Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAKRIT TEXT SERIES No.31 SVAYAMBHŪDEVA'S RITTHAŅEMICARIYA (HARIVANSAPURĀNA) PART III (2) JUJJHA-KAMDA EDITED BY RAM SINH TAMAR PRAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD 1997 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAKRIT TEXT SERIES No.31 : General Editors : D. D. Malvania H, C. Bhayani SVAYAMBHŪDEVA'S RITTHAŅEMICARIYA (HARIVANSAPURĀNA) PART III (2) JUJJHA-KAMDA EDITED BY RAM SINH TAMAR PRAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD 1997 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by: Dalsukh Malvania Secretary, Prakrit Text Society Ahmedabad-380 009. (c) Ram Sinh Tomar First Edition 1997 Price: Rs. 200/ Printed by : Ramaniya Graphics 44/451, Greenpark Appartments, Sola Road, Naranpura, Ahmedabad-380063. Ph. 7451603. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत ग्रन्थ परिषद् : ३१ कइराय-सयंभूदेव-किउ रिट्ठणेमिचरिउ (हरिवंसपुराणु) तृतीय खण्ड (द्वितीय भाग) जुज्झ-कंडु :संपादकः राम सिंह तोमर प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद १९९७ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम पृष्ठांक MY संधि चउसट्ठिमो पंचसट्टिमो छासट्ठिमो सत्तसट्ठिमो अट्ठसट्ठिमो ऊणहत्तरिइमो सत्तरिमो एक्कहत्तरिमो बाहत्तरिमो तेहत्तरिमो चउहत्तरिमो पंचहत्तरिमो छहत्तरिमो सत्तहत्तरिमो अट्ठहत्तरिमो ऊणासीइमो असीइमो इक्कासीइमो बयासीइमो तेयासीइमो चउरासीइमो पंचासीइमो छायासीइमो सत्तासीइमो अट्ठासीइमो णवासीइमो णवइमो इक्काणवइमो दो-उत्तर-णवइमो J W 9 Uomo ao ar aná a aa a aa ñ १०८ ११७ १२६ १३४ १४३ १५२ १८३ १९४ २०२ २१३ २२२ २४४ २५४ २६१ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GENERAL EDITORS' FOREWARD The Prakrit Text Society has great pleasure in publishing herewith one further part of Svayambhudeva's Ritthanemicariya also called Harivañsapurana, viz., the remaining portion of the Jujjha-kamda(Sandhis 64-92), edited by Professor Ram Sinh Tomar. Due to several difficulties, personal and others, we had almost decided to stop the publication of the remaining part of the work, but fortunately we got Dr. Ramanik Shah's sincere cooperation in the printing and related matters and we are able to bring out the text up to the end of the Jujjhakamda. The last part of the Ritthanemicariya, viz. sandhis 93-112 we hope to take up for publication shortly. We have also planned in its introduction to deal with, among other matters, Svayambhū's dependence upon Vyasa's Mahabharata, about which we have referred to in our Introduction to part III (1). In this part also Svayambhu's use of the Droņa, Karna and Salya Parvans of the Mahabhārata is quite evident. As an important link in the long and illustrious tradition of the Mahābhārata narrative and for its eminent qualities of language, style and narrative power, Svayambhu's place in the first rank of Indian Classical poets is unquestionable. It is a very rare case in the Indian Classical tradition that the poets have left for us any information regarding their personal life, mode of writing etc. In this matter also Svayambhu is uniquely original. He has recorded meticulously at the close of the Yuddha-Kanda (end of sandhi 92) that it took him six years, three months Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ and eleven days to write 92 sandhis, adding further on what day exactly he began to compose the remaining Uttara-Kanda. It so happened that we have followed Svayambhu in this matter. We sent the Ritthanemicariya to the press sometime in 1991. It is an interesting coincidence (although rather not earning any credit for us) that the printing of the portion up to Yuddha-Kānda(and publishing it in 1997) took almost the same period as taken by Svayambhū to write it ! V. S. 2054, Kārtik Sukla Pratipadā 1-11-1997, Ahmedabad H. C. Bhayani Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ (हरिवंसपुराणु) जुज्झ-कंडु Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउसट्ठिमो संधि कइचिंधु ण दीसइ सद्द-सर सुव्वइ महुमह-जलयरहो। सच्चइ पट्टविउ जुहिट्ठिलेण वत्त-गवेसउ भायरहो। णरवइ दुम्मण-दुम्मणउ वाह-जलोल्लिय-लोयणउ। वंधव-सोय-समाउलउ पभणइ चित्तुत्तावलउ । सच्चइ समर-सएहिं समत्थहो एक्क-वि वत्त ण णावइ पत्थहो पई मुएवि कहो पेसणु सीसइ वड्ड-वार कइ-चिंधु ण दीसइ वड्ड-वार हरि जलयरु पूरइ वड्ड-वार महु हियउ विसूरइ कउरव-कंस-वंस-विणिवायण जाहि गवसहि णर-णारायण तुहुं सुहि सूरु सुरिंद-परकम्म चित्त-जोहि लहु-करु लहु-विकम्मु तो विहसेप्पिणु पभणइ जायउ। णिय-तणु-तेय-तविय-तवणायउ भुय-परिहविय-पुरंदर-करि-करु वयण-पहोहामिय-छण-ससहरु जामि सुट्ठ पर आएं थक्कमि पई एक्कल्लउ मुएवि ण सक्कमि ८ घत्ता अच्छइ फुरंतु दोणायरिउ णवर करेवए चप्पणउं । हउं जामि जुहिट्ठिल-पट्ठविउ छुडु जसु रक्खहि अप्पणउं ।। [२] णर-णारायणेहिं चविउ पइ-मि णराहिव पट्टविउ। अग्गए दोणु परिट्ठियउ जइ ण जामि तो संकियउ॥ जइयहुं इंदपत्थे णिवसंतउ तइयहुं जे जियंत मुहु जोएवि थिय सण्णहेवि मेच्छ वहु-वारण णरवइ-अद्ध-रज्जु भुंजंतउ एवहिं आइय ते अरि होएवि रुप्प-महारह-गय-धणु-पहरण ४ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ रिट्ठणे मिचरिउ अवरई सत्त सयाइं गइंदहं अग्गिम-खंधे थियाइं णरिंदहं जे चिरु वस विहेय रवि-जायहो जे वढुति भिच्च जुयरायहो आजाणेय-विलास धणुद्धर मक्खि-अग्गि-गोजाणि-भयंकर आयस-कंस-कवय-धूमप्पह दंतुर-पट्टिस-उग्ग-कुविग्गह वूह-वारि सण्णहेवि परिट्ठिय मई समाणु जुज्झणहं समुट्ठिय धत्ता भंजेवा दोण-कलिंग-किव हउं एक्कल्लउ एक्क-रहु । रक्खेवउ तुहुँ सव्वायरेण जाणेवि मई पट्ठवहि पहु॥ [३] दोणे पीडिउ हउं-वि रणे जइ अलियउ तो तुहुँ जे भणे। तो-वि णाह वुत्तउं करमि पहु-मित्तत्थेण सिरु धरमि ॥ पभणइ पहु परिवड्डिय-णेहउ तुहुं अम्हहं महुसूयणु जेहउ एक्कसि करहि महारउं वुत्तउं णरेण मरतें मरमि णिरुत्तउं सो एक्कल्लउ कुरुहुँ विरुज्झइ पासत्थु-वि गोविंदु ण जुज्झइ अणलिउ पाण विसज्जिय पत्थे चलणेहिं लग्गु जाहि परमत्थें सच्चइ चवइ जाव तव-णंदण वट्टइ कवण तुज्झु आकंदण धीरउ होहि काई किर चिंतए ण मरइ णरु णारायणे संतए दोमइ-लंभे सयंवर-मंडवे सुरहं भंडु जुज्झंतए खंडवे तालुय-वम्म-वहणे वंदि-गहे जइयहुं जुज्झिउ उत्तर-गोग्गहे तइयहुं किण्ण होंतु एक्कल्लउ एवहिं वट्टइ काइं नवल्लउं घत्ता मई पट्ठवंतु कुढे अज्जुणहो अप्पर महु उवलक्खवहि। एत्तियह मज्झे पई समर-मुहे जो रक्खइ सो दक्खवहि॥ [४] सामिय-विहुर धुरंधरउ समर-भरोड्डिय-खंधरउ। जाउहाण-जम-गोयरउ झत्ति पलित्तु विओयरउ॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउसट्टिमो संधि कोव-जलण-जालोलि-भयंकर कीयाकुल-कयंतु कुरु-डामरु बग-किम्मीर-हिडिंव-खयंकरु पय-भर-भग्ग-भुवंग-मडप्फरु पभणइ भीमु भीम-भड-भंजणु तुहुं वोल्लहि महुसूयण-सज्जणु ४ अज्जुण-सीसु णरिंद-सुहंकरु अण्णहो वयणु णेमि सय-सक्करु हत्थें छिवइ दोणु जइ राणउ तो हउं दहणे डहमि अप्पाणउं जायव जाहि काई किर वुच्चइ एक्कु भीमु पयरक्खु पहुच्चइ एम चवंतु णिवारिउ राएं कउ रक्खिज्जइ पई अ-सहाएं महु जसु अज्जुणेण पालिज्जइ धट्ठजुणेण दोणु पीडिज्जइ घत्ता विहसेविणु ताम विओयरेण सिणि-णंदणु एम मरिसावियउ। तुहुं पंचहिं पंकयणाह-समु खेड्डे मई रोसावियउ॥ तो ण्हायाणुविलित्त-तणु आउच्छिय-वंधव-सयणु। णर-मगेण समुच्चलिउ मंगल-सद्दु समुच्छलिउ ।। ४ वुच्चइ णंद वद्ध जय राएं अम्मणुअंचिउ भड-संघाएं गोमुह-डंवर-पडहप्फालिय मागह सूय वंदि वेयालिय लग्ग पढेवए तेत्थु पगामई इच्छिय जाइं किया-गुण-णामइं दाणइं देवि केवि सुणिमित्तई दहि दुव्वक्खय फलई विचित्तई संदणु वद्ध वम्मु ओणद्धउं उब्भिय-कंचण-सीह-महाधउ घोडा किय विसल्ल जुए जोत्तिय भीम-पमुह सुहि सव्व णियत्तिय चडिउ महारह-वीढे सुवित्थए णं पंचाणणु महिहर-मत्थए तोणालिद्ध-पुट्ठि धणु-करयलु भग्गालाण-खंभुणं मयगलु घत्ता णिउ रहु जोत्तार-तुरंगमेहिं अहिमुहु गुरु-थाणंतरहो। लक्खिजइ देवेहिं ढोइयउ मंदरु णं रयणायरहो। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ सच्चइ चोइय-रहवरउ धणु-परिवेस-भयंकरउ। सरवर-किरण-करालियउ वइरिहिं रवि-व णिहालियउ।। ताम सत्त सुझुण्णय-माणा वाहिय-रहेहिं अखंचिय-वग्गेहिं सुर-वेयंड-सुंड-भुय-दंडेहिं विसहर-देह-दीह-णाराएहिं तो सिणिणंदणेण अविओलें छाइय सत्त-वि सरवर-जालें स-धय स-सारहि चूरिय रहवर णिहय तुरंगम छिण्णइं छत्तइं गय-साहणेण पधाइय राणा गंधवहुभुय-धवल-धयग्गेहिं इंदाउह-पयंड-कोयंडेहिं मेह-मइंद-समुद्द-णिणाएहिं जयसिरि-रामालिंगण-लोलें णं विंझइरि महाधण-जालें णं वासवेण णिसूडिय महिहर खुडियइं सिरइं णाई सयवत्तई घत्ता सिणि-तणएं सत्त-वि पवर भड णिविसें वइवस-णयरु णिय। णं कालें कवलु करतएण पढमु जे आपोसाणु किय॥ १ तहिं अवसरे मच्छर-भरिउ अंतरे थिउ दोणायरिउ। वाणासण-अक्खय-णिहिय-करु णाई स-सुर-धणु अंवुहरु॥ ओसरु ताय ताय णिय-थामहो रहु पइसरइ मज्झे संगामहो कण्हाऊरिय-संख-णिणाएं हउं पट्ठविउ जुहिट्ठिल-राएं रण-मुहे वत्त-गवेसउ पत्थहो करि पसाउ गुरु ओसरु पंथहो अज्जुणु तुम्ह पुत्तु हउं पोत्तउ भद्दिय-भायरु णिम्मल-गोत्तर भणइ दोणु वोल्लिउं चंगारउं पेक्खहु धणु-विण्णाणु तुहारउं दिट्ठि-मुट्ठि-संधाणु सरुग्गमु सिक्खिउ कवणु एत्थु पइं आगमु सच्चइ चवइ पवेस-णिवारा दरिसावमि लइ पहरु भडारा जइ पइं मई समाणु खणु जुज्झिउ तो विण्णाणु असेसु-वि वुज्झिउ ८ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउसहिमो संधि घत्ता जइ रएवि थाणु संधाणु किउ वाणु-वि सज्जिउ धणु-गुणहो। कुरु-कालहो खंडव-डामरहो तो हउं सीसुण अज्जुणहो। [८] पज्जलिय कोव-हुवासणउ कड्डिय-ससर-सरासणउ। णं गउ गयहो समावडिउ सच्चइ दोणहो अन्भिडिउ ॥ जाउ महाहउ विहि-मि भयंकरु चरणुच्चालण-चलिय-वसुंधरु रहवर-भग्गु भुवंगम-सेहरु हय-खुर-खय-खम-रय-चय-धूसरु दिट्ठि-मुट्ठि-संधाण-णिरंतरु धणु-टंकार-भरिय-भुवणंतरु ४ हुंकाराणिल-चालिय-महिहरु सरवर-णियर-णिवारिय-रवियरु इसु-णिहसग्गि-तिडिक्किय-णहयलु वार-वार-परिवड्डिय-कलयलु वार-वार-अप्फालिय-तूरउ वार-वार-पडिवक्ख-विसूरउ वार-वार-आमेल्लिय-मग्गणु वार-वार-तोसविय-सुरंगणु ८ वार-वार-विरइय-सर-मंडवु वार-वार-वण्णिय-कुरु-पंडवु घत्ता पहरंतु ण भज्जए आहयणे एक्क-वि एक्कहो माण-सिह। वण-वेयण-चेयण-मुच्छणेहिं रणु परिवडिउ सुरउ जिह ।। सीसायरिय रणंगणेण रहसाऊरिय-सुरयणेण । तालुय-वम्म-णिणासयरु पोमाइउ गंडीव-धरु ॥ तो संजमिया णिज्जिय-तोणे कहिं महु जाहि अज्जु गलगज्जेवि एम भणेवि वहु-मच्छर-भरिएं पुणु छहिं पुणु पडिवारिउ सत्तहिं तो सच्चइ सहस त्ति पलित्तउ सिणि-णंदणु पच्चारिउ दोणे पत्थु-वि गउ काउरिसु व भज्जेवि पंचहिं सरेहिं विद्ध आइरिएं दसहिं थणंतरम्मि पुणु अट्ठहिं णं दवग्गि दुप्पवणे छित्तउ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ कलस-महद्धउ पंचहिं वाणेहिं पुणु वीसद्ध-सरेहिं उरे ताडिउ एक्के रहवर सारहि एक्के विज्झइ दुजण-वयण-समाणेहिं एक्के फरहरंतु धउ पाडिउ मोडिउ आयवत्तु अवरेक्के घत्ता चउ-सरेहिं चयारि तुरंग हय कह-कह-वि ण दोणायरिउ । णिल्लक्खणु णिद्धणु रामु जिह रणे एक्कलउ उव्वरिउ ।। अण्णहिं रहवरे ठंताहो दोणहो पडिपहरंताहो। धणु पडिवारउ ताडियउ सुरगिरि-सिंगु व पाडियउ॥ वीयउं सुर-धणु-अणुहरमाणउं तइयउं वंक-मयंक-समाणउं छिण्णु चउत्थउं जम-भू-भंगुरु पंचमु वइवस-महिस-सिंगु व गुरु छठ्ठउं खगवइ-पेहुण-सच्छहु सत्तमु सुरकरि-दंत-सम-प्पहु अट्ठमु दोण-महादुम-सूलु व णवमउं णारसीह-लंगूलु व दसमउं रिउ-णयरु व विद्धंसिउ एयारहमउं जिह कुल-णासिउ जं जं दोणहो धणु करे पावइ तं तं हरइ मंडु विहि णावइ जं जं लेइ तं जि ण वलग्गइ णिगुणे कहि-मि धम्मु कहिं लग्गइ ८ किउ णिरत्थु दरिसाविय-भंगउ वंक-संगु किं कासु-वि चंगउ घत्ता णिच्चे? परव्वसु पत्थ-गुरु ढुक्क पमाणु भग्ग-सिहउ। णिद्धणउ जुण्णउ जज्जरउ णं थिर-दोणु जे सच्च-मउ॥ [११] तहिं अवसरे तोसिय-मणेहिं सइं हरि-हर-कमलासणेहिं । लेवि लेवि सुर-पायवहो कुसुमइं घित्त सिरि जायवहो॥ विंधइ दूरु दोणु एत्तिय-गुणु तिण्णि-वि गुण सच्चइहे रणंगणे कण्णु दिढ-प्पहारि वलि अज्जुणु एम देव बोल्लंति णहंगणे Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउसष्ठिमो संघि स-धणु स-तोणु ताम सिणि-णंदणु दारुअ-अणुव-पचोइय-संदणु ४ वासव-सुयहो सीसु जस-लुद्धउ कंचण-केसर-सीह-महद्धर सयड-वूहु फेडंतु अगायरु मच्छु जेम गउ भिंदेवि सायरु पेक्खंतहं किव-कण्ण-विगण्णहं रहवरु वाहिउ उप्परि अण्णहं जो जो दारुणु रणु विण्णासइ सो सो सर-भरियंगु पणासइ हय-गय-णर-णरिंद संघारेवि सच्चइ-वाण जंति महि दारेवि पत्ता दुम्मुह सलोह वण्णुजला विंधण-सीला पाणहर । गुण-मुक्का धम्म-विवजिया तो-वि मोक्खु पावंति सर ।। [१२] सच्चइ सच्चाहिट्ठियउ रणे पहरंतु अणिट्ठियउ। एम महारहु संचरइ जमु जिह वाल-कील करइ॥ ८ गेज्जुज्जले सारंग-पसाहणे भिडिउ कलिंग-महागय-साहणे हय-ढक्का-रव-वहिरिय-णहयले पायवीढ-पीडिय-पिहिवीयले दंति-दंत-दंतुरिय-दियंतरे मय-सरि-सित्त-सोत्त-गत्तंतरे कर-मंडव-परिपिहिय-दिवायरे मय-णइ-पूराऊरिय-सायरे कण्ण-पवण-कंपाविय-महिहरे मय-परिमल-मेलाविय-महुयरे लइय णिरंतरं जायव-वाणेहिं आयए णाय-काय-परिमाणेहिं छिण्ण हत्थ पाडियई विसाणइं विसहर-वेणु-करीर-समाणइं सिरई स-देहई भिंदेवि घाएं णीसरंति सर पच्छिम-भाएं घत्ता सच्चइ-णाराय ण वीसमिय दारेवि करि-कुंभत्थलई। णव-पाहुडु अज्जुण-केसरिहिं णिति णाई मुत्ताहलई॥ _ [१३] दलिय-कुंभि-कुंभत्थलई कड्डिय-सिय-मुत्ताहलइं । केसरि जिह परिसक्कियउ तिह पहरिउ जिह परिसक्कियउ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ हो . ४ रिट्ठणे मिचरिउ तहिं अवसरे धाइउ सइणेयहो खय-दिणयर-कर-दूसह-तेयहो चंड-कंड-कोयंड-भयंकर हय-विवक्ख-पडिवक्ख-सुहंकरु वाहिय-रहु पवणुद्धय-धयवडु रणसिरि-रामालिंगण-लेहडु आसत्थाम-मामु सिय-माणणु णं केसरि रव-वहिरिय-काणणु तो सिणि-सुएण सरेहिं पच्छाइउ । चक्क-रक्ख-हय-सारहि घाइउ वणिय तुरंगम किउ विणिवारिउ पुट्टि देंतु गउ कह-वि ण मारिउ भग्गइं रह-गय-तुरयाणीयइं णरवर-विंदई कियइं अजीयइं छिण्णई सिरई कमल-संकासई णच्चावियई कवंध-सहासई घत्ता भंजंतु असेस णराहिवइ सच्चइ वूहे पइड किह। मसि-कुच्चउ देविणु दूहवइ सुहय विलासिणि हियई जिह ॥ [१४] सिणि-णंदण वइसाणरेण सर-जालोलि-भयंकरेण। दड्डइं रिउ-साहण-वणइं रह-गिरि-धय-तरुवर-घणइं॥ १० भग्गइं दारुण-पहरण-वीयई दाहिणत्त-कंवोयाणीय अंगराय-वल्हिक्क-वलाइ-मि भिण्णइं दसहइं गिरि अचलाइ-मि तहिं अवसरे विप्फारिय-धम्में सिणिवइ हक्कारिउ कियवम्में जायव थाहि थाहि कहिं गम्मइ जिवं विहिं हणइ एक्कु जिह हम्मइ भुंजउ अज्जु रज्जु हरसिय-मणु धम्म-पुत्तु जिम जिम दुज्जोहणु तं णिसुणेविणु रोसिउ माहउ पुणु किउ घोरुग्गारु महाहउ छहिं सोलहहिं णिहउ सिणि-तोएं एक्कवीस सर लाइय भोएं उरे माहवेण समाहउ सत्तिए पडिवउ पूरिउ सरवर-पंतिए घत्ता हयवर-सारहि-सिरु खुडिउ लहु अण्णहिं रहवरे संचडिउ। कियवम्मउ पंडव-वलहो गउ सच्चइ कंवोयहं भिडिउ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५] गंधवाह-धूवंत धउ वूह-वारे एक्क रहु थिउ - ताम तुरंगम-रह-गय-वाहणु हय-पडु-पडह-पवड्डिय- कलयलु भद्दिय-थाणंतरु पेल्लंतउ रहवरु देवि अमाणुस - - गम्मे जमल- सिहंडि-र इ-राय- धट्ठज्जुण विद्धु भीमु सत्तरिहिं पिसक्केहिं कंपिउ भूमि- कंपेण व महिहरु चेयण पावेवि कोतिहे तोएं घत्ता तिहिं मारुइ तिहिं अवर हय धाइउ फर-करवाल-करु कियवम्मो गुण- मंडियउं तो विरइय-सर- मंडवेहिं [१६] भद्दिउ दोणहो पासु गउ । दारुणु समरारंभु किउ ॥ अवरइं चावई लेवि भयंकर हर असीहि मग्गणेहिं थणंतरे ओसारिउ सिहंडि-जुत्तारें पंडव दसहिं दसहिं विणिवारिय तहिं अवसरे हरि-वल-कुल- दीवउ सारहि वाहि वाहि रह तेत्तहे वट्टइ गमणु ताम परिसेसहु छिण्ण सिंहडिहे तणउ धणु । णं स-पयंगु स-विज्जु धणु ॥ धाइउ सरहसु पंडव - साहणु णं पसरिउ मयरहर-महाजलु कुरु-गुरु वूह-वारे भेलंतउ तव - सुय- वइणि (?) धरिय कियवम्मे पंचहिं पंचहिं सरेहिं कियारुण पुणु आसीविसहर- लल्लुक्केहिं विडिउ मुच्छा-विहलु विओयरु मुक्क सत्ति विहिं खंडिय भोएं धणु करवालें खंडियउं । विद्धु अनंतरु पंडवेहिं ॥ चउसडिमो संधि भिडिय जुहिट्ठिल- कुरुवइ - किंकर मुच्छा-विहलु पडिउ णिय - रहवरे कलयलु किउ कुरु-खंधावारें ओणय-मुह अमरेहिं धिक्कारिय सच्चइ जंतु णियंतु पडीवउ धम्म- पुत्तु परिपीडिउ जेत्तहे पच्छइ पत्थहो कुढे लग्गेसहु १ ४ ८ १० ४ ८ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता णिउ रहवर दारुय-भायरेण वेण्णि-वि सरेहिं समावडिय। आमिस-लालस सद्दूल जिह णहेहिं परोप्परु अभिडिय॥ [१७] तो कियवम्में हियए हउ तेण-वि धय-धणु-छेउ कउ । वि-रहु अ-सारहि णित्तुरउ कह-वि ण वइवस-णयरु गउ ।। ४ पाडेवि चक्क-रक्ख गउ सच्चइ सारहि जाहि जाहि वीसत्थउ एहु जे दोणहो अवरेहिं पासेहिं वाहि वाहि रह-तुरय-वरेण्णइं दिणमणि-वण्ण-महाहय-जोड़ा वेढिउ हत्थि-हडेहिं पडिवारउ विंधइ आयस-सिरेहिं कियायरु छिण्णइं स-गयइं गय-उवगरणई सरहसेण विहसेप्पिणु वुच्चइ को महु रण-मुहे भिडेवि समत्थउ भणमि अणीउ पिसक्क-सहासेहिं जहिं तिगत्त-संसत्तग-सेण्णई वाहिय चंद-समप्पह घोडा मघ-गउ घणेहिं णाई अंगारउ गिरिहिं व उप्परि तवइ दिवायरु कंवल-पक्खर-सय-आवरणई घत्ता अण्णहिं कर अण्णहिं देह गय अण्णहिं करि-कुंभत्थलई। सइं भूमिहे णाई परिट्ठियई अहि-वम्मीय-सिलायलई। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए चउसट्ठिमो सग्गो॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचसट्टिमो संधि गय-साहणु चूरिय समर-मुहे णं पंचाणणु णिव्वडिउ। वाणासण-वीयउ एक्क-रहु सच्चइ जलसंधहो भिडिउ॥ ४ भिडिय वे-वि णं मत्त महा-गय तावणीय-माला-मंडिय-सिर चित्त-जोहि केसरि लहु-विक्कम सुरधणु-अणुहरमाण-धणुद्धर तो सिणि-णंदणेण अपमाणेहिं णिय-कुल-विक्कम-राय-मयंधे पुणु पंचहिं पडिविद्धु थणंतरे तिक्ख-खुरुप्पें मुट्ठिहे ताडिउ रुप्पिय-कवय सुवण्ण-मयंगय जलहर-रव-गंभीर-महग्गिर वसह-खंध देविंद-परक्कम कुंडल-पह-जिय-चंद-दिवायर भिण्ण कुंभि-कुंभ-त्थल वाणेहिं धणु सच्चइहे भिण्णु जलसंधे अवरु सरासणु लेवि खणंतरे सट्टिहिं कह-व कह-व उप्पाडिउ ८ घत्ता जलसंधे आयस-तोमरेण भिण्णु महा-भुउ जायवहो। लक्खिजइ पवरु भुवंगु जिवं डाले वइट्ठउ पायवहो। तीसहिं जायवेण धणु छिज्जइ धाइउ दुद्दम-देह-वियारउ अवरु लेवि जमदूय-समाणेहिं सिरु तइएण खुरुप्पें तोडिउ तो रुप्प-रह णिसायर धाइय पच्छए लग्गु दोणु तहिं अवसरे तेहत्तरिहिं विद्ध पुणु सत्तहिं दुम्मरिसणेण चउवीसद्धेहिं दुम्मुहेण तेत्तिएहिं जे वाणेहिं तेण-वि स-फरु किवाणु लइज्जइ धणु सच्चइहे छिण्णु वे-वारउ । पाडिय वाहु वे-वि विहिं वाणेहिं हंसें सहसवत्तु णं मोडिउ विहिं मग्गणेहिं वे-वि विणिवाइय णाई कयंतु चडेप्पिणु रहवरे दूसासणेण समाहउ अट्ठहिं दूसासणे चालीसद्धद्धेहिं दुज्जोहणेण अणेय-पमाणेहिं Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +++++++++++++ रिठणे मिचरिउ घत्ता ते सयल-वि एक्के जायवेण सरवर-लक्ख परज्जिय। गय गरुडहो पवर-भुवंग जिह कहि-मि मडप्फर-वज्जिय ।। [३] तो सिणि-णंदणेण ते सव्व-वि आयामिय परिवड्डिय-गव्व-वि विद्ध विगण्णु पंचवीसहिं खणे दुम्मरिसणु वारहेहिं रणंगणे णवहिं सरेहिं लिहिउ सच्चव्वउ दूसहु दसहिं दोणु तिहिं ताडिउ अट्ठहिं चित्तसेणु णिद्धाडिउ अट्ठहिं विजउ विविंझइ वीसेहिं दुम्महु विहिं दूसासणु तीसेहिं दुज्जोहणहो सरासणु खंडिउ अवरु लयउ चामीयर-मंडिउ छाइउ सर-सएण सिणि-णंदणु कुरुव-भडेहि-मि वेढिउ संदणु तेण-वि जो जो तहिं पारक्कउ तच्छिउ दसहिं दसहिं एक्कक्कर घत्ता रहु सारहि धउ धणुवरु तुरय पाडेवि अट्ठहिं सरेहिं हउ। दुजोहणु भंजिउ सच्चइहे चित्तसेण-रहवरे गउ। ४ पच्छए लग्गु ताम कियवम्मउ वाहिय-रहु अप्फालिय-धम्मउ करि णिएवि पंचाणण-पोएं णिय-जुत्तारु वुत्तु सिणि-तोएं सारहि वाहि वाहि रहु भोयहो हम्मउं पेक्खंतहो कुरु-लोयहो वाहिउ रवि-ससिहर-लल्लक्केहिं रहु चिक्कार-करतेहिं चक्केहिं विण्णि-वि भिडिय विविह-विण्णाणेहिं विण्णि-वि पोमाइय गिव्वाणेहिं एक्कमेक्क पहरंति समच्छरु किउ कडवंदणु विहि-मि भयंकरु भीम-भुअंग-भोय-भय-भीसेहिं सच्चइ विद्ध सरेहिं छवीसेहिं तेण-वि हउ असीहिं तेसट्ठिहिं धुरि सत्तरिहिं सिलीमुह-लट्ठिहिं घत्ता अवरेक्कु देहु देहावरणु भिंदेवि महिहे पडु सरु । आसीविसु पवर-भुयंगु जिह भक्खेवि गउ अप्पणउं घरु॥ ८ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ पंचसहिमो संधि ४ पाडेवि कियवम्माणु पवच्चिउ पडिवउ दोणायरिएं खंचिउ ताडेवि तिहि-मि तिविक्कम-भायरु णाई ति-सिंगु परिट्ठिउ महिहरु अवर-वि जे पिसक्क परिपेसिय ते विउणेहिं सव्व णीसेसिय वीसहिं पंचासहिं सोणासेहि पुणु पडिवउ परिपिहिउ सहासेहिं तेण-वि तेत्तिएहिं गुरु छाइड विहि-मि परोप्परु कह-वि ण घाइउ दियवइ पडिवउ णवहिं णिवारिउ णवहिं महद्धउ दंडु वियारिउ सारहि रहवरु सएण विहट्टिउ सोण-तुरंग-वेगु ओहट्टि थिउ सु-परिट्ठिउ दोणु महाहवे सत्तरि मग्गण लाइय माहवे घत्ता तिहिं तिहिं तुरंग एक्केण धउ अवरें धणु दोहाइयउं। को ण मुयइ दुहु कलत्तु जिह जंण-वि मुट्ठिहे माइयउं। ४ मुक्क गयासणि सिणि-दायाएं अवरु सरासणु लेवि किया-वरु सारहि ताम समाहउ सत्तिए विहलंधल-सरीरु मुच्छाविउ पंचहिं कवउ भिण्णु उरु रक्खेवि भद्दिय-भायरेण जुजुहाणे एक्के कणय-कलसु धणु एक्के पाडिय चक्क-रक्ख रह-चक्कई वारिय आसत्थामहो ताएं विंधइ जाम जणद्दण-भायरु पुणु पडिवारउ सरवर-पतिए कह-व कह-व ण वसुंधर पाविउ तं गुरु-चरिउ असेसु-वि लक्खेवि सारहि पाडिउ एक्के वाणे तुरय चयारि-वि णिहय चउक्के दुट्ठ-कलत्तइं जिह वि ण थक्कई ८ . घत्ता जो दुण्णय-दोसु आसि कियउ सो एवहिं णिव्वाडिउ । धणु कट्टेवि सच्चइ-राउलेण दोणु णाई विब्भाडिउ॥ गय कियवम्म-दोण तहो भज्जेवि णिय-थाणंतरे कुरव पलजेवि सिणि-णंदणु पइट्ठ अणिवारिउ सुअरिसणेण ताम हक्कारिउ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ तुहुं वाइउ अवरेहिं लोएहिं पहरु पहरु जय - सिरि आसंघेवि एम भवि विद्धु थिरुथाएवि सर छिण जणद्दण - भाएं सुअरिसणेण चयारि-वि घोडा तो माहवेण तुरंगम घाइय घत्ता सारहि - सुयरिसण - महा-सिरइं क्खत्तरं विणि वलंताई जायवेण वोल्लाविउ सारहि दोण - महा-समुद्दु मई लंघिउ अज्जुण-कर- विप्फारिय-जीवहो वट्टइ सुहइं णिमित्तई जायई जवण - किराय - दरय-कंवोयहं केरल - मुरलाणीय र जट्टहं गुज्जर-गउड लाड सोरट्ठहं कोहड - कुसिय- कुणीर - कुणिंदहं १. - आयई वलई ताम मारेसमि होहि सुमित्त महाहवे धीरउ [८] घत्ता आयइं समरंगणे सयलइ - मि वहु-कालहो काले भुक्खिएण [९] हि. वंग तिलंग मलय मरहट्ठहं कण्ण-कलिंग - दोण-किव-भोएहिं कउ पइसरहि वूहे मई लंघेवि अग्गि-सुवण्ण-वण्ण-णाराएहिं कम्म-वंधु जिह खीण-कसाएं हणिय सिलीमुह लाएवि थोडा हउ धउ चाव-लट्ठि दोहाइय भल्ल - खुरुप्पेहिं ताडियई । णं आयासह पाडियां ॥ वाहि वाहि रहु अग्गए सारहि एवहिं कुरु- णिहाउ आसंघिउ सहु सुणिज्जइ उहु गंडीवहो वाह वाहि जहिं सेण्णई आयई टक्काहीर कीर - खस-लोयहं पच्छल-सिंधल-मेहल - भोट्टहं कच्छ-खुद्द - मालव- मरहट्ठहं १ जालंधर- नारायण - विंदहं सेण्णइं मई मारेवाई | कल्लेवर अज्जु करेवाई ॥ पच्छए णरहो पासु जाएसमि हउं सच्चइ दुब्भेय-सरीरउ १४ ४ ८ ९ ४ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्थ-मूले सिक्खियइं महत्थई दूर वाउ(?) सिक्खविउ अणंते दिण्णु गयायरिएण असक्के कामें सद्द-वेहु सहुं दिट्ठिए तो जोत्तारें वाहिउ संदणु वंचेवि णर-णरिंद जे थोडा पंचसहिमो संधि देवासुर-विद्दवण-समत्थई दिढ-पहरत्तणु रेवइ-कंते दोमइ-वल्लहेण लहु एक्के को चुक्कइ रिउ णिवडिउ दिट्ठिए कुरु-मज्झेण गयउ सिणि-णंदणु गयणु पियंत जंति णं घोडा घत्ता सव्वई दुजोहण-साहणइं एक्क-रहेण णिरुद्धाई। गय-जूहई जिह पंचाणणेण जीविय-संसए छुद्धाइं ।। [१०] समारंभिओ भीसणो संपहारो विहंगावली-जाय-गयणंधयारो सरुक्करण-संछाइए अंतराले स-माणिक्क- तुटुंत-सण्णाह-जाले खुडिजंत-चूडामणि-छिण्ण-पट्टो ललंतंत-गुप्पंत-पाइक्क-थट्टो दलिजंत-मायंग-कुंभत्थलोहो विणिग्गंत-मुत्तावली-दिण्ण-सोहो ४ पहम्मत-चिंधो खुडतायवत्तो वसा-वीसढो लोहिओहाणुरत्तो स-सीसक्क-छिज्जत-सुंडीर-सीसो सिवा-मुक्क-फेक्कार-पब्भार-भीसो वसा-मेय-मजंत-णच्चंत-भूओ इमो एरिसो संगरो एम हूओ ण सो तत्थ वाहो ण जो भिण्ण-गत्तो ण सो कुंजरो जो धरित्तिं ण पत्तो ण सो संदणो जस्स चक्कं ण छिण्णं ण सो पत्थिवो जस्स अंगंण भिण्णं ण सो किंकरो जेण सीसं ण दिण्णं ण सो सामिओ जेण पासंण रुण्णं ण सेण्णस्स तं तेरिसं आयवत्तं णतं पंडुरं जं च भूमिंण पत्तं पणट्ठा भडा के-वि अण्णे णियत्ता रणे वावरता सुभिजंत-गत्ता १२ घत्ता गय णव दस वीस तीस तुरय सत्तरि सट्टि असी-वि णर। रणे ओलि णिवद्ध कडंतरेवि पुणु महियले खुप्पंति सर ।। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ रिठणे मिचरिउ [११] एम करेवि महंतु महाहउ सरहसु जाम पयट्टइ माहउ दुजोहणेण ताम तिहिं अत्थेहिं चउहिं तुरंगम चिंधउ सत्तेहिं सारहि विहिं परिवड्डिय-माणेहिं सत्तहिं चित्तसेण-अहिहाणेहिं पेसिय-घोर-महाहव-कामें पंचवीस सर सउणीय-मामें दूसहेण पण्णारस तोमर सोलह दूसासणेण महा-सर तिहिं तिहिं सो-वि हणंतु ण थक्कई सच्चइ सेण्णु जेवं परिसक्कई विंधइ वलइ धाइ हक्कारइ छिंदइ सर णरवर विणिवारइ खंडिउ सउणिहे धणु एत्थंतरे कुरुव-राउ तिहिं भिण्णु थणंतरे घत्ता हउ चित्तसेणु मग्गण-सएण दूसहु दसहिं सिलीमुहेहिं। दूसाणणु दूसिउ सत्तरिहिं रुहिरु वहाविउ रण-मुहेहिं ।। [१२] अवरु लेवि धणु सउणिय-मामें पण्णारहेहिं विद्धु जस-कामें दुम्मुहेण वारहेहिं समाहउ दूसहे णवेहिं दूसह-साहउ दूसासणेण दसहिं सम-घाएं तेहत्तरिहिं णिहउ कुरु-राएं तिहिं सुमित्तु सारहि उरे ताडिउ णवहिं महद्धउ कह-वि ण पाडिउ तो सिणि-णंदणेण ते तज्जिय पंचहिं पंचहिं सव्व परज्जिय सारहि मारिउ कुरुवइ-केरउ रहवरु तुरएहिं णिउ विवरेरउ तं णिएवि साहणई पणट्ठ गरुडहो णायउलाई व तट्ठई पच्छए लग्गु खत्तु रिउ-वूहए णं सुघंतु वग्घु मिगि-जूहए ४ घत्ता जहिं हत्थि-हडउ जहिं तुरय-थड रहवर-विंदई जहिं जे जहिं। जिह विज्जु-पुंजु उप्परि गिरिहे सच्चइ णिव्वडइ तहिं जे तहिं ॥ ९ [१३] ते अट्ठठ्ठ कुणिंद-कुणीरेहिं दय-किराय-पमुह वर-वीरेहिं सिल-प्पहाण-सिलिक्का-हत्थेहिं खेवणि-मुट्ठि-गयासणि-हत्थेहिं(?) Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ पंचसट्ठिमो संधि सव्वेहिं सच्चइ लइउ अक्खत्तें तेण-वि ते आढत्त पयत्तें तिरिय-तोमर-कण्णिय-धाएहिं वइहत्थिय-विवाड-णाराएहिं वच्छदंत-खुर-थूणा-कण्णेहिं एवं सिलीमुहेहिं अण्णण्णेहिं णहे पेक्खंतहं सुरवर-विंदहं दिण्णइं पहरण-णिवह णरिंदहं तोडइ सिर-कमलई कर-पल्लव पाय-पओरु हणिय सर-पल्लव तिण्णि सहासइं हयई हयत्थहं पंच-सयइं वर-खेवणि-हत्थहं __ घत्ता दस सयई गइंदहं मत्ताहं एयारह सय रहवरहं । घाइय वे सहस तुरंगहं केण संख वुज्झिय णरहं॥ । [१४] हय-गय-रह-णरवर-उवगरणेहिं छाइय मेइणि विविहाहरणेहिं वावण-कुमुएरावय-संभव मंद-भद्द-संकिण्ण-मउब्भव संचूरिय(?) मेइणि असेस तंवेरम कइकय-आजाणेय-तुरंगम जं सिणि-णंदणेण सर-सीरिउ तं दूसासणेण वलु धीरिउ दुजोहणेण सेण सु-गवेसिय जे पहाण जोह ते पेसिय एहु गावग्गणु घाय ण वुज्झइ पर सामण्णेहिं अत्थई जुज्झइ तो आढत्तु तेहिं सामण्णेहिं तेण-विते मगणेहिं अग्गण्णेहिं कय पाहण फुटुंति सिलिक्केहिं भग्गई वलइं वलंत-तिडिक्केहिं घत्ता . तो सहस-सयहं पंचहं सयह लक्खहं सीसइं छिण्णइं। जायवेण रणंगणे देवयहो णं ओवाइउ दिण्णइं ।। [१५] णासइ कुरुव-राउ दूसासणु दुम्मुहु चित्तसेणु दुम्मरिसणु तहिं अवसरे परिवड्डिय-वेरें वुज्झइ आसत्थाम-जणेरें सारहि णेहि महारहु तेत्तहे सच्चइ कुरु-कडवंदणु जेत्तहे जे एवहिं जे हयइं कोवंडई अज्ज-वि थरहरंति उरे कंडई जायउ जाउ धणंजय-मग्गे खजउ वलु जिह जगु उवसग्गें Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ रिट्ठणे मिचरिउ ताम विसज्जिय-ससर-सरासणु दिट्ठ पलायमाणु दूसासणु पभणइ गुरु णासंतु ण लजहि एक्कहो किह समरंगणे भजहि घत्ता विस-जउहर जूउ केस-गहणु गो-गहु कवडु मंतु करेवि। कहिं एवहिं णासइ णीसुइय जायव-जम-मुहि पइसरेवि॥ ८ ४ ८ अच्छउ मारुइ पत्थु स-घुडुक्कउ सच्चइ-सरेहिं जे पाणेहिं मुक्कर दोमइ दासि संढ भीमज्जुण एम भणंतओ सि कुरु णिग्गुण पउ एवहिं म देहि विवरेरउ भीमें सिरु तोडेवउ तेरउ तं णिसुणेवि वलिउ दूसासणु जम-भू-भंगुरु लेवि सरासणु छाइउ सिणि-सुउ सरवर-जालें तेण-विसो-वि अणिओह-करालें अंतरे वाहिउ ताम तिगत्तेहिं जय-सिरि-सुर-वहु-रामासत्तेहिं तिण्णि सहास ताहं वइसारिय चउ जुवराय-तुरंगम मारिय सारहि णिहउ महारहु खंडिउ धउ स-पडाउ-वि हासेवि छंडिउ घत्ता दूसासणु सल्लिउ वच्छयले सो-वि सुसम्में जय-मणहो। पच्छा एवि णिउ सवडम्मुहउ दुजसु णं दुजोहणहो। [१७] सच्चइ धरेवि ण सक्किउ आएहिं ____ दरय-कुणिंद-कुणीर-किराएहिं णक्कण-तामलित्त-तुक्खारेहिं मागह-सूरसेण-गंधारेहिं अंग-कलिंग-वंग-मंगालेहिं उड्ड-पउड्ड-मुंड-महिपालेहिं आजाणेय-जवण-जउहेएहिं ओयहिं अवरेहि-मि अपमेएहिं तो णारायणेण णरु वुच्चइ अच्छइ आउ गवेसउ सच्चइ दीसइ कंचण-केसरि-चिंधउ रुंजइ जलयरु जय-जस-लुद्धउ पभणइ सव्वसाइ किं आएं णासिउ कज्जु जुहिट्ठिल-राएं जो परिरक्खइ सो-वि विसज्जिउ को पहु णंदइ णाइ-विवज्जउ ८ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचसट्ठिमो संधि घत्ता रवि लंवइ रिउ ण समावडइ दोणु ण जाणहुं किं करइ। एक्कल्लउ अच्छइ धम्म-सुउ अज्जुणु चिंतहे पइसरइ ।। [१८] सच्चइ एइ जाम जहिं केसवु अंतरे थक्कु ताम भूरीसवु जायव-हरिण ढुक्कु लइ ओरें कमु णिवद्ध मई सीह-किसोरें धाइउ तो णारायण-भायरु जगु लंघंतु णाई खय-सायरु भिडिय परोप्परु सरवर-जालेहिं । केसरि-दीहर-णहर-करालेहिं करयर-राउ करतेहिं चावहिं सुरधणु-विब्भम-भंगुर-भावेहिं विहि-मि परोप्परु सारहि ताडिय विहि-मि परोप्परु रहवर पाडिय विहि-मि परोप्परु णिहय तुरंगम वे-वि वलु र णाई विहंगम विहि-मि परोप्परु कवयई भिण्णइं विहि-मि परोप्परु चावई छिण्णइं ८ विहि-मि चम्म-रयणइं उरे भरियज्ञ विहि-मि करेहिं करवालई धरियई पत्ता उड्डंति पडंति भमंति णहे घाय दिति सिरे उर-करहं । फर-विंदहं असिवर-विजुलहं अणुहरंति णव-जलहरहं ।। सुरव विहि-मि चमर-रयणइं रणे भग्गइं विहि-मि परोप्परु छिण्णइं खग्गइं विहि-मि परोप्परु चावई भिण्णइं विहि-मि परोप्परु कवयई छिण्णइं विण्णि-वि वावरंति कर-पहरेहिं दसणेहिं करि व हरि व वर-णहरेहिं दाढेहिं कोल व सिंगेहिं महिस व तिहिं भूविहिं सच्चइ-भूरीसव पुणु अब्भंतर-वाहिर-मग्गेहिं विग्गह-पग्गह-पमुहेहिं करणेहिं सोमयत्त-णंदणेण विरुद्धे पाडिउ जायउ वेहाविद्धं पाउ दिण्णु गले पच्चुच्चाइयु किर अप्फालहिं महिहे पडाइउ घत्ता तो वुच्चइ णरु णारायणेण सीसु धणंजय तउ तणउ । लहु छिंदहि भुय भूरीसवहो मारिउ भायरु महु-तणउ । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ रिट्ठणेमिचरिउ [२०] जाम ण मुच्चइ सच्चइ पाणेहिं लइ विभच्छ ताम रिउ वाणेहिं भण्णइ किरीडि अकज्जु ण किज्जइ खत्तु मुएवि केम पहरिज्जइ तो सहसत्ति कुविउ णारायणु दुद्दम-दाणविंद-विणिवायणु कवणु खत्तु जहिं विसु संचारिउ कवणु खत्तु जहिं जउहरु वालिउ कवणु खत्तु जहिं किउ केस-गहु । कवणु खत्तु जहिं मंडिउ गो-गहु कवणु खत्तु जहिं मिलेवि तिगत्तेहिं तुहं एक्कल्लउ लयउ अणंतेहिं कवणु खत्तु जहिं विहउ परिंदेहिं रुद्ध भीमु भयदत्त-गइंदेहिं कवणु खत्तु तुह णंदण-घायणे कवणु खत्तु घोडा-पय-पायणे घत्ता तो पत्थें अमरिस-कुद्धएण पेक्खंतहो तहो केसवहो। कुरुवइहे जयासालंभु जिह छिण्णु वाहु भूरीसवहो । [२१] तो परिहरेवि जणद्दण-भायरु धिद्धिक्कारिउ खंडव-डामरु णिम्मल-सोम-वंसे उप्पण्णहो सयल-कला-कलाव-संपुण्णहो ण-वि जुज्जइ तुम्हारिस-पुरिसहं एहु कम्मु पर महुमह-सरिसहं जे समुद्द-पच्चंत-णिवासिय णंद-गोव-सिणि-जायव-वंसिय भणइ पत्थु सव्वहो तणु तम्मइ जासु णियंतहो भाइ णिहम्मइ सोमयत्ति तं वयणु सुणेप्पिणु थिउ देवाहिदेउ चिंतेप्पिणु जासु ण कोहु ण कामु ण कामिणि जेण विवजिउ जम्मण-जामिणि जो संसार-मडप्फर-भंजणु णिक्कलु परमु णिराउ णिरंजणु सयल-भुवण-जण-मंगलगारउ जो रुच्चइ सो होउ भडारउ तं झाएवि णिय-देहब्भंतरे थिउ पाउग्गमे रणे सर-सत्थरे घत्ता तिहि तिविहेण णीसल्लु किउ सिणि-तणयहो सउरिहे णरहो। देवाहिदेउ जिणु संभरेवि सग्गहो गउ वंभुत्तरहो।। ४ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचसटिमो संधि [२२] पुच्छिउ सेणिएण तो गणहरु कहि महु पहु संदेहु महत्तरु सच्चइ जो तियसह-मि ण जिज्जइ कंठहो पाउ केम तहो दिज्जइ कहइ महा-रिसि मागहणाहहो तिविह-परम-सम्मत्त-सणाहहो पुरु पउलासु णामु तं देवउ भुंजइ सयल-राय-किय-सेवउ तासु धीय देवय उप्पण्णी गुण-विण्णाण-कला-संपुण्णी णियय-सयंवरे वहु-अवलेयहो घत्तिय ताए माल वसुएवहो धाइउ सोमयत्तु वर-वाएं पडिवाउ जुज्झे सिणि-राएं दिण्णु पाउ गले कह व ण मारिउ रोहिणि-वल्लहेण विणिवारिउ लज्जेवि कह-वि पड्डु वणंतरे दइवी वाणि समुट्ठिय अंवरे जो पहु जेट्ट-पुत्तु तउ होसइ सो सिणि-सुयहो पाउ गले देसइ घत्ता तें कजें सच्चइ अहिहविउ समर-काले भूरीसवेण। उच्चाइउ लेवि सयं भुएहिं जिह गोवद्धणु केसवेण ॥ - ११ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए पंचसट्ठिमो सग्गो।। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छासट्ठिमो संधि किय सच्चइ णर-णारायणहं कुढे लग्गंतउ णिविउ। गुण-वयणेहिं भीमु जुहिट्ठिलेण तिहि-मि गवेसउ पट्ठविउ॥ एत्तहे सिणि-णंदणु मिलिउ णं जम-दंडु समावडिउ। एत्तहे कुरुव-राउ चलिउ पंडव-साहणे अन्भिडिउ ।। ८ तो दुमय-विराड धणुद्धरेण हय सर-सएण वाहत्तरेण विहि भल्लेहिं रायहो छिण्णु धणु पुणु पंचासिहिं रणे वणिउ तणु मच्छाहिउ तीसहिं उरे लिहिउ धठ्ठज्जुणु वीसहि विहलु किउ दस-सरेहिं परजिउ पवण-सुउ सहएउ णउलु तिहिं तिहिं तणउ पंचाल-पुत्त तिहिं तिहिं जे जिय अवर-वि सामंत णिरत्थ किय वलु सधणु वणिउ वइरिहिं तणउं पुणु गउ थाणंतरु अप्पणउं जहिं अज्जुणु ढुक्कु जयद्दहहो णं पलय-महाधणु हुयवहहो एत्तहे-वि णवर दोणायरिउ | पंचाल-पवले वले उत्थरिउ सरवरेहिं विहत्थी-मेत्तएहिं करिवर-कुंभत्थल-भेत्तएहिं घत्ता वले जले थले णहयले दिसि-वलये सर पज्जुण्णे दरिसियउं । सो दीसइ कवणु पएसु ण-वि जेत्थु ण दोणे वरिसियउ॥ [२] सो ण तुरंगमु सो ण गउ ण-वि रहु ण-वि पहुण-वि य धउ। रण-मुहे को-वि ण उव्वरिउ जो ण दोण-वाणेहिं भरिउ ।। तं अलमल-मयगल-रव-मुहलु रह-चक्क-किलामिय-धरणियलु तुरमाण-तुरंगम-चलण-वलु धय-चिंधालुंखिय-गयणयलु Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ __ छासहिमो संधि दप्प-हरण-पहरण-रण-कुसल गयमय-मेलाविय-अलि-सयलु ४ पडु-पडहहो सद्दिय-भुवणयलु रण-रामालिंगिय-वच्छयलु पडिपेल्लिउ दोणे पंडु-वलु णं पवण-गलत्थिउ उवहि-जलु पंचमुह-चवेड-चुक्क-सवलु णं हरिण-जूहु छंडिय-कवलु ओलंविय-असि-फरु-कर-जुयलु पल्लट्टिय-रहवरु वण-वियलु ल्हिक्कविय-चिंधु परिचित्त-वलु संभरिय-जुहिट्ठिल-कम-कमलु घत्ता तं पंडव-साहणु धीरवेवि पंच कुमार समावडिय । पंचेदिय जेम महारिसिहे दोणायरियहो अन्भिडिय। १० सव्वाहरणालंकरिय सुर-कुमार णं अवयरिय । जण-मण-णयणाणंदयर पंच-वि णाई अणंग-सर ।। धट्ठज्जुण-सोयर दुमय-पुत्त कंचणमय-देहावरण-गुत्त सोवण्ण-महारह कणय-चिंध दुव्वार-वइरि-वाहिणि-णिसिंध वीराहिवीरु वरवीरु केउ पर चित्तणु कित्तणु चित्तकेउ चित्तरहु सुवम्मउ चित्तवम्मु धाइउ संवंधु करेवि धम्मु धउ पाडिउ मोडिउ आयवत्तु धणु खंडिउ कह-वि ण परिसमत्तु तो कंचण-कलस-महा-धएण किवि-कंतें वेहाविद्धएण पंचहिं पंचहिं उर-लग्गणेहिं । जम-पट्टणु पेसिय मग्गणेहिं णिय-वंधव-णिहणे पवत्तमाणे धट्ठज्जुणु धाइउ तहिं पमाणे सर मुएवि महारहु रहहो देवि किर छिंदइ सिरु करवालु लेवि घत्ता तो दोणे वइहत्थिय-सरेण दुमय-पुत्तु विणिवारियउ। धउ पाडिउ सारहि विद्दविउ तुरएहिं रहु ओसारियउ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ तो धट्टज्जुण-णंदणेण अद्धई दस सर ताडियउ [४] गुरुभय-चोइय-संदणेण। स-सरु सरासणु पाडियउ॥ तो अवरु पवरु करे करेवि धम्मु उरे विद्धु खुरुप्पें खत्तधम्म दोहाइउ धाइउ धरणि पत्तु णं दुमु दुव्वाएं भग्ग-गत्तु धट्ठज्जुण-णंदणे विगय-पाणे विहखत्तु पधाइउ तहिं पमाणे कइकय-पहु वसह-समुद्ध-घोणु सर वीस चउक्केहिं विद्ध दोणु तेण-वि वाहत्तरि वाण मुक्क विहखत्तहो णं जम-दूय ढुक्क स-तुरंग स-सारहि सायवत्तु रहु भग्गु सो-वि जम-णयरु पत्तु दप्पुद्धरु धाइउ धट्टकेउ किउ तह-वि खणखें कंठ-छेउ तिह चेइयाणु तिह सइंभुमालि जरसंधहो सुउ तिह रयणमालि घत्ता जो जो दोणहो रणे अभिडई तहो तहो भंजइ माण-सिह। खर-णहर चवेडावड्ढणेहिं हरिणु वेयारई सीहु जिह ।। दुम्मएं अक्खोहणि-वलेण पेल्लिउ दोणु महा-वलेण। रिउहुं करेप्पिणु चप्पणउं गउ थाणंतरु अप्पणउं ।। विद्दविउ णिएप्पिणु णियय-सेण्णु जाणावइ भीमहो धम्म-पुत्तु पालिय-परिहास-कियावलेउ सच्चइहे ण आया का-वि वत्त सिणि-णंदणु आहवे जइ समत्तु वुल्लेसइ मं पुणु को वि धुत्तु कुढे लाएवि णियय सहोयरासु तो वग-हिडिंव-वल-मद्दणेण आयण्णेवि अण्णु-वि पंचयण्णु विणिवाइउ अज्जुणु रणे णिरुत्तु सई पहरइं मंछुडु वासुएउ लइ जाहि वच्छ करि विजय-जत्त तो अक्खु लहेसहु सुद्धि केत्तु अहो पंडव-गाहें किउ अजुत्तु माराविउ सुहि दामोयरासु वोल्लिज्जइ पवणहो णंदणेण Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छासहिमो संधि घत्ता जइ आसिय वा मोक्कल्लिउ दोमइ-परिहवे दुविसहे। तो सव्वु समप्पइ कुरु-वलु किउ विहवत्तणु उत्तरहे। तो-वि जुहिट्ठिल अज्जु हउं करमि विहासिउ भाइ-सउं । दुमय-सुयहे वद्धावणउं भाणुवइहे विहवत्तणउं । थिउ मारुइ उप्परि संदणहो जयकारु करेवि तव-णंदणहो णं केसरि सिहरे महीहरहो णिक्खेवउ दोण-भयंकरहो अप्पाहिउ पहु धट्ठज्जुणहो हउं वत्त-गवेसउ अजुणहो विप्फारिय-धणुवरु तुलिय-सरु । णं तिउरहो समुहु पय? हरु णं मंदर खीर-महण्णवहो थाणंतरु कलस-समुन्भवहो किर ढुक्कइ परिह-पयंग-भुउ रण-भोयण-कंखउ पवण-सुउ गय-साहणु अंतरे ताव थिउ तमि-पाराउट्ठउ तेण किउ सरणियर -णिवारिउ दिसिहि गउ णं जलण-जालु दुप्पवण्ण-हउ पत्ता तो दोणे विद्ध णिडालयले भीमें रोस-वसंगएण। सरु मोडिवि घत्तिउ धरणि-वहे अंकुसु णाई महागएण॥ तो सोणास-महारहेण वुच्चइ सुर-गुरु सच्छिवेण। जाहि विओयर ओसरेवि इत्थु ण सक्कहि पइसरेवि॥ जइ किर अणुमइए महारियए तो मारुइए तुज्झु कहिं तणउं पुणु पावणि पभणइ पणय-सिरु पंचासी वरिसई ताम तउ अणुमइए जेण सो पइसरइ अज्जुणु पइङ गुरुयारियए कुरु-वूहब्भंतरे पइसणउं मयरहर-महारव-गहिर-गिरु णरु णव-जुवाणु किर कवणु भउ केसउ साहिज्जउ जसु करइ ४ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ रिट्ठणे मिचरिउ . एवड्ड वार हउं अज्जुणहो एवहिं गुरु तव पच्चारियउ मेल्लिय सुघोस णामेण गय आसंकिउ अण्णु-वि अवगुणहो वलु वलु कहिं जाहि अमारियउ तहो उप्परिणं जम-दिट्ठि गय ८ घत्ता पंडव-पयंड-भुयदंड-धुय-लउडि-घाय-दुव्वाय-हउ। उप्पएवि महारह-पायवहो दोण-विहंगमु कहिमि गउ॥ [८] तहिं अवसरे दूसासणेण णिय-कुल-कित्ति-विणासणेण । पेसिय सत्ति विओयरहो सरि गिरिवरेण व सायरहो।। अद्ध-वहे जे पवण-सुएण छिण्ण चउ-सरेहिं चयारि तुरंग भिण्ण धयरट्ठहो णंदण दुण्णिवार एयारह अंतरे थिय कुमार विंदार-जेट्ठ-विंदाणुविंद धाइय मुक्कंकुस जिह गइंद सुयरिसण-दुब्विमोयण-सुधम्म सु-रउद्द-सुसेण-रउद्दकम्म सुविसाल- णिरिक्खण-कुंडभेड़ जम-चंड-दंड-कोवंड-हेइ स-तुरंग स-सारहि स-रह ढुक्क रवि-किरण-भयंकर सर विमुक्क ते भीमें परिविंधण-मुहेहिं तो सयल-वि लइय सिलीमुहेहिं भड भिंदेवि हेट्ठाणण पयट्ट गुण-धम्म-विहूणहं सा जि वट्ट घत्ता तो कुरुव करेप्पिणु सत्तुयउ पुणु-वि समच्छरु धाइयउ। केत्तहिं दूसासण जीय-जलु जोयइ णाई तिसाइयउ॥ तहिं अवसरे दोणाइरिउ णाई महाघणु उत्थरिउ । पइसेप्पिणु सरवर-णिवहे रहु अप्फालिउ धरणि-वहे ।। पुणु वीयउ लयउ विओयरेण पुणु तइयउ विप्फुरियाणणेण गोवद्धणु णं दामोयरेण अट्ठावउ णाई दसाणणेण Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ पुणु लइउ चउत्थउ दुम्मुहेण उच्चाइउ पुणु पंचमउ रहु पुणु छट्ठउ वइरि - वियारणेण आयामिउ पुणु सत्तमउ रहु अट्टमउ वि एम स- विग्गहेण ते अट्ठ महा-रहवर णिमिय घत्ता तो अण्णेहिं अण्णेहिं रहे चडेवि उ पुट्ठि देवि दोणायरिउ अज्जुण धणु-गुण-गुंजियउ भीमें सीह - णाउ कियउ [१०] पवि-पुत्तें जं किउ सीह - णाउ खल खुद्द विओयर थाहि थाह तो म भवि सर घिविय वीस पंचहिं अवरेहिं जुत्तारु लिहिउ चउस िविओयरु घिवइ तासु कण्णेण चयारि विमुक्त वाण पंडवेण मुक्क वहु वंस - वाण रवि - सुएण सरेहिं सरोहु छिण्णु घत्ता कण्णहो कोवंडु पंडु-सुएण परिहरइ अवरु चाउ किर करइ करे ताडिउ तिहिं तोमरेहिं उरे [११] णं अमिय-महण-गिरि महुमहेण सेसें असेसुणं धरणि-वहु स- मघेण व धणु अंगारएण णं वाहुवलीसरेण भरहु णं ससहरु लइउ महागण स- तुरंगम - सारहि धूलिकिय झड ण सहंति विओयरहो । पडिवउ णिय - थाणंतरहो ॥ पंचयण्णु ओरुंजियउ । धम्म- पुत्तु आसासियउ ॥ खंडिउ महि-मंडले पडिउ । जइ वि महग्घ - कोडि घडिउ ॥ - स तं धाइउ सरहसु अंगराउ कहिं वलु अमणूसउ करेवि जाहि पहु पासे ठंति किं कहि-मि वीस - धुरंधरु कासु ण जणइ दिहिउ सई मग्गण चाइहे जंति पासु काणीण होंति सइ तुच्छ-दाण गुण-धम्म- रहिय सइ अप्पमाण णिसियरहं विहंजेवि वलि व दिण्णु छाडिमो संधि ताम विओयरेण समरे । कह - विछुद्ध कयंत - पुरे ॥ ४ १ ४ १० १ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ४ रिट्ठणे मिचरिउ धणु वीयउ छिण्णु महावलेण सहुं सारहि सिरेण स-कुंडलेण सहुं तुरय-चउक्क-धवलुद्धरेण सहुँ रहेण धएण कवंधुरेण तहिं अवसरे कायरु कुरुव-राउ विहडप्फडु दोणहो पासु आउ अहो ताय ताय तुहुंकाई सिण्णु जें तिहि-मि जणहुं पइसारु दिण्णु अज्जुण-जुज्जुहाण-विओयराह विस-विसमउ विसम-धणुद्धाराह तिण्णि-वि महु साहणु विद्दवंति जम-काल-कयंतहं अणुहरति तं णिसुणेवि पभणइ भूमि-देउ वुच्चइ किं णरवइ णिरवलेउ महु सरि-सुय-विउरहं ण किय वाय एवहिं वोल्लहि किर काइं राय घत्ता जाहि जयद्दहु धीरवहि अक्खेवि कण्णहो सउवलहो। हउं सच्चइ भीमें सूरियउ तुम्हे-वि ते-वि तामब्भिडहो॥ [१२] जउहरे जुए केसग्गहणे गो-गहे दूय-समागमणे। ण किउ णिवारिउ महु तणउ एवहिं जीविउ कहिं तणउं॥ ४ तुहं वेयारिउ तिहिं णीसण्णेहिं सउणि-माम-दूसासण-कण्णेहिं जेहिं विरोहिय पंडव डं. लइय वसुंधर जूयारंभे जो जूवार अज्जु सो ढुक्कउ रण-पिडु मंडेवि दाणउ मुक्कउ जो गय-घड-सारिउ संपाडइ जो भीमज्जुण पासा पाडइ चरु गमु छक्कु वज्झु जो लक्खइ सिंधव-सीस-मरणु सो रक्खइ तो धर-कामधेणु-संदोहणु दोणहो वयणेहिं गउ दुजोहणु जहिं परिवारिउ भड-संदोहेहिं णरहो जयद्दहो विहिं सर-छोहेहिं ताम दिट्ठ रवि-ससि-समतुल्ला अज्जुण-चक्क-रक्ख जे भुल्ला घत्ता (ताम) उत्तमोज-जुहमण्ण रणे पत्थहो पहेण समुच्चलिय। (लइ) वलहो वलहो कहिं पइसरहु कुरुव-णरिंदें पडिखलिय ।। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छासट्ठिमो संधि [१३] ते दुइ जण सो एक्कु जणु तिहि-मि भयंकर जाउ रणु। सर-सरवरेहिं अणेय हय चूरिय चामर छत्त धय॥ दुजोहणेण ते वे-वि जिय . गय चक्क-रक्ख पत्थहो मिलिय एत्तहे वि विओयरु वावरिउ वर-गय-चोवाण-हत्थु भमिउ जगडियइं असेसई रिउ-वलई पाडियइं छत्त-चामर-धयई कप्पियइ कुंभि-कुंभत्थलई हय हय वर-सारहि णिट्ठविय तेहि-मि तहो संदण-हाणि किय करु-मद्दराय एक्कहिं मिलिय णं णर-णिहेण जमु संचरिउ णरवर-सिर-झेंडुएण रमिउ उम्मग्ग लग्ग सोणिय-जलई णाडियइं महा-कवंध-सयई घिवियई चउदिसु मुत्ताहलई वहु वइवस-पट्टणु पट्टविय घत्ता रह मोडिय वूहई फोडियइं गय-घड विहडाविय ण णर। जिह सीहहो तेम विओयरहो कण्णु जे अग्गइ थाइ पर। [१४] कुरु सेण्णहे सीमंतिणिहे णावइ दुच्चारित्तिहे। भीमें सव्वु विणासु किउ एक्कु कण्णु पर कहि-मि थिउ॥ ४ रवि-सुएण रवि-किरण-कराले हसेवि सविब्भमु केरल-जाएं तेण-विधणु-विण्णाणु पगासिउ कुरुव-कुरंगालंघिय-सीमें धणु दोहाइउ रहवरु खंडिउ सारहि भिण्णु तुरंगम घाइय अंगराउ ओसरिउ रहंतर अण्णहिं रहवरे णवर चडेप्पिणु छायउ माया-सरवर-जालें . उरयडे विद्धु कण्णु णाराएं पावणि देहावरणु विणासिउ पंचवीस सर पेसिय भीमें आयवत्तु धउ छिंदेवि छंडिउ वइवस-पुरवर-पंथें लाइय कलयलु किउ सुरवरेहिं अणंतरु अहिणवु करे कोवंडु करेप्पिणु ८ . Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ घत्ता स-विलक्खु स-सज्झसु सूर-सुउ पडिवउ कह-वि कह-वि वलिउ । सोमाइउ मत्त-महागएण लीलए कमलु जेवं कलिउ॥ [१५] पुणु वि भिडिय परिकुविय-मण कण्ण-विओयर वे-वि जण। सर जालालुंखिय-गयण तोसिय-हरि-हर-चउवयण ॥ विण्णि-वि सधणु रुहिर-जलोल्लिय जमल-पलास णाई पप्फुल्लिय णित्तम-तवण-तणुत्तम-तोएं सर तेवीस मुक्त राहेएं तो कुरु-कुल-कलि-काल-विलासें रक्खस-वंस-विणास-पयासे विसु जउहरु पासा केस-गहु . दोमइ-हरणु वसणु वणु गोग्गहु गुण-विच्छाउ सरेप्पिणु वालहो चाउ चउत्थउ चंपा-पालहो पाडिउ हियउ णाई कुरु-णाहहो दाढा-खंडु व आइ-वराहहो धणु पंचमउं छिण्णु रहु पाडिउ णं कुरुवाहं मडप्फरु साडिउ अवर-महारहे सिहर-णिसण्णे अच्चग्गलउ कम्मु किउ कण्णे घत्ता रहे अण्णहिं अण्णहिं संकमइ मासे मासे दस-सय-किरणु। आइय पुणु घडियभंतरेण पंच वार किउ संकमणु । [१६] तहिं अवसरे दुजोहणेण पर-वल-जल-अड्डोहणेण। रवि-तणयहो उद्धरण-मण पेसिय भायर पंच जण ।। दुम्मरिसण-दुजय-चित्तसेण संकुद्धद्धाइय रहवरत्थ गुरु-गंधवहु य-धयवडोह तो तेहिं महाहवणुज्जएहिं आरोडिउ भीमु मइंद-कीलु दुम्मुह-दूसह वहु-अमरिसेण वर सर-सरासण-हेइ-हत्थ आइद्धावरण-णिवद्ध-कोह पंचहि-मि कुमारेहिं दुज्जएहिं रह-महिहर-धय-लंगूल-लीलु Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ छासहिमो संधि संजमिय-तोण-केसर-सणाहु णिप्पसर-सरासण-रसण-राहु सर-णहर-भयंकरु वलेवि थाइ सारंगहं सीह-किसोरु णाई ते पंच-वि कम-वहे पडिय तासु मुसुमूरिय-एक्कु वि णहु गयासु घत्ता तो अण्णे कण्णायड्डिएहिं लइउ अणंतेहिं सरवरेहिं। लक्खिज्जइ मारुइ मलउ जिह रुडु चउद्दिसु विसहरेहिं।। [१७] सो सर-पंजरु सर-सएण विणिवारिउ पवणंगएण। कण्णहो छट्ठउ छिण्णु धणु चूरिउ सयडु सोवकरणु ॥ ४ रवि-सुएण विसजिउ लउडि-दंडु तं वि-रहु णिराउहु णीएवि कण्णु पट्टविय पडीवा अट्ठ भाय ते चित्ताउह-चित्ताउ-चित्त वुह-चित्तधम्म ओ अट्ठ भाय समकंडिउ मारुइ समुहु धाइ णाराएहिं पंडु-सुएण भिण्ण स-तुरंग स-सारहि सायवत्त सो भीमें किउ सय-खंड-खंडु दुजोहणु दुम्मणु थिउ विसण्णु णिय-मित्तहो मित्त-सुयहो सहाय चित्तस्स-सरासण-चारुचित्त णं वग्घहो कम-वहे हरिण आय आरोडिउ मिगेहिं गइंदु णाई गय धरणि महा-दुम णाई छिण्ण स-सरासण स-रह स-धय समत्त ८ घत्ता १० अण्णहिं भुय अण्णहिं चरण गय अण्णहिं सीसइं पाडियई। णं जउहर-ज़ - महा-दुमहो फलई स-डालई साडियई।। [१८] चडेवि महारहे सत्तमए वलिउ समच्छरु तहिं समए। पडिवउ भीमें वि-रहु किउ सत्तम वार रणे कण्णु जिउ ।। हय सत्त महा हय सत्त सूव रुहिरारुणु सहुं सुहडेहिं कण्णु । हरि अट्ठवीस णिज्जीव हूव णं धाउ सिलावडे गिरि-णिसण्णु Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ रिठ्ठणे मिचरिउ तो कुरुव-णरिंदें तहो सहाय पडिवारा पेसिय सत्त भाय दिढरहु सत्तुंजउ सत्तुहणु दुद्धरु जउ विजउ विगण्णु महणु धाइय दुद्धरिस विओयरासु णं मत्त महागह ससहरासु आढत्तु महाहउ परम-घोरु णं धरिउ करिहिं केसरि-किसोरु सो मारुइ कम्मई करइं वे-वि कण्णहो आभिट्टइ हणइ ते-वि ते-वि ८ कण्णहो विणिवारइ वाण-जालु ताह-मि ढुक्कइ णं पलय-कालु मणि-कुंडलु कण्णहो तणउ छिण्णु ताह-मि एक्केक्कउ सरेहिं भिण्णु । घत्ता जे कुरुव-णरिंदें पट्टविय तेण-वि भीमहो आलणउं । जेमंतहो कण्णहो भोयणए णं किय सत्त-विसालणउं ।। तो सोणिय-पव्वालिएण कड्डेवि स-सरु सरासणउं कण्णे कोव-करालिएण। छिण्णु कवउ भीमहो तणउं ।। पंडवेण-वि तासु ण दिण्णु खणु जंलेइ सई करे तं हणइ धणु सत्तमउ खुरुप्पें खंडियउ अट्ठमउं विहंजेवि छंडिउ णवमउं खल-हियउ व वंकुडउ दसमउं कु-कलत्तु व थडुडउ एयारहमउं सरु ताडियउ ससि-खंडु व गयणहो पाडियउ वारहमउं कोडि-वलग्गणउ किविणहरु व घल्लिय-मग्गणउ तेरहमउं वइरि-णिसंधणउ दुजण-दुव्वयणु व विंधणउ चउदहमउं वासव-चाव-समु पण्णारहमउं संगाम-खमु सोलहमउं रवि-तणयहो तणउं गुण-विद्धि-रहिउ णं कित्तणउं घत्ता धणु उद्दलिय-लयंताहं भीमसेण-चंपाहिवहिं। सम-सीसी वट्टइ विहि-मि रणे णं णं दइव-पयावहिं॥ ८ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छासठिमो संधि [२०] तो आरोसिउ रवि-तणउ हउ सारहि हयवर तुरय खंडिउ रहु भीमहो तणउ। स-धय स-चामर धरणि गय ।। ४ तो णिय-रहवरेण विसुद्धएण कण्णाणुअ-अणुएं कुद्धएण पट्टविय सत्ति रवि-णंदणहो किर णिवडइ उप्परि संदणहो णं धगधगंति पलयग्गि-सिह रवि-सुएण णिवारिय असइ जिह तो भीमें करे असि-लट्ठि किय स-वि छिंदेवि भिंदेवि खयहो णिय पुणु हणइ णवल्लेहिं पहरणेहिं णिज्जीव-तुरंगम-वारणेहिं रहवरेहिं रहंगेहिं वर-भडेहिं जंपाणेहिं छत्तेहिं धयवरेहिं रवि-तणएं ताइ-मि णिज्जियई मुसुमूरेवि महिहे विसज्जियई वड्ढारिय सुद्धि विओयरेण विज्जु व महिहरहो पओहरेण । घत्ता जा जाहि कण्ण णउ हणमि पई सुट्ठ किएण-वि अवगुणेण । फुडु दिवसे चउत्थए पंचमए तुहं मारेव्वउ अज्जुणेण ॥ [२१] हसेवि दिवायर-णंदणेण किय-रिउ-कुल-कडवंदणेण । धणु-कोडिए पडिपेल्लियउ पुणु मारुइ णित्तेल्लियउ॥ जाहि विओयर भोयण-सालउ णउ मारमि कुंतिहे आएसें जइ मारिउ गंडीव-धणुद्धरु ताम जणद्दणेण णरु पेसिउ जाम ण आएं भीमु णिहम्मइ तो गंडीव-महाउह-हत्थे सो विणिवारिउ आसत्थामें सच्चइ-रहवरे चडिउ विओयरु अहवइ कहिं मग्गे भिक्खालउ हउं तुम्हहं पंचमउ विसेसें णं तो ते जि तुम्हि सो भायरु एहु सो कण्णु तुहारउ वइरिउ अरि सवसाणु ताम वरि गम्मइ सत्तु-विणासु मुक्कु सरु पत्थे रवि-सुउ ल्हसिउ धणंजय-णामें मिलिउ किरीड-मालि दामोयरु Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता ते णिएवि चयारि-वि कुरुव-पहु णाई तिसूलें सल्लियउ। हरि-हर-सइंभुव-वासवेहिं कुसुमवासु णरे घल्लियउ ।। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए छासट्ठिमो सग्गो॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तसट्ठिमो संधि *सच्चइ-भीम-समागमणे णिय-कुल-गिरि-सिहर-सयद्दहहो। जिणेवि असेस णराहिवइ रणे अज्जुणु भिडिउ जयद्दहहो॥ १ सच्चइ-भीम-पत्थ ते दुद्धर तिण्णि-वि एक्कहिं मिलिय धणुद्धर तिण्णि-विणं पच्चक्ख हुवासण तिण्णि-विणं हरि-हर-कमलासण तिण्णि-वि रवण्णई तिहिं भुवणहिं ++++++++++++++++ तिण्णि-वि सिहर णाई अचलिंदहो तिण्णि-विणं चूडामणि इंदहो तिण्णि-वि वंधव वद्धिय णेहा जम-वइसवण-पुरंदर जेहा तिण्णि-वि काल णाई णर-वेसें कुरुव-णरिंदहो कुविय विसेसें णं थिय तिण्णि लोय एकंतहो दुरुङल्लंति जयद्दहु जेत्तहो तिण्णि कयंत व विहि उप्पाइय रण-भोयणु भुंजणहं पराइय घत्ता ताहं चउत्थु जणद्दणु सच्चइ-वीभच्छ-विओयरहं । णं परमप्पउ परम-गुरु वंदणउ पियामह-हरि-हरहं ।। [२] चलिय चयारि-वि वइरि-वियारा णं सणि-राहु-केउ-अंगारा वलिउ विओयरु मत्त-गइंदहं उत्तमोज-जुहमन्न-णरिंदहं सच्चइ दूसासणेण खलिज्जइ तेण-वि तासु पडुत्तरु दिज्जइ तउ पेक्खंतहो कुरु ओसारिउ +++++++++++++ तउ पेक्खंतहो जिउ कियवम्मउ जसु धयरट्ठ-सुएहिं सहुं सम्मउ * ज.gives the following verse in the beginning : गज्जति ताम्व कइ-मत्त-कुंजरा लक्ख-लक्खण-विहीणा। जा सत्त-दीह-जीहं सयंभु-सीहं ण पेच्छंति ।। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ १० रिट्ठणे मिचरिउ तउ पेक्खंतहो तहो जलसिंधहो पाडिउ सीसु सवाहहो खंडहो हउ सुअरिसणु भग्गु दुज्जोहणु तुहु-मि पणटुणटु कलि-रोहणु हय-पहाण-जोहेहिं पइं जुज्झिउ तहिं मई सयलु वलावलु वुज्झिउ अवरु तिगत्तउ हणिउ अलंबुसु णाई महा-भुवंगु आसीविसु घत्ता ताहं णियंतहं तुहु-मि रणे जं महु उव्वरिउ अ-मारियउ। तं दोमइ-केसग्गहणु किर भीमें थुत्थुक्कारियउ॥ [३] थिउ दूसासणु णं हउ खगें गउ सच्चइ कण्हज्जुण-मग्गें मारुइ हत्थि-हडउ मुसुमूरइ णिय-वंधवहं मणोरह पूरइ उत्तमोज्जु उत्तमह वियट्टइ जूहमण्णु-वि सेण्णइं दलवट्टइ णर-सरवरहं मरइ जो ढुक्कइ पंचहं जमहं को-वि किं चुक्कइ हय गय जोह वसुंधर पाविय रत्त-तरंगिणि तुरिउ वहाविय सिरइ तरंति समउ सीसक्केहिं रह वहंति वुटुंतेहिं चक्केहिं छत्तइं चामराइं धय-चिंधई आहरणइं मणि-रयण-समिद्धई के-वि तरंति तहि-मि अणुवद्धेहिं से वि(?) वंधु वंधंति कवंधेहिं घत्ता रत्त-तरंगिणि उत्तरेवि सामिय-पसाय-रिणु हिए ठवेवि। वाउरंति सहुं अज्जुणेण णिय-जीविउ जम्महो हत्थे ठवेवि॥ [४] तहिं अवसरे किय-परम-विसाएं वुच्चइ अंगराउ कुरु-राएं कण्ण कण्ण रवि लंवइ लग्गउ अज्जुणु केण-वि समरिण भग्गउ पेक्खु पेक्खु किह साहणु मारइ । सुण्णउ जमहो रट्ठ वड्डारइ पइ-मि जियंते अम्हहं आवइ हणु हणु जाम ण उप्परि आवइ रक्खु जयद्दहु वलु साहारहि । विहवत्तणु दूसलहे णिवारहि एह सो अवसरु पडिउवयारहो अद्धासणहो कत्त-सर-भारहो पभणइ सउरि ण सक्कमि धीमें वड्ड-वार खलियारिउ भीमें ९ ४ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ एव - मितउ आएसें जुज्झमि धत्ता एवं चवेवि चंपाहिवइ जेम गइंदु महा-गयहो ताव स-चक्करक्खु स-जणद्दणु स-रह स सारहिं पत्तु धणंजउ णं हुवहु हंतु तण-कट्ठइं व सर संधेवि सव्वायामें सत्तहिं वासुएउ वच्छत्थले ते सर स-सर- सरासण - हत्थें पंचवीस गुरु-सुरण विसज्जिय दस रवि-सुण सत्त तहो ताएं [4] घत्ता सउणि सल्ल - सल- कण्ण-किव पंचहिं छहिं सत्तहिं हणेवि [६] दसहिं सरेहिं विद्धु चंपावइ पुणु पडिव सत्तहिं धणु-धीमें - विदीहर सर सर - लट्ठिहिं लइउ धणंजण सय - गण्णें रेण सरासणु छिण्णुखणंतरे अवरे रवि- णिण णाराएं तामणिवारिउ आसत्थामें दिणमणि - णंदणेण णरु छाइउ तइलोक्कुच्छलिय- महागुणहो । सवडम्मुहु धाइउ अज्जुणहो । विजउ पराजउ कासु ण वुज्झमि सत्तसट्टिमो संधि ८ - सभी समाहवि - णंदणु वलइं हणंतु रणंगणे दुज्जउ गरुडहो णायउलाई व तट्ठइं विद्धु थणंतरे आसत्थामें णं सारंग लग्ग णीलुप्पले सहिं दहिं विणिवारिय पत्थें सत्तरि दुज्जोहणेण पउंजिय अवर - वि अवरें कउरव - लोएं - अवर वि णरेण सामंत-सय । पुणु सहिहिं सहिहिं सव्व हय ॥ भूमि-भाउ भुवणिदिहिं णावइ तिहिं सिणि-णंदणेण तिहिं भीमें तिण्णि-वि ताडिय सहिहिं सट्ठिहिं सो पंचासहिं घाइउ कण्णें वहिं पडीवर भिण्णु थणंतरे चक्क - रक्ख दोहाइय घाएं अवरु लेवि धणु सव्वायामें विहि-मि परोप्परु कहव ण घाइउ ४ ८ ४ ८ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता जलु थलु णहयलु दिस वलउ रवि मंडलु मंडिउ सरवरेहिं । विहिं अंतरु दिण सुरवरेहिं ॥ जुज्झतहं कण्णज्जुणहं [७] सच्चइ भीमें लयउ अखत्तें कुरु-जणु कुरु- णिवेण पच्चारिउ करवर कक्क ( ? ) महाधउ पाडिउ चक्क - रक्ख - हय धुरि विणिवाइउं राहा-सुसरेहिं मुच्छाविउ पुणु पउरंदरि विलिहिउ तीसहिं सत्तहिं तावणि-तणएं तच्छिउ - सरहं सहासइं पेसियइं ताई समुद्दो सरि-मुहइं घत्ता [८] सो सर - णिरुणिवारिउ पत्थें दोण - पुत्तु चउसट्टिहिं छाइउ तिहिं विससेणु भिण्णु किउ वीसहिं दसहिं सरेहिं जयद्दहु ताडिउ रहवर - हय-गय-जोह - णिसिंधइं दूसह दुण्णिरिक्खु संभूयउ सत्थ- वारु दिव्वत्थु विसज्जिउ रवइ णिरवसेस वामोहिय रहियहं रहहं तुरंगमहं भिंदेवि अंगई जंति सर कउरवेहिं जाई रणे दुज्जयहो सव्व णासंति धनंजयहो । घत्ता विद्धु अणेयहिं सरेहिं पयत्तें धावो कण्णु रणंगणे मारिउ ++++ ·++++++++++ हरिहिं चउक्कउ जसु जलु धाइउ णिय रहे गुरु-णंदणेण चडाविउ रु वारहहिं किविं ( ? ) हरि वीसेहिं चउहिं जयद्दण उम्मच्छिउ णरवइ सव्वु-वि लद्धउ हत्थें विहिं दुज्जोहणु कह - विण घाइउ मद्दाहिउ सएण सलु तीसहि तिहिं दूसासणु कह-वण पाडिउ जो जो दुक्कइ तं तं विंधइं णं अवसाण-काले जम- दूयउ कउरव - साहणु तेण परज्जिउ सीहें जेम महा-गय रोहिय कुरु-रहं णरिंदहं गयवरहं । रवि - किरण णाई णव - जलहरहं ॥ ३८ ४ ८ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तसट्ठिमो संधि [९] मुहरंगेहिं तुरंगे रंगाविय खंडिय रहवर कडि कडुवाविय चित्तई णिवडियाइं सामंतहं णिसुढिय वाहु-दंड पहरंतहं कुरुवइ थंभ(?) जाय गइ-भग्गी केवल मरण-चिंत परिलग्गी के-वि चवंति जाहु वरि तेत्तहे फग्गुण-धणु-गुणु-सढुण जेत्तहे ४ । ल्हिक्क के-वि रह-गय-तुरियंतरे । चिंतवंति कि-वि चित्तब्भंतरे जाउ धणंजउ धरेवि ण सक्कहु मरउ जयद्दहु पुरउ ण थक्कहु किहि-मि पहरणाई परिचत्तई केहि-मि ल्हिक्काविय णिय-छत्तई केहि-मि भरिय वाहु सर-दंडेहिं के-विणट्ट लग्गंतेहिं कंडेहिं घत्ता वण-वियणाउरु करेवि वलु तहो अवजस-सलिल-महद्दहहो। राहु जेम रवि-मंडलहो गउ अज्जुणु भिडिउ जयद्दहहो। [१०] तो हक्कारिउ सेंधव-राएं पंडव संढ भरिउ जम-राएं वाहि वाहि किं धरहि महारहु हउं सो अच्छमि एहु जयद्दहु विजयासंघ करेवि णिय-खंडए दोमइ जेण हरिय वलिवंडए वूहहो वारि जेण जिय पंडव सीहहो णासेवि गय वेयंड व एम भणेवि भुवइंद-करालें छाइउ अज्जुणु सरवर-जालें णउ तुरंग णउ दीसइ संदणु णउ सच्चइ ण भीमु ण जणद्दणु णउ गंडीउ ण कंचण-वाणरु लग्गु जयद्दहु जिह वइसाणरु भग्गइं वलइं जाइं किय-जत्तइं ताइ-मि तहिं अवसरे परिपत्तई घत्ता सएण पत्थु हरि सत्तिरिहिं छहिं सच्चइ सत्तहिं पवण-सुउ। चक्क-रक्ख तिहिं तिहिं हणेवि दुप्पेखु जयद्दहु रवि व हुउ॥ पंडव पहरु पहरु किं अच्छहि तुहं हेवाइउ केहि-मि अण्णेहिं मई विंधतउ किं ण वि अच्छहि भूरीसव-कलिंग-किव-कण्णेहिं Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० रिट्ठणे मिचरिउ हउं सो सिंधव-णाहु ण वुज्झहि सव्व-परक्कमेण लइ जुज्झहि खंडवु दड्ड जेण सब्भावें कालकंज जिय जेण पयावें जेण णियत्तउ उत्तर-गोग्गहु जेण परक्कमेण किउ विग्गहु तेण परक्कमेण लइ वावरु णं तो इट्ठा-देवय संभरु पभणइ पत्थु कोवाणले चडियउ कहिं महु अज्जु जाहि कमे पडियउ तोणा-जुयले सिलीमुह जेत्तिय मेल्लि मेल्लि समरंगणे तेत्तिय घत्ता कुरु पच्चारिउ अज्जुणेण ते तुम्हइं सो हउं एहु रणु । रक्खहो सीसु जयद्दहहो लइ धरहु सव्व मई एक्कु खणु ॥ [१२] एम भणेवि तोसिय-सुर-सत्थे सर चउसट्टि विसज्जिय पत्थें छिण्ण णहंगणे सिंधव-राएं सिल-धोएण वाण-संघाएं तिहिं गांडीउ विद्धु ण महा-गुणु छहिं णाराएहिं ताडिउ अज्जुणु अट्ठहिं घोडा अट्टहिं वाणरु पंचहिं रहु सएण दामोयरु सच्चइ सच्चवंतु चउवीसेहिं छाइउ भीमसेणु वत्तीसेहिं विहिं जुहवण्णु थणंतरे ताडिउ उत्तमोज्जु तिहिं कह-विण पाडिउ तो णरेण सारहि-सिरु ताडिउ कणय-वराह-चिंधु तमि तोडिउ चक्क-रक्ख हय रहवरु खंडिउ तुरय-चउक्कु वियारेवि छंडिउ घत्ता वुच्चइ णरु णारायणेण पहरंतहं किज्जइ खेउ ण-वि। खुडहि जयद्दह-सिर-कमलु अत्थवणहो जाम ण जाइ रवि ।। ४ ८ विद्धखत्तु णामेण मह-प्पहु दइवी वाणि समुट्ठिय जम्मणे जइ कयाइ धरणियले पलोट्टइ तो एं कारणेण रणे दुजय जो सुइणंतरे देवेहिं दिण्णउं तासु पुत्तु इहु जाउ जयद्दहु आयहो सिरु छिज्जंतु रणंगणे तो हंतारहो सीसु विसट्टइ अंजलीउ सरु मेल्लि धणंजय अहि पच्छण्ण-वेसु अवइण्णउं Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तसट्ठिमो संधि तेहिं खुडेप्पिणु तेहिं णहंगणे विद्धखत्तु जहिं तवइ तवोवणे तासु करंजलि-जले जइ घिप्पइ तो सिरु फुट्टेवि सो-जि समप्पइ तं उवएसु लहेवि सेयासें खुडिउ सीसु णिउ सरेणायासें घत्ता हंसे तोडेवि कमलु जिह उच्छंगे णिमिउ तहो तावसहो। तेण-वि घत्तिउ धरणियले सिरु फुट्टेवि गउ पुरु वइवसहो। [१४] णिहए जयद्दह-राए रणंगणे तूरइं हयई जुहिट्ठिल-साहणे कलयलु सुट्ठ घु? वड्डारउ चेलु भमाडिउ अगणिय-वारउ पूरिय पइज्ज धणंजय-केरी भमिय कित्ति आणंद-जणेरी कउरव-साहणु चिंतावण्णउं णं वहे हरिण-जूहु आदण्णउं परिहव-दवेण दड्ड विद्दाणउं जिंदइ वार-वार अप्पाणउं एक्कु धणंजउ धरउ सरासणु मग्गइ दइउ जासु रणे पेसणु जउहर-जूय-कयग्गह-गोग्गह ते जे जाय णव गह साणुग्गह पाडिय जे कवडेण दुरोयर एवहिं ते परिणविय महा-सर पत्ता ताम सयंभुवणाहिवइ सुर-सत्थु सुरिंदहो पासे थिउ। मेल्लिउ कुसुम-वासु णरहो हय दुंदुहि साहुक्कारियउ ।। ८ इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए । [णामें] जयद्दहवहो[3]सत्तसट्ठिमो[इमो] सग्गो।। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठसट्ठिमो संधि णिहए जयद्दहे दुन्विसहे अम्हहं जयास ण पूरइ । एवहिं को साहारु महु दुजोहणु हियए विसूरइ ॥१ धवलु महारउ तेण तेण चित्तें । थिउ धुर छंडेवि तेण तेण चित्तें। को भरु कड्डइ तेण तेण चित्तें। खंधु समोड्डेवि तेण तेण चित्तें ।। सव्वहं संगरे पहरंताहं ओ मंडु हरंतु धरंताहं किह खुडिउ जयद्दह-सिर-कमलु। दुजोहणु मेल्लइ अंसु-जलु खउ आउ असेसहं सजणहं परिणविय वसुंधर दुजणहं पहु धीरेवि धीरेवि कुरुव-वलु गुरु-णंदणु पभणइ अतुल-वलु परिरोवहि णरवइ काइं तुहुं साहारहि साहणु लुहहि मुहु ण करेवउ परम-विसाउ पइं पहरंतहे सयल मरंति सई जो मुउ सो मुउ किर कवणु छलु अच्छउ चंपाहिउ सल्लु सलु णित्तिंसहो पावहो णिगुणहो हउँ एक्कु पहुच्चमि अज्जुणहो घत्ता सव्वहो लोयहो पीड कर दुव्विसह पुरस्सर कामहो। फग्गुण-माहव विद्धि-कर पर एक्कहो आसत्थामहो। ___ [२] एम भणेप्पिणु तेण० पडिभडे भिडिउ तेण० मेहु महीहरे तेण० जिह ओवडिउ तेण० एम भणेप्पिणु पडिभडे भिडियउ मेहु महिहरे जिह ओवडिउ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ गुरु-णंदण अमरिस-कुविय-मण एक्कहो-वि एक्कु ण-वि ओसरइ पेक्खंतहो तहो दुजोहणहो गुरु-सुएण धणुहे गुणे करेवि कर तेहत्तरि पुणु णारायणहो सेयासहो दस दस दारुयहो जुहमण्णुहे सत्त रणुद्धयहो पंचहिं गंडीव-लट्टि पहय अट्ठसहिमो संधि पहरंति परोप्परु के-वि जण एक्कहो एक्कु-वि णउ खउ करइ णीसेसहो कउरव-साहणहो ४ पहिलारा पेसिय सउ-वि सर सउ सट्ठि णरहो णारायणहो णव भीमहो वारह सिणि-सुयहो वत्तीस कणय-वाणर-धयहो ८ छहिं उत्तमोज्जु अट्ठहिं तुरय घत्ता सच्चइ-हरि-भीमज्जुणहुं रह-छत्त-धयहिं सर लग्ग। दीहर-विग्गह विसम-मुह णं विसहर दुमेहिं वलग्ग ।। ताव धणंजउ तेण० विप्फुरियाणणु तेण०। कुविउ गइंदहो तेण० जिह पंचाणणु तेण०॥ तहो रण-रस-रहस-वसुद्धयहो ___सर-सहसु विसज्जिउ गुरु-सुयहो तें पाडिउ हरि-लंगूल-धउ वारहहिं तुरंग-चउक्कु हउ छहिं सारहि सत्तहिं दोण-सुउ मुच्छाविउ कह-वि कह-वि ण मुउ गुरु-णंदणु भणेवि ण घाइयउ किउ णिक्किउ ताम पधाइयउ वाहत्तरि पेसिय तेण सर जम-राएं णावइ आण-कर सेयांसें ताहं विणासु कउ एक्केक्कउ तिहिं तिहिं झत्ति हउ अवरेक्किं ताडिउ वच्छयले तणु छिंदेवि णिवडिउ धरणियले कह-कह-वि ण मुउ रहे उल्लरिउ णिउ सूएं कहि-मि राउ तुरिउ घत्ता तो अप्पुणु गंडीव-धरु जिंदइ हेट्ठामुहु होएवि। कवण लहेसमि सुद्धि हउं गुरु-पियर-पियामह घाएवि ॥ ८ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ रिट्ठणे मिचरिउ [४] दोणहो पासिउ तेण० किउ पराणउं तेण०। हउ मई पावें तेण० पंडु-समाणउं तेण० ॥ तो पुरिसु धिगत्थु धिगत्थु करु गंडीउ धिगत्थु धिगत्थु सरु चारहडि धिगत्थु धिगत्थु रणु जहिं हम्मइ वंधव-सयण-जणु जे मुक्क वाण णइ-णंदणहो अवरत्तउ सो अज्ज-वि मणहो भयवत्त-महत्तरु णिट्ठविउ पेयाहिव-पट्टणु पट्ठविउ जो वंदणीउ समु केसवहो तहो छिण्णु वाहु भूरीसवहो रोवाविय दूसल विहव किय संदेहे किवासत्थाम थिय महि होसइ सयल जुहिट्ठिलहो महु पाउ जयासुक्कंठुलहो णिक्कारणे रइआरोहणेण माराविय मुहि दुजोहणेण घत्ता रण-रंगंगणे पत्थु णडु किर हरिस-विसायहिं णच्चइ। ताम महीहरे मेहु जिह उत्थरिउ कण्णु जहिं सच्चइ।। पत्थु पधाइउ तेण० मत्त-गइंदु व तेण० तवणाणंदहो तेण । मत्त-गइंदहो तेण० ॥ ४ हरि भणइ वाम करे केसविय आयहे कहिं जाहि अ-मारियउ चंपाहिउ माहवे लहउ स-वि सच्चइहे समप्पिउ णियय-रहु उब्भिउ चामीयर-गरुड-धउ सुग्गीव सेण्ण घण पुप्फहय रणु जाउ सूर-सिणि-गंदणहुं छिंदत परोप्परु सरेहिं सर किं सत्ति ण पेक्खहि वासविय वीभच्छु समासए वारियउ विहिं एक्कु-वि एक्कहो वज्झु ण-वि थिउ दारुइ सारहि दुव्विसहु सव्वहो कुरु-जणहो जणंतु भउ सवलाह जुत्त तुरंग गय वहु-मग्गोवाहिय-संदणहुं णं चंद दिवायर करेहिं कर Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठसट्ठिमो संधि घत्ता गुणु दोहाइउ सच्चइहो हरि भीमज्जुणहं णियंतहं । कण्ण-धणुग्गय-पीडियहं को रक्खइ जीउ मरंतहं ।। अवरु सरासणु तेण० लेवि तुरंतें तेण०। विद्ध थणंतरे तेण० रोस-फुरतें तेण ०॥ ४ कण्णहो सव्वंगिउ भरिय सर णं कालहो-केरा आण-कर सारहि भल्लेण वियारिउ पेयाहिव-पुरे पइसारियउ चउ-भल्लेहिं तुरय-चउक्कु हउ तिहिं पाडिउ रहवर-कक्ख-धउ धणु छिण्णु भिण्णु देहावरणु णर वज्झु भणेप्पिणु पत्तु मरणु कुरुवइ स-रहेण ण वाहियउ सइणेउ ण केण-वि साहियउ तहिं अवसरे रहसुद्धाइयउ रहु लेवि सुमित्तु पराइयउ सो सिणि-णंदणहो समावडिउ दासारुहु दारुय-रहे चडिउ अत्थवणहो ताम पयंगु गउ कुरु दुम्मणु अवरहं जाहु खउ घत्ता मं लग्गेसहि दुव्विसहु धगधगंतु णहयल-घरहो। रवि कोव-पलित्तु पयावइणा णं घत्तिउ पच्छिम-सायरहो।। ८ ताम विओयरु तेण० कह किरीडिहे तेण० उम्मण-दुम्मणु तेण०। मसिवुण्णाणणु तेण०।। चंपाहिउ चावहिं छिण्णएहिं महु गालि-सहासेहिं दिण्णएहिं जं मुट्ठिए हणेवि ण मारियउ तं पई किर थुथुक्कारियउ तिह करु जिह तोडहि सिर-कमलु विससेणु ण जीवइ जेम खलु तो णिरु परिवड्डिय-मच्छरेण पच्चारिउ अंगराउ णरेण Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ रिट्ठणे मिचरिउ सय-वार वियत्तणे वि-रहु किउ णउ केण वि गालि-सएहिं लइउ जं सत्तु भीमु जं संभरहि महु कल्लहो कल्ल-कल्ले मरहि जं गुणु अहिमण्णहो छिण्णु पई मारेवउ तं विससेणु मई जइ आयह एक्कु वि णउ करमि तो चियहे वलंतिहे पइसरमि घत्ता ताम पसंसिउ महुमहेण पइं सरिसु अवरु को महियले। जो उज्जलहो जयद्दहहो सिरु खुड्डइ जियंतए कुरु-वले॥ [८] तो गंडीवेण तेण० जाउ विहत्तउ तेण । अक्खोहणियउ तेण० सत्त समत्तउ तेण०॥ णरु पभणइ थोत्तुगिण्ण-गिरु जं जउहरे चुक्क हुआसणहो जं खंडवे सुरवरे परिहविय जं कुरुवइ विग्गहे वावरिउ जं धरेवि ण सक्किउ दद्धरेहिं जं णिहउ जयद्दहु पइसरेवि तं सव्वु पसाएं तउ तणेण गय एवं चवंत चवंत तहिं अवरोप्परु दिण्णइं साइयइं कर-कमल-कयंजलि-पणय-सिरु जं पाडिय राह णहंगणहो जं कालकंज-वणे विद्दविय जं उत्तर-गोग्गहे उव्वरिउ एक्कल्लउ वहु-जालंधरेहिं अ-मणूसउं कुरुव-सेण्णु करेवि को जिज्जइ वलेण महु त्तणेण सो अच्छइ पंडव-णाहु जहिं अंसुवई स-हरिसइं आइयई घत्ता कहिं सच्चइ कहिं पवण-सुउ कहिं मेलावउ भायरहं कहिं अज्जुणु कहिं तव-णंदणु। पवियंभइ सव्वु जणद्दणु ॥ ताव णिरुज्जमु तेण० चत्ताओहणु तेण० । गुरु-थाणंतरु तेण० गउ दुजोहणु तेण०॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ अट्ठसहिमो संधि अहो ताय तुज्झु जइ णावडइ तो सिंधउ केम समावडइ वीभच्छु केम वले पइसरइ कडवंदणु सच्चइ किह करइ किह भिडइ भीमु मह भायरहं हय एक्कतीस एक्कोयरहं किह होइ विणासु वरूहिणिहे रण-मुहे सत्तहे अक्खोहिणिहे लोलंत पेक्ख सामंत-सय दोहाइय रहवर तुरय गय अम्हारउ जीवणु संगहहि भीमज्जुण-पक्खु समुव्वहहि पर-तक्कणेण पर-डंभणहो को गंदइ भिच्चें वंभणहो दुजोहण-दुव्वयणासि-हउ गुरुदेवु पडुत्तरु कोव-गउ घत्ता वहुअ वइरि एक्कल्लएण वंभणेण होवि मई मुक्किय । तुम्हेहिं सव्वेहिं खत्तिएहिं ते तिण्णि धरेवि ण सक्किय ।। [१०] णियय-हियाहिउ तेण० अवुहु ण वुज्झइ तेण०। पर णिक्कारणे तेण० दिवे दिवे जुज्झइ तेण०॥ विउरेण-वि तुहं [ण]-वि सिक्खविउ को णउ जो तेण ण दक्खविउ पहु हउ-मि हियत्तणेण कहमि भीमज्जुण-पक्खु ण उव्वहमि राहाहवे खंडवे कंज-वहे वंदि-गहे गो-गहे दुव्विसहे गंगेय-तिगत्त-महाहयणे भयवत्त-जयद्दह-णिट्ठवणे पंडवहं परक्कम दिट्ठ पई दुव्वयणेहिं विंधहि तो-वि मई रत्ति-द्दिउ वइरिहिं अभिडमि दुजोहण केम-वि णावडमि दूसासण-सउणि-कण्ण-चविउ लग्गइ ण महारउ सिक्खविउ विद्दवियइं अज्जु जाई वलइं आयई अहिमण्ण-दुमहो फलई घत्ता तो वुच्चइ दुजोहणेण पर जाम ताम पहरेवउं। जहिं असेस सामंत गय तहिं मइ-मि ताय जाएवउं ।। ८ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ ४८ [११] ताह-मि अम्ह-वि तेण० अज्जु ण अंतरु तेण०। होउ णिसारणे तेण० वइ एक्कतरु तेण०॥ जिम ताहं जिमम्हहं जाव जउ जिम ताहं जिम्हहं पाण गय जिम ताहं जिमम्हहं वज्जाई जिम ताहं जिमम्हहं वइसणउं जिम ताहं जिमम्हहं चामरइं जिम ताहं जिमम्हहं सयल महि जिम ताहं जिमम्हहं भूय-चिहि जिव ताहं जिम्हहं छत्तु धउ जिम ताहं जिमम्हहं रज्ज-मय जिम ताहं जिमम्हहं कज्जाइं जिम ताहं जिमम्हहं णीसरणउं जिम ताहं जिमम्हहं पुरवरई जिम ताहं जिमम्हहं परम दिहि जिम ताहं जिमम्हहं मरण-विहि ८ घत्ता तो वोल्लइ दोणायरिउ कुरुवइ विहिं एक्कु करेवउं । जिम विणिवाइय पंडु-सुव जिम लग्गेवि परए मरेवउं ।। [१२]] जाहि णराहिव तेण धीरु म छंडहि तेण०। वलई णियत्तिवि तेण० जुज्झु समंडहि तेण०॥ सण्णाहु ण मेल्लमि ताम पहु विणिवारिउ जाम ण असि-णिवहु दुज्जोहणु भीम-भुवंग-धउ सणि णावइ कण्णहो पासु गउ किह हम्मइ विद्धखत्तु भणउ जइ संमउ ण-वि दोणहो तणउ तो तिण्णि-वि भड पइसंति किह मयरहरु वियारेवि मयर जिह चंपाहिउ पभणइ थाउ मणे देव वि अ-देव पंडवहं रणे जगे णरहो धणुद्धरु को-वि णरु ण पुरंदरु जमु वइसवणु हरु ण-वि हउं ण-वि दोणु ण दोण-सुउ ण पियामहु णउ भयवत्तु हुउ सयल-वि पहरेवि णिय-थामे थिय विद्दविय के-वि के-वि वि-रह किय Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ तो - वि भिडेवरं खत्तिएण रयण-महाहउ आढवहि धत्ता अवज दइवायत्तउं । जा लिउ सई भुवण - त्तउ ॥ इय रिट्ठणेमि - चरिए धवलइयासिय सयंभुएव-कए असम इमो सग्गो || असहिमो संधि १० Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊणहत्तरिइमो संधि स-विलक्खेहिं सिंधव-मारणेण अज्जुण-वाण-णिसिद्धएहिं। णिसि-झुज्झु पडीवउ मण्णियउ कुरुवेहिं वेहाविद्धएहिं ।। ४ ८ रयणिहे उहय-वलई सण्णद्धई उहय-वलइं लग्गग्गिम-खंधई उहय-वलई वल-विक्कम-सारइं उहय-वलइं किय-हण-हण-कारइं उहय-वलई उब्भिय-धय-चिंधई उहय-वलइं अइ-वेहाविद्धइं उहय-वलई वाइय-वाइत्तई उहय-वलई कोवग्गि-पलित्तइं उहय-वलइं तोरविय-तुरंगई उहय-वलई चोइय-मायंगई उहय-वलइं परिहिय-सण्णाहई उहय-वलइं हल-वाण-सणाहइं उहय-वलई सुर-महिहर-धीरइं उहय-वलई वण-विहुर-सरीरइं उहय-वलई रण-रहसुब्भिण्णई उहय-वलइं हणंति अणिविण्णइं घत्ता तमु पसरिउ उद्धाइयउ रुहिर-महाणइ णीसरिय । जम-महिसहो फेणु मुयंतहो जीह णाई थिय दीहरिय॥ [२] उहओवास-वलइं तम-जालें पच्छाइयइं पडेण व कालें उहओवास-वलेहिं रउ धावइ रण-रक्खसु वस-लालसु णावइ उहओवास-वलइं रेल्लंती रत्त-तरंगिणि वहइ महंती उहओवास-वलइं रस-भरियइं णं रवि-विवई किरणावरियई उहओवास-वलइं रुहिरोल्लई णाई पलास-वणई पप्फुल्लई उहओवास-वलइं वहु-रुंडई ताल-मुंड-काणणइं व भंडई उहओवास-वलेहिं गय साडिय णं घण दइवें गयणहो पाडिय उहओवास-वलई सिय-छत्तई वसुमइ-गयइं णाई सयवत्तई Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ घत्ता तहिं अवसरे पंडव-वाहिणि कुवियएं कुरु-परमेसरेण । णलिणि णाइं सरे कुंजरेण ॥ समरंगणे सरेहिं विरोलिय [३] विद्धु विओरु दहिं पिसक्के हिं वहिं घुटुक्क अट्ठहिं अज्जुणु पंचहिं वासु उ विहिं वाणरु एक् जसे उरे ताडिउ तव - सुएण जम-भउंह- समाणउं अवरें मग्गणेण फणि-केयणु गुरु उत्थरिउ ताम सर- जालेहिं सोमय - सिंजय पंडव-मच्छेहिं घत्ता वेदज्जइ दोणु रणगणे णंदूसहु किरण - भयंकरु ढुक्कु संझ सहुं तइमिर जालें भुक्खालुएण महासम-संतें वक्कण करकरंति चउ-पासेहिं गुरु ठेक्कार मुक्क भल्लुक्केहिं कुद्दिउ वद्धावणउं करालेहिं गय-गज्जिएहिं चक्क - चिक्कारेहिं तिमिर - एहिं ण दीसइ अंतरु [४] तहिं संझा-समए व भयंकरे सहयारु जेम लूसिज्जइ सव्वेहिं पंडव - साहणेहिं । जरढ - दिवायरु णव-‍ घत्ता तिहिं तिहिं मद्दिपुत्त लल्लक्वेहिं छहिं सिहंडि सत्तहिं धट्टज्जुणु सच्चइ चउहिं विराडु णिरंतरु रायहो थरहरंतु धउ पाडिउ विहिं धणु छिण्णु दसहिं तणु-ताणउं मुच्छविउ रहे थिउ णिच्चेयणु सो-वि णिरुद्ध णवर पंचालेहिं अवरेहिं - मि कर - सर - - परिहच्छेहिं व-घणेहिं ॥ ऊणहत्तरिइमो संधि जीह पसारिय णं खय-कालें वे - वि वल वे कवल करतें किय वमाल गोमाउ - सहासेहिं वस-लालसेहिं पसएहिं दुक्कंतेहिं जोइणि-भूव-भाव-वेयालेहिं किं-पि सुव्व धणु-टंकारेहिं पर सद्देण भिडंति परोप्परु रणु-वि भयंकरु वाहिणिहिं । रु णिवंडतु जे जोइणिहिं ॥ ४ ८ ९ ४ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरित ४ आहउ कहो-मि अत्थि करवालें। सो णिवडंतु लइड वेयालें थवेवि महारहे-ईसासुट्ठए पउलिउ पहरणग्गि-अंगिट्ठए सोणिय-पाणु करतें चक्खिउ मिट्ठ भणेवि णिय-कंतेहिं रक्खिउ कहि-मि भडहो सिव उवरे विलग्गइ हियउ लेवि कंठुल्लए लग्गइ अहरु धरइ सरु करइ सुहाविणि पुरिसायंति णाई वर-कामिणि कहि-मि कवंधु णडइ परितुट्ठउं चंगउ जं रिउ-वयणु ण दिट्ठउ कहि-मि कवंधे णहंगण-गामिणि झत्ति परिट्ठिय रेवा सामिणि णाइ सवेयणेहिं व णियंगेहिं परुवइ भडु णाणाविह-भंगेहिं घत्ता कत्थइ असि-करहो कवंधहो उप्परि गिद्ध परिट्ठियउ। सामिय संमाणु सरेप्पिणु णं पडिवउ भडु उट्ठियउ॥ ८ तहिं रयणी-मुहे अक्खय-तोणे पंडव-वलु संताविउ दोणे आयस-तोमरेहिं ओसारिउ तम-पडलु व रवियरि [वि]णिवारिउ ता मंभीस देवि सिवि धाइउ णं गयवरु गयवरहो पराइउ दसहिं सरेहिं विद्धु किवि-कंतें तेण-वि तीसेहिं कोवु वहंतें गुरु-सारहि भल्लेण वियारिउ घुम्माविउ कह कह-वि ण मारिउ तो हय हणेवि सिविहे सोणासे सीसु छिण्णु सयवत्तु व हंसें तावरणंगण-पंकय-भिंगें विद्ध भीम वारहहिं कलिंगें तिहिं सारहि वच्छच्छलि ताडिउ विहलंघलु रह-कुव्वरे पाडिउ घत्ता उप्पइउ णहंगणु लंघेवि मारुइ रोसाऊरियउ। स-गइंदु कलिंगु पडतेण मुट्ठि-पहारें चूरियउ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ धुय - जयराय राहिव धाइय चामीयर - घंटालि-वमालिय मुक्क सत्त रवि-सुण सुधीमें तहिं अवसरे धयरहो णंदणु विद्ध तेण चउसट्टिहिं वाणेहिं सर-सएण पवि-पुत्तें खंडिय चडि पि दुक्कण्णहो संदणे धाइउ अहिमुहु वाण -पहारहं रणे दुज्जोहणहो णियंतहो सो भीमें पाय-पहारेण [७] घत्ता [८] कह - वि कह - वि परिवज्जिय- संदण हरिण व हरिणाहिवहो णिलुक्का पभणइ सोमयत्तु एत्थंतरे विणि महारह सच्चइ अज्जुणु तहो विक्कमहो एउ किं जुज्झइ किय-अवराह-महादुम- डालहो जप कल्लए णिसिहे ण मारमि पभणइ सच्चइ सव्वइ घाइउ सिणि- सोमवंस- वंसुब्भव अवरोप्परु थाहि भणेप्पिणु घत्ता सुरहं नियंतहं गयणयले । रहु पसारिउ धरणियले ॥ तहिं अवसरे रहवरहं सहासें दसहिं सहासेहिं पवर-तुरंगहं [९] विण्णि-वि मुट्ठि-पहारें घाइय अहिणव-कउसुममालोमालिय ताई जे पडिव आहउ भीमें दुम्म अग्गए थक्कुस - संदणु सेण - विहंगम - अणुहरमाणेहिं सारहि सद्धय छिंदिवि छंडिय विद्धु विहि-मि तहिं भड - कडवंदणे वसहु णाई णव - जलहर - धारहं णं वण-हत्थि समावडिय । सच्चइ- सोमयत्त भिडिय ॥ ऊणहत्तरिइमो संधि णासेवि गय गंधारिहिं णंदण जहिं दुज्जोहणु तेत्त ढुक्का सच्चइ जायव- लोयब्भंतरे तुहुं पहिलारउ वीयउ पज्जुणु सलु सहुं पुत्तु अखत्तें छिज्जइ फलु दक्खवमि अज्जु वहु- कालहो तो णिय- देहु णरइ पइसारमि तुहु मिण चुक्कहि उप्परि आइउ धाइउ कुरुवइ सव्वायासें सत्तहिं सयहिं मत्त-मायंगहं ४ ८ ९ ८ ९ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ रिट्ठणे मिचरिउ सउणि वि हयहं सहासें लक्खें वेढिउ सच्चइ मिलेवि विवक्खें धट्ठज्जुणेण ताम रहु वाहिउ कउरव-लोउ सव्वु अवगाहिउ सिणि-णंदणु भूरीसव-वप्पे णवहिं विद्ध तेण-वि तं मप्पें सोमयत्तु रहवरि वइसारिउ जत्तारेण कहि-मि ओसारिउ रण-वहु-गाढालिंगण-कामें तो हक्कारिउ आसत्थामें जायव थाहि थाहि कहिं गम्मइ जिम्व विहि एक हणइ जिम्व हम्मइ ८ घत्ता तो विण्णि-वि भिडिय परोप्परु परम-घोर-कडवंदणेण। रहु वाहिउ आसत्थामहो ताम हिडिंवा-णंदणेण ॥ [१०] परकलेण कालायस-घडिएं दुण्णिरिक्ख-रिक्खाजिण-जडिएं तीस णियत्तण-वर-विक्खंभे उब्भिय-गिद्ध-महद्धय-खंभे अट्ठ-महारहंग-संचारें रक्खस-अक्खोहिणि-परिवारें रुहिरारत्त पडाउग्घाएं आउ महारहेण भडवाएं खय-रवि-जुयल-समप्पह-णयणउ मंदर-कंदर-दारुण-वयणउ विजुल-लोल-ललाविय-रसणउ धूसरु धूम-वण्णु घण-कसणउ विउड-णासु लंवोडुइंतुरु पेट्टिसु(?) कविल-केसु भू-भंगुरु वियड-दाढु पडिभड-भेसंतउ सिल-पाहाण-विट्ठि-पेसंतउ ८ घत्ता रिउ गंधु-वि सहेवि ण सक्कियउ तहो रयणियरहो एंताहो। पर आसत्थामु ण कंपिउ घाय-सयाई-मि देताहो॥ [११] तो एत्थंतरे छाया-भेसिय रणे रक्खसिय विज विद्धंसिय विद्धु घुडुक्कएण वहु-वाणेहिं सयल-विहंगम-अणुहरमाणेहिं गुरु-सुएण अद्ध-वहे जे खंडिउ +++++++++++++ ताम समच्छरु अंजण-पावउ णं गज्जंतु पत्तु अइरावउ तेण महंतउ किउ कडवंदणु घाइउ मग्गणेहिं गुरु-णंदणु Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ तेण-वि छिण्णु विद्धु स-सरासणु लइयइं णिसियरेण फर- खग्गई घत्ता ते पायव पाहाण सिलीमुह छिंदेवि छिंदेवि थूणा - कण्णेहिं पाडिउ महियले अंजण - पावउ ताम घुडुक्करण हक्कारिउ गुरु-सुएण विहसेप्पिणु वुच्चइ जाहि वच्छ जइ चंगें कारणु पभणइ भीमसेणि करि वुत्तउं हउं सो जाउहाणु जमु वीयउ पुणु अण्णहिं रहवरे चडिउ । गय मुक्क खुरुप्पें खंडिय पायव पाहाण-पिसक्केहिं णं खय जलहरु ओवडिउ ॥ [१२] घत्ता अवरोप्पर पच्चारेप्पिणु पंडव - कउरवहं णियंतहं भीम - सुएण सरासणि मेल्लिय जं जं रणे रणिय पगासिउ हाथ व महीहरु भीम - सुण ण अप्पर दरिसिउ पवणत्थेण सो-वि विणिवारिउ ताम घुडुक्कएण दुव्वारइं गिरि - धीरइं सायर-गंभीरई महिस- वराह - रिक्ख - सारंगई [१३] धुरि स-तुरंगमु णिउ जम- सासणु ताई - मि कुतवसि वयई व भग्गई - णं वे गिरि एक्कहिं घडिय । भीम-दोण-णंदण भिडिय || ऊणहत्तरिइमो संधि णिय दोणायणेण हेट्ठामुह रिउ वच्छयले भिण्णु अण्णण्णेहिं सूडिउ वासवेण णं पावउ थाहि थाहि जिह णंदणु मारिउ परं समाणु महु भिडेवि ण रुच्चइ तो मेल्लि मेल्लिणिय-पहरणु जाहिताय र रहि णिरुत्तउं तासु पुत्तु जें घाइउ कीयउ सयल - वि गुरु-सुएण पडिपेल्लिय तं तो माया - जालु विणासिउ किउ गुरु- सुण सो-वि सय- सक्करु जलहरु होवि णहंगणे वरिसिउ लक्खु णिसायराहं तहिं मारिउ रूव कियई अणेय - पयारइं सरह - सीह - सद्दूल - सरीरइं सव्वई करेवि मडप्फरु भग्गई ८ ४ ८ ९ ४ ८ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ८ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता पहरंते आसत्थामेण जोइयउ दुजोहणहो मुहु। किं होमि ण होमि तुहारउं किंकरु णाह णिहालि तुहं ।। [१४] तो दुजोहणेण वोल्लिज्जइ अण्णहो सुहड-लीह कहो दिज्जइ गुरु-वयणेहिं गुरु-पुत्ते विसेसिउ सउणि किरीडिहे उप्परि पेसिउ किउ गुरुमित्तु णीलु किववम्मउ दूसासणु णिकुंभु जयवम्मउ णंदसेणु कमलक्खु पुरंजउ दिढरहु सल्लु सयप्पणु संजउ ओय-वि अवर-वि पडिवलु दिण्णा धाइय रण-रस-रहसुभिण्णा वेढिउ तेहिं अखत्ते जुत्तउ एक्कु अणेक्कहिं मिलेवि धणंजउ ताव विओयर-सुएण स-संदणु दसहिं सरेहिं विद्ध गुरु-णंदणु मुच्छा-विहलंघलु रहे पाडिउ णं गिरि हरि-कुलिसाउह-ताडिउ घत्ता चेयण कह कह-वि लहेप्पिणु पुणु पडिवारउ घाइयउ। लक्खिज्जइ णिसियर-लोयणहिं णं खय-कालु पराइयउ॥ __ [१५] पीडिउ जाउहाण-वलु वाणेहिं पंडव-सेण्णु मुक्कु णं पाणेहिं दिट्ठि-वि को-वि धरेवि ण सक्कइ एक्कु घुडुक्कउ पर परिसक्कइ णिय जोत्तारु वुत्तु लहु तेत्तहे वाहि वाहि रहु गुरु-सुउ जेत्तहे तो सहस त्ति तुरंगम खेडिय णरवर रक्खु दंड जिम मोडिय दारुणद्ध-चक्कासणि मुक्की णं खयकाल-रत्ति उवढुक्की करणु देवि गुरु-सुएण लइज्जइ णं जयलच्छि मंड कड्डिज्जइ णं णव-वहु वरेण परिणिज्जइ णं सरि सायरेण आणिज्जइ भुयहिं भमाडिवि तहो जे विसज्जिय विजु जेंव गयणंगणे गज्जिय घत्ता कल-किंकिणि-घंटा-मुहलिय चंदण-चच्चिय लद्ध-जय। हरि सारहि संदणु चूरेवि पुणु पायालहो असणि गय॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ ऊणहत्तरिइमो संघि [१६] जं संदणु मुसुमूरेवि मुक्कर धट्ठज्जुण-रहे चडिउ घुडुक्कर विहि-मि सरेहिं विद्ध गुरु-णंदणु तेण वि गरुयउ किउ कडवंदणु ताम विओयरु रहसुद्धाइउ पुत्तहो केरए विहुरे पराइड रह-सहसेच्छहिं(?) पवर तुरंगहं सत्त-सएहिं मत्त-मायंगहं तेण वि पडिगाहिउ णिय-णंदणु । दिण्णु स-तुरउ स-सारहि संदणु दोण-सुएण ताम सर लाइय रयणियरहं अक्खोहणि घाइय पेक्खंतहो तहो पंडव-राणहो गयणे चडंति ताम अत्थाणहो रहवर-णर-तुरंग-महि पाविय रुहिर-महाणइ-णिवह वहाविय पत्ता तो दोणायरियहो पुत्तेण विद्धु थणंतरे रयणियरु । उरु भिंदेवि सहु संणाहेण धरणिहे गंपि पइडु सरु॥ [१७] रहवरे घुम्मेवि पडिउ घुडुक्कर कह व कह व जीविएण ण मुक्कर ताम जुहिट्ठिलु मणे चिंताविउ महणावत्थ समुद्दु व पाविउ विहि-मि अणीयहिं दोणि विसेसिउ कुसुम-वासु सुरवरेहिं पदरिसिउ सच्चइ सोमयत्तु तहिं अवसरे कुविय वे-वि णं गह खय-वासरे भीमें अंतराले तो थाएवि विद्ध सिलीमुह दह उरे लाएवि तेण-विवाण-सएण विओयरु छाइउ णं घण-जालें महिहरु जायवेण दस विसिह विसज्जिय पुणु पडिवारी सत्ति पउंजिय सत्तहिं कप्पिउ कवउ खणंतरे अवरें पाडिउ हणेवि थणंतरे घत्ता रहु छंडेवि भीमहो पुत्तेण रिउ-मुहु रोसाऊरियउ। पेक्खंतहो कउरव-लोयहो परिह-पहारिहिं चूरियउ॥ [१८] चूरिउ सीसु वि सहु मत्थिक्के धरिउ विओयरु तो वल्हिक्के पंडु-सुएण णवहिं णारायहिं विद्ध थणंतरे णिब्भर-घायहिं Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ - विघित्त सत्ति उरे लग्गी मुच्छाविय मायरिसहो णंदणु गिरिवर- गरुय - भयंकर -काएं सहिं सरेहिं स-सूय स- संदण पंचहिं पंच - वि सउणिहे भायर ताव जुहिट्ठिलु भिडिउ तिगत्तहं सिवि - अंवट्टाभीरहं भोयहं घत्ता सर-1 - णियर- णिरंतर- भिण्णेण तव-तणउ पडिच्छिउ दोणेण दोण - जुहिट्ठिल भरिय रणंगणे विण्णि वि वावरंति लहु - हत्थेहिं वारुण-वायव- 1 - गिरि- अग्गेयहिं ताम धणंजण लहु-हत्थें सीसु भणेवि वंचिय- पउरंदरि सयल - वि वायवेण उड्डाविय विणि-वि वलई ताम णिद्दइयइं वण-वियणाउराई समसीणई [१९] घत्ता तेहए-वि काले पडिवण्णए पहरंति केवि पडिसद्दणे तामणरेण वुत्तु णिय-सारहि कण्णु दो दुज्जोहणु विवम् सउणि दूसासणु जायव लइ वस-कद्दमे खुत्तइं णिययाणीएं भग्गएण । णाई गइंदु महागएण ॥ नाग - कण्ण दुमे णाइ वलग्गी कह - विसमुह किय- कडवंदणु चूरिउ सीसु गयाणि-घाएं घाइय दह धयरट्टहो णंदण णं खय-दिवसहिं सोसिय सायर मद्द - खुद्द - मालव- सामंतहं सग - मुहं अवरहं मि अणेयहं [२०] पिक्खाविय गिव्वाण णहंगणे पउरंदर कउवेरेहिं अत्थेहिं तामस - सउर-सएहिं अणेयहिं दोणार लइ वंभत्थें धाइउ पुणु पंचालहं उप्परि अज्जुण-भीमेहिं मंभीसाविय सीय - वाय-तम-रय- पच्छइयइं मिहुण थियई णाई - खीणई मुएवि महारह हत्थि-हड । रुहिरे तरंत तरंत भड ॥ तुरिउ महारहु अग्गए सारहि जहिं गुरु-णंदणु रइयारोहणु जहिं विससेणु सल्लु स-सरासणु जाव रहह चक्कई पंगुत्तई ५८ ४ ८ १० ४ ९ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९ ऊणहत्तरिइमो संधि जाम तुरंगम सर जज्जरियई जाव हत्थि असि-खंडह सरियइं ४ जाम णिद्द वट्टइ सामंतहं पविरलु जाम सर्ल्ड वाइत्तहं जाम तमंधयारु णउ पेल्लइ रुहिर-महाणइ जाम ण रेल्लइ ताम भिडिउ धट्ठज्जुणु दोणहो अवरहो अवरु अणिट्ठिय-तोणहो घत्ता जिम्व अम्हेहिं मुव समरंगणे सत्तु व साहणेहिं मुएहिं। जिवं पर-वलु सयलु जिणेप्पिणु जयसिरि लइय सई भुएहिं॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए ऊणहत्तरिइमो सग्गो॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरिमो संधि चत्ताओहणु दुजोहणु ताम पासु गउ कण्णहो। पइ-मि सुमित्तेण जियंतेण अकुसल-कउरव-सेण्णहो॥ _ [१] ४ ८ अहो अमर-धराधर-धीर-चित्त रक्खेवा कुरु पइं परम-मित्त मारेवा पंच-वि पंडु-पुत्त सिणि-णंदण-हरि-वलएव-जुत्त मच्छाहिव वेइ व कइकया-वि पंचाल-वि सोमय-सिंजया-वि तं णिसुणेवि पभणइ अंगराउ किं करहिं जियंतें मइ विसाउ सुणु कुरुवइ सव्व णरिंद पवर पढमज्जुणु पच्छइ हणमि अवर परमत्थें पिसुणहं सिरई लेमि तउ वसुमइ णीसावण्ण देमि चंपाहिव-वयणेहिं किउ पलित्तु णं चित्तभाणु दुप्पवण-छित्तु मुहे दुम्मुह किह णीसरिय वाय जिह मारमि पंच-वि पंडु-जाय घत्ता एक्के पत्थेण लहु-हत्थेण सिंधव-वहि किय-तज्जिय। समर-भडुज्जय ते दुजय पंच-वि केण परज्जिय ॥ [२] भणु कहिं ण भगु तुहुं अज्जुणेण तिण-कट्ठ-णिवहु जिह फग्गुणेण दोमइहे सयंवरे इक्क-वार जिउ उत्तर-गोग्गहे तिण्णि-वार भीमेण भग्ग रह सत्त-वार छिण्णइं धणुहरइं अणेय-वार सिंधवहो पत्थे एक्क-वार सिणि-णंदणेण अण्णेक्क-वार वेयारिउ कुरुवइ वहुय-वार जिह मारमि पंडव दुण्णिवार तो वुच्चइ चंप-पुरेसरेण गज्जेवउ पाउसे जलहरेण अहि-भक्खणे गरुड-विहंगमेण मय-काले मत्त-तंवेरमेण करि-कुंभ-दलणे पंचाणणेण पडिवक्ख-समागमे भडयणेण Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ घत्ता खत्तिउ गज्जइ तहो छज्जइ जो जुज्झइ अवियारेण । वंभण भोयणे रणग-रंगणे तासु काई वावारेण ॥ तुहुं गुरु गुरु-णंदणु वंभयारि जुज्झेवि दस दिवस महा-रहेण दुज्जहणु दुहेव कियाहिसेउ सावेण सरेण वि जो णासंतु जयद्दहु धीरवेवि गुरु-सुउ अक्खोहणि हणइ जाम समत्थु संगाम - हरिण पई कवणु कज्जु किउ पभणइ तेरी लुहिय जीह [३] घत्ता पेक्खेवि माउलु गुरु- कोवालु लइउ खग्गु गुरु-पुत्तेण । किं भडवाण मरु घाएण पामि सीसु निरुत्तेण ॥ ताव तुरंतउ रवि - सुउ जेत्त अवरुप्परु उट्ठाउट्ठि जाम चंपाहिउ पभणइ एउ एउ जाणिवइवसपुर - पहेण घरे भमइ ण जुज्झहि सामि - कज्जे रुदीस इंतउ रहवरेण मई घइं मारेवउ समरे पत्थु पणवेप्पिणु पभणइ कुरुव-राउ अवरोप्परु किं भड - मच्छरेण [४] घत्ता पहरंतउ रणे तेत्तहे णिय - सामिय- वले दोहावयारि कि सुंदर कवणु पियामहेण पंडवहं मरते दिण्णु उ तेण - वि विहि- वइरिहिं दिण्णु हत्थु ४ माराविउ पत्थइ भेउ देवि पंचह-मि मज्झे किण्णेक्कु ताम जुज्झहि पारक्कउ होवि अज्जु मरु पाएं पेल्लिवि लुणमि जीह सत्तरिम संधि दुज्जोहण मज्झे पड्डु ताम परमेसरु मा धरि घाउ देउ फलु एत्तिउ वंभण-संगण कलहिज्जइ जं मणु सइय सज्जे भिडु गज्जहि जेम मडप्फरेण एहु अच्छइ उज्झिउ धम्म- हत्थु गुरु-पुत्त होहि आहवे सहाउ सव्वहो पहरेवउ सहु णरेण हय-गय-रह-सय-वाहणु । धाइउ पंडव - साहणु ॥ ९ ४ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ ६२ ४ वाहित्तु असेसहिं थाहि थाहि चंपाहिव रहवरु वाहि वाहि सव्वहं अणत्थहं तुहु-मि मूलु तुहुं वंधव-सयलहं हियय-सूलु तुहुं वीसु तुहुं जउहरु जलण-जालु __ तुहुं जूउ कय-गहु वसण-कालु तुहं गोग्गहे तुहं जि असंधि-कज्जु तुहं कउरव-लोयहो पलउ अज्जु णारायहिं छाइउ दुब्भेवणेवि(?) सहसत्ति णिवारिय तेण ते-वि रह खंडिय पाडिय णरवरिंद हय हय गय गय णागय गइंद दुजोहणु पभणइ पेक्खु पेक्खु पडिपीडिउ कण्णे जिह विवक्खु गुरु-तोय तो-विणावडइ तुज्झु देव-वि अदेव जइ देहि जुज्झु घत्ता जाहि समाउलु किं आउलु आयहो होहि सहिजउ। पई किव-कण्णहिं अपसण्णहिं कहिं धम्मु कहिं धणंजउ॥ तो दूरायड्डिय धणु-गुणाहं आभिट्ट जुज्झु कण्णज्जुणाहं दुज्जोहण-तवसुय-किंकराहं सुरवर-करि-कर-दीहर-कराह विणिवद्ध-गोह-ताणंगुलीहिं सुरपहु-वि मुक्कु कुसुमंजलीहिं कल-किंकिणि-मुहलिय-कडियलाहं आवरणावरिय-उरत्थलाहं विप्फुरिय-दिव्व-मणि-कुंडलाहं सर-णिवह-पिहिय-रवि-मंडलाहं णारायहिं विण्णि-वि वावरंति णं धारें जलहर उत्थरंति णं दाणेहिं मत्त महा-गइंद णं दीह-णहर-पहरेहिं मइंद णं सिंगेहिं महिस महा-रउद्द णं पवर-भुवंगेहिं वेण्णि रुद्द घत्ता णीवण्णहं णर-कण्णहं विहि-मि परोप्परु वाणेहिं । जाउ रणंगणु गयणंगणु छाइउ अमर-विमाणेहिं ।। ८ रवि-सुएण विद्ध समुहुत्थरंतु चउ तुरय वियारिय अजुणेण तिहिं फग्गुणु तिहिं गुणु तिहिं अणंतु धणु हत्थहो पाडिउ सहु गुणेण Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरिमो संधि सारहि-सिरु खुडिउ महा-खुरेण विणिभिण्णु कण्णु उरे तोमरेण किउ कलयलु अमरच्छर-जणेण रहे किवेण चडाविउ दुम्महेण तहिं अवसरे हय-गय-रह-वरेण्णु दुजोहणु धीरइ णियय-सेण्णु मा भज्जहु वइरि-महा-भएण हउं जुज्झमि समउ धणंजएण किर एम भणेवि उत्थरइ जाम गुरु-णंदणु पेरिउ किवेण ताम धरे धरे रक्खे वउ कुरुव-राउ मा होसइ आयहो रणे पमाउ घत्ता अम्हेहिं संतेहिं जीवंतेहिं पिहिवि-पालु किह धावइ। एक्के अंगेण सहु खग्गेण सयण-विहूणउं णावइ । [८] तो तेण धरिजइ कुरुव-राउ अप्पणु पहरेवउ कवणु णाउ वोल्लिज्जइ णर-परमेसरेण मई काइं जियतें महि-भरेण जो भण्णइ सण्णइ सो जि दुक्खु मुए मुए पाडिजउ वहरि रुक्खु वुच्चइ दोणायरियहो सुएण दुजोहण जुज्झमि तुह कएण जउ अवजउ विहि-आयत्तु होइ उप्पण्ण-णाणु किं अच्छि कोइ किं करहि जियंतेहिं कवणु कज्जु जइ भिडहि भडारा तुहुँ जे अज्जु दोणायणु एम भणेवि थक्कु भज्जंतु असेसु-वि वइरि-चक्कु दस दसहिं सरहिं पंचाल भिण्ण णं वलि रण-वणदेवयहे दिण्ण पत्ता णाविय-खग्गए वले भग्गए कड्डिय स-सरु धणुग्गुणु। आसत्थामहो उद्दामहो थक्कु एक्कु धट्ठज्जुणु॥ रहसे परिवारिय-संदणेण उवजीवहि वंभणु होवि खत्तु किह एहिं वरायहिं किंकरेहि हउं दोणायरियहो पलय-कालु गुरु-सुएण णीवारिउ दुहइं देंतु हक्कारिय दुमयहो णंदणेण पई घाइए दुरियागमणु कत्तु लइ जुज्झहो वे-वि महा-सरेहिं उच्चारेवि पेसिउ वाण-जालु णं अंविय-कंता-छोह देंतु Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ रिट्ठणे मिचरिउ धउ विद्ध महा-रहु किउ दु-खंडु सहु छत्ते पाडिउ कणय-दंडु रहु सारहि वारह अंगरक्ख किय सयल-वि गिरि जिह लुत्त-पक्ख सउ सएण तिण्णि तिहिं तिण्णि विद्ध पंचाल-वरूहिणि रणे णिसिद्ध ८ घत्ता दुमयहो णंदणु हय-संदणु ओसारिउ णिय-थामहो। ताम विओयरु स-सहोयरु धाइउ आसत्थामहो। एत्थंतरे अंतरे थिय णरिंद केरल कुणीर कोहव कुणिंद जालंधर जाउण जवण जट्ट खस टक्क कीर टंकण अरट्ट मेहल चिलाय पत्थल विसेस गंधार मद्द मागह महेस जउहेयाहीरह तामलित्त सग भरुस कच्छ अवर-वि विचित्त ४ गय-घाएहिं भीमें भग्ग सव्व दुप्पवण-पणोल्लिय-तरुवर व्व तो जय-सिरि-गहणुक्कंठुलेण हक्कारिउ दोणु जुहिट्ठिलेण पुणु पंचहिं विद्धु सिलीमुहेहिं सोणासें सत्तहिं फणि-मुहेहिं थिर-थोर-पलंव-महा-भुएण सर-सहसु विसजिउ तव-सुएण पत्ता मुक्कु तुरंतेण किवि-कंतेण धाइउ दुप्परियल्लउ। राएं थंभिउ पवियंभिउ रणु जिह पेम्मु णवल्लउ॥ [११] पडिलग्गु परोप्परु संपहारु रउ पसरिउ जाउ तमंधयारु णउ दीसइ जलु थलु गयण-मग्गु । ण धरत्थु ण सिविउवर-वलगु णारोहु ण रहिउ ण आसवारु अप्पएण पराएण णउ वियारु तो लइयउ कंचण-दीवियाउ सिहि-जाला-मालालीवियाउ वहु-गंध-तेल्ल-पव्वालियाउ रहे रहे दह दह पज्जालियाउ चउ चउ चतुरंगए सत्त सत्त वर-जामिणि वासर-सोह पत्त सण्णाहेहिं मणि-रयणुजलेहिं मुत्ताहल-मालेहिं णिम्मलेहिं पहरण-आहरण-सियंवरेहिं गय-दंतिहिं छत्तेहिं चामरेहिं Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरिमो संधि घत्ता तिमिरु अणंतउ उवसंतउ रणु पडिवण्णु असुंदरु । जाउ भिडंतहं सामंतहं दीवीवालु पुरंदरु॥ [१२] तहिं कालें तं वलु अज्जुणेण हक्कारिउ गुरु धट्ठज्जुणेण सउवलु सहएव-सहोयरेण वाहिय कालायस-संदणेण गुरु-णंदणु भीमहो णंदणेण कियवम्मु जुहिट्ठिल-पत्थिवेण मद्दाहिउ मच्छ-णराहिवेण चंपाहिउ णउलहो भायरेण विससेणु जण्णसेणे सरेण दुज्जोहणु वरिउ विओयरेण तम-पडलु व णं णहे दिणयरेण +++++++++++++ गंगेय-विमद्दणु किवहु कुद्ध पडिविंझें दूसासणु णिरुद्ध सच्चइ-भूरिहिं संगामु जाउ । पडिवारउ उट्ठिउ रय-णिहाउ ८ पडिवारि सोणिय-सरि पयट्ट पवहाविय रह गय तुरय थट्ट घत्ता ताम धणुद्धरु रणे दुद्धरु वाहोवाहिय-संदणु । पवर रहत्थहो तहो पत्थहो भिडिउ जडासुर-णंदणु ॥ [१३] स-रहसेण पघोसिय-कलयलेण पंचासेहिं विद्धु अलंवलेण सेयासें रोसवसंगएण रयणियरु समाहउ सर-सएण वाणासणु वाणहिं णवहिं छिण्णु तिहिं सारहि वच्छत्थले विभिण्णु धउ एक्के चउ-वि महा-तुरंग विहिं चक्करक्ख विहिं वे रहंग रहु मेल्लेवि धाइउ जाउहाणु असिवर-फर-रयण पउंजमाणु तो पत्थें खंडिउ मंडलगु हय-वम्म-रयणु णासणह लग्गु जं भग्गु णिसायरु अज्जुणेण तं विद्ध दोणु धट्ठज्जुणेण पंचहिं सरवरेहिं सिलासिएहिं चामीयर-पुंख-विहूसिएहिं Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता मच्छर-भरिएण आयरिएण पंचवीस सर पेसिय। धम्म-विवज्जिय गुण-वज्जिय णं कु-सीस परिसेसिय।। [१४] तिहि-मि धणु धट्ठज्जुणहो भग्गु सुकलत्तु जेम करे अवरु लग्गु वाणेण मरण-करणेण जाम । किर विंधइ कण्णे छिण्णु ताम किउ वारह खंडई आसुएहिं पंचहिं पंचहिं गुरु गुरु-सुएहिं विणिभिण्णु णवहिं मद्दाहिवेण वीसहिं सई कुरुव-णराहिवेण तिहिं दूसासणेण धणुद्धरेण पंचहिं सउवलेण व दुद्धरेण ते सव्वायामें धणु-गुणेण तिहिं तिहिं णिसिद्ध धट्ठज्जुणेण एत्तहे वि सउणि णउलहो पलित्तु वच्छत्थले कण्णिय-सरु णिहित्तु विहवलेण विमुक्क पिसक्क सहि दोहाइय मामहो चाव-लट्ठि घत्ता अवरें वाणेण भिडमाणेण रणे आयामिउ सउवलु। कहवि ण मारिउ ओसारिउ सूएण वण-विहलंघलु ।। [१५] तो भिडिय परोप्परु अमरिसेण महि-कारणे कुरुवइ-भीमसेण सर पंच मुक्क दुजोहणेण णव भीमें रिउ-मइ-मोहणेण छत्तीसेहिं कुरुव-णराहिवेण छच्चावई छिण्णइं पत्थिवेण वर गय पट्ठविय विओयरेण वंचिज्जइ कुरु-परमेसरण तो आसत्थामहो ढुक्कएण सो छिण्णु पलंव-महाभुएण वहु थूणा-कण्णहिं गुरु-सुएण ++++++++++++++ भड-भीयर-समर-कियायरेण सउ वाणहं मुक्कणिसायरेण दोणायणु रुहिरारुणिय-गत्तु मुच्छाविउ चेयण कहव पत्तु घत्ता पहउ पिसक्केण लल्लक्केण संसय-भावहो ढुक्कउ । कह-वि पयत्तेण णिउ जत्तेण मुच्छाविहलु घुडुक्कउ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरिमो संधि सुरधणु-धीरइं धणुवरइं लेवि पत्थेण मुक्क सर पंचवीस तो भोजक-वंसाहिवेण विद्ध कवरेण करिसिय-कम्मुएण पंचहिं पर देहावरणु भिण्णु विहलेण-विकाया-भंतिएण तहिं वीसहिं विद्धु अजायसत्तु उद्धाइउ सत्ति-सणाहु णाहु कियवम्म-जुहिट्ठिल भिडिय वे-वि णं भीम भुवंगम भुअण-भीस धणु छिदेवि सत्तहि पडिणिसिद्ध धणु दसहिं वियारिउ तव-सुएण उरे अवरेहिं पवर-सरेहिं भिण्णु धणु अवरु लेवि जउ-वंसिएण धुरि दसहिं खुरुप्पेहिं छिण्णु छत्तु कियवम्महो हउ दाहिणउ वाहु ८ घत्ता तेणवि तजिउ किउ कजिउ वइहत्थिए सर-जालेण। णडु स-संदणु तव-णंदणु गंथु जेम वहु-कालेण॥ __ [१७] जं णरवइ संसय-भावे छुद्ध तं चंपाहिवहो विराडु कुद्ध णारायहिं णवहिं थणंतराले विणिभिण्णु भयंकरे समर-काले तेण-वि तेहत्तरि-मग्गणेहिं धय-चामर-छत्त-वलग्गणेहिं विणिवारिउ सारहि णिहय वाह उरे भिण्णु वियारिय वाम-वाह मुच्छाविउ दाविउ दप्प-साडु णिय भिच्चहिं ओसारिउ विराडु तो रणु पडिलग्गु स-संदणाहं सहएव-दिवायर-णंदणाहं वित्थारिय-जगे-जस-मंडवेण सर वीस विसज्जिय पंडवेण हय विहिं पंचासिहिं रवि-सुएण सत्तरिहिं विद्ध णउलाणुएण घत्ता छिण्णु वरत्थेण रहु पत्थेण विप्फुरंतु सय-चंदउ। किउ अवलेवेण सहएवेण करे स-खग्गु वसुणंदउ ।। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ [१८] वसुणंदउ भग्गु स-मंडलग्गु तमि छिण्णु गयासणि मुक्क तेण पट्ठविय सट्ठि (सत्ति ?) सहसत्ति आय सहउ भग्गु थिउ जण्णसेणु वट्टंत तहिं संगाम - काले पंचालहो पंचहिं कवउ छिण्णु ओसारिउ ताव सिहंडि पत्तु हउ आसत्थामहो माउलेण घत्ता तेण वि ताडिउ तहो पाडिउ हत्थे ण तिट्ठइ खणे रिट्ठ किवहो धरंत-धरताहो । सव्वहो धणु-गुणवंतहो ॥ [१९] सहसति सत्ति पेसिय किवेण पडिविंधु ताम स-सरासणेण तेण-वि सोलहेहिं सिलीमुहेहिं कउरवेण वियारिय चउ तुरंग पायत्थ पधाइउ चंडवेउ र म परोपरु विहि-मि जाम सरपंच विसज्जिय माहवेण जावेण - तणु-ताणु छिण्णु स- ' घत्ता सत्तिए भिंदेवि सिरु छिंदेवि खयरवि तेण सइणेएण पुणु चक्कु भयंकर करे वलग्गु परिसेसिय असइ व सुपुरिसेण सा रवि- - सुएण किय विणि भाय णं पवर करेणुहे वर- करेणु विससे परिट्टि अंतराले णाराएं एक्के हियउ भिण्णु व सर विमुक्त किउ कहिं - मि जंतु पाऊण-सएं अण्णाउलेण जिय पंचहिं पंचालाहिवेण तिहिं हउ णिलाडे दूसासणेण जुवराउ णिवारिउ अहिमुहेहिं जत्तारु-वि हउ पाडिय रहंग पलयेक्क-चक्क-लल्लक्क-तेउ सिरि-संभव - भूरि भिड़ंति ताम दस भूरि भूरि कियाहवेण तेण वि तिहिं सच्चा हियइ भिण्णु रहहो पलोट्टिउ पाएण । गिरिहिं व दुमु दुव्वाण ॥ ६८ ४ ४ ८ ९ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरिमो संधि [२०] जं भूरि कयंतहो वयणे छुडु तं रवि-सुएण सच्चइ णिरुद्ध अवरोप्परु दस दस सर विमुक्क उरगमणहं णं उरगमण ढुक्क जम-भउंह-भंगुब्भीसणई विहिं विण्णि-वि हयई सरासणई चंपाहिउ पंचहि पडिणिसिद्ध विससेणु पडीवउ दसहिं विद्धु ४ भीसावणु हा-हे-सर्दु जाउ वोल्लाविउ कण्णे कुरुव-राउ धट्ठज्जुण-सच्चइ हणहुं वे-वि जं भग्गहुं मेइणि सयल लेवि दसहिं दसहिं सहासिहिं रह-गयाइं अण्णु-वि लक्खेण महाहयाई पट्ठविउ सउणि दुजोहएण सिणि-णंदणु वेढिउ णंदणेण पत्ता तो कुरु-णाहेण असगाहेण वुत्तु एम णिय-सारहि। जायउ जेत्तहे लहु तेत्तहे रहु महु केरउ सारहि ।। __ [२१] रहु वाहिउ सच्चइ दसहिं विद्धु तेण-वि वाणउइहिं पडिणिसिद्ध पुणु पंच सयई परिपेसियाई रह-उवगरणइं णीसेसियाई अवरेण सरासणु सरेण भिण्णु कियवम्म-रहे कुरुवइ चडिण्णु तो णरु णिरुद्ध सुवलंगएण हउ दहिं पीडिउ वउ सर-सएण वीसहिं णरेण गंधार-णाहु छहिं दूसहु दुप्पहु तिहिं सुवाहु दूसासणु तिहिं तिहिं उलुअ-णामु पंचहिं विणिवारिउ सउणि मामु तिहिं तिहिं असेस णरवइ णरेण सउवलु पण? सुय-रहवरेण छहिं वाणहिं दोणहो सहुं गुणेण धणु छिण्णु ताव धट्ठज्जुणेण । घत्ता गसिउ स-वाहणु कुरु-साहणु जण्णसेण्ण-सिणि-जाएहिं । णं विसमाणणु जक्खाणणु दुद्दमग्गि-दुव्वाएहिं॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० रिट्ठणे मिचरिउ [२२] तो कण्ण-दोण दुजोहणेण गरहिय असमत्ताओहणेण जइ तुम्हहिं रणु आढत्तु आसि ता हउं ण होंतु सव्वाहिलासि वरे एवमि एवमि दिण्ण पाण भूयह-मि ण लजहं भज्जमाण तहिं काले णियत्तिय-संदणेहिं विससेण-दोण-रवि-णंदणेहिं सइणेयहो लाइय थरहरंत दस दस वच्छत्थले वच्छदंत सउवलेण पंच कउरवेण सत्त अवरेहिं दुइ दुइ काल-पत्त सिणि-णंदणु सव्वेहिं पडिणिसिद्ध धट्ठज्जुण कण्णे दसहिं विद्ध धउ धणुवरु सारहि वर-तुरंग विणिवाइय अवर-वि किय सहंग ८ घत्ता वाण विहलंघलु पंडव-वलु भग्गु भिडंतेहिं पंडवेहिं । महिहे समग्गइं फर-कर-खगई घिवेवि सयं भुव-दंडेहिं॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए सत्तरिमो सग्गो॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इकहत्तरिमो संधि भग्गए रह-गय-वाहणे पंडव-साहणे णर-णारायण-मुक्कर। लोल-ललाविय-जीहहो सीहु व सीहहो कण्णहो भिडिउ घुडुक्कउ ॥ १ [१] भणइ अणीए भग्गे तव-णंदणु अज्जुण वाहि वाहि लहु संदणु पिययण पलयमाण गय-सारहि कुरुवइ अंगराय विणिवारहि कहइ अणंतु ण अवसरु अण्णहो वासवपुत्त-जायव करे कण्णहो ताम समत्थु-वि णरु ण पहुच्चइ आयहो समरि घुडुक्कउ मुच्चइ मायविउ वहु-मायहिं जुज्झइ सव्व-कुसलु सव्वत्थई वुज्झइ महुसूयण-उवएसें आएं तो पट्ठविउ जुहिट्ठिल-राएं लइ धणु चक्कु सूलु गय-खंडउ पंडव-लोयहो होहि तरंडउ जंपइ जाउहाणु मुहु जोएवि अच्छु णाह णिच्चिंतउ होएवि ८ घत्ता हउं समरंगणे मुक्कउ जमु जिह ढुक्कउं कुरु-समसुत्ती दावमि । संसय-भावे वलग्गी महि आवग्गी कल्लए पइं भुंजावमि । गजिऊण एवं तमीयरो धूमकेउ धूमयर-सत्थहो अक्क-चक्क-लल्लक्क-लोयणो . पलय-काल-पडिरूव-भीसणो चलण-लीढ-अट्ठय-वसुंधरो धाइओ भडो भीम-णंदणो णक्ख-चम्म-ओणद्ध-अवयवो णेमि-वलय-जव-जिय-विहंगमो भूरी-भाव-भूभाय-भीयरो काल-महाकालग्गि-दूसहो सव्वगासि-वडवा-मुहाणणो महण-पत्त-मयरहर-णीसणो उत्तमंग-उद्धंपियंवरो कडिओ पिसायहिं स-संदणो अद्ध-चक्क-चिक्कार-भइरवो भूरि-भार-भारिय-भुअंगमो (विलासिणी छंद) Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ माह कमर रिठ्ठणे मिचरिउ घत्ता णर-णारायण-रायहिं पेसिउ आएहिं पर-वले भिडिउ घुडुक्कर। णं हरि-हर-वंभाणेहिं तिहि-मि पहाणेहिं मंदरु सायरे मुक्कउ ॥ [३] गिरि-फुडण तडि-पडण- पडिरवेण किलिगिलइ रमछमइ णहु छिवइ महि कमइ रिउ ललइ घणघणइ पहरण अवरह इ वले मिलई अयरिसउ तणु करेवि धय-पडेहिं पडिणिलई मण-पवण-चल-गमणु खयर-वहे रयणियरु 'परिभमइ जउ जउ जे तउ तउ जे रय-णियरु रह-दलई गय-दलई भड लुणइ हय हणइ जउ जउ जे तउ तउजे घवघवइ रुहिर-णइ जउ जउ जे गयरुअइं तउ तउ जे पइसरइ जउ जउ जे वस वहइ तउ तउ जे रउकरइ जउ जउ जे पउ घिवइ तउ तउ जे रसरसइ जउ जउ जे रसरसइ तउ तउ जे अहितसइ तउ तउ जे विसु मुअइ जउ जउ जे जगु सुवइ जउ जउ जे रणे भमइ तउ तउ जे दिसि भमइ जउ जउ जे दिसि भमइ तउ तउ जे णहु णमइ (सव्व-लहु छंद) घत्ता वलइ गिलंतु घुडुक्कउ असणि व मुक्कउ धरिउ ण सक्किउ अण्णे। कायर मंभीसंतें थाहि भणंतें सरहिं पडिच्छिउ कण्णें ॥ १६ तो दुजोहणेण स-सरासणु चंपाहिवहो करहि परिरक्खणु णवर दिवायर-दूसह-तेयहो वाहि वाहि पेसिउ दूसासणु हिंडइ जाउहाणु अवलक्खणु कहि-मि पभाउ करेसइ आयहो Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ इकहत्तरिमो संधि ताम जडासुर-सुएण समक्खें कुरुव-राउ वोल्लाविउ रक्खें वणे णिवसंतु अतुलु माहप्पे जणणु महारउ आयहो वप्पे घाइउ जेण तेण रणे मुच्चमि हउं जे एक्कु तिहुअणहो पहुच्चमि हियवोवरि कर-पल्लव ढोएवि अच्छहि णाह णिहालउ होएवि कुरु-परमेसरेण मोक्कल्लिउ जाहि जाहि लहु हत्थुत्थल्लिउ ८ घत्ता भीम जडासुर-णंदण वाहिय-संदण दिण तूर किय कलयल। पंडव-कउरव-किंकर भुअण-भयंकर भिडिय घुडुक्कालंवल॥ वे-वि णिसायर समर-कियायर वे-वि रणुद्धय गिद्ध-महद्धय विण्णि-वि वियवर रहिय-वरंवर दुइ-वि भयावह पइसाविय-रह दइ -वि महोयर रिउ-जम-गोयर दुइ-वि धणुद्धर सुरह-मि दुद्धर वे-वि स-विक्कम सक्क-परक्कम दुइ-वि स-मच्छर तोसिय-अच्छर दुइ-वि दुराणण जिह पंचाणण दुइ-वि वलुद्धर जिह सुर-सिंधुर दुइ-वि स-मलहर जिह णव जलहर तो लल्लक्केहिं दसहिं पिसक्केहिं किउ हय-संदणु भीमहो णंदणु सो-वि पहरिसिउ धणु जिह वरिसिउ वि-रहु अलंवलु किउ विहलंघलु घत्ता वज-दंड-सम-सारेहिं मुट्ठि-पहारेहिं हणेवि परोप्परु पीसिउ । मंदर-खीर-समुद्दहं विहि-मि रउद्दहं णाई विमट्ठ पदीसिउ॥ १६ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ [६] दिव्वाउहेहिं सिल- पायवेहिं - कुलिसाचलेहिं असुरामरेहिं अवरेहिं तेहिं पहरंति दोहिं माहिं रमंति चलणेहिं तुरंति यणेहिं डहंति ड- भुएण तो दिढ - कवि किवाणु सिरु छिण्णु तासु [७] दुक्खवेवि खिवेवि सीसारविंदु रयणीयरु भीयरु सुड्डु जाउ अरुणच्छु दलु लहु लोहियासु संहारण तारण-सम-किरीडु भू-भाय- भयावह - भूरिभाउ धूमप्पह- कंस-मयंग - ताणु सोणिय - पुडिंग - चित्तलिय- चिंधु परिभमइ भमाडइ वइरि - सेण्णु व-हुयवहेहिं घण - वायवेहिं हरि-मयगलेहिं गरुडोरगेहिं +++++ पच्छण्ण होहिं णयले भमंति वयणेहिं फुरंति सिक्किणि लिहंति भीमहो सुण सिहि सिह- समाणु रयणीयरासु घत्ता जम-पडिविंवे लेवि घित्तु हइडिंवे रहवरे कउरव - रायहो । लइ लइ दुण्णय-दुम-फलु चक्खउ कुरु- वलु रस - विसेसु को आयहो ॥१३ पच्चारेवि खेरिवि कुरु-णरिंदु - रहु पेल्लिउ मेल्लिउ सीह - णाउ थोरहि गठि णिप्फरिस पासु दुज्जोहण - साहण - पाण- पीडु वारहय- रयण- परिमाण - चाउ सय- साम- तुरंगम- जुत्त-जाणु णं णिम्मज्जायउ पलय- - सिंधु मं भज्जहो वलहो वलंतु कण्णु ७४ - ४ १२ ४ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ धाइउ रयणियरु णरिंदहो पेल्लावेल्लि कर हं तो कणियार - कुसुम-दल-वण्णें रयउ घुडुक्करण मायावउ तरु - गिरि-सिल- पाहणहिं हत्थउ दिस - पमाणु सायर - गंभीरउ हय-वाइत्त-पवड्डिय-कलयलु अंगुराउ पर एक सहुं सीसक्केहिं सीसई छिण्णई कंपिउ आसवार स-तुरंग समाहय उवदुक्कएण कण्णहो अणि तेण वि णिसिद्ध घत्ता करि व करिंदहो जाउ रउद्दु रणंगणु । झुल्ला सुरहं णियंत हगणु ॥ [८] घत्ता थरहरिय-गत्तु भीमुब्भवेण रवि - सुएण छिण्णु गय भीयरेण कलहोय-वण्ण स- वि अदिहि देंति इकहत्तरिमो संधि लयउ परमु दिव्वाउहु कण्णें साहणु हणु हणु सद्दुद्दामउ वारुण-वायव- अग्गेयत्थउ विसहर - विसमु धराधर - धीरउ तं णिएवि आसंकिउ कुरु-वलु णिसियर - णियरु खुरुप्पेहिं कप्पिउ स- कवंधई तणु-ताणई भिण्णई सरह रहिय सारोह समागय माया-वलु जगडाविउ रणे विहडाविउ सरेहिं दिवायर - पुत्तें । लक्खण-लक्ख-विणासेहिं दोस - सहासेहिं कुकइ कव्वु जिह धुत्तें ॥ ९ [९] मग्गण-गण घित्त घुडुक्कएण उरु भिंदेवि पुणु महियले पट्ठ दोसायरु दसहिं सरेहिं विदु कह कह-वि हु धरणीयलु ण पत्तु सहसारु चक्कु मुक्कउ जवेण उवविसणु णाइं रणे सिरिहे दिण्णु लल्लक्क मुक्क रयणीयरेण संचारिम णावर णाग - कण्ण विणिवारिय असइ व पासु एंति ९ ४ ८ ४ ८ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता तो उप्पएवि स-संदणु भीमहो णंदणु वरसिउ विविहेहिं घाएहिं । णं परिवड्डिय-मलहरु जुय-खय-जलहरु धारा-णियरु णिवाएहिं॥ १० [१०] तओ सूर-पुत्तेण वाणेहिं भिण्णो हया आहया संदणो झत्ति छिण्णो विणासं णिया जाउहाणी कुमाया समुट्ठाविया अंगवंगेहिं घाया हिडिंवा-सुएणं पिसे दिव्व-अत्थं कयं वच्छदंतेहिं सव्वं णिरत्थं खणे अण्ण मायावलेवेण भीसें खणे वीस चालीस पंचास सीसें ४ खणे विजुला-लोल-लोलंत-जीहो खणे कुंजरो तक्खणे होइ सीहो खणे पास-पासे खणे दूर-दूरे खणे भूमि-भाए खणे ठाइ सूरे खणेगुट्ठमेत्तो खणे सेलु तुंगो खणद्धे विरूवो खणद्धे अणंगो खणे वाह-पढे खणे हत्थि-खंधे खणे छत्त-दंडे खणे चारु-चिंधे ८ घत्ता दुच्छिउ दिण्ण-दिउत्तें भीमहो पुत्तें थाहि थाहि लइ पहरणु । सामिहे जंण धरिजइ अवसरे दिजइ सीसें एत्तिउ कारणु ॥ [११] एम भणेवि वरिसिउ सय-वारउ णं जलहरु मुवंतु जल-धारउ दिणमणि-णंदणेण सर पेसिय पडिभड-कवड-माय णीसेसिय विप्फुरियाहवेण अरुणक्खें अवर माय उप्पाइय कक्खें जाउ महागिरि गिरि परिवारिउ वज-सरेहिं रवि-सुएण वियारिउ ४ जाउ गइंदु मइंदें तासिउ जाउ भाणु सुब्भाणे णासिउ जाउ जलणु जलहरेण कलंकिउ । जाउ मेहु दुव्वाएं वंकिउ जाउ जलहि मंदरेण विरोलिउ एम घुडुक्कर आहिंदोलिउ णाणाउहु णाणाविह-वाहणु णिय-रहे चडिउ अणिट्ठिय-साहणु ८ घत्ता तो पंचग्गि-समाणेहिं पंचहिं वाणेहिं कण्णहो छिण्णु सरासणु। तेण-वि तहो अग्गेयहिं सरहिं अणेयहिं चउदिसु दिण्णु हुवासणु॥ ९ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ इकहत्तरिमो संधि [१२] तो पलित्त साहणेण लोहिय-प्पसाहणेण भीमसेण-णंदणेण काललोह-संदणेण धूमवण्ण-विगहेण लोयणग्गि-दूसहेण कालरूव-भीसणेण मेह-णाय-णीसणेण भूरि-भाव-भावणेण दिव्व-माय-दावणेण विप्फुरंत-कुंडलेण ढक्कियक्क-मंडलेण दुद्धरासणी विमुक्त विजुलावली व ढुक्क अट्ठ चक्क सार-भूव देवय व्व दिण्ण-धूव जोयणाइं दो कराल एक्क-जोयणं विसाल तं णिएवि धायरट्ठ पुट्टि दित के-वि णट्ठ तो दिवायरंगएण दिव्व-मच्छरंगएण सजे भीम-णंदणासु लेवि मुक्क मंड तासु पत्ता स-धउ स-छत्तु स-चामरु स-धुरि स-हयवरु रहु संचूरेवि मुक्कउ। करणु देवि तहो थाणहो अंतरे वाणहो गउ केत्तहे-वि घुडुक्कउ॥१३ [१३] णं अयरिसणु हूउ परमप्पउ पडिवउ जाउहाणु किउ अप्पर रोक्कइ वलइ धाइ वहु-वेसेहिं सरह-सीह-सदूल-विसेसहिं मक्कड-महिस-मेस-मायंगेहिं करह-कोल-खर-रिच्छ-भुवंगेहिं वसह-तुरंग-रोज्झ-रुरु-चमरेहिं . मंकुण-दंस-मसय-दुभंमरेहिं सारमेय-गोमाउ-विरालेहिं भल्लुय-भूय-पेय-वेयालिहिं डाइणि-जोइणि-गह-चामुंडेहिं वायस-घोर-गिद्ध-भेरुंडेहिं तहिं अवसरे थिएण आसण्णे विजय-सरासणु कड्डिउ कण्णे दस सय संख सरासण पेसिय __माया-रूव-रिद्धि णीसेसिय Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ घत्ता सरहिं णिरंतर पूरिउ कह व ण चूरिउ णिसियरु माया-पाणें। अंतर-थाणे पइसइ कह व ण दीसइ णिक्कलु जिह विणु जाणे ॥ ९ [१४] ताम वग-णंदणो वइरि संसग्गिणा झत्ति संदीविओ परम-कोवग्गिणा भणइ दुज्जोहणु देहि आएसयं जा हिडिंवा-सुअंकरमि णीसेसयं एक्कचक्काहिवो जेण विणिवाइओ से सरीरुब्भवो एस संभाइओ भणइ कुरु-परिविढो जाहिं जाहिहुंअं णेहि जम-सासणं पंडुणंदण-सुअं ४ हरिसिओ रक्खसो वाहिओ संदणो अमर-वर-कामिणी-लोयणाणंदणो सरहसुद्धाइया दो-वि जायं रणं सुरवहू-जयसिरी-पाणिगह-कारणं पहय पडु-पडह दडि-संख-कोलाहलं विवुह-वहु-अंगणा-गीय-जय-मंगलं वच्छदंतासणी-भिण्ण-गयणंगणं एवमारंभियं तेहिं समरंगणं घत्ता घायालिंगण-सारउ कइयवगारउ करण-वंध-सय-भरियउ। मुच्छण-वेयण-भावेहिं विविहालावेहिं सुरयहो रणु अणुहरियउ॥ ९ [१५] तो ओणिद्दए णिद्दा-भुत्तई पंडव-कुरुवाणीयई सुत्तई णिसियर वावरंति विण्णि-वि जण विण्णि-विलोहियख-रत्ताणण विण्णि-वि भीम-वगासुर-णंदण विण्णि-वि काललोहमय-संदण विण्णि-वि गिद्ध-चिंध दप्पुद्धर वे-वि मयंध कुद्ध णं सिंधुर ४ विण्णि-वि घोर रूव धूमप्पह विण्णि-वि रिक्खचम्म सज्जिय-रह विण्णि-वि सायमुहेहि तुरंगेहिं विण्णि-वि हत्थि-चम्म-फरुसंगेहिं विण्णि-वि भूसिय कंसिय-कवएहिं विण्णि-वि धणुअवरेहि वज्जमएहिं विण्णि-वि सिल-धोयहि णाराएहिं विण्णि-वि खर-वाणेहिं साहाएहिं ८ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ णिएवि वगासुर - णंदणु जउण- विओयर - जायहो घत्ता किय कडवंदणु रज्जु ण-रायहो [१६] वल्लाव ताम भीम अणतेण तुह णंदणो घाइओ जाउहाणेण मायरिस पुत्तेण वडिय पयावेण खर-वाहणा रक्खसा थरहरंतेहिं थक्को त्ति आलाउहो तेण कुद्धेण तेण-वि तहो घाइया लउडि- दंडेहिं चुणं गयाओ गयाओ - विघाएहिं वोल्लाविता पत्थो उविंदेण घत्ता भीम - अलाउह-संगरि हरि-वयणंतरि भडु एत्तहिं वि स-मच्छरु णाई सणिच्छरु [१७] खउ करंतु दुज्जोहण - सेण्णहो सोमय - सिंजयाहं रक्खस - वलु तो हल्लोहल्लिहूउ जणद्दणु धाउ धाउ हउ जणणु तुहारउ सरह भइमसेणि हरि-वयणें विणि वि भिडिय जाउ कडवंदणु rिass कंपमाणु महि-मंडले दिणु घाउ संचूरिउ रहवरु घत्ता हे उप्पएवि पहरिसिउं थिउ अलि सामल - देहहो भो भो पधाव प्पधाव प्पयत्तेण तं सुणेवि कोवग्गि-जज्जल्लमाणेण आयड्डियायत्त - सोवण्ण-चावेण हय पंच पंचेहि दूवच्छदंतेहिं भीमस्स छिण्णु धणु गिद्ध - चिंधेण णं मत्त तंवेरमा उद्ध-सुंडेहिं भग्गा महालाण - थंभ व्व णाएहिं तु भायरोमारिओ क्खसिंदेण इकहत्तरिम संधि कुरुवइ - दिहि- संपुण्णउ | पंडव - वलु आदण्णउ ॥ रुहिरु पदरिसिउ मेहु व मेहहो अज्जुणु जिह जमु ढुक्कउ । कण्णहो वलिउ घुडुक्कउ ॥ ९ सच्चइ-जमल पधाइय कण्णहो णरु णरवइहि पर्वाड्डिय-कलयलु वुत्तु हिडिंवासुंदरि णंदणु दुज्जउ जाउहाणु मायारउ धाइउ धूमकेउ णं गयणें हउ परिहेण विओयर-णंदणु चेयण लहेवि लउडि किय करयले स-धउ स ४ -च्छत्तु स-सूयउ स - चामरु ८ वग- सुउ सज्झस-मुक्कउ । उप्पर तहो - वि घुडुक्कउ ॥ ९ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ [१८] तो तारा-मंडल-ढुक्कएण णासिय रिउ-माय घुडुक्कएण दरिसाविउ किउ कडवंदणेण पाहाण-वरिसु वग-णंदणेण समरंगणे कोव-वसंगएण तमि-सरिहिं छिण्णु भीमंगएण पुणु जुज्झिय सव्व-महाउहेहिं पुणु वर-तुरएहिं पुणु कररुहेहिं पुणु करण-विसेसेहिं दूसहेहिं पुणु कंठग्गह-केसग्गहेहिं लद्धावसरेण अलाउहासु असि दुहिय लेवि सिरु छिण्णु तासु सवडंमुहु दुजोहणहो घित्तु अण्णु-वि तिहिं रुहिरंजलिहिं सित्तु फलु एउ एहु रसु दुण्णयाहं दक्खवइ सव्व-वंधव-सयाहं धत्ता पेक्खेवि पंडव-किंकरु भिडिउ भयंकरु रह-गय-तुरय-वरेण्णइं। कंठ-परिट्ठिय-जीयइं पाणहं भीयई णट्टइं कउरव-सेण्णइं॥ [१९] रवि-सुएण ताम जिउ पंड-वलु। मंदरेण महिउ णं उवहि-जलु पंचाल मच्छ कइकय पवर सोमय सिंजय पंडव अवर ते दसहिं दसहिं मग्गणहिं हय । णं घण-धारें हय वसह-गय पर थक्कु घुडुक्कउ एक्कु जणु गजंतु णाई णहे पलय-घणु अवरोप्परु छइउ णिरंतरह वइहत्थिय-वच्छदंत-सरहं कण्णियहिं वराह-कण्णा-सयहिं । णालीयहिं चामीयरमयहिं तावणिहिं तुरंग चउक्कु हउ पुणु अंतर-ठाणहो भइमि गउ दस दिसु केत्तहिं-वि ण दीसियउ कउरवेहिं कण्णु आकोसियउ घत्ता ९ णउ जाणहं कह होसइ काई करेसइ णिसियरु अमरिस-कुद्धउ। जीविउ दुक्करु दीसइ कहो किर सीसइ कुरुवइ संसय-छुद्धउ॥ [२०] कुरु-परमेसरेण आदण्णे सयल दिसा-णिवंधु किउ कण्णे लोयण-गोयरु वाणेहिं छाइउ घोरु तमंधयारु उप्पाइउ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इकहत्तरिमो संधि तो विण्णाण-करण-गुण-जुत्ते विरइय माय हिडिंवा-पुत्ते अंवरु अरुणु करेप्पिणु मुक्कउ विजुल-वहलुजलिय-जलणुक्कउ ४ हा हे सर्दु महा-भयगारउ मुक्काउह तरु-गिरि-अंगारउ तिहि-मि के-वि ण परम्मुहिभूय वलेवि परिट्ठिय जिह जम-दूय कहिं-मि सिवउ विमुक्क-फेक्कारउ हुयवहु चित्त-णयण-पब्भारउ कहि-मि पणच्चियाइं हय-खंधइं णं सीसेहिं रिणु देवि कवंधइं घत्ता एम स-चिंधु स-वाहणु कउरव-साहणु चूरिउ सिल-पाणेहिं । दिणमणि-सुएण घुडुक्कउ सज्झस-मुक्कउ जिणेवि ण सक्किउ वाणेहिं।।९ [२१] णिवडंति फुरंतई संमुहाई गयणहो णक्खत्त-समाउहाई वोल्लंति परोप्परु कुरुप्पहाणु सुरवर पवहंति ण जाउहाणु कल-किंकिणि-माला-मुहलियंग हय कण्णहो केरा वर तुरंग अण्णहिं रहे चडिउ पयंग-जाउ जणु जूरिउ चूरिउ अंगराउ भो भाणव जइ तुह अत्थि सत्ति तो मेल्लेवि वासवयत्त सत्ति जा रक्खिय कारणे अज्जुणासु सा करउ हिडिवा-सुय-विणासु पट्टविय तेण हउ जाउहाणु वढंतु-वि गिरिवर-परिपमाणु आगासहो पडिउ पसारियंगु अत्थमिउ णाई वीयउ पयंगु घत्ता तेण सयं भू-पत्ते भीमहो पुत्ते अक्खोहणि संचूरिय। पंडु-सुयहुं भउ लाइउ पर-वलु खाइउ खगहं मणोरह पूरिय ।। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। घुडुक्कावह[-णामो इमो] इकहत्तरिमो सग्गो।। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विणिवाइए भीमहो णंदणे पेक्खंतहो कउरव - लोयहो बाहत्तरिम संधि - सुर- समर विढत्त महागुणेण सुर-गिरि - चंकमणे समुद्द- खोहे भू-भाय-कंपे णव-गह- णिवाए संतोसु तुज्झु कज्जेण केण तो कहि रहो णारायणेण ण घुडुक्कउ मुउ मुउ अंगराउ सिणि-दणु पभण देव देव सच्च हे कहिज्जइ महुमहेण [१] पंडु- सेण्णु थिउ दुम्मणउं । कण्हें किउ वद्धावणउं ॥ एक्काहणि वासव - दिण्णय तोमारई रेण मरण घत्ता जइ सा कह - वि समल्लिया । अहं एक्कु - वि वि जियइ ॥ ण [२] salaण वियत्तणेण माहवहं विहि- मिचवइ एवं जाम सिवि - सोमय - सिंजय - कासि - राय तो जमल- जुहिट्ठिल- भीमसेण जिह भंडणु तिह खउ खत्तियाहं पढमुत्तरु मुउ रक्खंतु सेउ कोजाइ अज्जु-वि विजउ काहं ववसाइहिं सोक्खई जेम होति वोल्लविउ माह फग्गुण दिवसयराणुग्गमे जम-विरोहे सुय - सोयाऊरिए धम्म- जाए किउ वद्धावणउं महंतु जेण आदिउ आएं कारणेण वि सत्तिए णिव्विसु अहि व जाउ अज्जुणहो ण उप्पर मुक्त केवं मोहक घित्त तेण अविमुक्क णरहो हियत्तणेण दोहो धाइय सामंत ताम पंचाल - मच्छ- कच्छय-सहाय वोल्लाविय कण्हें स-हरिसेण रोवेसहु कारणे केत्तियाहं अहिमण्णु घुडुक्कर पुणु अजेउ अवलंवेवि धीरम भिडहु ताहं स- मणोरहं तुम्हहं मिलिउ कोंति १ ४ ८ ९ ४ ८ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३ घत्ता धणु देउं को विण विद्धउ ध देणंगणे पहर तो सोयर - सुय - उक्कंठुलेण परमत्थु भडारा कहिउ एहु किउ अलयालंवल- मद्दणेण [३] परिवड्ढइ तेण महंतु दुक्खु सिरि- रामालिंगिय - विग्गहेण कायर- पुरिसहं अवसरु ण होइ गुरु पेक्खु पेक्खु हि वलइ खाइ तो धाइ सरह पंडु -पुत्त घत्ता गय गयहं तुरंग तुरंगमहं भीमज्जुण - जमल- जुहिट्ठिल [४] as - गोमुह - डंवर - पडह देवि पहरंति परोप्परु सुहड के - वि उण्णिद्दए णिद्दए घुम्ममाण सुरधणु-पयंड-गंडीव - हत्थु मं पहरहोस - तिमिरे संपहारे रय - रुहिर - तंरगणि- भग्ग-मग्गे विविहाउह - मंडिय - मंडवेहिं परिपुज्जिउ अज्जुणु सुत्त ते - वि को पहरंतउ णउ मरइ । सावण्णु वे - विकर || णारायणु वुत्तु जुहिट्ठिलेण महु आयहो उप्परि गरुअ - णेहु महु पेसणु भीमहो णंदणेण वज्जम तव-तणउणिवारिउ महुमहेण रोवंतु ण पावइ पिहिवि कोइ हरिणउलई हरिणाहिवइ णाई णं सीह विउज्झाविय पसुत्त को- विणको विरुक्खु ४ रह रहवरहं समावडिय । पंच- वि दोणहो अब्भिडिय ॥ बाहत्तरिम संधि - भिडिय कुरु- पंडव - वलई वे - वि खत्त - पहई पहरणइं लेवि विडंति किवाण - णिहम्ममाण खणु एक्कु णिवज्झहु भणइ पत्थु उ दीसइ किंपि तमंधयारे जुज्झेसहो ससहरे हे वलग्गे पडवण्णु वयणु कुरु - पंडवेहिं रह- सिविय तुरंगेहिं आरुहेवि - Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ घत्ता समरंगण-वहु-अवरुंडिउ अण्णेहिं धुणेवि विसाणई। सुहु सुत्त के-वि सिरि देप्पिणु करि-कुंभई उवहाणई॥ के-वि करिवर-कुंभेहिं सघणेहिं थिय लग्गेविणं कामिणि-थणेहिं पसमिउ कुरु-पंडव-संपहारु पवियंभिउ घोरु तमंधयारु परिपूरेवि सयल दियंतरालु णं वलइ गिलेवि सुहु सुत्तु कालु ससि अरुणु परिट्ठिउ ताम गयणे णं आमिस-गासु कियंत-वयणे थोवंतरे थिउ ससि-चिंधु धवलु । णं णहयल-सरे पप्फुल्ल-कमलु णं पुव्व-दिसावहु-सिय-कवोलु तो वसुह-वरंगण-गहण-लोलु दुजोहणु पभणइ ताय ताय तुह अवसरु मारहि पंडु-जाय कइयहं वि महारउ ण किउ कज्जु वइरिहिं जे समिच्छहि देवि रज्जु घत्ता तो वुच्चइ दोणायरिएण मं तुहं कुरुवइ एम भणे। को पंडव जोहेवि सक्कइ देव अदेव वि जाहं रणे॥ ८ हउं जिणेवि ण सक्कमि पंडु-जाय सई पहरहि जइ साहीण-हत्थ एक्केण-वि पत्थें करेवि वप्पु रक्खस-वहे गोत्तहो अंतराले जुज्झावहि एवहिं णिय-सहाय वेयारिउ जेहिं अणेय वार जइ कुरुव णिहम्मइ एक्कु जीवु तुहं घइं मारावेवि सयण साव णिय-सत्तिए जुज्झमि कुरुव-राय किं दोणु पडिच्छइ पंच पत्थ दरिसाविउ तह तह लोह-दप्पु भययत्त-जयद्दह-समर-काले दूसासण-सउवल-अंगराय विस-जउहर-जूयइं किय-णिवार तो होज ण होज्ज व जंवुदीउ गइ कवण लहेसहि पिसुण-भाव ८ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाहत्तरिमो संघि घत्ता मई अज्जु कल्ले सामंतेहिं तइय-कण्ण-दूसासणेहिं। मरिएवउ दिवसे चउत्थए सउणि-सल्ल-दुजोहणेहिं ।। सव्वसाइ-विजय-उक्कंठुलेण सयमेव सहिज्जउ जासु विद्ध तो दूरत्थेण-वि रवि-रहेण जामिणि-अवसाणे विलीणु चंदु दडि-काहल-संख-मुइंग देवि वायरणहं मिहुणहं अणुहरंति जिह ताइं तेम गुण-विद्धि णेति जिह ताई तेम णं कंपिराई वहु-एक्क-दु-वयण-पयंपिराई तो विमलइ थियइ दियंतराइ भुंजेवउ रज्जु जुहिट्ठिलेण दुजोहण एहु परमत्थु सिद्ध णवणीय-पिंडु जिह हुयवहेण गउ गिलेवि माणु णक्खत्त-विंदु सु-विउद्धई कुद्धइं वलइं वे-वि जिह ताई तेम सर संभरंति जिह ताई तेम कहु दिहि ण देति जिह ताई तेम किरियावराई जिह ताई तेम पडिवावराई +++++++++++++ घत्ता उययरि-सिहरे रवि उग्गउ दीसइ पंडव-कुरु-णरेहिं। मा मुज्झहो केत्तिउ जुज्झहो णाई णिवारिय णिय-करेहिं ।। ११ [८] रवि-उग्गमे भिडियइं वलई वे-वि गय गयहं तुरंगहं तुरय देवि रह रहहं महाधय धयवडाहं रण-रस-रहसुब्भड भड भडाहं रउ पुणु वि समुट्ठिउ तेत्थु काले थिउ णाई णिवारिउ अंतराले जइ धावहो अणियहो अणिउ देवि तो गिलमि पंडु-कुरु-वलइंवे-वि अण्णेत्तहे उहिउ पहरणग्गिणं विहि-मि अणीयहं करइ लग्गि मं मुज्झहो जुज्झहो सामि-कजे पाइक्कहं संपय एत्तिय ज्जे जं रण-मुहे जय-सिरि पासु एइ सुर-वहुय मरंतहं सवसु देइ ससि-फलिहे लिहिज्जइ णियय-णामु पहरिज्जइ केम ण जाम थामु ४ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता अण्णेत्तहे वहइ रणंगणे रुहिरहो णइ भीसावणिय। ललललइ लोल लालाउलिय जीह णाई कालहो तणिय॥ [९] ८ । तहिं तेहए दूसहे दुण्णिवारे कुरु-पंडव-साहण-संपहारे हरि-भीमहिं पेरिउ सव्वसाइ दुम-दूसलएवहं वढि णाई किं अच्छहि वड्डिय-विक्कमाई विणिभिंदइहि वूहई गिरि-समाई उद्दीविउ पुणु गंडीवधारि भुक्खिय-कयंत-वयणाणुकारि लक्खिजइ णउ वि रयंत-थाणु णउ दिट्ठि-मुट्ठि-संधाणु वाणु णिवडंति समच्छर गय-तुरंग सामंत महा-सर-पूरियंग विणिभिण्णइं जूहइं अज्जुणेण णं अवगुण-सयई महागुणेण आवट्टइ फुट्टइ भमइ सेण्णु णं उवहि-सलिलु मंदर-णिसण्णु घत्ता परिसक्कइ वइरि वियंभइ सधणु धणंजउ जहिं जे जहिं। लक्खिजइ समर-महोवहि रुंड-णिरंतरु तहिं जे तहिं । [१०] एत्तहे रणु कुरुव-धणंजयाहं एत्तहे सुर-सोमय-सिंजयाहं एत्तहे-वि विओयर-रविसुयाह दुजोहण-णउलहं सोणुयाह एत्तहे वि दोणु दूसहु पराहं दिवसयरु व गिंभे महीहराहं जोयणहं ण तीरइ भड-सएहिं पंचालेहिं मच्छेहिं कइकएहिं तो तवणीय-तणु-ताण-गत्त हय दोवइ-तायहो तिण्णि पुत्त तिहिं भल्लिहिं सीसई तोडियाई कमलई व मराले मोडियाई तो धाइय दुमय-विराड वे-वि कोवंडई भू-भंगुरई लेवि समकंडिउ खंडिउ छत्त-दंडु तणु-ताणु ताहं किउ खंडु खंडु घत्ता विहिं भल्लिहिं विहि-मिणरिंदहं छिण्णइं सिरई स-कुंडलई। विहिं विहि-मि विसहर-फुट्टेहिं णाई णिरुद्धई सयदलई॥ ८ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ बाहत्तरिमो संधि ४ धट्ठज्जुणु भीमें वुत्तु एम हय जण्णसेणि तुहुं जियहि केम पुत्तहो पुत्तत्तणु एत्तिउं जे जं वहरि णिहम्मइ वइरि-पुंजे उच्छोहिउ तेण वि पंडु-पुत्तु किं णिहए घुडुक्कए जियहि जुत्तु हउं दोणहो तुहुँ कण्णहो पयट्ट तं णिसुणेवि मारुइ रणे वियट्ठ गउ तेत्तहे जेत्तहे अंगराउ विसमाहउ विहि-मि महंतु जाउ तिहिं सरेहिं थणंतरे भिण्णु कण्णु विहलंघलु कह-विण महि पवण्णु सर-जुज्झु फिट्ट गय-जुज्झु लग्गु रह-कुव्वरु एक्केक्कहो जे भग्गु रविसुय-भुय-जुयल-गलत्थिएहिं पावणि णिसिद्ध वइहत्थिएहिं घत्ता उरे पित्त सत्ति जत्तारहो णिहय तुरंगम वि-रहु किउ। उठेवि णह-लंघण-करणेण णउल-महारहे भीमु थिउ॥ रहु ढोइउ भीमहो अवरु जाम दुजोहणु णउलहो भिडिउ ताम पंडवेण णिवारिउ सरवरेहिं उण्हालउ णं णव-जलहरेहिं सहएवं दूसासणु णिसिद्ध तहो सारहि कंठ-पएसे विद्ध सिरु खुडिउ ण जाणिउ कउरवेण हय खंचिय जंत महा-जवेण पडिवारउ भिडइ ण भिडइ जाम दोणज्जुण-रणु पडिवण्णु ताम रह-मंडल-मग्गेहिं संचरंति दिव्वत्थेहिं विण्णि-वि वावरंति जं कुरु समरंगणे घिवइ हत्थु तं तेण जे पडिवउ हवइ पत्थु दुद्दम-दणु-देह-विदारणाइं णिट्टवियइं सव्वइं पहरणाई हम्मंतु वि हरिसिउ वद्ध-णेहु जगे धण्णउ हउं जसु सीसु एहु घत्ता धट्ठज्जुणु रहवरु वाहेवि भिडिउ ताम दूसासणहो। पज्जालिय-जाला-मालहो जलहरु णाई हुवासणहो॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ [१३] दूसासणु दुमय-सुएण भग्गु कियवम्मु णवर पहरणहं लग्गु एत्तहे आढत्ताओहणेण वुच्चइ सच्चइ दुजोहणेण डज्झउ धिगत्थु एहु खत्त-धम्म सहुं पइ-मि करेवउ कूर-कम्मु होतउ आसि महु परम-मित्तु पहरेवउ एवहिं मई णिरुत्तु सिणि-णंदणु पभणइ वद्ध-रोसु खत्तियहं रणंगणे क्वणु दोसु छुडु साउहु संमुहु थाउ को-वि हम्मइ गुरु-पुत्तु सहोयरो-वि अवरोप्परु ए आलाव जाम राहेय-भीम पडिलग्ग ताम किउ मारुइ वि-रहु वियत्तणेण तव-णंदणु भणइ हियत्तणेण लहु धावहु धाइउ भीमसेणु चंपाहिउ दीसइ भीम-सेण्णु सामंत पधाइय भग्गु कण्णु दोणायरिएण-वि पंडु-सेण्णु घत्ता सय पंच हयइं पंचालहं सट्ठि सयई पुणु सिंजयहं। दस दंति-सहासई मारेवि धाइड भीम-धणंजयहं ।। _ [१४] तो जमल करेप्पिणु चक्क-रक्ख तोसावेवि किण्णर-सिद्ध-जक्ख धट्ठज्जुणु दोणहो समुहु ढुकु णं गहु णिय-थाणंतरहो चुक्कु णं धाइउ केसरि कुंजरासु णं विजु-पुंजु धरणीहरासु णं विणया-णंदणु विसहरासु णं गहकल्लोलु दिवायरासु पच्चारिउ दुमयहो णंदणेण कहिं जाहि थाहि सहुं संदणेण हउं पलय-कालु उप्पण्णु तुज्झु जिह हउ जणेरु तिह देहि जुज्झु तो एंतु पडिच्छिउ दियवरेण सुरसरि-पवाहु णं सायरेण परिभमिय रहेहिं हेमुज्जलेहिं अब्भंतर-वाहिर-मंडलेहि घत्ता वसुदाणु ताण थिउ अंतरे तासु वि तोडिउ सिर-कमलु। पहरंतहं गुरुण णिहम्मइ मणे आसंकिउ पंडु-वलु।। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९ [१५] अंगिरस -: -सरासणु करे करेवि पंचाल महारहु रणे विहत्तु स-धयग्गु स-चामरु छिण्णु चाउ करे स-सरु सरासणु अवरु लेवि वेहाविद्धण जं जं धट्ठज्जुणु धरइ धम्मु आसंकिय पंडव एहु अवज्झ हउ आसत्थामुल्लवहु एम जं वोल्लिउ पंकयणाहेण पडवण्णु सव्वु तं सव्वेहिं घत्ता मालव- परमेसरु इंदधम्मु सो भीमें भीम - परक्कमेण हउ आसत्थामु धरत्ति पत्तु थिउ उम्मणु दुम्मणु कलसकेउ मुच्छा-विहलंघलु महि पवण्णु पत्तियइण कासु-वि णाम-भंतु किं सच्चउ आसत्थामु णत्थि महुमहेण वि दिज्जइ कण्ण-जाउ तो अलियालाव- पहावेण रहु भरिउ जुहिलि - केरउ दोणायरिय-विणासयरु । एक्कु मुएप्पिणु णवर णरु ।। [१६] घत्ता तो धाइय वाणासणई लेवि संजमियाणिज्जिय जमल तोणु [१७] वर वच्छदंत सर वीस लेवि ww स- तुरंगु स सारहि सायवत्तु किउ दुमयहो णंदणु हय-पयाउ गुरुविद्धु थणंतरे आहसेवि दोहाइउ कलस - महाधएण तं तं छिंदइ गुरु लहेवि जम्मु हरि कहइ करहो उवएसु मज्झु णिय-चावलट्ठि परिहरइ जेम गुरु- वहकरणुक्कंवलई । महिहे चउद्दह अंगुलई ॥ तो तणउं महा-करि कूर-कम्मु धुप- केसर - केसरि - विक्कमेण जाइ हुदणु रणे समत्तु धणु छंडिउ पंडव - पलय - केउ कह कह-वि समुट्ठिउ लद्ध-सण्णु तवणंदणु पुच्छिउ सच्चवंतु पहु पभणइ घाइउ णरु ण हथि महिहरेण णरिंदहं कवणु पाउ बाहत्तरिम संधि पारावयास - सोणास वे - वि पवियंभइ रुंभइ पुरउ दोणु ४ ८ ९ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ वहु-रण-भर-धुर-उद्धरण-खंधु रहु चूरिउ करेवि रहंग-वंधु गय मुक्क सिहंडिहे भायरेण स-वि छिण्ण खुरुप्पे दियवरेण कइकेयण-सालु वसुंधरत्थु धट्ठज्जुणु ढुक्कु फरासि-हत्थु णिय-रह-धुर-तुंडेहिं पाउ देवि पेक्खंतहं सेण्णहं भिडिय वे-वि किवि-कंतें पारावय-णिहंग सत्तिए भिंदेवि पाडिय तुरंग वसुणंदउ सर-लक्खेण भग्गु वइहत्थिय-सहसें मंडलग्गु घत्ता सरु अवरु लेवि किरि मारइ ता सुहडहं कडवंदणेण । अद्ध-वहे जे किउ दस-खंडई दसहिं सरेहिं सिणि-णंदणेण ॥ [१८] ८ किव-कण्णेहिं तो सच्चइ णिसिद्ध धट्ठजणु दोणे पत्तु विद्ध एत्तहे-वि मुवंतें सर-सयाई खत्तियहं वीस सहसइं हयाई णरवइहिं लक्खु कलसद्धएण अक्खोहणि णिहय सवाय तेण गयणंगणि हक्कारंति देव गइ कवण लहेसहि हणेवि देव संघारहि गुरु केत्तिय विरोहि वंभुत्तरे सग्गि सुरिंदु होहि रहु ढोइउ ताम विओयरेण वाहिउ पंचालि-सहोयरेण धणु अवरु लेवि वहु-अमरिसेण विणिहय वसाई सग सूरसेण(?) पंडवेहिं पसंसिउ जण्णसेणि पई मुएवि अवरु को जस-णिसेणि घत्ता उरु भिंदहि लहु सिरु छिंदहि कुद्धउ भीमसेणु भणइ। पुत्तेण वि तेण किं जाएण जो ण-वि जणण-वइरु हणइ ॥ [१९] तो कीयाकुल-कडवंदणेण अक्कोसिउ गुरु हरि-णंदणेण अहो वंभण सलहिय-खत्त-धम्म कहिं सुद्धि लहेसहि पाव-कम्म पंडवहं हरेवि महि कुरुहुँ देवि वहु जीव-सहासहं सिरइं लेवि जसु कारणे रणे पहरणहं लगु सो आसत्थामु वलग्गु सगु हणु हणु जइ पच्चुज्जिएवि एइ हणु हणु जइ जीविउ जमु ण णेइ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हणु हणु अजरामरु जइ सरीरु सुय-सोय-परव्वसु भग्ग-घोणु वोल्लाविय कउरव करहु जुज्झु बाहत्तरिमो संधि हणु हणु परलोयहो जइ ण भीरु णिय जोगब्भासे पइडु दोण्णु छंडियई वरत्थई कहिउ गुज्झु ८ घत्ता उक्खंति-कालु महु वट्टइ एवहिं आयाउ धुउ मरणु। जो सव्वहं पासिउ वड्डमउ सो देवाहिदेउ सरणु॥ [२०] जो तिहुवण-मत्थए किय-णिवासु परिगलइ पाउ णामेण जासु जसु आण-वडीवा सयल देव जसु तिण्णि-वि लोय करंति सेव जो थुइहिं थुणिजई सयल काल । णमिएहिं णमिज्जइ णाम माल ण मइज्जइ जो पंचिंदिएहिं वंदिजइ सुरवइ-वंदिएहिं भाविज्जइ जो वहु-भावएहिं ण विमुच्चइ सोक्खेहिं थाइएहिं परिचिंतिउ सो देवाहिदेउ उक्कत्ति करेवि गउ भूमि देउ तेयमउ सिहि व जज्जल्लमाणु वंभुत्तर-सग्ग-वलग्गमाणु लक्खिज्जइ तवसुय-संजएहिं किव-पंकयणाह-धणंजएहिं घत्ता तहिं अवसरे दुमयहो पुत्तेण णरहो धरंत-धरताहो। सिरु छिण्णु सयं-भूव-खगेण दोणहो जीविय-चत्ताहो॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। [णामेणं दोणवहो] बाहत्तरिमो इमो सग्गो॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेहत्तरिमो संधि दोण-दिवायरे अत्थमिए थिउ जगु जे सब्बु अंधारउं। पंडव-वले वद्धावणउं दुजोहण-वले कूवारउ॥ कउरव-साहणु सुण्णु तेण तेण चित्तें सोह ण पावइ तेण तेण चित्तें गुरु-परिवज्जिउ तेण तेण चित्तें गह-कुलु णावइ तेण तेण चित्तें। (जंभेट्टिया) गंगेय-गुरुज्झिउ कुरुव-वलु णं णयण-विवज्जिउ मुह-कमलु णं कामिणि-जोव्वणु पडिय-थणु णं चंदाइच्च-चत्तु गयणु दुजोहणु मुक्क-कंठु रडिउ । हा अज्जु भाणु गयणहो पडिउ हा अज्जु निरंजणु जरेण मुउ ++++++++++++ हा अज्जु पुरंदरु दुखियउ हा अज्जु पयावइ भुक्खियउ हा अज्जु महा-समुद्दु सुसिउ हा वजमओ विक्खंभु घुणिउ हा अज्जु मेरु थाणहो चलिउ हा अज्जु पिसायहिं जमुच्छलिउ हा कुम्म-कडाहु अज्जु फुडिउ हा अज्जु कयंतहो सिरु खुडिउ घत्ता अज्जु दिसा-वहु दुम्मणिय महि वि(हव?)रणंगणु सुण्णउं । दुजोहणेण रुवंतएण कुरु-सेण्णु असेसु-वि रण्णउं ।। [२] कुरुहुं अमगंलु तेण० पभणइ संजउ तेण०।। जाहं विरुद्धउ तेण० स-धणु धणंजउ तेण ०॥ वेयारिओ सि तुहं तिहिं खलेहिं रविसुय-दूसासण-सउवलेहिं विणिवारिउ ण किउ महु त्तणउ गंगेयहो ण हु विउरहो तणउं Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३ तो कम्मो केरउ लडु फलु गुरु5- वंधव सयणहं करेवि खउ अच्छेवर णरए अहोमुहेण दुक्ख विसम विसतएण वइतरणि-तरंगिण - उत्तरणे तिल - कुसुम-समाणइं जहिं घरइं घत्ता तुहुं वेयारिउ वसुमइए ल-हुसहं वलि - रामहं [३] तो खलियत्थई तेण० भग्गइं सव्वई तेण धट्ठज्जुण- सच्चइ-चप्पियइं मारुय-गय-घायहिं चूरियई st दुज्जोहण - साहणई तहिं अवसरे आउ अनंतकम- -कम-कंपाविय-धरणियलु गुरु-णंदणु संदणु धरेवि थिउ किय दोण - दिवायरु अत्थमिउ कुरुवाहिउ पभणइ ण किय किउं - वलु घत्ता अक्खिउ गउत्तम-णंदणेण एक् हत्थे तव-तणयहो दिण्णु ण अद्धउं । भणु आयए कवणु ण खद्धउ ॥ चूरविउ सयलु-वि कुरुव-वलु कहि केत्त होसइ थत्तियउ सुपसारिय पाय पओरुहेण वस-वीसढु सलिलु पियंतएण हुयवह- सीयले असिपत्त-वणे असुहइं गिरि-मेरु- महत्तरई सज्झस - वीयइं तेण० । कुरुवाणीयइं तेण० ॥ तवणंदण - जमल- झडप्पियइं वासवि पिसक्क परिपूरियई कुरु-कर- परपेसिय-वाहणइं मं भज्जहो मंभी संतु वलु स सरासणु फेरिउ सर- णियलु मुउ कवणु केण कुरु-भंगु किउ for सुसिउ सिंधु गिरि विक्कमिउ हरं कवि ण सक्कमि कहउं किउं णिसुणंतहो णरवर - विंदहं । वेहत्थिहिं सहसु णरिंदहं ॥ [४] हरि - उवइट्ठेहिं तेण० पंडव - जेट्ठेहिं तेण० । धणु छंडाविउ तेण० गुरु माराविउ तेण० ॥ तेहत्तरो संधि ४ ८ ९ ४ ८ ११ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ रिट्ठणे मिचरिउ सुय-सोयाऊरिय-विग्गहहो दोणहो परिचत्त-परिगहहो सर-सायर-सलिल-णिमग्गाहो । वंभोत्तरे सग्गे वलग्गाहो भड-णिवहहो विणिवारंताहो अज्जुणहो धरंत-धरंताहो धट्ठज्जुणेण सिरु पाडियउ ताल-तरु णाई फलु साडियउ णिसुणेवि जणेर-सग्गारुहणु किउ गुरुसुएण सायर-खुहणु रस-रसणु महीहर-हल्लवणु णक्खत्त-पडणु गह-कंपवणु वोल्लाविउ कुरुव-णराहिवइ पंडवहं पगासमि पलय-गइ धट्ठज्जुण-जीविउ अवहरमि जंसुएण करेवउ तं करमि घत्ता जइ ण-वि मारमि पंडु-सुय सिवि-सोमय-सिंजय-मच्छा। तो अणसणु पेक्खंतु महु विण्णि व सहसच्छ-तियच्छा ।। कहिं तव-णंदणु तेण० कहिं दामोयरु तेण। कहिं कइकेयणु तेण० कहि-मि विओयरु तेण०॥ कहिं जमल सुहड सिहंडि-पवर कहिं जण्णसेण्णि सच्चइ अवर सयल-वि मरंति महु समर-मुहे जिह करि केसरि-वयणंदुरुहे जिह पण्णय गरुड-समागमणे जिह सलह पईव-समावडणे तव-सुएण ताम गंडीव-धरु वोल्लाविउ खंडव-पलयकरु अहो अज्जुण अक्खु केवं वलिउ । पडिवारउ पर-वलु संगिलिउ णिसुणिजइ पर-वलु दुब्बिसहु रसमसइ रउद्दु तूर-णिवहु पहरणइं फुरंति जलण-सिहइं तारायण-चंद-सूर-णहइं धय फरहरंति हिंसंति हय रह थरहरंति गज्जति गय घत्ता केण णियत्तिउ कुरुव-वलु रण-भरहो खंधु को देसइ। जायव-पंडव-भडहिं सहुं कहु कवणु जोहु जुज्झेसइ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेहत्तरिमो संधि कहइ धणंजउ तेण० तहो तव-तोयहो तेण०। आयण्णंतहो तेण० पंडव-लोयहो तेण०॥ ओह पत्थिव-पर-वल-पलयकरु अवहत्थिय-मरण-ब्भय-पसरु सोवण्ण-सीह-लंगूल-धउ जसु सोएं सग्गहो दोणु गउ किव-भायणेउ किवि-काय-करु जाएण जेण किउ तूर-रउ जसु आसत्थामु णामु ठविउ पंचाल-सेण्णु जें णिविउ णारायणु पहरणु जसु वियइ समरंगणे आयहो को जियइ णउ हउं णवि तुहुँ णउ महुमहणु णउ भीमु ण जमलहं एक्कु जणु ण सिहंडि पंडि धट्ठज्जुणु-वि ण-वि सोमय सिंजय कइकय-वि जं जाणहो तं तुम्हई करहो लहु इट्ठ-देवहो संभरहो लहु २४५७ घत्ता पंडव-पक्खिउ परम-गुरु तं मारेविणु समर-मुहे गउ धणु-विण्णाणहो पारउ। तउ तव-सुय कहिं उत्तारउ । अलिउ चवावि तेण० कवड-सणाहेण तेण०। तुहुं वेयारिउ तेण० पंकय-णाहेण तेण०॥ कुल-जायहं सच्चु पसाहणउं सग्गापवग्ग-सुह-साहणउं विहलियहं विढत्तउं देताहं पहरंतहं सच्चु चवंताहं जं होइ होउ तं खत्तियह सासयई सरीरइं केत्तियह सच्चेण वसुंधर देइ फलु सच्चेण मेह मेल्लंति जलु सच्चेण वहंति महा-सरिउ सच्चेण समुद्द-पसरु धरिउ सच्चेण सुरहि परिमल-सहिउ सच्चवइ पहंजणु ओसहिउ सच्चेण गयणे उग्गमइ रवि सच्चेण फलंति महा-दुम-वि जलु थलु गयणयलु अणिट्ठियउ तइलोक्कु-वि सच्चे परिट्ठियउ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता जइ परिपालिउ सच्चु पई तो किं महि-मंडलु फुट्टइ। अण्णु चउद्दह अंगुलई रहु हेट्ठामुहउ पयट्टई ।। [८] जल-लव-लोलहो तेण० रजहो कारणे तेण०। सच्चु ण रक्खिउ तेण० पइं गुरु-मारणे तेण०॥ रज्जेण एण वसुहाहिवइ वोलाविय वारह चक्कवइ चउद्दह कुलकर चउवीस जिण गय जाहं सुहे वि एक्कइ वि दिण(?) णव वासुएव वलएव णव । सोलहं णाराय पहाण-भव वत्तीस पुरंदर ते-वि मय ण वसुंधर काहं-वि समउं गय परिहवेवि सच्चु गुरु विद्दवेवि वहु वंधव सयण अहिद्दवेवि गइ कवण लहेसहि कवणु सुहु दुव्विसहु सहेव्वउ परम-दुहु जहिं सत्त णरय अण्णण्ण-विह तो भी पलित्तु दवग्गि जिह को अवसरु धम्म-कहाणाहो ओलंभउ देवए राणाहो पत्ता आएं मइं धट्ठज्जुणेण केसवेण णिहउ कलसद्धउ। जंणर-णंदणु विद्दविउ पावेण तेण सो खद्धउ। णरेण सरोसेण तेण० वुत्तु विओयरु तेण । अजहो लग्गेवि तेण० तुहुंण सहोयरु तेण० ॥ ण जुहिट्ठिल-रायहो भिच्चु हउं हरि लेहि सुहित्तणु अप्पणउं धट्ठजुण सालउ तुहुं-वि णवि णिउ खयहो जेण आयरिय-रवि तो दुमयहो णंदणु परिकुविउ सवडम्मुहु मुक्कु णाई उयउ परमत्थु पत्थ एत्तिउ कहमि दोमइ-कएण सयलु-वि सहमि देव-वि अदेव महु कुद्धाहो को चुक्कइ जमहो विरुद्धाहो पंचालेहिं कवणु ण उवगरिउ एकु-वि ण हियत्तणु संभरिउ गंगेउ सिहंडि ण दोणु मई विणिवाइउ गरुवउ कवणु पई ४ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७ जइ कह व जणेर-वइरु हयउ तेहत्तरिमो संधि तो सो तुहुँ हत्थहो किं गयउ ८ घत्ता रइय-वूहु किय-वाल-वह तवउं धरणहं आढत्तउ। कवउ दिण्णु दुजोहणहो तें णिहएं को अवरत्तउ॥ [१०] सुय-वह-कुविएण तेण० पइं स-कसायहो तेण०। किं सिरु तोडिउ तेण. सिंधव-रायहो तेण०॥ अहिखेउ जं जि किउ अज्जुणहो सच्चइ विरुद्ध धट्ठज्जुणहो दोमइ-कएण केत्तिउ सहहिं करे पहरणु किं ण समुव्वहहि कहिं जाहि पाव अण्णहिं दविउ गुरु-णिंदउ गुरु गुरु-विद्दविउ वीभच्छहो जइ दुगुंछु करहि महु अग्गए तो एवहिं मरहि सोणावइत्ति पलित्तु मणे णं लग्गु धग त्ति दवग्गि वणे पइं घई वारंतहो केसवहो किं खुडिउ ण सिरु भूरीसवहो सर-वर-संथारे णिविठ्ठाहो णं तवसिहि झाणे परिठ्ठाहो लइ पहरणु पहरहु वे-वि जण पेक्खंतु जुहिट्ठिल-महुमहण घत्ता जाम भिडंति भिडंति ण-वि तावं धरिय वे-वि गोविंदें। ओसारिय जम-वइसवण पइसरेवि मज्झे णं इंदें। [११] भणइ जुहिट्ठिलु तेण० समर-समत्थहो तेण०। होतु मणोरह तेण० एवहिं पत्थहो तेण०।। अवहेरि हणेवए जेण किय जय-सिरि दुज्जणहं समल्लविय दुज्जोहणु भुंजउ सयल महि वारवइ देव तुहुँ पइसरहि हउं णउलु भीमु सहएउ गउ स-जडासुरु जहिं किम्मीरु हउ परिवदिउ अमरिसु अज्जुणहो ण-वि को-वि दोसु धट्ठज्जुणहो जसु केरउ जणणु वि सुज्झविउ णिय कवएं कुरुवइ जुज्झविउ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ रिडणे मिचरिउ परिरक्ख करेवि जयद्दहहो थिउ सज्जउ महु जीवग्गहहो दुक्कम्महं दुच्चरियहं भरिउ माराविउ मइं दोणायरिउ घत्ता गुणु छिंदावेवि समर-मुहे विद्दविउ सुहद्दहे तोउ। तेण णएण जुहिट्ठिलहो महि रुच्चइ होउ म होउ। [१२] ताम विओयरु अमरिस-कुद्धउ णं पंचाणणु आमिस-लुद्धउ गज्जइ जुयंत-मयरहरु जिह हउं वइरिहिं भंजमि माण-सिह मा जाहि अजाय-सत्तु-वणहो वसुमइ म होउ दुजोहणहो वारवइ म पइसउ महुमहणु कलि-केलिउ पेक्खउ अमर-गणु किं णरेण काइं णर-णंदणेण हउं जुज्झमि सहुं गुरु-णंदणेण वासर-पंचमए पंडु-अवहि भुंजावमि णीसावण्ण-महि तो दिण्ण तूर किय-कलयलई पडिलग्गइं पंडव-कुरु-वलई रउ उट्ठिउ कहि-मि ण माइयउ रण-रक्खसु णं उद्धाइयउ रुहिर-णइ जाय पहरण-वसेण णं जीह ललाविय वइवसेण ४ घत्ता पंडव-कउरव-साहणई णहे पेक्खंतहं सुरवरहं असि-कणय-कुंत-कोयंडेहिं। पहरंति सयं भुव-दंडेहिं ।। १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए तेहत्तरिमो सग्गो॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउहत्तरिमो संधि १ रण-रहसुद्दामें आसत्थामें ताव कयत्थिउ पंडु-वलु। मंदर-तड-ताडिउ दिसहिं भमाडिउ दीसइ णं खीरोय-जलु॥ । [१] [दुवई] हय-गय-पाय-घाय-धुअ-धवल-धूलि-धूसर-सरीरई। पहु-सम्माण-दाण-रिण-रण-भर-धुर-धरणेक्क-धीरई ।। भिडियइं वलइं वे-वि तुरमाणइं अहिणवब्भ-डंवर-संथाणइं अलमल-मय-मयगल-गल-वोलई जलहि-जलई व लोल-कल्लोलइं रहवर-भड-भारिय-भुवणिंदई परिओसाविय-सुरवर-विंदई तुरिय-तुरंगम-रंगणसीलई पेसिय-पवर-पहरणुप्पीलई किय-कलयलई समाहय-तूरई सूर-कंत-कंती-जिय-सूरई खग्ग-लयालिंगिय-भड-रुक्खइं। गरुय-घाय-उप्पाइय-दुक्खई मंस-रासि-मेलाविय-गिद्धई रत्त-तरंगिणि-लंघिय-चिंधई पहरण-जलण-झुलुक्किय-गत्तइं चामर-पवणुड्डाविय-छत्तई । घत्ता जूरविय सुरंगणे तहिं समरंगणे रइय महा-सर-मंडवहं । णारायणु णामें आसत्थामें पेसिउ पहरणु पंडवहं ।। [२] [दुवई] पलय-पयंग-पवण-पज्जालिय-जलण-जलंत भीसणं । खुहिय-महासमुद्द-सुरदुंदुहि-णव-घण-घोस-णीसणं ।। छेउ ण लगभइ जालामालहं पावरणुत्तमंग-महिपालहं सव्वावय-रहहं कणयंगहं गुरु दलवट्टि पवर-तुरंगहं Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ कवयइं भिण्इं णरवर - विंदहं आहरणई आउहइं विचित्तई जलु थलु णहयलु जलइ जलतें जिह जिह हण व साहणु पंडउ तं णिएवि दोणायणि-पहरणु भणइ अजायसत्तु किं अच्छहो पक्खर - भिसिया वे - वि गइंदहं छत्त-धय-चामरई पलित्तइं डामरु णं आढत्तु कयंतें तिह तिह जलइ सव्वु णं खंडउ अवरु अजुज्झमाणु कइकेयणु सोमय- सिंजय-कइकय-मच्छहो पाण लएविणु कहि-मि पणासहो मई पइसेवउ मज्झे हुवासहो घत्ता पवणंगय-जमलेहिं अवसर-धवलेहिं तिहिं वुड्डेवर वइरि-वले । अज्जुणणारायण - रहिएहिं परि परिगहिएहिं णं दुव्वाएहिं उवहि जले ॥११ तो णारायण वोल्लाविय तवसुय-जमल- विओयरा । छंडहु पहरणाई परिहरहु महारह- तुरय- कुंजरा ।। आयो कोविजियंतु ण चुक्कइ किं णारायणत्थु उ वुज्झहो भीमज्जुणहो घिवेवि असमत्थई जमलहो कोंत - किवाणइं घित्तहो - भावहो जेण पयट्टइ ताम पलित्तु सुहड-चूडामणि जीविउ जाम ताम लइ जुज्झहो करि किरिडी जहिं स-सरु सरासणु उवसम घत्ता धणु घिवेवि पहत्थें पर एक्कहो कमि [३] [दुबई] पंडव-जायव-वलइं झुलुक्कइ तक्खिवि कुल--परिवाडि म झुज्झहो विणि-वि वे गय गंडीव - हत्थई जय-जयकार करहु सामंतहो णं तो समइ उह विहट्टइं मं भज्जो मंभीस पावणि छंडेवि पहरणाई कहिं सुज्झहो मंभीसहो किं करइ हुवासणु वुच्चइ पत्थें भिडेवि ण सक्कमि १०० ४ हउं समत्थु सव्वहो जणहो । समरंगणे णारायणहो ॥ ४ १० Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ [४] [ दुबई ] रायण किं क्वें ससण-तणुब्भवेण वोल्लिज्जइ जो असमत्थु अच्छइ । सो छंडउ ण एक्कु हउं छंडमि जइ - वि सयई अणत्थई । भिडमि अज्जु धु सहु तइलोक्कें फुरिय-फणामणि- मणि उद्दालमि चंदाइच्च तलप्पए पाडमि कालु कयंतु मित्तु जसु मारम तइयए दिवसे हम दूसास महु गय- घाय - दलिउ दुज्जोहणु महि तव - सुयहो देमि आवग्गी दुक्कर पहरणग्गि मई सोसइ पियमि समुद्दु मेरु संचाल धरमि सुरिंदु धणउ विब्भाडमि दइ अदइउ करमि महि दारमि कर-चरणेहिं दरमलमि हुआसणु मरइ चउत्थए रइ-आओहणु पंचव (?) संसय-भाव - वलग्गी अहव य तेण काई जे होसइ तावंवुहि वड्डउ महु भुव दंडेहिं घत्ता सुरगिरि जड्डुउ हु विसालु दुव्विसहु रवि । सुरकरि कर चंडेहिं आयामिज्जइ जाम ण वि ।। - - [५] [दुबई] किं सच्चइ - सिहंडि-धट्ठज्जुण-जमल-णरिंद-पत्थहिं । हणारायणत्थु विणिवारमि पहरण - पउर- हत्थहिं ॥ वाणु मंडमि छंडमि जइ जर-मरणु ण ढुक्क छंडम जण वाहि पवियंभइ छंडमि जइतिहुअण- सिरिरम्मइ छंडमि जीव-लोउ जइ णिच्चलु छंडमि जइ ण विओउ पहावइ छंडमि जइ ण रज्जु पल्लट्टइ अच्छेवि जइ पुणु पुणु वि मरिज्जइ चउहत्तरिमो संधि गोविंद गयासणि छंडमि छंडमि जइ जम-लेखउ चुक्कमि छंडमि जइ देवत्तणु लब्भइ छंडमि जइ दुग्गइहे ण गम्मइ छंडमि सयल काल जइ मंगलु छंडमि जइ दालिद्दु ण आवइ छंडम जइ ण सरीरु वियट्टइ तो वरि वइरि-पुंजे पहरिज्जइ ४ १० ४ し Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ जीवंतहं जय - लच्छि विढप्पइ मुयहं सुरंगण कज्जु समप्पइ धत्ता पेक्खतो गरुडासणहो । एत्तिउ उगाहेवि रहरु वाहेवि पइसरिउ विओयरु लउडि- भयंकरु रवि जिह मज्झे हुवासणहो ॥ सव्वेहिं पहरणाई परिचत्तई पहरइं पवण-णंदणो । छाइउ गुरु-सुरण सत्तच्चि - मुहे हिं सरेहिं संदणो ॥ [६] [दुबई] लइ विओयरु सिहिमुह - वाणेहिं वारुण रवि-किरणेहिं व विद्धु महा-घणु उडिउ एकु जालु पंडव-वले -सर णिरत्थ गय पत्थहो एक्कु भीमु थिउ गुरु- सुय-पहरणे कालकंज- महु-सुर - विणिवायण मुक्कासण मुक्काउह ढुक्किय कड्डिउ हरि-सुउ हरियई अत्थई घत्ता महुमह - विण्णाणें एण विहाणें परिचत्ताओहणु थिउ दुज्जोहणु [७] [दुबई] णारायणु णारायण - वारिउ तो मई मारइ तेण ण मेल्लमि कहिं महु जाइ भीमु जीवंतउ जोइंगणेहिं गिरि व फुरमाणेहिं दुणिरिक्खु रिक्खाहि गह- गणु हा हे सद्दु पट्टि हयले स- वलु पणड्डु जुहिट्ठिलु तेत्तहो दत्तसो हुवासणे धाय विणि- विर-णारायण तेण महाणलेण ण झलुक्किय रिउ-सर-जालई कियइं णिरत्थई वलियइं साहणाइं सेणावइ वलिउ समत्थु पत्थिवो । पडिवउ मेल्लि मेल्लि दोणायणि पभणइ कुरु-णराहिवो ॥ तो विरइय-कर-मउलि-पणामें वुच्चइ कुरुवइ आसत्थामें जइ पडिवार रणे संचारिउ अवरहिं पहरणेहिं पडिपेल्लमि कुरुव- रिंद होहि निच्चितउ उवसम-भावहो जणु गउ । पंडव - लोयहो जाउ जउ ।। १०२ ११ ४ ८ १० ४ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ दिवसे चउत्थए रिउ - अक्खोहणि हणमि जइ - वि परिरक्ख दिणमणि एम भणेवि भिडिउ पडिवारउ पंडु - पुत्तु णाराएहिं छाइउ विद्धु वीस वाणेहिं गुरु-णंदणु उदोम - भाएं तेण-वि तहु ताडिउ णं वियरणहं लग्गु अंगारउ तो हउं वुच्चमि खत्तिउ पर - भोयणे जेहउ [दुवई ] तो धज्जुणेण धणु अवरु लएप्पिणु कणय - मंडिया । मुक्क वराह-कण्ण तेहत्तरि कंवुय - लट्ठि खंडिया ॥ अवरु सरासणु आसत्थामें दुमय सुयहो धणु पाडिउ वीयउ लइय सत्ति सहस त्ति विसज्जिय णाम - पगइ जिह सत्त-विहत्तिहिं सच्चइ ताम परिट्टिउ अंतरे सरहस वावरंति सम- - कंधय विणि-वि कणयालंकिय-संदण गुरु-सुउ सिणि-: - सुएण पच्चारिउ सरहसु धट्ठज्जुणु धाइउ ते - वि कह - विण पाडिउ संदणु चहत्तरिमो संधि घत्ता सर- संघाएं गुरु- सुउ गयण - वलग्गएण । रणे धणु पाडिउ णाइं ति-वाएं लग्गएण ॥ [८] घत्ता पग्गए सोत्तिउ दुक्करु तेहउ [९] [दुवई ] तो गुरु-णंदणेण वोलिज्जा हउं सच्चउ जे सोत्तिउ । उप्पहो वंभहत्त - कत्तारहो तुहु किर केवं खत्तिउ || लयउ णाई रामायणे रामें णं णिय-गंभे कंठ-ठिउ जीयउ खंड सत्त करेवि विहंजिय चउहिं तुरंगम धय धणुरत्तिहिं छाइउ सरेहिं परोप्परु संगरे सीह-सीह - लंगूल-महाधय विण्णि-वि दोण - धणंजय - णंदण कहिं महु जाहि रणेणोसारिउ वंभणु आसत्थामु तुहुं । वहिं रण- मुहे होहि महु ॥ १० ४ ८ १० Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ रिट्ठणे मिचरिउ णिंदिउ पत्थु जेण गुरु-घायउ सो पाविट्ठ केम सम्माइउ जइ तं तुहुं रक्खणहं समच्छहिं तो सर-वर-रिंछोलि पयच्छहि एम भणेवि वंभत्थु विसज्जिउ जायवेण विहिं हणेवि परजिउ अट्ठवीस गुरु-पुत्तें पेसिय कह-वि तुरय चउसट्ठि णीसेसिय वाण-सएण छिण्ण जुजुहाणे धणु णिट्ठविउ दोणि-अहिहाणे कप्पिउ कवउ उरंतरे दारिउ णिय-सूएण कहि-मि ओसारिउ दुमय-सुओ वि पहर-विहलंघलु धय-णिसण्णु थिउ पत्तु ण महीयलु ताम भीमु वेढिउ सामंतेहिं हण हण सद्दु रउद्दु करतेहिं ८ पत्ता रह-तुरय-गइंदेहिं णरवर-विंदेहिं साहारणेहिं स-पहरणेहिं । वेढिज्जइ पावणि णं णहे दिणमणि विजुज्जलिहिं महा-घणेहिं॥ १० [१०] [दुवई] ताव सुवण्ण-सीह-लंगूल-धयालंकरिय-संदणो। सच्चइ-दुम्मय-पुत्त ओसारेवि धाइउ दोण-णंदणो॥ चंद-विव-फलहंकिय-णामहं जाउ जुज्झु भीमासत्थामहं विण्णि-वि वावरंति सम-घाएहिं छाइउ एक्कमेक्कु णाराएहिं वाईसर-सएण छहिं दोणे णिय-रहवर-भर-भारिय-दोणे ४ पंडवेण धणु छिण्णु खुरुप्पे अवर लेवि विणिवारिउ विप्पें दसहिं भीम-णामंकिय-वाणेहिं गुरु-सुउ कह व ण मुक्कउ पाणेहिं चेयण लहेवि सएण विओयरु भिण्णु थणंतरे पाडिउ रहवरु अवरु लेवि अवरासु गवेसिय तिहिं तिहिं पर पिसक्क णीसेसिय एम भयंकर जाउ रणंगणु सुरेहिं णियंतेहिं णमइ णहंगणु घत्ता पसरिय-धणु-विजहं कोति-किविज्जहं पंडु-दोण-णंदणहं जिह । भीमासत्थामहं रामण-रामहं दुक्करु रणु पडिलग्गु तिह॥ १० Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ [११] [दुबई] ताव रिंद पंच पेक्खंतहो भीमहो भिडिय दोणिहे । पंच महा-सुरिंदणं णिवडिय सग्गहो मणुय - जोणिहे ॥ इंदकेउ - जुयराउ सुअरिसणु पंच-वि रण-रस-रहसुद्दामहो तेण-वि तिहिं तिहिं सरेहिं विहंजिय विद्धु भीमु सारहि मुच्छाइउ पूरिउ संखु जिणेवि आओहणु सहु साहणेण णड्डु धट्ठज्जुणु रहवरेण वहंतें भूअहमि ण लज्जहो घत्ता पासे अनंतें किह रणे भज्जहो [१२] [दुवई ] गुरु-सु थाहि थाहि जिह सिर भुय खंडिय काल-पत्तहं । पउरव - इंदकेउ - जुयराय- सुयरिसण-विद्धखत्तहं ॥ J पउरउ विद्धखत्तु स-सरासणु भिडिय पर सत्थामहो सीसइं वाहु - दंड परिपुंजिय पुण-वि तुरंग कहि-मि रहु पाविउ गुरु- सुएण तोसविउ सुजोहणु मं भज्जहु मंभीसइ अज्जुणु हउं तुहुं विणि-वि अत्थई वुज्झहुं हउं तुहुं विण्णि-वि तोसिय- सुरवर हउं तुहुं विणि-वि पवल - वलुद्धुय हरं तुहुं विणि-वि विज्जा-भायर हउं तुहुं विण्णि-वि समर- - समत्था हरं तुहुं विणि-वि अणिहय-संदण हउं तुहुं विण्णि-वि वड्डिय - विक्कम हउं तुहुं विण्णि-वि कोति किवी सुय हउं तुहुं विण्णि वि जय सिरि-कंखुय उं तुहुं विणि-विखत्तिय - दियवर हउं तुहुं विण्णि-विचाव- - विहत्था हउं तुहुं विण्णि-विदोणहो णंदण हउं तुहुं विण्णि-वि सक्क - परक्कम - - चउहत्तरिम संधि करे गंडीवें होंत । पत्थें मई जीवंतएण || हउं तुहुं विण्णि-वि रणउहि जुज्झहुं धम्मपुत्त- दुज्जोहण - किंकर कइ - केसरि - लंगूल-महाधय ४ ८ ४ ८ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता तहो एम चवंतहो दोवइ-कंतहो आसत्थामें सव्वायामें सर सय सहस लक्ख सिजिरु। अत्थु विसज्जिउ वंभु सरु ।। [दुवई] तेण महाउहेण सिजियासुग सय दस सहस गण्णहिं। अण्णहिं सव्वसाइ महि अण्णहिं छाइउ गयणु अण्णहिं। घोरु तमंधयारु अण्णेत्तहे फेक्कारंतु सिवउ अण्णेत्तहे अण्णेत्तहे वुक्कण-गणु वुक्कइ अण्णेत्तहे जोइणि-गणु ढुक्कइ अण्णेत्तहे अण्णइं लल्लक्कई अण्णेत्तहे जलंति दिसि-चक्कई अण्णेत्तहे जलु जलइ सजलयरु अण्णेत्तहे झामलउ दिवायरु अण्णेत्तहे थिमिथिमिउ पहंजणु अण्णेत्तहे जुज्झइ सयलु-विजणु वट्टइ पलय-कालु पडिवण्णउ पंडव-लोउ सयलु आदण्णउ किर मुउ अज्जुणु जलण-महाउहे दिण्णइं तूरई कुरु-सेण्णाउहे तो करे धणु विप्फारिवि पत्थें वंभ-सराउहु वंभ-सरत्थे किउ णिरत्थु दुम्मिउ गुरु-णंदणु कज्जु ण सारइ एक्कु-वि पहरणु घत्ता पेक्खेवि असरालई णर सर-जालई णं कुल-गिरि कुलिसाहिहउ। जिंदंतु सरासणु घिवेवि हुवासणु णासेवि गुरु-सुउ कहि-मि गठ॥११ [१४] [दुवई] कुरुव-णराहिवो-वि णिय-हियए विसूरइ तित्थु अंतरे । खुहिय समुद्द घोस गइ वाणि समुट्ठिय दिव्व अंवरे ॥ अहो गुरु-णंदणु काइंण वुज्झहि णर-णारायणेण सहुं जुज्झहि जेहिं आसि अण्णहिं जम्मंतरे घोरु वीरु मयणाय-महीहरे सट्ठि सहास सट्ठि सय वरिसहं दूसहं विसम-परीसह-दरिसहं करेवि णियाण-वंधु तउ विण्णउं सव्व-सह रणु होउ अतिण्णउं Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७ चउहत्तरिमो संधि तेण तवेण वे-वि रणे दुजय को जोहइ गोविंद धणंजय जाहं वज्ज-संथाण-सरीरई दुब्भेयई दुद्दमइं दुरीरइं दइउ सहेजउ जाहं परिट्ठिउ भुय-वलु पवलु ण केण-वि णिट्ठिउ ८ दइउ जे जिणइ जाहं पर-चक्कई जउहर-जूव-फलइं परिपक्कई पत्ता पंडवहं अणिट्ठइं तुम्हहं मिट्ठइं तउ सेविजंताई। एवहिं दुवियड्डहं कउरव-संढहं विसिभूयई पच्चंताई। [दुवई] एम भणेवि णिहुय दिव्वक्खर वाणि परिट्ठियंवरे । अमर-करें वियाई सुर-कुसुमइं पडियई पत्थ-रहवरे ॥ तो पण्णारहमउ गंउ वासरु अत्थ-महागिरि ढुक्कु दिवायरु धाइउ तिमिर-णियरु आगासहो गयई वलई णिय-णिय-आवासहो कुरुव-णराहिवेण सह मंडिय दोणायरिय-मरण-कह छंडिय रवि-सुउ वोल्लाविउ अणुराएं महि महु पइं होतेण सहाएं गुरु-गंगेयहिं देवि ण सक्किय ण जिउ धणंजउ इयर ण वंकिय सारहि-पंडु-पुत्तु लइ खंडउ कउरव-लोयहुं होहि तरंडउ भारु भारु जं दिण्णु सुवण्णहो थिउ अद्धासणे महु सुपसण्णहो जं किउ चंपापुर-परमेसरु तहो सव्वहो इहु वट्टइ अवसरु घत्ता परिहविय पुरंदरु होहि धुरंधरु खंधु समोड्डहि रण-भरहो। पडिवक्ख-दुलंघउ हउं अवठंघउ तुज्झु सई भुअ-पंजरहो। १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए चउहत्तरिमो सग्गो॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणधुर धवलु मुवि तुहं सेणावइ होहि पंचहत्तरिम संधि परिरक्खिय पंडव महुमहेण पंचाह कणय-कलसद्धएण णिब्भिच्चें सामिय- वच्छलेण कउ जीविउ सोमय - सिंजयाहं चंपाहिउ पभण देव देव जिह मारमि पंच-मि पंडु-पुत्त तो सयल - वसुंधर- रोहणेण कउसेएं उंवर वीदु छण्णु दहि-दुव्व महोसहि दप्पणेहिं - व [१] भरु ण चडाविउ अण्णहो । पट्टु र कण्णो ॥ सव्वेहि-म किउ अहिसेउ विसय महारिसि जेवं घत्ता कइ-कह-वंदि - वर - चारणाहं धण - हीणहं दीणहं दुक्खियाहं अ- पमाणई दाणई तुरिउ देवि सण्णज्झइ सरह अंगराउ वात्तई हई भयंकराई पणवेक्क-पाणि-णंदीमुहाई ढड्ढr - ढक्कारव - ढक्किराई कल- काहल - कंवुय - खंखुणाई [२] वासर वीसद्ध पियामहेण एवहिं पई अमरिस- कुद्धएण अवसरे अ-णियच्छिय- पच्छलेण जय (कउ ?) तवसुव - भीम-धनंजयाहं हउं सयल-काल वोल्लंतु एवं हरिहर - वंभाणेहिं जइ वि गुत्त परितुझें तें दुज्जोहणेण वइसारेवि तहिं अहिसित्तु कण्णु८ चामीयर - सिंगामज्जणेहिं जय-सिरि रे- वहु परिणेज्जहि । तिह तुहुं वइरि जिणेज्जहि ॥ णड - णच्चण - गायण - वायणाहं पह-भमियहं णिसियहं भूक्खियाहं कह कह व किलेसहिं रयणि वि समरुज्जमु सव्वहो वलहो जाउ ४ वहु डमरुय-डिंडिम-डंवराई दीड-दर- दुंदुहि-गोमुहाई वर - झल्लर - सल्लरि - झिक्किराई णद्धसुर-सुसर तंती - घणाई - ४ १० ८ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ विह- तूर वि दीसणाई क घत्ता थिउ रहे अमरिस- कुद्धउ । छुडु जे छुडु सुएवि वुद्धउ ॥ [३] अण्णेत्तहे णिग्गय वर - तुरंग अण्णेत्त मयगल सवल - वण्ण अण्णेत्तहे कंचण-रह- णिहाय अण्णेत्त भड पहरण- विहत्थ मेलावेवि चउविहवल समूहु सई व परिट्ठि अंगराउ विहिं पासेहिं किव किववम्म वे-वि थिउ सउणि ससंदणु लोयणेहिं घत्ता मयर वूहु रवि णं खय-काले समुहु [४] तं णिएवि जुहिट्ठिलु भणइ एम आएसु दिण्णु तो अज्जुणेण दाहिणए सिंगे सयमेव थाइ सहएव - उल पुट्ठिहिं ठवेवि कुरुखेत्तु गयई किय कलयलाई मिलियई वेणि हंगणाई गज्जिय-गयण व घण- डंवराई धणु- सुरधणु-मंडलि-मंडियाई णं खय-मयरहर महा-तरंग णं णं सजल जलय णहयले णिसण वहु मिलेवि कणयइरि आय णं कूर महागह उडुगणत्थ गिरि - गरुयउ विरइउ मयर वूहु अब्भंतरे सरहसु कुरुव-राउ सिरे सिहरे समच्छरु दोणि दो - वि परिगरिय गीव कुरु - साहणेहिं चंपाहिवइ पयट्टइ । णिम्मज्जायउ वट्टइ ॥ पंचहत्तरिम संधि - करि वूहु धणंजय जिणहि जेम किउ अद्धयंदु धट्ठज्जुणेण वामउ पवणंगउ वलउ णाई वासव-सुय -तव-सुय मज्झे वे - वि भिडियई पंडव - कउरव-वलाई फुरियाउह-गय- तारायणाई असि-विज्जुज्जलिय- दियंतराई रह-रवि-रहवर-परिचड्डियाई ४ ८ ९ ४ ८ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता णहयल-समई वलाई मणिगण-कर-किरणायर । तवसुय-रूवई वे-वि णं थिय चंद-दिवायर ॥ तो समालग्गमुगं महा-भंडणं हत्थ-पायंग-गीवा-सिर-क्खंडणं णीसरंतंत-अंतावली-चप्पणं मत्त-मायंग-कुंभत्थलुक्कप्पणं ढुक्क-पाइक्क-संजाय-संघट्टणं लग-माणिक्क-सण्णाह-णिव्वट्टणं मंति-सेणाणि-सामंत-दुक्खावणं हड्ड-विच्छड्ड-रुंडट्ठि-दक्खावणं ४ भंभ-भंभीस-भेरी-णिणायाउलं चक्क-कुंतासि-वाणासणी-संकुलं जोइणी-डाइणी-भूय-भेसावणं कंक-भल्लुक्क-जंतुक्क-पुक्कावणं हत्थि-मत्थिक्क-थंभोह-छिप्पावणं कित्ति-चिक्खिल्ल-दिक्खुजलिय-पावणं तं खणद्धेण जायं मही-मंडलं हार-केऊर-कंठी-कलावुज्जलं घत्ता तहिं तेहए संगामे भीमु भमंतु ण थक्कइ। णाई खीर-समुद्दहो मज्झे मंदरु णं परिसक्कइ। ८ तो अज्जुणु वलिउ धणुद्धराहं णारायण-पत्थहं मेहलाहं पंचालहं सोमय-सिंजयाहं एत्तहे-वि जुहिट्ठिल-कुरुवराय सच्चइ वियंध-किंकर-सहाउ एत्तहे वि पहाण-णराहिवेहिं पइसरइ भीमु कउरव-समुद्दे दरिसंति परोप्परु समर-जुत्ति संसत्तग-गण-जालंधराहं मुरलासय-केरल-कोहलाह एत्तहे-वि कण्णु रणे दुज्जयाह पहरंत परोप्परु विरह जाय धाइउ जहिं कइकेउ दिण्ण-घाउ गय-लक्खेहिं केहि-मि पत्थिवेहिं वाहण-पहरण-जलयर-रउद्दे पडिलग्ग विओयर-खेमधुत्ति ८ जमात Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११ पंचहत्तरिमो संधि घत्ता मत्त गइंदारूढ तवसुय-कुरुवइ-किंकर। थिय विहिं गिरि-सिहरेहिं विण्णि-वि णावइ जलहर। ४ तहिं भीमु थणंतरे तोमरेहि विणिभिण्णु भुवंगम-भीयरेहि एक्केण समीरण-सुएण विद्ध कुरुवाहिवेण सटिहिं णिसिद्ध सर-लक्खें रोस-वसंगएण णासाविउ करि व वणंगएण कह कह-वि वलेप्पिणु अंकुसेण आभिट्ट विओयरु अमरिसेण णं थिय विहिं सइलहिं विण्णि रुक्ख सम-दिण्ण-घाय सम-जणिय-दुक्ख तोसाविय-जम-वइसमण-इंद वइसारिय विसम महागइंद थिय पायहिं भीमें लउडि लइय कालायस-घडिय सुवण्ण-खइय इयरेण वि स-फर किवाण-लट्ठि पवि-पुत्तहो वाहिय घाय-सट्ठि घत्ता गयए गयंत-अंतकरिए हणेवि हिडिवा-णाहें । स-फरु स-खगु णरिंदु चूरिउ सहु सण्णाहें। [८] जं णिहउ रणंगणे खेमधुत्ति सण्णाहु करेप्पिणु परम-गुत्ति गुरु-सुउ धाइउ ता वद्ध-कोहु विणिवद्ध-तोणु पेसिय-सरोहु हउ एक्कावणवइहिं पंडु-पुत्तु . दिणमणि व स-किरणु थिउ मुहुत्तु पुणु विहि-मि सहासु सहासु मुक्कु घण-डंवरु णाई णवल्लु ढुक्कु मायरिसहो णंदणु तेत्थु काले तोमरेण भिण्णु समुहंतराले भालालिणिडाल-णिडालणामे गुरु-सुउ तिहिं ताडिउ तिहिं जि थामे थिय विण्णि-वि गिरि व तिएक्कसिंग हय पडह-संख-काहल-मुयंग दुजणेहिं वि साहुक्कारु दिण्णु अवरोप्परु वाणेहिं पुणु विभिण्णु ८ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता वि-क्कवय वि-धणु वि-चिंधा रह-सिहरेहिं वइसारिय। सूएहिं णिय-णिय-सेण्ण पहर-विहुर पइसारिय।। एत्तहे वि वे वि थिय लद्ध-सण्ण एत्तहे वि भिडिय रणे णउल-कण्ण सर-जालेहिं जाउ तमंधयारु एक्कहे वि ण फिट्टइ पुरिसयारु एक्केण वि एक्कहो सुहु ण दिण्णु ++++++++++++++ एक्केण वि एक्कहो ण किउ भंगु जोइज्जइ रणु जिह पुव्व-रंगु सच्चेहिं पधाइय तिण्णि ताव विंदाणुविंद-कइकय स-चाव णं तिहिं कुंजरेहिं मइंदु रुद्ध णाराएहिं संसय-भावे छुडु एक्कल्लउ खिवइ खुरुप्प-पंति दस वीस तीस णं वावरंति तिहिं तिण्णि-वि चावई ताडियाई भुय खंडिय सीसइं पाडियाई घत्ता कवल गिलेप्पिणु तिण्णि णं मुहु करयले धोवइ। भुक्खिउ णाई कयंतु पडिवउ पासइं जोयइ॥ ८ [१०] तहिं अवसरे गुरु-सुउ रहे वलगु कहिं भीमु स मई मगंतु जुज्झु संसत्तग-वलु किय खयहो णेमि । तं णिसुणेवि महसूयणेण वुत्तु तो आसत्थामें ण किउ खेउ वे तुम्हेहिं हउं एक्कल्लउ जे कइकेयणु पभणइ एउ वुज्झु जइ दोणायरियहो तणउ पुत्तु जिह पलय-मेहु गजणहं लग्गु णरु कहइ भडारा कहमि तुज्झु किय गुरु-णंदणहो झडक्क देमि लइ जाहुं तेत्थु जहिं दोण-पुत्तु वोल्लाविउ पत्थु स-वासुएउ लइ तिण्णि-विभुंजहुं समरहो ज्जे सो धण्णउ जो तउ देइ जुज्झु तो सरवर-धोरणि धरि णिरुत्तु Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३ भणइ जणद्दणु ताव वज्जाउह- सम-सार घत्ता खंडव - डामरगारा । को सर धरइ तुहारा ॥ [११] जं भणिउं एव जणद्दणेण तिहिं णरु णरेण पहरंतएण स-सरासणु वामउ करेवि हत्थु पुणु लक्खें लक्ख-सएण विद्धु सीसक्कु भीम साहु गत्तु कर-चरणु धणु गुणु जाणु छिण्णु दरिसावइ णरु णारायणासु किह पहरइ अम्हहं समउं दुड्डु घत्ता तिहिं तिहिं सर एक्केक्कु भज्जेवि रवि-किरणाहं एक्कल्लउ पर-वलु वावरंतु गंडीउ भमंतर करे अथक्कु पसरंति पिसक्कई पारियंग हय-गय-रहवर - णरवर दु-खंड विद्धंसइ रिउ - साहणइं जाम तो वलिउ समच्छरु सव्वसाइ समुहंतरे आसत्थामुविद्धु परिपेसिउ पहरणु सव्वधारु [१२] हणेवि तिगत्तह धावइ । घणहं महाघणु णावर ॥ तं सहहिं हउ गुरु-णंदणेण किउ धणु ति-खंड भल्ल-तएण तिहिं हरि हउ दसहिं सरेहिं पत्थु रहु रहिउ रहंगु तुरंग चिंधु सिय-चामर-जुयलु सियायवत्तु तं विहि-मि आसि तव चरणु चिण्णु उच्चरिउ पेक्खु दोणायणासु तो एम भणेवि विभत्थु रुड्डु - पंचहत्तरिम संधि णं विज्जु - पुंजु दीस फुरंतु लक्खिज्जइ णाई अलाय - चक्कु वंमीयो णाई महा-भुयंग सहुं सरेहिं समाउहु वाहु-दंड सरवरेहिं पिहिउ गुरु- सुएण ताम वक्कणेण सणिच्छरु ठियउ णाई दप्पुभडु तो-वि ण पडिणिसिद्धु तं णरेण णिवारिउ दुण्णिवारु ९ ८ ९ ४ ८ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता ताम महाघण-घोसइं दिव्व-वाणि णहे घोसइ। जेत्तहे पंकय-णाहु तेत्तहे वसुमइ होसइ ।। [१३] तं दोणिहिं करेवि णिरत्थु अत्थु संसत्तग-साहणे भिडिउ पत्थु सर-जालई दिसहिं पउंजिआई सीसक्कई कवयइं पुंजियाई धय-छत्तई चिंधइं चामराई कुस-कंचुय-पावरण-वराई पल्लाणइं चउरि-सिआसणाई गुरु-पक्खर-भिसिय-कूसणाई आहरणई वाहण-पहरणाई परिहरेवि पणट्ठइ साहणाई तहिं अवसरे पंचहिं सायएहिं किवि-सुएण विद्ध अइ आइएहिं ते खंडिय खंडव-डामरेहिं पंचिदिय जिह तित्थंकरेहिं णारायणु पभणइ विधि विधि ओसहेहिं वाहि जिह तिह ण सिद्धि ८ घत्ता हरि-आएसु लहेवि गुरु-सुउ भणेवि ण मारिउ। पत्थें आसत्थामु पुट्टि दिंतु ओसारिउ॥ [१४] णर-सर वंचंतु दलंतु खोणि वले कण्णहो गंपि पइडु दोणि कइकेयणो-वि रणे वावरंतु संसत्तग-साहणे पइसरंतु वोल्लाविउ वलेवि जणद्दणेण कंसासुर-णरसुर-मद्दणेण अहो अज्जुण पच्छए दुद्धरेहिं जुज्झेसहुँ सहुं जालंधरेहिं विणिवायहि ओए-वि तिण्णि ताव जरसंधहो वंधव खुद्द-भाव तियसह-मि रणंगणे दुण्णिवार उग्गाउह दंडय दंड-धार तो तालुयवम्म-पुरंजएण रहु वाहिउ तुरिर धणंजएण सो पंचहि पंचहिं सरेहिं विद्ध तेण-वि एक्केक्कउ तिहिं णिसिद्ध Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचहत्तरिमो संधि ११५ घत्ता छिण्णइं सिर-कमलई वाहु-दंड रणे खंडिय। वसुमइ तामरसेहिं णाई स-णालेहिं मंडिय॥ तो सहुं साहणेण पइमु पंडि चंपाहिव वलि पयडंतु खंडि चूण्णंतु दुरय-टंकण-कुणिंद जउहेय-खुद्द-मालव णरिंद गंधार-मद्द-मागह-कुणीर सग-सूरसेण-खस-टक्क-कीर तो मेरु समप्पह-संदणेण वोल्लाविउ दोणहो णंदणेण गंगा-सुय-गुरु-गोविंद-सरिस किव-कण्ण-किरिडी पयाव-दरिस णिरवज्ज-वज-संघणण-देह सुलंब-बाहु पर-वल-णिसेह मई मेल्लेवि मल्लु ण को-वि तुज्झु रहु वाहि वाहि लहु देहि जुज्झु तो दाहिण-महुरा-पत्थिवेण धउ पाडिउ मलय-णराहिवेण घत्ता तेण वि तहो धउ छिण्णु णवहिं थणंतरे ताडिउ। चउहिं चयारि तुरंग रहु अवरेक्के पाडिउ॥ चउसट्ठि धुरंधर जे वहंति ते अट्ठ महारह समउं जंति णारायहं तीरिय-तोमराह कण्णिय-खुरुप्प-मुहहं सराहं दिवसद्धहो अद्धद्धेण मुक्क गुरु-सुय-भर-पंजरे खयहो ढुक्क पंडिएण विसज्जिउ वायवत्थु तं वि-रहु करेवि तमि किउ णिरत्थु ४ आरूढु महागए णरवरिंदु अइरावइ णं थिउ सुरवरिंदु लहु महुरापुर-परमेसरेण गुरु-तणउ समाहउ तोमरेण तेण-वि तहो सोलह दिण्ण घाय करु एक्के चउहिं करिंद-पाय तिहिं भड-सिरु विहिं वे भुय विहत्त छहिं छज्जण किंकर धरणि पत्त ८ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता कुंडल-मंडिय-गंडु पहु-मुहु महिहे सुहावइ । विहिं णक्खत्तहं मज्झे चंद-विवु थिउ णावइ ।। [१७] जं णिहउ पंडि गुरु-णंदणेण तं वंकिउ मुहु सक्कंदणेण थिउ भग्ग-मडप्फरु अमर-सत्थु ___णारायणु वि-मणु वि-वण्णु पत्थु विद्दाणउ पंडव-लोउ जाउ सो ण-वि भडु जेण ण किउ विसाउ एत्तहे वि रणंगणे णिक्किवेण भुव जोइय कुरुव-णराहिवेण हउं धण्णउ जसु णिब्भिच्चु एहु। जं णिहउ वज-संघणण-देहु अक्खोहणि-साहणु समर-कुंडु गंगेय-दोण-सम-वल-पयंडु वाइत्तई वले देवावियाई किउ कलयलु चेलई भामियाई पोमाइउ दोणायरिय-पुत्तु तुहुं भुवणे एक्कु भुय-वल-पहुत्तु घत्ता विविहेहिं आहरणेहिं मणि-चामीयर-खंडेहिं। पुजिउ आसत्थामु तेण सयं भुव-दंडेहिं॥ ८ . इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। पंडिवहो णामेणं पंचहतरिमो इमो सग्गो॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छहत्तरिमो संधि फुरियाउह-विजु कुरु-गिरि-सिहरेहिं गय-घड-घण-मालावरिउ। पंडव-पाउसु उत्थरिउ॥ ४ भिडियई विण्णि-वि वलई महा-रणे भीसण-वण्ण वसुंधरि-कारणे वेण्णि-वि अवसई अमरिस-कुद्धइं अमर-वरंगण-जयसिरि-लुद्धई वेण्णि-वि रय-णिहाय-धूसरियइं पहु-सम्माण-दाण-वहु-भरियइं वेण्णि-वि वावरंति विविहत्थेहिं साहुक्कारियाई सुर-सत्थेहिं णिग्णय णइ सोणिय-पब्भारें किंपि ण सुम्मइ हणहणकारें तूर-णिणाएं गज्जइ अंवरु णं पडिवण्णउ महाघण-डंवरु पेल्लावेल्लि जाय मायंगहं गुड-फुड-फिडि-फेडिविय तुरंगहं धुर-मुह मुरिय रहहं पडिलग्गहं खण-खण सद्दु समुट्ठिउ खग्गहं ८ घत्ता जुझंति वलाई णं वर-मिहुणाई उहय मडप्फर-सारइं। अंध-दविड-कण्णाडई। ताम कण्णु रणे रहवर-वाहणे णिहयइं पंच-सयई पंचालहं णिय-वलु पडिवडंतु पेक्खेविणु वेढिउ अंगराउ चउ-पासेहिं एक्कु अणंतेहिं जिणेवि ण तीरइ सीसई तामरसाइं व तोडइ रह गंधव्व-पुराई व पाडइ णरवइ णिरवसेस संताविय णिवडिउ सोमय-सिंजय-साहणे पण्णारह रहियह रह-पालहं धाइय पंडव तूरइं देविणु रहवर-गयवर-तुरय-सहासेहिं भुव-भुवंग-सण्णिह-सर सीरइ गयवर गिरि-संघाइं व फोडइ भड कुडुंग-झाडाइं व झाडइ णिय-णिय-वाहणेहिं ल्हिक्काविय ८ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता रवि -किरण-करालई सहेवि ण सक्किय कण्ण-सर। सहुँ मद्दि-सुएहिं भीमु पधाइउ एक्कु पर। [३] पेल्लिउ तिहि-मि तेहिं चंपाहिउ लहु-आएसु दिण्णु सामंतहं विरसिय-काहल-संख-मुयंगहं मेहल-तामलित्त-जोहेयहं धट्ठज्जुणेण सव्व ते धरिया सच्चइ भिडिउ ताम रणे वंगहो विद्ध सरेण सो-वि वच्छत्थले अट्ठहिं णउलु विद्ध तो अंगें ४ मणे आरोसिउ कुरुव-णराहिउ गय-साहणियहं विक्कमवंतहं अंग-वंग-कंवोय-कलिंगहं सग-पमुहहं अवरह-मि अणेयहं एक्के कहो णव-दह सर भरिया पाडिय पाय मत्त-मायंगहो णिवडिउ थरहरंतु महि-मंडले तेण वि छिण्ण तिउण-सर-भंगे ८ घत्ता सगइंदु णरिंदु तिहिं तोमरेहिं समाहयउ। सगिरिंदु मइंदु दीसइ णं महियलु गयउ ।। [४] जीविउ लेवि विहि-मि गंगहं धाइय जमल मत्त-मायंगहं णं जमदूव पिहिवि-परिपालहं णं वे पवण महाघण-जालहं हणइ णउलु धायहिं भंकुडियहं । असणि-कियंत-कोंत-अंकुडियहं सो तहिं वंधवेहिं करि गणिएहिं अवरेहि-मि पुव्वागम-भणिएहिं करि विहणंति पुच्छ-कर-चरणेहिं वंध-विसाण-जुवल-वावरणेहिं सहएवु वि आहणइ किवाणे विज्जु-पुंजु णं फुरण-पमाणे विहि-मि महा-गय-चक्किय खंडिय तेण पंडतेहिं वसुमइ मंडिय णं जलहर पाडिय उप्पाएहिं णं पायव पुंजिय दुव्वाएहिं ४ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छहत्तरिमो संधि . घत्ता गय-घड-अवसेस गय णव-वहु णाई जमलहं पहर-भयंकरहं । णासइ दुप्पइ-देवरहं॥ अट्ट हत्थि सहएवहो धाइय अट्ट वि अढेहिं वाणेहिं घाइय एम महागय-साहणु मारेवि कण्णहो थिय धण-गुणु विप्फारेवि वामए करयले करेवि सरासणु णउलाणुवहो भिडिउ दूसासणु तिहिं तोमरेहिं थणंतरे ताडिउ तेण-वि तहो सरेण धणु पाडिउ भिडिय परोप्परु पुणु करवालेहिं णं वे घणावहिं विजुल-मालेहिं छिण्णइं खगई लइयई चावई जिह कुकलत्तइं वंक-सहावई सर चउसट्ठि मुक्क जुयराएं भिण्ण खणंतरे णउलहो भाएं दूसासणेण सरोहु विसज्जिउ तमि तिहिं तिहिं एक्केकु परजिउ घत्ता दूसासणु भिण्णु भीमहो कए वि ण मारियउ। रह-सिहरे णिवण्णु णिय-सूएं ओसारियउ॥ ८ । ४ जं जुवराउ रणंगणे मुच्छिउ तं रवि-तणएं णउलु पडिच्छिउ वुच्चइ पंडवेण कुरु-पत्थहं सव्वहं तुहं कत्तारु अणत्थहं थाहि थाहि कहिं जाहि रणंगणे पेक्खउ देवलोउ गयणंगणे पभणइ कण्ण तुज्झु ण वियट्टमि अंतरत्थु देहें असिट्टमि(?) भीमु-वि गजिउ भुय-वल-दप्पिउ णवर सरासण-कोडिउ चप्पिउ एम भणेवि तेहत्तरि मग्गण पेल्लिय रह उवगरणोलग्गण वीस चउक्क मुक्क मद्देएं छिण्ण दिवायर-सुएण सवेएं चिंधउ आयवत्तु विहिं ताडिउ अट्ठावीसहिं धणुवरु पाडिउ ८ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता तहिं तेहए काले णउलु सउण्णउं एक्कु जणु। करे लग्गइ जासु णिट्ठिउ णिट्ठिउ अवरु धणु॥ धणुवरेण अवरेण महारहि तिक्ख-खुरुप्पेहिं हणेवि सरासणु अवरु लेवि धणु सीरिउ पंचहिं कम्मुय-कोडि-वि णासिय अण्णे मद्दिय-णंदणेण ते खंडिय पुणु गयणयलु पिसक्केहिं छाइउ पुणु रहि वरइं(?) करेवि पइट्ठा जलु थलु णहयलु वलइ दियंतरु घत्ता छंडिउ णिय जुज्झु कुरु-पंडव-सव्व वीसहिं भिण्णु कण्णु तिहिं सारहि तिहिं सरेहिं पुणु पिहिउ णहंगणु पंडवेण पडिवारउ सत्तहिं अवरु लेवि धणु छाइउ कण्णे रण-महि णाई भुवंगेहिं मंडिय दइवें अहि-भवणु व उप्पाइउ एक्कु खणझुण केण वि दिट्ठा सयलु वि दीसइ वाण-णिरंतरु खंडिउ रहु ओसारि किय। णिहुय-णिहाला होवि थिय । [८] छाइय विहि-मि परोप्परु वाणेहिं चंदाइच्च घणेहिं जिह झंपिय चावलट्ठि रवि-तणएं ताडिय मद्दि-सुएण लयउ सयचंदउ दाहिण-करेण किवाणु भयंकरु घित्त सत्ति सहसत्ति परज्जिय णउले गरुय-गयासणि मुक्की छिण्णु खुरुप्पें कोंतु समंडिउ विसहर-रवियर-परिहरमाणेहिं एक्कक्कमहो तो-वि णउ कंपिय सारहि णिहय तुरंगम पाडिय वामयरेण महा-वसुणंदउ किउ चंपाहिवेण सय-सक्करु असइ व गय सम्माण-विवज्जिय गिरिहे णाई सउदामणि ढुक्की ताम तिहिं थूणाकण्णेहिं खंडिउ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छहत्तरिमो संधि घत्ता पुणु पंडु-सुएण णं अहिणव-मेहु कण्णहो परिहु विसज्जियउ। विंझहो उवरि पगज्जियउ॥ . ४ खंडिउ परिहु खुरेण णहंगणे आउलु णउलु जाउ समरंगणे कोट्टह लेवि सरासण-कोडिउ कट्टिउ रवि-सुएण उम्मोडिउ धणु-मंडलिहे मज्झे मुहु भावइ चंद-विवु इंदाउहे णावइ एवंहिं पंडु-पुत्तु लइ गज्जहि जाहि ण मारमि रणु पडिवजहि वडे समउं विरोहु ण किज्जइ . जिव-वहु जिव-परिहउ पाविज्जइ कुंति-वयणु संभरेवि ण घाइउ गउ तव-तणयहो पासु पराइउ कण्णु वि भिडिउ महाभड-विंदहं चेडय-कइकय-कासि-रिंदहं केरल-चोल-पंडि-पंचालहं सोमय-सिंजयाइ-महिपालहं घत्ता एक्क-रहु सरेहिं हणइ अणंतई पर-वलइं। णं पियइ णिदाहे रवि-किरणेहिं सव्वइं जलइं॥ ताव जुजुच्छु हरीरिय-संदणु धायरट्टमवरुद्धी गंदणु(?) सउणि-सुयहो उत्थरिउ उलूयहो समर-सएहिं कयत्थीहूयहो सरवर-सयइं कियइं अ-पयावइं +++++++++++++ हय तुरंग जत्तारु वियारिउ कवउ पुट्टि देंतु ओसारिउ भिडिय ताव विप्फारिय-धम्महो सउवलु णउल-पुत्तु सुयधम्महो विहि-मि सरासणाई णिट्ठवियई विहि-मि वराउहाई पट्टवियई विण्णि-वि वि-रह हूव समरंगणे वे-वि पसंसिय सुरेहिं णहंगणे घत्ता छिण्णाउह वे-वि कड्डिय णिय-णिय-वारएहिं। णं मत्त-गइंद ओसारिय णाराएहिं॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १२२ [११] तहिं अवसरे वियसिय-मुह-पोमहं धाइउ सउणि-मामु सुय-सोमहं छाइउ एक्कमेक्कु णाराएहिं खंडिय सउवलेण खुर-घाएहिं छिण्णु सरासणु रहु विद्धंसिउ कउरव-लोएं णामु पसंसिउ ताम धणंजय-सुएण पयंडे भीम-भुवंग-भोग-भुय-दंडे ४ विज्जु-सम-प्पहु णिय-णामंकिउ दंतवालु कलहोयासंकिउ अहिणव-वग्घ-चम्म-परिवारउ कड्डिउ मंडलग्गु सिय-धारउ चउवीसेहिं वर-मंडल-मग्गेहिं गुरु -सिक्खिहिं अवरेहि-मि अणग्गेहिं छिण्ण सिलीमुह तेण विखंडिउ अद्धु लग्गु करे णाई तरंडउ घत्ता असि-खंड-सणाहु गउ उप्पएवि पंच पयई। सारहि स-तुरंगु धणु गुणु छत्तु चिंधु हयई। [१२] पुणु पल्लट्ट पडीवउ तेत्तहे रहु सुयवित्तिहे केरउ जेत्तहे सउणि वि गउ पर-वलहो समच्छरु किव-धट्ठज्जुण भिडिय परोप्परु सरेहिं विद्ध तव-सुय-सेणावइ पउ-वि ण चलइ सिलामउ णावइ सरवर-णियरु णहंगणे घोसइ उ जाणहं किह एवंहिं होसइ । दोणायरिय-दुक्खु सुमरंतउ दियवइ धरिउ केण पहरंतउ जलु थलु णहयलु सरेहिं भरेसइ दुक्करु जण्णसेणि जीवेसइ ताम किवेण पिसक्केहिं चूरिउ को उवाउ णर-सालु विसूरिउ सारहि भणइ ण रणे पइसारमि जइ णासहि तो रहु ओसारमि घत्ता तो दूमय-सुएण वुच्चइ हउं आसंकियउ। लइ णिय-वलु जाहुं एहु मई ण जिणेवि सक्कियउ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ छहत्तरिमो संधि रहु ओसारिउ तो जत्तारें गउ धट्ठज्जुणु एण पयारें पेक्खेवि भजमाणु तं संदणु पच्छइ धाइउ गउतम-णंदणु तहिं अवसरे जिह गुरुसुय-पंडिहिं जाउ जुज्झु कियवम्म-सिंहडिहिं पिहिउ परोप्परु सरवर-जालेहिं अमर तिडिक्किय जाला-मालेहिं वीस चउक्क मुक्क पुणु भाएं णव-वि सिलीमुह दुमयहो तोएं जायवेण धणु-दंडु स-जीयउ छिण्णु भिण्णु गंडयले पडीवउ मुच्छा-विहलु समाउलिहूएं कहि-मि समोसारिउ णिय-सूएं पइसइ भद्दिओ वि पंडव-वले करि-मयरु व मयरहर-महाजले घत्ता जालंधर-सेण्णु ताम णिरुद्ध कइद्धएण। णं वणे गय-जूहु सीहें वेहाविद्धएण॥ । [१४] एक्क-रहहो गंडीव-विहत्थहो णव सामंत पधाइय पत्थहो सउसुइ-सत्तुसेण्णु सत्तुंजउ मित्तदेउ देवाह-मि दुज्जउ मित्तधम्मु धम्मालंकरियउ मित्तसेणु सेणु व ओयरियउ चंदसेणु चंदुजल-वयणउ सत्तुकामु कायउ जलणयणउ णवमउ तहिं णामेण सुसम्मउ धाइय सव्व करेप्पिणु सम्मउ सव्वेहिं सव्वसाइ सम-कंडिउ णं चंदण-तरु सप्पेहिं मंडिउ तेण-वि पंचहिं सउसुइ घाइउ . अट्ठहिं चंदसेणु विणिवाइउ वीसहिं सत्तुंजउ परिपूरिउ सत्तहिं सत्तुकामु मुसुमूरिउ घत्ता अवसेसा पंच पंच-सरेहिं पंचेडिय। . गय कर विहुणंत करि जिह सीह-चवेडिय॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १२४ [१५] सच्चसेणु तहिं वलिउ समच्छरु थरहरंत-परिपेसिय-तोमरु भिंदेवि वाम वाह गोविंदहो सरु सिरे कह-व ण लगु फणिंदहो भणइ धणंजउ पेक्खु जणद्दण छिज्जमाण मइं पंच वि संदण एम भणेवि इंदत्थु विसज्जिउ तेण-वि एंतें सेण्णु परजिउ तक्खणे सव्वसेणु दोहाइउ मित्तधम्म-सारहि विणिवाइउ मित्तधम्म-सिरु खुडिउ खणंतरे णं चिउ अवरु धारु इत्थंतरे(?) कद्दम-खुप्पमाणु समुट्ठिउ कडि-पमाणु रुहिरोहु परिट्ठिउ । घत्ता जलु थलु वलु सव्वु अज्जुण-वाणेहिं पीडियउ। लक्खिज्जइ घोरु णाई कयंतें कीडियउ॥ का [१६] तहिं अवसरे पारद्धाओहण धाइय धम्म-पुत्त-दुजोहण वे-वि परोप्परु अमरिस-कुद्धा णाई मइंद महामिस-लुद्धा वेण्णि-वि सरहस भिडिय महारणे खेरि वहंति वसुंधर-कारणे वेण्णि-वि सूय करेरिय-संदण वे-वि पंडु-धयरट्ठहु णंदण वे-वि कुंति-गंधारि-थणंधय वेण्णि-वि चंद-फणिंद-महाधय वे-वि सियायवत्त सिय-चामर वेण्णि-वि परिओसिय-सव्वामर भणइ अजायसत्तु कुरु-राणा पंच-वि गाम ण देहि अयाणा वंधव सयण सव्व माराविय दूसासण-किव-कण्णेहिं गाविय घत्ता दुजोहण थाहि सरु विस-जउहर-जूवाइं। महु संति कराई तुज्झु कयंते हूआई॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ छहत्तरिमो संधि दुव्वयणावसाणे सकसाएं णवहिं सरेहिं विद्धु कुरु-राएं तेरह तव-सुएण परिपेसिय चउहिं चयारि वाह परिसेसिय पंचमेण सारहि-सिरु पाडिउ ताल-तरुवरहो णाई फलु साडिउ छट्टेणासुगेण वर-चिंधउं खंडिउ कणय-भुयंग-समिद्धउं सत्तमेण धणुवरु विद्धंसिउ आयवत्तु अट्ठमेण विणासिउ अवरेहिं सरेहिं विद्ध वच्छत्थले करणु करेवि परिट्ठिउ महियले कुरुव-णराहिव कह-व ण मारिउ कण्ण-कलिंग-किवेहिं परिवारिउ रवि अत्थमिउ जाउ जउ तिमिरहो कुरु-पंडव गय णिय-णिय सिमिरहो ८ __घत्ता अत्थाणे णिविट्ठ तवसुय-दुजोहणेहिं किय। णं इंद-पडिंद चवणे सइं भूमियले थिय । इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए छहत्तरिमो सग्गो॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तहत्तरिमो संधि राहेयहो पट्टे णिवद्धए महि-कारणे रणे पारद्धए। धुर-धरण-कियंकिय-खंधइ कुरु-पंडु-वलाई सण्णद्धई ।। पोमाइउ दुज्जोहणेण णरु एक्क-रहु जे पर-वल-पलयकरु एक्कएण जे खंडउ चारियउ सुर-सेण्णु सव्वु ओसारियउ एक्केण जे तीस कोडि अवय विणिवाइय रणे णिवाय-कवय एक्केण जे तालुयवम्म जिय एक्केण जे कालकंज वहिय एक्केण जे हउं मेल्लावियउ गंधव्व-लोउ भेल्लावियउ एक्केण जे धणु परियत्तियउं कुरु-साहणु सरेहिं विहत्तियउं एक्केण जे जालंधर-सयइं णारायण-गण-पमुहई हयई एक्केण जे भंजिय कुरुव-वलु सई खुडिउ जयद्दह-सिर-कमलु घत्ता समरंगणे णीसामण्णेण दुज्जोहणु पणिउ कण्णेण। णारायणु जासु सहेजउ पर-वलई स जिणइ धणंजउ॥ [२] तो जामिणि जाम-विणिग्गमणे दिवसाणणे दिवसयरुग्गमणे रण-रसियइं पसरिय-कलयलई सण्णद्धइं कुरु-पंडव-वलई सरहसई समुब्भिय-धयवडइं वहु-मंडण-मंडिय-गय-घडई सोवण्णावयव-महारहई गय-मय-चिक्खिल्ल-पवट्ट-हयई हय-फेण-तरंगिणि-दुत्तरइं तूरारव-भरिय-दियंतरई जयसिरि-कर-गहणुत्तावलई कुरुखेत्तु गयई विण्णि-वि वलइं तव-तणएं वूहई विरइयई णं णव-जलहर-जालई थियई वोल्लाविउ कुरुवें रवि-तणउ तुहुं एक्कु मित्तु महु अप्पणउं ४ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ सत्तहत्तरिमो संधि घत्ता वेयारिउ गुरु-गंगेएहिं भिच्चेहिं अवरेहि-मि अणेएहिं। णासइ व धरणि परिसक्किय महि केण-वि देवि ण सक्किय ॥ तो अक्खइ कुरु परमेसरहो भाणुब्भउ भाणुमईसरहो जं वीसकम्म-उप्पाइयउ सक्कहो करे कह-व पराइयउ पुणु परसुराम-घरे अच्छियउ पुणु महु घरे पइसि णियच्छियउ तं कालवट्ठ अविण? रणे चंपाहिउ हउं दव्विसह रणे रहु दिव्वु तुरंगम णिप्पसर तोणीरे अणिट्ठय सप्प-सर जइ सारहि सल्लु समावडइ तो पंडव-साहणु पडिवडइ परिओसिउ कुरुव-णराहिवइ वोल्लाविउ तो मद्दाहिवइ अहो धीर वीर सुंडीर-तणु धयरट्ठ-सरिसु तुहुं एक्कु जणु घत्ता जइ वसुमइ देण समिच्छहि तो रण-भरु अज्जु पडिच्छहि । तावणिहे तव-तणु-तेयहो सारत्थु करहि राहेयहो। [४] जिह सारहि अरुणु दिवायरहो जिह मायलि सुर-परमेसरहो जिह दारुइ देवइ-णंदणहो तिह तुहुं रवि-सुयहो स-संदणहो तो करेवि साहत(?) भिउडि वलिउ णं घिएण हुवासणु पज्जलिउ दुजोहण वोल्लहि णवर तुहुँ महि-मंडले अण्णहो कासु मुहु को कण्णु कवण किर चारहडि वलु कवणु वित्ति का आरहडि अहिमाणु कवणु किर कवणु कुलु महु पासिउ किं सो रणे अतुलु महु पासिउ किं छलु रवि-सुयहो सारत्थु करमि हउं जेण तहो गउ एम भणेवि णिय-आसवहु थिउ चरण धरेप्पिणु कुरुव-पहु ८ घत्ता तुहं महुसूयणहो-वि वड्डउ धुउ कण्णहो पत्थु ण पुज्जइ हउं तेण परिट्ठिउ अड्डउ। पइं सूए महि धुउ भुज्जइ ।। ____ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १२८ अकुलीणउ जइ चंपाहिवइ जइ अंग-राउ णउ वड्डिमउ पहु-अवसरे तिण-समु गणइ सिरु तुहुं पंडु-पुत्तु लइ सयल महि ता तेण-वि उत्तरु दिण्णु तहो ण समिच्छमि वसुमइ-वइसणउं धणु-कोडिए भीम णिवारियउ एवड्डु महाणुभाउ कवणु तो अत्थई रामु ण अल्लियइ तो महु अद्धासणे चडइ कउ गंगेएं दिण्णु कुमति चिरु कुरु-पंडव-पेसणु कारवहि हउं किंकरु कुरुव-णराहिवहो णउ छत्तई चामर वासणउं जम-जे? जिणेवि ण मारियउ जई घई तुहुं वीयउ धुर-धरणु ८ घत्ता तं णिसुणेवि अणिहय-मल्लेण दुजोहणु पणिउ सल्लेण । जइ करहि महारउं वुत्तउं तो सारहि होमि णिरुत्तउं ।। ४ पणवंतहो कुरुव-णराहिवहो परिओसु पवडिउ कुरु-णिवहे करि-कक्ख-महद्धउ उब्भियउ रवि-णंदणु रहिउ वलावरिउ तो पभणइ कुरुव-णराहिवइ हणु पंडव महसूयणेण सहुं गउ रवि-सुउ उप्परि अज्जुणहो रह सारहि सारहि पई भणमि घत्ता अहो तावणि अमरिस-कुद्धउ गज्जहि अणाय-परमत्थउ कह कह-व वयणु पडिवण्णु तहो हय हंस-सम-प्पह जुत्त रहे मद्दाहिउ धुरहे परिट्ठियउ रहु चलिउ सव्व-पहरण-भरिउ जय णंद वद्ध चंपाहिवइ तिह करि जिह वसुमइ होइ महु णं दुसहु माहु णव-फग्गुणहो कुंती-सुव जाम सव्व हणमि ८ णं वेसरि आमिस-लुद्धउ । को पंडव जिणेवि समत्थउ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९ सत्तहत्तरिमो संधि [७] गज्जिज्जइ ताम-मेत्त वियणे जइयहुं धण-कंचण-जण-पउरे तइयहुं तुहुं णरेण णिवारियउ जइयहुं गंधव्वेहिं णाहु णिउ जइयहुं विराडपुरे लयउ धणु तइयतुं कुरु-वलई कियाउलई जइयहुं गंगेउ दोणु पहउ असि-पह-परिहविय-सयद्दहहो घत्ता तइयहुं तहिं रणे एक्कल्लउ कुरु-वलइं खंतु परिसक्किउ ण णिहालहि पंडव जाम रणे पिडु मंडिउ दुमयहो तणए पुरे हउं भीमें कहव ण मारियउ तइयतुं पई को ववसाउ किउ कुढे लगु धणंजउ एक्कु जणु सीहेण व भग्गइं गयउलई तइयह तुह कण्ण कत्थ गयउ जइयहुं सिरु खुडिउ जयद्दहहो ८ णरु णाई कयंतु णवल्लउ। पई धरणहं तो-वि ण सक्कियउ॥ ९ [८] आरुङ कण्णु मद्देसरहो वलु जिंदहि कुरु-परमेसरहो ण णिएवउ जाहं कयावि मुहु उव्वहहि पक्खु तहो तणउ तुहुं जइयतुं दोमइ-केस-गहणु तइयहुं किउ कवणु परिग्गहणु पंडव चयारि दूसल-धवहो गय भजेवि एकहो सिंधवहो धणु-कोडिए पेल्लिय वेण्णि मई तहिं काले काइं णउ दिट्ठ पई जइयहुं विणिवाइउ रयणियरु . तइयहुं कहिं गउ गंडीव-धरु एवहिं धुउ जममुहे पइसरइ परिरक्खु तियक्खु जइ वि करइ जिम महि भुंजाविउ कुरुव-पहु जिम गसिउ हुवासणु दुविसहु __घत्ता जिम महु पयाउ ओहट्टियउ जिम अज्जुण-दुमु दलट्टियउ। जिम जस-कुसुमई विखिण्णाइं जिम अंगई धरणिहे दिण्णाई॥ ९ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १३० उप्पाय जाय तहिं ताम तहो हड्डइं पडंति गयणंगणहो धूमंति रएण दिसा-मुहइं कुरु-वले वलंति पवलाउहई वालहिं फुल्लंति तुरंगमहं अ-सिवई सुम्मंति विहंगमहं महि कंपइ दिणमणि थरहरइ चंपाहिउ पर-वले पइसरइ गंगेय-दोण तो दिट्ठ रणे सीहाहय णं मायंग वणे णं चंदाइच्च राहु-झडिय णं इंद-पडिंद वे-वि पडिय रवि-सुएण ण जोइय णविय थुय किय सामिय-दोहा होवि मुय अण्णु वि जो को-वि दोहु करइ सो सव्वु महाहवे महु मरइ घत्ता जं दितउ दीणाणाहहं दियवर-मागह-भुय-भूसणहं । तं तेत्तिउ तहो धणु पावइ जो णर-णारायण दावइ । ४ [१०] जो णर-णारायण दक्खवइ तहो देमि अज्जु मद्दाहिवइ सउ दासिहिं सउ वर-कामिणिहिं। चउ चउ सय गोवइ-णंदिणिहिं उत्तमहं तुरंगहं पंच सय अट्ठ रह दासहं अट्ठ सय दस हत्थि चउद्दह पत्तणइं अवरइ-मि रयण-मणि-कंचणइं तो भणइ सल्लु अहो आहिरहि किं दविणु अपत्तेहिं विक्खिरहि जइ अत्थि को वि तउ वंधु-जणु । तो किं ण णिवारइ दिंतु धणु पाहाण णिवंधेवि णियय-गले उत्तरेवि समिच्छहि उवहि-जले दीसेसइ सई जे धणंजयहो कइ विप्फुरंतु उप्परि धयहो घत्ता महसूयणु जासु सहेजउ सहुं सुरेहिं पुरंदरु विज्जउ । तुहुं कण्ण जइ वि अइ भल्लउ ण पहुच्चहि तहो एक्कल्लउ ।। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तहत्तरिमो संधि [११] भाणुब्भउ पभणइ सल्ल सुणे तुहुं फग्गुण-माहव-मघव थुणे महु घइं पुणु तिण्णि-वि गण्णु णवि जइ एक्कीहोति सुरासुर-वि हउं तो-वि समत्थु सव्व-जयहो पुणु किं एक्कहो धणंजयहो संजमिण भणइ गंभीर-सरु आरोडहि तुहु गंडीव-धरु विसु गिलहिं भुवंगम दरमलहि आलिंगहि जलणु वज्जु दलहि जं अंतरु मसय-महाकरिहिं जं अंतर जंवुय-केसरिहिं जं अंतरु खगवइ-वुक्कणहं जं अंतरु रवि-जोइंगणहं जं अतंरु जगे अवगुण-गुणहं तं अंतरु रणे कण्णज्जुणहं घत्ता जा जाहि सल्ल जइ भीयउ हउं अच्छमि पहरण-वीयउ। सो मणुसु गणिजइ भल्लउ जो वहुय हणइ एक्कल्लउ॥ ४ रे रे कुदेस-संभव विसल्ल संगाम-हरिण णासण-कुसल्ल उप्पण्णु पाव जहिं वसइ तुहुं तहो जाणमि दिङ्ण कहमि मुहु महिलउ हरंति अणियच्छियउ सरु वीरु ण लब्भइ पत्थियउ | असउच्चय-संगउ जेत्थु जणु मच्छइउ अकारणे कुविय-मणु णीलज्जुण-अज्जु पीय-सरउ . गोमंस-भक्खि गोधम्म-रउ वहु-विसम-सहाउ अणप्पणउ जहिं तुहुं तहिं वंधु कहो त्तणउ गंधारहं मद्दहं सिंधवहं दय-भूरे(?)-सोरडब्भवहं खल खुद्द पिसुण एत्तिउ भणमि णर-सउरि हणेप्पिणु पई हणमि घत्ता सिरु महियले रुंडु महारहे लाएप्पिणु जीविउ जम-पहे। रुहिरामिस-कद्दम-लेवउ तुहुं भूयहं वलि घत्तेवउ॥ [१३] मद्दाहिउ पभणइ दोसु कर करि णिंद ण तूसमि मित्त तउ जई तूसमि तो णारायणहो वंभाणहो अहव तिलोयणहो ८ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ रिट्ठणे मिचरिउ दुजोहण-केरउ कज्जु महु तुहं कहि-मि कण्णु आयासे हुउ कत्थइ महिलउ जुप्पंति हले कत्थइ माउल वंधुव्वरिय कत्थइ जेट्टाणिहे पइ-पलए कत्थइ विसिरहो पुज चडइ कत्थइ पाहुणहं घराइयहं कत्थइ गोमंसु भक्खु णरहं को वोल्लइ तुम्हारिसेहिं सहुं कुल-धम्मु ण देसाचारु सुउ कत्थइ अणिअच्छिय ण्हंति जले परिणिजइ भइणि सहोयरिय घिप्पइ देवरेण पोत्ति गलए कत्थइ देवउले कविल पडइ चंडील भरंति तलाइयहं कम्मइं करंति घरे दियवरहं ८ घत्ता कुलधम्मेहिं देसाचारेहिं अण्णेहि-मि विविह-पयारेहिं । जगु जीवउ को-वि ण समप्पइ वरि एवंहिं रणु आढप्पइ॥ [१४] तो पंडव-वूहई वहु-विहइं पेक्खेप्पिणु गिरिवर-संणिहई पेक्खेप्पिणु मयगल-जलय-पह । गंधव्व-णयर-सम-सार-रह पेक्खेप्पिणु तुरय तरंग-सम सामंत सव्व संगाम-खम णिसुणेप्पिणु तूरइं भीसणइं सुर-दुंदुहि दारुण भीसणइं रवि-णंदणेण सुर-गिरि-अचलु । किउ वारुह-पत्तु वूहु पवलु दाहिणए पक्खे थिय तिण्णि णिव मागह-णरिंद-कियवम्म-किव संसत्तग वामए पक्खे थिय वे सउवल वूह-पक्खे थिय पच्छए दूसासणु दुविसहु थिउ तासु-वि पच्छए कुरुव-पहु ८ घत्ता पुणु आसत्थामु महावलु तहो वूहहो छेउ ण णावइ मुहे कण्णु पड्डिय-कलयलु। पंडवेहिं दिडु गिरि णावइ ॥ तो अज्जुणु तव-सुएण भणिउ हरि-सालउ जइ हउं जेडु तउ लज्जावहि जिह णवि अप्पणउं जइ पंडु-णराहिवेण जणिउ तो तिह करि लब्भइ जेण जउ लक्खिज्जइ वूहु वइरि-त्तणउ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परु सत्तहत्तरिमो संधि तं वयणु सुणेवि गंडीव-धरु मं भीहि जुहिट्ठिल भणइ णरु किं करइ कण्णु किं कुरुव-वलु वंदि-ग्गहे गो-गहे दिछ वलु एहु भग्गु वि कण्णहो खुडिउ सिरु । महु एक्कु-वि एक्कहो ण थिउ थिरु जइयहुं ओवडिउ जयद्दहहो तइयहु-मि ल्हसिउ एक्कहो णरहो एवहि-मि णराहिव सो जे हउं किं एक्कं फोडमि वूह-सउ घत्ता कइकेयणु पहु जयकारेवि रहे चडिउ चाउ विप्फारेवि। गिरि-सिहरे पवड्डिय-मलहरु थिरु स-धणु णाई णव-जलहरु ।। [१६] जयसिरि-वहु-गहणुक्कंठुलहो वयणुग्णय वाय जुहिट्ठिलहो तुहुं अज्जुण कण्णहो हउं किवहो पवणंगउ कुरुव-णराहिवहो धट्ठज्जुणु कियवम्महो भिडिउ अवरहो अवरो-वि समावडिउ तो कहइ सल्लु रवि-णंदणहो एहु दीसइ चिंधु जणद्दणहो कइकेयणु एउ धणंजयहो लइ देहि दाणु सव्वहो जयहो रहु पेक्खु पेक्खु कह चक्कमइ णं मंदरु सायरे परिभमइ जइ णिहउ किरीडि कण्ह-सहिउ __ तो तुहुँ जे राउ मइं परिगहिउ दुणिमित्तई णवर ण रहु चलइ णित्तेय तुरय मुत्ता(?) वलइ घत्ता संगामु भयंकरु होसइ सोणिय-समुदु उढेसइ। धय वायसु चंचु भरेसइ सहुं सुरेसहिं सइंभु णिएसइ ।। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए सत्तहत्तरिमो सग्गो॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठहत्तरिमो संधि कण्णज्जुण अग्गए देवि रणे णरवर-पेसिय-वाहणई। अभिट्टई दिणमणि-उग्गमणे कुरुवइ-तवसुय-साहणई। [१] भिडियइं वलइं वे-वि वल-सारइं उठ्ठिय दारुण हणहणकारई वहल-धूलि-धूसरिय-सरीरइं दर-विद्दविय-धराधर-धीरइं काहल-कुल-कोलाहल-करणइं पह-सम्माण-दाण-संभरणइं अवहत्थिय-णिय-पुत्त-कलत्तइं _णिब्भर-रणसिरि-रामासत्तई दंति-दंत-णिहसुट्टिय-जालई हरि-खर-खुर-खोणिय-पायालई रह-रहंग-चिक्कार-रउद्दई चामर-मारुय-सुसिय-समुद्दई पहरण-पहर-वियारिय गत्तई रत्त-तरंगिणि-रेल्लिय-छत्तई असिवर-बिजुजोइय-गत्तई विरइय-सर-मंडव-सर-सयणइं संताविय-वसंग-पडिचक्कई दुद्दम-दुव्विसहइं दुल्लखई ८ घत्ता धयरट्ट-पंडुसुय-साहणई एम परोप्परु भिडियाई । णं विहि-वसेण णह-महियलई विण्णि-वि एक्कहिं घडियाइं॥ [२] ताम तुरय-तंवेरम-वाहणे भिडिउ पत्थु संसत्तग-साहणे हणइ हणेरु भीरु मंभीसइ सव्वसाइ सव्वत्तहे दीसइ सव्व-दिसेहिं सव्व-मायंगेहिं सव्व-रहेहिं सव्वहि-मि तुरंगेहिं रिउ पेक्खंति महासर-जालई णं उर-जंगम-कुलई करालई पभणइ कण्णु पेक्खु मद्दाहिव जालंधर-णारायण-पत्थिव रुद्ध धणंजउ एकु अणंतेहिं णं दिणमणि घणे हैं वरिसंतेहिं तो तावणि वि वुत्तु जतारें णरु ण धरिजइ खंधावारें पवणु ण केण-वि पोट्टले वज्झइ चित्तभाणु इंधणेहिं ण डज्झइ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ अट्ठहत्तरिमो संधि पत्ता ण मरइ मयरहरु तिसाइउ णइव पयावइ भुक्खियउ। अप्पहु ण सक्कु णिद्धणु धणउ णउ परमप्पउ दुक्खियउ॥ [३] तो कसाउ वट्टिउ रवि-णंदणे जोत्तिय हंस-वण्ण-हय संदणे सच्चसेणु रहचक्कहो रक्खणु थिउ णहसेणु अण्णत्तहे रक्खणु पुट्ठिपालु विससेणु थवेप्पिणु सल्ल महारह-धुरहे धरेप्पिणु धाइउ अंगराउ पंचालहं कइकय-करुस-कासि-महिपालहं ४ वेइव-सोमय-सिंजय-मच्छहं एवावरह-मि कर-परिहच्छहं पंचवीस पंचाल वियारिय सत्तरि सत्त भद्द-करि मारिय जाई जाइं णिय-णाम-पगासई णिहयइं चेइहिं सयइं सहासई भाणु स-चित्तभाणु विणिवाइउ वीरु स-वीरसेणु-वि णिवाइउ सेणाविंदु णरिंदु पिसक्केहिं पंच-वि एम पहय एक्कक्केहिं घत्ता तहिं अवसरे धाइउ पवण-सुउ वाहिय-रहु धुवंत-धउ। उज्झिय-करु पेल्लिय-पवर-तरु णाई गइंदहो मत्त-गउ॥ ताम सुसेणे समरे सुधीमहो छिण्णु सरेण सरासणु भीमहो अवरु लेवि तेण-वि तहो पाडिउ पडिवउ दसहिं थणंतरे ताडिउ तेहत्तरिहिं कण्णु विणिवारिउ दसहिं सुभाणुवंतु ओसारिउ तिहिं तिहिं किव-कियवम्म परज्जिय छहिं छहिं सउवल ओए विणिज्जिय ४ दूसासण तिहिं भल्लिहिं भेसिउ अवरु सुसेणहो उप्परि पेसिउ चंपाहिवेण छिण्णु असिधारउ तेहत्तरिहिं कण्णु पडिवारउ णउलु सुसेणे पंचहिं तच्छिउ वीसहिं मद्दि-सुएण पडिच्छिउ विहि-मि परोप्परु छिण्णइं चावई विण्णि-वि थिय सरीर-अपयावई ८ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता विससेणु ताम सिणि णंदणेण वच्छत्थले चम्म- रयणु भरेवि [५] सिणि-णंदणेण घिवेप्पिणु कंडई दूसासणेण लेवि ओसारिउ जायवेण विणिवारिउ संदणु अण्ण रहे आरुहेवि पधाइउ दुमय - दुहिय - दोमइ - दायाएं पवण-सुएण लइउ सउ सट्ठिहिं सत्तहिं माहवेण पडिवारउ कण्णें मग्गण तिउण विसज्जिय - छिण्णई सिरई सकुंडलई जत्तारिहिं रह रहवरेहिं घत्ता छिण्ण महाउहु वि-रहु किउ । - खग्ग- हत्थु जमु जेम थिउ । असिवर - फरई कियइं वे-खंडई सव्वेहिं अंगराउ परिवारिउ हउ णिडाले तिहिं दिणयर-णंदणु धट्ठज्जुणेण दसहिं पच्छाइर पहउ पंचहत्तरि णाराएं णउलेण तीसहिं सरवर- लट्ठिहिं अट्ठहिं परइ पंडव - धारउ दसहिं दसहिं ते सव्व परज्जिय - लुयई सरीरई स कवयई । रहियां तिणि सय हयई । १३६ [६] कोतिहिं वाल- भावे उप्पण्णहो धाइ धम्म- पुत्तु तो कण्णहो वेण्णि-वि रण-पंकय-फुल्लंधुय वेण्णि-वि पंडु-पुत्त-जेट्ठाणुय विणि- वि समर - सएहिं विणिवारिय विण्णि-वि विहिं वलेहिं परिवारिय विण्णि-वि रहवरेहिं सोवण्णेहिं विणि-वि हहिं हंस - छवि - वण्णेहिं ४ विण्णि-विकणय- किणंकिय-चावेहिं विण्णि-वि सरेहिं समुज्जल-भावेहिं विण्णि-वि वज्जंतेहिं वाइत्तेहिं विणि-वि चिंधेहिं वण्ण-विचित्तेहिं तो तव - णंदणेण पच्चारिउ फेsमि समर-सद्ध इह थक्कहि मित्त कहिं जाहि अमारिउ लडु पहरु पहरु तिह जिह रणे सक्कहि ८ ८ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठहत्तरिमो संधि १३७ घत्ता पच्चारेवि एम जुहिछिलेण णहु सर-जालें छाइयउ। णाय-उलु णवल्लउ लोहमउ दइवें णं उप्पाइयउ॥ तं सर-जालु हणेवि सर-जालें दसहिं विद्धु चंपापुरि-पालें तव-सुएण णाराउ विसज्जिउ तेण थणंतरे कण्णु विहज्जिउ घुम्ममाणु ओणल्लु स-वेयणु कह-वि कह-वि पच्चागय-चेयणु करयले कालवट्ट विप्फारेवि धाइउ धम्म-पुत्तु हक्कारेवि पहिलउं चंदकेउ दोहाइउ वीयउ दंडधारु विणिवाइड वेण्णि-वि चक्क-रक्ख तव-तोयहो णिहया णियंतहो पंडव-लोयहो तीसहिं तव-सुएण चंपाहिउ तेणवइहिं सरेहिं मदाहिउ तिहिं तिहिं चक्ख-रक्ख विणिवारिय तेण-वि सट्टि वाण संचारिय घत्ता धणु छिण्णु छिण्णु देहावरणु विप्फुरंतु वहु-मणि-गणेण। णं णहु इंदाउह-मंडियउ णिवडिउ सहु तारायणेण ।। [८] पाडिए कवय-चावे स-कसाएं _आयामेप्पिणु पंडव-राएं सत्ति विमुक्क झत्ति राहेयहो णं अडयण विड-भड-संकेयहो तेल्ल-धोय-घंटावलि-मंडिय सत्तहिं सायएहिं स विखंडिय तो सर मुक्क चयारि णरिंदें वाहु पसारिय णं गोविंदें रवि-तणएं तुरमाण तुरंगम छिण्ण-पक्ख किय णाई विहंगम णड्डु जुहिट्ठिलु सहु णिय-सेण्णे पच्छए रहवरु वाहिउ कण्णे जइ सच्चमउ राउ तो जुज्झहि थाहि थाहि कहिं जायवि सुज्झहि भीमु णउलु तुहुं तिण्णि-वि भग्गा संढ होवि सुहडत्तणे लग्गा अच्छइ एक्कु पत्थु मारेवउ हरिणु जेवं सहएवु धरेवउ ४ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ १३८ घत्ता तो मारुइ अमरिस-कुइय-मणु पंचाणणु जेवं पंच-णहहो उग्गय-गरुय-गयाउहउ। धाइउ कण्णहो संमुहउ॥ ताम सल्लु वोल्लाविउ कण्णे वाहि वाहि रहु दाहिण-कण्णे जहिं गज्जइ गंडीव-धणुग्गुणु जहिं संसत्तग-साहणे अज्जुणु मद्दाहिवइ कहइ किह वाहमि अग्गए पत्तु विओयरु चाहमि सीह-महाधउ वाहिय-संदणु किय-गय-घड-भड-थड-कडवंदणु ४ पहु-परिहव-पड-पक्खालण-मणु णिय-सुय-वह-कसाय-फुरियाणणु कोवें अंतगु हुयवहु तेएं सूरु पयावें खगवइ वेएं भणमि सउरि जाणमि वलवंतउ णिसियर-णियरु जासु अत्यंतउ कीय-कुल-कयंतु कुरु-केसरि वाहि वाहि रहु भीमहो उप्परि घत्ता जुज्झेवउ एण समाणु तुह सल्ल णिरारिउ आवडइ। किए पाराउट्ठए पवण-सुए णरु अप्पणु जे समावडइ ।। [१०] तो जत्तारें वाहिय-रहवरु तावणि पावणि भिडिय परोप्परु एकंतरिय वे-वि कोंती-सुय वेण्णि-वि परिह-पलंव-महाभुय वेण्णि-वि स-सर-सरासण-पहरण वेण्णि-वि दुद्दम-दणु-दप्प-हरण वेण्णि-वि पर-वल-पवल-वलद्धय वेण्णि-वि करिवर-कर कहरिद्धय ४ वेण्णि-वि कंचण-कवयालंकिय वेण्णि-विघण-घण-घाय-किणंकिय वेण्णि-वि सल्ल-विसोय-पुरीसर वेण्णि -वि चंपापुर-परमेसर वेण्णि-वि कुरुवइ-तवसुय-किंकर वेण्णि-वि सरहस सउरि-विओयर वेण्णि-वि समर-सएहिं अभग्गा वेण्णि-वि विजु-पुंज सम-भग्गा ८ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठहत्तरिमो संधि घत्ता णिय-णिय-पहरेवउं परिहरेवि पेक्खा थिय कुरु-पंडव । सर-णियरंतर-जूरंतएहिं पर सुर वहुएहिं दिट्ठ णिव ॥ । [११] विहि-मि परोप्परु ताडिउ वाणेहिं णवहिं णवहिं वाणेहिं अप्पमाणेहिं पवण-पुत्तु हउ थूण्णाकण्णे ___पडिवउ छिण्णु सरासणु कण्णे अवरु लेवि धणु रक्खस-काएं उरयडे भिण्णु कण्णु णाराएं मुच्छाविउ ओसारिउ सूएं दुजोहणेण विलक्खीहूएं पेसिय दस कुमार एक्कोयर थाहि थाहि कहिं जाहि विओयर वेढिउ सव्वेहिं णीसावण्णेहिं पंचासहिं रहेहिं सोवण्णेहिं तेण-वि पंचहिं पंच वियारिय पंच भग्ग कह कह-वि ण मारिय धाइउ चंपाहिउ पडिवारउ राइहिं थियउ णाई अंगारउ घत्ता रणे रहवर-सिहरे परिट्ठियहो वग-हिडिंव-जमगोयरहो। तंवेरमु जिह तंवेरमहो रवि-सुउ भिडिउ विओयरहो ॥ ८ [१२] तो समरंगणे णीसावण्णे मरु मरु पहरु कयंतें चोइय वियडु विभच्छु सुवच्छु सुभव्वउ एम भणेवि सिलासिय भासर भीमें सत्त दसारुण-तोएं पडिय णिरत्थ णिहालिय सल्ले भीमें परिहु भमाडेवि घत्तिउ अवरु भर-क्खमु धणु विप्फारेवि पवण-पुत्तु वोल्लाविउ कण्णे तिह जिह पंच कुमार विओइय अवरु सुमुक्कहु कुरु-कुल-पव्वउ णव राहेएं मुक्त महासर थरहरंत गय गयणाहोएं छिण्णु सरासणु अवरें सल्ले णिउ सय-सक्करु करेवि णिहंतिउ(?) छाइउ सरेहिं कण्णु पच्चारेवि ८ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता तुहुं मूलु अणत्थहं सव्वह-मि वर - वसण- विराड - घरासम [१३] जिह गुणु छिण्णु सुहद्दा- तोयहो थाहि थाहि तिह एम भणेप्पिणु भिण्णु देहु सहुं देहावरणें पंचवीस सर पेसिय कण्णें पवण - पुत्तु उप्पएवि गयाउहु लउडि- पहारें किउ कडवंदणु णासवारु णारोहु ण किंकरु सव्वई धूलिकरेइ रणे तूवरु गय-घाएहिं भीमें चूरियइं सोवण्णमयहं सउ संदणहं घत्ता जउहर - जूय-कयग्गहहं । दाहिण - उत्तर - गोग्गहहं ॥ [१४] कह-मि ण पइसइ रह-गय-वाहणु सुवल-सुण ताम असिहत्थहं पंच सय रहवरहं स - रहियहं एक्वें भीमें कोवाऊरिय तावं परोप्पर सर - संछण्णहं सरहस वावरंति णारा एहिं सारहि जम- पुरवरे पइसारिउ कड्ढि कह- मि तुरंगेहिं रहवरु जिम महु णंदणु णिउ जम-लोयहो विद्धु थiतरे थाणु एप्पिणु कह-वण जीविउ णिउ जमकरणें खंडिउ रहवरु थूणाकण्णें धा रणे राहो संमुहु चुक्कउ तुरउ ण धुरउ स - संदणु णायवत्तु ण धयग्गु ण चामरु चूरिउ सउरि - महारह - कूवरु तीस सयाइं तुरंगमहं । सत्त सयई तंवेरमहं ॥ वम्मु व अग्गि-तत्तु कुरु-साहणु पेसिय तिणि सहासइं अत्थहं सव्वाओग - सव्व-वल सहियहं सव्व गयासणि-घाएहिं चूरिय जाउ महाहउ तवसुय- कण्णहं णं वे दियर - कर- संघाएहिं स- रहिउ जाणवत्तु ओसारिउ धाइउ ताम तुरंतु विओयरु - १४० ९ ४ ८ ४ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ अट्ठहत्तरिमो संधि घत्ता दुक्कंतहं तावणि-पावणिहिं सच्चइ सच्चाहिट्ठियउ। णं विहि-मि राहु-अंगराहं अंतरे धूमकेउ ठियउ ।। _ [१५] जाउ महंतु महाहउ ताह-मि जो ण हूउ णउ होसइ काह-मि किंपि ण दीसइ सरवर-जालें जगु कंपाविउ णं दुक्कालें जलु थलु णहु पेलंतु पधाइउ सलह-विंदु जिह कहि-मि ण माइउ ताम पयंगु ढुक्कु मज्झण्णहो तिण्णि सुसम्मे उरयडि कण्णहो लाइय थरहरंत णव पत्थहो एक्कु भल्लु वाणरहो धयत्थहो तूरइं देवि करेप्पिणु कलयलु धाइउ सव्वु अखत्तें पर-वलु केसउ केसहिं धरेवि णिरुद्धउ रहे वलग्गु णरु संसए छुद्धउ घत्ता तो कह व कह व वइहत्थिएहिं तालुयवम्म-खयंकरेण । ओसारेवि वलु मेहउलु जिह करेहिं कढोर-दिवायरेण ॥ दुद्दम-दाणविंद-विणिवायणु जो णायणेहिं वंधु दरिसाविउ पूरिउ पंचयण्णु तो देवें पाय-णिवंधु करेविणु वद्धा एक्कु-वि पउ ण देवि णारायणु ताव तिगत्ताहिवेणोसासिय णं घण-वंधहो घण णीसारिय अवरे णरु णरेण घुम्माविउ वोल्लाविउ णरेण णारायणु सो मइं रह-णिवंधु विहडाविउ तट्ठ पणट्ठ वइरि विणु खेवें णाग-पास-पासेहिं ओवद्धा सुक्के खीलिय जेवं महाघणु गारुडेण अत्थेण विणासिय भीम भुअंग सव्व ओसारिय कह व कह व रह-सिहरु ण पाविउ ८ घत्ता तो चेयण लहेवि धणंजएण पउरंदरिहिं महाउहेहिं। भिजंतु असेसु वि वरि-वलु असरणु णडु दिसामुहेहिं ।। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ [१७] - विविणिवाइय -- - विपण हंस - समप्पह पाडिय हयवर कुलगिरि - सिंग-तुंग तंवेरम कुंडल-मंडिएहिं गंडयलेहिं भुय - दंडेहि केउरालिद्धेहिं सिविया - जाण - जाण - जंपाणेहिं दढ - पाउडय - विविक्ख - सवंघेहिं भिसिया - घंटा - किंकिणि-जालेहिं घत्ता aगरणेहिं ओएहिं अवरहि-मि किउ णाई णवल्लउ पावरणु दस सहास तहिं अवरे घाइय सुरवर-पुर- पासाय व रहवर - रिंद णक्खत्त-गहोवम घोलिर - हारि-हार - वच्छयलेहिं चामर - पुंडरीय-धय- चिंधेहिं कवियंकुस - माणिक-पल्लाणेहिं पक्खर - गेज्जा- पुरजणि वंधेहिं मुहवड- वइजयंति उडु - मालेहिं पेक्खंतहो आहंडलहो । णरेण सयं भू-मंडलहो । इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव - कए अट्ठहत्तरिमो सग्गो | - - १४२ ८ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊणासीइमो संधि णर-णाराय-कडंतरिउ तूरइं देवि स-कलयलई णिएवि सुसम्म-महारह-वाहणु। धाइउ पत्थहो कउरव-साहणु॥ जं रह-गय-तुरय-महावरेण्णु विद्दविउ तिगत्तहो तणउ सेण्णु तं रण-रस-रहस-समुब्भडाहं खर-पवणुप्पेल्लिय-धयवडाहं सोवण्ण-रहंग-मणोरमाहं गंधव्व-महापुर-विब्भमाहं दस सहस पधाइय रहवराहं । सय तीस पसत्थहं किंकराहं कियवम्मु कण्णु किउ सउणि-मामु दुजोहणु भुवणुच्छलिय-णामु गुरु-णंदणु सहुं दूसासणेण णं पवणु समाणु हुवासणेण एक्कल्लउ अज्जुणु रिउ अणेय भग्गा-वि समागय अप्पमेय लंघिज्जइ तो-वि ण कुरु-णरेहिं परिचिंतिउ केहि-मि कायरेहिं घत्ता णरु णारायणु तुरय रहु सरु गंडीउ कइंद-महद्धउ। आइय सव्वइं जम-मुहइं दुक्करु चुक्कइ को-वि अखद्धउ ॥ ८ [२] एत्तहे-वि रइय-सर-मंडवेहिं पंचालेहिं मच्छेहिं कइकएहिं सिवकासिहिं करुसिहिं चेइवेहिं णर-णियर-करेरिय-वाहणाई ओवाहिय-रहवर-रहवराई भड भडहं तुरंग तुरंगमाहं सोणियई वहंति अणिट्ठियाई पहरण-डरेण रणे दुण्णिरिक्खें परिवारिउ पंडउ पंडवेहिं जायव-सिणि-सोमय-सिंजएहिं ओएहिं अवरेहि-मि पत्थिवेहिं पडिलग्गइं विण्णि-वि साहणाई उद्धाइय-गयवर-गयवराई महि भरिय मंस-वस-कद्दमाहं सिर-मेत्तइं जाम परिट्ठियाई णं णासेवि थिउ रवि अंतरिक्खे ८ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता रुहिर-महा-णइ अंतरिउ पर-वलु णिएवि समुक्खय-कंड। को-वि तरंतु तरंतु गउ धम्म-रयणु करे करेवि तरंडउ॥ ९ तहिं पंडव-कउरव-रणे रउद्दे महि लंघेवि थिए सोणिय-समुद्दे मुहु वंधेवि भीम-धणंजयाहं किउ धाइउ सोमय-सिंजयाहं छिंदंतु रहंगई रहवराहं पज्जत्तई गत्तइं गयवराह सावरणइं हयइं उर-त्थलाई सामंतहं सिरई स-कुंडलाइं धाइउ सिहंडि मंभीस किंतु पर-वलहे पिसक्केहिं पाण लें। णिक्किवेण किवेण णव सरेहिं विद्ध तेण-वि सो सत्तहिं पडिणिसिद्ध आरुढ़ेगउतम-णंदणेण धय-दंडु छिण्णु सहुं संदणेण स-तुरंगु स-सारहि धणु-वि भग्गु तो स-फरु सिहंडें लइउ खग्गु घत्ता किवेण किवाणु विच्छिण्णु दुजोहण-णयणाणंदें। णं उप्पाय-काले णहहो णिवडिउ विज्जु-पुंजु सहुं चंदें। ___ [४] तो गउतम-णंदण-गहण-हेउ णामेण णराहिउ चित्तकेउ थिउ पुरउ सिहंडिहे विहुर-काले किउ ताडिउ णवहिं थणंतराले तो आसत्थामहो माउलेण वाणासणु छिण्णु अणाउलेण विणिवाइउ सारहि भिउडि-भीसु अवरेण खुरुप्पें खुडिउ सीसु हक्कारिउ तो धट्ठज्जुणेण कियवम्में सो-वि वलत्तणेण तो भिडिय परोप्परु सव्व-संध पंचाणण पंच व वसह स-खंध विप्फारिय-धणुह णिवद्ध-तोण णिम्मह पच्चाहणिच्चोणवोण(?) एक्कु वि एक्कहो जीविउ ण लेइ एक्कु-वि एक्कहो जिणणहं ण देइ घत्ता जायउ दुमयहो णंदणेण कह व कह व रणे किउ विवरेरउ । सारहि घायउ भग्गु रहु णाई मणोरहु कुरुवइ-केरउ ।। ८ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊणासीइमो संधि अण्णेत्तहे मुक्क-महासुयाह रणु वट्टइ गुरुसुय-तवसुयाहं हउ तेहत्तरिहिं जुहिट्ठिलेण सत्तरिहिं पिसक्केहिं सयवलेण सिरि-तणएं वत्तीसहिं सरेहिं पडिवेसें सत्तहिं तोमरेहिं सुयवम्म तिहिं कुलिसोवमेहिं सुयकित्ती पंचहिं अहि-समेहिं गुरु-सुएण-वि सत्तहिं पहु णिसिद्ध सच्चइ पंचहिं पंचेहिं विद्ध विहिं विहिं अवसेस किय वि-चाव णीसंदण णिद्धय णिप्पयाव तहिं अंतरे पभणइ धम्म-पुत्तु वंभणहो खत्तियत्तणु अजुत्तु एक्कु-वि उवयारु-वि पई ण णाउ लइ विहिं तिहिं दिवसहिं हउं जे राउ ८ घत्ता मई तव-सुएण विरुद्धएण तुहुं किउ विण्णि-वि किवं जीवेसहो। अज्जु व कल्ले व दिवहडए णिक्खउ रवि पिहिवि पेक्खेसहो॥ ९ तो एम भणेवि ओसरिउ राउ णिहुवउ जे परिट्ठिउ दोण-जाउ आभिट्ट भीमु तो कुरु-णराहं एत्तहे-वि पत्थु जालंधराहं एत्तहे-वि महंताओहणेण हउ णवहिं णउलु दुज्जोहणेण चउ-भल्लेहिं तुरय-चउक्कु भिण्णु सहएव-महद्धउ खुरेण छिण्णु णउलेण एक्कवीसहिं णिसिद्ध सहएवं पंचहिं सरेहिं विद्ध धयरट्ठ-सुएण वरासणाई जमलहं पाडियइं सरासणाई पडिवाराहय तिहिं तिहिं सरेहिं पुणु पंचहिं पंचहिं तोमरेहिं अवरइं जम-मुह व भयंकराई उद्धाइय धरेहिं धणुद्धराई पत्ता भिडिय जमल दुजोहणहो छाइउ सरेहिं पराणिउ आवइ। धारा-णियर-णिरंतरेहिं विहिं जलहरेहिं गिरि णावइ । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिहणे मिचरिउ १४६ तो विण्णि-वि कुरु-परमेसरेण ओसारिय सरवर-पंजरेण तहिं अवसरे वाहिय-संदणेण हक्कारिउ दुम्मयहो णंदणेण सिल-धोय-धार-कलहोय-भीस णारायण विसज्जिय पंचवीस कुरुवेण-वि पेसिय पंचसट्ठि पंचालहो पाडिय चाव-लट्ठि पण्णारह अवरें धणुवरेण पेसिय मायंदें पुरेसरेण तणु-ताणु स-तणु ताडेवि पिसक्के कह कह-विण कुम्म-कडाहे थक्के मुच्छाविउ कुरुवइ लद्ध-सण्णु दोहाइय-धणु लय पुणु-वि अण्णु पडिवारउ दसहिं णिडाले विद्ध मुह-कमलु णाई थिउ अलि-समिद्धु ८ घत्ता अवरु सरासणु करे करेवि सारहि चिंधु तुरंग महाधणु। सव्वई पीडेवि वि-रहु किउ कड्डेवि कुरुवेहिं णिउ दुजोहणु ।। [८] जं कुरुव-णराहिउ वि-रहु जाउ तं समुहु समुट्ठिउ अंगराउ सामंत-विहंगम रुलुघुलंत थिय कण्ण-महादुमे वीसमंत पंचालेहिं वेढिउ मुएवि खत्तु णं जगु जे गिलंतु कयंतु पत्तु अट्ठाहिय अट्ठहिं तोमरेहिं णं खद्धासीविस-विसहरेहिं चित्ताउहु सुवण्णु मइंदकेउ जउ सुक्कु सक्कु सर्लकेउ अट्ठमउ णराहिउ रोयमाणु वेइय-वह के वुज्झिउ पमाणु देवावि विचित्तु विचित्तकेउ भद्दाउहु रोयणु सीहकेउ ओए-वि अवर-वि चंपाहिवेण विणिवाइय रणउहे णिक्किवेण घत्ता हय-गय-रहंग चूरंतु रणे धरेवि ण सक्किउ पंडव-लोएं। कण्णु वियंभिउ कवणु जिह विसम-महासणि सर-संजोएं। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ ऊणासीइमो संधि [९] जिह रवि-सुउ सोमय-सिंजयाहं णिय सुय-वह-वड्डिय-वेयणेण लइ जाह देव जहिं अंग-राउ गय विण्णि-वि तहिं ढुक्कंति जाम तिहिं सएहिं मत्त-तंवेरमाहं विहिं लक्खेहिं पवर-धणुद्धराहं सरवरेहिं विणासिय दस सहास कंवोय-णराहिय-णामधेउ तिह भीम वियब्भ-महागयाहं वोल्लाविउ हरि कइ-केयणेण मारेवउ मई णंदण-सहाउ संसत्तग पच्छले लग्ग ताम सहसहिं चउदहहं तुरंगमाहं णरु वलिउ तहि-मि जालंधराहं णिय-वलहो करेवि जय जीवियास णं णहे उद्धाइउ धूमकेउ ८ घत्ता सो धावंतु धणंजएण एक्के पाडिउ सिर-कमलु तिहिं तिक्खेहिं सरेहिं समाहयउ। अवरेहिं छिण्ण वे वाहउ।। [१०] णिय पय-पेक्खण-पक्खुहिय-खोणि पडिलग्गु कीरिडिहे ताम दोणि णाराएहिं णर-णारायणाहं धय विद्ध णियंतहं सुरवराहं सम्मोहहो गउ गंडीवधारि दोणायणि जमरूवाणुकारि विणिवारिउ किं अम्हारिसेण महुसूयणु पभणइ अमरिसेण कहिं तुहुंण धणंजउ किण्ण पाण किं करे गंडीउ ण किण्ण वाण किण्ण-वि भुव ण-विरहु णवि य वाह किं अण्णे केण-वि विद्ध राह किं अण्णे खंडवे जलणु दिण्णु किं अण्णे सुर-वलु सरेहिं भिण्णु घत्ता अण्णे तालुयवम्म जिय गो-ग्गहे धणु परियत्तिउ अण्णे। ल्हसिउ जेण गुरु-णंदणहो मंछुडु तुहुं मारेवउ कण्णें ॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १४८ ४ णारायण-वयणेहिं चित्तु देवि धणु एक्के एक्के गुणु विहत्तु अवरेण सरेण रहंगु भग्गु अवरेण सत्ति अवरेण कुंतु पंचहिं मुच्छाविउ दोण-पुत्तु संसत्तग-वले पडिलग्गु पत्थु दुजोहणु वियसिय-कमल-णेत्तु वोल्लाविय रविसुय-पमुह राय सिल-धोय चउद्दहं वाण लेवि अवरेक्के पाडिउ आयवत्तु अवरेण लउडि अवरेण खगु अवरेण तिसूलु ति-भाय होंतु ओसारिउ सूएं मग्गे हुंतु कुरु-सेण्णे विओयरु लउडि-हत्थु ओसारेवि परिट्ठिउ कोस-मेत्तु परिरक्खहु कुल-परिवाडि आय ८ घत्ता जिम मित्तहो जिम सामियहो सरणाइयहो कज्जे दिव दिज्जइ। सीसें एत्तिउ कज्जु पर खंधारूढु अण्णु किं किज्जइ। ४ [१२] तो चेयण लहेवि स-संदणेण वोल्लिज्जइ दोणहो णंदणेण जं करमि पेक्खु तं कुरुव-राय मारेवा मइं दोमइहे भाय दक्खवमि जाम जम-णयर-वारु । परिहरमि ताम णउ संपहारु एक्कु-वि गुरु वइरु महंतु अज्जु अण्णु-वि गरुयारउ सामि-कज्जु संपज्जइ जुहिट्ठिलु वलहो ढुक्कु णं मंदरु सायरे सुरेहिं मुक्कु णं गरुड़ भुवंगम-कुलइंखाइ गय-जूहइं जोहइ सीह णाइ पेक्खेप्पिणु णिय-वलु भीयमाणु किवि-णंदणु वाणेहिं खीयमाणु जिय-परेण विणासिय-खंडवेण वोल्लाविउ माहउ पंडवेण घत्ता भाइहे एक्कु-वि पासे ण-वि दिवसु ति-भाय-सेसु लइ वट्टइ। एवंहिं तिह करि महुमहण जिम महु रवि-सुउ रणे आवट्टइ॥ ९ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊणासीइमो संधि १४९ [१३] रण-रामा-रमणुकंठुलासु णारायणु पभणइ सव्वसाइ पर दीसइ पावणि गयइं देंतु अण्णेत्तहे चूरइ वलई दोणि राहेएं एंतउ पडिणिसिद्ध रवि-तणएं धणु तणु तासु छिण्णु अवरेण भर-क्खम कम्मुएण भाणवेण णिहम्मइ किर सरेण गय विण्णि-वि पासु जुहिट्ठिलासु कमे कण्णहो एक्-वि भडु ण थाइ गय-घाएहिं गयवर खयहोणेतु अण्णेत्तहे धाइउ जण्णसेणि सो दुमय-सुएण सएण विद्ध पडिवारउ णवहिं सरेहिं भिण्णु सत्तरिहिं जण्णसेणहो सुएण णिउ सत्त-खंड हरि-भायरेण पत्ता सच्चइ कण्णहो विहि-मि रणु जाउ णियंतहो सुरवर-विंदहो। ताम दोणि धट्ठज्जुणहो धाइउ जेम गइंदु गइंदहो। [१४] पासाय-समप्पह-संदणेण वोल्लाविः दोणहोणंदणेण अरे गुरुवह-कारा थाहि थाहि कहिं मई जीवंते जीवंतु जाहि तो मणे आसंकिउ जण्णसेणि णिय-वइरु हणेसइ णवर दोणि चिंतंतु परोप्परु भिडिय केवं गजंत मत्त मायंग जेवं पंचालें ताडिउ तोमरेण गुरु-सुएण महासर-पंजरेण धणु परिहु सत्ति तिह ताडियाई अ-कियत्थई हत्थहो पाडियाई रहु सारहि तुरय-चउक्कु छत्तु धणु असिवरु फरु अवरेहिं विहत्तु पुणु भिण्णु णिरंतर-तोमरेहिं णं सरय-महाघणु रवियरेहिं - घत्ता चिंतिउ दोणहो णंदणेण ण मरइ इह पहरणेहिं रणंगणे। करमि णवल्ली धूलडिय सुर-वि जेम णियंति णहंगणे॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० रिट्ठणे मिचरिउ _[१५] गुरु-पुत्तु वहंतु महंतु सल्ल पडिलग्गु णिजुज्झें जेम मल्ल उच्चाइउ वाहेहिं रणे अराइ दसकंधरेण कइलासु णाई सिरि-रामालिंगिय-विग्गहेण णं महिहरु सुरवर-महिहरेण अच्छोडइ वसुहावलए जाम दरिसावइ णरहो मुरारि ताम सक्कंदण-णंदण धाहि धाहि धट्ठज्जुणु हउ हय वाहि वाहि तो अज्जुण-वाणेहिं भिण्णु साउ आरूढु महारहे लइउ चाउ तहो धाइउ तो गंडीव-धारि सर थरहरंत लाइय चयारि घत्ता पत्थें अमरिस-कुद्धएण चामर चावई छत्त धयग्गइं। गुरु-सुउ सारहि रहु तुरय सब्बई कियई मडप्फर-भग्गई। [१६] तहिं काले पणच्चिय-तंडवेहिं जय-तूरई दिण्णई पंडवेहिं पप्फुल्लिय-जंपण-कंजएण वोल्लाविउ सउरि धणंजएण लइ जाहुं जणद्दण तं पएसु संसत्तग-वलु जहिं किंपि सेसु दासारुहु दावइ पेक्खु पत्थ दुज्जोहण-पमुह महा-रहत्थ णर-णाहहो धाइय वद्ध-कोह णं गिरि-वेयड्डहो घण-घणोह परिवेढिउ सव्वेहिं धम्म-पुत्तु सच्चइ सिहंडि जमलेहिं गुत्तु पेक्खंतहं सोमय-सिंजयाह सिवकासि-करूसहं कइकयाहं घुसलेप्पिणु तवसुय-सेण्ण-सिंधु राहेएं रोहिउ राय-चिंधु घत्ता सउणि-दोणि-दूसासणेहिं किव-किववम्म-कण्ण-कुरुणाहेहिं। पीडिजंतउ पेक्खु वलु जेम वालु वालग्गह-गाहेहिं ।। दरिसावइ जायउ पेक्खु पत्थ परिहरु तव-तणयहो तणिय आस का वट्टइ पंडु-वलहो अवत्थ जसु भिडिय णरिंदहं दस सहास Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ परिसंखण जाणमि किंकराहं पंचास सहस तंवेरमाहं धणु-वाण - भयंकरु रणे सुधीमु धज्जु सासणेण भग्गु विससेणें उलहो मलिउ माणु हय- चिंधु णिराउहु गलिय-गत्तु घत्ता पेक्खु अवत्थ जुहिट्ठिलहो गउ सिमिरहो सवडम्मुहउ सय पंच सुवण्णहं रहवराहं पण्णारह सहस तुरंगमाहं तिहिं अक्खोहणिहिं विरुद्धु भीमु रवि - सुउ सिहंडि - अणुपण लग्गु लुसलु-वि दीस भज्जमाणु कह कह व ण मरणावत्थ पत्तु लयउ णिरंतरु कण्णहो कंडेहिं । सर कडुंतु सई भुव- दंडेहिं ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव - कए ऊणासीइमो सग्गो | - ऊणासीइमो संधि ४ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असीइमो संधि मलिय-मरट्टहो रिउ-घाय-जाय-विच्छायहो । णर-णारायण गय पास जुहिट्ठिल-रायहो । [१] हरि दरिसावइ पेक्खु धणंजय सुरवइ-वइरि-पुराण-पुरंजय पेक्खु भीमु गय-घाएहिं घाइउ रह-रहंग रहि एक्कहिं लाइउ पेक्खु महागय महिहिं पउंजिय णं उप्पाए महाघण पुंजिय पेक्खु जेम उड्डूंत विहंगम रंगाविय रण-रंगे तुरंगम पेक्खु केम वड्डिय-अवलेवहो णासइ सउवल-सुउ सहएवहो किव-कियवम्म पेक्खु पडिलग्गा उत्तमोज-जुहमण्णहिं भग्गा छत्ते पंडुरेण चंपावइ उययसेल्लु छण-चंदें णावइ वड्ड-वार पइं पत्थ णिहालइ णं कियंतु भोयणु पडिवालइ घत्ता सउणि वारेवि सच्छंदु भमइ रणे सच्चइ । जिय-दुजोहणु उवविजय भीमु किह णच्चइ॥ [२] पेक्खु कण्णु किह कहि-मि ण माइउ धम्म-सुआणुपहेण पधाइउ मद्दाहिवेण ण वाहिउ रहवरु जाउ जाउ एहु जीवइ दुक्करु जाउ जाउ सव्वंगिउ विद्ध जाउ जाउ दोहाइउ पिद्धउ जाउ जाउ समरंगणे संकिउ तउ वाणासणि सहेवि ण सक्किउ वाहि वाहि रहु जेत्तहि अज्जुणु जहिं हरि हर-गल-गवालणज्जुणु जहिं कलहोय-कइद्धउ धुव्वइ जहिं गंडीव-धणुह-गुणु सुव्वइ वरिसइ रवि-सुउ किर सर-जालेहिं तावणि-रूवु पंडु-पंचालेहिं कासि-करुस-कइकय-सामंतेहिं सोमय-सिंजय-वलेहिं अणंतेहिं ४ । ८ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ असीइमो संघि घत्ता अमरिस-कुद्धएण भग्गु वत्थु भावेण विसजिउ। पंडव-साहणु जुझंतउ तेण परजिउ॥ पेक्खु पेक्खु किह किय-विवरेरा सत्तारह रह कइकय-केरा अंगराय-णाराय णिघिट्ठा गंपिणु भीमहो सरणु पइट्ठा एत्तहे पावणि घणु जिह गज्जइ एत्तहे पंडव-साहणु भज्जइ एत्तहे कुरुव-वरूहिणी धावइ एत्तहे तव-सुय-वत्त ण णावइ एत्तहे संसत्तग रणे दुज्जय जं जाणहि तं करहि धणंजय चिंताभारु एम जं पित्तउ तं णरु सोय-समाउल-चित्तउ गउ तेत्तहे जेत्तहे एक्कोयरु हत्थि-हडउ विद्दवइ विओयरु अहो विस-विसम-मोय-पसमावण जउहर-जलण-जाल-विहडावण अहो किम्मीर-कुरुव-करि-घायण वग-हिडिंव-कीया-विणिवायण घत्ता पंडव-णाहहो लइ एक्क-वि वत्त ण वुज्झमि। जाहि गवेसहि हउं भीम रणंगणे जुज्झमि ॥ [४] पभणइ पवण-पुत्तु स-विसेसउ जाहि धणंजय तुहुँ जे गवसउ मई चूरेवि गय-घडउ सइच्छए मरइ णरिंदु रूवेसहुं पच्छए महु संगामहो अवसरु वट्टइ जुज्झमाणु को सिमिरु पयट्टइ कुरुवहं संति समुट्ठइ कलयलु अण्णु-वि अणुपहे लग्गइ कुरु-वलु ४ तो सरोसु पभणइ दामोयरु जाहुं पत्थ वावरउ विओयरु को वीहइ दुजण-जंपणयहो पेक्खहुं वयण-कम्मलु तव-तणयहो पच्छए चंपाहिउ आरोडहि सिरु स-किरीडु स-कुंडलु तोडहि एवं चवंत पत्त पह-मंदिरु सज्जण-जण-मण-णयणाणंदिरु ८ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १५४ घत्ता दिडु जुहिट्ठिलु हरि-विजएहिं सामल-देहेहिं। कंचण-गिरिवरु मेहागमे णं विहिं मेहेहिं ।। [५] णर-णारायण णिएवि जुहिट्ठिलु तुट्ठ सु? णिय-रढुक्कंठुलु मंछुडु णिहउ दिवायर-णंदणु आइउ पत्थु तेण स-जणद्दणु साहु साहु तोसिय-पवरामर पंडव-संड-खंडववण-डामर साहु साहु हरि गिरि-सिर-धारा कह-वि जियंतें दिलु भडारा कहि कहि कण्णु केम विणिवाइउ । जेण महारउ रहु दोहाइड जेण तुरंग भग्ग रहु खंडिउ सूउ स-चक्करक्खु मुउ छंडिउ जो सुसेण-विससेणहिं रक्खिउ पंडव-कलह-केलि कुरु-पक्खिउ जो अणुदिणु अप्पाणु पसंसइ अज्जुणु हणमि पइज्ज पगासइ घत्ता तेरह वरिसइं जसु भइयए णिद्द ण आविय । तहो राहेयहो किह थरहरंत सर लाइय॥ ८ ४ जसु भएण वणंतरे मुत्ता जेण कवड-दुंदुहि पाडाविय जेण पुत्तु कुरु-जंगल-मच्छहो जसु देव-वि अदेव रणे रुट्ठहो । भणइ धणंजउ रह-गय-वाहणे जहिं तिगत्त-संसत्तग-लक्खई जहिं णारायण-गण आपमाणा कुंकुण-तामलित्त जहिं पच्छल पंडव जेण संढ-तिल वुत्ता दोमइ दासि भणेवि कड्ढाविय धणु लेवाविउ पट्टणे मच्छहो तहो सिरु पाडिउ किह पइं दुट्ठहो अच्छिउ हउं रमंतु रिउ-वाहणे जहिं जालंधर-वलइं असंखइं जाहिं हिरण्णपुर-वासिय राणा कीर कुणिंद णीर सम्मेहल Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ असीइमो संधि घत्ता वलई अणंतई महु एकहो रणे आभिट्टई। कियई मइंदेण करि-कुल इव भग्ग-मरट्टइं।। मई सर-सीरिय पवर तुरंगम छिण्णइं चिंधई चामर-छत्तई ताम दिवायर-रह-सम-संदणु रह पंचास तुहारा चूरेवि सरहसु महु सवडम्मुहु धाइउ अट्ठ महारह पहरण-भरिया जे जुझंति पउहर णं देतिहिं ते उड्डाइय सव्व रणंगणे भग्ग रसंत मत्त तंवेरम पंच सयइं रहवरहं विहत्तई स-सर-सरासणु कुरु-गुरु-णंदणु दुजोहणहो मणोरह पूरेवि णं गयवरु गयवरहं पराइड णं गिरिवर-तरु-णियर वावरिया अट्ठहिं अटेहिं पर-वल देतिहिं णं दुव्वाएं घण गयणंगणे घत्ता सरेहिं भरेप्पिणु संदेह-भावे पइसारिउ। उवहि व रामेण कह कह व दोणि ओसारिउ॥ [८] ताम विओयरेण मय-भेभल भग्ग गयासणि-घाएहिं मयगल पच्छए ओसारिउ दुजोहणु सिणि-णंदणेण सउणि कलि-रोहणु सत्त सयइं चूरेवि चंपावइ महु थाणंतरु जाम ण पावइ तो उच्छलिय वत्त चउ-पासहो किउ रणे रवि-सुएण तणु-सेसउ तेण णाह हउं आउ गवेसउ भणइ अजायसत्तु किह धीरेहिं णर-गंडीव-वाण-तोणीरेहिं अज्जुणु किण्ण णाउ किउ अण्णहो भज्जइ जेण मडप्फरु कण्णहो किं णक्खत्तणेमि सेयासहो जुज्झइ भीमु वे-वि किह णासहो कवण तउ ण सामग्गि धणंजय किं धणु किं ण वाण रणे दुज्जय Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ किं ण महारहु किं ण जणद्दणु घत्ता [९] किंण वाहु किं तुहुंण धणंजउ किंण कणिड्डु हिडिंवा कंतहो किं ण पंडु - कुंतिहे उप्पण्णउ किं ण दोणु गुरु सीसुण सच्चइ राहण विद्ध भमंति णहंगणे सुरह णियंतहं हिय णिवाय - कवय ण महाहवे धणु णणियत्तिउ जिउण पियामहु दण खंडउ घत्ता जइ आसंकि तो सई जुज्झइ कंण विहय किं ण महद्धउ । जं रवि-सुण उद्धउ ॥ तहो तोसिय- कुरुव- णरिंदहो । गंडीउ देहि गोविंदहो । [१०] ड्ड मंडलग्गु तो पत्थें कहे कहो-वि कोसु किं खंडउ किं महु किं णिययहो किं रायहो जो प म गंडी विकत्थइ मं धरि धर-धराधर-धारा भइ जणद्दणु गुरु ण वि हम्मइ haणु धम्मु कि आमिस-भक्खणे कवण पइज्ज वंधु - विद्धंसणे किमु वा संग-संगु सयरज्जउ किं ण-वि भइणिवइउ अनंतहो किं ण पुरंदरु तउ सुउपसण्णउ जेम कण्णु जम-रुण वच्चइ दोमइ लइय ण मंड रणंगणे मेहण भग्गण किउ सर - मंडउ लग्गु ण कुरुव- रिंद - पराहवे उभयवत्तु ण वहिउ जयद्दहु पुच्छिउ महुमहेण परमत्थें कहो जलणिहि जले तुट्टु तरंडउ रेण वुत्तु सिरु पाsमि आयहो सो विणासु अप्पाणहो पत्थइ पुज्जउ अज्ज पइज्ज भडारा कसाएं रहो गम्मइ कवणु असच्चु पाणि-परिरक्खणे कवण भत्तणु यिय- पसंसणे १५६ ९ ४ ४ ८ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ उरिसियो मउ परिरक्खणे अम्हेहिं सव्वेहिं अक्खु जुहिट्ठि घत्ता खंडव - डह - डामरु आहासइ जो गंडी परहो देवावइ अच्छउ एण कसाएं लइयउ पई वुज्झाविउ देवइ- णंदण तुहुं गुरु माय - वप्पु तुहुं सामिउ भइ मुरारि पइज्ज ण जुज्जइ वरि मरियण वुत्तु अहिखित्तउ पंकयणाह - णाह-उवएसें [११] चोरि णिहि सत्थु दावंतउ । पहिउ वि देवत्तणु पत्तउ ॥ - घत्ता कोण वोल्लइ महु परमत्थें सउरि ण वोल्लइ पाण-सहेज्जउ भीमु ण वोल्लइ विक्कमवंतउ रक्खिउ जेण जलंतए जउहरे भगु किमीरु जडासुरु कीयउ पइं पत्थिवेण कवणु किउ सुंदरु पद्मं पत्थिवेण वसुंधरि हारिय परं पत्थवेण किलेस - णिरंतरे [१२] एक्क्क्कर रणे विणिवाइउ । परं कवणु णराहिउ घाइउ ॥ तिह करि जिह पइज्ज णउ णासइ सो विणा महु पासो पावइ मोह - महा-तम- जालें छइयउ जं पणहि तं करमि जणद्दण तुहुं सुहि विहर-तरंगिणि-गामिउ जइ जेट्ठहो जेट्ठत्तणु भज्जइ तं भणु जेण होइ अवचित्तउ धम्म- पुत्तु सविउ विसेसें लालिउ पालिउ जेण सहत्थे जासु पसाएं हउ रणे दुज्जउ अच्छइ अज्जु -वि जो पहरंतउ हिउ हिडिंवु हिडिंव-वणंतरे जेण कयंत णिहेलणु णीयउ मंडिउ कवड - जूउ दउरोयरु दोइ जण मज्झे वित्थारिय तेरह वरिसइं वसिय वणंतरे असीइमो संधि ४ ८ ९ ४ ८ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १५८ घत्ता एम भणेप्पिणु थिउ पुणु-वि किवाण-भयंकरु । दिमु अणंतेण णं विज्जु-लग्गुणव-जलहरु ।। पुच्छइ गिरि-गोवद्धण-धारउ गग्गर-गिरेण कहिजइ पत्थे धरिउ धणंजउ जायव-णाहें अज्जुणु माण-गइंदारूढा ते णर होति णिगोयण-भायण आउ हणंतहं आउ णिहम्मद करि पणिवाउ जुहिट्ठिल-रायहो तो पयंदुरुहइं तव-तोयहो कहो किउ असि वि-कोसु पडिवारउ छिंदमि णियय-सीसु सई हत्थें थोरासण-थेरासण-हत्थे अप्पावह करंति जे मूढा किज्जइ तेण पाणि अप्पायण वड्वारंतहं मोक्खहो गम्मइ मुच्चहि जेण णिवद्ध-कसायहो णमियई णरेण णियंतहो लोयहो ८ । घत्ता ९ मउडु मणोहरु पयवरणहं चंदण-धवलहं । मज्झे परिट्ठिउ णं कणय-कलसु विहिं कमलहं॥ [१४] ण खमइ धम्म-पुत्तु अहिखित्तउ वच्छ वच्छ लइ अत्थु सइत्तउ तुहु जुयराउ विओयरु राणउ होउ सव्व-साहणहं पहाणउ हउं पुणु मुयह मज्झे ण जियंतहं मुहई णिहालमि किह सामंतहं जमल णिएजहि जामि तवोवणु करमि काय-वाया-मण-गोवणु इंदिय दममि महव्वय पालमि सिद्धि-वरंगण-घण-थण लालमि एम भणेवि किर जाइ तवोवणु करयले लगु ताम महुसूयणु कह व कह व णर-णाहुखमाविउ अज्जुणु चरणंदुरुह धराविउ पगुण-गुणग्गिम-गणणा-गोयरु रुण्ण परोप्परु धरेवि सहोयरु ४ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५९ असीइमो संधि घत्ता तेरह वरिसइं जो करुणु महारसु धरियउ। णयण-पवाहें एवंहिं सो णीसरियउ। [१५] रुण्ण वे-वि कइ-केयण-राणा आहव-कणएं दुज्झर-माणा रुण्ण वे-वि स-जउहर-जूयई दुक्खइं जाई आसि अणुहूयइं रुण्ण विचित्तई विहियाहम्मई कियइं जाई घरे मच्छहो कम्मई रुण्ण मइंतावतुत्तर-दुक्खें(?) रुण्णइं हएण पियामह-रुक्खें रुण्ण सुहद्दाणंदण-सोएं रुण्ण हिडिवा-सुयहो विओएं रुण्ण विराड-दुमय-सिर-छेएं रुण्णायरिय-पंडि-उव्वेएं रुण्णा ताव जाव अविसायहो णिग्गय कह-वि वाय मुहे रायहो णंद वद्ध जय जीव धणंजय महु महि देहि सुरारि-पुरंजय घत्ता एम विसज्जिउ गउ देवयत्त-रहे चडियउ। दीसइ कण्णहो णं विजु-पुंजु सिरे पडियउ॥ ४ ८ वोल्लाविउ अज्जुणेण जणद्दणु तिह करि जिह हम्मइ रवि-णंदणु जंपइ जायव-णाहु तुहारी एह जे महु वि चिंत वड्डारी दुज्जउ कण्णु होइ समरंगणे तुज्झु मल्ल पुणु को-विण तिहुअणे एम पसंस करेवि सेयासहो पुणु वोल्लाविउ गुरु कुरु-वंसहो णरेण णरिंद जइ-वि अहिक्खित्तउ तो-वि तिह करे जिह जाइ सइत्तउ तो हक्कारिउ पंडव-णाहें परिवड्डिय-महंत-उच्छाहें अवलंडिउ परिचुंविउ मत्थए हणु रवि-णंदणु तवणे अणत्थए 'होहि किरीडि-मालि अजरामरु ___णामु पसज्झिउ खंडव-डामरु Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १६० घत्ता जाहि जणद्दण पइं सु-पसण्णएण पत्थहो परिरक्ख करेवी। मई पिहिवि सई भुंजेवी॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए असीइमो सग्गो॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्कासीइमो संधि खंडव-डामरेण महुमह मरइ महु वुच्चइ णरेण सो सुएण सहुँ परिहविउ जेण परमेसरु। परिरक्खइ जइ वि पुरंदरु ।। [१] गुणु छिण्णु जेण महु णंदणहो धउ पाडिउ पत्थिव-संदणहो पेक्खंतहो कियवम्महो किवहो सिर-कमलु खुडमि चंपाहिवहो अह जइ ण णेमि जम-सासणहो तो उप्परि चडमि हुवासणहो कल्लए समक्खु सव्वहुं जणहुँ णर-णरवइ-संति-पुरोयणहुं तवसुयहो समप्पमि वइसणउं भुंजउ कुरु-जंगलु अप्पणउं गउ एम भणेवि आरुहिउ रहे परिओसिय सुरवर सयल णहे तो उट्ठिउ वाउ पदक्खिणउ णं कण्णज्जुण रण-सक्खिणउ पासेइउ तो गंडीव-धरु ण उ जाणहुँ होसइ कवणु डरु घत्ता वुत्तु जणद्दणेण रिउमद्दणेण को मल्ल पत्थ तउ तिहुयणे। वीयराउ तहो तावहिं जिवहो करि तो वि पयत्तु रणंगणे॥ [२] पहरंतई ताव स-वाहणाई दिट्टइं कुरु-पंडव-साहणाई घाइय वाइत्त-वि तलपयई धुर-धवल-धूरि-धूसर-धयई धय-माला-किय-घण-डंवरई असि-जलण-जाल-जलियंवरई तरवारि-वारि-वारिय-हयइं सरथो रथेभ-थंभिय-गयई संदण-संदाणिय-संदणई एक्केक्कइं किय-कडवंदणइं संचूरिय-चामर-चिंधाई सोणिय-वाहिणि-वहंत-पहाई खुप्पंत-पत्ति-हय-गय-रहई कललंत-भूय-डाइणि-सयई णं दिण्णइं जमेण वे-वि पयई +++++++++++++ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता पंडव-कुरुव-वलइं किय-कलयलई दिट्टइ णरेण पहरंतई। सुट्ठ छुहाइयए णिव्वाइए णं जममुहे कवलु घिवंतई॥ ९ __ [३] तहो मज्झे दिडु आओहणहो सच्चइ भिडंतु दुजोहणहो कियवम्में णउलु पडिफुल्लिउ विससेणु सयाणीयहो वलिउ सहएवहो सउणि समावडिउ धट्ठज्जुणु कण्णहो अन्भिडिउ किउ अकिउ सिहंडिहे उत्थरिउ सुअसवेण दोण-णंदणु धरिउ जुहमण्णुहो चित्तसेण्णु भिडिउ दूसासणु भीमहो कमे पडिउ सव्वुत्तम उत्तमोजु उइउ णं कालु सुसेणहो वि कुइउ तो दक्खवंतु दामोयरहो गउ अज्जुणु पासु विओयरहो पाहुणउ कियंतहो मित्तु जिह भंजंतु णरिंदहं माण-सिह ८ घत्ता कणय-कइद्धएण घडियद्धएण णिहयइं दस-सयइं तुरंगहं । चउ सय रहवरहं सहं हयवरहं सय सत्त मत्त-मायंगहं ।। [४] तो णिहय-णिसायर-गोयरेण णिय-सारहि वुत्तु विओयरेण तवतणयावास-पयत्ति-हरु कहि काइं चिरावइ भाइ णरु सु विसूरइ हियउ महु-तणउ परियाणमि ण परु ण अप्पणउ घरे जाउ जुहिट्ठिलु वणिय-तणु वीसमउ किरिडि स-महुमहणु हउँ एक्कु पहुच्चमि पर-वलहो गिरि मंदरु जिह जलणिहि-जलहो संचूरमि सेण्णइं जेत्तियई रहु जोयहि अत्थई कित्तियइं अक्खइ विसोउ वर-लद्धाइं सद्दूल-चम्म-ओणद्धाई वर-कम्मकार-परिमज्जियाई कलहोय-महारस-रंजियाई घत्ता णिसियर-मारणइं भय-कारणइं हरिहर-कमलासण-दत्तइं। अत्थि महाउहई जिह गहमहइं सोणिय-वस-मासासत्तइं॥ ९ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ इक्कासीइमो संधि सिल-सियहं सुवण्ण-पुंखधरहं णारायहं दुइ दस कण्णियहं परिपुच्छिउ पुणु-वि विओयरेण णासंति कासु कुरु-साहणाई सव्वुप्परि काई परिप्फुरइ धुरि कहइ णिसायर-डामरहो महुमह-मुह-कुहराऊरियहो रहे सट्ठि सहास महा-सरहं परिसंख ण अवरहं वण्णियहं रणु वहिरिउ कहि कहो मलहरेण ओहत्थई चूरिय-वाहणाई णं सुर-विंदु किरणइं करइ एहु सटु सुणिज्जइ जलहरहो अण्णु-वि सेण्णहो संचूरियहो घत्ता कणय-कइद्धउ मणि-मउड-गउ विप्फुरइ जासु दिहि देंतउ। सिहि-सिह-ससकरु गंडीवधरु एहु दीसइ अज्जुणु एंतउ॥ ८ तं णिसुणेवि रहसुच्छलियउ णर णंद वद्ध जिउ जाव धर णक्खत्तइं वसुह-वि दिसि विदिसि पइं होतें गंदइ पंडु-कुलु पइं होतें होसइ भू-भयहो पइं होतें सउरि सणेहमउ पइं होतें कोतिहे परम दिहि पई होते उण्णइ सुहियणहो आणंदु पणच्चिउ पवण-सुउ गिरि-चंद-दिवायर-मयरहर जायइ गयणंगणु दिवसु णिसि पई होते आहवे हउं अतुलु आवग्गी वसुमइ तव-सुयहो पंचाल सुहद्दउ अइयवउ पइं होतें जमलहं जमल-णिहि पई होते खउ रवि-णंदणहो ८ घत्ता तुहुं जस-महुयरउ अयरामरउ णिय-पगइए पंडुर-गत्तउ । अच्छउ जग-कमले दिस-वलय-दले सुर-गिरि-मयरहं(?) दासत्तउ ॥९ [७] तो भणइ भीमु परितुडु हउं लइ गाम चउद्दह दासि सउ रह तीस वीस साओग गय चालीस महाजाणेय हय Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ रिट्ठणे मिचरिउ तहिं काले किरीडि परावरिउ अवरोप्परु दिछु वणावरिउ पोमाइउ पवण-सुएण णरु वलु सयलु पधाइउ ताव परु परिवेढिउ गय-गंडीवधर णं मेहें हिमयर-अहिमयर अज्जुणेण णिवारिउ सप्फुरेहिं वइहत्थिय-वच्छदंत-खुरेहिं णाराएहिं तीरिय-तोमरेहिं णालिय-वाराह-कण्ण-सरेहिं थिर-थूणाकण्णहिं कण्णिएहिं अवरेहिं सिलीमुह वण्णिएहिं घत्ता कंपिउ कुरु-वलु जिह उवहि-जलु केत्थु वि साहारु ण वंधइ। दुग्घर-वासु जिह कुरु-णाहु तिह रणु तुट्ट तुट्ट पडिसंधइ॥ ८ ९ [८] भीमेण-वि भीम-परक्कमेण किउ स-सर-सरासणु भुय-जुयलु हय पंच सहास तुरंगमाहं दुइ लक्ख पयत्थहं किंकराहं परिसक्कइ मारुइ जहिं जे जहिं तो पडियारुद्धाओहणेण सउ भाइहिं धाइउ संमुहउ पावणिहे थणंतरे भरिय सर दस णाय-सहस वल-विक्कमेण कप्परिउ खुरुप्पेहिं कुरुव-वलु तदुगुण-मत्त-तंवेरमाहं सउ कणयालंकिय-रहवराह रुहिर-णइ पयट्टइ तहिं जे तहिं पट्ठविउ सउणि दुज्जोहणेण णं मत्त-गइंदहो मत्त-गउ भिंदेवि तणु-ताणु पइट्ट धर ८ घत्ता भीमें पाणहरु पट्टविउ सरु किउ सत्त-खंडु गंधारें। कोति-सुयहो तणउं वाणासणउं पाडिउ अवरेण कुमारे।। धणु अवरु लएवि धणुद्धरेण वाणासणु एक्के दुइहिं धउ जत्तारु चउहिं हय चउहिं हय सहस त्ति सत्ति मणे अट्ठविय सर सोलह मुक्त विओयरेण पंचहिं सउवलु वच्छयले हउ एवं तहो सोलह वाण गय स हिडिवा-कंतहो पट्टविय Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्कासीइमो संधि उज्जल लेवि दाहिण-करेण परिपेसिय तहो जे विओयरेण वम्मीभुय भिंदेवि भूमि गय सउवलेण लइज्जइ चाव-लय रहु भीमें चूरिउ सउणि हउ कंपंतु महीयले मुच्छ-गउ विस-जउहर-जूवई सरेवि मणे णउ खुडिउ सीसुतं चोज्जु जणे ८ घत्ता दुम्मण-दुम्मणेण दुजोहणेण तहिं अवसरे रहु संचारिउ। तुच्छे दुराउलहो जणे आउलहो णिय गंथु णाई ओसारिउ॥ जं सउणि मामु भीमेण जिउ तं कुरु-जणु कण्णहो मूले थिउ तारायणु लंछण-ससहरहोणं सुरवर-णियरु पुरंदरहो धीरवेवि वहहिं णिरहिवडिउ पंचालहं अंगराउ भिडिउ सिणि-सुएण विद्धु पंचहिं सरेहिं सहएवं सत्तिहिं तोमरेहिं धट्ठज्जुणेण सत्तहिं णिहउ अणुवेण पंचवीसहिं विहिउ णउलेण सएण समावडिउ पवणंगएण पंचहिं धरिउ पंचालि-सुएहिं पंचहिंजणेहिं उरे ताडिउ पंचहिं मग्गणेहिं तेण-वि तें सहुं ए सव्व जिय वि-तुरंग वि-सारहि वि-रह किय ८ घत्ता देवेहिं दिण्णु तउ रवि-सुयहो जउ थिउ पंडु-सेण्णु विच्छायउ। तुट्ठइं कुरु-वलइं किय-कलयलई कण्णमउ सव्वु जगु जायउ॥ ९ [११] तो दुद्दम-दाणव-विंद-दमणु दक्खवइ भुवंगम-भीम-भुउ सेयायवत्तु करि-कक्ख-धउ अंबुजल-विज्जुल-पुंज-पहु विस-जउहर-जूय-कय-ग्गहहं अवराहहं सव्वहं मूल-दलु गोविंदु महा-खगिंद-दमणु अहो अज्जुणु एहु सो सूर-सुउ हर-हास-हंस-संकास-हउ वर-वग्घ-चम्म-ओणद्ध-रहु वण-वसण-णिरिक्खण-गो-गहहं लहु आयहो पाडहि सिर-कमलु ४ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ करि पंडव-जायव-जणहो दिहि कउरवहं पवद्धउ सोय-विहि संतण-विचित्तवीरिय-वमहिं (?) तव-णंदणु भुंजउ णियय महि घत्ता एण जियंतेण दीसंतएण अ-सुहच्छी महु वड्डारी। हणु हणु आहयणे जं महु-वि मणे जं फिट्टइ चिंत तुहारी॥ [१२] दुढेण एण वहु णिट्ठविय जम-णयरु णराहिव पट्टविय वहु सोमय-सिंजय वहुय-जण वहु कासि-करुस-सयमच्छ-गण पंचाल-भद्द-चेइवइ-पहु सिवि-जायव-कइकय-पमुह वहु चूरियई स-धयहं स-चामरहं वीसद्धई वारह रहवरहं पई मइ-मि ण मारइ जाम रणे लहु ताम धणंजय वइरि हणे एत्तहे वि पत्थु पडिवक्खवइ दुजोहण-कण्णहुं दक्खवइ तुहुँ सयल कालु गज्जंतु तिह स-जणद्दणु अज्जुणु हणमि जिह दीसंति वि ओए ते वीर-वर । गंडीव-धारि-सारंग-धर घत्ता वाणर-गरुडद्धय कंचण-कवय वाहिय-रह पूरिय-जलयर । हणु हणु वे-वि जण णर-महुमहण महु देहि पिहिवि सयरायर ॥ ९ ४ तं णिसुणेवि अंगराउ चवइ भुव जाम जाम धणु जाम सर एक्कल्लउ हउं विण्णि-वि धरमि तो महु जे भडत्तणु णिव्वडइ तो भणइ सल्लु कहिं तणउ जउ किवं धरिउ धणंजउ एक्कु जणु एक्कु-वि वहिरइ गंडीव-धणु एक्कु-वि रणे संख-सद्दु अहिउ कहो संकहि कुरुव णराहिवइ पावंति ताम कउ कण्ह णर जिम्व मारमि जिम्व अज्जु मरमि ण किरीडि कुलीणहं आवडइ पर पेक्खमि मरणावत्थ तउ अण्णु-वि पुणु जमलउ महुमहणु अण्णु-वि गज्जइ सारंगु पुणु अण्णु-वि पुणु पंचयण्ण-सहिउ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७५ एक्कु सुघोस रहे एक्कु कयंत-समु तो तावणि-तवण-तणउ हसिउ किं वण्णहि तेण स - सउरि णरु मायंद दोमइ - पाणि- गहे दुज्जोहण वंधणे धण -हरणे जामि जिह जायविंदु वलिउ जमलज्जुण पाडिय गिरि धरिउ ओए वे - विमणिट्ठविय अहवइ समत्तु जइ अणिय - वहे किव - दुज्जोहणहो हउं पच्छए भिडमि घत्ता गिरि-मेरु-पहे अवरेक्कु जमु [१४] कुरुवइ-कियवम्म- किवायरिय एकल्ल अज्जुणु रिउ वहुय सीहो धाइय मत्त गय आयरिय-सुएण सएण धउ पंडवेहिं पिसक्केहिं परिपिहिउ वाणासणु वाणेहिं किउ दु-दलु किउ खेल्लिउ कुरुवइ वि-रहु किउ वलु सयलु-वि सरेहिं कडंतरिउ घत्ता वेढहो हणहो जें सिरु खुडमि [१५] sarishtifu अवरेक्कु अवरे रहे चडियउ । । को जियइ विहि-म कमे पडियउ ॥ ९ मद्दाहिव मंछुडु उल्हसिउ किं मई ण दिड्डु गंडीव - धरु खंडव-खए तालुयवम्म - वहे भयवत्त-जयद्दह - वावरणे जे णिडुरु रिट्ठ-कंठु वलिउ अहि दमि कंसु उवसंघरिउ तो वसुमइ णिप्पंडविथ किय तो णा चडावमि ससि-फलिहे रहु धरहो तुरंगम खेयहो । सउं केसवेण कोंतेयहो ॥ गुरुणंदण - सउणि समुत्थरिय गह मिलेव णाई एकत्थु हुय ते तिहिं तिहिं वाणेहिं णरेण हय तिहिं णरु णारायणु दसहिं हउ दोसायणि जण्णसेणि णिहिउ जत्तारहो तोडिउ सिर-कमलु सउवलु किय-वंधु कलिंगु जिउ णीसीहो करि-कुलु ओसरिउ ४ ८ ४ ८ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरित १६८ घत्ता भंजेवि अलमलई सव्वई वलई पुणु अज्जुणु भिडिउ तिगत्तहं । रयणिए जिणेवि गह अवहरेवि पह मयतंछणु जिह णक्खत्तहं ॥ ९ [१६] संसत्तग-सत्तु-वलई खणेवि सत्तारह सयई गयह हणेवि रह णउवि खुरुप्पें कप्परेवि अपमाण तुरंगम जज्जरेवि गउ अज्जुणु पासु सहोयरहो सो वइअरु कहिउ विओयरहो जिह धम्म-पुत्तु रवि-सुएण जिउ जिह छिण्णु महद्धउ वि-रहु किउ ४ जिह रणु णल्लियइ णराहिवइ वहु-मच्छरु पवण-पुत्तु चवइ एक्कक्के एक्केकहो जणहो पई कण्णहो मई दूसासणहो अभिडेवि करेवउ चूरणउं फेडेवउ णाह-विसूरणउं घत्ता कड्डिउ जेण चिरु तहो खुडमि सिरु पंचालि-वाल वंधावमि। पेक्खंतहो जणहो महसूयणहो पहु पिहिवि सयं भुंजावमि॥ ७ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए इक्कासीइमो सग्गो॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बयासीइमो संधि कण्णहो वीभच्छु पेक्खंतहो गरुडासणहो। जिह गयहो गइंदु भिडिउ भीमु दूसासणहो॥ . [१] वारुणे आसासण्णए केसरे एक्क-पहर-सेसिथिए वासरे भणइ विओयरु देव जणद्दण णर-मुर-कंस-केसि-महु-मद्दण पेक्खु महामइ दुम्मइ कुद्धउ कुरुव-कुरंग-कुलामिस-लुद्धउ जउहरे जलणु जेण देवाविउ जेण दुरोयर-राउ रमाविउ किउ दोमइहे जेण केस-ग्गहु . अद्धु ण दिण्णु समत्थिउ विग्गहु सो पइसरइ जइ-वि रवि-मंडलु जइ-वि अज्जु रक्खइ आखंडलु जमु वइसणु पवणु जोण्हायरु मरइ तो-वि दुजोहण-भायरु जइ पडिवण्णउं णउ पडिपालमि तो ण णियत्तमि पहुण णिहालमि घत्ता जइ दिवसु भमंतु ण खुडिउ सिरु दूसासणहो तो पंकयणाह उप्परि चडमि हुआसणहो॥ ८ ४ तुहु मि सहोयरु समरे भिडिजहो तावणि-सिर-तामरसु खुडिजहो जेण कुमारहो धणु-गुणु छिण्णउ जेण घुडुक्कउ सत्तिए भिण्णउ तुहुं हउं जेण-वि रोवाविय जेण सुहद्द हिडिंव रुवाविय(?) सो जइ जीविउ अज्जु रणुज्जय तो पई काइ-मिण किउ धणंजय राह ण विद्ध ण खंडउ चारिउ तालुयवम्म-विंदु ण वियारिउ कुरुउ ग रक्खिउ धणु ण णियत्तिउ सिरु भयवत्तहो खुडेवि ण घत्तिउ ण सुआउहु ण सुदक्खिणु घाइउ णउ अणुविंदु विंदु विणिवाइउ विद्धखत्तु विद्दविउ ण वासवि कण्णे जियंते जियंत असेस-वि Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ४ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता किय णरेण पइज जइ ण णिहउ चंपाहिवइ। तो होसइ भीम महु-वि अज्जु तउ तणिय गइ।। [३] एवं भणेवि णरु धाइउ कण्णहो वलिउ भीमु दूसासण-सेण्णहो जहिं तूरइं समुद्द-घण-घोसई जहिं कुरु-किंकर-सयइं सरोसइं जहिं पहरणई सिला-सिय-धारइं सिह-फुलिंग-रवि-किरणागारइं जहिं णरवइ कड्डिएहिं किवाणेहिं जहिं हय मणि-खइयहिं पल्लाणेहिं संदणेहिं सोवण्णेहिं चक्केहिं जहिं गइंद वजंतेहिं ढक्केहिं जहिं अविरलई महा-धय-छत्तई जहिं णवंति चामरइं चलंतई तहिं रहु वाहिउ पावणि-सूएं वलु अवलोइउ णं जम-दूएं अहो किव-कण्ण-कलिंग-सुसेणहो आसत्थाम-सउणि-विससेणहो घत्ता पच्चारिय सव्व जो सक्कइ सो उत्थरउ। महु कोव-हुवासें लहु दूसासणु पइसरउ ।। [४] लेहु लेहु आहणहु भणंतेहिं वेढिउ कुरु-साहणेहिं अणंतेहिं छाइउ पहरणेहिं अपमाणेहिं विजुल-माला-फुरण-समाणेहिं छिंदइ ताई भीमु विहिं हत्थेहिं णं जेमइ कयंतु विहिं हत्थेहिं के-वि पाइक्क पिसक्केहिं वारिय के-वि गयासणि-घाएहिं चूरिय झंप देवि गयणंगणे होती काह-मि कह-मि करइ समसुत्ती वीस-तीस-पंचास-विहत्तेहिं पडिवउ रहे आरुहइ णियत्तेहिं पडिवउ करणु देवि कु-वि मारइ खगवइ जिह भुवंग संघारइ चूरिय दस सहास मायंगहं दस जे महाजाणेय-तुरंगहं ८ या ४ घत्ता थिय कुरुव णिरास वलु दिण्णउं तुज्झु को-वि ण भीमहो अभिडइ। करि कयंत जं आवडइ । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ बयासीइमो संधि कउरव चिंतावंतिण विओयरु जिम जमु जिम कु-वि जमहो सहोयरु एउ अमाणुस-कम्मु ण अण्णहो णासेवि सरणु सव्व गय कण्णहो जं अवसेसु सेण्णु उव्वरियउं णर-णाराएहिं तमि-जज्जरियउं पावणि पत्थ-पुट्टि परिपूरइ जो जो ढुक्कइ तं तं चूरइ ता रवि-सुयहो सल्लु दरिसावइ एहु णरु एहु णारायणु आवइ जिह खय-कालु कालु ण पडिच्छइ किय पइज्ज पई हणेवि समिच्छइ एहु सो मोट्टियारु कलियारउ वग-हिडिंव-किम्मीर-वियारउ णरवइ णिरवसेस परिसेसइ अवुहु व दूसासणु जे गवेसइ ___ घत्ता जिह सक्कहु तेवं णिय-सरीर-रक्खा करहु । छह-घडियह मज्झे णं तो विहि-मि वे-वि मरहु॥ पभणइ अंगराउ मद्दाहिव तिह हउं हणमि असेसई वूहई लइय छत्तु ताम भीमज्जुण तहिं रहु वाहि वाहि सुरसुंदर तो जत्तारें चोइउ संदणु जंण-विहुवउ ण होइ ण होसइ डहइ दवग्गि व तरु-गिव-कक्खइं सीह-किसोरु व करि संतावइ घत्ता जणमेजउ भग्गु सिरु खुडेवि स-वाहु पंडवेहिं परज्जिय पत्थिव हय-गय-रह-वर-रहिय-समूहई जहिं सच्चइ-सिहंडि-धट्ठज्जुण रणु णियंतु जम-धणय-पुरंदर किउ रवि-सुएण घोरु कडमद्दणु रवि व महण्णव-सलिलई सोसइ गरुडु व गसइ भुवंगम-लक्खइं वइवस-महिसु व हय विहडावइ ४ ८ सच्चइ रण-मुहे वि-रहु किउ । इंदधम्मु जम-णयरु णिउ॥ खुडिउ सीसुजं मालव-णाहहो सच्चइ स-धणु स-संदणु धाइउ तं फलु दक्खवंतु अवराहहों विससेणहो लहु भायरु घाइड Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ aur कण्णण किर भिज्जइ अवरेहिं तिहिं तावणि रणे ताडिय धज्जुण - णंदणु विणिवाइउ पंडव-जणु असेसु डोल्लाविउ धाउ धाउ धव देहि धणंजय णावेवि सुर-वर- धणु सिय-सेवहो घत्ता जिह मत्त - गइंद जुवे - वि गय दिवसहो सवाए हरंतए भिडिय लिहंत परोप्परु वाणेहिं जाउ महंतु महाह पत्थहुं लद्धवरहं णिवद्ध-तोणीरहं कुरुव-णरिंद-जुहिट्ठिल-सत्तहं दिण्ण-धणहं विहलब्भुद्धरणहं पूरिउ अंतरिक्खु णाराएहिं तेहिं भिडंतेहिं भिण्ण भुवंगम रवि - पंडु-सुयाहं इंदहो आभिड [८] घत्ता [९] तहिं अवसरे आयामिय-भा धट्ठज्जुणु सिहंडि जणमेजउ पंच-वि भिडिय दिवायर - पुत्तहो पंच - वि पंचहिं सरेहिं परज्जिय - सो - विति खंडु सिहंडें किज्जइ ण - विचाव - लट्ठि तहो पाडिय सरु सुअसोम-थणंतरे लाइउ रु णारायण वोल्लाविउ णं तो मारिय सोमय - सिंजय धाइउ सव्वसाइ राहेयहो कहि - मि लवंत (?) - समावडिय । सुरहं नियंतहं अभिडिय ॥ सुड्डु उद्दे मुहुत्ते वहंत छाउ हु गिव्वाण विमाणेहिं कालवट्ट-: इ-गंडीव - विहत्थहुं कंचन - कवयावरिय - सरीरहं सेयासहं सिय- चामर - छत्तहं मित्त - हियहं परिरक्खिय-सरणहं णावणाय णिलणु णाएहिं धर थरहरियस - थावर-जंगम - णिएवि णिरंतरु वावरणु । रावण - रामहं तणउं रणु ॥ १७२ ४ ८ ४ ९ मज्झे परिट्ठिय पंच महारह उत्तमोज्जु जुहमण्णु रणुज्जउ विसय-मणहोणं अत्त - णियत्तहो तिहिं तिहिं किय रहचक्क - विवज्जिय ४ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बयासीइमो संधि सविस-विसम-विसहर-लल्लक्केहिं हउ सिहंडि वारहेहिं पिसक्केहिं तिहिं जुहमण्णु थणंतरे ताडिउ उत्तमोज्जु छहिं कह-वि ण पाडिउ जाय णिरत्थ णिरुज्जम-चित्ता भग्ग-रहित्त णाई णाइत्ता सिणि-णंदणेण धरिय साओहण किव-किववम्म-कण्ण-दुजोहण ८ घत्ता वल-विक्कमवंत वड्डिय कोह-हुवासणहो। गउ तेत्तहे भीम जेत्तहे रहु दूसासणहो॥ [१०] दिमु विओयरेण दूसासणु णं णहणंघण-घणेहिं हुआसणु णं विणया-णंदणेण भुअंगमु +++++++++++++ णं छण-गहवइ गहकल्लोलें णं महि-वलउ जुयक्खय-कालें णं तंवेरमु सीह-किसोरें रहवर वाहि वाहि लइ ओरें जं विसु दिण्णु चिण्णु तं भंडणु जंजउहरु तं गोत्तहो खंडणु कवड दुरोयर जे संचारिय ते गंगेय-दोण वइसारिय दोवइ-केस सिलीमुह हुआ वसण-किलेस जाय जम-दूआ पंच गाम जे कक्खहं छुद्धा | पंच-वि लोयपाल जिवं कुद्धा घत्ता दूसासण थाहि हउं सो भीमु समावडिउ। कुलगिरि-सिहराहं उप्परि वज-दंडु पडिउ ।। __ [११] तो कुरु-णंदणेण वोल्लाविउ तुहुँ जे भीमु भणु काई ण पाविउ तुहं जे भीम विस-धाणिए घारिउ तुहं जे भीमु गंगहे पइसारिउ - तुहं जे भीमु णासेवि गउ जउहरे तुहुं जे भीमु णिम्मुहु दउरोयरे तुहुं जे भीमु पंचालि-पराहवे तुहुँ जे भीमु हउं मारमि आहवे हउं दूसासणु मूलु अणत्थहं कालु कयंत-मित्तु तउ पत्थहं दोमइ दासि संढ-तिल पंडव सीहहो भग्ग सोंड वेयंड व Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ रिठ्ठणे मिचरिउ कहिं णासहु महु कमवहे पाडिय सयल-वि करमि सिलीमुह-झाडिय को सहएउ णउलु को अज्जुणु को तुहुं कवणु राउ को तहो गुणु ८ घत्ता रणंगणहो मज्झे तं वोल्लिज्जइ जं सरइ। कुरु-केसरि-विंदे पंडव-हरिणु किं पइसरइ॥ [१२] धाइउ तो स-कसाउ विओयरु णच्चइ थियउ दूरु दामोयरु अजु महा पइज्ज परिपुज्जउ धम्म-पुत्तु कुरु-जंगलु भुंजउ सिद्ध कज्जु लइ अच्छइ थोडउं वद्धउ जण्णसेणि आमोडउं वाण-पंति वच्छत्थलु भिंदउ असिवरु णिसिय-धारु सिरु छिंदउ ४ आमिसु णेतु विहंगम उप्परि सेणिउ पियउ हिडिंवा-सुंदरि डहउ हड्ड-विछड्ड हुवासणु किर चिंतवइ एम गरुडासणु तो पंडवेण पिसक्केहिं छाइउ कहिं दूसासणु जाहि अघाइउ किव-कियवम्म-कलिंगहं अक्खहि जिवं दुजोहणु जिवं तुहं रक्खहि ८ घत्ता दरिसावमि अज्जु सव्वहं दुण्णय-दुमय-फलु। रण-देवय-मूले थवमि तुहारउ सिर-कमलु॥ [१३] कहि कहि धायरट्ठ परमत्थे कड्डिय जण्णसेणि के हत्थे तो जुयराउ वुत्तु जुयराएं दोवइ करेणायड्डिय आएं एहु जे पंडव-परिहवगारउ एहु जे विहल-जणब्भुद्धारउ एहु जे मयगय-गलगल-थक्कणु एहु जे अलमल-पर-वल-पेल्लणु ४ एहु जे कामिणि-घण-थण-चड्डणु एहु जे दुम्मुह-मुह-ओमड्डणु एहु जे कंचण-वलयालंकिउ एहु जे णरवर-घाय-किणकिउ एहु जे दिण्ण-दाणु सुह-लक्खणु एहु जे सरणाइगय-परिरक्खणु एहु जे सुरवर-करि-कर-दीहरु एहु जे पंच-फणामणि विसहरु Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ बयासीइमो संधि घत्ता विसु दिण्णउं जेण जेण दुरोयरु घिविय चिरु। सो इहु करु भीम जेण खुडेव्वउं तुज्झ सिरु ।। [१४] एम चवंत भिडिय समरंगणे अमर णिहाला थिय गयणंगणे थरहरंति रहवेण रहंगहं फुडुहुरंति णासउड तुरंगहं तूरइं हयइं विहि-मि ढुक्कंतहं चावई करयरंति कडंतहं सर-सहसइं वियंति संधंतहं गुणु छणछणछणंति विंधंतहं छत्तई कडयडंति छिज्जंतहं कवयइं खयहो जंति भिजंतहं चिंधई फरहरंति दुव्वाएं छाइउ णहु णाराय-णिहाएं अवरेहिं रण महि-मंडलु मंडिउ सेस भडेहिं पहरेवउं छंडिउ घत्ता पर एत्तिउ दोसु रणु पेक्खंतहं पत्थिवहं । जं अणिमिस-दिट्ठि देवेंण किय णराहिवहं॥ [१५] ताम विओयरेण सर-ताडिउ खंडई विण्णि करेवि धणु पाडिउ दु-गुणु ति-गुणु चउ-गुणु गुणु ताडिउ दिण्णउ मग्गणाहं दुइ कोडिउ एवंहिं णिट्ठियत्थु रणे भग्गउ किह जीवमि दूसासणे लग्गउ तो वरि करमि एत्थु सण्णासणु एम भणेवि जं पडिउ सरासणु ४ खुडिउ खुरेण सीसु जत्तारहो णं फलु तल-तरुवरहो असारहो छिण्णु महद्धउ खंडिउ संदणु उरे वारहहिं विद्धु कुरु-णंदणु तेण वि अवर पवरु धणु लेप्पिणु __अवरु महारहु अहिमुहु देप्पिणु भिण्णु विओयरु णवहिं पिसक्केहिं पुणु तीसहिं भुवंग-लल्लक्केहिं घत्ता छहिं सारहि विद्ध सत्तहिं विद्ध हिडिंव-वरु। सई पावइ दुक्खु जो दूसासणे लग्गु णरु ।। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १७६ तो सहसत्ति सत्ति उप्पाडेवि भीम-भुयंग-भुएहिं भमाडेवि मेल्लिय लउडि हिडिवा-कंतें जीह ललाविय णाई कयंतें णं सउदामिणि मेहहो होती धाइय महिहर-सिहरु दलंती तिह स-तुरंगु स-चिंधु स-चामरु भीम-गयए संचूरिउ रहवरु धायरठ घुम्माविउ घाएं कड्डिउ मंडलग्गु स-कसाएं पंडु-सुएण-वि तहो करवालें । सिरु स-वाहु कमलु व सहुं णालें पाडिउ कउरव-जणहो णियंतहो । पंडव-लोयहो तूरइं दितहो तो भुव वे-वि भीम-उप्पाडिय पंचवीस जोयण ओरालिय रेहहिं णह-सुमणस णहे लग्गा णं तरु-साह दुवाएहिं भग्गा अवरु को-वि जो पर-तिय गंजइ सो दूसासणु जिम फलु भुंजइ कुरु-वलु णडु मुएवि आओहणु पहउ करेण सक्खि दुजोहणु घत्ता रक्खसु जिह भीमु सीसु लेवि दूसासणहो। संइ भुय-जुयलेण दरिसावइ गरुडासणहो । इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए बयासीइमो सग्गो॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेयासीइमो संधि दूसासणे णिहए भीमहो विजए जगे दिण्ण जसोह-पहेणहो। तिणसमु गणेवि रिउ तं कण्ण-किउ आभिट्ट पत्थु विससेणहो॥ १।। [१] पर-वलइं पणच्चिय तंडवेहिं जय-तूरइं दिण्णइं पंडवेहिं पंचालिहे चिहुर-णिवंधु जाउ गउ परम-विसायहो कुरुव-राउ हा भायरु महु सिरे पडिउ वज्जु वद्धाविय किं गंधारि अज्जु धयरठ्ठहो जोइउ वयणु केम थिय णिहुय णराहिव संढ जेम आसंकिउ णियय-मणेण कण्णु मुह-कमलु परिट्ठिउ मसि-सवण्णु अम्हारिसाह-मि एहिय अवस्थ भीमज्जुण जगु जगडण समत्थ वोल्लाविउ सल्ले तहिं जि काले दुजोहणु णिवडिउ मोह-जाले तिह करि जिह पंडव खयहो जंति णिय-वंधव-सयणहं होइ संति पत्ता परिचिंतिउ मणेण रवि-णंदणेण कहिं तणिय संति कुरु-सत्थहो। भीमहो भीमत्थाणु गय(?) गंडीवु जाम करे पत्थहो। [२] तहिं तेहए अवसरे ण किउ खेउ वोल्लाविउ भीमें वासुएउ रिणु फिट्ट भडारा एक्कु पवरु अच्छइ दुजोहणु पासे अवरु फेडेवउ तमि तहो तणए अंगे कल्लए दरिसाविए मउड-भंगे वढंतए तहिं तेहए पमाणे पाइक्कए सयले पलायमाणे जुहमण्णु पधाइउ मग्ग-लग्गु सामरिसु स-पहरणु रह-वलगु पर-कुंजर-जूहहो जिह करेणु जहिं कण्णहो भायरु चित्तसेण्णु ते ढुक्क परोप्परु घाय देत णिय-णिय-पहु-णामग्गहणु लेंत जुहमण्णे सत्त सरेहिं विद्ध रवि-सुएण-वि सो विहिं परिणिसिद्ध ८ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १७८ घत्ता पंडव-किंकरेण छिंदेवि सरेण सिरु पाडिउ फलु जिह णीमहो। ताम समावडियरणे अभिडिय धयरट्ठ-पुत्त दस भीमहो। [३] ४ दुजोहण-भायर दस कुमार जलसंधण-गहणं-दंडधार णीसंगिय-लोलुय-सव्वसंध छ-वि केसरि-विक्कम वसह-खंध छ-वि सव्वाहरण-विहूसियंग छ-वि सेय-महारह सिय-तुरंग दुइ सुरवर-करि-कर-वाहु-दंड पासाउह-कवय-महापयंड दुइ अवर सुवच्चस-व्वाउवेय दस भायर गंधारेय एय णं सग्गहो णिवडिय सुर-कुमार स-सरासण सरेहिं कियंधयार दस लोयवाल णं कहो-वि कुद्ध णं सीहें दस-वि गयंद रुद्ध भीमेण भुअंगम-भीयरेहिं दस दसहिं वियारिय सरवरेहिं घत्ता तोडेवि दक्खवइ पडिवउ खिवइ रह-सिहरे पवड्डिय-दुक्खहो । लइ सीसुप्पलइं आयइं फलई दुजोहण-दुग्णय-रुक्खहो। [४] पेक्खेप्पिणु भीसणु पवण-जाउ आसंकिउ णिय-मणि अंगराउ लक्खिज्जइ भीमहो चरिउ घोरु पवियंभिउ णं केसरि-किसोरु पोच्छाहिउ(?) सल्ले सूर-पुत्तु चंपाहिउ तउ संकेविण जुत्तु भायर-वह-भय-भग्गाणुराउ पई संथविएवउ कुरुव-राउ हउं णिरिणु णराहिव-गउरवाह तुहं एक्कु धुरंधरु कउरवाह भिडु पत्थहो पंडव खयहो णेहि - कुरु-णाहहो वसुमइ जेण देहि जइ जीवहि तो जय-लच्छि होइ अह मरहि णं सुर-वहु धरइ कोइ दुजोहण दोण-सुयहो समक्खु णिय-पुत्तु भिडंतउ पेक्खु पेक्खु घत्ता तहिं अवसरे समरु तोसिय अमरु किउ भीमसेण-विससेणेहिं। पाएहिं पयरुहेहिं पक्खाउहेहिं णं पहउ परोप्परु सेण्णेहिं॥ ४ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ तेयासीइमो संधि ok वटुंतए तेहए समर-काले विससेण-भीमसेणंतराले रहु वाहिउ णउलें कुद्धएण रण-रामालिंगण-लुद्धएण कण्णियहिं पडिच्छिउ कण्ण-पुत्तु । धउ छिण्णु खुरुप्पें थरहरंतु अवरेण सरासणु किउ दु-खंडु अवरेण विहंजिउ छत्त-दंडु तो दिणयर-णंदण-णंदणेण धणु अवरु लेवि रिउ-मद्दणेण सर-सप्पेहिं खाविय वर-तुरंग कलहोय-जाल-मालालि-अंग रहु एवि स-चम्मु स-मंडलग्गु सहएव-जे? पहरणहं लगु पर-पक्खिय-गय-पयरक्खण्णु हय ताम जाम दुइ सहस पुण्णु . ८ पत्ता असिवर-पहरणहो एक्कहो जणहो वह रह करि जोह तुरंगम। के-विमुय के-वि पणय के-वि कहि-मि गय णं गरुडहो भएण भुवंगम ॥९ संचूरिउ किंकर-णर-णिहाउ तं रविसुय-सुयहो कसाउ जाउ मद्दी-सुउ अट्ठारहहिं विद्ध पडिवारउ वहु-वाणेहिं णिसिद्ध परिपिहिउ जेण सर-मंडवेण सो छिण्णु किवाणे पंडवेण विससेणे खंडिउ चम्म-रयणु णं पाडिउ रण-रक्खसहो वयणु . ४ छहिं असिवरु तिहिं वच्छयलु भिण्णु विहलंघलु स-कवय-वलय-खिण्णु गउ भजेवि भीमहो रहे वलग्गु उद्धाणणु पुक्कारणहं लगु अहो अज्जुणु खंडव-डहण वीर सुरवर-सर-सय-सीरिय-सरीर ओहु वइरिउ अच्छइ कण्ण-पुत्तु जिह सक्कहि तिह मारहि णिरुत्तु ८ - घत्ता वप्पें जसु तणेण पिसुणत्तणेण गुणु छिण्णु आसि तव तोयहो। हउ-मि हयासु किउ हणु जेण जिउ पेक्खंतहो कउरव-लोयहो ॥ ९ तं णिसुणेवि परम-परोवयारि सुर-कुंडल-मंडिय-गंडवासु धीरंतु पत्तु गंडीव-धारि चूडामणि-किरण-करालियासु Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ मुहमारुय-पूरिय- देवयत्तु वाहिय-रहु जमलीकिय- अणंतु पेक्खेप्पिणु णउलु सभाहयासु विससेहो धाइ सव्वसाइ परिवारिउ दोमइ - णंदणेहिं जउ-जमल-भीम-जणमेजएहिं घत्ता परिकुविय मणु महंतु सउणिय-किंकरेहिं पहरण करेहिं [८] पहिलारउ तहिं घाइउ किवेण तइयउ गुरु-सुरण धणुद्धरेण पंचमउ वियारिउ सउवलेण विणिवाइय सव्व कुणिंद तेहिं अण्णेत्त किय-कडमद्दणेण asसारिउ महियले मग्गणेहिं अण्णेत्तहे सच्चइ सच्चवंतु अत्त कुरुहुं-वि खुद्द तोय तेण भयावहेहिं किव - कियवम्म जिय छण-चंद-रुंद-धवलायवत्तु सेयासु कइद्ध कुरुव-कंतु गउ कोवहो तालुयवम्म-णासु मुक्कंकुसु गहो गइंदु णाई सिणि- दुमयंगरुह - जणद्दणेहिं मच्छाहिव - सोमय - सिंजएहिं जें मुक्का सुअवइ - खंडिएहिं विणिय कालायस - सरवरेहिं विजयेण वि हय हय जायवासु मणि- कुंडल-मंडिय-मउड-धारि जिह केसरि मत्त - गइंदहं । दुज्जोहणु भीडिउ कुणिंदहं ॥ वीयउ कियवम्म - णराहिवेण सयमेव चउत्थउ कुरुवरेण अवरेहिं अवरु जिउ वलु वलेण कुरुवाहिव-पमुहेहिं कउरवेहिं सउहत्थेहिं णउलहो णंदणेण घणउलु पवणालग्गणेहिं परिसक्खर पर-वले जह कयंतु णं भिडिय गइंदहं सीह - पोय घत्ता वाहिय-रहे हिं रणे वि-रह किय [९] उम-णंद-भद्दिएहिं दिवसयर - किरण णं जलहरेहिं जावेण वि पाडिउ सीसु तासु सुर - गिरि-वर - सिहर - महाणुकारि १८० ४ ४ जय - विजय-विवद्धिय-कोहेहिं । अवमाण- वाण - संदोहेहिं ॥ ९ ८ ४ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८१ तेयासीइमो संघि दियवरेण-वि छिज्जइ जयहो सीसु दट्ठोठ्ठ-समुब्भडु भिउडि-भीसु तहिं काले रणंगणे दुज्जएण . वोल्लाविउ कण्णु धणंजएण खल खुद्द पिसुण हय दुट्ठ-भाव अहिमण्णहो जिह गुणु छिण्णु पाव परिरक्खहि तिह अप्पणउ पुत्तु विससेणु हणेवउ मई णिरुत्तु घत्ता जं केस-गहणु किउ गो-गहणु सत्तिए विणिभिण्णु घुडुक्कउ। णं फलु दक्खवइ सोणिउ घिवइ जमकाउ करोडिहि ढुक्कउ । [१०] तो पढम-पत्थु पत्थहो पलित्तु णं चित्तभाणु घिय-घडए सित्तु णिहुयारउ अच्छहि दुब्वियड्ड वोलंतु पलज्जहि किं ण संढ कड्डिज्जइ दोमइ दासि जेम पिय-परिहउ सुपुरिसु सहइ केम उत्थरेवि ण सक्किउ तहिं जे काले एवंहिं गज्जिएण कियंत-काले किय णउल-विओयर सावलेव धणु-कोडिए रल्लिय रोड जेवं सहएउ समुक्खय-मंडलग्गु समरंगणे मई सह एउ भगु दुल्लेउ अलेउ अजायसत्तु कह कह व ण णिहणावत्थ पत्तु रहु खंडिउ साउहु सायवत्तु गउ णिय घरु ल्हसिविय दीण-सत्तु ८ घत्ता तुम्हेहिं संढ-तिल महुमहु-महिल अवरेहि-मि हासउ दिज्जइ । महु पेक्खंतहो रिउ खंतहो विससेणु केण जोहिजइ॥ [११] दुद्धरिसहुं धुणिय-धणु-गुणाहं आलाव जाय कण्णुज्जलाहं विससेणु ताम सहुं रहवरेण उच्छेहोहामिय-महिहरेण चल-चक्कवाल-चालिय-धरेण पहरण-गण-भरियन्भंतरेण तोरविय-तुरंगम-पडिछडेण दुप्पवण-पणोल्लिय-धयवडेण धय-मालालिंगिय-णहयलेण वित्थाराऊरिय-महियलेण पारसव-पुंज-परिपिंजरेण धवलायवत्त-जिय-ससहरेण Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ रिट्ठणेमिचरिउ रहवरेण तेण थिउ अंतराले कहिं गम्मइ दुम्मय समर-काले तुहुं अज्जुणु हउंसो कण्ण-पुत्तु आरोडिउ पइं केसरि पसत्तु घत्ता थाहि थाहि समरे गंडीव-धरे जालंधरेहिं हेवाइउ। एम चवंतएण वंधतएण(?) सर-सएण धणंजउ छाइउ ॥ [१२] पडिवारउ दसहिं महासरेहिं भूय-मूले खडु णं विसहरेहिं चामीयर-वाणर-रूव-विद्ध धउ तिहिं वारह कण्णेहिं विद्ध धणु एक्के विहिं वे रहवरंग छहिं सारहि चउहिं चउ तुरंग तिहिं भीमु णउलु सत्तहिं सरेहिं धट्ठज्जुणु अट्टहिं तोमरेहिं वारहहिं जणद्दणु तिहिं सिहंडि पंचहिं पंचहिं पंचालि दंडि पेक्खंतहो कण्णहो पंडवेण विससेणु पिहिउ सर-मंडवेण धउ धणुवरु सरवर-वरिसु छिण्णु जत्तारु तुरंग-चउक्कु भिण्णु सण्णाहु वियारिउ वणिउ अंगु स-किरीडि स-कुंडलु उत्तमंगु घत्ता खुडिउ धणंजएण रणे दुज्जएण परिओसु देंतु आखंडले। णाई महारहहो णिवडिउ णहहो रवि-विवु सयं भू-मंडले॥ ९ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए तेयासीइमो सग्गो॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउरासीइमो संधि विससेणे समत्तए करिवर-कर कइंद-धय। कण्णज्जुण भिडिय परोप्परु णाई णिरंकुस मत्त गय ।। [१] मंदर-सिहर-समप्पह-संदण भिडिय पयंग-पुरंदर-णंदण कालवट्ट-गंडीव-धणुधर पढम-चउत्थ-पत्थ रणे दुद्धर पंडुर-पंडरीय सिय-चामर पक्खवाय-वे-भाय-कियायर विज्जु-पुंज-घण-पुंज-समप्पहं सुरवर-सुंदर अजय महप्पहं कास-कुसुम-संकास तुरंगम +++++++++++++ रहवर-चक्क-घोर-चूरिय-फणि मउड-मउहोहामिय-दियमणि तोसिय दससयंसु-सक्कंदण। धीरिय-धायरट्ठ-तवणंदण तूरइं अप्फालियइं पगामई दुंदुहि-गोमुह-डंवर-णामइं घत्ता ओयइं अवरइ-मि रणंगणे देवावियई पभूयाई। जल-थल-णहयल वंभंड णइं णं सयखंडीहूयाई॥ [२] गोवद्ध-गोहंगुली-ताण-हत्थेहिं आभिट्टमाणेहिं राहेय-पत्थेहिं पच्छाइयं अंवरं वाण-लखेहिं साणा-सिअग्गेहिं सोवण्ण-पुंखेहिं णाराय-णालीय-वाराह-कण्णेहिं ___अण्णण्णवेहिं अण्णण्ण-वण्णेहिं वे-भाय जायं जयं पक्ख-वाणेहिं +++++++++++++++ सव्वेहिं वेयड्ढ-सेणी-णिवासेहिं सव्वंसहा-सिंधु-सेलंवरासेहिं कण्णाविदंगोहिं उब्भिट्ट तखेहिं वेयाल-भूयग्गही-जक्ख-रक्खेहिं दुद्दाणवाइच्च-आइच्च-भिच्चेहिं कालि-महकालि-दुग्गा-दइच्चेहिं ४ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ १८४ घत्ता ८ तिहुयणहो मज्झे सिट्ठारेण जे जे उत्तम वेस किय। णिय-णिय-वाहणेहिं चडेप्पिणु ते ते पत्थहो पासे थिय॥ [३] अहम-वण्ण चामीयर-वण्णहो । सयल-वि पासे परिट्ठिय कण्णहो विजउ पत्थु पंडव परिओसिय कण्णहो कुरुवेहिं संति पघोसिय भिडिय वे-वि रणु जाउ भयंकरु णं गह-घट्टणे गहहं परोप्परु णं विस-गब्भिणि-भीम-भुवंगहं णं गजंतहं मत्त-मायंगहं णं गोवइहिं विसम-मय-सिंगहं णं केसरिहिं णहर-पडिलग्गहं णं णव-घणहं घोर-णिघोसहं णं सरहहं सरहस-सरोसहं सारहि संचरंति मग्गग्गे रह समंति रह-मंडल-मग्गे तोसिय पंडव कुरुव-विमद्दे किंपि ण सुव्वइ छण-छण-सदें रह-णरवर-गय फोडेवि घाएहिं विण्णि-वि पोमाइय विहिं राएहिं घत्ता कण्णजुण्ण-वाण-णिवाएहिं भिण्णइं विण्णि-वि साहणइं। ओसरियई सुरवर सयल णहे वण-वियणाउर-वाणाई॥ [४] भिण्णइं वाणेहिं सुरवर-सेण्णइं णट्टइं णहयले मणे आदण्णइं वार वार दिण्णइं वाइत्तई मंदिर-सयई ससायरे पित्तई वार वार परिवड्डिय-कलयलु वार वार छाइज्जइ णहयलु वार वार सर-जज्जरियावणि वार वार भिजति महाफणि वार वार कुरु-पंडव-सेण्णइं पुलउ वहंति होति मसिवण्णइं वार वार रवि रहवरु खंचइ वार वार देवरिसि पणच्चइ वार वार उट्ठइ कडमद्दणु वार वार किलिकिलइ जणद्दणु वार वार णाराय-सहोसेहिं रुहिरइं उच्छलंति चउ-पासेहिं ४ ८ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५ चउरासीइमो संधि वार वार भिण्णइं धय-छत्तई पज्झरंति कण्णज्जुण गजई पत्ता रणे कालवट्ट-गंडीवहं मंडलि दिंतहं सर-सयई। णं चंद-सूर परिपेसहं किरणई वाहिरे णिग्णयइं। १० ४ कुंडल-जुवलालंकिय-कण्णे णिय-सारहि वोल्लाविउ कण्णे जइ हउं मरमि किरीडीहे हत्थें तो तुहुं काई करहि परमत्थें वुच्चइ अंगराउ जत्तारें जइ मुउ कह-वि खुरुप्प-पहारें तो सिणि-णयणाणंदुप्पायण मारमि विण्णि-वि णर-णारायण वसुह समप्पमि कुरुव-णरिंदहो पंडव जंतु णयरु गोविंदहो कालिय-कंस-केसि-वल-मद्दणु वोल्लाविउ अज्जुणेण जणद्दणु जइ हउं णिहउ वियत्तण-चावें तो तुहुँ काई करहि सब्भावें परमासीस दिण्ण सुर-मद्दे णंद वद्ध जय जय जय सदें घत्ता अजरामरु होहि धणंजय महु जीविएण-वि जियहि फुडु। कहु कण्णु जाइ सहुँ सल्लेण मइं पहरंतउ पेक्खु छुडु॥ [६] एम चवंत कुंति-कुल-दीवा कण्णज्जुण अभिट्ट पडीवा अंतरु कहि-मि ण दीसइ वाणहं जाउ विवाउ गयणे गिव्वाणहं कउरव-पक्खिएहिं आइट्ठउ जोइसु जोइस-चक्के गविट्ठउ चंद-सूर-तारा-वलु जेत्तहे वद्धावणउं रणंगणे तेत्तहे पंडव-पक्खिएहिं किउ कलयलु तुम्हहं कह उप्पण्णउं केवलु तारा-चंद वलइं जइ वासरे कहिं गय तो पहरहए अवसरे जइ आइच्चहो वलु अत्यंतहो तो णंदणहो समरे पहरंतहो काइं अकारणे करहो पसंसउ जेत्थु कण्हु जउ तेत्थु ण संसउ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ रिठ्ठणे मिचरिउ घत्ता एत्थंतरे आसत्थमेण लहेवि सारु आओहणहो। करि अज्जु-वि संधि पयत्तेण दिण्ण बुद्धि दुजोहणहो । पुणु पुणु दोण-पुत्तु आहासइ अज्जु-वि कुरुवइ कज्जु ण णासइ अज्जु-वि ते तुरंग ते गयवर अज्जु-वि आण-पडिच्छा णरवर अज्जु-वि णउ मुच्चहि पाइक्केहिं अज्जु-वि सयल णराहिव-चक्केहिं अज्जु-वि कामिणि-सत्थु स-णेउरु अज्जु-वि अच्छर-सम अंतेउरु। अज्जु-वि सायवत्तु सीहासणु अज्जु-वि णिरुवमु चामर-वासणु अज्जु-वि रसमसंति वाइत्तइं । अज्जु-वि वीरहं धीरई चित्तई अज्जु-वि तुहुं जे राउ कुरु-लोयहो देहि धरित्ति-अर्द्ध तव-तोयहो सिरि ताडिउ णरिंदु णं वजे वंधव-विरहिएण किं रज्जें घत्ता पहरंतु वे-वि समरंगणे जिणउ पत्थु जिह आहिरहि। आवगीहोउ विहाणए जिवं महु जिवं तव-सुयहो महि॥ ९ [८] तो कण्णज्जुण्णेहिं फुरमाणेहिं विद्ध परोप्परु तिहिं तिहिं वाणेहिं पुणु सत्तहिं सत्तहिं णाराएहिं छंडिउ रणु कुरु-पंडव-राएहिं पेक्खा सव्व जाय तहिं अवसरे सुर आसण्ण परिट्ठिय अंतरे खंडव-डामरेण धणु-हत्थे सरु अग्गेउ विसज्जिउ पत्थे धाइउ जाला-माल-भयंकर रह-धय-चामर-छत्त-खयंकरु वारुणत्थु रवि-सुएण विसज्जिउ । वायवेण तं सरेण परज्जिउ पुणु पडिवारउ लइउ णवल्लेहिं तीरिय-तोमर-कण्णिय-भल्लेहिं वच्छदंत-वइहत्थिय-खुंदेहिं अवरेहि-मि अच्वंत-रउद्देहिं घत्ता वाणासणि कहि-मि ण माइय छाइउ सहुं णहयलेण रवि। जिह दुम्मइ कुल-वहु कण्णहो वाणासणि रण-मुहे लग्ग ण-वि॥ ९ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ चउरासीइमो संधि ४ [९] तहिं अवसरे परिवद्धिय-गउरव तूरइं हयइं पणच्चिय कउरव ल्हसिउ वहरि पई जिउ आओहणु पहरु पहरु पभणइ दुजोहणु तो रवि-णंदणेण सर पेसिय णरेण-वि णिरवसेस णीसेसिय | करु करेण अप्फालइ पावणि अज्ज-वि जियइ धणंजय तावणि पहरु पहरु केत्तिउ पडिवालहि हरि विद्दाणउ किण्ण णिहालहि विस-जउ-जलण-जूय-केस-ग्गह वण-विहि-दाहिण-उत्तर-गो-गह दिण्ण ण पंचगाम तं संभरु णं तो आयहो थामहो ओसरु हउं पंडवहं मणोरह पूरमि कण्ण-गयासणि घाएं चूरमि घत्ता एवहि-मि करमि एक्कंतर पेक्खंतहो सव्वहो जणहो। दुजोहण-मउडु मलेप्पिणु देमि रज्जु तव-णंदणहो॥ [१०] जिह हय राह सयंवर-मंडवे चारिउ चित्तभाणु जिह खंडवे जिह जिय तालुयवम्म धणुद्धर जिह विद्दविय सयल जालंधर जिह सियवत्त-जयद्दह-अंतरे चूरिय भूमिपाल वहु संगरे तिह वावरु एवंहिं जे धणंजय मं उपेक्खहि सोमय-सिंजय कइकय-कासिराय-मच्छाहिव अवर-वि कण्ण सराहय पत्थिव हणु हणु महुमाहवेण-वि वुच्चइ अज्जुणु वइरि जियंतु ण मुच्चइ देहावरणु स-देहउ भिंदहि . जाम ण हणइ ताम सिरु छिंदहि हरि उद्देसिएण लहु-हत्थे आसुग-सहसु विसज्जिउ पत्थे - पत्ता रणे चंपापुर-परमेसरुदीसइ सव्व-सरावरिउ । णं असुर-मंति अत्यंतउ दिणयर-किरणेहिं पइसरिउ ॥ ८ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ १८८ ४ [११] भग्गवत्थु रवि-सुएण विसज्जिउ तेण सिलीमुह-जालु परज्जिउ सत्त सरई संतावइ तावणि तिण्णि-वि णर-णारायण-पावणि विलिहिय तिहिं तिहिं सरेहिं थणंतरे कुविउ किरीडि मालि तहिं अवसरे दसहिं पिसक्केहिं णिहउ सहावइ खुडिउ सीसु तालहो फलु णावइ सल्लु चउहिं कण्णु तिहिं ताडिउ धउ अवरेण कह-वि णउ पाडिउ छाइउ अंगराउ पडिवारउ णं दुक्कमेहिं दुक्कियगारउ णर-कर-पेसिएण वंभत्थे स-उरगु जगु जगडणहं समत्थे दस-गुण-सहसुप्पाइउ वाणहं विप्फुरंत-णक्खत्त-समाणहं घत्ता चउ-सयइं मत्त-मायंगहं दस सहस पवर-तुरंगमहं। रह अट्ठसट्ठि सय जोहहं किय आहार विहंगमहं॥ [१२] जिह णरेण सामंत महिंजय तिह रवि-सुएण णिहय वहु सिंजय वहु पंचाल मच्छ वहु सोमय कासि-करुस-चेइव वहु कइकय कालवट्ठ-वल्लरिय वियंभिय णरवर-मुक्क सरासण थंभिय गुणु गजंतु छिण्णु गंडीवहो पच्छई कासु जाइ धणु जीवहो वइहत्थिय-सएण हउ अज्जुणु सट्ठिहिं सिल-धोएहिं अणज्जुण्णु जावरु लेवि सरासणु सज्जिउ जिणेवि समत्थु महत्थु विसजिउ तेण-वि एंतें णहयलु छाइउ कण्णहो हत्थ-ताणु दोहाइउ पहर-विदुक्खिय कुरुव रणंगणे पक्खि -वि संचरंति ण णहंगणे घत्ता वारहहिं दसहिं पुणु सत्तहिं संसय-भावि चडावियउ। वहु मग्गण धणु ण पहुच्चइ तेण णाई चिंतावियउ॥ ४ कण" Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९ चउरासीइमो संधि ४ ८ [१३] तिहिं कण्णेण धणंजउ ताडिउ पंचहिं हरि-सण्णाहु विहाडिउ तो णरेण अवरेहिं पिसक्केहिं जलण-जाल-माला-लल्लक्केहिं मोहिउ सयलु सेण्णु गय कउरव सर-मोक्खेण थक्क-णिय-गउरव पेक्खंतहं सुर-किण्णर-जक्खहं घाइय विण्णि सहस पयरक्खहं पर उव्वरिउ दिवायर-णंदणु स-धणु स-वाणु स-तोणु स-संदणु चेयण लहेवि अणेय-पमाणेहिं विद्ध किरीडि थणंतरे वाणेहिं एम परोप्परु समरु पढुक्कर सर-जालोलिहिं सव्वु झुलुक्किर दिसउ वलंति णहंगणु तप्पड़ गिरि कणंति महि-मंडलु कंपइ घत्ता पर सव्वहो जणहो णियंतहो णयणई थियइं परिट्ठियई। सय वार वार मेल्लंतयहं देवहं कुसुमई णिट्ठियई॥ [१४] ताम फणिंद-फुरंत-फणावलि आइय चंडवेय-अद्दावलि वेण्णि-वि वाणमएहिं सरीरेहिं थिप्पइ सरेवि कण्ण-तोणीरेहिं तेण-वि लइय अणेय भुवंगम जाणिय महुमहेण उरजंगम णिय-सब्भाउ कहिजइ मंडवे जे पणट्ठ डझंतए खंडवे तो पच्छण्ण होवि अणुवंधे आइय पुव्व-वइर-संवंधे हणु हणु करि दु-खंड अण्णण्णेहिं अद्धयंद-खुर-थूणाकण्णेहिं जाम ण पइसरंति पइसरणेहिं रह-गुड-पक्खर-देहावरणेहिं जाव जणद्दणु अक्खइ पत्थहो ताम पधाइय रवि-सुय-हत्थहो घत्ता महि कंपिय गयणु पलित्तउ धूमावलिय दिसामुहई। किय विण्णि-वि वे-खंडई णउ भुयंग पर-आउहइं॥ ८ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १९० ४ [१५] गय पडिवारा समरे अणिट्ठिय चंपापालहो पुरउ परिट्ठिय अम्हइं चंडवेय-अद्दावलि णं तो पेक्खु फुरंत फणावलि दुद्धर दुण्णिवार अपरज्जिय पई अप्पाणमाणेण विसज्जिय पभणइ सल्लु णवल्लई अत्थई मेल्लि मेल्लि रिउ जिणेवि समत्थई राहा-णंदणेण तो वुच्चइ गयउ केम पडिवारउ मुच्चइ जं होसइ तं होउ हणंतहो सविसई पहरणाई ण मुयंतहो मणु जूराविउ कउरव-रायहो मंछुडु मुहे अलच्छि विय आयहो तेण ण मेल्लइ उरगमणत्थई पंडव-जायव जिणेवि समत्थई घत्ता रणे अभउ दिण्णु गंगेएण दोणे अत्थई छंडियई। ण विमुक्कइ चंपा-णाहेण तिहि-मि कुलई उवखंडियई। [१६]] तक्खय-तणउ ताव तहिं अवसरे पभणइ मेल्लि मेल्लि तहिं संगरे हउं सुर-समर-सएहिं असिद्धउ आससेण-णामेण पसिद्धउ खंडवे दड्डएण महु मायरि घत्तिय सिहि-जालोलिहिं उप्परि आइउ तेण वइर-संवंधे मरइ धणंजउ महु विस-गंधे जंपइ चंपापुर-परमेसरु जइ फणिंदु तो एत्थहो ओसरु मं वोल्लेसइ को-वि विणाणे जुज्झिउ कण्णु भुवंगहं पाणे विसहरिंदु सयमेव पधाइड पत्थें छहिं सरेहिं विणिवाइड ताम तुरंगम मुहरंगेहिं कह-वि कह-वि साहेवि सव्वंगेहिं धरिय धणंजएण स-कसाएं भिण्णु वियत्तणु सर-संघाएं घत्ता मुच्छिज्जइ उम्मुच्छिज्जइ वलइ विरुज्झइ अरि-गणहो। किं केसरि सुटु असूरउ गज्जिउ सहइ महाघणहो । ८ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९१ चउरासीइमो संधि [१७] धाइउ तवण-तोउ सेयासहो पाइं इंदु गय इंदब्भासहो रणु रउद्दु किउ असुर-सुरेहि व रहवरेहिं गंधव्वपुरेहिं व हयवरेहिं कलहंस-सवण्णेहिं चामर-छत्त-धएहिं सोवण्णेहिं समर-सएहिं सरीरावरणहिं संचरंति अब्भतर-करणहिं जिह ण दिवायरु दिसि संभालइ । जिह ण को-वि केत्तह- वि णिहालइ तिह महुसूयणेण स-कसाएं वहरि वरूहु समाहउ वाएं जिह पाविट्ठ पाव-भर-भारिउ हत्थ-पमाणु धरहे पइसारिउ वाहणु आउ सरीरु महाउहु दइवे परम्मुहे सव्वु परम्मुहु घत्ता रवि-सुयहो धरंत-धरंताहो चक्कइं थक्कइं धरणियले । णिसि-आगमे णाई णिव्वुड्डुइं रवि-ससि-विंवई उवहि-जले॥ [१८] तो सविलक्खें चंपाराएं पाडिउ णर-किरीडु णाराएं हरि पभणइ किं सेरउ अच्छहि वइरि-परक्कम किं ण णियच्छहि हणु हणु अज्जुणु वहु-वहु-वाणेहिं सत्तुत्तर-सय-धम्मत्थाणेहिं हणु हणु खंडव-डामर करणेहिं हणु हणु कालकंज-कप्परणेहिं हुणु हणु जालंधर-विद्दवणेहिं हणु हणु विद्धखत्त-णिव्वहणेहिं तो कइकेयणेण लल्लक्केहिं विद्ध वियत्तणु दसहिं पिसक्केहि पुणु छहिं पुणु पडिवारउ एक्के । देहावरणु भिण्णु अवरेक् रुहिरु पियंतु पत्तु महि-मंडलु रवि-सुउ तेण जाउ विहलंघलु ९ घत्ता घुम्मंतु णरेण ण विद्दविउ किं गुणु ण छिण्णु तउ णंदणहो धुणिउ अणंतें कर-जुयलु । जेण ण पाडहि सिर-कमलु ॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठणे मिचरिउ १९२ तो तेण तरुणि-तरणुववण्णे हरि वारहहिं विद्ध कण्णे णउइहिं णरु णरेण अपमाणेहिं पुणु सएहिं पुणु अट्ठाणउइहिं वण-वियणाउरु रुहिर-जलोल्लिउ णं अकाले कंकेल्लि पफुल्लिउ कड्डइ चक्कु ण सुमरइ पहरणु जिंदइ धम्मु ण धम्में कारणु भारु भारु जो दिण्णु सुवण्णहो सो गउ कासु वि पच्छए अण्णहो जइ णिक्खत्तउ धम्मु सहेज्जउ तो किं मइं रणे जिणइ धणंजउ घत्ता रुहु कड्ढि कण्ण जइ सक्कहि वोल्लावइ गंडीव-धरु। उप्पज्जइ णेहु सहावेण जइ-वि ण जाणइ भाइ णरु॥ [२०] णिएवि अजुज्झमाणु पिह-णंदणु तो पभणइ सामरिसु जणद्दणु हणु हणु कवणु खत्तु सहुं आएं जसु उप्परि अक्खत्ति किय राएं जेण कुमारहो गुणु दोहाइउ जेण घुडुक्कउ सत्तिए घाइउ तहो अवराह-दुमहो फलु दावहि छिंदि छिंदि सिरु काई चिरावहि तो छव्वाण-पमाणे वाणे विद्धु धणंजएण तुरमाणे जइ तुहं सरु गंडीवु सरासणु जइ हउं अज्जुणु हरि गरुडासणु धम्म-पुत्तु जइ धम्म-वियाणउ . तो सिरु लेजहि पत्त-पमाणउ एम भणेवि विसज्जिउ पत्थें पाडिउ उत्तमंगु दिव्वत्थें घत्ता तहिं काले कवंधु सइत्तउं रुहिर-पवाहें चच्चियउं। सिरु सामिहे महि णिव-भाइहे देप्पिणु णाई पणच्चियउं ।। [२१] णिवडिउ अंगराउ महि-मंडले दिण्णई जय-तूरइं पंडव-वले वहिरिउ भुवणु संख-णिग्घोसें णच्चिउ भीमसेणु परिओसें ४ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९३ कहइ जणद्दणु पंडव-सेण्णहो जं उव्वरिउ रणंगणे दुजउ कउरव तट्ठ तणट्ठउ-हत्थ भग्ग महा-विसाण णं वारण णं उप्पाडिय-दाढ भुअंगम सूडिय-साह-णिवह णं पायव चउरासीइमो संधि तिहिं भयवत्त-जयद्दह-कण्णहं तं अजरामरु होउ धणंजउ णं कुलगिरि कुलिसाहय-मत्थ णं उक्खणिय-णक्ख पंचाणण छिण्ण-पक्ख णं पवर विहंगम णं दिणमणि वहु-घण-भग्गायव घत्ता भजंतए कउरव-साहणे धणु लेवि सयं भुव-दंडेण आयामिय-आओहणेण । आयासणीउ(?) दुजोहणेण॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए कण्णवहम्मि(?) चउरासीइमो सग्गो॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचासीइमो संधि पाराउट्ठए कुरुव-वले अहिमाण-गइंदारोहणु। तिण-समु मण्णेवि पंडु-वलु पर थक्कु एक्कु दुजोहणु॥ [१] तं वद्धावणउं विओयरहो जउ पत्थहो दिहि दामोयरहो वसुहंतराल-गय-संदणहो सिर-छेउ दिवायर-णंदणहो णर-सर-परिचुंविय वाहणहो पेक्खेवि अवत्थ णिय-साहणहो मं भज्जहो पभणइ कुरुव-पहु मरणेण विढप्पइ अमर-पहु। जीवंतहं जय-सिरि संभव को मई थिए तुम्हहं अहिहवइ तं णिसुणेवि रोस-वसंगयई दस-गुणियइं पंचवीस सयई पायालहं पुरउ परिट्ठियई गय-घाएहिं भीमहो णिट्ठियई धट्ठज्जुण-सरेहिं समाहयइं तट्टइं णट्ठई पिट्ठइं मयइं घत्ता वुच्चइ कुरुव-णराहिवेण सिहि-गल-गवलालि अणज्जुणु। • रहु जत्तार महु-त्तणउं तहिं वाहि वाहि जहिं अज्जुणु॥ [२] ४ रहु सणिउ सणिउ सूएण णि णाराएहिं णरवर-णियरु जिउ वलु सीरिउ सोमय-सिंजयहं सामीरणि-सउरि-धणंजयह ताडिय तिहिं तिहिं तोमरेहिं धय पंचाल-मच्छ ओसरेवि गय जो ढुक्कइ तहो तहो देइ झड रह दलइ विहंजइ हत्थि-हड अण्णेत्तहे सउणि समावडिउ सिणि-णंदणु जमलहं अभिडिउ सो तेहि-मि जिणेवि ण सक्कियउ जगडंतु वलई परिसक्कियउ तहिं अवसरे सल्लु झुलुक्कियउ । परिगलिय-पयाउ एवारियउ जज्जरिय-महारहु वणिय-हयउ । वि-सरासणु णर-सर-छिण्ण-धउ परमेसर दइउ ताहं वलिउ वलु तेण तुहारउ णिद्दलिउ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९५ घत्ता मरइ दोणु धट्ठज्जुणहो जण उ तो समर- मुहे [३] दुज्जोहण पेक्खु पेक्खु वलई दुज्जोहण पेक्खु पेक्खु तुरय दुज्जोहण पेक्खु हत्थि पडिय दुज्जोहण पेक्खु णिरुद्ध - पह दुज्जोहण पेक्खु सभ्य विसह दुहण पेक्खु लोट्टे धय दुज्जोहण पेक्खु सुहs - सिरइं दुज्जोहण पेक्खु परंतु रवि घत्ता तो सिमिरो पल्लट्टु पहु हाएवि पच्छिम-मयरहरे [४] गउ कुरुव-णराहिउ णिय- घरहो दिट्ठ सुर- कुसुमालंकियई लक्खिज्जइ अंगराउ पडिउ णं दिवो पाकसासणु चडिउ गुण संभरंतु कुरुवइ रुवइ अहो परम मित्त परमाहिरहि परं विणु को पहर रेण सहुं परं विणु वट्ट टल्लट्टलउं गंगेउ सिहंडिहे हत्थें । किं कण्णु णिहम्मइ पत्थें । वण - वियणाउर विहलंघलई णं धाउ - धराधर धरणि - गय णं जलहर पलय-पवण - झडिय गंधव्व-पुरोवम छिण्ण रह महिले लोलंत भुवंग जिह णं रण- सिरिवेणि णिवद्ध सय iss भिउडि-पगासिरइं लइ एवंहिं जुज्झावसरु ण - वि दिण-मणि अत्थंतु सुहावइ । जलु पुत्त देंतणाव ॥ पंचासीइमो संधि पंचाणणु णं गिरि-कंदरहो कण्णज्जुण-रह परिसक्कियइं वीयउ दिणमणि आवडिउ णं केण वि कणय - -पुंजु ठविउ पहु वाह-सणाह धाह मुवइ परं विणु सुण्णीथिय सयल महि परं विणु विच्छायउ वयणु महु परं विणु दलु जल- लव - चंचलउं ४ ९ ४ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ तो पभणइ मद्दाहिवइ परए समप्पइ कुरुव- वलु घत्ता - गरहंतु एम तं कुरुव- पहु जे पडिय मज्झे आओहणहो इणंदण - पमुह धरित्ति- सिय भययत्त-विहव्वल - वरुण-सुय अट्ठट्ठ सुदक्खिण अ-सिर किय सल-आरिससिंगि अहिद्दविय भूरीसव- दूसल-दइय ह ओए-वि अवर - वि सामंत-: - सय [५] थोव-तुरंगमु थोव-गउ थिउ कुरुवइ - कुलु सयलु [६] - घत्ता एत्त - विकइद्धय- गरुडधय उवसोह देंत थिय पंडु-वले हरि पभणइ जमल- विओयरहं सरसड्डु णिड्डु यि धणु-गुणहं स- करुसय-सोमय- सिंजयहं परिरक्खहु तुम्हइं वावरणु संतोसु करेवर तव - सुयहो गय विण्णि-वि पासु जुहिट्ठिलहो दिवि दिवि जुज्झंतु ण थक्कहि । पुणु रुवहि राय जिम सक्कहि ॥ संचल्लु सल्लु संजमिय-रहु ते दक्खवंतु दुज्जोहो हय-गय-रह कूडायार किय णीयच्चुय दीह-सयाउ मुय विंदाणुविंद रण-महि थिय जलसंध - सुदरिसण विद्दविय गुरु-दूसासण- विससेण मय दुज्जोहण - सल्ल नियंति मय - थोa - रहु थोव - सामंतउ । जिह मिग सिव विहंग तरु चत्तउ ( ? ) ॥ हय-तूर स-कलयल लद्ध-जय णं चंद-दिवायर गयण-यले कोतासि गयासणि-गोयरहं सच्चइ-सिहंडि-धट्ठज्जुणहं पंचालहं मच्छहं कइकयहं हउं अज्जुणु जाम जाहुं भवणु सिर- छेउ णिहालउ रवि-सुयहो वसुमुइ-समागमुक्कंठुलहो १९६ ९ し ९ ८ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७ पंचासीइमो संधि घत्ता भणइ जणद्दणु पणय-सिरु किं णरवइ गलिय-पयावउ। घाइउ कण्णु धणंजएण तउ आयउ हउं वद्धावउ॥ ४ पणवेप्पिणु जय-जय-भायणेहिं वोल्लिज्जइ णर-णारायणेहिं जय णंद वद्ध वद्धावणउं कुरु-जंगलुभुंजहि अप्पणउं लइ जाहुं जुहिट्ठिलु पेक्खु रणु जहिं तावणि तोमर-तत्त-तणु तव-णंदणु पभणइ पणय-सिरु मयरहर-गहिर-रव-गहिर-गिरु महसूयण जाहं पसण्णु तुहुं ते अवसे णर पेक्खंति सुहु जहिं तुहुं तहिं सव्वइं मंगलइं जहिं तुहुं तहिं वसुमइ-मंडलई जहिं तुहुं तहिं दिहि कल्लाणु जउ जहिं तुहुं तहिं अवसें कुरुहुँ खउ मंतोसहि-पगुणीकिय-भुएण संणाहु लइज्जइ तव-सुएण घत्ता जुत्त तुरंगम चडिउ रहे गउ णरवइ थोवाणियउ। चालिउ णर-णारायणेहिं णं मेरु महीहरु वीयउ॥ [८] जय कारिउ णरवइ णरवइहिं सिवि-सोमय-सिंजय-सच्चइहिं पंचालेहिं मच्छेहिं जायवेहिं । अवरेहिं अण्णणय-अवयवेहिं दक्खविउ कण्णु तव-णंदणहो णं सूरेहिं वित्तु सक्कंदणहो पाडिय-कवंधु उच्छलिय-सिरु णीसारिउ णाई तूसेवि रुहिरु जोइज्जइ कांइ वियत्तणहो जो गउ अवसाणु भडत्तणहो जसु सिरि ण सरीरहो ओसरइ मुह-कमलु कमल-कमला धरइ धणु जेण दिण्णु ओलग्गणहं ण धरिय णिय-पाण-वि मग्गणहं सिरु सामिहे देहु वसुंधरहो पूरंतु मणोरह हय हरिहो Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ १९८ घत्ता ८ एम भणेवि णं रुहिरु थिउ गय पंडव णिय-णिय-वासहो। हियए विसूरइ कुरुव-पहु महु एक्कु-वि ण हुउ णिरासहो। [९] ण धरद्धु समप्पिउ पंडवहं आणिउ विणासु पर वंधवहं सउ पुत्तहं सउ जे सहोयरहं ण पमाणु तुरंगम-किंकरहं चूराविय सयल-वि मई जे रणे ण परिट्ठिय सुंदर वुद्धि मणे गंगेउ सिहंडिहे मरइ जहिं जीवेवए अम्हहं कवणु तहिं तो पगुण-गुण-गणलंकरिउ सम्भावें भणइ किवायरिउ णउ अज्जु-वि मइयवट्ट भमइ तउ अज्जु-वि धम्म-पुत्तु खमइ अज्जु-वि महि-अद्ध समल्लवइ अज्जु-वि सो तुहुं जि णराहिवइ अज्जु-वि मद्दाहिउ तुह तणउ कियवम्मु सउणि हउं गुरु-तणउ घत्ता अज्जु-वि तुज्झु जे वइसणउं सामंत-वि ते-वि तुहारा। अद्धोवद्धिए रज्जु करे जो मुवउ सो मुवउ भडारा॥ [१०] तो पभणइ कुरुव-णराहिवइ । जं माय-वप्प-गुरु सिक्खवइ तं पई सिक्खविउ कज्जे थियए किव णवर ण लग्गइ महु हियए विसु दिण्णु रइय जउ-मंडविय कवडक्खेहिं वसुमइ छंडविय पंचालिहे किउ केस-गहणु वण-वसणु कराविउ गो-ग्गहणु खेत्तु-वि ण दिण्णु मग्गंताहं लज्जिजइ संधि करंताहं अज्जु-वि दोमइ थंडिले सुवइ अज्जु-वि सुहद्द धाहेहिं रुवइ धट्ठज्जुण-वासुएव-ससउ अच्छंति कसाय-सोय-वसउ ते विण्णि-वि संधि करंति किह महु भीमु पलिप्पइ जलणु जिह ८ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९ पंचासीइमो संधि दिवे दिवे चिंतवइ विणासु मणे लइ जं होसइ तं होउ रणे घत्ता देंतु आसि जो पेसणइं गंगेय-दोण-किव-कण्णहं। __सो दुजोहणु अज्जु हउं उवसेव करमि किह अण्णहं॥ ९ [११] संतणु विचित्तवीरिय-अवहि परिपालिय जेण-वि सयल महि सो केम सेव अण्णहो करमि भुव जाम ताम करि वावरमि गुरु-पियर-पियामह खयहो गय सामंत सहोयर पुत्त-सय अंगई ढिल्लारीहुआई संसार-सुहई अणुभूयाई अ-पमाणइं दाणई दिण्णाई जस-कुसुमई जगे विक्खिण्णाई वर-वइरि-कुलई संतावियई वहु-सयणइं उण्णइ पावियई गुरु वंदिय देवय-पुज्ज किय महि पंडुसुयह ण समल्लविय वे वाहउ हियवउं होउ छुडु महु एवंहिं मरणु जे रज्जु फुडु घत्ता तो पोमाइउ णरवइहिं सच्चउ धयरट्ठहो पुत्तु। पोत्तउ गंगा-णंदणहो दुजोहणु होहि णिरुत्तु ।। __ [१२] दुरुज्झिय-संपय-धणिय-धणु जं कुरुव-राउ थिउ मरण-मणु तं सव्वेहिं समरारंभु किउ जोयणइं विण्णि सण्णहेवि णिउ वइरिहिं हक्कारा पट्टवेवि पुट्टिहिं हिमवंतु परिट्ठवेवि सरसइय डेर(?)