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________________ १४) सिद्धान्तसार, epaper करबा बोज्या; तथा जेने पहेला बोलावता हता तेनेज बोखावतुं गेलं, अलापसलाप करवो बोड्यो, तथा असनादिक चार अहार देता इत्यादि बर्वे करता, ते हवे बोड्या. वली एवा अन्यतिर्थीने दान देवु पमे तो उ कारणे श्रागार जे. ते 'रायानिउगेणं' इत्यादिक उ कारणमा वित्तिकंतारे' एषो पाउ जे. ए पाउनो अर्थ एम ने के, हुं अनाथ उबलने (कतार) अटवीने विषे दुर्निवादि कारणे दान देखें , तेमां जो कोश अन्यतिर्थी दुधातृषातुर पोमाए व्याप्त थको आवी, मागतानी परे मागीने लइ जाय सो देवानो श्रागार जे. एटले मागता निझुकने आणंद श्रावक पण दान ३. ए लेखे अन्यतिर्थी अन्यमतना स्वामीने पण अनुकंपा आणीने तो दान दे बे; पण गुरुनी बुझे नथी देता. - वली मागता निखारी तथा असंजतिने दान देवानां पचखाण कर्यां होय तो, उ बीमीना श्रागारनुं शुं काम डे ? मागता निखारीने मस्ते का राजा, न्यातीला, माता, पिता, बलवंत, देवता, जबरा करीने कहे के, समे एने दान द्यो ? अर्थात् नज कहे. ए तो राजादिक तथा सस अन्यतिर्थीने गुरु करीने माने , तेने वास्ते जबरा करीने पण कहे के, "अमारा गुरुने वंदणा नमस्कार करो, दान द्यो.” एम जबरा करीने सनाविक कहे तो अन्यतिर्थीना मतना मालेकने (मिथ्यात्वीने) वंशा नमस्कार कस्वानो अने दानादिक देवानो आगार . ए पांच तो जब सपणाना आगार , अने गो अनुकंपा आश्रो श्रागार डे के, एज अन्यतिर्थी-मतनो-स्वामी निदादि कारणे अटवीने विषे पुर्बलपणे मागे तो दान देवानो श्रागार जे. ए लेखे अनुकंपा दाननी करणी तो आणंद श्रावक करे , पण “ अन्यतिर्थी मतना-स्वामी धर्मना पो के ते यापुं नहीं" एवो आणंद श्रावके अन्निग्रह लोधो बे; पण पार्षद श्रावकने कांश एवं पचखाण नथो के " हुं असंजतिने आपु नहीं." वास्ते असंजति अने अन्यति मां घणो फेर . अन्यतिर्थी तो ३६३ पा. खंक मतना देखामणहारा, जैनमार्गना द्वेषो, निंदक . तेने भापता वांदतां अलापसलाप करतां जैनमार्गने खघुता सागे, पाखंकमार्ग कोपे
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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