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+ सिद्धान्तसार..
एथी पण अण् अनंतगुणो कठण फर्स ले० अ० ए त्रण अप्रशस्त-खेश्यानो (कृष्ण, नील अने कापोत-लेश्यानो) जाणवो. जग जेम बुरनामा वनस्पतिना फुलनो अति सुंहालो फा० फर्स न० माखणनो फर्स अने सि सीरीषनामा फु० फुलनो जेवो फर्स होय ए० एथी अनंतगुणो सुंहालो फर्स प० प्रशस्त (नली) ले लेश्या ति त्रणेनो जाणवो. हवे लेश्याना प्रणाम कहे ः-ति त्रण प्रकारे ते जघन्य, मध्यम अने उकृष्टो. न जघन्यना त्रण प्रकारः-जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्टो, एम अकेक वर्गना त्रण त्रण नेद करतां नव थाय. स० एम सत्तावीस नेद पण थाय. इका० एकासी नेद पण थाय. १० बसने तेतालीस नेद पण लेश्या बना प्रणामना थाय. पण एटला प्रणाम दरेकना त्रण प्रण गणा करतां थाय. हवे प्रथम लेश्यानां लक्षण करे :-पं0 पांच श्राश्रवनो प० सेवपहार ति त्रण मन वचन कायाएकरी अ० अगुप्तो (मोकलो) बकायने विषे अवृति (घातनो करणहार) ति तीवृपणे आरंजने प० प्रणामेकरी सहित खु० सर्व जोवने श्रहितकारी सा जीवघात करवाने विषे साहसोक नि था लोक परलोकना दुःखनी शंकार हित, जीव हणतां सुगर हित श्र० अजीतेंजिय ए ए पूर्वे कह्या ते जो (मन, वचन, कायाना) जोगना पाप व्यापारेकर स सहित ककृष्ण लेश्याने प० प्रणामेकरी परिणमे. (१) हवे नोललेश्यानां लक्षण कहे :३० र्षा (पर जीवना गुणर्नु अणसेह,) अ० घणो कदाग्रही अ० तप रहित अण् नली विद्या रहित अ० अणाचारोने वर्ततां निर्लजपणुं गि विषयनो लंपट प० षन्नाव सहित स० धूर्त पण्आठ मदनो करणहार र स्वादनो लोग लंपट सा० सातानो ग गवेषणहार श्रा० शारजनो करणहार खुप सर्व जीवने अहितकारी सा० अणविमास्या कार्यनो करणहार न मनुष्य ए एवा व्यापारेकरी स सहित होय ते जीव भी नील-लेश्याने प० प्रणामेकर परोणमे. (२) हवे कापोतलेश्यानां लक्षण कहे जेवं वांको बोले, वांका कार्यनो करणहार नि निवझ माया सहित उ सरलपणा रहित प० पोतानो दोष ढांके उ०