रइयाओहणहो किवि विण्णवंति दुजोहणहो सेणावइ कुरुवइ को-वि करे जो खंधु समोड्डइ समर-भरे जो कंवुव-कंठु वग्घ-वयणु जो वसह-खंधु दीहर-णयणु जो गरुड-परक्कमु पवणजउ जो दुंदुहि-सायर-मेह-रउ जो दस-सय-कुंतल-विहुर-धरु जो सधर-धराधर-धीर-धरु ८ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ २०० । घत्ता केसरि-विक्कमु विजु-वलु सुर-करि-कक्ख-सहत्थु । तं सेणावइ करहि तुहुं जो पंडव जिणेवि समत्थु । [१३] तो पर-वल-सलिलुड्डोहणेण गुरु-पुत्तु वुत्तु दुजोहणेण तुहुं अम्हहं दोणायरिय-समु वड्डारउ वुद्धिए कज्ज-खमु संगामुव्वरियए णर-णिवहे सेणावइ किज्जइ कवणु कहे दोणायणि अक्खइ पत्थिवहो करि पट्ट-वंधु मद्दाहिवहो सो पंडव जिणेवि समत्थु रणे परिओसिउ कुरुव-णरिंदु मणे गउ सल्लहो पासु गइंद-गइ वसु-हत्थु कयंजलि विण्णवइ देहि खंधु चहुट्टए समर-भरे सेणावइ होहि पसाउ करे तो मद्दाहिवेण समच्छियउ रण-भरु णिय-सिरि णं पडिच्छियउ ८ घत्ता कल्लए पंच-वि पंडु-सुय णिठ्ठवमि करेप्पिणु जुज्झु । वसुमइ छत्तइं वइसणउं दुजोहण अप्पमि तुज्झु॥ [१४] महि परए पेक्खु णिप्पंडविय वारमइ दसारुह-छंडविय ण णरिंदु ण भीमु ण महुमहणु ण धणंजउ जमलहो णेक्कु जणु ण धरित्ति ण छत्तु ण वइसणउं पर होसइ सायरे पइसणउं परिओसु पड्दिउ पत्थिवहो । विणिविद्धु पटु मद्दाहिवहो जिह दोणहो जिह णइ-णंदणहो जिह कण्णहो किय-कडमद्दणहो तिह णंद वद्ध जिय-पंडु-वलु उज्जालि महारउ मुह-कमलु तो कहिउ चरेहिं दामोयरहो रणे पटु वद्ध मद्देसरहो णारायणु समरुक्कंठुलहो गउ सरहसु पासु जुहिट्ठिलहो ८ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ पंचासीइमो संधि घत्ता कल्लए कुरुव-णराहिवहो तव-णंदण भीमु हणेसइ। भंजेवि विओयरु गयासणिए णिय-पाएहिं मउडु मलेसइ॥ गय-दिणे दूसासणु णिट्ठविउ भययत्त-जयद्दह सूर-सुय । गंगेउ सिहंडें जज्जरिउ सव्वहं सर-सीरिय-खत्तियहं जमलेहि-मि जमलीहूयएहिं जरसिंधु हणेवउ समरे मई जं वोल्लिउ तेत्थु जणद्दणेण गउ णियय-णिहेलणु महुमहणु जम-णयरु स-भायरु पट्टविउ ते तिण्णि-वि पत्थहो हत्थि मुय धट्ठजुणेण दोणायरिउ परिसंख करेसहो केत्तियह असि-कुंत-वराउह करे किएहिं मारेवउ तव-सुय सल्लु पई तं इच्छिउ पंडुहे णंदणेण पडिवालउ दिणमणि-उग्गमणु घत्ता तूरइं देवि भयंकरइं कलयल-रउ करेवि महंतउ। वलु णीसरिउ जुहिट्ठिलहो णं जगु जे सई भुंजंतउ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए संधि पंचासीइहे कण्णवहो समत्तो॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायासीइमो संधि सल्लहो वद्धए पट्टए पंडव-कुरुव-वलाई सल्लई हियए ण फिट्टइ। विण्णि-वि रणे आभिट्टई ।। रण-रस-रोमंचिय-पसाहणु तिगुहु(?) पधाइउ पंडव-साहणु दिण्ण-तूरु परिवड्डिय-कलयलु णर-सामंतहं पहरण-कलयलु रहवर-गयवर-पहर-भयंकरु विविहासियायवत्तु सिय-चामरु देहावरणावरिय-सरीरउ सायर-गहिरु महीहर-धीरउ तो मद्दाहिव-सउणि-सुसम्मेहिं कुरुव-णराहिव-किव-कियवम्मेहिं भय-संताव-दुक्ख-उप्पायणु सव्व-भद्दु विरइउ आरायणु वामे पासे णिम्मियउ तिगत्तउ दाहिणेण हद्दिउ(?)वलवंतउ पुट्ठिहिं दोणि मज्झे दुज्जोहणु करेवि वूहु मंडिउ आओहणु घत्ता सल्ल जुहिट्ठिल वे-वि सेयायव सेय-महाधय। भिडिय परोप्परु णाई जूहाहिव मत्त-महागय ॥ ४ । अट्ठारहमए दिवसे विउद्धए वे-वि वलइं रणे अमरिस-कुद्धए कह व कह व पडिवालिय-सूरइं रण-रसियई देवाविय-तूरई किय-कलयलई समुब्भिय-चिंधई भिडियई उहय-वलग्गिम-खंधई धाइय मत्त-गयंद गयंदहं णं णव-जलहर जलहर-विंदहं धाइय रहवर रह-संघायहं णं स-पायगिरि गिरिहिं स-पायहं धाइय पवर तुरंग तुरंगहं णं मयरहर-तरंग तरंगह सामंतहं सामंत पधाइय सरवर-णियर परोप्परु लाइय एम रउदें णिम्मज्जायह विसम-जुज्झु वीहि-मि संजायहं ८ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ छायासीइमो संधि एक्क-दु-वहु-वयणई संधिय-सर-णियरइं घत्ता धाउ-णिरायण-करणइं। वलइं णाई वायरणइं॥ ४ तहिं अवसरे पंडवहं स-वूहहं कोडि-भडाहं सहास-वरूहहं तिण्णि सहास मत्त-मायंगहं दस सहस उव्वरिय-तुरंगहं कुरु-वले कोडिउ तिण्णि मणूसहं । विण्णि लक्ख हयवरहं स-भूसहं सहसेयारह रहहं रउद्द दस सहास मय-मत्त-गइंदह एम चउव्विह किय परिमाणहं पंडव-कुरुव-वलहं भिडमाणहं किं पि ण सुम्मइ धण-गुण-सदें काहल-संख-मउंद-णिणदें मयगल-गल-गल्लरि-उग्गारेहिं रहवर-पवर-चक्क-चिक्कारेहिं हय-हिंसण णर-णरवइ-हक्केहिं ओएहिं अवरेहि-मि लल्लकेहिं घत्ता कलयलु पूरइ कण्ण रण-रए दिट्टि ण पसरइ। रुहिरे ण जाणहं जाइ तो-वि को-वि भडु पहरइ ।। कहि-मि कहि-मि उच्छलिय-महारउ विहि-मि वलहं णं ढुक्कु णिवारउ ण किउ वयणु णं उप्परि धावइ पत्त-विहुरु गउ भजेवि णावइ भडहं परोप्परु पडिलग्गंतहं असि-वरोह-हम्मत-हणंतहं जाय-घाय-संघाय गइंदहं णं उप्पण्ण खयाल गिरिंदहं रुहिरुइं णिग्गयाइं उग्गालेहिं णं सलिलई पासाय-पणालेहिं रेल्लउ महि-रेल्लंतु पधावइ दइवें रण-रसु पीलिउ णावइ तहिं तेहए संगामे भयंकरे हड्ड-रुंड-विछड्ड-णिरंतरे स-धणु धणंजउ भिडिउ तिगत्तहं णं केसरि करिवरहं पमत्तहं Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ २०४ घत्ता धाइउ पंडव-णाहु किवहो विओयरु ढुक्कु मद्दाहिव-विक्कम-सारह। जमल वे-वि गंधारह ।। धट्ठज्जुण-सिहंडि रहसुट्टिय धम्म-पुत्त परिगरेवि परिट्ठिय भीमज्जुणेहिं संख आऊरिय मद्दि-सुएहिं गंधार पचूरिय ताम तिण्णि सुय कण्णहो केरा धाइय जेट्ठ मज्झ लहुयारा चित्तसेणु सेणामुहु सारउ सच्चसेणु सच्च-वय-धारउ अवरु सुसेणु सुसेण-समप्पह तेय स-वाह वाह-वाहिय-रह तिण्णि-वि भिडिय रणंगणे णउलहो आसीविस-विसहर णं णउलहो मुट्ठि-देसे धणु खंडिउ एक्के भल्ले भिण्णु भाले अण्णेक्के घत्ता तिहिं धउ तिहिं जत्तारु हय चउहि लोट्टाविय। णउलें असिवर-लट्ठि जमेण जीह णं दाविय॥ विंधइ चित्तसेणु सर-जालें करणु देवि रिउ रहवरे चडियउ धम्म-रयणु वाम-करे भमाडिउ । इयर-वि अठ्ठ हणेविणु घाइय कुरु-वाहिणि णासेवए लग्गी रक्खिय कह-वि सल्ल-गोवाले सारहि वाहि वाहि तहिं रहवरु जहिं चामीयर-चामर-वासणु ४ छिंदइ पंडु-पुत्तु करवालें महिहरे विज-पुंजु णं पडियउ सिरु असिवरेण हणेप्पिणु पाडिउ तिण्णि-वि कण्ण-पुत्त विणिवाइय दुव्वल गाइ व वाएं भग्गी उक्खय-खग्ग-दंड-भुव-डालें जहिं सोवण्ण-महद्धए ससहरु जहिं ससि-पंडुरु आयव-वारणु Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ छायासीइमो संधि घत्ता जेण जुहिट्ठिलु अज्जु तिक्ख-खुरुप्पेहिं कप्पमि। वसुमइ णीसावण्ण दुज्जोहणहो समप्पमि ।। तो कोवग्गि-वसारुणिभूएं वाहिउ संदणु सल्लहो सूएं ताव राउ परिवारिउ पत्थें भीमें भीम-गयासणि-हत्थे धट्ठज्जुण-सिहंडि-जुजुहाणेहिं अवरेहि-मि एक्केक-पहाणेहिं विहि-मि परोप्परु भारह-मल्लहं रणु पडिलगु जुहिट्ठिल-सल्लहं खय-रवि-विंव-समप्पह-वयणहं जलण-जाल-मालारुण-णयणहं दुव्विस-विसहर-विस-मालावहं दिढ-भुयदंडायड्डिय-चावहं सरवर-लिहिय-पिहिय-गयणयलहं भूय-णिणाय-भरिय-गयणयलहं तूर-णिणाय-भरिय-गयणयलहं धयदंडुब्भिय-सीयाइंदहं सुरवहु-णयण-भमर-मयरंदहं ++++++++++++++ घत्ता जाउ महाहउ घोरु हण-हण-सढुण थक्कइ। अच्छइ सुरवर-लोउ जमु-वि ण जोएवि सक्कइ । [८] सल्ल-जुहिट्ठिल किव-धज्जुणु वे-वि तिगत्त महाहवे अज्जुण भिडिय परोप्परु जाइय जुज्झई भग्गाउह-पडिलग्ग-णिजुज्झइं मद्दाहिवउ हउ सहएवं अवरहो अवर ढुक्कु विणु खेवें अवरें अवरु पिसक्केहिं पूरिउ .. अवरें अवरहो रहु संचूरिउ ४ अवरें अवरहो छिण्णु महद्धउ अवरें अवरु समरे ओट्ठद्धउ जुज्झई एम अणेयई जायइं जले जलयर-हिय-णिम्मजायइं ताम विओयरु धाइउ सल्लहो णं एक्वेक्कु कोलु एक्कल्लहो लउडि-महाहउ जाउ भयंकरु सिहि-जालोलि-झुलुक्किय-सुरवरु ८ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिडणे मिचरिउ २०६ घत्ता विण्णि-वि जुज्झिय ताम णिवडिय जाम धरत्तिहिं। दइवें मोडिय पाय णं कुरु-पंडव-कित्तिहिं ।। ४ मद्दाहिवु किवेण अपवाहिउ । धम्में जीउ जेम पडिगाहिउ जम-रूवाणुरूव-भू-भीमें चेयण लहेवि दुव्वोल्लिउ भीमें वलु वलु सल्ल सल्ल कहिं गम्मइ सीसइं देवि समर-पिडु रम्मइ जिम तुम्हहं पाडिय समसुत्ती जिम महि दुजोहणेण जे भुत्ती तहिं अवसरे धणु-कवय-सणाहें चूरिउ चेझ्याणु कुरु-णाहें तव-तणएण वहुय णीसेसिय सल्लहो भल्ल चउद्दह पेसिय चंदसेणु सत्तरिहिं णिसिज्झइ रुद्दसेणु चउसट्टिहिं भिज्जइ तिहिं किउ चउहिं भोउ छहिं सउवलु आसत्थामु दसहिं विहिं वयजलु ८ घत्ता णट्ठ असेसु वि सेण्णु जलु थलु विवरु दियंतु मग्गण-पवणुद्धूयउ। सव्वु जुहिट्ठिलिहूयउ॥ तो आरइय-महासर-मंडव जमल सएण सएण तव-णंदणु भीमहो पंचवीस सर लाइय धट्ठज्जुण-सिहंडि विहिं विहिं सयल-वि दसहिं दसहिं पडिवारा सच्चइ-जमल-भीम थिय अंतरे णउलें पंचहिं सरेहिं णिसिज्झइ सिणि-णंदणेण तिसहिहिं वाणेहिं सल्लहो सल्लेहिं सल्लिय पंडव सट्टिहिं णरु सत्तरिहिं जणद्दणु कइकय पंचहिं कह-वि ण घाइय दुमय-सुया-सुय पंच-वि तिहिं तिहिं ४ पीडिए धम्म-पुत्ते धणु-धारा अट्ठहिं पवण-सुएण थणंतरे छहिं छहिं तिहिं सहएवें विज्झइ खंडव-डामरेण अपमाणेहिं ८ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ एक्कु अणतेहिं भिण्णु तो- विजिज्जइ सलु घत्ता तो मद्दाहवेण मद्देयहो पुणरवि परिवड्ढिय-अवलेवहो पंचवीस सइयो उप्परि पत्थहो तीस सट्ठि गोविंदहो माहिवेण सयाई इंदिय गया +++++++++++++ पंचहिं पंच - वि धय दोहाइय सहणि तव - तणएण पउंजिय उलें सत्ति चक्कु सिणि-जाएं [११] सेल्लभल्ल-णाराएहिं । तवसिय हि स - कसाएहिं ॥ घत्ता [१२] अग्गएवाहं को -वि ण थक्क जिह जिह वलई असेसई चूरइ चिंतिउ वड्ड वार स-कसाएं तं तेहउ णिएवि आओहणु पंच - वि पंडु पुत्त धुउ मारइ ताम जुहिट्ठिलेण मद्देसहो तो स-वाण - वाणासण - हत्थहो तो धट्टज्जुणु भाणुवइ-कंतहो पंच - वि एक्कए वारए । मोक्खहो जंते भडार ॥ सत्तर सरहं मुक्क अग्गेयहो उलहो अट्ठ सत्त सहएवहो व रायहो भीमो तेहत्तरि सय सहास पुणु णरवर - विंदहो पंडु-सुयहं तणु ताइं भिण्णई पंचहं पंच महासर लाइय गय सहएवें समरि विसज्जिय विद्धु विओयरेण णाराएं छायासीइमो संधि - णीसावण्णु सल्ल परिसक्कइ तिह तह तव सुउ हियए विसूरइ एहु फेडेवर केण उवाएं मणे परिओसहो गउ दुज्जोहणु मई वइसए अज्जु वइसारइ चक्क - रक्ख णिय वइवस - देसहो दो पुत्र धाइ पत्थहो अवरहो अवर समरे पहरंतहो ९ ४ ९ ८ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २०८ घत्ता ४ पंडव-कुरुवेहिं एव जुज्झई कियई पभूयई। हय-गय-सुहड-सिराइं महियले पुंजीहूयाई। [१३] ताम धणंजएण गुरु-णंदणु किउ अ-तुरंगु अ-सूउ अ-संदणु दोण-सुएण मुसलु परिपेसिउ जायरूवमय-पट्ट-विहूसिउ तमि कइओयणेण उढुक्कंतउ(?) । खंडई सत्त करेवि पमुक्कर आसत्थामें परिहु विसज्जिउ पंचहिं वाणहिं सो-वि परजिउ एवं तिसत्ति-चक्क-गय-मग्गइं चउहिं सरेहिं चयारि-वि भग्गई सरहसु धम्मु ताव थिउ अंतरे गुरु-सुउ ताडिउ तिहि-मि थणंतरे तेण-वि रणे सुवम्मु ओसारिउ सरहु कयंत-णयरु पइसारिउ रहे आरुहेवि थक्कु गुरु-णंदणु ताम णरिंदहो कुविउ जणद्दणु घत्ता अ-णिहम्मंतए कण्णे णरु णारायणु जिंदइ। एवंहिं तव-सुय काई सल्लहो सीसु ण छिंदइ ।। [१४] ताव दिवायरु गउ मज्झण्णहो भणइ जुहिट्ठिलु अग्गए कण्हहो पई समाणु वाणासण-धारउ णरु पहरंतु दि१ सय-वारउ दुमइहे तणए सयंवर-मंडवे सुरहं मंडु डझंतए खंडवे भड-भययत्त-जयद्दह-मारणे विससेणाहवे कण्ण-महारणे भीमु-वि दिलु णिसायर-मारउ कीया-कुरुव-कुल-क्खयगारउ एवंहिं मइं पहरंतउ जोयहि जमलीहोहि मज्झु रहु ढोयहि जिवं मद्दियउ मंडु मद्देसरु जिम महु सरणु अज्जु वइसाणरु । लहु रहु वहु-पहरणहं भरावहि करि कलयलु तूरइं देवावहि ८ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ छायासीइमो संधि पत्ता सच्चइ दाहिण-चक्कं वामए दोण-खयंकरु। पालउ पच्छलु पत्थु अग्गए थाउ विओयरु॥ [१५] जो जेत्तहे आइडु णरिंदें सो तेत्तहे णियमिउ गोविंदें वाहिउ रहु पारद्ध रणंगणु पिहिउ पिसक्क-गणेहिं गयणंगणु वहिरिउ तिहुयणु तूर-णिणाएं किं पि ण दीसइ रय-संघाएं एत्तहे सल्लराय साओहण एत्तहे भिडिय भीम-दुजोहण एत्तहे सच्चइ वलई णिसिद्धइं एत्तहे स-धणु धणंजउ विंधइ एत्तहे सिहंडि रणु पारंभइ एत्तहे आसत्थामु वियंभइ एत्तहे धट्ठज्जुणु परिसक्कइ एत्तहे स-कियवम्मु किउ थक्कइ एत्तहे णउलु स-भायरु कुज्झइ | एतहे सउणि स-संदणु जुज्झइ घत्ता चामर-छत्त-सयाई पेक्खंतहं अमरोहहं। जस-खंड इव पडंति कउरव-पंडव-जोहहं।। तो धयरटेण सुधीमहो छिण्णु सरेण सरासणु भीमहो पाडिउ कंचण-सीहु धयग्गहो णाइं महामणि णह-सिरि-अंगहो सत्ति विओयरेण मेल्लिज्जइ कुरुव-णरिंदु ताम उरे भिज्जइ सारहि णिहउ ताम कियवम्में रक्खिउ जीउ णाई णिय-वम्में मुच्छ-पराणिए कुरु-परमेसरे धाइय सल्ल-दोणि तहिं अवसरे णिय-णिय-जुज्झइं मुएवि स-गव्वेहिं कुरुव-राउ परिवेढिउ सव्वेहिं तव-तोएण ताम मद्देसहो ढोइय सर वच्छयलुद्देसहो तेण-वि तासु एवं अवरोप्परु जाउ जुज्झु तियसह-मि भयंकरु ढाइय ८ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ घत्ता जमल-विओयर-पत्थ ताम परिट्ठिय अंतरे। सव्वेहिं सल्लिउ सल्लु वाहेहिं करि व वणंतरे ॥ [१७] तो मद्दाहिवेण धणु खंडिउ तव-सुएण कुकलत्तु व छंडिउ अवरु लेवि तिहिं विद्धु थणंतरे स-सरु सरासणु छिण्णु खणंतरे विहिं सारहि चउ रहु चउ घोडा लाइय थरहरंत सर थोडा कुरु-णंदण-पमुहेहिं ओसारिउ पुणु-वि जुहिट्ठिलेण हक्कारिउ थाहि थाहि कहिं जाहि अजंगम दुम्मुह दुच्चारित्त णराहम पडिणियत्तु अण्णहिं रहे थाएवि वाणासणि वाणासणि लाएवि विद्धु अजायसत्तु वत्तीसहिं सच्चइ दसहिं विओयरु तीसहिं अवरेहिं अवर णराहिव भग्गा भीम-महल्ल-सल्ल पडिलग्गा घत्ता सव्वहं पीड करंतहं दुद्दम-देह-वियारा। एक्कहिं मिलिया णाई विण्णि-वि वुह-अंगारा॥ [१८] तो तव-तणुरुहेण तिहिं ताडिउ कह व कह व ण महारहि पाडिउ अवरें खय-सूरग्गि-समाणे किउ मुच्छा-विहलंघलु वाणे चेयण लहेवि समुट्ठिउ जय-मणु सीरिउ सर-सएण तव-णंदणु तेण-वि णवहिं विद्ध णाराएहिं देहावरणु भिण्णु छहिं घाएहिं कुरुवइ-किंकरेण धणु खंडिउ अवरु चाउ चामीयर-मंडिउ लेवि जुहिट्ठिलेण रहु चूरिउ मद्दाहिवइ णिरंतरु पूरिउ तेण-वि सहुं भुएहिं विणिभिण्णइं भीम-रिंदहं कवयइं छिण्णइं अवरेहिं सरेहिं विहि-मि वे चावई धरणि-णिवई सुरधणु-तणु-भावई ८ ५ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २११ छायासीइमो संधि घत्ता सारहि किवेण विहत्तु सल्लेहिं हय तुरंगम। पंडव थिय विच्छाया जिह फड-भग्ग भुअंगम ॥ पीडिए धम्म-पुत्ते अणुजेहें सउणिहे धणु पाडिउ आरुट्टे सूयहो छिण्णु सीसु हय हयवर पुणु सय-संख विसज्जिय सरवर जलु थलु गयणु दियंतरु झंपिउ सल्लहो कवउ खुरुप्पें कप्पिउ तेण-वि सहस-धारु सय-चंदउ __लइउ स-मंडलग्गु वसुणंदउ धाइउ घाय दिंतु णित्तिंसउ णउलहो खंडियाउ रह-ईसउ दुम्मय-सुएहिं ताम फरु छिज्जइ भीमें असिवरु दोहाइज्जइ खग्ग-खंडु फेरंतु मुहुम्मुहु धाइउ धम्म-सुयहो सवडम्मुहु विसम दिट्टि किय णवर णरिंदें आसीविसेण णाई भुयइंदें घत्ता जणु पभणइ पहु को-वि जगु जे जंतु संधारहो। सल्लु ण जाणहुँ केम ण हुउ पुंजुरणे छारहो। [२०] विक्कम-सारें णिरुवम-विढे लक्ष्य सत्ति भीमज्जुण-जेहें स-कुसुम-गंध-धूव-अहिवासिय हेमदुम-माणिक्क-विहूसिय घंटा-मुहल पडायालंकिय तेल्ल-धोय-धारा णिय-वंकिय मुक्क ढुक्क वोक्कंति ण दिट्ठिय उरे वम्मई भिंदंति परिट्ठिय लक्खणु जिह सल्लिउ वच्छ-त्थले मुउ ओणल्लु सल्ल महि-मंडले पंडव-वले दिण्णइं वाइत्तइं कउरव-जोहहं पडियई चित्तई दुजोहणु मणेण आदण्णउ जणु पभणइ तव-णंदणु धण्णउ सई पेक्खंतहो आसत्थामहो जो उव्वरिउ सल्लु संगामहो Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २१२ घत्ता जइ रिसि-वयणु पमाणु पंडु पयवि तो पावइ। रज्जु सई भुजंतु धम्मु जे कासु ण भावइ। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए छायासीइमो सग्गो॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तासीइमो संधि विणिवाइए सल्ले दिसि विदिसि गयाइं ओहट्टइं गय-वाहणइं। सव्वई कउरव-साहणइं॥ [१] मद्दाहिवे मदिए रणे रउद्दे ओहट्टए कउरव-वल-समुद्दे णिय-धणु-विण्णाण-कियायरेण हक्कारिउ सल्लहो भायरेण वलु वलु रण-भोयणु देमि धवए कहिं जाहि जियतें विचित्तकवए णाराएहिं दसहिं णरिंदु विद्ध पडिवारउ चउवीसहिं णिसिद्ध चामीयर-चंद-महद्धएण सरु पेसिउ वेहाविद्धएण धणु पाडिउ सारहि हउ णिडाले छहिं वाणेहिं विद्धु थणंतराले अवरेण सिला-सिय-धारएण भल्लेण भल्ल-भल्लारएण सिरु छिण्णु णियंतहं कउरवाहं वले दिण्णई तूरइं पंडवाहं घत्ता तहिं काले मयंधु गयवइ जिह पर-गयवइहे। कियवम्मु स-धम्मु भिडिउ रणंगणे सच्चइहे ।। [२] पहाणभूय जायवा तणुप्पहा-जियायवा सिणिंद-भोय-वंसिया सुरासुर-प्पसंसिया धरा-धरिंद-धीरया महीयलेक-वीरया गह व्व कूर-भावया गिरि व्व धीर-दावया भमंत-धंत-वंतया हणंत एक्कमेक्कया महा-रणंगयं गया वियारिया गयंगया सरोह-विद्धया धया ससूयया हया हया विमुक्क-वाण-जालया पूरियंतरालया Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ रिट्ठणे मिचरिउ . पलंव-वाहु-दंडया गय व्व उद्ध-सुंडया अ-थोव-कोव-दित्तया सिहि व्व सप्पि-सित्तिया घण व्व घोर-घोसया फणि व्व वद्ध-रोसया घत्ता कियवम्मु किवेण पच्छाउहु ओसारियउ। रहु अग्गए देवि अप्पुणु पुणु हक्कारियउ॥ सिणि-णंदणु छहिं तोमरेहिं विद्धु अट्ठहिं आढत्तु अजायसत्तु तो राएं रोस-वसंगएण ओसारिय विण्णि-वि भग्गसोह सण्णहेवि पधाइय पंडवाहं सयसत्तु सुवण्ण-महारहाहं दुजोहणु मत्त-गएण पत्तु सो भणइ म धावहु तुरिउ धाम पुणु सत्तहिं पुणु अट्ठहिं णिसिद्ध हय हयवर ताडिउ आयवत्तु कियवम्मु दसहिं किउ सर-सएण ते सल्ल-पयाणुव वद्ध-कोह णिविडावयत्त-किय-मंडवाहं गिव्वाण-महागिरि-सच्छहाहं सिय-चामर-वासणु धवल-छत्तु अवरइ-मि वलइं पावंति जाम ८ घत्ता णिय पहुण गणेवि धाइय पाइक्क जहिं हय-मुइंग-दडि-काहलई। सव्वइं पंडव-वलइं॥ जायवं महारणाई एक्कमेक्क-मारणा पत्त-रत्त-पाउसाइं घोर-घाय-घोलिराई हड्ड-रुंड-दाविराई सोणिओह-रप्पिराई चप्पिया मया मएहिं भूमि-वेर-कारणाई कुंभि-कुंभ-दारणाई कड्डियंत-फेप्फसाई छिण्ण-टंक-लोलिराइं +++++++++++ अंत-माल-गुप्पिराई भग्गया गया गएहिं Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ आया हया हिं पीडिया भडा भडेहिं एवं ताई जुज्झिया एक्कई दीसंति अवरइं णासंति घत्ता [4] तहिं भीमें दप्पुप्पेहडाहं तो मयगल-भुवणे कल्ल-मल्लु स-सरासणु स-सरु असेय- देहु भद्देण मत्त-तंवेरमेण सव्वाहरणालंकरियएण मय- जल-कद्दमिय- महीयलेण धज्जुणेण तिहिं सरेहिं विद्धु विवरेवर करे पहरेहिं पयट्टु घत्ता कह कह - विदु वल-सायर- मज्झे ताम राय-राएण वंदिरो चंड- चंड- परदंड - डामरो काय - कंति - कसणीकयंवरो पाय- घाय-घाइय- रसायलो पाउसु व्व अणवरय - सीयरो चूरिया रहा मोडिया धया वोल्लिया भडा विहडिया घडा कुंजरेण उच्चाइओ रहो [६] विद्धया या धयेहिं फेडिया थडा थडेहिं जाम जीव- उज्झियाई भीम गयासणि चूरियई । सेण्णई र-सर- पूरियई । य-सल्लु सहसेक्कवीस चूरिय भडाहं ओराइड अवरु किरायणं स-धणु स-धारा- वरिसु मेहु अइरावय- करव-मणोहरेण परिभमिर - भमर - झंकारिएण पंडव- वलु विलुलिहिं मयगलेण पंचहिं सरेहिं पडीवउ णिसिद्धु किउ कलयलु भिल्लाहिउ वियट्टु मद्दकुसेण णियत्तियउ । णं गिरि-मंदरु घत्तिउ ॥ सत्तासीइमो संधि ८ ११ ४ ८ ९ मंद-भद्द- -गय- चिंध-संधिरो संचलंत-चल-कण्ण - चामरो दंति - दंत-धवलिय- दियंतरो अग्गहत्थ-धुणिय-कमंडलो धाइ कियंतु व्व भीयरो तासिया हया णासिया गया तहिं स-संदणो धाइओ दुमय - णंदणो (?) परिभमाडिओ गिरि - समप्पहो ८ ४ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ रिठ्ठणे मिचरिउ घत्ता उप्पएवि वलेण णह-लंघण-करणहो गुणेण। किउ मंसहो पुंजु गय-धाएहिं धट्ठज्जुणेण ।। सिणि-सुएण-वि सल्लहो खुडिउ सीसु दह्रोडु तिसाहिउ भिउडि-भीसु कियवम्मु पधाइउ तेत्थु काले थिउ खेमकित्ति विहिं अंतराले हक्कारिउ जायउ थाहि थाहि कहिं कुरुवइ-किंकरु हणेवि जाहि सर-जालें घाइउ भणेवि एम णव-जलहर-विंदें चंदु जेम तो सर-संधाण-कियायरेण भीमाहवे भद्दिय-भायरेण छहिं भल्लेहिं देहावरणु भिण्णु अवरेण वइरि-सिर-कमलु छिण्णु कुरुवइ-किंकरेण-वि महिएण सिणिवइ हक्कारिउ भद्दिएण तिहिं चिंधु चउत्थें धणु विहत्तु धउ पंचमेण छट्टेण छत्तु घत्ता सच्चइ स-कसाउ कियवम्मु सरेहिं अवरु सरासणु करे लयउ। वि-धणु वि-सारहि वि-रहु किउ॥ ९ [८] कुविउ कियवम्मओ वइरि-सर-विद्धओ वि-धणु णीसंदणो दिट्ठिविस-अहि-मुहो कण्ह-वल-भाइणा पाडियं विससणं उरुवए सो हओ किविण ओसारिओ कुरु-वलं तासियं चुण्ण-किय-वम्मओ विउरयउ विद्धओ घुसिण-पहरण-करो धाइओ संमुहो पुण्ण-वल-हाइणा रुद्द-गो-विससणं भग्ग-मुह-सोहओ णिप्पओसारिओ कायरं णासियं Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ पहरणइं हाई कुरु-णाहहो पा घत्ता [९] सम्मु सउणि ra fara - अवरो-वि को वि सोमित्तु सत्तु तहिं अवसरे जोइय-भुय-वलेण भुंजाविउ प अणवज्जु रज्जु जिवं मुउ जिवं मारिय पंडु - गउ एम भणेवि संगाम - कामु एत्त - विजयासुक्कंठुलेण एत्त - विणकालें किण्ण गाउ - जाय घत्ता जयकारेवि राउ धाइउ सहएउ [१०] hi विहि-मि भीसणं रणं महावहल - गोंदलुद्दामयं महा - हलहलारवुल्लोलयं समुच्छलिय- धूलि - पब्भारयं खणखणिय- तिक्ख-खग्गोहयं हणाहणि-मरंत - पाइक्कयं लुणालुणि तुलंत अंतावलि वसावसण-भुत्त - वेयालयं वर - वाहणs - मणिट्टियई । धावि इ-वि सेण्णइं ठियई । सत्तासीइमो संधि सुहदरिसणु दुम्मरिसणु - वि दउणि सो णासेवि णासेवि पडिणियत्तु पणिउ दुज्जोहणु माउलेण एवंहिं जीविएण-वि कवणु कज्जु सभाउ कहिउ इहु कुरुव- राय तिहिं तुरय-सहासेहिं सउणि मामु पेसिउ सहउ जुहिट्ठिलेण उव्वरिउ वइरि एत्तडउ भाउ उक्खय-खग्गहं णिक्किवहं । तिहि - मिसएहिं णराहिवहं ॥ सिर-चरण-पाणि- दो- खंडणं सुरंगण-जयंगणं कामयं समुट्ठियं हल्लहल - वोलयं णिवारिय - चक्खु - वावारयं छणछणिय- सिंघ-संदोहयं धुणाधुणि-पडंत-सीसक्कयं णिसायर-पियंत रत्तंजलि सिवासिव - सियाल - सद्दालयं १० ४ ८ ८ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ तहिं तेहए संगामे स दूसेवि घत्ता अण्णेत्त कुरुव- णराहिवेण वेढाविउ रण- मुहे धम्म-पुत्तु संदाणिय संदण णिरवसेस अत्त सउणि किंकरेहिं पायालेहिं पंडव-सेण्णु भग्गु ओसारिय रोसवसारणक्ख दस सहस तुरंगहं ताम पत्त अण्णेत्त भीमें दुण्णिवार अण्णेत्त छंडेवि खत्त- धम्मु ओ गलिय-माणं परं पहर-तटुं णिवारिय - णरिंद विभासिय-रहोहं वणार - तुरंगं विओयर - णिसिद्धं जमाउह-विहत्तं धणुब्भिय-धयग्गं [११] भिडिय सउणि - सहएव किह । थिय रद्द गुरु- सउरि जिह ॥ घत्ता - चउक्कें परियरिउ । अण्णत्त उ सूयसिणिसुयहो सुएण संजउ जीव- गाहि धरिउ ॥ [१२] पट्ठविय रहहं सय-सत्त तेण सच्चई सिहंडि-पमुहेहिं गुत्तु किय मारुइ - पमुहेहिं धूलि - सेस विहिं लक्खेहिं खग्ग-भयंकरेहिं सहवें कवि मंडलग्गु सउवल-पाइक्कहं वे - वि लक्ख किय ते वि रणंगणे वणिय -‍ दुज्जोहण - भायर हय कुमार विणिवाइउ पत्थें रणे - - गत्त सुसम्मु वलं कउरवाणं दिसोदिसि पण वियारिय-गइंदं कडंतरिय - जोहं जुहिट्टिल - तुरंगं धणंजय - पसिद्धं अ-दक्खविय-छत्तं अणुग्गिरिय-खग्गं २१८ ९ ४ १० ४ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१९ सत्तासीइमो संधि सुसामिय-विहीणं खरायव-वितत्तं तिसा-सुसिय-गत्तं गयं कहि-मि सेण्णं मुहंदुरुह-दीणं वसा-रुहिर-मत्तं छुहा-छमछमंतं मुहं तहि-मि अण्णं १२ घत्ता किव-गुरुसुय-भोय तिण्णि-वि णासेवि कहि-मि गय। णं मत्त-गइंद केसरि-णहर-पहर-पहय॥ [१३] तहिं अवसरे सउणिहे णंदणेण सुर-णयर-समप्पह-संदणेण सत्तरिहिं सरेहिं सहएउ विद्ध तेण-वि तेणवइहिं पडिणिसिद्ध अवरेक्के पाडिउ छत्त-दंडु अवरेक्के धणुवरु किउ दु-खंडु किर कुरुव-णराहिव रणु ण भगु +++++++++++++ णिय-सुय-विओय-विहलंघलेण सहएउ विद्ध तिहिं सउवलेण धट्ठज्जुणु पंचहिं छहिं सिहंडि णण(?) थरहरंत लाइय तिकंडि पवणंगए दह वारह परिंदे सिणि-तणए सट्टि सत्तरि उविंदे घत्ता सहएवें छिण्णु सउणिहे समरे विअक्खणहो। उद्दालिउ णाई दइवें धणु णिल्लक्खणहो । । [१४] तो सउणि-मामेण संगाम-कामेण णिय-सामि-सत्तेण सेयायवत्तेण सिय-चामरोहेण रह-मत्थयत्थेण फर-रयण-हत्थेण कड्डिय-किवाणेण आभिट्टमाणेण +++++++++++ छिण्णाई सयलाई रिउ-वाण-जालाई तो भीम-पमुहेहिं उत्थरेवि समुहेहिं Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ पर-मंडलग्गाई गंधार-राएण पडिहयउ पासेण तहो दो-वि भग्गाई वड्डिय-कसाएण मुच्छाविओ तेण घत्ता तो पंडु-सुएण गंधारहो दिट्टि चेयण लहेवि समच्छरेण । घत्तिय णाई सणिच्छरेण ।। ८ तो सउणिय-मामें लउडि पित्त कुलदेवय णं चंदण-विलित्त स विमद्दिय मदिहे णंदणेण णं पूयण पुव्वे जणद्दणेण सहसत्ति सत्ति सउवलेण मुक्क तडि तडयडंति णं गिरिहे ढुक्क सा किय ति-खंड णउलोयरेण णं पिहिवि अद्ध-चक्केसरेण । तो सउणिय-मामें घित्तु सल्लु दुब्भेल्लु भल्लु भल्लेरु भल्लु विणिवारिउ तमि-सर-मंडवेण विहिं वाहउ छिण्णउ पंडवेण अवरेण भुअंगम-विब्भमेण खय-काल-कयंत-जमोवमेण कालायस-खुरेण सिला-सिएण वलि-गंध-धूय-अहिवासिएण घत्ता सिरु सउणिहे छिण्णु तेण रणंगणु अंचियउ। सिरु सामिहे देवि णाई कवंधु पणच्चियउ॥ [१६] हए मद्दिपुत्तेण गंधार-राएण णरिंदाण भंगे असेसाण जाएण वले पंडु-पुत्ताण तुट्ठा-पहुट्ठाण थिए भंगमग्गुजए धायरट्ठाण जुजुच्छू पिहा-पुत्त-जेट्ठस्स सिटुं जया तुम्ह सव्वाण वीराण इ8 तया णेमि अंतेउरं ताय-पासं सयं जाउ महिवट्ट दुजोहणासं पुरं जत्थ तं हत्थिणामंतिमल्लं महाराय-रायाहिवाणं पहिल्लं पमोक्कल्लिउ तेण तं तत्थ णीयं रुवंतं कणंतं महासोय-लीयं ठियं गंपि गंधारि-पायाण मूले भुवंगी-समूहं व हुयामराले(?) Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२१ जुजुच्छू जणेरेण एवं पवुत्तो ण दुज्जोहणे जीवमाणे अजुज्झं घत्ता तंव णच्चइ विहुणंतु तुवं जाहि मा कुप्पही धम्म- पुत्तो वरं पंडवा बंधवा होंतु तुज्झं ग रहवरेण तुरंतु तहिं । भीमु सयं भुव-जुयलु जहिं || इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव - कए सत्तासीइमो सग्गो ॥ सत्तासी मो संधि ८ १० Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठासीइमो संधि णिय-सेण्णु असेसु-वि खयहो गउ णिबंधइयउ संवरइ। एक्कल्लउ कुरुव-णराहिवइ वास-महासरे पइसरइ ।। [१] [दुवई] वंधव-सयण-सोय-परिपूरेण ण-किय-दिसावलोयणो। अट्ठारह णिसाहय णिद्दालस-वस-घुम्मंत-लोयणो॥ कह-वि कह-वि थोवंतरे जाएवि सरवर-तीरे तेण तहिं थाएवि रइयंजलि-करेण उल्लाविय पंच-वि लोयवाल वोल्लाविय उप्परि जाम सीसु णिय-खंधहो तावं ण सरणु जामि जरसंधहो जाम सहेज्जियाउ वे वाहउ तावं धरित्तिहे हउं जे सणाहउ तइयउ दियहु जाम थिरु तिट्ठइ कउरव-सेण्णु ताम णउ णिट्ठइ जाम चउत्थी हत्थि महागय ताम जंति कउ वइरि अहम्मय मई मारेवा पंच-वि पंडव वणे पंचाणणेण वेयंड व मं वोल्लेसइ कुरुवइ णट्ठउ अच्छमि सलिलहो मज्झे पइट्ठउ घत्ता अक्खिज्जहो वत्त महु-त्तणिय रायहो णरहो विओयरहो। सुहु सुत्तउ कुरुव-णराहिवइ अच्छइ मज्झे महा-सरहो।। [२] [दुवई]] जइ कइयहु-मि भामि पिहि-पुत्तहं तो तुम्हइं जे सक्खिणा। मंत पियामहेण जे दिण्णा होति मते सदक्खिणा॥ एम भणेवि पइड महा-सरे परिमुक्क-मल-कमल-कमलायरे तहिं विहुरे-वि ण मेल्लिउ माणे जले णिवण्णु णिय-मंतह पाणे ८ १० Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ अट्ठासीइमो संधि ४ तावं पराइय तिण्णि स-संदण तिहि-मि तेहिं वोल्लाविउ राणउ णाह विउज्झहि केत्तिउ सुप्पड़ अम्हई तिण्णि तुहारा किंकर पुणु पुणु आयामिय-संगामें । जइ पंडव ण छुद्ध जम-सासणे । घत्ता पहु पभणइ तुम्हिहिं सव्विहि-मि अच्छंतु ताम ते पंच जण किव-कियवम्म-महागुरु-णंदण वंधव-सयण-सोय-विद्दाणउ जो भावइ सो रणमुहे जुप्पइ जिह पर-परहो पयावइ-हरि-हर पहु वोल्लाविउ आसत्थामें तो हउं चडमि वलंते हुवासणे ८ वार-वार वेयारियउ। एक्कु-वि समरे ण मारियउ॥ ४ [दुवई] भिच्च-णराहिवाण अवरोप्परु ए आलाव जावहिं। भीम-किराय-राय-रायहो अणु-रायावसरे तावहिं॥ ढुक्क पास ओणाविय-मत्था विरइय कर-कमलंजलि-हत्था देव देव जले जलयर-क्खोहणु मंत-जलेण सुत्तु दुज्जोहणु सो वोल्लाविउ तिहि-मि सहाएहिं किव-कियवम्म-दोणदायाएहिं णीसरि णाह चयारि-वि जुज्झई पंडव-भडहं भडत्तणु वुज्झहुं जइ जम-सासणु ण णिय णिसागमे तो पइसरहुँ जलणे जालुग्गमे कुरुव-णराहिउ णिद्दए भुत्तउ मणु(रणु?) अवहेरि करेप्पिणु सुत्तउ गय ते तिण्णि-वि कहि-मि स-रहवर अम्हेहिं पत्त वत्त वत्तावर ते परिपुज्जिय वसुमइ-णाहे धायउ वलु रण-रहसुच्छाहें घत्ता सरु वेढिउ तूरइं ताडियइं किउ कलयलु हक्कारियउ दुजोहणु णीसरंतु मरहि संखेहिं णाई णिवारियउ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिष्ठणे मिचरित २२४ [४] ४ [दुवई] सयल-महारहेहि ढुक्कुल्लिउ(ढुंदुल्लिउ?) कुरु केत्तहे ण दिट्ठउ। पुणु उप्पण्ण भंति मणे सव्वहं दुक्करु जले पइट्ठउ॥ सयं जुहिट्ठिलेण जोइयं सरं भमंत-छप्पयं धयारियंवरं कुलीर-कुम्म-मच्छ -डिंडुहाउलं स-सुंसुमार-णक्क-गाह-संकुलं अरण्ण-मत्त-हत्थि-जूह-डोहियं वलाय-चक्क-हंस-कोंच-सोहियं पफुल्ल-पुंडरीय-संड-पंडुरं समीरणाहयं तरंग-भंगुरं पयंग-पाय-वोहियारविंदयं दिवा-पयाव-सुत्त-सप्प-विंदयं मुणाल-काय-कंति-लद्ध-गारवं खलक्खलंति-लच्छि-णेउरारवं तुसार-हार-सार-तीर-फेणयं महा-वलार-वोसरंत-घोणयं अगाह-कद्दमोह-भग्ग-मग्गयं सहाव-भीयरं सहाव-दुग्गयं पत्ता हक्कारिउ कुरुवइ तव-सुएण. एवमि एवमि धुउ मरणु । वरि पहरिउ जणहो णियंताहो ढुक्कउ पंडव-जमकरणु ॥ [दुवई] णिव णिवसंति णवर जले जलयर मणुयह एउ ण जुज्जइ। तुहुं अहिमाणे सुहड-चूडामणि अण्णु-वि पुहविभुजइ॥ उत्तमे सोमवंसे उप्पण्णउ तहो तेत्तियहो छेय आदण्णउ संभरु विसु जउहरु कवडक्खउ केस-गाहु वण-वसणावेक्खउ गो-ग्गहु पंचगावं-अवगण्णणु जण्णसेणि-दासत्तण-मद्दणु णिरवसेस मारावेवि राणा अच्छिउ जले पइसिरेवि अयाणा णीसरु णीसरु आयहो थामहो करि आरंभु पुणु-वि संगामहो जइ पंचह-मि एक्कु पई मारिउ तो महि तुहुं जि भुंजि के वारिउ सरहसु कुरवराउ आहासइ किं हरिणहं हरिणाहिउ णासइ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५ अवासीइमो संधि णवर णराहिव णिद्दए भुत्तउ तेण महासरे पइसेवि सुत्तउ पत्ता जा जाहि जुहिट्ठिल ताम तुहुं हउं णिविण्णु को णीसरउ। जइ तुम्हहं कारणु जुज्झिएण तो एक्केक्कउ पइसरउ । [दूवई] तव-सुय मंदबुद्धि दूसासण सरवरे कवण सुत्तहं । देहावरण-वूह-जल-दुग्गइं अग्गए रायउत्तहं ।। अप्पुणु पुणु कायरहं पहाणउ लक्खाहर-विवरेण पलाणउ थरहरंतु परिट्ठिउ सीमहो दाहिणे वाहु-दंडे थिउ भीमहो समर-काले कुप्पुरिसहं भजहि एवंहिं गलगज्जंतु ण लज्जहि हउं पुणु जइया संकमि पाणहं णर-णारायण-पेसिय-वाणहं जिवं तुम्हहं जिवं तुह सामंतह तो किं महि देमि मग्गंतहं सयण-विवज्जिएण सावजें होउ होउ महो करणे रज्जें तुहुं भुंजहि हउँ जामि तवोवणु अथिरु सरीरु धण्णु धणु जोव्वणु जर उत्थरइ कयंतु वियंभइ लग्गमि धम्मे जेण सुहु लब्भइ घत्ता विहसेप्पिणु वुत्तु जुहिट्ठिलेण मं करि अवरु वियप्पणउं। जो धम्म सो जि हउं धम्म-सुउ महु जे समप्पहि अप्पणउं ।। ८ [दुवई जइ तुहुं असरणेण अथिरेण किलामिउ मणुय-जम्मणे। णीसरु कुरुव-राय तो जुज्झहो विण्णि-वि खत्त-धम्मणे।। अच्छउ भीमु पत्थु सहुं जमलेहिं रणपिडु रमहुं णियय-सिर-कमलेहिं पभणइ कुरु-णरिंदु वहु-जाणउ तुहुं अम्हहं धयरट्ठ-समाणउ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २२६ अज्जुणु जमल वाल ते तिण्णि-वि जुज्झहुं पवण-पुत्तु हउं विण्णि-वि ४ जइ रहु छंडेवि ढुक्कड़ पाएहिं चूरहुं एक्कमेक्कु गय-धाएहिं ताम विओयरेण हक्कारिउ तुहुं मई पुव्वे जे थुत्थुक्कारिउ अच्छमि अज्जु कल्ले किर चूरमि णिय-वंधवहं मणोरह पूरमि ताम णरिंद पइजेणामेल्लिउ लइ जुज्झहुं रहु एहु आमेल्लिउ मेल्लिउ सीहणाउ अप्फोडिउ तेण रवेण णाई णहु फोडिउ घत्ता तं भीमहो वाहु-सटु सुणेवि अमरिसु अंगे ण माइउ । दुजोहणु मत्त-गइंदु जिह पडिगय-गंधे धाइयउ ।। [८] [दुवई] चंचल-चरण-चालणुच्चालिय सयल धरित्ति-मंडलो। चल-चिक्कार-फार-विहडाविय-सेस-भुवंग-चुंभलो॥ णह-मुह-सिहि-सिह-ताविय-सरवरु पडिरव-खुहिय-सयल-जल-जलयरु करयल-कमल-तुलिय-गय-पहरणु गिरि व स-सिहरु स-पहरणु स-विहरणु हरि व स-णहर-पहर-पसरिय-जसु करि व स-तरुवरु सुमरिय-रणरसु ४ मणे परिहरिय-मरण-भय-अवसरु अमरिस-रस-वस-किय-दिढ-परियरु वयण-कुहर-खर-पसरिय-मलहरु रसइ व णहयले जुय-खय-जलहरु णयण-जुअल-वणदव-हय-गिरिगणु सिय-कुरुकुल-मल-भय-कय-रण-मणु तणु-पह-तडि-णिण्हविय-णर-सुरवर ति-सिहर-कुरुड-भिउडि-भड-भयकरु८ मउड-घडिय-मणि-कर-सवलिय-जलु जल-चलवलण-पहरिसिय-पर-वलु घत्ता . उम्मिल्लु मउडु मणि-वेयडिउ मज्झे असेसहं अलि-गणहं। लक्खिज्जइ ससि परिप्फुरियउ विज्जु-पुंजु जिह णव-घणहं॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ अट्ठासीइमो संधि [९] [दुवई] अद्भुम्मिल्ले मउडे पंडव-वले दिण्णइं तूर-लक्खइं। पडह-मुइंग-संख-दडि-काहल-गोमुह-डंवरक्खइं ॥ जिह गयउरे वसुमइ भुंजंतहो तिह एवंहि-मिलील-णिग्गंतहो तूरइं ताइं ते जि सुहि पंडव धवल-धयायवत्त-किय-मंडव ते करि-मयर-मत्त तंवेरम ते धयरट्ट-जाय सु-मणोरम ते तरंग-तुरंगग्ग-तुरंगम ते ओहार महारह उत्तम ताई सेय-सयवत्तई छत्तई धवल-वलाया-चामर-छत्तई ते परिभमिर-भमर सरे गायर ते जलयर किंकर वस भायर तं सु-मणोरहु सरवर-राउलु सगुण-सयण-जण-जणिय-रमाउलु ८ एम तरंतु तरंतु विणिग्गउ माणस-सरहो णाई सुर-वर-गउ घत्ता सहुं कमलेहिं कुरुवइ मुह-कमलु रय-सियालि-परिचुंवियउं। णं पुण्णिम-इंदु-विवु थियउं तारा-रिक्ख-करंवियउं । [१०] [दुवई] णिग्गउ कुरु-णरिंदु वंचंतु असेसई वइरि-सेण्णइं। कइकय-करुस-कासि-सिवि-सोमय-सिंजय-गण-वरेण्णई ।। जिह गउ गय-जूहई अइसंधेवि धाइउ पवण-पुत्ते लउ वंधेवि परिवड्डिय-रण-रहसुच्छाहें तो वोल्लाविउ पंडव-गाहें अम्हई वहुयई तुहुँ एक्कल्लउ खत्तिय-धम्मु कहि-मि णउ भल्लउ ४ अज्जु-वि तुहं जे राउ महि भुंजहि अज्जु-वि णिरवसेसु जसु पुंजहि अज्जु-वि ते तुरंग ते गयवर अज्जु-वि ते णरिंद ते रहवर अज्जु-वि ते-वि भिच्च हियइच्छा अज्जु-वि अम्हइं आणपडिच्छा अज्जु-वि तं गयउरु सुहगारउ अज्जु-वि तं वइसणउ तुहारउ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ २२८ अज्जु-वि विविह ताई वाइत्तइं अज्जु-वि ताई जे चामर-छत्तई पहु-वयणावसाणे मणे दुट्ठउ पभणइ धायरठ्ठ आरुट्ठउ पत्ता एक्कल्लउ तुहुं अम्हई वहुय कवण कीड एह भडयणहो। करि-कुंभ-त्थलई दलंताहो कइ सहाय पंचाणणहो। [११] [दुवई] कइ जलणहो सहाय वण-डहणे [कइ] पयंगहो तम[ह] णिवारणे। एक्कु-वि हणइ वहुय वहुएहि-मि एक्कु ण हम्मइ रणे॥ मुहियए जे पंडव-परमेसर महु जे देहि महु तणिय वसुंधर तुम्हइं तहिं जि काले परिछिण्णी जिणेवि दुरोयरेहिं तहिं दिण्णी तेरह वरिसइं अम्हहुं खंती एवंहिं किंकर सिरेहि विढत्ती णउ भुंजमि णउ देमि कुल-क्खए जो भावइ सो लेउ परोक्खए जइयहुं जयमेयहि विण्णि-वि सग्गिय(?) पंचहिं पंच गाम पुणु मग्गिय तइयतुं स-विणय वाय णिगिण्णी अच्छउ अद्ध ण थत्ति वि दिण्णी एवंहिं को सब्भाउ जुहिट्ठिल विण्णि-वि जयसिरि-गहणुक्कंठुल ८ विण्णि-वि एक-दव्व-अहिलासिय विण्णि-वि गयउर-रण्ण-णिवासिय घत्ता जिवं तुम्हहुं मई मुसुमूरिएण जिवं मई तुम्हहिं घाइएहिं । महि भुत्ती सोहइ तुम्ह पर कवणु सोक्खु सहुँ दाइएहिं । [१२] [दुवई) तो तव-णंदणेण सण्णाहु समप्पिउ कउरव-णाहहो। सो-वि पइमु ताम अभंतरे रवि व णवंवुवाहहो॥ रक्खिउ जो ण दोण-गंगेयहिं _कण्ण-सल्ल-पमुहेहिं अणेयहिं सो रक्खिजइ किं मइं लोहें रजहो तणए काइं किर मोहें Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२९ घग्घर-माला-सद्द-सणाहें पुणु सीसक्कु लयउ महिपालें तुलिय गयासणि रोसाऊरिउ पंडव-पत्थिवेण तो वुच्चइ अंतरे ताव परिट्ठिउ माहउ आयहो भीमसेणु रणे मुच्चइ भणइ विओयर पीडिय-पूयण अठ्ठासीइमो संधि णं पहु एवं वुत्तु सण्णाहे ४ णं गिरि-सिहरु छण्णु घण-जालें कहिं मह एवंहिं जाहि अ-चूरिउ पंचहं धरहि एकु जं रुच्चइ तुज्झ समुहु ण समिच्छइ आहउ ८ जसु वज्जमउ वि णरु ण पहुच्चइ मं धरि मेल्लि मेल्लि महसूयण घत्ता लइ एउ एउ महु संमुहउ दावमि फलु आओहणहो। जम-काउ करोडिहिं रुहिर-जलु पियउ अज्जु दुजोहणहो॥ [१३] [दुवई] पभणइ पउमणाहु कुरुवेह-परक्कम किण्ण वुज्झहो । णिहउ वलेण जेण दूसासणु तेण वलेण जुज्झहो॥ जेण वलेण हिडिवु वियारिउ जेण वलेण वगासुरु मारिउ जेण वलेण मंड किम्मीरहो कड्डिय पाण-दाण स-सरीरहो जेण वलेण जडासुरु फेडिउ जेण जयद्दहु रणे पच्चेडिउ जेण वलेण विणासिउ कीयउ भाणवंतु जम-सासणु णीयउ तेण वलेण विओयर जुज्झहि किं जेट्ठहो आचरणु ण वुज्झहि जुत्ताजुत्तु ण किंचि वियप्पड़ को वइरिहे सण्णाहु समप्पइ विस-जउहर-जूयई वीसरियई पइं मारावइ दुण्णय-भरियइं दप्पुब्भडु पभणइ पवणंगउ एहु किर कासु ण मझें चंगउ पत्ता पहु देउ देउ देहावरणु लेउ लेउ कुरु-विट्टलउ। पेक्खेसहि एत्तिउ महुमहण मइं किउ मासहो पोट्टलउं॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० रिहणे मिचरिउ [१४] [दुवई] कोमल-कमल-वाहु कमलाणणु कमल-विसाल-लोयणो। कमलालिंगियंगु कमलुक्कम कमलालि-भारि-पहरणो॥ परिमुक्कमल-कमलदल-करयलु पभणइ णर-सुर-मुरिय-उरत्थलु लइ सण्णाहु तुहु-मि तं पावणि जं आएवि वि गुणहि गयासणि वियणे वणंतराले पइसेप्पिणु भीमसेणु लोहमउ थवेप्पिणु जो सुरवर-णियरेहिं ण जिज्जइ दंति-दंत-मुसलेहिं ण भिज्जइ पर-पहरणई जंति जहिं भज्जेवि महिहरे मेह-कुलई जिह गज्जेवि एम वुत्तु जं पंकयणाहें भणइ भीमु महु काइं सण्णाहें देहावरणु सरीरु जे मेरउ आयहो पासिउ को ण वरेरउ मारुइ एण काई अवलेवें मंड मंड परिहाविउ देवें घत्ता जो लोहहो भार-सएण किउ सव्व-पयारें वज्जमउ । सो भीमहो वड्डिय-रण-रसहो फुट्टेवि उरे सण्णाहु गउ ॥ [१५] [दुवई] तो सण्णद्ध-कुद्ध उद्धाइय विण्णि-वि एक्कमेक्कहो । आयउ कामपालु तहिं काले गवेसउ जायवक्कहो। अंधय-विट्ठि-दसारुह-भोएहिं संकरिसण-गरुडासण-तोएहिं णंद-कुंत-पिहु-सिणि-अंकूरेहिं ओएहिं अवरेहि-मि णर-सूरेहिं कामपालु पट्टविउ गवेसउ सव्वेहिं मिलेवि दिण्णु संदेसउ सच्चइ-वासुएव पेक्खेजहिं जइ जियंति तो एम भणेजहि जरसंधहो साहणइं अणेयहिं जिह सायरहो जलइं अ-पमेयई जिह मेहउल-सयई उत्थरियई - एत्तिय वासर अम्हेहिं धरियई एवंहिं धरेवि ण सक्कइ माहव तुम्हहं जइ-वि पियारा पंडव १० Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ अट्ठासीइमो संधि जावय-लोउ तो-वि अवलोयहि जो जसु मल्ल तासु तं ढोयहि घत्ता णिय विजा-पाणे सयलु वलु रुप्पिणि-पुत्तें रखियउ। जइ एत्तिउ पत्तु ण महुमहणु तो जरसंधे भक्खियउ॥ __ [१६] [दुवई] मागह-सूय-वंदि-वेयालिय-वहलुच्छल्लिय-मलहरो। जुत्त-महातुरंग-रहु ढोइउ चडिउ तुरंतु हलहरो॥ गउ कुरुखेत्तहो एक्के पासें रहवरेण सुरगिरि-संकासें जसु पुंजोवमेण णिय-गत्तें सररुह-पंडुरेण वर-छत्तें लंगल-पहरणेण वलवंतें ताल-महाधएण धुव्वंतें तुरय-चउक्कें हंस-वियारें दारु-महत्तरेण जत्तारें गउ तउ जउ सच्चइ जउ माहउ जउ कुरुवाहिव-भीम-महाहउ णं जले विरहिउ सायरु जलहरु णं णिल्लंछणु छण-दिण-ससहरु खीर-महोवहि णं उच्छल्लिउ णं हिमवंतु कहि-मि संचल्लिउ घत्ता जो पंडव-वल परिवेढियहो गयउ आसि जम-सासणहो। सो णाई णियत्तेवि अण्णमउ आउ जीउ दूसासणहो। [१७] [दुवई] आइउ कामपालु रहु छंडेवि पंच पयाई पाएहिं। देवइ-णंदणु-वि सवडम्मुहु सहुं कुरु-पंडु-जाएहिं ।। हरि अवरुंडिउ रेवइ-कंतें अंजण-पायउणं हिमवंतें णं लवणोवहि खीर-समुद्दे कालकूड-विस-पुंजु व रुदें णावइ असिय-पक्खु सिय-पक्खें णावइ अलि-गणु पंकय-लक्खें जउण-वाहुणं गंगा-वाहें णं वम्महु चंदप्पह-णाहें ४ । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ ८ रिडणे मिचेरिउ णं णव-काल-मेहु छण-चंदें तिह अवरुंडिउ हरि वलहदें परमासीस-पुव्वु संभासिउ पच्छए धम्म-पुत्तु आसासिउ तेण-वि दूरवरुज्झिय-संदणु जयजयकारिउ रोहिणी-णंदणु तिण्णि-वि एक्कहिं मिलिय सणेहा तिण्णि-वि काल-हुवासण जेहा घत्ता हरि कालउ हलहरु पंडुरउ राउ सुवण्ण-वण्ण-णिलउ । णं वहु-जल-णिज्जल-जलहरहं तइयउ विजु-पुंजु मिलिउ ।। । [१८] [दुवई] सव्वहं दिण्णु खेमु संमाणिय सव्वासीस-वयणहिं । पुणु पुणु कुरुव-राउ अवलोइउ वाह-भरंत-णयणहिं॥ एत्तहे कुरुव-राउ मणे रुच्चइ एत्तहे णिय-भाइहे ण पहुच्चइ एत्तहे कुरुव-राउ एक्कल्लउ एत्तहे णरु णारायण-भल्लउ एत्तहे कुरुव-राउ जइ ईहइ एत्तहे पंकयणाहहो वीहइ थिउ मज्झत्थीभावें हलहरु कहिउ असेसु स-वइर-वइयरु को जाणइ जउ केत्तहे होसइ तं णिसुणेवि महुसूयणु घोसइ तावं समप्पइ पिहिवि सुधीमहं लउडि-जुज्झु दुजोहण-भीमहं एत्तहे तेत्तहे जाहुं णिरुत्तउं तं पडिवण्णु जणद्दण-वुत्तउं घत्ता कुरु-णाहु विओयरु वे-वि जण स-कवय गरुय-गयाउह। वलएवं धरेवि सयं भुएहिं णिय कुरुखेत्तहो संमुह॥ इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए णामेण मउडभंगो अट्ठासीमो इमो सग्गो॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवासीइमो संधि परिहिय सण्णाहहो लउडि-सणाहहो जिह गयहो महागउ रोस - वसंगउ [१] सरहस दप्पुब्भड भिडिय भीस जिह जम-वइसवण पुरंदरेण जिह मंदर - मेरु जुअ - क्खएण जिह चंद-दिवायर उग्गमेण तिह कुरुव-विओयर हलहरेण पइसारिय दुइ - वि स - लउडि- दंड णं जमल-जलय विज्जुल - णिसण्ण णं तरुस - साह णं गिरिस - सिंग घत्ता भुवणंतर-पूरई दिण्णई तूर अमुणिय परिमाणई अमर विमाणई [२] - अइरावए सुरवइ सुरए भाणु जमु महिसे णिसायरु अच्छहले मारुड सारंगे विमाणे जक्खु गोहए रुद्दाणि मऊरे खंदु अवरेहिं अवर आरूढ देव णाणाहरणाभा -भूसियंग णाणाउह णाण-यपत्त णाणाविह वर वाहण - विलग्ग and परिपारद्धाओहणहो । भिडिउ भीमु दुज्जोहणहो || वएवें चालिय वे - वि सीस जिह उह - पक्ख छण-वासरेण जिह जइ - आलाण महागएण जिह गंग-जउण दह - संगमेण रण - रंगहो मज्झे स-मलहरेण णं मत्त - महागय उद्ध-सुंड णं भीम भुवंगम णाग- कण्ण हय गोमुह डंवर दीड मुइंग वहिरिय-सयल - दियंतरई । णहयले थियई निरंतरई ॥ अय- पिट्ठि परिडिउ चित्तभाणु मयरहरु मयरे मयरेक्क-मल्ले भाणु हंसे गोविसे तियक्खु मंडुक्क सुक्कु पंचमुहे चंदु थिय अंवरे लंवंवुरुह जेवं णाणा - परिहाण - वरुत्तमंग णाणा-धय-चामर-सोह - पत्त रण-रंगंगणु जोयणहं लग्ग - १ ८ ४ ८ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २३४ घत्ता कुरु-पंडव-वीरेहिं णावइ विहिं मेहेहिं छइय-सरीरेहिं वयणाहोय ण ल्हिक्कविय । सामल-देहेहिं रुंद-चंद दुइ दक्खविय ।। वोल्लंति तावं णहे अच्छराउ एहु भीमसेणु एहु कुरुव-राउ णउ जाणहुं कवणु अजेउ मल्ल पेक्खहुं अणिरुवमु कोउहल्लु गय-घाएहिं आएहिं एक्कमेक्कु चूरेवउ तोसिउ जाम सक्कु अवरेक्कु पवुच्चइ जुवइ-विंदु मई थुत्थुक्कारिउ कुरु-णरिंदु अवरेक्कए वड्डिय-मच्छराए णिब्भच्छिय अच्छर अच्छराए किं पइंजे सुपत्तहं दाणु दिण्णु किं पई जे मत्ते तव-चरणु चिण्णु किं तुज्झु जे जोव्वणु वहु-वियारु किं तुज्झु जे सिरे धम्मिल्ल-भारु किं तुज्झु जे णयणइं दीहराइं किं तुज्झु जे अंगई मणहराई घत्ता किं तुहुँ जे भुज्जइ एक्कहिं जुज्झइ सग्गे सहुं सग्गाहिवइ । जं अवरहिं वारहि थुत्थुकारहि अप्पुणु कुरुव-णराहिवइ॥ [४] तो णवर हक्कारिउ पंडु-पुत्तेण तव-तणय-जमलज्जुणाणंत-गुत्तेण अणवरय-वजंत-वाइत्त-संडेण उदंड-जमदंड-सम-लउडि-दंडेण अप्फोडणोरालि-वहिरिय-दियंतेण भू-भंग-भिउडी-पभेसिय-कयंतेण कोवग्गि-जालोलि-पजालियंगेण वल-चरण-संचार-चूरिय-भुवंगेण ४ विस-दाण-जउ-जलण-जूयावराहेण णव-रयसला-दोमइ-केस-गाहेण णिव्वास-वणवास-दूसह-किलेसेण मच्छोवसेवा-कयणण्ण-वेसेण भूभंग-वंधेण संधी-णिसंतेण उच्छण्ण-णीसेस-सामंत-रोहण आएण पावेण पाविट्ठ खद्धोसि कहिं जाहि वहुवेण कालेण लद्धोसि ८ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ णवासीइमो संधि ९ घत्ता वुच्चइ स-कसाएं कउरव-राएं संढहो खलहो अ-लज्जियहो। आढवियाओहणु हउंदुजोहणु किं वीहमि गल-गज्जियहो॥ [५] लइ लउडि विओयर देहि घाउ तुहं पंडु-पुत्तु हउं कुरुव-राउ जाणिज्जइ एवंहिं एत्थु काले गय-गरुय-घाय-घट्टण-वमाले एक्कल्लउ हउं तुम्हइं अणेय पई सहुं संचूरमि सयल एय धट्ठज्जुणु अज्जुणु धम्म-पुत्तु सच्चइ सिहंडि गोविंद-गुत्तु पवणंजउ पभणइ वासुएव गय-घाएहिं चूरिउ पेक्खु केवं तव-तणय सइत्तउ होहि अज्जु महु कित्ति-माल तुहुं भुंजि रज्जु आयहो दुणिमित्तई मउड-भंगु धूमंतु दिसउ कंपउ पयंगु थरहरउ वसुह गह-दुत्थु होउ मई कुद्धए कुरुहुंण जीव-लोउ ८ घत्ता कोवग्गि-पलित्ते मारण-चित्तें भीमें मणि-किरणुजलिय। उग्गिण्ण गयासणि जम-मण-तासणि फुरिय झत्ति णं विज्जुलिय॥ ९ गय भामिय भीमें धूधुवंति णं जलण-जालजलजलजलंति णं वइवस-सखल खलखलंति णं अब्भ-माल दडदडदडंति कुरुवेण-वि भामिउ लउडि-दंडु कंपाविउ महिअलु चालिय गिरिंद ओसरेवि परिट्ठिय दूरे रंगु दुजोहण-भीम महागएहिं णं भूक्खिय देवय भूभुवंति णंणाग-कण्ण चलचलचलंति णं काल-जीह ललललललंति णं जम-रुंचणि गडगडगडंति उड्डाविउ अमर-विमाण-संडु आलाणमुवाविय दिस-गइंद सो णत्थि ण जसु किउ दिट्ठि-भंगु उवसग्गु णाई किउ देवएहिं ८ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ २३६ घत्ता खणे पवणु भयंकरु खणे वइसाणरु खणे पडिसढु समुच्छलइ। तुटुंतु वलंतउ वाहिरि जंतउ तिहि-मि णएहिं तिहुयणु चलइ॥