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________________ सिद्धान्तसार. ( १३५ ) रणने त्रण जोगेथ होय तेने साधु कहीए. तेने दान देवामां तो एकान्त धर्म बे, पण श्रावकने संथारा विना सर्वथा प्रकारे त्याग होय नही; पमिमाधारीने कांइक पापनो आगार रह्यो दशे तेथी श्रावक का बे. जो सर्वथा प्रकारे पापना त्याग होय तो साधु केम न कया ?” तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! संथारामां वर्णनागनतुबे ने अम्मरुजीना सातसो शिष्ये (श्रावके ) सर्वथा प्रकारे अढार पापना, सर्व करवा योग्य कामना तथा चार आहारना त्रण करण श्रने त्रण जोगथी जाबजीव सुधीना त्याग कर्या छाने शरीरनी ममता सर्वथा प्रकारे जावजीव सुधी उतारी; तोपण तेमने श्रावक कह्या बे. तेनी शास्त्र सूत्र जगवतीजी सतक सातमें नद्देशे नवमें तथा नववा सूत्रमां वासते एम समजतुं के, त्रीजी चोकमी नृदयजावमां वर्ते बे माटे श्रावक कही ये बी. बाकी सर्व पापजोग करवा, कराववा ने जला जाणवाना मन वचन ने कायाए करीने त्यागा डे. तेमज पकिमाधारी श्रावकने पण जोगथी त्रिविधे त्रिविधे पाप करवाना त्यागडे; पण त्रीजी चोकमी नदयजावमां बाकी बे तेथी श्रावक कह्या बे; अने तमे तो सूत्रनी शैलीना अजाण का कहोगे के, पमिमाधारी श्रावकने कांइक पाप करवानो आगार रह्यो बे तेथी श्रावक कह्या बे. वली श्रावकने त्रण करण ने त्रण जोगथी सर्वथा पापना त्याग कर्या कला बे. शाख सूत्र जगवती सतक में उद्देशे ५ मे. ते पाठः समणोवासगस्सणं जंते ! पुवामेव थुलग्ग - पाणा इवाए अपच्चरका नवइ सेणं नंते! पन्ना पच्चरकायमाणे किंकरेइ ? गो० ! तिय पक्किम पपन्नं संवरे अणागयं पच्चकाइ. तीयं पक्किममाणे किं तिविदं- तिविदेणं पमि - कमर, तिविहं दुविदं पक्किम, तिविद - एग विदेणं पमि - क्कम, दुविहं-तिविदेणं पमिकम, दुविदं दुविदेणं पक्कि - मइ, दुविदं एग विहे पक्किम, एगविदं तिविहेणं पनि ―
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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