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________________ (१८) + सिद्धान्तसार जन्म मरण घटे नही. तेमज अजवि तथा नवि मिथ्यास्वपणामां करणी करीने नवग्रैवेयक सुधी अनंतीवार गया, तोपण तेश्रोनी गरज लगार मात्र सरी नहीं. जो श्राज्ञा मांदेलो धर्म होय तो गरज केम न सरे ? लगवाने तो “करेमाणे कमें” कह्यु जे. कर्म तोमवा मांड्यां ते तोव्यांज कहिये, निर्जरवा मांड्यां, ते (नर्जयाँज कहीये; अने मुक्तिनो मार्ग लीधो तेने मुक्ति गयाज कहीये. शाख सूत्र नगवती सतक पहेले नद्देशे पहेले प्रश्न पहेले. अन्नविना करणश्राज्ञामांदेली होयतो अनवि मुक्ति केम न जाय ? ते माह्या हो ते विचारी जोजो. बळी श्री वीतरागदेवे सुयगमांग सूत्रमा कयु डे के, मिथ्यात्वीनां पराक्रम अशुद्ध अने जन्म मरण वधारनार जे. तेमज वळी नववाइ सूत्रमा मनवीना जुख-तृषा खमे, एवा कष्टथी मामीने अनेक प्रकारनी मिथ्यात्वीनी करणी: कही; अने दस्ति-तापस-आदि अनेक प्रकारना कह्या. तेमज जंमाळी, गोशाळा तथा सलिंगो, मिथ्यातपणा सहित करणी करे, तेथी पुण्य बंधाय, अने नत्कृष्टा नव ग्रैवेयकमां जाय, तोपण तेमने जिनाझाना अणआराधक कह्या. हवे जुश्रो ? मिथ्यात्वीनी करणी आशामांहेली होयतो, तेमने परलोकना मोक्षमार्गना अणबाराधक केम कह्या ? त्यारे तेरापंथी कहेले के, करणीनो करणहार तेतो आज्ञा बाहार बे, अने करणी श्राज्ञा मांदेली . तेनो उत्तर. अरे देवानुप्रीय ! जरा सीधी दृष्टी करोने जुत्रो. गुण ने गुणी जुदा नयो, एम श्री अनुयोगद्वार सूत्रमधे कडं . दंडेन दंमी, उत्तेण बत्ति पमेण पनि, तेम गुण ने गुणी जुदा नथी. तेमज चंजमा ने किर्ण; सुर्य ने ताप; दान ने दानी; शान ने ज्ञानी; सम्यक्त ने समकिति; चारित्र ने चारित्रियो; ध्यान ने ध्यानी; चोर ने चोरी; पाप ने पापी; पुण्य ने पुण्यवंत; तेमज मिथ्यात्वी ने मिथ्यात्वीनी करणी ए जुदा नथी. तमे कर्ता ने कर्मनो नेद जुदो गवेष्यो, पण सिद्धान्तना मूळ नयना प्रवाहने विषे समजता नथी. ते अनुयोगद्वारनो पाठ:
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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