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________________ ४६ रिट्ठणे मिचरिउ सय-वार वियत्तणे वि-रहु किउ णउ केण वि गालि-सएहिं लइउ जं सत्तु भीमु जं संभरहि महु कल्लहो कल्ल-कल्ले मरहि जं गुणु अहिमण्णहो छिण्णु पई मारेवउ तं विससेणु मई जइ आयह एक्कु वि णउ करमि तो चियहे वलंतिहे पइसरमि घत्ता ताम पसंसिउ महुमहेण पइं सरिसु अवरु को महियले। जो उज्जलहो जयद्दहहो सिरु खुड्डइ जियंतए कुरु-वले॥ [८] तो गंडीवेण तेण० जाउ विहत्तउ तेण । अक्खोहणियउ तेण० सत्त समत्तउ तेण०॥ णरु पभणइ थोत्तुगिण्ण-गिरु जं जउहरे चुक्क हुआसणहो जं खंडवे सुरवरे परिहविय जं कुरुवइ विग्गहे वावरिउ जं धरेवि ण सक्किउ दद्धरेहिं जं णिहउ जयद्दहु पइसरेवि तं सव्वु पसाएं तउ तणेण गय एवं चवंत चवंत तहिं अवरोप्परु दिण्णइं साइयइं कर-कमल-कयंजलि-पणय-सिरु जं पाडिय राह णहंगणहो जं कालकंज-वणे विद्दविय जं उत्तर-गोग्गहे उव्वरिउ एक्कल्लउ वहु-जालंधरेहिं अ-मणूसउं कुरुव-सेण्णु करेवि को जिज्जइ वलेण महु त्तणेण सो अच्छइ पंडव-णाहु जहिं अंसुवई स-हरिसइं आइयई घत्ता कहिं सच्चइ कहिं पवण-सुउ कहिं मेलावउ भायरहं कहिं अज्जुणु कहिं तव-णंदणु। पवियंभइ सव्वु जणद्दणु ॥ ताव णिरुज्जमु तेण० चत्ताओहणु तेण० । गुरु-थाणंतरु तेण० गउ दुजोहणु तेण०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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