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________________ पंचसट्टिमो संधि गय-साहणु चूरिय समर-मुहे णं पंचाणणु णिव्वडिउ। वाणासण-वीयउ एक्क-रहु सच्चइ जलसंधहो भिडिउ॥ ४ भिडिय वे-वि णं मत्त महा-गय तावणीय-माला-मंडिय-सिर चित्त-जोहि केसरि लहु-विक्कम सुरधणु-अणुहरमाण-धणुद्धर तो सिणि-णंदणेण अपमाणेहिं णिय-कुल-विक्कम-राय-मयंधे पुणु पंचहिं पडिविद्धु थणंतरे तिक्ख-खुरुप्पें मुट्ठिहे ताडिउ रुप्पिय-कवय सुवण्ण-मयंगय जलहर-रव-गंभीर-महग्गिर वसह-खंध देविंद-परक्कम कुंडल-पह-जिय-चंद-दिवायर भिण्ण कुंभि-कुंभ-त्थल वाणेहिं धणु सच्चइहे भिण्णु जलसंधे अवरु सरासणु लेवि खणंतरे सट्टिहिं कह-व कह-व उप्पाडिउ ८ घत्ता जलसंधे आयस-तोमरेण भिण्णु महा-भुउ जायवहो। लक्खिजइ पवरु भुवंगु जिवं डाले वइट्ठउ पायवहो। तीसहिं जायवेण धणु छिज्जइ धाइउ दुद्दम-देह-वियारउ अवरु लेवि जमदूय-समाणेहिं सिरु तइएण खुरुप्पें तोडिउ तो रुप्प-रह णिसायर धाइय पच्छए लग्गु दोणु तहिं अवसरे तेहत्तरिहिं विद्ध पुणु सत्तहिं दुम्मरिसणेण चउवीसद्धेहिं दुम्मुहेण तेत्तिएहिं जे वाणेहिं तेण-वि स-फरु किवाणु लइज्जइ धणु सच्चइहे छिण्णु वे-वारउ । पाडिय वाहु वे-वि विहिं वाणेहिं हंसें सहसवत्तु णं मोडिउ विहिं मग्गणेहिं वे-वि विणिवाइय णाई कयंतु चडेप्पिणु रहवरे दूसासणेण समाहउ अट्ठहिं दूसासणे चालीसद्धद्धेहिं दुज्जोहणेण अणेय-पमाणेहिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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