमारे वीवादमा उत्तर दीधो के, जे ब्राह्मणने जमाने ते नारकीमां जाय. पण ए वचन प्रमाण नथी. एतो विवाद वचन ग्रहस्थy . तेवारे तेरापंथी कहे जे के, समकिती धर्म-चर्चामां जुट केम बोले? श्रने समकितीनुं वचन प्रमाण केम नही ? तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीम ! समकिती श्रावक तो पापनां अनेक काम करे ले तथा रागद्वेषने वा अनेक जुठ बोले ले. जेम श्रावकना प्रणाम वैरागजावमां दिवा खेवाना होय, तेवारे संसारी (मोहमां लुब्ध थयेला) कहे के, घरमां बेगे धर्म ध्यान कर, दान दे थने श्रावकनां बारबत पाल, तेथी पण सद्गति श्रइ जशे, मारी गतीने दाह देश केम जाय जे. तेवारे श्रावक जाव चारित्रीयो पण एम कहे के, तमे मारा आत्माना वेरी बो, मने घरमा राखीने संसारमा तथा नरक निगोदमां नमाववा चाहो बो. एम विवादमा वचन कहे जे. जेम जमालीनी माताए जमालीने कडं के, हे पुत्र ! ए शरीरथी धन, जोबन तथा स्त्रीनां सुख जोगवो, पनी दीका बेजो. सेवारे जमालोए कह्यु के, हे माता ! ए तन, धन, जोबन अने कुटंब शर्मत Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( २५१ ) संसारनां वधारणदार बे तथा चार गतिमां अनंत काल सुधी रुल्लाव - हार बे. एम विवादमां क. हवे जु ! श्रावक घरमा बेठो तन, धन, जोबन, स्त्री श्रादिक जोगवतो श्रावकप पाले, ते एकावतारी थाय के नही ? पण वैरागीने संसारी घरमा राखवा चहाय, तेवारे समकिती श्रावक जावचारित्रीयो पण संसारोउने विवादमां उपदेश देवाने उंची नीची परुपला करे, तेनुं वचन प्रमाणमां न गणाय. वली द्वेषने वश विवादमां साधु मुनीराज पण उंचां नोचां काम करे छे, तथा उंचुं नीचुं वचन बोली जाय बे. जेम नागेश्री ब्राह्मणीए धर्मरुची अणगारने करु तुंमकुं वहोराव्यं, तेथी तेमनी घात थ पढी धर्मघोष श्राचार्ये श्रुतज्ञानेकरी धर्मरुचीने सर्वार्थ सिद्ध मां उपन्या दीवा अने नागेश्री ब्राह्मणीए क मनुं तुंबकुं वहोराव्युं एम झाने करी दी. पढी धर्मरुचीना मोहे करी नागे । ब्राह्मणाने बजारमां तथा गलोए गलीए हिली निंदी. ए काम धर्मघोष आचार्ये द्वेषमां तथा विवादमां कयुं, तेम बीजा साधुने ए काम कर योग्य नथी. तेमज श्राकुमारे ब्राह्मणोने जैन धर्मने निंदता जाणी ए वचन विवादमां कयुं, पण आर्द्रकुमारनं ते वचन प्रमाणमां नगलाय. तेवारे तेरापंथी कहे वे के, साध श्रावकने कर्मने वशे दोष तो लागी जाय, पण धर्म उपदेशमां बती ती परुपणा करे नही. तेनो उत्तर दे देवानुप्रीय! श्रावक समष्टी तो कयांय रह्या, पण साधुजो दस पूर्व माठेरा जणेला श्री केवलीना वचननी नेश्राय वीना पोताना मनथी सूत्र गुंथे तेनां वचन पण एकान्त प्रमाण नथी; अने ( समसूत्र ) साचां मानवां कह्यां नथी. शाख सूत्र नंदी ते पाठःसे किंतं समसूयं २ जइमं अरिहंतेहिं जगवंतेहि उपन्न नाण सधरेहिं तिलोक निरिकिय महियं पुइएहिं तोय पच्चु - पन्न मणागय जाए एहिं सबनाणेहिं सबदरिसिहिं पपिहि दुबालसग गणि पिंग पणता तंजढ़ाः- आयारो १ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५२ ) सिद्धान्तसार. सूयगो २ एाणं ३ सम्मवार्ड ४ विवदापणत्ता ५ नायाधम्मका ६ वासगदसान अंतगमदसा - गुत्तरोववाइयदसान ए पन्दावागरणाइ १० विवागसूय ११ दिवाउंय १२ इच्चेयं दुवालसँग गणि पिंग चदस पुधिस्स समसूय निणं दस्स पुधिस्स समसूय तेपरं जिणे जयणा सेतं समसूय ॥ अर्थः- से० ते किं० शुं स० सम्यक् सूत्र ? इति प्रश्न. गुरु बोल्या दे शिष्य ! सम्यक् सूत्र ज० जे ए प्रत्यक्ष खागल कदेशे ते श्र० अशोकादिष्ट महा प्रतिहार्यना धरणहार अरिहंत ज० सम्यक् इश्वर्यादिकना धरणहार ते जगवंत, न० उत्पन्न ना० केवलज्ञान दं० केवल दर्शनना ध० धरणहार ति० त्रण लोकना नि० देखणदार म० म हिमा योग्य बे, पू० पुजवा सत्कार करवा योग्य बे, ती० जुतकाल प० वर्तमानकाल छाने म० नविष्यकाल, ए त्रण कालना जा० जाए े. ते श्री तोर्थंकरदेव स० सर्वज्ञ सद० सर्वदर्शी ते पुरुषोए प० ( प्रणत) का. ते शुं कयुं ते कवेः दु० द्वादशांगीरुप गण् याचार्यनी पिं० पेटी प० कही तं० ते कहे :- प्रा० श्राचारांगने विषे पांच श्राचारनो विवरो ( साधुनो श्राचार) वाल्यो . १ सू० सुयगमांगने विषे स्वसमय परसमयना नाव चाल्या बे. २ गगणायांगने विषे एक गणाथी मांगीने दसाणा सुधी बोल चाल्या बे. ३ स० समवायांगने विषे एक समवायांगथी लइ सो लाख कमाकोमी प्रमुख बोल चाल्या वे. ४ वि० विवाहपन्न तिने विषे गौतमस्वामीए बीस हजार प्रश्न पुढया तेनो विचार जगवती सूत्रमां चाल्यो . ए ना० ज्ञाताने विषे ग्राम नगरनो, साधु साधवीनो ने सर्व वस्तुनो वीचार चाल्यो बे; छाने धर्म कथाने विषे सामी त्रयक्रोम कथा कही बे. ६ ३० उपाशक दशाने विषे दस श्रावकनी उत्कृष्टी करणीनो वीचार को बे. 9 ० अंतगदशांगने विषे त समये छष्टकर्मनो अंत कीधो तेनो वीचार चाल्यो बे. ७० अणुतरोववादशांगने विषे पांच Y ---- Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( २५३ ) अणुत्तर विमानने विषे पोहोच्या तेनो वीचार चाल्यो . ए प० प्रश्नव्याकरणने विषेअंगुष्टादिक प्रश्ननो, पांच संवरनो श्रने पांच श्राश्रवनो वीचार चाल्यो . १० वि० विपाकने विषे शुन-विपाक, अशुन-विपाक कर्मनो विचार चाल्यो . ११ दि अष्टिवादने विषे पांच प्रकारनो विचार चाल्यो . १५ ३० ए प्रत्यद दुबार अंग ग० आचार्यनी पिं0 पेटी बे. ते आचारांगादिक डे ते मध्ये श्राचार एकादिक गुण श्राव्या, ते जेम अव्य शब्द वस्तुमां नए षट् अव्य श्राव्या, ते घणा नणणहार आश्री बार अंगमां सर्व समाणा. वली तेनुं स्वरुप कहे. च चनद पु० पूर्वधारीनां कर्यां स० सम्यक् सूत्र कहीए. अण् वली द० दस पुण् पूर्व संपूर्ण नण्या ते दस पूर्वधारीनां कयाँ पण स० सम्यक् सूत्र कहीए. एटलानांज कयाँ निश्चय सम्यक् सूत्र जाणवां ते सर्वने सम्यक् सूत्र कहीये. ते ते उपरांत निजे दस पूर्वथी उढं जण्या डे तथा नव पुर्व नएया ले तेनां कयाँ सूत्रनी ना नजना जे. से० ते सण सम्यक् सूत्र कह्यां. नावार्थः-हवे जुर्ज ! दस पूर्व उणा नण्या साधुनां वचन समसूत्र (साचा) करी मानवां, एम श्री वीतरागदेवे कह्यु नथी, पण साच जुनी नजना कही . त्यारे हे देवानुप्रीय ! ते वखते आईकुमार केटला पूर्वनुं ज्ञान जएया हता ते कहो. वली कया सूत्रमा श्री वीतराग देवे कझुंडे के, ब्राह्मणोने जमामयाथी नारकीमा जाय, के ते वचननी नेत्रायथी बाईकुमारे कडं ते सूत्रनुं नाम बतावो. तेवारे तेरापंथी कहें डे के “बीजा सूत्रमा तो श्री वीतरागदेवे, ब्राह्मणोने जमामयां नारकोमा जाय, एम श्रीमुखथी तो कह्यु नथी, पण आर्षकुमारेज ए वचन ब्राह्मणोने कह्यां ." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! सूत्रमा केवलीना कह्या विना मनथी श्राईकुमारे विवादमां ब्राह्मणोने कह्यु, ते वचन प्रमाण केम थाय ? केमके दस पूर्व पुरुं नण्यावीना साधु मनयी कहे ते वचन प्रमाणमां नथी; त्यारे आईकुमारे विवादमां मनथी ब्राह्मणोने का, ते वचन प्रमाण केम थाय ? Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. -- तेवारे तेरापंथी कहे जे के "आईकुमारे विवादमां वचन कहां से प्रमाण नथी, त्यारे श्री केवलज्ञानी श्रीतीर्थंकरदेव, गणधरे सूत्रमा केम घाख्यां ? केवली गणधरे सूत्रमा घाट्यां तेवारे तो ते वचन केवली गणधरे वखाएयां तथा अंगीकार कयां कहेवाय. ते वचन प्रमाणमां केन नही ?" तेनो उत्तर हे देवानुप्रीय ! एतो अपेक्षाय वचन जे. जेम थाईकुमार अने ब्राह्मणोने मांदोमांहे विवाद थयो भने उत्तर प्रत्युत्तर थ्या, तेम सूत्रमा गणधरे गुंथ्या बे; पण केवलज्ञानीए वखाएया एम का होय तो कहो श्रने ते पाठ बतावो. जो वखाएया कह्या होय तो एम कडं जोइए के, हे आम्रकुमार ! तें ब्राह्मणोने साचां वचन कह्यां; थने जेमतें कह्यां तेम हुँ कहुं बु. जेम तुंगीया नगरीना श्रावकोए श्री पार्श्वनाथ नगवानना संतानीया साथे चर्चा कीधी,अने तप संजमनां फल पुब्यांतेवारे स्थिवरे कडं के, संजमथी आवतां कर्म रोकाय, अने तपथी आगलां कर्म पातलां पमी खपे. एम सूत्र नगवती शतक बीजे उद्देशे पांचमे कडं. पनो स्थिवरे तुंगीया नगरोथो विहार कर्यो, अने श्रीमाहावीर स्वामी राजगृही नगरीए पधार्या. त्यां गौतमस्वामी बेलानुं पारणुं वोहोरवा राजगृही नगरीमां पधार्या त्यां फरतां घणा लोकोनो समिपे आ वात सांग. सीके तुंगीयानगरीना श्रावकोए पार्श्वनाथस्वामीना संतानीया साथे तपसंजमनां फल विषे चरचा करी. पडी गौतमस्वामोए श्रावीने श्री माहावीरस्वामीने पुब्युं, तेवारे जगवते कडं के, हे गौतम ! एथर्थ साचो श्रने हुँ पण एमज कहुं. एम श्री पार्श्वनाथजीना संतानीयानां वचन श्री माहावीरनगवंते स्वीकार्या. वली नगवतीजीना अढारमा शतकमां मंगुक श्रावके अन्यमति साथे पंचास्तिकायनी चर्चा करी, थने तेमने खष्ट कर्या. पनी तेणे श्रीनगवंतने श्रावीने बंदणा करी. त्यां जगवते ते श्रा. वकनो प्रशंसा कोधो. ___वली उपाशकदशांगमा कुनकोलीया श्रावके गोशालामती देवताने न्याय चर्चा करोने खष्ट को. पळी नगवंत पधार्या त्यारे तेमने कुंभको. जोयो बंदणा करवा पायो त्यो नगते गौतमादिकना मोंढाकने तेमा Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( २५५ ) प्रशंसा कीधी. तेम श्रार्द्रकुमारना वचननी जगवंते प्रशंसा कीधी होय तो बतावो वली तमे कहोठो के कुमारे विवादमां वचन कह्यां ते जो प्रमाणमां नथी, तो सूत्रमां केम घाल्यां? पण हे देवानुप्रीय ! एवा पाठ तो सूत्रमां घणा बे. जेम जंबुद्धीप पन्नति सूत्रमां जरतमाहाराजा ब खं साधवा गया, त्यारे मागध, वरदाम ने प्रजास तिर्थना देवता उपर बाण मेल्युं, ते वाण देवताना भुवनमां परुयुं, ते देखी देवताए arrai ने वचन कह्यां तेमज उत्तरार्धनरतमां तमसगुफा नेदीने गया पी लेडराजाने वचन कह्यां. ते जंबुद्वीपपन्नतिनो पाठः - तएणं से सर जरदेणं रणा सिठेसमाणे खिप्पामेव दुवालरस जोयलाइ गंता मागद तिचा दिवइस्स नवणंसि विइए. तरणं से मागद तिचा हिवइ देवे जवणंसि सर विश्यं पास २ ता आसूरते रुठे चंमी क्किइ कुविए मिसिमिसेसमाणे तिवलिं निज िमिाले सादरइ श् ता एवं वयासी केसणं जो यस पश्चिय पनिए दुरंत पंत लकणे हि पुण चानदसे दिरि सिरि परिवजिए जिणं ममं इमाए या रुवाए दवा देवहीए दिवाए देवजूइए दिवे दिवाणु जावेणं लधाए पत्ता अनिसमा गयाए उपि प्पु स्सू जवणंसि सर (एस्सरइ तिकट्टु सिहास पान अनुवेश्त्ता जेणेव से एामायं के सरे तेणेव नवागइ‍ ज्ञातं णामायकं सरं गिरहइ २ त्ता सामाकं प्रणुष्पवाए इलामकं प्रणुष्पवाय माणस्स इमे एयास्वे द्यचिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे सम्मुप्पाचा उप्पणे खलु जो जंबुद्दी २ नरहेवासे नरहेणा मंराया चाउरंत चक्कवडी तं जीय मेयं तीय पच्चुप्पण मणा गयाणं मागह तिच्च कुमा Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५६ ) + सिद्धान्तसार राणं देवाणं राण मुवनाणिय करिएत्ता तंगहामिणं अहंपि नरहसरणो नवनाणियं करेमि तिकट्ठ एवं संपेदिर श्त्ता दारं ममं कुंम्लाणिय कम्गाणिय तुम्याणिय वनाणिय आनरणाणिय सरंच णामायकं मागहतिबो दगं च गेण्हश्श् त्ता ताए नक्किगए तुरियाए चवलाए चंमाए व्याए जयणाए नधुयाए सिग्घाए दिवाए देवगइए वीत्तीवयमाणे २ जेणेव नरहेराया तेणेव उवागत्ता अंतलिखपमिवणे सखिखणिय पंचवणा बबाई पवर परिदिए करयल परिगदिय दसणहं सिरसावत्तं मबए अंजली कटु जरदं रायं जएणं विजयणं वधावेश ता एवं वयासी अनिजिएणं देवाणुप्पिएहिं केवलकप्पे नरहेवासे पुरसिमेणं मागह तिबमेराएतं अहणं देवाणुप्पियाणं विसयवासी अहणं देवाणुप्पियाणं आणत्ती किंकरे अहणं देवाणुंप्पियाणं पुरबिमिलेणं अंतवाले तंपमितुणं देवाjप्पिया ममं इम एयारुवं पीयंदाण त्तिकटु हारं मनम कुंमलाणिय कमगाणिय जाव मागद तिबोदगं च उवणे. तएणं से नरहेराया मागदतिबकुमारस्स देवस्स इमेयारुवं पायदाणं पमित्ता मागदतिब-कुमारदेवं सकारे समाणेश्ता पमिविसजे॥ अर्थः-तण तेवारे से ते स० बाण न जरत र राजाए णि मुक्युथकुं खि० उताव_ 3० बार जोजन सुधी गं० जश्ने मा० मागध ति तीर्थना हि अधीपति देवताना न जुवनमां णि पमयु. तक तेवारे से ते मा० मागध तीर्थना हि अधीपति दे० देवता पोताना जा सुवनमां सप बाण णि पम्यु. पाप देखे, देखीने शावकोपायमान Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. ( २५७ ) थयो रु० रुठ्योथको चं० क्रोधेकरी आकरो थयो कु० कोप्यो मि कोधरुप अग्नियो दीपतोथको तित्रण सप्त निनकुटीए णि लीलाटे सा० चमावे, चमावीने ए एम व कहेदा लाग्यो. के० कोण लोग इति संबोधने. या ए बाणनो मुकणहार अ० अप्रार्थीत मरणनो पa वंठणहारो, दुण् माग पं तुब ला लक्षणनो धरणहार, हिप हीणपुन्यो चा० काली बोली तुटती चउदस अमावाशनो जएयो, हि० लाज सिंण शोना पण रहित, जि जे पुरुष म० मारी ३० एवी ए ताजश्यरुप प्रत्यद दीसती दि० दीव्य दे० देवता संबंधिनी रिद्धि दि प्रधान देव देवतानी जूण् जोती क्रांति दे देवता संबंधी दि० देवताना अनुनाग अने महिमाए करीने ला लाध्या प० पाम्या अ० जोगतां प्रत्ये सनमुख आवे एवी रिजिनपर नम्पोतानी थापदाए परनी संपदानो अनिलाषिथको मारा न जुवनने विषे स० बाण णि नाखे . तिम् एतुं कहीने सि सिंहासनथी था नद्यमवंत थको न, नवीने जे जीहां से ते णा नामांकित (नाम सहित) स बाण ते तीहां न यावे, श्रावीने तं० ते णां नामांकित स० बाण गिळ ग्रहे, ग्रहीने गाए नामना कर अणु वांचे. हवे नामना अदर वांचताथका इ० ए ताअश्यरुप हेवो श्र० श्रात्माथी नपन्यो अनिप्राय चि चिंतारुप प०मार्थनारुप म मनने विषे उपन्यो एवो चिंतारुप सं० संकल्प स० सम्यक् प्रकारे न० उपन्यो. ख० [नश्चे नो० इति आमंत्रणे जं० जंबुजीप नामा छीपने विषे जगजरतत्रने विषे नजरतनामे राजा चाण्चार दिशिना अंतनो करणहार च० चक्रवृत (चक्रनो धरणहार ). तं० ते नणी जी० जीत श्राचार ले मे अमारो ती अतित काले थ प० वर्तमान काले के म अनागत् काले थाशे. मामागधतिर्थ कुछ कुमार दे देवतानो राण राजा चक्रवृतने मुग्नेटणुं का करवानो श्राचार लेतं तेन्नणी गण जावं अ० हुँ पण, जा जरत राजाने नानेटणुं क करुं.ति एम कहीने ए० एतुं सम्यक् प्रकारे संग विचारे, विचारीने दाग हैयानो हार मु माथानो मुकुट कुं० कुंमल का कमां तु बाजुबंध व देवदुष्य वस्त्र प्रमुख Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५८) 4 सिद्धान्तसार.. आ० अनेरां पण शरीरनां श्राजरण स० ते वाण पाप नामांकित लइने मा० मागध तीर्थ- द पाणी राज्यातिषेक जोग गे ले, लेश्ने ता ते देवतामां प्रसिद्ध उ उत्कृष्टी विवहार जोग्य गति तु मननी उतावली गति चा कायानी नतावली गति चं क्रोधे कर जेवी उतावली गति ने तेवी ने चालवाना गुणमां निपुण डेक जण अति वेग गतिए चाखे, न शरीरना अवयव कंपावती गति सि० शीघ्र गति दि० प्रधान देश देवतानी बंची गति वी० हीमो हीमो एवी नतावली गति करीने श्रा. वतोयको जे जीहां जानरत राजा ते तीहां उ० आवे, श्रावीने श्रधर आकाशे उन्नो रह्यो थको स० न्हानी घुघरी घमकावतो थको पं० पांच वर्णनां व वस्त्र तथा प० उत्तम प० चीर पहेयाँ जे जेणे एवो का करतल (हाथनां तलां) प० परिग्रहित सहित बे हायना द" दश नख सिप माथे श्रावर्तन करीने तथा म० मस्तके अंग अंजली करीने जा नरत राजाने जा जय वि० विजय शब्द करीने व० वधावे, वधावीने ए० ए व कहे, अ जीत्यो आशा वश कयों देण्हे देवानुः प्रीय ! तमे के केवल कल्प सघ ना जरत केत्र पु० पूर्व दिशे माल मागध तिर्थनी मे मर्यादा लगी श्र० हुँ तमारो विश्वासी देण्हे दे. वानुप्रीय ! तमारा देशनो वि० वशणहार अ० हूं तमारो श्रा० श्राज्ञा कारी किं० (शेवक) चाकर बूं. अ० हूं तमारो दे हे देवानुप्रीय ! पु० पुर्व दिशाना अंग अंत (जेमा) नो पालक, पूर्व दिशाना माणसने नप. व्यादिकनो निवारणहार ढुं. तं० ते माटे वान्डो देव हे देवानुप्रीय। म० मारं ए० एवं पी० (प्रीतीदान) नेटणुं क्यो. ति एवं कहीने हा हार मा मुकुट कुंबे कुंमल का कमांनी जोमी जा जावत् मा० मागधतीर्थ- द. पाणी उ० नेटणुं श्रापे. त० तेवारे से ते ना जरतराजा मा मागध ति तीर्थ कुमारनामे दे० देवतार्नु ३० एवं पी। प्रीतीदान (नेटj) प० ले, लश्ने मा० मागध तिर्थकुमार देवताने सा वचने करी सत्कारे सम्मान सन्मान करे, वस्त्रादिके सन्मानीने उठी उजो थाय प० प्रतिविसर्जे (पोताना स्थानके जवानी प्राज्ञा दे). Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( २५९ ) नावार्थ:- हवे जु मागध तीर्थना देवताए विवादमां कोपथी भरतमहाराजाने एवां वचन कह्यांः एवो कोण बे ? मने कोइ न वान्छे तेनो वांबहार, माग लक्षणनो धणी, तुटती चौदस काली बोली अ मावाश्यानो जल्यो, लज्या लक्ष्मिए करीने रहित. " ए वचन देवताए कलां. एवां वचन वरदाम धने प्रजासतीर्थना देवताए पण कलां ने एवांज वचन म्लेछ राजाए पण कलां, अने ते केवली गणधरे सूत्रमां गुथ्यां. हे देवानुप्रय ! तमारे लेखे तो जरत माहाराजा एवा दीप-पुन्या बे, तेथी देवताए पूर्वोक्त वचन कलां वे, ने गणधरे सूत्रमां गुंध्यां वे. तेवारे तेरापंथी कड़े वे के, “ए तो देवताए कोपमां वचन कह्यांडे, अने देवतानी कड़ेणी गणधरे सूत्रमां गुंथी बे. एतो अपेक्षाये वचन सूत्रमां घाल्यांबे, पण जरत महाराजा तो महा जाग्यवंत बे." त्यारे हे देवानुप्रीय! जेम ए वचन देवताए तथा म्लेच्छ देशना राजाए कोपमां जरत मादाराजाने कह्यां तेवां गणधरे सूत्रमां गुंथ्यां, पण जरत माहाराजा एवा नथी तेम कुमारे पण विवादमां ब्राह्मणोने क के, तमारा सरखा धर्मना द्वेषी तथा हिंसा धर्मना स्थापनहार मंजारा सरीखाने ब्रह्म नोजन दे, तो नारकीमां जाय. ए शाईकुमारे विवादमां वचन कह्यां; तेनुं कहेतुं गणधरे सूत्रमां गुंथ्युं वे ए अपेक्षाय वचन बे, पण श्री तीर्थंकरना साधुनुं उपदेशीक वचन नथी अपेक्षाय उलख्या विना जे करे तेने श्री तीर्थंकरनो चोर कहीये. शाख सूत्र प्रश्न व्याकरणना श्रीजा संवरद्वारमां, दस प्रकारे साच कयुं डे. बार प्रकारे जाषा, सोल प्रकरनां वचन, त्रण लिंग, त्रण काल, एक वचन, द्विवचनादिक सात विनकि, अपेक्षाय वचन, ( नव लिए) स्तुति वचन, ( श्रवशिय) निंद्या वचन, इत्यादिक सोल प्रकारनां वचन उलखीने पती सूत्रनो अर्थ करवो. ( एरिहंताणा) एवो खरिहंतदेवनी श्राज्ञा बे. " तमे अपेकाय वचन जाण्या विना कलां वे, ने वली कड़ो तो के, सूयगकांग सूत्रमां कह्युं बे, के ब्राह्मणोने जमाड्याथी नारकीमां जाय. एवां सूनां जुगं नाम लड़ श्ररिहंतनी श्राज्ञाना चोर केम था हो ? Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६०) + सिद्धान्तसार एवां अपेक्षाय वचन तो सूत्रमा गमगाम जे. जेम सकें भने चमरेंज कोषिक राजानी पके श्राव्या, अने अढार देशना राजा चेमा राजानी पके श्राव्या, त्यां धर्म स्हाज दीधी (दलश्ता) कयुं . ए पण भर्नु तथा राजानु केहेतुं सूत्रमा गुंथ्यु , ने ए पण अपेक्षाय वचन . वली जगवती सूत्र शतक पहेले, श्री पार्श्वनाथजीना संतानिया कालासवेसी. पुत्र-श्रणगारे श्री महावीर जगवंतना स्थिवरने कयुं के, तमे सामायक न जाणो, तथा सामायकनो अर्थ पण न जाणो, इत्यादिक आठ प्रश्न पुरया. पती श्री महावीरजीना स्थिवरे अर्थ बताव्या, त्यार पडी कालासवेसी-पुत्रे प्रतिबोध पामीने कयुं के, ए वचन में पूर्वे जाण्यां नही, सइयां नहिं, प्रतित्यां नहि, रुचव्यां नहिं, इत्यादिक घणा बोल कह्या. पड़ी कह्यु के, हवे में जाण्यां, सांजल्यां, सरदह्यां, प्र. तित्यां, रुचव्यां, एम कडं. हवे जुले ! सामायकादिक आठ बोल जाएया विना तथा सरदह्या प्रतित्या तथा रुचव्या विना श्री पार्श्वनाथजीना संतानीया केम कहेवाय ? परंतु ए अपेक्षाय वचन जे. श्रा स्थिवरोने एवं जाणपणुं , एवं पूर्व को पासे सांजव्यु,जाएयु, सरदह्यु, प्रतित्यु के रोचव्युं नहोतुं; पण ज्यारे स्थिवरे अर्थ कह्यो त्यारे जाएयु के, प्रा स्थिवरोने एवं जाणपणुं बे. हवे जाएयु, सरदयुं, प्रतित्युं श्रने रुच. व्यु, ए स्थिवरनी अपेक्षाये जेवां कालासवेसीए कह्यां तेवां अपेक्षाय वचन गणधरे सूत्रमा गुथ्यां. तेम बाईकुमारे पण ज्यारे ब्राह्मणोए गुरुपणुंजणाव्यु, अने ब्राह्मणोने जमाड्यामां पुन्यनो खंध तथा मोक्षतुं अंग बे एम जणाव्यु, त्यारे बाईकुमारे तेनी कहेणीनी अपेक्षाए तेनो उतर दीधो के, जो एवं सरदहे तो नारकीमांजाय. ए पण गुरुनी बुझे मोकने अर्थे दान देवा पाश्री ना कही , पण अहोयां अनुकंपादाननो प्रश्न नथी. ___ चली तेरापंथी कहे के “ उत्तराध्ययन सूत्रना बौदमा अध्ययः ननी बारमो गाथाथां जगुपुरोहीतने पोताना बेटाए कह्यु के, ब्राह्मणने जमाने तो तमतमाए (सातमी नारकीमा) पहोंचे, एम कडं जे.ए न्याये असे गरीब मागता नीखारी तथा ब्राह्मण प्रमुख सर्व असजतिने अनुः Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (२६१) कंपा लावीने दान दीधामां पाप कहीये बीए." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! यहिं तो पहेलां नगपुरोहीते पोताना बेटाने संजम-तपनी व्याघात करवा वास्ते वेदनो मत बताव्यो बे, तथा घरमा राखवा सारु मि. थ्यात परुप्यु जे. ते बापना अभिप्रायनो उत्तर दीधोने के, हे पीताजी! तमे कयु एम जो सरदहे तो तमतमाए पहोंचे, एम कडं . तेनी शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन चौदमानी गाथा - थो १५ सुधो. ते पाठः अह त्ताय तब मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं क्यासी; इमं वयं वेद विदो वयंति, जहा न होइ असुणाण लोगो.॥॥ अदिक वेए परिविस विप्पे, पुत्ते परिहप्प गिहंसि जाया; नोच्चाण नोगे सह छियादि, आरणगा दोहि मुणि पसत्था. ॥ए। सोयगिणा आय गुणिधणेणं, मोहानिला पळालणा दिएणं; संतब नावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुंच ॥१०॥ पुरोहियंतं कमसोj' पंतं, निमंतयं तंच सुए धणेणं; जद कम्म कामगुणेहिं चेव, कुमारगति पसमिरकवकं ॥११॥ वेया अहिया न. हवंति ताणं, जुत्ता दिया नेति तमंतमेणं; जायाय पुत्ता नवंति ताणं, कोनामत्ते अणुमन्नेज एयं ॥ १२॥ अर्थः-अण् अथ हवे ताण ते पिता त० त्यां (ते अवसरे) मु० जावमुनि ते तेना त तपने वा व्याघातकारी वचन व बोल्या. ३० ए व वचन वे वेदनां वि० जाण व० कहे जे. जण जेम न न होय भ० अपुत्रीयाने लो० परलोक (मोक्ष) ॥॥ अ० ते माटे व० वेद नको, ५० जमामो वि० विप्रने, पु० पुत्रने प० स्थापीने (ग० धरने विषे जा० हे पुत्र ! जो लोगवीने नो लोग स० इ० स्त्री संघाते नुक्त नोगी थश्ने पनी आ० उजाम अटवीमां हो थाजो मु० मुनी प० प्रशस्त नला. ॥ए। सो पुत्रना वियोगनी चिंताथी उपन्यो जे शोक, ते शोक Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६२ ) सिद्धान्तसार रुपी अनिए करो या० आत्माना गुण ज्ञानादिरुप इंधणे करी मो० मोहरूपी वायरथ प० प्रजल्यो (बल्यो ) अ० अधिक तेथी सं० नि वृत जा० अंतःकरण प० सर्व प्रकारे बलतोथको प्रवर्ते बे, ला० अतिशे वचन बोलतोयको प्रवर्ते बे, ब० अनेक प्रकारे ब० घणा लाक्ष्य पादप करतोको प्रवर्ते . ॥१०॥ पु० पुरोहित तं ते बे कुमारने क० अनुक्रमे कतो ( देखा तो ) थको प्रवर्ते वे. नि० मंत्रतोथको तं० ते सु० पुत्रने ० धनेक ज० जेम कवानो पोतानो जाव हतो तेम अनुक्रमे का० कामजोगना जे गुण, ते मनोहर शब्दादिके करी मंत्रतो थको प्रवर्ते बे. कु० ते वे कुमार पुरोहित ( तेना मोहांध पिता ) प्रत्ये प० विचारीने वचन बोल्या. ॥ ११ ॥ वे० वेद ० जण्याथी न० न थाय ता० शरण, तथा जुo जमान्याथी दि० विप्रने पहोंचाने त० नरके जा० जन्मेला पु० पुत्र न० न थाय ता‍ शरण. को० कोण ए तमारुं कथुं दे तात ! ० माने ? ए० एकयुं ते. ॥१२॥ " नावार्थ:- दवे जु ! या पाठमां तो पुत्रना तप संजमनी व्याघात करवा तथा तेने घरमा राखवा वास्ते पहेलांथीज पीताए कयुं के 'दे पुत्र ! जे वेदना जाण मोटा रुषीश्वर ढे ते पण एम कदे बे के, एटलां कार्य कर्या विना मो न याय. ' असूयाण लोगो' अपुत्रियाने गति नथी. " एवां मिथ्यात सूत्रमां जे वचन कह्यां बे, ते वचन पोताना पुत्रने साचां सहावे वे अने अंगीकार करावे बे. वली नवमी गाथामा खोटो मिथ्यात-मार्ग देखाने बे के " हे पुत्रो ! मोक्षमार्गनी बुद्धे तमे वेद जणो, ब्राह्मणोने ब्रह्म नोज यो, fad साथे जोग जोगवो ने पुत्रने घरनो नार स्थापो. पबी मुनीप लइ वनमां विचरतुं ते श्रेष्ठ बे, प्रशंसनीक बे. " एम कयुं. " एटलां कार्य दे पुत्र ! तमे करा. ए कार्य मोहनां साधक बे पढी तमने मुनीपले श्रेय . एटले एटलां कार्य कर्या विना मुनिपणुं लेवुं श्रेय नथी. " एवो निप्राय पिताए पुत्रने जसाव्यो. ए पितानुं केदेतुं सां-जलीने पढी पुत्र बोल्यो के " हे तात ! ए कार्य मुक्तिनां श्रंग बे छाने Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सिद्धान्तसार. ( २६३) ए कार्य कर्याविना मुनिपणुं श्रेय नथी ” एवं जे को सदहे, तेने मिथ्यात्व लागे, अने ते नारकी जाय तो अटके नहीं;" एम कयुं के पण सेहेजे वेद नणे तो मिथ्यात न लागे अने नारकी न जाय. वली संसारने हेते अनुकंपा लावीने ब्राह्मणोने जमाने तो मिथ्यात न लागे अने नारकी न जाय. वली न्हाये धोये धर्म जाणे तो मिथ्यात लागे, पण सहेजे संसारना हेते न्हाये धोये तो मिथ्यात न लागे; कारणके समष्टि-श्रावक पण न्हाय धोय तो जे. ते माटे मिथ्यात न लागे अने नारकीमां पण न जाय. हे देवानुप्रीय ! मिथ्यातने कारणे करी मुक्तिनो हेतु जाणे, ते श्राश्री बापना कह्याना अनिप्रायनो उत्तर दीधो बे. वली शहां तो एम कयु डे के “वेद नएयाथी त्रांण (सरण) नथी, ब्राह्मणोने जमाड्याथी तमतमा पहोंचे, अने जाया पुत्र पण तारवा समर्थ नथी. माटे हे तात ! तमारां वचनने कोण माने ? " एम कडं में; पण एम नथी कडं, के ब्राह्मणोने जमाड्याथी नारकीमां जाय. शहां तो 'जुनादियाशंति तमंतमेणं' एम कडं . णं शब्द तो अलंकारवाची के, भने तमंतमे नाम मिथ्यात् अंधकारनुं बे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन वीसमानी गाथा. ४५-४६-४७ःजे खखणं सुविण पलंङमाणे, निमित्त कोउहल संपगाढे; कुहेम विडा सवदार जीवी, न गब सरणं तंमिकाले.४५॥ तमंतमेणं वउसे असीले, सयादुदी विप्परिया मुवेश संधाव नरय तिरिखजोणि, मोणं विरादित्तु असाहुरुवे॥४६॥ उद्देसियं कीयगढ़ नियागं, नमुंच किंचि अणेसणिज; अग्गीविवा सब नरको नवित्ता इन चुङ गबईकटुपावा४। अर्थः-जे जे वेशधारी ला सामुहिके करी शरीरनां लक्षण पुण स्वमनो विचार प० लोकनी आगल कहेतो प्रवर्ते, नि0 नूमिकंपादिक अतितकाल प्रमुखनुं निमित्त नाषे, को पुत्रादिकने अर्थे स्त्री परथारने एक पोतोपाथी स्नान कराववाने विषे संण्यतिमासक्त, कु० Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६४) + सिद्धान्तसार.. कुमी श्राश्चर्यकारी वि० विद्या मंत्रादिके करी स० पापनी उपार्जन करके करी जो जीवे, ना ते मंत्रादिकथी न पामे स सरण मंत्रादिक साधार जुत न थाय तं० अंतकालने विषे. ॥ ४५ ॥ त अति अज्ञानपणे करी व० अव्य यति (वेशधारी) अण् शील रहित स सदाय उ० पुःखी विण विपरीतपणुं मु० पामे. परलोकने विषे सुख पामवानी श्राशा होय ते उःख पामे. सं० निरंतर जाय न० नरक ति तिर्यंच जोग योनिने विषे. मो० चारित्र वि० विराधीने अ० असाधुरुप. ॥ ४६॥ न० श्राधाकर्मी कि यतिने अर्थे मुले लाव्या होय ते नि नित्य पिंम न० नमुके किंग कां पण श्र० सदोष अग्गी श्रग्निनी परे स सर्व न० नक्षी नथ. स्ने ३० श्हांथो चु० चवीने ग जाय का करीने पा० पाप कर्म ॥४॥ - जावार्थ:-हवे जुर्म ! श्रनाथीजी मुनोराजे श्रेणीक राजाने प. हेला तो अव्य श्रनाथपणुं देखामयुं अने पब नाव अनाथपणुं देखा. मथु के, हे राजन् ! साधुपणुं से शुरू संजम तथा पांच माहाव्रत न पाले, रसनो गृमि थर आधाका दिक थाहार तथा स्थानकनी प्ररु. पणा करे, घणांना घटमां मिथ्यात् घाले, पांच सुमतिने विष जतन न करे, अने घणा काल सुधी मस्तक मुंगावी तप नियमथी जे ऋष्ट थाय, तेने पोली मुंगीनी उपमा दीधी. जेम पोली मुंठीमां कांश नथी. तेम नेख तो साधुनो , पण ज्ञान, समकित अने चारित्ररुपी धन नथी तेने खोटां नाणांनी (काचना कटकानी) उपमा दीधी. ते असंजतिथको सं. जति नाम धरावे एज मिथ्यात्व तेने कालकुट विष सरखो करो. तेने विपरीत शस्त्र आहे तेनी अने अविधे वैतालनो मंत्र जपे तेनी उपमा दीधी. ३०-थी-४४ मी गाथा सुधीमां घणो अधिकार के अने ४५ थी U मी सुधी तो इहां लखी , तेमां कडं डे के, वेशधारी यति स्त्रीपुरुपना लक्षण प्ररुपे अने स्वप्नानो विचार इत्यादिक प्ररुपे तेने ४६ मी गाथामां अज्ञानी, मिथ्यात्वी अने शील (श्राचार) रहित करो.ते सदाय सुखथी विपरीतपणुं पामे, परलोके सुख पामवानी आशा होम त्यां पुःख पामे, अने निरंतर नर्क तिर्यचनी योनीने विषे गाको Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( २६५) चारित्र विराधीने असाधुरुप थाय. हवे जुन ! ४६ मी गाथाना पहेला पदमां तो अज्ञानपणुं तथा मिथ्यात्वपणुं कडं, अने त्रीजा पदमां नर्क तियंचनी गति कही. ए न्याये तंमतमे नाम मिथ्यात्वनुं . तेवारे तेरापंथी कहे डे के, इहां तो तमतमे शब्दे अज्ञानपणुं कह्यु बे, पण मिथ्यात्व कर्वा नथी. तेनो उत्तर हे देवानुप्रीय ! अज्ञानपणुं ने मिथ्यात्वपणुं ए बन्ने एकज जे. ज्यां अज्ञानपणुं त्यां निश्चे मिथ्यात्व में, अने ज्यां ज्ञानपणुं त्यां निश्चे समकित ने. समष्टीमा ज्ञाननी नियमा डे अने मिथ्याअष्टीमां अज्ञाननी नियमा कहो ले. शाख सूत्र नगवती शतक आपमे उद्देशे बीजे. इत्यादिक गमगम सूत्रमा अज्ञान अने मिथ्यात्व एकज कयुं . वली त्रोजा पदमां नर्क तिर्यंचनी गति कही ने श्रने चोथापदमां असाधुरुप कह्या , ते पण मिथ्यात्व आश्री का ३. जे दोषने निर्दोष स्थापे ने असाधुपणानां काम करीने साधुपणुं सदहावे, तेने बेतालीसमी गाथाना पहेला पदमा तमतमे नाम श्रज्ञान मिथ्यात्व आवे. तेथी त्रीजा पदमां नर्क तिर्यंचनी गति कही, अने चोथा पदमां असाधुपणुं कडं. वली वोसमा अध्ययनमा कयु डे के, जे कर्मने वशे दोष लगावे पण स्थापना न करे अने दोषने दोष प्ररुपे, तेने तो निशिथसूत्रमा प्रायश्चित कडं बे; तथा तेने विराधक साधु बठे गुणगणे कहीये; अने तेनी गति तो जघन्य नवनपति-देवतानी अने उत्कृष्टी पेहेला देवलोकनी कही. शाख सूत्र जगवती शतक पहेले उद्देशे बोजे. वली पचीसमा शतकना ग तथा सातमा नद्देशामां 3 नियंग ने पांच चारित्रनो विस्तार बे. त्यां कडं ले के, श्राराधिक होय तो इंजपणुं १, सामानिकपणुं २, तायतिसगपणुं ३, कोटवालपणुं ४, अने अहमिअपणुं ५, ए पांच माहेली हरको पदवी पामे. अने विराधिक होय तो चार जातना देवतामां जाय एम कर्दा डे. वली श्री पार्श्वनाथजीनी २०६ आर्यान तथा प्रौपदीना लारखा (आगला) नवमां सुकुमालीका आदि अनेक साधपणामां दोष लगावीने देवतामां गया कह्या बे; पण विराधिक साधुनी नतिर्यचनी गति . . Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६६ ) सिद्धान्तसार को ठेकाणे कही नथी. सर्वथा ज्ञान, दर्शन श्रने चारित्रथी कुंझरी. कनी पेठे जे नष्ट थाय तेज नर्कमां जाय. तेम इहां ४६ मी गाथाना त्रीजा पदमां नारकीनी गति कही. ते दोषने निर्दोष स्थापे तथा असंजमपणानां काम करीने साधुपणुं सद्दहावे तेथी मिथ्यात्व लागे. ते माटे ४६ मी गाथाना पहेला पदमां तमतमे नाम मिथ्यात्वनुं अने तेथी त्रीजा पदमां नर्कतिर्यंचनी गति कही. वली नारकोमां कोण जाय, ते ४६ मी गाथामां कडं के नद्देशीक मुलनुं श्राएयु, नित्य पिमादिक, ए. षणिक के अणेषणिक कांश पण डोमे नहीं थने अग्निनी परे सर्वनकी थाय, ते पापकर्म करीने दोषने निर्दोष स्थापे ते नर्कमा जाय ते धाश्री जाणवू. जेम वीसमा अध्ययनमां तंमतमे नाम मिथ्यात्वनुं ने तेम ~गुने पुत्रे का, ते पण तमतमा नाम मिथ्यात्व अंधकारनुं जे.ए बापना कदेवाना अनिप्रायनो नत्तर दोधो ले. वली तमतमे शब्द पुरुष लिंगवाची जे. शाख सूत्र अणुयोगहार, एकारान्त, उ कारान्त अने अकारान्त श्यादिक शब्द पुरुषलिंग वाची कह्या जे. ए न्याये तंमतमे शब्दमा एकार अंतमां बे. अने णं अलंकार वाची . ए न्याये तंमतमे शब्द पुरुषलिंग वाची बे, अने नारकी तो स्त्रीलिंग वाची जे. पाठमां पुरुषलिंग वाची शब्दनो स्त्रीलिंग वाची अर्थ शीरीते थाय ? ते माह्या हो ते विचारी जोजो. त्रण लिंग जाणीने पनी अर्थ करवानी नगवंतनी श्राज्ञा जे. त्रण लिंग जाण्या विना अर्थ करे ते लगवंतनी आशा बाहार जे. शाख सूत्र प्रश्नव्याकरणना बीजा संवरछारमां. तमे मतना लोधे तंमतमे शब्द पाठमां पुरुषलिंग वाची ले तेनो नारकी एवो स्त्रीलिंग वाची थर्थ करो बो, ते घणुं अयुक्त . . तेवारे तेरापंथी कहे डे के “ कोश्क नत्तराध्ययनना टवार्थमां ब्रा. ह्मणाने जमाड्या नारकी जाय एवो अर्थ लख्यो . तेथी श्रमे कहीये बीए." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय !अर्थ तो बद्मस्थ श्राचार्यनामनमां जेम नाष्या तेम लख्या . यथा पायचंदसुरीजीए, धर्मसीहजीए, सतसा. गरजीए, दोलतसागरजीए, अन्नयदेवसूरीजीए अने लक्ष्मीवानजीए Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार ( २६७ ) केक पानी टीका तथा अर्थ जुदी जुदी रीते कर्या जे. घणा सूत्रपा. उना अर्थ थने टोका तो सर्व आचार्योए कर्यानो परमार्थ एक सरखो मले , पण कोश्क पाउना अर्थ अने टीकामां परमार्थ न्यारो ने. हवे तमे कया आचार्यना कर्या अर्थ प्रमाण करोडो ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के " दस पूर्वधारीना कर्या अर्थ तो सर्व प्रमाणमां बे, अने बीजा अर्थ तो हमणा योमा कालना कर्या . ते श्राचार्योंने पूर्वनुं ज्ञान नहोतुं, पण ते अर्थ मुल सूत्रना पाठ साथे मले, अने केवलीनां वचन साथे मेलवतां विरुद्ध न पसे तो प्रमाण बे. बाकी पोतपोताना मतना लीधे मनमां जेम नाष्या तेम कर्या, ते प्रमाणमां नथी. जो केवलीनां वचनथी मले तो प्रमाण जे.” तेनो उत्तर, ___त्यारे हे देवानुप्रीय ! नृगु प्रोहितने बेटे ब्राह्मणोने जमाड्याथी तंमतमा पहोंचामे कह्यु, तेनो अर्थ तंमतमे शब्दे नारकीमा जाय. ए अर्थ तमे मतना लीधे प्रमाण केम करो बो? केमके त्यां तो जो गुरुनी बुझे मोहने हेते जाणे तो मिथ्यात्व अंधकारमा पमे, एज अर्थ साचो बे. वली तमे कहो बो के, ब्राह्मणोने जमाड्याथी नारकीमा जाय त्यारे श्रमे तमने पुबोए बोये के, तंमतमे नाम कर नारकोनुं ? तेवारे तेरापंथी कहे के, सातमी नारकीनुं नाम तमतमा बे. त्यारे हे देवानुप्रीय ! परदेशी राजाए पोणा वे हजार गामना हांसलर्नु, मागता जोखारी तथा ब्राह्मणादिकने दानशाला मंमावी दान दीधुं, एम रायपश्रेणी सूत्रमा कडं . ए तमारे लेखे प्रदेशी राजा पण सातमी नारकीमा गयो जोइए. वली अनेक श्रावको जे अनंगद्वारे दान दीधा कह्या ने. ते सर्व तमारी कहे जीने लेखे सातमी नारकीमां गया जोरए. वली तमारा श्रावक न्याती, गोत्री, असंजति, अवृति ने तेने जमाने, गाय मेंस प्रमुख तिर्यंच संजात श्रवृति ले तेने पोषे , तथा मागता नि. खारी ब्राह्मणादिकने अंतकालमा पेटीयादिक दान दे . ते सर्व दान देवावाला तमारा श्रावक तमार। सहाहने देखे तो सातमी नारकीमा जवा जोइए, तेबारे सर्प पीलमा (दरमा) धसतो सीभो पाप तेनी परे Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६८) + सिद्धान्तसार तेरापंथी खीसाणा (शरमींदा) थश्ने कहे के, गुरुनी बुझे मोक्षनो हेतु (धर्म पुन्य) जाणीने श्रापे तो नारकीमां जाय, अने संसारनो हेतुजाणीने आपे तो पण पाप तो लागे, पण सातमी नारकीमां न जाय. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तमारी केहेणीने लेखे जिनमागी तो धर्म पुन्य न जाणे, पण मिथ्यात्वी पहेला गुणगणाना धणी तो, सर्व मागता जी. खारी अने गरीब ब्राह्मणोने दान दीधामां धर्म पुन्य अने मोदनो हेतु जाणे , ते सर्व तमारी श्रद्धानी कहेणीने लेखे तो सातमी नर्कमा जवा जोइए; केमके तमे कहो डो के “सूत्रमा केवलीए कह्यु डे के, ब्राह्मणोने जमाड्यामां धर्म पुन्य जाणे तो सातमी नारकी (तमतमा) मां जाय." त्यारे केवलीनां वचन सत्य , संदेह जुठ नथी. ब्राह्मणोने तथा असं. जति अवृत्तिने दान दीधामां सर्व मिथ्यात्वी धर्म पुन्य जाणे . ते सर्व तो तमारी कहेणीने लेखे सातमीए जाशे. हवे उ नारकी खाली रही, सेमां तमारा साध श्रावक कोण जाशे ते कहो. अहो देवानुप्रीय ! " ब्राह्मणोने जमाड्याथी (तमतमा) सातमी नारकीए जाय. एवा जुग अर्थ करीने अणसमजु जीवोना घटमां घोचा केम घालो हो ? सूत्रमा वासुदेव चक्रवर्ती राज्य पछिमां मरे, तेनी पण सात नारकीनी समचय गति कही; पण एक सातमीमांज जाय एवं कडं नथी. सिंह महादिक हिंसक जीव समचय नारकीमां जाए कह्यु, पण एक सातमीमांज जाय एवं कर्तुं नथी. वली नारकीमा जवानां चार कारण महा आरंनादिक समचय कह्यां. तेनी शाख सूत्र गणायांग गणे चोथे. वली नगवती आदि बत्रीश सूत्रमा एबुं क्यांय पण कडुं नथी, के फलाएं पाप कर्याथी सातमीमांज जाय. त्यारे ब्राह्मणोने जमाड्यां तंमतमा सातमीमांज जाय, एवं एका न्त वचन केवली केम कहे ? माह्या हो ते वाचारी जोजो. इहां तो जूगुप्रोहिते हेला पोताना बेटाने वेदनो मत, तथा बाह्मणोने जमाड्यामां मोदनो हेतु तथा गुरुनी बुद्धीपणुं जणाव्युं . ते बापना केहेवाना अनिमायनो उत्तर दोधो के, तमे कहोबो तेम सहदे तो तंमतमे Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार. ( २६९) नाम मिथ्यात्व अंधकारमा पमे. वली बाह्मणोने जमाड्यां नारकीमा जाय, एवं वीवादवचनमा पापने कहे तोपण ग्रहस्थy वचन प्रमाणमां नथी; अने सूत्रमा तो गणधरे बाप बेटानी कहेगीनी अपेक्षानां वचन गुंथ्यां . ते विवादवचन अने अपेक्षाय वचननो उत्तर. बाईकुमारनी चरचामा लख्या बे. ते रीते जाणवा. वली थार्यकुमारने तो ब्राह्मणोए तथा नृगुना बेटाने नृगु-प्रोहीते पहेलां जीन-धर्मथी दिहाथी प्रणाम उतारखा वास्ते (वेदनो मत) मिथ्यात्वपणुं स्थाप्यु , अने ब्राह्मणोनुं गुरुपणुं जणाव्युं . तथा ब्रह्मन्नोजनमां पुन्यनो खंध, मोक्षनो हेतु, जणावी जिनधर्म निषेध्यो ने. तेथी आकुमारे अने नृगुप्रोहितना बेटाए. ब्राह्मणोने जीनमतना वेषी जाणीने कत्यु के, तमे कहो बो तेम सहहीने ब्राह्मणोने जो जमाने तो तमतमा (मिथ्यात्व अंधकार) मां पहोंचे अने नारकीमा जाय; एवं विवादमां वचन कडं; पण ते ग्रहस्थy विवाद वचन प्रमाणमां नथी. केवली मुनीराजनुं उपदेशीक वचन नीस्पृहिपणानुं नथी. नीस्पृहिपणे उपदेश वचन तो नमिराज रुषीए उत्तराध्ययन सूत्रना नवमा अध्ययनमां कह्यां बे. इंजे ब्राह्मणर्नु रुप बनावीने नमिराजना समकितना पारखा निमित्ते प्रश्न पुरया. ते ब्राह्मणने जमाड्या विषेनो नमिराज रुषीप नत्तर दीधो. ते पाठः-- जश्त्ता विनले जन्ने, नोइत्ता समण मादणे; जुच्चाय जिहाय, त गसि खतिया॥३०॥ एय महं निसामित्ता, हे कारण चोइन ... त नमिराय रिसि, देविंदो इण मबवी ॥ ३९॥ - जोसहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवंदए; तरसावि संजमो सेन, अदितस्स वि किंचणं ॥४०॥ अर्थः-ज जो वि० घणा विस्तीर्ण ज० यज्ञ जो जमामीने सा शाक्यादिक श्रमण मा ब्राह्मशने द" (गायादिक सुवर्णादिक दान) Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७० ) + सिद्धान्तसार. · दक्षणा दइने जु० मनोइझ काम जोग जोगधीने जि० यज्ञ करीने तब् त्यार पढी ग० जाजे तुं ख० दे क्षत्रीराजा ! ३० ए० एम० पूर्वोक्त श्रर्थ नि० सांजलीने दे० जे जे सुखकारी व्यहिंसादिक जेम धर्म तेम जोगादिक जाणवा. इत्यादिक हेतु का० कारणे चो० प्रेर्याथका तप तेजार पी न० नमिराज रुपी दे० शकेंद्र प्रत्ये ५० एम म० बोल्या. ३०. जो० जे कोइ स० दसलाख मा० मासमास प्रत्ये ग० गायनुं दान दे त० एवा दातार होय तेने पण सं० संयम श्रेय होय. श्र० ( गायादिक) देता होय तेने अथवा किं० थेोकुं पण न देतो होय तेने पण संजम जलो. ॥ ४० ॥ जावार्थ:- दवे जु ! इहांतो इंडे सम कितनुं पारखु करवा वास्तें प्रश्न पुढया के, " हे ! नमीराय ! तमे मोटा यज्ञ करीने, ब्राह्मणोने श्रमण शाक्या दिकने जमामीने, दक्षणा दइने, अने मनोश जोग जोगवीने पी दिक्षा लेजो. " तेवारे नमिराज रुषीश्वरे कयुं के दे ! दस लाख गायो महीने महीने दान दे, तेने पण संजम श्रेय बे, अने किंचीत मात्र दान न दे, तेने पण संजम श्रेय बे. ए जुटे ! दानना देणहार ने देहारने वन्नेने संजम श्रेय (जलो ) कह्यो; पण ब्राह्मपोने दान देतुं निषेध्युं नथी. ए नमीराज रुषीनुं वचन श्री केवलीनीपरे निस्पृहपणानुं . हवे जुडे ! जो जीनमार्गमां केवलज्ञानीए श्रसंजति, तिने ब्राह्मणोने दान दीधामां सूत्रमां को ठेकाणे पाप क होत तो, नमिराजरुपी एम कहता के " हे ! हूं तो संजति छातिने ब्राह्मणोने दान देवामां पाप तथा नारकीनुं कारण जाणुं हुं" पण एम नथी कयुं. केमके तमारा सरखी श्रद्धा नमीरायनी होत तो निषेधता, पण तेमनी तमारा सरखी श्रद्धा नहोती; तेथी तेमणे निस्पृहपणे वचन कयुं. ते केवलज्ञानी गणधरे सूत्रमां गुंथ्युं, ते वचन प्रमाण बे, पण कुमारनां तथा नृगुना बेटानां विवाद वचन प्रमा मां नथी. बली यहीं तो ब्राह्मण गुरुनी बुद्धे पुजावे बे, तथा गुरुनी बुद्धे ( मोहने देते ) दान ले बे, तेने धर्मना द्वेषी जाणी गुरुबुद्धे जमा - Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( २७१ ) ज्यामां पाप, मिथ्यात्व छाने नर्कनुं कारण कयुं; पण मागता जीखारी तथा दुर्बलने मरता देखी, अनुकंपा लावीने दान दे, तेमां तो थाईकुमारे तथा नृगुप्रोदितना पुत्रो पण पाप कयुं नथी; वास्ते ए धनुकंपा दाननो प्रश्न नथी. वारे तेरापंथी कदेने के “ मागता जीखारीने अनुकंपा लावीने दान देवामां लगार मात्र पुन्य होय तो, आणंद श्रावके संज तिने दान देवानां पचखाण केम कर्यां ? एवो अभिगृह केम लीधो ? " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! श्राणंद श्रावके मागता जीखारीने अनुकंपा थालीने दान देवाना पचखाण नथी कर्या. बलके आणंद श्रावके तो अनुकंपा दान दीधुं संजवे बे; कारण के लुंगियानगरी प्रमुखना श्रावकोना घणा गुण वखाण्या. ते मध्ये अनंगद्वारे दान देता कह्या, अने “ विबकिय पउरजतपाणा " ज्ञात पाणी खाधा पढी बचे ते बाहार नाखे बे, एवा गुण वखाएया. वली सुयगकांग सूत्रना बीजा श्रुतष्कंधमां समचय श्रावकना गुण ( विरद) वखाण्या, त्यां पण अनंगद्वार वखाएयो बे. ते समचय श्रावको मां श्राणंद श्रावक पण जेलो बे. ते श्राणंद श्रावकने प गद्वार े. ते माटे अनाथ दुर्बलने तो आणंद श्रावक दान देबे; पण “ अन्य तिर्थी, मिथ्यात्व मार्गना स्वामी, जिनमार्गना द्वेषी छाने तथारूप पाखंमीने दान दर्ज नही " एवो सातमा उपाशकदशांगना पहेला श्र ध्ययनमां श्रनिग्रह लीधो बे. ते पाठः तसे खाणंदे गादावइ समणस्स भगवन महावीरस्स अंतिए पंचाणुवतियं सत्तसिका वइयं ज्वालरस विहं सावय धम्मं पविजती २ समणं जगवं महावीरं वदति नमसंति एवं व्यासि:-नो खलु मे ते कप्पइ प्रजप्पनिइ अनियावा अनचिय देवयाणीवा पण चिंय परिगृहियाणिवा चेइयाई वंदित्तएवा मंसित्तएवा. पुर्वि - Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७२ ) + सिद्धान्तसार णालवत्तेणं आलवित्तएवा संलवित्तएवा; तेसिं असणंवा ४ दाउवा अणुप्पदानवा गणब रायानिनगेणं गणानिनगेणं बलाजिनगणं देवानिजगेणं गुरुनिग्गहणं वित्तिकतारेणं; कप्पति मे समणे निग्गंथे फासु एसणिजेणं असणपाणं खाइमं साश्मेणं वन पमिग्गह कंबल पायपुरणेणं पिढ फलग सेज्या संथारएणं उसद नेसकोणं पमिसाने माणरस विदरित्तते तिकटु.॥ . अर्थः-त० तेवारे से ते आ आणंद गा गाथापति स० श्रमण जगवंत म महावीर स्वामोनी अं० समिपे सर्व विचार सांजसीने पं० पांच अणुव्रत स० सात शिक्षावृत (समकित पूर्वक) दु बार वि० प्रकारे सा श्रावकनो ध धर्म प० अंगीकार करे, करीने स० श्रमण जगवंत श्री माहावीर स्वामोने वं० वचने करीने वांदे न मस्तके करीने नसस्कार करे, वांदी नमस्कार करीने ए एम व कहेः-नो नहिं ख० निश्चे मे मुजने नंग हे नगवंत ! क कल्पे अ० आज पढ़ी (समकित पाम्या पनी) अण् अन्यतिर्थीना साधु, गुरु, शाक्यादिक योगी, संन्याति, अन्यलिंगीना साधु अण अन्यतिर्थी संबंधीया देव जैन तिथंकर टाली हरिहरादिक देवता श्र० अन्यतिर्थी संग्रह्या जैनमतिना साधु चे अरिहंतनी आज्ञा विना निकल्या जमाली प्रमुख निनवादिक अव्यक्त तथा एकल विहारी जसनादिक पांच नेदे गुण रहित ढीला पासत्थाने वं वांदवा ण नमस्कार करवो पुरा पहेला अ० अणबोलतां प्रत्ये श्रा० बोलाववा, सं० तेणे बोलाव्या पली पण वारवार संन्नाषण करवं ते परिवाज्याकादिकने धर्म निमित्ते (कर्म क्षयने हेतुए) वांदवा, पुजवा, पंचांग प्रणाम के नमस्कार करवा न कल्पे. ते तेने पूर्वोक्त रीते धर्म पुन्य भर्थे अ असन, पान, खादिम, सादिम ए चार जातनो आहार दाण् देवो प्र० परतिर्थीने वारवार देवो ते मुजने न कल्पे; पण पण एटवु विशेष कार• तीक शेठनी पेरे रा० राजादिकना थाग्रहथी दे तो ग ज्ञातीनी पर Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिदान्तसार (२७) ADUCTEDOMANT वशपणे करीने देनं तो, बबलात्कारे मनुष्यादिकने जोरे देतो, देण्देवतादिकना कारणे. जुतावेष्टितपणे देखें तो, गु गुरु, माता, पितादिकना थाग्रहथी देनं तो श्रने वि० अटवी अथवा पुनिदादि कारणे देवं तो व्रत न लागे. ए श्रागार. हवे का कल्पे मे मुजने स० श्रमण साधु नि निग्रंथने फा० प्रासुक ए० ४२ दोष रहित १० अन्न पा० पाणी (जादादिकनुं) खा खादिम (फलादिक) सा० स्वादिम (मुखवास सवींगादिक) व वस्त्र प० पात्र कं० कांबली पाण पायपुडणुं (रजोहणादिक) पी० पाटीलं फस पुग्नु पाटी से नपाश्रय संग संथारो (दन त्रणां परालादिकनो साथरो) न० रोगापहारी औषध ने जेषज पथ्य प्रमुख साधुने योग्य ग्राह्य वस्तु धर्म वृधिकारी निर्जरा (मोक्ष) ने अर्थे साधु प्रत्ये प० प्रतिलानतो थको विव विचरं ति एम कहे. एवो आणंद भावके श्रनिग्रह लोधो बे. ___लावार्थः-हवे जुन ! श्हां तो “नोकप्पश् श्रजप्पन्नए,” एटखे आज पहेलां मिथ्यात्वपणामां मुजने कल्पता हता, (ए काम करतो हतो ):-धन्यतिर्थीने (सामी सन्यासि तापसादिकने )१. अन्यतिर्थीना देवने (ब्रह्मा विश्नु महेश्वरादिकने)२ अने अन्यतिर्थीए ग्रह्या जैनमतिना चैत्यने (जैनमताना साधु अन्यतिर्थीना जेला थया तेने)३, ए त्रणेने आज पहेलां वंदणा नमस्कार करतो हतो, विना बोलाव्यां बोलावतो हतो, वारं. वार बोलावतो हतो, अलाप सलाप करतो हतो,असनादि चार बहार देतो हतो,तथा देवरावतो हतो ते हवे पडो वां नही, नमस्कार करूं नहि, पहेलां बोलावू नहीं, वारंवार बोलावू नहीं, अलापसलाप करुं नहीं, अने श्रस. नादिक चार अहार देखें नही, देवरावू नही एवो अनिग्रह लोधो. हवे तमे ज्ञानदृष्टी दश्ने जुर्म के बाज पहेलां मिथ्यात्वपणामां थाणंदजी श्रावक मागता नीखारीने वांदता हता, नमस्कार करता हता? के तथारुप अन्यतिर्थीने (मिथ्यात्वना स्वामीने) गुरु करीने मानता हता अने वंदणा नमस्कार करता हता? हवे श्रावकनां व्रत अंगिकार कर्या पहेला, जेने वंदणा नमस्कार करता हता तेनेज बंदणा नमस्कार श्राज पनो. Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४) सिद्धान्तसार, epaper करबा बोज्या; तथा जेने पहेला बोलावता हता तेनेज बोखावतुं गेलं, अलापसलाप करवो बोड्यो, तथा असनादिक चार अहार देता इत्यादि बर्वे करता, ते हवे बोड्या. वली एवा अन्यतिर्थीने दान देवु पमे तो उ कारणे श्रागार जे. ते 'रायानिउगेणं' इत्यादिक उ कारणमा वित्तिकंतारे' एषो पाउ जे. ए पाउनो अर्थ एम ने के, हुं अनाथ उबलने (कतार) अटवीने विषे दुर्निवादि कारणे दान देखें , तेमां जो कोश अन्यतिर्थी दुधातृषातुर पोमाए व्याप्त थको आवी, मागतानी परे मागीने लइ जाय सो देवानो श्रागार जे. एटले मागता निझुकने आणंद श्रावक पण दान ३. ए लेखे अन्यतिर्थी अन्यमतना स्वामीने पण अनुकंपा आणीने तो दान दे बे; पण गुरुनी बुझे नथी देता. - वली मागता निखारी तथा असंजतिने दान देवानां पचखाण कर्यां होय तो, उ बीमीना श्रागारनुं शुं काम डे ? मागता निखारीने मस्ते का राजा, न्यातीला, माता, पिता, बलवंत, देवता, जबरा करीने कहे के, समे एने दान द्यो ? अर्थात् नज कहे. ए तो राजादिक तथा सस अन्यतिर्थीने गुरु करीने माने , तेने वास्ते जबरा करीने पण कहे के, "अमारा गुरुने वंदणा नमस्कार करो, दान द्यो.” एम जबरा करीने सनाविक कहे तो अन्यतिर्थीना मतना मालेकने (मिथ्यात्वीने) वंशा नमस्कार कस्वानो अने दानादिक देवानो आगार . ए पांच तो जब सपणाना आगार , अने गो अनुकंपा आश्रो श्रागार डे के, एज अन्यतिर्थी-मतनो-स्वामी निदादि कारणे अटवीने विषे पुर्बलपणे मागे तो दान देवानो श्रागार जे. ए लेखे अनुकंपा दाननी करणी तो आणंद श्रावक करे , पण “ अन्यतिर्थी मतना-स्वामी धर्मना पो के ते यापुं नहीं" एवो आणंद श्रावके अन्निग्रह लोधो बे; पण पार्षद श्रावकने कांश एवं पचखाण नथो के " हुं असंजतिने आपु नहीं." वास्ते असंजति अने अन्यति मां घणो फेर . अन्यतिर्थी तो ३६३ पा. खंक मतना देखामणहारा, जैनमार्गना द्वेषो, निंदक . तेने भापता वांदतां अलापसलाप करतां जैनमार्गने खघुता सागे, पाखंकमार्ग कोपे Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. अने लोक पण एम जाणे के, आणंद श्रावक एवा माह्या मतां पाखंमी. में माने , त्यारे ए पण कांक श्रावकने वंदनीक पुजनीक दिसे के. एम घशा जीवोने शंका पमे ते माटे अन्यति ने वांदवा, बोलाववा अने माहारादिक देवा, ए त्रण वानां मुक्यां ले. वली जो आणंद श्रावके सर्वथा प्रकारे दान देवू बोमयुं होय तो 'अन्यतिर्थी' एवो पाठ न जो इए, पण असंजति, श्रवृतिने दान दलं नहीं एवो पाठ जोइए. तेमां जीखारी पण नेला श्राव्या, पण एवो पाठ नथी. हवे जेवो आणंद श्रावकनो श्राचार हतो, तेवो १ लाख एए हजार सर्व श्रावकनो एज मा. चार हतो. अन्यतिर्थीना त्रण बोल सर्वने करवा न कल्पे. एत्र बोस तो सर्व श्रावक टाले . ते अन्यतिर्थी मिथ्यात्वना स्वामी श्राश्री, पण मागता निखार तथा पुर्बलने अनुकंपा दान आपे, ते तो पांचमा गुणगणानी करणी . वली तेरापंथी कहे के, मागतानीखारी दुर्बलने, अन्यतिर्थी नही स्यारे शुं स्वतिर्थी गणशो ? तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! साधु श्रावक विना सर्व अन्यतिर्थी , पांच स्थावर पण श्रन्यतिर्थी , धानना दाणा पण अन्यति बे, अने बेडियादिक जाव पण अन्यतिर्थी बे, पण जे गाममां घणा अन्यतिर्थी पाखंमो न होय त्यां साधुए चोमासु रहेवू कडं जे. हवे जो त्यां धानना कण क्रोम बे क्रोम होय तो शुं? क्रोम बे क्रोम अन्यतिर्थी कहेवाशे ? हे देवानुषोय ! दाणा प्रमुख पाच स्थावर, बेई. जियादिक, संक नीखारी, सर्व अन्यतिर्थी , पण आणंद श्रावके प. चल्या तेज अन्यतिर्थी षट्र दर्शनना धण। गणोए. जे वांदवा जोग्य लोकीकमों कहेवाय ले तेने वांदु नहो, बतलावू नही, मिथ्यात्वमा ए काम करतो हतो ते आज पढ़ी करूं नहो. मिथ्यात्व हता तेवारे निकुकने तो वांदता नहोता. ते माया हो ते विचार जो नो. वजी मा. गता जोखारी श्रादि सर्वने अन्यति नेला गणाने टान देवु निषेधे, तेने पुब्बु के, निशिथ सूत्रमा साधुने कत्यु डे के, अन्यतिर्थी वा गृहस्थनो साथे विहार करे, गोचरी जाय तथा तेना नेलो एक जग्यामां Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार रहे तो मासिक प्रायश्चित प्रावे कडं. वली श्राचारांगादिक अनेक सूत्रोमां गम गम अन्यतिर्थीना ला रहे तथा अलाप सलाप करवो वज्यों ने. हवे तमे तो पांच स्थावर शुक्ष्म बादर,त्रण विगजि, माखी महर, चीमी, कंवेमी (होलो), प्रमुख सर्व अन्यतिर्थी गणोडो, अने साध श्रावक टाली सर्व श्रन्यतिर्थीज बे, अने प्रजुए तो एकज रात अन्यतिर्थी नेला रहे तो चोमासो प्रायश्चित कझुं बे. हवे तमे सवाय जाव जीव सुधी जाणी जाणीने अन्यतिर्थी नेला रहोडो. पांच स्थावर शुक्ष्म बादर सर्व जीवने अन्यतिर्थी मानोबो. त्यारे तमारी श्रमाने लेखे तमारा साधुनमा साधपणुं बे के नही ते कहो. . तेवारे तेरापंधी कहे के “ ए तो ३६३ पार्षमी अन्यतिर्थी जे. तेनी संगत कीधे समकितमां शंका पमे, ने श्रलाप सलाप वधे ते आश्री कथु बे; पण सर्व जीव अन्यतिर्थी ले ते श्राश्रो नथी कह्यु. " त्यारे हे देवानुप्रीय! आणंद श्रावके पण ३६३ पाखंमी, अन्यतिर्थी, मिथ्यात्वना स्वामी, तेने वंदणा नमस्कार करवानो तथा आहारादिक देवानो थ. जिग्रह लीधो डे; पण मागता जीखारी आदि सर्व अन्यतिर्थी , तेने अनुकंपा थाणीने दान देवानो (नियम) अनिग्रह नथी लीधो. ए जंगवती सूत्रना त्रीजा पाउनो, बाईकुमारनो, नृगुना बेटानो अने प्रा. एणंद श्रावकनो, ए चारे आलावानो परमार्थ एकज . एतो सर्व अन्यतिर्थी, ब्राह्मणो, मिथ्यात्व मतना मालोक, ते श्राश्री बे; कारणके तेने श्रावक दान आपे तो मिथ्यात्व लागे, परपाखमोनो सांसतो परचो लागे अने प्रलाप सलाप वधे तेथी तेनो निषेध कर्यो; पण रांक, मागता जी. खारी अने पुर्बलने मरता देखीने अनुकंपा शुलजोग आणीने दान दे तेमां पाप कया सूत्रमा कह्यु डे ते बतावो. तेवारे तेरापंथी कहे के “ मागता नीखारी प्रमुखने अनुकंपा थाणीने नंदनमणीयारे दान दी, तेथी देमको थयो." एवां सादृश्य अनार्य वचन बोले . तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! ज्ञाता सूत्रमा नंदनमणीयारनो अधिकार बे, त्यां तो एवो पाठ के अर्थ नथी के, ते दान दीधाथी देमको थ्यो. तमे कया Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. ( २७७ ) सूत्रना पागर्थथी कहो बो ते बतावो. जो दान दीधाथी देमकापर्यु पामे तो प्रदेशीराजा प्रमुख घणा श्रावक दानना देणहारा, सर्व दानना दातार, एवी अशुज गति पाम्या जोइए. वली तमारा श्रावक पण सं. सारने हेते दान देडे, अंतकाले पेटीमा प्रमुख (दान) आपे बे, अने अंतकाले कुतराने ला नाखे बे, ते तमारी श्रझानी केदेणीने लेखे तमारा श्रावक दानना देणहारा सर्व देमकाथाशे अने एवो अशुज गती पोमशे. हे देवानुप्रीय ! मतना लीधे एवां असत्य वचन केम बोलोगे ? ए नंदनमणीयार दान दीधाथी देमकापणुं नथी पाम्यो. एतो मूलथीज साक्षात् मुक्तिमार्ग मुकीने, मिथ्यात्वीउनी संगत कीधी, मिथ्यात्वी थयो, जैन मार्ग उत्थाप्यो भने पछी मिथ्यात्वपणुं न जाण्यु, तेने मु. तिनो हेतु जाण्यो तेथी देमकापणुं पाम्यो. दानथी एवी अशुन गति थती नथी. तमे मतने लीधे एवां सूत्रनां जुगं नाम लश् श्रणसमजु लोकोना घटमां घोचा घालीने एवां कर्म केम बांधोबो ? वली तेरापंथी कहे डे के “ श्रावक संजतिने दान तो दे , पण ते पमिकम्मवा जोग्य , अने पनरे करमादानमां पंदरमुं कर्मादान . जो असंजतिना जरण पोषण कर्या होय तो 'बालोचं पमीकमुं मिलामि दुक' एटले ए दान देवु तेपण कर्मादानमां , ते माटे देवा योग्य नथी." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! इहांतो कर्मादान शब्दनो अर्थ "ए पंदर प्रकारे व्यापार (वृति श्राजीविका) करी जी नहीं "एवो अर्थ . ए पंदर कर्मादाननो तमे खोटो अर्थ करो नहिं." असंजतिर्नु भरण पोषण कीधुं होय" एवो जुगे अर्थ तमे मतना लीधे केम करो को ? सूत्रमा एकज अक्षर जाणी जोइने उनो अधिको बतावे तो श्र. नंत संसारी थाय. तमे ससा उपर अनुस्वारने जजो ए जाणीने बने श्रकर एक बतावीने अनंत संसार केम वधारो गे ? सूत्रमा तो असर जण पोसणया' एवा प्रगट कर जे. एक अदर उंगे श्रधिको बोली तो अर्थनो फेर घणो पमी आय. जेम कुंति पुत्रो युधिष्टिरः' अने बींदुना शालोपथी 'कुति पुत्रो युधिष्टिर' थाय. तमे पाठमां चबो अधिको श्रदर MITTTT--- Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार पोलीने अर्थना अनर्थ केम करोडो ? सूत्रमा कह्या तेम अर्थ केमनी करता ? सूत्रमा तो अर्थ एम के “इंगालकम्मे” कोयला करी वेची तेनो लान ला पोतानी आजीविका करे. ए काम श्रावक न करे, पण सहेजे घर काम माटे लावे तो इंगालकर्म न कहीए. एम यावत् योद बोले करी श्रावक पोतानी आजीविका करे नही. तेम पंदरमो बोली (श्रसइजण पोसणया) हिंसानी बुझे हिंसक जीव कुर्कट, मंजार, सु. कर (मुकर), अने कुकर (कुतरा) इत्यादिकने तथा नामां लेवा माटे दासीने पोधे, तथा स्वार्थने (नोमने) हेते मुखिकाने पोषे, इत्यादिक पंदर कर्मादाने करी पेट जरीए ते कर्मादान कहेवाय. इहां कांश कान देवं ते पंदरमुं कर्मादान डे एम अर्थ नथी.हवे जो दान देतां श्रने अर्स अतिना नरण पोषण करवामां कर्मादान लागे तो श्रावकने सात, प्रत मुलयीज रहे नही, कारण के श्री अरिहंतदेवना सर्व श्रावकोए पमरे कर्मादान (सातमा व्रतना अतिचार जाणीने) त्रिविधे त्रिविधे त्याग्या के. शाख सूत्र नगवती शतक ७ मे उद्देशे ५ मे. ते पाठः' किमंग पुण जे इमे समणोवासगा नवंति तेसिं नो कप्पा इमाइं पनरस्स कम्मादाणाई सयंकरेत्तएवा कारित्तएवा करतंवा अन्नन समणुजाणेत्तएवा तं० इंगालकम्मे १ वणकम्मे २ सामीकम्मे ३ नामीकम्मे ४ फोमीकम्मे ५. दंतवाणिजे ६ लकवाणिये उ केसवाणिवेन रसवाणि ए बीसवाणिचे १० जंतपीलणकम्मे ११ निलंगणकम्मे १२ दवग्गिदावणया १३ सरदहतलाव परिसोसणया १४ असतीपोषणया १५ इच्चे ते समणोवासगा सुक्का सुका' लिजा तिया नवया नविता कालमासे कालं किच्चा अणयरेसु देवलोएसु ग्ववत्तारो नवंति ॥ अर्थः-किंग शुं पु० वली जेजे ३० ए सा श्रमणोपासक Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - + सिद्धान्तसार ( २७९) श्रावक ना होय ते तेने नो न क कल्पे इ० ए वदमाण पण पंदर कर्मना (श्रादान ) हेतु प्रत्ये स पोते करवा अथवा का अनेरा पाले कराववा अने क० करतां प्रत्ये जर्बु जाणवू (अनुमोदq ) तं ते कहे वे.-३० कोयला आदिक अग्निएकरी आजीविका निमित्ते वेपार करवो ते. १ व वन कर्म वन बेदन विक्रयरुप बीज पोषणादिक ते. २ सा० सकटादिक वाहन घमावो वेचे, इत्यादिक ते. ३ ना नामेकरी पारका इत्यने सकटादिकेकरी देशांन्तरने विषे पहोंचामे अथवा बलध उंट जाके श्रापे ते. ४ फोहल कोदाले करी जुमिका दिकनुं फोमवं ते. ५ दं० दांत हाथीनो अने तेना नपलक्षणथी, चर्म, चामर, पुंड, केशादि. कनो वणज ते. ६ ला लादादिकनो व्यापार ते. ७ के केश, वाल, उन इत्यादिकनो व्यापार ते. ७ र मधादि रसनो व्यापार ते. ए वी. विष अने तेना उपलक्षणथी शस्त्रनो (हथियारनो) व्यापार ते. १० जं. जंत्र (संचाए) करी कुत्रादिक पीलवानो व्यापार ते. ११ निवृषन (बाखला) ना वृषण (अंम) डेदन करवानो व्यापार ते. १५ द० दवदेवानी बुद्धिए अग्नि सलगाववानो व्यापार ते. १३ स० सरोवर, अह, तलाव थादिकना पाणी शोषवानो व्यापार ते. १४ अ० दासदासीने जामे देवा अथवा वेचवा माटे पोषण करवानो व्यापार तथा कुकमां मंजारादिक जीवनुं वेपार अर्थे पोषण करवू ते. १५ इतिप्रश्यं. इ० एवं प्रकारे ते ते स० श्रमणोपासक श्रावक सु० शुकल (उजला) जावथी पोताना व्रतने विषे गाढा (अढ) अमरी तथा कृतज्ञ सदाचारना प्रारंजक, सर्व उपर हितना चिंतक, ए का कालना समयने विषे का० काल करीने अण् अनेरा कोइएक दे० देवलोकने विषे देवतापणे ३० उपजे एवा कह्या. नावार्थ:-हवे जुउँ ! हां तो एम कर्दा डे के, श्रमण नगवंत श्री महावीरदेवना सर्व श्रावकोए पंदर कर्मादान त्रिविधे त्रिविधे करी वोमराज्यां . एटले पंदरे कर्मादान सेवे नहि, सेवरावे नहिं अने सेव. ताले ममा पण जाणे नहि. हवे तमे तो कहो लो के, असंजतिना न. Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८० ) 4 सिद्धान्तसार रण पोषण करे तो पंदरमुं कर्मादान लागे. त्यारे तो श्राणंद प्रमुख सर्व श्रावक यारामोसर करता हता, न्याती - गोतीने जमानता दता, गायो, सो प्रमुख तिर्यंचने पोषता दता, अंतकालादिक समये पेटीयां श्रापता हता ने कुतरांने लाऊ नाखता हता, दासदासी घरना टाबर (बोकरां) प्रमुखने पोषता हता श्रने संसारमां बेठा हता तेथी मागता जीखारोने पण दान देता दशे. ए पूर्वोक्त सर्व संजति के संजति ? इत्यादिक संजतिनां चरण-पोषण करवावालामां तमारी श्रद्धाने लेखे पंदरमुं कर्मादान लागे, त्यारे तेमनामां श्रावकपणुं रहे के नहिं ? कारण के साधु जाणी जाणीने साधुपणामां दोष ( अतिचार ) लगामीने जाव जीव सुधी प्रायश्चित न से तो साधप रहे नहि. तेम पंदरे कर्मादान भावकना सातमा व्रतना अतिचार कह्या बे. एवा अतिचार संज तिना भरण-पोषण करवायी जाणी जाणीने लगाने तो तेनुं श्रावकपणुं मने सात व्रत केम रहे ? ते विवेकथी जुई. वली ए कर्मादान एवं नाम केम थयुं ? एवा व्यापारमां पाप घएं बे तेथी तेने कर्मादान अथवा अनार्य वेपार रह्यो, छाने केइक व्यापारमां पाप धोकुं बे तेने खार्य व्यापार को. शाख सूत्र पन्नवणा पद पेहेले. ते पाठः • सेकिंतं कम्मारिया योग विहा पणत्ता तं० दोसिया सुतिया कप्पासिया मुत्तवेत्तीया जंगवेयालिया कोलालिया परवाविणिया जेयावणो तदप्पगारा सेतं कम्मारिया से किंत सिप्पायरिया २ योगविदा पं० तं० तुलागा तंतुवाया पागारा वेयगा वरुमा बकिया कठपांडयारी मुंजपारा बतारा पारा पोबारा लोप्पारा संखारा दंत्तारा नंगरा जिजोगारा सेखारा कोमीगारा जेयावणे तदप्पगारा से तं सिप्पारिया | अर्थः- से० ते कर्मचारजना हे भगवान! केटला जेद ? इति प्रा. उतर. हे गौतम! क. ते कर्मचाराजना अ० अनेक नेद प० पप्पा Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. (२८१) - तं ते कहेजेः-दो कपमाना व्यापार १, स० सुतरना व्यापार २, क० कपास (रु) ना व्यापार ३, मु मोती प्रमुख जवेरातना व्यापार तथा सराफ प्रमुख ४, नं० क्रियाणा विशेषना व्यापार ५, को कांसी प्रमुखना तथा सोनारूपादिक (नांमा) वासणना व्यापार ६, ण नरवावरणिका जातो विशेषनो व्यापार , जे जे अनेरा पण एवा त० तथा प्रकारना श्रारज व्यापार ७, से तेने का आर्य कर्म कहीये. हवे शिल्पना नेद कहे. सेप ते किं० शुं हे नगवान ! सि० शिल्प (विज्ञान विशेष) श्रारज ? ते शिल्प थारजना केटला नेद ? उत्तर. हे गौतम ! सि० शिप श्रारजना. अनेक नेद प० परुप्या तं ते कहेजेः-तु तुनारानो विज्ञान ते श्रारज, तं० वस्त्रना वणनारा, प० पटोलादिकना वणनारा, वेण वेपमनामा को वि० विज्ञान विशेष, ब० क्रियानामा विज्ञान विशेष, का काष्टर्नु विज्ञान, मुं० मुज प्रमुखनुं विज्ञान, बत्री करवानुं विज्ञान, प० चित्रामण करवानुं विज्ञान, पो० पोथी लखवानुं विज्ञान, लोग लेप करवानुं विज्ञान, सं० शंखनुं विज्ञान, दं० दांतनुं विज्ञान, नं० घरवासणादिकनुं विज्ञान, जि० जीच्यारसनुं विज्ञान, से सेल करवानुं विज्ञान, को कोटकारनुं विज्ञान, जे जे एवां अनेरां पण त तथा प्रकारनां विज्ञान, ते सर्व शिल्प आरज जाणवा. से तेने विज्ञान प्रा. रज कहीये. ५. भावार्थ:-हवे जुर्ज ! श्री पन्नवणाजीना पहेला पदमां नव प्रकारना आर्य कह्या, तेमां चोथु कर्म आर्य कयुं तेमां नाणावटी, सुतरीमा, कपास रुश्वाला, इत्यादिकवेपार करी पेट जरे, ते व्यापार श्रार्यमां गण्या. ते वेपारनुं नाम कर्मादान न कहीये. शामाटे के, ए व्यापारमा पाप थोडं बे, ते माटे श्री वीतरागदेवे आर्य व्यापार कह्या; अने पंदर कर्मादान वर्ध्या ते शामाटे के, एवा व्यापारमा पाप घणुं बे. एवा कर्ममां सदाकाल हिंसाथी त्रस जीव हणाय ते माटे कर्मादान कहीये. ए काम करी' पेट नरबुं वज्यु, साचो अर्थ तो ए . वली नगवती तथा उपाशकदशामा सुत्रार्थ जो वांचजो. वली तेरापंथीने पुढीए के, दानमां एबहुं Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४२) सिद्धान्तसार - - शुंजारे पाप के तेने पंदरमा कर्मादानमा लड्ने घायु ? चार कारणे जीव नारकी श्रने तिर्यंचनुं श्रायुष्य बांधे, तेमां पण दान न घाट्यु. ते. मज श्रढार पापमां पण दानने न घाट्यु. वली सुयगमांगना बोजा श्रु. तष्कंधना बीजा अध्ययनमां अधर्मना (पापना) करणहारनां लक्षण व. खाण्यां तेनां मागं लक्षण अनेक प्रकारे वर्णव्यां , तथा अनेक पाप नां कर्तव्य नाम लइ लश्ने वर्णव्यांबे, तेमां पण दाननी करणी कही नथी. वली नारकीना ने रियाने पर्माधामी पाबला नवनां पुःकृत सं. नारीने पीमा देठे. तेमां परदारागमन, जीवहिंसा, चोरी, कपट, पाल, नींदा, प्रमुख कार्य संजारीने वेदना देडे; तेमां पण दानरुपी अधर्म सं. जारीने वेदना देता कह्या नथी. त्यारे इहां वीतरागे एवं नारे पाप दानमां शुं दीडै ? के, दानने कर्मादानमां घाट्युं ? हे देवानुप्रीय ! सूत्रमा तो 'थसजण पोसणया' ए पाउना अक्षर के. एनो अर्थ एम डे के, स्वार्थ हेते हिंसक जीव पोषवा नही अने दासो गुणिकाने कुशील सेवरावी पैसा लेवा नही. एवा वेपारनी आजीविका श्रावके करवी नहीं; तथा घरमा जुवा प्रमुख जानवरोने चुगवा वास्ते कुकमाने पालवां नही. तेमज घरमां जंदर थया होय तेनुं नक्षण करवा माटे बीलामी पालवी नहीं; आदि दुष्ट जानवर स्वार्थ निमित्ते पोषवां नही. __वली ए अनुकंपा दाननी करण अनदिममां तथा कर्मादानमा होय तो कोइ तीर्थकरे, केवलज्ञानीए तथा साधुए, कोइ श्रावकने श्रनुकंपा आणीने दान देवाना पचखाण केम न कराव्या ? कराव्या होय तो पाठ बतावो. वली तमे पण पचखाण नथी करावता. जो दानमा अनदिंम अने कर्मादान जाणे तो साधु पचखाण केम न करावे ? कारण के पापना पचखाण तो साधुए कराववाज कह्या बे, पण जोगाजोग वि. चारे. जेमके कोश् पुरुष साधु पासे श्रावीने कदे के " हे स्वामी ! मुजने अणगएयु पाणी पीवानी सोगन करावो" तो सुखे करावे; पण को कहे के " मुजने बांणोने पाण) पोवाना पचखाण करावो" तो साधु न करावे. शामाटे न करावे ? तमारे लेखे सामी गणवानी हिंसा टली; Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( २८३ ) पण ए जोग पचखाण साधु न करावे. तेम साधु पोताना खावापीवा ना पचखाण करावे, पण अनुकंपा आणीने दानदेवाना पचखाण न करावे; कारण के श्री जनमार्गना श्रावकनी करणी मां दानदेवुं निश्चे दीसे बे, ते माटे ए पचखाण न करावे. तमारी श्रद्धाने लेखे तो अनर्थादंग कर्मादानमां जाणीने ठाम ठाम सूत्रमां ए पचखाण कराववां जोइए; पण श्री वीतरागदेवनी एवी श्रद्धा नहोती. तमे मतने लीधे पहुती कुजुक्ति लगामोटो. वली प्रदेश राजा केशी श्रमण कने धर्म पाम्या पलां मिथ्यात्व (नास्तिक मति) हता, ते दिननां लक्षण वर्णव्यां, तेमां कच्युंके, लोढ़ी खरड्या हाथ रहेढे, दीवीने अदीवी कढेबे, अदीठीने दीवी कहे, इत्यादिक अनेक पापनां कर्तव्य करतो को; पण एम न कर्तुं के, दान दया रूपी पाप करे बे. वली जगवतीजीना पंदरमा शतकमां विमलवाहन राजानां लक्षण वर्णव्यां. तीहां 'श्रमण पिककुल' कह्यो, पण दान देतो दया पालतो कह्यो नथी. वली जंबुद्विप पन्न तिमां वामचिलाया अनार्थ वर्णव्या. ते वर्णनमां पण दान दया वर्णवी नथी. त्यारे हे देवानुप्रीय ! दान दयामां पाप होय तो क्यांकतो वीतरागदेव उपदेश पक्षमां पापमां वर्णव करत; पण वीतरागदेवनी तमारा सरखी श्रद्धा नहोती एम जाणजो. वली तेरापंथी कहे ठेके, " संजति तिने दान देवु क्यां क ?" तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! प्रथम तो श्री तीर्थंकर माहाराजे दान देवानी रीती चलावी बे. पहेलां त्रणसोने श्रव्यासी क्रोम एसी लाख सोनैया वरस दीवस सुधो वरसोदान दइने पछी दीक्षा ले बे. ते संजति तिने दान दे तेमां जो पाप होय तो, ए पापनी स्थिति तीर्थंकरदेव केम राखे ते कहो. तेवारे तेरापंथ कहे बे के "तीर्थंकर तो पड़ेai adil aोग जोगवे बे, राज्य करे बे तथा स्नानादिक अनेक पा पनां काम करे ढे, सेम ए पण पापनुं काम छे." तेनो उत्तर. हे देवानु प्रीथ ! ए जोगादिक तो पूर्व जवना कर्मना उदयनाव (जोगावली कर्म) हे से जोगवे . ए तो अर्थ- पापमां के पण दान देखूं ते कपा कर्मनो Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८४) +सिद्धान्तसार.. उदयन्नाव डे ते कहो. वली ए अर्थ-पापमां ने के अनर्थ-पापमा डे ते कहो भने ए अनर्थ-पाप शी रीते जोगवे ते कहो. तेवारे तेरापंथी को ने के "नगवंत श्री महावीरजीए वरसोदान असंजति अबत्तिने दीधुं तेनुं पाप लाग्युं, तेथी तेमणे बार वरस फुःख दीगं.” जे उपर मतना सीधे एवी खोटी जोमो कीधी , ते ढालनी गाथाः लीश्रामे पाप ने दियामे धर्म, श्राप तो रेह गया कोरारे; ' देवता कनासु ले मीनखांने दोधा, तरे वीरजीने पड़ गया फोमारे. चतुर विचार करीने देखो ॥