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+सिद्धान्तसार..
(१६१)
कमया रसनो स्वाद ए० एथी पण अ० अनंतगुणो र रसनो स्वाद कि० कृष्ण-लेश्यानो अती कमवो ना जाणवो.(१)जा जेवो तिल त्रिकटु (सुंठ, मरिच,ने पीपर)ना रणरसनो स्वाद तितिखो जजेवो हण्दस्तिपिपरी एटले गजपींपरनो स्वाद होय ए एथी पण अ० अनंतगुणो रण थतीतीखो स्वाद नी0 नोल-लेश्यानो ना जाणवो. (२) जग जेवो काचा श्रांबाना र रसनो स्वाद तु तुंबरनामा वनस्पति, काचुं फल जेवू कसायलुं होय तेवो स्वाद का काचा कोग्ना फलनो जाग जेवो स्वाद होय ए० एथो पण अनंतगुणो र अती कषायलो स्वाद का कापोत. लेण्यानो ना जाणवो. (३) जण्जेवो प० पाका आंबाना र रसनो स्वाद प० पाका क कोठनो पण जाग जेवो स्वाद होय ए० एथी अनंत गुणो र स्वाद कांश्क खाटो कांक मीगे ते तेजु लेश्यानो जाणवो. (४) व प्रधान वा मद्यनो जेवो र स्वाद होय वि० घणा प्रकारना श्रा० श्रासव (घणा फुल प्रमुख सुगंध अत्यनो रस या सत्व) म माखीए नीपजाव्युं ते मध तथा महुमानो मद्य मे तामवृदनो निपन्यो मय ए० ए मद्यनो जेवो स्वाद होय ए०एथी पण्अनंतगुणो रुमो स्वाद पद्मलेयानो जाणवो. (५) ख० खजुरनो मु० जाखनो खो। उधनो खंग खांमनो अने सण साकरनो जेयो स्वाद होय अ० एथ। अनंतगुणो मोगे स्वाद सुण शुक्ल लेश्यानो नारा जणवो. (६) हवे लेश्याना गंध कहे :-ज जेवो गो गायना ममानो गंध सु० कुतराना ममानो गंध अने ज० जेवो अ० सर्पना ममानो गंध पामु हाय ए0 एथ। अनंतगुणो तुंमो गंध ले० कृष्ण, नील अने कापोत ए त्रण थ० अप्रशस्त खेश्यानो जाणवो. जण जेवी सु सुगंध कुछ केवमादिक फुलनी गंध ग० सुगंध. वासी पि० पीस्तां वाटता होय त्यारे जेवी सुधि होय ए० एथी श्रण अनंतगुणी सुगंध तेजु, पद्म अने शुक्ल ए वाले प्रशस्त (जल) लेश्यानो होय. हवे लेश्याना फर्स कहे बेः-10 जेबो क० करवतनो फा फर्स असुंहालो होय गो गाय बक्षधन। 10 जोचनो जेवो कजीन फर्स होय सा० सागरवृतना प० पांदमानो जेवो फर्स होय एप