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रिट्ठणे मिचरिउ
घत्ता
णिउ रहवर दारुय-भायरेण वेण्णि-वि सरेहिं समावडिय। आमिस-लालस सद्दूल जिह णहेहिं परोप्परु अभिडिय॥
[१७] तो कियवम्में हियए हउ तेण-वि धय-धणु-छेउ कउ । वि-रहु अ-सारहि णित्तुरउ कह-वि ण वइवस-णयरु गउ ।।
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पाडेवि चक्क-रक्ख गउ सच्चइ सारहि जाहि जाहि वीसत्थउ एहु जे दोणहो अवरेहिं पासेहिं वाहि वाहि रह-तुरय-वरेण्णइं दिणमणि-वण्ण-महाहय-जोड़ा वेढिउ हत्थि-हडेहिं पडिवारउ विंधइ आयस-सिरेहिं कियायरु छिण्णइं स-गयइं गय-उवगरणई
सरहसेण विहसेप्पिणु वुच्चइ को महु रण-मुहे भिडेवि समत्थउ भणमि अणीउ पिसक्क-सहासेहिं जहिं तिगत्त-संसत्तग-सेण्णई वाहिय चंद-समप्पह घोडा मघ-गउ घणेहिं णाई अंगारउ गिरिहिं व उप्परि तवइ दिवायरु कंवल-पक्खर-सय-आवरणई
घत्ता
अण्णहिं कर अण्णहिं देह गय अण्णहिं करि-कुंभत्थलई। सइं भूमिहे णाई परिट्ठियई अहि-वम्मीय-सिलायलई।
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
चउसट्ठिमो सग्गो॥
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