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+सिद्धान्तसार
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संकारा पमिविरिया जावजीवाए. एगचा अपमिविरिया. जेयावणे तदप्पगारान सावज जोगान वदियाकम्मंता परिपाण परितावण कराकांति ततोवि एगच्चा परिविरिया जावजीवाए. एगच्चा अपमिविरिया तंजादा सेजदा णामए समणो वासगा नवंति ॥
अर्थः-से ते जे ए गा गाम, श्रागर ण नगर जा जावत् स० सनिवेसने विषे म मनुष्य श्रावक स्त्री पुरुषादिक न होय तं ते कहे-श्रा थोमा आरंजी अ० थोमा परिग्रहवंत ध धर्मी ठे धम्मा० धर्मने केके चाले धम्मि धर्म वाहालो ने जेने धम्म शुरूधमना परुपक धम्मप० धर्मने विषे वारंवार नजर राखे धम्मस० धर्मने रंगे रंगाणा ने तथा लजावंत, धर्मने कोई उलंजो दर शके नहिं धम्मेण धर्मने विषे हर्ष सहित आचार ले जेनो धधर्मेकरी चे० निश्चे वि० व्रत्ति आजीवीका क० करतायका प्रवर्ते सुनलो श्राचार ले जेनो सुजलां बत के जेनां सु० अत्यंत नलु श्रानंद सहीत चित्त ने जेनुं सा धर्म पदे साधु ए बे जातीना प्राणीमांथी पा० त्रसजीवने हणवाथी प० निवर्त्या जा० जावजीव सुघी. ए. एक स्थावरनी हिंसाथी श्रम निवा नथो. ए एम जाम् जावत् प० मोटा जुन, अदत्तादान, परदारा अने परिग्रहथी प० निवर्त्या . ए० अकेक नाना जुर, चोरी, कुशील, अने परीग्रहथी अ० निवर्त्या नथी. ए अकेक अनंतानुबंधियादिक मोटा को क्रोधची मा० मान मा० माया लोग लोन पेण राग दोष का क्लेश अने अण् श्राल देवाथी पे मोटी चामीथी प० पारका श्रवर्णवादथी १० अरति रतिथी मा माया सहित मृषाथी मि मिथ्यात्व दर्शन शट्यथी कूप्रावनिक बा लोकोत्तर, ए मिथ्यात् मूलथकी १० निवा जा जावजीव सुधी. ए० एकेक थोमा नाना क्रोधादिक तथा खोकीक मिथ्यात्वथी (संसारना प्रारण कारणादिकथी) श्रण नवी मिवा. एण् एकेक मोटा आण प्रारंन सण समारंजथी, पंदर क