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________________ (४८०) + सिदान्तसार जोमे तेथी पुन्य भोगववानी वांना श्रने मोहकर्म अशुल तेथो पुन्य जोगववामां ग्रजपणुं ने ते आश्री रुलq कह्यु बे; पण मुक्तिमार्गना साजने अर्थ त्रसनो दसको, पंचेछि जात थने उदारिक शरीर, ए पुन्यरुपी नावा संसार समुज्मां बेग त्यां सुधी संसाररुपी समुफ तरवा माटे श्रादरवा योग्य बे; अने समुप तरीने तीरे श्राव्या पली नावा बोमवा लायक जे. जेम वस्त्रमा मेल ने त्यां सुधी तो साबु श्रादरवा लायक , पण मेल बुटया पड़ी साबु बोमवा लायक बे, तेम जीवने अशुज कर्म रुपो मेल ने त्यां सुधी तो पुन्य (शुनकर्म) रुपी साबु श्रादरवा लायक बे; अने श्रशुजकर्म तुटया पनी पुन्य (शुनकर्म ) रुपी साबु बोमीने मुक्कि जाय . इत्यादिक अनेक सूत्रनी शाखे व्यवहार नयमां पुन्य श्रादरवा लायक . तमे मतना लीधे एटला सूत्रनां वचन उथापीने पुन्य एकान्त बांझवा योग्य केम स्थापोडो ? ____वली तेरापंथी (जो ग्रहस्थी सूत्र जणशे तथा वांचशे तेथी वोतरागनां वचनथी वाकेफ थ जशे तो पनी अमा। कपटाश् चालशे नही एम धारी) खोटो मत स्थापवाने अर्थ कहे जे के “ ग्रहस्थीए सूत्र नणवू नही. जो साधु ग्रहस्थीने सूत्र नणावे तो नषित सूत्रमां चोमासी प्रायश्चित आवे कडं जे.” तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! त्यां तो "अणनबिएवा गारखिएवा वायश्वा वायतंवा साजार" एवो पाठ बे. ते अन्यतिर्थी मिथ्यात्विी अने अन्य तिर्थीना ग्रहस्थो तथा मिथ्यात्वी आश्री कडं देखाय बे, पण श्रावकनुं तो नामज नथी. वली शिष्यनी पेरे ग्रहस्थीने वांचणी देवी नही. तेम अन्यतिर्थी-ग्रहस्थो पासे साधु वांचणी ले तोपण चोमासो प्रायश्चित कयु बे. हवे तमे ग्रहस्थी पासे दुहा, उपदेसीक ढालो, सवैया, व्याकरण प्रमुख केम सोखो बो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के “ अमे तो मोंढे सीखीए बीए, पण वीनय करीने शिष्यनी पेरे पानांथी वांचणी लेता नथी.” तो हे देवानुप्रीय ! चोथा श्रारामां तो सर्व ज्ञान मोंढेज शीखता हता. जेम अन्यतिर्थी ग्रहस्थी कने शीखे तेम शोखवामे तो अटके नही; पण शिष्यनी
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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