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(३१०)
+ सिद्धान्तसार
गुण कहे. श्र० जाएया ने जेणे जी0 जीव अजीव. उन्ल ख्या पूर्ण पुन्य पापनां फल प्रा० श्राश्रव संग संवर णि निर्जरा कि० क्रियादिकना पचीस नेद अ० गामी यंत्रादिक शस्त्र अधिकरण बं० प्रकृत्यादि बंध, चार नेदे मो० मोहना नेदना जाणपणामां कु० कुशल बे. श्र० कोश्नी साज वंडे नहो. दे देवता वैमानिक अ० असुरकुमार ना० नागकुमार, नवनपति विशेष सु ज्योतिषि ज जद र० राक्षस किं० किन्नर ( वाणव्यंतरा ) किंण् गरुम किंपुरिष, ए व्यंतर नौकायना देव जाणवा. ग गरुमर्नु चिन्द ने जेने, एवा सुवर्णकुमार जवनपति विशेष गंग गंधर्व म० महोरग देवता, ए पण व्यंतर विशेष जाणवा. ए आदि दे देवताना गा समुह नि० निग्रंथ साधुनां पा वचन सिकान्तथी अ० अतिक्रमावी न शके. एटले श्रावके निग्रंथना प्रवचन मजबुत करी ब्रह्मा ने तेमज जवाब देवा समर्थ ले. एतावत्ता जैनमार्गने विषे निक शंकारहित नि अनेरामतनी वान्ता न करे नि साधुनी उंगंडा न करे तथा फलनो संदेह न आणे. लण सिद्धान्तनो अर्थ लह्यो डे ग अर्थ ग्रडा डे जगवंतना मुखथी पु० पुगेने निर्णय कीधा अण हेतुथीजाएया ने वि० वारंवार पुबीने अर्थ निर्णय कर्या जे. अ० हाममांनी मिंग भीजा (धातु) पे० धर्मरुपी प्रेमरंथी रंगाणी . अ पोताना सजन परिवार गुमास्ता विगेरेने नि निग्रंथ प्रवचनरुप मार्ग बतावे . श्रण एज अर्थ ने ए एज परमार्थ, से शेष संसाररुप सर्व अनर्थ जे. उ० हू. दय फ० फटकनी परे निर्मल , अण् सदाय घरनां बारणां दान देवा वास्ते उघामा राखे , चि० गड्या ने अंग अंतेनर प० पराया घरमां प० प्रवेश करवो. ब० घणा सी० शीलवत गु० गुणवत वे पापनां प० पचखाण कयां डे. पोसो उपवास सहित चाण्चौदस अष्टमी मु० अमावास पु० पुनम प० प्रतिपूर्ण पोसा सम्यक् प्रकारे अ० आज्ञासंहित पालता थका स० साधु नि निर्मथने फा० प्रासुक (अचेत) ए शुरू (५५ दोष रहित) अ अन्न पा० पाणी खाण खादिम सा स्वादिम एम चारे आहार व वस्त्र प० पात्र कं कांबलो पाय पायपुरणं