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________________ (१८८) + सिद्धान्तसार.. शरीर ५ तस्वनुं पुतj ते नेबुंज नपजे जे अने बुंज विणशे जे. एवो एकान्त व्यवहार स्थाप्यो. तेवारे केशीश्रमण मुनीराजे परलोकनी प्रा. स्ति देखामवाने माटे निश्चे नयनो पद लश्ने कडं के, हे प्रदेशी! तुं जुगे जे. जीव न्यारोळे अने शरीर न्यारूं . जीव परलोकमां पुन्य पाप ल जाय डे अने शरीर अहीयांज विणशे बे. ए जुर्ड! सतरमा शतकना बीजा उद्देशामां, अन्य तिर्थीए शरीरने अने जीवने न्यारो कह्यो, तेम रायप्रशेणी सूत्रमा केशीश्रमण मुनीराजे कह्यो, अने रायप्रशेणीमां प्रदेशी राजाए जीव अने शरीरने व्यवहारनय एकान्त खेंचीने एक कह्यो. तेम सतरमा सतकना बीजा उद्देशामां श्री जगवते पण जीव अने शरीरने एक कर्तुं . हवे रायप्रशेणीमां तो प्रदेशी राजाए एकान्त व्यवहार नय स्थाप्यो तेथो केशी स्वामीए तेने निश्चे नयनो पद लश्ने जुगे कह्यो, श्रने जगवतीमां अन्यतिर्थीउए एकान्त निश्चनय स्थाप्यो तेथी जगवते व्यवहारनो पक्ष लश्ने तेमने जुग बोला कह्या.ए जुग कह्या ते एकान्तनय स्थाप्यो तेथीज कह्या , कारण के नगवंतनो स्याद्वाद् मत जे. तमे अन्यति नो पेरे एकान्त निश्चे-नयनो पद लश्ने कर्म, १० पाप, ५ शरीर अने जीवने न्यारा केम कहो हो ? नगवंतेतो कर्म, १७ पाप, ५ शरीर अने जीवने एक कह्यो . ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीए. (५). वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कहीये:पुन्य, पाप अने बंध ए शुनाशुन्न कर्म डे. ते कर्मना बे नेद. नदय १ श्रमे उदय निष्पन . तेनी शाख सूत्र अनुयोगहार. उदय ते श्राप कर्मनो उदय; अने उदय निष्पनना बे नेद. जीव-उदय निष्पन १ अने अजीव उदय-निष्पन ५. तेमां जीव-उदयनिष्पनना ३३ बोल, ४ गति, ६ काय, ६ लेश्या, ४ कषाय, ३ वेद, मिथ्यात्वि, अनाणि, असंझो, पाहा. रीक, अति, सजोगी, संसारत्था, बद्मस्थ, श्रसिद्ध अने अकेवली एवं ३३. ए तेत्रोस जीव-नदयनिष्पनना बोल ए जीवज ले. ए न्यावे पुज्य, पाप अने बंधने जीव कहीए. (६).
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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