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________________ + सिद्धान्तसार ( १५६) मिथ्यात्वी बनव्य, व्यवहारमा उत्कृष्टो संजम पाले तोपण समकित रहित ले तेथीथसंजमी कह्यो. इत्यादिक अनेक सूत्र पाठमां समकितने रत्न कयुं ने अने साधु श्रावक बनेने सरझुंज बे. साध श्रावकने रत्ननो माला पण समकित आश्री कही ले ते बंने सरखी ले. नानी मोटी सूत्रमा को ठेकाणे कही नथी. वली साधुने तो सुपात्र कहीए अने श्रावकने न कहीए, एवो खुलो पाव तो सूत्रमा को ठेकाणे कयो दीसतो नथी. साधु साधवीने योपशम जावना गुणे करीने सुपात्र कहो बगे, त्यारे श्राएंदजी सरखा श्रावकने क्षयोपशम नावना गुण प्रगटया तेथी श्रमण सरखा कह्या; तेने एटला सूत्रना पाठ नत्थापीने मतना लीधे कुपात्र कहीने थलतां श्राख केम द्यो बो ? ___ वसी तेरापंथी कहे जे के " श्रावक खावा पीवाना, कपमा घरेणां पहेरवाना तथा सर्व वस्तुना त्याग करे तेने व्रत कहीये. ते उपवास व्रत करे तो धर्म, बीजाने करावे तो धर्म, अने करताने जलो जाणे तो धर्म; पण तेनो थाहार अपचखाणमां अने श्रागारमा जे. तेथी पारणाना दीवसे पोते खाय तो पाप, बीनाने खवरावे तो पाप, अने खाताने जडं जाणे तो पाप.” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! एम तो साधु एक पडेमी तथा एक पात्रा उपरान्त त्याग करे तो ते उत्तर-गुणवत पचखाण निपजे; अने थाहारनो त्याग करे तो उपवासनो उत्तर-गुण पचखाण निपजे; अने थाहारादिकनो त्याग न होय त्यारे उत्तर-गुणना अपचखाण कहीए. हवे तमारी कहेणीने लेखे तो साधुना खावामां पण पाप हशे; पण जगवंते तो साधु श्रावक बनेने आहारादिकना त्यागने उत्तर-गुणवत पचखाण कह्या बे, अने त्याग न होय त्यारे आहारादिकना उत्तर-गुण अपचखाण साध श्रावक बनेने कह्या ले. माटे हे देवानुप्रीय ! अबत तो साधु के श्रावक एकेने नथी. साधु तो सर्व बति ज, अने श्रावकने पण अवतनी क्रीया टाली बे; अने तेने पचखाणा पचखाणी कह्या ते तो शुजाशुन योग आश्री . ते साध श्रावक बनेने बे. शाख सूत्र नगवतीजी शतक सातमे उद्देशे बीजे. ते पाठः
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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