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________________ (२७८) + सिद्धान्तसार.. कडं बे; पण खावं पीयूँ तो सर्व उदयनावमां . वली जो श्रावक एवा बुखानावे साधुनीपरे खाय तो तेने निजर्रा थाय के नही ते कहो. केमके ए खुखा प्रणाम तो क्षयोपशमनावे ने तेथी साध श्रावक बनेने निर्जरा थाय ले. जो थाहार करवाथी निर्जरा धर्म थाय तो, एक साधु तो पांच रोटी खाय, अने एक साधु पांच रोटीनी खुराकवालो अपोदरी तपने वास्ते जाणीने बेज रोटी खाय. हवे खावामां धर्म होय त्यारे तो पांच रोटीनी खुराकवालो, जाणीने ब रोटी खाय तेने तमारे लेखे तो, घणो धर्म थवो जोइए; पण जगवंते तो, श्री प्रश्नव्याकरणमां थोडं खाय तेने अणोदरी तप कह्यो चे अने अधिको थाहार करे तो श्रदत्तादान कडं जे. वली सूत्र उत्तराध्ययनना १७ मा अध्ययनमा वारंवार खाय तेने पापो श्रमण कह्यो बे. वली सूत्र दशाश्रुतष्कंधना पहे. ला अध्ययनमां, वारंवार खाय तेने असमाधियो कह्यो ; अने सूत्र उत्तराध्ययनना २ए माअध्ययनमा आहारनां पचखाण करवां कह्यां . इत्यादिक अनेक सुत्र-पाठमां आहारने नदयत्नावमां कह्यो . तमे एटला सूत्रना पाठ नत्थापीने, साधुना खावामां, निंद लेवामां, दिशाए जवामां, वाय संचरवामां, इत्यादिकमां धर्म कहीने अणहुती स्थापना केम करोगे? ___ वली तेरापंथी कहे बे के “ सामायकमां श्रावकनी आत्माने अधिकरण कडं बे. तेथो श्रावकने आहार दीधामा अने वंदणा कामां पाप कहीये बीऐ.” तेनो नत्तर. सूत्र जगवती शतक सातमें नद्देशे पहेले, श्रावकनी आत्माने अधिकरण केवी रीते कह्यु ते पाठःसमणोवासगरसणं नंते ! सामाश्य कमस्स समणोवासए अन्नमाणस्स तस्सणं नंते ! किं रियावहियाकिरियाकबइ संपराश्याकिरियाकयइ ? गो! नोरियावहियाकिरियाकय संपराश्याकिरियाकघर. सेकेणवेणं नंते ! जाव
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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