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________________ ( २५०) + सिद्धान्तसार दाननो निषेध नथी. जो ब्राह्मणोए एम कडं होत के "हे श्राईकुमार! हुँ उबल नीखारी ब्राह्मण ढुं माटे तुं अनुकंपा आणीने दान आप.” एम बाह्मणे कडं होत, अने बार्डकुमारे एम जवाब आप्यो होत के "मागता नीखारी उबलने मरता देखी अनुकंपा थाणीने दान देवू नही, जो असंजति मागता नीखारीने अनुकंपा थाणीने दान दे तो नारकीमा जाय." एम श्राईकुमारे कडं होत तो तमारं कहेवू मलत; पण एम नयी कह्यु.अहीयां तो ब्राह्मणोए पोतानुं गुरुपणुं देखामयु, अने ब्रह्मलो. जने पुन्यनो खंध (पुंज) तथा मोदनो हेतु जणाव्यो, तेना अभिप्रायनो उत्तर दीधो ले. जो ब्रह्मनोजनमां पुन्यनो खंध तथा मोक्षनो हेतु माने तथा गुरु जाणीने दे, तो नारकीमां जाय, ए थन्निप्रायनो उत्तर डे; पण ए श्रीवीतरागदेवतुं उपदेशीक वचन नथी. ए तो ज्यारे श्राईकुमार श्री माहावीर नगवंत पासे दीक्षा लेवा जाय डे, तेवारे ब्राह्मणे जैनधर्ममे निषेध्यो तथा मिथ्यात्व थाप्यो, तेथी भाईकुमारे वीवादमा उत्तर दीधो के, जे ब्राह्मणने जमाने ते नारकीमां जाय. पण ए वचन प्रमाण नथी. एतो विवाद वचन ग्रहस्थy . तेवारे तेरापंथी कहे जे के, समकिती धर्म-चर्चामां जुट केम बोले? श्रने समकितीनुं वचन प्रमाण केम नही ? तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीम ! समकिती श्रावक तो पापनां अनेक काम करे ले तथा रागद्वेषने वा अनेक जुठ बोले ले. जेम श्रावकना प्रणाम वैरागजावमां दिवा खेवाना होय, तेवारे संसारी (मोहमां लुब्ध थयेला) कहे के, घरमां बेगे धर्म ध्यान कर, दान दे थने श्रावकनां बारबत पाल, तेथी पण सद्गति श्रइ जशे, मारी गतीने दाह देश केम जाय जे. तेवारे श्रावक जाव चारित्रीयो पण एम कहे के, तमे मारा आत्माना वेरी बो, मने घरमा राखीने संसारमा तथा नरक निगोदमां नमाववा चाहो बो. एम विवादमा वचन कहे जे. जेम जमालीनी माताए जमालीने कडं के, हे पुत्र ! ए शरीरथी धन, जोबन तथा स्त्रीनां सुख जोगवो, पनी दीका बेजो. सेवारे जमालोए कह्यु के, हे माता ! ए तन, धन, जोबन अने कुटंब शर्मत
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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