१॥ . एवी खोटी जोगो करी . "देवताकनेथी सोनैया नगवाने सीधा तेनुं तो पाप लाग्युं, ने मनुष्यने दोधा तेथी धर्म थयुं, तो पण श्राव्या तेम गया अने पोते तो कोराने कोरा रह्या; पण एटबुं विशेष के, देवता कनेथील मनुष्यने दीधा, तेथी जगवानने सामाबार वरस ने पंदर दीवस सुधी बद्मस्थपणामां फोमा पड्या.” एवां अनर्थ वचन बोले . पण जुळ! हे देवानुप्रीय ! श्री महावीरजीए तो दानना फोमा जुगत्या (जोगव्या); पण दान तो अनंता तीर्थंकर थया ते सघलाए दी, ले. तेमज मली. नाथ नगवाने वरसीदान दे दिदा लीधी; पनी सवा पोहोरे केवलज्ञान नपन्यु. ए वरसीदान दीधुं तेना फोमा मलानाथ जगवान क्यारे नो. गवशे ते कहो ? हे देवानुप्रीय ! तमे मतना लीधे प्रजु उपर एवां श्रबतां श्राल केम दो डो? तेवारे वली तेरापंथी कहे के 'ए तो अनाद कालनी स्थिती डे' तो हे देवानुप्रीय ! ए स्थिती पाप जाणीने राखे ले के कांइ शुन्न फल (गुण) जाणीने राखे डे? ए करणी आर्य पुरुषनी ले के अनार्य पुरुषनी । ते कहो. वली तेरापंथी कहे के “श्रा जगतमां थे बोल डे, व्रत ने श्रवत. असंजतिने अने अबतिने दान आपे ए करणी अवतनो डे, माटे व्रतमा ए काम करवू नही. अनुकंपा श्रागोने असंजतिने अतिने दान दे तेमां व्रत निपजे तो संवर निर्जरा थाय, पुन्य बंधाय; पण ब्रत नधी, Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( २८५ ) व्रत बे तेथी पाप लागे." तेनो उत्तर. हे मंगलमूर्ति ! व्रतमां तो ए काम नथी ते सर्व जाणे बे, पण दाननी करणी केम निषेधो हो? ए तो अनुकंपा आणीने दे ते शुभ जोगनी करणी बे, पण व्रत नथी. जेम साधुजी गुरुदेवनी वैयावच करे, थाहार वस्त्रादिक आणी थपे, हाथ पगादि चांपे ाने तेलादिक मसले, ए करणी व्रतन के अत्रतनी ? वली साधु श्रावक गुरुदेवनी सामा जाय, गुरुदेव आव्याथी उना थाय, एकरणी तनी के व्रतनी ? वली साधु श्रावक पांच प्रकारनी सजाय करे, वाया? पुढणार परियटणा३ अणुपेहा ने धर्मकथाएं, ए करणी व्रतनी के अवृत्तनी ? वली श्रावक व्याख्यान सांजले, ए करली त्रतनी के तनी ? ध्यान करे, धर्म उपदेश दे, ए करणी व्रतनी के छात्र तनी ? प मिलेदादिक इत्यादिक अनेक शुभकाम श्रावक करे, तेने व्रतमां गणो के व्रतमां ? जो व्रतमां गणो तो कयुं व्रत निपजे ते कहो, छाने जो व्रतमां गणो तो, तमार। श्रद्धाने लेखे तो एकान्त पाप लागवुं जोइए; कारण के अनुकंपा खाणीने दान दे तेमां तमे कहो बोके, व्रत नथी तेथी पाप लागे. त्यारे पूर्वोक्त गुरु आदिकनी वैयावच करें, सामो जाय, सझायादिक करे, ए पण तमारी कहेणीने बेखे व्रतमां नथी, व्रत, कारण के तमे जगतमां बेज बोल कहो बो, व्रत ने व्रत. ए सफायादिक व्रतां गणो के अत्रतमां ? अ वारे तेरापंथी कहे बे के " ए काम व्रतमां तो नथी, परा शुन जोग निर्जरानी करणी बे, तेथी कर्म निर्जरा थाय, पुन्य प्रक्रति बंधाय. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! अनुकंपा खाणीने दान दे, ते पण शुज जोगनी करणी बे. तेमां निर्जरा थवानो अने पुन्य बंधावानो नाकारो नथी. तमे व्रत त्रतनुं नाम लेइ श्रणसमजु लोकोना घटमां घोचा केम घाली ढो ? वली तेरापंथी कहे बे के “मागता जीखारीने जे कोइ श्रन्नगोगी वस्त्रादिक आपे, तेथे अत्रत वधार्यु.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! मुख्या तृषातुर टाढे मरताने केटलुंक त घटतुं हतुं ते अन्नवस्त्राविक देने वधार्यु." एम तमे कहो तो, पण श्री जगवंते तो निगोदा 66 Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २४५) +सिद्धान्तसार दिक सर्व चोरासी लाख जीवाजोनने त्याग नथी, तेथी चौदे राजखो. कनुं अव्रत सघलाने सरखं खुब्यु कडं जे. वली रांकने तथा चक्रवतादिक राजाने सरखं अव्रत कडं जे. शाख सूत्र नगवती शतक् पहेले उद्देशे नवमे. ते पाठः तेति जगवंगोयमे समर्णनगवं महावीरं वंद नमंस त्ता एवं वयासी सणुणं नंते! सेठियस्सय तणुयस्सय किवणस्सय खत्तियस्सय समाचेव अप्पचकाणं किरिया कवी इंता गोसेठियस्सय जाव अपञ्चकाण किरियाकघर सेकेणठणं नंते एवं वुच्च? गो! अविरइपमुच्च सेतेणठे. णं गोयमा एवंवुच्चर सेठियस्सय तणुयस्सय जाव कधशा अर्थः-लं हे जगवंत ! एवे आमंत्रणे अथवा गुरु प्रत्ये कल्याणकारी वचन कहीने पुढे,नं नगवंत गोतम स० श्रमण (तपस्वी) ज० जगवंत श्री मा० माहावीर प्रत्ये वं वांदे न० नमस्कार करे, वांदी नमस्कार करीने ए एम व कहेता हवा. से ते णु निश्चे जंग हे न. गवान! से श्रीदेवीनी मूर्तीना पाटबंध जेना माथे बांध्या होय एवा शेग्ने, त० रांक दरिजिने, कि कृपण दरिजिने अने ख० कत्रो राजा. ने स० सरीखी चे निश्चे अ० अप्रत्याख्यान क्रिया एटले अप्रत्याखान. थी उपन्यां कर्मबंध रुप कि क्रिया करा लागे ? इति प्रश्न उत्तर. हं हा. गौतम. से० सेठने जाग यावत् श्र0 अप्रत्याख्यान कि क्रिया बागे. एटले श्रेष्टी, दरिधि, रांक अने राजाने सरखी क्रिया लागे . से ते के शा वेग अर्थे नं० हे नगवान! ए एम वु० कयुं ? इति प्रा. उत्तर. गो हे गोतम ! १० श्छा सर्वने ते अव्रती प० श्राश्री. से ते ते तेणे ठे० श्रर्थे गोण हे गोतम! ए० एम वु० कयु के से सेठने तक हरिजिने जा० जावत् का अप्रत्याख्यान क्रिया लागे. लावार्थ:--इवे जुड़े । इहां अन्नतो एक कण अने वस्त्रादिकनो Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( २८७) एक तार मात्र पण न होय एवा मागता नीखार रांक, कृपण, दरिडि, अने चक्रवतादिक राजा, सर्वने जोगर्नु पाप अने परिग्रह तो वपतो घटतो , पण अवतनी क्रिया श्री वीतरागदेवे सर्वने सरखी कही. ते तमे जाणता थका ए पाग्ने बुपावीने “अन्नवस्त्रादिक नथी तेने थव्रत थोमी ने अने अन्नवस्त्रादिक देवावालाए अव्रत वधार्यु." एम मतना लीधे जुटु केम बोलोडो ? तेवारे तेरापंथो कहे के “अवततो वधे घटे नही, सदाय सरखं बे, पण अनुकंपा आणीने अन्नवस्त्रादिक प्रापे, तेथी पापवावाले अव्रत सेवराव्यं कहीये.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! अव्रत तो आश्रव जे. ते श्रावने तमारा तेरछारमा अरुपी कह्यो . तेमां वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श एके नथी अरुपी जे. ते अव्रत (श्ररुपी वस्तुने) सेवरावे शीरीते अने अरुपी वस्तु कोश्ने शीरीते थापी शकाय ? शत्रततो मोहनी-कर्मना नदये अप्रत्याख्याननी चोकमीना जोगथी जीवने माशा, तृष्णा अने अत्यागनावनी लहेरो वर्ते, तेथी कर्म लागे तेने कहीए; अने तेतो पोतपोतानी कनेज . सेवरावी सेवरावाय नही, तेम कोइने आपी शकाय पण नही. तमे मतना लीधे एवी कुयुक्ति केम खगावोगे ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ मागता जीखारी पुर्बल जुखे तरसे अने टाढे मरे तेथी तेनां कर्म कपाय, तेने अनुकंपा आणीने अन्नवसादिक देवावाले कर्म कपातां रोकी राख्यां अने अन्नपान वस्त्रादिक सेववाना जोगर्नु पाप वधार्यु." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय !श्री नगवंते तो पुजल मेलववा चाहतो होय, ने पुल न मले त्यारे घणुं आर्तज्यान करे, तेथी तेने श्रारंज्यादिक पांच क्रिया जबरी कही थने ते वस्तुनो जोग मल्याथी पूर्वोक्त पांच क्रिया पातली कही . शाख सूत्र जगवती शतक पांचमे नद्देशे उठे. ते पाठः• गाहावश्स्सणं नंते ! नं विकिणमाणस्स केश नंडं अवहरेजा तस्सणं नंते ! नंमं अणुगवेसमाणस्स किं आरंजिपा किरियाकब परिग्गहिया किरियाकबइमायावत्तिया Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८८ ) * सिद्धान्तसार.. अपच्चरकाणा मिहादसण ? गो! आरंनिया किरिया.. कवश्परिग्गदियामायावत्तिया अपञ्चकाण किरियाकघश्ः मिन्बादंसए-किरिया सियकयक्ष सियनोकय. अहसे मे अनिसमन्नागए जवई तसे पहा सवान तान पयणुश्नवा - अर्थः-गाण गाथापतिने नं हे नगवान ! नं० क्रियाणा प्रत्ये वि० वेचताथकाने के० कोइएक जनंग प्रत्ये १० चोरे. त० तेने नं० हे नगवान ! नं क्रियाणा प्रत्ये श्र० गवेषणा करताने (जोताने ) किं० शुं? आ० श्रारंचनी कि क्रिया का लागे ? प० परिग्रहनी कि क्रिया को लागे ? माछमायाप्रत्ययनी क्रिया लागे ? अ० अपत्याख्याननी क्रिया लागे श्रने मिथ्या दंसण प्रत्ययनी क्रिया लागे ? गो हे गौतम ! ते नंग गवेषणहारने आ० आरंजनी क्रिया लागे, तेमज प परिग्रहनो मा० मायाप्रत्ययनी अने थ० अप्रत्याख्याननी क्रियातो लागेज; पण मि० मिथ्यादसणप्रत्ययन क्रिया सि कदाचित का जो ग्रहपति मिथ्याअष्टी होय तो लागे, ने सि कदाचित न लागे (सम्यक्झष्टि होय तो न लागे). हवे क्रिया विष विशेष कहे. श्रण अथ हवे जो ते नि कियाएं अनि गवेषणा करतां लाध्युं न होय त तेवार पड़ी (ते साध्या पळी) से ते ग्रहस्थने स० श्रारंजादि जे क्रियानो संचव डे ते सर्व प० पातली न थाय. क्रियाएं लाध्या पळो उध्यम थोमो ते माटे. नावार्थः-हवे जु! हां तो एम कडं के, गाथापतिनुं क्रियाए॒ (जंग परिग्रह) चोरादिक लइ जाय अने गाथापति गवेषणा (शोध) करे, तेवारे आकुलव्याकुल आर्तध्यान जोगादिकनो उद्यम घणो याय. तेथी श्रारंनिया, परिग्रहिया, मायावत्तिया अने अपचखाणीया, ए चार क्रिया तो घणी जबरी लागेज, श्रने पांचम मिथ्यात्वनो क्रिया समकिति होय तेने न लागे, अने मिथ्यात्वी होय तो जबरी लागे. वली जे परिगृहादिक चोर लश् गयो २ ते गवेषणा करतां पातु श्रावी जाय, तेथी शंतोषजाव थाय, आकुलव्याकुल थार्तध्यान मटी जाय, तेवारे वीबाग Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार. (१८९) - देवे पांच क्रिया पातली कही. ए न्याय मागता जीखारी, पुर्बल, जुखतृषा शीतादिकथी पीमीत, श्राकुल व्याकुल थार्तध्यान घणुं करे, अन्नवस्त्रादिकनी गवेषणा करे के “ हे दाता ! कोई अन्न वस्त्रादिक थापो" एम प्राशा सहित गवेषणा करे वचन बोले. ते ज्यां सुधी तेने न मले त्यां सुधी जोगादिकनो नद्यमघणो करे, तेथी आरंजादिकं पांचे क्रीया तेने जबरी लागे; अने दातार छुःखी देखी अनुकंपा आणीने अन्नवस्त्रादिक थापे, तेथी संतोषन्नाव पामे, तेथी ए वस्तुनुं आकुलव्याकुल (आ. तध्यान ) पणुं मटयुं अने जोगनो नद्यम घटयो. तेवारे श्री वीतराग. देवनी कहेणीने लेखे तो श्रारंजादिक पांचे क्रिया पातली लागे. हवे तमे “अन्न वस्त्रादिक देवावाले परिग्रहनुं तथा जोगर्नु पाप वधायु " एम कये न्याये कहोबो ? तमारे लेखे तो गाथापतिनुं धन (अर्नयनुं मुख) चोर लइ गयो, तेथी आरंनादिक पांच क्रिया पातली लागे केदेवी जोइए; श्रने धन (पाप कराववावाj) पाबु श्राव्यु तेथी पांच क्रिया थारंनादिक जबरी लागे कहेवू जोइए; पण नगवंतनी श्रझा तमारा सरखी नहोती. जगवंत तो मुर्गदिक थार्तध्यानथी जोगनो नद्यम घणो होय तेनेज जबलं पाप माने जे; माटे मागता नीखारीने अन्न वस्त्रादिक देइ वार्तध्यान- जबलं पाप टलावे, तेने पाप कये न्याये लागे? माह्या हो ते वीचारी जोजो. वली धान्य, क्रियाणादिक देवु कयु, ते घरमां पम्यु होय त्यां सुधी धान्यादिक क्रियाणानी पांच क्रिया गाथापतिने जबरी लागे कही, अने रुपीया न लीधा तेथी रुपीथानी पांचे क्रिया पातली लागे कही, अने धान्य क्रियाएं लेवावाले नथी लीधुं त्यां सुधी तेने धान्य क्रियाणानी पांचे क्रिया पातली लागे कही, श्रने रुपीया न दीधा त्यां सुधी रुपीयानी पांचे क्रिया जबरी लागे कही; अने धान्यादिक क्रियाएं सेवावालाने तोली दीधुं अने रुपीया लश् लीधा, तेवारे धान्यादिक कियाणानी तो पांच क्रिया पातली कही अने रुपीयानी क्रिया जबरी कही; अने लेवावाले क्रियाएं तोलावी लइ लीधुं, अने रुपीया परखावीने थापी. दीधा, तेवारे क्रियाणानी पूर्वोक्त पांच किया जबरी लागे कही Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार.. अने रुपीया दीधा तेथी रुपीयानी पांच क्रिया पातली कही. ___हवे जुर्ज ! ज्यारे वस्तु घरमा पनी होय, तेबारे ते उपर मुर्ग होय तेथी तेनो जापतो राखवानो नद्यम करे तेवारे पांचे क्रिया जबरी कही; अने श्रागलाने वस्तु आपी दीधी, पोतानी मुर्ग मटी ने जापतोराख. वानो उद्यम मव्यो, तेवारे पांचे क्रिया पातली लागे कही. तेम दातारना घरमां अन्न वस्त्रादिक पड्यां होय त्यां सुधा ते उपर पोतानी मुर्ग ने तेथी पांचे क्रिया जबरी लागे; अने मागता निखारीने पुर्बल दुखीने मुख्या तरसा टाढे मरता देखीने अनुकंपा आणीने अन्नवस्त्रादिक थापे, तेथी पोतानी मुळ मटी तेने श्री वीतरागदेवना वचनने लेखे तो पांचे क्रिया पातली लागे. तमे वीतरागदेवनां वचन नत्थापीने दातारने उखटुं पाप कर रीते लगामो बो? तेवारे तेरापंथी कहे डे के "ग्रहस्थीनां अन्न वस्त्रादिक परिग्रहमां बे. अढार पापनो, वीस बोलनो अने अन्नवनादिकनो त्याग करे तेटयूँ तो व्रत , अने जे राखे ते सर्व शनवसादिकःश्रव्रत-परिग्रहमां ने. ते पोते सेवे तो पाप, बीजाने सेववाने प्रापे तो पाप अने सेवतांने नलुं जाणे तो पाप. ए लेखे दातार मागता नीखारीने अनुकंपा थाणीने अन्न वस्त्रादिक आपे,तेणे तेने अवृत परीग्रह सेवराव्यो कहीये.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! परिग्रहनेतो जगवंते रुपी चोफर्सी कह्यो , श्रने अन्न, वस्त्र, सोनु, रुपुंप्रमुख सर्व पुजलने रुपी पाठफर्सी कह्या ले. शाख सुत्र जगवती शतक बारमे उद्देशे पांचमे ते पाग: रायगिदे जाव एवं वयासी अह नंते ! पाणाश्वाए मुसावाए अदिणादाणे मेहणे परिग्गदेय एसणं कश् वणे कगंधे कश्रसे कइफासे पं.? गो.! पंचवणे दुगंधे पंचरसे चनफासे. अहानंते! कोहेर कोवेश रोसे३ दोसे अकमाए संजलेण६ कलदेश चंडिके नंमणेए विवादे२० एसणं कश्वणे जाव कश्फासे पं? गो.! पंचवणे पंचरसे उगंधे चौ.फासे पं० ॥ अहानंते! माणे मद्दे दप्पे थंने गये अनुकोसे Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. परपरिवाए नकोसे अवकोसे उन्नय जनामे उन्नामे एसणं कइवणे पं.? गो.! पंचवणे जदा को तहेव ॥ अद नंते! माया उवहि नियमि वलए गहणे णुमे कक्के कुरुए जीमे किविसे आयरणया गुहणया वंचणया पलिउंचणया साइजोगेय एसणं कश्वणे पं.? गो.! पंचवणे जदेव कोदे।अह नंते! लोने वा मुना खा गेहि तएहा निळा अनिका आसासणया पत्राणया लालपणया कामासा नोगासाजीवीयासा मरणासा नंदी रागेएसणं कइवणे पं? गो.! जहेव कोदअनंते! पेये दोषे कलदे जाव मिग दंसणसल्ले एसणं कश्वणे? गो. जदेव कोहे तदेव चौ फासे ॥ अर्थः-रा० राजग्रहि नगरीने विषे जाग जावत् गोतम ए० एम कहेले. श्रथ हवे नं० हे नगवान ! पा प्राणातीपात मु मृखावाद अन् श्रदत्तादान मे० मैथुन अने प० परिग्रह ५. ए पांच ए० एने विषे का केटला व० वर्ण का केटला गं गंध का केटला र रस अने क० केटला फा० फर्स पं0 कह्या? इति प्रश्न. नत्तर. गोण्हे गौतम ! ते कर्मने पुजलरुपपणाथी(पुजलात्मक डे तेथी) वर्णादिक होय. एटला माटे पंण्पांच वर्ष कुण्बे गंध पं० पांच रस अने च० चार फर्स (स्निग्ध, रुक्ष, शीत श्रने नष्ण. ४) शुक्षम परिणामी पुजलने होय. कर्म शुक्षम परिणामी डे ते माटे. अ० अथ हवे नंग हे नगवान ! कोहे कर्म उपार्जनहार सामान्यरुप प्रणाम ते क्रोध १, अने को विशेषरुप ते कोप , रोकीधनो अनुबंध ते ३, दो स्वात्म अने परात्मने दोषे ते ४, धापरायो अपराध न सहे ते ५, सं० वारंवार क्रोधरूपी अग्नि बले ते ६,क० मोटा शब्देकरी जुंमा वचन बोले ते , चं क्रोधेकरी रु थाकार करेते, ० दंगादिकेकरी युद्ध करे ते ए श्रने वि० अविनय बोले ते १०.५ हा कसहादिक क्रोधनां कार्य वे ए सर्व एकार्य ने ए० एने विष क Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार केटला वर्ण, केटला गंध, केटला रस, जा० यावत् क० केटला स्पर्श प० का ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम ! पं० पांच वर्ष पं० पांच रस 50 बेगंध ने चौ० चार स्पर्श प० पूर्वे कह्या ते. अ० अथ हवे हे जगवान ! मा० मान प्रणाम नपार्जनहार कर्म. त्यां मान सामान्य नाम मदादिक विशेष नाम वे १, म० मद हर्ष २, द० दर्प ३, थं० नमे नही ४, ग० निःशंकपणुं ५, ० अनेरा पासे गुण कीर्तन करावे ६, प० पराया अवगुणवाद बोले ७, न० पोते पोतानी रिद्धि उपार्जे ८, ० अनिमकरी आत्माने तथा परने कषाय प्रतिभावे ए उ० उंचो जाव ( हंकारे करी) १०, उन्ना० जे श्रावीने नमे तेने गर्ने प्रवर्ते ११० दुष्टपणे नमे १२. ए सर्व मानना बार बोल कह्या. इहां स्थंनादिक माननां कार्य सर्व मानवाचक बे. ए० एने विषे क० केटला वर्ण, केटला रस, केटला गंध छाने केटला स्पर्श प० का ? गो० हे गौतम! पं० पांच वर्ण इत्यादिक ज० जेम को० क्रोधने कला त० तेम कहेवा. ० हवे जं०] हे जगवान ! मा० माया सामान्यपणे नाम उपधि इत्यादिक. तेना जेदः - न० परने वचन ( ठगवा) निमित्ते समीप जाय १, नि० घणो ए दर करी परने उगे २, व० जेने नावे वांकी चेष्टा, वांका वचने बोले ३, ग० श्रगलाने वंचन ार्थे वचन जाल करे ४, ए० परवचन छार्थे नीचो प्रवर्ते, क० मायाए करी अनेराने मारे ६, कु० माया विशेषे नंग कुचेष्टा करे 3 की० परने ( वंचन) ठगवा निमित्ते क्रिया अवलंबे, कि० मायाएकरी नवान्तरे अथवा एज जवने विषे किल विषिथाय ए, प्राण मायाएकरी कांइक वस्तु श्रादरे १० गु० पोतानुं स्वरुप गोपत्रे ११, वं० श्रागलाने उगे १२, १० वंचन अर्थे सरलपणुं करी देखामे १३, सा० रुमा अवने पावा (खोटा ) द्रव साथे जो १४. ए सर्व मायाथी एकार्थ बे. ए० एने विषे क० केटला वर्ण, केटला गंध, केटला रस छाने केटला स्पर्श पं० का ? गो० हे गौतम! पं० पांच वण इत्यादि ज० जेम को० क्रोधने विशे का ते मायाने विषे केदेवा. ० प्रथ दवे जं० दे भगवान ! ब्रोडब्रोज ए सामान्य नाम अने ज्ञादि विशेष १, २० अभिलाष १ सुप Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सिद्धान्तसार.. (२९३) Porani रक्षण अनुबंध ३, कं अप्राप्तिनी वान्ग ४, गे० प्राप्त अर्थने विषे था शक्त ५, त० पाम्या अर्थने विषे तृष्णा न जाय ६, नि विषयतुं ध्यान ७, अ० अढ अनिनिवेश विषय चित्त , आ० मारा पुत्र तथा शिष्यने एम होजो एवी आशीस ए, प० प्रार्थना (इष्ट अर्थनी याचना करे ते) १०, ला लालपाल करीने वारंवार मागे ११, का शब्द रुपनी प्राशा करे १५, जो नोगरुपनी (गंध-रस-स्पर्शनी) आशा करे १३, जी जीवीतव्यनी आशा करे १४, म० को अवस्थाए मर्ण वान्डे १५, नं० स्मृ. जिथकां राग हर्ष ते नंदीराग वाजां विशेष १६. ए सोल ए सर्व लोज वाचक जे. ए० एने विषेनं० हे नगवान ! का केटला वर्ण, केटला गंध, केटला रस श्रने केटला स्पर्श प० कह्या ? इतिप्रश्न उत्तर. गोण हे गौतम! ज जेम को क्रोधने विषे कह्या तेम लोनने विषे पण कदेवा. अ० अथ हवे नं० हे नगवान ! पेण पुत्रादि विषे स्नेह १, दो दोष (अप्रिती)२, का प्रेम हास्य (कलह) जाग यावत् अन्याखान, पैशुन, रतिभरति, परप. रिवाद, मायामोसो मि० मिथ्यात-दर्शन-सत्य इत्यादि पापस्थान. ए एने विषे का केटला वर्ण, केटला गंध, केटला रल अने केटला स्पर्श कह्या ? ए प्रश्न उत्तर. गोण् हे गौतम ! पं0 पंच वर्ष इत्यादि ज० जेम क्रोधना कह्या तेमज चार फर्स अढार पापने विषे जाणवा. नावार्थः-हवे जुर्म ! ए पाठमां तो प्राणातिपात, मृषावाद, अ. दत्तादान, मैथुन अने परिग्रह, ए पांचे रुपी चोफरसी कह्या जे. तेमज क्रोधना दस नेद, मानना बार जेद, माया कपटाश्ना पंदर नेद, लोन. ना सोल नेद, अढार पाप अने आठ कर्म, ए सर्व बोलने रुपी चोफ. रसी कह्या ले. जेम आठ कर्म चोफरसी पुद्गल पोतपोतानी कनेज रहे, पण कोइने श्रापी शकाय नही, तेम पांचमा पाप परिग्रहने पण रूपी चोफरसी कह्यो बे. अन्न, वस्त्र, सोनु, रु' प्रमुख अफरसी पुद्गल जपर मुर्ग ममता होय तेने परिग्रह कहीये. ते रुपी चोफरसी ने ते पोतानो पोतानी कनेज रहे, कोइने आपी शकाय नही. तमे, “परिग्रह रुपी चोफरसी " ए सूत्रनां वचन जाणता थका कहो बो के "मागता Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९४) + सिद्धान्तसार - जिखारीने अनुकंपा श्राणीने अन्नवस्त्रादिक जे आपे, तेणे परिग्रह सेवराव्यो, परिग्रह दीधो;" एवो मतना. लीधे सूत्रनां वचन मरोमी अ. बति परुपणा केम करो को ? वली एज बारमा शतकना पांचमा नहे. शामां अन्न वस्त्रादिकने पुद्गलास्तिकाय कही . ते पुद्गलास्तिकाय रुपी फरसी , अने परिग्रह (पांचमा पाप) ने रुपी चोफरसी कह्यो बे. हवे तमे अन्नवस्त्रादिकने अफरसी पुद्गल जाणतां बतां परिग्रह केम कहो हो ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के “अन्न, वस्त्र, सोनु, रुघु, जे उपर मुळ ममता होय तेने नाव परिग्रह कहीये, अने तेने रुपी चोफरसी कह्यो ले ते तो सेवराव्यो न सेवरावाय; पण सोनु, रुघु, अन्न, वस्त्रादिक अव्य परिग्रह , ते अव्य परिग्रह दातारे सेवराव्यो. "तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! अव्य परिग्रहथी कर्म बंधाय के नाव परिग्रहथी बंधाय ते कहो. जो अव्य परिग्रहथी कर्म बंधाय तो, नरत महाराजने जंबुद्धीपपन्नति सूत्रमा भारीसा-जुवनमां घरेणां कपमां पहेाँ थकां केवलज्ञान उपन्यु केम कहुं ? तथा ऋखनदेव जगवाननी मारुदेवी माताने हाथीने होद्दे बेग, लाखो क्रोमो रुपीयानां घरेणां पहेयाँ थकां, ग्रहस्थपणाना वेषमां केवलज्ञान केम उपन्यु ? वास्ते अव्य परिग्रह कर्म बंधनुं कारण नथी. तेवारे तेरापंथी पण कहे डे के, “कपमां घरेणां उपर मुर्गममता होय तेने नाव परिग्रह कहीये. ते कर्मबंधनुं कारण ले. ते ममता मुर्ग मटी गइ, तेथी जरत महाराजने तथा मरुदेवी माताने केवलज्ञान उपन्यु: श्रने घरेणां कपमा तो अजीव पुद्गल , ते कहेवा मात्र अव्य परिग्रह बे, पण कर्मबंधन कारण नथो. ते कपमां घरेणां अव्रत परिग्रह न कहे। वाय.” त्यारे हे देवानुप्रीय ! मागता जोखारीने अनुकंपा श्राणीने मुर्बा ममता मटवाथी, अन्नवस्त्रादिक अजीव पुद्गल अफरसी दोधा, तेणे परिग्रह (कर्मबंधनुं कारण ते) सेवराव्यो, एम मतना लीधे जुन केम बोलो बो? तेवारे वली तेरापंथी एम कहे जे के "अन्न वस्त्रादिक अजीव पुजल श्रवफरसी दीपा तेने तो तमे पाप नथी मामता पर Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार ( २९५) काचुंधान देने काचुंपाणी पाय तेमां एकीजी जोवनो हिंसानुं तो पाप लाग्यु के नही ?" तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! एकेंडी जीवोनी हिंसानुं तो पाप तमे बताव्युं, पण अनुकंपा शुन जोगथी पंचेंजि जीवना प्राण जता राख्या, तेनुं तमे पाप केम कहो हो ? कारण के ए अनुकंपादि कार्योंमां जेटली हिंसा थाय ते तो पाप खातेज , पण जे जीव उगर्यो तेनो गुण जाणवो. एवा मिश्रस्थानना दाखला सूत्रोमां घणे ठेकाणे डे. जेम चित्तप्रधाने घोमा दोमावीने कपटाइ करीने प्रदेशीराजाने समजा. ववानो उपाय कर्यो, तेथी चित्तप्रधानने अजयणानुं तथा कपटाश्र्नु पाप लाग्युं; पण राजाने समजाव्यो तेनी धर्मदलाली कही डे पण पाप दलाली नथी कही. वली ज्ञातासूत्रमा सुबुद्धि-प्रधाने जीतशत्रुराजाने पाणोनी अजयणा करीने समजाव्यो. तेथी तेने पाणीनी तो हिंसालागी, पण राजाने समजाव्यो तेनुं पाप नथी कडं. तमे, धान कणुंका देश काचं पाणी पाइ अनुकंपा शुन्न जोगथी पंचेजि जीव मरताना प्राण रा. ख्या तेने, नेर्भुज पाप केम कहो हो ? वली तमारी वाणी सांजलीने तमने कोइ रजपुतादिक कहे के " हे स्वामी ! श्रापनी मरजी होय तोधान कणुका अने काचापाणीनो हिंसाना त्याग करावो, अने आपनी मरजी होय तो पंचेपिजीवनी हिंसाना त्याग करावो, बेमांनुं एक त्याग करवाना मारा नाव जे. घj पाप जाणो तेना त्याग करावो.” तेवारे तमे शेना त्याग करावशो ते कहो. तमारी श्रमाने लेखे तो धान कणुका अने काचा पाणीना त्याग कराववा जोश्ए; (घणा जीवनी हिंसा टले माटे) पण जगवंते तो पंचेति जीवनी हिंसामा घणुं पाप कर्वा , नर्कनुं आयुष्य बांधे कयुं बे, कारएके एकिंथी अनंतगणी पुन्या पंचेजिनी वधती बे, तेथी तेमां घj पाप मान्यु, अने श्रावकना पहेला व्रतमां पण त्रस-जीवनी हिंसानो त्याग करवो कह्यो. त्यारे हे देवानुप्रीय ! पंचेजि जीवनी हिंसानुं पाप घणुं इशेतो, पंचेजि जीवने अनुकंपा शुनजोग आणीने तेना प्राण रारूपानो घणो गुण केम नही हशे? माझा हो ते विचारी जोजो. वली अ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र २९६) +सिद्धान्तसार.. - नुकंपा थाणीने दान दे, तेमां श्री वीतरागदेवे तो धर्म अधर्म एके पण कहेवू नथी कडं. शाख सूत्र गणायांग गणे दसमे नद्देशे पहेले. ते पाठ: दस विदे दाणे पंतं० अणुकंपा १ संग्गद श्चेव जय ३ कालुणिएतिय ४ लज्जाए ५ गारवेणंच ६ अहमेपुणसतमे ७ धम्मे अहमेवुत्ते न काहीश्य ९ कयंतिय २० ॥ अर्थः-द० दस वि० प्रकारे दा दान परुप्युं तं ते कहे अ० अनुकंपा (कृपाकरीने दीन अनाथने देवं ते ) १, संग संग्रहदान (कष्टादिकने विषे साज्यने श्रर्थे दे ते) २, ना नयना लीधे दान आपे ते ३, का पुत्रादिकना वियोगने समये दान दे ते तथा मुखांनी पळवामे व. रादिकनुं करवू ते शोकदान ४, लण् घणा जणानी लाजे को दान आपे ते ५, गा गर्वे खरचे ते गर्वदान (नाटकिया महादिने तथा विवाह सादीने विषे आपे ते)६, अ० अधर्मने पोषणहारं दान ते (गणिकादिकने आपे ते), धo धर्मनुं कारण ते धर्मदान (ते सुपात्रे दान) , का मुजने कांइक उपकार करशे एवी बुद्धिए जे दे ते कायीकहितदान ए, अने क० एणे मुजने घणीवार उपगार कीधो डे, माटे हुं पण उशीगण थवा काजे कांशक श्रापुं, एम धारीने दे ते. १० ॥ नावार्थः-हवे श्हां तो दस दान कहां तेमां सातमुंथधर्म-दान कडं. ते पोताना विषय हेते तथा स्वार्थ हेते वेश्यादिकने आपे तेने अधर्म-दान कहीये; अने आग्मुं धर्मदान ते नियाणादिक दोषरहित, चित्त, वित्त अने पात्र शुरू जे साधुने आपे तेने धर्मदान कहीए; अने बाकीनां पाठ शेष रह्यां, तेनां फल विषे श्रीवीतरागदेवे पण मौन राखी, पुन्य पापनां फल एके कह्यां नही, त्यारे आपणने शुं ज्ञान केप्रजना विना कह्यां न्यारां निर्णय करीए ? वली केटलाक इहां पुन्य स्थापे के, केटलाक मिश्र स्थापे , पण ते वीतरागनी आज्ञा बहार ले. वली श्राउमुं दान साधुने देतां पुन्यनिर्जरा रुप लान थाय, पण धरणीकरुषीनो पेरे विषय हेते दे तो अधर्म-दान पण थाय जेम चोरने चोरी करवानी Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७) साज्य (मदद) श्रापे तो श्रधर्मदान कहीए; केमके तेमां पोतानो पण स्वार्थ नेलो ने ते माटे. एम करतां ए चोर बंधणमां पज्यो, तेने दुःखी देखीने अनुकंपा आणीने खानपान थापे तो ते अनुकंपा दान थाय. जेवा पोताना प्रणाम (दान थापतां) होय तेवू दान कहीए. फल पण पोताना प्रणाम शुरू शुद्ध होय तेवां लागे. जेम पात्र तो धर्मरुचि घणा शुद्ध हता, पण नागश्रीना जेवा प्रणाम हता तेवां फल लाग्यां. ते माटे दान, तप, जप, क्रिया अने दया, ए सर्व पदार्थनां फल पोताना प्रणाम पके लागे जे. जेम को अन्नव्य बे, ते साधु नेलो रहे जे अने साधु नेवू खावू पी करे , पण जेवा पोताना प्रणाम होय तेवांज फल लागे . वली साधुनी परे को शुद्ध व्यवहार देखी साधुनी बुझे वांदे तो तेने साधु वांद्यानां फल लागे के असाधु वांयानां फल लागे? एम पोताना प्रणाम उपर घणी वार्ता . बाकोनां आठ दान श्री वीत. रागदेवे एकान्त धर्ममां पण नथी गण्यां, तेम एकान्त अधर्ममां पण नथी गण्यां. ए श्राप दानमा एकान्त धर्म ले के एकान्त अधर्म डे, एम. साधुए कांश पण कहेवू नही, मौन नाव राखवो. ए दान प्रशंसा पण नही अने निषेधवां पण नही.एम जाणवू जे, पागल श्रावके दान दोधांडे तेनांजे फल थयां हशे ते आज पण आपनारने थशे. वली श्री वीरप्रजुना अंतेवासी श्रावके जे कार्य कयाँ, ते जो अनर्थदंग पाप कर्मादान होत तो केम करत ? वास्ते ए करणी निषेधवारुप अथवा पाप कहेवारुप नथी. ए वातनो श्री वीतरागदेवे पण चोखो रोते निर्णय न कर्यो त्यारे आपणने शुं ज्ञान ने ? एनो तो घणो विचार जे. वली सूयगमांग सूत्रना श्रुत्ष्कंध पहेखाना अध्ययन अग्यारमामां सावध दानमां मौन राखतुं कयुं छे, पण पाप कहेQ कछु नथो. ते गाथाः दणंतं पाणु जाणेद्या, आयगुत्ते जिदिए; गणासंति सहिणं, गामेसु नगरेसूवा. ॥१६॥ तहागिरं समारंनं, अलि पुन्नति पोवए: Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - (१९९८) सिदान्तसार अदवा नवि पुन्नंति, एव मेय मह ब्लयं. ॥१७॥ दाणध्याय जेपाणा, हम्मति तसथावरा; तेसिं सारकणछाए, तम्हा अबिति नोवए. ॥ १७ ॥ जेसिंतं जवकप्पंति, अन्नपाणं तदा विहं; तेसिं लानंतरायंति, तम्हा णनितिनोवए. ॥१५॥ जेयदाणं पस्संसंति, वह मिति पाणीणं; जेयणं पमिसेदंति, वित्तियं करंत्तिते. ॥२०॥ दुहन वित्तेण जास्संति, अस्थिवा णस्थिवा पुणो; आयरयस्स हेच्चाणं, निवाणं पानणंतिते ॥१॥ अर्थः-पुर्ववत्. जुर्व प्रश्न बीजो पाने १२ए में. नावार्थ:-हवे जु ! था पाठमां एम कडंडे के, गाम या नगरमां गयाथी साधुने को दाननो अर्थी, श्रद्धावंत ग्रहस्थी तथा राजादिक पुढे के, हे स्वामी ! हुं तलाव कुवादिक खोदावं या सतुकारादि दवें तथा पाणीनी परब बंधावु ? ए अनुष्टानमां पुन्य डे के नहि ? एवी सावध (आरंन कारणी) वाण सांजलीने 'ए अनुष्टानमां पुन्य डे' एम पण साधु न कहे, अने 'तमने पुन्य नथी' एम पण साधु न कहे; कारण के ए बन्ने जाषा महा जयतुं कारण ले. अ. हीयां तेरापंथी एम कहे के, “ जो पूर्वोक्त कार्योमां पुन्य होय तो 'तमने पुन्य थशे' एवं केम न कहे ?" तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! दानने अर्थे त्रस स्थावर हणाय, ते जीवोनी रक्षाने अर्थे साधु एम न कहे के, तमने पुन्य थशे; कारण के साधु एम जाणे के, जो ढुंए परब तथा सतुकारादिक दानने प्रशंसीश तो मारा वचनथो त्रसस्थावर-जीवनी घात याशे, एम जाणीने पुन्य न कहे; पण एम तो नथी कछु के, हे साधु ! " ए दानमां पाप बे, तेथी तुं पुन्य मत कहीश." जेम श्रावक साधुजीना सामा जाय तेमां निर्जरा कही, पण मेह वरसतां सा Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( २९९ ) धुजीने पुढे के, हुं फलाणा साधुजीना सामो जाई तेमां मने शुंफल थशे ? तेवारे साधुजी जवार्नु कहे नही, मौन राखे. हवे गुरु-देवना सामा जवामां (विनयमां) निर्जरारुप लाज जाणे बे, पण जवार्नु कहे नही; कारण के ते एम जाणे के, मेह वरसतां गुरुदेवना सामा जवामां निर्जरारुप लाज कहीश तो मारी नाषा-सुमतिमां कसर ला. गशे, अने जो ना कहोश तो विनय नागशे, एम जाणीने मौन राखे. इत्यादिक सामा श्राववानी, साधु-साधवी वास्ते जग्या, औषध लाववानी, अने उठी नना थवानी आज्ञा मागे तो साधुजी मौन राखे; पण ग्रहस्थने आववा जवानुं कहे नहो. तेम ए सावध-दानमा त्रस. स्थावर जीवनी रक्षाने अर्थे, पोसतुकारमा तमने पुन्य , एम प्रशंसे नहीं; अने मागता नीखारीने अंतराय पमे तेथी, तमने पुन्य नथी, एम पण न कहे. जे ए दानने प्रशंसे तेने उकायनी वधनो वंहार कहीए; अने जे ए पोसतुकार दानने निषेधे तेने मागता जोखारोनी (वृत्ति) आजीवोकानो बेदनहारो कहीए. एम जाणीने साधु ए सावध पोसतुकार दानमां, तमने पुन्य ने अथवा नथी, ए बेमांनी एके नापा न बोले; मौन राखे. वली ए सावध-दानमां मौन राख, कह्यु जे. तेनी शाख सूत्र सुयगमांग श्रुतष्कंध बीजे अध्ययन पांचमे ते गाथा ३३ मी: दरिकणाए पमिदंनो, अबिवा नबिवा पुणो; णवियागरेज मेहावी, संति मग्गं च वदए ॥३३॥ अर्थः-द० दाननो प० प्रतिलानकाले ग्रहस्थने देवा श्रने खेवावालाने लेवा, एवो वर्तमान व्यापार देखी श्र० श्हां पुन्य ने एम न कहे, कहे तो असंजमनी अनुमोदना थाय. वा अथवा न० इहां पुन्य नथी ण एम पण न कहे, कहे तो बति बेद थाय. मे ए कारणे पंमित श्रस्ति नास्ति न कहे. हवे साधु म बोले ते कहे . संग ज्ञान दर्शन चारित्ररुप म मोक्षमार्गनी वृद्धि थाय तेम वुल बोले. जावार्थः-हवे जु ! आ पाठमां पण एम कथु बे के, ए साव Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०) सिदान्तसारे.. धदानमा पुरयां थकां " तमने गुण ने अथवा गुण नथी” एम साधु एके वचन न कहे. बुद्धिवंत साधु तो जेम ज्ञान, दर्शन अने चारित्र वषे तेम बोले. ए बन्ने गमे प्रजुए मध्यस्थ जाव राखवो कहो. पुन्य, पाप के, मिश्र, एके न कहेतां मौन राखवू कडं. तेवारे तेरापंथ। कहे के, पुडयां थकां मौन राखे, पण मनमांशुं जाणे ? तेनो नतर. हे देवानुप्रीय! सूत्रमा प्रजुए जे वस्तुनो परमार्थ कह्यो होय तेज प्रकार कहेवो, अने सूत्रमा ज्यां प्रजुए मौन राखवानुं कर्तुं होय त्यां मौन राखवा; धने मनमांतो एम जाणे के, जेटली अनुकंपा शुलजोग ने तेटलो रुमो पुन्यनो जाग जाणवो, अने जेटली हिंसा अशुनजोग डे तेटलो टुंगो पापनो जाग जाणवो. तेवारे वली तेरापंथी कहे के "पोसतुकारमा तथा सावधदानमांशु. मोगर्नु पुन्य अने हिंसानुं पाप, एबन्ने वात केम श्रद्धोलो ? कांतो पुन्य श्रको के पाप को."तेनो नत्तर हे देवानुप्रीय!साधुने कोइए उघामे मोंडे बोलतां, वायुकायना असंख्यात जीवनी घात करतां नलटनावथी दान दीधुं. तेने शुं थयुं ? धर्म के पाप ते कहो. वायुकायना जीव मुत्रा तेनुं पण धर्म अने उलट जावे दान दधिं तेनुं पण धर्म? के वायुकायना जीव मारीने दान दीधुं तेमां पाप ? तेबारे तेरापंथो पण कहेडे के “वायुकायनी हिंसा थ तेतो पाप, पण उलट नावे दान दो, तेमां हिंसानो जाव नथी तेथी धर्म घणुं . " त्यारे हे देवानुप्राय! ए दानमां पण हिंसाठें तो पाप लागशे, पण शुनजोगनुं अने अनुकंपार्नु पाप केम कहोगे ? ए दानमां हिंसा तो , अने अनुकंपा शुनजोग पण ले. तेथी एकान्त पुन्य अथवा एकान्त पाप, एम एकान्त वचन न कहेवु. तेथीज श्री वीतरागदेवे मौन राखवी कह। जे. वन दान तो अनेक प्रकारना डे. कोश्मा एकान्त मोक्ष हेतु डे १, कोइमा एकान्त नर्क हेतु २, कोश्मां पोतपोताना प्रणाम नपर पुन्य पापना फल ३, अने कोश्मां पात्र कु. पात्र उपर पुन्य पापना फल ले ४, पण दानरुप। समुनो गणधरदेवे पण निकाल नथी कर्यो यतः Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. आकाशे ताराणां संख्या, त्रण संख्याहु महि तले; श्रावणे बिंदुनां संख्या, पात्र संख्या न विद्यते॥॥ स्पष्टार्थ. माटे एम जाणजोजे, एनो विचार घणो ले. श्रीवीतराग वदे ते खलं. वली तेरापंथी कहे ले के, साधु विना पुन्यनुं क्षेत्र क्यांय नथी. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! साधु तो धर्मनुं पुन्य- केत्र डेज तेमां शुं कहेवू ? पण बीजाने दीधाथी पोताना अनुकंपा नावे शुन्न जोगथी। कदाचित गुण थाय तो ना कहेवाय नही. वली साधु विना पुन्यना क्षेत्रनी ना कहे तेने पुढीए के, साधु तो सामोपचीस श्रार्य देशमा बे. तेमां तो नव प्रकारे पुन्य निपजे; पण अनार्य क्षेत्रना लोकोने नव प्रकारे पुन्य निपजे के नहि ? जो निपजे तो केवी रीते निपजे; ? केमके त्यां साधु तो नथी, अने बीजाथी तमे पुन्य मानता नथी. हवे अनार्य देशमां नव प्रकारे पुन्य कर रीते थाय ? त्यां अढार प्रकारे पाप तो निपजे बे, पण पुन्य केटला प्रकारे निपजे ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे डे के " नव प्रकारे पुन्य निपजे एवा तो त्यां (अनार्य देशमां) पात्र नथी; पण मन, वचन, कायाना जोग शुन्न वर्ते, तेथी पुन्य निपजे जे.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! अढार प्रकारे पाप तो सर्व जगतमां बे, पण नव प्रकारे पुन्य एक आर्य-क्षेत्रमा जबे, एवं तमे कया सूत्रथी कहो बो ते पाठ अमने देखामो; अने अनार्य-दोत्रमा त्रण जोग संबंधोया पुन्य बे, शेष नथी ते पण सूत्रपात अमने बतावो. वली तमे कहो बो के, अनार्य-क्षेत्रमा जोग नला प्रवर्ते तेनुं पुन्य डे शेष नथी. त्यारे जोव नगारवाना प्रणाम अने मरताने अनुकंपा आणीने दान देवाना प्रणाम, ए करणीमां कयुं ध्यान, कर लेश्या अने कया प्रणाम ? शुल के अशुन ते कहो. साधुश्रावकना दानमां पुन्य होय तेवू तो नथी; पण अनुकंपा थाणीने उबलने मरता देखीने दान आपे, तेमां शुज जोग डे के अशुन जोगले ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे ले के, “ सावजदान (जीवहिंसा सहित ) मां तो तमे पण मौत राखवी कही कहो बो, पण निर्वधः . Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) 4 सिद्धान्तसार रोटी, शेक्या चणा, सिरणी (मिठाई ) थने प्रासुक (जनुं ) पाणी, मागता जीखारीने अनुकंपा आपने थापे, तेमां कोइ ठेकाणे सूत्रमां गुण कह्यो होय तो बतावो . " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! सूत्रमांतो प्रासुक दानमा तथा अनुकंपा दानमां ठाम ठाम गुण कह्यो बे, पण तमारा सरखा अष्ट- कल्याणीकोनी ऊष्टीमां आवतुं नथी. प्रथम तो ठाणायांग सूत्रना नवमा ठगणाना पहेला उद्देशामां नव प्रकारे पुन्य कच्धुं बे. ते पाठःनव विदे पुन्ने पं० तं अन्नपुन्ने १ पाणपुन्ने २ वचपुन्ने ३ लेणपुन्ने ४ सयणपुन्ने ५ मणपुन्ने ६ वयपुन्ने ७ कायपुन्ने नमोकार पुन्ने एए ॥ अर्थः- न० नव वि० प्रकारे पु० पुन्य पं० परुयुं तं ते कहे :० पात्रने विषे जे अन्नादिक देवं तेथी तीर्थंकरनामादि पुन्य प्रकृतिनो बंध, नेते श्रनेने देवं ते अनेरी पुन्य प्रकृतिनो बंध. १ पा० पाणी पुन्य. २ व वस्त्र पुन्य ३ ले० घर. ४ स० संथारो. ५ म० गुणवंत उपर दर्ष. ६ व० वचननी प्रशंशा ७ का० पर्युपासना (सेवा). ०न० नमस्कार पुन्य उक्तंच. ए. अन्न पानं च वस्त्रं च प्रलयं शयनाशनं श्रुश्रुषा वंदनं तुष्टि, पुन्यं नव विध स्मृतं ॥ १ ॥ जावार्थ:- हवे जुर्ज ! या पाउमां श्री वीतरागदेवे एमतो नथी के, एक साधु दीधे पुन्य बंधाय. यहीं तो समचय कयुं बे के, नदीधे पुन्य, पाणीदीधे पुन्य, जग्यादीधे पुन्य, इत्यादिक नव प्रका रनां पुन्य कांबे. साधुजीने दीघां तीर्थंकर गौत्रादि पुन्य प्रकृति बंधाय, अनेराने दोघे खनेरी पुन्य प्रकृति बंधाय. हवे पुन्यनो बेतालीस प्रकृति छे. तेमां साधुजीने दोघायी तो तीर्थंकरादिक प्रकृति बंधाय ने अनेराने दोधार्थी अनेरी पुन्यप्रकृति बंधाय. शातावेदनी पंचैनी जात, मनुष्यनी गति, मनुष्यनुं आयुष्य, त्रस नाम, बादर नाम छाने प्रजात नाम इत्यादिक पुन्यप्रकृति बधाय हवे तमे कहोटो के ? Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसारः ( ३०१ ) साधु विना बीजा कोइने दोघे पुन्य न बंधाय. त्यारे साधुने दीघां तो तीर्थंकरादिक पुन्यप्रकृति बंधाय एम कहां बे; पण बाकीनी पुन्यप्रकृति केहेने दीघां बंधा ते कहो. वलो तिर्यचनं शुज दीर्घ आयुष्य पुन्यप्रकृतिमांक बे. ते तमारा साधुने दोधाथी उंट, घोमा, हाथी प्रमुख तिर्यंच थाय के बीजाने दीधार्थी थाय ते कहो. तेवारे तेरापंथी पण सोधुं कहेबे के " साधुने समष्टी श्रावक दान थापे, तेथी विमानीक देवतानुं श्रायुष्य बंधाय, तथा शातावेदनी उंच गौत्र इत्यादिक शुन पुन्यप्रकृतिन बंधाय; पण साधुने दीघां तिर्य चनुं श्रायुष्य तो बंधाय नही. " तो हे देवानप्रीय ! जुनं ! ए तियंचादिकनुं श्रायुष्य, इत्यादिक पुन्यप्रकृति अनेराने दीघां बंधाय के नही ? न पुत्रे इत्यादिककेका प्रकारथी बेतालीस पुन्यप्रकृति बंधाय के नही ? न्यारी न्यायकेका प्रकारथी बंधाय एम सूत्रमां कथं दोय तो बता. श्रीं तो टीका तथा टबामां कयुं बे के, साधुने दोधार्थी तीर्थंकर नामादिक प्रकृति बंधाय, छाने अनेराने दीधाथी बेतालीस मांहेली ने पुन्यप्रकृतिबंधाय. साधुनेज दीधे पुन्य बंधाय, अने बीजाने दीघे पुन्य न बंधाय, एवं कोइ ठेकाणे ठाणायांगनी टोकामां अथवा बार्थमांक होय तो बतावो . तमे एवा पुरातन आचार्यनी कीलो टीका तथा बार्थ उत्थापाने कहोटो के "एक साधुनेज दीधां पुन्य बंधाय अनेराने दीघां पुन्य न बंधाय, एकान्त पाप लागे. " एवा मनमां धावे तेवा खोटा अर्थ करीने अनंत संसार केम वधारो हो ? वली साधु विना पण दान देवामां गुण चित्तप्रधाने केशीश्रमण मुनीराज पासे बताव्या बे. तेनी शाख सूत्र रायप्रशेणी. ते पाठः # तं जणं देवाप्पिया पयसीसरन्नो धम्म माइकेबा बहु गुणतरं फलं दोघा. तसं बहुएं समण माहण निस्कूयाणं तंजणं देवाणुपिया पए सिस्स बहुणं गुणत्तरं होया जणवयस्स. १ अर्थ:-- जुन पाने १२२. Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नावार्थः-हवे जुन ! चित्तप्रधान सरीखो श्रावक, जैन मार्गनो तथा नव तत्वनो जाण, तेणे केशोश्रमण मुनीराजकने विनंती करी के, हे स्वामी ! तमे प्रदेशीराजाने धर्म संनलावो तो श्रमण शाक्यादिकने, ब्राह्मणने अने मागता निखारी निझुकने घणो गुण याशे. एम सूत्र पाठमां कडं. हवे श्रमण ब्राह्मण अने निझुकने शो गुण थशे कहो ते कहो. शुं प्रदेशीराजा समज्याथी " श्रमण ब्राह्मण अने निक्षुक तरी जाशे” ए गुण कह्यो के “ राजाप्रदेशी समज्याथी श्रमण ब्राह्मण जिनुकने निदा सहेलाथी मलशे " ए गुण कह्यो ? तमे मतनो कदाग्रह बोमीने विचारो. ए पाउनुं साचुं रहश्य तो एम देखाय डे के, पहेला प्रदेशीराजा नास्तिक मतनो ( मिथ्यात्वि) हतो त्यारे परलोक, पुन्य, पाप मानतो न होतो, तेमज धनने सार जाणीने संचय करतो, पण दान पुन्य करतो नहोतो. तेथी चित्तप्रधाने केशीश्रमणने विनंती करी के, हे स्वामी ! प्रदेशीराजाने धर्म संजलावीने समजावो तो, अव्य अस्थिर जाणे, परलोक, पुन्य पाप माने, अने उदार चित थाय तेथी समण ब्राह्मणादिकने दान थापे, अने ए समण ब्राह्मण जिनुकने निदा सोहेलो मले. ए गुण थाशे एम कडं; पण जो चित्तप्रधाननी तमारा सरखी श्रद्धा होत, ने दान आपवामां पाप मानतो होत तो एम कहेवू जोइए के, हे स्वामी ! राजा प्रदेशी असंजतिने तथा श्रमण ब्राह्मणादिकने दान आपीने पाप करे बे, माटे श्राप तेने धर्म संजलावाने समजावो के, भाजपली असति श्रवृतिने दान आपे नही, ने एवं पाप करे नही,, तेम कहे जोशए; पण तमारा सरखी अशा चित्तप्रधाननी नहोती. तेमज केशीश्रमण मुनीराजनी पण तमारा सरखी श्रद्धा नहोती. जो होत तो चित्तप्रधानने एम केहेत के "हे चीत्त ! तमे अवयं समजाववानी विनंती केम करोबो ? हूं तो समण ब्राह्मणादिकने दान देवामां राजाप्रदेशीने पाप सावीश, के आज पनी एबुं पाप करे नही;" पण केशीश्रमणनो तथा चित्तप्रधाननी दानमा पाप मानवानी तमारा सरखी का नहोती. वसी केशी Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार ( ३०५) मुनीराज पागल प्रदेशीराजा श्रावकनां बार व्रत अंगिकार करी वंदणा नमस्कार करीने घेरे जवा लाग्या, तेवारे केशोश्रमण मुनीराजे कह्यु के "हे राजाप्रदेशी ! तमे हमारी पासे रसीलो धर्म पाम्यागे ते धर्मने विषे रमणिक रहेजो.अरमणिक थशो मत.” पोकु क्षेत्रादिकनां चार अष्टान्त दीधां. पली प्रदेशोराजाए कह्यु के, हे स्वामी ! अरमणिक नही थानं, पण ए रीते रमणिक रहीश. ते रीतमां कडं के, "श्रमण ब्राह्मण अने निकुकने (मागता निखारीने) दान दश्शुं अने श्रावकनां बार व्रत चोखां पालीशुं.” एम केशीश्रमण मुनिराजने कह्यु. ते रायप्रशेणी सूत्रनो पाठः अहणं सेयंविया पामोकाई सत्तगामसहस्साइं चत्तारि जागेकरिस्सामि.एगंनागं वलवादणस्स दवइस्सामि. एगं नागं कोगगारे गेस्सामि.एगं लागं अंतेजरं दलइस्सामि. एगेणं नागं महश्मदा लियं कुमागारसालं करिस्सामि. तहणं बहु पुरिसेहिं दिनत्ति जत्तवेयणेहिं विनखं असण ४ नवकमावत्ता बढणं समण मादण निस्कूयाणं पंथिये पहियाणय परिनायमाणे २ बहुहिं सीलवय पञ्चकाण पोसदो ववासेहिं जाव विदिरिस्सामि त्तिकटु जामेव दिसं पाउनूए तामेव दिसिं पमिगए. तत्तणं परसिराया कलं पाउँ जाव त्तेयस्सा जवंते सेयंविया पामोकाई सत्तगाम सहस्साइं चत्तारि नाए करे. एगनागं बलवाहणस्स दलय जाव कुमागारसाखं करे. तबणं बहहिं पुरिसेहि जाव उवरकमावेत्ता बहूणं समणं माहणाए जाव परिनायमाणे विदर॥ . अर्थः-१० हमणांधीज हुँ से० स्वेताम्बिका नगरी. पा० प्रमुख भादी सम् सात हजार गाम मारां खालसानां बे, च० तेना चार जाग Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्ततार - - - - - जाग का हुं करीश. तेमां ए। एक जाग जाग व हाथी घोमा श्रादिक वाहनने दण्दश्श. ए प्रथम नाग. ए०एक नाग को कोगर (जंमार) बोग निमित्ते मुकीश. ए बोजो नाग. ए एक नाग अंग अंतेनरने द० देश. ए त्रीजो नाग. ए० एक ना नागनी मा घणीज मोहोटी कुछ (कुटागार) दानशाला का मंमावीश. त तिहां ब० घणा पुण् पुरुषने दिए दिधुं जेने जरण पोषणादिक न नात जमणरुप वेतन (चाकरी) से तेनी पासे वि० विस्तीर्ण अन्न, पाणी, खादीम, सादिम, उ० निपजावीने ब० घणा सा श्रमणने (पांच प्रकारना संन्यासी योगीने) मा ब्राह्मणने निनोखारीने पं० पंथी (मार्गे चाले ते) ने प० पहु. णादिकने (महेमानने) प० ए व्हेंचो देशुं. ब० घणा सी० स्वन्नाव, आचार, व्रत प० पचखाण नवकारसी प्रमुख पो पोषध व उपवास साथे जाग यावत् वि० विचरशुं. ति एम कहोने जा जे दिण दिशाथी पा० श्राव्यो हतो ता ते दिशाए प० पालो गयो. त० तेवार पो प० प्रदेशीराजा का काल पा प्रजात थयो जा जावत् ते तेजे करी जग जाज्वल्यमान सूर्य नग्यो. से स्वेतांबिका नगरी पा प्रमुख सण सात सहस्त्र गांम प्रत्ये च० चार ना० नाग क करे, करीने ए० एक नाग व हाथी, घोमा, रथ, निमित्ते द० दे, जा जावत् पूर्ववत् दानशाला का करे. ता तीहां ब० घणा पु० पुरुषने जाग यावत् अस्नादिक चार अहार उ० निपजावीने ब० घणा स० संन्यासी योगी प्रमुखने माग ब्राह्मणने जा जावत् प० निदाचरादिकने वहेचीदेतोथको वि० विचरे ने. जावार्थ:-हवे जु!श्रा पाठमां तो एम कडं वे के, हे स्वामी ! मारे सात हजार गाम खालसानां डे तेना चार नाग करीश. तेमा एक जाग तो हाथी घोमा निमित्ते, एक नाग राणा निमित्ते तथा एक जाग खजाना निमित्ते राखीश, अने एक नाग समण शाक्यादिक, ब्राह्मण तथा मागता निखारीने दान देवा निमिते राखो अस्नादिक चार आहार निपजावीने दांन दश्श तथा श्रावकनां बारे व्रत चोखां पाली; पण अरमशिक नही थावं. ए बे बोल दान अने व्रत रमणिक Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १०७ ) पणामां बताव्या. हवे जुन ! हाथी घोमाने आागल पण पोषतो हतो, राणीने पण पोषतो हतो ने खजानामां पण नाखतो हतो. ए त्रण काम तो आागल ज्यारे नास्तिक मतमां ( मिथ्यातपणामां) हतो त्यारे पण करतो हतो ने पहेलां परलोक, पुन्य पाप नहोतो मानतो तेवारे दान न देतो देखाय ते. तेथी चित्तप्रधाने केशी श्रमण मुनिराजने क के, दे स्वामी ! तमे प्रदेशीराजाने समजावो तो समण, माण, जि. हुकने जिंका सोहेली मले. ए लेखे पहेलां निखारोने दान नहोतो देतो एम जणाय बे. ए काम तो राजाप्रदेशीए धर्ममां समज्या पढी कर्यु जाय बे; कारण के धनने अस्थिर जाली उदार चित्ते पांचमा गुणगणानी करणी जाण दान दीधुं छे. ते गुण जाएया विना एवं पाप केम करे ? माहा हो ते विचारी जो जो. वली आठमा व्रतमां अनर्थ दक पाप करवाना राजाप्रदेशीने त्याग बे. जो दान देवामां पाप होय तो राजाप्रदेशी धर्ममां समज्या पठी पाप केम करे ? हाथी घोमाने पोषवा, राणीने पोषवी ने खजानामां धन नाखवुं, ए त्रण कामतो गल पण करतो हतो, अने एतो अर्थ- पापमां बे; पण दान देवामां पाप होय तो, राजाप्रदेशी धर्ममां समजीने ए अनर्थादं पाप जासीने नवं केम करे ? ए जालीने अनर्थदम पाप करे तो तेनुं श्रग्मुं व्रत केम रहे ? माया हो ते वोचार जो जो. तुं वली पलांथीज केशी श्रमण मुनीराजे कथं के, हे प्रदेशीराजा ! मलिक या मत. तेवारे राजाप्रदेशीए कयुं के, हुं श्रमण, ब्राह्मण, मागता निखारीने दान दश; लीधां व्रत चोखां पालीश छाने रमकि थइश नही. ए वे बोल केशीश्रमण मुनीराजना मोढा आगल रुबरुमां कह्या; पण केशीभ्रमण मुनीराजे तेने वज्यों नहि. तमे देतु द्रष्टांन्त कुयुक्ति मेलवीने लोकोना हृदयमांथी दाननो श्रद्धा काढोबो, तेम जो केश श्रमण मुनीराजनी दान देशमां पाप मानवानी श्रद्धा होत तो, अयार प्रष्टान्त गल दीधा तेम एक इष्टांन्त वली देत के.. हे लंका ! धर्म पामने आागलनुं पाप ढोमे वे तो ए दान देवानुं न Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०८ ) + सिद्धान्तसार.. % अनर्थ पाप केम करे ? वसी तमे कहोगो के, “देती सेती वेला मौन रहेवं, ने पनी पाप उसखावी देवू.” तो हे देवानुप्रीय ! ज्यारे केशील. मण मुनीराजने प्रदेशीराजाए दान देवा बाबतमा निवेदन कर्यु, ते वखते राजा केहेने दान दश रह्यो इतो अने कोण लश् रह्यो हतो के मेथी श्री केशीश्रमण मुनीराजे निषेध न कर्यो ? पण एम जाणजो के, श्री जैनमार्गमा प्रत्यक्ष अने परोक्ष पूर्वोक्त दान विषयमा मुनीए मध्यस्थ रहे. जो एम न होय तो एटलां अष्टान्त आप्यां तेम एक अष्टान्त वली दश्ने दान देवामां पाप केम न सरधाव्यु ? पण जाणजो जे श्री. वीतरागदेवनी, केशीश्रमण मुनीराजनी अने प्रदेशीराजानो तमारा सरखी श्रझा नहोती के, दानमां पाप मानी निषेधे. वली तुंग्या नगरनीना श्रावक परमविवेकी, जैन मार्गना जाण, प्रजुना हस्त दिक्षित लघु पुत्रसमान, तेमनो आलावो वर्णव्यो; त्यां दान आश्रीत्रण आलावा कह्या जे. तेनी शाख सूत्र जगवती शतक बीजे नद्देशे पाचमे. ते पाठःतेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगियानामं नयरी दोबावणन. तीसेणं तुंगियानयरीए बदिया उत्तरपुरनिमे दिसि नाग पुप्फवश्एणामं चेइए होडा वणन. तबणं तुंगियाएनयरिए बहवे समणोवासगा परिवसइ अढा दित्ता वित्रिण विपुल जवण सयणासण जाण वादणाणा बहु धण बहू जाय रुवयवया आग पनग संपत्ता विडिमिय पउर जत्त पाणा बहुदासि दास गो मदिस गवेलग प्पप्पनूया बहु जणस्स अपरिनूया. अभिगय जीवाजीवा नवलद पूणपावा आसव संवर णिधर किरिया दिगरण बंध मोक कुसला र असदेद्या देवासुर नाग सुवण जकरकस्स किन्नर किंपुरुष गरुलगंधव मदोरगादिएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणकमणिद्या निग्गंपावयणे निस्संकिया : Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( ३०९) निकंखिया निवित्तिगिना बघता गहियहा पुछियहा अनिगया विणबियहा ॥ ५॥ अहि मिंजपेमाणू रागरत्ता अय माउसो निग्गंबे पावयणे अहे अयं परम सेसेअपहे ओसियफलिहा अवंगुय-वारा चियत्तं तेउर परघर प्पवेसा बदुहिं सीलवय गुणवय वेरमणं पच्चरकाण पोसहोववासेटिं चानइस मुहिछ पुणमासिणिसु पनिपुणं पोसहसम्म अणूपालेमाणा समणे निग्गंथे फासु एसणियेणं असणं पाणं खाश्मं साश्मेणं वन पडिग्गह कंबल पायपुत्रणेणं पीढ फलग सेजा संथारएणं उसह नेषजेणं पमिलाने माणा अदा परिग्गदिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं लावे माणे विहर॥ अर्थः–ते ते काले (अवसर्पणी चोथा श्राराने विषे) ते ते स समयने विषे तुं० तुंग्यानामे न नगरी हो हती. तेनुं व० वर्णन चंपानी परे जाणवू. ती ते तुंग तुंग्यानगरीनी ब० बाहार न उत्तर पूर्वनी वच्चे इशान खुणने विषे पुण् पुष्पवतिनामे चे चैत्य (यहाय. तन) हो इतुं. व तेनुं वर्णन चंपानगरीनी परे जाणवू. ता त्यां तुंग तुंग्यानगरीने विषे ब० घणा स० साधुना शेवक प० वसेजे. अण् धनधान्यादिके परिपूर्ण दिण् दीपता वि० विस्तार सहित वि० घणा न जुवन (घर) स० शयन, श्रासन जा गामां वा० वाहन, घोमा, आदि ब० घणा ध० धनादिक ब० घणुं अपघमयुं सोनुं रु' था बमणा त्र. गणानो प० व्यापार सं० तेणे करी सहित . वि घणा लोक जमतां प० प्रचुर (घणा) अन्नादिक जुग नखाय डे ला नात पाणी; तथा ब० घणी दाग दासी दास गो गाय मा नेश ग० बकरी गागर प्रमुख प० घणा ने जेने. बघणा ज. लोकोथी पण अती धनवंत माटे अप परानच्या (गांज्या)जाय नही. ए लोकीक गुण कला हवे लोकोत्तर Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१०) + सिद्धान्तसार गुण कहे. श्र० जाएया ने जेणे जी0 जीव अजीव. उन्ल ख्या पूर्ण पुन्य पापनां फल प्रा० श्राश्रव संग संवर णि निर्जरा कि० क्रियादिकना पचीस नेद अ० गामी यंत्रादिक शस्त्र अधिकरण बं० प्रकृत्यादि बंध, चार नेदे मो० मोहना नेदना जाणपणामां कु० कुशल बे. श्र० कोश्नी साज वंडे नहो. दे देवता वैमानिक अ० असुरकुमार ना० नागकुमार, नवनपति विशेष सु ज्योतिषि ज जद र० राक्षस किं० किन्नर ( वाणव्यंतरा ) किंण् गरुम किंपुरिष, ए व्यंतर नौकायना देव जाणवा. ग गरुमर्नु चिन्द ने जेने, एवा सुवर्णकुमार जवनपति विशेष गंग गंधर्व म० महोरग देवता, ए पण व्यंतर विशेष जाणवा. ए आदि दे देवताना गा समुह नि० निग्रंथ साधुनां पा वचन सिकान्तथी अ० अतिक्रमावी न शके. एटले श्रावके निग्रंथना प्रवचन मजबुत करी ब्रह्मा ने तेमज जवाब देवा समर्थ ले. एतावत्ता जैनमार्गने विषे निक शंकारहित नि अनेरामतनी वान्ता न करे नि साधुनी उंगंडा न करे तथा फलनो संदेह न आणे. लण सिद्धान्तनो अर्थ लह्यो डे ग अर्थ ग्रडा डे जगवंतना मुखथी पु० पुगेने निर्णय कीधा अण हेतुथीजाएया ने वि० वारंवार पुबीने अर्थ निर्णय कर्या जे. अ० हाममांनी मिंग भीजा (धातु) पे० धर्मरुपी प्रेमरंथी रंगाणी . अ पोताना सजन परिवार गुमास्ता विगेरेने नि निग्रंथ प्रवचनरुप मार्ग बतावे . श्रण एज अर्थ ने ए एज परमार्थ, से शेष संसाररुप सर्व अनर्थ जे. उ० हू. दय फ० फटकनी परे निर्मल , अण् सदाय घरनां बारणां दान देवा वास्ते उघामा राखे , चि० गड्या ने अंग अंतेनर प० पराया घरमां प० प्रवेश करवो. ब० घणा सी० शीलवत गु० गुणवत वे पापनां प० पचखाण कयां डे. पोसो उपवास सहित चाण्चौदस अष्टमी मु० अमावास पु० पुनम प० प्रतिपूर्ण पोसा सम्यक् प्रकारे अ० आज्ञासंहित पालता थका स० साधु नि निर्मथने फा० प्रासुक (अचेत) ए शुरू (५५ दोष रहित) अ अन्न पा० पाणी खाण खादिम सा स्वादिम एम चारे आहार व वस्त्र प० पात्र कं कांबलो पाय पायपुरणं Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ३११ ) तथा घो गुडो पी०पीढ, प्रासन फ० वींगनुं पाटीढं से० वस्तु स्थानक सं० मोटो संथारो न० औषध ते एक वस्तु ने० घणां प्रौधष जेलां होय ते. ए चौद प्रकारनुं दान प० प्रतिलानता ( देता ) थका ० जेवां प० खादय बे तेवां त० तप कर्म क्रियाए करी ० पोताती श्रामाने जा० (जावता थका ) देव, गुरु, धर्म एम ऋण तत्व अनुमोदता का वि० विचरे बे. जावार्थ:- दवे जुने ! या पाठमां पहेलां तो घरनी संपदा, रिद्धि, मातबरी वर्णवी; पी श्रावकना नव तत्वनुं जाणपणुं तथा ज्ञान वर्णव्युं; पढी समकितनी गाढाइ ( द्रढता ) वर्णवी ; पढी पांचमा गुणाानी श्रावकनी मातबरी रहेवानी नदार चीत्तनी करणी वर्णवी; अने ral श्रावकri बारे व्रत वर्णव्यां. हवे घरनी मातबरी मांतो 'विनिमयपरजत्तपाणा' एवो घरनो आचार बे. अन्नपाणी पुष्कल निपजे बे, ने खातां पीतां वयुं दोय ते बहार नांखी दे बे; ते कागमा, कुतरां, पशु पक्षी प्रमुख खाय बे. ए रीते विस्तीर्ण जात पाणी रंधाय बे. पी ज्ञान सम कितना गुण वर्णव्या. पढी पांचमा गुणठाणानी करणी वर्णवी तेमां कथुंके, फटक रत्ननी पेरे हृदय निर्मलां बे ने निक्षुकादिकने दान देवा सारु घरनां कमाम उघामां राखे बे. पछी बारे व्रत वर्णव्यां, तेमां त्रीजो बोल बारमा व्रतमां साधुने दान देवानो न्यारो को बे. जो दान देवामां पाप कर्मादान जाणे तो दानदेवा सारु घरनां बारणां उघामां केम राखे ? वारे तेरापंथी कदे के, “ए अनंगद्वार तो साधुने प्रवेश करवा सारु बे, केमके बंध बारणे साधु श्रावे नही ते माटे.” तेनो उत्तर दे देवानुमीय ! साधुनुं दान तो आागल बारमा व्रतमां न्यारुं वर्णव्युं बे भने ए अनुकंपा अथवा उचित्त दान तो पांचमा गुणठाणानी श्रावकपणानी करणीमां वर्णव्युं बे. वली श्रम्मम श्रावकनो जीव ढपनाप पामसे, तेनां घर नववा सूत्रमां वखाएयां त्यां 'विद्यमिय नत्तपापा' ए गुण घरना आचारनो बे ते तो कह्यो; पण अनंगद्वार न Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१२) +सिदान्तसार. करो. एटले आवकपणुं न्होतुं त्यां सुधी तो आमे बारणे जमे तोपण घटकाव नही, पण श्रावकपणुं पाम्यो ते दीवसथीथनंगधार पण केके वलग्यो.श्रावक जैन मार्ग पाम्या ते दिवसथो उदारपणुं अधिक अधिक वध्यु, अने अव्य अस्थिर जाण्युं तेथी अधिक अधिक दान देवा लाग्या. वली तेरापंथी कहे के, अनंगद्वार साधुने माटे राखे . तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय ! साधुनुं दान तो आर्य-केत्रमांज ; कारण के अनार्य क्षेत्रमा साधु नथी तेथो त्यां तेनुं दान पण नज होय. हवे कोश श्रावक अनार्य क्षेत्रमा रहे, तेने साधुने दान देवानो तो समय न आवे. त्यारे श्रावकने अनंगद्वार केम निपजे ते कहो. वली श्रार्य-क्षेत्रमां को गाम नगरमां साधुए चोमासुं नको कर्यु, अने बीजो कोई साधु चोमासामां आवे नही. हवे ते श्रावकने अनंगधार केम निपजे? वसी उत्तम कुली श्रावकने घरे तो साधु वोहोरे , पण अधर्म कुलमां साधु वोहोरता नथी. हवे अधर्मकुक्षी श्रावकने अनंगधार केम निपजे? तेवारे तेरापंथी कहे जे के, एतो तुंगीयानगरीना उत्तम कुखना श्रावक ले तेने घेर साधु वोहोरे , ते माटे तेने अजंगधार कह्या . तेनो उत्तर. सुयगमांग सूत्रना बीजा श्रुतष्कंधमां तथा उववाइजो सू. त्रमां, गाम, नागर, पुर, पाटण, जावत् सोल ठेकाणाने विष रहे एवा सर्व श्रावकनी गति जघन्य पहेला देवलोकनी थने उतकृष्टी बारमा देवलोकनी कही, अने तेमने बाराधिक कह्या. एवा गुणना धणी श्रावक होय तेनो तुंगियानगरीना श्रावकनी परे पहेलो बोल ऋमिनो बोमीने ज्ञान तथा जाणपणुं (सर्व श्रावकनुं) वर्णव्यु, समकितनी गा. ढाइ वर्णवी, तथा पांचमा गुणगणानी श्रावकपणानो नदार चित्तनी करणी 'सियफलहा अवंगुयश्वारा' इत्यादि करणी वर्णवी. पी श्रावकपणानां बार व्रत वणव्या, त्यां बारमा व्रतमां साधुनुं दान वर्णव्यु तेमां सर्व श्रावकना अनंगकार कह्या. हवे ए उंच नीच कुलमा जे आवक होय ते सर्वे श्राराधिक होय के नहिं अने ते देवतामां जाय के नही ते कहो. Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार (३१३ ) तेवारे तेरापंथो कहे के, त्यां तो साधुने दान देवू कह्यु जे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! निषिथ, श्राचारांग, दसवैकालोक, आदि अनेक सूत्रमा गमगम साधुने तो बार कुल टालीने अनेरा नोच कुलनो आहारादिक वोहोरवो तथा ते नीच कुलमा प्रवेश करवो पण वज्यों ने. तेम ए पण बतावो के, " उत्तम कुल जेमां साधुजो वोहोरे डे ते श्रावकने तो अजंगधार बे, अने अधर्म कुल जेमां साधुजो न वोहोरे ते श्रापकने अन्नंगधार नथी.” एवो पाठ को सूत्रमा होय तो बतावो. अहीयां सुयगमांग तथा नववार सूत्रमा तो सर्व नाम मात्र श्रावकने अनंगद्वार कह्या जे; पण नत्तम कुल अथवा अधर्म कुल एके टाल्यु नथो; अने तिर्यंच श्रावकने दानदेवानी योग्यता नथो तेथी तिर्यंचश्रावकने अनंगधार नववाद सूत्रमा कह्या नथो. ए न्याये अधर्म कुलमा साधुजी तो वोहोरे नही. तेथी अजंगधार अनुकं आणी मागता जीखारीने दान देवा सारु राख्यु डे एम स्पष्ट सिक. माह्या हो ते वीचारी जोजो. वलो नगवती, सुयगमांग तथा उबवाद सूत्रमा अनंगछारनी टीका तथा टबार्थमां शुं कर्तुं ? ते वाचारों जोजो. वली तेरापंथी कहे डे के, “अन्नंगधार अने साधुनुं दान ए एकजे .” तेनो उत्तर. अम्ममजीश्रावक साधुने तो दान आपे बे, पण तेने अजंगमारनो श्री उववाश् सूत्रमा नाकारो कह्यो . ते पाठ: पनुणं ते! अम्ममे परिवायए देवाणुप्पियाणं अंतिएमुंमिए नवित्ता आगारान अणगारियं पवश्त्तए? को इणके सम.गोo! अम्ममेणं परिवायगे समणोवासए अनिगय जीवाजीवे जवलधं पुणपावे जाव अप्पाणं जावेमाणे विहरंति नवरंग जसिय फलिदे अवंगुयधारे चियत्तं तेउर परघर पवेसी एवं ण वुच्च.॥ अर्थः-१० समर्थ डे जंग हे नगवान् ! श्र० अम्मम प० परिवाअंक दे० हे पुज्य ! तमारी अंण् समीप मुंग मुंगना थवा ? थामा Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) सिद्धान्तसार. गारपणाथी ० अणगारपणुं प० श्रादरवा ? उत्तर. पो० नहिं इ० ए अर्थ समर्थ. गो० हे गौतम! श्र० अम्मरुपरिवाजक स० श्रमषोपासके ० जाएया बे जी० जीव जीवना जेद, न० लाध्या बे पु० पुन्य पापनां फल, जा० यावत् तुंगीयानगरीना श्रावकनी करणीवत् ० पोतानी श्रात्माने जा० जावतोथको वि० विचरे बे; न० एटलुं विशेष उप बारने विषे जगल नथी. अ० घर नथी ते माटे उघामां बार सदाय रहे. अतिथी माटे. चि० प्रतितकारी अंतःपुर प० परघरने विधे जतुं न प, अतिथी माटे. ए० ए त्रण बोलनो श्रावकने प्रयोग पके; पण अम्ने प्रयोग न प. माटे ए ऋण बोल नथी. जावार्थ:- दवे जुर्ज ! आ पाठमां तो श्रम्ममश्रावकने जीव - जीवनो जाए कह्यो, पुन्य पापनां फल खोलख्यां लाध्यां कह्यां खने 'जाव विहरे' कह्यो. ते जाव शब्दथी तुंगीयानगरीना श्रावकना गुण वर्णव्या ते अम्मम श्रावकमां सर्व गुणनो पाठ कड़ेवो. ते निर्बंधसाधने चौद प्रकारनुं दान देता विचरे बे त्यां सुधी केहेतुं; पण तुंगीयानगरीना श्रावकोना घरनी रिद्धि, संपदा छाने मातबर वर्ण ते एने नथी. तेथ पेहेलो बोल रिद्धि संपदानो बोमीने 'अनिगय जीवाजीवें' (जाया वे जीवश्यजीवना जेद) ए पाठथी लइने सर्व तुंग यानगरीना श्रावकना गुणनो खालावो वर्णव्यो तेम वर्णन केहेतुं श्रम्मम श्रावकना चार बोलमां एटलुं विशेष के, चोथा बोलमां पांचमा गुणठापानी श्रावकपणाना उदार चित्तनो करणी वर्णवी; तेमां एक तो फटक रत्ननी परे हृदय निर्मल, अने दान देवा सारु अनंगद्वार, ए बोल न कह्या; अने एक प्रतितकार्या अंतःपुरमा प्रवेश न करवो तिथीपणा माटे, ए बे बोल वर्ज्या. बाकी सर्व तुंगीयानगरीना श्रावकनी परे थालाबो केहेवो. दवे तमे कहो तो के, प्रसंगद्वार साधुनुं दान ए एकज बे. त्यारे श्रम्मम श्रावकने अनंगद्वार तो वर्ज्या बे, ने साधुने दान देता कया बे. तेटला माटे साधुनुं दान ने मा गता जोखातुं दान जुडुं बे. ए अनंगद्वार तो जी लुकना दान माटेज Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( ३१५) बे, अने माहापुरुष पधारे तो मोकनो हेतु पण थाय. ए सर्व श्रावकोने अनंगद्वार कह्या , अने ते अनुकंपा-दान मागता नीखारीने देता दोसे के. पलो फल तो पेला श्रावकने जेवां लाग्यां तेवां दालना श्रावकने पण ला. गशे. ज्ञानी वदे ते सत्य. वली दानने निषेधे तेने प्रश्नव्याकरणना बोजा थाश्रवहारमा जुगबोला तथा त्रीजा श्राश्राछारमांचोर कह्याचे ते पाठःपमिघायए हेन वित्ति बेइंकरेद मादेद किंचिदाणं सुठुदना अर्थः-प इणवा हे निमित्ते विवति बेबेद करे, के फलाणाने एक पण ग्रास (कोली) मा म देशो. किं० कोइने किंचित मात्र दान न देशो. एवां परपीमाकारी वचन बोले तथा वली सावध वचन बोलवानो सु० प्राणातिपात करो, इत्यादिक वचन कहे. नावार्थः-हवे जुर्म ! आ पाठमां एम कडं के, बत्तिनो (आजीवोकानो) छेद करे तथा फलाणाने एक पण ग्रास मत द्यो एम कहे, अथवा कोश्ने किंचित् मात्र दान देशो नहि, एवां वचन कहे तेने जुगबोला तथा चोर कह्या. ए जु ! जो दान देवामां पाप होय तो वर्जवावालाने जगवंत जुग-बोला तथा चोर केम कहे? माह्या हो ते विचारी जोजो. वली त्रीजा आश्रवछारमा एम कडं डे के, दान दोधाथी गुण थाय. ते गुणनो नाश करे तो चोरी लागे. हवे जो दान दोधामां पाप होय तो दानना गुणनो नाश करे. तेने चोर केम कह्या? माह्या होते विचारों जोजो. वली कोपण सूत्रमा अनुकंपा आणीने पुर्बलने मरता देखो दान आपे तेने पाप कर्वा होय तो पाठ बतावो. तो एटला सूत्रना पाठ नथापीने खोटा अर्थ करी कुयुक्ति मेलवीने अनुकंपादान केम उगवो बो. वली तेरापंथी श्रावकोने पण दान दीधामां पाप परुपे के. एम कहेले के, श्रावकने मुलायजे नोंतराने जमाने ते तो संसारनो व्यवहार बे, तेने दान न कहीये. तेमां कदापी पाप कहे ते तो जाण्यु, पण कोइ श्रावक सामायक तथा व्याख्याननी अंतराय पामी रसोइ करतो होय, तेने को पुन्यवंत श्रावक रसोश्नो श्रारंन टलावोने, सीधी रसोइ तथा सु Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१६ ) + सिद्धान्तसार खमी प्रमुखनी सहाय द सामायक करावे तथा व्याख्यान संनलावे तेमां पण पाप कहे. एमज कोइने तपश्या करवाना नाव होय ने धारणा (थं. तरवारj) पारणानी जोगवाइ न होय, तेने सिधी रसोश दइ तपश्या करावे तेमां पण पाप कहे . तेमज सामायक पोसाने वास्ते जग्या, कपमां, नवकारवाली, पुंजणी अने मुहपत्ति आपे तेमां पण पाप कहेडे. पण नगवंते चतुर्विध संघने शाता दीधामां तथा हित वान्यामां मोटो पुन्यरुप लान कह्यो बे. तेनी शाख सूत्र नगवती शतकत्रीजे नद्देशे पहेले, सनत्कुमार इंउने अधिकारे. ते पाठ: अविणं ते! तेसिं सकीसाणाणं देविंदाणं देवरायाणं विवादा समुप्पज ? हंता अजि. सेकह मिंदाणं पकरे ? गो ! तादे चेवणं सकोसाणां देविंदा देवरायाणो सणंकुमारं देविंदं देवरायं मणसिकरे. तएणंसे सणंकुमारे देविंदे देवराया तेहिं सकिसाणेहिं देविंदहिं देवराशदि मणसी कएसमाणे खिप्पामेव सकीसाणाणं देविंदाणं देवराणं अंतियं पान-नव जंसे वदई तस्स आणा उववाय वयण निदेसे चिह. *सणंकुमारणं नंते ! देविंदे देवराया किं नवसिहिए, अन्नवसिहिए, सम्मदिहीए मिडादिछीए परितसंसारिए अणंतसंसारिए सुलनबोदिए दुखनबोहिए आराहिए विराहिए चरिम अचरिमे ? गो ! सणंकुमारेणं देविंदेदेवराया नवसिहिए नोअन्नवसिदिए एवं सम्मदिछी परितसंसारी सुलजबोहिए आराहिए चरिमे पसवं नेयवं. सेकेणणं. गो0! सणंकुमारे देविंदे देवराया बहुणं समणाणं बहुणं समणीणं बहुणं सावयाणं बहुणं "सणं कुमारेणं नंते” थी “नो श्रचरीमे” सुधीनो अर्थ जुर्व पाने ५६ मे. Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (१७) - सावियाणं हियकामए सुदकामए पत्रकामए अणुकंपिए: निस्सेयस्सिए हियसुद निस्सेसकामए सेतणणं गो! -सणंकुमारे देविंदे नवसिद्धिए जाव नो अचरिमे * सणं कुमाररसणं नंते ! देविंदस्स देवरणो केवश्य कालं विश पं० गो! सत्तसागरोवमाणि विश पं0 सेणं नंते ! तान देवलोगान आनकरणं जाव कहं उववधिहि? गोमहाविदेहे वासे सिजिहि जाव अंतं करेदि सेवं नंतेत्ति . अर्थः-श्र नं हे जगवान ! ते ते स० शक्र अने इशान दे देवें दे देवराजाने माहोमांही वि० विवाद स उपजे ? संवाद करे ? इति प्रश्न उत्तर. हं हा गौतम अ . से ते केम? ३० विवाद अवसरे विवाद करे तो कोण मटामे ? इति प्रश्न उत्तर. गो हे गौतम! ता तेमज चे निश्चे सण शक श्रने इशान बन्ने दे० देवेंज. देवराजा संग सनतकुमार दे देवें देवराजा (त्रीजा देवलोकना इंज) प्रत्ये मण मनमां धारे के, सनत्कुमार आवे तो विवाद मटे इत्यर्थ. त० तेवारे से० ते स० सनत्कुमार देवेंज देवराजा ते ते स० शक्र अने शान बंने ए म मनमा धार्या थका खि उतावला सशक अने इशान रंजनी अंग समिपे पा० प्रगट थाय. जंग जे सनत्कुमार व कहे (वचन निदेश कहे) तळ ते पाण् थाज्ञा न० उत्पात व वचन नि निर्देशे चि० रहे. एटले ते शक श्रने शान-इंजने जेवी आज्ञा आपे तेवी प्रमाण करे. स सनत्कुमार नं हे जगवान ! देख देवें देवराजानी के केटला का कालनी 1ि0 स्थिति पं० कही ? गोग हे गौतम ! स० सात सागरोपमनी वि० स्थिति पंकही. सेण्ते सनत्कुमार नंण्हे नगवान ! तापते दे० देवलोकथ। आप आउखु पुरुं करीने जा जावत् का क्या उ7. पजशे ? इति प्रश्न. गोण हे गौतम ! मा0 माहाविदेह वा केत्रने विषे सि० सीकहो, बुऊशे, मुकाशे परिनिव्रत थशेजा जावत् अंग सर्व दुःखनो अंत करीने मोह जाशे से तहतनं हे नगवंत!पूर्वेकडं ते प्रमाणने, Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८) + सिदान्तसार.. नावार्थ:-हवे जु ! था पाठमां एम कडं के, ज्यारे पहेला अने बीजा देवलोकना इंधने युद्ध थाय, त्यारे त्रीजा देवलोकनो सनत्कुमार नामे इंऽ आवीने बने इंजने कहे “म करो एवं काम” एम कहे, तेवारे बने इंड तेनुं वचन प्रमाण करे अने तेनी आज्ञा प्रमाणे रहे. वली गौतमे पुत्यु के, त्रीजा देवलोकनो इंच नवी ? इत्यादिक बार प्रश्न पुढया. तेवारे जगवंते कडं के, एनवी , समष्टि , परित संसारी , सुलन बोधी , श्राराधिक श्रने चरमशरिरी जे. एन बोल जगवंते जला कह्या. तेवारे गौतमे पुन्युं के,त्रीजा देवलोकना सनत्कुमारनां वचन शकें तथा इशाने बेउ प्रमाण करे अने वली ते नव्य यावत् चरमशरिरी , एवं पुन्य तेने साथी बंधाणुं के तेने एवी पदवी मली. तेवारे जगवंते कडं के, सनत्कुमार इंज, साध साधवी, श्रावक श्रावीका ए चतुर्विध संघना हितनो वंबणहार २ १, सुखनो वं. बक डे २, फुःखत्राण एटखे हुधा, तृषा, उपसर्गादिक दुःखथकी राखपहार ले ३, थने ते संघने पुःखी देखी अनुकंपा दयानो करणहार ले ४. ए चार प्रकारे मोदनो वंबणहार जे. एणे चतुर्विध संघर्नु हित तथा सुख वान्ब्युं, फुःखनुं निवारण वान्ग्युं अने अनुकंपा करी तेथी पुन्य बंधायु. तेथी बन्ने इंश तेनां वचन प्रमाण करे , अने उ बोल नसा करा. ए जुई ! श्री वीतरागदेवे तो श्रावकने सुखशाता दीधानां फल जखां कह्यां . तमे पाप कया न्याये कहोगे ? तेवारे तेरापंथी कहे के, ए पुगतो इंजना नवनी जे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! इंजना न. वनीज पुबा , तोपण श्रहीं तो गौतमे पुब्यु ने के, हे जगवंत ! एवां पुन्य बंधायां अनेक बोल जला कह्या ते कर करणीना प्रयोगथो ए अर्थ कह्यो ? ते उपरथी भगवते कयु के, चार संघर्नु हित सुख वान्ब्युं तेथी पुन्य बंधायां. त्यारे मनुष्य श्रावक चार संघ, हित सुख वान्डशे, फुःख मिवर्तावशे अने चतुर्विध संघनी अनुकंपा करशे तेने नखां फल केम नही सागशे ? ते विचारो Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ११९ ) वली तेरापंथी, श्रावकना खावा पीत्रा, कपमां ने घरेणां सर्वने अतमां गणे ने कड़े वे के, पोते सेवे तो पाप, बीजा पासे सेवरावे तो पाप, ने सेवताने जलुं जाणे तेमां पण पाप, एम कहे बे. ते उपर मतना लीधे सूत्रनां जुवां नाम लइने खोटी जोमो करी बे. ते ढालःश्रावकनो खाणो पीणो ने गेहणो, अत्रत मांही घाल्योरे; सुयगकांग ने नववाइ सूत्रमां, पाठ नघाको चापरे. चतुर विचार करीने देखो 11 3 11 ए जुन ! श्रावकना खावा पीवा ने घरेणांने सुयगमांग तथा नववा सूत्रनां जुठां नाम लइ व्रतमां कहे बे तेना उत्तरनी ढालःखाणो पीणो गेहणो ने कपको, ए तो पुजल होइरे; व्रत ने व्रत परणामारी, बहु सूत्र ल्यो जोइरे; चतुर विचार करीने देखो ॥ १ ॥ खान पान ने गेहलो कपमो पुल, एही व्रत थायोरे; तो भरत मरुदेवी श्रमर्ण पढेय, केवल ज्ञान केम पायोरे. चतुर विचार करीने देखो ॥ २ ॥ बे, हवे जुड़े ! खान पान घरेणुं ने कपकुं, ए तो अठ- फरशी रुपी पुरुष व्रत तो तेरापंथीना बनावेला तेर द्वारमां पण श्ररुपी कयुं बे. तेमज सूत्रमां पण गमठाम जीवनी आशा तृना अने अत्यागनावना प्रणाम व्रत कयुं छे. बतां तेरापंथी छान्न-वस्त्रादिक रुपी पुजलने व्रतमां बतावे बे. माटे तेमने पुछवुं के, हे देवानुप्रीय ! “मारुदेवी माता हाथीना दोद्दा उपर घरेणां कपमां पेहेरीने बेठां, तेमने केवलज्ञान नपन्युं सूत्र ठाणायांगमां कयुं बे; ाने भरतमाहाराजने पण घरेणां कपां पड़ेय केवलज्ञान उपन्युं वे अने ते पछी घरेषां कपमां उतायां एम सूत्र जंबुद्धिपपन्नत्त मां कह्युं बे. ए घरेणां कपमां पदेयां थकांने - व्रतमां केवलज्ञान केम उपन्युं ? ” तेवारे तेरापंथी कदेबे के “ घरेषां कपकां तो रुपी पुल बे. ए तो श्रव्रत नथी, पण तेना उपर ममतजाव 66 Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) +सिद्धान्तसार प्रवर्ते तेने श्रव्रत कहीये. ते ममता मटी गर तेथी केवलज्ञान उपन्यु." त्यारे हे देवानुप्रीय! श्रावकना खावा पीवा घरेणां ने कपमांने अवतमां घाट्यां डे, एवो जुठी जोमो तमे मतने लीधे केम करो ? वली श्रावकना खावा पीवा घरेणां कपमां अने जग्याने अव्रत कहे , थने सुयगमांग तथा उववार सूत्रनां जुगं नाम ले . तेज नववाश् सूत्रनो पाठःसेजेश्मे गामागर णगर जाव सणिवेसेसु मणूया नवंति तं० अप्पारंना अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिहा धम्मकाश्यं धम्मपलोइ धम्मपलधणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वितिकप्पेमाणा सूसीला सुवया सुपमियाणंदा साहुएगच्चाओ पाणाश्वायाओ पमिविरया जावजीवाए. एगच्चाओ अपमिविरया एवं जाव परिग्गदाओ पमिविरया. एगच्चाओ अपमिविरया. एगच्चाओ कोदाओ माणाओ मायाओ लोजाओ पेजाओ दोसाओ कबहाओ अन्नकाणाओ पेसुणाओ परपरिवायाओ अरति रतियो मायामोसाओ मिला देसणसल्लाओ पनिविरिया जावजीवाए. एगच्चाओ अपडिविरिया. एगच्चाओ आरंज समारंनाओ पमिविरिया जावजीवाए. एगच्चाओ आरंन समारंजाओ अपमिविरिया. एगच्चाओ करण करावणाश्रो पमिविरिया जावजीवाए. एगच्चाओ अपमिविरिया. एगचाओ पयणपयावणाओ पमिविरिया जावजीवाए. एगचान पयणपयावणाओ अपमिविरिए. एगच्चा कूटण पीट्टण ताण तालण वदबंध परिकिलेसा पनिविरिया जावजीवाए. एगच्चा अपमिविरिया. एगच्चा एहाएं मरण बणग विखेवण सह फरस रस रुव गंध मला । Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार ( ३२१ ) संकारा पमिविरिया जावजीवाए. एगचा अपमिविरिया. जेयावणे तदप्पगारान सावज जोगान वदियाकम्मंता परिपाण परितावण कराकांति ततोवि एगच्चा परिविरिया जावजीवाए. एगच्चा अपमिविरिया तंजादा सेजदा णामए समणो वासगा नवंति ॥ अर्थः-से ते जे ए गा गाम, श्रागर ण नगर जा जावत् स० सनिवेसने विषे म मनुष्य श्रावक स्त्री पुरुषादिक न होय तं ते कहे-श्रा थोमा आरंजी अ० थोमा परिग्रहवंत ध धर्मी ठे धम्मा० धर्मने केके चाले धम्मि धर्म वाहालो ने जेने धम्म शुरूधमना परुपक धम्मप० धर्मने विषे वारंवार नजर राखे धम्मस० धर्मने रंगे रंगाणा ने तथा लजावंत, धर्मने कोई उलंजो दर शके नहिं धम्मेण धर्मने विषे हर्ष सहित आचार ले जेनो धधर्मेकरी चे० निश्चे वि० व्रत्ति आजीवीका क० करतायका प्रवर्ते सुनलो श्राचार ले जेनो सुजलां बत के जेनां सु० अत्यंत नलु श्रानंद सहीत चित्त ने जेनुं सा धर्म पदे साधु ए बे जातीना प्राणीमांथी पा० त्रसजीवने हणवाथी प० निवर्त्या जा० जावजीव सुघी. ए. एक स्थावरनी हिंसाथी श्रम निवा नथो. ए एम जाम् जावत् प० मोटा जुन, अदत्तादान, परदारा अने परिग्रहथी प० निवर्त्या . ए० अकेक नाना जुर, चोरी, कुशील, अने परीग्रहथी अ० निवर्त्या नथी. ए अकेक अनंतानुबंधियादिक मोटा को क्रोधची मा० मान मा० माया लोग लोन पेण राग दोष का क्लेश अने अण् श्राल देवाथी पे मोटी चामीथी प० पारका श्रवर्णवादथी १० अरति रतिथी मा माया सहित मृषाथी मि मिथ्यात्व दर्शन शट्यथी कूप्रावनिक बा लोकोत्तर, ए मिथ्यात् मूलथकी १० निवा जा जावजीव सुधी. ए० एकेक थोमा नाना क्रोधादिक तथा खोकीक मिथ्यात्वथी (संसारना प्रारण कारणादिकथी) श्रण नवी मिवा. एण् एकेक मोटा आण प्रारंन सण समारंजथी, पंदर क Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२२) + सिद्धान्तसार र्मादानादिकथी प० निवां ले जा जावजीवसुधी. ए0 एकेक नाना श्राप वारन सणसमारंनथी श्र० नथी निवा. ए० एकेक कण्कर का अनेरा पासे कराव, तेथी प० निवा डे जा जावजीव सुधी. ए० एकेक करवा कराववाथी अ नथी निवा. ए० एकेक प० पचववा पचवाववाथी प० निवा जे जा जावजीव सुधी. ए० एकेक पण पचववा प० पचवाववाथी अ० नथी निवा. ए० एकेक कुछ कुटवाथी पी० पीटवाथी त तर्जवाथी ता तामवाथी व मारवाथी बंग बांधवाथी प० क्लेश करवाथी प० निवां के जाप जावजीव सुधी. ए. ए पूर्वोक्त ए. केकथी श्र नथी निवा. ए० एकेक मोटका नदि प्रमुखना एहाण स्नान करवाथी म मर्दन जगटणाथी व० वरण अबीरादिक सुगंधीथी वि० विलेपन करवाथ। स शब्दथी फ फर्शथी र० रसथी रु० रुपथी गंग गंधथी म पुष्यनी मालाथी अण् श्रानुषणथी, थानथी प० नि. वा ले जा जावजीव सुधी नाना अघुलादिकथी. ए० एकेक नाना अंघुलादिकथी अ नथी निवा. जे जे कोइ वली त० तथा प्रकारना सा पापना (मन वचन कायाना माग ) जोगनुं प्रवर्तन व० मोटा कपटना का कर्मना व्यापार प० अनेरा प्राणीने प० परितापना क करे ने त ते एकेकथी पण प० निवां वे जा जावजीव सुधी. ए. केट. लाएक सावध्य कर्तव्यथी अ नथी निवा. तं ते कहे बेसे ते यथानाम अष्टांते स० साधुना न० (उपासक) शेवक श्रावक न. नावार्थ:-हे देवानुप्रोय! आ पाठमां तो एम कडं ने के, प्राणातिपातादिक अकेका पापथी श्रावकजो निवां ने अने अकेका पापथो नथी निवा, एम सर्व बोलमां कडं डे; पण श्रावकनां खान, पान, घरेणां अने कपमांने अवतमां कयां कह्या बे ? कह्यां होय तो बतावो. तेवारे तेरापंथी कहेले के “शब्द,रुप,रस, गंध अने स्पर्श, ए अकेकाथी निवां कह्या अने अकेकाथी नथी निवां कह्या. ते कानमां शब्द, सारा तुंमा, राग रंग, गीत गान सांजलवाथी निवां तेने तो व्रत कहीए. अने नयी निवां तेने अबत कहीए. १ एम आंखोथी बाग, बगीचा, Live Ltd- - - Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. कुवा, वावमी, तलाव, गढ अने कोगदिक सर्व रुप देखवाना त्याग कर्या तेने तो व्रत कहीये अने सर्व वस्तु देखवाथी नथी निवां तेने अवत कहीए. ५ तेमज नाकनी वासनाथी निवां तेने तो व्रत कहीए, अने नथी निवां तेने अव्रत कहीए. ३ एम रसेंजिना विषयथी निवा तेने व्रत कहीये, अने नथी निवां तेने अव्रत कहीए. ४ एम स्पर्श शन्धिना श्राप फरसथी घरेणां कपमां पहेरवाथी निवां तेने व्रत कहीए अने स्पर्श इन्धिना विषयथी नथी निवां तेने अव्रत कहीए. ५ एज रीते शब्द, रुप, रस, गंध अने स्पर्शना श्रावक त्याग करे ते तो व्रत, बाकी सर्व अव्रत जाणवू. ए न्याये श्रावकना खान, पान, घरेणां श्रने कपमाने अव्रत कहीये बीए.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तमारे लेखे तो कानेकरी श्रीवीतरागदेवनी वाणी, स्तवन, सफाय तथा धर्म उपदेश सानले ते पण पुमल , तेथी निवां नथी वास्ते ए पण अव्रत पाप हशे. तेमज अांखोथदेवगुरुनां दर्शन करे, श्रीवीतरागदेवनी वाणी, सकाय, स्तवन प्रमुख धर्मना कर वांचे. ए रुप देखवाथी निवां नथी तेथी ए पण अव्रत पाप हशे. तेमज नाकथी जीवादिक नपज्या जाणवाने तथा वस्तुनो रस चल्यो जाणवाने जीवनी जतना करवा माटे अथवा साधुजोने वोहोराववा माटे हरेक पुजल सुंघवाथी निवा नथी, ए पण अव्रत पाप हशे. तेमज रसेंप्रिथी देवगुरु धर्मना गुणग्राम करे तथा बोलचाल, सामायक, पमिकाएं, स्तवन, सजाय प्रमुख शीखे, संनलावे तथा श्री वीतरागदेवनी वाणीनो (धर्मनो) उपदेश करे, ए पण नाषाना पुजल ले. तेथ। निवर्त्या नथी ए पण अव्रत पाप हशे. तेमज सरस आहार त्यागीने निवी, आयंबिलादिक माटे नरस आहार करे. ए नरस आहारथी निवा नथी ते पण तमारे लेखे तो अव्रत पाप हशे. वली स्पर्शतिथी (कायाथ।) शीत ताप सहे, विनय वैयावच करे, सामायक पोषाना नपगर्ण, विगवर्नु, मुहपत्ति, नवकारवाली अने पुंजणी प्रमुख राखे तथा धर्म शास्त्रनी पोथीपाना वांचवा वास्ते राखे. ए थको पण निवां नश्री. ए पण तमारे Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२४) + सिद्धान्तसार.. लेखे तो श्रवत पाप हशे. ए जलां काम पांच इंजिए करी शब्द, रुप, रस, गंध अने स्पर्शनां श्रावक करे, करावे अने करताने नर्बु जाणे. ए सर्व तमारे लेखे तो अबत पाप हशे. वली ए पूर्वोक्त कामथी साधु पक्ष निवां नथी. तमारे लेखे तो साधुने पण पाप केहेQ पमशे. तेवारे तेरापंथी पण कहे जे के “ मोहकर्मने उदये जला शब्द, रुप, रस, गंध अने स्पर्श उपर राग अने माना उपर वेष प्रवर्ते तथा अत्याग-नावथी (आशा, वंगा, जीवना प्रणामथी) निवर्त्या नथी तेने अव्रत कहीए; श्रने ए जलां काम पांच इंजिए कसीने करे ते तो शुलयोग निर्जरानी करणी . तेथी कर्म तुटे अने पुन्य बंधाय." त्यारे तेमने कहेवू के हे देवानुप्रीय ! तमे रागद्वेषने, अत्याग-नावने (जीवना अरुपी परणामने) अबत सरधीने अणसमजु लोकोने जरमाववाने श्रावकनां खान, पान, घरेणां अने कपमाने अव्रत कहीने अनंत संसार केम वधारोडो ? अव्रत तो रागद्वेषे करी पुजल उपर ममत (अत्यागन्नाव) राखे तेने कहीए; अने ते अत्याग-जावने (जीवना प्रणामने ) तो अ. रुपी कहोगे, ते तो पोतपोतानी पासे ने बीजाने आप्यां श्रापी शकाय नही; अने अन्न, वस्त्र, जग्या प्रमुखतो रुपी पुजल डे, ते सामायक, पोसा, अने तपश्या कराववानी साहाजे आपे, ते शुभयोग निर्जरानी करणी . तेने अत्रत केम कहोबो ? एज अन्न, वस्त्र, जग्या प्रमुख उपर रागद्वेष अत्याग-नाव (जीवना प्रणाम) तेनी ममता त्यागे तेने जोगना पापथी श्रने अवतथी निवां कहीए; अने तेनी ममता राखे अने रागद्वेषथी शेवे तेने जोगना अबत पापथी निवां न कहीये; अने एज अन्न, वस्त्र, जग्या प्रमुखनी साहाजथी तपश्या, सामायक, पोसा, प्रमुख ध्यान करे तथा अनेरा श्रावकने तपश्या, सामायक, पोसा, प्रमुख धर्मध्यान करावानी साहाजे जग्या, उपगण थापे ते पण शुनयोग निर्जरानी करणी जे एम जाणवू. हवे श्रावकनां खान, पान, घरेणां श्रने कपमांने (रुपी अठ फरसी पुजलने ) अगत कया सूत्रमा कयु ले ते पाठ बतावो. ए सूयगमांग अने नववार सूत्रनां जुगं नाम केम योगे? ..., Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .+ सिद्धान्तसार ( ३२५) वली तेरापंथी, श्रावकने सामायक पोसानां नपगर्ण, वस्त्र, जग्या तथा सामायक पमिकम', बोल चाल, स्तवन अने सजाय प्रमुख ज्ञा. ननी पोथी इत्यादिक सर्वने अवतमां बतावे बे, अने बीजा श्रावकने सामायक पोसानां नपगर्ण श्राप तथा वांचवाने पोथी आपे तेने अवत दीधुं कहे ले. तेने पुढीए के, साधुजी श्रावकने कांचवाने पोतानुं पार्नु आपे तेमांसाधुजीने शुंथाय अने वांचवावाला श्रावकने शुं थाय ते कहो. • तेवारे तेरापंथी कहे डे के, साधुजीने पण धर्म के अने वाचवा. वालाने पण शुज जोग निर्जरारुप धर्म बे. तेवारे तेने कहे के, साधुजी श्रावकने वांचवा पार्नु श्रापे तेमां धर्म , त्यारे श्रावक श्रावकने वांचवाने पार्नु पोथी आपे तेमां धर्म केम नही थाय ? अने पोथ। पांचवा आप्याथी धर्म थशे तो सामायक पोसा वास्ते उपगर्ण, नवकावाली, पुंजणी, मुहपत्ति तथा जग्यानी सहाज देवावालाने शुन्न योग निर्जरारुप धर्म केम नही थाय? माह्या होते विचारी जोजो. वली तेरापंथी श्रावकना खावा, पीवा, कपमां, घरेणां अने जग्या प्रमुख सर्वने अवतमां बतावे , अने बीजाने श्रापे तेमां अव्रत सेवराव्युं कहे , तेने पुब्बु के, “तमे श्रव्रत केने कहो बो अने व्रत केने कहो बोते बतावो.” तेवारे तेरापंथी कहेले के "अढारे पापना, खावा पीवाना श्रने क. पमां घरेणां पहेरवा तथा राखवाना त्याग करे तेने तो व्रत कहीए; अने सेववानो श्रागार राखे तेने अव्रत कहीए, अढारे पापना त्रिविधे त्रिविधे जावजीव सुधी सर्वथा प्रकारे त्याग करे सेनेतो सर्ववति साधु कहीए; कारण के तेने लगारमात्र पापनो श्रागार नथी. तेनुं खावू पो सर्व काम धर्ममां बे, अने तेने श्राहारादिक आपे, बंदणा करे तेने पण धर्म ; अने अढार पापमांथी कांश्क त्याग करे अने काइक आगार राखे तेने देसवति श्रावक कहीए. ते त्याग व्रततो धर्म के अने पापनो श्रागार ते अनत . ते श्रावकनुं खावं पी थने पहेरवं ते सर्व अवत. मां . तेमज तेनुं शरीर पण अवतमां बे. तेथी आरादिक श्रापे, चंदणा नमस्कार करें तेने पाप लागे एम कहीये बीए.” त्यारे तेमने पुर Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार agh, को श्राव सर्वथा प्रकारे अढार पापना जावजीव सुधी त्रिविधे त्रिविधे त्याग करी दीधा होय तेने चार अहार, वस्त्र पात्र तथा जग्या पेने वंदा नमस्कार करे तेने शुं थाय ते कहो. वारे तेरापंथी कe a " श्रावकने अढार पापना त्याग सर्वथा प्रकारे जावजीव सुधी थायज नही. कांइक पण पापनो आगार रहेज,. तेथे तेने देशप्रति श्रावक कहीये बीए; अने जेने आगार न होय तेने तो सर्वत्र तिज कहीए. ते श्रावक न कद्देवाय" एम कदेबे, पण सूत्रमांतो श्रावकने सर्वथा प्रकारे पापना त्याग कह्या बे. श्री जगवतीजी सूत्रना सातमा शतकना नवमा उद्देशामां वर्णनागनतवे सर्वथा प्रकारे ढा पापना त्याग जावजीव सुधी कर्या कह्युं बे. वली अम्मरुजी संन्यासी (भावक ) ना सातसें चला श्रमणोपासके पण सर्वथा प्रकारे अढार पापना त्याग त्रिविधे त्रिविधे जावजीव सुधी कर्या; अने तेमने श्री वीतरागदेवे अंत समय सुधी देसवति श्रावक कह्या बे; ते सूत्र नववाइजीनो पाठः पुर्वि पिणं अम्देहिं ममस्सप रिवायगस्स अंतिए थुलग पालाइवा पञ्चरकाए जावजीवाए, थुलए मुसावायाए पच्च.काए जावजीवाए, खुलए प्रदिनादाणे पञ्चरकार जावजीबाए, सधे मेहुणे पच्चरकार जावजीवाए, बुलए परिग्गदे पञ्चकाए जावजीवाए, इदाणिं-पिणं अम्दे समणस्स जगवन- महावीरस्सतिए सवं पाणाश्वायं पच्चरकामो जावजीवाए एवं जाव सवं परिग्गदं पच्चरका मो जावजीवाए सघंकों६ माणं मायं लोनं रागं २० दोसं ११ कलहं१२ अनरकाणं १३ पेसुणं १४ परिपरिवार्य १५ रतिरत्ति १६ मायामोसं१७ मिचादंसणस १८ प्रकरणांजोगं पश्चस्कामो जावजीचाए सवं असणं पाणं खाइम Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. (२७) साश्मं चनविहंपि आदारं पञ्चकामो जावजीवाए जांपियं इमं सरिरं इथं कंतं पियं माणूणं मणामं धिङ विसासियं. समयं बहुमयं अणुमयं नंडकरंगसमाणं माणंसियं माणंनन्हा माणस्कूहा माणंपिवासा माणंबाला माणंचोरा माणंदंसमसा माणं वाश्यं पित्तीयं संनियं सन्निवायं विवीदा रोगा तंका परिसदोवसग्गा फासा फुसंति तिकडु एयंपियणं चरिमेहिं उस्सास निस्सासेहिं वोसिरामि तिकडे संवेदणा झुषणा झुसिया जत्तपाण पमिया इस्किया पानवगया कालं अणवकंकमाणा विदरंति. ततेणं से परिवायगा बहुइं नत्ताइं अणसणाइं बेदंति दित्ता आलोश्य पमिकंत्ता समाहिपत्ता कालमासे कालंकिच्चा बनलोए कप्पे देवत्ताए नववन्ना तेहिं तेसिं गइ तर्हि तेसिं वित्ती दससागरोवमाइंछित्तीपणंत्ता. परलोगस्स आरादणा सेसंतंचेव.॥ अर्थ-पुण् पहेलां पण अण् अमे अ० अम्मम परिव्राजकनी अंग समिपे थु० मोटा पा प्राणीनी हिंसा- प० पचखाण कयु ले जा० जावजीव सुधी. थु मोटा मुण् मृषावादनुं प० पचखाण जा जावजीव सुधी. श्रु मोटा १० अणदिधुं लेवाना प० पचखाण जाण जावजीव सुधी. स० सर्व मे मैथुनप० पचखाण कयु के जा० जावजीव सुधी. थु० मोटा प० परिग्रहना प० पचखाण कर्या डे जा० जावजीव सुधी. ३० हमणां पण अ० अमे स० श्रमण जगवंत श्री माहावीर देवनी अंग समिपे स० सर्व पा प्राणीनी हिंसानुं प० पचखीए बीए जा जावजीव सुधी. ए० एम जाग जावत् स० सर्व प० परिग्रहर्नु प० पचखाण करीए बीए जाण जावजीव सुधी. स० को सर्व क्रोध मा० मान माग माया लोग लोन रा० राग दो द्वेष का क्लेश अ आल पे० चामी पनिंदा अ० खुशी नाखुशीमा (माया) कपट सहित जुठ मिण खोटा Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९८) +सिदान्तसार देष, गुरु, धर्मनुं सर्दहवं ते. श्रण करवा योग्य नही एवा जो मन प्रादिना व्यापार- प० पचखाण जा जावजीव सुधी कर्यु जे. स सर्व अ० असन पा पाणी खा खा दिम साप सादिम मुखवास च० चार प्रकारना आप श्राहारना प० पचखाण जा0 जावजीव सुधी करीए बीए. जंग जे वली ३० ए सा शरीर इ० वाहावँ के कं० कान्तीकारी पिo प्रीयकारी म मनने गमतुं म विशेष मनने गमतुं धिगधीर्यकारी वि० विश्वासनो हेतु सा रुकुं करी मानवा योग्य ब० घणुं मानवा योग्य अण अवगुण करे तोपण वजन मानवा योग्य जंग रत्नना करंमीया समान मा० रखे सि ताढ लागे मा न रखे ताप लागे मा० स्कूण रखे जुख लागे मा० पी० रखे तृषा लागे मा0 बा रखे सर्पादिक करमेमाण चो० रखे चोर परानव करे मा० दंग रखे दंस मसक करके मा० वा रखे वायु प्रत्नावे पिण् पिताना प्रनावे सं० सलेखम सं० सन्निपात दोष प्रजावे वि०विविध प्रकारना रोग रोग (थोमा कालनो) अंग मान्तक रोग प० परिसह न उपसर्ग फा० एटला बोल रखे फरसे. ति० एवो वाहालो करीने ए० एवा शरीरने पण चण्डेखा जा उंचो स्वास लश्ए ते णी नीचो स्वास मुकीए ते वो वोसरावं . ति० एम कहीने सं० संलेखणा तपे करीने फु० सेववे करी फु० सेवीने न जात पाणी प० पचखीने पापादोप. ममन (वृक्षनी मालनी परे) अगसण करीने का मरणने अण्ण वांना ता थका वि विचरे . त० तेवार पड़ी से ते प० सातसो सन्यासी बा घणा ना नक्तनुं श्र अणसण बेग दे, बेदीने भा० श्राखोवी प० पनिकमी स० समाधि प० पामीने का कालने अवसरे का काम करीने बंग ब्रह्मलोक का देवलोकने विषे दे देवतापणे जग नपन्या. तस्यां ते० तेनी ग० गती त० त्यां ते तेनी वि० स्थिति द० दश सागरोपममी पण कही. प० परलोकना श्रा, श्राराधिक (समकित सहित करणीना करपहारा ते माटे). से शेष बाकी (मोटा कुलमां उपजशे संजम पर मोद पामशे.) तं तेमज जाणवू. ॥१३॥ ४. नावार्थ:-हवे जुन ! श्रा पाठमां अंममजीना शिष्योए सर्पया Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिदान्तसार ( १२९) प्रकारे अढार पापना तेमज सर्व अकरवा जोग कामो करवाना त्रिविधे त्रिविधे त्याग जावजीव सुधी कर्या ने बतां तेमने देशवति श्रावक कह्या के अने तमे तो श्रागारने अव्रत कहो बो. हवे एमने कया पापनो आगार रह्यो ते बतावो. कदाचित खावा पोवाना धागारने श्रव्रत कहेता हो तो एमणे तो चार श्राहारना पण सर्वथा प्रकारे त्रिविधे त्रिविधे जावजीव सुधी त्याग कर्या . हवे शो श्रागार रह्यो ते बतावो. वली कदाचीत शरीर उपर ममता होय तेने श्रव्रत कहेता हो तो, एमणे तो शरीरनी ममता पण सर्वथा प्रकारे त्रण करण त्रण जोगे करोने वोसरावी . हवे शो श्रागार रह्यो ते बतावो. वल) तमे कहोडो के, जेसर्वथा पापना त्याग जावजीव सुधी करे तेने आहारादिक थाप्यामां तथा वंदणा नमस्कार कर्यामां धर्म डे. त्यारे पूर्वोक्त श्रावकोए सर्वथा पापना त्याग कर्या ने तेमने वंदणा नमस्कार कर्यामां पाप केम थाय ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे डे के, “ तेमनामां कांक अत्रत रह्यं हशे, माटे जगवते तेमने देशवति कह्या , ते माटे ते वंदणा नमस्कार करवा योग्य नथी.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! नगवंते तेमने देशवति कपा एमतो सूत्रमा बेज; पण तमे श्रागारमा अव्रत कहोगे ते श्रागार बतावो. तमे व्रत अवतमां समजता देखाता नथी, तेथी एम कहोगे के बागारने अव्रत कहीए. पण हे देवानुप्रीय! अव्रत तो मोहनोकर्मनी बीजी चो. कमी अप्रत्याख्यानीना क्रोध, मान, माया, लोन, राग अने द्वेषना उदयनावमा जे. तेना जोगथी समे समे पुद्गल श्रावीने जीवने राग द्वेषनो ची. कणाश्थी चोटे अने जोगना व्यापार विना पण एपुदगल कर्मपणे परगमे तेने अव्रत कहीये अने मोहनीकर्मनी त्रीजी चोकमा प्रत्याख्यानोना क्रोध, मान, माया अने लोज उदयन्नावमां , तेना जोगथी जीवने अत्याग जावना प्रणाम राग, द्वेष अने अशुन जोग पापमां वर्ते तेने जोगर्नु अबत कहीए. हवे बन्ने चो. मानां कर्म लागे तेने तो एकान्त अव्रत कहीए; अने बन्ने चोकमोनो कयोपशम नाव, उपशमनाय तथा कायकन्नाव वर्ते तेने सर्व बात साधु कहीए; अने बोजी चोकमीनो कयो Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३० ) 4 सिद्धान्तसार. पशम थयो ने त्रीजी चोकमी नदयजावमां बे तेने देसवति श्रावक कहीए. तमे ए सूनी रेसना जाएया थका आगारने त कहोबो; पण संथारामां श्रावकने पापनो शुं प्रागार रह्यो ते बतावो वली वि साधुने व्यवहारमां सर्वथा पापना त्याग के अने तेने केवली सर्वथा अति सर्द बे. दवे प्रजवि साधुने कया पापनो आगार रह्यो ते वतावो. इहांतो चोककोना उदयज्ञावने अव्रत कयुं छे. दवे जो बीजी चोकमीना उदयजावने अनत कहीए तो ते श्रवततो श्रावकने मुसश्री नथी, ( शाख सूत्र जगवतीजं । सतक पढ़ेले) ने त्रीजी चोकमी उदयनावमा बे तेना जोगथी पुल उपर ममत- जाव, राग द्वेष ने शुभ जोग प्रवर्ते, ते जोगना पाप श्री सूयगकांग तथा उववाइ सूत्रमां कोइक पापथी निवर्त्य कला ने कोइक पापथी नथी निवर्त्या कह्या. त्यांतो अशुभ जोगना पाप श्राश्री का वे. तमे सूयगमांग तथा नववाइ सूत्रनां जुठां नाम लेइ श्रावकना खावा, पीवा, घरेणां छाने कपकां प्रमुखने मतने ली अवत केम कहो हो ? वली ए उपगरी धर्मनी साज निमीत्ते सेवे सेवरावे तो शुभजोग निर्जरानी करणी कहीए. मां पाप कया सूत्रमां कयुं बे ते पाठ बतावो . वली श्रावकना खावा पोवामां तथा खवराववामां पाप कहे बे ते पुढ के, जीव सहित वस्तु खाय पीए अथवा व कायनो श्रारंभ करीने खाय अथवा बीजाने खवरावे, ते यरंजनुं तो पाप बेज; पण कोइ श्रावक साधुनी परे संसारथ । विरक्तनावे श्रावकपणुं पासवाने अर्थे - जीव पुद्गल खाय, प्रासुक पाणी पीए, नेना खावा पीवा ने पहेरवा - मांशुं तथा तेने को खवरावे तेमां शुं ? तेवारे तेरापंथी कहे बे के, श्रचेत खाय तोपण तेनुं खावुं पीतुं पापमांज बे. तेनो उत्तर. दे देवानुप्रीय! पाप तो ढार बे. तेना तो संथारामां सर्वथा प्रकारे त्रण करण भने त्रण जो करीने जावजीव सुधीना त्याग कर्या; तेमां सर्व पापनी वस्तुनो तो त्याग सर्व काम ढार पापना त्याग नेगां थइ गयां. त्यारे वर्णनागनतुवे तथा अंमरुजीना शिष्योष चार अहारना न्यारा त्याग केम कर्या ? ए जंग: Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ३३१ ) बीसमुं पाप कयुं ते बतावो दे देवानुप्रोय ! अढार पापना त्याग तो साधुजीने मूल गुणव्रतमांज बे; अने श्राहारना पचखाप करे तो उत्तर गुणव्रत निपजे. तेम श्रावकना अढार पापना त्याग तो मूल-गुणत्रत बे, ने हारना त्याग करे तो उत्तर--गुणत्रत निपजे. तेथी छाढार पाप अने चार आदारना पचखाण न्यारा न्यारा कर्या. घली तमे श्रावकना खावा पीवा प्रमुखमा पाप कहो बो, तो ते खावा प्रमुख अढार पाप मां कयुं पाप ते को अने अढार पापना त्याग करीने पटी आदारना न्यारा त्याग केम कर्या ते पण कहो. हे देवानुमीय ! सिद्धांतनो न्याय तो एम दीसे बेके, साध श्रावकने आहारना त्याग न होय त्यारे तो उत्तर- गुणना श्रपचखाण कहीए, अने हारना त्याग करे तो उत्तरगुण पचखाण निपजे. साधु तथा श्रावक बनेने उत्तरगुण- अपचखाणी पण का बे ने उत्तरगुण- पचखाणी पण कह्या बे. तेन । शाख सूत्र जगवतीजी शतक सातमे नद्देशे बीजे. ए न्याये तो साध-श्रावक बनेनुं खातुं पीव्रं उत्तर गुण छापचखाण बे; केमके शरीरनी ममताने श्रर्थे - शुन जागथी खाय तो बनेने पाप लागे; अने संजम तपनी सहायता अर्थे खाइने शुभ जावना जावे तो शुभ योगथी बनेने निर्जरा थाय. वली जो श्रावकना खावा पीवामां पाप होय तो सूत्र जववाइजीमां मरुजी श्रावकने सो घरे पार करता कह्या बे. ते ममजी श्रावक नव तत्वना जाण एकावतारी सो घरे पारणं केम करे ? एक घरे तो पारं कर्या विना सरे नहिं तेथे । करे; पण सो घरे पारं करी स्वरने अनर्थ पाप केम लगाने ? ते पाठ श्री नववाइजीनो: -- बहु जणेणं अंते ! अन्नमन्नस्स एवमाइकइ एवंासइ एवंपन्न एवं परूवेति एवंखलु अम्मपरिवायए कंपिलपुरे-गारे घरसत्ते प्राहारमाहरेति घरसए वसदिनवेइ. से कहयं ते ! एवं ? गो० ! जसे बहुजणो अन्नमलस्स एवमाइति जाव परूवेति एवंखलु अम्ममे परि Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३२ ) 4 सिद्धान्तसार · वायए कंपिल पुरे जाव घरसए वसदि नवेति सच्चेणं एसमहे. अहं पिणं गो० ! एवमाइकामि एवं जाव परूवेमि एवंखलु म्म परिवाए जाव वस हिनवेति सेकेणठेणं जंते ! एवं वुच्चइ अम्ममे परिवायए जाव वस दिनवेति. गो० ! अम्ममस्सणं परिवायगस्स पगइ जदया जाव विणीयत्ताए बणं प्रणिखीत्तेणं तवोकम्मेणं नटुंबादाउ परिगिजाइ २ सुराजिमुदस्स आयावण भूमिए - यावेमाणस्स सुनें परिणामेणं पसचेदिं अवसादिं साहिं विसुद्यमाणी दिं अन्नयाकयाइं तदा यावर पिवाणं कम्माणं खडवसमेणं इहा पूद मग्गणं गवेसणं करेमाणस्स विरियल दिए वेड वियलक्ष्यि उदिणालद्धि समुप्पणे. ततेणसे अम्मपरिवायए ताए विरियल दिए वेनवियलदिए उहिणाल दिए समुप्पणाए जण विमावणहेड कंपिल पुरेणयरे घरसए जाव वसदिंउवेति सेतेाठेणं गो० ! एवंवुच्चइ मपरिवायए कंपिल पुरेणयरे घरसए जाव वहिं नवेति ॥ एम अर्थः: - व० घणा ज० लोक नं० दे पुज्य ! श्र० मांदोमांदी ए० ए० एम एकवचने बोले बे ए०प० एम जणावे वे मांदोमांही समजावे वे ए०प० एम परुपे बे विस्तारथी कहेडे. ए० एम ख० निश्चे श्र० श्रम्मम संन्यासि कं० कंपीलपुर नगरने विषे घ० सो घरे आ० आहार करे. घ० सो घरने विषे व रात्रे वले बे ? से० ते क० केम बे नं० दे जगवान ! ए० ए ? गो० हे गौतम! ज० यदि ते ब० घण|लोक श्र० मांदोमांही ए० एम कदंबे जा० यावत् प० परुपे बे ए० एम निश्चे ० मम परिव्राजक कंप कंपिलपुर नगरने विषे जा० यावत् घ० सो घरने विषे आहार करे, यावत् व वासो वसे. स० साचो ए० ए. अर्थ T Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. अ० हुं पि० पण गोण हे गौतम ! एन एम कहुं बुं ए० एम जाग यावत् प० परुपुंडं ए० एम निश्चे अ० अम्मम-संन्यासि जाग यावत् व० सो घरे रात्री रहेवू करे बे. सेन्ते शा अर्थे नं० हे नगवान ! ए एम वु० कहोडो के अ० अम्मम-संन्यासि जाग यावत् व० सो घरे रात्री वसे डे रहे डे ? गो हे गौतम ! अ० अम्मम-संन्यासिने प० स्वनावे जा नजिकपणे जाण् याक्त् वि० वनितपणे करीने ब हने पारणे अ० श्रांतरा रहित त तप कर्तव्ये करी न उंची बांह (हाथ) प० करी करीने सु० सूर्य सांना आ० श्रातापनानी नू जूमिने विषे आप आतापना लेतां थकां सु० नला प० प्रणामे करी प० जला अ० अधवशाये करोने ले लेश्या वि निर्मल (विशेष शुक) तेणे करी १० एकदा प्रस्तावे त ज्ञानावरणी (ज्ञानने आवरी रह्या ते) का कर्मना खण क्षयोपशमे करीने ३० विचारणा अनिश्चय करवो म मार्गनी गागा वेषणा क० करता थकाने वि० जीवनी शक्ति लग लब्धि वे० विक्रय रुप करवानी लब्धि, न अवधिज्ञाननी लब्धि सण सम्यक् प्रकारे नपन्या थका त० तेवारे ते श्र० अम्मम-संन्यासि ता ते वि० वीर्य लब्धि वे विक्रय रुप करवानी लब्धि उ० अवधिज्ञाननी लब्धि स० सम्यक् प्रकारे नपनी. तेणे करीने जण लोकने वि० विस्मय पमामवाने अर्थे कं० कंपी. खपुर नगरने विषे घण सोघरने विषे जा यावत् व रात्रे वसतुं करे . से तेणे अर्थे गो हे गौतम ! ए एम कत्यु के, अ० अम्मम-संन्यासि कंग कंपीलपुर नगरे घ० सोघरने विषे जाण् यावत् व रात्रे वसतुं न करे . ___- जावार्थः-हवे जुऊ. आ पाठमां तो नगवंते कह्यु डे के, धम्ममजी-परिव्राजके संन्यासिपणानो मत बोमीने श्रावकपणुं लीधुं बे, संन्यासीना वेशमां श्रावकनां व्रत पाले डे, बेलेबेले पारणुं करे डे अने सूर्य सांमी श्रातापना लेले. ए तप करतां थको नली लेश्या तथा जला अधवशाये करीने ज्ञानावरणी--कर्मनो कयोपशम थयो, अवधिज्ञान प्राप्त थयुं अने वैक्रिय रुप बनाववानी लब्धि नपनी. तेथी लोकोने विस्मय उपजाववाने अर्थे सो घेरे पारणं करे . हवे एक घेरे तो पारणं कर्या Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) + सिद्धान्तसार विना चाले नहि तेथी पाप लागे तो पण करवु पमे ते अर्थ-पापमा मे; पण श्रावकना खावा पीवामां पाप होय तो अम्ममजी श्रावक तो पापथी मरता हता. ते श्राधाकरमी (मूल थापीने लावेलु), मीश्र अने उधारे लावेलुं, इत्यादिक दोष टालीने प्रहार लेता कह्या ले. एवा समजवार श्रावक सो घरे पारणुं करीने अनर्थ पाप केम ल. गामे तेमज पारणुं कराववावालाने पाप लागे तो सो घरवालाने श्रणहुतां अनर्थ पाप लगामोने केम मबोवे ? माह्या हो ते वि. चारी जोजो. वली आ पाउना आगला पाठमां उववाश्जी सूत्रमा कर्यु डे के, अम्ममजी श्रावकने अनर्थ पाप करवा कराववाना त्याग . हवे जुन ! श्रावकना खावा पीवामां पाप होय तो, पूर्वोक्त अनर्थ पाप लगामयुं तेनुं श्रापमुं व्रत केम रघु श्रने ते आराधिक केम थया ते कहो. हे देवानुप्रीय ! साधश्रावकनुं खावं पीयूँ पापमां नथी, पण उदय नावमा . जो ते शरीरनी ममताने अर्थे राग द्वेषथी अशुन जोगयी खाय तो साध श्रावक बनेने पाप लागे; पण जो साध श्रावकपणुं नि. नाववाने अथें अचेत पुदगलनुं नाहुं प्रापे, श्रने शुन नावना जावे तो साध भाषक बनेने शुन्न योगथी निर्जरा थाय. वली अहींयां तो एम कयुंडे के, अम्ममजी श्रावकने वैक्रियलब्धि तथा श्रवधिज्ञान उपन्यु, तेथी लोकोने जैन धर्मनो विस्मय उपजाववाने अर्थे सो घेरे पारj करे . हवे विचारो! एवा समजवार श्रावक पाप करीने जैन धर्म केम सजावशे ? माह्या हो ते विचारी जोजो. वली आणंदजी श्रावक आदि घला श्रावक पमिमाधारी थया. ते आठमी पमिमामां सचेत पारं. ननु पाप करे नही, नवमीमां करावे नहि, दसमीमां करताने नलो जाणे नही अने अग्यारमी पमीमामां सर्वथा प्रकारे श्रारंन त्यागीने तथा श्राधाकरम्यादिक दोष टालीने, साधुनी पेरे इरिया जोइने, सुजतो श्रहार पाणी लावीने, देहीने नाउँ पापी, तपश्या धर्म ध्यान करे तेने दान देवामां शुं ? तेवारे तेरापंथो कहे वे के " सर्वथा प्रकारे पापना त्याग त्रण क Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १३५ ) रणने त्रण जोगेथ होय तेने साधु कहीए. तेने दान देवामां तो एकान्त धर्म बे, पण श्रावकने संथारा विना सर्वथा प्रकारे त्याग होय नही; पमिमाधारीने कांइक पापनो आगार रह्यो दशे तेथी श्रावक का बे. जो सर्वथा प्रकारे पापना त्याग होय तो साधु केम न कया ?” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! संथारामां वर्णनागनतुबे ने अम्मरुजीना सातसो शिष्ये (श्रावके ) सर्वथा प्रकारे अढार पापना, सर्व करवा योग्य कामना तथा चार आहारना त्रण करण श्रने त्रण जोगथी जाबजीव सुधीना त्याग कर्या छाने शरीरनी ममता सर्वथा प्रकारे जावजीव सुधी उतारी; तोपण तेमने श्रावक कह्या बे. तेनी शास्त्र सूत्र जगवतीजी सतक सातमें नद्देशे नवमें तथा नववा सूत्रमां वासते एम समजतुं के, त्रीजी चोकमी नृदयजावमां वर्ते बे माटे श्रावक कही ये बी. बाकी सर्व पापजोग करवा, कराववा ने जला जाणवाना मन वचन ने कायाए करीने त्यागा डे. तेमज पकिमाधारी श्रावकने पण जोगथी त्रिविधे त्रिविधे पाप करवाना त्यागडे; पण त्रीजी चोकमी नदयजावमां बाकी बे तेथी श्रावक कह्या बे; अने तमे तो सूत्रनी शैलीना अजाण का कहोगे के, पमिमाधारी श्रावकने कांइक पाप करवानो आगार रह्यो बे तेथी श्रावक कह्या बे. वली श्रावकने त्रण करण ने त्रण जोगथी सर्वथा पापना त्याग कर्या कला बे. शाख सूत्र जगवती सतक में उद्देशे ५ मे. ते पाठः समणोवासगस्सणं जंते ! पुवामेव थुलग्ग - पाणा इवाए अपच्चरका नवइ सेणं नंते! पन्ना पच्चरकायमाणे किंकरेइ ? गो० ! तिय पक्किम पपन्नं संवरे अणागयं पच्चकाइ. तीयं पक्किममाणे किं तिविदं- तिविदेणं पमि - कमर, तिविहं दुविदं पक्किम, तिविद - एग विदेणं पमि - क्कम, दुविहं-तिविदेणं पमिकम, दुविदं दुविदेणं पक्कि - मइ, दुविदं एग विहे पक्किम, एगविदं तिविहेणं पनि ― Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३६ ) सिद्धान्तसार. कमइ, एगविदं विदेषां पक्किम एगविदं एगवि - देणं पक्किम ? गो० ! तिविदं वा तिविदेणं पक्किम, तिविदंवा दुविदेणं पक्किम, तंचेव जाव एक विवा एकविदेणं पक्किमइ तिविदं तिविदेणं पडिक्कममाणे नकरेइ नकारवेश करंतंनाणू जाणइ मासा वयसा कायसा. अर्थः- स० श्रमणोपासक (श्रावक ) नं० दे जगवंत ! पु० पूर्व काले सम्यक् पविर्ज्या पलां तथा जवान्तरे यु० स्थुल प्राणातिपात ० पहेलां देशवति प्रणामना श्रावथी पचख्या नथी से० ते श्रमपोपासक जं० दे जगवंत ! प० पछी प० पचखतोथ को किं० शुं करे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० दे गौतम ! ति अतित कालनां क्रत्य प्राणाति पातने प० निंदे ( गया कालनुं प्रतिक्रमण करे ), प० वर्तमान काले प्रापातिपात सं० संवरे ( वर्तमान काले संवर सामायक करे ), अ० ज० विष्य काले प० प्राणातिपात नही करशुं एवी प्रतिज्ञा करे ( श्रागमिक कानुं पचखाण करे ). हवे ती० अतित काल क्रत्य प्राणातिपात प० मतो को किं० शुं ति० त्रिविध त्रिविध ( करवा कराववा अनुमोदन दथी ) प्राणातिपात योग्य प्रत्ये एवं कहीए ? ति० त्रिविध जे मन, वचन, काय, लक्षण करवे करी प० निंदवे करी विरमे ? १ के लि० त्रिविध कर्णादि जेदथी 50 मन बोमीने बेदु करोने प० विरमे १ २ ति० त्रिविध कर्णादि दथी ए० एक विधे मन प्रमुख एके करीने प० विरमे १३ 50 द्विविध करण आदि अनेरा बने ति० त्रिविध मन प्रमुख जोगे कर प० विरमे. १४ दु० द्विविध करण यदि दु० मन प्रमुख नेरे वे जोगे करी प० विरमे १५ दु० द्विविध करण आदि ए एक योगे करी प० विरमे ? ६ ए०ति० एक करण अने त्रण योगे करी प० विरमे १७ ए०० एक करण अने बे योगे करी प० विरमे ? ८ के ए०ए० एक करण ने एक योगेकरी प० विरमे ? ए. इति नव प्रश्न. उत्तर. गो० दे गौतम ! तिo त्रिविधे त्रिविधे प० पक्किमे अथवा तिण्डु० Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १३७ ) त्रिविधे द्विविधे प० पक्किमे (विरमे). तं० जेम पूर्वे कथुं तेम जा० जावत् ए० एक करण ने ए० एक जोगथी प० पक्किमे विरमे. इहां नवे प्रश्ननो उत्तर. दवे ति०ति० त्रिविधे त्रिविधे प० पक्किमतो थको विरमतो थको इहां एक विकल्प कहे बेः- न० प्राणातिपात पोते न करे to बीजापासे न करावे अने क० करता प्रत्ये जलो न जाये म० मन व० वचन छाने का० कायाएकरी इत्यादि अधिकार घणो बे ते श्री भगवतीथी जालवो. • जावार्थ:- हवे जु! आ पाठमां तो कयुं वे के, ४० जांगाए करी गया कालनुं सर्व पाप पकिकमे, विद्यमान कालनुं सर्व पाप संवरे अने जविषय कालनां सर्व पाप पचखे. एम पांच श्राश्रवना १३५ जांगा का बे. हवे जुड़े ! ३३ में आके त्रण करण त्रण जोगथी पापना त्याग श्रावकने कला बे. ते पकिमाधारी श्रावकने न होय तो बीजा कया श्रावकने दशे ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहेबे के, ए तो प्राणातिपातादिक पांच ग्राश्रवना त्याग कह्या बे, पण सर्व पापना त्याग नथी कह्या. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रय ! साधुजीने पांच श्राश्रवना त्रिविधे त्रिविधे त्याग बे, तेथी सर्व पापना त्याग थइ चुक्या. तेमज श्र श्रावकने पांच श्राश्रवना त्याग तेज मूल-गुणत्रत बे ने उपलां सात व्रत ते उत्तर-गुण कां बे; केमके पांच अणुव्रतमां पापनो आगार रह्यो, ते आगलां सात मां संकोचाय बे; अने पांच श्रश्रवना त्रिविधे त्रिविधे त्याग कर्या, सेवारे उपरना व्रतना त्यागमां समाइ गयां. जेम अनुयोगद्वार सूत्रमां ऋजुसूत्र- नयनो धणी एक अहिंसानेज व्रत माने. जेणे त्रिविधे त्रिविधे हिंसा त्याग कर । तेने पांचे महात्रत थयां ने सर्व पापना त्याग थर चुक्या कह्या बे. तेम इहां पण पांच श्राश्रवज लखाव्या तेमां सर्व पा. पना पचखाण जाणवा. जेणे पांच श्राश्रवना त्याग त्रण करण अनेत्रप जोगथी कर्या हशे, तेने बीजा पापना त्याग केम नहीं इशे ? तमे तो कहो बे के श्रावकने त्रिविधे त्रिविधे त्याग होय नहीं; पण जगवतीजी सूत्रना था पाठमां समचे श्रावकने तेत्रीस ग्रांके पापना त्याग याय कह्या ४३ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३८) +सिद्धान्तसार.. बे. त्यारे श्राणंदजी सरखा पमिमाधारी-श्रावक साधुन परे सुजतो आहार प्रमुख लावीने खाय तेने त्याग केम नही थशे ? एवा आणंदजी सरीखा श्रावक, जे बार क्रोम सोनैयानी दोलत त्यागी, कायनो गटको करवो त्यागोने, तपश्या धर्मध्यान करोने, श्रात्माने नजाने, थने वेदनी-कर्मना उदये ज्यारे जुख सेहवा असमर्थ होय त्यारे साधुनीपरे. सुजतो श्राहार पाणी लावी, श्रात्माने नासु दश्ने, धर्मध्यान (अग्यारमी पमिमामां) तपश्या करे, एवा जे उत्तम श्रावकना व्रतना गुणने अनुमोदी उलट नावथी हाथे दान थापे तेने शुं थाय? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, एनुं खावु पी अवतमां ने तेथी देववालाने श्रव्रत लागे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! नगवंते तो पांचमे गुणगणे सर्व श्रावक एकज व्रतना धरणहार होय तेमने पण अवतन क्रिया वर्जी जे. तेनी शाख सूत्र नगवती शतक पहेले नद्देशे बीजे. ते पाठःमणुस्साणं नंते ! समकिरिया ? गोo! णो तिण समझे से केणणं नंते ! एवं वुच्च? गो ! मणुस्सा तिविदा पं0 तं० समछिी मिनादिछी सम्मामिबादिछी. तवणं जेते समदिछीते तिविदा पं०२० संजया असंजया संजयासंजयाय. तन्त्रणं जेते संजयाते ऽविदा पं0 तं० सरागसंजयाय वियरागसंजयाय, तवणं जेते वियरागसंजयाय तेणं अकिरिया. तबणं जेते सरागसंजया ते विहा पंतं० पम्मत्तसंजयाय अप्पमत्तसंजयाय.तबणं जेते अप्पमत्तसंजया तेसिणं एगामायावत्तियाकिरिया कव. तबणं जेते पम्मत्तसंजया तेसिणं दो-किरियान कद्यति तं०. आरंनियाय मायावत्तियाय. तबणं जेते संजयासंजयाय तेसिणं आदिमाउ तिन्नि किरिया कचंतिः-आरंनिया । परिग्गदिया २ मायावत्तिा ३. असंजयाणं चत्तारि कि Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार रिया कचंति. मिन्बादीहीणं पंच.सम्मामिबादीहीणं पंच. अर्थः-पुर्ववत्. जुर्ग प्रश्न बीजो पाने १५३ में. नावार्थ:-हवे जु! श्रा पाठमां चोवीस दमकना मिथ्यात्वी जीवने तो आरंजनी, परिग्रहनी, मायाप्रत्ययनी, अपचखाणनी भने मिथ्या-दर्शन प्रत्ययनी ५ ए पांच क्रिया कही; अने अवति समदृष्टि चोथे गुणगणे, तेने मिथ्यात्वनी वर्जीने चार क्रिया कही; श्रने पांचमे गुणगणे श्रावक, तेने अवतनी थने मिथ्यात्वनी वर्जिने त्रज क्रिया कही; अने प्रमादो साधु बठे गुणगणे, तेने आरंजनी अने मायावत्तियानी बे क्रिया कही; श्रने अप्रमादी साधु सातमे गुणगणेथा लश् दसमा गुणगणा सुधी, तेने एक मायावत्तिया-क्रिया कहो; अने वीतरागसंजमी अग्यारमा गुणगणाथी लश् तेरमा गुणगणा सुधी, तेने एक इरियावहि क्रियाज लागे . वास्ते ए पांच क्रिया श्राश्री थक्रिय कह्या. हवे जु ! था पाठमां तो नगवंते सर्व श्रावकने अवतनो क्रिया टालो कही . तमे मतने लीधे श्राशंदजो सरखा पमिमाधारी श्रावकनुं खावं पीवं श्रव्रतमां केम कहो गे अने देवावालाने अबत लागे केम कहो बो? तेवारे तेरापंथी कहे जे के, ए तो खंध श्राश्री टाली कही , पण देश आश्री तो लागे डे ते गण नथी. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! साधुजीने आरंनिया अने मायावतिया क्रिया कही, ते खंध आश्री कही ने के देश श्राश्री कही ले ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, “साधुजीने तो विना नपयोगे अजाणपणे किंचित मात्र लागे ते आश्री कह। वे.” त्यारे जुन. ए किंचित मात्र लागे तेने पण गणी, त्यारे श्रावकने देशथकी अवतनी क्रिया होय तो केम न गरो ?; पण अव्रत तो माह कर्मनी बीजो चोकमीना अप्रत्याख्यानना उदयनावमां होय तेना जोगथी कम लागे तेने कहीये. ते अव्रत तो श्रावकने मुलथीज नथी, तेथी अवतनी क्रिया नगवंते टाली कही तमे मतने लीधे ए सूत्रनां वचन उत्थापीने श्राएंदजीभावक जेवाने अव्रत कहोने अनंत संसार केम वधारोबो? . Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) सिद्धान्तसार तेवारे तेरापंथी कड़े बे के " आलंदजी सरीखा पकिमाधारी श्राव कने छात्र नही, ने दान दीधामां गुण (व्रत) होय तो कोइ पण परिमाघारी - श्रावकने दान दइने संसार परित कीधो, एवं सूत्रमां चायुं होय तो पाठ बतावो; तथा कोइने बारमुं व्रत निपन्युं याल्युं होय तो बतावो सूत्रमां का विना वात शी रीते मानीए.” तेनो उत्तर हे देवानुप्रय ! घणां सूत्र तो विछेद गयां छाने बीस सूत्र रह्यां. मां पण घणी वातो मोघम कही बे. तमे सूत्रमां चाव्यानुं पुढो बो तो, साधवीने दान देश कया श्रावके संसार परित कीधो ते मूल पाठ बता. तथा केवलीने दीधाथी कोइने बारमु व्रत निपन्युं होय तो ते पण बतावो ए सूत्रमां चाल्या विना केम मानो बो. तमारी कड़ेीने लेखे तो ए पण न मानवुं जोइए. तेवारे तेरापंथी कदे बे के "केवलीना तथा वारज्याना गुण तो साधु सरीखा बे. ते साधुनुं दान बारमा व्रतमां सूत्रमां गम ठाम चाल्युं बे. ए सरखापणाथी मानीए बीए. " त्यारे हे देवानुप्रय ! दसाश्रुतखंधमां खाणंदजी सरखा पनिमाधारी श्रावक ने 'श्रमण नूय (साधु जेवा)' कह्या बे. ते अभ्यारमी परिमानुं नामज श्रमण नुय बे. एटले पनिमाधारीने साधु सरीखा कहीए. जो साधुने दान दीघां संसार परित करता हशे तथा बारमुं व्रत निपजतुं दशे तो श्रव्यारमीपमिमाधारी श्रावकने साधु सरखा कह्या बे, तेमने दीघानुं फल साधुने दान दीधा सरखं केम नही दशे ? ए सरीखा का ए अनुमानथी जाणवुं जोइए. वली पकिमाधारी - श्रावकने दान दीधामां पाप होय तो पमिमामां तो साधुनी पेरे मागी खावुंज कयुं छे. पािधारी तरे ने दान दइने घणा जीव मुबे, एवी करणी श्री वीतरागदेवे केम बतावी ? या तो एवं थयुं. जेम ढाके, बंगाले छाने कामरुदेशमां अनेक ग (धूर्त) मित्र बे, पण एथीए नपर लखी श्रद्धावाला गुरुनुं श्राश्चर्य a, ए धर्म करवो शीखव्यो के धाऊं पामवा शीखव्युं ! वली पमिमाघारीने दान दीधामां पाप होय तो पकिमाधारी चोर करतो पण Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. श्रधिका कडेवाय; कारण के चोरतो धणीनुं धन चोरीने लइ जाय, पण धनना धणीने पाप तो न द जाय ? अने पमिमाधारी तो अन्न वस प्रमुख माल लइ जाय अने पाप द जाय. वली चोर तो जाऊ फामीने जातां श्रसंधारी (खानदान) होय तो जतावो (खबर) दे के “में तमारुं जाऊ फामीने माल काढयो माटे तमे कारी देजो; केमके रखे समारं काऊ मुबी जाय" एम जतावो करे; पण पमिमाधारी तो जतां जतावो पण न करे के " अरे नाइ ! तमे मने उलट नाव करीने दान देश धर्म सर्दह्यो होय तो तेनुं पाप मिथ्यात तमने लागे . तेनी आलो. वशा करी प्रायडित लश् शुद्ध थाजो.” एम जतावो पण न करे. एवा विश्वासघाती श्राप मतलबीथा तमारे लेखे श्राराधिक शी रीते थया हशे ? वली पमिमाधारीने दान दोधामा पाप होय तो ते माकण सरी. खा कहेवाय. जेम माकणने वीर वलगे त्यारे ते घरनां बालक डोमीने परायां बालक जोती फरे, तेम पमिमाधारीने जुख लागे त्यारे घरनुं पाप डोमीने लोकोने पाप लगावीने मबोवता फरे. वली जेम माकपने बालक मारवार्नु कहे तो नही, पण मंत्र शीखवे तेने पाप लागे. तेम जगवंत खावा खवराववानी आज्ञा तो न आपे; पण पमिमा वहेवानी विधि शीखवे. तेमां तमारे लेखे तो नगवंतने पण पाप लाग्युं हशे; पण एम जाणवू जे, पाप होत तो एवी करणी केम बतावत ? वली पमीमाधारीने दान दीधामां पाप कहे जे तेने पुब्बु के, पमिमाघारीने तो पाप करवा, कराववा अने अनुमोदवाना त्याग , थने ते श्रागला पासे जश्ने मागे तेवारे जो दातारने पाप लागे तो पमिमाधारीने पाप कराव्याथो पमिमा नागे. त्यारे हवे पमिमा शी रीते साधी शकाय ते कहो. तेवारे तेरापंथी जवाब देवा असमर्थ; पण मनथी एवां कुहेत मेलवे ठे के " साधु श्रहार पाणी वधे तो अथवा काल, क्षेत्र नपरान्त रही गयो होय तो ते धरती उपर परवे; पण ते पमिमाधारी श्रावकने आपे नही. जो तेने श्राप्यामां धर्म होय तो साधु केम न पापे ? केमके साधुने पाप करवाना तो त्याग के, पण एतो ध. Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) + सिद्धान्तसार.. मनुं काम बे. ते केम नथी करता ? जो साधुने धर्म न थाय, तो श्रा. वकने धर्म केम थशे ? " तेनो ननर. हे देवानुप्रीय ! साधु थाहार वधे तो अथवा काल मर्यादा (त्रण पहोर) नपरान्त अने क्षेत्र मर्यादा (वे कोश ) नपरान्त रहीगयो होय तो धरतीए परग्वे, पण तीय करूपी अोय कल्पीने माहोमांही आपे नही, अने स्थिवर-कल्पी श्रने जिन-कल्पी पण माहोमांही आपे नही. ते पाप जाणोने न आपे एम म जाणवू; पण तेमनो कल्प नथी तेथी न आपे. जो 'पाप जाणीने न श्रा एवोज तमारे हव्वाद , तो कहो. श्री महावीरस्वामीनाश्रावक श्री पार्श्वनाथजीना (अठीय-कल्पी) साधुने दान आपे तेमने शुं फल थाय ? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, तेमां तो एकान्त धर्म . वली साधवीने साधु अव्ये वंदणा न करे; पण श्रावक श्रावीका थारजाने वंदणा करे तेमने शुं फल थाय ? तेवारे 'कहे जे के धर्म .' त्यारे जुर्ड! ज्यारे श्रावकने धर्म थशे, तो साधु ए धर्मनुं काम केम न करे ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, एसो साधुनो कप नथी तेथी नथी करता. - हे देवानुप्रीय ! ज्यारे असंजोगी साधुने देवानो तथा वंदणा करवानो कल्प नथो त्यारे पमिमाधारीने देवानो कल्प कयांथी होय ? बसी तमे कहोडो के 'जेने साधु न आपे तेने थाप्यामां पाप जे.' तो ठियकल्पी स्थिवर-कल्पी साधुने अठिय-कल्पी साधु अथवा जिन-कस्पी साधु नयी आपता. हवे ए तमारकहेणीने लेखे तो, स्थिती कल्पी स्थिवर कल्पी साधुने दोधार्नु पण पाप थर्बु जोइसे. है देवानु. प्रीय ! एम तो घणा वोलनो साधुनो कदा नथी, तेथो तेवां काम तेन न करे; पण जो श्रावक करे तो धर्म . ए रीते पमिमाधारीने साधुनो तो देवानो कल्प नथी, पण श्रावकने पाप केम कहो हो? ___ वली तेरापंथी कहे डे के “ पमिमाधारीनी पमिमा पुरी थइ जाय त्यारे पाग घरमा श्रावे, अने जे कायाने पोषी ने तेज कायाथी पाप करे, ते पाप दातारने आवे." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! ए तमारी कहेणीने लेखे को श्रावक साधुने उध, धूत, वहोरावे तेमां कीमी, पतंगीया प्रमुख Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( १४१) पनीने मरे, तेनुं पाप दातारने लागवू जोइए. तेमज साधु कर्मने उदये घ्रष्ट थइने पाप करे, ए पाप पण ऐटला दीवस दानदश् जेणे कायाने पोषी तेने लागवू जोशए. वली कदाच श्रावकने तो साधु चष्ट थशे एवी खबर न होय, पण केवलज्ञानी तथा श्रवधज्ञानी मुनीराज तो जाणे के, ए साधु एक मास अथवा एक वरस पडी ब्रष्ट थशे; बतां तेने नेलो गखे , आहार पाणी लावीने थापे के अने चाकरी करे . हवे ते नष्टथनार तेज कायाथ, पाप करशे. तमारी कहेणीने लेखे तो तेने नेलो राखवो न जोए तथा थाहार पाण) पण आपq न जोइए. तेवारे तेरापंथो कहे के “ विद्यमान काले साधपणुं पाले ले तेनी सहाज देवाना कामी ने, तेने तो धर्मज थशे अने पढ़ी ज्रष्ट थश्ने पाप करशे तो करवावालोज नोगवशे. .. हे देवानुप्रोय ! पम्भिाधारीने पण विद्यमान गुण जाणीने दान श्रापे जे अने पनी पाप करशे तो तेज नोगवशे; पण दातारने पाप केम लागशे ? वली श्रावकने साधु धर्म शीखावे तथा त्याग पचखाण करावे तेथी देवतामां जाय, अने पल सागरो सुधी देवतानां सुख जोगवे तथा अव्रत पाप कर्म सेवे, तेनुं पाप तमारी कहेणीने लेखे तो नगवंत, केवली अने साधुने लागवू जोइए; केमके सुपचखाण कराव्युं तेथी देवता थयो. हवे ते पाप करीने सुबत तो तेनुं पाप तो जगवंत, केवली के साधुने लागतुं नथी. ए त्यागना टंटामां पमोने केम सुबे ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के “साधु तो धर्म (मुक्तीमार्गना श्राराधिकपणा) माटे शीखवे ने श्रने पुण्य बंधाय तेथी देवतामां जाय जे; पण साधु तो देवतामां मोकली सुख नोगवराववाना काम नथी." त्यारे हे देवानुप्रीय ! दातार पण पमिमाधारीने धर्म स्हायता अर्थे दान थापे डे, पण घरमा श्रावीने पाप करशे एम जाणीने नथी थापता; केमके पाप कराववाना कामी नथी. वसी श्राणंदजी श्रादि दसे श्रावके नपासकदशा सूत्रमा पमिमावहि, तपश्या करी, काया शोषी, संलेखणा करी, संथारो करी पहेला देवलोकमां गया. तेमने एकावतारी कह्या बे, पण पमिमावहिने घरमां Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) +सिद्धान्तसार.. - - - पाला श्राव्या कह्या नथी. तेमज कार्तिक शेठ श्रावक पांचमी पमिमा सोवार वह्या कह्या डे, पण अग्यारमी पमिमा वहीने साधुनी पेरे सुजती गोचरी करीने, श्राहार मागी खाश्ने पाग घरमा श्रावे एवो पाठ तो सूत्रमा को ठेकाणे कह्यो नथी. तेवारे तेरापंथी कहे जे के "पमिमानो काल जघन्य अंतर्मुहूर्त तथा एक दीवसनो कह्यो ने अने नत्कृष्टो अग्यार मासनो कह्यो . ते पुरो थया पी शुं करे ? " तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय! श्रावश्यक निर्यु. क्तिमां कह्यु डे के, केटलाक तो अंतर्मुहूर्त पनी, केटलाक एक दीवस पनी तथा केटलाक यावत् अग्यार मास पली कां तो संलेखणा करीने संथारो कर, कां तो दिदा ले, पण घरमां न आवे; केमके आवे तो लोकमां जैन-मार्गनी लघुता थाय श्रने पोतानी निद्या थाय. लोको कहे के, हवे करणी करता थाकी गया तेथी व्रष्ट थश्ने घरमां आवी बेग डे; तेटला वास्ते घरमा न थावे एम कडं जे. हवे तमे कया सूत्र, पाउ, टीका, नियुक्तिना न्यायथी कहो बो के, अग्यारमीपमिमा वहीने पाला घरमां आवे ते बतावो. अरे ना! तमे मतने लीधेज "पमिमाधारी पाने घरमां प्रावीने पाप करे ते दातारने लागे.” एवी जुनी कुयुक्ति लगा. वीने संसार केम वधारो बो? तेवारे तेरापंथो कहे जे के, “पमिमाधारी श्रावकने दान थापे तेमां धर्म होय तो साधुजी, नगवंत अने केवली तेने दान देवानी आज्ञा केम नथी थापता ? " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! पमिमाधारी श्रावकने पमिमानी विधि जगवते, केवलीए श्रने साधुए बतावी . तेवारे उपदेशमां तो श्राझा थइचुकी, अने आदेशमां तो थाझा एक पोताना संजोगी टाली बीजा कोइने अहार पाणीनी श्राशा थापे नही. जेम पोसामां पलेवण करवानुं सा. धुजी शीखवे . ए नपदेशमां तो श्राज्ञा ले पण, विद्यमान पलेवण करतीवेला आज्ञा श्रापे नहिं. पण पाप न जाणे. जो पलेवणमां पाप होय तो पोसामां पाप करवा कराववाना त्याग , ते पलेवल कर्याची पोरो Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार (३४५) नागे, अने पलेवण न करे तो अतिचार लागे. ए अतिचार टाल्यामां धर्म डे बतां श्रादेशमां आशा आपे नही. वसा साधुजी आव्याथी आवक उनो थाय, साधुजीना सांमो जाय तथा घरमांथी वस्तु लावीने वहोरावे, एटला कामनी श्रादेशमां श्राज्ञा आपे नहिं; पण नपदेशमां तो धर्म बतावे. ए उपदेश-आज्ञा . वली स्वसंनोगी साधुनेज बे झा ने, अने असंनोगी साधुने तथा श्रावकने कोश्क बोलमां बे श्राज्ञा बे. तेमां कोश्क बोलमां नुपदेश-श्राझा डे अने आदेश-धाज्ञा नथी. तमे आज्ञा कल्पना नेदना अजाएया थका कहो बो के “ पमिमाधा। श्रावकने दान देवानी साधुजी आज्ञा न आपे, तेथी ए काम थाज्ञा बहार .” एवां थाल केम द्यो बो ? तेवारे तेरापंथो कहे जे के “ पमिमाधारी श्रावकने दान दीधामां सूत्रमा कयांय धर्म के व्रत कथु होय तो ते पाठ बतावो.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जगवती सूत्रना श्रापमा शतकना बग उद्देशमां कडं ले के, श्रमणो-पासक श्रावक, तथारुप श्रमण कहेतां साधु प्रत्ये, वा कहेतां अथवा, माहण कहेतां श्रावक प्रत्ये प्रासुक एषणिक बेतालीस दोष रहित प्रतिमाने तो एकान्त कर्मनी निर्जरा थाय; पण लगार मात्र पाप नथा. ... तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ समणंवा माहाणंवा कहा ले ते बंने नाम साधुनांज ले. ते सूत्र सूयगमांगमां कह्या ले.तेमने दीधांमां निर्जरा कही जे.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! साधुनां नाम तो समण, माहण, लिखु , संजश मुनि, ऋषी इत्यादिक घणां कह्यां डे; पण एक कार्यमां बे नाम आवे नही. समणंवा, संजयंवा, निखुवा, ए रीते के नाम एक कार्यमा बत्रीस सूत्रमा कोपण ठेकाणे आव्या होय तो बतावो. ए पुनरुक्त वचनरुप दोष श्री वीतरागनी वाणीमां आवे नही. समणं क. हेतां साधुप्रत्ये, ने वा अथवा माहणं कहेता साधु प्रत्ये, एम अर्थ न होय. ए शब्द वचमा डे ते तो विकल्प अर्थ वास्तेज ब. समण साधु प्रत्वे अथषा माहण श्रावकप्रत्ये. इहां मादण शब्दनो अर्थ श्रावकज Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. संजवे दे. तेवारे तेरापंथी कहे डे के, “हांतो माहण प्रत्ये, एवो समचय अर्थ को , पण श्रावकनो अर्थ को नथी. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! श्री जगवती सूत्रना पहेला शतकना सातमा उद्देशामा अन्नयदेवसूरिजीए गर्नना अधिकारमां, समणंवा माहणंवा शब्द थाव्यो ने त्यां, समणं नाम तो साधुनो अर्थ कयों बे, अने माहण शब्दनो अर्थ श्रावक कों बे; तथा दोलतसागरजी कृत जगवतीजीना टबामां पण पुर्वोक्त रीते अर्थ को बे. तेवारे तेरापंथी कहे डे के, पहेला शतकना सातमा नदेशामां माहण शब्दनो श्रावक अर्थ कर्यो, त्यारे भाउमा शतकमां माहण शब्दनो श्रावक अर्थ केम न कर्यो? तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! सूत्रनो टीकानी शैली एवीज डे के, एकजवार शब्दनो अर्थ करे. एज शब्द वारंवार था तो बोजोवार टीकामां अर्थ न करे. तेमज बीजा शतकना पांचमा उद्देशामां एज पाठ आव्यो , तेमां तथारुप समण माहणनी सेवा कर्यायो ‘सवणे नाणे विनाणे' इत्यादिक दस बोलनी प्राप्ती थाय. हवे जुउँ ! श्रावकनी संगत आने सेवा कर्याथी दस बोलनी प्राप्त थाय के नही ? इहां पण माहण श. ब्दनो अर्थ श्रावक जाणवो. एम सर्वत्र जग्योए जगवंतीमां “ समपंवा माहणंवा" शब्द श्राव्यो त्यां — माहण' शब्दनो पहेलीवार टीकामां श्रावक अर्थ को तेज जाणवो. वलगणायांग सूत्रमा पहेला 'समणं वा माहणंवा' शब्द श्राव्यो त्यां पण अजयदेवसूरीजीए टीकामां 'माहणं' शब्दनो अर्थ श्रावक कर्यो के. एम सर्व सूत्रमा 'समणं वा माहणंवा' शब्दनो अर्थ को ठेकाणे तो न्यारो न्यारो कयों ने श्रने को ठेकाणे मोघम को . समणं साधु प्रत्ये, वा अथवा माहणंवा कहेतां श्रावक प्रत्ये, एमज को बे; पण सर्व जग्याए जगवताना पहेला शतकना सातमा नद्देशामा पहेलोवार टीकार्थ को तेम जाणवो. एज 'ममणंवा माहणंवा' पाउ नगवंतीजोना पांचमा शतकना हा उद्देशामा कह्यो बे. तथारुप समण साधु प्रत्ये अथवा माहण प्रत्ये हीले, निंदे अने, अनीयकारी दान आपे तो अशुन-दीर्घायुष्य बांधे; अने तथारुप समय Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. ( ५४७) माहणं प्रत्ये वांदे, नमस्कार करे अने प्रीयकारी दान थापे तो शुनदीर्घ-श्रायुष्य बांधे. एमज तथारुप समणने दान दीधाथो अशुज-दीर्घश्रायुष्य श्रने शुन-दीर्घ-आयुष्य सूत्र गणायांगने त्रीजे गणे कडं . एमज साधुनुं तथा पमिमाधारी श्रावकनुं दान घणा सूत्रमा नेबु कां डे अंने तेनां फल सरखां कह्यां . समणं वा माहणंवा एवो पाठ एक कार्यमां आवे अने वा शब्द वचमां श्रावे त्यां समण कहेतां साधु, वा अथवा मादण कदेतां श्रावक, एवोज अर्थ संनवतो . 