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________________ सिद्धान्तसार. ( १४७ ) अने कोइ तीर्थंकर कर्मने वशे ष्ट थइने चार गतिमां अनंत काल पुद्गल सुधी रुख्या (म्या) पण जोइए, छाने एक जवमां नवसोवार संजम जाय श्रावे एम पण थवं जोइए. वली सामायक चारित्र ने कषायकुशील - नियंगमां बत्रीस बोल कह्या वे. शाख सूत्र जगवती शतक पचासमें, उद्देशे बड़े तथा सातमें. ते प्रमाणे बद्मस्थ तीर्थंकर मां सर्व होवा जोइए. हे देवानुमीय ! सामायक चारित्रादिकनी शाख देखामी भगवंतमां व लेश्या कहो तो, सर्व बोल सामायक चारित्रादिकमां कह्या स्थ तीर्थंकरमा केम नथी केदेता ? वली सामायक - चारित्र छाने कषायकुशील नियंगमां तो कल्प पांच कला बे :- वीय कल्पी ( कल्प प्रमाणे रेहेतुं ) १, टीय कल्पी (कल्प रहित ) २, जिन कल्पी (xनिग्रदधार । ) ३, (स्थिवर - कल्प) ( दमणा साधु प्रारजा विचरे बे ते ) ४, पातित ( वीतराग ) ५. तेमां बद्मस्थ तीर्थंकरमा दिक्षा लीधा पीकल्प एक कपातितज होय एम कयुं छे. शतक २५ में. हवे सामायक - चारित्र कम्पातितमां ने कषायकुशील नियंता कल्पातितमां लेश्या को सूत्रमां तथा टीका प्रकरणमा क्याय पण कही नथी. त एवा मतना सीधा जगवंत नपर कुमा बाल केम घोडो. वली सामायक चारित्रादिक सर्व बोलमां व लेश्या कही बे, ते द्रव्य लेश्या जाणीए बीए. लेश्या द्रव्य अने जाव, बे प्रकारे कह बे. तेमां द्रव्य श्याने रुपी फर्सी कह | बे. जेमां पांच वर्ण, पांच रस, वे गंध नेफर्स होय ते शरीरादिकना वर्णादिकने कहीये; अने जाव लेश्याने रूप कही बे, तेमां वर्ण, रस, गंध अने फर्स नथ । शाख सूत्र जगवती शतक १२ में, उद्देशे ५ में. ए न्याये ज्ञानमां, समतिमा, चारित्रमां नियंगमां ने चोवीस दंककमां, सर्वमां जाव-लेश्या केहेशोतो द्रव्य-लेश्या शेमां होय ते कहो. साधुजीनां द्रव्य लेा दोय के नदि ते को; कारण के साधुज म । व्य- लेश्या जाव- लेश्या न्यारी न्यारी तो कोइ ठेकाणे कही नथ . बली नारकी मां पेहेली त्रय मावी लेश्या कढ़ी के पूरा
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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