९ भड भिडिय दुइ-वि पिहितणय-मउडि सुर-कुलिस-कढिण-कर-लइय-लउडि जिह जमवइ वियलिय कुडिल-भडहं जिह सुरवर-करिवर वलिय समुह जिह मयवइ पसरिय-णहर-पहर किय-णिसिय-भिउडि परिफुरिय-अहर णिय-णयण-जलण-किय-भुअण-पलय मुह-कुहर-पवण-हय-जलय-वलय ४ जम-करण-करण-अणुकरण-कुसल रण-कमल-मिलिय-सुर-णयण-भसल दह-दह-णह-पह-जिय-तरुण-तरणि कर-चलण-वलण-विलविय-धरणि अणवरय-भमिर जस-भरिय-भुवण . गय-पहर-मरण-भय-पसर-मुवण रण-रस-वस समरे ससमिय दुइ-वि तणु-तडि-णिण्हवण-सयण-सम-रुइ-वि८ [जयदेवेन अचलधृतिरिति पिंगले घत्ता ९ ते भीम-सुजोहण वर-गय-पहरण अहिलसंति महि-विजय-सिरि। दीसंति सुरिंदें णरवर-विंदें णं स-संझ उययत्थ-गिरि ॥ [८] हरि-करि-आयारेहिं पइसरंति वारहहि-मि सुत्तिहिं संचरंति सर-वारण-कोंत-णिवारणेहिं अवरेहि-मि वरि-वियारणेहिं वत्तीसहिं करणेहिं वावरंति चूडामणि-पमुहेहिं परिभमंति संकोय-विकोयावत्तणेहिं गय-पडियागय-गोमुत्तणेहिं अहि-दावण-परिधावण-वइहिं उवणत्थोणत्थ-महागइहिं अब्भंतर-दाहिण-मंडलेहिं सव्वावसव्व-हुलि-गोंदलेहिं(?) चउमुह-उद्धर-पडिउद्धरेहिं गय-घाएहिं आएहिं णिद्धरेहिं अट्ठहि-मि णिवंधेहिं वाहु-दंड वंधंति परोप्परु रणे पचंड Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ तो पसरिय-पसरें रक्खिय तिहिं भंगिहिं भीमें आ गयए गय । खर- पवणग्गिहिं तेण ण सा सय-खंड गय ॥ [९] तो गया- घट्टणे उट्ठओ पावओ तेण तेलोक्क-चक्कं समुद्दीवियं तेण सद्देण भिण्णं असेसं जयं ते वाण उड्डाविया मेहया ताण संघट्टया विज्जुला भग्ग - सिंगा धरा-मंडलं पाविया भूमि - कंपेण रोसाविया पण्णया ते कोवग्गिणा सोसिया सायरा पइसेवि स - कसाएं हउ अहिणव- मेहें घत्ता लद्धावसरें घत्ता कउरव-राएं सामल - देहें [१०] जं पइसेवि सव्वें मंडलेण तं एक्कु - विपण पयट्टु वीरु गय भामेवि आहउ कुरुव- राउ दुज्जोहण पुजिउ सुरवरेहिं आसंकिय पंडव तहिं पमाणे तो हत्थिणायपुर-वासिएण पडिवारउ उरयडे दिण्णु घाउ णिक्कलिउ रत्तु सोत्तंतरेहिं. णवासीइमो संधि धूम - जालावली - दिण्ण-संतावओ थावराणं पि उड्डावियं जीवियं छप्पणं व गुंजावियं कंजयं मेहया जिवं मही- मंडलंते हया विज्जुला - हम्ममालागिरी आउला पत्त-मत्तेहिं भूमी य कंपाविया पण्णया जाय- कोवग्गि - संपण्णया सायराणंत-काले सुरा कायरा मत्थए भीमु महा-गयए । णं कुल-सेलु व विज्जुलए ॥ हर भीमु भुत्त-भू-मंडलेण थि वलेवि धराधर - धीरु धीरु दुक्कालु व वंचिउ तेण घाउ जेम धणय - कुमारु पुरंदरेहिं उ जाणहुं होसइ किं णियाणे पइसेपिणु मग्गे कउसिएण पवणंगउ मुच्छा-विहलु जाउ गउ मुउ मुउ वुच्चइ भायरेहिं ८ ४ ८ ९ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २३८ घत्ता रयणीयरि-कंतहो . कुरु-चक्खंतहो जं वहु-कालें वड्डियउ। तं अणयण-जाएं एक्वें घाएं भीमहो लोहिउ कड्डियउ॥ ९ [११] ४ जं पडिवउ तेण ण दिण्णु घाउ तं देवें मोहिउ कुरुव-राउ वोल्लणहं लग्गु लइ लउडि-दंडु जें जें महु फेडमि समर-कंडु हेवाइउ तुहुं रणणीयरेहिं दूसासण-पमुहेहिं कुरु-णरेहिं दुजोहणु हउं तइलोक्क-मल्लु सुर-णर-उप्पाइय-कोउहल्लु तिल-संढे एक्के कवणु गण्णु लइ एवंहिं उट्ठउ को-वि अण्णु जोइज्जइ कुरु-मुर-घायणेहिं अवरोप्परु णर-णारायणेहिं तहिं काले विवज्जिय-वेयणेण कह कह व समागय-चेयणेण सीहेण व आमिस-लुद्धएण कालेण व जगहो विरुद्धएण घत्ता जमकरणुक्करिसें वद्धामरिसें कुरुवइ-पासु पढुक्कियउ। णयणग्गि-करालेहिं जाला-मालेहिं भीमें झत्ति झुल्लुक्कियउ॥ [१२] तो महावीर वीरा समालग्गया साणुमंत व्व उत्तुंग-सिंगग्गया कालमेह व्व सोयामणी-दारुणा कालदूय व्व दंडत्थ-कोवारुणा मत्त-हत्थि व्व आलाण-उम्मूलया केसरिंद व्व उग्गिण्ण-लंगूलया साउहा धाइया भीम-दुजोहणा भीम भीसावणा भीम-दुजोहणा एक-दव्वाहिलासी महा-पंडवा दो-वि ते धायरट्ठाहया पंडवा जेण जे आसिया सारसा सारसा । तेण ते सामि सासामि सासारसा सारसासार साआसिया जेण जे सायसा सारिसा सामिसा तेण ते वीर भाए गया आगया भारवी वीरहा सीरिया वारि सीहारवी ४ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३९ णवासीइमो संधि सावहाणा रसा सारणा हावसा आइया आसुआ आहया सालसा घत्ता णिवडंतुटुंतेहिं करणइं देंतेहिं रंगभूमि णिरु णिद्दलिया। णं सुरवर-संढेहिं दोहिं वियड्ढेहिं एक विलासिणि दरमलिया॥ १० करण-तंत-कलसुत्त-घाएहिं संचरंति मग्गेहिं आएहिं उप्पयंति धावंति आहवे घाय दिति णिय-णिय-पराहवे घाए घाए उट्ठति हुयवहा घाए घाए घुम्मति दिसिवहा घाए घाए डोल्लंति महिहरा घाए घाए कंपइ वसुंधरा घाए घाए ओसरइ सायरो घाए घाए लंवइ दिवायरो घाए घाए ओसरइ सुरयणा घाए घाए उत्थरइ जलयणा घाए घाए वण-वियण-भेभलो घाए घाए घोसंति कलयलो घाए घाए सय-चंदमंवरं घाए घाए णं मेह-डंवरं पत्ता हरि पुच्छिउ पत्थे कहि परमत्थे भीमसेण-दुज्जोहणहं। वल-विक्कम-सारहं दिण्ण-पहारहं कवणु जिणेसइ विहिं जणहं॥ [१४] णारायणु पभणइ कहमि तुज्झु आढवहि विओयर कवड-जुज्झु ण पहुच्चइ णाएं पवण-जाउ विण्णाणे दुजउ कुरुव-राउ लोहमउ करेप्पिणु भीमसेणु गय गुणिय जेण रण-कामधेणु तव-तणएं णिय सण्णाहु दिण्णु तिहिं आएहिं जिणणहं केण तिण्णु जइ कहव तुलग्गेहिं पहय पाय तो तुम्हेहिं पिहिविहे सव्वराय अह हणेवि ण सक्किउ कह व सत्तु । तो वणे पइसरउ अजायसत्तु णिसुणेवि अणंतहो तणिय वाय सण्णए णरेण दक्खविय पाय परियच्छिउ तेण-वि तेत्थु काले अवसरु ण लद्धु पर भड-वमाले ९ ४ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ आगारेहिं करणेहिं दुज्जोहण पूर घत्ता सुत्तावरणेहिं भीमु अपूरउ [१५] सामरिसस -पहरण सावलेव ओसारु दिति पडिउत्थरंति आगरिहिं दसहि-मि पइसरंति करण वत्तीस - वि दक्खवंति अट्ठहि-मि णिवंधेवि वंध लेिं उडुंति पडंति वलंत धंति तहिं अवसरे कुरु- परमेसरेण दढ - कढिण- पलंव-भुयग्गलेण धत्ता सव्वायामें रण-रहसुद्दामें भीमो भीसावणि मण-संतावणि [१६] जं संख - देसे गय- घाउ दिण्णु घुम्माविउ पाविउ परम मुच्छ उट्ठि रुहिरारुणु दुक्खु दुक्खु दंडाह महा-फणिंदु उद्धार करि करिवरहो जेवं जा मेल्लिय लउडि विओयरेण पडिवारउ उप्परि दिण्णु घाउ उल्ललेवि ण सक्किउ णवर दूरु वंधेवि घाएहिं गयहि रणे रणे । तेण विसूरइ पत्थु मणे | रुहिरारुण फुल्ल-पलास जेवं णं मंदर विणि-वि परिभमंति सुत्तरं वारह-मिण वीसरंति णं सीस परोप्पर सिक्खवंति आहुट्ठेहिं घाएहिं घाय दिंति सरहस स - परीसह वीसमंति आडोहिय-वास - महासरेण पइसेवि अब्भंतर-मंडलेण मेल्लिय लउड लोह-घडिय । णं खय - विज्जु जेम पडिय ॥ कुलिस-हाएं गिरि व भिण्णु चेयण-वि समागय तुच्छ तुच्छ णं कुसुमिउ रत्तासोय - रुक्खु तिण- समउ गणेप्पिणु कुरु- णरिंदु आसण परिट्ठिय सव्व देव सा वंचिय कुरु - परमेसरेण उप्पर हंगणे कुरुव-राउ णिवडतो आहय वेरिओरु २४० ४ ९ ४ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४१ णवासीइमो संधि घत्ता भीमहो गय-घाएं विणु ववसाएं कुरुवइ जण्णवडेहिं पडिउ। वसुमइ वि रसोक्खई लइ णिय-सोक्खइं णं मरिसावउ आवडिउ॥ ९ ८ कह कह व समुट्ठिउ लउडि लेंतु णं करणइंजण्णअडेहिं देंतु णं अहि दंडाहउ सलवलंतु णं पक्खि अ-पक्खु पडिक्खलंतु णं णिड्डहंतु णयणाणलेण को संदु णिहम्मइ पक्खलेण कहिं गयउ आसि विस-जलण-जूवे दोमइ-केसग्गह-समय-भूवे हउ एवंहिं णिय कालेण खर्बु गउ एम भणंतु धरायलद्ध णिवडतें णिवडिय रय-णिहाय उप्पाय असेसहो जगहो जाय महि-कंपु दिवायर-छाय-भंगु आगासहो वरिसइ वहल पंसु स-रुहिर दह-कूव-तलाय जाय विवरीय वहाविय णइ-णिहाय उप्पाय-कवंधई भीयराई णच्चिय वहुय-कम-वहु-कराई घत्ता तहिं काले विओयरु वड्डिय-मच्छरु जहिं दुजोहणु तेत्थु गउ। पेक्खंतहं देवहं हरि-वलदेवहं वामें पाएं मउडु हउ॥ . [१८] जं मलिउ मउडु मारुय-सुएण भुयइंदाहोय-भीयर-भुएण तं धिद्धिक्कारिउ सुरवरेहिं णहयले महि-मंडले णरवरेहिं मच्छाहिव-सोमय-सिंजएहिं अवरेहि-मि लद्ध-महाजएहिं खत्तिय-कुले होएवि किउ अजुत्तु पाएण ण छिप्पइ रायउत्तु तो विज्जु-पुंजु जिह जलहरेण उग्गिण्णु महाहलु हलहरेण अमणूसउ मण्णेवि कामपालु किह पाएं छिप्पइ भूमिपालु सिरु णावेवि णिवारिउ माहवेण अवरोप्परु काई महाहवेण पंडवहं म उप्परि करहि रोसु अवराहहं केरउ सव्वु दोसु ८ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ २४२ घत्ता परिवड्डिय-मलहरु पभणइ हलहरु मुहु जोएवि दामोयरहो। हरि भायरु वुच्चहि तुहुं महु रुच्चहि तेण ण भिडमि विओयरहो॥ ९ ४ [१९] गोविंद गयागमे एम वुत्तु ण णिहम्मइ णाणि हेह्र जुत्तु(?) जिह जिह आहासइ सीर-धारि तिह तिह पवणंगउ कम्म-कारि सय वार करइ सिर-मउड-भंगु णिहुयउ जे णिहालइ सल्ल रंगु गउ णिय-थाणंतरु कामपालु जहिं जायव-मागह-भड-वमालु तव-सुएण णिवारिउ सीह-चिंधु । एक्कु-वि पहु अण्णु-वि परम-वंधु ण णिहम्मद वारंवार-वार दुज्जोहणेण सहुं गउ णिरार जगे वइरई मरण-णिवारणाई अवराई महंतई कारणाई अच्छेवउ अज्जु-वि विग्गहेण जुज्झेवउ सहुं रणे मागहेण मारेवउ सो पहु मद्दणेण दसकंधरु जिह रहु-णंदणेण पत्ता पई मई अवरेहि-मि जमल-णरेहि-मि समर-महाभर-उव्वहणु। दारावइ-पुरवरु तोसिय-सुरवरु पइसारेवउ महुमहणु ।। [२०] तहिं अवसरे पभणइ वासुएउ दुजोहणु दुम्मइ दुकिय-कम्मु माराविय जेण सहोयरा-वि जोइज्जइ मुहु-वि ण तणउ तासु आरूसेवि पभणइ कुरु-पहाणु दुव्वयणहो देंतहो वासुएव लइ एवंहिं किज्जइ काइं खेउ जहिं णिवसइ तहिं देसे-वि अहम्मु गुरु-पित्त-पियामह किंकरा-वि किं अच्छहुँ गम्मउ णिय-णिवासु को दुक्किय-गारउ पई समाणु सयदलई जीह मुहे ण गय केवं ४ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ किं महु 'जे सहोयर तउ ण के - वि घत्ता मण परितुट्ठेहिं अणयण पुत्तहो सो सुरेहिं अदुट्ठेहिं सयं भूमिहे सुत्तहो - माराविय जेण कु- मंतु देवि वयणई साहुक्कारियई । कुसुमई सिरे संचारियई । इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव- कए । णामेण मउड-भंगो [ इमो ] णवासीइमो सग्गो ॥ - णवासीइमो संधि Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवइमो संधि रण-सिरि-रामालिंगियउ कुरुवइ पडिउ-वि सुहावइ। देमि जियंतु ण पंडवहं थिउ पिहिवि धरेविणु णावइ॥ १ महुमहेण विणिवारिज्जंतु-वि भीमज्जुण जमले-वि णिजंतु-वि रुवइ जुहिट्ठिलु अंसु मुवंतउं अवगुण-गुण-वयणइं सुमरंतउ वंधउ जइ-वि सुङ कलियारउ मरणे देइ दुक्खु सय-वारउ जइ-वि कियई विस-जउहर-जूवई एवहिं ताइ-मि दूरीहूवई दुव्वयणाई कहि-मि णिसुणेसहुं णिय-संपयउ कसु दावेसहुँ कुरुव-णराहिवेण तो वुच्चइ कुसुम-वासु ण कवंधहो मुच्चइ किं णउ रुण्णएण अहो राणा जाहि जाहि मं मरहि अयाणा जइ जीवमि तो पंच-वि मारमि तेण हियत्तणेण विणिवारमि घत्ता मई दुजोहणे जीवियए तुम्हेहि-मि एत्तिउ कज्जु । जेण हणाविय ओरु महु तं माहउ मारमि अज्जु ॥ [२] गयई पंडु-वलई भंडागारई तुंगई गिरिवर-सिहारागारइं कंचण-मणि-रयणई अ-पमाणइं हय-गय-रह-वाहण-जंपाणइं चामर-पुंडरीय-धय-चिंधई विविहाउहइं विविक्क-णिसिद्धइं विविहासणइं विविह-वाइत्तई तंविय-रुप्पिय-कंचण-पत्तई गुड-पक्खर-सरीर-तणु-ताणइं। दूसावास-भिसिय-पल्लाणइं कंवल-पडिपावरण-सहासई चेलियाई णिय-णाम-पगासई दासी-दास महिस-गो-वंदई एमावरइ-मि णयणाणंदई लइ लइ पंडवेहिं जा तिण्णइं दुक्खिय-दीणाणाहहं दिण्णई Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५ घत्ता कमल- णिहेलण कमल-कर कुरुव-णराहिवु परिहरेवि [३] कुरुवइ - कोसु असेसु लइज्जइ खंडव - डामर वइरि-पुरंजय उतिण्णु तुरंतु पुरंदर - णंदणु हरि परिपुच्छिउ सिर- गिरि-धारा तो सब्भावें अक्खइ महुमहु कण्णु सहोयरु तिण्णि-वि पावई ड्ड तेहिं तव केरउ संदणु हउं हयासु गइ कवणु लहेसमि घत्ता वंधव लक्खई घाइयई एउ ण जाणमि दुम्मइहे [४] जइ गंधारि रिसत्तणु दावइ णिरुवद्दव - परिपालिय- रट्ठहो तइयहं धाए णिवद्धइं णयणई तेण सइत्तगेण महु भावइ सउ पुत्तहं तो केर मारिउ दुद्दम-दाणव- देह - विमद्दण तिह करि जिह उवसमइ महत्तरि विणु कारणेण करेवि आओहणु कमलाणण कमल - दलच्छि । संकमिय जुहिट्ठिले लच्छि ॥ तो णारायण वोल्लिज्जइ रह - सिहरहो ओयरहि धणंजय दड्नु हुआसणेण तो संदणु कोल इकाई भडारा जं माराविउ स - गुरु-पियामहु थियइं दइव्वइं हुआसण - दावई आसंकिउ मणेण तव-णंदणु कवणुत्तरु णारइयहं देसमि वलु जीवि रज्जु असार । महु होस कि उत्तारु ॥ णवइमो संधि तो अम्हहं एक्कु-विण पहावइ जयहं दिण्ण आसि धयरहो पर - पुरिसहं ण णिहालमि वयणइं जइ-विण डहइ तो-वि फलु दावइ जाहि हि होसइ भारिउ हत्थिणायपुरु जाहि जणद्दण को-वि दोसु पंडवहं ण उप्परि णिय-चरिएहिं पत्तु दुज्जोहणु し ४ ८ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २४६ घत्ता तुहु-मि भडारिए जाणहि पुणु पच्छए भीमज्जुणेहिं जो मग्गंतहं अद्धु ण दिण्णु । कुरुवइ तरु-वल्लरि जिम्व छिण्णु ॥ तं णिसुणेवि पय? जणद्दणु दारुएण ढोइज्जइ संदणु स-धउ स-चामरु सायववारुणु गिरि-गोवद्धण-धारण-धारणु तहिं आरूढु सुरिंद-विहोएं अम्मणुअंचिउ पंडव-लोएं णाहु णियत्तिउ पंकयणाहें रहु ओवाहिउ वाहा-वाहें गयणु पियंत जंति णं घोडा कंचण-संखल-पग्गल-तोडा णं वसुमइ ण छिवंत पधाइय हत्थिणायपुर-णयरु पराइय पट्टणु तेण दिडु विच्छाइउ दुक्खिउ दुम्मणु दीणु अणाहउ केस-विसंठुलु अविरल-वाहउ थामे थामे आमेल्लिय-धाहउ घत्ता जं मणु-पंडव-कउरवहं सव्वहं पुरवरहं पहाणु । गयउरु दिमु जणद्दणेण णं धूमायंतु मसाणु ॥ ४ रह-सिहरहो उत्तरेवि उविंदे पुणु गंधारि महत्तरि दिट्टी गंगा-सायर इव आउण्णई केम-वि उवसम-भावहो ढुक्कइ करेवि महत्तराण अहिवायणु । भणइ ण थत्ति देमि तुह सोयहो तुहं सु-णिमित्तु सु-मंगलु रट्ठहो वंधव-सयणहं तुहुँ गइ तुहुं मइ पुणु धयरडु दिङ गोविंदें हियए जाहे दुह-चडुलि पइट्ठी विण्णि-वि धरेवि परोप्परु रुण्णइं दुक्खु दुक्खु दुक्खेण विमुक्कइ दिण्णासणे णिविट्ठ णारायणु तुहुं अरक्खण-पाणिउ लोयहो सय-वडाय तुहुं धरे धयरट्ठहो तुहुं पंडवहं कोंति महु देवइ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ णवइमो संधि अच्छइ धम्म-पुत्तु रोवंतउ तुम्हहं मुह-दसणु मग्गंतउ . घत्ता ण किय संधि दुज्जोहणेण तहिं काले तुहु-मि पच्चक्ख। एवहिं पुत्त-सयहो तणिय मा भाय करहिं अवक्ख ॥ जे मुय ते मुय सोउ ण किज्जइ दस-विहु परम-धम्मु णिसुणिज्जइ पुत्त-कलत्तई मोहण-जालई वंधव वंधु णाई असरालई तडिणि-तरंग-समउ संपत्तिउ णरय-दुक्ख-दुसह-उप्पत्तिउ धणइं इंदधणु-अणुहरमाणइं जोव्वणाई तरु-छाहि-समाणइं जीवियाई जलविंदु-विलासई लायण्णई विजुल-संकासई पेम्मई संझा-राय-वियारइं दविणई गिरि-णइ-पवहागारइं रवि-अत्थवण-समइं अवसाणइं सोहग्गइं णव-कुसुम-समाणई चलई सरीरई सुविणय-भावई विसय-सुहई विस-विसम-सहावई ८ घत्ता आयइं हलहर-कुलयरहं चक्कवइहिं तित्थयराहं । अम्हहं तुम्हहं अवरह-मि थिर-भावई हूवई काहं ॥ [८] जीउ जमोरगेण भक्खिज्जइ असरणे असरणु केण रक्खिज्जइ जइ-वि तुरंगमेहिं णिरु रुंभइ जइ-विलोह-मंजूसहिं छुब्भइ जइ-वि कूव-विवरंतरे घिप्पइ जइ-वि ण रवियर-किरणेहिं छिप्पइ जइ-वि कह-वि पायाले थविजइ तो-वि कयंतें मंडु लइज्जइ . ४ हरिणु व वाहें करि व मइंदें णउले अहि अक्खु व भुयगिंदें वसहु व वग्धे मच्छु वएण व ससि व विडप्पें कवलु गएण व मे सुवण्णु मे धणु मे जोव्वणु मे कलत्तु मे घर मे परियणु मे मे मे भणंतु कड्डिजइ जइ-वि पुरंदरेण रक्खिज्जइ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २४८ घत्ता जांवहिं मरणु समावडइ रक्खेवि सक्कइ को-वि ण-वि तावहिं कहिं तणिय गवेस। महि दिज्जइ जइ-वि असेस ।। को-विण जगे जीवहो सयणिज्जउ एकु-वि एक्कहो जणु ण सहेजउ तिहुयणु भमइ जीउ एक्कल्लउ अच्छउ एक्कु अणेयहो भल्लउ अवियण-भावे लइज्जइ काएं वज्झइ मुच्चइ कम्म-विहाएं एक्कु अणेयई मरणइं पावइ ++++++++++++++ एक्कु अणेयइं लेइ सरीरइं एक्कु अणेयई सोसई णीरई एक्कु अणेय वार जं भुज्जइ तहो मेरु-वि वड्डिमए ण पुज्जइ एक्कु अणेय वार जं रुण्णउ तेण जलेण महण्णउ पुण्णउ एक्कु अणेय वार जं दड्ढउ तेण रएण होइ वेयड्ढउ पत्ता जावहिं वाहि समावडइ तावहिं जइ को-वि होइ सहाउ। तो किं सव्वहं मिलियाहं एक्कल्लउ कणइ वराउ । [१०] जइ अण्णत्तण्णु तणु ण समंडइ अण्ण-भाउ जइ सिरु ण पियावइ जइ ण थियई णयणई अण्णत्तणे अण्ण-भाउ जइ सुइहिं विरुद्धउ अण्ण-भाउ जइ होइण घाणउ अण्ण-भाउ जइ जीह ण मग्गइ अण्ण-भाउ जइ करहो ण भावइ अण्ण-भाउ जइ फरिसु ण इच्छइ तो किं रणे वणे दहे पहे छंडइ तो किं सूलारोहणु पावइ तो किं मरइ पयंगु हुवासणे तो किं हरिणु जाइ जहिं लुद्धउ तो किं भमरु जाइ अवसाणउ तो किं झसु गल-पासए लग्गइ तो किं अंगुलि खंडणु पावइ तो किं वंधणु हत्थि पडिच्छइ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ णवइमो संधि रए अण्ण-भाउ जइ कमेहिं ण किज्जइ तो किं णेत्तु जेत्थु सिरु छिज्जइ घत्ता अण्णइं आयइं अवरइ-मि जगे जीवहो को-वि ण अत्तु । अण्णहिं कारणे मोहियउ भव-लक्खेहिं काई ण पत्तु ॥ [११] भमइ जीउ संसारे असारए लयणि-मज्झे जिह गोंदले झिंदुउ जिह अरहट्ट-जंते घडि-गड्डउ जिह णडुरंगे अणेयहे गारिहिं +++++++++++++ जिह मायाविउ मायारूवेहिं जिह जलु णइ-तालाय-दह-कूवेहिं ४ कवणु भक्खु भक्खिएण ण भक्खिउ कवणु देसु जो तेण ण लक्खिउ आउसु कवणु तेण ण णिवद्धउं __कवणु देहु जो तेण ण खद्धउ भइणि जणेरि दुहिय कुलउत्ती कवणु णारि जा तेण ण भुत्ती खजइ खाइ मरइ मारावइ रम्मइ रमइ रुवइ रोवावइ घत्ता अर्घउ असरणु एक्कु जणु परिरक्खणु अण्णु ण कोइ। भमइ चउव्विह-भव-गहणु जेण धम्मे ण लग्गइ तोइ॥ वाह [१२] मोक्ख-णयरु जो गंपि ण सक्कइ सो तिहुअणहो मज्झे परिसक्कइ जिह जर-पूसउ आयस-पंजरे जिह भुवंगु वम्मीयम्भंतरे तेम तिवाय-वलय-अब्भंतरे णिवडइ भमेवि भमेवि भुवणोयरे जिह वणट्टउ खप्परे तत्तए जिह चाउलु अद्दहणे कढंतए सुर-णिरएहिं दस सहस णिराउसु तेत्तीसोवहि उवहि-चिराउसु मज्झिम-गइहिं ति-पल्ल वरिट्ठउ । जीवइ खुद्द-भवाइं कण्णिट्ठउ णिच्च णिगोय तिसट्ठि सहासई तिह तिण्णि सयाई छत्तीसइं मरणहं एक्क-समय-अब्भंतरे खुद्द-भवाई ताई भुवणंतरे ८ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० सत्त वार पण्णारह वासरे वारह मास सट्टि संवच्छरे . वारह रासिणवंसय-वत्तई सत्तावीस जोय-णक्खत्तई घत्ता आयइं अंतरवत्तियउ णासइ उप्पज्जइ जीउ। खणे उल्हाइ खणे पजलइ जिह भवणहो मज्झे पईवउ॥ ११ [१३] लोयालोय-पमाण-पगासहो थिउ तइलोक्कु मज्झे आयासहो तंतिवाय-वलएण णिवद्धउ पुक्खर-भंडहं कक्कर-वद्धउ उद्धु चउद्दह रज्जु-पमाणे दिङ् जिणिंदहो केवल-णाणे सत्त एग पंचेग विसालउ पुग्गल-जीवरासि-परिपालउ हेट्ठिम-मज्झिम-उवरिम-भाएहिं । णारय-गर-सुर-सासय-थाएहिं वेत्तासण-झल्लरि-संकासेहिं मुरव-मज्झ-छत्त-संकासेहिं तहो मत्थए थिय सिद्ध भडारा पुण्ण-पवित्त सुमंगल-गारा घत्ता अक्खय अव्वय जीव घण अगरुग-लहु अव्वावाहें। जेण पमाणेहिं सिद्धि गय थिय तेण पमाणे णाहें। ८ [१४] अइ-सुहयहो परिवड्डिय-णेहो अत्तागमणु ण गम्मइ देहो जइ गम्मइ तो असइ अणेयहिं णिरु णिट्टीवण-वमण-विरेयहिं सव्वहं जगे सरीरु अपवित्तउ तमि असरीरु तेण जं छित्तउ ताम महीयले अब्भुरुहुल्लई जाम ण अभिडंति सिरे फुल्लई भोयणु ताम महग्घु विसिट्ठ जावं ण दंत-पंति परिचिट्ठउ ताम सुवंधई आवण-दव्वई जाम सरीरे भिडंति ण सव्वई ताम मणोहराइं वर-वत्थई जाम ण णारि णरेहिं णियच्छइ पाणिउ ताम पवित्तु विसिट्ठउ जाम ण णह विहुरेहिं पइट्ठउ . Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ णवइमो संधि घत्ता दुट्टिम पेक्खु पयावइहे णउ विवरे ण घल्लिउ णीरे । जं विरुयउं जं विट्टलउं तं तं संकमिउ सरीरे॥ [१५] मिच्छा-संजम-जोय-कसाएहिं कारणभूयहिं चउहि-मि आएहिं पावई अल्लियंति जगे जीवहो तम-पडलई जिह मंद-पईवहो जलहर-जालई जिह अहि-मयरहो सरिया-सोत्तइं जिह मयरहरहो दंसण-णियम-विराम-णिरोहेहिं एवमाइं संवर-संदोहेहिं विण्णि-वि आसव संवरिएवा कालोवाएहिं णिज्जरिएवा वद्ध-वंध-सिंगब्भा-भावेहिं तडिणि तरंति तारु जिहणावेहिं कोट्टवालु जिह कोट्टई देप्पिणु पुरइ पंति चर णीसारेप्पिणु णियय-तलायइं जिह कत्तारेहिं रक्खिज्जति वंध-णिरोहेहिं घत्ता सव्वेहिं जीवें जाइएण अप्पउं रक्खेवउ तेवं। आसव-संवर-णिज्जरेहिं पावई ढुक्कंति ण जेवं ।। ५ एवंहिं धम्मु भडारीए सीसइ परु अप्पाण-समाणउ दीसइ सो जि धम्मु जहिं हिंस ण किज्जइ सो जि धम्मु जहिं दय जाणिजइ सो जि धम्मु जहिं वउ पालिजइ सो जि धम्मु जहिं डंभु ण किजइ सो जि धम्मु जहिं मज्जु ण पिज्जइ सो जि धम्मु जहिं मासु ण खजइ सो जि धम्मु जहिं वयउ ण भजइ +++++++++++++++ सो जि धम्मु जो णिहसहो ढुक्कइ जिह सुवण्णु णियरेहिं ण चुक्कइ सो जि धम्मु जहिं परु ण विरुज्झइ सो जि धम्मु जहिं पाणि ण दुज्जइ सो जि धम्मु जहिं जीउ ण हम्मइ सो जि धम्मु जहिं मोक्खहो गम्मइ लोइए लोउत्तरि सव्वेव्वहो सो जि धम्मु पर-तत्ति ण जेत्तहो ८ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २५२ घत्ता किं वहु-वाय-वित्थरेण एत्तिउ परमत्थु महंतु। खज्जइ माणुसु माणुसेण जइ जिण-धम्मु ण होतु ॥ जीवें धम्म एम मंतेवउ वोहि-समाहि-लाहु चिंतेवउ जम्मे जम्मे महु मंगलगारउ होउ सामि अरहंतु भडारउ जम्मे जम्मे तव-दंसण-णाणइं संभवंतु सम्मत्त-पहाण जम्मे जम्मे मय-मोह-विणासणे णिम्मल-वुद्धि होउ जिण-सासणे ४ जम्मे जम्मे जिण-धम्मु लइज्जउ जम्मे जम्मे सुह-गइ पाविज्जउ जम्मे जम्मे अजरामर-थत्तिउ संभवंतु जिण-गुण-संपत्तिउ जम्मे जम्मे संसारुत्तरण संभवंतु सल्लेहण-मरणइं जम्मे जम्मे अवहत्थिय-दुक्खइं संभवंतु कम्म-क्खय-सोक्खई . घत्ता अवयरणाहिसेय-समए णिक्खवणे णाणे णिव्वाणे। जाइं जिणिंदहं मंगलई महु ताइं होंतु अवसाणे। [१८] कहेवि एव वारह अणुपेहउ पभणइ णव-घण-सामल-देहउ लंवइ सूर-विंवु आयासहो जामि भडारिए णिय-आवासहो अच्छइ दोण-पुत्तु स-पइज्जउ माण-वडेंसइ कहि-मि स-तिज्जउ दुक्ख-पमुक्कए उत्तउ णारिए ता आसीस दिण्ण गंधारिए णंद वद्ध जय जाहि जणद्दण पालहि पंच-वि पंडुहे णंदण गउ गोविंदु पासे तव-तोयहो पेसणु दिण्णु णराहिव-लोयहो तुम्हहिं सव्वहिं एउ करेवउ सिविरु असेसु अजु रक्खेवउ मई वलएव-सामि अणुणेवउ खंधावारु सयलु रक्खेवउ चक्कु हरेवउ रज-मयंधहो परए भिडेवउ तहो जरसंधहो Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५३ घत्ता जमल- जुहिट्ठिल- सिणि-तणय करेवि सयं भुव भुव- जुयले मज्जुण सत्त विडु | सव्वेहिं सीराउहु दिडु || इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव - कए । गंधारी-उवसम - करणं णामो णवइमो सग्गो ॥ rasमो संधि १० Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्काणवइमो संधि कियवम्म-किवासत्थामेहिं दुजोहणु चूरिउ भीमेण कहिउ ताम चक्केसरहो। जिवं पहरहुं जिवं ओसरहुं ।। ४ । तो अट्ठारहमउ दिवसु गउ जगु गिलेवि णाई थिउ णिसि-समउ धयरट्टे संजउ पेसियउ दुज्जोहणु तेण गवेसियउ रण-रंगे लुलंतु णिहालियउ णं सुरवइ सग्गहो ढालियउ णं गहवइ गह-मुह-गाह-हउ णं दिणमणि सीयल-भाव-गउ णं काणणु दहेवि दवग्गि थिउ णं सोसहो पारावारु णिउ णं भग्ग-सिंगु गिव्वाण-गिरि कमलायरु णं ओसरिय-सिरि णं पवण-पणोल्लिउ साल-तरु णं सीह-विहट्ठिउ करि-पवरु णं विसहरु तक्ख-पक्ख-झडिउ तिह दीसइ कुरुव-राउ पडिउ घत्ता जो पंडु-सुयह मगंतहं पंच-वि गाम ण दिण्ण चिरु। सो पेक्खु कम्म-विहि-छंदेण लुलइ धूलि-धूसरिय-सिरु॥ [२] एहिय अवत्थ कुरुवइहे जहिं । सामण्णहो किण्ण म होउ तहिं कर-कमल-कयंजलि विण्णवइ हउं संजउ कुरुव-णराहिवइ पट्टविउ आसि जो वारवइ जसु केरी केण-वि ण किय मइ अट्ठारह वासर जुज्झियइं जहिं अवसरे सउणि-णिरुज्झियइं तहिं अवसरे गयउर-णयरु गउ पडिवउ आइउ वत्तावरउ धयरट्ठ भडारा धुउ मरइ । जच्चंधु अयंगमु किं करइ गंधारि स-दुक्ख-भारु रुवइ भाणुवइ अगाह धाह मुवइ अंतेउरु मुच्छागय-विहलु परियणहो ण थक्कइ अंसु-जलु ४ ८ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्काणवइमो संधि घत्ता जगे सव्वहो डाहु महंतउ तुह मुह-दसण-वज्जियहो। पर एक्कहो दिहि दुजोहण पंडव-वलहो अलज्जियहो। ४ । दुजोहणु पभणइ माण-गिरि णंदउ म जुहिट्ठिलु लद्ध-सिरि जसु वणु हिंडंतहो कालु गउ सिविणे-वि ण जाणिउ सोक्खु कउ तहो णामु म लेहि अलज्जियहो पिसुणहो परिवाडि-विवज्जियहो मई दीणाणाहहं दिण्णु धणु परिपालिउ सयलु-वि वंधु-जणु संतणु विचित्तुवीरिउ अवहि ण जियतें दाइहिं दिण्ण महि एवहिं जगे अवर ण का-वि धर अच्छइ मरिएवउ एक्कु पर जं तो-वि सरीर-चाउ ण किउ तं दोण-पुत्तु स-पइज्जु थिउ सो एवहिं पेक्खहुं किं करइ किय पंडव मारइ किय मरइ घत्ता जरसंधु अद्ध-भरहाहिवइ करयले चक्क-रयणु धरइ। सहुं वासुएव-वलएवेहिं पेक्खहुं रण-मुहे किं करइ ।। [४] तहिं काले कालणग्गोह-वणे पारोह-साह-फल-पत्त-घणे कियवम्म-किवासत्थाम थिय कउसिएण ताम तहिं खयहो णिय दस-सहस णिवण्णहं वायसहं णिद्दालस-भाव-परव्वसहं लद्धोवएस खर-वासरहो गय तिण्णि-वि घरे चक्केसरहो जाणाविउ कुरुव-राउ पडिउ स-महारहु भारहु णिव्वडिउ सम्माणहिं ताम जाम जियइ सो कासु-वि पासे ण अल्लियइ विक्खेवु देव महु पंडवेहिं किय किंकर णर सुर पट्टवेहिं तिह करि जिह जणण-वइरु हणमि रिउ-तरुवर-मूल-जालु खणमि Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ २५६ घत्ता ताव चक्काहिवेण स-हत्थेण पट्ट वद्ध गुरु-णंदणहो। सेणावइ होहि महारउ उप्परि जाहि जणद्दणहो । ४ गुरु-तणयहो दिण्णइं साहणइं रह-माणुस-घोडा-साहणई कालायस-कंस-कवय-धरई पहरण-पब्भार-भयंकरई दुग्गंधई धूम-समप्पहई रिक्खंकई रिक्ख-महारहई गो-महिय भवइ कुसासिरइं खर-केस-तुरंग-केस-सिरई णित्तिंसई रोमु सप्पु खुसई लंवोट्ठ(?)-दंतुर-पट्टिसई कण्णथियावरिया भणई ओयई अवराइ-मि साहणाई दस सहस गइंदहं मत्ताहं किंकरहं कोडि पहरंताहं हयवरहं लक्खु रण-भर-सहहं पंचास सहास महारहहं घत्ता तो दीसइ आसत्थामेण कुरुव-णाहु विहलंघलउ। पंडवेहिं णिवंधेवि छंडिउ णाई कसायहो पोट्टलउ॥ पभणिउ गुरु-सुएण रुअंतएण तुहुं देव देव तुहुं वंधु-जणु पइं होतें धण-धण्णइं वहलई पइं होतें धयइं महत्तरई पई होतें अम्हहुं एहु किय उवयारहो तहो एत्तिउ करमि जिवं अवसरु सारिउ तुहुं तणउ जिवं तुडं वइसारिउ वइसणए वहु-धाह-पवाह-मुवंतएण तुहुं गुरु तुहुं सामिउ तुहुँ सरणु मणि-कंचण-रयणइं केवलई वाइत्तइं छत्तइं चामरइं वंभणहं कहि-मि किं राय-सिय जिवं पंडव मारमि जिवं मरमि जिवं गउ णिय-तायहो पाहुणउ जिवं अप्पउ दढ हुवासणए ८ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ इक्काणवइमो संधि घत्ता जिवं अद्ध-रत्ते पडिवण्णए वइरिहिं सीसई आणियइं। जिवं कल्लए वंधव-लोएहिं दिण्णइं अम्हहं पाणियई। ८ परमेसर महि-परमेसरेण महु पट्ठ वद्ध चक्केसरेण विक्खेउ दिण्णु वलु अप्पणउ स-रहु स-वाहु सवारणउ(?) मोत्तिय-पवाल-माला-फुरिउ णिय-जाणु णरेदें पट्टविउ चडु कुरुवइ पेक्खंतहो जणहो घरु गम्मउ पत्थिव पत्थिवहो दुजोहणु पभणइ तुट्ठ-मणु छुडु सामि वइरु गुरु-वइरु हणु हउ गयउ जाहि तुहुं तुरिउ तहिं तव-णंदण-दूसावासु जहिं जो वद्ध पट्ट मगहाहिवेण सो मइ-मि विवद्ध कुरु-पत्थिवेण गउ आसत्थामु ण कहि-मि थिउ किव-भोएहिं कउरव-णाहु णिउ घत्ता सो महि-तिखंड-परिपालेण पिय-पुव्वेहिं सम्माणियउ। लक्खिज्जइ सुहु जीवंतेण णिय-विणासु णं आणियउ॥ [८] उत्तम-सल्लेहण-मरण-मइ वोल्लाविउ कुरुव-णराहिवइ धयरट्ठ-पुत्त एत्तिउ भणमि स-दसारुह णंद-गोव हणमि तुहं जेहिं हणाविउ जेहिं हउ रणे ताह-मि तेहि-मि करमि खउ रक्खंति जइ-वि जम-वइसवण खंदेंद-चंद-हुयवह-पवण ओए-वि अवर-वि रक्खंति जइ दक्खवमि तो-वि अवसाण-गइ यह पाविवि(?) किव-कियवम्म गय सोवण्ण-वसह सोवण्ण-धय जहिं वाहिणि गुरु-तणयहो तणिय सिल-धोय-समुज्जल-पहरणिय ते तिण्णि-वि तहिं एक्कहिं मिलिय णं काल-कयंत-मित्त मिलिय Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २५८ घत्ता किउ कलयलु दिण्णइं तूरइं छुडु परिणमिय-महावलहो। चउ-पासेहिं मागह-लोएण वेढिउ सिमिरु जुहिट्ठिलहो। ४ गुरु-कुरुवइ-रवियर-तावियउ दुजोहण-परिहव-परिहविउ स-कसाउ स-कवउ स-पहरणउ । साहारु ण वंधइ गुरु-तणउ किव-कियवम्महं वारंताहं मागहहं णियंत-णियंताहं पर-वले पइसरइ पलंव-भुउ अरि-सत्थु पयत्थु भयत्थु हुउ लग्गइ ण हेइ एक्कहो-वि करे सण्णाहु ण पावइ णिद्द-भरे परिचिंतिउ मणे धट्ठज्जुणेण पहरंतउ दिछु ण अज्जुणेण तहिं अवसरे दिव्बु समुट्ठियउ गिरि-सिहरागार-परिट्ठियउ पज्जलिय-जलण-जाला-वयणु खय-चंदाइच्च-हित्त-णयणु घत्ता पहरंतहो आसत्थामहो दुद्दम-देह-वियारणइं। जिह णइवइ णिय-णइ-णीरई गिलइ असेसई पहरणइं॥ [१०] दोणायणेण तो संभरिय णामेण विज माहेसरिय फणि-फड-फुक्कार-भयंकरिय उडुवइ-कड-जूडालंकरिय डमरुव-रव-भरिय-दियंतरिय फुरियाहर-विसम-विलोयणिय +++++++++++++++ सूलाउह-गो-विस-वाहणिय ता पेक्खेवि सहसुप्पण्ण-भउ ओसरेवि दिव्वु केत्तहि-वि गउ गुरु-णंदणु पर-वले पइसरइ तं मारमि जो पहरणु धरइ रह चूरइ करि-कुंभई दलइ हय हणइ णराहिव दरमलइ धय-चामर-छत्तई मोडियइं पंचालहं सीसई तोडियई Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५९ इक्काणवइमो संधि घत्ता वलु घाएवि हुयवहु लाएवि सिरई लएप्पिणु णीसरइ। वाहिय-रहु पुण्ण-मणोरहु घरु जरसंधहो पइसरइ॥ [११] कुरु-जंगल-परिपालण-मणहो अग्गए खिवियई दुजोहणहो परमेसरु करि वद्धावणउं णिरवज्जु रज्जु लइ अप्पणउं सीहासणु छत्तइं-चामरइं उवसमियइं सव्वइं डामरइं उब्भावहि मणिमय-मंडविय किय सयल पुहवि णिप्पंडविय पंचह-मि सिरइं मई तोडियइं सुर-गिरि-सिहराइं व मोडियइं पेक्खेप्पिणु कुरुव-राउ भणइ को गुरुसुव पंडु-पुत्त हणइ अवरेहि-मि जेण णिरत्थ किय गंगेय-कण्ण-दोणहिंण जिय एयई पुणु कलुण-जणेराई सीसहं पंचालह केराई घत्ता हउं एक्के पवणहो पुत्तेण लउडि-पहारेहिं चूरिउ। को पंच-वि हणइ रणंगणे जाम ण हरि सर-पूरिउ । [१२] दुजोहणु एम चवंतु थिउ गुरु-तणयहो धिद्धिक्कारु किउ वद्धारिय-जय-जय-मंडवहं जाणाविउ केण-वि पंडवहं तव-तणयहो भीमहो अज्जुणहो । अणिरुद्धहो संवहो पज्जुणहो हलहरहो अणंतहो सच्चइहे गय-घाय णिएविणु कुरुवइहे सेणावइ आसत्थामु थिउ विक्खेउ णरिंदें पट्टविउ विद्दाविउ तेण सयलु सिमिरु सो ण भडु ण तोडिउ जासु सिरु धट्ठज्जुणु सवलु सिहंडि मुउ गुरु-सामिय-परिहव-पट्ट धुउ सोमय-सिंजयह-मि करेवि खउ पंचालहं सीसइं खुडेवि गउ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणे मिचरिउ २६० घत्ता उव्वरिउ ण को-वि जियंतउ कह-वि कह-वि सोयाउरई। कंदंतइं धाह मुवंतइं पर चुक्कई अंतेउरई ॥ _ [१३] तं वयणु सुणेवि असुहावणउं गोविंदें किउ वद्धावणउं जइ अम्हहं सत्त-वि तेत्थु थिय आमिसहो रासि तो आसि किय तव-णंदणु पभणइ णिएवि मुहु लइ णच्चहि अम्हहं कवणु सुहु तो भायर इयर चयारि जण उद्धाइय अमरिस-कुइय-मण भीमज्जुण गय-गंडीव-धर सहएव-णउल असि-कुंत-कर णारायणेण पडिवंधु किउ सब्भावें अग्गए गंपि थिउ जइ जीविउ लेमिण मागहहो पइसरमि मज्झे तो हुयवहहो पत्थेण वुत्तु एत्तिउ करमि गुरु-सुयहो सिहा-मणि अवहरमि घत्ता पइज्जावसाणे किउ कलयलु तूरइं हयई पयट्ट पहु। गय रयणि दिवायरु उग्गमिउ ताम सयं भूसंतु णहु॥ ८ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। पंडव-वल-पलयकरो इक्काणवइमो सग्गो॥ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो-उत्तर-णवइमो संधि कुरु-पंडव-वलेहिं सम्मत्तेहिं रण-रस-रहस-पसाहणई। आभिट्टई उत्तर-दाहिणई मागह-माहव-साहणइं॥ अट्ठारहम्मि दिवसे वोलीणए कुरु-वले णिरवसेसे परिखीणए पाडिए सव्व-भउमि दुजोहणे परिसमत्ते पंचालाओहणे तुसिउ मइंदु जेम गय-गंधे ताडिय समर-भेरि जरसंधे हत्थु उत्थल्लिउ णरवर-विंदहं पारय-दरय-कुणीर-कुणिंदहं कोंकण-तामलित्त-तोक्खारहं मागह-सूरसेण-गंधारहं पत्थल-मेहल-कोहड-जट्टई वव्वर-टक्क-कीर-खस-भोट्टई ओड-पउंड-मुंड-ओवीरहं कइवय++-मरुव-कम्हीहं तुंडिएर-कालेरंवठ्ठह कण्णावरण-पमुह-वहु-रट्ठहं घत्ता णव कोडिउ पवर-तुरंगहं सोलह सहस गरेसरहं। चउरासी लक्खइं रह-गयहं संख ण णावइ किंकरहं ।। [२] कालजमण-वल-विक्कम-सारहं सय-सहसइं णिग्गयइं कुमारहं अलमल-वल-भरिया सारंधे वूहई विरइयाइं जरसंधे सेणावइ करेवि गुरु-णंदणु सुरेहिं समाणु णाई सकंदणु रण-रहसुब्भडु कहि-मि ण माइउ णं उत्तर-मयरहरु पधाइउ तं सयडिंव-भएहिं तो वुच्चइ किं ति-खंड वसुमइ ण पहुच्चइ वासुएव-वलएवहं लग्गहिं गयमणि पंचयण्णु धणु मग्गहिं किजउ संधि काई संगामें दुल्लह होइ जयंगण णामें किं वसुएव इढि ण णिहालिय रोहिणि जइय मंड उद्दालिय Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २६२ घत्ता गोवद्धणु जेण समुद्धरिउ सो केण पराजिउ समर-मुहे कालिउ दमिउ कंसु वहिउ। केसउ कामपाल -सहिउ ।। णवमउ वासुएवु अवइण्णउ पडिकेसव-विणासु उप्पण्णउ कोडि-सिला सि जेण उच्चाइय जइयतुं सच्चहाम करे लाइय उद्ध करावहि तुलिय तिविढे उत्तमंगु तणुरंत-दुविढे कंठावहि सयंभु अहिहाणे पुरिसुत्तमेण उरेत्ति पमाणे पुरिस-सीह-णामेण हि पत्ती पुंडरीय-पहुणा कडि-मेत्ती ऊरु-पमाण उच्चाइय दत्तें जाणुच्छेह सुमित्ता-पुत्तें चउरंगुल-मज्जाय उवेदें किज्जउ संधि समउ गोविंदें णउ अ-पमाणु होइ रिसि-भासिउ अम्हहं धुउ विणासु तहो पासिउ घत्ता जहिं णर-णारायण-साहणइं अतुल-वलइं पत्थिव-साराई। अण्णण्णइं तहिं मेलाइयज्ञ किं करंतिं तुम्हाराई।। [४] जहिं एक्कक्क पहाण महारह गय-दुंदुहि-अंकूर-विओरह सिणि-अणिरुद्ध-संवु-मयरद्धय । विम्हि-सुभाणु-भाणु-भोयंधय सच्चइ-चारु-जेडु दसारुह पंडव पंच-वि सम-विसमाउह कउरव खयहो णीय जेहिं आहवे तो को जिणइ जियंत महाहवे तुहं वेयारिउ अलइय-णामेहिं तिहिं किव-कियवम्मासत्थामेहिं गुरु-वहे कवणु कवणु किर जुज्झिउ पइं परमेसर कज्जु ण वुज्झिउ णउ लग्गणउ को-वि सयणिजउ कालजमणु एक्कु पर सहिजउ तं णिसुणेवि णरवइ आरुट्ठउ विसहरु विस-दोसें दुट्ठउ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६३ घत्ता किं भग्गु पाउण कंस - वहे अच्छंतेहिं दिवसे दिवायरहो [4] किया वयाई एवं चवंताई जम - घोरणा - घोर - णिग्घोस - तूराइं मयरहर - गिरि- कुम्म ओहट्टणाई व विज्जुल्लया पडण- पवियंभणाई व भंभंत भंभोह-भंकार - भीमाई दडडडदडताई दs - दगडि-घोसेहिं झिमिझिमिझिमंताइं झिक्किरि - विलासेहिं हूहूहुवंताई सय-संख - सद्देहिं डमडमडमंताई डमरु - वमालेहिं ढढढढढढताई ढड्डिय- णिणाएहिं घत्ता तं तेहउ तूर - सद्दु सुणेवि णं वण-दउ उप्पर महिहरहो --- [६] पचलई हरि-वल- वलई विरुद्ध किय- कलयलाई दिण्ण-वाइत्तइं विरइय- वइरि - वूह - पडिवूहइं उज्झिय-धयइं लइय-तणु-ताणइं दूर- वरुज्झिय-रण-भर - पसरई अवहत्थिय-णिय- पुत्त - कलत्तई रणवहु-अंगालिंगण-लोलई अम्हहिं विहिं णारायणहो । कवणु तेउ तारायणहो । दो - उत्तर - णवइमो संधि तो तेण देवाविया वायणंताई दस - दिसिवहब्भंतरालाण पूराई उप्पाय- णिग्घाय-आवेट्टणाई व गज्जंत- घण- पाउसारंभणाई व उं अं- हुडुक्का-परिछित्ति- धीमाई घुमुघुमुघुमंताई घुम्मुक्क-कोसेहिं खुमुखमुखुमंताई खुंखुण-सहासेहिं धूधूधुवंताई काहल - णिणद्देहिं सलसलसलंताई कंसाल-तालेहिं एएहिं अवरेहिं अण्णण्ण- घाएहिं रण-रसु कहि-मिण माइउ । हरि जरसंधहो धाइयउ || ९ ४ ८ जय - सिरि-तियस - विलासिणि-लुद्धइं पहु- पसाय-रिण- फेडण- चित्तई चोइय-रह-गय-तुरय-समूहइं कर - कड्डिय- वाणासण- वाणइं मरण-मणोरह-लद्धावसरई वसुह-वरंगण - गहण - पसत्तइं जल - वोलीण - वहल-हलवोलाइं ११ ४ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिहणे मिचरिउ २६४ ८ कोव-जलण-जालोलि-पलित्तई जय-वडाय-उद्दालण-चित्तई घत्ता पडिकेसव-केसव-साहणइं रहसें कहि-मि ण माइयइं। णं उत्तर-दाहिण-सायरहं जलई परोप्परु धाइयइं॥ ४ भिडियइं उब्भिड-भिउडि-करालई वलइं वे-वि वहु-वहल-वमालई मुक्क-णिरंतर-सरवर-जालई तुलिय-भयंकरेण करवालई हरि-धुय-धूली-धूसर-चिहुरई पहरण-घण-वण-वेयण-विहुरई सोणिय-कद्दम-खुत्त-गइंदई कंचण-खंचिय-रहवर-विंदई रत्त-तरंगिणि-अमुणिय-थाहइं सिर-सय-उप्परि-वाहिय-वाहइं तहिं अवसरे रण-रहसुद्दामहो धाइउ अज्जुणु आसत्थामहो णिक्किवि किवहो भीमु किव-जेट्ठहो सच्चइ भोयहो भोय-वरिठ्ठहो स-कलुसु कालजमणु तालद्धहो सई णक्खत्तणेमि जरसंधहो घत्ता पज्जुण्णहो सव्वई साहणई संवुहे सच्चुकुमार-वलु। जम-धणय-पुरंदर-पेक्खएहिं णं झुल्लाविउ गयणयलु ।। [८] ताम धणंजएण गुरु-णंदणु संदाणिउ संदणेण स-संदणु आहय हय धणु पाडिउ हत्थहो। लेवि सिहा-मणि घल्लिउ तत्थहो गुरु-सुउ भणेवि णरेण ण घाइउ ताम विओयरेण किउ छाइउ सो-वि पण? मुएवि णिय-संदणु तहिं गउ जहिं गउ दोणहो णंदणु सच्चइ जिणेवि ण सक्किउ भोएं ल्हसिउ सो-वि जयलच्छि-विओएं तिण्णि-वि कुल-परिवाडिहे चुक्का कहि-मि सलज्ज तवोवणु ढुक्का कालजमणु कालाणल-दूसहु काल-जलय-अलयालि-समप्पहु कालकूड-विस-विसम-विलोयणु मलय-महागिरि-मंदर-चोयणु ४ ८ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५ दो-उत्तर-णवइमो संधि घत्ता स-सरासणु पेसिय-सर-णियरु धाइउ उप्परि जलहरहो। धाराहरु धाराधारयरु णं हिमवंत-महीहरहो॥ तओ महा-करेणुणा मयंवु-सित्त-रेणुणा कयंत-रूव-धारिणा सुगंध-गंधि-धारिणा पडीभ-कुंभ-मद्दिणा विसाल-णालि-अद्दिणा मयाणियालि-पंतिणा जियामरिंद-दंतिणा करग्गच्छत्त-भाणुणा खयायवच्च-थाणुणा सयामयालसच्छिणा जियारि-राय-लच्छिणा असंत-कण्ण-वाउणा सहासहाय-णाउणा मणप्पहंजणासुणा जियारि-साहणासुणा घत्ता णहर-दसण-पुच्छाउहेहिं जगडिउ जायव-णाह-वलु। तं तिण-समु मण्णे-वि सीहु जिह णवर परिट्ठिउ एक्क-वलु। [१०] तो संकरिसणेण किय-थाणे विद्ध महाकरि एक्के वाणे विहि णारायणेण णाराएहिं अप्पासंग-भुअंग-णिराएहिं तिहिं सिणि-णंदणेण उवढुक्के सव्वें थूणाकण्ण-चउक्के पंचहि तोमरेहिं अणिरुद्धे छहिं तोलिएहिं मजरेण(?) विरुद्ध सत्तेहिं गुरुहिं विओरह-णामें अट्ठ वराहकण्ण सइकामें णव कण्णिय तव-सुएण सुधीमें वच्छदंत दस पेसिय भीमें एयारह वइहत्थि पयत्थे वारह भल्ल गए णर-हत्थें तेरह तीरिय भाणुकुमारें विद्ध असेसें खंधावारें ४ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २६६ घत्ता वइसारिउ कुंजर समर-मुहे कह-वि ण कालजमणु पडिउ। उप्पएवि णहंगणे णं घणेण करणे कंचण-रहे चडिउ।। वाहिउ रहु पर-वलहो रउद्दहो मंदरु भमइ व मज्झे समुद्दहो पंचहिं पंचहिं सव्व परज्जिय तेहि-मि दस दस तासु विसज्जिय तेण-वि वीस वीस आमेल्लिय तेहि-मि तीसहिं तीसहिं भेल्लिय तेण-वि सट्टि सट्ठि सरलाइय तेहि-मि तासु तुरंगम घाइय तेण-वि ताहे महद्धय ताडिय तेहि-मि तासु सूअ-रह पाडिय स-फरु स-मंडलगु उद्धाइउ णं दइवेण दवाणलु लाइउ सारणेण सो एंतु पडिक्खिउ जाउ महाहउ अमरे णिरिक्खिउ भिडियभंतर-वाहिर-मग्गेहिं विहि-मि परोप्परु तच्छिउ खग्गेहिं ८ घत्ता तो लद्धावसरे सारणेण कालजमणु जम-सयणु णिउ। जय-तूरई दिण्णइं जायवेहिं कलयलु देवेहिं गयणे किउ ।। [१२] कालें कालजमणु जं कडिउ हरि-वल-वले परिओसु पवडिउ तो तिखंड-महिमंडल-पालें सुय-विओय-घुम्मविय-णिडालें सव्वई साहणाई पट्ठवियई ताइ-मि पज्जुणेण णिट्ठवियई वाणर गिरि-पमाण उप्पाइय किलिगिलंत खायंत पधाइय अण्णेत्तहे-वि विसम महाफणि फुप्फुवंत-विप्फुरिय-फणामणि सरह-वराह-महिस-विस-भीयर वग्घ-मइंद-रिक्ख-रयणीयर भमर-रिट्ठ-सलहुंदुरइत्तिउ मक्कुण-दंस-मसय-घुण-लित्तउ अण्णेत्तहे सवाहु वइसाणरु धूलि-तमंधयारु घण-डंवरु Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ दो-उत्तर-णवइमो संधि ४ घत्ता पण्णत्ति-पहावें पर-वलई सव्वइं भग्गइं पज्जुणेण। उवयार-सहासई णासियइं णावइ एक्के अवगुणेण ।। [१३] णिय-वले भज्जमाणे वलसारहं धाइय पवर कुमार कुमारहं ते जयलच्छि-सुरंगण-लुद्धेहिं दुंदुहि-गय-कुमार-अणिरुद्धेहिं भाणु-सुभाणु-संव-पज्जुण्णेहिं चारु-जेट्ठ-उद्धएहिं सउण्णेहिं णिसढ-विओरह-जर-अंकूरेहिं किय-कलयलेहिं समाहय-तूरेहिं के-वि णिवद्ध के-वि संदाणिय के-वि भग्ग के-वि वसुह-पराणिय तहिं अवसरे अच्चंत-मयंधे पभणिउ णिय-सारहि जरसंधे वाहि वाहि रहु जउ तउ तूरइं कण्ण-कंदरोयर-पडिपूरई वाहि वाहि तुहुं जउ तउ छत्तई जंदगोव-पज्जुण्णइं पत्तई घत्ता वयणु सुणेवि चक्काहिवहो उहय-कराहय-हय-पवरु। रहु वाहिउ सूएं णवरु तहिं जहिं हलहरु सारंग-धरु ।। [१४] भिडिय वे-वि पडिकेसव-केसव आसग्गीव-तिविट्ठ णरेस व रावण-रामाणूण धणुद्धर सुरवइ गयविलास विसकंधर दुद्दम देह दुइ-वि दुरइक्कम कारण-वारण-वारण-विक्कम दुसह-दिणमणि-दित्त-समुज्जल भासुर-भुअ-भुअंग-भुयग्गल दिण्ण-तूर-परिवड्डिय-मलहर णं उत्थरिय स-जल णव-जलहर अरिगण-पहरण-पहर-किणंकिय सायकुंभ-सण्णाह-अलंकिय रहवर-भर-भारिय-वीसंभर सरवर-णियर-भरिय-वसुहंवर मउड-पहोहामिय-रवि-मंडल चंद-सूरप्पह-जिय-मणि-कुडंल ८ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २६८ घत्ता चक्काहिव-पडिचक्काहिवइ वावरंति लद्धावसर। णिवडंति झत्ति णिग्घाय जिह णहयल-भरिउव्वरिय सर ।। [१५] विहि-मि सरेहिं णहंगणु छाइउ कह-वि कह वि सुर-सेण्णु ण घाइउ कह-वि कह-वि रवि रहवरु खंचइ वंतु वाउ वाएवउ वंचइ तेहिं पडंतेहिं वणियइं सेण्णइं रहवर-जोह-तुरंग-वरेण्णई तेहिं पंडतेहिं फुडिय वसुंधर तेहिं पंडतेहिं पडिय धराधर तेहि पंडतेहिं भिण्ण भुवंगम आवय पाविय थावर जंगम तेहिं पंडतेहिं भरिय दियंतर तेहिं पंडतेहिं सोसिय सायर तेहिं पडतेहिं जणवउ घोसइ णउ जाणहुं किह एवंहिं होसइ ता उप्पण्णु कसाउ णरिंदहो मुक्कु भुवंगमत्थु गोविंदहो घत्ता धणु-गुण-वम्मीय-विणिग्गयई विसहर-लक्खइं धाइयई। उप्फड-फुक्कार-भयंकरइं . जले थले गयणे ण माइयइं॥ ९ ४ तो गोविंदें गोविस-कंधहो जायइं गरुयइं गरुड-सहासई तिल-तुस-मेत्तु-विसुण्ण ण तेत्तहो खगवइ खज्जमाणु पारक्कउ पायवत्थु पत्थिवेण विसज्जिउ वारुणु मागहेण परिपेसिउ माहिहरत्थु महिहरेण पमेल्लिउ तामसत्थु दिणयरेण विणासिउ पेसिउ गारुडत्थु जरसंधहो परिपिहियइं जल-थल-आयासई णाय ण णाय आय गय केत्तहो पाडिय-पडउ पणझुण थक्कर महुमहेण हुयवहेण परजिउ माहवेण वायवेण विहासिउ केसवेण कुलिसत्थे भेल्लिउ अवरें अवरु पवरु-विद्धंसिउ ८ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६९ दो-उत्तर-णवइमो संधि घत्ता ४ । ८ णीसेसई अत्थई मुक्काइं एक्कु सरासणु णउ मुअइ। अवसाणे काले सव्वहो णरहो धम्महो उप्परि होइ मइ ।। [१७] पवलामलवल-वल-वलवंतें लयउ अणंतेहिं सरेहिं अणंतें पेक्खंतहो पवरामर-सत्थहो कह व कह व धणु पाडिउ हत्थहो छिण्णु महारहु सारहि घाइउ असिवरु फरु फेरंतु पधाइउ खंडिय ते-वि वे-वि विहिं वाणेहिं कुलिस-दंड-जम-दंड-समाणेहिं लइय सत्ति सहस त्ति विसज्जिय तिहिं भल्लेहिं भदिएण परज्जिय मुक्क महागय गय गयण धरेवि ण सक्किय केण-वि जोद्धे अरिगण-घण-पहरणेहिंण भग्गी कह-वि कह-वि केसवहो ण लग्गी पज्जुण्णेण पण्णत्तिय-पाणे किय सय-खंडई हणेवि किवाणे मागहेण अगणिय-पडिवक्खें लइउ महा-रहंगु सविलक्खें घत्ता तं चक्क-रयणु चक्काहिवेण दारुणु दाहिण-करे कियउ। अत्थइरिहे मत्थए अत्थवणे दिणयर-विंवु णाई थियउ ।। [१८] तं चक्कवइ-चक्कु चमु-चक्खणु जक्ख-सहासु जासु परिरक्खणु दस-सयारु वहु-वारु सिला-सिउ । गंध-धूव-वहु-कुसुमेहिं वासिउ मुक्कु ति-खंड-पिहिवि-परिपालें णं खय-काल-चक्कु खय-कालें धाइउ थरहरंतु आयासें अमर परिट्ठिय एक्के पासें धरिउ ण णर-णारायण-वाणेहिं णउ मद्दीसुअ-कोंत-किवाणेहिं णउ पवणंगय-वर-गय-घाएहिं णउ हलहर-हल-मुसल-णिवाएहिं णउ मयरद्धय-पमुह-कुमारेहिं णउ पहरणेहिं सिला-सिय-धारेहिं सव्वेहिं धरेवि ण सक्किउ एंतउ हरि-करे लग्गु ति-भामरि देंतउ ८ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ २७० घत्ता परिणयणे कुमारी-रयणु जिह ढुक्कु चक्कु केसव-करहो। जं जेण दिण्णु जं जेण किउ तं तहो सइं जेपइ घरहो(?) । [१९] जं उप्पण्णु चक्कु गोविंदहो तं परिओसु पड्दिउ इंदहो णच्चिउ णारउ दुंदुहि ताडिउ कुसुम-वासु केसव-सिरे पाडिउ वुच्चइ सरहसेण वलएवं मागह जाहि काइं अवलेवें अजु-वि खमइ वीरु करि वयणइं देहि ति-खंड पिहिवि णिहि-रयणइं ४ दोच्छिउ पत्थिवेण ण-वि थक्के कवणु गहणु महु एक्के चक्कें सीहहो कइ सहाय किर काणणे तो-वि मरंति दंति तहो आणणे मुए मुए गंदगोव किं अच्छहि तो णियय-णिहेलणु गच्छहि झत्ति पलित्तु णवर गरुडासणु णं घिय-धारए सित्तु हुवासणु घत्ता केसवेण लेवि पडिकेसवहो चक्क-रयणु रयणग्घविउ । अत्थइरिहे उयय-महीहरेण सूर-विवु णं पट्टविउ॥ [२०] धाइउ चक्क-रयणु रयणुज्जुलु तेओहामिय-दिणमणि-मंडलु जाला-मालालिंगिय-सुरवरु णिय-पडिरव-पूरिय-भुअणोयरु महि-कारणे रणे किय पडिवंधे धरेवि ण सक्किउ तं जरसंधे णिवडिउ विप्फुरमाणु थणंतरे विजुल-वलउ णाई गिरि-कंदरे ४ पहु ओणल्लु रहंगहो घाएं णं णग्गोहु भग्गु दुव्वाएं णं आयासहो पडिउ दिवायरु णं परिसोसहो गउ स्यणायरु तो अणेय उप्पाय समुट्ठिय णिप्पह चंदाइच्च परिट्ठिय कंपिय धरणि धराधर डोल्लिय णरवर माया-रुहिर-जलोल्लिय ८ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१ दो-उत्तर-णवइमो संधि घत्ता जलजलइ णहंगणु जगु भमइ धूमायति दियंतरई। केसवेण सई भूसावियई णिय जसेण वसुहंवरई॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। जरसंध-वहो णामो दो-उत्तर-णवइमो सग्गो।। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणे मिचरिउ २७२ [जुज्झ-कंड-उवसंहार-वयणाइं] तेरह जायव-कंडे, कुरु-कंडे एऊणवीस संधीओ। तह सहि जुज्झ-कंडे, एवं वाणवदि संधीओ॥ सोम-सुयस्स य वारे, तइया-दियहम्मि फग्गुणे रिक्खे । सिउ-णामेणं जोए, समाणियं जुज्झ-कंडं य ॥ छव्वरिसाई ति-मासा, एयारस वासरा सयंभुस्स । वाणवदि-संधि-करणे, वोलीणो इत्तिओ कालो । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________