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________________ सिद्धान्तसार. ( १३७ ) त्रिविधे द्विविधे प० पक्किमे (विरमे). तं० जेम पूर्वे कथुं तेम जा० जावत् ए० एक करण ने ए० एक जोगथी प० पक्किमे विरमे. इहां नवे प्रश्ननो उत्तर. दवे ति०ति० त्रिविधे त्रिविधे प० पक्किमतो थको विरमतो थको इहां एक विकल्प कहे बेः- न० प्राणातिपात पोते न करे to बीजापासे न करावे अने क० करता प्रत्ये जलो न जाये म० मन व० वचन छाने का० कायाएकरी इत्यादि अधिकार घणो बे ते श्री भगवतीथी जालवो. • जावार्थ:- हवे जु! आ पाठमां तो कयुं वे के, ४० जांगाए करी गया कालनुं सर्व पाप पकिकमे, विद्यमान कालनुं सर्व पाप संवरे अने जविषय कालनां सर्व पाप पचखे. एम पांच श्राश्रवना १३५ जांगा का बे. हवे जुड़े ! ३३ में आके त्रण करण त्रण जोगथी पापना त्याग श्रावकने कला बे. ते पकिमाधारी श्रावकने न होय तो बीजा कया श्रावकने दशे ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहेबे के, ए तो प्राणातिपातादिक पांच ग्राश्रवना त्याग कह्या बे, पण सर्व पापना त्याग नथी कह्या. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रय ! साधुजीने पांच श्राश्रवना त्रिविधे त्रिविधे त्याग बे, तेथी सर्व पापना त्याग थइ चुक्या. तेमज श्र श्रावकने पांच श्राश्रवना त्याग तेज मूल-गुणत्रत बे ने उपलां सात व्रत ते उत्तर-गुण कां बे; केमके पांच अणुव्रतमां पापनो आगार रह्यो, ते आगलां सात मां संकोचाय बे; अने पांच श्रश्रवना त्रिविधे त्रिविधे त्याग कर्या, सेवारे उपरना व्रतना त्यागमां समाइ गयां. जेम अनुयोगद्वार सूत्रमां ऋजुसूत्र- नयनो धणी एक अहिंसानेज व्रत माने. जेणे त्रिविधे त्रिविधे हिंसा त्याग कर । तेने पांचे महात्रत थयां ने सर्व पापना त्याग थर चुक्या कह्या बे. तेम इहां पण पांच श्राश्रवज लखाव्या तेमां सर्व पा. पना पचखाण जाणवा. जेणे पांच श्राश्रवना त्याग त्रण करण अनेत्रप जोगथी कर्या हशे, तेने बीजा पापना त्याग केम नहीं इशे ? तमे तो कहो बे के श्रावकने त्रिविधे त्रिविधे त्याग होय नहीं; पण जगवतीजी सूत्रना था पाठमां समचे श्रावकने तेत्रीस ग्रांके पापना त्याग याय कह्या ४३
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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