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________________ सिदान्तसार.. ( ३९३) रामादि करे तो तेने अणसमज मिथ्यात्वो कहीये.” तेनो उत्तर. - हे देवानुप्रोय! अंममजी संन्यासी (श्रमणोपासक)ना सातसो शिष्य श्रमणोपासक, तेमने वहेतुं पाणी श्राज्ञा लइने पोवानो अनिग्रह हतो. तेमणे जेठ महीने कंपीलपुरथी पुरमताल तरफ विहार कीधो त्यारे तेमने मार्गमां तृषा लागी, पण पाणीनी आज्ञा देवावालो कोइ दातार मल्यो नही, तेथी तेमणे गंगा नदीने कांवे संथारा उपर बेसी पूर्वजणी मोढुं करीने त्रण नमोथ्थुणं कह्यां डे. ते उववार सूत्रनो पाठःतिदंडिएय जाव एगते एमति ३ त्ता गंगामदाणइनग्गा दित्ति गंगामदाणइनग्गाहित्ता वालुया-संथारए संथरंति -त्ता वालुयासंथार उरुति श् त्ता पुरबानि-मुदा संपलियंका निसणा. करयल जाव कटु एवंवयासी नमोबुणं अरिहंताणं जाव संपत्ताणं णमोबुणं समणस्स जगवळ महावीरस्स जाव संपाविजे कामस्स नमोवणं अममस्सप रिवायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स ॥ अर्थः-ति त्रण दामो प्रमुख जाए यावत् चौद नपगर्ण ए० एकान्त ए० मे, बांगोने गंग नेखमथी हेग उतरी गंगा नदोनो वेलुमा ३० भावे गं गंगा नदोनी वेबुमां श्रावीने वा वेतुना संथारा सं० संथरे, संथारीने वा वेदुना संथारा उपर दु0 बेसे, बेसाने पुण् पूर्व दिशा सामु मुख राखी सं० पलांग वाली नि0 बेगा. क० बे हाथ जोमोने माथे चमावी जाण् यावत् ए एम कहे-ना नमस्कार था श्र० समचय अरिहंतने जा यावत् सं० मुक्तिए पोहोच्या अरिहंतने, सिद्धने, एम तीर्थकरने थने सिद्ध जाने नमस्कार करीने, पडे वल) ण कमस्कार होजो स० श्रमण नगवंत श्री माहावीरने नाम लश्ने जा० यावत् सं० मुक्ति पामवाना कामोने, एक्ली नमस्कार होजो अ० अम्मम परिवाजकने प्रावमाराध धर्माचार्यने धधर्म उपदेशना देणहारा अंममगुरुने.
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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