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________________ सिद्धान्तसार. ( ३३१ ) बीसमुं पाप कयुं ते बतावो दे देवानुप्रोय ! अढार पापना त्याग तो साधुजीने मूल गुणव्रतमांज बे; अने श्राहारना पचखाप करे तो उत्तर गुणव्रत निपजे. तेम श्रावकना अढार पापना त्याग तो मूल-गुणत्रत बे, ने हारना त्याग करे तो उत्तर--गुणत्रत निपजे. तेथी छाढार पाप अने चार आदारना पचखाण न्यारा न्यारा कर्या. घली तमे श्रावकना खावा पीवा प्रमुखमा पाप कहो बो, तो ते खावा प्रमुख अढार पाप मां कयुं पाप ते को अने अढार पापना त्याग करीने पटी आदारना न्यारा त्याग केम कर्या ते पण कहो. हे देवानुमीय ! सिद्धांतनो न्याय तो एम दीसे बेके, साध श्रावकने आहारना त्याग न होय त्यारे तो उत्तर- गुणना श्रपचखाण कहीए, अने हारना त्याग करे तो उत्तरगुण पचखाण निपजे. साधु तथा श्रावक बनेने उत्तरगुण- अपचखाणी पण का बे ने उत्तरगुण- पचखाणी पण कह्या बे. तेन । शाख सूत्र जगवतीजी शतक सातमे नद्देशे बीजे. ए न्याये तो साध-श्रावक बनेनुं खातुं पीव्रं उत्तर गुण छापचखाण बे; केमके शरीरनी ममताने श्रर्थे - शुन जागथी खाय तो बनेने पाप लागे; अने संजम तपनी सहायता अर्थे खाइने शुभ जावना जावे तो शुभ योगथी बनेने निर्जरा थाय. वली जो श्रावकना खावा पीवामां पाप होय तो सूत्र जववाइजीमां मरुजी श्रावकने सो घरे पार करता कह्या बे. ते ममजी श्रावक नव तत्वना जाण एकावतारी सो घरे पारणं केम करे ? एक घरे तो पारं कर्या विना सरे नहिं तेथे । करे; पण सो घरे पारं करी स्वरने अनर्थ पाप केम लगाने ? ते पाठ श्री नववाइजीनो: -- बहु जणेणं अंते ! अन्नमन्नस्स एवमाइकइ एवंासइ एवंपन्न एवं परूवेति एवंखलु अम्मपरिवायए कंपिलपुरे-गारे घरसत्ते प्राहारमाहरेति घरसए वसदिनवेइ. से कहयं ते ! एवं ? गो० ! जसे बहुजणो अन्नमलस्स एवमाइति जाव परूवेति एवंखलु अम्ममे परि
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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