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________________ सिद्धान्तसार. ( ३७३ ) जावे करवो केम को ? धर्म तो उल्लास प्रणामे करवो जोइए. माझा हो ते विचार जोजो. वली साधुने छ कारणे श्राद्दार करवो कह्यो ढे, अने कारणे होमवो कह्यो ढे. शाख सूत्र उत्तराध्ययन ाण् डवी समें. ते गाथा:तइयाए पोरसिए, नत्त पाणं गवेसए, उन्नमन्नय-रागंमि, कारणंमि समुहिए. वेण वेयावच्चे, इरियठाएय संजमठाए, तह पाणवत्तिया बठं पुण धम्म चिंत्ताए. निग्गंथो धिईमंतो, निग्गंथिवि नकरेज बर्दिचेव, गणेहिंतु इमेदिं इक्कमणाय सोदोइ. प्रायंके उवसगो, तितिकया बंजचेर गुत्तीसु, पाणीदया तवहेन सरीर वो यहाए. ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ 11 34 11 अर्थः- पूर्ववत्. जुर्ड प्रश्न पेहेलो पाने १० में. नावार्थ- दवे जुर्ज ! या पाठमां साधुने व कारणे श्रादार करवो को. जो धर्म होय तो ब कारणे करवो केम कड़े ? धर्म तो वारंवार सदैव करवोज जोइए. वली पांत्रीसमी गाथामां व कारणे आहार बोवो को बे; पण धर्मने कोइ ठेकाले बोमवो कह्यो होय तो पाठ बतावो . ए जो धर्म होय तो बोमवो केम कह्यो ? माह्या हो ते विचारी जोजो. वली सूत्र उत्तराध्ययनना सत्तरमा अध्ययनमां, वारवार खाय तेने पापी श्रमण को बे. त्यारे जुड़े ! साधुनो श्राहार धर्ममां होय तो धर्मनुं काम वारंबार करे तेने पापी साधु केम कदे ? वली सूत्र दसासुतखंधना पहेला अध्ययनमां, वारंवार आदार करे तेने असमाधियो कह्यो बे. दवे जुड़े ! जो शाहार कर्यामां धर्म होय तो, वारंवार खाय तेने समाधि केम कह्यो ? तमे तो साधुनो खादार करवो, बंधयुं, दालवु, चालकुं, बोलवं, कामे जनुं, मात्रा करवी धने नदी उतरवी वीगेरे साधुनां सर्व काम, व्रत धर्ममां कहो ढो; पण जो एवी श्रद्धा श्रीवी तरागदेवनी होत तो जे वारंवार ॥ ३२ ॥
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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