SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4 सिद्धान्तसार. ( २५९ ) नावार्थ:- हवे जु मागध तीर्थना देवताए विवादमां कोपथी भरतमहाराजाने एवां वचन कह्यांः एवो कोण बे ? मने कोइ न वान्छे तेनो वांबहार, माग लक्षणनो धणी, तुटती चौदस काली बोली अ मावाश्यानो जल्यो, लज्या लक्ष्मिए करीने रहित. " ए वचन देवताए कलां. एवां वचन वरदाम धने प्रजासतीर्थना देवताए पण कलां ने एवांज वचन म्लेछ राजाए पण कलां, अने ते केवली गणधरे सूत्रमां गुथ्यां. हे देवानुप्रय ! तमारे लेखे तो जरत माहाराजा एवा दीप-पुन्या बे, तेथी देवताए पूर्वोक्त वचन कलां वे, ने गणधरे सूत्रमां गुंध्यां वे. तेवारे तेरापंथी कड़े वे के, “ए तो देवताए कोपमां वचन कह्यांडे, अने देवतानी कड़ेणी गणधरे सूत्रमां गुंथी बे. एतो अपेक्षाये वचन सूत्रमां घाल्यांबे, पण जरत महाराजा तो महा जाग्यवंत बे." त्यारे हे देवानुप्रीय! जेम ए वचन देवताए तथा म्लेच्छ देशना राजाए कोपमां जरत मादाराजाने कह्यां तेवां गणधरे सूत्रमां गुंथ्यां, पण जरत माहाराजा एवा नथी तेम कुमारे पण विवादमां ब्राह्मणोने क के, तमारा सरखा धर्मना द्वेषी तथा हिंसा धर्मना स्थापनहार मंजारा सरीखाने ब्रह्म नोजन दे, तो नारकीमां जाय. ए शाईकुमारे विवादमां वचन कह्यां; तेनुं कहेतुं गणधरे सूत्रमां गुंथ्युं वे ए अपेक्षाय वचन बे, पण श्री तीर्थंकरना साधुनुं उपदेशीक वचन नथी अपेक्षाय उलख्या विना जे करे तेने श्री तीर्थंकरनो चोर कहीये. शाख सूत्र प्रश्न व्याकरणना श्रीजा संवरद्वारमां, दस प्रकारे साच कयुं डे. बार प्रकारे जाषा, सोल प्रकरनां वचन, त्रण लिंग, त्रण काल, एक वचन, द्विवचनादिक सात विनकि, अपेक्षाय वचन, ( नव लिए) स्तुति वचन, ( श्रवशिय) निंद्या वचन, इत्यादिक सोल प्रकारनां वचन उलखीने पती सूत्रनो अर्थ करवो. ( एरिहंताणा) एवो खरिहंतदेवनी श्राज्ञा बे. " तमे अपेकाय वचन जाण्या विना कलां वे, ने वली कड़ो तो के, सूयगकांग सूत्रमां कह्युं बे, के ब्राह्मणोने जमाड्याथी नारकीमां जाय. एवां सूनां जुगं नाम लड़ श्ररिहंतनी श्राज्ञाना चोर केम था हो ?
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy