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+ सिद्धान्तसार..
वैमानीक-देवतार्नु श्राज बंधाय; अने एमने.तो मनुष्य, आज बंधायु. तेथी मिथ्यात्वी जाण्या. एम कहे . तेनो नत्तरः__अरे ना ! श्री कृष्णमाहाराज तथा श्रेणीकमाहाराज, ए समकिती हता. तेमनुं नर्कनुं आज केम बंधायुं ? तेवारे तेरापंथी कहे डे के, पेहेला नर्कनुं बाउ मिथ्यातपणामां बंधायु, अने पड़ो समकित आव्यु. एम एकान्त जुठ कहे जे. हे देवानुप्रोय ! केटलाक जीवोने तो वर्तमान जवनुं श्रान उ महिना बाकी रहे, त्यारे परनवनुं श्राउ बंधाय बे, अने केटलाक जीवोने श्रानखानो त्रीजो नाग रह्या पळो परजवर्नु आज बंधाय बे; पण बे नागमां तो कोइ जीवने परजवर्नु आनखं बंधाय नही. तेनी शाख सूत्र पन्नवणा पद २३ में.
हवे जुन ! श्री कृष्णमाहाराजनुं हजार वर्षनुं श्राउ हतुं, तेमांथी ६६६ वर्ष जारां गयां, त्यां सुधी तो परनवर्नु आउखु बंधायु नहीं, अने समकित तो श्री नेमनाथ नगवंतने केवलज्ञान उपज्यु, त्यारथीज शेवान्नक्ति करी दीशे . वली कृष्णमाहाराज आसरे त्रणसो वरसना हता, त्यारे राजेमतिने आवीने कर्वा के, "हे कन्या ! नेमनाथ जगवान तो संसारसमुद्र तर्या, ने तुंपण संसारसमुफ तर." एवां वचन कह्यां . शहां सम्यक्त दीसे बे, अने पनी थान बंधावाना समये सम्यक्त गयुं, तेथी नर्कनुं श्रान बंधायुं दीशे , अने पलो वली सम्यक्त आव्यु दीसे बे. वली कृष्णमाहाराजने कायक-सम्यक्ति परिपाटीमां (परंपरामां) कहे . ते कायक-सम्यक्त आउखु बांध्या पनी आव्युं होय तो अटकाव नही, पण सूत्रपाठमां तो कायक-सम्यक्त कर्वा नथी. क्योपशम-सम्यक्त दीसे ले. तेनी स्थिति जघन्य अंतरमुहूर्तनी अने नत्कृष्टी ६६ सागरनी कही बे. सास्वादन-सम्यक्तनी जघन्य तथा उत्कृष्टी उ श्रावलकानी, उपशम-सम्यक्तनी एक समयनी अने उत्कृष्टी अंतर मुहर्तनी, वेदक-सम्यक्तनी जघन्य उत्कृष्टी एक समयनी , अने दायक-सम्य. कनी श्राद डे पण अंत नथी, एटले ते आव्युं पार्बु जाय नही. शाख