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________________ + सिदान्तसार.. रनां पचखाण करवां कह्यां. जो आहारादिकमां धर्म होय तो धर्मनां पचखाण करवां केम कह्यां ? संजोग, श्राहार अने नपधिनां पचखाणं करवावाला साधुने आशा वान्ा अने (पलीमंथ) अनिलाषानो टालवावालो कह्यो; अने ते क्लेश (पीमा ) न पामे एम कयुं, एटले थाहार श्रने उपगर्णने क्लेशनां कारण कह्यां; अने आशा, वान्डा, तृष्णाने अनिलाषानां कारण कयां, एटले आहारादिकना त्याग नही तेथी आशा वान्डा करे, ते श्राशा वान्ठाने लोन कह्यो . शाख सूत्र नगवती शतक १२ मे उद्देशे ५ मे. वली लोन ते मोहीनीनो उदयन्नाव . तेथी तेने धर्म कया न्याये कहीए ? एतो ज्ञान, दर्शन अने चारित्र नने नहिं तथा मुक्तिनगर पहोंचाय नही तेटला माटे आहार करे अने उपगण राखे. जेम माल ठेकाणे पहोंचामवाने अर्थे हुंमी, नाउँ, वोलाइ खर्चे ते समान ए पण हे. वली उत्तराध्ययनना ए मा अध्ययनमां श्रागल घणा बोल कह्या बे. जोगना पचखाण करे तो साधु भजोगीपणुं पामे कयु. ए जोगमा बोलवाना पण त्याग करा; अने जो शरीरनुं पचखाण करे तो सिद्धपणुं पामे कयुं. हवे जो साधुनुंशरोर धर्ममां होय तो तेने त्याग बोम, केम कथु ? वली आगल कj के, सर्वथा नातपाणीनां पचखाण करे तो अनेक नव खपावे कगुं.एम सूत्रमा वामगम श्राहार त्यागवानां फल तो कह्या ले, पण “घणो घणो आहार कर्याथो धर्म थाय " एवो पाठ होय तो बतावो. ए पाहार तो उदयनावे अने ते पूर्व जवनां कर्मनो प्रेयो रस देडे अने व्रत अवत तो वर्तमान कालना . ते नदयनावने धर्म केम कहोडो ? तेवारे वली तेरापंथी कहे के “ थाहार उदयनावमा बे, त्यारे साधुने श्राहारनी श्राचार्य, उपाध्याय अने तीर्थकर श्राा केम देखें?”, तेनो उत्तर.हे देवानुप्रीय ! आज्ञा तो कटपमांथी देखीने आपे. जेम वरसाद वरसतां दिशा मात्रो जवानी अने परग्वा परगववानी आज्ञा मापे तथा नदी उतरवानी थाझा आपे . तो शुं? दोशाए जवं,
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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