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सिद्धान्तसार.
( ४१९ )
तेज ज्ञाताजीना सोक्षमा अध्ययनमां गोपालकाजी श्रजए सुखमालीकाने उपदेश दीधो बे. तेथी श्रमे पण ग्रहस्थीना घेरे बेसीने उपदेश दइए बीए. " तेनो उत्तर.
हे देवानुमीय ! एवी जग्यामां तो काम पड्याथी साधुने रेहेवुं पण कम्पे बे, त्यारे उपदेशनी शी चर्चा बे ? अने ग्रहस्थाना घेरे साधुने बेसवुं तथा उपदेश देवो वय ते तो स्त्रीयादिक रेहेती होय, परिको पाणी होय, रसोइ थती होय ने ढोकरा डोकरी वेखेरा सहित होय ते श्राश्री वज्यों बे. दवे नतर्या होय ते जग्या छोटी होय तथा
बखानी होय तेथी बीजी जग्या साधुजीने रेहेवा जोग्य होय एवी जग्यामां जइने उपदेश दे तो साधुने हरकत ( अटकाव ) नहीं. वली साधुजी रहे ते घर सर्व ग्रहस्थीनांज बे, पण ग्रहस्थीने रेहेवासनी जग्यामां साधुजीने उपदेश देवो तथा बेसवुं वयुं छे. वली इरकेशीजी तथा गोपालकाजी प्रमुखे तो पामामां तथा दान देवानी जग्यामां नपदेश दीधो बे; पण ग्रहस्थीनी रहेवासवाली जग्यामां नथी दीधो. ए इरकेशीजी मुनीराज ने श्रार्याजी गोपालकाजी प्रमुखे प्रहस्थीना पायामां जश्ने उपदेश दीधो ते तो सर्व तीय- कल्पी बे; पण पेहेला
ने बेला तीर्थंकरना साधुने ग्रहस्थीना घेरे जइने उपदेश देवो कयांय चाट्यो होय तो ते सूत्र पाठ बतावो . तेवारे वली तेरापंथीन, ग्रहस्थी ना घेरे बेस स्थापवाने काजे कहे डे के " वचन - लब्धिना धोने 'ग्रहस्थीना घेरे बेसीने उपदेश देवो सूत्र सूयगमांगना प्रथम श्रुतकंधनानवमा अध्ययननी १ मी गाथाना अर्थमां क्यांक कयुं छे. ते पाठःननच अंतराएणं, परगेदेण पिसियए;
गाम कुमारिय किंरु, नातिवेलं दसेमुण | ॥ २९ ॥
अर्थः- न० एटलुं विशेष अं० जरा, रोगादिक कारण टालीने बेसे, तथा कोइ वचन - लब्धिवंत धर्म उपदेशादि कारणे पण बेसे. प० ए कारण विना प्रहस्थीना घेरे पि० न बेसे. गा० ग्रामने विषे कुं० कु·