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________________ 4 सिद्धान्तसार. ( ४९३ ) बे, तेथी तेनी जो नदारिकादिकज कायानी पुढा संजवे छे. वली या पावनी टोका अजयदेव सुरीजी कृत बे तेमां तथा श्रा पाठना टबामां पण पूर्वोक्त अर्थ बे. तमे मतना लोधे " पांच श्रास्तिकाय आश्री क "एम जुठु केम बोलो हो ? श्रहीयां तो व्यवहार नय श्राश्री जीव सहित कायाने जीव को बे, छाने काया कर्मनी प्रकृति बे. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीए. वी पुन्य, पाप ने बंधने जीव ए न्याये कही ये : -चार गति अने चार कषाय ए कर्मनी प्रक्रति बे. ( शाख सूत्र पत्रवणा पद२३ में तथा सूत्र उत्तराध्ययन तथा कर्मग्रंथमां . ) अने तेने जीवना प्रणाम कह्या बे. शाख सूत्र गणायांग गले १० मे. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीये. वली पुन्य, पाप अने बंधने जीव ए न्याये कही ए:त्रसनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, शुक्रमनाम, स्थावरनाम, पांच इंडिनी जात, चार कषाय, त्रणवेद, इत्यादिक शुभाशुभ कर्मनी प्रक्रती बे, ए प्रक्रतिउने जीव को बे. शाखसूत्र ठाणायांग, पन्नवणा, कर्मग्रंथ इत्यादिक अनेक सूत्रमां. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीये. वली या प्रक्रतिमां ज्ञान कयुं बे. शाख सूत्र जगवती शतक ८ मे उद्देशे बीजे. जीवमां ए प्रक्रति लोलीजूत रहे त्यांसुधी जीव ज्ञान पामे नही. तेथी व्यवहारमां तेने जीवज कहीये. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव ज कहीये. वली पुन्य, पाप ने बंधने जीव ए न्याये कही ये ः- आठ कर्म, अढार पाप अढार पापनुं विरमरा, चारगति, चोवीस दंमक, पांच शरीर, त्रण द्रष्टी अने बार उपयोग इत्यादिक ११७ बोलने आत्मापणे प्रशमे कयुं छे. तेनी शाखसूत्र जगवती शतक वीसमे, उद्देशे त्रीजे. जीवपणे प्रणमे तेने व्यवदारमां जीवज कहीये. ए न्याये पुन्य, पाप ने बंधने जीव कहीये. वली तेरापंथी कहेबे के “५ गति, १८ पाप, २४ दंग इत्यादिक प्रकतिने तमे जोव स्थापोडो. ते ए प्रक्रति छाने ५ शरीर, तो अजोव बे
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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