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________________ +सिद्धान्तसार.. (२७) साश्मं चनविहंपि आदारं पञ्चकामो जावजीवाए जांपियं इमं सरिरं इथं कंतं पियं माणूणं मणामं धिङ विसासियं. समयं बहुमयं अणुमयं नंडकरंगसमाणं माणंसियं माणंनन्हा माणस्कूहा माणंपिवासा माणंबाला माणंचोरा माणंदंसमसा माणं वाश्यं पित्तीयं संनियं सन्निवायं विवीदा रोगा तंका परिसदोवसग्गा फासा फुसंति तिकडु एयंपियणं चरिमेहिं उस्सास निस्सासेहिं वोसिरामि तिकडे संवेदणा झुषणा झुसिया जत्तपाण पमिया इस्किया पानवगया कालं अणवकंकमाणा विदरंति. ततेणं से परिवायगा बहुइं नत्ताइं अणसणाइं बेदंति दित्ता आलोश्य पमिकंत्ता समाहिपत्ता कालमासे कालंकिच्चा बनलोए कप्पे देवत्ताए नववन्ना तेहिं तेसिं गइ तर्हि तेसिं वित्ती दससागरोवमाइंछित्तीपणंत्ता. परलोगस्स आरादणा सेसंतंचेव.॥ अर्थ-पुण् पहेलां पण अण् अमे अ० अम्मम परिव्राजकनी अंग समिपे थु० मोटा पा प्राणीनी हिंसा- प० पचखाण कयु ले जा० जावजीव सुधी. थु मोटा मुण् मृषावादनुं प० पचखाण जा जावजीव सुधी. श्रु मोटा १० अणदिधुं लेवाना प० पचखाण जाण जावजीव सुधी. स० सर्व मे मैथुनप० पचखाण कयु के जा० जावजीव सुधी. थु० मोटा प० परिग्रहना प० पचखाण कर्या डे जा० जावजीव सुधी. ३० हमणां पण अ० अमे स० श्रमण जगवंत श्री माहावीर देवनी अंग समिपे स० सर्व पा प्राणीनी हिंसानुं प० पचखीए बीए जा जावजीव सुधी. ए० एम जाग जावत् स० सर्व प० परिग्रहर्नु प० पचखाण करीए बीए जाण जावजीव सुधी. स० को सर्व क्रोध मा० मान माग माया लोग लोन रा० राग दो द्वेष का क्लेश अ आल पे० चामी पनिंदा अ० खुशी नाखुशीमा (माया) कपट सहित जुठ मिण खोटा
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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