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+ सिद्धान्तसार..
निग्गंथाणवा आदालंदमवि वजए ॥ अदपुण एवंजारोज्जा नोनस्कित्ताई ४ रासकमाणिवा पुंजकमाणिवा नित्तियकमाणिवा कुलियकमाणिवा लंबियाणिवा मुदियाणिवा पेहीयावा कप्पइ निग्गंयाणंवा ३ हेमंत गिम्हासु वजए॥ अदपुण एवंजाणेज्जा नोरासिकमाई ४ कोहानत्ताणिवा पल्लाउत्ताणिवा मंचाउत्ताणिवा मालाउत्ताणिवा कुंनिनत्ताणिवा करनिनत्ताणिवा नलित्ताणिवा विलित्ताणिवा लंग्यिाणिवा मुदियाणिवा पिहियाणिवा कप्प निग्गंयाणंवा श्वासावासं वजए॥६॥
अर्थः-नपाश्रयनी विधि कहे:-न नपाश्रयनी अंग मर्यादामां सा० साल (चावल) वि० वृहि मु० मग मा श्रमद ति तल कुण कुलथ गो गहु ज जव, एटली जातनां धान्य उ० विखर्या होय वि० विशेषे करी विखाँ होय विकिय सघले प्रसर्यां होय विप्प पग मु. कवाने पण गम न होय, एवे स्थानके नोग न कटपे नि० साधु साधवीने आप हाथनी रेखा सुकाय तेटलो (श्राहालंद )जघन्य काल पण व० वस. श्र० अथ हवे वली ए० एम जाणे-नोन नाख्या नथी, विखर्या नथी, सघले प्रसर्या नथो, पग मुकवाने गम , रा० एक पासे ढगलो कीधो डे, पुउंचो ढगलो कोधो , जि जितने लगतो ढगलो कोधो बे, कुछ कुंमालाने आकारे ढगलो कीधो , लं० नपर राख रखेलो , मुखमाटी प्रमुख मुजा गप कीधी , पिण् बुगमे ढांकी मुक्याडे, एवा स्थानके क० कट्ये नि साधु साधवाने हे शियाले गि० उन्हाले व रहे. अण् अथ हवे बली ए एम जाणे के ज्यां लगी नोरा रास नथी कीधी, नो पुंग नथी ढगलो कीओ, नोनि नथी नीते ऊंची कीधी, नोकु नथी कुंमालुं कीचूं, को कोठामा प० पालामा म वासना कमामां के मा नपरले माले घाल्या बे, जग ते कोठो प्रमुख नां बारणां बागी