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+सिदान्तसार..
अंतरागिहंसि चिठित्तएवा जाव हाणंवा हात्तए । नोकप्प निग्गंथाणंवा २ अंतरागिर्दिसिवा जाव चनग्गादंवा पंचगाहंवा आइखित्तएवा विनावित्तएवा कीट्टीत्तएवा पवेइत्तएवा ननब एगनाएएवा एगवागरणेणवा एगगादाएवा एग सिलोएणवा सेविए ठिच्चा नोचेवणं अहिच्चा ॥ नो कप्पइ निग्गंथाणवा २ अंतरागिदंसि इमाइं पंचमदवयाइं सब्जावणाई आइखित्तएवा विनावित्तएवा किहित्तएवा पवेश्त्तएवा ननन एग नाएणवा एगवागरेणवा एगगाहाएवा एगसिलोएणवा सवियहिचा नोचेवणं आठिचा ॥२३॥
अर्थः-नो न कल्पे नि साध साधवीने श्र ग्रहस्थना घरने विषे चि० उठे रहेवु नि बेस तु सुव॒ नि निंजा लेवी प० विशेष निंजा लेवी अ असन, पाणी, खादिम, स्वादिम, ए चार था आहार करवो उ० वमीनीत १, लघुनीत २, बलखो ३, अने नाकनो मेल ४ पण परग्ववो स सकाय करवी द्या ध्यान ध्यावq का काउसग्ग गण गववो. श्र हवे वली ए जो एम जाग जाणे वा रोगी थेग स्थिवर त० तपस्वी उ० पुर्बल कि किलामना पामी जण जराए जुनो जण जर्जरी देहे मु मुर्दा पामी प० पमतो होय एतेने कण् कल्पे अंण् ग्रहस्थीना घरने विषे चि० उठे रहेQ, बेस, सुq जाण यावत् ग काउसग्ग ठग रियावही पमिकमवी. नो न कटपे नि साध साधवीने अ० ग्रहस्थीना घरने विषे बेसोने जा यावत् च० चार गाथा पं० पांच गाथा आप कहेवी वि० जुदी जुदी कथवी को विस्तारे केहे, ( प्रश्नव्याकरामां गुण कह्या ते), प० विशेषे केहे, (माहाव्रतनां फल निर्जरानां फल मुक्तिपद पामवा ), न० पण एटलुं विशेष एण्ना एकज न्याय अष्टान्त कहे एण्वाय एकज प्रश्नोत्तर कहे एण्गा एकज गाथा कहे