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श्री वीतरागाय नमः
सिद्धान्तसार,
प्रश्न पेहेलो आज्ञा विषे.
अथ तेरापंथी साथे जे बोलनो श्रांतरो बे तेना उत्तर लखीए बीए. त्यां प्रथम तेरापंथी कहे वे के, मिथ्यात्वीनी निर्वध्यकरणी श्री जिनाज्ञामांदी बे. तेनो उत्तरः- - हे श्राज्ञाना जाण पुरुषो! प्रथम तो श्री वीतरागदेवनी प्रज्ञामांही एकांत धर्म बे, एकांत व्रत बे अने rain मुक्तिनो हेतु (कारण) बे; तेमां बीजो पक्ष कांइ नथी. श्राज्ञा केहने कहीए, श्री वीतरागदेवने ओळखीने वचनरुपी श्राज्ञा प्रमाण करवी, तेज आज्ञा तेनी शाख सूत्र याचारांग प्रथम श्रुतस्कंधे पांच अध्ययने बठे उद्देशे एहवो पाठ वे के, जिन खाज्ञा मांदेली क रणीमां आळस ने जिनाझा बादली करणीमां उद्यम, ए बे बोल दे शिष्य ! तुजने मत होजो, ए तिर्थंकरनो अभिप्राय जाणवो. ते माटे श्री जिनेश्वरनी आज्ञाए प्रवर्ततुं जोइए, ते सूत्र पाठ लखीए बीएःप्राणाए एगे सोवठाणे आणाए एगे निरुवठाणे । एवं माहोन एवं कुसलस्स दंसणं ॥ तद्द्ठिीए तम्मुतीए तप्पुरक्कारे तस्सली तमिवेसणा । अनि अदरक अप निनूए पन्नू ॥
अर्थः- दवे बो उद्देशो प्रारंभीये बीए. पांचमे उद्देशे ऽह सरीखा