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________________ ( १५२ ) + सिदान्तसार.. % 3D पात्रज . वली पालतजी श्रावकने लगवंते मोटी थात्माना धणी शिध्य कह्या जे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन. २१ में ते पाठः चंपाए पालिएनाम, साविए आसी वाणिए; महावीरस्स लगवन, सीसो सोउ महप्पणो.॥१॥ निग्गंथे पावयणे, साविए सेवि कोविए;। पोहणे ववहरंते, पिहुंमं-नगर मागए. ॥ ॥ अर्थः-चं० चंपानगरीने विषे पा पालीतनामा सा० श्रावक प्रा० डे वा वाणीयो वेपार करे. मग जगवंत श्री महावीर स्वामीनो सिक शिष्य (श्री महावारे समजाव्यो माटे शिष्य) सो ते म० महंत श्रामानो धणी नि निग्रंथ संबंधि पा प्रवचन सिद्धान्तने विषेसा श्रा. वक से ते विशेष को कोवीद जाण विचोदण पो वाहाणे करी व व्यापार करतो थको पि० पीहुम नगरे मा० श्राव्यो.॥२॥ नावार्थः-हवे जुलं ! था पाठमां पालतजी श्रावकने जगवंतनो शिष्य, मोटी श्रात्मानो धणी कह्यो तथा जगवंतना वचननो रसिक पंमीत कह्यो. हवे जुन ! नगवंतनो शिष्य कह्यो ते कुपात्र के सुपात्र ? वली श्रढार पापने सफल करे ते तो मोटुं पाप मिथ्यात्व, ते तो श्राव. कने नथो. वली अपचखाणनी क्रिया मूलथोज टाली अने अशुन जोगनुं अल्प पाप, ते नथो गएयु; तेथी साधुना सरखा बिरद कह्या. एटला बीरदमां एके बीरद ही[:नथो ते माटे श्रावक सुपात्रमा डे. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “एटला सूत्रमा गुण वखाएया ते तो व्रतना पक्षथी क्षयोपशम नावना गुण वखाएया जे.” तेनो उत्तर हे देवानुप्रीय! साधुने पण व्रतना कयोपशम नावना गुणथो वखाएया डे के शरीर, शंज, जोग, श्राहार कषाय इत्यादिक नदयनाव, तेथी वखाएया ? जे गुणथी साधुने वखाएया ने तेज गुणथो श्रावकने पण वखाएया . पा- ' रंजीया क्रिया, उपयोग-रहितपणुं, विक्रय-शरीरपणुं, लब्धिस्फोरण, संजमना क्रोध, मान, माया, सोलनो उदय अने राग मेष, ए पक्ष पाश्री
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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