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________________ १७८ ) 4 सिद्धान्तसार मानता, उत्तां ठीकानी शादी शाने माटे आपो हो ? जो टोंकामा क समज प्रमाण करता हो तो टीकामां पाउल कहेला बोल मेलवी प्रापो. टीकमी तो आधाकर्मी थाहार करवो को बे, फलफुलनो आहार करवो को बे तथा साधुने चक्रवतनां कटक चुरखां कह्यांबे. इत्यादिक fare वात की बे ते पण प्रमाण करवी परुशे, अने जो ए प्रमाण न करो तो ए टीकानुं वचन प्रमाण केम करो बो ते कहो. हे देवानुप्रय ! जगवंतनी करणी उद्मस्थपणे ने केवलपणे एक सरखी जुलकरणी बे. ब्रद्मस्थपणे पण श्रागमव्यवहारी ने केवलमां पण श्रागमव्यवहारी बे. सूत्रमां साधुने वर्ज्या तेवां काम उद्मस्थपणे वर्ष श्रागमव्यवहारपणाची कीधां ने केवलज्ञान उपन्या पठी आगमव्यवहारपणार्थी कीथां. तेम उद्मस्थ अने केवलीपणे एक सरख कर्या से. हे देवामुप्रीय ! जे कार्य सूत्रमां सामान्य साधुने धी ते कार्य केवलीपणामां पोते कयीं डे. मुवानी खबर दीधी, मरण बता में मिमित्त नाख्यु. ए केवलमां तो तमे चुक्या नथी केहेता. तेनुं शुं कारण ? वली नेमनाथजीए बारे वर्षे द्वारीकानो दाद बताव्यों, तेमने तो चुक्या नथी केहेता, पण जगवंत माहावीरस्वामीधी अने जीवदयाथी द्वेष दीसे ठे तेथी प्रजुने चुक्या कहोटो. बली सरागपणाथों मोशालाने बचायो तेथी जो पाप लाग्युं कहो तो, दसमा गुणगणा सुधी संजम, तप, विनय, वैयावच इत्यादिक सर्व काम सरागपणाथी करे छे. ते सर्व काममां पाप लागले, केमके वीतरागजाव तो अग्यारमा साथ उपर वे सेमने तो एक इरियावदी क्रियाज लागे. ते इरियावहीं क्रिया पण सातावेदनी वे समयनी स्थितिनी बंधाया दीर्घ स्थितिना पुम्यपाप तो दसमा गुण ठाणा सुधी रागद्वेपथीज बंधाय. द्वेषयी धर्म प्रशस्त रागथी तो पाप बंधाय छाने प्रशस्त - रागथी पुन्य बँधाय. सराग-संजम ने सराग तपथी देवतानुं श्रनखं पुम्यप्रक्रति बंधाय एम से शाख सूत्र जगवती शतक बीजें उद्देशे पांचमें, लुंगिया मगरीनम श्राक्कोने अधिकारे हे देषामुप्रीय ! सरागथी गोशासों बचायो
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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