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________________ +सिहावसार र्गनी श्रासक्ति ने जेनी, मो मोक्षनी श्रासक्ति ने जेनी, ध धर्मने विषे अतृप्तिवंत, पुण् पुन्यने विषे अतृप्तिवंत, से स्वर्गने विषे अतृप्तोवंत, मो मोक्षने विषे अतृप्तिवंत एटला पदार्थने विषेत चित्त ने जेनु,त० तेने विषे मन ले जेनु, त तेने विषे लेश्या ने जेनी, ता तेज अधवसाय ठे जेना, त० ते अर्थे करी नपयुक्त ( सहित ) , त० तेज अर्थने विषे दीधी ने इंजियो जेणे, त० तेज नावनाए करी नाविक , ए० एवा अं अंतरने विषे एटले एवी नावना नावतो थको जीव का काल करीने मरण पामे तो ते जीव दे देवलोकने विषे देवतापणे उ० उपजे. से ते माटे हे गौतम ! एम कयु. ( को जीव नपजे अने कोइ जीव न नपजे.) . जावार्थ-हवे जुलं ! था पाठमां तो प्रजुए श्रीमुखथी गौतमने कथु के, गर्न मांहेलो कोश्क जीव सन्नी पंचेंजिनो पर्याप्तो तथारुप श्र. मणनी ( साधुनी) अथवा माहण केहेतां श्रावकनी पासेथी को एक (आर्य ज) धर्मनुं वचन सांजलीने हैये धारीने वैराग्य पाम्यो तथा तिव्र धर्मने रागे रंगाणोते जीव धर्मनो वंगणहार, धर्म करवानी, पुन्य करवानी, वगनी श्रने मोक्षनी वंबा करोने तथा धर्मादिक चार बोलना आसक्तपणे करीने, तेमज ए चार बोलना अतृप्तपणे करोने, एज बार बोलने विषे चित्त ने जेनु, मन ने जेनुं तथा खेश्या अध्यवसाय जे जेना, तेज अर्थे करी सहित , तेज अर्थने विषे इंजि दीधी ने जेणे, ए बार बो. सनी-लावना जावतो थको एवा अध्यवसाये वर्ततां थकां काल करीने देवतामां जाय. हवे जुढे ! जगवंते तो धर्म अने पुन्य एषे प्रकारनी करणी कही तथा स्वर्ग अने मोदए बे तेनां फल कहां. पुन्यनी करणीथी म्वेवतामां जाय अने धर्मनी करणीथी मोक्षमां जाय.हवे जुई ! पुन्य अर्मनी वांडा करतो देवतामां जाय कयु. ए न्याये पुन्यने श्रादरवा योग्य कहीये. वली चितमुनीए ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीने सूत्र उत्तराध्ययनना तेरमा अध्ययननी एकवीसमी गाथामां कडं के, हे राजा! ए जीवितव्य तो बसास्वतुं अने धर्म अने पुन्यना अपकरवावाला मनुष्य मरपने मुखे
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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