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________________ (११८) + सिदान्तसार.. नावार्थ:-हवे जु ! था पाठमां एम कडं के, ज्यारे पहेला अने बीजा देवलोकना इंधने युद्ध थाय, त्यारे त्रीजा देवलोकनो सनत्कुमार नामे इंऽ आवीने बने इंजने कहे “म करो एवं काम” एम कहे, तेवारे बने इंड तेनुं वचन प्रमाण करे अने तेनी आज्ञा प्रमाणे रहे. वली गौतमे पुत्यु के, त्रीजा देवलोकनो इंच नवी ? इत्यादिक बार प्रश्न पुढया. तेवारे जगवंते कडं के, एनवी , समष्टि , परित संसारी , सुलन बोधी , श्राराधिक श्रने चरमशरिरी जे. एन बोल जगवंते जला कह्या. तेवारे गौतमे पुन्युं के,त्रीजा देवलोकना सनत्कुमारनां वचन शकें तथा इशाने बेउ प्रमाण करे अने वली ते नव्य यावत् चरमशरिरी , एवं पुन्य तेने साथी बंधाणुं के तेने एवी पदवी मली. तेवारे जगवंते कडं के, सनत्कुमार इंज, साध साधवी, श्रावक श्रावीका ए चतुर्विध संघना हितनो वंबणहार २ १, सुखनो वं. बक डे २, फुःखत्राण एटखे हुधा, तृषा, उपसर्गादिक दुःखथकी राखपहार ले ३, थने ते संघने पुःखी देखी अनुकंपा दयानो करणहार ले ४. ए चार प्रकारे मोदनो वंबणहार जे. एणे चतुर्विध संघर्नु हित तथा सुख वान्ब्युं, फुःखनुं निवारण वान्ग्युं अने अनुकंपा करी तेथी पुन्य बंधायु. तेथी बन्ने इंश तेनां वचन प्रमाण करे , अने उ बोल नसा करा. ए जुई ! श्री वीतरागदेवे तो श्रावकने सुखशाता दीधानां फल जखां कह्यां . तमे पाप कया न्याये कहोगे ? तेवारे तेरापंथी कहे के, ए पुगतो इंजना नवनी जे. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! इंजना न. वनीज पुबा , तोपण श्रहीं तो गौतमे पुब्यु ने के, हे जगवंत ! एवां पुन्य बंधायां अनेक बोल जला कह्या ते कर करणीना प्रयोगथो ए अर्थ कह्यो ? ते उपरथी भगवते कयु के, चार संघर्नु हित सुख वान्ब्युं तेथी पुन्य बंधायां. त्यारे मनुष्य श्रावक चार संघ, हित सुख वान्डशे, फुःख मिवर्तावशे अने चतुर्विध संघनी अनुकंपा करशे तेने नखां फल केम नही सागशे ? ते विचारो
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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