'वा' शब्द वि. कहप अर्थने वास्ते . तमे कहो बो के “ समणं कहेतांए साधु वा श्रथवा अने माहणं कहेतांए साधु." तो एवो ‘समणंवा माहणंवा' एक कार्यमां पाठ को सूत्रमा होय तो बतावो, के जेमां साधुनोज अर्थ थाय श्रने श्रावकनो अर्थ न थाय. तेवारे तेरापंथी कहे के " बीजी तो अनेक जग्याए 'समणं वा माहणंवा' पाठ आव्यो त्यां तमे माहण शब्दनो अर्थ श्रावक करी देशो, पणं गणायांगमां त्रीजे गणे, तथा-रुप समण माहणने अतिशय-ज्ञान नपजे का जे. ते अतिशय-झान तो साधुनेज उपजे. त्यां पण वा शब्द वचमां बे. समणंवा माहणंवा एवो पाप . हां साधुनोज अर्थ संनवे बे. तेम दानमां पण बंने शब्दनो साधुज अर्थ संजवे जे.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! सूत्र नगवतीना अग्यारमा शतकमां, शीवराज ऋषिश्वरने विजंग शान उपन्यु तेने अतिशय-ज्ञान कयुं . ते अतिशय ज्ञानना त्रण नेद कह्या बेः अवधि १ मनःपर्यव २ अने केवल ३. हवे जु! मि. थ्यात्वीना विनंग-ज्ञानने पण अतिशय-ज्ञान कयु डे त्यारे श्रावकने अवधिज्ञान उपजे तेने अतिशय ज्ञान केम न कहीये ? केमके अतिशय-ज्ञान तो श्राश्चर्यकारीनुं ले. ते अवधज्ञानरुप अतिशय-झान श्रावकने उपजे बे, ते जण इहां पण माहण शब्दनो अर्थ श्रावकज डे; कारणं के वा शब्द वचमां बे. तेवारे वली तेरापंथो कहे के " गणायांगने त्रीजे गर्ष तथा-रुप समण माहणने केवलज्ञान उपजे कडं ने इहां पण समणंवा माहणंवा Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ASNA (४४) सिदान्तसार एवो पाठ डे अने वा शब्द वचमां बे. इहां तो माहण शब्दनो अर्थ साधुनोज इशे, कारण के केवलज्ञान तो श्रावकने नपजतुं नथी.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय ! गणायांग गणे त्रोजे नद्देशे चोथे त्रण प्रकारना जिन कह्या :-उहीनाणंजाणं १ मनपर्यवनाणंजीणं केवलनाणंजीणं ३. एज रीते त्रण शारिहंत केवल कह्या -अवधानो केवली १, मनपर्यवज्ञानी केवली २, अने केवलज्ञानी केवली ३. ए अवधज्ञानीने के वली कह्या ने ते अवधज्ञान श्रावकने पण नपजे ले ते माटे. इहां पण माहण शब्दनो अर्थ 'वा' शब्द वचमा डे माटे श्रावकज थाय; श्रने श्हां तो समचय समण मादणने केवल उपजे कयुं जे. वली ज्यां पांचमुं के. वलज्ञान उपन्यु कयु, त्यां तो 'कसिणे पमिपुने निरावरणे अपमिहय केवल वरनाणदंसणे समुपजेजा.' एवो पाठ बे. वली एवोपाठ एक कार्यमां कोई सुत्रमा दीसतो नथी के समणंचा मादणंवा शब्दमां साधुनोज अर्थ थाय अने श्रावकनो न थाय; पण 'वा' शब्द वचमां होय श्रने एक कार्यनो पुग होय त्यां माहण शब्दनो अर्थ श्रावकज थाय. ए सूत्रनो न्याय जोतां साध श्रावकने दाननां फल लांज कह्यां दीसे २. वली सूयगमांग तथा नववाद सूत्रमा एवो पाठ ले के, एगंतसमेसुसाहु एटले श्रावकने एकान्त पदमां जला साधुज कहीये. हवे साधुने दान दीधामा लान थशे तो श्रावकने पण साधु कह्या डे, तेमने दीधामां लान केम नही थाय ? तेवारे तेरापंथो कहे जे के “इहां तो मादण शब्दमां समचय श्रावकनो श्रर्थ कयों ने. त्यारे तो बधाए श्रावकने दान दीधामा साधुना दान सरखां फल कहो. पमिमाधारीनेज केम कहोडो ?” तेनो उत्तर. हे दे. वानुप्रीय ! दानना पाठ कह्या त्यां बधा पाठमां तहारुवं समणंवा माहएंवा एवो पाउ . ते तथारुप समण ते साधु नधो, मुहपत्ति, वस्त्र, पात्रां सहित स्वलिंगी; अने तथारुप माहण ते पमिमाधार। श्रावक, तेने प्रासुक एषणिक चित बेतालीस दोष रहित दाननी पुडा . ते माटे पाममाधार। श्रावक संन्नवे बे; अने सुजता दाननो सेवावालो अने सम. Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. पए (साधु सरीखो)पमिमाधारीनेज दसा श्रुतखंधमां कह्यो . वली अनेरा पण कोश नत्तम श्रावक संसारथी विरक्त नावे पापना त्यागी सुकतुं खाय , तेमने दानदेवावाला दातारने पण चोरकांज फल ला. गशे. तेमज अनेरा उत्तम श्रावकनो श्रारंज टलावीने अचित तैयार रसोइ, सीरणीना (मिगश्ना) पुजलनी साज देश, तपसा सामायक पोसा करावशे तेने पण धर्म दलालीनां चोखां फल लागशे. वली तेरापंथी कहे डे के " श्रावक तो फेरना वाटका बे, कुपात्र ने. ते कुपात्रने दान दीधामां अने वंदणा कर्यामां मुक्तिनो मार्ग(धर्म) क्या कह्यो ?” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! लगवंते तो श्रावकने तीर्थ (जेथी तराय ते तीर्थ ) कह्या ले. तेनी शाख सूत्र जगवतीशतक २० मे उद्देशे ७ में. ते पाठ लखो बीए:- . तिन नंते! तिबंकरे तिबं? गोयमा अरदा ताव नियम तिबंकरे तिबंपुण चाउवणे समण संघे पंन्नते तं० समणा समणि सावय साविया ॥ अर्थः-तितीर्थ नंण्हे नगवान ! ति तिर्थकरने कहीये? के तिम् चतुर्विध संघने तीर्थ कहोए ? इति प्रश्न उत्तर. गोण् हे गौतम ! अ० अरिहंत ता यावत् नि नियम करीने पहेलां ति तीर्थकर तीर्थ प्रवर्तावणहार डे, पण तीर्थ नथी. ति० तोर्थ तो वली चा चार वर्ण जीहां चतुर्वर्ण कहीये, ते कमादि गुणे करी व्याप्त स॥ श्रमण संग संघ पं० कह्या, तं ते जेम डे तेम कहे :- स साधु स० साधवी सा श्रावक अने सा० श्रावीका. जावार्थ:-हवे जुउँ ! था पाठमां अरिहंतने चार तीर्थना कर्ता तीर्थकर कह्या; अने साध साधव श्रावक अने श्रावीका, ए चारने सरखां तीर्थ (तरवानां गम) कह्यां. वली सूयगमांग सूत्रना बीजा श्रुतष्कंधना पहेला अध्ययनमा घुमरिक कमल उधरवाने अधिकारे, चार तीर्थने संसार समुनो तोर (कांगो) कह्यो वनो सृयगमांग सूत्रना Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५०) + सिद्धान्तसार.. बोजा श्रुतष्कंधना बोजा श्रध्ययनमा त्रण पद कह्या ले. अधर्म पक्षमा मिथ्यात्वी श्रव्रती अने अपचखाणी १, धर्म पदमां साधुजी सर्व पा. पना त्यागी २, श्रने मिश्र पदमां श्रावक ३. तेमां श्रावकने तो मिश्र पके धर्माधर्मी कह्या. ए त्रण पदना वर्णवनो घणो पाठ . ते सूयगमांगमां जोश लेवो. त्यां श्रावकने धर्मी, सुवति, आर्य श्रने एकान्तं साचा साधु कह्या . पड़ी त्रण पदना वे पद कर्या. एक धर्म पक अने बीजो अधर्म पद. त्यां नदय-जाववर्ती अवगुणतो तुबसमान, ते गोषतामा राखो गएया नही, अने कयोपशमनावना गुण मेरुसमान, ते मुख्यतामा गण्या. ते माटे श्रावकने विशेष पदे धर्म पकमां गएया ने. हवे जु ! ए पाठमां श्रावकने साधु, धर्मी, सुत्रति अने श्रार्य कह्या में; अने तमे कुपात्र कहाबो, तो पूर्वोक्तगुण कुपात्रमा शो रीते होश शके ? वास्ते श्रावक सुपात्रज ले. वल। नववार सूत्रमा साधु श्रावक बनेना गुण (बिरद) सरखा कह्या जे. ते श्रावकना गुणनो पाठः सेजेश्मे गामागर णगर जाव सनिवेसेसु मणुया नवंत्ति तं० अप्पारंना अप्पपरिग्गदा धम्मीया धम्माणुया धमिहा धम्मरकाश्यं धम्मपलोइ धम्मपलधणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तोकप्रेमाणा सुसोला सुवया सुपमिया-णंदा साढू ॥ - अर्थः-से० ते जे इ० ए गा गाम, अगर, नगर जा यावत् स० 'ससीवेषने विषे म मनुष्य श्रावक न होय तं ते जेम डे तेम कहे बे. अ० थोमा आरंनी अण्पा अल्प परिग्रहावंत, पण लोकोत्तर पक्षी श्रुत चारित्र सहित ने धरा धार्मिक ध० श्री वीतरागना धर्मनी के चाले धाम धर्म वहालो ले जेने धम्म शुद्ध धर्मना परुपक डे (सुबुझि प्रधान वत्) धम्मपण धर्मने विषे वारंवार नजर राखे ध० धर्मने रंगे रंगाणा तथा सजावंत ध धर्मने को उखन्नो दक्ष न शके ध० धर्मने विषे हर्ष सहित आधार के जेनो ध० अखंग व्रत पचखाण पालता थका विप्रा. Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. जिवीका (वृत्ति ) करता थका प्रवर्ते. सु० जला श्राचार ने जेना सुबक जला व्रत ने जेनां सु० धर्मने विषे आणंद सहित चित्त ने जेनुं ते सा० धर्म पके साधु. नावार्थः-हवे जुन ! था पाठमां अल्प आरंनी अने अल्प परिग्रही, ए बे बोल तो श्रावकना न्यारा कह्या. बाकी थाप बोल श्रावकना कह्या तेमज साधुना कह्या. ते पाठःसेजेश्मे गामागर जाव सणिवेसेसु मणुया नवंति तजदाःअणारंना अप्परिगदा धम्मिया धमिहा जाव धम्मेणं चेव वित्तिकप्पेमाणा सुसिला सुव्वया सुपडियाणंदा सादा। - अर्थः-से तेजे गा गाम, श्रागर जा जावत् स० सनिवेशने विषे म मनुष्य साधु ना होय तं ते जेम डे तेम कहे . अण्पारंज रहित अपरिग्रह रहित ध सर्वधर्मी धन धर्म वाहालो ने जेने जाण यावत् ध० चारित्र धर्मे करी वि० संजमनश्राजिवीका (प्रति) पासता यका सु० नला शीयलवंत सु० सुत्रत सु नलां श्रानंदनां चित्त ने जेनां सा एवा साधु साहु. लावार्थ:-हने जुले ! था पाठमां अणारंनो श्रने अपरिग्रही ए बे बोल साधुना श्रावकथी न्यारा कह्या. बाकी आठ गुण साधुना पने श्रावकना सरखा कह्या जे. धम्मिया धम्माणुया इत्यादिक. हवे था सूत्रना पावमा "धर्मी, धर्मनी केमे चाले, धर्म वसन, शुद्ध धर्मना परुपक, धर्मने विणे अढ, धर्मना रंगे रंगाणायका, लज्जावंत, धर्मने विषे हर्ष सहित आचार जेनो, धर्म व्रत राखीने आजिवीका (वृत्तो) करता का प्रदतें, जो आचार जे जेनो, ननांबन जेनां, आनंद चित्त धर्मन विषे, धर्म पदं साधु." एटला गुणना बिरद साधु अने श्रावकना श्री वीवसगदेवे बराबर कह्या जे. श्रा गुणे करीने साधुने सुपात्र कहा . त्यारे पज गुण साधुना सरखा श्रावकना कह्या ले माटे श्रावक पण सु.. Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) + सिदान्तसार.. % 3D पात्रज . वली पालतजी श्रावकने लगवंते मोटी थात्माना धणी शिध्य कह्या जे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन. २१ में ते पाठः चंपाए पालिएनाम, साविए आसी वाणिए; महावीरस्स लगवन, सीसो सोउ महप्पणो.॥१॥ निग्गंथे पावयणे, साविए सेवि कोविए;। पोहणे ववहरंते, पिहुंमं-नगर मागए. ॥ ॥ अर्थः-चं० चंपानगरीने विषे पा पालीतनामा सा० श्रावक प्रा० डे वा वाणीयो वेपार करे. मग जगवंत श्री महावीर स्वामीनो सिक शिष्य (श्री महावारे समजाव्यो माटे शिष्य) सो ते म० महंत श्रामानो धणी नि निग्रंथ संबंधि पा प्रवचन सिद्धान्तने विषेसा श्रा. वक से ते विशेष को कोवीद जाण विचोदण पो वाहाणे करी व व्यापार करतो थको पि० पीहुम नगरे मा० श्राव्यो.॥२॥ नावार्थः-हवे जुलं ! था पाठमां पालतजी श्रावकने जगवंतनो शिष्य, मोटी श्रात्मानो धणी कह्यो तथा जगवंतना वचननो रसिक पंमीत कह्यो. हवे जुन ! नगवंतनो शिष्य कह्यो ते कुपात्र के सुपात्र ? वली श्रढार पापने सफल करे ते तो मोटुं पाप मिथ्यात्व, ते तो श्राव. कने नथो. वली अपचखाणनी क्रिया मूलथोज टाली अने अशुन जोगनुं अल्प पाप, ते नथो गएयु; तेथी साधुना सरखा बिरद कह्या. एटला बीरदमां एके बीरद ही[:नथो ते माटे श्रावक सुपात्रमा डे. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “एटला सूत्रमा गुण वखाएया ते तो व्रतना पक्षथी क्षयोपशम नावना गुण वखाएया जे.” तेनो उत्तर हे देवानुप्रीय! साधुने पण व्रतना कयोपशम नावना गुणथो वखाएया डे के शरीर, शंज, जोग, श्राहार कषाय इत्यादिक नदयनाव, तेथी वखाएया ? जे गुणथी साधुने वखाएया ने तेज गुणथो श्रावकने पण वखाएया . पा- ' रंजीया क्रिया, उपयोग-रहितपणुं, विक्रय-शरीरपणुं, लब्धिस्फोरण, संजमना क्रोध, मान, माया, सोलनो उदय अने राग मेष, ए पक्ष पाश्री Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ३५६ ) साधुने धम्मीयादि नथी कद्या. क्षयोपशम जाव आत्मिक गुणश्राश्री साधुने पण 'धम्मिश्रा' सुपात्र कह्या. तेमज श्रावकने पण क्षयोपशम जावना गुण (ज्ञान, दर्शन, व्रत ) प्रगट्या ते श्राश्री धम्मीया सुपात्र कला. वली उत्तराध्ययन सूत्रना सातमा अध्ययननी वीसमी गाथामां, ग्रहस्थ नजीक प्रणामी अनुकंपा सहित होय तेने पस सुव्रती को बे. ते गाथाः - वेयमायाहिंसिकाहिं, के नरा गिरि सुबया; नवेति माणुसं जो िकम्म सच्चाहु पाणिणो ॥ अर्थः- वे० अनेक प्रकारे सि० जडिक प्रणामादिक शिक्षाए जे० ' जे न० मनुष्य गि० ग्रहस्थ उतां सु० अनुकंपादिकथी सुत्रतपणे उ० पामे मा० मनुष्यनी जो० जोनी क० कर्म ते करणी. स० सत्य वचन बोले तथा दयावंत, एवा पा० प्राणी होय ते मनुष्यपणुं पामे. नावार्थ:- हवे जुर्ज ! या गाथामां मनुष्य मरीने मनुष्य थाय नेकपणाना अनुकंपाना गुण श्राश्री ग्रहस्थपणामां सुत्रति जगदेते को. त्यारे श्रावकने सुत्रति सुपात्र केम नही कहेशो ? माझा हो ते वीचारी जो जो. वली साध श्रावक बनेने जगवंते रत्ननी माला कड़ी बे ते माटे बनेने सुपात्र कहीए. तेवारे तरांपथी कड़े ने के, " साधुने धने श्रावकने रत्ननी माला कही तो बे, पण साधुने मोटी ने श्रावकने नानी कही बे." एम कड़े बे. पण भगवंते तो बोटी मोटी कही नथी. एक सरखी कही बे. शाख सूत्र जगवंती शतक १६ में उद्देशे. बडे ते पाठः 'जेणं समणे जगवं महावीरे एगं महं दाम दुगं सब रयणामयं सुविणे पासित्ताणं परिबुद्धे. तरणं समणे जगवं मदावीरे विदे धम्मे पणवेई तं० आगार धम्मंवा अणगार धम्मंवा ॥ ४ ॥ ४५ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५४ ) 4 सिद्धान्तसार. + अर्थः- जे० जे स० श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी ए० एक म० मोटी दा० मालानो दु० जोमो स० सर्व र० रत्नमय सु० स्वप्नने विषे पा० देखीने प० जाग्या. त० ते स० श्रमण जगवंत श्री महावीर देवे दु० वे प्रकारे ध० धर्म प० परूप्यो तं ते कड़े :- आ० ग्रहस्थनो सम्यक्त पूर्वक बारव्रतरुप धर्म ने ० साधुनो ध०पंच महाव्रतरुप धर्म. जावार्थ:- हवे जुर्छ ! था पाठमां तो कयुं वे के, जगवंत श्री महावीर स्वामीए एक मोटी मालानो (जुगल ) जोमो दीवो. तेना प्रजावे जगवंते वे प्रकारनो धर्म परुप्योः श्रावकनो ने साधुनो. इहां तो एक माला बे सेरनी देखी, एवो परमार्थ दीसे बे. बोटी मोटी तो कही नथी. हवे गेटी मोटी वे माला कहे बे तेने पुठीए के, रत्न सम कितने कहीए के व्रतने कहीए ? सूत्रमां केवी रीते बे ? ए देखतां तो तमे व्रतने रत्न कहता देखा बो; पण सूत्रमां तो सम कितने रत्न कयुं बे. प्रथम तो ज्ञाता सूत्रना पहेला श्रध्ययनमां मेघकुमारने श्री वीरजगवाने अप मिल समत्तरयण लंजेणं " कह्युं बे; पण क्रियारुप धर्मने तो रत्न कयुं नथी. हमणांना चार तीर्थ पण एम कहे बे के " मारा समकित - रुपी रत्नने विषे जे तिचार लाग्यो होय ते आलोटं " एम कहे बे; पण व्रत तो रत्न कता देखाता नथी. माटे समकित तेज रत्न बे, कारण के जेने प्राप्त थये शुक्लपक्षी ने पुद्गलमां निश्चे मोक्षगामी थवाय; पण क्रिया रत्न नथी. जो क्रिया रत्न होय तो अज्ञानीने मुक्ति केम नथी ? वली सूत्र जगवतीमां समकितने पढमा कही देखने क्रियाने तो पढमा कही बे. क्रिया तो जीवे अनंत वारकरी, पण गरज न सरी, ते माटे रत्न नथी. वली क्रिया तो स्त्रीरुप के अने ज्ञान तो नरथाररूप बे. वली अनुयोगद्वारमां क्रियाने श्रांधली कदी देने ज्ञानने पांगलो को बे. जेम रथ एक पइमाथी न चाले, पण बे परमाथी चाले; तेम ज्ञान थाने क्रियाने संयोगे फलनी सिद्धि कही. वली दस वैकालीक सूत्रना चोथा अध्ययनमां 'पढमंनाणं तदया' ए गाथाथी खइने चोथी गाथा सुधी समकित सहित क्रियाने संजम को ठे; अने 66 Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार ( १५६) मिथ्यात्वी बनव्य, व्यवहारमा उत्कृष्टो संजम पाले तोपण समकित रहित ले तेथीथसंजमी कह्यो. इत्यादिक अनेक सूत्र पाठमां समकितने रत्न कयुं ने अने साधु श्रावक बनेने सरझुंज बे. साध श्रावकने रत्ननो माला पण समकित आश्री कही ले ते बंने सरखी ले. नानी मोटी सूत्रमा को ठेकाणे कही नथी. वली साधुने तो सुपात्र कहीए अने श्रावकने न कहीए, एवो खुलो पाव तो सूत्रमा को ठेकाणे कयो दीसतो नथी. साधु साधवीने योपशम जावना गुणे करीने सुपात्र कहो बगे, त्यारे श्राएंदजी सरखा श्रावकने क्षयोपशम नावना गुण प्रगटया तेथी श्रमण सरखा कह्या; तेने एटला सूत्रना पाठ नत्थापीने मतना लीधे कुपात्र कहीने थलतां श्राख केम द्यो बो ? ___ वसी तेरापंथी कहे जे के " श्रावक खावा पीवाना, कपमा घरेणां पहेरवाना तथा सर्व वस्तुना त्याग करे तेने व्रत कहीये. ते उपवास व्रत करे तो धर्म, बीजाने करावे तो धर्म, अने करताने जलो जाणे तो धर्म; पण तेनो थाहार अपचखाणमां अने श्रागारमा जे. तेथी पारणाना दीवसे पोते खाय तो पाप, बीनाने खवरावे तो पाप, अने खाताने जडं जाणे तो पाप.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! एम तो साधु एक पडेमी तथा एक पात्रा उपरान्त त्याग करे तो ते उत्तर-गुणवत पचखाण निपजे; अने थाहारनो त्याग करे तो उपवासनो उत्तर-गुण पचखाण निपजे; अने थाहारादिकनो त्याग न होय त्यारे उत्तर-गुणना अपचखाण कहीए. हवे तमारी कहेणीने लेखे तो साधुना खावामां पण पाप हशे; पण जगवंते तो साधु श्रावक बनेने आहारादिकना त्यागने उत्तर-गुणवत पचखाण कह्या बे, अने त्याग न होय त्यारे आहारादिकना उत्तर-गुण अपचखाण साध श्रावक बनेने कह्या ले. माटे हे देवानुप्रीय ! अबत तो साधु के श्रावक एकेने नथी. साधु तो सर्व बति ज, अने श्रावकने पण अवतनी क्रीया टाली बे; अने तेने पचखाणा पचखाणी कह्या ते तो शुजाशुन योग आश्री . ते साध श्रावक बनेने बे. शाख सूत्र नगवतीजी शतक सातमे उद्देशे बीजे. ते पाठः Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५६ ) 4 सिद्धान्तसार. कविदेणं ते! पच्चरका पं० ? गो० ! डुविदे पञ्चरकाणे पं० तं० मुलगुणपच्चस्काणेय उत्तरगुणपच्चरकाणेय. मुलगुणपच्चरकाणं ते! कइ विदे पं० ? गो० ! डुविदे पं० तं० सङ्घमुल गुणपञ्चस्काणे देसमुल गुणपच्चरकाणे. सब मुलगुणपञ्चरकाणेणं ते! कइ विढे पं० ? गो० ! पंचविहे पं० तं० सवा पाणावायानवेरमणं जावसवानपरिग्गहाउवेरमणं. देसमुलगुणपञ्चस्काणेणं नंते ! कइ विदे पं० ? गो० ! पंचविदे पं० तं०) धुलापाणा इवायाजवेरमणं जावथूलानुपरिग्गहाउवेरमणं. उत्तरगुणपच्चरकाणेणं जंते कइ विदे पं० १ गो० ! डुविदे पं० तं० सवउत्तरगुणपञ्चरकाणेय देसुत्तरगुणपञ्चस्काणेय. सङ्घतरगुणपञ्चस्काणेणं नंते कइ विदे पं० ? गो० ! दसविदे पं० तं० गाहा. यणाय १ मइकंतं २ को मिस दियं ३ नियंटियंचेव ४ सागार ५ मणागार ६ परिमाणकमं निरवसेसं संकेयंचेव अद्धाइ १० पपचाणं वेदसविदा. || देसुत्तरगुणपञ्चरकाणेणं नंते ! कइ विदे पं० ? गो० ! सत्तविदे पं० तं० देखियवयं वोग परिनोग परिमाणं पदंवेरमणं सामाइयं देसावग्गा सियं पोसहोववासो अतिविसंविभागो पविममारतिय संवेदणा जुसणा राहण्या. ॥ अर्थः- पुर्ववत्. जुर्ज प्रश्न पहेले. पाने चोथे . जावार्थ:- हवे जु ! या पाठमां बे प्रकारनां पचखाण कलां:मूलगुण- पचखाण ने उत्तरगुण- पचखाण. मूल गुण - पचखापना बे भेदः --सर्व मूलगुण - पचखाप ने देश मूलगुण- पचखाण. उत्तरगुणपचखापना से जेदः --सर्व उत्तरगुण- पचखाण १ अने देश उत्तरगुण Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. ( ३५७ ) पचखाण२. सर्व मूलगुण-पचखाण तो पांच श्रावना सर्व त्याग करे तेने कहीए, ते तो साधुजीनेज होय. वली वर्णनागनतुवे अने अंबमजीना शिष्य प्रमुख अनेक श्रावकोए संथारा कर्या तेमने तथा पमिमाधारी प्रमुख श्रावकने पण त्याग थया; अने हिंसादिक पांच आश्रवना देश थकी त्याग करे ते श्रावकने देश-मूलगुण-पचखाण थाय; श्रने सर्व उत्तरगुण-पचखाण नवकारसी, पोरसी, पुरिमढ, एकासगुं, एकलगj, नीवी, श्रायंबील, उपवास, बेला,तेला, जावत् संथारो, ए साधु श्रावक सर्वथा थाहारादिकना त्याग करे तेनेज निपजे; अने श्रावकनां नपलां सात व्रत (गथी लश्ने बारमा सुधी) ए देश उत्तरगुण-पचखाण श्रा. वकने तो बेज; अने साधुने केटलाक तो पचखाण पांच श्राश्रवना सर्वथा त्याग ले तेमां श्रावी गया अने केटलाक साधुना वेशना व्यवहारनी साथे श्रावी गया. बाकी अव्यादिक श्रहार, उपगर्ण, वस्त्र अने पात्रादिकना देशथकी त्याग करे त्यारे साधुजीने देशथकी उत्तरगुण-पच. खाण निपजे. वली हिंसादिक पांच आश्रवना सर्वथकी त्याग अथवा देशथकी त्याग न होय तेने मूल-गुणना अपचखाणी कहीए; अने आहार वस्त्रादिकनो सर्वथकी अथवा देसथकी त्याग न होय तेने उत्तरगुणना अपचखाणी कहीए. ए लेखे श्रावक सुपात्रमा डे अने तेना दानमां प्रणामानुसारे दातारने फलनी प्राप्ती थाय . तमे श्रावकने कुपात्र कहीने श्रावकनी अशातना-रुप अबोध पाप केम नपार्जन करो हो ? ॥ प्रश्न त्रीजो संपूण. Page #378 --------------------------------------------------------------------------  Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्न चोथो. साधुनो माहार, हालवू, चालवू इत्यादि, व्रतमां (धर्ममां ) , एम कहे जे ते बाबत. हवे जु ! ए सातमा शतकना बीजा नद्देशामां साधु श्रावक बने. ने आहार वस्त्रादिकना त्यागने उत्तरगुण-पचखाण करा; अने थाहार वस्त्रादिकनो त्याग न होय तो नत्तरगुणना अपचखाण करा. हवे तमे (तेरापंथी) कहो बो के "श्रावकने पारणाने दीन माहारादिकनो त्याग नथी. बाहारनो श्रागार जे. तेने अबत अपचखाण कहीए. तेथी श्रावकनुं खा, पी, पापमां .” ए लेखे तो साधुजीने पण पारणाने दीन पाहारनो त्याग नथी. ते श्रागारने नगवंते तो साधु श्रावक बनेने उत्तरगुणना अपचखाणी कह्या डे, ए तमारी केहणीने लेखे तो साधु पारणाने दीन खाय तेमां पण पाप हशे. कोश् श्रावक आरंन करीने खाय ते आरंजनुं पाप तो न्यारं, पण थाहारना अपचखाण आश्रीतो साध श्रावक बनेने सरखा कह्या , ते उदयनावमा . जेम उंच गोत्र, मनुष्यनी गति, पंचेजिनी जात अने पांच शरीर, इत्यादि उदयनावमां ३. ते धर्म पाप एकमां नथी. एथी धर्म करे तो धर्म निपजे अने पा. पना काम करे तो पाप निपजे. तेम साध श्रावकने आहारादिकनुं खातुं उदय-नावमां . ते धर्म पाप एकमां नथो. जो शरीर वधारवा निमित्ते रागकेष भने अशुनजोगथी खाय तो साध श्रावक बनेने पाप लागे; मने ज्ञान, दर्शन अने व्रत नजाववाने अर्थे खाश्ने शुन नावना जावे तो बन्नेने निर्जरा थाय.. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ साधुनुं तो हास, चाम, माहार करवो, निहार करवो, बोख, सर्व काम व्रतमा धर्ममा के. एम नमः Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६० ) 4 सिद्धान्तसार. वैकालीक सूत्रमां कयुंठे . " एवं सूत्रनुं जुटुं नाम ले बे. ते दशवकाली क सूचना पांचमा अध्ययनना पहेला नद्देशानो पाठः ― पण मणुविग्गो, विकित्तेण चेप्रसा; आलोय गुरु सग्गासे, जं जादा गहियं जवे नसम्म मालोइयं दुका, पुवं पचा वज्रं कडं; पुणो पक्किमे तस्स, वोसठो चिंतए इमं दो जिणेहिं सावद्या, वित्ति साहु मोसाद देउस्स, साहु देहस्स धारणा नम्मुकारेण पारिता, करिता जिए संथवं; सायं पवित्ताणं, विसमिद्य खाणं मुली ॥ ८० ॥ न० ॥ ९१ ॥ देसिया; ॥ ५ ॥ ॥ ए३ ॥ अर्थः- ० सरल मतिवंत म० उद्वेग रहित बतो ० एकाग्र चित्ते आलोवे गु० गुरुनी समिपे जं० जे जा० जेम ग० जात पापी लीधुं ज० होय तेम. जो सम्यक् प्रकारे मा० आलोव्युं हु० न होय. पु० पूर्व कर्म प० पश्चात कर्म क० अतिचार कोधो दोय पु० ते वल्ली प० परिक्रमामि गोयरियाए इत्यादिक पाठ कहीने का सग्ग करे. त ते सुक्षम अतिचारनुं पाप टालवाने अर्थे कायोत्सर्ग करे. वो० ते कायोत्सर्गमां चिं० चिंतवे इ० श्रगल कदेशे तेम. श्र० श्राश्वर्य जि० ती करे o पापरहित वि० आजीविका सा० साधुने दे० देखामी कही. बे. मो० मोह साधवाना दे० हेतुजणी सा० साधुनी दे० देहने धा० आ धार देवाने अर्थे न० नमो अरिहंताणं कदीने पा० कानसग्ग पारीने, क० - करीने जि० जिन संस्तव ( लोगस्स) कही स० देवे बेठा पढी जघन्य तो गाथा ऋणनो सजाय प० करीने वि० विसामो ले. ख० क्षण एक मु० साधु. नावार्थ:- हवे जुर्ज ! श्रा पाठमां तो एम कनुं बे के, साधु गोचरीथी पाढा यावीने श्राहारना अतिचार एषणिक ववा, कोइ शुकम दोष जुल्ली गया होय तो ते दालवाने का कारगा: किलो Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार मां एवी चिंतवणा करे " अहो इति श्राश्चर्य ! श्री तीर्थकरे मोक्ष साध. वाना हेतु जणी साधुनी देखने आधार देवाने अर्थे पापं रहित थाजीविका साधुने देखामी." पली 'नमोअरिहंताणं' कहीने कानसग्ग पारे. पढ़ी (जीन स्तवन) लोगस्स कहीने, जघन्य त्रण गाथानी सजाय करीने साधु कण एक विसामो ले. ए त्रण गाथामां तो साधु ध्यानमा एवी चिंतवणा करे, एवो अधिकार कह्यो; पण साधुनो थाहार व्रतमा क्या कह्यो ते पाठ बतावो. तेवारे तेरापंथी कदे ले के, बाणुमी गाथाना बीजा पदमा वित्तिसाहुणदेसिया' एवं पद कयुं ने तेथी साधुनो आहार व्रतमां कहीए बीए.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! अहीयां तो वित्ति' नाम आजीविकार्नु कयुं . बेतालीश दोष टालीने ले तेथी साधुनी आजीविका पाप रहित ले. जो वित्ति शब्द कह्यो तेथी साधुनो श्राहार व्रतमां कहो तो एवा पाठ तो सूत्रमा घणा कह्या बे. सूत्र नगवतीजी शतक बारमे मुद्देशे बोजे, नगवंते अधर्मी जीवने सुता जला कह्या. तेमां वित्तिक प्पेमाणा विहर' एवो पाठ बे. अधर्मी जीव अधर्मनी श्राजीविका करता विचरे . ए वित्ति शब्द श्राजीविकानो कह्यो . तमारे लेखे तो शहां पण वित्ति शब्दनो अर्थ व्रत हशे. ए अधर्मी जीव सुता नला कया, एनो पण श्राहार व्रतमा हशे. वली उववार सूत्रमा स्त्री विना मन शील पाले ते पाठमां पण 'वितिकप्पेमाणा विदर' ले. इहां पण 'वित्ति' शब्द ले. तमारे लेखे तो एनो पण श्राहार व्रतमा हशे. वली उववार सूत्रमा श्रावकना गुणमा 'धम्मेणं चेव वित्तिकप्पेमाणा विहरई' कयुं जे. शहां पण वत्ति शब्द ले. ए श्रावकनो पण थाहार व्रतमा हशे. वसी सूयगमांग सूत्रमा श्रधर्म पक्षमा श्रहमेणं चैव वित्तिकप्पेमाणा विहर' कयुं बे. शहां पण वित्ति' शब्द बे. माटे ए अधर्मी पुरुषोनो पण थाहार ब्रतमां हशे. जेम दशवैकालीक सूत्रमा वित्ति शब्दे सा:धुनी भाजीविका कही अने आजीविकाने थाहार कह्या. तेम एटली मग्योए पण वित्ति शब्दनो अर्थ प्राजीविका कीधो, ते बधानो थाहार Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६२) + सिद्धान्तसार.. व्रतमां इशे. ए वित्ति नाम तो आजीविकानुं . तमे ए शब्दथी साधुनो थाहार व्रतमां कहीने एवा खोटा अर्थ केम करोगे ? वली साधुजीनो थाहार व्रतमां धर्ममां कहे तेने पुq के, साधुजीजे थाहार करवाथी कयुं व्रत निपजे ते कहो. केमके साधुजी तो सर्व व्रतो , अने तेमणे ज्यारे साधुपणुं लीधुं त्यारे कयुं व्रत अधुरु राख्यु के तेन श्राहार करी करीने पुरुं करे ते कहो. साधुजो तो मूलगुणना सर्व व्रति अने ज्यारे श्राहारना त्याग करे त्यारे नुत्तरगुण व्रत निपजे. वधी साधुजीनो आहार व्रतमां धर्ममां कहे, तेने पुढq के, व्रत धर्म नाव मांहेला कया नावमा ? अने थाहार करवाना प्रणाम, ए कया नावमा ? - तेवारे तेरापंथी कहे डे के “व्रत धर्म तो उपशमन्नाव, कयोपशमन्नाव तथा क्षायक नावमां बे, अने प्रहार करवाना प्रणाम तो उदय नावमा .” त्यारे हे देवानुप्रीय व्रत धर्म तो बडे गुणगणे बहुलताए क्षयोपशम नावमां बे; अने साधुनुं हालवू, चाल, बोलवू, थाहार करवो, उघg अने नदी उतरवी, ए सर्व कार्य तो योगनी चपलतानां डे अने ते तो सर्व उदय नावर्ति जे. ए उदय नावना कामने व्रत धर्म केम कहो हो ? केमके धर्म तो दयोपशमनावे . वली आहारने धर्म कहो तो, अनुयोगद्वार सूत्रमा उपशम नाव तो मोहनीकर्मर्नु नपशमावq तेने कहीये. ते नपशम-निपनना अग्यार बोल कह्या. क्षयोपशम ते चार घातिक कर्मनो कयोपशम. ते कयोपशम-निपन्नना पचास बोख कह्या. हायक नाव ते श्राप कर्मनो क्षय. ते कायक-निपन्नना सामंत्रीस बोल कह्या. हवे साधुनो थाहार कया बोलमांचे ते कहो. ए नदयनावने ममतना मार्या धर्म केम कहोगे ? तेरे तेरापंथो कहे डे के, “ ए श्राहार करवाना प्रणाम तो कयोपशाम-नामा नथी, उदयनावमां बे; पण साधु थाहार करतां मुक्तिना सारनी (ज्ञानादिक विनय वैयावचन।) चिंतवणा करे अने जला जाव वावे, तेशुन योगथी निर्जरारुप धर्मनिपजे.” तेनो नत्तर दे देवानुप्रीय ! साधुनो आहार करवो, हाल, उघवं, तो पूर्व कर्मना उदयनावना Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. - जोगयी . एमां पूर्व कर्मनी सत्ता जेम रस देने तेम जोगनी चपलता वर्ते ले. तेमां तो लगार मात्र पण क्षयोपशम धर्म निर्जरारुप लान नथी; अने थाहारादि करतां ज्ञानादिकनी चिंतवणा जला नाव प्रवर्तीवे डे ते शुरू नपयोग यात्मिकन्नाव जाणवो. एतो आत्मानुं मूल लक्षण २. ए शुरू नपयोग श्रात्माना घरनो डे ते न्यारो . थाहरादिक करवाना नाव ते जोग प्रवर्तन पुदगलना घरनो , ते उदयन्नाव वर्ति के ते न्यारो बे. वली जो साधु आहारादि करतां नला नाव वर्तावे तेमां निर्जरारुप धर्म कहो बो, त्यारे श्रावकना थाहारादिकमां पण धर्म कहेवो पमशे; कारण के श्रावक पण थाहारादिक करतां आत्मनिंदा करे, रागादिक दोषरहित प्रणामे श्राहार करे अने थाहार करतां नली जावना जावे, ते शुक नपयोग कयोपशम नावनो. ते शुद्ध उपयोगथी श्रावकने पण निर्जरारुप धर्म थशे. ए लेखे तो साधु श्रावक बनेने उदयनाव नोगवतां राग द्वेष अशुन जोग वर्ताशे तो पाप लागशे; अने धर्मनो साहाज जाणीने रागद्वेष रहित खाशे, नली जावना नावशे अने शुल जोग वर्तावशे तो बनेने निर्जरारुप लान थशे. वली को श्रावक आरंज करीने खाय ते थारजनु पाप न्यारंबे, पण खावा आश्रीतो शुनाशुन योग वर्ताशे तेवां फल बनेने लागशे. जेम साधु नदयनावना काममां राचे तो साधुने पाप लागशे, अने नदय नावमां नहिं राचे तो तेमां गुण ले. तेमज श्रावक पण उदयनावमां नही राचे तो गुण थशेज; पण श्रावकनुं खावं तो पापमां अने साधुजीनुं खावं व्रत धर्ममां, एम कया सुत्रना आधारे कहो गे ते पाठ बतावो. वली साधुनो थाहार जो धर्ममां होय तो ते हर्ष प्रणामे करवो जोइए; पण जगवते तो जेवा प्रणामयी धनासार्थवाहे पोताना पुत्रना मारणहार विजय चोरने थाहारलो नाग दीधो, तेवा प्रणाम साधुए पाहार करवो कह्यु जे. शाख सूत्र ज्ञाताजी अध्ययन बीजे. ते पाग:तएणसे धन्नेसबवाहे जेणेव नदा नारिया तेणेव उवाग Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४ ) सिद्धान्तसार. इश्त्ता. ततेणं साजदासन्नवाहि घसवादं एद्यमाणं पास २ ता नो- प्राढाइ नो- परियाणाइ प्रणाढायमाणी परिजामाणीतुसिणीया परमुदी संचिवंति ततेां से धणेस वादे नवं नारियं एवं बयासी किंम्मं तुब्नं देवाणुपिया नतुहीवा नहरीसोवा नाणंदोवा जंए मए सए - अव सारेणं रायकद्यान अप्पा विमोइए. ततेणं सा जा धसच्चवादं एवंवयासी कहणं देवाणुप्पिया ! मम तुहिया जाव देवा विस्सइ जें तुम्मं मम पुत्त घायगस्स जाव पच्चामित्तस्स तान विजवान असणं ४ संविभागे करेसि ततेां से धणेस वाहे नई नारियं एवंवयासी नो खलु देवाणु पिया धम्मोतिवा तवोत्तिवा कयपमिकइयावा लोग जत्ताइवा नायपत्रियावा संघा मियएत्तिवा सुहाए त्तिवा सुहीत्वा ततो विलान असणं ४ संविभागेकए; ननच सरिरचिंताए. ततेां साजा धणेसनवा देणं एवं वृत्तासमाणी तुछा जाव आसान अन्नू २ ता कंठाकंट्ठियं प्रवयासेइ खेमकुसलं पुबइ २त्ता न्हाया जाव पायवित्ताविनलाई जोग जोगाई चुंद्यमांण विहरइ जहाणं जंबु ! धणं सचवा देणं नो-धम्मोतिवा जाव विजयस तक्करस्स चार्ज विजवान असणं ४ संविजाग कए ननच सरिर सारकण्ठाए एवामेव जंबु ! जेणं म्हं निग्गंथेवा निग्गंथिवा जाव पवइए - समाणे ववगय एहाण मद्दां पुप्फ गंध मल्वालंकार विनूसिए इमस्स जरा लिय-सरिरस्स गो-वदेवा रुवदेवा विसयहेनवा विडलं असणं ४ प्रादारमाहरंति ननच गाण दंसण चरिताणं वदणहयाए. A Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. सेणं इहलोए चव बहूणं समणाणं बहूणं समीणं बहूणं सावगाणय बदणं सावोयाणय अच्चणिये जाव पधुवासणिये नवइ. परसोवियणं नोबहुणि हबन्नेयणाणिय कमलेयणाणिय णासायणाणिय. एवं हियनप्पायणोणिय वसणुप्पायणाणिय उलंहणाणिय पात्तिहित्ति अणाइयंचणं अणवदगं दीदमधं जाव विश्वश्स्संत्ति.॥ ... - अर्थ-त० तेवारे से ते ध० धनोसार्थवाह जे ज्यां ना जा नार्या ने ते त्यां न आवे, श्रावीने त तेवारे सा ते जडासार्थवाही धन धनासार्थवाहने ए० ए श्रावता पा० देखे, देखीने नो श्रादर न दे नो० १० जलो न जाणे अजाण्यानी पेरे उलखे नही. अ० अण आदर करती अप० अजाणती तु० अणबोलती प० उपरांठी थर सं० बनी रही. ता तेवारे से ते ध० धनोसार्थवाह ना नफा नर्याने एण एम कहेः-कि शा माटे तु तमे दे० हे देवानुप्रीय ! नतु संतोष न पामी नह० हर्ष न पामी नाणं० श्रानंद न पामी ? जं जे म में सण पोताना अर्थे स० अव्य आपीने राग राजकार्यथी अ० मारा आत्माने वि० मुकाव्यो. त० तेवारे सा ते ज० जना धन धनासार्थवाहने एण एम कहेः क क्यांथी दे हे स्वामी ! म मुजने तु शंतोष होय जान जावत् आ० थानंद न होय ? जे जे तु तमे म मारा पु० पुत्र घा घातकने जा जावत् प० वेरीने ता ते वि० विस्तीर्ण अ० अस्नादि चार सं० संविन्नाग को. आहारादिक श्राप्यो. त० तेवारे से ते ध० धनोसार्थवाह ना नाडा नार्याने ए० एम कहे-नो नही खण निश्चे दे० हे देवानुप्रीया! ध धर्म हेते, त तप हेते, क० परनवमां फल थशे एम जाणीने, लो लोक लज्याए ना नातीलाना मेलानो प्रवर्तक जाणीने, सं० सहचारी जाणीने, सु सखाइयाना कार्य करवाने विषे, जाणीने, के सु सुखाइया सुखी मित्रपणुं जाणीने, तण ते वि० विस्तीर्ण श्रा श्रस्नादि चार सं0 व्हेंची श्राप्यो (नथी); पण न० एटर्बु विशेष Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की कामनामावादे ना असा रन नि (६) + सिदान्तसार सम् शरीरनी चिंताने अर्थे अन्नादि दी, जे. ए सर्व वात कही. त तेवारे सा ते ना ना ध० धनासार्थवाहनुं ए० एम वु० कहे सांनली साचुं माने, मानोने एवा बोलथी हा हर्ष शंतोष पामी जा० जावत् आ० श्रासनथो श्र उठे, उठीने कं० कोटे कोट वलगामीने अ० थालिंगन दोधुं. पठी खे० केम कुशल पु० पुबे, पुबीने न्हा० न्हा जाग यावत् पा० प्रायश्चित ठेद्यां. वि० विस्तीर्ण नो मनुष्य संबंधी कामनोग जु० नोगवतो थकी वि० विचरे. जण जेम जंण् हे जंबु ! ध० धनासार्थवाहे नो धर्मने अर्थे नही जाम् जावत् वि० विजय तम् चोरने ता ते वि० विस्तीर्ण अ० अस्नादि चारमाथी संग संविनाग कर्या न० पण एटदुं विशेष स शरीरनी सा० रक्षाने अर्थे अनादिक दीg. ए एम जंग हे जंबु ! जे जे अ० अमारा नि0 नियंथ साधु साधवी जाण जावत् प० चारित्र लीधे थके, व० रहित एहाण स्नान म० मर्दन पु० फुस गं गंध म माला अंलंकार वि विजुषा रहित ३० ए प्रत्यक्ष उन्नदारिक सरोरनो जोव० वर्ण रुमो थाय ए हेते नही रु० रुप हेते नही तेमज वि० विषय हेते पण नहिं तं ते विस्तीर्ण १० अस्नादि चार था० श्राहार करे; पण न० एटलुं विशेष णा ज्ञान दं० दर्शन अने चण्चारित्रना व निर्वाहने अर्थे थाहार करे. से० ते ३० ए लोके चे० निश्चे ब० घणा सम् साधुने व० घणी सा साधवीने बळ घणा सा० श्रावकने ब० घणी सा० श्रावीकाने अण् अर्चनिक जाग जावत् प० सेवा करवा योग्य ना थाय. प० परलोके पण नो० नही ब० घणा हा हाथ बेदाय क० कान दाय णा नासिका बेदाय. ए० एम हि० हैयानु उ नपामवु न थाय. व गुह्य अवयवर्नु उपामवु न थाय. न० उखनानां वचन न कहे. पा० फुःख न पामे. अ० अनादी १० अंत रहित दो० दीर्घ लांबा पंथरुप जाग यावत् वि० संसारने उसं. घोने पार पामे. जावार्थः-हवे जुर्ज ! था पाठमां कडं डे के, धनासार्थवाहे नासार्थवाहीने एम का के, पुत्रना मारणहार विजय चोरने मारो Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( ३६७ ) आहारमाथी जाग दीधो, ते सज्जन, मित्र, बंधव जाणीने तथा धर्म तप जाणीने दीधो नथी; पण एक खोमामां बनना पग दता ते विजय चोर मारी साथे मारा शरीरनी चिंता टालवाने वास्ते चाले नही, ते शरीरनी बाधा टाळवाने वास्ते दीधुं बे एम कयुं. हवे तेना उपर श्री सुधर्मास्वामी जावार्थ मेलवे बे के, दे जंबु ! धनासार्थवाहनी पेरे मारा साध साधवीए श्राहारादि करवो. जेम धनासार्थवाहे चोरने श्रा दारादिक देवामां धर्मतप जाएयो नही, तेम साधु साधवीए श्राहारादिक करवामां धर्म तप मानवो नही; तथा शरीरनी शोजा तेमज रूप, वर्ण वधारवाना जावथ करवो नही, पण जेम धनासार्थवादे शरीरनी चिंता टालवाने अर्थे विजयचोरने श्राहारादिक दीधो, तेम साध साधवीए फक्त ज्ञान, दर्सन अने चारित्रना निर्वाहने श्रर्थे श्राहारादि करवो; तथा शरीरने पुत्रना मारणद्वारा सरीखो जालीने उदासीन प्रणामे अहार करवो. दवे जो श्राहारादिक करवामां धर्म होय तो दर्ष प्रणामची करवो एम केहेत. माया हो ते विचार जोजो. वली बीजा धनासार्थवादे जेम बेटीनुं मांस खाधुं तेनी परे साधुए निच्छाह जावे श्राहारादिक करवो कह्यो बे. तेनी शाख सूत्र ज्ञाताजी अध्ययन अढारमें. ते पाठ लखीये बोयेः - ततेां से धणेस वादे पंचहिं पुत्तेदिं अप्ठेदिं चिलायंति से आगामिया सबंडस्समंता परिघाने माणा तहाए छुहाएय परजत्तेसमाणे तीसे आगामियाए सघन सम्मंता उदग्गस्स मग्गणं गवेसणं करेति संते तंते परितंते णवत्ते तीस्से आगामियाए सघन सम्मता उदगं प्रणासाएमाणे जेणेव सूसूमा जीवियान ववरोविया तेणेव उवागन्नुइजे पुत्तं धणेस वाहे सहावेई एवं वयासी एवं खलु पुत्ता सूमाए दारिया पठाए चिल्लायं तकर सब उसम्मंता Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६८ ) + सिदान्तसार.. परिघामेमाणे तण्हाए छुहाएय परकहेसमाणे तीस्से आगामियाए छुहाए अनिनूयासमाणा इमीसे आगामियाए अमविए उदगस्स मग्गणं गवेसणं करेमाणा णो च्चेवणं उदगं आसाएमो उदगं आणासाएमाणा गोसंचाएमो रायगिहं संपावित्तए. तएणं तुझे ममं देवाणप्पिया जीवियान ववरोवेद मम मंसंच सोणियंच आहारह तेणं आहारणं अवधासमाणा ततोपना इमं आगामिय अमवि णिच. रद रायगिरं संपावेदिद मित्तणाइ अनिसमगडहिह अविस्सय पुणस्सय आजागी नवीसह. ततणंसे जेठे पुत्ते धणेणंसबवादेणं एवंवुत्तेसमाणे धणंसदवादं एवं वयासी तुघेणं तान अम्हं पिया गुरुजणया देवयन्या उवप्पा पत्तिठवप्पा संरकणा संगोवगा तं कहणं अम्हे तातुम्ने जीवियान ववरोवेमो तुघेणं मंसं च सोणियंच आहारेमो तं तुघेणं ता ममं जीवियान ववरोवेद मंसंच सेाणियंच आदारेद आगामियं अमविं णिच्छरह तंचेव सवं नण जाव अब आनागी जविसह. ततेणं धणंसत्थवादं दोच्चे पुत्ते एवंवयासि माणं तान अम्हे जे नायरं गुरुदेवय जीविया ववरोवेमो तुघेणं ताउँ मम जीविया ववरोवेद जाव आनागी नविस्सद एवं जाव पंचमे पुत्ते. ततेणं से धणेसत्यवाहे पंच पुत्ताणं दियइच्छियं जाणित्ता ते पंचपुत्ते एवंवयासी माणं तुम्हे पुत्ता एगमवि जीवियान ववरोवेमो. एसणं सूसूमाए दारियाए सरिरए णिप्पाणे जावजीव विप्पजदे तं सेयं खदु पुत्ता अहं सूसुमाए मंसंच सोणियंच आदारित्तए. ततेणं अम्देतेणं आ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार ( १६९) - हारेणं अवधासमाणा रायगिदं संपाणिस्सामो. ततणं ते पंचपुता धणेणं सबवादेणं एवं वुत्तासमाणा एयमहं पमिसुणेत्ति. ततेणं धणेसबवादे पचहिंपुत्तेहिंसहिअरणिकरेश्श् त्ता सरगं करे। त्ता सरएणं अरणि मदेश त्ता अग्गिपामेशश्त्ता अग्गिसिंधुकेश २त्ता दारुयाइं परिकवर श्त्ता अग्गिपद्यालेश्त्ता सूसूमा दरियाए मंसंच सोणियंच आहारे। तेणं आदारेणं अवधासमाणा रायगिहंणयरि संपत्ता मित्तणाश् अनिसमणागया तस्सय विजलस्स धण कणगरयण जाव आनागीजायाविहोबा.ततेणंसेधणेणंसबवाह सूसूमा दारियाए बहुइंलोगयाइंजाव विगयसोएजाएयाविहोबा. तेणं कालेणंश समणे जगवंमहावीरे गुणसिलए चेइए समोसढे ततेणं धणेसबवादे सपूत्ते धम्मेसोचा पवश्यो एकारसंगवि मासियाए संलेदणाए सोदम्मे उववणे महाविदेदेवासे सिफिहिति.जदा वियणं जंबु! धणेणंसनवादेणं णो वणदेजवा नो रुवदेउवा णोबलदेउवा नोविसयहेजवा सूसूमाएदारियाए मंसंसोणिए आदारिए ननब एगाए रायागहं संपावणघ्याए. एवामेव समणानसो जो अम्हं णिग्गंथोवा णिग्गंथिवा इमस्स जरालिय सरिरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स जाव : अवस्स विप्पजदियस्स नोवणदेउवा नोविषयहेजवा आहाराहारेत्ति नन एगाए सिछि गमणं संपावणघ्याए.. सेणं श्ह नवे चेव बहुणं समणाणं बहुणं समणीणं बहुणं , सावयाणं बहुणं सावियाणं अवचणिधे जाववीतीवस्सती॥ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७० ) सिद्धान्तसार. + अर्थः- त०] तेवारे से० ते ध० धनोसार्थवाह पं० पांच पु० पुत्र ० पोते बहा चि चिलाइती चोर प्रत्ये ० ते अटवीमां स० सघले प० धाता दोमताथका त० तृषा दु० जुख लागी प० तेथे पराजव्याथका ती० ते ० वस्ती रहित अटवीमां स० सघला नं० पालीना म० कुवा, सरोवर, वेरमा प्रमुखनी ग० गवेषणा करतां सं० थाक्या.. तं० ते विशेष थाक्या. प० थाकीने थाक्या. पि० निवर्ते ती० ते ० टवी मां स० [सघले उ० पाणी ० अगलाध्याय । जे० ज्यां सू० सुसुमाने जी० जीवतव्यथी व जुदी कीधी बे ते० ते शरीर पासे उ० यावे, यावीने जे० वा पुत्रने ध० धनोसार्थवाद स० साद करे. ए० एम कहे-- ए० एम निश्चे पु० दे पुत्र ! सु० सुसुमा दा० बालीकाने अ० श्रर्थे चि० चिलाइ ति त चोरने पकवा स० सघले प० दोमता धाताथका त० तृषाए करी जुखे करी प० पराव्या थका ती० ते प्रा० अटवीमां बु० जुखे तृषाए करी ० पराजव्या थका इ० ए प्रत्यक्ष या० वस्तोरहित ० टवीने विषे उ० पाणीना म० मार्ग प्रमुखनी ग० गवेषणा कर करता थका पो० नही चे० निश्चे न० पाणी आ० लाध्युं न० ते पाणी अ० अणलाध्याथी पो० असमर्थ रा० राजग्रह सं० पामवाने. त० ते माटे तु० तमे म० मुजने दे० हे देवानुप्रीय! जी० जीवतव्यथी व० जुदो करी मारीने म० मारुं मं० मांस सो० लोही प्रा० जण करो. ते ते आहारे अतृप्त यया का तoतेवार पी ३० ए ० आगामिक ० टवी ०ि उतरो, रा० राजग्रदने सं० पामो, मि० मित्र या० न्यातिने श्र० जाइ मली ० अर्चना धर्मना पु० पुन्यना श्रा० जागी ज० थान. त० तेवारे ते जे० वमो पु० पुत्र ध० धनासार्थवादे ए० एम कड़े थके ध० धनासार्थवाहने ए० एम कहे तु० तमे ता० दे तात ! ० श्रमने पि० पीता गुण् गुरुने ठामे दे० देव सरखा उ० थाप्या, प० स्वामी करी स्थाप्या, सं० कपृथी राख्या, सं० श्रवगुण गोपवता. ० ते माटे क० केम था० हमे ता० हे तातजी ! तु० तेमने जी० जीवतव्यथी व० लगा करी तु० तमारा मं० मांस सो० लोहोनो आ० आहार करीए ? तं ते माटे तु० तमे ता० दे तात ! मं० मुजने -- बु० Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. + सिद्धान्तसार.. (३७१) जी जीवितव्यथी व० अलगो करी मं० मांस सो लोहीनो श्रा० थाहार करो, श्रागामिक अ० अटवी णि निस्तरो (पार पामो.) तं० तेमज स० सर्व जण कहे. जाग जावत अ अर्थना आप जागी जण थान. त तेवारे ध० धनासार्थवाहने दोबोजो पुत्र एण्एम कहे-माण रखे ताप हे तात ! श्र0 अमे जे० वमा ना नाइने गुण् गुरु समान, देवसान, तेने जी जिवीतव्यथी व जुदा करीए. तु तमे ताण हे तात! मुण् मुजने जी0 जीवितव्यथी व जुदो करो जा जावत् था नागी जण था. ए एम जाण जावत पं० पांचमो पुए पुत्र. त० ते वारे ते धण धनासार्थवादे पं० पांच पुत्रनी हि हैयानी इ० श्चा, (नाव) जाग जापीने ते ते पं० पांच पुत्रने ए० एम कहेःमाण रखे तु तमने पुण् हे पुत्र ! ए० एकने पण जी0 जीवितव्यथी व जुदा नहि करीए. ए० ए सु मुसुमा दा बालीकानुं स शरीर णि प्राणरहित जाण् जावत् जीव वि० मेवं मृत्यक शरीर तं ते माटे से श्रेय नढुं ख० निश्चे पुण् हे पुत्र ! अण् श्रापणे ते सु सुसुमा बालीकाना शरीरनु मं० मांस सो लोही था खाइए. त तेवारे थप अमे ते ते आ श्राहारे २० तृप्त थया थका रा राजग्रहने सं० पामशुं. त० तेवारे ते पं० पांच पुत्र धन धनासार्थवाहे ए एम को थके ए० ए अर्थ सांजलीने प० प्रमाण करे. तण तेवारे ध० धनासार्थवाहे पं० पांच पुत्र साथे १० अरणी काष्ट आणे, आणीने, सण सरु करे, करीने स० बा करी अर अरणीने म० मथे, मथीने अग्गिा श्रमि पामे, पामीने श्र.सं अभि संधुके, संधुकीने दा लाकमां प० प्रदेपे नाखे, नाखीने अण् अनि प्रजाले, प्रजालीने सु सुसुमा दाग पुत्री, मं मांस सोग लोही श्रा० श्राहारे. ते ते श्राप आहारे करी था तृप्त थया थका राग राजग्रह ए नगरने सं० पाम्या. मि मित्रने, न्यातीने अ० पाम्या. त ते विण विस्तीर्ण ध० धनना क सुवर्णना र रल ना जा० जावत् श्रा० नागी जो थया. त० तेवारे से ते ध० धनासार्थवाहे सु० सुसुमा दा० पुत्री. नां ब० घणां लोग लोकिक कार्य कीधां जाप जावत् वि० सोग रहित Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७२ ) जा० केटलेक दीवसे थया. ते ते काले ते समये स० श्रमण भगवंत श्री महावीर गु० गुण शील चे० वनमां स० समोसर्या (पधार्या ). त० तेवारे ध० धनासार्थवाहे स० पुत्र सहित ध० धर्म सांजलीने पण दिक्षा लीधी. ए० ग्यारे अंग जण्या. मा० एक मासनी सं० सलेखणा ( संथारो ) करी सौ० सौधर्म देवलोके न० उपन्या. ते म० महाविदेहमां अतरी सि० मोक्ष जाशे. एम सुधर्मा स्वामी जंबु स्वामी प्रत्ये क हे बे. ज० जेम जं० हे जंबु ! ध० धनासार्थवादे गो० रुमा वर्णने देते नही नो०रू० रुपने हेते नही पो०ब० बलने देते नही तेम नो०वि० विषयने देते पण नदी सु० सुसुमापुत्रीनुं मं० मांस सो० लोही श्र० श्राहार्यां; पण न० एटं विशेष के ए० एक रा० राजग्रह सं० पामवाने अर्थ. ए० एपी पेरे स० श्रमण नखावंत जो० जे० श्रमारा पि० निग्रंथ साधु पि० नि. ग्रंथ साधवी इ० ए ० नदारीक स० शरीर व० वमननुं गम पि० पित्तनुं स्थानक सु० विर्यनुं ठाम सो० लोहीए नर्यु जा० यावत् श्र० अवश्यमेव विo ain प. माटे नो० वर्ष देते नही नो०वि० विषय देते नदी ० श्राहार श्राहारे; पण ए० ए विशेष ए० एक सि० मुक्ति जावं संo ते पामवाने अर्थे प्रहार करे. से० ते ५० आज जवने विषे ० निश्चे ब० घणा स० साधु ब० घणी स० साधवी ब० घणा सा० श्रावक ने ब० घणी सा० श्रावीकाने ० अर्चवा योग्य जा० यावत् वी० संसारनो पार पामी मोक्ष जाशे. 4 सिद्धान्तसार. नावार्थ- दवे जुड़े ! या पाठमां तो एम कयुं छे के, जैम घनावा होते तेना बेटाए नगरीए पहोंचवाने वास्ते, केटलाक दास प्रणामे, बेटीना मांसनो आहार कीधो; तेम साध साधवी ढकायना जीवने बेटा बेटी समान जाएाने, तेना पुजगलोनो आहार, मुक्तिनग ए पहोंचवाने वास्ते बेटीना मांसनी परे निर्जत्साह जावे श्राहार करे, एम कर्त्तुं . हवे जुर्छ ! साधुना श्रहार करवामां धर्म होय तो निर्उत्साह Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ३७३ ) जावे करवो केम को ? धर्म तो उल्लास प्रणामे करवो जोइए. माझा हो ते विचार जोजो. वली साधुने छ कारणे श्राद्दार करवो कह्यो ढे, अने कारणे होमवो कह्यो ढे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन ाण् डवी समें. ते गाथा:तइयाए पोरसिए, नत्त पाणं गवेसए, उन्नमन्नय-रागंमि, कारणंमि समुहिए. वेण वेयावच्चे, इरियठाएय संजमठाए, तह पाणवत्तिया बठं पुण धम्म चिंत्ताए. निग्गंथो धिईमंतो, निग्गंथिवि नकरेज बर्दिचेव, गणेहिंतु इमेदिं इक्कमणाय सोदोइ. प्रायंके उवसगो, तितिकया बंजचेर गुत्तीसु, पाणीदया तवहेन सरीर वो यहाए. ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ 11 34 11 अर्थः- पूर्ववत्. जुर्ड प्रश्न पेहेलो पाने १० में. नावार्थ- दवे जुर्ज ! या पाठमां साधुने व कारणे श्रादार करवो को. जो धर्म होय तो ब कारणे करवो केम कड़े ? धर्म तो वारंवार सदैव करवोज जोइए. वली पांत्रीसमी गाथामां व कारणे आहार बोवो को बे; पण धर्मने कोइ ठेकाले बोमवो कह्यो होय तो पाठ बतावो . ए जो धर्म होय तो बोमवो केम कह्यो ? माह्या हो ते विचारी जोजो. वली सूत्र उत्तराध्ययनना सत्तरमा अध्ययनमां, वारवार खाय तेने पापी श्रमण को बे. त्यारे जुड़े ! साधुनो श्राहार धर्ममां होय तो धर्मनुं काम वारंबार करे तेने पापी साधु केम कदे ? वली सूत्र दसासुतखंधना पहेला अध्ययनमां, वारंवार आदार करे तेने असमाधियो कह्यो बे. दवे जुड़े ! जो शाहार कर्यामां धर्म होय तो, वारंवार खाय तेने समाधि केम कह्यो ? तमे तो साधुनो खादार करवो, बंधयुं, दालवु, चालकुं, बोलवं, कामे जनुं, मात्रा करवी धने नदी उतरवी वीगेरे साधुनां सर्व काम, व्रत धर्ममां कहो ढो; पण जो एवी श्रद्धा श्रीवी तरागदेवनी होत तो जे वारंवार ॥ ३२ ॥ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७४) + सिद्धान्तसार खाय तेने पापी श्रमण श्रने असमाधियो न कहेता. तमारे लेखे तो एम कहे जोइए के, “जे घणीवार खाय तेने घणो धर्म. जे घणी निंद ले तेने घणो धर्म. तेमज घणी वार जुलाब लश्ने कामे जाय. घणीवार मा. तरुं करे, घणीवार वायसरे, तथा घणी वार नदी नतरे तेने घणो घणे धर्म; अने थोमीवार ए काम करे तेने थोमो धर्म.” एम कहेवू जोइए; पण थाहार करवामां धर्म मानवानी श्रझा नगवंतनी नहोती ते जा. पजो. वली सूत्र प्रश्नव्याकरणना संवरछारमा ब कारणे आहार करवो कडं , अने कारण विना श्राहार करे तो श्रदत्तादान लागे कयुं . हवे जुउँ ! जो थाहार करवामां धर्म होय तो अधिकुं खातां श्रदत्तादान केम का ? वली अनुयोगहार सूत्रमा धर्मने कयोपशम नावमां को डे, अने थाहारने तो उदय नावमांगण्यो बे. वली संन्नोगनां, उपगर्णनां अने जातपाणीनां पञ्चखाण करवां कह्यां बे. तेनी शाख सूत्र उत्तराध्य. यन अध्ययन श्ए में. ते पाठःसंजोग पच्चरकाणेणं नंते ! जीवे किं जणयइ ? संनोग पच्चरकाणेणं आलवणाई खवेश निरालंबणस्सय आयतहिया जोगाजवंति. सएणं लानेणं संतुसइ परलानं नो आसाएइ नोतके नोपोदेश नोपले नोअनिलस्सइ परलानं अणासाएमाणे अतकेमाणे अपीहेमाणे अपत्रमाणे अणनिलस्समाणे दोच्चे सुहसेजं नवसंपजिताणं विहर॥ नवदि पच्चरकाणेणं नंते! जीवे किं जणय ? नवदि-पच्चकाणेणं अपलिमंथ जणय निरुवदिएणं जीवे निकंके जविहिं मंतरेणय नसंकिलिस्स॥ आदार पच्चरकाणेणं भंते! जीवे किं जणय ? आहार-पच्चकाणेणं जीविया संसपउँग वोबिंदर जीवियासंसप्पळगं वोबिंदित्ता जीवे आहारमंतरेण नसकिलिस्स३॥ ३५ ॥ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( ३७५ ) अर्थः- सं० पोतानो थाहार होय ते धने बीजा जतीए (साधुए) आहार आयो होय ते एकटो करीने वेढेंची ले तेने संजोग कहीये. ते संभोगनुं प० पञ्चखाण करवायी नं० दे पुज्य ! जी० जीव किं० शुं ज० उपार्जे ? एम शिष्य पुढये थके गुरु कहे बेः सं० संजोग पच्चखाण करवाथी प्र० रोगी असमर्थ होय ते बीजा यतिनो खादार वान्छे ते आलंबन कहीए, एवा श्रालंबनने खे० (केपे ) बोने. नि० थालंबन रहितने प्रा० मोक्ष तथा संजम, तेनो अर्थ बे जेने, एवा यतिने जो० संयमनो व्यापार थाय. स० पोताना ला० लाने करी सं० शंतोष पामे. प० परं बीजा यतिना लाननी नो० आशा न करे. नो० ए मुने आपे एम. मनमां कल्पना न करे. नो० पोताना आत्मानी वान्छा वचने करी बीजा यतिने जणावे नही. नो०प० बीजा यतिकने जाचे नाही. नोअ० श्रनिलाषा ( वान्बा) न करे. प० बीजा यतिना लाननी अ० श्राशा अप करतो को त कल्पना करतो थको पी० पातानी वान्छा जावतो को अप० बीजा यति कने अयाचता को अप अभिलाषा करते'थको दो० बीजी सु० सुख सेज्या न० अंगीकार करीने वि० विचरे. उ० उपधि उपगनुं प० पञ्चखाण करवे करी ० हे पुज्य ! जी० जीव किं० शुं० ज० उपार्जे ? एम शिष्ये पुढये थके गुरु कड़े से न० नृपधि उपगरीनुं पञ्च्चखाण करवे कर श्र० स्वाध्यायादिकनुं व्यासपणुं ज० नृपाजें. नि० उपधि रहित पणे करी जी० जीव नि० व खादिकनी जिलाषा रहित थको न‍ उपधि मं० विना न० शारीरिक मानसिक संबंधि क्लेश पीमा न पामे. श्र० श्राहार लेवाना प० पञ्चखाणे करी जं० दे पुज्य ! जी० जीव किं० शुं ज० नपार्ने ? एम शिष्ये पुढये के गुरु कड़े . श्रा श्राहार लेवाना पच्चखाणे करी जी जीवीतव्यनी सं० वान्बानुं कर बि० बेदे. जी० जीवीतव्यनी वांढानुं कर वो० बेदीने जी० जीव आप खाहार वीना न०सं० क्लेश न पामे. जावार्थ: दवे जुन ! श्रा पाठमां संभोग, उपगणे अने आदा Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. रनां पचखाण करवां कह्यां. जो आहारादिकमां धर्म होय तो धर्मनां पचखाण करवां केम कह्यां ? संजोग, श्राहार अने नपधिनां पचखाणं करवावाला साधुने आशा वान्ा अने (पलीमंथ) अनिलाषानो टालवावालो कह्यो; अने ते क्लेश (पीमा ) न पामे एम कयुं, एटले थाहार श्रने उपगर्णने क्लेशनां कारण कह्यां; अने आशा, वान्डा, तृष्णाने अनिलाषानां कारण कयां, एटले आहारादिकना त्याग नही तेथी आशा वान्डा करे, ते श्राशा वान्ठाने लोन कह्यो . शाख सूत्र नगवती शतक १२ मे उद्देशे ५ मे. वली लोन ते मोहीनीनो उदयन्नाव . तेथी तेने धर्म कया न्याये कहीए ? एतो ज्ञान, दर्शन अने चारित्र नने नहिं तथा मुक्तिनगर पहोंचाय नही तेटला माटे आहार करे अने उपगण राखे. जेम माल ठेकाणे पहोंचामवाने अर्थे हुंमी, नाउँ, वोलाइ खर्चे ते समान ए पण हे. वली उत्तराध्ययनना ए मा अध्ययनमां श्रागल घणा बोल कह्या बे. जोगना पचखाण करे तो साधु भजोगीपणुं पामे कयु. ए जोगमा बोलवाना पण त्याग करा; अने जो शरीरनुं पचखाण करे तो सिद्धपणुं पामे कयुं. हवे जो साधुनुंशरोर धर्ममां होय तो तेने त्याग बोम, केम कथु ? वली आगल कj के, सर्वथा नातपाणीनां पचखाण करे तो अनेक नव खपावे कगुं.एम सूत्रमा वामगम श्राहार त्यागवानां फल तो कह्या ले, पण “घणो घणो आहार कर्याथो धर्म थाय " एवो पाठ होय तो बतावो. ए पाहार तो उदयनावे अने ते पूर्व जवनां कर्मनो प्रेयो रस देडे अने व्रत अवत तो वर्तमान कालना . ते नदयनावने धर्म केम कहोडो ? तेवारे वली तेरापंथी कहे के “ थाहार उदयनावमा बे, त्यारे साधुने श्राहारनी श्राचार्य, उपाध्याय अने तीर्थकर श्राा केम देखें?”, तेनो उत्तर.हे देवानुप्रीय ! आज्ञा तो कटपमांथी देखीने आपे. जेम वरसाद वरसतां दिशा मात्रो जवानी अने परग्वा परगववानी आज्ञा मापे तथा नदी उतरवानी थाझा आपे . तो शुं? दोशाए जवं, Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( ३७७ ) - मात्रा करवो श्रने नदी उतरवी, ए शुं ? कयोपशमन्नावमां गणाशे. ए थाहारादिक तो सर्व उदय जावे बे, पण झान, दर्शन अने चारित्ररुपी माल नन्नाववाने अर्थे आज्ञा आपे ले. जेम राजाजी चतुरंगनी सेनाना तात कदेवाय ले. ते कामेतीने दाणो, चारो, रातब विगेरे जतन करवा सारु रुपीया खरचवानी श्राज्ञा आपे . वली शेठ गुमास्ताने माल निजाववाने अर्थे, हुमी, जाउँ, वोलावू वीगेरे खरच करवानी श्राज्ञा श्रापे , तथा पोतानी मातबरा राखवा निमित्ते दुकाननुं खर्च लागे तेनी पण थाझा थापे डे; पण ते खरचने लान्न नथी जाणता. जो खरच लाग्या वीना माल पुगे तो अने मातबरार रहेतो खरच लगावे नही; पण खरच लाग्यावीना माल पुगतो दीसे नही तेथी खरच लगावे . वली को संसारमा कर (जयनी) जग्याए माल लश्ने जातो होय तेने को जलो आदमी मले, ते कहे के " अरे ना ! मार्गमा आगल मर-नय , माटे तुं वोलाइ खरची वोलावाने लश्ने आगल जजे. ” एम संसारमा पण लला आदमी होय ते पण उपगार निमित्ते श्रावी शोखामण देबे, त्यारे श्री तीर्थकर, आचार्य अने उपाध्याय समान नला अने उपकारी बीजा कोण ? ए उपकार निमिते शिष्य शिष्यणीने ज्ञानादिक माल निजाववाने अर्थे, थाहारादिक नदय नावमां ने तोपण आज्ञा आपे बे; कारण के श्री तीर्थंकर चार तीर्थना कर्ता के अने तीर्थंकर, श्राचार्य अने उपाध्याय, ए चार तीर्थना मालीक जे. तेमणे साध-साधवीरुप चतुर्विध संघने ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररुपी धन सोप्यु बे; तेनुं जतन करवा तथा निन्नाववाने वास्ते मोक्ष नगरीए पांहोंचाववाने वास्ते, आहारादिक नुध्यन्नावमां ने तोपण श्राझा श्रापे . तेवारे तेरापंथी कहे के, " साधुने आहार करतां सात आठ कर्म निर्जरे कह्यां जे.” तेनो उत्तर. अरे देवानुप्रीय ! श्हांतो प्रासुक एखपिक थाहार पूर्वोक्त बने धनाना अष्टांन्ते बुखा प्रमाणे करे, ते बुखा प्रणाम क्षयोपशमनावमां बे, ते श्राश्री सात आठ कर्म निर्जरे एम ४८ की शोखामण मला आदमी बोलावाने व Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७८) + सिद्धान्तसार.. कडं बे; पण खावं पीयूँ तो सर्व उदयनावमां . वली जो श्रावक एवा बुखानावे साधुनीपरे खाय तो तेने निजर्रा थाय के नही ते कहो. केमके ए खुखा प्रणाम तो क्षयोपशमनावे ने तेथी साध श्रावक बनेने निर्जरा थाय ले. जो थाहार करवाथी निर्जरा धर्म थाय तो, एक साधु तो पांच रोटी खाय, अने एक साधु पांच रोटीनी खुराकवालो अपोदरी तपने वास्ते जाणीने बेज रोटी खाय. हवे खावामां धर्म होय त्यारे तो पांच रोटीनी खुराकवालो, जाणीने ब रोटी खाय तेने तमारे लेखे तो, घणो धर्म थवो जोइए; पण जगवंते तो, श्री प्रश्नव्याकरणमां थोडं खाय तेने अणोदरी तप कह्यो चे अने अधिको थाहार करे तो श्रदत्तादान कडं जे. वली सूत्र उत्तराध्ययनना १७ मा अध्ययनमा वारंवार खाय तेने पापो श्रमण कह्यो बे. वली सूत्र दशाश्रुतष्कंधना पहे. ला अध्ययनमां, वारंवार खाय तेने असमाधियो कह्यो ; अने सूत्र उत्तराध्ययनना २ए माअध्ययनमा आहारनां पचखाण करवां कह्यां . इत्यादिक अनेक सुत्र-पाठमां आहारने नदयत्नावमां कह्यो . तमे एटला सूत्रना पाठ नत्थापीने, साधुना खावामां, निंद लेवामां, दिशाए जवामां, वाय संचरवामां, इत्यादिकमां धर्म कहीने अणहुती स्थापना केम करोगे? ___ वली तेरापंथी कहे बे के “ सामायकमां श्रावकनी आत्माने अधिकरण कडं बे. तेथो श्रावकने आहार दीधामा अने वंदणा कामां पाप कहीये बीऐ.” तेनो नत्तर. सूत्र जगवती शतक सातमें नद्देशे पहेले, श्रावकनी आत्माने अधिकरण केवी रीते कह्यु ते पाठःसमणोवासगरसणं नंते ! सामाश्य कमस्स समणोवासए अन्नमाणस्स तस्सणं नंते ! किं रियावहियाकिरियाकबइ संपराश्याकिरियाकयइ ? गो! नोरियावहियाकिरियाकय संपराश्याकिरियाकघर. सेकेणवेणं नंते ! जाव Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार ( ३७९ ) संपराश्याकिरियाकधइ ? गो! समणोवासयस्सणं सामाश्य कमस्स समणोवासए अबमाणस्स आया अहिंगरणी जव आयाअदिगरण वत्तीयंचणं तस्सणं नो इरियावदियाकिरियाकघसंपराश्याकिरियाकचश्सेतणठणं॥ अर्थः-स० श्रमणोपासक श्रावकने नं० हे जगवान ! सा सा. मायक क० कयुं ले जेणे अ० सामायक नेश्राये रह्या त० ते नं० हे न. गवान ! किं० शुं ? इ० इरियावही क्रिया करे ? के सं० संप्राश्याक्रिया करे ? इति प्रश्न. नुत्तर. गोण् हे गौतम ! नोण्३० रियावही क्रिया न कर, पण सं० संप्रायनी क्रिया करे. से ते के शा अर्थे नं० हे नगवान ! एम कडं जा यावत् सं० संप्रायनी क्रिया करे ? इति प्रश्न. नत्तर. गोग हे गौतम ! स० श्रमणोपासकने सा सामायक कर्याने (उपाश्रये रह्याने) सामायक नेश्राए रह्यो ले तेनो श्रा० आत्मा जीव १० हल शकटादि कषायना आश्रयजुत जेने ले ते अधिकरणी कहीये. श्रा० श्रात्मानो जे श्रधिकरण तेज प्रत्यय कारण ते क्रिया कारणने बे. ते श्रात्माधिकरण प्रत्यय कहीये. त० ते नोण्३० रियावही क्रिया न करे. सं० संप्राइयाक्रिया करे. से० तेणे अर्थे हे गौतम ! एम कडं. नावार्थः-हवे जुन ! आ पाठमां तो एम कडं डे के, श्रावकने सामायकमां रियावही क्रिया न लागे, संप्राश्या (क्रोधादिकन)) क्रिया लागे; कारणके क्रोधादिक अधिकरण सहित ले ते माटे संप्राश्याक्रियाज लागे; अने रियावही क्रिया तो क्रोधादिक रहित होय तेनेज ११ मा गुणगणाथी १३ मा गुणगणा सुधी लागे. यहां तो क्रियानी पुबा ले. हवे तमेज कहो के, इरियावही क्रिया केने अने कया गुणगणे लागे ? अने संपाश्या क्रिया केने लागे ? तेवारे तेरापंथी कहे बे के "संप्राश्या क्रिया तो क्रोधादिक श्रधिकरणथी लागे; अने शरिया. वहि क्रिया क्रोधादिक रहितने लागे.” त्यारे जुन ! देवानुप्रीय !संप्रा. श्याक्रिया क्रोधादिकथी लागे, तेथी श्रावकनी आत्माने अधिकरण Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८० ) 4 सिद्धान्तसार. क. हवे जो श्रावकनी आत्माने अधिकरण कयुं तेथी तेने वंदणा करवामां पाप कहोबो, तो ए लेखे तो साधुने पण वंदा करवामां पाप मान पकशे कारण के सूत्र जगवती शतक सातमे उद्देशे पहेले, साधुने पण संप्रायनी क्रिया लागे कर्तुं ठे. ते पाठःअणगारस्सणं नंते ! णागचमाणस्सवा चिठमाणस्सवा पिसियमाणरसवा तुयमाणस्सवा प्रणानत्तंवनं परिग्गदं कंवलं पायपुत्रणं गिरहमाणस्सवा निस्कियमाणस्सवा तसणं ते! किं इरियाव दिया किरिया कद्यइ संपराइया किरियाकाइ ? गो० ! नोइरियावहिया किरियाकबड़ संपराइया किरियाकघर. सेके वेणं नंते ! गो० ! जस्सणं कोदमाणमायालोमा वोचिन्नानवइ तस्सणं इरियाव दिया कि - रियाका इ. जस्सां कोदमाणमायालोमा प्रचोचिन्ना नवइ तरसणं संपराइया किरियाका प्रदा सुत्तरीयमाणस्स इरियावहिया कि रियाकघर. उसुत्तं - रीयमाणस्स संपराइया किरियाकइ. सेणं नसुत्तमेवरियंति सेतेां ॥ अर्थः- पूर्ववत् जुर्ज ! प्रश्न बीजे पाने एए में. · - जावार्थ:-- हवे जुर्ज ! या पाठमां एम कह्युं के, जे उपयोग विना चाले, जो रहे, बेसे, सुवे, नपग ले, मुंके थाने क्रोधादिक सहित होय, सूत्रमांक तेथे विपरीत चाले तेने संप्रायनी क्रिया लागे; क्रोध, मान, माया, लोभ विछेद गयां होय ने सूत्रमांकयुं ते रीते चाले तेने इरियावहि क्रिया लागे, एटले क्रोधादिक रहित होय तेनां संपूर्ण कामो उपयोग सहित कहीए धने तेनुं यथाख्यात चारित्र ( श्रासु ) कहीए धने तेने इरियावहि क्रिया कहीए; धनं क्रोधादिक सहित होय तेने संप्रायनी क्रिया दसमा गुणवाला सुधी लागे, अने अग्यारमाथी थागल इरियावही क्रिया लागे. वली अधिकरल Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. - नाम शस्त्रनुं . ते कर्म बंधननुं शस्त्र क्रोधादिकने कहीए. तेथी क्रोधादक सहित होय तेनी आत्माने अधिकरणी कहीए. ते तो दसमा गुणगणा सुधी साधुने पण बे. पहेला चार नियंग अने पहेला चार चारित्रना धणी साधुने संप्रायनी क्रिया लागे . वली सूत्र जगवती शतक दसमें, उद्देशा बीजामां पण कषाय सहितने संप्रायनी क्रिया लागे कही नेत्यां कह्यु डे के, साधु कषाय सहित आगल, पाल, पळवामे, जुए तो संप्राया क्रिया लागे. ते दसमा गुणवाणा सुधी साधु कषाय सहित ने तेथी तेने संप्राया क्रिया लागे; अने कषाय रहितने रियावहि क्रिया लागे. हवे श्रावकने संप्रायनी क्रिया सामायकमां लागे ते श्राश्री श्रावकनी श्रात्माने अधिकरण कडं ; अने हलसकटादिक सर्व श्रावकने क्रोधादिकथीज अधिकरण कहीए बीए. वली सामायकमां श्रावकनी श्रात्माने अधिकरण कडं तेम साधुजीनी श्रात्माने पण अधिकरण कडं बे. शाख सूत्र नगवती शतक १६ मे उद्देशे पहेले. ते पाठः कश्णं नंते ! सरीरगा पंगो! पंचसरीरगा पंगतं जरालिय जाव कम्मए. कत्तिणं नंते ! इंदिया पंगो ! पंचेंदिया पंतं० सो दिए जाव फासिदिए. कत्तिणं नंते ! जोए पंगो ! तिविदे जोए पं०२० मणजोए वयजाए कायजोए. जीवेणं नंते ! उरालिए-सरीरं निवित्तमाणे किं अधिकरणी अधिकरण ? गो! अधिकरणिवी अधिकरणंपि. सेकेणणं नंते ! एवंवुच्च अधिकरणीवि अधिकरणंपि गो ! अविरइं पमुच्च सेतेणणं जाव अधिकरणंपि. पुढविकाइएणं नंते ! नरालिएसरीर निवत्तेमाणे किं अदिगरणी अदिगरणं? एवं चेव एवं जाव मणुसे एवं वेउवियसरीरंप नवरं जस्स-अबि. जीवेणं नंते! आहारगसरीर निवत्तेमाणे किं अधिकरणि पुना.गो0 ! अदिगर Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८२ ) सिद्धान्तसार. विधिगरणंवि. सेकेणवेां जाव अधिकरणंवि गो० ! पमायं पच्च सेतेवेणं जाव अधिकरणंवि एवं मणुसेवि तेयासरीर जढा बरालिय नवरं सव जीवाणं प्राणियवं एवं कम्मग- सरीरं पि. जीवेणं नंते ! सोइंदि निघत्तेमाणे किं अधिकरण प्रधिकरणं एवं जदेव उरालिय- सरीरं तदेव सोइंदियंपि जाणियवं नवरं जस्सचसोदीयं एवं चखिंदियं घाणिदिय जिनिंदिय फासिंदियाणंवि जाणियवं जस्सजं चि जीवेणं नंते ! मणजोगं निचित्तेमाणे किं अधिकरण अधिकरणं ? एवं जहेव सोइंदियं तदेव निरव सेसं बजोग एवं चैत्र एावरं एगिंदिय वद्याणं एवं कायजो गेवि वरं सब जीवाणं जाव वैमाणिए सेवं जंते ! २त्ति ॥ अर्थः-- क० केटला जं० दे जगवान ! स० शरीर पं० परुप्यां ? ए प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम ! पं० पांच शरीर पं० परुप्यां तं ते कड़े बेः- उदारीक १ जा० यावत् विक्रय २ आहारीक ३ तेजस ४ छाने क कारमा. ५ क० केटली ज० हे जगवान ! इ० इंडिन पं० कही ? गो० हे ! गौतम पं० पांच इंडिज पं० परुपी तं ते कड़े बेः -सो० श्रोतेंडि १ जा० जावत् चेतु इंडि २ घाणेंद्रि३ रसेंड ४ अने फा० स्पर्शेडि ए. ० केटला जं० दे जगवान ! जो० जोग पं० परुपया ? ए प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम ! ति० त्रण प्रकारे जो० जोग कह्या तं ते कड़े बे:-म० मनजोग व० वचन जोग छाने का कायजांग. जी० जीवने नं० दे जगवान ! न० उदारिक शरीर प्रत्ये नि० निपजावतो थको किं० शुं ० अधिकरण कहीए ? के ० अधिकरण कहीए ? गो० हे गौतम! ०धिकरणी पण कहीए, अ० अधिकरण पण कहीए. से० ते शा नं० दे जगवान ! ए० एम कयुं ? श्र० जीवने अधिकरण पण कहीए थने अधिकरण पण कहीए ? गोए दे गौतम! ० त Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( ३८३) प० आश्रीने से ते तेणे अर्थे जाग यावत् जीव अ० अधिकरण पण . पु० पृथ्विकायने नं० हे जगवंत ! उ नदारीक शरीर प्रत्ये निण निपजावती थकी किं शुं अ० अधिकरणी कहीए ? के अ० अधिकरण कहीये ? ए एमज कहेवं, ए एम जाग यावत् मा मनुष्यने विषे, ए० एम वेग वैक्रिय शरीरने पण कहे; पण ण एटलु विशेष जण जे जीवने वैक्रिय शरीर ले तेने कदेवू. जीजीवने नं० हे नगवान ! श्रा० श्राहारीक शरीर नि निपजावतो थको किं शुं ? अण् श्रधिकरणी कहीए के अधिकरण कहीए ? ए प्रश्न उत्तर. गोण् हे गौतम ! अण् श्रधिकरणी पण कहेवो अने अ० अधिकरण पण कहेवो. से ते शा अर्थे एम कडं जाम् जावत् अ० अधिकरणी पण कदेवो ? ए प्रश्न. उत्तर. गोण् हे गौतम ! १० प्रमाद श्राश्रीने. कारण के थाहारीक शरीर संजति साधुनेज होय. त्यां वतना अनावथी प्रमाद अधिकरणपणुं जाणवू. से० तेणे अर्थ जा० यावत् श्र० श्रधिकरण पण कहीये. ए० एम म० मनुष्यने पण कहे,. श्राहारिक शरीर मनुष्यनेज होय ते माटे. ते तेजस शरीर जण जेम ज नदारीकनी परे केहे. न० एटबुं विशेष तेजस शरीर स० सर्व जीवने होय ते माटे सर्व पद ना कहेवू. एक एम का कारमण शरीर पण कहे. जी. जीवने नं० हे जगवान ! सो श्रोतेंजिय प्रत्ये नि निपजावतो थको किं० शुं ? अ अधिकरणी कहीए के अ० अधिकरण कहीए ? ए एम ज जेम न० उदारीक स शरीर कयुं त० तेम सो श्रोतेंजिय पण कहेवी. न० एटबुं विशेष ज० जेने अ० श्रोतेंजिय ने तेने कहेवू. ए एम च० चखुडि घाघाऐंजि जी० जीनेछि फा स्पर्शजि जे तेने ते कहे. ज० जेने जे इंडि श्रा तेने तेज कहेवू. जी0 जीवने नं० हे नगवान ! म मनजोग प्रत्ये नि० निपजावतो थको किंग शुं ? अ अधिकरणी कहीए के अ० अधिकरण कहीये ? ए० एम ज० जेम सो श्रोतेंजियने कह्यु तंग तेमज निर्विशेषपणे कहेवू. व वचनजोग पण ए० एमज; ण एटलुं विशेष. इहां ए एकिजिय व० वर्जवी. ए एम का कायजोग पण कहेवो. पण Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८४ ) सिद्धान्तसार एटलुं विशेष स० ए जोग सर्व जी० जीवने कद्देवो जा० यावत् वे० वैमानिक सुधी कहेवो. से० तहत जं० हे जगवान ! जावार्थ:- दवे जुर्ज ! आा पाठमां पांच शरीर, पांच इंडि ने त्रण जोगने तो अधिकरण कां ने ए बोल निपजावत आत्माने अधिकरणी को. साधुजी पण वैमानिक देवतानुं श्रायुष्य बांधे त्यारे श्री महिला केटलाक बोल निपजावे बे, ते श्राश्री साधुजोनी आत्माने पण अधिकरण कहीए; तथा मन वचनादिकनो जोग निपजावे छे ते अधिकरण कहीए; तथा श्राहारीक शरीरने अधिकरण कहीए; निपजावे ते श्री श्रात्माने श्रधिकरणी कहीए. ए आहारिक शरीर नियमा कषाय कुशील नियंठाना धणी ( साधु ) नेज होय. ए आहारीक शरीर श्री अने प्रमाद श्राश्री साधुजीनी श्रात्माने श्रधिकरणी कही बे. वली हे गुण ठाणे साधुजी प्रमादिज बे. ए प्रमाद श्री सा जीनी आत्माने पण अधिकरणी कही छे. दवे तभे कहोबो के “सामायकमां श्रावकनी श्रात्माने अधिकरणी कही बे, तेथी तेने दान दीधामां ने बंद कर्यामां पाप कहीए बीए. " ए तमारी कहेणीने लेखे तो साधुजीनी श्रात्माने पण अधिकरणी कही बे. वास्ते साधुजीने पण दान देवामां ने वंदणा करवामां पाप लागशे. हे देवानुप्रय ! अधिकरणपशुं कषाय उदयजावमां बे तेथी संप्रायनी क्रिया लागे ते यश्री कह्युं बे; छाने वांदवावालो तो साधुजीने क्षयोपशम भावना गुण प्रगट्या तेथी वंदा करे बे; पण उदयनावने नथी करतो. तेज श्रावकने पण क्षयोपशम भावना गुण प्रगट्या तेने वंदणा करे बे. वली सूत्रमां श्रावकोने वंदा करी ठाम ठाम चाली बे. इशी श्रावकने आालंजीया नगरीना सर्व श्रावकोए जगवंतना मोंढा अागल वंदा करी बे. शाख सूत्र जगवती शतक ११ में. ते पाठःततेांते समणोवासमा समणस्स ३ अंतियं धम्मंसोच्चा निसम्म हहतुहा उठाए उठेइ २ त्ता समणं ३ वंदंति नम Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. (१८५) संति वंदी ३ त्ता एवंवयासी एवंखलु नंते ! सिन्नदपुत्ते समणोवासए अम्मं एवमाश्कई जाव परुवेश् देवलोएसुणं अद्यो देवाणं जदणेणं दसवाससदस्साइंगिइपं० तेणपरं समयादिया जाव तेणपरं वोबिन्ना देवाय देवलोगाय सेकहमेयं ते! एवं अधोति समणेनगवं महाविरे ते समणोवासगाणं एवंवयासी जणं अधो इसिन्नदपुत्ते समणोवासए तुळं एवमाइकइ जाव परुवे देवलोगेसुणं अद्यो देवाणं जदणेणं दसवास-सहस्सा विश्पं0 तंचेव समयाहिया जाव तेणपरं वोबिमा देवाय-देवलोगाय सच्चेण एसमठे. अहंपुण अद्यो एवमाइकामि जाव परुवेमि देवखोगेसुणं अधो देवाणं जहणेणं दसवाससहस्सं तंचेव जाव तेणपरं वोहिमा देवाय-देवखोगाय सच्चेणं एसमझे. तएणं से समणोवासग्गा समणस्स नगवां महावीरस्स अंतिया एयम निसम्म समणं ३वंदंति नमसंति वंदित्ता जेणेव इसिनहपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागश्त्ता इसिनदपुत्तं समणोवासग्गं वंदर नमसइ एयमहं सम्म विणएणं चूजो श्खामेश्॥ अर्थः-त तवारे ते स० श्रमणोपासक सा श्रमण नगवत श्री माहावीर देवना अंण् समिपथी ध धर्मकथा सांजलीने नि हृदये धारीने ह हर्ष शंतोष पाम्या. जग उठी उन्ना थाय, उना थश्ने स० श्रमाय नमवंत श्री माहावीर देव प्रत्ये वं वांदीने न० नमस्कार करे, करीने ए०एम कहेः-ए० एम निश्चे नंग हे चगवान! इ० ऋषीनपुत्र स० श्रमणोपासक प्र० अमने ए एम मा कहे (सामान्यथी) जा० पारद मम प० परपे (विशेषथी):-दे० देवलोकने विषे प्रण प्रहो Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८६) +सिद्धान्तसार.. श्रार्यो ! देण् देवनी ज० जघन्यथी द० दस सहस्त्र वर्षनी वि० स्थिति पंग कही. ते तेमज स समयाधिक जाण जावत् नत्कृष्टथी ३३ सागर ते तेना उपरान्त वो विजेढ़ गया दे देवता अथवा देव देवलोक. से ते का केम नं0 हे नगवंत ! ए ए वार्ता ? श्र॥ अहो थार्यो ति आमंत्रणे सण श्रमण नगवंत श्री महावीर देव ते ते स० श्रमणोपासक प्रत्ये ए० एम व कहेः-ज जे जण अ० अहो आर्यो ! ३० ऋषीनपुत्र स० श्रमणोपासक तु तुम प्रत्ये एक एम मा कहे जा० यावत् एम प० परुपेः-दे० देवलोकने विषे अ० अहो आर्यों ! दे देव. तानी ज० जघन्यथी द० दस हजार वर्षनी वि० स्थीती पं० कही. तं० तेमज सा समयाधिक जाग जावत् ते ते नपरान्त वो विजेद गया दे० देव तथा देवलोक. स० साचो ए ए अर्थ कह्यो. पण ढुं पण श्रण अहो आर्यो ! ए एम मा कहुं हुं जाग यावत् एम प० परुपुं दुः-दे० देवलोकने विषे अ० अहो आर्यो ! देण् देवनी ज जघन्य दण् दस सहस्त्र वर्षनी इत्यादिक तं तेमज जाग यावत् ते ते उपरान्त वो विडेद गया दे० देव तथा देवलोक, सण साचो ए अर्थ कह्यो. त० तेवारे से ते स श्रमणोपासक स० श्रमण नगवंत श्री माहावीर देवना श्र० समिपथी ए० ए अर्थ नि सांजलीने स० श्रमण नगवंत श्री माहावीरदेव प्रत्ये वं वांदे न० नमस्कार करे. वं वांदीने, नमस्कार करीने जे ज्यां इ० ऋषोजपुत्र स० श्रमणोपासक डे ते त्यां उ० श्रावे, श्रावीने ३० ऋषीनपुत्र स० श्रमणोपासक प्रत्ये वं वांदे न० नम. स्कार करे. ए० एवो अर्थ स० सम्यक् प्रकारे वि० विनये करी जु० वारंवार खाण खमावे. नावार्थः-हवे जुर्ज ! आ पाठमां पहेलां ऋषीन श्रावके देवतानी स्थितीनां ठकाणां कह्यां, पण श्रावकोने प्रतीत आवी नही, तेथो श्री जगवंत पधार्या त्यारे पुज्यु. जगवंते रुषीला श्रावकनी कहेली वात स्वीकार अने रुषीजनी प्रशंशा कीधी. पनी श्रावकोए जगवंतनो रुबरु रुषीनापुत्रने बंदणा नमस्कार कर। खमाव्या; पण जगवते Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. (३८७ ) निषेध्या नही. पढी पोते पोतानो अप्राध खमाव्यो. तेमज वली संख जीनी स्त्री उत्पलाए (नव तत्वनी जाए ) पोकलीजी श्रावकने वंदणा नमस्कार कर्यो ; ने पोष्कली श्रावके इरियावदी पक्किम पापथी निर्वतीने पढी संखजी श्रावकने पोसामां बेठाने बंदला नमस्कार कर्यो a. शाख सूत्र जगवती शतक बारमे उदेशे पहेले. ते पाठःबे. तरणं सा उप्पलासमणोवासिया पोकलि समणोवासगं एकमाणं पासइश्त्ता दट्ठतु आसान अनुठे‍ ता सतपयाइं अणुगत २ त्ता पोरक लिसमोवासगं वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता आसणेणं नवनिमंतेइ २ ता एवंव० संदिसं तुणं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पन्यणं. तएणंसे पोकलेस मणोवासए उप्पलंसमणोवासियं एवं क्यासी कदिां देवाप्पिया ! संकेसमोवासए. तरणं सा उप्पला समणोवासिया पोरकलिं समेणावासग्गं एवंवयासी एवंखलु देवाणुप्पिया ! संके समणोवासए पोसदसालाए पोस दिए बंजारि जाव विहरइ. तरणंसे पोकलिसमणोवासए जेणेव पोसह सालाए जेणेव संरकेसमणोवासए ते व जवागत २ त्ता गमागमणाए पक्किम्मइ १ ता संस्कंसमणोवासगं वंदइ नमसइ २ त्ता एवं वयासि एवं - खलु देवाप्पिया ! अम्दे से विजले सण जाव साइमे नवस्कमावेइ तंगच्चामोणं देवाणुप्पिया तं विजलं असणं जाव साइमं यासाएमाणा जाव परिजागरमाणा विहरामो. तरणं से संकेसमोवासए पोक जिसमण वासगं एवंवासिणो खलु कप्पर देवाणुप्पिया तं विजलं असणं ४ असारमास जाव परिजागरमा णस्स विहरितए Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८८) सिदान्तसार.. कप्पश्मे पोसहसालाए पोसहियस्स जाव विहरित्तए तंडं. देणं देवणुप्पिया तुब्ने तं विनलं असणं ४ आसाएमाणा जाव विदर॥ ___ अर्थः-त. तेवारे सा ते ज० नत्पखानामे श्रमणोपासिका पोग पोष्कली श्रमणोपासक प्रत्ये ए० श्रावता पाण् देखे, देखीने ह हर्ष सं. तोष पामीथकी श्रा० श्रासनथी श्र० उठे, नगीने स० सात थाठ पग अ० सामी जाय, जश्ने पो पोखली श्रमणोपासक प्रत्ये वं वांदे न० नमस्कार करे वं० वांदीने न नमस्कार करीने पाण् श्रासने करी मा० आसननी उ० निमंत्रणा करे, करीने ए० एम व कहेः-सं० श्राज्ञा यो देण् अहो देवानुप्रीय ! किं० शुं श्राववानो प्रयोजन ? एटले शा कार्ये आव्या बो ? त० तेवारे से ते पो पोष्कली श्रमणोपासक न० नस्प. लाश्रमणोपासीका प्रत्ये ए० एम व कहे: क क्यां ने दे० हे देवानुप्रीय! सं० शंख श्रमणोपासक ? तण तेवारे सा ते उ उत्पहा श्रमणोपासीका पो० पोष्कली श्रमणोपासक प्रत्ये ए० एम कहे डे-एण्ख० एम निश्चे दे० हे देवानुप्रीय ! सं० संख श्रमणोपासक पो पोषधशालाए पो पोसह सहित बं ब्रह्मचर्य सहित जाण् यावत् वि० वीचरे जे. त० तेवारे से ते पो पोष्कली श्रमणोपासक जे ज्यां पो पोषधशाला . जे ज्यां सं० शंख श्रमणोपासक डे ते त्यां न० श्रावे, आवीने ग शरियावहि पमिकमे, गमणागमणे इत्यादिक कहे, कहीने सं० शंख श्रमणोपासक प्रत्ये वं० वांदे न नमस्कार करे, वांदीने, नमस्कार करीने ए० एम व कहे ए० एम ख० निश्चे देण् थहो देवानुप्रीय ! अ० अमे से ते वि० विस्तीर्ण अ असन जाप जावत् सा स्वादिम ज रंधाव्या ने तं० ते नणी गण श्रावq जोइए. देव हे देवानुप्रीय ! तं ते वि० विस्तीर्ण श्र० असन जाण् यावत् सा स्वादीम, ए चार थाहार प्रत्ये श्राप थोमो स्वा. दताथका जाग यावत् प० अनुपालता थका वि० विचरीए. त० तेवारे से ते सं० शंख श्रमणोपासक पो पोष्कली श्रमणोपासक प्रत्ये ए० एम Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार व कहे णो नही ख० निश्चे का मुझने कल्पे दे हे देवानुप्रीय ! तं० ते वि० वीस्तीर्ण अ असन, पान, खादीम, स्वादिम, ए चार श्राहार प्रत्ये श्राप थोमो श्रास्वादतो जाण् यावत् प० पाखी पोषह अनुपालतां वि० विचरवू. का ते माटे कटपे मुजने हे देवानुप्रीय ! पो पोषहशासामां पो० पोषध युक्तने जा यावत् वि० विचरवू. तं ते जणी तमारी ना; (पण इहां माहारी आज्ञा नथी). देश हे देवानुप्रीय! तु तमे तं० ते वि० विस्तीर्ण अ असनादि चार श्रा० श्रास्वादता थका जाप यावत् वि० विचारो. जावार्थ:-हवे जुन ! नत्पश्वा श्रावीका एवी विचीक्षण नव तत्वनी जाण, तेणे पोष्कलीजी श्रावकने श्रावता देखीने दर्ष संतोष पामीने, साधुनी पेरे सात आठ पग सामी जश्ने वंदणा नमस्कार कर्यो. पठी पोष्कलीजी श्रावके शंखजीने पोषामां बेग ने त्यां जश्ने गमणा गमणे पमिकमणी, पापथी निवर्तीने पनी वंदणा नमस्कार को. जो तमारा सरखी नगवंतनी श्रका होत अने पाप श्रमाव्युं होत तो ए बंदणा केम करत ? वली एज बारमा शतकना पहेला उद्देशामां शंखजो भावकने सर्व श्रावकोए जगवंतना रुबरु वंदणा नमस्कार कर्यो . ते पाठ. तएणं से संकसमणोवासए समणंजगवं महावीरं वंदर नमंस श् त्ता एवं वयासी कोदवसट्रेणं नंते ! जीवे किं बंध किंपकरे किंचिण किंजवचिण? संखा कोदवसट्टेपंजीवाजयवधानसत्तकम्म पगमि सिढिल बंधणबंघाए धणियबंधणबंध जहा पढमेसए असंवुमस्स अणगारस्स जाव अणुपरियट्टर ॥ माणवसट्टेणं नंते! एवं चेव एवं मायावसहेवि एवं सोनवसद्देवि जाव अणुपरियदृश्. तएणं ते समणोवासगा समणस्स जगवन माहावीरस्स अंतिए एयमहं सोच्चा निसम्म निया तबा तसिया. संसारलयु Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९०) + सिद्धान्तसार विग्ग समणं ३ वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव संखेसमणोवासए तेणेव उवागच्छति २त्ता संखंसमणोवासग वंदति नमसंति एयमहंसम्मं विणएणंनुजो श्खामेश॥ अर्थः–त सेवारे से ते सं० शंख श्रमणोपासक सण श्रमण जगवंत श्रीमहावीर प्रत्ये वं वांदे न नमस्कार करे, वांदीने नमस्कार करीने ए एम कहे-को क्रोधने वशे पीमित नंग हे जगवान ! जी० जीव कि बंग शुं बांधे? कि प० | पृष्ट करे? किंचि० शुं चोणे ? किंजण शुं नपचय करे ? ए प्रश्न उत्तर. संग हे शंख ! को क्रोधने वशे पीमित जीव प्राण आयुकर्म वर्जीने स० सात कर्भ प्रक्रति सि सिढस बंधणे बांधी होय ते ध० अढ बंधणे करे (कगेर बांधे).जण्जेम.पहेला शतकने विषे अ० असंवुम अणगारना अधिकारे कयुं तेम इहां पण केहे. जा० जावत् अ० संसारमा नमे. मा० मानने वशे पीमीत जीव जं० हे नगवान! इत्यादिक ए० एमज ए० एम मा० मायाने वशे पीमीत जीव पण ए० एम लोग लोनने वशे पण कदेवा जाग यावत् अ० संसारमा परिज्रमण करे. त० तेवारे से ते स० श्रमणोपासक स० श्रमण जगवंत श्री माहावीरना समिपथी ए० ए अर्थ सो सांजलीने निण् हृदये धा. रीने लिए जय पाम्या त० (त्राग मनने विषे उठेग पाम्या). सं० संसारना जयथी नविग्न थया थका स श्रमण नगवंत श्री माहावीर प्रत्ये वंग वांदे न नमस्कार करे वं० वांदीने न नमस्कार करीने जे ज्यां सं० शंख श्रमणोपासक डे ते त्यां उ० आवे, आवीने सं० शंख श्रमणोपासकने वं वांदे न नमस्कार करे. ए पूर्वोक्त अर्थ सनले प्रकारे वि० विनये करी जु० वारंवार खाण खमावे. जावार्थः-हवे जुर्म ! आ पाउमा शंखजी श्रावके क्रोध मानथी श्रावकोने निःसल करवा माटे जगवंतने क्रोध, मान, माया अने लोजनां फल पुबयां. तेवारे जगवंते कयु के, सात कर्म ढीला बांध्यां होय ते गादां बांधे; यावत् चार गतिमा वारंवार परित्रसण करे. ते वचन सां Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( १९१ ) जलीने श्रावक मर्या, उद्वेग पाम्या. पढी शंखजीकने श्रावीने वंदला नमस्कार कर्यो. पढी पोतानो अपराध खमाव्यो. ए जुर्ज ! श्रावकने वंदा नमस्कार कर्यामां पाप होय तो, ते समजवार श्रावकोए जगवंतना रुबरु वंदा केम कराने जगवंत तेमने केम न निषेधा ? तेवारे तेरापंथ कंदे बे के, पूर्वे रिषिन श्रावकनो देवतानी स्थिती जघन्य दस हजार वर्षथ। एक समय अधिक मांगीने तेत्रीस सागरना समा सुधी देवतानी स्थितीनां ठेकाणां कह्यां तेनो को दीधो इतो ते प्राध माटे खमाव्या बे, घने शंखजी श्रावक नपर श्रावकोनो क्रोध- जाव रह्यो ते अपराध माटे खमाव्या बे. एम कदे बे तेनो उत्तर. है हे देवानुप्रय ! प्राध कर्या माटे वंदा नमस्कार तो न करवो जोइए, पण साचाने जुठा पाड्यानो अप्राध तो जेम आणंद श्रावकने गौतम स्वामीए खमाव्या तेम खमाववा जोइए. ए ' वंदइ नमंसइ ' तो दानो पाठ ने अप्राध तो वंदला नमस्कार करीने पढी खमाव्या . वली दालमां तमारा श्रावक खमत खामणां तो रोस मटारुवा माटे करता दशे, पण 'वंद नमसइ' तो करता दीसता नथी. जो तमारा सरखी श्रद्धा भगवंते शीखवी होत तो तमारा श्रावक करे छे तेमज ते पण करत. वली प्राधनी कुयुक्ति देखामी, पण उत्पला श्रावीकाए पोकलीजीने वांया, तथा पोषकलीजी श्रावके पदेलां शंखजी श्रावकने पोसामां बांधा, एमणे कयो अप्राध कयों दतो के जेथी वांधा ? वली सुबुद्धि प्रधाने जितशत्रु राजाने धर्ममां समजाव्यो, ते माटे तेनो धर्माचार्य थयो, तेथी तेणे वंदा नमस्कार कर्या, एम तमे कहो बो; पण प्रकारना श्राचार्य कह्या बे. तेमां ए सुबुद्धि प्रधान, जितशत्रु राजानो कयो श्राचार्य कद्देवाय ते कहो. तेवारे तेरापंथी कडे बे के " एटले गमे 'वंदइ नमसई' एटलोज पाठ छे; पण तिखुतानो बधो पाठ नथी. " तेनो उत्तर दे देवानुमीय ! भगवतीजीना त्रीजा शतकना पहेला उद्देशामां, तामल। तापसे रातनी Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९२) +सिदान्तसार.. चिंतवणामां चिंतव्यु के, ए मारुं कुटुंब मुझने “वंद नमसई समाणे कलाणं मंगलं देवोयं चेश्यं पजवासन्ति.” इहां तामलीए “देवीयं चेश्यं” कह्यु, त्यारे तेथी श्रावक शुं ? हीणा ले. वली सूत्र जगवतीमा सातमा देवलोकना देवता जगवंत श्री माहावीर देव कने आव्या, त्यां "वंद नमंस" एटलोज पाठ कह्यो . एम घणे ठेकाणे सूत्रमा न. गवंतने तथा साधुने “ वंदर नमंस" ज कह्या . त्यारे शुं ? जगवंतने तथा साधुने “ वंदर नमस" शब्दयी वांद्या न कहेवाय ? हे देवानु. प्रीय ! वंदणा नमस्कारमा पंच अंग नमाव्यां, त्यां बधो तिखुत्तानो पाठ श्रावी गयो. पुरा तिखुत्ता, शुं कारण ले ? ए वंदणा नमस्कार श्रावके कर्या तेमां शुं थयुं ? तेवारे तेरापंथी कहे डे के “ए तो संसारना हेते कीधा हशे, पण धर्म जाणीने कीधा तो नथी चाट्यु.” तेनो उत्तर. हे देवानुपीय ! सं. सारमां तो रामराम, जुहार, मुजरे., पगे लागवू करवानी रीत . ते तो कर्या वीना संसारमा बेग तेने चाले नही, पण पाप जाणे तो ए “वंदर नमंस” नी नवी रीत, धर्म पामीने पापनी केम चलावी ? वली हासमां पण संसारना हेते “वंदर नमस” तो कोई करता देखाता नयो. तेम पागल पण संसारना हेते रामराम जुहार आदि करता हशे, पण ए “वंद नमंस” तो धर्म पाम्या पनी विनयरुप लान जापीने करता दीसे ले. वली रुबरुमां तो संसारना देते, मुखायजाथी तथा लोक सा. जथी रामराम, जुहार, मजरो अने पगेलागणुं करे ,अने वेषना धणीने रामराम, नमोनारायण, जेश्रीनाथजीनी, जय श्री गोपालजीनी, इत्यादिक करे रे; पण एकलो घरमा एकान्त जग्याए बेसीने सामायक पोसा करे त्यां वंदणा नमस्कार केने करे ने कहो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के " अरिहंतने, सिझने अने साधुजीने धर्म जाणे तेने करे; श्रने जेने वंदणा कीधां पाप थाय तेने न करे यने सामायक पोसा एकान्ते करे त्यां कोई रुबरु न होय तेने पूर्वोक्त रामः Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिदान्तसार.. ( ३९३) रामादि करे तो तेने अणसमज मिथ्यात्वो कहीये.” तेनो उत्तर. - हे देवानुप्रोय! अंममजी संन्यासी (श्रमणोपासक)ना सातसो शिष्य श्रमणोपासक, तेमने वहेतुं पाणी श्राज्ञा लइने पोवानो अनिग्रह हतो. तेमणे जेठ महीने कंपीलपुरथी पुरमताल तरफ विहार कीधो त्यारे तेमने मार्गमां तृषा लागी, पण पाणीनी आज्ञा देवावालो कोइ दातार मल्यो नही, तेथी तेमणे गंगा नदीने कांवे संथारा उपर बेसी पूर्वजणी मोढुं करीने त्रण नमोथ्थुणं कह्यां डे. ते उववार सूत्रनो पाठःतिदंडिएय जाव एगते एमति ३ त्ता गंगामदाणइनग्गा दित्ति गंगामदाणइनग्गाहित्ता वालुया-संथारए संथरंति -त्ता वालुयासंथार उरुति श् त्ता पुरबानि-मुदा संपलियंका निसणा. करयल जाव कटु एवंवयासी नमोबुणं अरिहंताणं जाव संपत्ताणं णमोबुणं समणस्स जगवळ महावीरस्स जाव संपाविजे कामस्स नमोवणं अममस्सप रिवायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स ॥ अर्थः-ति त्रण दामो प्रमुख जाए यावत् चौद नपगर्ण ए० एकान्त ए० मे, बांगोने गंग नेखमथी हेग उतरी गंगा नदोनो वेलुमा ३० भावे गं गंगा नदोनी वेबुमां श्रावीने वा वेतुना संथारा सं० संथरे, संथारीने वा वेदुना संथारा उपर दु0 बेसे, बेसाने पुण् पूर्व दिशा सामु मुख राखी सं० पलांग वाली नि0 बेगा. क० बे हाथ जोमोने माथे चमावी जाण् यावत् ए एम कहे-ना नमस्कार था श्र० समचय अरिहंतने जा यावत् सं० मुक्तिए पोहोच्या अरिहंतने, सिद्धने, एम तीर्थकरने थने सिद्ध जाने नमस्कार करीने, पडे वल) ण कमस्कार होजो स० श्रमण नगवंत श्री माहावीरने नाम लश्ने जा० यावत् सं० मुक्ति पामवाना कामोने, एक्ली नमस्कार होजो अ० अम्मम परिवाजकने प्रावमाराध धर्माचार्यने धधर्म उपदेशना देणहारा अंममगुरुने. Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९४) सिदान्तसार.. जावार्थः-हवे जुलं ! पा पाउमा संथारो करती वेला बे हाथ जोमी अंजली करी मस्तक नमावीने एक नमोथ्थुणं तो पहेला सिद्धजीने कर्यु, बीजुं नमोथुणं नगवंतश्री माहावीर देवने कयुं, अने त्रीजी वार नमोथुणं नमस्कार अंममजो संन्यासीने (श्रमणोपासक श्रावकने) पोताना धर्माचार्य धर्म उपदेशना देणहारा जाणीने कयु. ए जुन ! वनमां एकान्त जगाए संथारो करती वेला अरिहंत, सिद्धनी जोमे श्रमजी श्रावकने पण नमस्कार कयों, अने ते सातसो, पांचमे देवलोके गया अने एकावतारी आराधीक थया. वली थंममजी श्रावक रुबरु होय तो मुलायजाथी कर्या कडेवाय; पण अंममजी रुबर दाजर नहोता.ए पर पुठे संथारो करतां धर्म न जाणे, तो एअनर्थ पापर्नु काम केम करे अने समकित केम रहे ? माह्या हो ते विचारी जोजो. वलो श्रावकना विनयने धर्मनुं मूल कयुं . शाख सूत्र ज्ञाताजी अध्ययन पांचमे. ते पाठ:तेणंकालेणं ते[समयेणं थावच्चापुत्तस्स समोसरणं परिसानिग्गया सुईसणोवि निग्गए. थावच्चापुत्तं वंदर नमंस वंदित्ता नमंसित्ता एवंवयासी तुब्नेणं किं मुखए धम्मे पंसते. ततेणं थावच्चापुत्ते सुदंसणेणं एवं वुत्तेसमाणे तं सुदंसणं एवंवयासी सुदंसणा! विणयमुवेधम्मे परमते सेविय विणए दुविहे पामते तं० आगारविणएय अणगारविणएय. तबणं जेसे अणगारविणए सेणं पंचअणुवयाई सत्तसिस्कावयाइं एकारस जवासग्गपमिमान. तबणं जेसे अणगारविणए सेणं पंचमहत्वयाइं तंजदा सवाउँपा. णाश्वायानविरमणं सवान्मुसावायानविरमणं सवाअदिनादाणाविरमणं सबानमेहुणाविरमणं सवाउपरिग्गहाविरमणं सवाउराश्नोयणाविरमणं जाव मिबादंसएसल्लाविरमणं दसविदे पच्चकाणे बारस निरूपमिमा Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. (३९५) श्च्चेएणं दुविदेणं विणयमुलेणं धम्मेणं अणुपुत्रेणं अहकम्मपगमी खवेत्ता लोगा पश्गणा नवंति ॥ अर्थः-ते काले ते० समये था थावरचापुत्र स० त्यां सोगं. धिका नगरीए श्रावी नतर्या (समोसा). प० प्रखदा वांदवा नीसरी.सुप सुदर्शन पण नि0 वांदवा निकट्यो. ते था० थावरचापुत्रने वं० वांदे न० नमस्कार करे वं० वांदीने, नमस्कार करीने ए० एम कहे तु तमारा किंग धर्मनो मूल शुं प० कह्यो ? तातेवारे था० थावरचापुत्र सु सुदर्शनना ए० वु एम कह्याथो तं ते सु सुदर्शनने एण्व० एम कहे सु हे सुदर्शन ! श्रमारे वि० विनयमूलधर्म प० करो. से ते पण वि० विनय मूल धर्म दुबे प्रकारे पंछ कह्यो तं ते कहे . श्रा० ग्रहस्थ विनय धर्म श्रने अण् अणगार ( यतिनो) विनय धर्म. तक तीहां जे० जेते अ० ग्रहस्थ विनय धर्म से ते पंण् पांच अणुव्रत सासि सात शिक्षावत ए अग्यार उ० श्रावकनी पमिमा. ए ग्रहस्थनो विनय धर्म. त तीहां जे जे अ० (अणगार) साधुनो विनय धर्म से ते पं०म० पांच महाव्रत कह्यां तं ते कहे . सपा सर्वथा प्राणातिपात जीव मारवाथी निवर्तवु ते, सण्मु सर्वथा जुलु बोलवाथी निवर्तवं ते, सण्श्रण सर्वथा श्रदत्तादान लेवाथी (चोरी करवाथी) निवर्तवं ते, सम्मेण सर्वथा मैथुनथा निवर्तवं ते, स०प० सर्वथा परिग्रहथी निवर्त ते, सराण सर्वथा रात्रीभोजनथी निवर्तवं ते जाण् यावत् मि क्रोध, मान, माया, लोन, रागद्वेष इत्यादिक मिथ्यात्व दर्शन शक्ष्य अढारपाप स्थानकथी निवर्तवं ते, द० दस प्रकारे प० पचखाण बा० बार प्रकारे नि यतिनी पमिमानो विनय धर्म ३० इत्यादिक. F० बे प्रकारे वि० विनय मूल ध० धर्म अ० अनुक्रमे अण्कप० ज्ञानावरणी आदिक आठ कर्मनी प्रऋतिने खण् खपावीने लोग लोकाग्र प० मोक्षमधे प्रतिष्टान न थाय. नावार्थ:-हवे जुउँ ! आ पाउमा एम कडं डे के, थावरचापुत्रे सुदर्शन शेवने धर्मनुं मूल विनय कह्यो. ते विनयना बे नेद कया. आ. , Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९६) + सिद्धान्तसार गार विनय अने श्रागार विनय. आगार विनय ते श्रावकनो विनय करखो, अने अणगार विनय ते साधुनो विनय करवो. ए जु ! साप श्रावक बनेनो विनय ते धर्मनुं मूल एम कडं. तेवारे तेरापंथ। कहे डे के "श्रावकनां पाच अणुव्रत, त्रण गुण,व्रत अने चार शिक्षावत, सा. मायक, पमिकमj, बोल, चाल, श्रादि शीखवामे तेने विनय कहीये." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! श्रावकने तो तीर्थंकर, प्राचार्य, नपाध्याय अने साधुजी ज्ञान शीखबामे बे. ते तमारी केहेणीने लेखे तो तीर्थकर, केवली, श्राचार्यादिक सर्वने श्रावकनो विनय करवावाला वनित कहीये. हे देवानुप्रीय ! शीखवे तेने विनय कहीए एम केम कहोडो ? विनय तो लघुपद जे. आव्यां नठी उन्नो थाय, सामो जाय, जाताने पहोंचामे, आसन बोगावी आपे, हाथ जोमे, शीष नमावे श्रादि दश विनयना १३४ नेद कह्या ले. तेनी शाख सूत्र उववार तथा जगवती शतक २५ में. ते आगलाथी नमता नावमां रहे तेने विनय कहीए, अने शीखवामे तेने तो ज्ञानना दातार, गुरु अथवा धर्माचार्य कहीये. इत्यादिक अनेक सूत्र पाठमां श्रावकनो विनय तथा वंदणा नमस्कार करवो कडं ले. वली श्रावकने वंदणा-नमस्कार कर्यामां पाप कहे तेने पुब्बु के, श्रावकने वंदणा, नमस्कार, विनय करे ते उदयन्नावमां के क्षयोपशम नावमां ते कहो. वली श्रावक साधर्मि उपर हेत, प्यार तथा संप राखे ते उदयनावमां के कयोपशमनावमां ते कहो. वली सनत्कुमार इंजनी पेरे चार तार्थना हियाए सुहाए खमाए निसेसाए' प्रवर्ते. ए गुण उदय जावमां के क्षयोपशम नावमां ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे के, हियाए सुहाए केने कहीये. तेनो उत्तर. सूत्र जगवतीजोना पंदरमा शतके, चार राफमाना अष्टांन्ते. तेमां चोथो पुरुष राफमो नेदे तेने पुरुषनो हियाए मुहाए थको एवो बुद्धए वो बे, ते दियाए सुहाए' हां पण जाणजो. हां पण नक्तिनाव करे, एवो अर्थ श्राशे; पण लाकमोना प्रहार कर्याथ। कांश हियाएसुहाए Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार. नहीं थाय. ए विनय-बंदणा, नमस्कार करवाना प्रणाम उदय नावमा के कयोपशम नावमां ? जो उदयनावमां कहेशो तो कया कर्मनो उदय ने ? अने ए प्रणामे अशुन कर्म बंधाय तो कयु कर्म बंधाय ? ए कया कर्म बांधवाना कारणमां नले ते निर्णय कहो. वलो चतुर्विध शंघनी वैयावच करवी तो सूत्रमा घणे गमे कही ले. तमे आटला सूत्रना पाठ उत्थापीने पमिमाधारी प्रमुख विरक्त श्रावकना विनय, वैयावच, वंदणा, नमस्कार, कर्यामां मतना लीधे पाप केम बतावो बो ? वली तेरापंथो कहे जे के, " साधु वसे ते जग्यामां ते गमे रात्रे, अमधि रात के बधी रात ग्रहस्थने के श्रावकने राखवो न कल्पे, अने राखे तो चोमासीप्रायश्चित आवे, एम सूत्र नषितना आठमा उद्देशामां कडं .” ए तेमनुं (तेरापंथीनुं) कहेवं सूत्रार्थना अजाणपणानुं बे, कारण के नषितनी चूर्णिकामां ए अर्थ एम को ले के, जे स्त्री तथा परिग्रह सहित कलेश करी तथा राज अप्राधी चोर इत्यादिक अपराध करी आव्यो ने तथा सारंजो, सपरिग्रही , तेनी ना कही . वली नषितमां तो एम कयुं के, राखे, रखावे अने राखताने नलो जाणे तो चोमास प्रायश्चित आवे. एनो परमार्थ ए के, पोताना स्वार्थे प्र. हस्थीने कहे " तुं मारी कने रहे.” एम कहीने राखे तो, तथा अनेरा साध तथा ग्रहस्थ श्रावकने कहे के, “तमे मारा पासे ग्रहस्थीने राखो" एम कहीने रखावे तो, तथा को साधु श्रावक, ग्रहस्थने रातना पोताना स्वार्थने अर्थे राखे, त्यारे एम जाणे के “ ए रुकुं काम करे , मारे वास्ते प्रहस्थीने राखे बे;" एवी रीते राखे, रखावे अने राखताने जलो जाणे तो प्रायश्चित श्रावे कडं डे; पण एम नथी कह्यु के, साधु सेहेज स्वजावे ग्रहस्थना सो रहे तो चोमासी प्रायश्चित आवे. ए तो साधु पोताना मतलब काजे राखे, रखावे अने राखताने नलो जाणे तो चोमासी प्रायश्चित कयुं बे; पण सेहेजे धर्मध्यान, सामायक, पोसा, संवर प्रमुख करे तथा रात्रे साधु नोनो मेवा नकि को तेने निरयो नयी. तेनो शाख सूत्र बहतकरूप उद्देशे पहेले. ते पाठः Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. नोकप्पइ निग्गंथीणं सागारिए अणिसाए वजए.२२ कप्पा निग्गंधीणं सागारि णिसाए वजए. ३३ कप्पशनिगंथाणं सागारिय णिसायवा अणिसाएवा वचए. २४ नोकप्पक्ष निग्गंथाणंवा सागारिय अवस्सए वजए. २५ कप्पश् निग्गंथाणंवा अप्प-सागारिय उवस्सए वबए.२६ नोकप्पक्ष निग्गंथाणं शनिसागारिय अवस्सए वजए.२७ कप्पक्ष निग्गंथाणं पुरिससागारिय उवस्सए बडए. २० नोकप्पक्ष निग्गंथिणं पुरिससागारिय अवस्सए वढए.ए कप्पक्ष निग्गंथीणं शनिसागारिय उवस्सए वजए॥३०॥ अर्थः-नो न कल्पे नि साधवीने साप्रतितकार्य ग्रहस्थनी अ० नेत्राय विना व० रहे. क कहपे नि साधवीने सा० प्रतितकार्या ग्रहस्थनो पिण्नेश्राये व रहेQ. का कल्पे नि० साधुने साम्प्रतितकार्या ग्रहस्थनी णि नेत्राये श्र० श्रनेत्राये पण व रहे. नो न करपे नि० साधुने तथा साधवीने सा ग्रहस्थनां धन श्रान होय तेवा न स्थानकने विषे व० रहे. ज्ञान न थाय तथा शंका पण आबे जे, एणे लीधुं हशे, माटे एवा स्थानकने विषे न रहे. कण कल्पे नि साध साधवीने अ० धन आनर्ण रहित उ० स्थानके व रहे. नो न कल्पे नि साधुने इ० सागा रिकनी स्त्री रहेती होय ते जण स्थानकने विषे व रहे. क कक्ष्पे नि साधुने पुण् सागारीक पुरुष रहेतो होय (पुरुषपणे साधुने पण घर आंगण ले ते मध्ये पुरुषने वस्तु लेतां मुकतां, आव्यानो प्रजोग पमतो होय तेवो पुरुष त्यां रहे ) एवा न० स्थानकने विषे व रहे. नो न कल्पे साधवीने पु० पुरुष रहेतो होय ते उ० स्थानकने विषे व रहे. कण कल्पे नि साधवीने इ० स्त्री रहेती होय ते उप नपाश्रयने विरे व रहे. शावार्थ:-इहां एम कडं केस्त्री सहित स्थानक साधवीने कदंप, .. Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( १९९ ) पुरुष सहित स्थानक साधुजीने कल्पे. ए सूत्र पाठमां प्रहस्थने जेतुं रहे कयुं. तेवारे तेरापंथी खोटी युक्ति मेलवे बे के " ए नेश्राय कही ते स्त्री तथा पुरुष राज करता होय तेनी नेश्राये रहेवुं. " एम अर्थ करे बे, पण ते खोटो बे; कारण के पांच नेश्रायमां राजानी नेश्राय कही d. राजानी नेश्राये तो साधवी वर्ते ढे ते केम मले ? छाने ज्यां स्त्री राज करती होय ते गमे खीनी नेश्राये साधु वर्ते बे ए केम मले? हे देवानुप्रीय! इहां तो 'नवसए व ए' उपाश्रयमां जेला रहेतुं ते माटे पाठ को बे. वली तेरापंथी कड़े बेके, “साधुने पुरुषनी नेश्रायनी जग्या होय ने पुरुषनी आज्ञा होय त्यां रदेवं; छाने साधवीने खोनी नेश्रायनी प्राज्ञानी जग्यामां रहेतुं. " तेनो उत्तर. हे देवानुमीय ! सूत्र जगवती शतक बारमें उद्देशे बीजे कधुं छे के, वीर प्रजुना साध - साधवीने, जयंती भावीका प्रथम स्थानकनो दातार बे त्यां 'अरिहंताण पुव सिकाय रिए एवोपाठ डे. ते पावनी नेश्राये तो सुख कल्पे; अने व्यवहारजीनो ए पाठ तो एक नृपाश्रयमां जेला रहेवा श्राश्रीज बे. वली वीरप्रजुना निर्वाण काल समयने विषे, अढार देशना राजाए प्रजुनी पासे पोसा कर्या ते केम कल्प्या ? तेवारे तेरापंथी कढे ने के, ए तो तीर्थंकर बे, वास्ते एमने कल्पे . त्यारे तेरापंथीने वलो कहोए के, ए तो प्रभु बे तेथे तेमने दोष न लागे; पण साधु प्रजुनी पासे बे तेमने चोमासी प्रायश्चित आवे, ते काम प्रभु केम करें ? तेवारे तेरापंथी कहे बे के, " अढार देशना राजाने केम खबर पकी के प्रजुनो निर्वाण समय बे, तेथी प्रभु पासे खावीने पोसा कीधा ?” एम पुढे. तेनो उत्तर दे देवानुप्रीय ! सूत्र जगवतोना पंदरमा शतकर्मा, जगवंते गोशालाने कथं के, हुं सोल वर्ष सुधी गंधस्तिनी पेरे विचरीश, तथा सिंहा अणगारने सामा पंदर वर्षनो निश्चय बताव्यो. तेथी साध साधवी, श्रावक श्रावोका, देवता देवी, नरनारी, सर्व ए कारण जाणे बे. तेथी अढार देशना राजाए प्रभु पासे यावीने पोषा कर्या बे. वली प्रजुए बेली देशना सोल पोहोर लगी दीधी, ने Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४०० ) 4 सिद्धान्तसार. दुःख विपाकनां अध्ययन ५५ सुख विपाकनां ५५ तथा उत्तराध्ययननां बीस रुपयां, ते लोकनी प्रखदा आगल परुप्यां के पोताना मनमेले परुप्यां? बार प्रखदा हती के नही ? वली प्रभु बद्मस्तपणे बीजे चोमासे राजग्रही नगरीना नालंदा पामामां तंतुवाइनी शालामां रह्या. ते शालाने एक देश जागे गोशालो थावीने उतर्यो. ए लेखे साधुकने ग्रहस्थ रात्रे रहे तो सुखे कल्पे. अनेक सूत्र पाठना न्याय जोतां साधु प्रहस्थना जेलो रहे तो रहेवानो नाकारो नथी; अनेनतिमां तो स रंजी, सपरीग्रही तथा अपराधी श्राश्री निषेधुंद से बे; अने पोताना स्वार्थ देते राखे ते श्राश्री ना कही बे; पण श्रावक सामायक, पोसा, संवर, धर्मध्यान करताने तो वर्जवो तो कोइ पण सूत्रमां कधुं नथी. वल तेरापंथी, लोकोने बेदेकाववाने कार्थे, प्रस्थाना नेला रहे निषेधे बे; पण पोते तो ग्रहस्थांना जेला रहे बे. मांहेलो दुकानमां तो पोते सुवे ने बारली दुकानमां श्रावकोने पोषा संवर करावे बे. एक खरुकीनी जग्यामां एक शालामां तो पोते सुवे बे, छाने एक शालामां भावकोने पोसा, सामायक तथा संवर करोने सुवामे बे; छाने पुढे त्यारे कड़े बे के क्षेत्र जुडुंबे. हे देवानुप्रोय ! ए तमार केहेणीने लेखे तो एक शालामां स्त्र। रहे, अने एक शालामां साधुने रहेवुं कल्ये. एक खमां एक शालामा पुरुष रहे, अने एक शालामां आरजाने रहेतुं कल्पे, ए प त्र दुबे. वल। एक शालामां आरजा सुवे, छाने एक शालामां साधु सुवे, एम पण तमे सुवता दशो; कारण के तमारी कपीने लेखेतो ए पण क्षेत्र जुदुं बे. तेवारे तेरापंथी कड़े ठे के “ स्त्री रहेती होय ते जग्यामां तो साधुने सर्वथा रहेवुं न कल्पे. " त्यारे हे देवानुप्रोय ! एक शालामां साधु सुवे ने एक शालामां श्रावक सुवे तेने मतना लीधे क्षेत्र जुदुं कही एवी जुठी स्थापना केम करोडो ? वली नपितमां ग्रहस्थने नेला राखवामां प्रायश्चित कयुं, तेमज ग्रहस्थने विहारमां साथे राखे, रखावे अने राखताने जल जाये तेनुं पण प्रायश्चित कवधुं बे; धने गोचरीमां Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार (१.१) महस्थीने साथे राखे, रखावे अने राखताने ललो जाणे तेने पण प्रायश्चित कयुं . तमारा साध साघवी, ग्रहस्थी पोचामवाने आवे तेनी साथे विहार केम करे ले ? श्रादमोने साथे लश्ने केम फरे ले ? वली प्रहस्थीने आहारादिक तथा पातरांना रोगान प्रमुखनी दलालोने वास्ते तथा घर बताववाने वास्ते गोचरोमां साथे केम राखे ले ? ए चोमासी प्रायश्चितनां काम केम करे ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के, “ श्रावक निर्जरा वास्ते पोताना मनथी साथे पहोंचामवाने श्रावे , श्रादमो मोकले डे, पोतानी हाथी थाहारादिकनी दलाली वास्ते तथा घर बताववा वास्ते श्रावे , तेथो तेनुं प्रायश्चित आवे नहीं. ए तो ज्यारे साधु पोताना स्वार्थे पोते श्रामना जणावीने साथे ले तेनुं प्रायश्चित कj .” तेवारे तेमने कहे, के, जेम ए थामना जणावीने साथे ले तेनुं प्रायश्चित कछु , तेम प्रहस्थने नेतुं रहेवानुं पण आमना जणावीने पोताना स्थार्थे कहीने राखे, रखावे तथा राखताने नलो जाणे तेनुंज पायश्चित कयुं . तमे मतना सीधे खोटा अर्थ केम करोडो ? वक्षी तेरापंथी कहे जे के, “ साधु पोताना हाथे बारणानां कमाम नघामे तथा वासे तेनां पांच माहावत जागे.” एवां जुगं श्राख दे , पण सिकान्तमां तो साधुने पोताने हाथे कमाम वासवं उघाम, कस्पे कछु बे. शाख सूत्र आचारांग श्रुतष्कंध बीजे पिंमेखणा अध्ययन पहेले उद्देशे पाचमे. ते पाठःसे निस्कूवा २ गादावश्कुलस्स दुवारवाहि कंटकवोदियाए पमिफेदिय पहाए तेसिं पुवामेव जग्गई अणुणवित्तं अपमिलेदिय अप्पमजीय नोअवंगुणियवा पविसेजवा निकमेजवा तेसिं पुवामेव जग्गहं अणुणविय पनि हिय २ प. मङिय २ ततो संजयामेव अवंगुणेजवा पविसेजावा (ण Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०१) + सिद्धान्तसार अर्थः-से ते नि साध साधवी गा ग्रहस्थीना घरना उ० छारना नाग (बारणां ) कं० कंटक शिखाए करी प० ढांक्युं पे० देखीने जर त्यां रहेवाने जे ग्रहस्थ- घर होय, तेनो पुरा पहेलां उम् अवग्रह श्राज्ञा श्रणु श्रणजाएया विना एटले के, तेन कने अणुज्ञा माग्या विना अप० वण पमिलेह्यां अप्प० वण प्रमाज्या नोग्य ते बा. रणु उघामे नही. पण ते घरने विषे प्रवेश करे नही. नि ते घरथी निकले नहीं. ते ते ग्रहस्थनो पुरा पहेला 30 अवग्रह अणु तेनोकने अनुज्ञा मागीने प० पमिलेहो पमिलेहीने प० प्रमार्जी प्रमार्जीने त तेवार पली संग संजति जयणाथी श्र० ते बारj उघामे. प० ते घरने विषे प्रवेश करे. णि ते घरथी निकले. नावार्थः-शहां एम कडं के, साधु विना श्राझाए कंटकबोधीया नाम फलसो उघामे नही, विना पमिलेह्यां तथा विना पुंज्यां पाउँ दे नही, तथा उघामे नही; पण आज्ञा लश्ने पमिलेहो पुंजीने वासे उघामे. ए शाख कही. जेम कांपो चुलीश्रा सहित, तेम कमाम अजयणाए तो सर्व स्थान के हिंसा थाय परं जयणाए खोलवा वासवानी विधि कही. विधि ते आझा. एमां जे पाप परुपे तेने शास्त्र रहश्यना अजाण जाणवा. तेवारे तेरापंथी कहे जे के " जांपो नथी, त्यां तो कंटकबोधीया कह्या ले ते कांटानो ढेरो बे. जो जांपो होय तो, “ फलोह ” एवो शब्द कहेवो जोइए.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! कांटाने शुं पुंजीए? हां तो जीवघातनुं स्थान यंत्रन ले. ते यंत्र (चुलियानी) विधि कहो. वली कांपानुं नाम फली शब्द कहे जे ते मृषा जाणवू; कारणके श्री अनुयोगद्वार सूत्रमा एवी गाथा कही बे. ते गाथाः पुत्ववमस्वामङ्गुया, फलिद नुया दुहि घवियनिघोसा सिरिवबंकियवसा, वंदामिजिण चनविसं ॥ ए गाथामां एम कयुं के, “फलिह जुया" अर्गमा सरखी . Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( ४०३ ) जा. इत्यादिक घणे ठेकाणे फलीह शब्द (अर्गला ) जुंगलनो बे; पण जे फलीद शब्द नामा फलसानुं कहे बे, ते मृषावादी जाणवा. फलीद शब्द खाइनुं बे, पण फलसानुं नथी; अने फलसा शब्दे कंटक बोधिकाज बे. तमे टोका, जाष, चुर्णि अवलोकी लेजो. वली लघुनित, वीनित परवववा तथा अबाधा टालवा वास्ते कमाऊ खोलीने साधु थाना घरनी बाहार नीकले, एवो अधिकार को बे. शाख सूत्र श्राचारांग श्रुतष्कंध बीजे, सेज्या अध्ययनने बीजे उद्देशे. ते पाठःसे खूवा २ उच्चार पासवणेण उच्चादिंऊंमाणे राजवा वियालेवा गाहावइकुलस्स दुवारवाहु अवंगुणेचा तेणोय तस्ससंधिचारी पविसेका तस्स भिख्खूस्स शोकप्पइ एवं वदित्तएवायं तेणे पविसइवा नोपविसेइ नवलियत्तिवा नोवाजवलियत्तिवा प्रायवपत्तिवा गोवावदइ. गोवावदइ तेहमं प्रणेणहमं प्रयंतेणे अयंउवचरए अयं दत्ता प्रयएवं मकासी तंतवस्सी -निख्खू ते-तेणं तिसंकंति यह निख्खु पुत्रोव दिठा एसपइना ४ जंतहप्पगारं नवस्सए नोगांवा ३ चेतेा ॥ : अर्थः- से० ते ० साध साधवी ते ग्रहस्य सहित शंसर्ग वस्तिने विषे उ० वमीनोत, लघुनीत न० अबाधाए पांड्यो को रा०रात्रे - थवा वि० काले गा० ग्रहस्यना दु० घरनुं कमाम श्र० नघाने. ते ते वेलाए चोर त० ते द्वारे बिद्र देख | अणु पेसे. त० ते पेसतो देखो जि० साधुने पो० न कल्पे ए० एवं बोल अ० ए ते० चोर प० पेसे बे श्रथवा नानय। पेसतो न० (लुकी) तुप रहे अथवा नोबु नय। रहे तो. धा० ए उपर थको चोर पमे अथवा पो० नथी पकतो. पो० ए बोले थवा नय बोलतो, तेव्ह० तेथे चोर्यु अथवा श्र०० अनेरे चोर्य, अथवा तेथे युं, अनेरे द. अ० ए चोर उ० उपकर्मनो करणहार Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४०४ ) सिद्धान्तसार. ० ए मारदार हथियार सहित हीसे बे, अ० एणे ए० इहां म० एम कर्यु, इत्यादिक साधु वदे नीिं; कारण के एम कक्षेतां ते चोरनो विचाश नृपजे, अथवा ते चोर एम कहाथी रीशाणो थको ते साधुने विलासे. इत्यादिक दोष उपजे अथवा जो एम न कदेतो ते ग्रहस्थीना मनमां तं ते तपस्वी साधु ० चोर नथी तोपण ति० चोरनी शंका यावे ए कारणे. ० थ वे जि० साधु पु० पूर्वोपदिष्ट तीर्थंकर जाषित ए० ए प्रतिज्ञा बे जं० जे त० तथा प्रकारना (तेवा) उ० उपाश्रये नो० न कायोत्सर्ग, ध्यान, सजायादिक चे० करे. भावार्थ:- दवे जुर्ज ! इहां एम कयुं के, साधु ग्रहस्थीना जेलो रहे तो रात्रे साधुने उच्चार पासवाने वास्ते कमान उघारुवुं पये. ते कमाम उघानतां चोर घरमां ऐसे तेवारे साधुने कहेतुं न घंटे के "तारा घरमां चोर मावे बे." जो एम कहे तो चोर रीसायो थको साधुने मारे अथवा चोरने कोइ मारे, ते माटे न कल्पे एम कयुं; पण एम न कयुं जे "साधुने उच्चार पासवने काजे कमाम उघामतुं वासवु पये ते कमान साधुने वासवुं नघानुं कल्पे नदी ते माटे साधु ग्रहस्थीना जेलो न रहे" एम तो नथी कयुं. इहां तो चोरने वास्ते ना कही बे. जो कमान उघाने नही तो चोर शी ते पेशे ? पण प्रजुए तो कह्युं के, कमान उघामीने साधु बाहार जाय तेथी पठवामेथ। चोर पेसे. जो कमाम खोलवु नुघामनुं न कल्पे तो चोर शी रीते पेशे ? रहेतुं तो सुखेथी कल्पे; पण साge चोरनुं नाम लेवुं नदी, तेथ। साधु त्यां न रहे; पण कमाने तो खोलीने मात्रादिक परठववान प्रजुए श्राज्ञा दीधी बे. कदाच कोइ कमामने अर्थे वय कहे, तो तेनो उत्तर. " से निरकुत्रा निकुणिवा वो पावे. ते साधसाधवी बनेने वर्जवांज जोइए; पण इहां तो धननी जग्या चोरादिकने कारणे वर्जी ढे. ए साधसाधवी बनेनो जेलो पाठ बे. वर्जी तो बनेने वर्जी ने कमान खोलवानी वासवानी आज्ञा दे तो बनेने ठे. वली आइ' भागने कमाम खोलीने ग्रहस्थाना घेरे गोचरी ज कयुं. शाख सूत्र ५सवैकालोक अध्ययन पांचने उद्देरो पहेले. ते गाथा: - 39 Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पमिकुछकुलं नपविसे, मामग्गं परिवजए; अचियत्तं-कुलं नपविसे, चियत्तं पविसे कुलं.॥१७॥ साणिपावारपिहियं, अप्पणा नावपंगुरे; कवा नोपणोखिजा, जग्गहं से अजाश्या. ॥ १७ ॥ अर्थः-प० लोकमां जे निषेध कुल होय अथवा सिझांतमां निषेध कुल २ ते कुले न० (साधु) न पेसे. मा0 जे घरनो धणी एम कहे के, मारे घेरे मां आवशो, ते घर प० साधु वर्जे. जे कुलने विषे साधु पेसवाथी क्रोध उपजे ते कुले न० साधु पेसे नही. चि॥ जे कुले साधुना पेसवाथी प्रीती उपजे ते कुले प० साधु पेसे. सा०त्रापमे करी, वस्त्रादिकना (पेच) पमदाए करी बारj ढांक्युं होय ते त्रापमादिक अ श्रापणपे स्वयमेय पोते ना नघाझे नही. का कमाम दीधुं होय ते नो उघामे नही. तेवारे शुं करे? 30 अवग्रह से ते घरना धणीनो अविना जाच्यां न जाय. कारण उपन्ये बते अवग्रह मांगीने उघामे. नाबार्थः-हवे जुन ! था पाठमां एम कडं के, लोकमां तथा सिद्धांतमा निषेदनिक कुलमां साधु प्रवेश न करे, अने घरनो धणी वरजे तथा जे घरमां गयाथी साधुनी थप्रतित उपजे ते कुलमा साधु न जाय; पण जे घरमां गयाथी प्रीती नपजे ते घरमां साधु जाय. ते प्रवेश करवानी विधि कहे जे. सण, तापहुं, परेच, के कांबलो बांध्यो होय तो साधु नघामीने मांही जाय नही. तेमज कमाम वास्युं होय तो ते घरना धणीनी अवग्रह आशा माग्या विना नघामी घरमां जाय नही; पण प्रयोजन होय तो आज्ञा मागीने शणनुं तापहुं, परेच, कांबलो तया कमाम खोलीने मांदे जाय. ए जुर्ज ! श्री वीतरागदेवे तो कमाम खोलवानी आज्ञा दीधी जे. तेवारे तेरापंथी कहे डे के, " सगर्नु तापहुं, परेच तथा कांबलो तो पोताना हाथे न खोलवो कह्यो, ते तो आज्ञा मागीने खोले; पण कमाम तो नज खोले.” तेनो उत्तर, हे देवानुप्रीय ! जो एम दे तो Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४० ) +सिदान्तसार.. " नगहंसे अजाश्या "नुं त्रीजु पद कहेQ जोइए अने “ कमानो पणो लिजा" ए चो) पद कहे जोशए; पण जगवते तो शणनुं तापपुं, परेच, कांबलो अने कमाम, त्रणे विना आझाए खोलवानी निषेध कीध); अने चोथापदमां त्रणेनी आझा मागीने खोलQ कह्यु. तमे मतना लीधे प्राधा पाग खोटा अर्थ केम करो हो ? तेवारे वली तेरापंथी कहे डे के " एतो उघामे कमाने साधुजी मांहे गया होय अने पाढं आहुं श्रावी गयुं होय तो आज्ञा मागीने कमाम खोलीने पाग बाहार नीकले. ए निकलवा आश्री जे.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! को एकली स्त्री साधुनुं रुप देखीने मोहने वशे पाहुं कमाम वासी दे, तथा को साधुना द्वेषीए आहुँ कमाम दी, होय ते खोलोने बाहार नीकलवानी श्राज्ञा आपे नही. हवे तमारी केहेणीने लेखे आज्ञा विना खोलवानी जगवंतनी आज्ञा नथी. हवे एकली स्त्री थकां बंध कमामथी लाज रहे के आज्ञा विना खोलाने बाहार निकले ते कहो. तेवारे कहे डे के “ एकली स्त्री थकां, ग्रहस्थना घ. रमां वासे कमाने क्षणमात्र रहेतुं न कल्पे.” त्यारे हे देवानुप्रीय ! नी. कलती वखते आज्ञा मागी पाहुं खोलवानो शुं प्रयोजन रह्यो ? त्यां तो आज्ञा दे तोपण कमाम खोलोने नोकल अने न दे तोपण निकलवू; वास्ते एतो घरमा जवाना वखतनोज पाठ . तेवारे तेरापंथी कहे डे के “ जो प्रनुए कमाम खोलवानी आज्ञा दीधी , तो ग्रहस्थीना घेरे गयाथी श्राएं कमाम देखी पाग केम फरोडो ? थाझा लश्ने माहे केम नथी जता ? " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! प्रजुए कह्यो ते पाठ तो प्रमाण . आज्ञा लश्ने खोलोने जावू कल्पे; पण आचार्योए व्यवहार बांध्यो के, ग्रहस्थीने घेरे आक. माम खोलावq नही; केमके ग्रहस्थो शजयणाय खोले, तथा ज्ञा मागे तेवारे नघामे मोहोमे बोले; तथा कोश् आज्ञा देवानां सपथे, कोई न समजे; तथा बाहारथी को ग्रहस्थे आजादीवी, अने साधु खोलोने मांही गया, अने आगल स्त्री श्रादिक बेमरजादा बेगे होय तथा कोश Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार... (१०७) केप पामे इत्यादिक कारणोथी ग्रहस्थीने घरे श्रासुकमाम न खोलाव पण प्रजुए कहुं ते रीते होय तो खोलq कटपे. वल) प्रजुए श्राहार करवो कह्यो , पण अपवास करे तो अवगुण न थाय; तेम ग्रहस्थीने घेरे कमाम न खोलावे तो शुं ? ए पाठ जुगे कहेवाशे ते कहो. सेवारे तेरापंथी कहे ले के, “जेम थाहार करवो कह्यो , पण अपवास करे तो गुण थाय; तेवी रीते श्रमे कमाम वासवू, खोलवू जोमयुं तेमां अवगुण शुं थयो ? " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय ! जगवंते थाहार करवो कह्यो , तेम थपवास पण करवो कह्यो . हवे थाहार बोनीने अपवास करे तो मोटो लान बे; पण अपवास करीने एम कहे के, “जे को साधु थाहार करे तेमां साधुपणुं नही.” एम कहे तेने जुगबोला अनंत संसारी कहीए. तेम तमे कहो बो के, हमे तो कमाम वासवू जमवू बांमयुं , थने बोजा को साधु कमाम नघामे, वासे तेनां पांच माहावत नागे. एवां तीर्थकरनां वचन उत्थापीने जुगं बाल यो बो, तेथी तमने बोड्यानो तो गुण नथी; पण अनंत संसार वधशे अने बोध बीज पण अनंते काले मलवु पुर्खन्न थाशे; केमके तमे तीर्थकर देवना वचनना उत्थापक बो. वली साधुने कमाम उघाम निषेधे तेने पुल के, श्रारजाने क. माम वासवू नघामवं, साधु विना न्यारं क्या कह्यु ले ? केमके माहामत तो साध, साधवीने सरखां बे. तेवारे तेरापंथो कहे जे के, “ वृहत् करूपमा साधुने कमाम न वासवू, अने श्रारजाने तो वास चाल्युं ले." एबुं सूत्रनुं जुटुं नाम ले ले. ते ब्रहत्कल्पना पहेला नद्देशानो पाठःनोकप्पइ निग्गंथिणं अवंगुयदुवारिय अवस्सए वजए. एगं , -पहारं अंतो किच्चा एगंपबार वादिकिच्चा उहाडिय चिलिमिखीयागंसि एवणु कप्पश् वजए. कप्पक्ष निग्गंयाणं अवंगुय उवारिय उवस्सए वजए॥ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . - - (१०८) सिदान्तसार.. - अर्थः-नो नकल्पे नि साधवीने श्र० अनंगद्वारे (नघामे बार• णे) न स्थानकने विषे वा रहे. एक एक कमो (पमदो) आं० माही बांधे ए एक कमो वा बाहार बांधे न० बांधीने रहे चि० चेल वस्त्रनी चिलमणी (परेच) राखे. अवश्य ए एणी विधे का रेहेबुं कल्पे. क कल्पे नि साधुने अ उघामे बारणे न० नपाश्रये व० रहे. नावार्थः-शहां तो एम कर्दा डे के, साधवीने उघामे बारणे रहे, न कस्पे; पण एक पझदो माहे अने एक पमदो बाहार बांधीने रहे कल्पे. एम चौदमा सूत्रमा कयुं ; अने पंदरमा सूत्रमा कडं डे के, साधुने घामे बारणे रेहेबु कल्पे; पण एम नथी कह्यु के, सा. धुने कमाम वासबुं न कहपे. इहांतो एम कडं ने के, उघाउँ स्थानक मले तो शारजाने पडेमी बांधीने रहेदूं कल्पे अने साधुने पडेमो बांध्या विना रहे, कटपे. हवे तमे कहोडो के “धन्नंगद्वारे कल्पे कयुं तेथी वासवून कल्पे.” पण ब्रहत्कल्पना पहेला उद्देशामां एवीरीतना घणा बोल कहा ले के, साधवीने न कल्पे श्रने साधुने कल्पे. ते पाण: नो कप्पक्ष निग्गंथीणं आवणगिदंसिवा रथामुदंसिवा संघामगंसिवा तिकंसिवा चनकंसिवा चचरंसिवा अंतराकपंसिवा वजए. कप्पक्ष निग्गंथाणं आवणगिरंसिवा रथामुहंसिवा संघामगंसिवा तकंसिवा चनकंसिवा अंतरावकसिवा चचरंसिवा वबए. ॥ अर्थः-नो न कल्पे नि साधवीने आण दाट चौटाने विषेरण शेरीना रस्ता मांही संग सीघोमाने श्राकारे बे पंथने विषे ति त्रीकने विषे च० चौपंथने विपेच० घणीवाट एकठी मले त्यां अंबे हाटनी वचाले वा रहे. कण कल्पे नि० साधुने था हाट चौटाने विषे र० शेरोना रस्तामा सं० सीघोमाने श्राकारे बे पंथने विषे तक त्रिकने विषे च० चौथने विषे च० घणी वाट एकठी मले त्यां अंबे हाटनी वधाले व० रहे. Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. नावार्थः-हवे यहां एम कथु डे के, साधवीने चौटा, शेरीने विषे, बे मार्ग मसे त्यां, त्रण मार्ग मले त्यां, बे हाटनी वचाले, इत्या. दिक सात स्थानकने विषे रहेवू न कल्पे; अने इत्यादिक स्थानकने विषे साधुने रहेतुं कल्पे कडं बे. हवे तमारी केहणोने लेखे तो साधुने चौटामांज रहे कल्पे, बाजे ठेकाणे रहे नज कल्पे. वली वृहत् कल्पना बोजा नद्देशामां, पांच बोल साधवाने न कल्पे, अने साधुने कल्पे कडं . ते पाठः नो कप्पक्ष निग्गंथीणं अद आगमण गिहंसिवा वियम्गिहंसिवा वसिमुलंसिवा रुकमुखंसिवा अन्नावगासियं सिया वचए. कप्पशनिग्गंथाणं अदागमण गिदंसिवा वियमगिदंसिवा वंसिमुलंसिवा रुकमुलंसिवा अनावगासियं सिवा वबए. अर्थः-नोन कल्पे नि साधवीने श्रम अथ श्राप पंथी श्रावी उतरता होय ग ते घरने विषे वि० चार दिशाए उघाउँ वं० वासना खपेमाना मुले रुप वृक्षना मुले श्र कांश्क ढाकीने बाकी उघामी लघु जीत ( कोइ मांही उतरी श्रावी ते माटे) ए गमे व रहे. क० करूपे नि साधुने श्र० श्रथ हवे आग पंथी श्राव) उतरता होय गिते घरने विषे वि० चारे दिशाए उघाहुं वं0 वांसना खपेमाना मुले रु० बृहना मुले श्र० काइक ढांकी बाकी उघामी बघु चिंते (कोइ मांहे नतरी आवे ते माटे) एवे गमे व० रहे. जावार्थ:-हवे जुन ! ज्यां पंथ श्रावोने उतरता होय ते घरने विषे, चार दिशे नघाउँ होय त्यां, वांसना खपेमाना मुले, वृक्षना मुले, अने कांइक ढांक्युं काश्क उघार्नु । निंत इत्यादिक स्थानकने विषे साथवीने रहेतुं न कहपे; अने साधुने इत्यादिक स्थानकने विष रहेढुं करूपे. इवे तमारी केहेणीने लेखे तो ज्या या उतरता होय त स्थानके यावत् वृक्षना मुखेज साधुने रहे, कल्पे, बोजी जम्याए म कम्प; अमे Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) + सिद्धान्तसार, तमे तो पूर्वोक्तनी प्रतिपक्षि जग्या लोगवो बो. ए केवी रीते ते कहो. वली साधवीने विकट (पुर्वन्न ) देशने विषे विहार करवो न कटपे, अने साधुजीने कहपे. हवे तमारी केहणीने लेखेतो साधुने सुखन देशमां न रहेQ जोइए. वली एकली साधवीने विहार करवो न कहपे; अने साधुजीने एकला विहार करवो कल्पे. हवे तमारो केहेणीने लेखे साधुए घणा साधुमां रहे न जोइए. तेमज साधवीने अटवीने विषे रहे, न कटपे अने साधुने अटवीने विषे रहे, कल्पे. ए पण तमारी केहेणोने लेखे तो साधुने अटवीमांज रहेदूं जोइए; पण वस्तीमां के गाममां रहेन जोइए. वली पुरुष रहेतो होय ते जग्यामां साधवीने रहेवू न कहपे, अने साधुने ते जग्यामां रहे करपे. ते पण तमारी केहेणीने लेखे तो साधुने सुनी जग्यामां न रहेQ जोश्ए. वली ब्रहत्कल्पना पाचमा उद्देशामां कह्यु बे के, साधुने उघामी दामीनो रजोहरणो कहपे, अने साधवीने न कल्पे. ते पण तमारी केहे. णीने लेखे तो साधुने नघामी दांमीनोज रजोहरणो राखवो जोइए. तमे कहोगे के, साधवीने अनंगछार न कल्पे, अने साधुने कल्पे. ए पाठ वांसे कमाम उथापे तेने अटाव आदिकने विषेज रहे, गामने विषे न रहे, ए बोल पण प्रमाण करवा जोइए. पण हे देवानुप्रीय ! ए पाठ तो एम डे के, जो गाम नगर न होय तो साधुने थटवीमां रहेQ कल्पे; अने जग्या न मले तो, वृक्ष हेठे रहेईं कल्पे; इत्यादिक सर्व पोल कारणे काम पम्याथी साधुने कल्पे कह्या बे; अने आरजाने कारणे काम पड्याथी पण न कल्पे; मोडं वेहेढुं संजादिक पमयां पण वस्तीमाज जश्ने रहे, कल्पे. एम सर्व बोल जाणवा. नपाय करीने रदेवू. पण आरजाने ए बोल काम पड्याथो पण न करबा; अने साधुने काम पड्याथी कटपे कह्या बे. तेमज कमामन होय तो अनंगद्वारे करपे एम कडं जे. जो कमाम वास उघामवं न करूपे तो " नोकप्पर निग्गंथाणं सकवाम नवसए वनए ” एवो पाठ जोए; पण प्रजुए तो कमाम वज्यु नथो; भने जे वरजे डे ते व्रम बुझिथा वर्जे . . Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. - वली साधुने कमाम वासवं उघामवं उत्थापे , तेने पुढोए के, प्रारजाने पण बहतकरूपमां कमाम देवू तो कडं नथी. त्यां तो बे प्रेच बांधीने रेहेबु कयुं बे. तेवारे तेरापंथी कहे डे के, “ साधवीने शी. लनी रक्षा माटे, कमाम न होय तो प्रेच बांधीने रहेQ कह्यु बे, पण कमाम उघामवा वासवानो ना नथी कह्यो.” त्यारे हे देवानुप्रीय ! शीयल तो साध साधवी बनेने सरखंज . साधुने पण शीयलनी जतना माटे नव वाम कही जे. पहेली वाममां स्त्री, पसु अने पंग रहित स्थानक सेवq कयु, त्रीजी वाममां एक आसन वजयुं श्रने पांचमीमां निंत-प्रेचने आंतरे रहेतुं वज्यु. हवे जुर्म ! कमाम विना, मदनी की स्त्री तथा कुतरी प्रमुख नेली श्रावीने सुवे तो वाम शीरीते रहे ? माह्या होते वीचारी जोजो. वली तेरापंथी कहे जे के " श्रारजाने कमाम वालवू कडं जे." तेने कहोये के, प्रजुनी आझा तो प्रेच बांधोने रहे तोपण पलाय . हवे तमारी केहेणीने लेखे कमाम वासवाथी पेहेतुं माहाबत नागे, त्यारे पेहेळु माहात नांगीने चोथु राखq एमां शी अधिकाइ ? माहाव्रत तो पहेढुं अने चोधुं सरखांज . वास्ते पहेळु माहानत नांगोने चोधुं माहावत राखq एवी श्राज्ञा प्रक्षु कदो आपेज नही. वली शोयल जागवाने को अनार्य तो कोई कर्मना जोगे को वखतेज आवे, अने परवशपणे शीयल जागे एवं काम तो कवचितज पमे; पण कमाम वा. सीने जाणी जाणीने रोज रोज पहेलु माहाबत जागे तेनो परलोक शीरीते सुधरशे ? तमारी केहेण ए जे के, प्रजुनी आज्ञाथ काम करतां जीव मरे तोपण बत नागे नही. वली “चोथु माहाबत मारे राखवू, जीवनी हिंशा थती होय तो नले थाय” एवी रोतनी श्रद्धा होय तो ए अष्टान्ते श्रारजा अटवीमा गर, तेवारे कोश् अनार्ये श्रावीने एक साधवीनो हाथ पकड्यो. तेवारे बाकीनी साधवीनए मलीने शोयल रा. खवाने वास्ते ते पुरुषने टुंपो दर मार्यो. ते तमारी श्रछाने लेखे, नित्यनुं शीयल राखवाने कारणे कमामथी हिंसा तो करती थने कोमो कंथवा Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) + सिद्धान्तसार मारती, भने आज शीयल राखवाने वास्ते एक पुरुषनी घात करी. तमारी केहेणीने लेखे ए आरजाने किंचीतमात्र प्रायश्चित आवq न जोश्ए. तेवारे तेरापंथी, जवाब देवानी शक्ति नहिं तेथी क्रोध करे; पण मुरख एम न समजे के, प्रजुए तो कमाम खोलवा वासवानी साध साधवी बनने थाज्ञा श्राप जे. जो कमाम न होय तो श्रारजाने प्रेच बांधीने रहे, अने साधुने उघामामा रहेवं कल्पे; पण प्रजुए एम नथी कडं के, साधवीए तो हीसा करवी अने साधुए न करवी. साधसाधवी धनेने जयणाथी काम करतां किंचीत मात्र प्रायश्चित नथी. हवे अनुनां वचन उत्थापीने पोतानी श्रद्धा स्थापवाने कारणे कमाम नुत्यापे ने ते अनंत संसार वधारे . वली जे जग्यामां धान्य तथा सुखमी प्रमुख पड्यां होय तथा मदीरा प्रमुग्वना घमा उघामा होय ते जग्यामां साधुने उतरतुं कह्यु. शाख सूत्र वृहत्कल्प उद्देशे बीजे. ते पाठः नवस्सयस्स अंतोवगमाए सालाणिवा विदिणिवा मुग्गा(णवा मासाणिवा तिल्लाणिवा कुलत्थाणिवा गोधूमाणिवा जवाणिवा उरिकत्ताणिवा विकित्ताणिवा विकिन्नाणिवा विप्पकीनांणिवा नोकप्पइ निग्गंयाणंवा २ आदालंदमवि वहए ॥ अदपुण एवंजाणेजा नोनस्कित्ताई ४ रासिकमाणिवा पुंजकमाणिवा नित्तिकमाणिवा कुलियकडाणिवा लंबियाणिवा मुदियाणिवा पिहीयाणिवा कप्पर निग्गंथाणंवा २ हेमंत गिम्हासु वचए ॥ अदपुण एवंजाणेजा नोरासिकमाइं नोजकमाई नोन्नित्तिकमाईनोकुलियकमाई कोहाउत्ताजवा पलाउत्ता.णका मंबाउत्ताणिवा मालाजुत्ता(णवा नलिनाणिवा विलिताणिवा लंबियाणिवा मुहियाणिवा पिहायाणिवा कप्पा निग्गंयाणंवा २ वासावासं वडर ॥ जपत्तरस्त अंगनार सुराधियम कुंने वा Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार. सोविरवियडकुंनेवा अवणिकितेसिया नोकप्पइ निग्गंयाणंवा अदालंदमवि वचए; हुरत्याए नवस्सयं पमिलेहमाणे नोलनेजा एवंसेकप्पर एगरायंवा दुरावा वजए. नो से कप्पक्ष परं एगरायंवा दुरावा वचए; जेतब एगयाउवा दुरायाउवा परंवसेजा सेसंतरा बेएवा परिहारेवा ॥शा वस्सयस्स अंतोवगमा सीनदग वियमकुंनेवा - सिणोदग्ग वियमकुंनेवा जवनिस्कित्तेसिया नोकप्पक्ष निगंयाणंवा २ आहालंदमवि वजए; दुरबाय उवस्सयं पमिलेहमाणे नोलनेजा एवंसे कप्पइ एगरायंवा दुरायंवा वहए; नो से कप्पश् परं एगरायंवा दुरायंवा वनए. जेतन एगरायाउवा दुरायानवा परंवसेजा सेसंत्तरानेएवा परिदारेवा ॥३॥ अवस्सयस्स अंतोवगमाए सबराइए जोइज्जी. याएवा नोकप्पक्ष निग्गंथाणंवा २ अदालंदमवि वलए: हुरबाय उवस्सयं पडिलेहमाणे नोलनेज्जा एवंसेकप्पड़ एगरायंवा दुरायंवा वजए. नोसेकप्पश् परं एगरायाउवा दुरायाउवा वबए. जेतब एगरायाउवा दुरायाउवा परंवेगा सेसंताएवा परिदारेवा ॥४॥ नवस्सयस्स अंतोवगमाए सबराइए पश्वे पदीवेजा नोकप्पक्ष निग्गंथाणंवा २ आहालंदमवि वजए; दुरबाय नवस्सय पमिलेहमाणे नोलनेज्जा एवंसेकप्पक्ष एगरायंवा उरायंवा वगए. नोसेकप्प परं एगरामानवा दुरायाज या; परंव मेजा से संतरावा परिहारेवा ॥५॥ अवस्सयस्त अंतोवगमाए पिंमएवा लोयएवा खोरंवा दधिवा नवणियंवा सपिया तेलंधा फाणियंत्रा पुयंवा संकुलंवा सिहरणिया कि माणिका नोकप्प Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१४) + सिद्धान्तसार.. निग्गंथाणवा आदालंदमवि वजए ॥ अदपुण एवंजारोज्जा नोनस्कित्ताई ४ रासकमाणिवा पुंजकमाणिवा नित्तियकमाणिवा कुलियकमाणिवा लंबियाणिवा मुदियाणिवा पेहीयावा कप्पइ निग्गंयाणंवा ३ हेमंत गिम्हासु वजए॥ अदपुण एवंजाणेज्जा नोरासिकमाई ४ कोहानत्ताणिवा पल्लाउत्ताणिवा मंचाउत्ताणिवा मालाउत्ताणिवा कुंनिनत्ताणिवा करनिनत्ताणिवा नलित्ताणिवा विलित्ताणिवा लंग्यिाणिवा मुदियाणिवा पिहियाणिवा कप्प निग्गंयाणंवा श्वासावासं वजए॥६॥ अर्थः-नपाश्रयनी विधि कहे:-न नपाश्रयनी अंग मर्यादामां सा० साल (चावल) वि० वृहि मु० मग मा श्रमद ति तल कुण कुलथ गो गहु ज जव, एटली जातनां धान्य उ० विखर्या होय वि० विशेषे करी विखाँ होय विकिय सघले प्रसर्यां होय विप्प पग मु. कवाने पण गम न होय, एवे स्थानके नोग न कटपे नि० साधु साधवीने आप हाथनी रेखा सुकाय तेटलो (श्राहालंद )जघन्य काल पण व० वस. श्र० अथ हवे वली ए० एम जाणे-नोन नाख्या नथी, विखर्या नथी, सघले प्रसर्या नथो, पग मुकवाने गम , रा० एक पासे ढगलो कीधो डे, पुउंचो ढगलो कोधो , जि जितने लगतो ढगलो कोधो बे, कुछ कुंमालाने आकारे ढगलो कीधो , लं० नपर राख रखेलो , मुखमाटी प्रमुख मुजा गप कीधी , पिण् बुगमे ढांकी मुक्याडे, एवा स्थानके क० कट्ये नि साधु साधवाने हे शियाले गि० उन्हाले व रहे. अण् अथ हवे बली ए एम जाणे के ज्यां लगी नोरा रास नथी कीधी, नो पुंग नथी ढगलो कीओ, नोनि नथी नीते ऊंची कीधी, नोकु नथी कुंमालुं कीचूं, को कोठामा प० पालामा म वासना कमामां के मा नपरले माले घाल्या बे, जग ते कोठो प्रमुख नां बारणां बागी Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (४१५ ) बुबायाँ , विण्बारणां माटीथी लीप्यां , लंग नपर रेखा कीधी बे, मुण मों पर मुजा कीधी ने अने पि लुगझेबांधी ने, एवे स्थानके कल्पे नि० साधु साधवीने वा चोमासे व २हे. न० उपाश्रयनी अं० मर्यादामां सु० मदिराना अचेत कुंन सो खाटा मदीराना अचेत कुंज २० ग्रहस्थे मुक्या , तेवा स्थानके नो न कटपे नि साध साधवीने १० हायनी रेखा सुकाय तेटलो जघन्य काल पण व रहे. हुए बाहार बीजो न उपाश्रय प० गवेषतां थकां नो जो बीजुं स्थानक न मले न पामे तो ए० एम पूर्वोक्त स्थानकमां का कटपे ए० एक रात्री दु० वे रात्री व रहेQ (जरुर कारणे). नो न कल्पे तेमने पानपरान्त एण एक रात्री दुबे रात्री वा रहेवू; कारण के जे जे ताहां ए एक रात्री दुबे रात्री प० नपरान्त वसे तेने से तेटला दीनना बे चारित्रनो बेद प० ते विशेष प्रायश्चित आवे ॥२॥ न नपाश्रयनी अंग मर्यादामां सि० शीतल पाणी वि० श्रचेत पाणीना कुंन न नंना पाणीना वि० कुन बंधोल करवाना न मुक्या थाप्या होय, तीहां नो न कल्पे नि० साधु साधवीने श्र० हाथनी रेखा सुकाय तेटलो जघन्य काल पण व वसवू. दु बाहार बीजो न उपाश्रय प० गवेषतां जोतां थकां नो न मले (बीजु स्थानक) तो तेने ए० ए का कहपे ए० एक रात्री दुबे रात्री व रहेq ( जरुर माटे ). नो न कटपे तेमने प0 उपरान्त ए० एक रात्री दुबे रात्री व रहे. जे जे तीहां ए० एक रात्री दुबे रात्री प० उपरान्त जेटर्बु श्रधिकुं रहे से तेटला दीवसना चारित्रनो बेद थाय तथा प० तप प्रायश्चित पामे ॥३॥ ज० उपाश्रयनीधे मर्यादामां स० श्राखी रात्री जो अग्नि बलती होय एवे स्थानके नो न कल्पे नि साध साधवीने श्राप हाथनी रेखा सुकाय तेटलो काल पण व० रेहेवू. बाहार बीजो 30 नपाश्रय प० गवेषतां (जोतां) थकां नो न मले न पामे (बीजुं स्थानक), ता ए० ए पूर्वोक्त स्थानकमां का कप्पे ए० एक रात्री दुबे रात्री व रहे, (जरुर माटे). नो न कल्पे से तेने प० नपरान्त ए० एक रात्री दुबे रात्री व वसवं रेहे. जे जो. Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१६) सिद्धान्तसार सीहां ए एक रात्रो दु0 बे रात्री प० नपरान्त रहे तो से तेटला दोबसना चारित्रनो बेद थाय. प० तपनुं प्रायश्चित आवे ॥४॥ न उपाश्रयनी अं० मर्यादामां स० श्राखो रात्री १० दीवो प० बलतो होय तो नो न कल्पे नि साध साधवीने श्राप हाथनी रेखा सुकाय तेटलो काल मात्र व० रहे. हु जो बाहार बीजो न० उपाश्रय प० गवेषता जोतां थकां नो न मले न पामे बीजुं स्थानक, तो ए० पूर्वोक्त तेमने का कल्पे ए० एक रात्री दुबे रात्री व० रहे. नो न कम्पे तेमने प० नपरान्त ए० एक रात्री दुबे रात्री रहे. प० ते उपरान्त जेटलु अधिकुं रहे से० तेटला दीवसना चारित्रनो बेद प० तपनुं प्रायश्चित आवे ॥५॥ ज० उपाश्रयनी अंग मर्यादामां पि0 लामु प्रमुख लोग सुची प्रमुख खी० फुध दण् दही न मांखण सा घी ते तेल फा० गोख पु० पुमा प्रमुख सं० सांकली (तलनी) सि सोरणी न० वीखरी होय, माटली न। मुंको होय, विशेषे करीनोमो होय, सांकमोनोमो होय, तेवे स्थानके नो न कल्पे नि० साध साधवाने था हाथनी रेखा सके तेटलो काल पण व० रहे. अ० अथ हवे वली एम जाणे नो नथी विखर्या रा० एक पासे करी मुंक्या पु० एके पासे ऊंचा कर्या ने जिण एक पासे निंते नाख्या के कुछ एक पासे कुंमाली कर्या ने खं० ते पण खांडया ले मुण्मुखा कीधी ने पे लुगमे ढांक्या , एवा स्थानके क कल्ये नि० साध साधवाने हे शियाले [ग० नन्हाले व० रहे. श्र० अथ इवे वली ए० एम जाणे नो नथी रासो कीधी ४ को० कोगमा प० पा. खामां मं0 मोंचा उपर तथा मा० नपरले माले मुंक्या डे कुण् कुंतीने आकारे नाजनमां तथा क0 घमामां मुंक्या डे न० बाणे लीपोडे विp माटोए बारणां बुर्यां ले लं० लांडया ने मु० मुसा कीधी ले पि० लुगसाना ढांकणे ढाक्या , ते स्थानके क० कल्पे नि साधु साधवीने गाव चोमासे व रहे, ॥६॥ नावार्थ:-हवे जुउ ! आ पाठमां एम कडंडे के, धान्य, सुखकी प्रमुख वीखयाँ होय ते जग्यामां तो हाथनी रेखा सुकाय तेटसो वार Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार (४१७) पण साध साधवीने रहेतुं न कष्पे; अने धान्य सुखमी प्रमुख वीखयां न होय, निंतादिकनी पासे दाबी दीधेला होय, एक बाजुए ढगला करी दीधा होय, बुगमादिके करी ढांकी दीधा होय श्रने राख. श्रादिके करी रखेली दीधा होय तो शीयाले उन्हाले मास कम्पादिक रहेवू कल्पे; पण चोमासे रहेवू न कटपे; अने जो कोग, माटलां प्रमुखमां घालीने गण माटी प्रमुखथी मोढां बुरे दीधां होय तथा मुसा कीधी होय तो चोमासे रहेवू कट्पे कयु. वलो लाकु प्रमुख सुखमी, दुध, दही, मांखण प्रमुख पमयां होय अने एक पासे ढगला कीधा होय तेवी जग्यामां सीयाले उन्हाले महीनो रहे करपे कयु. हवे जुन ! एटली वस्तु जे जग्यामां होय ते कमाम विना शी रोते होय ? अने साधु कमाम वास्या विना शी रीते रहे ? जो उघामां कमाम साधु राखे तो चोर, कुतरां प्रमुख रंजाम करे, ते ग्रहस्थने नुकसान करीने साधुने रहे, न कल्प; अने जो ग्रहस्थी रखवालो वास्ते रातना देखो रहे तो तमे कहो गे के, चोमासी प्रायश्चित आवे, एटले कदाच ग्रहस्थी जापता सारु कमाम बाहुं दक्ष जाय तो ते रातना मात्रादिक परतववा सारु साधुने खोलवुज पमे. एवी जग्यामां नगवंते शीयाले उन्हाले महीनो रहेवू कडं बे, ते साधुने कमाम वासवं उघामवं कप बे तेथीज कडं . वली जे जग्यामां घृत, तेल, गोल, खांस, दुध, दही, मांखण तथा लामु प्रमुख सुखमीना ढगला करेला पमया होय ते जग्वामां नगवंते शीयाले नन्हाले महीनो रहे, कडं . हवे तमे कमाम उघामवा वासवानी ना शी रीते केदेशो ? ते वारे तेरापंथी कहे के “बीजी जग्या न मले त्यारे एवी जग्यामा रहे; अने ग्रहस्थी पोताना जापता सारु कमाम वासे ते साधुने मात्रादिक परउववा वास्ते खोल, पमे, तेतो जेम मेह वरसता पण देह चिंता टालेवानी जगवंतनी आझाडे तेम ए पण जाणवू.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! बीजी जग्या मले नही तेथी कयुं होय तो एक बेरातनं केडेवं जोश्य: जेम था पाठमां कडं तेम दारुना के काचा Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१८) + सिद्धान्तसार. नंना पाणीना घमा पमया होय तथा श्राखी रात अग्नि के दीवो बसतो होय तेवी जग्यामां हाथनी रेखा सुकाय तेटलो वार पण न रहेQ; पण गवेषणा करतां क्यांय जग्या न मले तो बे रात रेहेवं कल्पे; अने जो ते उपरान्त रहे तो जेटला दीवस रहे तेटला दीवसर्नु बेद प्रायश्चित आवे कडं ले. तेम लामु प्रमुख पमया होय ते जग्यामां पण एक बे रात रहेवार्नु केहेवू जोइए; पण जगवंते तो महीनो रहेQ का ते कमाम वास उघामवू कटपे डे माटेज कांडे; अने जो कोग माटलां प्रमुखमां घालीने मोंढां बुरी दीधां होय तथा मोहोर बाप करी दीधी होय तो चोमासे पण रहे कल्पे कयुं . आ सूत्रना न्याय जोतां प्रजुनी कमाम वासवा उघामवान श्राझा डे; अने जे प्रजुनां वचन उलंघीने कमाम वास नघाम उत्थापे ने ते पोतानी मती कल्पनाए करी नत्थापे . वली उत्तराध्ययना पहेला अध्ययननी पांत्रीसमी गाथामां चारे दिशाए कमामादिके करी ढांकेली जग्यामां आहार करवो कह्यो बे. वली तेरापंथी कहे जे के “ साधुजीए पमिकमणामां कमामनो थोमोए संघटो को होय तथा गोचरीमा श्रधखांगुं कमाम नघामयु होय तेनुं (मछामि दुक्क थापे डे." एम श्रावश्यक सूत्रनुं नाम लक्ष नोला लोकोने बेहेकावे . ते श्रावश्यक सूत्रनो पाठःपमिकमामि गोयरियाए निकायरियाए उघामकम्माम न. ग्घामणाए साणा वडा दारा संघ णाए ॥ अर्थः-40 निवर्तुं बुं, अतिचारने बालोवू बु, गो गायनी परे चर्या ते धर्म गोचर ए परने पोमा रहित थोमो थोमो आहार लेतां निक निक्षा मागीने श्राहार ज० अर्ध कमाममा पेसतां थकां, उपयोग विना गाढे शब्दे चुचुं करतुं ठेलाने उघामयुं होय तथा उ० सर्व गाढे सुरे बोलतं कमाम नघामतां अजयणा कीधी होय सा० कुतरां व० वाजमा दा बाबीकानो संग संघटो थयो होय तो. नावार्थ:-हवे जुई ! श्हां तो एम कडं ने के, गोचरीमां गयां Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. ( ४१९) थका, ग्रहस्थीना घरनु अर्ध उघाउँ कमाम, मांही पेसतां उपयोग वीना गाढे शब्दे चुंचुं करतुं वेलीने नघामयुं होय तथा गाढे सुरे बोलतुं कमाम उघामतां अजयणा कीधी होय तेनुं मिलामि दुक्कम दोधुं . हे देवानुप्रीय ! इहां तो कमामनी अजयणा थर होय तेनुं मिलामि दुः क्कम दोधुं . तमे पा पाग्थी कमाम नथापो बो, पण ए रीते तो साधुना आवश्यक पमिकमणामां घणी जग्याए अजयणाना मिहामि दुक्कम दीधा , ते सर्व काम उथापवां जोइए. था गोचरीनी पाटीथी पेहेली पाटी श्वामि पमिकमियानी . तेमां "उप्पर संघटणाए” एवो पाठ . तेनो एवो अर्थ डे के “जुनो संघटो करवाथी के चांपवाथी अजयणा थर होय तेनुं मिलामि मुक्कम." हवे जुने तमे कपमामां केम राखो बो तथा संघटो केम करो को ? वक्षी चोवीस्तवनी पेहेली पाटीमां, हालता चालतां गमणागंमण करतां अजयणा थर होय तेनुं मिछामि दुक्क दे जे. ते पाठ: श्वामि पमिकमिजं शरियावदियाए विराहणाए गमणागमणे पाणकमणे बीयकमणे दरियकमणे साउतंग पणगदग मदीमकमा संताण संकमणे जेमेजीवा विरादिया एगंदिया बेइंदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचेंदिया अनिदया वत्तिया लेसीया संघाया संघट्टीया परियाविया किलामिया उदविया गणानगणं संकामिया जीवीयान ववरोविया तस्स मिहामि दुक्कम ॥ अर्थ-३० वांबुं बुं पण हिंसाथी निवर्तवं इ० हमणांना तथा साधुना श्राचारने विषे व वेहेता पंथने विषे वि० जीवनी विराधना अश् होय ते थकी ग० जाववे श्राववे करी पा जीवने चांपवे करीबी बीजने चांपवे करी ह० वनस्पतिने चांपवे करी ना मुंया तथा कीमो ममुखना दर प० पंच वर्णी फुल द० पाणी म माटी म० करोखोया संप जाली तथा पम, सं० ए श्राव वानां चांपवे कर, जेण्जे को जीव Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२०) + सिद्धान्तसार मे वि० विराध्या होय एम् एकंदी पृथ्व्यादिक पांच स्थावर बेबें बटादिक तेण्कीकी प्रमुख चण्चौरेंजि माखी प्रमुख पं० पंचेपि जलचरादि प्रमुख असामा श्रावता हण्या होय, व० वाटला कीधा होय, धुले करी ढगला कीधा होय, ढांक्या होय ले जुमि साथे मसख्या होय, सं० माहे मांहे शरीर मेलव्यां होय,सं० एक पासे फर्सवे करी पीमा उपजावी होय, पण सघले पासे फसवे करी परितापना नपजावी होय, कि कीलामना गिलानता नपजावी होय, न (उदवेग) धासको पा. ड्यो होय, ग० तेने पोताना रदेवाना स्थानकथी बीजे स्थानके संग मुं. क्या होय जी जिवीतव्यथी मुंकाव्या होय तणते फुः कृत्य मिथ्या था. नावार्थः-हवे आ पाटीमां “गमणागमण करतां प्राणी, बीज, जावत् एकिंजिथी पंचे िजीवने पीमा, कीलामना, उदवेग नपजाव्यो होय यावत् जीव रहित कीधा होयं तो मिलामिक्कम ” कह्यु. हवे जु ! रिया जोइने हालतां अजयणा थर होय तेनुं पण मिहामिछ. कम कह्यु जे. तमे हालोचालोडो केम ? वली श्रावश्यक सूत्रमा नंक, नपगणं, बाजोठ थने पाटीयांना अजयणा थइ होय तेनुं पण मिजामिपुक्क (प्रायश्चित) कडं . तमे बाजोग, पाटीयां उपगण केम राखो बो ? वली नदी उतरतां निश्चे असंख्याता जोवनी घात थाय ने तेनी रियावही पमिकमि मिचामिछक्कम दे . तमे नदी केम नतरो गे? तमे तो कहो बो के “ कमामथा अजयणा थर होय तेनुं मिठामिडकर्म कर्तुं ते माटे हमेशां जाणी जाणीने कमाम वासे उघामे तेमां साधपणुं नथी.” त्यारे तमे पूर्वोक्त काम जाणी जाणीने करोडो अने मिडामिक द्यो बो. हवे तमारी केदेणीने लेखे तमारामां साधपणुं शो रीते सरधीए ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के " जु जेली राखवानी, रिया जोश्ने हालवा चालवानी, जंग, उपगण, बाजोठ अने पाटीयां राखवानी, ए. टलां काम करवानी तो नगवंतनी आज्ञा बे; पण ए काम करतां अजयणा थर होय तेनुं मिलामिछक्कम दे ." तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय! Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ४२१ ) जेम ए काम करवानी जगवंतनी श्राज्ञा बे, तेम कमाम वासवा नद्यामवानी पण प्रज्ञा बे. तेनी अजयणा थइ होय तो मिठा मिटुक्क मं अपाय बे. वली 'उघामकमान उघामणाए ' ए पाठ तो साध साधवी बन्नेनो बन्ने वखत पकिमणामां केदेवानो वे के, कमामनी अजयणा - होय तो तेनुं मित्रा मिडुक्करुं. दवे सांजना तो ग्रहस्थीना घेरे गोचरी मां श्रधखांगुं कमाम उपयोग विना नघामयुं दोय तेनुं मिचामि - डुक्कi को बो; पण पाउलो रातना परिक्रमणामां साधुजी कमामनी अजया थइ होय तेनुं रोज मिलामिडुक्करुं दे बे. जो कमाम खोलवु न कम्पे तो हमेशां पाउली रातना कमामनी अजयलानुं मिला मिडुक्क केम आपे ? पण जगवंते शीयलनी पेहेली वामनी जतना माटे कमाम वालवा नघामवानी आज्ञा दीधी बे; केमके स्त्री उपाश्रयमां यावी जाय तथा कुतरी प्रमुख जेली श्रावीने सुए, तेनी जतना माटे कमान वासतां उघामतां श्रजया थइ होय तेनुं मिचामि डुक्करं देवं युंढे. जो कमान वासवं नघातुं न कयुं होय तो हमेशां बे वखत पकिमणामांता मित्रामिडुक्करं देवानुं केम कहे ? माया हो ते विचारी जोजो. वली तेरापंथी " सूत्र उत्तराध्ययनना ३५ मा अध्यमां साधुने काम वर्ज्य बे. " एम जुटुं नाम ले बे. ते गाथा:मणोदरं चित्त घरं, मल्ल धूवेण वासि; सक्कवाम पंडुरुल्लोय, मसावि नपच ॥ ४ ॥ इंदियाणि निस्कूस्स, तारिसंमि नवस्सए; डुक्कराई निवारेन, कामराग विवहणं ॥ ५ ॥ -- फुल अर्थः-म० मनोहर चि० चित्रामण सहित घ० घर म० गुंथ्यां अने धूप अगरादि धूपे करी वा० वासना सहित कीधुं होय ते घर ० कमान सहित होय पं० श्वेत वस्त्रे करी विभूषित उपाश्रय अथवा बहुमुल्या चंद्रवा सहित जे घर होय ते म० मने करी पण न० न वान्बे जे, एवं घर रेहेवाने मले तो रुकुं· सेने कर एम चिंतवे ? इं० पांच Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२२ ) सिद्धान्तसार. इंडिना विषय नि० साधुने ता० पूर्वे कह्या तेवा उ० नृपाश्रयने विषे डु० दोहीला नि० निवारा का० काम संबंधीया रागनो वि वधारणहार बे ते उपाश्रय. 55 जावार्थ:- दवे जुन ! था पाठमां एम कनुं बे के "मनोहर घर चित्रामण सहित बे, तेमा फुलमाला लटके बे, सुगंध धुप देपव्यो दें, सुगंधु वासना फुली रही छे, कमाने करी सहित बे, कलइ घुंटी डे अने चंदवा बांध्या बे, एवी जग्या हे साधु ! तुं मने करने वांबीश नही. एवी जग्या मने मतो ठीक एम मने करीने चिंतावणा करीश नही ए चिंतवणा श्रार्तध्यान बे. ते वास्ते प्रनुए कह्युं के " मलसावि नपलए " एटले ए जग्या मने करीने पण न वांडवी कही. जेम साधु ग्रहस्थने घेरे गोचरी गया थका एम न चिंतवे के “ मुजने सरस जारे आहार सुखकी प्रमुख पे तो ठीक. " जो एम चिंतवे तो निषित सूत्रम प्रायश्चित कयुं बे; पण सेदेजे दातार श्रापे ाने सेहेजे मले तो नागवे. तेम ए सात बोल सहित जग्यानी मने करी चिंतवणा न करवी, पण सेजे मले तो जोग; अने ते सेहेजे मले तो बतानी ममता न करे अने तानी वंढा न करे; कारण के बतानी ममता ने बतानी वांबा, एज अकल्पनिक बे. जे ए स्थानके कमाम कल्पनिक कहे बे ना लेखे शुद्ध दान, विनय, वंदा ने सत्कार सन्मानादिक सर्व अकल्पनिक थशे; कारण के श्री नत्तराध्ययनजीना ३५ मा अध्ययनमां दान, विनय ने वंदणादिकने पण मने करी न वांबवुं कयुं. ते पाठःप्रचणं रयणं चैव वंदणं पूयणं तहा, इही सकार सम्माणं मणसावि न पचए. ॥१८॥ अर्थः- पूर्ववत्. जुई प्रश्न बीजे पांने १४३ में. भावार्थ:- हवे जुई ! कमामादिक सात बोलनी जग्या मने करी पण न वांडवी कही. तेन श्रा पाठमां पण शुद्ध दान विनय, वंदा, सत्कार सन्मानादिक सर्व बोक्ष मने करी न वांढवा कह्या. त्यारे हे देवानु Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. प्रीय! तमे ए काम केम करावोलो तथा उपदेश केप द्यो डो? तेवारे तेरा. पंथी कहे जे के "त्यां तो एम ले के, ए मुजने वंदणा करे तो गोक, उठी बनो यश्ने आदरमान दे तो ठीक, एवी पोताना महोमा वास्ते वांबा न करे. ए वांग एज धार्तध्यान बे." तेनो नत्तर. हे देवानुप्रोय ! एवी मनोहर चित्रामणादिक सहीतनी जग्यानी वांबा करवी एज थार्तध्यान डे. ते सूत्र उपर चित्त दश स्वापेक्षा तजी विचारी जोजो. वली इहां तो एबुं स्थानक मने करी न वांडवं कडं, पण 'कमाम नघाम वासवू नही' ए कमामर्नु नाम तो मुलथीज देखातुं नथी; अने मने करी न वांबवू कयुं ते तो काम (विषय) नोगनो राग वधे तेथी कह्यु बे. ते चोथा प्रतनो दोष देखायो . जो कमामने वास्ते ए स्थानक निषेध्युं होय तो प्रजुए एम केहेबु जोशए के “ए जग्या मने करो न वंडे; कारण के कमामथी हीसा थाय तेथी दोष लागो पेहेलुं माहाबत जागे.” पण एम तो नथी कह्यु.प्रजुए तो कामनोगनो राग वधे ए वास्तेज कj २. हवे जुट ! कामनोगनो राग चित्रामणथी वधे के कमामथी वधे? माना हो ते वीचारी जोजो. वली त्या चित्रामण तथा फुलमालादिक सर्व बोलनी जग्या मने करी न वांबवी कही, ते तो कामनोगना विकार कारी चोरासी जोगना आसनादिकनां चित्रामण मांड्यां होय ते माश्री कही बे; पण सेहेजनां चित्रामण होय ते जग्याए तो साधुने उतरतुं सूत्र नववा मधे कयुं . ज्यां पुरणन चैत्यमां पृथ्वोशीमा ने ते उपर प्रजु बीराज्या ले. ते पाठः-- तस्सणं आसोग वर पायवस्स दहा इसी पंधा सल्लोणे एनएं महं एगे पुढविसीला पट्टए पणत्ते विकंजा याम जस्सेहि सुप्पमाणे कण्हे अंजणग घण कवाण कुवलय हलधरकोसेघा आगास केस कयलगी खंजणं सिंगनेद सिय जंवफल असणक सण बंधण णीलुप्पलपत णिकरे अयसिकुसुम पगासे मरकत मसार कलित्त णयणकीय Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२४ ) सिद्धान्तसार रासिव सिरे यस्य तलोवम्म सुरमे इदा मिय उसन तुरग पर मकर विरंग वालग किर रुरु सरज चमर कुंजर वणलय पनमलय नतचित्ते - इम रु बुरवणीय तुलतुलफासे सिदास संठासंठीए पासाइए दरिस अनिरुवे परुिवे. बः अर्थः- वली ते ० अशोक व० प्रधान पा० वृकनी दे० देवे इ० लगारेक पं० खंधथी स० वेगलेरो ए० इहां म० मोटो ए० एक पु० पृथ्वीशीलारूप प० पट पं० को. वि० पोहोलपणे श्र० लांबपणे उ० उंचपणे सु० प्रमाणुपेत बे. ते केवो बेः कण् पृथ्वीशीलानो पट काले वर्णे बे० खंजन, तरवार घ० मेघ क० कबान कु० लीलुं कमल इ० बलदेवने वस्त्र लीलुं होय श्रा० श्राकाश कालुं के० मस्तकनी वेण क० काजलनी कुंपली खं० गामलाना जंगण सि० भैंसना सींगमानी प्रजा रि० रिषृरत्न जं० जंबु वृक्षनुं फल अ० बीयानुं वृक्ष स० सपना वृक्षना फुलनी वटीपी निलोत्पल कमलना ०ि समुद ० अलसीनां फुल ए सोलनी जेवी काली लीली पण प्रज्ञाक्रांति होय ते सरखो पट्ट बे. म० मरकत रत्न १, म० इंद्र निलमणी २, क० करुबंध व्याघ्र ३, ए० श्रांखनी कीकी ४, ए चारनी रा० रासी समुहना सरखो वर्ष ०ि घणो सतेज ० प्राठ खुणा य० प्रारिसाना त० तलाना जेवो सुंदालो तथा तेज़ अति रमणिक. इ० वरगमा मि० मृगनी जात १, ७० वृषन २, तु० अश्व ३, ० मनुष्य ४, म० मन्त्र ५, वि० पंखी ६, वा० सर्प 9, कि० व्यंतर देव छ, रु० मृग ए, स० अष्टापद १०, च० चमरी गाय १९, कुं० हाथी १२, व वनन] लता १३, प० पद्मनी लता १४, ए चौद प्रमुख ज० चांतिरुप चित्रामण लख्या डे. आ० चर्मनुं वस्त्र १, रु० पींज्युं रु १, go वनस्पतिनुं बुर ३, ० मांखण ४, तु० अर्क तुल प्रमुखना सरखो फर्स दे. सिं० सिंघासनने सं० संस्थाने संस्थीत् बे. पा० मनने प्रसन्नकारी द० देखवा योग्य अ० मनोहर प० जुदां जुदां रूप दीसे बे. सु Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार ( ४२५ ) जावार्थ:- दवे जुर्ज ! श्रा पाठमां एवी चित्रामणकारी, कलीए खुंटी, घटारीमठारी, एवा शीलाना वर्ण, रूप, गंध, स्पर्श वखारया बे मने अनेक प्रकारां फुल बागमां बेः एवा स्थानके प्रभु उतर्या . एमने करी न वंढवी, त्यारे कल्पी केम ? तेवारे तेरापंथी कड़े ने के, ए तो वीतराग बे. तेनो उत्तर दे देवानुमीय! प्रभु तो वीतराग बे, पण पासे साधु तो सरागी बे ? तेमने चित्रामण सहितनुं काम केम कल्पे ? वली ते बागमां बीजा साधु उतरता के नही ते कहो. प्रजुए तो संजोन रचना मांगी होय ते श्राश्री मने करी न वांबवी कही, पण कमान वासवा उघामवानुं तो नाम नथी. वली श्रा पाठ लारे (वांसे) जे कमाम नथापे वे तेने कहीये के, त्यां तो एटला बोल सहित जग्या न वांवी कही बे; पण कमाम वासवा उघारुवानुं तो नाम नथी. तमारी के लेखे तो कमान होय ते जग्यामां उतरपुंज न जोइए. हवे तेरापंथी कमाने नत्थापे बे, पण पोताने तो अंधारुं बे; केम के starai यांनां कमान उघमावीने आहार ले बे. हवे जु ! कमाम नघावुं नदी, त्यारे ए कमामीयां नघमावीने आहार लेवो क्या कह्यो बे? जो चुलीयाथी जीवनी हींसा मानो तो (कमाथी मोटा जीव नंदरादिक मरता दशे, तो) कमामीयांथी नाना जीव कंथवादिक मरताज इशे. दवे प्रजुनो एवो तो मार्ग नथी के, मोटा जीवने न मावो ने नाना जीवने मारवो. ए रीतो तो तमारीज देखीए बीए के, नाना बारणानो आगार. ए लेखे तो कमाम पण नथापाय नही. दवे जो कमाकमां पाप छाने कमामीयां निर्दोष होय तो श्री ऋषजदेव जगवानना साधु तथा महा विदेह क्षेत्रना साधु, जेमनी पांचसो धनुष्यनी अवगाहना हती, तेमनी कायाना प्रमाणमां दरवाजा सरीखां कमानीयां दशे. एवां मोटां कमामीयां खोलावीने श्रादार लेता, तेमनां तो महाव्रत जाग्यां नही अने मोक्ष गया. वली पण एवी रीते अनंता मोक्क जाहो. त्यारे हवे तेमनां कमामीयांथी तो हमणांनां कमान पा ५४ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२६ ) सिद्धान्तसार. नादानां बे. तेथी मादावृत केम जागे ? ए न्याये प्रजुए तो कमाम वर्ज्जु नथी. तमेज चमबुद्धिर्थी घाल यो बो. वली तमे कमान तो उत्थापो हो, पण एम नयी वीचारता के, कमाथी हिंसा थशे तो कमामीयांथी पण थशेज वली सूत्रमां तो कमाम ने कमामीयां जुदां नथी कह्यां. जो कमाम वर्ज्यं दशे तो कमामीयां पण वय हशे जेम "संजोएस मणुसाएं जाव लोगंमि श्ठी" इत्यादिक. जेम सूत्र दसवैकालीक तथा उत्तराध्ययनना बीजा श्रध्ययने आठमा परिसामा तथा बीजा सूत्र- पाठमां, साधुने स्त्रीनो संघटो वर्ज्यो मां नानी मोटी सर्व स्त्री श्रावी गई, तेम कमाकमां नानां कमामीयां मोटांकमा बन्नेना दोष सरखा बे. जो मोटाथी व्रत जंग थाय तो नानाथ केम न थाय ? पण तमोने वर्तमान काले जला श्राहारनी अंतराय पके छाने सारी वस्तु दुध, दही, घृतादिक कमामीयां खोलाव्या विना मले नही तेथी तमे कमामीयांनी स्थापना कररी देखाय बे; केमके श्री वीतरागदेव, साधपएं अने जीवदया क्यारे श्रामां श्रावे ? जीना स्वादार्थे कमामीयांनी स्थापना करीने कमामने उथापो बो. ते तमारी के अने रेहेणी जुदी जुदो दोसे बे. प्रजुए तो साधुने के धारजाने एकेने कमाऊ वज्यां नथी. वली स्थिवर कल्पी साधुने काम नघावा वासवानी स्थापना नथी. तेनी शाख सूत्र सुयगकांग प्रथम श्रुतष्कंधना बीजा श्रध्ययने, जीनकल्पी साधुने चार बोल वर्ज्या बे. ते पाठः एगे चरे ठाण मासणे, सयणे एगे समादिए सिया; निख्खु नवधा विरिए, वइगुत्ते द्यच संवुमे ॥ १२ ॥ गोपीदे गाव पगुणे- दारं, सुन्नघरस्स संजए: पुण उदादरेवयं, समुच्चे पोसथरेत्तणं जमिन, समविसमाइ मुणी - दियासए; चरण अदुवावि जेरवा, अदुवा तच सरिसि वासिया ॥ १४॥ 11 23 11 Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिदान्तसार.. ( ४२७ ) तिरिया मणुयाय दिवग्गा, जवसग्गा तिविदादियासिया; लोमादीयं-नहरिसं, सुन्नागारगते महामुणी ॥१५॥ नोअनिकंषेद्य जीवियं, नाविय पूयणं पढएसिया; अबब मुर्विति नेरवा, सुन्नागार वस्स निस्कूणो ॥ १६ ॥ अर्थः-ए। एकाकी (जव्यथी एकल विहारी, नावथी राग शेष रहित थका) च० विचरे, ठाण स्थानके काउसग्ग एकलो करे, मा श्रासने पण राग द्वेष रहित थका बेशे, स सुवे तोपण एकाकीपणे रहे एटले ते क्रिया समाधि करे ते एकलोथको होय, नि साधु शुरू श्राहारनो लेणहार उ० उपध्यान तपने विषे वि० बल वीर्यनो फोरवणहार व० विमासोने बोलणहार श्र० मन संजम स्थीर करतो होय सं० संवर सहित साधु. णो कोइ सयणादिक कारणे सुंना घरमा रह्यो साधु घर छार ढांके नही, पं० तेम धार नघामे पण नही स० जिनकल्पी साधु. पु कोइए धर्म पुब्यां थकां उ० सावध वचन न बोले, जिनकल्पी निर्वद्य पण न बोले, ण ज्यां रहे त्यां कचरादिक प्रमानें नही, जो तृणादिक पाथरे पण नही. ए श्राचार जिन-कल्पीनो बे. जा चारित्रीयो ज्यां सूर्य थाथमे त्यांज रहे. अ० परिसह उपन्ये आकुल चित्र रहित स० सज्यादिक अनुकुल प्रतिकुलादिक मु० मुनीश्वर संसार स्वरुपना जाण समताए खमे च पंखी आदिना दंस मसादिक. १० वली मे0 सिंहादिक बीहामणा जीवना कीधा अ० अथवा त० (त्यां) सुने घेरे स० सर्प विंटीना दीधा उपसर्ग सहे. ति तिर्यंचना मण मनुष्य संबंधीनाथने दि० देवतादिकना ना नपसर्ग (परिसह) सहे. तिण ए त्रण प्रकारे क्रोधना अनावे कमाए करी अहियाशे. लोग परिसह देखीने उकांटो न चमे, नयकारी पण न थाय. सु साधु सुना घरने विषे रेहेतो उपलकणथी पर्वतादिकने विषे स्थित थको म जे एम न करे ते जिन-कल्पादिक महामुनी. नो नही ते चारीत्रीयो जे उपसर्गे पीमयो थको अवंडे जिवोत्व अने मर्ण. परिसह सहे, ना न थाय पू० Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२८) + सिदान्तसार.. परिसहने सही पुजानो प० अनिलाषी. अात्माने विषे मु० परिसह उपजे ते केवा ने नयकारी पिशाचादिकना सु सुना घरने विषे रह्याने नि चारित्रीयाने जीवीत मर्णनी वान्डा रहित, एवा साधुने उपसर्ग सेहेता सोहेला थाय. लावार्थः-इहां एम कर्वा के, स्थिवरकल्पीपणुं बोमीने जिनकपीपणुं श्रादरे तेवारे ए चार बोल बोमे. प्रथम तो कमाम वासे नही, बीजे बोले पुढ्या उतां प्रश्ननो उदाहरण करे नही, त्रीजे बोले जग्यामां (पुस) कचरो काढे नही, अने चोथे बोले त्रणादिक पाथरे नही; ए चार बोटं जिनकल्पीपणुं श्रादरे तेबारे बोमे. हवे जु! स्थिवरकल्पी. पणे पूर्वोक्त चार बोल करता हता त्यारे गेमया कह्या. जो न करता होत तो डोमेज शुं ? माया हो ते विचारी जो जो. प्रजुए तो कमाम वासवा नघामवानी गम गम विधि कही . उतां तेमनां वचन नथा. पीने कमाम वासवू नघामवं निषेधे जे तेमने असत्य-नाषी जाणवा. वली तेरापंथी कहे जे के, साधुने चसमा राखवा वा जे. ते बाबत प्रश्न व्याकरण सूत्रनुं जुटुं नाम ले ले. ते पांचमा संवर छारनो पाठः णयावि अय तनय तंव सीस कंस रयय जाव रुव मणि मोत्ताधार पुडक संघ दंत मणि सिंगे सेलं काय वरं चेल चमपत्ताई महारिहाई परस्स अद्योववाय लोनजणणाई परियट गुणवयो॥ अर्थः–ण वली न लेवू ते शुं-अ० लोह त तरवु तंत्रांबु सो० सोसुं कंगकांसुं रण रुघु जाण्यावत् रुप रु', सोनुं म० चंद्रकान्तादि मणी मो मोतीहार पु बीप, संपुट, सं० शंख प्रसिद्ध दं० हाथोनो प्रधान दांत अथवा दांतनी निपनी म मणी संग सिंग से० पाषाण का काच व प्रधान चे वस्त्र प्रधान च० चामपुं, एटला संबंधिया जे पात्र मग (महरय) बहु मुल पा अनेराने लेवा नणो श्र० एकाग्र चित्तना कर Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. . ( ४२९ ) पहार लोग लोनना उपजावणहार प० परावर्तिवा अथवा परिग्रहवा न करपे गुण ते गुणवंतने. नावार्थः-हवे जुर्म ! या पाठमां तो साधुने काचना, पाषाणनां अने चाममानां वस्त्र पात्र वयाँ बे; पण चश्मानें तो नामे नथी. तमे सूत्रनुं जुटुं नाम केम व्यो बो? लोह, कथीर, तांबु, सीसुं, कांसु,सोनुरुपुं, प्रमुख धातु तो कोइ पण साधुए राखवी नही, सूत्रमा गम गम वर्जी ; अने अहींयां तो एटली जातनां पात्रांज वा . चश्मा कया सू. त्रमा वा ले ते पाठ बतावो. तेवारे तेरापंथी कहे डे के, “ काच पाषाणनां पात्रां वा तेम को पण उपगर्ण न राखवा. जेम सोनानी वीटी न राखवी, तेम सोनानी मरकी, कंठी पण न राखवी.” एवा अबताअष्टान्त प्रापे ले. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! सोनुं प्रमुख सात धातु तो सूत्रमा गम गम वर्जीज , पण अहिंयां तो एटली जातनां पात्रां वयां बे; अने तमे तो कहो बो के, काच पाषाणनां पात्रां वा तेम कोइ पण उपगर्ण न राखवा; तेम चश्मा पण काच पाषाणना जे. त्यारे जु! हे देवानुप्रीय! शहां तो कपमानां श्रने चाममानां पात्रां पण वया ले. तमे कपमानां बीजां उपगण केम राखो बो ? वली कपमानी अंगरखी, पाघमो, दोवम, सुयण प्रमुख साधुने वज्यो . हवे तमारी केहेणीने लेखे कपमाना चो. अपटा मुहपत्ती आदि बीजां पण नपगर्ण न राखवां जोशए. हे देवानुप्रीय ! जे रीते सूत्र-पाठमां कडं होय ते रोते अर्थ केहेवो जोइए. तमे मतना लीधे, हरेक जग्याए, श्रावी श्रावी कुयुक्ति केम लगामो गे? तेवार तेरापंथी कहे जे के “ कपमानां तथा चाममानां तो पात्रांज वज्या , अने काच, पाषाण तो सर्वथा वज्यों बे. माटे काच पाषाणनां कांश पण उपगण न राखवा.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! अहियां तो सर्व सोल तथा सत्तर जातनां पात्रां वयाँ . तमे चश्मो निषेधवाने वास्ते कहोबो के, काच, पाषाण सर्वथा वा जे. त्यारे तमे हिंगलो, हमताल केम राखोडो ? ए पण पृथ्वीकायनी जात , पाषाण . तमारे Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) +सिदान्तसार.. खेखे तो एपण न राखवां जोइए. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, अमे तो हिंगलो, हरताल श्रचित (वाटेला) राखीए बीए.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! चश्मो पण क्यां सचित ले ? जेम हिंगलो, हरताल राखे ले तेमज चश्मा राखे . वली काचमां, पाषाणमां, पाणीमां अने तेलमां मोढुं देखे तो अतिचार कह्यो बे. ते मोंढुं देखवाने काच तो गमगम वा बे, पण पानां वांचवाने चश्मो तो राखवो क्यांय वज्यों नथी. तेवारे तेरापंथो कहे जे के “ चश्मा विना अदर न सुके तेने सामा त्रण हाथ बेटे उनाने कीमी, कंथवादिक जोव शी रीते सुके ? तेवाने तो पाहार, पाणी लेवा जq तथा विहार करवो कल्पे नही.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जो चश्माथी सुके तो आंधलाने पण सुमद् जो ए. चश्माथी तो नाना श्रदरनो मोटो देखाय, अने तेथी करी घणी वार वांचतां नजर न ताणवी पझे तेथी चमावे . तेवारे तेरापंथी वली कहेले के “ नाना अक्षर चश्मा विना न देखाय तो नाना जीव मार्गमां शी रीते सूफे ?" तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! सूत्रना अर्थ- नाना अकरनुं पार्नु सामात्रण हाथ आधु राखे तो तमाराथी पण वंचाय नही; अने अक्षर न वंचाय त्यारे कीमी, कंथवादिक जीव तो घणा नाना , ते सामा त्रण हाथ बेटे उन्ना थका शी रोते सुजे? तमारी केहेणीने लेखे तो तमने पण श्राहार, पाणी लेवा जर्बु तथा विहार करवो कटपे नहि; कारणके तमने सामात्रण हाथथी अक्षर तो सुके नही. हवे तमे विहार करोगे तथा श्राहार पाणीने वास्ते जाउँ गे, ते तमारी केहेणीने लेखे तो तमे पण श्री वीतरागदेवनी आज्ञा बाहार गे. हे देवानुप्रीय ! एवा खोटा चोज लगावीने श्रणसमजु जीवोना घटमां घोचा केम घालो बो? जीव तो चेतनपणाथी हाले चाले , तेथी सामा त्रण हाथ डेटेथी देखाय बे; पण अक्षर तो (जम) स्थिर , तेथी साझा त्रण हाथ डेटेथी मुझे नही. वली तमे कहो बो के “जी. वादिक न सुके तेथी हालवुज नदी.” त्यारे चार स्थावरनी अवगाहना जघन्य नत्कृष्टी आंगुलना असंख्यातमा लागे , त्रण विग्लंजिनी श्र Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार वगाइना जघन्य तो आंगुलना असंख्यातमा नागे डे अने पंचेजिनी पण अवगाहना जघन्य तो थांगुलना असंख्यातमा नागे . तेना जीव, वमनां बीज तथा सरसवना दाणा प्रमुख, मार्गमां धुलमां पड्या देखाय नही, तेथी तमारी केदणीने लेखे तो चालवू न जोइए; पण जगवंते तो कयु डे के, जयणाथो चालतां पाप कर्म बंधाय नही. तमे मतना सोधे, चश्मा निषेधवाने वास्ते एवी कुयुक्ति लगावो बो.. तेवारे वली तेरापंथी कहे के, “ सूत्रमा नगवंते चश्मो राखवो क्यांय कह्यो नथी, माटे राखवो नही.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रोय ! सूत्रमा तो साही, हींगलो, हरताल, सफेतो, लेखण, पीली, पाटीयां, सूत्रनी लखेली प्रतो अने पोथीने बांधवानी दोरीन इत्यादिक क्या राखवां कह्या डे ते बतावो. सूत्रमा कह्या विना राखो लो ते तमारी कहेणीमा लेखे तो तमे जगवंतनी थाझा बाहार बो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, ए तो तमे पण राखो बो. एम कहे जे तेनो उत्तर. हे देवा. मुम्रीय ! अमे तो चश्मो पण राखीए बीए, तेमज पोथी प्रमुख सर्व ज्ञानमां उपगण साही, लेखण अने हिंगलो प्रमुख पण राखीए बीए, ते यथायोग्य समजीने राखीए बीए; कारण के सूत्रमा पांच व्यवहार मानवा कह्या जे. शाख सूत्र व्यवहार उद्देशे दसमे. तथा नगवती सूत्र शतक पाठमे नद्देशे आठमे. ते पाठः का विहेणं नंते ! ववदारे पं0 ? गो० ! पंचविदे ववहारे । पंत:-आगमे १ सूए २ आणा ३ धारणा ४ जीए ५. अदासेतब आगमेसिया आगमेणंववदारंपग्वेद्या. पोयसेतब आगमेसिया जहासेतब सुएसिया सुएणंववदारंपठवेद्या. णोयसेतब सुएसिया जहासेत आणासिया आणाएववहारंपठवेद्या. णोयसेतन आणासिया जहासेतक्ष धारणासिया धारणाएववहारंपग्वेद्या. पोयसेतबधा Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३२ ) सिद्धान्तसार. रासिया जहासेतच जीएसिया जीएणववदारंपठवेद्या. इच्चेए दियं पंचदिववदारं पठवेद्या. तं० आगमेणं १ सूए २ आणा ३ धारणाए ४ जीएणं ५ जहाजहासे खागमे १ सू २ आणाए ३ धारणा ४ जीए ५ तहातहा पठवेद्या. से किमाहू नंते ! आगमबलिया समणानिग्गंथा इचेयं पंचविहंववदारं जयाजया जर्दिजदिं तयातया तदितहिं पिस्सि व सियं सम्मंववदारमाणे समणे निग्गंये आणा आरादए नवइ ॥ अर्थः-- पूर्ववत् जुन प्रश्न बीजे पांने १७१ में. भावार्थ:- दवे या पाठमां तो श्रागमव्यवहार मानवो को. तीर्थंकर, गणधर, केवली, मनपर्यव ज्ञानी, श्रवधज्ञानी, चौद पूर्वधारी अने दस पूर्वधारी, एटलाने श्रागमव्यवहारी कहीये. तेमनी आझा प्रमाणे वर्तकुं दवे ते श्रागमव्यवहार न होय तो तेमनां परुप्यां सूत्र ( ते सूत्रव्यवहार ) प्रमाणे वर्ततुं. २ हवे सूत्रमां बोलनो जे निर्णय न होय ते श्राज्ञाव्यवहार प्रमाणे करवो. ३ खाझा देवावालो न होय तो धारणा व्यवहार मानवो. ( जेम धारणा होय तेम करवुं ); ४ अने धारणा न होय तो पांचमो जितव्यवहार मानवो (जेम वा वमेरा करता होय ते कर). ५ ए पांच व्यवहार मानतो थको आज्ञानो धाराधक थाय कयुं. वे जु ! सूत्रमां जे बोलनो निर्णय न कर्यो होय ते पांचमा जित-व्यवहारे मानवो. जेम वमेरा करता याव्या तेम करतो थको ज्ञानो आराधक थाय कयुं. त्यारे जुन ! दे देवानुप्रीय ! सूत्र, पोथी, साड़ी, हींगलो, हरताल ने लेखा प्रमुख सर्व बोलनो " साधुए राखतुं के न राखनुं, " एवो सूत्रमां निर्णय कर्यो नथी; छाने देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण, जगवंतने सत्तावीसमे पाटे यया तेमणे सूत्र लख्यां त्यार पी साही, हींगलो ने चश्मा प्रमुख ज्ञाननां उपगर्ण साधु राखवा Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार खाग्या. वास्ते सर्व ज्ञाननां नपगर्ण राखवां ते जितव्यवहारमा बे; अने ज्यारे सूत्रव्यवहार न होय त्यारे जितव्यवहार मानवानी नगवंतनी आज्ञा . ए न्याये चश्मा, हिंगलो, साही, हरताल, लेखण, पोथी अने पाना प्रमुख सर्व ज्ञाननां. उपगण सूत्रमा नथी कलां, बतां अमे राखीए सीए; पण तमे चश्मा तो नथापो बो श्रने साही, हिंगलो, लेखण, पोथी, पानां प्रमुख घणी वस्तु सूत्रमा कह्या विना राखोडो. ऐ चश्मा जितव्यवहारमा डे तेने मतना लीधे नथापोने तमे साधु माये जुगं पाल द्योगे. वली तेरापंथी, कमाम वासवा उघामवानी तथा चश्मो राखवानी जगवंतनी श्राज्ञा जे ते तो, नगवंतनां वचन नथापीने निषेधे , श्रने ग्रहस्थीना घेरे बेस, स्थापे ; पण जगवंते, ग्रहस्थीना घेरे बेसे तेने साधपणाथी भ्रष्ट कह्यो . शाख सूत्र दसवैकालीक अध्ययन बहे ते गाथाः दस अध्य हाणा, जाइं बालो विरवश् तब अन्नयरे हाणे निग्गंथा तान जस्स ॥७॥ वयनकं कायबकं, अकप्पो गिदिनायणं; पलियंक निसिद्याय, सिणाणं सोन वद्यणं ॥७॥ अर्थः-द० दस अने श्र० आठ एम अढार ग० स्थानक जाण जे बा अजाण वि० विराधे त० ते अढार स्थानक माहीतुं श्र० अनेरु कोशएक गण स्थानक विराधते थके नि० निग्रंथपणाथी ता तेज ब्रष्ट थाय हवे ते श्रढार स्थानक कहे जेः-व० व्रत का काय थ श्रकल्पनिक वस्तु गि ग्रहस्थीनां नाजन थाली प्रमुख प० पलंक (ढोली).नि कारण विना ग्रहस्थीना घेरे बेसबुं ते सि स्नान अने सोग विजुषा (शरीरनी शोजा) व वर्जवां. ए १७ स्थानक. . ____ लावार्थः-हवे जुन ! था पाठमां कडं के, अढार मांहेलो एके बोल सेवे तेने साधपणाथी नष्ट कहीये. तेमां सोलमो बोल ग्रहस्थोना धेरै बेसवानो ने तेनुं वर्णन एमी गाथाषी ६० मी माथा सुधो ले. त्यां प्रहस्थीना धेरे सवाथी साधुने जे दोष उपजे से कहा ले ते गाया: Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३४) + सिद्धान्तसार गोयरग्गा पविठस्स, निसिया जस्स कप्पक्ष श्मेरीस मणायारं, आवद्यश् अबोहियं ॥५ ॥ विवत्ती बंनचेरस्स, पाणाणंच वहे वहो; वणिमग्ग पमिग्घाउ, पमिकोहो अगारिणं ॥ ५ ॥ अगुत्ती बंचचेरस्स, शबिवावि संकमं; कुसील वढणं गणं, दुर परिवद्यए ॥५ ॥ तिन्द मन्नय रागस्स, निसिया जस्स कप्पक्ष, जराए अनिनूयस्स, वादियस्स तवस्सिणो ॥६० ॥ अर्थः-हवे सोलमुं स्थानक कहे . गो० गोचरी प० गयां थकां नि ग्रहस्थना घरने विष बेसवु ज जे यतिने का कहपे तेतो बेसे, पण जे यतिने बेसबुं न कटपे ते बेसे तो तेने ३० एवो म० श्रनाचार लागे अने श्राप पामे अ० मिथ्यात्वनुं फल ॥५॥ वि० विनाश थाय बंग ब्रह्मचर्यनो. अने पा० प्राणीनो व० वध पण थाय. (त्यां यतिने ग्रहस्थना घरने विषे बेसतां श्राधाकरमी प्रमुख आहार नीपजवानो संचव ने तेथी). व० संयमनो पण वध थाय. व त्यां निशाचरने प० अंतराय पमे. प० त्यां यति उपर क्रोध नपजे अ० ग्रहस्थने (घरना धणीने)॥ ५० ॥ १० नव वामनांगे बंग ब्रह्मचर्यनी. ३० स्त्रीने पण सं० शंका उपजे. कुछ कुशील व० वधवा, गण स्थानक (ग्रहस्थने घेरे वेस, ते) ० पुरथी प० वर्जे ॥एए ॥ हवे ग्रहस्थीने घेरे बेसवं जे यतिने कल्पे डे ते अधिकार कहे -ति० ए त्रणमां कोई एक यतिने नि ग्रहस्थीना घरे बेस ज जेने का कल्पे ते कहे . जण गढपणे पराजव्यो होय ते यतिने वा० रोगी यतिने अने त तपश्वीने, ए त्रण प्रकारना यतिने ग्रहस्थना घेरे बेसबुं कल्पे ॥ ६ ॥ नावार्थः-हवे जु ! था पाठमां जगवंते, ग्रहस्थीना घेरे बेसे ते साधुने बाउ अवगुण मोटका करा. तेमां मिथ्यातनुं फल पामे. Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार.. (४३५ ) ब्रह्मचर्यनो विनाश थाय १, प्राणीनो वध थाय २, ग्रहस्थी धन कणुंका, लीलोत्री, पाणी वीगेरे श्राघु पाडं करी बाधाकर्मी थाहार निपजावे तो प्राणीनो वध थाय, तेवारे संजमनो पण वध थाय ३, निशाचरने अंतराय पके ४, घरनो धणी क्रोध करे ५, ब्रह्मचर्यनी वाम नागे ६, स्त्रीने शंका नपजे , अने कुशील वधवा, गम डे . ए पाठ दोष जाणीने साधु ग्रहस्थीना घेरे बेस पुरथो वर्जे, अने अपवादमार्गमां त्रण जणाने ग्रहस्थीना घेरे बेस, कल्पे कडं. तेमां एक तो जराए करी पराजव्यो (बुढो स्थिवर) तेने, एक व्याधियाने (रोगोने) अने एक तपश्वीने. एत्रण वीना बीजो ग्रहस्थीना घेरे बेसे तो तेने साधपणाथी ज्रष्ट कह्यो बे. तमे पोताना स्वार्थने वास्ते ग्रहस्थीना घेरे बेस, केम स्थापोलो ? तेवारे तेरापंथी कहे के “एतो गोचरीए गयांथकां ग्रहस्थीना घेरे बेसबुं नही ते आश्री कडं बे; अने अमे तो धर्म-उपेदश देवाने वास्ते मोटा घरोमां पमदावाली बाउने तथा रजपुतोना रावखामां वखाण संन्नलाववाने जश्ए बीए तथा हाटोमां नतरीए त्यारे बाउने वखाण संनलाववा माटे ग्रहस्थीना घेरे जश्ने बेसीए बीए. ए तो धर्म वधारवानुं कारण .” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! स्हेजे गोचरीए गयाथका ग्रहस्थीना घेरे बेसे तोय साधपणाथी व्रष्ट कह्यो डे, त्यारे (नदीरोने) जाणी जोश्ने तो जर बेसबुं कल्पेज केम ? जेम गोचरीए गयां ग्रहस्थीना घेरे बेस, वज्यु ले तेम उपदेश देवो पण वर्यो . शाख सूत्र ब्रहत्कल्प उद्देशे प्रोजे. ते पाठः नोकप्पक्ष निग्गंथाणंवा २ अंतरागिहंसिवा चिहित्तएवा निसिइत्तएवा तुयट्रीत्तएवा निदाश्त्तएवा पयलाश्त्तएवा असणंवा ४ आदारमादरित्तएवा उच्चारंवा ४ परिवितए सद्यायंवा करित्तए जाएंवाजाश्त्तए कासगंवा हावाहाश्त्तए॥अहपुण एवं जाणेज्जा वाहिए थेरे तपसा ज्वले . किदंतेजराजुले जजरिए मुझेजवा पवमेजात्रा एवंसे कप्पश् Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार.. अंतरागिहंसि चिठित्तएवा जाव हाणंवा हात्तए । नोकप्प निग्गंथाणंवा २ अंतरागिर्दिसिवा जाव चनग्गादंवा पंचगाहंवा आइखित्तएवा विनावित्तएवा कीट्टीत्तएवा पवेइत्तएवा ननब एगनाएएवा एगवागरणेणवा एगगादाएवा एग सिलोएणवा सेविए ठिच्चा नोचेवणं अहिच्चा ॥ नो कप्पइ निग्गंथाणवा २ अंतरागिदंसि इमाइं पंचमदवयाइं सब्जावणाई आइखित्तएवा विनावित्तएवा किहित्तएवा पवेश्त्तएवा ननन एग नाएणवा एगवागरेणवा एगगाहाएवा एगसिलोएणवा सवियहिचा नोचेवणं आठिचा ॥२३॥ अर्थः-नो न कल्पे नि साध साधवीने श्र ग्रहस्थना घरने विषे चि० उठे रहेवु नि बेस तु सुव॒ नि निंजा लेवी प० विशेष निंजा लेवी अ असन, पाणी, खादिम, स्वादिम, ए चार था आहार करवो उ० वमीनीत १, लघुनीत २, बलखो ३, अने नाकनो मेल ४ पण परग्ववो स सकाय करवी द्या ध्यान ध्यावq का काउसग्ग गण गववो. श्र हवे वली ए जो एम जाग जाणे वा रोगी थेग स्थिवर त० तपस्वी उ० पुर्बल कि किलामना पामी जण जराए जुनो जण जर्जरी देहे मु मुर्दा पामी प० पमतो होय एतेने कण् कल्पे अंण् ग्रहस्थीना घरने विषे चि० उठे रहेQ, बेस, सुq जाण यावत् ग काउसग्ग ठग रियावही पमिकमवी. नो न कटपे नि साध साधवीने अ० ग्रहस्थीना घरने विषे बेसोने जा यावत् च० चार गाथा पं० पांच गाथा आप कहेवी वि० जुदी जुदी कथवी को विस्तारे केहे, ( प्रश्नव्याकरामां गुण कह्या ते), प० विशेषे केहे, (माहाव्रतनां फल निर्जरानां फल मुक्तिपद पामवा ), न० पण एटलुं विशेष एण्ना एकज न्याय अष्टान्त कहे एण्वाय एकज प्रश्नोत्तर कहे एण्गा एकज गाथा कहे Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. ए० सि एकज श्लोक कहे; से ते पण वि० उन्ना रहीने, पण नो० नही अण् बेसीने कहे. नो न कल्पे नि साध साधवीने अंग घर वचाले बेसीने इ० एपं० पांच माहावत स पचीस जावना सहित श्राप केहेवां, वि० श्रर्थ जुदा जुदा कथी प्राणातिपात वेरमणादिक कि विस्तारी केहेवा (प्रश्नव्याकरणमां गुण कह्या ते), प० विशेष केहेवा (मुक्तिपद पामवा रुप माहाव्रत (निर्जरा)नां फल), न० पण एटदुं विशेष एण्ना० एकज न्याय अष्टान्त एण्वा० एकज प्रश्नोत्तर एण्गा एकज गाथा एसि० एकज श्लोक केदेवो; से तेपण वि उना रहीने; नो पण बेसीने न केहेवो. .. नावार्थः-हवे जुट ! था पाठमां श्री वीतरागदेवे एम कडं डे के, साधसाधवीने ग्रहस्थीना घेरे ननुं रेहे, १, बेस, २, सु, ३, निशा खेवी ४, विशेष निंजा लेवी ५, अस्नादिक चार श्राहार करवा ६, नच्चारपासवण खेल परग्ववां , सज्जाय करवी , ध्यान करवू ए, अने काउसग्ग करवो १०, ए दस काम ग्रहस्थीना घेरे जश्ने करवां नहीं; अने अपवाद मार्गमा बुढो ( स्थिवर ), रोगो तथा पुर्बल होय, मुर्ग श्रावती होय अने हेगे पमतो होय तेने ग्रहस्थीना घेरे बेसबुं कस्पे. वली भागल आ पाठमांज एम कडंडे के, ग्रहस्थोना घेरे चार पांच गाथा केदेवी नही, पांच माहावत पण केहेवां नही, तेम पांच माहाव्रतनी पचीस नावना पण केहेवी नही. कदाचित कोइ पुढे तो एक प्रश्ननो उत्तर देवो तथा एक गाथा अथवा एक श्लोक केहेवो; ते पण उन्ना रहीने केहेवो, पण बेसीने केहेवो नही. ए जु ! नगवंतनी तो आज्ञा एवी डे के, ग्रहस्थीना धेरे काम पमयां केहे, पमे तो एक श्लोक के गाथा नन्ना रहीने केहेवी; पण बेसीने कड़वानो माझा नथी. त्यारे घणी वार ग्रहस्थीना घेरे बेसीने उपदेश देवो क्या थकी? तमे प्रजुनां वचन उत्थापीने ग्रहस्थीना घेरे बेसीने वखाण वांचवें तथा नपदेश देवो केम स्थापो हो ? तेवारे तेरापंथी, प्रहस्थीना घेरे बेसवं स्थापवाने अर्थे एम कहे Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) +सिदान्तसार.. डे के “ सूत्र दसवैकालीकमां ग्रहस्थीना घेरे बेसे तो साधपणाथी भ्रष्ट कयो, थने आ बहतकल्पना त्रीजा उद्देशामां ग्रहस्थीना घेरे बेसबुं वज्यु ते अंतर घर कयुं . ते अंतर घर तो रसोश करे तेने, तथा धणी धणीयो सुवे ते मेहेलात तथा उरमा प्रमुख निंतर जग्याने कहीये. ते अंतरघरमां तेर बोल करवा वा बे, पण परसाल ( वरसाली) मां, चोकमां, कचेरीमां अने अघायली (एकान्त ) जग्यामां उठे रहे, बेसबुं तथा उपदेश देवो नथी वो.” एम पोताना स्वार्थने अर्थे खोटा अर्थ करे जे तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जे जग्यामां सुखे समाधे साधुने बेस, वज्यु, तेज जग्यामां बुढा स्थिवरने, व्याघिरोगीने तथा तपस्वीने नजा रहेवानो, बेसवानी, सुवानी, चार थाहार करवानी, वमीनीत लघुनीत प्रमुख परउववानी जावत् तेर बोल करवानी प्राज्ञा ले. हवे जुलं स्थिवर, रोगी अने तपश्वी, ग्रहस्थीना घेरे रसोश करवानी जग्यामां, सुवाना मेहेलमां, सेज्यामां, तथा निंतर-नरमा प्रमुखमा आहार पाणी करे तथा वमोनीत लघुनीत परग्वे के अघायली जग्यामा परग्वे ते कहो. तेवारे तेरापंथी पण कहे जे के " अघायली जग्यामां, निंतादिकने न तथा नोहोरा प्रमुखमां श्रादारादिक करे तथा लघु नीत, वमीनीत परग्वे; पण रसोइ तथा सुवानी जग्यामां तो स्थिवर, रोगी अने तपस्वी पण श्राहार पाणी करे नदी तथा दिसा मात्रे पण जाय नही." हे देवानुप्रीय ! तमे रसोमानी तथा सुवानी जग्याने अंतर-घर केम कहोबो? एवा खोटा अर्थ केम करोगे ? अहीयां तो 'गिह' केहेतां घर अने 'अंतर' केहेतां मांहे साधुने बेसवू नहीं तथा उपदेश देवो नहीं;" प्रजुए तो एम कडं . तेवारे तेरापंथी कहे डे के “सूत्र उत्तराध्ययनना बारमा अध्ययनमा हरकेशो मुनीराजे ब्राह्मणो ना पामामां उपदेश दीधो बे; तथा तेज सूत्रना पचीसमा अध्ययनमा जयघोष मुनीए विजयघो. पने ब्राह्मणना पामामां नपदेश दोधो डे; तथा सूत्र ज्ञाताजीमां पोटी. साने दानशालामां आरज्याए मोटे मंमाणे नपदेश दोघो डे; तथा वली Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ४१९ ) तेज ज्ञाताजीना सोक्षमा अध्ययनमां गोपालकाजी श्रजए सुखमालीकाने उपदेश दीधो बे. तेथी श्रमे पण ग्रहस्थीना घेरे बेसीने उपदेश दइए बीए. " तेनो उत्तर. हे देवानुमीय ! एवी जग्यामां तो काम पड्याथी साधुने रेहेवुं पण कम्पे बे, त्यारे उपदेशनी शी चर्चा बे ? अने ग्रहस्थाना घेरे साधुने बेसवुं तथा उपदेश देवो वय ते तो स्त्रीयादिक रेहेती होय, परिको पाणी होय, रसोइ थती होय ने ढोकरा डोकरी वेखेरा सहित होय ते श्राश्री वज्यों बे. दवे नतर्या होय ते जग्या छोटी होय तथा बखानी होय तेथी बीजी जग्या साधुजीने रेहेवा जोग्य होय एवी जग्यामां जइने उपदेश दे तो साधुने हरकत ( अटकाव ) नहीं. वली साधुजी रहे ते घर सर्व ग्रहस्थीनांज बे, पण ग्रहस्थीने रेहेवासनी जग्यामां साधुजीने उपदेश देवो तथा बेसवुं वयुं छे. वली इरकेशीजी तथा गोपालकाजी प्रमुखे तो पामामां तथा दान देवानी जग्यामां नपदेश दीधो बे; पण ग्रहस्थीनी रहेवासवाली जग्यामां नथी दीधो. ए इरकेशीजी मुनीराज ने श्रार्याजी गोपालकाजी प्रमुखे प्रहस्थीना पायामां जश्ने उपदेश दीधो ते तो सर्व तीय- कल्पी बे; पण पेहेला ने बेला तीर्थंकरना साधुने ग्रहस्थीना घेरे जइने उपदेश देवो कयांय चाट्यो होय तो ते सूत्र पाठ बतावो . तेवारे वली तेरापंथीन, ग्रहस्थी ना घेरे बेस स्थापवाने काजे कहे डे के " वचन - लब्धिना धोने 'ग्रहस्थीना घेरे बेसीने उपदेश देवो सूत्र सूयगमांगना प्रथम श्रुतकंधनानवमा अध्ययननी १‍ मी गाथाना अर्थमां क्यांक कयुं छे. ते पाठःननच अंतराएणं, परगेदेण पिसियए; गाम कुमारिय किंरु, नातिवेलं दसेमुण | ॥ २९ ॥ अर्थः- न० एटलुं विशेष अं० जरा, रोगादिक कारण टालीने बेसे, तथा कोइ वचन - लब्धिवंत धर्म उपदेशादि कारणे पण बेसे. प० ए कारण विना प्रहस्थीना घेरे पि० न बेसे. गा० ग्रामने विषे कुं० कु· Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ४४०) 'सिद्धान्तसार.. मारनी परे किंग हाश्य क्रिमा न करे, ना मर्यादा मुकीने न हसे मुग साधु. पमिलेहणादिक वेला मर्यादा उलंघोने न इसे. वीतरागनी आज्ञा उसंघीने हमहम साधु न इसे. लावार्थ:-हे देवानुप्रीय ! अहीयांतो एम कयु ले के रोगादिकना कारण विना ग्रहस्थीने घेरे साधुए बेसवु नही, अने वचन-लब्धोवंत होय तो उपदेशादिक कारणे बेसे' एम श्रर्थमां कडं . हवे वचन लब्धीवंत केने कहीये ते कहो. जो वचन बोले तेने वचन-लब्धीवंत केहेता होतो गुंगा साधु कया ले के, जेमने सूत्रमा वाम गम ग्रहस्थीना घेरे बेसवें वज्यु. ? अहियां वचनलब्धी तो दस पूर्वथी लर चौद पूर्व पर्यंत ज्ञानना धणी होय अने जेनां वचन खाली नज जाय तेने कहोये. तेने तथा आगम-व्यवहारी होय तेने बेस अर्थमां कडं . हवे तमारामां कश् लब्धीने ते कहो. एतो तमे बधाए पेट नराश्ने वास्ते प्रहस्थना घेर बेसता देखाउँ बो. वली प्रजुए तो सूयगमांग सू. ना प्रथम श्रुत्ष्कंधना नवमा अध्ययननो एकवीसमो गाथामा ग्रहस्थी. ना घेरे साधुने बेसवु वज्यु जे. ते पाठः आसंदी पलियंकेय, णिसिधं च गिरंतरे, संपुरणं सरणंवा तं विधं परिजाणिया ॥१॥ _ अर्थः-श्रा० मांची प्रमुख श्रासने प० पलंकादिके णि बेसा गि प्रहस्थीना घरमां बेसबु, सुवू न कटपे.(श्रात्म संजमनी विराधमा थाय तेथी.) स० ग्रहस्थोने देम कुशलनुं पुब्बु तथा स पूर्व क्रिमानुं सजारबुं तं ते सर्व संसार जमवानो हेतु जाणीने वि० मीत प० परिहरे.२१ जावार्थः- हवे जुलं ! इहां पण ग्रहस्थीना घेरे बेस, वज्यु ले. वली दसवैकालीक सूत्रना तोजा अध्ययनमां ग्रहस्थोना घेरे बेसे तेने श्रणाचारी को जे. इत्यादिक अनेक ठेकाणे सूत्रमा ग्रहस्थीना धेरै बेसबुं वज्यु बे. बता तमे एटलां केवलीनां वचन ग्थापीने, पेट नराश्ना वास्ते ग्रहस्थीमा धेरे बेसवु केम स्थापो हो ? Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. (४४१) . वली टोटावाला सराफनी माफक लोकोमा सफाइ दर्शाववाने बास्ते तेरापंथो कहे के " सूत्रमा कह्या सिवाय किंचीत मात्र काम करीने प्रायश्चित न ले तेने साधपणाथी भ्रष्ट कह्यो बे.” एवी परुपणा करे बे; पण पोतेतो सूत्रमा कह्या वीना घणां कर्तव्य करे . ते ए के प्रथम तो ग्रहस्थीना घेरे बेसबुं स्थापे , अने पात्रांने रागान तथा रंग खगामवा माटे रोगान वासी राखवानी स्थापना करे . माटे तेरापंथीने पुन्बु के, तमे पात्रांने रोगांन लगावो बो तथा साथे लश्ने गामोगाम फर्या करोडो तथा वासी राखो लो, अने वला तोटो बुपा. पवाने अर्थे तथा श्रणसमजु लोकोने उगवाने वास्ते कहो बो के, सू. त्रमा कह्या विना किंचीत्त मात्र काम करे तेनामां साधपणुं नथी. त्यारे पातराने लगाववा सारु रोगान वासी राखवो कया सूत्रमा कडं ते बतावो. तमे तो ए काम सूत्रमा कह्याविना करो बो. हवे तमारी केहेपीने लेखे तमारामां साधपणुं डे के नह। ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे डे के “ जेम तमारा बावीस संघामाना साधु पात्रांने रंग रोगान लगावे ने तेम अमे पण लगावीए जीए." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! बावीस सिंघामाना साधुतो चश्मा पण राखे बे, रोगान पण पात्रांने लगामे बे, अने सोय नाग्याना प्रायश्चितनुं बेडुं तथा सोय गुनाव्यानुं तेलु करे , अने काचा पाणीनो गटो मागे तो अपवासनुं प्रायश्चित ले जे इत्यादिक घणां कामनो सूत्रमा निर्णय नथी ते जेम जितव्यवहारमा कयुं अने जेम वमा वमेरा करता चाव्या तेम करे ले. ते जितव्यवहार मानवो कह्यो . तेनी शाख सूत्र जमवती शतक थाम्मे नद्देशे थाम्मे, तथा व्यवहार सूत्र उद्देशे दसमे. ए.न्याये अमारा बावीस टोखाना समुदायना साधु तो जे कामनो सू. अमां मार्सय नथी ते सर्व जितव्यवहारथी करे बे; अने जितव्यवहारथी वर्ते तेने जगवते श्राझाना थाराधक कह्या . ए न्याये अमे तो जीन्सव्यवहारथी सर्व काम करीए बीए; अने तमे तो जीतव्यवहारमा बीजां तो प्रायश्रितःप्रमुख सर्व काम उयात्री दीया; अने रोगान Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिदान्तसार प्रमुखनी वेलाए बीजा संघामाना साधुनुं उटुं त्यो बो के “जेम तमे करोडो तेम अमे पण करीए बीए.” अहो देवानुप्रीय ! श्री निषित सूत्र प्रमुखमां पात्रांने त्रण पसली तेल लगाम कर्वा डे तथा त्रण पसली लोड प्रमुखनो रंग लगामवो कह्यो . ते तेल तथा लोनो रोगान बने बे, तेथी मेरा आचार्योये पात्रांने रोगान लगाववो स्थाप्यो बे. ते जीत व्यवहार जे. ते तेलनी नेत्राये जीतव्यवहारथी श्रमे रोगान लगावीए बीए. वली तेल रोगान वासी राखवो न जोइए. बतां केक सिंघामामां वासी राखे , पण ते तमारी पेठे स्थापना करता नथी. तमे तो कहो बो के सूत्रमा कह्या सीवाय काम करे तेनामां साधपणुं नथी, अने वली रोगान वासी राखवानी तो स्थापना करो बो; पण जगवंते तो तेल, रोगान प्रमुख वासी राखे तेने साधपणाथी नष्ट कह्यो तथा ग्रहस्थी सरखा कह्या ले. शाख सूत्र दशवैकालीक अध्ययन बढे अढार बोल माहेला पांचमा बोलमां. ते पाठः विममुद्ये इमं लोणं तिल्लं सप्पिं च फाणियं नते, संनिही मिति नायपुत्त व रया. ॥ १७ ॥ लोनस्ससम गुफासे मन्ने अन्नय रामवि जे सिया संनिदिकामी गिही पवइए नसे. ॥१५॥ अर्थः-हवे पांचमा स्थानकनी विधि कहे . वि० बिम खवण समुजादिवर्नु ३० एवा प्रकारचें खो बुंण ति तेल सा घी फा ढोलो गोल न० एटलां वानां ते यति सं० वासी राखवां मिन वान्डे ना श्री माहावीरदेवनां व० वचने र जे रक्त तत्पर होय ते. लोग लोजर्नु अणु० थोडं पण सेवईं (जे वासी खावू ) ते, अने म अनेरी बीजी वस्तु थोमी पण जे जे यति सि कदाचीत संग स्निग्ध खावानी वस्तु वन्डे ते गि० ग्रहस्थी पण नही अने प० यति पण नही. . नावार्थ:-हवे आ पाठमां एम कथु के, वोर वचनमां रक्त थयो होय ते साधुए बुंण, तेल, गोल, घृत प्रमुख वासी राखवानी वा Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. न्ला करवी नही; अने जे कोई किंचीत मात्र वस्तु वासी राखवानी वान्या करे तेने सोननो सेवणहार तथा पांच माहानतनो विराधक ग्रहस्थ केहेवो; पण प्रवर्जित साधु न केहेवो. हवे जुउँ ! आ पाठमां तेल वासी राखे तेने नगवंते ग्रहस्थी सरखो कह्यो बे. ते तेलनी नेाये रोगान लगावीए बोए. तमे रोगान वासी राखवानी स्थापना केम करोबो? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, “ श्रहीयां तो खावाने वास्ते तेलादिक वासी राखे तेने ग्रहस्थी सरखो तथा साधपणाथो नष्ट कह्यो ; पण पात्रांने लगामवा वास्ते तेल रोगान वासी राखवो क्या वो ठे? तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! श्रीवीतरागदेवतुं वचन नत्थापीने एवी ढीला केम स्थापो बो ? जुन नषिथ सूत्रमां, गुममांने लगाववानो मलम तथा गोबर प्रमुख वासी राखे तेने चोमासी पायश्चित कडं . त्यारे तेल रोगान वासी राखशे तेने दोष केम नही लागशे? अने तेल रोगान वासी राखवानी स्थापना करशे तथा दोषने निर्दोष स्थापशे तेनामां (सम्यक्त) साधपणुं केम रहेशे ? वली तेल, अलसी, रोगन, मीण अने साबु प्रमुख वासी राखे ते तो कर्मनो उदयन्नाव ; पण वासो राखवानी स्थापना करो बो ते घणुं अजुक्तुं करो बो. वली तमे कहो बो के “ खावानी वस्तु वासी राखे तेने ग्रहस्थी सरखो कह्यो , परा रोगान, तेल, ए खावानी वस्तु नथो तेथो वासी राखीए बीए.” ए लेखे तो आंखोमां घालवानो उसो (सुरमादिक ), गुंबमांने लगाववानो मलम तथा पुखता शरीरे लगामवानुं तेल, घृत, पुगं प्रमुख करवाने चावल तथा गहुँनी लाही अने साही हींगलो प्रमुखमां नाखवाने गुंद इत्यादिक खावा वीना अनेक कामने वास्ते अनेक वस्तु तमारी केहेणीने लेखे वासी राखताज दशो; पण दस वैकालोकना त्रीजा अध्ययनमां दसमा अणाचारमा तेलादिक वासी राखे तेने श्रणाचारी कह्यो डे तथा नषित सूत्रमा चोमासो प्रायश्चित कडं . तेमज दसाश्रुतकंध, उत्तराध्ययन अने प्रश्नव्याकरण प्रमुख घणा सूत्रमा गम ठाम तेखादिक वासो राख, वज्यु जे. ते जागजो. Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४४) + सिदान्तसार.. हवे तेरापंथी साधवी साथे संसतो परिचय करे ने श्रने स्थापे . तेनुं वर्णनः__वली ढीला, पासत्था, सुखसेलीया अने जीनना लोसपी, साधवीनां श्राहारपाणी ले डे पण गणायांग सूत्रना त्रीजा गणामां काम पड्याथी त्रण प्रकारे साधवीने बोलावq का. तेमां काम पड्याथी आहारादिक देवो देवराववो कह्यो; पण साधवीनो श्राहार पाणी लेवो तो, पत्रीस सूत्रमा क्यांय कडं नथी. बतां तेरापंथीना साधु बारजानो श्राएयो आहार पाणी ले ले. हवे गणायांगमा थार्जाने देवो देवराववो कह्यो बे, ते पण काम पड्यां अशातादिक कारणे कह्यो संलवे बे; कारण के सुखे समाधे साध साधवीने मांहोमांदी आलोवणा लेवी तथा मांदोमांदे आहार पाणी प्रमुखनी वैयावय करवी, एके कस्पे नही. शाख सूत्र व्यवहार नद्देशे पांच में. ते पाठः जे निग्गंथाय निग्गंथीनय संजोश्यासिया णोएहंकप्पति अन्नमन्नस्स अंत्तिए आलोइए. अगिया इचएदं के आलोयणारिदे कप्पतिणं तस्स अंत्तिए आलोश्त्तए. णन इबएदं केइ अण्हे आलोयणारिहे एवणं कप्पत्ति अमममस्स अंतिए आलोश्त्तए. जे निग्गंथाये निग्गंबिज्य संनोश्यासिया नोन्दंकप्पति अम्मममस्स अंतिए वेयावचं करितए अबियाश्णं वयाइणं वयावच्चंकरे कप्पतिएहं तेणं वेयावचं करावित्तए. णबियाइणं के वेयावच्चंकरे एवणं कप्पत्ति अममम्मेणं वेयावच्चं करावित्तए॥ अर्थः-जे जे कोइ नि साधु नि साधवी सं0 बार प्रकारना संजोगो ने तेमने णो न करपे अ० मांदोमांही एकेकनी अंग समिपे आ आलोयणा लेवी. अन् इ० एमने के जो को आप पालोयणनो देणहार श्राचार्य तोक कल्पे तिते साध साधवीने तणते आलोयण Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 3 +सिदान्तसार.. देणहार श्राचार्यनी अंग समिपे प्राण प्रालोयणा लेवी. १० नथी इ० ए साध साधवीने के कोश्रण अनेरो श्राप पालोयणनो देणहार प्राचार्य एस. एम होय तो का कल्पे अ० मांदोमांही एकेकनी अंग समिपे श्रा० आलोयणा लेवी. जण जे कोश नि साधुने नि साधवीने सं० बार प्रकारना संनोग डे पो तेमने न कल्पे अं० मांदोमांही अंग साधु साधवीनी समिपे अने साधवी साधुनी समिपे जश्ने वेगवैयावच करवी. अण्डे ३० इहां को अनेरा साध साधवी व वैयावचना करणहार का कल्पे ते साध साधवीने ते ते कने वेग वैयावच का कराववी. नथी श्हां क को अनेरा वे वैयावचना करणहार ए जो एम होय तो क० कल्पे अ० मांदोमांदी वेवैयावच का कराववी. अर्थः हवे जुन ! हां एम कयु के, बार प्रकारना संन्नोगी होय ते साध साधवीने कदाचित दोष लागे तो ते दोषनी पालोयण लेबी जोइए; पण ते मांहोमांही लेवी न कल्पे. अनेरो कोइ गुणसंपन्न मा. सोयणा देवा योग्य आलोयणाचार्य होय तो तेनी कने बालोयण सेवी कल्पे. हवे जो एवा गुण संपन्न बालोयणना देणहार त्यां न होय तो ते कारणे मांहोमांही पण बालोयणा लेवी करपे एम कडं. हवे जेम बालोयण खेवानी विधि कही, तेम वैयावच पण माहोमांही एकेक पासे करवी कराववी नही. ते वैयावच गणायांगना त्रीजा गणे त्रण प्रकारनी कही बेः- आहार, पाणी, वस्त्र, उपगर्णादिकनुं देवू १, मात्रादिकनु परग्वदूं २, अने तेलादिक मसलवू, दाबवु तथा चांपवु ३. वली श्री प्रश्नव्याकरणजीमां घणा प्रकारनी वैयावच कही ले. ते वैयावच साध साधवीए मांहोमांही करवी नही. हवे कोश् रोगादिक कारण उपजे तो वैयावच करवा योग्य को अनेरा पासे वैयावच कराववी; अने वैयावच करवा योग्य न होय तो अपवादमां मांहोमांही पण वैयावच करवी कल्पे कयु. एम करतां संघटादिकनो शंका उपजे ते जांजवाजणी चोवीसमुं सूत्र कहीये बीये. ते पाठः Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४६ ) सिद्धान्तसार. + णिग्गंथचणं राठवा वियालेवा दोह पुठो लुसेवा तं इएवा पुरिसो उमद्या पुरिसोवा इत्रिए उमवेद्या एवं से कप्पति एवं चित्ति परिदारंच णो पाउणत्ति एसकप्पो थेर कप्पीयाणं. एवं से नोकप्पत्ति एवं से नो चित्ति परिहारंच पाउण एसकप्पो जिएकप्पीयाणं. अर्थः - वि० साधु साधवीने रा० रात्रे वि० पमिकमणादिकनी वेलाए तथा बपोर इत्यादिक वीकट वेलाए दी० दीर्घ सर्प पु० स्पश्यां थकां लु० लुसे, ख दे, करके, एवो मस्यो होय त्यारे तं० ते इ० साधवीने ते मंखे तो पु० पुरुष ग्रहस्थ तेने हाथे करी ७० दंसनी चिकित्सा करावे, अने पु० पुषेने ( साधुने) मंखे तो इ० ते गृहस्थलीना (स्त्रीनी (जातना) दाथे करी न० दंसनी चिकित्सा करावे. ए० एम से ते स्थिवर-कल्पीने क० कल्पे ( अपवाद मार्गे). ए० ए प्रकारे चि० रहे स्थिवर- कल्प। ते चष्ट न थाय प० परिहार तप पण ते न पामे. ए० ए कल्पाचार थे० स्थिवर-कल्पीनो कह्यो. दवे जिन कल्पीनो याचार कहे बे.: - ए० एम स्थिवर कल्पोनी परे से० ते जिन कल्पीने नो० न कल्पे. ए० एम से० ते जिन कल्पीपणुं नो० न रहे. प० पायश्चित पण पामे. ए० ए चार जिन कल्पीनो केदेवो. ए प्रकारे वैयावचनुं कराववुं जिन कपीने न कल्पे. (ते उत्सर्ग मार्गे प्रवर्ते बे ते माटे ). भावार्थ:- हवे जुई ! साध साधवीने मांहोमांदी अपवादे वैयावच करवी कही. त्यां संघटानी शंका उपजे ते टालवा माटे कयुं के, सर्पादिके दंप दीधो दोय तो साधु साधवी स्त्री पुरुषकने जामो देवरावे. ए कामो देवराववानो कल्प स्थिवर-कल्पीनो वे, तेथी ते प्रायश्चित न पामे; पण जीन-कल्पीने कामो देवराववो कल्पे नही, तेथी जो कामो देवरावे तो प्रायश्चित पामे. वली अपवादमां अपसरते वैयावचने श्रर्थे संघटादिक करतां जगवंत । श्राज्ञा श्रतिक्रमे नही. शाख सूत्र वृहतकल्प उद्देशे बहे . ते पाठः Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४७ ) निग्गंथस्य प्रदेपायंसि खाणुवा कंटएवा दिरएवा सकरेवा परियावजा तंच निग्गंथे नोसंचाएइ निदरित - एवा विसोदित्तएवा तंच निग्गंथी निदरमाणीवा विसोदेमाणीवा पाइकमs. निग्गंथस्स चिंसि पाऐवा बीएवा रएवा परियावोका तंच निग्गंथे नोसंचाएइ निहरितएवा विसोहित्तएवा तं निग्गंथी निदरमाणीवा विसोहीमा - एवा पाइकमइ. निग्गंथीए प्रदेपायंसि खाणुवा कंटएवा बाहिरेवा सकरेवा परियावजेजा तंच निग्गंथी नोसंचाएइ निहरितएवा विसोहित्तएवा तंच निग्गंथे निदरमावा विसोदेमाणेवा पाइकम्मइ. निग्गंथीए अहिंस पाणेवा बिएवा रएवा परियावजेजा तंच निग्गंथी नोसंचाएइ निदरितएवा विसोदित्तएवा तंच निग्गंथे निदरमाणेवा वीसोहेमाणेवा पाइकम्मइ. निग्गंथे निग्गंथी दुगंसिवा विसमंसिवा पवयंसिवा पखलमाांवा पवममाणंवा गिन्हमाणेवा अवलंबमाणेवा पाइक्कम्मइ. निग्गंथे निग्गंथी सेयंसिवा पंकंसिवा पणगंसिवा उदगंसिवा उकसमा - गांवा नवुऊमाणेवा गिन्हमाणेवा अवलंबमाणेवा पाइकम्मइ. निग्गंथे निग्गंथी नावं आरोहमाणंवा नरोढमाणंवा गिन्द्रमाणेवा अवलंबमाणेवा पाइकम्मइ. खित्तचित्त निग्गंथी निग्गंथे गिन्दमाणेवा अवलंबमाणेवा पाइकम्मइ ॥ अर्थः- पूर्ववत् जुर्ज प्रश्न बीजे पाने २२४ में. : सिद्धान्तसार. जावार्थ:- दवे जुन ! या पाठमां कथं के, साधुना पगमां खीलो, कांटो, प्रमुख नांग्यो होय तथा श्रांखमां प्राणी, बीज, रज प्रमुख पढयां होय अने पोते काढवा समर्थ न होय त्यारे साधवी काडे Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (nt) + सिदान्तसार.. तो माज्ञा अतिक्रमे नही अने साधवीना पगमा खीलो कांटो,प्रमुख नांग्यो होय तथा आंखमां प्राणी, रज, बीज प्रमुख पमयुं होय ते पोते काढवा समर्थ न होय त्यारे साधु काढे तो श्राज्ञा अतिक्रमे नही. वलो वसमी जग्याथी तथा पर्वतादिकथी पमती साधवीने तथा जल काद आदिकमां लपसती, पमती तथा मुबती साधवीने तथा ( नावा) वाहाणे चढतां नतरतां पमती साधवने, साधु महतो थको प्राज्ञा अतिक्रमे नही. श्रागल वली कंदर्प चित्ते करी, लोनादिके करी अने जक्षाविषे करी जाती साधवीने साधु काली राखतो थको आज्ञा अतिक्रमे नही. जेम पग तथा अांखमां खीलो, कांटो, रज, बीज प्रमुख साध साधवी पोते काढवा समर्थ न होय त्यारे साधु साधवीने अने साधवी सा. धुने काढतां प्राज्ञा अतिक्रमे नही; पण जो साधु पासे साधु अनेसाधवी पासे साधवी काढनार होय तो मांदोमांहे कढावq कल्पे नही. तेमज पाहारादिक त्रण प्रकारनी वैयावचनी बाबतमां पण व्यवहार सूत्रना पांचमा नद्देशामां कडं ले के, साधु पासे साधु करवा वालो होय अने साधवी पासे साधवी करवा वाली होय तो साधुने साधवी पासे अने साधवीने साधु पासे वैयावच कराववी कटपे नही. ते बतां तमे सुखे समाधे आर्यानो लाव्यो थाहारादिक केम स्यो हो अने आर्याने केम आपो बो ? वली पुंज, पलेव, सीव, पात्रां प्रमुखनुं रंगवू अने धोवू माद दइ अनेक काम थार्या कने केम करावो बो ? थोमा जिवितव्यने कारणे प्रजुनां वचन नत्थापीने श्रार्याथी अलाप सलाप, संसतो परिचय अने आहारादिक लेवो देवो केम स्थापो बो? ___ वलो आर्या साथे विहार करे तो निषित सूत्रना पाठमा उद्देशामां चोमासी प्रायश्चित कडं बे. तेमज साध साधवीने एक दरवाजे दिशा मात्रे पण जq वज्यु ले तथा एक दरवाजे एक दिशे विहार करवो व. ज्यों ने बतां तमे सत्रनां वचन नथापीने श्रार्या साथे विहार केम करोबो? एवी ढीला उबा जीवीतव्यने कारणे अंगीकार केम करोडो ? चक्षी भार्याने साधुजी रहेता होय ते नपाश्रयमा ज्ञानादिकना प्रपोग Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार (४४९ ) विना बेसवु नवु कल्पे नही. एक तो ( समोसर्णमां) व्याख्यानमा श्रावq कडं, ते प्रखदामा चार हाथ पनानी पडेमी प्रमुख उढीने, सर्व हाथ पग प्रमुख अंग उपांग ढांकीने बेस कह्यु, श्रने एक पोतानी पासे जणाववावाली गीतार्थ आर्या न होय तो साधुजी पासे वांचणी लेवा सारु श्रावq कल्पे कयु: ए बे झानना प्रयोगने अर्थे श्रार्याने साधुना उपाश्रये श्रावq कडं . ए ज्ञानादिकना प्रयोग विना साधु रहेता होय ते जग्यामां आर्याने श्रावीने उठे रहे, बेसबु, सुई के थाहारादिक कां पण काम करवं कल्पे नहीं; अने साधुने साधवी रहेतो होय ते जग्यामां उतुं रहे, बेसवु, सुर्बु तथा चार थाहार करवा कल्पे नही; तेम कांश पण काम करवू कस्पे नही. शाख सूत्र वृहत्कल्पना त्रीजा उद्देशामां. ते पाठःनोकप्पक्ष निगंथाणं निग्गंधीणं अवस्सयंसि चित्तिएवा निसित्तएवा निदाइत्तएवा तुयहित्तएवा पयलाश्तएवा असणंवा ४ आहारं आहारित्तए उचारंवा ७ पासवणंवा खेखवा सिघाणंवा परिहवित्तए सघायंवा करित्तए जाणंवा जाश्त्तए कासगंवा हाणंवा हाश्त्तए. नोकप्पश् निग्गंथीणं निग्गंथाणं अवस्सयंसि चिहित्तएवा निसिश्त्तएवा तुयटित्तएवा निदाश्त्तएवा पयलाश्त्तएवा असणंवा आदारमादरित्तएवा उचारंवा ४ परिछवित्तए सद्यायंवा करित्तए कासगंवा गणंवा गश्त्तए.॥ अर्थः-नो न कल्पे नि साधुने नि साधवीना ना नपाश्रयने विषे चि० सेहेजे उठे रहेQ १ नि बेस २ तु सुदुं ३ नि निंदा सेवी ४ प० विशेष निडा लेवी ५ अ असनादि चार थाहार करवा : ६, नु वमीनीत पा लघुनीत ७ खे० बलखो ए अन सि० नासिकानो मेल १० प० परग्ववां, सण सकाय करवी ११ जाए ध्यान ध्यावयूँ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५०) +सिदान्तसार.. १२ का सेहेजे कानसग करवो १३ अने ग बारमी पमिमा गववी २४ एटला वानां करवां न कल्पे. नो न कल्पे नि साधवीने नि साधुना न० नपाश्रयने विषे चि उठे रहेQ नि बेसवु तु सुवु नि निसा लेवो प० विशेष निषा लेवी, श्र० असन, पान, खादीम, स्वादिम ए चार श्रा० थाहार करवा, न० वमीनीत आदि चार प० परविवा, सण सजाय करवी का कानसग करवो ग० (पमिमा) मर्यादानो कानसग ग० करवो. एटलां वानां करवां न कल्पे. नावार्थः-हवे जुड़ ! श्रा पाठमां तो एम कयु के के, साधुजीने साधवीना नपाश्रये जश्ने उजु रहेवू नही १, बेसवू नही , सुवू नही ३, निंजा लेवी नही ४, विशेष निंजा लेबी नही ५, अस्नादिक चार श्राहार करवा नही ६; उचार , पासवण , सिंघांण ए अने खेल १०, परश्ववां नही, सकाय करवी नही ११, ध्यान धरवू नही १५, सेहेजनो कानुस. ग्ग करवो नही १३, अने जिखुनी पमिमा गववी नही. ए चौद बोल अने थाहारना बाकीना त्रण गणीये तो सतर थाय. ए. बोल साधुने साधवीना उपाश्रये जश्ने करवा कल्पे नदी; तेमज साधवीने साधुना नपाए जश्ने करवा कल्पे नही. श्री वीतरागदेवनी आझातो एम बे, श्रने तमे तो सूचनां वचन तथा वीतरागदेवनी आज्ञा उथापोने आरजाने श्राखो दीवस घणीवार सुधी बेसामी राखो बो, आहार पाणी स्थानकमां बेसीने करो बो, श्रारजा पण तमारे स्थानके बेसीने आहार पाणी तथा सझाय करे , खंखार प्रमुख परग्वे , माहोमांह। वातो करो बो अने पुंजवं पलेवण प्रमुख आर्याकने करावो बो. एवी रीते श्रारजाथी संस्तव परिचय राखो बो ते घणुंज अयुक्त काम करो बो. वली उत्तराध्ययनना १६ मा अध्ययनमां ब्रह्मचर्यनी नव वाम कहो बे. त्या स्त्री रेहेती होय ते जग्यामां ब्रह्मचारी साधुने रेहेवू नही, स्त्रीना सामुं नजर मेलवीने जोवू नही तथा स्त्रोनां अंगोपांग नोरखवां नही; कारण के नव वाम मांदेली एक वाम नागे तो तेना ब्रह्मचर्यने विषे शंका कंखा तथा वितिगिच्छा नपजे, अने ब्रह्मचर्य पावँ के न पाडं एवा Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. प्रणाम थाय, अने संयमथी, संवरथी तथा केवसी-पुरुप्या धर्मथा नष्ट थाय, एम कडं . तमे आखो दीवस आर्याने पासे लइने बेग रहो बो, वातो करो गे श्रने तेना सामुं जोया करो बो. हवे तमारी वाम शी रीते रेशे ? वली स्त्रीनो परिचय तो गम गम निषेध्यो . तमे उबा जिवितव्यने कारणे एटलां सूत्रनां वचन नथापीने, आर्यानी साथे विहार करीने, थार्यानो लाग्यो आहार पाणी लश्ने अने आर्यानो संस्तव परिचय करीने, जैन (धर्म) मार्ग केम खजावो बो? हवे तेरापंथोनी नीत्य-पिंक लेवानी लीला कहीए बीए. वली सरस थाहरना जि, रसना लोलपी, पेहेले दोवसे तो घेरे वहोरे, मने बीजे दीवसे तेज श्रावकना हाटे तथा रस्तामां घृत, सुखमी प्रमुख रोजनां वोहोरी ले बे; पण सूत्रमा तो नित्य-पिंक लेवो गमगम वयों जे. हवे तमे नित्य नित्य केम वोहोरो डो? वली बीजा केटलाक संघामामां नित्य धोवण ले , ते बाबतमां तमे कहोबो के, सूत्रमा वा ते एक पण बोल सेवे तेमां साधपणुं नको. त्यारे तमे नित्यने नित्य सरस थाहार घर, हाट अने रस्तामां वोहोरो बो तेथी तमारुं साधपणं शीरीते रहेशे ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के " सूत्रमा तो एक घरनो नित्य लेवो बज्यों डे, पण पेहेले दीन जे घेरे वोहोर्यु ते धणीनुं बीजे दीवसे हाटमा तथा रस्तामां वोहोर क्या वज्यु ले ? तेनो उत्तर. हे देवानुमीय! कोइ मेला तथा फोजमां पाल (तंबु)मां रसोइ करे ले. कोश् उकानमां, को बत्रीमा तथा कोश् वृक्ष हे रसोइ करे बे. इत्यादिक ठेकाणाने घर तो न कहेवाय. हवे तमे कहोबो के, एक घरनुं नित्य वोहोवु वज्यु . त्यारे तमे पूर्वोक्त पाल प्रमुखमां नित्य केम नथी वोहोता ? तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ घरनुं का कारण नथी. ग्रहस्थ रहे तेज घर ले. जे जग्याए पेहेले दीवसे वोहोर्यु होय ते जग्याए बीजे दी. वसे वोहर नही; पण घर- केत्र अने हाट तथा रस्तानुं क्षेत्र जुदां बे. Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ते पेहेले दीसे घेरे वोहोरीए बीए ने बीजे दीवसे होट रतामां वोहोरीए बीए; केमके क्षेत्र जुदां वे तेथी अटकाव नदी. एक hani नित्य वोहोतुं नही. " एम कुयुक्ति लगावे बे. तेनो उत्तर. दे दे - वानुप्रीय ! एक बारणामां बीजे घेरे बीजे दीवसे वोहोरो के नही ? जो रसोमा, परसाल तथा उरमाने बीजुं क्षेत्र गणता हो तो, जे रसोमा प्रमुखमा पेले दीवसे वोहोर्यु दोय, तेज रसोमा प्रमुखमां बीजे दीवसे बीजानो कटोरदान पड्यो दोय ने स्नादिक वोहोरावे तो वोहोरो के नदी ते कहो. ( ४५२ ) वारे तेरापंथ । कदे बे के " पहेले दीवसे वोहोर्यु दोय ते धणीनुं बीजे दीवसे न वोहोर, पण बीजा घणीनो माल होय तो तेज जग्यामां वोहोरानो टकाव नहीं ? " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तमे केहेता दता के एक क्षेत्रमां नित्यनुं न वोहोरयुं, त्यारे ए एक क्षेत्रमां केम वोहोरो ? तमे ए धणीनो माल टाल्यो के क्षेत्र टाल्युं ? तमे पेट जराइना वास्ते श्रणसमजु लोकोने घरनुं, हाटनुं श्रने रस्तानुं क्षेत्र जुडुं जुडुं केम कहो हो ? वली घरनुं अने दाटनं क्षेत्र जुडुं जुडुं कहीने नित्य वोहोरे छे, तेने पुढवुं के, बेतालीस दोषना द्रव्य, क्षेत्र, काल, नाव को नित्य - पिंमनो द्रव्य, क्षेत्र, काल, नाव कहो. दवे द्रव्यथकी तो चार आदार एक धणीना नित्य न लेवा क्षेत्र श्रकी क्यांय न लेवा, काल की नित्यना नित्य न लेवा, अने जावथकी उपयोग सहित त्रण करण अने त्रण योगे करीने लेवा. हवे तमे पेट जराइ ( वोहोरवा ) ने वास्ते घरनुं ने दाटनुं क्षेत्र जुडुं केम स्थापो बो? कारण के नित्य एक घरनुं वोहोरे तो दसवैकालोक सूत्रना त्रोजा अध्ययनमां त्रीजा अणाचारमां अणाचार | कह्यो बे, अने तेज सूत्रना बग अध्ययनमां अढार बोल माहेलो एक पण बोल सेवे तेने साधपणाथी चष्ट कह्यो बे. मां तेरमा बोलमा नित्य एक चरना चार आहार ले तो तेने साधपपाथी ष्ट कह्यो बे. वली नपित सूत्रमा नित्यना चार आहार वोहोरे तो चोमासी प्रायश्चित कयुं बे. इत्यादिक सूत्रमां ठाम ठाम नित्यनुं Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ४५३ ) वोहोरतुं वज्युं छे. एटलां सूत्रनां वचन उत्थापीने आहारना प्रधिका घरनुं, दाटनुं वने रस्तानुं क्षेत्र जुडुं स्थापीने नित्य एक घरनुं वोहोरवानी स्थापना करीने अनंत संसार केम वधारो बो ? वली पूर्वोक्त जसा विहार करवो, तेमनुं श्राहार पाणी लेवुं तथा तेमनो संस्तव परिचय राखवो, ए तो व्यवहारज अशुद्ध बे; अने जिनमार्गमां तो शुद्ध व्यवहारनेज प्रधान को बे. दाखला ः— नरत माहाराजे केवलज्ञान उपन्या पढी वेश पालटयो, ते वेश पालट्या विना केवलज्ञान कांइ पाहुं तो नहोतुं जातु; पण व्य वहार राखवा माटे ग्रहस्थीनो वेश उतार्यो. वली जुगलीयामां जाइ जगन जोग करीने मरीने देवलोकमां जाय बे. ते काम श्राज कोइ करे तो व्यवहार मार्ग लोप्या माटे मादा अनार्य केदेवाय. बाकी जीव हिंसा तो सरखीज बे. वली श्री वीरप्रभु जाणता दता के, बे साधु म. रशे, तोपण व्यवहार राखवा माटे तेमने बोलवा वर्ज्या. वली चावक आरंमां (परिम) तो बेग बे, पण लोक लज्या माटे चोराइ वस्तु न लेवी कही. वली माहावीर भगवान जाणता दता के, मारा रोगनी थिती पाकी बे तेथी जाशे, तोपण व्यवहार राखवा माटे तथा बीजा साधुने औषधनो नृपगार जणावा माटे औषध लीधुं बे. वली साधु मेह वरसतां स्थानकमां आवे, पण एकली स्त्रीना घेरे बना रहे नही. मार्गमां चालतां जो बीजो मार्ग न होय तो दरिकायनुं पाप करे, पण लोकीक व्यवहार अशुद्ध तेथी स्त्रीनो संघटो न करे. वली राजा प्रमुखना मकाय कही, ते पण लोक विरुद्ध माटे. वली केवली रात दीन सरखं देखे बे, पण व्यवहार राखवा माटे रातना न चाले. वली स्नेह बंधण थाय तेना जयथी मास चोमास उपरान्त साधु न रहे, पण जो स्नेह बंधणदार होय तो रेहेने मिने राजेमतोनो एक रुपमां स्नेह थर गयो; पण व्यवहार राखवा माटे अधिक रहे तो व्यवहार जंग थाय मोटु पाप लागे. वली सतुकारमां सो जाने निपन्यो तेमांथी शेर आहार न ले; पण घरमा दस जलाने निमित्ते आहार निपन्यो ते - नी Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५४ सिद्धान्तसार. मांथी शेर थाहार ले, कारण के सतुकारनो आहार लेतां लोकमां जिन मार्गनी लघुता लागे ते माटे न ले. वली मेड् वरसतां गुरुने देह चिंता नपनी, ते वखते एक शिष्य कहे के हुं तो नही परतुं, केमके जीवनी सा लागे; ने बीजो परठवे बे. ए वेमां व्यवहार शुद्ध कोण ? अने श्राराधिक कोण ? इत्यादिक व्यवहार-मार्ग नपर प्रश्न घणा बे. जेणे व्यवहार लोप्यो तेणे निश्चे पण लोप्यो जावो; अने जेणे शुद्ध व्यव दार राख्यो तेने मुक्ति फल आसन बे. वली श्री मल्लीनाथ जगवान श्रवेदी इता, पण व्यवहार राखवा माटे श्रारजानी प्रखदामां रेहेता. हवे तमे व्यवहार लोपीने, धारजानो संस्तव परिचय करीने, नित्यने नित्य घेरे, हाटे ने रस्तामां वोहोरीने जिनमार्गने केम लजावो हो ? वली तेरापंथी, साधुजीने नदी उतर्यामां धर्म कहे बे ने नदी तरवीने जगवंतनी श्रज्ञामां कहे बे; पण जगवंते नत्सर्ग (घोख) मा - र्गमां नदी उतरवानी आज्ञा बत्रीस सूत्रमां कोइ पण ठेकाले थापी नथी. फक्त अपवाद मार्गमां अपसरते ज्ञान, दर्शन छाने चारीत्रना गुण राखवाने अर्थे अथवा ज्ञानादिक गुण वधारवाने कार्थे तथा लानने नदी नतरवानी विधि नलखावी बे. जेम शेठ गुमास्ताने मालना जापतानी शीखामण आपे के “ विना खर्चे माल जापताथी पोहोंचामी देजे. " हवे जो गुमास्ताने विना खर्चे माल पहोंचशे तेतुं न जणाय तो दुकी. जाऊं, जोखम, बोलावु, लागत, खर्च खाते गणीने माल पड़ोंचा. ते जगवंते तो साधुने संजमरुप माल यतनापूर्वक निर्वादने प्रज्ञा श्रापी . वे जो नदि यदिक नतरवारुप द्रव्य-हिंसा या विना संजमरुपी मालनो, साधु था जन्म पर्यंत निर्वाह यतो देखे तो तो तेमज करे; पण ज्ञानादिकना जापता जणी तथा ज्ञानादिक व धारवाना लाने अर्थे साधु नदी उतरे, ते पाप खाते जाणे पण दर्ष माने नही; अने पोतानुं चालतां सुधी दसवीस गाउनी अवलाइ पकतां नदी न उतरवी पने तेम करे. दवे जुड़े ! जो नदी नतर्यामां धर्म होय तो वलाइ केम खाय ? साइमुं हर्ष धरीने नदी उतरव । जोइए; पण Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( ४५५ ) नदी उतरवामां धर्म न जाणे. धर्मतो नृपशम, क्षयोपशम छाने कायक नावे बे, अने नदी उतरवी तेतो उदय जावे ते. वली जो नदी उतरवामां श्राज्ञा धर्म जागो तो उपशम भावना अग्यार बोल, क्षयोपशम जावना पचास बोल अने दायक भावना सामत्रीस बोल अनुयोगद्वारमां का बे. हवे नदी उतरवी ते कया बोलमां बे ते कहो. उपशम, क्षयोपशम तथा कायक जावना बोलोमां तो नदी उतरवी ते नथी, अने जगवंतनी थाज्ञातो ज्ञान, दर्शन, चारीत्र अने तपनी बैं. नदी उतरवी ते तो नदयनावमां बे. ते उदयन्नावने तमे आज्ञा धर्म केम कहो हो ? "" वारे तेरापंथ कहे के " नदीमां सीजे का बे. नदी उतरतां केवलज्ञान उपजी जाय. पाप होय तो केवलज्ञान केम उपजे ? तेनी उत्तर. हे देवानुप्रीय ! नदी उतरतां तो सीजे नही, कारण के नदी उतरवी तेतो कायाना योगथी ( पग उपामवाथी) बे, अने सि. तो मन, वचन छाने कायाना जोग निरोध कर्याथी अजोगी (चोदमें) गुणठा अंतर्मुहूर्त रहिने सिद्ध थाय ते तमे नदी उतरतां सिक केम कहो ढो ? नदीमां, समुद्रमां तथा जलमां सीजे कह्या, तेतो सादारण श्री जाणवुं; केमके देवतादिक बद्मस्थ साधुने श्राकाशयो पटकतां मार्गमां केवलज्ञान उपजी जाय. ते जोग निरोधी अजोगीप मां पाणी मां परुतां मुक्ति जाय ते श्राश्री कयुं बे; पण नदय आवे कायाना जोगथी चपलाइ करतां तथा नदी उतरतां मोह जाय नही. हवे तमें नदी उतरतां केवलज्ञान उपजे कहो तो बो, पण केवलज्ञानती कायक जावमां बे ने नदी उतरवी ते नदय जावमां बे. ते शी रीते बंध बेशे ? तैवारे तेरापंथी कड़े के, जो नदी उतरवामां पाप होय तो केवली नदी कम उतरे ? तेनो नंतर हे देवानुप्रीय ! केवलीने तो कोषादिक चार कय गया तेथी विहार करतां, ढालतां चालतां यने नदी उतरतां औीष दणाय तो पण फकत एक इरियाबही क्रिया सातावेद Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५६ ) + सिदान्तसार.. नीनी बे समयनी स्थितीनी बंधाय. बाकी सर्व पुन्व पापना कर्मनो अबंध , तेथी विहारादिक करी रियाविही पण पमिकमता नथी. तेमज नदी नतरीने पण केवली रियावही पमिकमे नही तथा चोवीसयो पण करे नहीं; कारण के केवलीने सर्व कार्य करतां पापनो बंध नथी, तेथी केवली नदी नतरे तोपण तेमने पाप लागे नही; अने बद्मस्थ साधुने तो विहारादिक करतां पण पाप लागे अने सात कर्म बंधाय बे, तेथी रियावही पमिकमे बे, तथा गोचरीमां पण गमणागमण करी पाग श्रावीने रियावहि पमिकमे . तेमज नदी नतरतां उमस्थ साधुने पाप लागे बे, तेथी नदो उतरीने रियावही पमिकमे तथा चोवीसथो करे ये. वली नदी नतरतां सरागी बद्मस्थ साधुने उ सात तथा आठ कर्मनो बंध थाय जे. ज्ञानावरणी श्रादिक पाप कर्म नदी उतरतां बंधाय बे, तेथीनदो नतरवामांश्राझा धर्म नथी. वली जो नदी उतरवामां थाज्ञा धर्म होय तो वारंवार नदी नतरे तो शबलो दोष लागे कडं ते केम केहत ? शाख सूत्र दसाश्रुतष्कंध अध्ययन बोजे. ते पाठ: अंतोमासस्स त उदगलेवे करेमाणे सवले ॥ अंतोमासस्स तन मारहाणे करेमाणे सवले ॥ अंतो संवन्चरस्स दश उदग लेवे करेमाणे सवले ॥ अंतोसंवबरस्स दसमाकाणाई करेमाणेसवले. - अर्थः-अं० एक मासमां त त्रण वार उ० नदी उतरे तो नदक लेप (जे नानि प्रमाण जल अवगाहे ते) करे तो स० सबलो दोष लागे. अं एक मासमां बल वचन बोले, प्रतित नपजावे, यथा गिला. एने कहे के “ ए श्राहार तो ले पण तमने सदे अथवा न सदे” एम पोते खावानी बुझे कहे, ए मायानु स्थानक. एवां त त्रण मा० माया स्थानक का करतो थको जेवो करण योग होय तेवो स० सबलो दोष लागे. अंग एक सं० वर्षमा ३० दस वार नदी उतरे तो उ० नुदकखेप (नानि प्रमाणे जल अवगाहे ते) लगामतो थको स सबखो दोष Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिदान्तसार (४५७.) लागे. अंग एक वर्षमा दा दस माया-स्थानक शेवे तो सग सबलो दोष लागे. नावार्थः-या पाठमां एम कयुं के, एक महीनामांत्रण नदी अने एक वर्षमा दस नदी उलंघे तो सबलो (जबरो) दोष लागे. हवे जुङ ! नदी उतर्यामां धर्म होय तो महीनामां त्रण नदी नतर्याथी न. वमो सबलो दोष केम कहे ? अने वर्षमां दस नदी उतरे तो १ए मो सबखो दोष केम कहे ? जो धर्म होय तो वारंवार हर्ष करीने नतरतुं जोइए. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, महीनामांत्रण नदी उतरे तो सबलो दोष कह्यो, पण बे नदी तरे तेमां तो धर्म . तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! महीनामां बे नदी नतर्यामां आशा धर्म क्या कह्यो ? श्री जगवंते तो ज्ञानादिकनी जतनाने अर्थे नाषा टालीने कल्प उखखाव्यो . जेम श्रावकने साधु कहे के, अणगल पाणी पीवामां तथा त्रसजी. घने हण्यामां मोटुं पाप बे. हवे गलेडं पाणी पीतुं बाकी रह्यं तथापांच स्थावरनी हींसा करवी बाकी रही तेमां साधुनो श्राझा-धर्म नथी.जेम अण बगएयुं पाणी पीवा करतां बाएयु पाणी पीवामां अने त्रस-कायनी हिंसा करतां पांच स्थावरनी हिंसामा पाप थोड़ें, पण धर्म तो नथी; तेम महीनामां त्रण नदी उलंघे तो तथा वर्षमां दस नदी उसंधे तो सबलो दोष लागे कडं. हवे महीनामां बे नदी अने वर्षमा नव नदी उलंघवी बाकी रही. तेमांत्रण नदी तर्यामां सबलो दोष , तेनी अपेक्षाये बे नदी उतरवामां नबलो दोष जे. ए जगवंते तो जाषा टालीने कम्पनी विधि उलखावी बे; पण एम तो नथी कह्यु के “ हे साधु ! महीनामां तुंबे नदी नलंघजे. मारी श्राज्ञा .” वली कदाच महीनामांत्रण नदी उलंघवो वर्जी, तेथी तमे बे नदी उलंघवामां थाझा धर्म मानता हो तो, दसमा सबला दोषमा एक महीनामां त्रण माया स्थानक (कपटा) सेवे तो सबलो दोष लागे कथु बे; तथा वर्ष दीवसमां दस माया-स्थानक सेवे तो वीसमो सबलो दोष लागे कडं जे. हवे तमा केहेणीने लेखे तो महीनामा बे नदी उतर्यामां श्राझा Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५८ ) सिद्धान्तसार. धर्म वे.त्यारे तो महीनामा बे माया स्थानक तथा वर्षमां नव माया स्थानक सेवे तेमां पण श्राज्ञा धर्म दशे. जेम महीनामां त्रण नदी - संघे तो नवमा सबलो दोष लागे कधुं बे, तेमज महीनामां त्रण माया कपटानां स्थानक सेवे तो दसमो सबलो दोष लागे कयुं छे. दवे जेम एक महीनामां बेवार माया - कपटाइ सेव्यामां पाप बे, तेम मदीनामां बेवार नदी तर्यामां पण पापज बे; पण बद्मस्थ साधुने ज्ञानादिकनी जतना माटे नदी उतरवानो दोष लाग्या विना रहे नही थाने मोहकर्मने उदये कपटाइ पण लाग्या बिना रहे नही. तेथी जगवंते वारंवार नदी उतरवानो ने माया कपटाइनो नय उपजाववाने कयुं बे के " दे साधु ! तुं महीनामां त्रण नदी उतरीश तो अने महीनामां त्रणवार माया कपटाई करीश तो सबलो दोष लागशे. टालीने युं छे; पण " महीनामां बेवार तुं नदी उलंघजे ठाने बेवार माया कपटाइ करजे. " एम नयी कयुं. वली पांच मोटी नदो मदीनामांणवार उतरवी न कल्पे. तेनी शाख सूत्र ब्रहतूकल्प उदेशे चोथे. ते पाठः- !" एम जाषा नोक पs निग्गंथावा २ इमान पंचमहणवान महा उठान गलियान (विजिया. तोमासस्स दुख्खूत्तोवा तिरकूत्तोवा नतरित्तएवा संत रित्तएवा तंदा: - गंगा १ ज - मुणा २ सर ३ कोसिया ४ मदी ५. प्रदपुण एवं जाजा एरावर कुणालाए जय चकिया एगंपायं जले किच्चा एगंपायं थले किच्चा एवं से कप्पर तोमासस्स दुख्खूत्तोवा तिख्खुतोवा उत्तरित्तएवा संतरितएवा. जच नो एवं चक्किया एवं से नो कप्पर तोमासस्स दुकूत्तोवा तिख्खूत्तोवा उत्तरित्तएवा संतरितएवा. ॥ अर्थः- नो० न कल्पे नि० साधु साधवीने इ० ए श्रागल कदेशे Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार ते. पं० पांच माहानदी (प्रधान-विस्तीर्ण देखामी गणी दोधी. ते घj पाणी उतरतां दोहीबुं एवी मोहोटी नदी ) दुर्मिक्षादि कारणे 30 उतरवी पमे ते, एक मास मध्ये एकवार पण सेहेजना विहारे न संनवे. अंग एक मासमां दुबे वार तित्रण वार उ उतरवी के (कुंनादिके अथवा नावादिके) संग वारंवार उतरवीन कल्पे तं ते कहे बे-गं गंगा१, ज जमुना २, स० सरजु ३, को कोसिया , श्रने म मही नदी ५न कल्पे. अण्श्रथ हवे वली ए एम जाणे के जो ए ऐरावती नामा नदी कुछ कुणाला नगरी समिपे ज० ज्यां च शक्तिवंत अर्ध जंघा प्रमाणे ए० एक पग जम् पाणीमां अने बीजो ए० एक पग थ स्थल लुमिकाए मुंकीने ए० एम करीने चाले से तेने का कहपे अं० एक मासमां दुबे वार तिपत्रण वार जनतरवी, सं० वारंवार उतरवी.ज ज्यां नो एवीरीते न उतराय त्यां ए एम से तेने न कल्पे अंग एक मासमां दुबे वार ति त्रण वार न० नतरवी, सं० वारंवार उतरवी. नावार्थः-हवे जुर्ड ! आ पाठमां तो एम कडं के, गंगा १, जमना २, सरजु ३, कोसिया ४ श्रने मही ५, ए पांच मोटी नदी म. दीनामां बेतरण वार नतरवी कल्पे नही; अने ऐरावती नदी, जे कुगाला नगरीनी समीपे वहे , तेमां एक पग जलमां अने एक पग थलमां धरीने नतरवा समर्थ होय तो महीनामां बेत्रण वार नतरवी कल्पे, अने समर्थ न होय तो उतरवी न कल्पे एम कडं; पण जगवते एम नथी कडं के "हे साधु ! तुं एक वार तो नतरजे मारी थाज्ञा ले." पण नगवंते तो नाषा टालीने कडं जे. तमे नदी उतरवामां नगवंतनी आज्ञा अने धर्म कया न्याये कहो बो ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ कुणाला नगरीनी समीपे ऐरावती नदी वहे , तेमां एक पग जलमां बने एक पग थलमा देश उतरवा समर्थ होय तो, महीनामां बेत्रण वार नदी उतरवी कल्पे डे. ते कप्पर कहो अने नावे आज्ञा कहो. कल्प भने आज्ञा एकज .” तेनो उत्तरः हे देवानुप्रीय ! कल्प अने आशा एक होय त्यारे तो परिव्राजक संन्या. Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६०) + सिद्धान्तसार सोथोने, नगवंते काचं पाणी पीवा माटे, हाथ, पग, चाटुमी प्रमुख धोवा माटे अने स्नानने अरथे लेवं कल्पे कयु डे. शाख सूत्र नववाजीमां. ते पाठः तेसिणं परिवायगाणं णोकप्प अगदएणवा चंदणेणवा कुंकुमेणवा गायं अणुलिंपित्तए णणब एगाए गंगामहि. याए. तेसिणं परिवायगाणं कप्पइ मागहपए जलस्स पमिगादित्तए सेविय वहमाणे नोचेवणं अवदमाणे सेविय थिमिजद्दए नोचेवणं कंदमोदए सेविय बहूपसणे नोचेवणं अबहुपसणे सेविय परिपूए नोचेवणं अपरिपूए सेवियणं दीणे नोचेवणं अदिणे सेविय विवित्तए नोचेवणं हब पाय, चरुचम पकालणघ्याए सिणाश्त्तएवा. तेसिणं परिवायगाणं कप्पश् मागदए अहाढए जलस्स पमिगाहित्तए सेविय वदमाणे णोचेवणं अवहमाणे जाव नोचेवणं अदिणे सेविय दब पाय चरुचम्मसं पकालणछाए नोचेवणं पिवित्तएवा. तेसिणं परिवायगाणं कप्पश् मागहए आढए जलस्स पमिगादित्तए सेविय वदमाणे नोचेवणं अवहमाणे जाव नोचेवणं अदिणे सेविय सिणाअत्तए नोचवणं हबपाय चरुचम्मसं परकालणहाए पिवित्तएवा. तेसिणं परिवायगा एयारुवेणं विहारेणं विहरमाणा बहुई वासाइं परियाइं पानणंत्ति.॥ अर्थ---ते ते परित्राजकने या न कर अ अगर चं० सुखम प्रमुख कुं कु केदार प्रमुख गाए शरीरे श्रम विलेपन करवा; ण पर एटदुं विशेष एक एक गंग गोपीचंदन कटो. ते ते परित्रासकने का कल्पे मा मागध देश संबंधी पाथामां माय एटवू पीवाने श्रथे Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार. ( ४६१ ) ज० पाणी नदीमांथ । प० लेवं से० तेपण व वहेतुं कुं, नो० नही निश्चे ० णवहेतुं से० तेपण थि० कादव रहित, नो० नहीं निश्चे कं० काववालु; से० तेपण ब० बहु निर्मलुं, नो० नहि निश्चे श्र० मॉहॉलु से० तेपण प० गलेलुं, नो० नहीं निश्वे श्र० श्रपगल; से० तेपण दी० दीधेसुं, नो० नदी निश्चे श्र० रादीधुं; से० तेपण पि० पीवाने अर्थे, नो नही निचे दण्दाथ पग चं० चरु दांगी, थाली, चाटुमी प० धोवाने अर्थे; तेम सि० स्नानने अर्थे पण न कल्प. ते० ते परित्राजकने क० कल्पे मा० मागध देशनुं श्र० श्ररधुं श्राढा माप जेटलुं ज० पाणी प० ले से० तेपण व० वेदेतुं, पण पो० नदी नीचे श्र० श्रणवेदेतु; जा० यावत् नो० नही निश्चे श्र० अरादीधुं; से० तेपण इ० हाथ, पग च० थाली, चाटुकी, चाटुवो सं० धोवाने अर्थे कल्पे; पण नो० निश्चे पीतुं न कल्पे. ते० ते परित्राजकने क० कल्पे मा० मागध देशनुं श्र० एक वाढा प्रमाण ज० पाणी प० लेनुं; से० तेपण व० वेदेतुं, नो० नही निश्चे ० वेहेतुं; जा० यावत् पूर्वे कयुं तेम, नो० नहि नीचे अप दधुं; से० तेपण सि० स्नानने अर्थे, नो० नही निश्चे द० दाथ पग च० चाटुमी थाली प० धोवाने तथा पि० पीवाने न कल्पे. ते ते परीव्राजक ए० एवी रीते वि० विचरता थका ब० घणां वा० वर्ष सुधी प० परीव्राजकनी पा० प्रवर्जा पाले. • भावार्थ:- दवे जुन ! या पाठमां कथं वे के, ते परिवाजकोने मागधदेश संबंधी पाथामां माय तेटलं पाणी पीवाने लेवुं कल्पे. ते पण वेहेतुं कुं, कादव रहित, निर्मलुं, गलेलुं छाने दातारनुं दीघेलं ले. एज रोते एवंज पाणी मगधदेशनुं अर्ध आढुं प्रमाण, दाथ, पग, प्रमुख धोवाने लेवं कल्पे कयुं. वल्ली एज रोते एवुंज पाणी मगध देशनुं एक आढा प्रमाण स्नानना अर्थे लेधुं कल्ने कयुं. दवे जुन ! जो कल्प आज्ञा एक होय तो या पाठना सं यासाउने कावुं पाए पो, काचा पाणोथी स्नान कर तथा हाथ पग धोत्रा को कयुं छे. दवे तमारी केद्रेणीने लेखे तो संन्यासिने काचं पाणी पोवानो, काचा T Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार.. पाणीथी स्नान करवानी अने हाथ पग धोवानी श्री नगवंतनी थाझा मानवी पमशे. वली अंबमजी श्रावकने काचुं पाणी पीई अने काचा पाणीथी स्नान करवू पण कल्पे कडं . तेनी शाख सुत्र नववा इजीमां. ते पाठः अममस्सपरिवायगस्स कप्पश् मागहए अदाढए जलस्स पमिग्गदित्तए सेविय वदमाणे णोचेवणं अवहमाणे जाव सेविय एवं थमियं पसणं परिप्रयं णोचेवणं अपरिपूए सेविय सावधेतिका णोचेवणं अणवध सेविय जीवितिकान णोचेवणं अजीवा सेविय दिणे णोचेवणं अदिणे सेविय दत्त दब पाय चरु चम्म पखालणच्याए पिवित्तएवा णोचेवणं सिणाश्त्तए. अममस्सणं परिवायगस्स कप्पश् मागदए आढए जलस्स पमिग्गहित्तए सेविय वहमाणे नोचेवणं अवहमाणे जाव सेविय दिने णोचेवणं अदिणे सेविय सिणाश्त्तएणोचेवणं हबपाय चरु चम्मसं परकालणघ्याए पिवित्तएवा ॥ अर्थः- अ० अंमम परिव्राजकने का कल्पे मा मागध देशन अधु आढुं प्रमाण ज पाणी प० ग्रहवं; से ते पण व वेहेतुं थकुं; पण णो नही निश्चे अणवेहेतुं जाण यावत से ते पण ए एम थ० कादव रहित प० निर्मल प० गलेलं; पण णो नही निश्चे अ० अणगट्यु से तेने पण सा० सावध जाणे, पण णो नही निश्चे अ० निर्वद्य; से० तेने पण जी जीवसहित जाणे, पण णो नहि निश्चे श्रम निर्जव. से ते पण दिदीलु ले, पण णो नदी निश्चे अश्रणदिधुं; से ते पण दंग दांत हा हाथ पा पग च० हामी चाटुवो प० धोवाने अर्थे तथा पि० पीवाने अर्थे ले; पण णो नही निश्चे सि० स्नानने अर्थे कल्पे. अ अंमम परिव्राजकने का कल्पे मात्र मागध देशनो श्राढो Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ४६३ ) माप ज० पाणी पण ग्रह; से० ते पण व वेहेतुं कुं, पण नो० नदि निश्चे ० वेहेतुं; जा० यावत् से० ते पण दि० दीघेलुं, पो० नहि निश्चे ० दीधुं; से० ते पण सि० स्नानने अर्थे, पण नो० नहिं नीचे ६० हाथ पा० पग च० हांमी चाटुमी सं० धोवाने खर्थे पि० तेम पोवाने पण न कल्पे. जावार्थ:- हवे जुन ! या पाठमां कह्युं बे के, बमजी श्रावकने मगधदेशनुं श्रधुं श्राद्धं माप काचं पाणी पीवा तथा हाथ धोवाने अने एक आहुं, माप पाणी स्नानने खर्थे लेवुं कल्पे कयुं छे. ते पण वहेतुं कुं, कादवरहित, निर्मल छाने गलेलुं ले. तेने पण सावध जाणे, निर्वद्य न जाणे; जीव सहित जाणे, पण निर्जीव न जाणे. दवे जुश्रो ! बमजीश्रावकने काचं पाणी पीधुं छाने काचा पाणीए स्नान करवुं कल्पे क े. हवे तमे कहोठो के, कल्पाने खाज्ञा एकज बे. ए नदी उतरवी कल्पे कही तेथी आज्ञा धर्म कहोतो. ए तमारी केलीने लेखे तो जी श्रावकने काचुं पाणी पी ए पण श्राज्ञा धर्ममां दशे. दे देवानुप्रीय ! कल्पाने श्राज्ञा एक केम कहोबो ? कल्प तो करे तेनां काम लखवानी विधि बे, अने जगवाननी आज्ञा तो ज्ञान, दर्शन छाने चारित्र, क्षयोपशमजावना गुण अंगीकार करवानी तथा वधारवानी बे. वली साधु नदी तो अपवाद मार्गमां थणसरते कोइ ठेकाणे टलती न देखाय तेथी ज्ञान, दर्शन अने चारित्रना जतन माटे उतरे बे. जेम डुंदी, जाऊं, वोलाइ इत्यादिक, माल उपर जगात बे ते रीते ए पा बे; पण नदी उतरवानी श्राज्ञा जगवंते बत्रीस सूत्रमां क्यांय दोघी नथी. तो एटलां सूत्रनां वचन उत्थापोने, खोटा अर्थ करीने, कुयुक्ति लगावीने तथा नदी उतरवामां श्राज्ञा धर्म कड़ीने अनंत संसार केम वधारोढो ? " वली घाटा (टोटा) वाला सराफ सरखी सफाइ दर्शावधाने साटे तथा लोकोने पोताना मतमां लेवाने अर्थे, तेरापंथी कहे बे के "सूत्रमां कला सिवाय साधुए कां पण काम करतुं नदी; अने करे तो तेमां Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६४) + सिदान्तसार साधुपणुं नथी.” एवी वन नाषा बोले , पण पोताने तो पुरुं अंधारूं के केमके सूत्रमा तो ग्रहस्थीना घेरे बेसबुं वज्यु बे, अने पोते तो ग्र. हस्थीना घेरे बेसवु स्थापे , तेमज ग्रहस्थीना घेरे बेसीने व्याख्यान वांचे ले. वली सूत्रमा आर्या साथे विहार करवो वयो बे, अने पोते थार्या साथे विहार करे ; श्रार्यानो लाव्यो आहार पाणी लेवो वो बे, अने पोते आर्यानो लाग्यो श्राहार पाणी ले जे; अने श्रार्या पाते सुखे समाधे वैयावच कराववी वर्जी बे, अने पोते आर्या पासे वैयावच सुखे समाधे करावे . तेमज श्रार्या पासे पुंजवं पलेव, प्रमुख अनेक कामो करावे . वली रोगान वासी राखवो सूत्रमा क्यांय कर्वा नथी, बतां पोते वासी राखे जे अने राखवानी स्थापना करे . तेमज पेहेले दीवसे जेनाघरथी वोहोर्यु होय तेना पासेथी बीजे दीवसे हाटे अथवा रस्तामां वोहोरवानी स्थापना करे जे. एटलां काम करे तेने साधपणाथी ज्रष्ट कह्यो , अने ए एटलां काम सूत्रमा कह्यां ते सिवाय करे ले. ___ वली सूत्र उत्तराध्ययनना श्क्षमा अध्ययनमां रातना पेहेला पोहोरमां सकाय करवी कही बे, बीजा पोहोरमां ध्यान कर, कयु , त्रीजा पोहोरमां निंजा मुंकवी कही डे अने चोथा पोहोरमां सकाय करवी कही बे; पण एक पोहोरथी वधती निंजा लेवी बत्रीस सूत्रमा क्यांय कडं नथी. हवे तमे पोहोर सीवाय निमा ल्यो बो. ते तमारी केहेणीना लेखे तमारामां साधपणुं ले के नही ? वली एज अध्ययनमां कडं ले के, कोश् श्रावे नही तेमज को देखे नही एवी जग्याए साधुए मात्रादिक परग्ववं; पण नघामी रीते लोकोना देखतां मात्रादिक परम्वद् बत्रीस सूत्रमा क्यांय कडं नथी.हवे तमे नघामी रीते लोकोना देखतां मात्रादिक परत्वो बो. ते तमारी केकेणीना लेखे तमारामांसाधपणुंडे के नही ? वली आपमतलबी कहे के “बजारमा श्रावके सामायक करी होय ते सामायक बतां घेरे जश्ने साधुने वोहोरावे तो अटकाव नही, धर्म बे, तथा घरमांज सामायकमां बेठा ले तेने बीजा बुटा व्यनी श्राज्ञा लीधा विना वोहोरावq कल्पे वे.” एम कहे बे, पण जगवते Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार तो श्रावकने सामायकमां सर्व अव्य वोसराव्या कह्या ले. तेथो सामापकमा आहार वस्त्रादिक पोताना नथी एम कयुं जे. तेनो शाख सूत्र जगवती शतक थाउमे उद्देशे पांचमें. ते पाठः रायगिदे जाव एवंवयास आजीवियाणं नंते! थेरे जगवंते एवंवयासी समणोवासगस्सणं नंते ! सामाश्कमस्स समणोवासए अन्नमाणस्स केनं अवहरेद्या सेणं नंते! तंजमं अणुगवेसमाणे किं सनं अणुगवेस परायगंनंमें अणुगवेस? गो ! सनं अणुगवेस नोपरायगं मं अणुगवेस. तस्सणं नंते! तेहिं सीलवय गुणवय वेरमण पचकाण पोसदोववासहिंसनमे अनंडे नवश्?हंता नवर, सेकेण खाणं अणं नंते! एवंवुच्चश्सनं अणुगवेस नोपरायगंनंमंअणुगवेस? गो! तस्सणं एवं लवणोमहिरणे नोमेसुवणे णोमेकंसे गोमेदुसे णोमे विपुल धण कणग रयण मणिमोत्तिय संष सिल प्पवाल रत्त रयण मादिए संत्त सारसावधेये ममतनावपुणसे अपरिणाए - वइ. सेतेणणं गो! एवं वुच्चइ सनं अणुगवेसश्नोप-'. रायगं मं अणुगवेसइ.॥ अर्थः-रा राजग्रही नगरीने विषे श्री गौतमस्वामी जगवंत श्री माहावीर स्वामी प्रत्ये जाग यावत् ए० एम कहे-श्रा गौशालाना शिष्य जंण् हे पुजय ! थे० स्थिवर साधु समीपे, श्रावकनो अपेक्षाए ९० एम कडं. ते श्री गोतमस्वामीए जगवंत श्री माहावीर देव प्रत्ये पु. ब्यु. क्या सुधी के ज्यां सुधो श्रावकना पचखाणना ७३५ नांगा कह्या त्यां सुधी पुब्यु, पण पडी एम कडं के, एवा गोशालाना श्रावक न होय. चे श्रमणोपासक केवा होय ते जाणवा देखामे . स० श्रमणोपा Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदान्तसार सकनं हे नगवान ! साग कृत सामायकना एटले पेहेबुं शिक्षाकृत स० सामायकरुप श्रादरीने अण् बेगले तेनुं के कोश् पुरुष जंगलांम (वस्त्रादिक वस्तु) प्रत्ये १० लइ जाय ते सामायक पुरुं थया पली जोतो थको नं० हे पुज्य ! शुं तं ते नं० (नांम) पोतानी वस्तु थ० ग. वेषे के प० पारकी वस्तु अ० जुए ? श्हां पुरणहारनो अनिप्राय स्वकिय ते कहीये. जे स्वसंबंधी होय परंतु सामायक पमिवज्यां परिग्रहना पचखाण नणी पोतानुं न होय एटला माटेज प्रश्न को. इति प्रश्न. उत्तर. गो हे गौतम ! स० पोतानो नाम ( वस्तु) सामायक पुरु थया पली अ गवेषे, पण नो परायो नाम गवेषे नही. (त्यां थ. कार्ण जे ममत्व नाव बे, ते दाणो नथी अने सामायक बतां गवेषणा करवी ए अयुक्त.) तम् तेने नंग हे नगवान ! ते ते विविक्षित करीने जेम क्षयोपसम ग्रहया तेणे करीने सीम् अणुवृत गुण गुणवत, रागादिकनी अत्ति प० नवकारसी पोरसी सहित पो पर्वदीनने विष पोषध सहित उपवास तेणे करी (इहां सोलादिकने ग्रहणे पण सावद्यजोग वृत्ति करी विरमण शब्द करी प्रयोजन तेनेज परिग्रहने अपरिग्रहपणुं निमित्त करी) स० पोतानी वस्तु अ० अपहस्या आश्री. पारकी न थाय ? इति प्रश्न उत्तर. हं हा गौतम ! थाय . से ते कये हेते खा० (ख्याति) प्रसिद्ध श्र कये अर्थे (शे प्रयोजने) नं हे नगवान ! ए. एम कयुं स० पोतानो जम नपगणं अण् गवेषे नो० परायो नाम उपगर्ण न गवेषे ? इति प्रश्न. उत्तर. गोण् हे गौतम ! त तेने ए एq मन प्रणाम न होय ते कहे . हिरण्यादि परीग्रहने छोविध त्रीविध पणे पचख्या के वास्ते णो नथी मारु हि० रुपुं नो सुनको मार्क सुवर्ण नो के नथी मारु कांसु णोऽ० नथी मारु (कुष्य) वस्त्र पोग्नथी मारं विविस्तीर्ण धन्धन गणिमादिक अथवा गवादिक कण्कनक, रत्न, कर्केतनादिक मण्मणी चंडकान्तादिक मोण्मोतोश्रुक्तिकादिकनां नपज्यां सं० शंख दक्षिणावर्त ए बेन प्रसिद्ध सि सिल, प्रवाल, विद्रुम अथवा स्फटीक शीला प्रवासी र० रातां रत्न पद्मरागादिक, ए सर्व संब Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिदामसार: विद्यमान सा० प्रधान सावन स्वापेत्य अव्य मम इत्यादि परिग्रहादिकने विषे मन, वचन, कायानु, करवू करावq ते पचख्या नही ते ममत्व नाव रह्यो. वली ते हिरण्यादि विषयने विषे जे ममता प्रणाम पु० वली अंण् श्रपरिज्ञात प्रत्याख्यान थाय ते अनुमतीना अप्रत्याख्यानपणाथी ममत्व नावने अनुरुपपणाथो. से तेने अर्थे गोण हे गौतम ! एए.एम कर्तुं स स्वकीय पोतानु नं नं नपगर्ण अ० जुवे हे पण नो नथी पारकुं नंम उपगर्ण जोता.॥ : नावार्थ-हवे जुन ! था पाठमां एम कडं बे के, श्रावक सामायक पोसामां बेगे . ते वेला धन, नंग नपगर्ण चोर लइ जाय, ते सामायक पोसो पाल्या पली गवेषणा करे तो पोतानुं जंग गवेषतो कहीये के पारकुं जंग गवेषतो कहीये ? तेनो उत्तर जगवंते कयो के हे गौतम ! पोतानो नंग गवेषतो कहीये. तेवारे फरी गौतमस्वामीए पुन्सुं के श्रावक सामायक पोषामां बेगे ते वखते नंग, उपगर्ण, धन, पोतानां नथी त्यारे सामायक पाल्या पली पातानां नंमनी गवेषणा करतो केमा कहो ? तेना जवाबमां जगवंते कडं के, हे गौतम ! सामायक पोषामां बेगे ते वारे सोनु, रु', वस्त्र आदि सर्व अव्य वोसराव्याने तेथी ते श्रावकना नथी; पण सामायकः पाल्या पठी मनो लोज (प्रेम बंध ) बुटयो नथी ते माटे सामायक पाल्या पली तेने पोतानुं नंग गवेषतो कहीए. हवे था पाठमां कडु के, सामायकमां बेगे त्यारे श्रावके सोनु रु' प्रमुख सर्व अव्य वोसराव्या बे के मारु सोनुं नथी, मारु रुपुं नथी, तेमज मारुं अन्नवस्त्रादि कांपण नथी. हवे जुलं! ज्यारे पोतार्नु नथो त्यारे सामायकमां साधुने शी रीते वोहोरावे ? .. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ सामायकमां सावद्यजोगना (सं. सारनां काम करवाना) त्याग ; पण साधुजोने वोहोरावद् तेतो नवमा व्रतमा बारमुं व्रत निपजे. तेतो निर्वद्य धर्मनुं काम घणुं चोरु जे." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! सामायकमा पोतानी पासे वस्त्र होय ते साधुजीने वोहोरावाने नवमा व्रतमा बारमु व्रत निपजावे तेतो घj Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार.. चोख्खं काम बे; पण जे अव्य सामायकमां वोसरावी दीधा ते पोताना नथी. ते अव्य शी रीते वोहोरावी शकाय ? वली तमे कह्यु के, सामायकमां संसारने हेते सावधजोगना त्याग बे; पण धर्म करवाना तो त्याग नथी. ए लेखे तो त्रीजा व्रतथी बारमुं व्रत अधिकुंबे. हवे तमारे लेखे तो संसारने हेते सावधजोगना चोरोना त्याग , ते साधुजोने प. रायुं वस्त्रादिक चोरीने वोहोरावे तो अटकाव नह); केमके एतो तमारा केदेवा प्रमाणे निर्वद्य धर्मर्नु काम बे. पण हे देवानुप्रीय! जिन मार्गमा तो पेहेला नियम को होय ते राखीने पनी श्रधिको धर्म करवो. जेम गुरुदेव श्राव्याथी उठी नन्ना थq अने विनय नक्ति करवी तेमां मोटो खान ( निर्जरानुं कारण ) , पण शिष्ये पेहेलां कानसग्ग करी पहोर पर्यंत लगी काया वोसरावी होय ते गुरुदेवनो विनय न करे, तेम सा. मायकमां जे अव्य वोसराव्या बे ते पोताना नथी, ते माटे सामायकमां साधुने वोहोराव, कल्पे नही. तमे प्रजुनां वचन उत्थापोने पोताना मतलबने अर्थे सामायकमां वोहोरावq केम स्थापो बो? - वली तेरापंथी कहे डे के," पुन्य पाप बंने जुमा डे अने गंगवा योग्य बे; केमके धन्ना अणगारनां पुन्य वध्यां तेथी ते अनुत्तर विमाने गया. पण मुक्तिए जर शक्या नही.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! चार कर्म तो एकान्त अशुन बे. तेनां नाम. ज्ञानावर्णी १, दर्शनावर्णी , मोहनी ३ अने अंतराय ४. ए चार कर्म (घातिक) बलीष्ट . तेनो क्षयोपशम न थयो तेथी मुक्तिए जश्न शक्या. तमे ‘पुन्य वध्याथी मुक्तिए जइ न शक्या' एवी कुयुक्ति केम लगामो हो ? पुन्य तो मुक्ति मार्गर्नु एकान्त घातक नथी. केमके श्री अनुयोगहार सूत्रमा कडं डे के, क्योपशम नावे जीव धर्म पामे, अने ते कयोपशम नावने “च. उएह घाइकमाइणं " एवो नघामो पाठ कह्यो . चार एकान्त अशुन कर्मना क्षयोपशमयी चार चात्र अने चार ज्ञान मफिम घणा बोल पामे; श्रने ए चार अशुन्न कर्मना दयथी दायक नावे अनंत चतुष्टय पामे; पण पुन्य प्रकृतिने घातक नथो कही. वली कर्म मंथमां घाति Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धावसार अघाति प्रकृति अधिकारे वीस प्रकृति सर्व-घातो कही. ते सर्व-घाती कर्मनी कही, पण शुम कर्म पुन्य प्रकृति मोह जाताने अटकावे एम कर्वा नथी. वली पुन्यने मोक्ष मार्गनो घातक बत्रीस सूत्रमा क्यांय कछु नथी. तमे 'धना श्रणगारानां पुन्य वध्यां तेथी मुक्ति न गया' एवां श्रतां वचन बोलीने अनंत संसार केम वधारो बो? वली पुन्य नोगववानी वांबा तो साधु श्रावकने करवीज नही. पण मोक्ष मार्गना साहज माटे पुन्यनी वांबा श्रावकने करता कह्या . शाख सूत्र ज्ञाताजी अ. ध्ययन प्रारमे, धरणीक श्रावकना अधिकारे. जे वखते देवताए अर. पीक श्रावकने कडं के “ तमे केवा हो ? 'धम्मकामिया' धर्मना कामो 'पुन्नकामिया' पुन्यना कामी 'सगकामिया' स्वर्गना कामी 'मोस्ककामिया' मोदना कामी, ए चार. एमज धर्मनाइच्छक, पुन्यना हक, स्वर्गना श्चक, अने मोदना चक. एमज धर्मादि चार बोलना (पी. वासा ) लालसावंत बो.” ए रीते बार बोल कह्या. तेवारे तेरापंथी कहे जे के एतो मिथ्थात्वी देवताए एम वखाएया डे. तेनो नत्तर. हे देवानुप्रोय ! मिथ्यात्वी देवताए एवा कह्या ते शुं ? जुग कह्या के साचा कह्या ? वली 'पुनकामीया पुनकंखिया पुनपिवासा' ए बोल मिथ्यात्वी देवताए कह्या तेम' धम्मकामिया धम्मकंखिया धम्मपिवासिया' ए पण मिथ्यात्वीएज कह्या जे. जो साचा कहा तो सर्व साचा; अने जुग कह्या तो सर्व जुग. एम नपाशकदशाना बीजा अध्ययनमा कामदेव श्रावकने देवताए तथा आठमा अध्ययनमा माहासतकजी श्रावकने रेवतीए पण एवाज बार बोल कह्या . वली गर्जना जीवने प्रजुए पोते वखाएयो, त्यां पण बार बोल एमज . तेनी शाख सूत्र नगवती शतक पेहेले उद्देशे सातमे ते पाठः जीवेणं नंते ! गब्नगएसमाणे देवलोएसुग्वजेचा ? गो ! अगइएनवजेजा अगइएनोजवजेजा. सेकेणहेणं ? गो० ! सेणं सणिपंचदिए सवाहिं पयतिहिं पच Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४७१) सिद्धान्तसार. तए तदारुवस्स समणस्सवा मादणस्सवा अंतिए एग मविप्रायरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तर्ज - वंति संवेग जायस बिधम्मापुरागरते सेणंजीवे धम्मकामए पुणकामए सग्गकामए मोस्ककामए धम्मकंखिए पुलकं खिए सग्गकं खिए मोखकं खिए धम्मपिवासिय पिवासिए सग्गपिवासिए मोरक पिवासिए तच्चित्ते तम्मणे तसे तदवसि तद्यनवसिए तदोवडते तदपियकरणे तनावणानाविए एयं सिणं अंतरं कालंकरेजा देवलो - एसु जवज से तेणें ॥ अर्थः जी० जीव जं० दे जगवान ! ग० गर्भमा रह्यो थको मरीने दे० देवलोकमां देवतापले उपजे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम ! अ०ज० कोइक जीव गर्भमांथी मरीने देवलोकने विषे देवतापले उपजे ने अनो० कोइक जीव न उपजे से० ते के० शा कारणे दे जगवान ! एम कं ? कोइक जीव नपजे अने कोइक जीव न उपजे ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम ! से० ते जीव सं० संज्ञी पंचेंद्रि स० सली प० पर्याप्ते करी प० पर्याप्त ज्ञाव प्रत्ये पाम्यो थको त० तथा विधि उचित्त योग स० श्रमण तपस्वीनी अथवा मा० मा दलो मा दो एवं कड़े ते साधु अथवा स्थल प्राणातिपातथी निवृत थयो ते श्रावक, तेना ० समिप थकी ए० कोइ एक पण प्रा० श्रार्य जलुं ध० धर्मनुं सु० जनुं वचन सो० सांजलीने नि० निश्वे दैये घरीने त० ते वार पढ़ी न० थाय सं० नवये करी जा० धर्मादिक करवानी श्रद्धा उपजे ति० तित्र धर्मने रागे रंगायु डे मन जेनुं, से० ते जीव ध० ( श्रुत चारित्र रूप ) ૐ धर्म, सेना विषे वान्छा बे जेनो, पु० तेना फलजुत शुभ कर्मनो वांढक, सo स्वर्ग देवलोकनो वांढक, मो० समस्त कर्म करूप मोक्षनो वांढक, धर्मनी प्रासक्ति बे जेनी, पु० पुन्यन। आसक्ति बे जेनो, स० स्त्र Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिहावसार र्गनी श्रासक्ति ने जेनी, मो मोक्षनी श्रासक्ति ने जेनी, ध धर्मने विषे अतृप्तिवंत, पुण् पुन्यने विषे अतृप्तिवंत, से स्वर्गने विषे अतृप्तोवंत, मो मोक्षने विषे अतृप्तिवंत एटला पदार्थने विषेत चित्त ने जेनु,त० तेने विषे मन ले जेनु, त तेने विषे लेश्या ने जेनी, ता तेज अधवसाय ठे जेना, त० ते अर्थे करी नपयुक्त ( सहित ) , त० तेज अर्थने विषे दीधी ने इंजियो जेणे, त० तेज नावनाए करी नाविक , ए० एवा अं अंतरने विषे एटले एवी नावना नावतो थको जीव का काल करीने मरण पामे तो ते जीव दे देवलोकने विषे देवतापणे उ० उपजे. से ते माटे हे गौतम ! एम कयु. ( को जीव नपजे अने कोइ जीव न नपजे.) . जावार्थ-हवे जुलं ! था पाठमां तो प्रजुए श्रीमुखथी गौतमने कथु के, गर्न मांहेलो कोश्क जीव सन्नी पंचेंजिनो पर्याप्तो तथारुप श्र. मणनी ( साधुनी) अथवा माहण केहेतां श्रावकनी पासेथी को एक (आर्य ज) धर्मनुं वचन सांजलीने हैये धारीने वैराग्य पाम्यो तथा तिव्र धर्मने रागे रंगाणोते जीव धर्मनो वंगणहार, धर्म करवानी, पुन्य करवानी, वगनी श्रने मोक्षनी वंबा करोने तथा धर्मादिक चार बोलना आसक्तपणे करीने, तेमज ए चार बोलना अतृप्तपणे करोने, एज बार बोलने विषे चित्त ने जेनु, मन ने जेनुं तथा खेश्या अध्यवसाय जे जेना, तेज अर्थे करी सहित , तेज अर्थने विषे इंजि दीधी ने जेणे, ए बार बो. सनी-लावना जावतो थको एवा अध्यवसाये वर्ततां थकां काल करीने देवतामां जाय. हवे जुढे ! जगवंते तो धर्म अने पुन्य एषे प्रकारनी करणी कही तथा स्वर्ग अने मोदए बे तेनां फल कहां. पुन्यनी करणीथी म्वेवतामां जाय अने धर्मनी करणीथी मोक्षमां जाय.हवे जुई ! पुन्य अर्मनी वांडा करतो देवतामां जाय कयु. ए न्याये पुन्यने श्रादरवा योग्य कहीये. वली चितमुनीए ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीने सूत्र उत्तराध्ययनना तेरमा अध्ययननी एकवीसमी गाथामां कडं के, हे राजा! ए जीवितव्य तो बसास्वतुं अने धर्म अने पुन्यना अपकरवावाला मनुष्य मरपने मुखे Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) - सिद्धान्तसार.. पहोंच्या थका (सिदावसे) पस्ताशे. इहां पण पुण्यने सरणांगत (करवा योग्य) वखाएयु. वलो पुण्यने धर्मनुं कारण कयुं. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन १७ मानी गाथा ३४ मी: एयपुन्नपयं सोचा अन धम्मोव सोदियं; जरदोवि नारदंवासं चिच्चाकामाइं पवश्ए ॥ १७ ॥ अर्थः-ए० ए ज्ञान सहित श्राशीष . ए चारीत्र धर्म ते केवो बे, के कायरने आचरतां दोहीलो अने तम सरखा शूराने सोहीलो. ए ज्ञान सहित क्रिया धारीने जरतादिके संसार मुक्यो. पु० पुन्य पवित्र पदने एटले शुद्ध जिनमतने सो सांजलीने अवधारीने संसार मुक्यो. अण् अर्थ ते मुक्तिरुप फल ध धर्म ते जिनशासनरुप ज्ञानदर्शन सहित चारीत्र धर्म, ए बंने करी ना नरत चक्रवर्ती ना नरत देत्रने विषे चि बांझीने, वली का काम जोग बांमीने प० संजमवंत थया. ॥३०॥ नावार्थः-हवे जुर्म ! था उपरनी गाथामां पण चारीत्रने पुन्य पद कही बोलाव्यु. वली अंतगममां श्री कृष्णे कयुं के, “धन्य, पुन्य, कृतार्थ जालीकुमार प्रमुखने, के जेणे चारीत्र लोधुं. हुं अधन्य, श्रपुन्य, के चारीत्र मुजने न श्रावे.” हवे जुन ! देवानुप्रीय ! चारित्र पण पुण्यवंत जीवनेज आवतुं कर्तुं . वली प्रश्न व्याकरणमा प्रथम संवरहारे “ चनगयं पखंदे काहिति अणंत्ते शकय पुनेजे नसुणंति धम्मसो उणजे पमायंति" कयु के, चारगतिमां कोण फरे? अकृत्य पुन्या, पुन्य रहित, अनागिया अने पापीया जीव होय ते (रुले)नमे अने सजागीया, नाग्यवंत अने पुन्यवंत जीव चार गतिमां न नमे. वली सू. यगमांग सूत्रना बीजा श्रुतष्कंधना बीजा अध्ययनमां का के, हिंसामां धर्म कहे ते श्रमण-माहण चार गतिमां “कलकली नागीणा जविस अजागीया थाशे एम कडं; अने जे श्रमण-माहण शुद्ध धर्म कहे ते चार गतीमां " कलकली नागीणो न विस” अन्नाीया नही थाय एम कर्य. वली उचराध्ययनना ३६ मा अध्ययनमा कडूं के “ता Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार (४७६) सिझा महा नागा लोयगोय पयरिया” शुज कर्म सिझे खपाव्यां ले तोपण तेमने माहानाग्यवंत कही बोलाव्या. वली उत्तराध्ययनना २३ मा अध्ययनमा केशीस्वामी गौतम स्वामी ने कहे जे के “ पुनामिते महाजागा” हुँ पुबुंडं हे नागवान ! तथा केशीए गौतम प्रत्ये पुब्यु के, तमे शंसारसमुअ शीरीते तरोबो? तेवारे गौतमे कयु के, शरीररुपी नावाए करोने संसारसमुष तरं. ते सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन २३ मानी गाथा. ७३ मी: सरीर माहु नावत्ति, जीवो वुच्चइ नाविन; संसारो अणवावुत्तो, जंतरंति मदेसिणो ॥ ३ ॥ अर्थः-स० शरीररुप मा कहे तीर्थंकर ना नावा. जी जीव ते तु कहीये ना नावानो खेमणहार. सं० संसाररुपी अ० समुज वु० करो. जंग जे संसार त तरे जे ते मा मोदना गवेषणहार एवा मोटा साधु ॥ ३ ॥ नावार्थ:-हवे जुउँ ! इहां कह्यु डे के, शरीररुपी नावाए करीने संसारसमुख तरुं बुं. ए शरीररुपी नावा ते पुन्य-प्रक्रति के. हवे ते संसारसमुज्मां बेगे त्यां सुधी मुक्ति-साधक जीवने सरीररुपी नावा श्रावरवा योग्य के बांझवा योग्य ? ए शरीर तथा पंचेंजिनी जाती तथा त्रसनो दसको, मनुष्यनी आनुपूर्वी, मनुष्यनुं आयुष्य, सातावेदनी, उंच गोत्र इत्यादिक पुन्यनी प्रक्रति . ए पुन्यनी प्रक्रति विना मुक्ति न मले, अटकाइ रहे. हवे ते मले एटले मुक्ति-गामी जीवने ए प्रति साधक डे के बाधक डे ? ए व्यवहारमा आदरवा योग्य ले के बांझवा योग्य ले ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, उत्तराध्ययननी डेली गाथामां पुन्य पाप बनेने खपाववां कह्यां . ते पाठ:-.. दुविहं खविनणय पुणपावं निरंगणेसवन विप्पमुक्के, तरित्ता समुहंच महानवोहं समुहपालो अपूणागमंगए तिमि.॥ .... अर्थः-पु० बेहु प्रकारे शुन्न अने अशुन्न प्रक्रति खा खपावीने Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४) + सिदान्तसार, पुण् पुन्य पापनी नि0 गति रहीत सलेशी अवस्थाए कायादिकना व्यापार रहित अयोगी केवली थश्ने स० सर्व कर्मथी वि० मुकाणो तक तरीने स० समुज्नीपेरे स० संसार-समुखरुप मोटो प्रहवा स० समुषपाल मुनी श्र वली संसार मांही आवे नही एवी गतिए गण पहोंच्या. नावार्थः-हवे था पाउनुं नाम लइ तेरापंथी, पुन्य पापने गंगवा योग्य कहे . तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! इहां गंवा जोग्य तो नयी कह्यु. बांमवा जोग्य कयुं होय तो हिलq निंदवू जोइए, पण पु. न्यने हिव्युं नियुं नथी तेथी बमवा जोग्य कर्वा न कहवाय; पण श्हां तो एम कयु डे के, एणे समये एणे गुणगणे आव्या तेवारे पुन्य पाप बने खपावीने (बांझीने) समुपालजी मुक्तिए गया. एतो नौकज . सिह दशा पामे तेवारे तो सर्व कार्य सिद्ध थयां. पनी पुन्यनुं शुं काम जे. ? हवे श्रहियां पुन्य पाप बुटयां तेम तप, चारीत्र पण बुटयां तेथ शुं शाधिक अवस्थामा तप संजम पण गंमवा योग्य केहेवराशे ? जेम तप संजम जमवा योग्य नथी तेम पुन्य पण बांगवा योग्य नथी. वली साधु दिदा खेडे तेवारे तो कारणथकी श्रने बंध थकी पाप मुंके बे, पण पुन्य मुंकता नथी. पाप प्रक्रतिनुं कारण सेवीने पायश्चित लेने तेम पुन्य प्रक्रति, कारण सेवीने पायश्चित नथी लेता. वली पुन्य पाप बने शुन्न अशुन पुद्गल , पण साधिक बाधिकमां फेर ; केमके सूत्रमा गम गम नच्चार पासवण प्रमुख अशुन पुद्गलनी तो असजाय कही; पण बाण, पाणी, फुल, फल प्रमुखनी श्रसकाय नथी कही. एटलो फेर पुद्गल दशामां पण बे. वली गौतमस्वामीने तथा हरकेशी सरीखा जीवने ज्ञान, दर्शन, चारीत्र अने तपना गुण तो सरीखा , मुक्ति पण बन्ने पामे; पण पुन्याश्मां फेर तेथी गौतम स्वामीने गणधर पद श्राव्युं; पण हरीकेशी सरीखाने न श्रावे. वली दसाश्रुतस्कंधना चोया अध्ययनमां, पाठ श्राचार्यनी संपदा कही. ए श्राचार्य पदवीनी शाधकमांही रुपसंपदा कही ते पुन्यथकी मले थने श्राचार्य Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( ४७६ ) ar जवथी अधिका न करे. शाख सूत्र जगवती शतक' पांचमे नद्दशे सातमे. ते श्राचार्यपणुं पुन्यथी मले. हवे जु ! पुन्य ते मुक्तिने नजीक करे बे के वेगली करे बे ? वली तीर्थंकर - पी, गणधर - पी, चक्रवर्ती-पी, बलदेव, वासुदेव, जंघाचार्य ने पुलाक लब्धी, एमांनी एके लब्धी स्त्री न पामे. हवे जुड़े ! ए संजम संवरमां फेर के पुन्यमां फेर ? वली पृथ्वी, पाणी अने वनस्पति, ए त्रण उत्तम जातना स्थावर बे. एमांथी नीकल्या मुक्ति जाता का, ने मां देवता पण नपजता कह्या; पण तेन वायुना छापुन्या जीवमां देवता पण श्रावने न उपजे, अने एमांथी नोकल्या अयुन्या जीव मुक्तिमां पण न जाय. एमज विकूलें डिना नीकल्या अपुन्या जीव मुक्तिमां न जाय. वली मोक्षगामि जीव मुक्तिमार्गने विषे द्रढ रह्या तेमने देवताए तथा मनुष्ये धन्य, पुन्य, कृतार्थ कहीने बोलाव्या बे. वली कामदेव तथा कुंमकोलियादि श्रावकोने श्री माहावीरदेवे धन्य, पुन्य, कृतार्थ कदीने बोलाव्या ते वास्ते पुन्य प्रसंशनिक बे. जेटलं पुन्य नहुं तेलो मुक्तिनो मार्ग वेगलो जावो. वली अहीयां एम जाणवुं जे, उदयनाव ने क्षयोपशमनाव ए hi मार्ग साधक अवस्था बे ते उदयनावनी ते हयोपशमनावनी ए बनेनी अवस्था यादवा योग्य बे; श्राने बांधिक छात्रस्था बे ते बनेनी sinवा योग्य वे. जेम नदयजावमां विषय कषाय श्रादी घणा बोल बाधक बे; अने तेज नदयनावमां प्रभुनुं दर्शन तथा श्राहार विहार करवो ए करणी साधिक पण बे. दवे कयोपशमनावमां त्रण अज्ञान अने २० पाप-सूत्र तथा अन्य दरसनी गोशाला जमाली प्रमुखनां कृत्य, चार वेद, चौद विद्या इत्यादिक सर्वनुं जावं, ते मुक्तिमार्गनो बाधक बे ने तेज क्षयोपशमनावमां श्री जिन - प्रणित द्वादशांगीनुं जणवं तथा चारित्रनुं पालतुं इत्यादिक साधिक बे. ते माटे जे जे कारणे मुक्ति नजीक थाय ते ते कारण आदरखा योग्य बे ने जे जे कारणे मुक्ति वेगली चाय ते ते कारण बांगवा योग्य बे. वली जगवंते Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार.. लोकोत्तर पक्षमा त्रण वाणीयानी नपमा दीधी, त्यां पण पुण्यने लान कह्यो जे. जेणे पुण्य नपाज्यु तेणे लान उपायो. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन ७ मानी गाथा १४ मी तथा १५ मी: जहाय तिन्नि वणिया, मुखंधितुण निग्गया; एगोत्थ लहए लानं, एगो मुलेण आगन. ॥ १४ ॥ एग मुलंपि हारित्ता, आग तब वाणिन; ववदारे नवमा एसा. एवं धम्मे वियाणिद. ॥ १५॥ अर्थः-जा जेम ति त्रण व० वाणीया मु० मुलगी पुंजी रासी धि० लश्ने प्रदेशे व्यापार नण नीकल्या. ए० ए त्रणमांथी एक लग साल लश् श्राव्यो. ए० एक मुण् मुलगी रासी पुंजी लश्ने घेरे श्राव्यो. ए० एक मु मुलगी रासी पण हा जुगटे रमतां हारीने धन खाइने श्रा० श्राव्यो त ज्यां पीता घर इतुं त्यां. व० वाणीयो व्यापारी व व्यापारने विषे नए उपमाए एण् एणी पेरे ध० धर्मने विषे |व जाणवू. नावार्थः-हवे जुञ्ज ! को एक (व्यापारीने) व्यवहारीश्राने त्रण पुत्र हता. तेणे पोताना पुत्रोना नाग्यनो परिक्षा जोवा निमित्ते अकेकाने सहस्त्र सहस्त्र मोहोरो श्राप देशान्तरे मोकल्या अने कह्यु के, हे पुत्रो ! तमोने ऽव्य आप्यु डे तेनाथी व्यापार करी लाल नपार्जी वेहेला श्रावजो. तेवारे त्रणे साहुकारना पुत्रो जुदा जुदा देशान्तरे गया. तेमां वमो पुत्र चाकर नफर राख आव्या गयाने तृप्त करी व्यापारमा घणुं धन कमाणो. बीजे पुत्रे विचार्यु के, मारा पोता पासे घणुं धन डे माटे मुलगी पुंजी साबीत राखं. एम चीतवो जे कां लान उपार्जे ते गीत वाजींत्र, खादिम स्वादिम चारे प्रकारे नोगवे; अनेत्री पुत्रे मनमा चिंतव्युं जे, मारा पीता वृद्ध थया ने श्रने धनना जोगववावाला तो अमेज बोए ते अमने प्रदेशे काढया अने ऽव्य तो सात पेढसुधी; खाय तोपण खुटे तेम नथो; माटे धन मेलववा सारु कष्ट शामाटे नोगवईं? एम वीचारी मुलगी पुंजो पोताए श्रापी हतो ते सर्व खाधो. Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सिदान्तसार.. (४७७ ) हवे केटलाक दीवसे त्रणे पुत्र देशान्तरथो घेरे श्राव्या त्यारे पी. ताए त्रणे पुत्रनी वात जाणी. तेमां जेणे मुलगी पुंजी खाधी तेने घरनो हाली को अने कह्यु के, घरनुं कामकाज करो ने पेट नरो. जेणे मु. लगी पुंजी राखी तेने अन्यथी व्यापार करवामां लगाड्यो; अने जेणे लान उपायों तेने सर्व घरनो जार थापी मालीक स्थाप्यो. तेम धर्मने विषे पण जाणवू. ते एम-शहां मुलगी राशी ते मनुष्यनो जव. हवे एकेक जीव तो धर्म क्रिया करी ज्यां असंख्याता सुख ले एवो देवतानी गति पामे. बीजा जेणे मुलगी पुंजी साबीत राखी ए अष्टान्ते एवी कमाइ करे, तेथी ते मरीने फरी मनुष्यनो अवतार पामे. हवे त्रीजी जातना जे मुलगी रासी खाय ते, मुलगी रासी गमावे ते देवालीयो थाय तेनी माफक घणा मागं कर्म करीने नर्कथा तिर्यंच अने तियंचथी निगोदमां जश् पमे. एम व्यवहार राशीथो गयो तेनो संबंध सूत्रमा ले. ते श्रागल कहे जे. ते पाठः माणुसतं भवे मुलं, लाभो देवगइ नवे; मुख बेएण जीवाणं, नरगं तिरिकतणं धुवं ॥ १६॥ दुइ गइ बालस्स, आवद वह मुखिया; . देवतं माणुसत्तंवा, जं जिए लोलुया सढे ॥१७॥ अर्थः-माण मनुष्यपणुं ते ना थाय मुण् मुलगी राशी. ला देव. गतो थाय ते लान्न जाणवो. मु (मनुष्यणानी ) मुलगी रासीनी ने हानी थावे करी जा जीवने न० नर्क ति तिर्यंचपणुं धु० निश्चे थाय. दुबे प्रकारनी गण् गति (नर्क भने तिर्यंच) बा अज्ञानीने थाय. प्राण ते अज्ञानोने बे गति आवे-नर्क श्रने तिर्यंच. ते गति केवी बे ? व वध बंधादिक वध मुलिका डे अथवा बेदनदनादिक बंध मुलिका. नर्क तिर्यंचमांएवी पदवी पामे देव देवतापणुं ने मा० मनुष्याणुं जिण्जे हार्यो लोग मांसादिकना लोलपोपणे ते देवतापणुं हार्यों पड़ी नारकी थयो. स० धुर्तपणे मायाए करी मनुष्यपणुं हार्यों पड़ा तिर्यचपणे थयो. Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७८) + सिद्धान्तसार.. जावार्थः-हवे जुलं ! ए पाठमां एम कडं के, जे मनुष्य मरीने मनुष्य थाय तेणे मुलगी पुंजी राखी; नर्क तिर्यंचमां जाय तेथे मुलगी पुंजी खोइ कर्मनुं देवावँ काढयु; श्रने देवतामां जाय तेणे लान्न उपाज्यो. ए जुन ! देवगति नदयनावमां बे. ते मली त्यारे वीतरागे तेने लानना पक्षमा गएयो. ए नदयन्नाव पण उर्धक्षेत्र श्राश्रीने शुरू कह्यो. वली हरकेशी मुनीने ब्राह्मणोए कह्यु के, हे मुनी ! तादारुं शरीर सर्व पुजनिक जे. शाख सूत्र नत्तराध्ययन अध्ययन बारमे ते पाठ. गाथा ३३,३४. अखंच धम्मंच वियाणमाणा, तुब्ने नविकुप्पद नूश्पन्ना; तुब्नंतु पावे सरणं उवेमो, समागया सव जणण अम्हे ॥ अच्चेमुत्ते मदानागा, नत्ते किंचि न अच्चिमो; मुंजाहि सालिमं कुरं, नाणा वंजण संजुयं ॥ अर्थः-हवे विप्रो बोल्या-अ० शास्त्रना अर्थ अने धम् यतिना धर्मने वि० विशेष जाणताथका तु० तमे न न कोपो. नूप जीवदयानो तमारी प्रतिज्ञा . तु तमारा पा० पगर्नु स० सरण न करवाने स० सर्व एका मल्या बीए जण परिवार सहित श्र० अमे. अपुजवा योग्य तमाहं सर्व अंग म हे माहानुनाग ! न० नथी ताहारं किं कां पण न० अणपुजनिक पगनो रज आदि. मुं० नोगवो सा सालीमय कुरण कुर ना अनेक विधनां वंग (व्यंजन) साख सं० सहित. ॥३४॥ नावार्थ:-हवे जुन ! नपरना पाठमां ब्राह्मणोए हरिकेशी मुनी. राजने कह्यु के, हे माहा नाग्यवंत पुन्यवंत माहामुनि! तमारुं शरीर सर्व अर्चनिक डे, लगार मात्र अणधर्च निक नथी. अहीयां नदयनाव प्रा. श्रोत शरीरने अर्चनिक कह्यु. त्यारे ए साधिक डे के बाधिक डे ते वो. चारजो. वली नंदी अने अनुजोगद्वार सूत्र मध्ये जावथकी लोकोत्तर पक्षना अधिकारे कयु के, प्रजु केवा जे ? "तिलोक वहिय निरस्किय" प्रजुना सामुं सुर नर जुए में तेने आनंदरस प्रवाह आंसुं चाले ले. ए शरीर निरक्षणा नदयनाव वर्तना के; पण नक्तिनावना प्रेर्या जोस्ने. Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( ४७९ ) हर्षे . वली जगवती सूत्रना १९ मा शतकमां प्रजुए साधुने वर्ज्या के, गोशाला साधे को बोलशो नही. एवामां वे साधु धर्माचार्यनी जक्तिaावना प्रेर्याथका बोल्या. दवे ए साधुने श्राज्ञा विराधी तेनो दोष लाग्यो के क्तिनावे उपदेश दीधो तथा नक्तिरागे बोल्या तेथे गुण थयो ? हवे ए बोल्या ते करणी उदयजावनी ते, पण ते साधिक बे के बाधिक बे ते जुन. वारे तेरापंथी कड़े बे के " सूत्र उत्तराध्ययनना दसमा अध्ययनमां' एवं नवइ संसारे संसरइ सुहा सुहेहिं कम्मोहिं ' एम कपुं. एटले जीव जम्यो ते शुभाशुभ कर्मे करीने जम्यो. ए जुर्छ ! पुन्य पाप बेटी रुलतो को . त्यारे पुन्य मुक्तिनो साधक कयांथो ?” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! एम शाने जुलो बो ? एमां तो प्रजुए खरुं कं बे, जे जीव संसारमां रुले बे ते शुभाशुभ कर्मथ रुले डे. ए केहेवान परमार्थ एवो बेके, शुभाशुजनो जोको बे. ते शुभाशुभ समय मात्र तुटतो नथी, सवृत्ति के ते माटे शुभाशुभ जेला कह्या; पण शुजभी धर्म नजीक बे ने अशुभथी धर्म नजीक नथी. जो अशुज कर्मनी उत्कृष्ट स्थिति बांधे तो जोव मुलथी धर्म न पामे, अने शुभकर्मनी उत्कृष्टी स्थिति वांधे तो जीव धर्म सुखे पामे, एम सुत्रमां ठाम ठाम क े. वली सूयगकांग सूत्रना बीजा श्रुतस्कंधना बीजा अध्ययनमा तेर क्रिया कही. तेमां तेरमी क्रिया इरियावहि शातावेदनी पुन्य प्रकतिनी. ते इरियावद्दि कियाने अधर्म पक्षमां कही; सावध कही; पण एम कनुं के, ए इरियावहि क्रियामां वरतीने सेवीने गया काले अनंता मुक्ति गया, वर्तमानकाले महाविदेद क्षेत्र प्रमुखमां संख्याता जाय वे ने खागमीए काले अनंता मुक्ति जाशे. ए जुई ! इरियावहि क्रिया पुन्य प्रक्रति बे ते सेवीने मुक्तिमां जावं कयुं. ए इरियावद क्रिया लाग्या पठी जीव निश्चे मोगामि यर चुक्यो. ए जुङ ! एकबुं पुन्य इरियाचहि क्रियामांज वे. ते श्राव्यापी अने बांध्या पक्षी (नचे मोक जापुंज कथं यने शुजाशुथी रुक्षवुं कयुं. ते सहचारी Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८०) + सिदान्तसार जोमे तेथी पुन्य भोगववानी वांना श्रने मोहकर्म अशुल तेथो पुन्य जोगववामां ग्रजपणुं ने ते आश्री रुलq कह्यु बे; पण मुक्तिमार्गना साजने अर्थ त्रसनो दसको, पंचेछि जात थने उदारिक शरीर, ए पुन्यरुपी नावा संसार समुज्मां बेग त्यां सुधी संसाररुपी समुफ तरवा माटे श्रादरवा योग्य बे; अने समुप तरीने तीरे श्राव्या पली नावा बोमवा लायक जे. जेम वस्त्रमा मेल ने त्यां सुधी तो साबु श्रादरवा लायक , पण मेल बुटया पड़ी साबु बोमवा लायक बे, तेम जीवने अशुज कर्म रुपो मेल ने त्यां सुधी तो पुन्य (शुनकर्म) रुपी साबु श्रादरवा लायक बे; अने श्रशुजकर्म तुटया पनी पुन्य (शुनकर्म ) रुपी साबु बोमीने मुक्कि जाय . इत्यादिक अनेक सूत्रनी शाखे व्यवहार नयमां पुन्य श्रादरवा लायक . तमे मतना लीधे एटला सूत्रनां वचन उथापीने पुन्य एकान्त बांझवा योग्य केम स्थापोडो ? ____वली तेरापंथी (जो ग्रहस्थी सूत्र जणशे तथा वांचशे तेथी वोतरागनां वचनथी वाकेफ थ जशे तो पनी अमा। कपटाश् चालशे नही एम धारी) खोटो मत स्थापवाने अर्थ कहे जे के “ ग्रहस्थीए सूत्र नणवू नही. जो साधु ग्रहस्थीने सूत्र नणावे तो नषित सूत्रमां चोमासी प्रायश्चित आवे कडं जे.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! त्यां तो "अणनबिएवा गारखिएवा वायश्वा वायतंवा साजार" एवो पाठ बे. ते अन्यतिर्थी मिथ्यात्विी अने अन्य तिर्थीना ग्रहस्थो तथा मिथ्यात्वी आश्री कडं देखाय बे, पण श्रावकनुं तो नामज नथी. वली शिष्यनी पेरे ग्रहस्थीने वांचणी देवी नही. तेम अन्यतिर्थी-ग्रहस्थो पासे साधु वांचणी ले तोपण चोमासो प्रायश्चित कयु बे. हवे तमे ग्रहस्थी पासे दुहा, उपदेसीक ढालो, सवैया, व्याकरण प्रमुख केम सोखो बो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ अमे तो मोंढे सीखीए बीए, पण वीनय करीने शिष्यनी पेरे पानांथी वांचणी लेता नथी.” तो हे देवानुप्रीय ! चोथा श्रारामां तो सर्व ज्ञान मोंढेज शीखता हता. जेम अन्यतिर्थी ग्रहस्थी कने शीखे तेम शोखवामे तो अटके नही; पण शिष्यनी Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ४८१ ) माफक विनय करीने शीखे नहि, तेम शीखवे पण नदी. एवी रीते साधुने वांचली अन्य तिर्थी ग्रहस्थीए देवी नहीं; छाने जो दे तो प्रा. यश्चित कयुं; पण श्रावक सूत्र जणे अथवा वांचे तो श्रावकने प्रायश्चित वे एम तो नथी कयुं. श्रावकने सूत्र एवं तो गम ठाम सूत्रमां चायुं देखाय बे. प्रथम तो आवश्यक सूत्रमां श्रावकने सूत्रज्ञानना चौद अतिचार टालवा कह्या बे; छाने नित्य श्रावक परिकमणामां "सुतागमे अथागमे तदुनयागमे एवा श्री ज्ञानने विषे जे कोइ प्रतिचार लाग्यो होय तो घालोनं :- जंवाइद्धं इत्यादिक" चौद अतिचारनो मित्रामि फुक्क थापे डे. ए जुड़े ! जो श्रावकने सूत्र जरावुं वज्युं होय तो ज्ञानना. चौद अतिचार केम परुप्पा ? अने श्रावक नित्य परिकमणामां म परिकमे ? माझा हो तो विचारी जोजो. तेवारे तेरापंथी कहे बे के, “ श्रावश्यक सूत्र ( श्रावकनुं पमि - कम) श्रावक शिखे बे ते तेनुं सूत्र कद्देवाय, तेथी तेना अतिचार पमिकमे बे; पण बीजां सूत्र श्रावकने जणवां नही. " तेनो उत्तर. हे देवाप्रीय ! बार अतिचार तो पमीकमणाना कहो तोय मलशे, पण 66. Tसकाए सजाए, सकाए न सकाए” एतो दस नदारीक शरीरनां दाम, मांस लोदी, विष्टा प्रमुखनाने दस आकाशनी विजली ऊबके, तारा तुटे, आकाशमां गाजे, (धुंहर ) झाकल पके, इत्यादिक असाय थकां सकाय करवी नही. हवे जो पक्किमला-सुत्रनाज चौदे तिचार कहोतो, साधु श्रावकना शरीरमां दुषणा (मुंबमा) होय तेमां परुं लोहा चकता होय तथा जिष्टा, राध, लोहा, दाम, कलेवर, पड्यां होय तो पक्किमपुं करे के नही ते कहो. " वारे तेरापंथी कड़े बे के " साध श्रावक परिकमणुं तो सांज सवार बने टंक अवश्यमेव करे. तेमां जो साधुजी बने वखत परिक न करे तो तेने प्रायश्चित लागे कधुं बे, घने श्रावने प्रायश्चित तो नही, पण परिकमणुं करतां सायनो अटकाव नहीं. " दवे जुड़े ! हे देवासीय | भावकने बीस सकामां सकाय करवी नहीं, ते ६१ Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८२) सिद्धान्तसार. - करी होय तो, अने सकायमा सजाय न करी होय तो मिचामिदुकर्म श्रापे . हवे जो श्रावकने सूत्र न नणq एम होय तो पूर्वोक्त असाऊयमां सफाय करवानुं तथा सजायमां सफाय न करवानुं मिछामि कुकर्म नगवंते श्रावकने केम देवू कडं ? ते मध्यस्थ बुद्धिथी विचारी जुर्ज. वली श्रावकने तो सूत्र नणदुं कडं बे. तेनी शाख सूत्र समवायांगमां अग्यार अंगनी नोंध कीधी तेमां तथा उपा. शक दशासातमा अंगना वर्णनमां. श्रावकोना नगरनां नाम, नगरना उद्याननां नाम, जदना चैत्यनां नाम, श्रावकना धर्माचार्यनां नाम, श्रावकना व्रतनी मर्यादानुं वर्णन, श्रावकनी अग्यार पमिमानुं वर्णन अने श्रावकने सुत्र जणवानुं वर्णन डे त्यां “ सुयपरिगदा तवोवहाणा". एवो पाठ जे. एटले श्रावक उपध्यान तप करीने सुत्र नणे डे, एम समवायांगमांकयु ले. हवे जुउँ ! देवानुप्रीय ! नपध्यान-तप करीने श्रावकने सुत्र नणदुं प्रजुए कह्यु जे. तमे श्रावकने सूत्र नण, केम उथापोलो ? तेवारे तेरापंथी कहे ले के 'सूयपरिगहा' श्रावकने कह्या ते सूत्र शांनलवा आश्री कह्या .” तेनो उत्तर हे देवानुप्रीय ! जेम नपाशक दशानी नोंधमां श्रावकने ‘सूयपरिगहा तवोवहाणा' कह्या, तेम अंतगम तथा अनुतरोववाश्नी नोंधमां साधुने पण 'सूयपरिगहा तवो वहाणा' कह्या . हवे तमे कहो बो के, सूयपरिगहा श्रावकने सूत्र सांजलवा श्राश्री कह्या . ए तमारी केदणीने लेखे अंतगम तथा अनुत्तरोतवाश्मां साधुजीने 'सूयपरिगहा' कह्या ते पण सूत्र सनिलवा शाश्री पण नणवा आश्री नही, एम कहे, पमशे; पण त्यांतो साध श्रावक बनेने माटे एक सरीखो पाठ . ते सूत्र नणवा आश्रीज बे. तमे मतना लोधे खोटा अर्थ केम करो बो ? वली 'सुयपरिगहा तवोवहाणा' ए पाठ तो श्रावकने सूत्र सांजलवा श्राश्री एवो अर्थ तमे करो हो, तो हमणा श्रावक सूत्र सोनले ते कया कया नपध्यान-तप करे डे ते कहो. वीतरागदेवे तो नपध्यान तप करीने सूत्र ग्रहवं कडं बे, पण तमे तो तमारी केदेणीना लेखे श्री वीतरागदेवेनां वचन बोपीने उप Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिद्धान्तसार.. (४४) ध्यान-तप कराव्या विना सूत्र संजलावो बो. ए प्रजुनी श्राज्ञाना विराधक केम था बो? . वली तुंगिया नगरी प्रमुखना श्रावक आदि अनेक श्रावकोने " लझठा गहियही पुबियहा इत्यादिक” पांच बोल कह्या ले. ते श्रावकोए सूत्र पाउना अर्थ लाध्या डे, ग्रह्या तथा अर्थ पुगी पुडीने निश्चे निर्णय कर्या ने, इत्यादिक पांच बोलना जाण श्रावकने कह्या जे. त्यारे जु ! सूत्र-पाठ शिख्याविना अर्थ शो रीते सुधारशे ? कया पाठनो अर्थ पुबीने निर्णय करशे ते कहो. कदाच जो नव तत्वादिकना जाणपणा उपर पूर्वोक्त पांच बोल उतारशो तो नव तत्वना बोल चाल जीव अजीवना जाणपणानुं वर्णन तो पेहेलांज कर्यु , पनी समकितना गाढापणानुं वर्णन कर्यु , अने पनी विशेष सूत्रना जाणपणा श्राश्री ए पांच बोल कह्या बे. जेम जगवती सूत्रना ११ मा शतकना११ मा उद्देशामां, माहाबल कुंवरनी माताए सिंह, स्वप्न दोढुं त्यां स्वप्नपाठकने बोलाव्या. त्यां पहेलां तो निमित्त शास्त्रना सूत्र पाठ श्रने अर्थना जाण कह्या ; श्रने पडी राज्य सनामां मांहोमांही चोलणा करीने प्रश्न पुडीने विशेष निर्णय कर्यो, त्यां 'लझठा गहियठा' इत्यादिक पांच बोल कह्या बे; पण जेम ए स्वप्न पाठक स्वप्न शास्त्रना पाठ अने अर्थ बनेना जाग , तेम श्रावक पण सूत्र अने अर्थ बनेना जाण. एम सूत्रपाठमा गम गम श्रावकने सूत्र नणवां कडं दीसे बे. तमे मतने लोधे सुत्रमा कह्यां ते वचन केम नथापो हो ? वली तेरापंथो, नव तत्वमां पांच तत्वने तो एकान्त नये जीव कहे जे अने चारने अजोव कहे . ते एकान्त नय परुपे . तेमां एक तो जोवने जीव कहे अने अजोबने अजीव कहे . ते अजीवतो अजीव ज. ए बे तत्व तो मुलगा . शेष सात तत्वमां-पुन्य, पाप अने बंध, ए अपने अजीव कहे बे, अने श्राश्रव, संवर, नीरा श्रने मोद, ए चारने जीव कहे . हवे पुन्य, पाप अने बंध, ए त्रणने एकान्त अजीव कहे बे; पण सूत्र नां गम गम व्यवहार नय श्राश्री पुन्य, पार Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८४ ) + सिद्धान्तसार.. शुन्नाशुन कर्म पुद्गल जे ते जीवने लोलोजुत डे त्यां मुधी तेने जीव कह्या बे. हवे पुन्य, पाप अने बंधने जीव कया न्याये कहीये ते कहे बेःपुन्य, पाप अने बंध, व्यवहारमा जीवन लक्षण, कारण के एनो कर्ता जीव , ए त्रणे जीव पणे प्रणम्या अने ए त्रणे जीवने लोलीजुत जे.