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________________ + सिदान्तसार ते. पं० पांच माहानदी (प्रधान-विस्तीर्ण देखामी गणी दोधी. ते घj पाणी उतरतां दोहीबुं एवी मोहोटी नदी ) दुर्मिक्षादि कारणे 30 उतरवी पमे ते, एक मास मध्ये एकवार पण सेहेजना विहारे न संनवे. अंग एक मासमां दुबे वार तित्रण वार उ उतरवी के (कुंनादिके अथवा नावादिके) संग वारंवार उतरवीन कल्पे तं ते कहे बे-गं गंगा१, ज जमुना २, स० सरजु ३, को कोसिया , श्रने म मही नदी ५न कल्पे. अण्श्रथ हवे वली ए एम जाणे के जो ए ऐरावती नामा नदी कुछ कुणाला नगरी समिपे ज० ज्यां च शक्तिवंत अर्ध जंघा प्रमाणे ए० एक पग जम् पाणीमां अने बीजो ए० एक पग थ स्थल लुमिकाए मुंकीने ए० एम करीने चाले से तेने का कहपे अं० एक मासमां दुबे वार तिपत्रण वार जनतरवी, सं० वारंवार उतरवी.ज ज्यां नो एवीरीते न उतराय त्यां ए एम से तेने न कल्पे अंग एक मासमां दुबे वार ति त्रण वार न० नतरवी, सं० वारंवार उतरवी. नावार्थः-हवे जुर्ड ! आ पाठमां तो एम कडं के, गंगा १, जमना २, सरजु ३, कोसिया ४ श्रने मही ५, ए पांच मोटी नदी म. दीनामां बेतरण वार नतरवी कल्पे नही; अने ऐरावती नदी, जे कुगाला नगरीनी समीपे वहे , तेमां एक पग जलमां अने एक पग थलमां धरीने नतरवा समर्थ होय तो महीनामां बेत्रण वार नतरवी कल्पे, अने समर्थ न होय तो उतरवी न कल्पे एम कडं; पण जगवते एम नथी कडं के "हे साधु ! तुं एक वार तो नतरजे मारी थाज्ञा ले." पण नगवंते तो नाषा टालीने कडं जे. तमे नदी उतरवामां नगवंतनी आज्ञा अने धर्म कया न्याये कहो बो ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ कुणाला नगरीनी समीपे ऐरावती नदी वहे , तेमां एक पग जलमां बने एक पग थलमा देश उतरवा समर्थ होय तो, महीनामां बेत्रण वार नदी उतरवी कल्पे डे. ते कप्पर कहो अने नावे आज्ञा कहो. कल्प भने आज्ञा एकज .” तेनो उत्तरः हे देवानुप्रीय ! कल्प अने आशा एक होय त्यारे तो परिव्राजक संन्या.
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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