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________________ + सिदान्तसार (३४५) नागे, अने पलेवण न करे तो अतिचार लागे. ए अतिचार टाल्यामां धर्म डे बतां श्रादेशमां आशा आपे नही. वसा साधुजी आव्याथी आवक उनो थाय, साधुजीना सांमो जाय तथा घरमांथी वस्तु लावीने वहोरावे, एटला कामनी श्रादेशमां श्राज्ञा आपे नहिं; पण नपदेशमां तो धर्म बतावे. ए उपदेश-आज्ञा . वली स्वसंनोगी साधुनेज बे झा ने, अने असंनोगी साधुने तथा श्रावकने कोश्क बोलमां बे श्राज्ञा बे. तेमां कोश्क बोलमां नुपदेश-श्राझा डे अने आदेश-धाज्ञा नथी. तमे आज्ञा कल्पना नेदना अजाएया थका कहो बो के “ पमिमाधा। श्रावकने दान देवानी साधुजी आज्ञा न आपे, तेथी ए काम थाज्ञा बहार .” एवां थाल केम द्यो बो ? तेवारे तेरापंथो कहे जे के “ पमिमाधारी श्रावकने दान दीधामां सूत्रमा कयांय धर्म के व्रत कथु होय तो ते पाठ बतावो.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! जगवती सूत्रना श्रापमा शतकना बग उद्देशमां कडं ले के, श्रमणो-पासक श्रावक, तथारुप श्रमण कहेतां साधु प्रत्ये, वा कहेतां अथवा, माहण कहेतां श्रावक प्रत्ये प्रासुक एषणिक बेतालीस दोष रहित प्रतिमाने तो एकान्त कर्मनी निर्जरा थाय; पण लगार मात्र पाप नथा. ... तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ समणंवा माहाणंवा कहा ले ते बंने नाम साधुनांज ले. ते सूत्र सूयगमांगमां कह्या ले.तेमने दीधांमां निर्जरा कही जे.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! साधुनां नाम तो समण, माहण, लिखु , संजश मुनि, ऋषी इत्यादिक घणां कह्यां डे; पण एक कार्यमां बे नाम आवे नही. समणंवा, संजयंवा, निखुवा, ए रीते के नाम एक कार्यमा बत्रीस सूत्रमा कोपण ठेकाणे आव्या होय तो बतावो. ए पुनरुक्त वचनरुप दोष श्री वीतरागनी वाणीमां आवे नही. समणं क. हेतां साधुप्रत्ये, ने वा अथवा माहणं कहेता साधु प्रत्ये, एम अर्थ न होय. ए शब्द वचमा डे ते तो विकल्प अर्थ वास्तेज ब. समण साधु प्रत्वे अथषा माहण श्रावकप्रत्ये. इहां मादण शब्दनो अर्थ श्रावकज
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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