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श्री पालणपुरने विषे, प्राकत मुख्य प्रधान; वेद महेता गोत्रमे, श्रावक बमे सुजान. उड प्रिय धर्मि वत्सली, अम्मापियु समान; राजमान राजेशरी, पीताम्बर थनिधान. आप आदि श्री शंघके, एसी न अनिलाष; त्यों करनो ज्यों ग्रंथ ए, पामे अधिक प्रकाश. ए श्छा बहु कालसे, वर्तिथी मनमाय; पिन अपुर्ण कारणवसे, पूर्ण होयाथी नाय. सो श्छा इन सालमे, पामी परम संयोग; परमार थकी बुछिए, पूरण जश् मनोग. जग जाहर पंमीत प्रवर, एक सहस्त्रने पाठ; पूज्यजी श्री रेखराजजी, मिथ्यामत निर्घाटतसु प्रशिष्य श्रीमन मुनी, रत्न रत्नकी खान; वर्ते जसु चर्चा विषे, यथायोग्य विज्ञान.. श्री संघकी लख प्रेरणा, जानी पर उपकार; तसु आश्रय तल यह जयो, शुभ नाषान्तर त्यार. ११ संवत युगरस अंक जू, सक प्रागनव मास; शुक्ल त्रयोदशि गुरुदिने, पूरण नया प्रयास. वासि पालणपुरतणे, स्वपरके हित काज; नाषान्तर निज कर लोख्यो, गंजीरमल हेमराज. १३
श्रा ग्रंथ मारवामी जाषामां ग्रंथकर्ताए रचेलो हतो. तेनुं गुजराती भाषान्तर में मारी अपमति अनुसार कर्यु के माटे श्रा जाषान्तरमा जे जे स्थले मुलचुक मालम पमे ते सर्व सुज्ञ जनोए सुधारी वांचवा कृपा करवी. एज वीनंती.
ली. नाषान्तर कर्ता.