ए न्याये ए त्रणने जीव कहीये. (१). वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव कया न्याये कहीयेः-अनुयोग छारमा सात नयने पाथा नपर नतारी . तेमां उपली त्रण नयना धणी, जीवना नपयोगने पाथो माने. ए अष्टान्ते नपली त्रण नयना धणी जीवना नपयोगने पुन्य, पाप अने बंध माने; कारणके नपयोग आत्मा ने अने आत्मा नाम जीवनुं . ए न्याये पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. (२). वली पुन्य, पाप थने बंधने जीव ए न्याये कहीयेः-चारगति, पांचजाति इत्यादि पुन्य, पाप अने बंधनी प्रक्रति बे. ते चार गति अने पांच जाति इत्यादिमां जीव कह्या . तेनी शाख सूत्र आवश्यक, दसवैकालीक, नगवती अने पनवणा श्रादि अनेक सूत्रमां. ए न्याये पण पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीये. (३). वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कहोये:पुन्य पाप शुन्नाशुज कर्म डे अने बंध पण शुजशुन कर्म प्रकतिनो डे अने आठ कर्मने अने जीवने एकज कह्या , तेम अढार पापने अने जीवने एक कह्यो बे. तेमज पांच शरीरने अने जीवने पण एकज को जे. शाख सूत्र नगवतो शतक सत्तरमे उद्देसे बीजे. ते पाठ: अपबियाणं नंते ! एवमाइख जाव परुवेश एवंखल पाणाश्वाए मुसावाए जाव मिहादसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्नेजोवे अणेजावाया पाणावायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे जाव मिनादसणसल्लविवेगेवमाणस्स अन्नेजोवे अणेजीवाया जप्पतियाए जाव परिणामियाए वह एस्स अन्नेजावे अणेजोबाया नग्गहे इदा अवाए Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (४८५) धारणाए वट्टमाणे अन्नेजीवे अणेजीवाया जहाणे जाव परिक्कमे वट्टमाणस्स अन्नेजीवे अणेजीवीया नेरश्यत्ते तिरिक मणुस्स देवत्ते वमाणस्स अणे णाणावरणिये जाव अंतराइए वट्टमाणे जाव जीवाया एवं कण्हलेस्सा जाव सुकलेसाए समदिहिए ३ एवं चस्कूदंसणे ४ आनिणोबोदियनाणे ५ मइअनाणे ३ आहारसणाए ४ एवं नरालियसरीरे ५ एवं मणजोगे ३ सागारोवनगे अणा. गारोवउगे वट्टमाणे अन्नजीवे अणेजीवाया से कहमेयं नंते! एवंखलु गोo! जणंते अणबिया एवमाइकर जाव मिबंते एवं मादंसु अदंपुण गो ! एवमाइकामि जाव परवेमि एवं खलु पाणाश्वाए जाव मिहादसणसल्ले वमाणस्स सच्चेवजीवे सच्चेवजीवाया जाव अणागारोवनगे वटमाणस्स सच्चेवजोवे सञ्चवजीवाया.॥ अर्थः-अ० अन्यतिर्थी जग हे भगवान ! ए० एम कहे जे जाण यावत् ए० एम परुपे ने ए० एम खण् निश्चे पान प्राणातिपात मु मृषावाद आदि जाग यावत् मि० मिथ्यात्व दर्सन अने शव, ए १७ पाप स्थानकने विषे व वर्तमान देहधारक जीव अ० ते जोव अनेरो अने अणे जीवात्मा अनेरो. पाण (प्राणातिपातादिक विषे वर्तमान सरीर दीसे पण श्रात्मा नथी दीसतो ते जण) प्राणातिपात वेरमण जाण यावत् प० परिग्रह वेरमण को क्रोध विवेक जाग यावत् मिस मिथ्यात्व दर्सन शव विवेक, एने विषे व० वर्तमाननो अ. जोव अमेरो अने अणे जीवात्मा अनेर कहीए. न० नत्पातनी बुझि जा यावत् प० परणामनी बुद्धिने विषे व वर्तमानने अण् अनेरो जीव अने अ० अनेरी जीवात्मा कहीए. न० अवग्रह ३० (इहा) विचारणा अनिर्गय करवो धाण धारणाने विषे व वर्तमानने अ० अनेरो जाव अ० अनेर। जावात्मा Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८६) +सिद्धान्तसार.. १० नगण जाण् यावत् प० पराक्रम एने विषे व वर्तमान ते अ० जीव अनेरो श्रने अणे जीवात्मा अनेरी कहीए. ने नारकी ति तिथंच योनिक म मनुष्य अने देण् देवपणे व वर्तमानने १० अनेरो जीव अने अनेरी जीवात्मा कहीये. पा एम ज्ञानावर्षी जाग यावत् अंगअंतरायने विषे व वर्तमानने श्र० अनेरो जीव अने अनेरी जीवात्मा कहीए. ए० एम क० कृष्ण-खेश्या आदी जाग यावत् सु० शुक्ल-लेश्याने विषे वर्तमानने अनेरो जीव अने अनेरी जीवात्मा कहीये. स० सम्यक्दृष्टि इत्यादिक ३ ए एम चा दर्शन आदि ४ केदेवा.आप एम मतिज्ञानादि ५ केहेवा. म० एम मतिश्रज्ञानादिक ३ केहेवा. पाण् श्राहार शंज्ञादिक ४ केहेवा. ए० एम न0 उदारीक शरीरादि ५ केहेवा. म० एम मनजोगादि ३ केदेवा. सा० साकारोपयोग अ० अने अनाकारोपयोगने विषे व० वर्तमानने अण् अनेरोजीव अणे अनेरी जीवात्मा कहीए. एम अन्यतिर्थी कहे . से ते क० केम जंग हे जगवान ! प्रश्न. उत्तर. ए० एम निश्चे गोण् हे गौतम ! जण जे जणी अं० ते अन्यतिर्थी ए० एम कहे परुपे जाण् यावत् मि मिथ्या जुटुं ए० तेमनुं ए केहेवू. श्र० हुँ वली गो हे गौतम ! ए एम कहुं हुं जाग यावत् प० एम परपुं हुं ए० एम खण् निश्चे पा प्राणातिपात श्रादि जाग यावत् मिग मिथ्यात्व दर्शन शस्यने विषे व वर्तमाननो स तेज जीव स तेज जीवात्मा इत्यर्थः कथंचित्त एवं जाणवू नही एने मांदोमांही असंत नेद ते माटे. जाग यावत् अ अनाकारोपयोगने विषे व वर्तमान स तेज जीव स० तेज जीवात्मा इत्यादिक सर्व केहे.. जावार्थः-हवे जुन ! श्रा पाठमा १७ पाप, १७ पापनुं वेरमण, ४ बुद्धि, श्रवग्रहादि चार मतिज्ञाननानेद, ५ नगणादिक, ४ गति, ८ कर्म ६ लेश्या, ३ अष्टी, ४ दर्शन, ५ ज्ञान, ३ अज्ञान, ४ संज्ञा, पांच शरीर, ३ जोग अने १२नुपयोग, 'सागारवनता मणागारवनता' ए ए६ बोलमां वर्तवावालो जीवन्यारो थने ए बोल न्यारा, एम अन्यतिर्थी कहे , तेने नगवंते जुग बोला कह्याः अने नगवंते ए एद बोल अने जोवने Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ४८७ ) एकज कह्या. • हवे जुर्ज ! १० पापनुं वेरमण अने १२ उपयोग इत्यादिक केटलाक तो संवर, निर्जरा ने मोना नेद बे; अने १८ पाप, ८ कर्म, ५ शरीर, ४ गति छाने ३ जोग इत्यादिक शुभाशुभ पुद्गल जीवने लोलीजुतबे त्यां सुधी पुन्य, पाप, बंधनी प्रक्रतिर्ज बे. ते माटे या सर्व बोलने ने जीवने एकज को बे. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीये. वारे तेरापंथ कड़े बे के " १० पाप कर्म अने ५ शरीर, ए तो जीवथी न्याराज बे; ने एने विषे वर्तवावालो जीव छाने जीवनी आत्मा तेने जगवंते एक कही बे. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! इहां तो १८ पापनुं वेरमण, १२ उपयोग अने ३ द्रष्टी इत्यादिकमां वर्तवावाला जीवने ने जीवात्माने अन्यतिर्थी न्यारा कहे बे, पण जगवंते एक का बे. दवे तमारी केहेणीने लेखे तो इहां पण त्रण बोल इशे. ए बोल न्यारा, ए बोलमां वर्तवावालो जीव न्यारो, श्रने जीवात्मा न्यारी एम मानतुं पकशे. तेवारे वली तेरापंथी कदे बे के “ १७ पापनुं वेरमण अने १२ - पयोग, ए तो जीवथी न्यारा नथी. ए बोल ने जीव तो एकज बे.” त्यारे हे देवानुप्रीय ! जगवंते तो ए६ बोलमां एक सरखो पाठ कह्यो बे. ए बोलमां वर्तवावालो तो जीव कह्यो, अने ए६ बोलने आत्मा कही ते एकज बे. दीयां तो ए६ बोल प्रने जीव ए बे बोल बे. तमे मतने लोधे ए ए६ बोल न्यारा, जीव न्यारो छाने जीवात्मा न्यारी, एम त्रण बोल केम करो बो? जो त्रण बोल करो तो कहो. प्रात्मा केने कड़ो ढो छाने वर्तवावालो जीव केने कहो बो? तमे शुं श्रात्मा ने जीवने जुदा जुदा मानो हो ? जो एम मानता हो तो ए तमारुं मानवुं सूत्र विरुद्ध बे. हवे अदीयां तो अन्य तिर्थी ए एकान्त निश्चे नयनो पक्ष लइने ए६ बोलने जीवने न्यारा ह्या. तेवारे जगवंते व्यवहार नयनो पक्ष लइने, एकान्त पक्ष निषेधवाने अर्थे ए६ बोल अने जीवने एक कह्या वली रायप्रशेली सूत्रने विषे प्रदेशीराजाए एकान्त व्यवहार नयनो पक्ष लइने, शरीर अने जीव एक बे, ए रीते परलोकनी नास्ति स्थापी जीव खने: Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८८) + सिद्धान्तसार.. शरीर ५ तस्वनुं पुतj ते नेबुंज नपजे जे अने बुंज विणशे जे. एवो एकान्त व्यवहार स्थाप्यो. तेवारे केशीश्रमण मुनीराजे परलोकनी प्रा. स्ति देखामवाने माटे निश्चे नयनो पद लश्ने कडं के, हे प्रदेशी! तुं जुगे जे. जीव न्यारोळे अने शरीर न्यारूं . जीव परलोकमां पुन्य पाप ल जाय डे अने शरीर अहीयांज विणशे बे. ए जुर्ड! सतरमा शतकना बीजा उद्देशामां, अन्य तिर्थीए शरीरने अने जीवने न्यारो कह्यो, तेम रायप्रशेणी सूत्रमा केशीश्रमण मुनीराजे कह्यो, अने रायप्रशेणीमां प्रदेशी राजाए जीव अने शरीरने व्यवहारनय एकान्त खेंचीने एक कह्यो. तेम सतरमा सतकना बीजा उद्देशामां श्री जगवते पण जीव अने शरीरने एक कर्तुं . हवे रायप्रशेणीमां तो प्रदेशी राजाए एकान्त व्यवहार नय स्थाप्यो तेथो केशी स्वामीए तेने निश्चे नयनो पद लश्ने जुगे कह्यो, श्रने जगवतीमां अन्यतिर्थीउए एकान्त निश्चनय स्थाप्यो तेथी जगवते व्यवहारनो पक्ष लश्ने तेमने जुग बोला कह्या.ए जुग कह्या ते एकान्तनय स्थाप्यो तेथीज कह्या , कारण के नगवंतनो स्याद्वाद् मत जे. तमे अन्यति नो पेरे एकान्त निश्चे-नयनो पद लश्ने कर्म, १० पाप, ५ शरीर अने जीवने न्यारा केम कहो हो ? नगवंतेतो कर्म, १७ पाप, ५ शरीर अने जीवने एक कह्यो . ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीए. (५). वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कहीये:पुन्य, पाप अने बंध ए शुनाशुन्न कर्म डे. ते कर्मना बे नेद. नदय १ श्रमे उदय निष्पन . तेनी शाख सूत्र अनुयोगहार. उदय ते श्राप कर्मनो उदय; अने उदय निष्पनना बे नेद. जीव-उदय निष्पन १ अने अजीव उदय-निष्पन ५. तेमां जीव-उदयनिष्पनना ३३ बोल, ४ गति, ६ काय, ६ लेश्या, ४ कषाय, ३ वेद, मिथ्यात्वि, अनाणि, असंझो, पाहा. रीक, अति, सजोगी, संसारत्था, बद्मस्थ, श्रसिद्ध अने अकेवली एवं ३३. ए तेत्रोस जीव-नदयनिष्पनना बोल ए जीवज ले. ए न्यावे पुज्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. (६). Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (४४९) वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कहोये:-गुरु लघु पर्यव अफरसी रुपी पुद्गल जीवने लोलीजुत जीवे ग्रह्या तेने, तथा अगुरु लघु पर्यव कारमण शरीर चोफरस) पुद्गल जोवे कर्मपणे ग्रह्या तेने नाव जीव कह्या ले. शाख सूत्र जगवती शतक बोजे नद्देशे पेहेले, खंधकजीना अधिकारमां. ते पाठः जेवियणते खंदया ! जाव सअंतेजीवे अणंतेजीवे तस्सवियणं अयम एवं खलु जाव दवणं एगेजीवे सअंते खेतनणं जीवे असंखेद्यपएसोगाढे. अनिपुणे सअंते कालनणंजीवे एकयाइनासि निच्चे णव पुण सेअंते जावनणंजोवे अणंताणाणपऊवा अणंतादसणपऊवा अपंताचरित्तपजावा अणंतागुरुखहुयपऊवा अणंताअगुरुलहुयपऊवा एनिपुणसेअंते सेतं दवजीवे सअंते खेत्तन सअंते काल जीवे अणंते नाव जीवे अणते ॥ अर्थः-जेण्जे पण वली खंग हे खंधक ! जाग यावत स जीव अंत सहित अथवा जीव अ० अंतरहित पण ले त तेनो अ0 एवो अर्थ जाणवो. ए० एम निश्चे जाण् यावत् द अन्यथकी ए० एक जीव सण अंत सहित जे खे० क्षेत्रथको जी0 जीव अ० अशंख्याता प्रदेशात्मक , अशंख्याता प्रदेश अवगाहा बे. अ० वली ते स० अंत सहित का कालथा जीव ण नथी कदी थयो (एतावत्ता अतित काले हतो, वर्त. मान काले , अने अनागत काले रदेशे,) नि0 नित्य जे. ए नथी पुणे वली से तेनो अंत (अनंत ठे). ना नावथकी जीव अण्णा अनंता ज्ञानना पर्याय अण्दं० अनंता दर्शनना पर्याय अ० च० अनंता चारित्रना पर्याय श्र अनंता गुरु लघु पर्याय ते उदारिक शरीर आश्रोने अण् श्र० अनंता अगुरु-लघु पर्याय ते कारमण अव्य अथवा जीव स्वरूप श्राश्रोने. पावली तेनो अंत नथी (अनंत डे). सेन्ते एवी रीते दश अव्यथकी Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०) +सिद्धान्तसार.. जी०जीव स० अंत सहित डे. खे० देत्रथकी पण सण अंत सहित . का कालयकी जी जीव अ अंत रहित ने अने नाप नावथको पण जी0 जीव १० अंतरहित ले. जावार्थ:-हवे जुन ! श्रा पाठमां अनंत ज्ञानना, अनंत दर्शनना अने अनंत चारित्रना पर्यायने नावजीव कह्या; अने एतो संवर, निर्जरा अने मोदना नेद बे. वली धनंता गुरु-लघु पर्याय, नदारीक शरीर, श्रठफरसी पुदगल, पुन्य, पाप, बंध, शुनाशुन कर्मनी प्रकृति अने श्रगुरुलघु पर्याय, श्राप कर्म, कारमण शरिरादिक, रुपी-चोफरसो पुदगल, शुनाशुन्न कर्मनी प्रकृति, ए गुरु-लघु पर्यायने तथा श्रगुरु-लघु पर्यायने नावजीव कहा , अने आठ कर्मने कारमण शरीर कयुं ले. तेनी शाख सूत्र जगवती शतक ७ में ए न्याये पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. वली पुन्य, पाप श्रने बंधने जीव ए न्याये कहीयेः काया कर्मनी प्रकृ. तिले अने कायाने जीव को ले. शाख सूत्र नगवती शतक १३ में उद्देशे ७ में. ते पाठः आया नंते काए अन्नेकाए ? गो ! आयाविकाए अन्नेविकाए. रुवि जंते! काए अरुविकाए ? गोo! रुविविकाए अरुविविकाए एवं एकेक पुत्रा. गोळ! सचित्तेविकाए अचित्तेविकाए जीवेविकाए अजीवेविकाए जीवाणविकाए अजीवाणविकाए. पुदिनंते! काए पुना गोळ! पुस्विंपिकाए काश्चमाणेविकाए कायसमयवित्तिकंत्तेविकाए पुविंपिकाएनिय काश्यमाणेविकाएनिय कायसमयविश्कतेविकाएनिधश कशविदेणं नंते! काए पं0? गो०! सत्तविहेकाए पं00 उरालिय उरालियमिसिए वेनविय वेनवियमिसिए आदारए आदारमिसए कम्मए ॥ अर्थः पूर्ववत् जुन प्रश्न बीजे. पाबल पाने सत्यासीमें. Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सिद्धान्तसार.. ( ४९१ ) भावार्थ:-- हवे जुन ! आ पाठमां एम कयुं के, जीवसहित कायाने जीव कहीये, अने जीव बोया पनी मुवा कलेवरने अजीव कहीये. ते कारमण शरीर व्यवहारमा नजरे न आवे ते आश्री कायाने वरुपी कहीये. तेमज कायाने उदारिकादि शरीर आश्री रुपी पण कहीए. जीव सहित कायाने सचित्त कहीये अने जीव बोझ्या पली मुवा कलेवरने श्रचित कहोये. जीवसहित कायाने आत्मा कहीए अने जीप मेममा पनी मुवा कलेवरने अनात्मा कहीए. ए जुन ! काया कर्मनी प्रकृति ले तेने जीव कह्यो बे. तेज रीते पुन्य, पाप अने बंध पण शुजाकर्म . ए न्याये पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीये. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ कारमण शरीरने तो सूत्रमा गम मम रूपी कयुं बे. अहीयां कारमण शरीर श्राश्री कायाने श्रपी केम कही हशे ? " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! कारमण शरीरने सूत्रमा गम गम रुपी कांडे ते तो अमे पण जाणीए बीए; पण अजुनां वचन सात नये करीने ले. इहां व्यवहारमा कारमण शरीर नजरे म आवे ले आश्री अरूपी कडं . जेम दस-वैकालीक सूत्रमा शाम्मा अध्ययनमा श्राप वस्तु वादर डे पण सुक्ष्म कहो . ते पाठः अहसुहुमाइं पेदाए, जाइं जाणित्तु संजए; दयाहिगारो जूएसु, आस चिह सए दिवा. ॥२३॥ कयराई अझ सुस्माई, जाइं पुविज संजए; इमाइं त्ताइं मेदावी, आइखिक वियकणे. ॥१४॥ सिणेहिं पुप्फ सुहुमंच, पाणुतिंग तहेवय; पणमं वीय हरियंच, अंग सुहुमंच अहम. ॥१५॥ एवमेआणि जाणित्ता, सब जावेण संजए; अप्पमत्तो जए निच्चं, सविंदिय समाहिए. ॥१६॥ अर्थः-श्र आठ सुदम जे पागल कहेशे ते पे जोइने जा Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४९२ ) सिद्धान्तसार. जे सुक्षमने जा० जाणीने सं० संजति द० दयानो पालणहार थाय जू० प्राणीने विषे बेशे चि० नजो रहे अथवा स० जयपायें सुवे. क० कया ० ते या सुकम ? जा० यदि पु० पुढे सं० संजति शिष्य गुरु समिपे, तेवारे गुरु शिष्य प्रत्ये कहे . इ० ए ता० ते श्राव सुक्षम मे० मर्यादावंत यति ते विचक्षण शिष्य प्रत्ये प्रा० कड़े. (स० उस प्रमुखनुं सुकम पाणी १, पु० सुक्ष्म फुल पा० अनुद्धरो कंथवादिक सुक्ष्म प्राणी की मी नगरा प्रमुख त० तेमज प० पांच वर्णी लीलफुल बी० वरु प्रमुखनां सुक्षम बीज इ० नवा नगता अंकुरा (सुक्ष्म ही ) ० माखी, की मी प्रमुखनां कां सु० ते आठमो सुक्षम. ए० एपी पेरे ए आठ सुक्षम जा० जाणीने स० सर्व प्रकारे आठ सुकमनी रक्षा करवाने जावे सं० यति श्र० निंद्रादिक प्रमाद रहित बतो ज० जयणाए करीने कार्यादिक करे नि० सदाय स० सर्व इंडिने विषे स० समाधिवंत रागद्वेष रहित यति.. भावार्थ:- दवे जु ! या पाठमां उस प्रमुखनुं पाणी १, फुल २, नाना कंथवा ३, कीमोनगरां प्रमुख ४, पंचवर्णी फुल ५, वक प्रमुखनां बीज ६, नवा नगता दीकायना अंकुरा 3, अने माखो की की प्रमुखनां मां, ए आठ वस्तुने सूत्रमां ठाम ठाम बादर को बे, ने दीयां व्यवहारमां कोमलपणा या वीतरागदेवे सुक्ष्म कही बे. तेम कारमण काया रुपी बे, पण व्यवहारमां नजरे न आवे ते श्राश्री तेने रुप कह देखाय बे. वली तेरापंथी कहे बे के " श्रीयां काय कही ते धर्मास्ति का यादिक पांच श्री जाणवी. तेमां केटलीक रुपी बे, केटलीक रुप बे, केटली जीवाने कटलीक अजीव बे ते खाश्री कह्युं छे.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रय ! यद्दीया तो कायाना सात नेद कला बेः नदारिक १, उदारिक मिश्र २, वैकर ३, वैकिय मिश्र ४, आहारीक ५, आहारीक मिश्र ६, ने कार्म प्र. ए सात नेद कायाना कह्या बे तेन । ज पुढा बे, कारण के आागला पाठमां चार मनना अने चार वचनना दनों पुछा Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( ४९३ ) बे, तेथी तेनी जो नदारिकादिकज कायानी पुढा संजवे छे. वली या पावनी टोका अजयदेव सुरीजी कृत बे तेमां तथा श्रा पाठना टबामां पण पूर्वोक्त अर्थ बे. तमे मतना लोधे " पांच श्रास्तिकाय आश्री क "एम जुठु केम बोलो हो ? श्रहीयां तो व्यवहार नय श्राश्री जीव सहित कायाने जीव को बे, छाने काया कर्मनी प्रकृति बे. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीए. वी पुन्य, पाप ने बंधने जीव ए न्याये कही ये : -चार गति अने चार कषाय ए कर्मनी प्रक्रति बे. ( शाख सूत्र पत्रवणा पद२३ में तथा सूत्र उत्तराध्ययन तथा कर्मग्रंथमां . ) अने तेने जीवना प्रणाम कह्या बे. शाख सूत्र गणायांग गले १० मे. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीये. वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कही ए:त्रसनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, शुक्रमनाम, स्थावरनाम, पांच इंडिनी जात, चार कषाय, त्रणवेद, इत्यादिक शुभाशुभ कर्मनी प्रक्रती बे, ए प्रक्रतिउने जीव को बे. शाखसूत्र ठाणायांग, पन्नवणा, कर्मग्रंथ इत्यादिक अनेक सूत्रमां. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीये. वली या प्रक्रतिमां ज्ञान कयुं बे. शाख सूत्र जगवती शतक ८ मे उद्देशे बीजे. जीवमां ए प्रक्रति लोलीजूत रहे त्यांसुधी जीव ज्ञान पामे नही. तेथी व्यवहारमां तेने जीवज कहीये. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव ज कहीये. वली पुन्य, पाप ने बंधने जीव ए न्याये कही ये ः- आठ कर्म, अढार पाप अढार पापनुं विरमरा, चारगति, चोवीस दंमक, पांच शरीर, त्रण द्रष्टी अने बार उपयोग इत्यादिक ११७ बोलने आत्मापणे प्रशमे कयुं छे. तेनी शाखसूत्र जगवती शतक वीसमे, उद्देशे त्रीजे. जीवपणे प्रणमे तेने व्यवदारमां जीवज कहीये. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीये. वली तेरापंथी कहेबे के “५ गति, १८ पाप, २४ दंग इत्यादिक प्रकतिने तमे जोव स्थापोडो. ते ए प्रक्रति छाने ५ शरीर, तो अजोव बे Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९४) + सिद्धान्तसार.. अने जीवने प्रगमे . ए चार गतिनां शरीर तो अजीव बे, तेथी पुन्य -पापमा पुशल पण अजीव ; पण तेना मांहे जीव जे. ए न्याये एटला पांचमां जीव कही बोलाव्या बे, पण पांच शरीरादिक कर्मनी प्रति अमे पुन्य पापादिक शुनाशुन कर्म पुजल डे ते जीव नथी.” एम कहे ने तेना उतर. हे देवानुप्रीय तमारे लेखे तो मनुष्य, तिर्यंच, गाय जैस उंट तथा पंखी प्रमुख सर्वने जीव न केदेवा जोइए, कारण के एनी गती थने काया तो अजीव ने अने एनामां जीव , तेथी तमारे लेखे तो मिश्र केदेवा जोइए; पण नगवंते तो गाय,नेंस,पसु,बगली, उंट तथा गामर प्रमुखने एकांत सचित जीव कह्या . बलधो सहित गामीने मिश्र कही , अने बत्र, दंग प्रमुखने अचित कह्या . तेनी शाख सूत्र अणुजोगधारमां. ते पाठःसेकित्तं संजोगे? संजोगेणं चनविहे पणत्तेतं० दवसंजोगे खेत्तसंजोगेकालसंजोगेलावसंजोगे.सेकिंतंदवसजोगेशत्तिविदे पन्नते तंजदाः-सचित्ते अचित्ते मिसए. सेकिंतंसचित्तए 'गोहिंगोमिए पसुहिंपसुश्ए मदिसिदि मदिसिए नरणिहिं नरणीए नहीहिं नहीलावे सेतं सचित्ते, सेकित्तं अचित्तेश उत्तेणं उत्ती दंमेणंदमी पमेणं पमी घमेणंघमी सेत्तं अचित्ते. सेकितं मिसए २ दलेणं हालिए सगमेणं सागमिए रदेणं रहिए नावाए नाविए सेत्तं दव संजोगे. ॥१॥ अर्थः-से ते कया ए सं० संजोग? सं० ते संजोग च० चार प्रकारे प० कह्या तं ते कहे बेः-द० अव्यने संजोगे खे० क्षेत्रने संजोगे का कालने संजोगे अने ना जावने संजोगे नाम नापन्युं ४. से हवे जयने संजोगे नाम निपन्युं ते शु? ते ति त्रण प्रकारे पण कह्यां ते ते कहे जे. सण सजीव अ अजीव अने मि मिश्र ३. से ते कयो सचित अव्य संजोग ? सचित व्य संजोग ते ए. गोण जेने गाय ले तेने Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार ( ४९५ ) गोमान कहीये, पण् पसु बे ते माटे पसुमान कहीये, म० जैसना घणीने महिसीए कहीये, न0 बकरी (बाली) ना चारणहारने उरणीर कहीवे ० नंटना चारणहारने बंटवाल कहीये. से० ए सचित द्रव्यले संकोगे नाम निपन्यां जाणवतं. से० ते कयो छाचित द्रव्य संजोग ? से अचि द्रव्य संजोगे नाम निपन्यां ते ए. बण् बत्रीनो धरावनार ते त्रीराजा. दं० दंमनो धरणहार ते दंमी. प० वस्त्रनो धरणहार ते पड़ी. क मानो धरणहार ते घी. सं० ए चित्त द्रव्य संजोगी नाम जाणवः अथ दवे से० मिश्र द्रव्य संजोगे नाम निपन्यां ते कयां ? ते ए-हव इस खेमे तेने हाली कहीए. दल अचित्त अने बलध सचित्र ए मिश्र संजोग. स० गामी खेमे तेने सागमी कहीये. र० रथ खेमे लेने रचिक कहीये. ना० नावा ( वाहाण ) खेमे तेने नाविक कहीये. सेप ते ब्य संजोये नाम निपन्यां ते कह्यां ॥ जावार्थ:- दवे जुन ! था पाठमां चार प्रकारनो संजोग कह्यो:द्रव्य, क्षेत्र, काल छाने नाव ४. ए द्रव्य संजोगना त्रण जेदः - सचित्त, चित्त अने मिश्र ३. हवे सचित्तना पांच जेद कह्याः- गायो चारे तेने गोवाल ( गोमिक ) कहीये १, पसुना धणीने पसुमान २, भैंसना धीने महिषिए ३, बालीना ( बकरीना ) चारणदारने नरणीए ४ अने उंटना चारणहारने उंटी अथवा उंटवालो कहीये. ए. ए सचित्त द्रव्य-संजोगे नाम निपन्यां. हवे चित्तना चार नेद कह्याः - बत्र धरावे तेने बत्री १, द धरे तेने दंकी २, वना धरणहारने पकी ३ श्रने घमाना धरणहारने घटी कहीये. ४. हवे मिश्र संजोगे चार नाम निपन्यां ते कड़े :- दल खेमे ने हाली कहीए; हल चित्त अने बलध सचित्त, ए मिश्र १; गाम खेमे ते सागमी २; रथ खेमे ते रथिक ३; अने नावा खेमे ते नाविक ( नावजी ). ४. ए मिश्र संजोगे नाम निपन्यां. इबे जुर्छ ! गोवाल, पशुमान, महिषोए, नरणीए ने उंटीप, गाय, भैंस प्रमुख सचित्र बे ते माटे सचिव संजोग नाम कां Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९६) + सिद्धान्तसार.. 3 बत्र, दम, वस्त्र अने घट अचित्त ने ते नण उत्री, दंमी, पमो अने घटो ए श्रचित्त संजोगे नाम कह्यां. इल, गामी अने रथ अचित्त ले तथा बलध सचित्त डे ते नणी हाली, सागमी, रथिक . अने नाविक, ए मिश्र संजोगे नाम निपन्यां कह्यां. ए जु ! गाय, मेंस, बलध प्रमुखना शरीरने अने जीवने नेलाज सचित्त कह्या. ए गाय, नेंस, बलध प्रमुखना शरीर, कर्म, पुन्य, पाप अने बंधनी प्रक्रति ने अने ते पुद्गल , पण जीवे गह्या अने जीव सहित ३ ते जणी स. चित्त कह्या. सचित्त ते जीव जे ते नणी पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. वली जीव ग्रह्या जीव सहित पुजलने जीव-पर्यवा कह्या . नारकी, देवता, मनुष्य अने तिर्यंच ए चार गतिने, प्रदेशने, अवगाहना पुद्गलथी निपनी तेने, स्थितिने, पांच वर्णने, पांच रसने, बे गं. धने, श्राव स्पर्शने, बार उपयोगने, पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञानने अने चार दर्शनने, ए बत्रीस बोलने जीवपर्यवा कह्या ले. शाख सूत्र पन्नवणा पद पांचमें. ए जुर्छ ! अवगाहनापणे पुद्गल प्रणम्या तेने तथा वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, पुन्य पाप अने बंधपणे प्रणम्या पुद्गद जीवे गह्या जीवने पोगसापणे लोलीजुत रह्या तेने जीवपर्यवा कह्या बे; अने जोव बोड्या पड़ी मिसापणे प्रणम्या वर्ण, रस, गंध आने स्पर्शने तथा वीसा पुद्गलने अजीवपर्यवा कह्या जे. ए जीव ग्रह्या पुद्गलने जोवपर्यवा कह्या. ए न्याये पुन्य, पाप अने बंधने जोव कहीए. वली क्रोध, मान, माया, लोन, राग, द्वेष अने आठ कर्मने जीव समोयार कह्या . शाख सूत्र श्रनुजोगहारमां. ए न्याये पुन्य पाप अने बंधने जोव कहीए. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ पुन्य, पाप अने बंध तो शुजाशुन कर्म डे ते रुपी पुद्गल , अने जीव तो अरुपी जे. ते पुन्य पाप अने बंध रुपी ले तेने जीव शीरोते कहो बो ?” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! जीवने पण सरुपी कह्यो . सकर्मी, सरागी, सवेदी, सलेशी अने सस. रीरी कह्यो बे. शाख सूत्र नगवती शतक १७ में नद्देशे बीजे. तेवारे तेरापंथी कहे डे के “ जीवने रुप सहित कह्यो , पण जीव रुपी नयी. Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +सिदान्तसार.. ( १९७) जेम कपमाने रंग तेम जीवने शरीर, वेद, रागरुप ने तेथी सरुपीसकर्मी कह्यो .” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! कपमाने कसुंबल रंग होय तेने कसुंबल कपड़ें कहीए अने पोलो रंग होय तेने पाबु कपहुं कहीए. जेवो कपमाने रंग होय तेवं कपहुं कहीए. तेम कर्म सहित जीवने रुपी कहीए. वली तमे (तेरापंथी) कहो बो के " जीवने सरुपा कह्यो डे पण जीवने रुपी नथी कह्यो.” त्यारे एम तो जीवने "ज्ञान सहित" सनाणी कह्यो बे. शाख सूत्र नगवती शतक थामें उद्देशे बोजे तथा ३० मे तथा अनेक सूत्र-पाठमां. हवे तमारी केहेणीने लेखे तो जीवने सनाणो कह्यो तेने ज्ञान सहित कहीए; पण ज्ञान न कहीए. . - हे देवानुप्रीय ! एम केम कहो ो के, सरुपो कह्यो तेने रुप सहित कहीए पण सरुपो न कहोए ? ज्ञान सहित कहो श्रने नावे झानी कहो. रुप सहित कहो अने जावे रुपी कहो. वली अनुयोगद्वार सूत्र मां नाव संजोगमां कडंबे के, ज्ञान सहित होय तेने ज्ञानी कहीए, समकित सहितने दर्शनी कहीए, चारित्र सहितने चारित्री कहीए; अने क्रोध, मान, माया थने लोन सहित ने क्रोधी,मानी, मायी अने लोनी कहीए. जेम रुप सहित होय तेने रुपी कहीए, अने वर्णादिक पुद्गल सहित जीवने रुपो कहीये. तेम जीव सहित पुद्गलने जीव कहीये. ए न्याये पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. इत्यादिक अनेक सूत्रनी शाखे करी व्यवहार.नयमां पुन्य, पाप अने बंधने उध-पाणीना उष्टीन्ते जीव कहीए. जेम शेर उधमा पासेर पाणी नांखे तेने व्यवहारमा सवा शेर जुध कहीए. तेम पुद्गल जीवने लोलीनुत थया तेने व्यवहारमा जीवज कहीये. ए न्याये पुन्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. ...इथे पुन्य, पाप अने बंधने अजीव कया न्याये कहोए:-पुन्य ते शुभ कर्म , पाप ते अशुन्न कर्म बे, अने बंध ते शुनाशुन कर्म प्रकृत्तिनो ले. ते कर्म रुपी पुद्गल बे. ते रुपी पुद्गलन नश्चेनयमां मीचे खोमया पठी, हंसनी चांचथी उध पाणी न्यारां थाय ते दृष्टान्ते Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४९८ ) सिद्धान्तसार. जीव कहीए. वली तेरापंथी श्राश्रव तत्वने एकान्त नये करी जीव कढ़े बे. तेनो उत्तर. दे देवानुप्रीय ! श्राश्रव ते जीवनुं मूल लक्षण बे के संसार व्यवस्थामा रह्या जीवने उपाधिरुप बे ? ते विचारी जुड़े. वली तेरापंथी कहे बे के “ हवेली अने बारणं ते एक, सोय अने नाकुं ते एक, तलाव छाने घरनालुं ते एक, तथा नावाने बीड ते एक, तेम जीवने श्राश्रव एक बे. " एवी कुयुक्ति देखाने बे तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! दवेली, सोय, तलाव अने नावातो पुद्गलास्तिकाय बे ने बाएं, नाकुं, घरनालुं श्रने बीड तो श्राकाशास्तिकाय बे. तेम जीवने श्रव ए रीते प्रत्यक्ष जुदा बे. वली उत्तराध्ययनना २३ मा अध्ययननी १३ मी गाथामां, कायारुपली नावा कही बे, छाने जीवरूप नावमी को बे. कायानो जोग व्यवहारनयमां जीव बे, तेने श्राश्रवरुपी बीड बे, पण निश्चेनयमां जीव रुपी बे तेथी तेने श्राश्रवरुपी बीड नथी. दवे जेम कायारुपणी नावा श्रने बीड व्यवहारमां एक बे, पण नावमी ने बीज एक नथी; तेम जीव अने श्राश्रव एक नथी. हवेली ने बाएं व्यवहारमां एक बे, पण हवेलीनो धणी अने बारं एक नथी. सोय अने नाकुं व्यवहारमां एक बे, पण लोह अने नाकुं एक नथी. तलाव ने घरनायुं व्यवहारमां एक बे, पण तलावनो धणी ने नातुं एक नथी. तेम जीव श्रने व एक नथी. वली कर्म- पुद्गल ने जीव ए बनेना संजोगथ। सात तत्वनां नाम बन्यां बे. जेम कर्म कायारुपी तलावमां केवल ज्ञानरुपी रत्न ढंकायलुं बे. ते तलावमां पुन्य-पापरूपी पाणी श्रवरूपी बीजे करी आवे छे, तेने संव ररुपी बंधे करी रोके बे, अने बंधरूप परुयुं पाणी बे तेने निर्जरारुपी (चमस कोश थी) वाटक | ए कर। देशथको नचेली काढे बे, छाने मोक्षरुपी खाली तलाव ज्यारे सर्वथा कर्म पाली रहित थाय त्यारे जेम शेठ नालु, बंधकुं (बंधु), चकस, मोरी ने तलाव बोमीने पोतानुं रत्न लेइ घेरे जाय, तेन जीव सहजातो केवल - ज्ञानरुप। रत्न लइने सिद्धगतिमां Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( ४९९). जाय, अने पुद्गलदशा पुद्गलमा मले त्यारे सात तत्वना नामनो वि. नाश थाय. ए तलाव- अष्टान्त सूत्र उत्तराध्ययनना ३० मा अध्ययनमां . वली कायारुपी नावाने बोबे अने कायारुपी तलावने नालु डे. ते काया जेम निश्चे-नयमां अजीव बे तेम आश्रवरुपी बीज पण अजोव वे. पाणी ते पाप, काया सहित जीव ते व्यवहार-नयमां रुपी ते तलाव, संवर ते पाल, अने मिथ्यात्वादिक बीजधारे करी चोफरसी शुन्न पशुज पुद्गलनो संग्रह थयो ते माटे श्रावq ए क्रियानुं नामज पाश्रव जे. ए जीव संबंधी पुद्गलनी करणी . हवे मिथ्यात्व प्रमुख १७ पाप तो चोफरसी पुद्गल . तेना विवसायमां जीव अव्यनो उपयोग वर्ते तेवारे जोव अशुद्ध उपयोगे नवां कर्म-पुद्गलने आकर्षे. ते आश्रव पण ए पुद्गल ग्रहण-लक्षण करणो जीवने अशुद्ध अवस्थानी बे. ते ज्यारे शुभ दशा आवे त्यारे जीवनो उपयोग शुक थाय अने पोताना रुपमा प्रणमे. जेम धर्मास्तीकाय पोते चालतो नथी, पण जीव अने पुद्गल चाले ने तेने सादाज आपे . तेम विश्रसा पुद्गलना मलवा वोखरवाना प्रणाम . तेमां जोवनो उपयोग प्रवयों तेवारे प्रयोगसा प्रणाम थयो. जो ए जीवना नपयोगने श्राश्रव कहीये तो श्रात्मानो सहजाती गुण थाय. त्यारे तो सिक दशामां पण आश्रव केहेवो जोइए. वास्ते ए श्राश्रय ते पुद्गलनोज स्वजाव . वली अव्य अने गुण ब . तेमां एकेक व्यने एकेक गुण, ते सर्व अव्यने सहजातो . हवे जोर-जयने कर्मनो कर्त्ता ठरावाए तो जीव उपयोगी ; पण एक अव्यमां नपयोग अने कर्ता ए बे गुण न होय. एक अव्यमा एकज गुण होय. ए निश्चयनयनुं स्वरुप जाणवू अने व्यवहारनयमां आत्मा कर्ता केहेवाय, ए पण सत्य . जोव कर्ता बे, पण मुल रागादिक पुषण पुद्गल जनित अनित्य ले ते माटे नवा कर्मोने पण ग्रहे जे. ते पण मुल पुद्गलनी नेत्राय थको ग्रहे . हवे पुद्गल पुद्गलने ग्रहे ए तो निश्चे-नय, अने जोव पुद्गलने ग्रहे ते Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५००) - सिद्धान्तसार.. व्यवहार-नय; पण मुल पुद्गलनी संगत ने तेथी जीव-अव्यनी बे दशा ३. संसारिक अने सिद्ध. तेमां एवंजुत-नयनो धणी शुद्ध जीव दशा सिझनी तेज शुद्ध माने; अने नैगमादिक-नय जे ते अशुद्ध वस्तु शुरू सत्ताना अंश सहित होय ते वस्तुने पण शुद्ध वस्तु माने. जेम निगोड़ वासी जीव ले तेने पण नैगमनय-मतानुसार सिक समान माने बे, तेम जीव ग्रह्या पुद्गलने जीव गणी ए. ए न्याये पुन्य, पाप, आश्रव अने बंध एने पण जीवे संग्रह्या ते माटे जीव गणीये. ए पण वली जीवे बांध्या बे. ते लेखे जे प्रयोगसा पुद्गल, इंजिय-विषय, कषाए अने जोग प्रमुख सर्वने जीव कहीये; केमके जेम नावं आवता पाणीनु आधारजुत थयुं तेम थालुं पण आधारजुत . पाणी तेज सहनावे वर्ते ते. तेमज पापरुपी पाणी श्रावतां ग्रहणघारे जीवे ग्रह्या पली अशुजपणे प्रणम्युं त्यारे बंध नावे रां. हवे ए आश्रयमां अने बंधमां शुं फेर ? आश्रव ग्रहण समये प्रत्यक्ष अने बंध अपढम समये सिक जे. जेम नालानुं श्रने मांहीबुं पाणएक डे तेम पुन्य, पाप आश्रयदशामां अने बंधदशामां एक रुप . वली तेरापंथी आश्रव कर्म ग्रहण रूप अशुध उपयोगने जीव माने . ते उपर सूत्र उतराध्य यन अध्ययन अगवीसमानी गाथा बतावे . ते पाठः वत्तणा लकणोकालो, जीवो जवनग लरकणो; नाणेणं दसणेणंच सुदेणय दुहेणय. ॥१०॥ नाणंच दंसणं चेव, चेरित्तंच तवोतदा; विरियं नवनगोय, एवं जीवस्त लकणं. ॥११॥ अर्थः-व० हेमंत रुतु प्रमुख रु तुने विषे शितादिक प्रवर्ते ते वर्तमान कालर्नु ल लद ग. जो जोवने उ० ज्ञानना उपयोगनुं लक्षण ना० झाने कर दं० दर्शने करो सु० सुख वेदो करी 5० पुःख वेदवे करी, बंने जाणीने ना० ज्ञान अने दं० दर्शन चे निश्चे च० चारित्र अने त तप, तेनज वि० समर्थार जा ज्ञानादिकनो उपयोग एण् ए Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार:" पूर्वोक्त जे ज्ञानादिक कह्या ते जी० जीवनुं ल० लक्षण जाणवुं. जावार्थः - श्रा पाउना न्याये नृपयोग ते जीवनो गुण बे, अने गुण ते द्रव्यमां अंतर जवे. ते माटे याश्रवने जीव कहीये बीए. एम तेरापंथी कहे बे. तेनो उत्तर. हे देवानुमीय ! द्रव्य बे ते गुण सहित वतें बे. ते द्रव्याने गुण जुदा नथी, पण द्रव्य इवावे ने गुण गुण नावे रह्या बे. वली जीवना जे जे गुण बे ते मांदीला जे कोइ गुण सिद्ध अवस्थामां रहे, ते तो द्रव्यनो सहजाति गुण कड़ेवाय; अने संसार अवस्थामां जे जे गुण अशुद्ध उपयोगे समल जावे बे, ते ते विजातिय गुण केदेवाय; कारण के शुद्ध अवस्था श्रव्यायो उपयोग ते उपयोगमां समाय, अने पुद् गलकृत चेष्टा ते पुद्गलमां मले. ए बेदु जुदा बे. वली जीव द्रव्यना मुल आठ गुण बे तेने आठ कर्मे श्रावर्या बे. ते कर्म दय थयाथी गुण प्रगटे ते श्रात्माना सहजाति गुण जाणवा. ज्ञानावरणी - कर्मने कये अनंतगुण ज्ञान प्रगटयुं १, दर्शनावरणीने ये अनंत दर्शन प्रगटयुं. २, वेदनाने दये अव्यावाध सुख प्रगटयुं ३, मोहनी कर्मने कथे स्वाभाविक सम्यक्त चारित्र प्रगटयुं ४, आयुष्य ये अनंत स्थिति प्रगटो ५, नामकर्मने ये मू र्तिकपणुं प्रगटयुं ६, गोत्र-कर्मना ये गुरु लघुपणुं 9 अने अंतराय कर्मना ये अनंत पंीत वीर्य गुण प्रगटयो . ए व गुण प्रगटया ते श्रात्माना सहजाति गुण बे. ते एकएकथी मली रह्या बे, पण गुण ते So की जुदा नथी. वे ए पूर्वोक्त गुणने जोवना गुद्ध कहए; पण संपूर्ण जीव द्रव्य न कहीये. (५०) जेम सूत्र जगवतीना सोलमा शतकमां, गौतमस्वामीए पुढयुं के, दे भगवान ! पुर्वादिक दस दिशाने ते "जोत्रा, जीवदेसा, जोवपएसा, " ए त्रण मांहेलं शुं पामीए ? तेवारे श्री वीर प्रजुए कयुं के, हे गौतम! पुर्वादिक दसदिशाने अंते जीव नथो, पण जोबना देश थाने जीवना प्रदेश बे. तेनो घणो विस्तार बे. इहां प्रजुर जोवना Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५०१ ) 4 सिद्धान्तसार." प्रदेशने प्रदेश कह्या, पण जीव न कह्या. ए जुटे ! जीवना विजाग तां पण जीवन केहेवाणा. त्यारे फक्त उपयोग तेतो गुण बे. ते जीव क्यम के देवाय ? उपयोगने तो उपयोगज कहीये. वली श्राश्रव तो कर्मना उदये जीवनो अशुद्ध उपयोग, ते नवां कर्मोंने ग्रहे तेने कहीए. जे मल-ग्रहणरुप चीगट ते श्राश्रवरुप वस्त्रने बे, पण श्राश्रव चीगटरूप वस्त्र नथी. तेम श्राश्रव जीवने बे, पण ते जीव नथी एम जाणवुं. वली श्राश्रवमां मिथ्यात ग्राश्रव तेतो चोफरसी पुदगल बे ने मिथ्या द्रष्टी ते मिथ्यात्व बंधीत श्रात्मानो उपयोग बे. ए उपयोग ते तो आत्माना घरनो बे, छाने मिथ्यात्व ते पुद्गलना घरनुं बे. जो जीवने उपयोगे श्रवगाह्या माटे जीव थाय तो, १० पाप, वर्ष, गंध, रस, स्पर्श अने पुद्गल ए सर्व जीव थाय. वली आश्रवने खपाववो को बे. जो जीव होव तो खपाववो केम कह्यो ? अने ते खपाव्यो केम खपे ? शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन १० में. ते पाठः दं केसरंमि नजाणे, अणगारे तवो धणे. सजाय जाण संजुत्ते, धम्मजाणं क्रियायइ ॥४॥ फोव मंगवंमि, कायइ जवियासवे; तस्सागर मिपासं, वहे से नरा दिवे. ॥५॥ अर्थः- - अ० श्रथ दवे के० केशरी नामे उ० उद्यानने विषे ० ( घर रहित ) अणगार त‍ तप रूपी धन सहित स० स्वाध्याय झा० धर्म ध्यानादिक ध्यान सं० सहित ध० धर्मध्यान कि एकाग्र चित्ते करी ध्यावे बे ॥ ४ ॥ श्र० वृक्षे कर व्याप्त मं० नागरवेलना मंरुपने विपे जाण धर्मध्यान ध्यावे वे जण श्राश्रव खपावीने. त० ते मुनीनी पासे श्राव्यो मि० मृग व० जेनो वध करे बे ते, अने से० ते न० राजा ( मृगनो वध करनार संजति ). जावार्थ:- हवे जुर्ज ! श्रा पाठमां एम कह्युं के, गर्दनाली मुनी ध्यान करे बे. ते यत्र रूपो उपाधि खपावे बे, एवं ध्यान करे बे. दवे Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ५०३ ) खपाववावालो जीव बे, छाने खपे ते कर्म-पुद्गल जीवने नपाधि रुप श्रव निश्चेनयमां अजीव बे. ते श्राश्रव रुपी जीव द्रव्यना उपयोगे पुद्गलमां प्रवेश कर्यो त्यारे कर्मनुं कारण ग्रहण जोग कही देखामयुं बे; पण आश्रव जीव नथी, अजीव बे. वली श्राश्रवने छाजीव कये न्याये कही ये ः- शुभाशुभ कर्म यावे तेने श्राश्रव कहीये, खावे ते कर्म रुपी पुद्गल निश्चेनयमां श्रजीव बे. ए न्याये श्रवने अजीव कहीये. (१) वल प्रभवने जीव कया न्याये क:- पुन ने पापने श्रव कह्या बे, ( शाख सूत्र उत्राध्ययन अध्ययन १०.) छाने पुन्य पाप ते शुभाशुभ कर्म बे. ते कर्मने रूपी कह्यां डे. (शाख सूत्र ared सतक १२ में) ने रुपी पुद्गलने बीजा शतकमां जीव कह्या . न्याये श्राश्रवने जीव कहीये. (२) वली श्राश्रवने खजीव कया न्याये कही ये ः जीव निश्चेमां प्ररुपीज बे रुपी नथी; अने श्राश्रवनी क्रियाना पांच भेद का बे. शाख सूत्र समवायांगमां. अने ते पांच दने रुपी का ठे. मिथ्यात्व, कषाय, अने मन वचनना जोगने रूपी चोफरसी का बे, घने कायाना जोगने तो रुपी आठ फरसी कला बे. शाख सूत्र जगवती शतक १२ में. अने प्रवृत पचखाणी क्रियाने रुपी कड़ी बे. शाख सूत्र ठाणायांगमां. प्रमादना पांच जेद कला:मद १, विषय २, कषाय ३, निंद्रा ४ छाने विकथा, ए पांच जेद रुपी बे. तेम श्राश्रवना पण पांच जैद रुपी बे. रुपी पुद्गल निश्चे-नयमां - जीव बे. ए न्याये श्रवने जीव कहीए. (३) वली श्राश्रवने जीव कया न्याये कहीयेः-पांच इंद्रि तथा त्रण जोग मोकला मेले ते यश्रव ते जीव कह्या बे ने जोवने जोग यात्रता कह्या बे. शाख सूत्र जगवती शतक १५ में नद्देशे बीजे. एन्याये श्राश्रवने जीव कहीये. (४) वली तेरापंथी कहे बे के " कर्मने खेंचवावालो तथा ग्रह वालो श्रवने को बे ने कर्म खेंचवानी तथा ग्रहवानी शक्ति जीवनी d. ए न्याये श्रवने जीव कहीये बीए. " तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! 'जेम श्रीपीठ कांटाने हे बे तेम श्राश्रव कर्मने प्रदे डे. हवे चीपोट Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 0 ) + सिद्धान्तसार अने वाश्रय बने अजीव पुद्गल बे. ते बनेने विषे उठाण, कर्म, बक्ष, बीर्य, पुरुषाकार अने प्राक्रम जीवना बे; पण ते मुलगा बंने अजीब डे. ए न्याये आश्रवने अजीव कहीये. वली सूत्र नगवतीजीमां आश्रकना पांच नेदने रुपी कह्या जे. ते रुषो पुद्गल जीवने ज्यां सुधी लोली जुत रहे त्यां सुधी व्यवहारमा तेने जीव कहोये, अने जीव बोड्या पली निश्वे-नयमां श्रजीव कहीये. वली आश्रवने अने आश्रवना पांच दने सूत्रमा को ठेकाणे श्ररुपी कह्या नथी. .... तेवारे तेरापंथी कहे जे के, "मिथ्याइष्ट अरुपो . तेथी पाश्रवने रुपी तथा जीव कही ये बीए.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! प्रथम तो मि. ध्याअष्टने श्राश्रव सूत्रमा क्यांय कह्यो नथी. एतो मिथ्यात्व धार्यु तेथी मिथ्याष्टो नाम जीव- जे. जेम दंम धार्यों तेने दंमी कहीये, बन्न धार्यु तेने बत्री कहीये अने पुद्गल धार्यु तेने पुद्गली कहोये. शाख सून जगवतो शतक G में उद्देशे १० मे. हवे जेम दंग, बत्र भने पुद्गल, ए त्रये अजीव डे तेम मिथ्यात्व थने आश्रव श्रजीव ने अने जेम दंमो, उत्री श्रने पुद्गलो नाम जोवर्नु ले तेम मिथ्यात्व धार्यु वेधी मिथ्याजष्टी नाम जीवनुज जे; पण मिथ्याअष्टी आश्रव नयी. मिथ्यात बंधीत् जोवनो नपयोग कयोपशम नाव, तेने मिथ्याष्टी क. हीये. वली तेरापंथी कृत तेर छारमा श्राश्रवमां बे नाव कह्या . उदय अने प्रणामिक; पण सूत्र अनुयोगहारमा मिथ्याअष्टीने कयोप्रशम नावे कही बे. हवे जुड़े । तेरापंथोनी बुधिनी अजीरणता, के श्रावमां कयोपशम नाव तो मानता नथो अने. मतने लीधे मिथ्याअष्टी कयोपशम नावे जे तेने श्राश्रव कहे . ... वसी तेरापंथों एम कहे जे के, “ कषाय अने जोग आश्रव डे अने तेने श्रात्मा कही जे. ते आत्मा श्ररुपी जे. ए न्याये आश्रवने अरुपी सथा जीव कहीये बोऐ.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तमे श्रास्मा नाम एकान्त श्ररुपीयूँ कहो बगे, पण सूत्र नगवतीमां रत्नप्रमादिक पृश्विने वया रूपी जीव पुद्गलने श्रात्मा कहो ले शतक १२ मे नशे १० मे. Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार. ( ५०५ ) तत्माने एकान्त रुपी केम कहो हो ? वली कषाय ने जोगने श्रात्मा कही तेथ] ते श्वरुपी बे एम तेरापंथी कहे बे, पण ते जुटुं बे; कारण के सूत्रमां कषाय- आत्माने तथा जोग- श्रात्माने रुपी क्यांय कदी नथी. कषाय तथा जोग रुपी पुद्गल जीवने ज्यां सुधी लोली जुत रहे त्यां सुधी श्रात्मा शब्दे पुन्य पापनी पेरे व्यवहारमां जीव कहीये, छाने निश्चेनयमां जीव ढोड्या पठी जीव कहीये. ए न्याये श्रवने जीव कहीये. (१) वली श्राश्रवने छाजीव कया न्याये कहीए: - श्राश्रव बोमवा योग्य डे, कारण के जीव सिद्धगतिमां जाय त्यारे श्राश्रवने श्रजि बोमी जोय बे. दवे जीवथी बुटे ते कर्म पुद्गल निश्वेनयमां जीव दे. ए न्याये श्राश्रवने अजीव कहीये. (२) इत्यादिक अनेक सूत्रनी शाखे करी निश्चेन्नयमां श्राश्रवने अजीव कहीये. 1, वे व्यवहारनयमां श्राश्रवने जीव कया न्याये कहीएः-त्रण उपरली नय नदयजावना जोगथी जीवना अशुद्ध उपयोगने याश्रव माने, पाथाने द्रष्टान्ते. ते उपयोग आत्मा बे ने आत्मा नाम जीवनुं बे. ए न्याये श्राश्रवने जीव कहीये. (१) वली श्राश्रवने जीव कया न्याये कहीयेः श्राश्रव जीवनुं लक्षण बे, श्राश्रवनो कर्ता जीव बे, घने आश्रव जीवपणे प्रणम्यो बे. ए न्याये श्राश्रवने जीव कहीये. ( 2 ) बाकी उदाहरण पुन्य पापनी पैरे जाणवां. वे संवरने जोव कया न्याये कहीयेः नाव संवर ते उपरली त्रण नय जीवना उपयोगने संवर माने बे, पाथाने द्रष्टान्ते. ते उपयोग आत्मा ने आत्मा नाम जीवनुं बे. ए न्याये संवरने जीव को ए. (१) वल्ली संवरने जीव कया न्याये कहीएः-संवर जीवनुं लक्षण बे, संवरन कर्ता जीव बे. ए न्याये संवरने जीव कहीये. ( २ ) वली संवरने जीव कया न्याये कहीये:-संवरनी क्रिया पांच दे. समकित १, व्रत २, अप्रमाद ३, अकषाय ४ श्रने अजोग ५. शाख सूत्र समवायांगजी. ए पांच दने जीवनी पर्याय कही बे. शाख सूत्र जगवती शतक बीजे नद्देशे पेले, खंधकजीना अधिकार मां. अनंता ज्ञानना पर्याय ६४ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५०६ ) सिद्धान्तसार अनंता दर्सनना पर्यायाने अनंता चारित्रना पर्यापने जावजीव को बे. तेने व्यवहारनयमां जीव कहीये, छाने निश्चे-नयमां पर्यायने पर्याय कहीये, पण जीव न कहीये. शाख सूत्र जगवती शतक बीजे न. दसमे ते पाठःएगे ते ! धम्मकिायप्पदेसे धम्मचिकाएति वतवं सिया ? गो० ! णो इठे समहे. एवं दोणि तिणि चत्तारि पंच बसत नव दस संखेद्या असंखेद्या नंते ! धमचिकाएपरसा धमचिकाएत्ति वत्तद्वंसिया ? गो० ! णो तिपट्ठेसम. एगपदेसुणे-वियां अंते ! धमचिकाए धमचिकाएति वत्तवं सिया ? गो० ! णो तिठे समहे . सेकेणठेणं जंते ! एवं बुच्चइ एगे धम्मचिकाएपए से नो धम्मचिकाएत्ति वत्तवं सिया जाव एगपदेसुणे - वियणं धम्मचिकाए नो धम्मचिकाएति वत्तवं सिया ? सेणुणं गो० ! खंमेचके सगलेचक्के ? जगवं ! नो-खंमेचक्के सगलेचक्के एवं बत्ते चम्मे दंगे दूसे च्याउहे मोयए. से तेणठेणं गो० ! एवंवुच्चइ एगे धम्म से धमेचिकाए ति वतद्वंसिया जाव एगपदेसूणे- वियणं-धम्मचिकाए नो-धम्मचिकाए ति-वत्तवं सिया. सकिंतं खाइएणं नंते ! धम्मचिकाए ति वतवं सिया गो० ! असंखेद्या धम्मचिकाएपएसा ते सवेकसिणा पनिपुणा निरवसेसा एगग्गदागरिया एस गोयमा ! धम्मचिकाएति-वत्तद्वंसिया एवं हम विकावी आगास विकाय जीवचिकाय पोगलचिकाएवी एवंचेव एवरं तिणप्पि • एसा तानाणियवा सेसं तंचेव ॥ अर्थः- ए० एक नं० दे जगवान ! ध० धर्मास्तिकायनो प्रदेश प्रत्ये धर्मास्तिकाय एवं केदेवाय ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सिद्धान्तसार. ( ५०७ ) गोतम ! लो० ए अर्थ समर्थ नदी युक्त नही. ए० एम दो० बे ति० त्रस च० चार प० पांच ब० ब, सात, श्राठ, नव, दस सं० संख्याता श्रने श्र० असंख्याता नं० दे जगवान ! ध० धर्मास्तिकाय- प्रदेशने ध० धर्मास्तिकाय वo एवं केदेवाय ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम! पो० ए अर्थ समर्थ नही. ए० एक पण प्रदेशे नंणो जं० दे भगवान ! ध० धर्मास्तिकायने ध० धर्मास्तिकाय व० एवं केद्देवाय ? इति प्रश्न. उत्तर. गो० हे गौतम ! लो० ए अर्थ समर्थ नही. तेबारे गौतम स्वामी वली कहे बे. ० शा ० हे जगवान ! ए० एम कह्युं ए० एक धरमास्तिकायनो प्रदेश नो० धर्मास्तिकाय न केहेवाय. जा० यावत् ए० एक पण प्रदेश नंणो घ० धर्मास्तिकाय होय तेने नो० धर्मास्तिकाय एवं केम न केवाय ? इति प्रश्न. उत्तर. से० ते निश्चे गो० दे गौतम ! खं० चक्रना खंमने चक्र कहीये के स० सघला चक्रने चक्र कहीये ? एवं वचन - गवंते पुढयुं त्यारे गौतम बोल्या. जण् हे जगवान ! नो० चक्रना खंरुने वक्रन कहीये. स० संपूर्ण चक्रने चक्र कहीए. ए प्रथम व्रतान्त. ए० एम उ० उत्रना खंगने च० चमरना खंगने दं० दंमना खंमने 50 वखना खं० श्रायुद्धना खंकने अने मो० एम मोदकना खंमने मोदक कही ये के संपुर्ण मोदकने मोदक कहीये ? त्यारे गौतम बोल्या - मोदकना खं मोदक न कहीए, पण संपुर्ण मोदकने मोदक कहीये. एम पूर्वोक्त सर्व व्रतान्तमां जावं. से० ते माटे गो० हे गौतम ! ए० जेम चक्रना खंगने खंगज कहीये पण चक्र न कहीए तेम ए० एक धर्मास्तिकाय प्रदेशने पो० धर्मास्तिकाय न केहेवी इत्यादिक सघला चक्रने चक्र कहीये. ते दे गौतम ! एम कयुं. जा० यावत् ए० एक प्रदेशे नंगी धर्मास्तिकाय होय तेने पण नो० धर्मास्तिकाय न कही. ए निश्वे नयना मते क; पण व्यवहारनयना मते एक पण प्रदेशे करी न्युन वस्तु होय तेने वस्तुज कहीये. जेम खांमा घमाने घमोज कहीये. तेमज बेद्या कानना कुतराने कुतरोज कहीये. से० ते शा माटे जं० हे जगवान ! ध० धर्मास्तिकाय एवं केदेवाय ? इति प्रश्न उत्तर. गो० हे गौतम ! ० . Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५०८) + सिद्धान्तसार.. संख्याता ध० धर्मास्तिकायना प्रदेश, ते स० सर्व कसीण समग्र प० प्रतिपूर्णक यात्म स्वरुपे विकल्प नही. ते पण नि प्रदेशान्तरथी पण स्वजावे करी हीन नही एटले एक प्रदेशनो पण अंतर नही. ए एक शब्दे धर्मास्तिकाय एवा लक्षणे करी जे सर्व शब्द एकार्थ डे ए एने गो हे गौतम ! ध धर्मास्तिकाय कहीये. अहीयां ए नावार्थ धर्मा. स्तिकायना असंख्यात प्रदेश २ ते मांहीलो एक पण प्रदेश उगे होय तेने धर्मास्तिकाय न कहीये. ए० एम श्र० अधर्मास्तिकाय, पण स्व. रुप धर्मास्तिकायनी परे जाणवं. श्रा० श्राकाशा स्तिकाय जी0 जीवास्तिकाय अने पो० पुद्गसास्तिकाय पण ए० एमज धर्मास्तिकायनी परे जाणवी. पण पण एटबुं विशेष के ति धर्मास्तिकाय अने श्रधर्मास्तिकाय ए बेचना प्रत्येके अ० असंख्याता (अनंता) प्रदेश ना केहेवा अने ए त्रणना अनंता प्रदेश केहेवा से शेष तं० तेमज जाणवू. नावार्थः-हवे था पाठमां एम कडं के, एक प्रदेशने तेमज बे त्रण यावत् संख्याता असंख्याता प्रदेशने पण धर्मास्तिकाय न कहीए. तेमज एके प्रदेश नंणो होय तेने धर्मास्तिकाय न कहोए. असंख्याता धर्मास्तिकायना संपूर्ण प्रदेश (एके प्रदेश नंणो नही ते . प्रतिपूर्ण) अव्य, क्षेत्र, काल, नाव, गुण अने पर्याय सर्व एक ग्रहणे ग्रह्या तेने धर्मास्ति-काय कहीये. एम धर्मास्ति-कायने, श्राकाशास्तिकायने अने जीवास्तिकायने एमज केहेवी. ___हवे जुलं ! श्रींयां एम कयुं के, एक पण प्रदेश को होय तेने जीव न कहीए; पण संपूर्ण प्रतिपुर्ण प्रदेश गुण पर्याये कररी सहित होय तेने जीव कहीये. या पाठमां एक पण प्रदेश उंणो होय त्यां सुध) प्रजुए अव्यने अव्यमां न गएयो; त्यारे जे वस्तु (उपयोग ते) मुलगोज ज गुण ले तेने एकान्त नये जीव शी रीते कहोये ? वलो जे बार नपयोगने प्रात्मा कह्यो , ते तो आत्माए करी जीवपणुं (चैतन्यपणुं) जणावे . इहां जीवने अने उपयोगने न्यारो कह्यो बे, तेने जीव केम कहीये ? पर्यायने पर्यायज कहीये. मनुष्य अने वृक्षनी बायाना अष्टान्ते. मनुष्य अने वृक्षनी गया कहीये, पण गयाने मनुष्य के वृक्ष न कहीये. Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. ( ५०९ ) तेम जीवना गुणपर्यायने गुणपर्यायज कहोये, पण जीव न कहोये. वली नैगमादिक नयना मते जेम अंश वस्तुने वस्तु माने, तेम नैगम व्यवहारनयमां पर्यायने जीव कहीये. ए न्याये संवरने जोव कहीये. ___ हवे संवरने अजीव कया न्याये कहोयेः-निश्चेनयमां कर्मने रोक्यां तेने संवर कहोये. रोक्यां ते कर्म-पुद्गल अजीव ले. ए न्याये संवरने थजीव कहीये. संवरनो कर्ता जीव , क्रिया पर्याय , अने कर्मपणुं ते अजीव ले. जीवने तो संवुमो कहोये, अने कर्म रोक्यां तेने संबर कहीये. कोइ कहे डे के, संवरना पांच भेदने संवर कहीये, पण एम नथी; कारण के समकित तो पांच स्थावर वरजी नगणोस दंझकमां पावे; पण कर्म रोक्यां नहीं तेथी मनुष्य तिर्यंच विना बावोस दंगकने असंवुमा कह्या ले. शाख सूत्र जगवतो शतक १६ में उद्देशे बजेःजीवाणं नंते ! किं संवुमा असंवुमा संवुमासंवुमा ? गो! जोवा संवुमावि असंवुमावि संवुमासंवुमावि एवं जहा सुत्ताणदंम तहेव नाणियवो.॥ - जी जीव नं हे नगवान ! किं० शुं ? सं० संवत अ० असंवत के संग संत्रता संवत ? (संवत एटले संवरवंत, असंवत एटले संवर रहित अने संवतासंवत एटले संवर रहित तथा संवर सहित) इति प्रश्न. नत्तर. गो० हे गौतम ! जी जीव सं० संव्रत पण होय २० थ. असंवत पण होय श्रने सं० संत्रतासंवत पण होय. ए. एवी रोते जण जेम पूर्व सूत्रमा सु० सुतानो दंमक कह्यो त तेम ए पण नाण केदेवो. जावार्थः-हवे जु! था पाठमां कत्यु के, तिथंच अने मनुष्य वर्जीने बावीस दंगकने समकित बतां पण व्रत नही तेथी असंवुमा कह्या जे. जेने मिथ्यात अने श्रवत प्रमुख पापना सर्वथा त्याग होय तेने बाल-पंमीत कह्या बे, श्रने जेने एके पापनो त्याग न होय तेने प्रवति बाल कह्या . वली मनुष्य अने तिर्यंच विना बावीस दमकने अधर्मी कह्या ले. शाख सूत्र जगवती शतक सत्तरमें उद्देशे बीजे. ए जु ! कर्म Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( ५१० ) + सिद्धान्तसार.. रोक्यां तेने संवर, पंमीत तथा धर्मी कह्या, अने कर्म रोक्या विना संवरनी क्रियाना पांच नेद सम्यक्तादिकने संवर न कहीए. ए सम्यक्तादिक पांच नेद सिठमां पण होय, पण कर्म रोकवानो स्वन्नाव नही तेथी तेमने "नो संवुमा, नो असंवुमा” कहीये. विद्यमान काले जीवनो शुद्ध उपयोग व्रतनो तेने अने कर्म रोक्यां तेने संवर कहीये. जीवनो नपयोग सम्यक्तादिक पांच बोलनो तेने तो निश्चेनयमां जीवना नाव पर्याय कहीये, श्रने निश्चेनयमां कर्म रोक्यां तेने संवर कहीये. ए न्याये संवरने अजीव कहीये. (१) . हवे निर्जराने अजीव कये न्याये कहीयेः-निश्चेनयमां कर्म निर्जरीने जीवथी अलगां थाय तेने निर्जरा कहीये. जे निर्जरी गयां ते कर्मपुद्गल निश्चेनयमां अजीव . ए न्याये निर्जराने अजीव कहोये. (१) वली नीर्जराने श्रजीव कया न्याये कहीयेः-निर्जरानो कर्ता तो जीव जे. पण बारे नेदे क्रिया पर्याय बे, अने कर्मपणुं श्रजीव ले. ते कर्म अ. लगां थाय त्यारे जीव निर्मल थाय तेने निर्जरा कहीये. ए न्याये निर्जराने अजीव कहीये.' - हवे मोदने जीव कया न्याये कहीए:-त्रण उपरली नय जी. वना उपयोगने मोक्ष माने. ते पाथाने अष्टान्ते. ते उपयोग श्रात्मा डे श्रने आत्मा नाम जीव- जे. ए न्याये मोदने जीव कहीये. (१) वसो मोदने जीव कया न्याये कहीये मोदनो कर्त्ता जीव अने मोद जीवनुं लक्षण जे. ए न्याये मोक्ने जीव कहीये. (१) वली मोड़ने जीव कया न्याये कहीयेः-मोदनी क्रियाना चार नेद ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने तप, ए चार जीवना नाव पर्याय . ते पर्यायने व्यवहारनयमां जीव कहीये श्रने निश्चेनयमां पर्यायने पर्याय कहीये पण जीवन कहीये. वृक्ष अने मनुष्यनी बयाना अष्टान्ते. ए न्याये मोहने जीव कहीए. (३). हवे मोक्षने अजीव कया न्याये कहीये: निश्चेनयमां कर्म क्ष्य थयां तेने मोक्ष कहीये, अने जीवने तो मुकाणो कहीये. कर्म कय थयां तेनेज मोक कहीये. ते कर्म अजीव जे. ए न्याये मोकने श्रजीव Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. (५११) कहीये. (१) वली मोहने अजीव कया न्याये कहीए:-मोदनो कर्त्ता जीव , क्रिया जीवनी पर्याय ने अने कर्म ते कर्म कय थयां ते अजीव जे. ए न्याये मोदने अजीव कहोये. (५) . हवे समचय नव तत्वमां जीव केटला श्रने अजीव केटला ? निश्चेनयमां तो एक जीव ते जीव अने श्राप अजीव; अने व्यवहार नयमां श्राप तो जीव श्रने एक अजीव ते अजीव. जेम व्यवहारनय. मां जमरो कालो, अने निश्चेनयमां पांचे वर्ण पावे (होय). व्यवहारनयमां गोल मीनगे, श्रने निश्चेनयमां पांचे रस पामे. व्यवहारनयमां केतकीनी सुगंध अने निश्चेनयमां बने गंध पामे. व्यवहारनयमां पत्थर खरखरो, श्रने निश्चेनयमां आवे फर्स पामे. व्यवहारनयमां चुमी गोल अने निश्चेनयमां पांचे संगण होय. शाख सूत्र नगवती शतक १८ मे उद्देशे बहे. ए न्याये सात तत्वने व्यवहारनयमां जीव कहोये, अने निश्चे नयमां अजीव कहोये. वली गणायांग सूत्रने बीजे गणे बे समोयार कह्या ले. जीव समोयार १, अने यजीव समोयार २. व्यवहारनय पाश्री पुन्य, पाप, थाश्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष, ए सात तत्वने जीव समोयारमा कह्या बे; अने एज सात तत्वने निश्चेनय श्राश्री अजीव समोयारमा कह्या बे. ए न्याये सात तत्वने व्यवहारमा जीव कहीये, श्रने निश्चेमां अजीव कहीये. • वली व्यवहार-निश्चे एक समचयमा एक जीव ते जीव, अने एक अजीव ते अजीव; बाकी सात जीव श्रजीवनी पर्याय बे. शाख सूत्र जगवती शतक १३ मे उद्देशे चोथे, एम कडं ने के, मन, वचन, काया प्रमुख सर्व पदार्थने चालवानो साहाज धर्मास्तिकाय आपे , अने स्थिर रेहेताने श्रधर्मास्तिकाय साहाज आपे ले विकाश गुण जीव पुद्गलने नाजन आकाशास्तिकायतुं . काख ते पुद्गलादिक एकग रेहेवानी स्थिति जीवनो उपयोग; अने पुद्गलास्तिकाय पुद्गल मले ने विखरे एम कयुं . ए न्याये पुन्य, पाप, आश्रव अने बंध शुनाशुन पुद्गल मन आदिक जोग जीवना अशुद्ध उपयोगथी ग्रह्या स्थिरपणे Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६१२ ) +सिद्धान्तसार.. कर्मपणे रह्या बे. उ अव्यना साहाजथी नाम बन्यां ले. तेथील अव्यने जीवना पर्याय कहीये. संवरे श्रावतां कर्म रोक्यां, निर्जराए आगलां कर्म देशथको तोड्यां श्रने मोके सर्वथा कर्म पुद्गलने जीवथा पूर कां. ए पण उ अव्यना साहाजथी पर्यायथी नाम निपन्यां ने तेथी जीव अजीव सीवायना सात तत्वने जीव अजीवनी पर्याय कहीये. वधी सूत्र पन्नवणा पद पांचमें उत्रीसमा बोलने जीव पर्याय कह्यो जे. अव्य, प्रदेश, पांच वर्ण, पांच रस, बे गंध, श्राप स्पर्श, बार उपयोग, पुद्गलथी निपनी श्रवगाहना अने पाउखानी स्थिति, ए बत्रीस बोलने जीव पर्याय कह्या . तेमां केटलाक संवर, निर्जरा अने मोकना नेद डे अने केटलाक पुन्य, पाप, श्राश्रव अने बंधना नेद ; तेथी सात तत्वने जीव अजीवनी पर्याय कहीये. जीव अजीवना संजोगे सात तत्व निपन्या बे, तेथी लाज पर्याय कहीये, पण न्यारा व्हेंचाय नही. ते कया अष्टान्ते. जेम कोलणे कोलोनो नातो कीधो. ए बंनेना संजोगथी सात संतान उपन्यां ते व्हेंचवाने अष्टान्ते. जेम बनेना नेला अंश ते न्यारा वेची शकाय नही, तेम सात तत्व जोव अजीवना सं. जोगथी निपन्या; पण न्यारा न्यारा Jहेंची शकाय नही. ते माटे तेने जीव अजीवनी पर्याय कहीये. हवे जो एकला जोवने सात तत्व कहीये तो सिझमां पण केदेवा जोइए; अने जो एकलां श्रजीवमां सात तत्व कहीये तो जीव विना पुद्गलमां पण केदेवा जोइए, पण एम नथी. जीव अजीव बनेना संजोगनेज तत्व कहीये. तेवारे तेरापंथी एम कहे के “ रास बे कही जे. जीवरास १, अने अजीवरास २. तेमां नव तत्व कर राशमां ?" तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जीवते जीव अने अजीव ते अजीव. बाकी सात तत्व. तेमां केटसाक बहुलतामां अने केटलाक मुख्यतामां जीवनव्यना गुण बे. (संवर, निर्जरा थने मोक्ष.) शेष पुन्य, पाप, श्राश्रव श्रने बंध, ते निश्चेनयमां अजीव , श्रने जीवनी साथे डे तेथी व्यवहारनयमां जीव बे. वली ए सात तत्वमा उपयोग ले ते जीवना घरनो . जेम एक आंबार्नु Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धान्तसार.. (५१३ ) वृक्ष ले अने एक लीममो . हवे जे वृतनी बाया ते वृदना गुणमां बे, पण बायारुप को त्रीजु वृक्ष नथी. वृक्ष ते तो उव्य अने गुण ते बाया. वली जेम पत्र फुलादिक सहित एकज वृत , तेम गुण पर्याय लीधे एकज जीवजव्य जे.जेमजीव अव्य तेतो वस्त्र, अने तेनो गुण ते स्वेतादिकवर्ण, अने पर्याय ते दोरा, अने रागादिक चिगट ते मल ग्रहण रुप आश्रव, अने पुन्य पाप ते रज, निधत ते बंध, साबु पाणी ते संवर, अने शुद्ध दशा नज्वलता ते आत्मेयजाव; ए सर्व गुण पर्याय ते वस्त्रने डे, पण पूर्वोक्त गुण पर्याय वस्त्र नथी. तेम ए सात तत्व जीवने बे, पण ए एकला जीव नथी. वली तेरापंथी कहे के, “जीव अजीवनी राश वे बे, पण पर्जवा क्या कह्या ?” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! निश्चेनयमां राश बे ने तेम तत्व पण बेज . जीव अने अजीव. हवे व्यवहार-नय तो जीव अने अजीव बनेना व्यापारने कहीये, अने निश्चेनय जीव अजीवनो संयोग विखरी न्यारो थाय तेने कहीए. एक जीव अने आठ अजीव एकान्त माने ते निश्चेनयवादी. ते एकान्त-नयवाद। प्रथम गुणगणा वर्ति जाणवो. वली आठ जीव अने एक अजीव एकान्त माने ते व्यवहारनय वादी. ए एकान्त-नयवादी प्रथम गुणगणावर्ति जाणवो. वर्तमान व्यवहारनय नेला माने, अने वर्तमान ते निश्चय आश्री न्यारा माने, इत्यादिक यथायुक्त नय निपा सहित वचन कहे तेनां वचन प्रमाण डे; पपा नय विना वचन अप्रमाण जे. तेनी शाख सूत्र अनुयोगद्वार. __ हवे अहियां नव तत्व उपर अनेक नय संदेपथी उतारी देखामी जे. उतां विस्तारथी जाणवानी श्छा होय तेमणे स्वामीजी माहाराज श्री १००८ श्री त्रीकमदासजी माहाराज कृत 'तत्व-शोधक' ग्रंथथी जाणी लेवु. जदपि एटबुं न धारी शके तो एम चिंतवq के “तमेवसचं निसंकंजं जिणेहिं पवेश्यं एवं मणे छारेमाणा, जाव आणाए श्राराहगा जवर.” एज श्रथागमे अरिहंतदेवना परुपवाथो. एज सुतागमे ते गणधरोना गुंगवाश्री. एज अणत्तरागमे ते श्री सुधर्मास्वामी श्री जंबु Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + सिद्धान्तसार.. स्वामीने अने जंबुस्वामी प्रजवादिकने परुपवाथी. एज परंपरागमे ते पुज्यत्री श्री 107 श्री बुधरजी, कुशलोजी, गुमानचंदजी अने रतनचंदजीना परुपवाथी. इति सिद्धान्तसार समाप्त. उहा. सासन मंगन मुकुट मणी, ज्ञानचंद गुरु साज; पार्षक मत खंगन करन, ज्यु मृग ने हरि गाज. तत लघु जाता दीपतो, तेजस्वी कुर गेश; संघ रख्यो निज अष्टमे, तपीया तेज दिनेश. तास शिष्य जगमें प्रगट, मुलीचंद रतनेश; वदन कमल सरस्वति वसे, बोल बोलमें रेश. तास पसाये ए रच्यो, ग्रंथ सिद्धांतजुसार; कनिराम चित्त चुंपसुं, तम खंगन दिनकार. संवत उगणीसें बके, मृगसर शुद रवीवार गाम पिंपाममें सही थयो, ग्रंथ सिद्धांतजुसार. Jश बंश शिर मुकुट हे, श्रावक गुणे प्रधान; शेठ फतेमल रसिक हे, विर वचनको जाण. तास चतुरता नव नवी, चरचा की महमंत; ससु कारण अन्यास ए, रच्यो ढुंढ सिद्धान्त. सुपशी जणशी शीखशी, होशी ज्ञान उद्योत; मिथ्या तिमिर न व्यापसी, निर्मल समकित जोत. स्वामी श्री कनीरामजी, शेठ फतेहमल जाण; अविचल नामज एहनो, जबलग जिनवर आण. 4 समाप्त.