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________________ + सिद्धान्तसार.. (४४९) वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कहोये:-गुरु लघु पर्यव अफरसी रुपी पुद्गल जीवने लोलीजुत जीवे ग्रह्या तेने, तथा अगुरु लघु पर्यव कारमण शरीर चोफरस) पुद्गल जोवे कर्मपणे ग्रह्या तेने नाव जीव कह्या ले. शाख सूत्र जगवती शतक बोजे नद्देशे पेहेले, खंधकजीना अधिकारमां. ते पाठः जेवियणते खंदया ! जाव सअंतेजीवे अणंतेजीवे तस्सवियणं अयम एवं खलु जाव दवणं एगेजीवे सअंते खेतनणं जीवे असंखेद्यपएसोगाढे. अनिपुणे सअंते कालनणंजीवे एकयाइनासि निच्चे णव पुण सेअंते जावनणंजोवे अणंताणाणपऊवा अणंतादसणपऊवा अपंताचरित्तपजावा अणंतागुरुखहुयपऊवा अणंताअगुरुलहुयपऊवा एनिपुणसेअंते सेतं दवजीवे सअंते खेत्तन सअंते काल जीवे अणंते नाव जीवे अणते ॥ अर्थः-जेण्जे पण वली खंग हे खंधक ! जाग यावत स जीव अंत सहित अथवा जीव अ० अंतरहित पण ले त तेनो अ0 एवो अर्थ जाणवो. ए० एम निश्चे जाण् यावत् द अन्यथकी ए० एक जीव सण अंत सहित जे खे० क्षेत्रथको जी0 जीव अ० अशंख्याता प्रदेशात्मक , अशंख्याता प्रदेश अवगाहा बे. अ० वली ते स० अंत सहित का कालथा जीव ण नथी कदी थयो (एतावत्ता अतित काले हतो, वर्त. मान काले , अने अनागत काले रदेशे,) नि0 नित्य जे. ए नथी पुणे वली से तेनो अंत (अनंत ठे). ना नावथकी जीव अण्णा अनंता ज्ञानना पर्याय अण्दं० अनंता दर्शनना पर्याय अ० च० अनंता चारित्रना पर्याय श्र अनंता गुरु लघु पर्याय ते उदारिक शरीर आश्रोने अण् श्र० अनंता अगुरु-लघु पर्याय ते कारमण अव्य अथवा जीव स्वरूप श्राश्रोने. पावली तेनो अंत नथी (अनंत डे). सेन्ते एवी रीते दश अव्यथकी
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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