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________________ 4 सिद्धान्तसार ( १४१ ) पांच. . सराग प्रशस्त संजम तथा तप नपर पण आर्तध्यान बे. ए न्याये प्रशस्त कार्यथी तथा प्रशस्त राग जावथी जीवतुं मरतुं वान्छे, ते पुन्य प्रक्रतिनुं कारण बे. वली तेरापंथी, “ जीवतुं मरतुं वान्यामा धर्म पुन्य सरधे तेने मिथ्यात पाप लागे " एवी परुपणा जोला जीवोने झरमाववा वास्त करे बे, पण पोतानुं जीवनुं वान्बे बे. वचन बोलीमां बंध नथी. तेमने एवा प्रश्न पुढीए के: - ( १ ) तमारे जीववानी वांडा नथी त्यारे साप व्याथी आघा केम जाबो ? ( २ ) सांढ लढता आता देखीने या केम खसोटो ? ( ३ ) सींद धावता देखीने घाम जो? (४) हमकायुं कुतरुं देखीने श्राघा केम खसोढो? (५) टाढ लाग्याथी कपमां केम उढोटो ? ( ६ ) तापमांथी (लुमांची ) air hai? ( 3 ) पेटमा जुख लाग्याथी ठाम ठाम घर घर टकी आहार लावीने केम खाउंडो ? ( ८ ) वायु दाघज्वर वीगेरे शरीरमा रोग उपन्याथी औषधनो उद्यम करी जीवीतव्य केम वढोढो? ( ९ ) बात पत्थर पतो देखी यघा केम खसोबो ? इत्यादिक उपसर्ग उपज्यां सांमा जानुंतो मरण वांढयुं कदेवाय श्रने श्रधा जाउँ तो जी - वीतव्य वान्युं कद्देवाय तमारी श्रद्धाने लेखे तो जे जग्योए बेटा तेज जग्योए बेठा रहे जोइए. ए उपसर्ग उपन्याथी आघा केम जाबो, मुख लाग्याथी प्रहार केम करोगे अने रोग उपन्ये औषध केम करो बो; कारण के जीवj वयां श्रार्तध्यान पाप लागे, तो दुःख गमाववानी वा, ते ध्यानज बे . मनगमतो संजोग मल्यो तेनो विजोग न पने तो सारं, ने अगमतो संजोग मल्यो ते वहेलो मटे तो सारु, एवी चिंतवणा करे ते पण श्रर्तध्यान बे. शाख सूत्र नववार, चार ध्यानना अधिकारमा. 8 वे जुड़े ! दे देवानुप्रय ! जो जीवतुं वान्बवुं नही तो दुःख गमाaj पण वान्aj नही. तमे सर्पादिकना उपसर्ग उपन्याथी श्रधा केम rish? ख गमावाने आहार केम करोडो ? तथा रोग गमाववानी बाम्बा फेम करोबो ? तमे कहता हता के जीवनुं न वान्छबुं. त्यारे प
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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